कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘तुम इतनी तो अच्छी दिखती हो कि शादी का कोई प्रपोजल आए तो कोई लड़का तुम्हें इस कारण तो नहीं ठुकरा सकता कि तुम दिखने में सुंदर नहीं हो. तुम खूबसूरत हो.’ उस ने कहा और मुझे भरपूर यकीन हो गया. अपने सुंदर होने पर भरोसा तो था मुझे, लेकिन ठीकठाक सा. उस के कहने पर भरपूर भरोसा हो गया. ‘तुम्हें बीए ही करना था तो अपने शहर में ही कर सकते थे, क्या नाम बताया था, हां, छतरपुर. इतनी दूर दिल्ली आने की क्या जरूरत थी?’ मेरे अचानक पूछने से वह परेशान सा हो गया.

‘यों ही पूछा’ उस के चेहरे की परेशानी भांप कर मैं ने कहा. कुछ देर वह शांत रहा. फिर उस ने कहा, ‘मेरे पिता चाहते थे कि मैं घर से दूर रहूं.’ ‘क्यों?’ ‘ये तो वही बता सकते हैं और प्लीज तुम्हें मेरे बारे में जो जानना हो पूछ सकती हो लेकिन मेरे परिवार के विषय में मत पूछना. मैं बात नहीं करना चाहता उस बारे में. बताने लायक जितना था, मैं ने बता दिया.’ और वह खामोश हो गया. माहौल कुछ बोझिल सा हो गया था. मैं ने उस के परिवार के विषय में बात करना ठीक नहीं समझा.

मुझे कोई मतलब भी नहीं था उस के परिवार से. एक जिज्ञासा रहती है दोस्त के बारे में जानने की. अपने इस दोस्त के बारे में कुल जमा इतनी ही जानकारी से संतुष्ट होना पड़ा कि वह मेरे साथ बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रहा है, कालेज के होस्टल में रहता है, उम्र 25 साल, रंग गोरा, मध्यम कदकाठी, दुबलापता, जिला छतरपुर, प्रांत मध्य प्रदेश, पिता वकील, घर में 2 छोटे भाई और मां गृहिणी, नाम प्रशांत सिंह, जो अपने शहर से तकरीबन हजार किलोमीटर दूर रह कर बीए कर रहा है. क्यों, पता नहीं जो अपने परिवार के बारे में बात करना नहीं चाहता, करता है तो तनाव में आ जाता है. अजीब सी खामोशी ओढे़ हुए है मेरा दोस्त.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...