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‘‘अरे, क्या बकवास कर रही है?’’ आंखें मलती हुई शेफाली उठ बैठी.

‘‘अगर विश्वास न हो तो खुद जा कर देख लें. मैं ने गैस्टरूम में बैठा दिया है. आंखें फाड़फाड़ कर क्या देख रही है? जल्दी से जा और मैं चली तेरे उस दीवाने के सत्कार के लिए,’’ कह कर उर्वशी वापस चल दी.

शेफाली बड़बड़ाई कि ओह, तो जनाब खुद तशरीफ लाए हैं. चायपानी तो दूर रहा, मैं ऐसा सुनाऊंगी कि भविष्य में किसी दूसरी लड़की को देखने और उस की बेइज्जती करने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे. उस की आंखें क्रोध से लाल हो उठीं. वह बिना सजेसंवरे केवल हाथमुंह धो कर ही अतिथिकक्ष की तरफ बढ़ गई.

अतिथिकक्ष में प्रवेश करने पर जैसे ही शेफाली की दृष्टि अनुराग पर पड़ी, उस की आंखों में क्षमा और सौम्यता थी पर मुख पर मधुर मुसकान खेल रही थी. अचानक शेफाली के हृदय का ज्वालामुखी बजाय फूटने के आंखों की पलकों के   झरोखों से अनुराग को   झांकने के लिए आतुर हो उठा.

‘‘मौर्निंग, शेफाली,’’ अनुराग मुसकराहट के साथ बोला. ‘‘क्या अब भी इंसल्ट करने में कोई कसर रह गई है?’’ आगे वह कुछ न बोल सकी. ‘‘भाभी के व्यवहार के लिए मैं सौरी कहता हूं. इस में मेरा कोई दोष नहीं फिर भी यदि आप मुझे अपराधी सम  झती हैं तो अपराधी आप के सामने हाजिर है,’’ अनुराग बड़ी विनम्रता से बोला. ‘‘लेकिन... आप ने... इंचीटेप...’’ शेफाली का चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था.

‘‘वह सब भाभी की चाल थी. वे नहीं चाहतीं कि उन से सुंदर दूसरी बहू हमारे परिवार में आए और उन को नीचा देखना पड़े. मैं उस समय भाभी को टोक नहीं पाया क्योंकि भाभी ने आते ही मु  झ पर इस तरह रोब जमाना शुरू कर दिया था कि मैं अपने खोल से कभी निकल नहीं पाया.

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