Society : इन दिनों ये देखा जा रहा है कि पत्नी द्वारा पति पर अत्याचार किया जा है, कई वायरल वीडियो में पत्नी अपने पति को पिटते हुए और अपशब्द कहते हुए नजर आ रहीं है. हमारे समाज में जब भी कोई महिला अपने पति पर हाथ उठाती है या घरेलू हिंसा का आरोपी बनती है, तो यह खबर तेजी से फैलती है. मीडिया इसे सनसनीखेज बनाकर परोसता है और समाज में यह नैरेटिव गढ़ा जाता है कि महिलाएं अब अत्याचार कर रही हैं. लेकिन क्या यह एक संयोग है, या फिर महिलाओं के खिलाफ एक सोचीसमझी मानसिक चाल?
यह कोई नई बात नहीं है कि महिलाओं को नियंत्रित करने के लिए समाज ने हमेशा नएनए तरीके अपनाए हैं. कभी उन्हें शिक्षा से दूर रखा गया, कभी उन के पहनावे पर सवाल उठाए गए, तो कभी उन के कार्यक्षेत्र को सीमित किया गया. एक बार इतिहास में झांकर देखे तो यह मालूम होता है कि महिलाओं की आवाज को हमेशा ही दबाया गया है. सती प्रथा जैसी चलन ने समाज में महिलाओं के लिए डर का माहौल तैयार किया और उन के पति के मरने के बाद उन से जिंदगी जीने तक का अधिकार छीन लिया था. विधवा औरतों की दूसरी शादी से समाज आज भी उतना ही असहज है जितना आज से सौ साल पहले हुआ करता था. अगर कोई आदमी किसी विधवा औरत से शादी कर ले तो समाज उसे ऐसी हीन भावना से देखता है जैसे कि उस ने कोई अपराध कर दिया हों. आज भी छोटे शहर से लड़कियां बड़े शहरों में अपनी पढ़ाई और नौकरी के लिए कम ही आती है. मांबाप के अन्दर एक अलग ही डर आज भी मौजूद है कि कहीं उनकी बेटी के साथ बड़े शहर में कुछ अप्रिय घटना न घट जाएं. बलात्कार के मामले हर रोज आप को सुनने को मिल ही जाएंगे. इस से कोई शहर अछूता नहीं रह गया है. ऐसे में मांबाप की चिंता एक तरफ तो जायज नजर आती है वहीं दूसरी तरफ एक बेटी के सपने उस के आंखों में ही रह जाते है और कभी भी हकीकत की शक्ल नहीं ले पाते है. अब जब महिलाएं कहीं हिम्मत करके शिक्षा और रोजगार के माध्यम से आत्मनिर्भर हो रही हैं, तो उन्हें 'दमनकारी' या 'हिंसक' बताने का प्रयास किया जा रहा है. अगर कहीं किसी छोटे कस्बे की कोई लड़की अपनी हक के लिए बगावत कर दें तो समाज उसे डराने से बाज नहीं आता.
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