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रागिनी का बर्थडे हो या और कोई विशेष दिन, जब भी रागिनी याद करती, उस के भइयू हाजिर हो जाते. फिर सुबह से शाम तक दोनों होस्टल से बाहर जा कर साथ घूमते, शौपिंग करते, खानावाना खा कर वापस  आते. रागिनी के पिता के अतिरिक्त  भइयू का नाम अभिवाहक के रूप  में होस्टल के रजिस्टर में दर्ज था. इसलिए उन के साथ होस्टल से बाहर जाने में किसी तरह की कोई आपत्ति न होती थी. कभीकभी रागिनी अपने  लोकल गार्जियन, अपनी रिश्ते की बूआ, के घर भी रात में ठहर जाती और दूसरे दिन उस के भइयू उसे पहुंचा दिया करते थे.

एक दिन रागिनी ने बताया, ‘मुंबई में मेरी कजिन सिस्टर सुगंधा की शादी है. सुगंधा की बैंक में नईनई नौकरी लगी है. अब  नेवी में जौब करने वाले लड़के से उस की शादी है.’ रागिनी ने मुझे अपना एक पुराना फोटो अलबम दिखाया जिस में 3 बच्चियां और  उन के मम्मी डैडी हैं. रागिनी ने कहा, ‘बड़ी वाली सुगंधा दीदी हैं  और ये घुंघराले बालों में 4 साल की मैं हूं और  दूसरी मेरी हमउम्र नंदा है.’

तसवीर देख कर मैं चौंक गई, ‘छोटी वाली नंदा तो बिलकुल तुम्हारी जुड़वां लग रही है रागिनी? और ये घुंघराले बालों वाली आंटी  बिलकुल जैसी तुम अभी हो वैसी ही दिखती हैं.’रागिनी के मुंह से अचानक निकला, ‘हां, मम्मी हैं न.’ फिर  उस ने कहा, ‘ये मेरी मौसी हैं. इन्हें मैं मौसी मम्मी कहती हूं. और ये दोनों मेरी मौसेरी बहनें हैं. छोटी वाली नंदा अभी सीए की पढ़ाई कर रही है. मौसाजी मुंबई में एक प्राइवेट कंपनी  में जौब करते हैं. जब मैं छोटी थी, तब मौसाजी छोटे पद पर थे लेकिन अब तो ये बड़ी कंपनी के बड़े अधिकारी बन गए हैं. बड़ा घर  और बड़ी गाड़ियां हैं इन के पास. घर में नौकरचाकर लगे हैं.

‘सुगंधा दीदी और नंदा सब आजादी से रहते हैं. उन पर किसी तरह की  कोई बंदिश नहीं. सुगंधा दीदी ने अपनी मरजी से पहले अपनी पढ़ाई पूरी की, अपने पैरों पर खड़ी हुईं और  अब  उन की ही पसंद के लड़के से मौसामौसी उन की शादी कर रहे हैं. महानगर में रहने से  उन के रहनसहन का स्तर हम से ऊंचा है और सोच भी खुली है.’ मैं ने देखा यह कहती हुई रागिनी थोड़ी भावुक हो गई. उस की आंखों मे हलकी सी नमी आ गई. मैं ने पूछा, ‘और तुम इन के पास जाती हो?’

उस ने कहा, ‘हां, बचपन में गई थी, अब नहीं जा पाती. अम्माबाउजी मेरे ऊपर ही आश्रित हैं न,  इसलिए. मैं ही उन की देखभाल करती हूं. बीए तक की पढ़ाई तो मैं ने अपने शहर में की, इसलिए  उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन पीजी की पढ़ाई मेरे शहर में संभव नहीं थी,  इसलिए मुझे यहां होस्टल आना पड़ा. अम्मा की उम्र हो गई है, अब वे घर के काम बिलकुल नहीं कर सकतीं लेकिन  भइयू और गुड्डन ने कहा है कि मैं वहां की चिंता न करूं. वे लोग मेरे न रहने पर उन लोगों का ख़याल रखेंगे.

यहां  आ कर पढ़ना ही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. मुंबई जाना या सुगंधा दीदी की तरह अपने निर्णय लेना मेरे लिए संभव नहीं है.’मुझे महसूस हुआ  रागिनी अपनी कजिन बहनों के जीवनस्तर  और स्थिति से कहीं न कहीं स्वयं की तुलना कर के दुखी हो रही है. स्वाभाविक ही तो है. कहां रागिनी की अम्माबाबूजी और कहां ये लोग.

मुझे रागिनी की अम्मा याद  आ गईं…ठेठ गांव की बुजुर्ग महिला जो रागिनी की मां से ज्यादा दादीमां नजर आती थीं और धोतीकुरता पहने सीधेसादे  बाऊजी जो पिता से ज्यादा दादाजी. कभीकभी वे लोग डाक्टर, दवाई या किसी काम से इस शहर में आते  तो  रागिनी से मिलने होस्टल आया करते थे. तब  ज्यादा समय रागिनी के घर पर न रहने से होने वाली दिक्कतों की बात वे किया करते थे. रागिनी खुद को  अपराधी सा मानते हुए बारबार समझाती रहती- ‘छुट्टी होते ही आ जाएंगे अम्मा, कुछ दिनों की बात है. हम भइयू से कहेंगे, तुम लोगों को कोई परेशानी न होने पाए.’

उस की अम्मा दिल से आशीर्वाद की झड़ी लगा देतीं…‘प्रकृति उसे सदा बनाए रखे. कोई जन्म का लड़का है मेरातुम्हारा भइयू. वह न रहता, तो कब की हमारी  जान निकल जाती.  घरबाहर एक किए रहता है. कभी अपनी मां से  हमारे लिए खाना बनवा कर ले आता है, कभी गुड्डन, बिट्टन को भेज देता है, जाओ, अम्मा की मदद कर दो. तुम्हारे बाउजी का बाहर का सारा काम बेचारा वही तो देखता है.

‘इसलिए तो मैं और तुम्हारे बाऊजी चाहते हैं, तुम्हारी शादी जल्दी से जल्दी आनंद के साथ हो जाए. हम लोगों की अब उम्र हो गई. पता नहीं कब बुलावा आ जाए. अपनी आंखों के सामने तुम्हारी शादी देख लूं, तो चैन से मर पाऊंगी. आनंद के पिता से मैं ने कह दिया है, हमारा बेटाबेटी सबकुछ रागिनी ही है. जब तक जिंदा हैं हम लोग, रागिनी और  आनंद हमारी आंखों के सामने रहें, बस. हमारा क्या, अब  चार दिन की हमारी जिंदगी है, फिर गांव की जमीन, खेत, घर सब हमारे बाद रागिनी  और  आनंद को ही संभालना है.  सुगंधा की शादी हो जाए, तो तुम्हारी शादी कर के मैं और तुम्हारे बाऊजी  तीरथ पर निकलना चाहते  हैं.’

रागिनी ने धीरे से कहा, ‘अम्मा, काहे हड़बड़ा रही हो? मुझे पढ़ाई तो पूरी करने दो. मैं भी पहले सुगंधा दीदी की तरह  अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं.’ बाबूजी ने रागिनी को देख कर  थोड़े कड़े शब्दों में कहा,  ‘देख  बउवा, तुम्हारी यहां आ कर पढ़ाई करने की जिद मैं ने मान ली. लेकिन  आगे अब शादी के बाद जो मरजी आए, करना. हम नहीं रोकेंगे. लेकिन सुगंधा की बराबरी में तुम्हें हम 30 साल की उम्र तक कुंआरी नहीं रख सकते. वह बड़े शहर में रहती है. उस की बात  और है.

‘यहां गांव, समाज में लोग दस तरह की बातें करते हैं. मेरी समाज में प्रतिष्ठा है.  प्रतिष्ठा के लिए हम ठाकुर लोग जान दे भी देते हैं और जान ले भी लेते हैं. इसलिए कुछ ऊंचनीच हो, उस के पहले जरूरी है  तुम्हारी शादी हो जाए. तुम्हारे ससुराल वाले चाहें तो करना नौकरीचाकरी.’ रागिनी ने बेबसी से बाऊजी की तरफ देखा. उस की आंखें छलक आईं, तो  अम्मा ने रागिनी को दुलारते हुए कहा, ‘मन से पढ़ाई करो, बउवा और परीक्षा दे कर घर आ जाओ. पैसारुपया, सुखसाधन  सब है घर पे, लेकिन तुम्हारे बिना कुछ अच्छा  नहीं लगता. हमारा सहारा तू ही है बउवा.’

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