वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है, जिस में व्यक्ति अपनी मौत के बाद अपनी संपत्ति को किस तरह से किसकिस को देना चाहता है. वसीयत करने वाले व्यक्ति को वसीयतकर्ता कहा जाता है. वसीयत बनाने से संपत्ति के बंटवारे में होने वाले झगड़ों से बचा जा सकता है. वसीयत में वसीयत करने वाला अपनी इच्छाओं को कानूनी रूप से दर्ज करता है. इस में दान और अपने अंतिम संस्कार की इच्छा भी बता सकते हैं. वसीयत करने वाले को स्वस्थ और दिमागी रूप से ठीक होना चाहिए. अंधे या बहरे लोग भी वसीयत कर सकते हैं. वसीयतकर्ता अपनी जिंदगी में कभी भी वसीयत बदल सकता है या किसी और के नाम कर सकता है.

वसीयत 1925 के भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम यानी आईएसए के अनुसार बनाई जाती है. वसीयत से जुडे़ विवाद इसी कानून के अनुसार सुलझाए जाते हैं. आईएसए की धारा 57 से 191 में 23 सैक्शन है. जो वसीयत के नियमों को बताते हैं. वसीयत शब्द लैटिन के वोलंटस से बना है, जिस का इस्तेमाल रोमन कानून में वसीयतकर्ता के इरादे को व्यक्त करने के लिए किया जाता था. आईएसए की धारा 61 से 70 के द्वारा किसी भी वसीयत या वसीयत के किसी भाग को शून्य घोषित करती है यदि वह धोखाधड़ी, जबरदस्ती बनाई गई हो.

कितना जरूरी है रजिस्ट्रेशन

वसीयत पर वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान होना चाहिए. वसीयत को 2 या अधिक गवाहों द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए जिन्होंने वसीयतकर्ता को हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लगाते देखा हो. वसीयत को ले कर एक सवाल सब से अधिक पूछा जाता है कि क्या वसीयत का रजिस्ट्रेशन जरूरी है? वसीयत का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है. बिना रजिस्टर्ड वसीयत उतनी ही वैध है यदि वह भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार बनी हो. राज्य सरकारों के द्वारा इस तरह का दबाव बनाया जाता है कि वसीयत का रजिस्टर्ड होना जरूरी है. जब मसला कोर्ट में जाता है तो यह देखा जाता है वहां गैररजिस्टर्ड और गैररजिस्टर्ड का भेद नहीं होता है.

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