कुछ महीने पहले बड़े शोरशराबे के बाद ओलिंपिक खेल खत्म हुए. किसी भी ओलिंपिक में जीते मैडलों के राष्ट्रीय रिकौर्ड को तोड़ कर हमारे 6 सूरमा भी मैडल जीत लाए. क्या हुआ यदि ये कांसे और चांदी के बीच ही रह गए. ‘आगे सोना भी आएगा’ यह कहना है कुश्तीबाज सुशील कुमार या मुक्केबाज मैरी कौम का.

इधर मैडल मिले उधर इनामों की बारिश. उधर विदेश में ओलिंपिक में खेले इधर स्वदेश में करोड़ों में खेलने लगे. पदोन्नति तो ऐसे मिलने लगी जैसे बस मैडल के इंतजार में ही रुकी पड़ी थी.

विजय कुमार ने तो ओलिंपिक में ही घोषणा कर दी कि प्रमोशन नहीं मिला तो सेना की नौकरी छोड़ दूंगा. सरकारें भी बेचारी क्या करें. रूल्सरैगुलेशन, सीनियरिटी, सर्विस रिकौर्ड, कैडर मैनेजमैंट सब दरकिनार. कोई सूबेदार मेजर हो गया तो कोई पुलिस कप्तान बनने की तैयारी में है. अब यहां दुनिया की डिगरी बटोरी. टैक्निकल कोर्सों में बमुश्किल ऐडमिशन फिर सैमैस्टरट्राइस्टर सिस्टमों की रगड़ाई. अगर प्राइवेट सैक्टर में ही किसी प्रकार घुस लिए तो सरकारी सेवक (चपरासी को आदर से आजकल सेवक कहा जाता है) से भी कम वेतन में सुबह से शाम तक की रगड़ाई.

इन की खुशी से रश्क करते व अपने दकियानूसी बाप, जिस ने ‘जो खेलोगेकूदोगे होगे खराब’ की घुट्टी पिलापिला कर पढ़ाई में पेर दिया, को कोसतेकोसते आंख लग गई. पर हमारे ये मैडलधारी तो सपनों में भी आ धमके और कहीं कोई नया गुल खिलाते दिखे तो कहीं कोई नया राज खुलता दिखा.

सपने में देखता हूं कि हिंदुस्तान व पाकिस्तान में युद्ध छिड़ गया है. फ्रंट पर हमारे सूबेदार मेजर साहब कुमुक के साथ मौजूद हैं. दुश्मन है कि गोलीबारी करता बढ़ा आ रहा है पर सूबेदार मेजर साहब की बंदूक/पिस्तौल खामोश. सिपाही ललकार रहे हैं-साहब, गोली चलाओ, हमें भी चलाने दो. पर साहब कैसे चला दें. 25 मीटर शूटिंग के एक्सपर्ट जो हैं. 25 मीटर तक तो आने दो वरना निशाना नहीं चूक जाएगा, फाउल नहीं हो जाएगा.

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