वैवाहिक विवाद नए नहीं हैं पर चूंकि अब विवाह पर विवाद के कारण आत्महत्याएं या विमान अपहरण की घटनाएं तक दुनिया भर की सुर्खियां बन जाती हैं, ऐसा लगने लगा है कि विवाह के बाद भी स्त्रीपुरुष को वह सुरक्षा और वह साथ नहीं मिलता जिस की उन्होंने कल्पना की थी. अब नाटकीय ढंग से 5वीं मंजिल से कूद जाना या पैट्रोल को सिर पर डाल लेना ज्यादा विवाह का प्रभावशाली अंत लगता है. औरतें तो करती ही हैं यह सब, आदमी भी कम नहीं हैं अपना दर्द गलत तरीके से दर्शाने में. विवाह संस्था असल में अब एक नए मोड़ पर है. पहले स्त्रीपुरुष में यौन तृप्ति और बच्चों को पालने के लिए विवाह की अनिवार्यता थी. आज बच्चे भी तब ही होंगे जब पतिपत्नी चाहेंगे और यदि बच्चे न हों तो विवाह क्यों किया जाए तो यह सवाल बना रहा जाता है. अगर विवाह कर भी लिया और साथी अच्छा संरक्षक या मित्र साबित न हो तो सोचा जाता है चलो तोड़ दो इस बंधन को चाहे इसे तोड़ने में रातदिन का चैन छिन जाए, व्यक्तित्व पर धब्बा लग जाए या फिर बहुत पैसा खर्च ही क्यों न हो जाए.

जब इतने तलाक होने लगें कि विवाह एक टैंपरेरी सौल्यूशन बन जाए तो सोचना ही होगा कि आखिर किया क्या जाए? क्या 3000-4000 साल पुरानी इस पद्धति को ढोया जाए? लगभग हर देश में विवाह कानूनों पर बहस चल रही है. कहीं समलैंगिकों को विवाह का हक देने का सवाल है, कहीं एक से अधिक विवाह करने की पाबंदी या छूट पर विवाद है, तो कहीं तलाक के बाद हरजाना और बच्चों के संरक्षण का मामला है.

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