100 साल पहले देश में जब शहर बसने शुरू हुए थे, शहरों के बीचोबीच बहुत जगह सरकारी भवनों ने ले ली थी जिन के चारों ओर शहर भी बने और जहां शहरियों को काम भी मिला. पर जिस तेजी से शहर बढ़े और सरकारें जिस तरह सोई रहीं, ये सब शहर कंक्रीट के भद्दे जंगल बन गए. सरकारी भवन जो ब्रिटिश वास्तुकला से बने थे वे तो अच्छे लगते हैं पर जो आजादी के बाद बने, वे शहरी जीवन पर बदनुमा दाग हैं. ऊपर से उन के इर्दगिर्द गैरकानूनी छोटे मकान व दुकानें बन गई हैं.
दूसरी तरफ जमीन के बढ़ते दामों के कारण मकान ऊंचे होने लगे हैं. जहां 5 लोगों का परिवार रहता था वहां अब 50 से 500 लोग रहने लगे हैं. हरियाली दूभर हो गई है. हवा गंदली हो गई है. सीवर भरने लगे हैं, सड़कों पर जगह नहीं बची. अब इन मकानों को न तो नए सिरे से बनाया जा सकता है न ही इन को ठीक ही कराया जा सकता है क्योंकि आम नागरिक की माली हालत सरकारी आंकड़ों में चाहे जितनी सुधरी हो, असल में बुरी ही है. वे अब सड़कों में रह रहे हैं. ऐसी जिंदगी जी रहे हैं, जो मानव ने मानव इतिहास में कभी नहीं देखी. इन लोगों के लिए विज्ञान और तकनीक केवल टैलीविजन, मोबाइल, फ्रिज और रसोईगैस की सुविधाओं तक सीमित हैं. इन शहरों में गंदगी है, बदबू मारते सीवर हैं, संकरी गलियां हैं.
इस का हल शहरियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का दिया जाता है. बहुत से शहरों ने झुग्गीझोंपड़ी बस्तियों को उखाड़ा है तो बहुतों ने कारखाने बंद कराए हैं. इस की मानवीय कीमत क्या है- यह बहरी, अंधी, कू्रर और करप्ट सरकार न जानती है न जानने में रुचि रखती है. पैसे वाले लगातार शहर से बाहर जाते रहे हैं पर हर 20-25 साल में बाहर की नई सुंदर कालोनी सड़ जाती है और पुराने शहर के माफिक हो जाती है.
इस का हल यूरोप ने ढूंढ़ा है. उस ने पुराने शहरों को ठीक किया है, उन्हें रहने लायक और पर्यटन का हिस्सा बनाया है. भारत के शहरों को भी ठीक किया जा सकता है बिना जोरजबरदस्ती के. इस का सरल उपाय है कि सरकार अपनी जमीनों को मुक्त कर दे. सरकारी भवन नए इलाकों में ले जाए जाएं. पुराने भवन अगर वास्तुकला की धरोहर न हों तो तोड़ कर बागों में बदल दिए जाएं. सरकारी रिहायशी बिल्डिंगें संवारी जाएं.
शहरों का मध्य शहरी जीवन का केंद्र बने कूड़ाखाना नहीं. लोग 1 या 2 कमरे का ही सही, मकान रख कर गर्व महसूस करें. छुट्टी शहर के बीचोबीच मनाएं.
हाल ही में दिल्ली की बस सेवा अपने को मिली पार्किंग की जगह पर व्यावसायिक केंद्र बनाने की मांग कर रही है. यह गलत है. वे पार्किंग को शहर से बाहर ले जाएं या भूमिगत कर दें और ऊपर बड़ेबड़े खुले चौक छोड़ें, पेड़ लगाएं.
सरकारी विभागों, स्कूलों, कालेजों, अस्पतालों को तोड़ कर वहां सिर्फ खाली जगह रखी जाए या बाग या जंगल उगाए जाएं ताकि आसपास के घने इलाके सांस ले सकें. यदि ऐसा होगा तो घने इलाके स्वयं सुधरेंगे. जब ट्रैफिक कम होगा तो इन संकरे इलाकों को सांस मिलेगी, सुगंध फैलेगी. यहां दाम बढ़ेंगे और लोग रहना शान समझेंगे. सरकार अपने फैसले कर सकती है. सरकार जो कीमत इस की देगी वह जनता की ही जेब से जाएगी, पर धीरेधीरे.