सरकारी कानून किस तरह जानलेवा से होते हैं इस का एक मजेदार उदाहरण है सार्वजनिक वितरण योजना के अंतर्गत कानून में अपराध. इस योजना में मिट्टी का तेल राशन कार्ड पर दिया जाता है और दुकानदार को उस का लेखाजोखा रखना पड़ता है कि कितना तेल उसे अलौट हुआ, कितना बाकी है, कितना बेचा. इस कानून में भी ज्यादा तेल रखने पर जुरमाने और सजा का प्रावधान है. दुकानदार सजा के डर के बावजूद पैसे कमाने के लिए काम करते ही हैं.

इस में कुछ राशन कार्ड वालों को कम तेल दे कर या न दे कर बाकी ज्यादा दाम पर बेच दिया जाता है. यह गुनाह है पर केवल आर्थिक, कोई अनैतिक नहीं. पर सरकारी इंस्पैक्टर आतंक तो गब्बर सिंह का आतंक है.

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक दुकानदार के यहां इंस्पैक्टर ने कुछ ज्यादा कैरोसिन पकड़ लिया और मुकदमा जड़ दिया. यदि तभी लेदे कर फैसला कर लिया जाता तो बात दूसरी होती पर लगता है दुकानदार ने केस लड़ने का फैसला किया. यह कब हुआ? 2 सितंबर, 1988 को. इस का अंतिम निर्णय कब हुआ? जनवरी 2018 में.

पहले कोर्ट और अपील कोर्ट ने इस दुकानदार को 3 माह की सजा दे डाली, महज 187 लिटर अतिरिक्त तेल रखने पर. जिस देश में हत्यारे और बलात्कारी गलीगली घूमते हैं, जहां बाबास्वामी लूटते हैं और भगवा दल निहत्थों को धमकाते हैं, वहां 187 लिटर मिट्टी का तेल अतिरिक्त रखने का मामला सुप्रीम कोर्ट में 30 साल तक चला. तब तक दुकानदार 89 वर्ष का हो गया.

सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर राहत दी पर गुनाह से नहीं. वह 89 वर्ष का है. अत: 3 माह की जेल काटना गलत होगा. एक लोकतांत्रिक देश की न्यायपालिका इस तरह आतंकवादी इंस्पैक्टरों का साथ दे सकती है और निरर्थक, अनावश्यक व रिश्वत के कुएं खोदने वाले कानूनों का समर्थन कर सकती है यह आश्चर्य की बात है. तेल की कालाबाजारी न हो यह सही है पर इस में उस दुकानदार का लाइसैंस कैंसल करना काफी होगा ताकि वह और लूट न मचा सके. उसे जबरन वर्षों बाद जेल भेजने की पेशकश करना और सरकार का अपीलों में अपने वकील खड़ा करना एक नागरिक के जीने के अधिकार को छीनना है.

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