इन दिनों मेरा घर पानीपत का मैदान बना हुआ है. जिस ओर देखो उसी ओर एकदूसरे को चुनौती दी जा रही है. मैं ने पत्नी लक्ष्मी से पूछा, ‘‘मेरी लच्छो, इस छोटे से फ्लैट को घर समझो. यहां आराम से रहने में तुम्हें क्या परेशानी है?’’

‘‘मैं तो शांतिपूर्वक रहना चाहती हूं, मगर मांजी ही सुकून से रहना नहीं चाहतीं. जब देखो तब अपनी नाक चढ़ाए घूमती रहती हैं. आर्डर पे आर्डर देती रहती हैं, यह मत करो, वह मत करो, अपनी नाक का कुछ तो खयाल रखो,’’ लक्ष्मी ने अपनी तोता नाक पर टिका चश्मा ठीक करते हुए कहा.

मैं समझ गया कि सासबहू में नाक को ले कर तकरार हो रही है. दोनों जिद्दी स्वभाव की हैं. दोनों में से कोई भी एक अपनी नाक छोटी करना नहीं चाहतीं. मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि यदि नाक छोटी हो गई तो क्या फर्क पड़ जाएगा. मगर नहीं, लक्ष्मी बता रही थी कि विवाह पर उस की माताश्री ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘बेटी, हमारा परिवार नाक वालों का है. हमारी नाक समाज में प्रतिष्ठित है. ससुराल में अपनी नाक की प्रतिष्ठा बचाए रखना. मर जाना मगर नाक पर आंच मत आने देना.’

बस, तब से अब तक लक्ष्मी चौबीसों घंटे अपनी उंगली नाक पर रखे रहती है. यहां तक कि वह अपनी नाक पर मक्खी तक बैठने नहीं देती. लक्ष्मी का नासिका मोह मुझे भी लुभा गया. जिस नारी को अपनी नाक से एक बार प्रेम हो जाए उस का पति उसे नाक में कम से कम एक बार लौंग पहना कर हमेशा के लिए उस के नखरों से बच जाता है. मैं ने देखा है, जिस संभ्रांत महिला को जब अपनी सुराहीदार गरदन से स्नेह हो जाता है उस समय उस के पति का दिवाला निकलने में देर नहीं लगती. गले के लिए नेकलेस, हार खरीदने के लिए कईकई तोले स्वर्ण भेंट चढ़ जाता है. नारी मूड की तरह ग्रीवा आभूषणों की डिजाइनें बदलती रहती हैं और हर 1-2 वर्ष में पति की नाक में पत्नी अपनी फरमाइशों की नकेल डालती रहती है.

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