Parvathy Thiruvothu : 2017 की सर्दियां पार्वती थिरुवोथु के लिए आने वाले तूफान का संकेत थीं. उस साल दिसंबर के महीने में मलयालम, तमिल और हिंदी फिल्मों में अपने काम के लिए जानी जाने वाली अभिनेत्री ने सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के बारे में एक पैनल डिस्कशन में भाग लिया था. इस चर्चा में उन्होंने एक मलयालम फिल्म पर अपनी निराशा व्यक्त की थी, जिस में ‘एक उत्कृष्ट अभिनेता’ ने एक महिला को ऐसे संवाद बोले, जो बेहद अपमानजनक ही नहीं बल्कि निराशाजनक भी थे. इस डिस्कशन में उन्होंने फिल्म का नाम नहीं बताया लेकिन जब एक सहपैनलिस्ट ने उन से ऐसा करने का आग्रह किया, तो उन्होंने खुलासा किया कि वह 2016 की क्राइम थ्रिलर और बौक्स औफिस पर हिट रही ‘कसाबा’ का जिक्र कर रही थीं, जिस में बड़े कद के अभिनेता ममूटी ने अभिनय किया था.

फिल्म के रिलीज होने के बाद कई फिल्म समीक्षकों और यहां तक कि केरल महिला आयोग ने भी ‘कसाबा’ की रिलीज के बाद उस के महिला विरोधी संवादों की आलोचना की थी. इस फिल्म में एक दृश्य है जिस में ममूटी, जो एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं, एक वरिष्ठ महिला सहकर्मी को इशारों में यौन उत्पीड़न की धमकी देते हैं.

पार्वती की यह टिप्पणी वायरल हो गई और वे एक नफरत भरे औनलाइन अभियान का निशाना बन गईं. सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हें बेरहमी से ट्रोल किया. कुछ ने तो बलात्कार करने और जान से मारने की धमकी भी दी. फिल्म उद्योग के कई अंदरूनी लोगों ने भी उन की निंदा की. ‘कसाबा’ के निर्माता जौबी जौर्ज ने पार्वती को कथित रूप से अपमानजनक संदेश भेजने के आरोप में केरल पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से नौकरी की पेशकश की. हालांकि पार्वती डटी रहीं.

इसी समय पार्वती ने मलयालम फिल्म ‘टेक औफ’ (2017) के लिए एक प्रतिष्ठित पुरस्कार जीता. इस फिल्म में इराक में आतंकवादियों द्वारा किडनैप की गईं भारतीय नर्सों की वास्तविक पीड़ा को दिखाया गया है. जब वे पुरस्कार लेने और अपना स्वीकृति भाषण देने के लिए मंच पर गईं तो दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उन का अभिवादन किया. तालियों की यह गड़गड़ाहट उन के समर्थन में नहीं बल्कि उन की आवाज को दबाने की एक चाल थी.

कोच्चि के ली मैरिडियन होटल में कौफी पीते हुए पार्वती ने बताया, ‘‘मैं मन ही मन खुद से कह रही थी कि वहां जाओ, अपनी बात कहो, लड़खड़ाओ मत, उन्हें संतुष्टि मत दो.’’

पहले कभी इतनी नहीं टूटी

पार्वती के काम को उन की जटिल भूमिकाओं और भावनात्मक गहराई के लिए जाना जाता है
पार्वती के काम को उन की जटिल भूमिकाओं और भावनात्मक गहराई के लिए जाना जाता है

उस रात अपने होटल के कमरे में पहुंचते ही पार्वती का पूरा शरीर कांपने लगा और वे पतनावस्था में पहुंच गईं. उन्होंने कहा, ‘‘मेरा शरीर नफरत और कटुता को बरदाश्त नहीं कर सका. मैं पहले कभी इतनी नहीं टूटी.’’

कुछ महीने बाद जब वे विदेश में शूटिंग से भारत लौटीं और केरल फिल्म राज्य पुरस्कार समारोह में एक और पुरस्कार लेने के लिए जाने की तैयारी कर रही थीं, तब वे अपने होटल के कमरे में बेहोश हो गईं. उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘हाउसकीपिंग स्टाफ ने मुझे जगाया. उन्होंने मेरे चारों ओर एक साड़ी लपेटी और तब मैं मंच पर गई.’’

धमकियां बंद नहीं हुईं और न ही पार्वती ने आवाज उठाना बंद किया. उन्होंने शानदार काम करना जारी रखा, जिस ने उन्हें सम्मान और प्रशंसा दोनों दिलाए. काम के साथ उन्होंने अपनी आवाज भी बुलंद रखी. लेकिन उन के इस फैसले की वजह से उन्हें एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत और पेशेवर कीमत चुकानी पड़ी.

पार्वती ने बताया, ‘‘ये ऐसी बातें नहीं हैं जिन के बारे में लोग सुनते हैं बल्कि एक इंसान है जो इस स्थिति से गुजर रहा है, जो खुद को फिर से संभाल रहा है और कह रहा है कि अपना कवच फिर से पहनो, अपने शरीर और दिमाग को फिर से व्यवस्थित करो, फिर से ऊपर जाओ क्योंकि तुम्हारे पास ऐसा न करने का कोई विकल्प नहीं है.’’

पार्वती ने कहा कि ऐसा करना निस्स्वार्थ नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं एक पूर्ण जीवन जीना चाहती हूं, मुझे इस का अधिकार है और मैं यह सुनिश्चित करने जा रही हूं कि मैं इसे प्राप्त कर सकूं. मैं किसी की हीरो भी नहीं हूं… यह मैं अपने लिए कर रही हूं, मैं यह अपनी भतीजी के लिए कर रही हूं उस के बाद बाकी सभी के लिए.’’

लगभग 2 दशक लंबे कैरियर में पार्वती ने खुद को भारतीय सिनेमा की सब से बहुमुखी अभिनेत्रियों में से एक के रूप में स्थापित किया है. पिछले 1 साल में उन्होंने मलयालम फिल्मों ‘उल्लोझक्कु’ (अंडरकरंट), (2024) में शानदार अभिनय के लिए कई पुरस्कार जीते हैं, जो पारिवारिक संघर्षों को दिखाते हैं. उन्होंने मलयालम ऐंथोलौजी ‘मनोरथंगल’ (माइंडस्केप्स), (2024) के एक ऐपीसोड में भी बेहतरीन अभिनय किया. यह प्रसिद्ध लेखक, पटकथा लेखक और निर्देशक एमटी वासुदेवन नायर की लघु कहानियों पर आधारित सीरीज है.

पार्वती के परिवार का फिल्म इंडस्ट्री से कोई कनैक्शन नहीं रहा, फिर भी उन्होंने मेहनत और अनुशासित कार्यशैली से अपनी अलग पहचान बनाई
पार्वती के परिवार का फिल्म इंडस्ट्री से कोई कनैक्शन नहीं रहा, फिर भी उन्होंने मेहनत और अनुशासित कार्यशैली से अपनी अलग पहचान बनाई

अपने लिए एक रास्ता बनाया

पार्वती का काम उन के द्वारा निभाई गई जटिल भूमिकाओं और उन की भावनात्मक गहराई से विशिष्ट है. ‘उयारे’ (अप अबव), (2019) में उन्होंने ऐसिड अटैक सर्वाइवर का किरदार निभाया जो अपने जीवन और कैरियर को फिर से शुरू करती है. ‘एन्नु निन्टे मोइदीन’ (योर्स ट्रुली मोइदीन), (2015) में उन्होंने एक अंतरधार्मिक जोड़े की मार्मिक और सच्ची कहानी को जीवंत किया. ‘पुझ’ (वर्म), (2022) में उन्होंने अंतर्जातीय विवाह के इर्दगिर्द बनी एक तनावपूर्ण कहानी में ममूटी की बहन की भूमिका निभाई. वहीं वह ‘बैंगलुरु डेज’ (2014) में सहज दिखीं. यह एक ऐसी फिल्म है जिस में मलयालम सिनेमा के कुछ सब से बड़े सितारों ने एकसाथ काम किया. उन्होंने तमिल फिल्म ‘मैरीन,’ (इम्मोर्टल), (2013) में भी अपनी अलग पहचान बनाई, जिस में उन्हें हाई प्रोफाइल अभिनेता धनुष के साथ काम किया. 2017 में उन्होंने रोमांटिक कौमेडी ‘करीब करीब सिंगल’ के साथ हिंदी फिल्म में अपनी शुरुआत की, जिस में उन्होंने बेहद आकर्षक इरफान खान के साथ काम किया और स्क्रीन पर छा गईं.

हालांकि पार्वती किसी फिल्म उद्योग के किसी बड़े परिवार से संबंध नहीं रखती हैं, उस के बाद भी उन्होंने अनुशासित कार्य नीति का पालन करते हुए अपने लिए एक रास्ता बनाया. वे स्क्रिप्ट पढ़े बिना फिल्में साइन करना पसंद नहीं करती हैं. कभी भी एक समय में एक से ज्यादा प्रोजैक्ट पर काम नहीं करती हैं और जिस भी भाषा में काम करती हैं, उस में खुद डबिंग करने पर जोर देती हैं.

औफस्क्रीन पार्वती ने भारतीय अभिनेताओं में एक दुर्लभ गुण का प्रदर्शन किया है- अन्याय के खिलाफ बोलने का साहस. ‘वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव’ (डब्ल्यूसीसी) की सब से मुखर और दृश्यमान सदस्यों में से एक के रूप में, उन्होंने बारबार मलयालम सिनेमा में व्याप्त लैंगिक भेदभाव की ओर ध्यान आकर्षित किया है. केरल के एक प्रमुख अभिनेता के यौन उत्पीड़न के बाद 2017 में गठित डब्ल्यूसीसी ने तब से उद्योग को अधिक समावेशी, सुरक्षित और समान बनाने की कोशिश की है.

पार्वती कहती हैं, ‘‘मेरा शरीर मेरा चरित्र और मेरा हथियार दोनों हैं. इसलिए निरंतर जांच, सवाल और सक्रियता- एकसाथ यह सब बहुत भारी होता है.’’

वे खुद से लगातार बातचीत करती रहती हैं ताकि यह सुनिश्चित कर सकें कि वे न केवल अपने उद्देश्य के प्रति बल्कि अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत के प्रति भी सजग हैं.

वे कहती हैं, ‘‘मैं एक सैनिक हूं और मैं जिस तरह से काम करना चाहती हूं, वैसे ही काम करती रहूंगी. मैं लड़ना चाहती हूं.’’

कला को तलासने का अवसर

शुरुआत में पार्वती के मातापिता दोनों ही वकील थे जिन्होंने बाद में एक बैंकर के रूप में अपने कैरियर को आगे बढ़ाया क्योंकि आर्थिक सुरक्षा की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए वे अपनी कलात्मक रुचियों को आगे नहीं बढ़ा सकते थे, इसलिए उन्होंने सुनिश्चित किया कि उन के बड़े भाई और उन्हें कला को तलाशने का हर अवसर मिले.

वे कहती हैं कि एक नारीवादी पिता के साथ एक समतावादी घर में बड़ा होना एक विशेषाधिकार था, जो घर के कामों से नहीं बचते थे. मां के साथ हमेशा रसोई में हाथ बंटाते थे. अब भी मैं घर में घुस कर सोफे पर लेट सकती हूं और पापा को एक कप चाय के लिए कह सकती हूं.

पार्वती के भाई, जो टोरंटो में कौरपोरेट स्पेस में काम करते हैं, एक स्वशिक्षित फोटोग्राफर और फिल्म निर्माता हैं. वे उन्हें अपने जीवन में सब से महत्त्वपूर्ण प्रभावों में से एक मानती हैं. अपनी किशोरावस्था के दौरान जब युवा पुरुष अवांछित प्रस्ताव रखते थे तो पार्वती अपने भाई की ओर मुड़ती थीं. उन का जवाब हमेशा एकजैसा होता था, ‘‘तुम्हारी रक्षा करना मेरा काम नहीं है. अगर तुम्हें इस की जरूरत होगी तो मैं तुम्हारी मदद करूंगा, लेकिन तुम्हें खुद की रक्षा करना सीखना होगा. तुम्हें आत्मनिर्भर होना होगा.’’

उस समय यह सुनना अच्छा नहीं लगता था लेकिन जैसेजैसे बड़ी हुई, मैं ने उन के इस व्यवहार के महत्त्व को जाना.

हम दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण और मजबूत संबंध है, जिस ने वयस्कता के साथ एक नया आकार लिया. जब वे छोटे थे, तब उन्होंने मेरा अंगरेजी संगीत से परिचय कराया और अब वे मुझ से धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथ साझा करते हैं. आपस में उन की बातचीत बहुत विस्तृत होती है, जिस में अकसर समानांतर ब्रह्मांड, आत्मा, अस्तित्व, सहानुभूति, मानवता जैसे विषयों पर चर्चा होती है.

हालांकि पितृसत्तात्मक मूल्य दूसरे अन्य पारिवारिक रिश्तों पर हावी थे. पार्वती याद करते हुए बताती हैं, ‘‘मेरी दादी ऐसी दुनिया से आई थी जहां लड़कों को अधिक महत्त्व दिया जाता था.’’

पार्वती ने आगे बताया, ‘‘कुछ भी अति नहीं, लेकिन लड़कियों से थोड़ा ओथुक्कम (व्यक्तिगत संयम) रखने की उम्मीद की जाती थी.’’

2017 में पार्वती ने इरफान खान के साथ फिल्म 'करीब करीब सिंगल से' अपने हिंदी फिल्म करियर की शुरुआत की
2017 में पार्वती ने इरफान खान के साथ फिल्म ‘करीब करीब सिंगल से’ अपने हिंदी फिल्म करियर की शुरुआत की

पार्वती अपनी चचेरी बहनों में सब से  ज्यादा शैतान थीं. केरल में फसल आने के समय मनाए जाने वाले उत्सव ओणम के दौरान बच्चे मंदिर बनाते थे. उन्हें बताया कि वे पुजारी की भूमिका नहीं निभा सकतीं क्योंकि वे लड़की हैं. इस घटना को याद करते हुए वे बताती हैं, ‘‘मुझे अपने अंदर का वह गुस्सा याद है.’’

वे समझ नहीं पा रही थी कि लड़की होने के कारण उन की संभावनाएं सीमित क्यों हैं, ‘‘और इसी वजह से मेरे अंदर एक आग लग गई,’’ पार्वती ने कहा.

समय के साथ एहसास हुआ

मगर इन लैंगिक भिन्नताओं के बारे में लगातार पूछताछ से संतोषजनक जवाब नहीं मिले. पार्वती ने कहा, ‘‘समय के साथ मुझे एहसास हुआ कि ज्यादातर वयस्क महिलाएं और पुरुष के पास इन सवालों के जवाब नहीं होते हैं.’’

उन्होंने जल्द ही परिवार में सब से कम विनम्र और सब से ज्यादा समस्याग्रस्त के रूप में ख्याति अर्जित कर ली, वह भी केवल इसलिए क्यों वे सवाल बहुत पूछती थीं.

पार्वती ने बचपन में कुछ साल दिल्ली में बिताए. इस शहर ने उन पर गहरी छाप छोड़ी. वे कहती हैं, ‘‘यह अजीब है कि मुझे दिल्ली का वह सब कितनी अच्छी तरह से याद है- मद्रास स्टोर, मां से निरुला की आइसक्रीम मांगना, मेरे बौयकट, साइकिल रिकशा जिस से मैं एक बार गिर गई थी. होली, दीवाली, वह छोटा सा फ्लैट जिस में हम रहते थे. दिल्ली ने मुझे मेरे बचपन की कुछ प्रमुख यादें दीं.’’

हालांकि इस के तुरंत बाद उन के पिता का तबादला तिरुवनंतपुरम हो गया. पार्वती ने वहां एक केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाई की. वे खुद को बहुभाषी मानती हैं और इस का श्रेय अपनी शिक्षा को देती हैं. उन्होंने कहा, ‘‘भाषा मेरे लिए एक तरह से भावनात्मक मसला है, त्वचा पर तेल की तरह है. यह गतिशील है और अभिनय में भी काम आती है.’’

पार्वती की मां एक प्रशिक्षित भरतनाट्यम डांसर हैं. उन्होंने अपनी बेटी को इस कला से परिचित कराया. उन के पिता को खेल और संगीत का शौक था. पार्वती ने हमें बताया, ‘‘जब बिजली कटौती होती थी तो वे अकसर अपना वायलिन बजाते थे, भाई गिटार बजाता था और हम सब गाते थे.’’

हालांकि पार्वती के नृत्य शिक्षकों ने उन के मातापिता से कहा था कि उन में पेशेवर रूप से इस कला को अपनाने की प्रतिभा है, इस के बावजूद उन में से किसी ने भी उन की इच्छा के विपरीत जा कर इस को एक पेशे के तौर पर अपनाने के लिए जोर नहीं दिया. उन्होंने कहा कि मातापिता बनने का चलन शुरू होने से बहुत पहले वे इस का अभ्यास करते थे. वे चाहते थे कि हम बिना किसी दबाव के कला का आनंद लें.

एक किशोर होती लड़की के रूप में पार्वती को हिंदी फिल्म निर्माता करण जौहर की फिल्में देखना बहुत पसंद था. वे निर्माता एकता कपूर के लोकप्रिय और नाटकीय धारावाहिकों की भी प्रशंसक थीं. जब ‘कसौटी जिंदगी की’ के मुख्य पात्रों में से एक की मृत्यु हुई तो पार्वती रात भर रोती रहीं.

पार्वती याद करते हुए बताती हैं, ‘‘युवावस्था में मुझे कई तरह के दुख और उलझन भरे अनुभव हुए. मुझे ऐसे लोग नहीं मिल रहे थे, जो मुझे वैसे ही पसंद करते हों, जैसी मैं हूं. इसलिए मैं स्कूल के शुरुआती दिनों में लोगों को खुश करने वाला व्यवहार करने लगी. लोगों को खुश करने के लिए मैं ने ‘हार्डी बौयज’ और ‘नैंसी डू’ की जासूसी किताबें भी पढ़ीं.’’

2017 में एक जानीमानी मलयाली अभिनेत्री के साथ यौन उत्पीड़न की घटना के बाद स्थापित संस्था 'वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव' इंडस्ट्री को महिलाओं के लिए सुरक्षित और समान बनाने की प्रयास कर रही है
2017 में एक जानीमानी मलयाली अभिनेत्री के साथ यौन उत्पीड़न की घटना के बाद स्थापित संस्था ‘वुमन इन सिनेमा कलेक्टिव’ इंडस्ट्री को महिलाओं के लिए सुरक्षित और समान बनाने की प्रयास कर रही है

सपनों को पंख देना जरूरी था

अपनी हाई स्कूल शिक्षा के अंत में पार्वती ने एक छोटे स्तर की स्थानीय टैलीविजन प्रतियोगिता जीती. इस प्रतियोगिता के माध्यम से उन्हें एक क्षेत्रीय चैनल पर 2 लाइव संगीत शो के लिए वीडियो जौकी के रूप में पहली नौकरी मिली. जिस समय यह सब हो रहा था उस समय वे 12वीं कक्षा में थीं.

पार्वती बताती हैं कि यह उन के लिए पूरी तरह से अलग दुनिया थी. उन के मातापिता के लिए भी यह स्वीकार कर पाना आसान नहीं था कि वे हमेशा उन की रक्षा के लिए आसपास नहीं होंगे. उन्होंने मेरे निर्णयों का समर्थन किया. जब वे 19 साल की थीं, तब उन्होंने अभिनय में कैरियर बनाने के लिए कोच्चि जाने का फैसला किया.

पार्वती की पहली फिल्म ‘नोटबुक’ (2006) है, जो एक मलयालम ड्रामा है जिस में उन्होंने एक किशोर छात्रा की भूमिका निभाई है. फिल्म की शूटिंग से पहले फिल्म के निर्देशक और लेखक ने उन्हें अपने किरदार को ले कर किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में सोचने के लिए प्रोत्साहित किया जिसे वे जानती हैं. इस के लिए उन्होंने उस से काल्पनिक सवाल पूछे कि उन के किरदार को कौन सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करना पसंद था, उसे कौन सी करी खाना पसंद था. पार्वती को एहसास हुआ कि इन विवरणों ने उन्हें किरदार को वास्तविक बनाने, उस की पसंद को समझने और उस के साथ सहानुभूति रखने में मदद की. उन्होंने कहा कि यह इस माध्यम को समझने की मेरी शुरुआत थी.

यह एक ऐसा तरीका है जिसे पार्वती आज भी प्रयोग करती हैं. उन्होंने कहा, ‘‘मैं पृष्ठभूमि के संदर्भ में यथासंभव अधिक से अधिक चीजें करती हूं.’’

इस में उन के किरदार की आर्थिक स्थिति, उन्हें जातिगत गौरव या जातिगत उत्पीड़न महसूस होता है या नहीं, वे क्या खाना खाते हैं या यहां तक कि वे किस ब्रैंड के अंडरगारमैंट पहनना पसंद करते हैं, इस तरह के और भी बहुत सारे विवरण शामिल हो सकते हैं.

चूंकि पार्वती ने अभिनय में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था, इसलिए वे लगातार अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए नए तरीकों की तलाश में रहती थीं. वे पागलपन की हद तक ‘इनसाइड द ऐक्टर्स स्टूडियो’ देखती थीं. यह एक अमेरिकन टैलीविजन सीरीज है जिस में लेखक और अभिनेता जेम्स लिप्टन कई फिल्म निर्माताओं का साक्षात्कार लिया था. उन्होंने अपने सहकलाकारों द्वारा सुझाई गई किताबें पढ़ीं. अपनी प्रदर्शन तकनीकों को बेहतर बनाने के लिए वे पांडिचेरी स्थित थिएटर कंपनी ‘आदिशक्ति’ में भी शामिल हो गईं.

किरदार को जीना पड़ता है

हालांकि उन की सार्वजनिक छवि कभीकभी उन की औनस्क्रीन भूमिकाओं से अलग होती है. पार्वती ने कहा, ‘‘जितना ज्यादा मैं खुद को ऐक्टिविस्ट के रूप में पेश करती हूं, उतना ही कम मैं एक किरदार के रूप में विश्वसनीय होती हूं और मुझे लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए उतनी ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है कि मैं कोई अंजू या पल्लवी या कुछ और हूं.’’

उन का तर्क है कि एक बेहतर ऐक्टिविस्ट होते हुए एक बेहतर अभिनेता होने की तरफ भी जाया जा सकता है. पहले वे अपने द्वारा देखे गए और अनुभव किए गए अन्याय पर क्रोध से भरी हुई महसूस करती थीं. लेकिन अब क्रोध को अपनी कला के माध्यम से प्रदर्शित करती हैं.

वे कहती हैं, ‘‘दर्द से लड़ने और उस का प्रतिरोध करने के बजाय मैं अब सोचती हूं कि अरे यह तुम्हें कुछ सिखा रहा है.’’

पार्वती और अधिक भूमिकाओं के लिए औडिशन देना चाहती हैं. ऐसी भूमिकाएं करना चाहती हैं जिन के बारे में उन्होंने अभी तक सोचा भी नहीं है. भावी निर्देशकों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं ने जो किया है, उस पर मत जाइए क्योंकि मुझे लगता है कि मैं और भी बहुत कुछ कर सकती हूं.’’

मलयालम फिल्मों को भारतीय सिनेमा में सब से ज्यादा प्रगतिशील फिल्मों में से एक माना जाता है. लेकिन फरवरी, 2017 में इस को उस संस्कृति के साथ तालमेल बैठाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसे उस ने खुद बढ़ावा दिया था, जो स्त्रीद्वेष और यौन शोषण से भरी हुई थी. उस महीने एक प्रमुख महिला अभिनेत्री का अपहरण कर, उस की ही कार में उस का यौन उत्पीड़न किया गया.

मलयालम सिनेमा के एक शक्तिशाली और प्रभावशाली सुपरस्टार दिलीप को इस मामले में आरोपी बनाया गया जिस ने अपराधियों की सहायता से इस घटना को अंजाम दिया. इस मामले में उन्हें 3 महीने की जेल हुई और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया. वर्तमान में इस मामले की सुनवाई केरल के एक उच्च न्यायालय में चल रही है.

पार्वती और इरफान खान फिल्म 'करीब करीब सिंगल' के एक प्रोमोशनल इंटरव्यू के दौरान
पार्वती और इरफान खान फिल्म ‘करीब करीब सिंगल’ के एक प्रोमोशनल इंटरव्यू के दौरान

गंभीर प्रतिक्रियाओं का सामना

हमले के बाद के 8 वर्षों में यह मामला केरल की फिल्म बिरादरी के लिए एक लिटमस टेस्ट बन गया. जहां कई महिलाएं अपनी सहकर्मियों के साथ एकजुटता में खड़ी थीं, वहीं शक्तिशाली पुरुष दिलीप के इर्दगिर्द मंडरा रहे थे. मोहनलाल जैसे दिग्गज अभिनेता ने यौन उत्पीड़न के मुद्दों को तुच्छ बताया. मोहनलाल उस समय ऐसोसिएशन औफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स (एएमएमए) के अध्यक्ष थे. यह केरल में सब से शक्तिशाली फिल्मी संस्था है. उन्होंने प्तमीटू आंदोलन का भी जिक्र किया किया, जिस के जरीए दुनियाभर की महिलाएं अपने अनुभवों के साथ आगे आईं. उन्होंने इसे एक सनक बताया.

वुमन इन सिनेमा क्लेटिव के सदस्यों ने बदलाव की मांग करने के वाले प्रयासों का नेतृत्व किया जिन्हें गंभीर प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा. उन्होंने सैट पर यौन शोषण की शिकायतों की जांच के लिए आधिकारिक समितियों की वकालत, कानूनी सुधारों की वकालत की. संस्थागत पूर्वाग्रहों को उजागर किया और सिनेमा में समान कार्यस्थलों की आवश्यकता को बढ़ाया.

इस बीच केरल की राज्य सरकार ने हेमा समिति का गठन किया, जिस का नाम सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नाम पर रखा गया, जिन्होंने इस का नेतृत्व किया था. इस ने लैंगिक अन्याय और दुर्व्यवहार के मामलों की जांच कर इस का दस्तावेजीकरण किया और 2019 के अंत में अपनी रिपोर्ट दायर की.

5 साल की देरी के बाद अगस्त, 2024 में संशोधित रूप में यह रिपोर्ट दोबारा से जारी की गई. इस में उन तरीकों को उजागर किया, जिन से मलयालम फिल्म उद्योग ने दुर्व्यवहार, कम भुगतान और असुरक्षित परिस्थितियों के माध्यम से महिला कलाकारों को निराश किया है. रिपोर्ट के जारी होने से केरल में प्तमीटू आंदोलन फिर से शुरू हो गया, जिस से पीडि़तों ने अपनी कहानियां साझा कीं.

एएमएमए एक ऐसा माहौल बनाने के लिए जांच के दायरे में आया, जिस में अपराधी बिना किसी डर के अपना काम करते थे. रिपोर्ट जारी होने के बाद इस के सभी कार्यकारी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया.

यह बहुत मुश्किल से मिली जीत थी. इस को याद करते हुए पार्वती ने कहा, ‘‘हम जो कर रहे थे, उस के लिए कोई भी हमें तैयार नहीं कर सकता था.’’

2017 में जब उन्होंने और डब्ल्यूसीसी के अन्य सदस्यों ने देर रात की कौल के दौरान अपनी कार्ययोजना बनाई तो पार्वती ने तनाव से निबटने का एक अनूठा तरीका खोजा. वे अपने चेहरे से कई प्रकार की शक्लें बनातीं, अपनी आंखों को लाइन करतीं, थोड़ा आईलाइनर लगातीं, खुद की तसवीरें लेतीं, सोशल मीडिया पर भी कुछ पोस्ट नहीं करतीं, मेकअप हटातीं और सो जातीं. उन्होंने बताया कि मेकअप भी एक कला है. महिलाओं को एक तरह से विकल्प दिया जाता है या तो घमंडी बनें या बौद्धिक बनें. मैं दोनों होने का अधिकार सुरक्षित रखती हूं.

दोस्त हैं किताबें

फिल्म सैट पर पार्वती हमेशा हाथ में एक किताब रखती हैं. उन्होंने कहा कि मैं 9वीं कक्षा तक बहुत ज्यादा पढ़ने वालों में नहीं थी. लेकिन एक बार जब उन्होंने काम करना शुरू किया तो किताबें ‘एक सुरक्षा योजना’ बन गईं. उन्होंने पहले भी कई अन्य महिला अभिनेताओं से इस के बारे में सुना था, जिन्होंने फिल्म सैट पर व्यापक लैंगिक भेदभाव और लगातार गपशप से खुद को बचाने के लिए किताबों का इस्तेमाल किया था.

पार्वती ने कहा, ‘‘लेकिन मुझे यह भी एहसास हुआ कि एक अभिनेता के तौर पर मैं हमेशा इस बात से वाकिफ रहती हूं कि लोग मेरी हर हरकत पर नजर रख रहे हैं. लगातार मेरी निगरानी की जा रही है. किताबों ने मुझे इस भावना से बाहर निकलने में मदद की.’’

पार्वती अपने लिए सही जगह की चाहत को ले कर अपराधबोध से जूझती रहीं. फिर उन्होंने सवाल करना शुरू किया कि आखिर वे दोषी क्यों महसूस कर रही थीं.

पार्वती ने कहा, ‘‘मैं इसे कुलस्त्रीकाल कहती हूं यानी एक सामान्य परिवार में पारंपरिक लिंग भूमिकाओं से बंधी एक महिला के पैर की लगभग अनैच्छिक प्रतिक्रिया,’’ पार्वती आगे कहती हैं, ‘‘आप खाने की मेज पर बैठे हैं और पास में एक आदमी खड़ा है जो अभी तक खाने के लिए शामिल नहीं हुआ है और अचानक एक पैर बाहर निकल आता है. जैसेकि वह उठ कर उस आदमी के लिए प्लेट लाने को तैयार हो,’’ जब

भी वे खुद को किसी पुरुष की जरूरतों को अपनी जरूरतों से ज्यादा अहमियत देते हुऐ पाती हैं, ‘‘मुझे उस पैर को पीछे खिंचना पड़ता है और खुद से कहना पड़ता है कि वह अपनी प्लेट खुद ले सकता है.’’

पार्वती को इस बात पर हैरानी होती है कि वे ऐसा महसूस करती हैं जबकि उन के अपने मातापिता ने कठोर लैंगिक भेदभाव वाले व्यवहार से दूरी बना कर रखी थी. वे कहती हैं, ‘‘यह किस तरह की डीएनए की कंडीशनिंग है. यह मेरी मां से नहीं आया है, यह तो तय है कि यह पूर्वजों से ही आया होगा.’’

मलयालम फिल्म उद्योग में पार्वती को स्वच्छता सुविधाओं की मांग करने के लिए ‘बाथरूम पार्वती’ कहा जाता था. यह उपहासपूर्ण उपनाम एक गंभीर मुद्दे को महत्त्वहीन बनाता था. जबकि वे बुनियादी सुविधाओं की कमी को उजागर कर रही थीं. पार्वती याद करती हैं कि सालों तक उन्होंने सैट पर पानी पीने से परहेज किया क्योंकि उन्हें पता था कि वे लगातार 10-12 घंटों तक वाशरूम नहीं जा पाएंगी. ब्रेक न लेने का एक अघोषित नियम सा था और इसे गैरजरूरी काम माना जाता था.

उन्होंने कहा, ‘‘मैं ने अपनी बुनियादी मानवीय जरूरतों को छोड़ दिया था और ऐसा कर के मैं ने अपने अधिकारों को भी छोड़ दिया.’’

यह भेदभाव क्यों

पार्वती ने 2013 में ‘मर्यान’ के सैट पर बिताए एक खास दिन को याद किया. हिट तमिल फिल्म में वे एक शांत और दृढ़ महिला की भूमिका में हैं. दिखने में तो विनम्र लेकिन मन से दृढ़ जो समुद्र के किनारे बसे एक गांव में रहती है. जब वे समुद्र में कुछ दृश्य शूट कर रहे थे तो मुख्य अभिनेता धनुष पर बिसलेरी की बोतलों से पानी डाला जा रहा था. इस बीच पार्वती ने कहा, ‘‘मुझे सीधे समुद्र से भर कर बालटियों से पानी डाला जा रहा था जबकि उस दौरान उन के पीरियड्स चल रहे थे, गीले सैनिटरी नैपकिन से खून बह रहा था.’’

पार्वती जानती थीं कि उन के पास कपड़े बदलने के लिए ब्रेक मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इस साधारण अनुरोध पर तुरंत और बहुत ठंडी प्रतिक्रिया मिली. उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ एक उपद्रवी की तरह व्यवहार किया गया. पुरुष या महिला किसी ने भी थोड़ी सी भी सहानुभूति नहीं दिखाई.’’

सैट पर एक महिला जो उन के साथ थी उस ने जल्द से जल्द सभी काम पूरे करवाए. ऐसी उदासीनता को ऐसे उद्योग में बढ़ावा दिया जाता है जो एकदूसरे का समर्थन करने वाली महिलाओं के प्रति शत्रुतापूर्ण है. पार्वती ने कहा, ‘‘अगर आप को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो बुनियादी सम्मान की मांग करने वाली महिला का समर्थन करता है तो आप को निशाने पर लिया जाता है, अब आप ‘नारीवादी’ हैं. आप पुरुषों द्वारा पसंद किए जाने के लाभ को खो देते हैं.’’

ऐसा नहीं है कि भारत में अन्य फिल्म उद्योग इस से बेहतर हैं. उन्होंने अब तक अपनी असमानताओं को संबोधित करने से परहेज किया है. पार्वती ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि अधिकांश जगहों पर इस के लिए जगह है. उन में से अधिकांश इस से डर रहे हैं.’’

उन्होंने इस चुप्पी के लिए इन पदों पर बैठे लोगों को जिम्मेदार ठहराया जो केवल अपने पद की रक्षा करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन लोगों के बारे में बात कर रही हूं जिन के पास पैसे, वित्त, सुरक्षा का विशेषाधिकार है, बस संरक्षित होने के मामले में वे सत्ता संरचना की ओर अधिक झांक रहे हैं. वे बोल कर इसे बढ़ावा दे रहे हैं.’’

स्थायी परिवर्तन के लिए सहयोगियों की एकजुटता की आवश्यकता होती है. पार्वती ने कहा, ‘‘एक पुरुष सहकर्मी का सहयोगी होना हमें कई साल आगे ले जाता है.’’

पार्वती ने हौलीवुड के उदाहरणों की तरफ इशारा भी किया, जहां कुछ पुरुष अभिनेताओं ने यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ परियोजनाओं पर वेतन में कटौती की कि उन के महिला सहकलाकारों को समान वेतन मिले. उन्होंने अपने पुरुष सहकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हमें इंसन समझें. हमें जो हमारा है वे मिलने से असल में आप का कुछ भी नहीं छिनता. इस से हम सभी के लिए बेहतर होता है. यहां सभी के लिए समानता के साथ जीने और रहने के लिए जगह है.’’                  –

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