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भोर में गरज चमक के साथ सारे बादल एकसाथ बरस पड़े मानो धरती पर फिर से सुनामी लाने का इरादा हो.

शिखा की नींद भी खुली थी मेघों की गड़गड़ाहट से. उसे रात के अंधेरे में प्रकृति का ऐसा तांडव आनंद देता है और लड़कियों की तरह डराता नहीं है. ऐसे में उसे बड़ी अच्छी नींद आती है. आज भी पैरों के पास से मोटी चादर खींच वो दोबारा सो गई, बरखा की लोरी सुनतेसुनते.

दिल्ली की धरती पर ऐसी वर्षा बहुत कम ही होती है. अब हो रही है तो शिखा उस का पूरा लाभ उठाएगी. नींद में डूबने से पहले ही उस ने निर्णय ले लिया कि आज कुछ भी हो आफिस नहीं जाएगी. घर में रह कर मौसी से पकौड़े, चीले, कचौड़ी बनवा कर दिन भर चाटती रहेगी. पर वह जो चाहती है वो भला हुआ है आज तक?

घड़ी की सूई और लच्छो मौसी का मजबूत गठबंधन है. ठीक 6 बजे पहली चाय ले कर हाजिर, ‘‘ उठो बेबी रानी, आज आफिस जल्दी जाना है न?’’

झुंझला कर आंख खोली तो मौसी सामने खड़ी नजर आईं. उन्होंने खिड़की के सारे परदे हटा दिए. बादल जाने कहां भाग गए थे. हवा में नमी तो है पर नीला आकाश, सूरज की सुनहरी किरण धरती को चूमने उतर पड़ी है. वह झुंझलाई, ‘क्या है मौसी. सोने दो. आज मुझे कहीं नहीं जाना.’ वो धम्म से फिर लेट गई.

लच्छो ने दुलारा, ‘‘बेबी बिटिया, बाबूजी ने कहा है आज जरूरी काम है.’’

बाबूजी अर्थात दादू उन के नाम से ही जरूरी काम याद आ गया शिखा को. एक विदेशी कंपनी से गठबंधन की बात चल रही थी. बहुत दिनों से अब जा कर दोनों पक्षों की सहमति हुई है. उन के प्रतिनिधि आए हैं अमेरिका से. थोड़ा सा मतभेद अभी भी है वो अगर आज की मीटिंग में दूर हो जाए तो साईन हो जाएंगे. करोड़ों का लाभ होगा शिखा की कंपनी को अर्थात् शिखा को क्योंकि कंपनी की मालकिन शिखा है, दादू हैं जीएम. हड़बड़ा कर उठ बैठी. चाय गटकने लगी.

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