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सुदेश के दोस्त ने उन दोनों को सुदेश के बनारस के उस फ्लैट की चाबी दी जहां सुदेश अकसर यहां आने पर किराए पर रहता था. बात हुई कि दोस्त बाद में इस फ्लैट में आ कर उन्हें सारी बातें बताएगा और बिजनैस के मामले में सारिका को जानकारी देगा. दोनों होटल से अपना सामान ले कर यहां पहुंचे.

2 कमरों का यह फ्लैट सारी सुविधाओं से लैस था. कमरों में सामान अस्तव्यस्त था. दोनों मिल कर उसे समेटते रहे. अचानक दोनों एकदूसरे को देख झेंपने लगे. नशे से ले कर अश्लील वस्तुएं उधरउधर पड़ी मिल रही थीं. वैसे तो सारिका के लिए यह नई बात नहीं थी, मगर पत्नी होने का एहसास सारिका की आंखों से झरने लगा. मुकुंदजी ने उसे आवाज दी. उसे आंसू पोंछते देख वे उस के नजदीक आ गए.

झिझक को परे करते मुकुंदजी ने सारिका का हाथ धीमे से पकड़ लिया. कुछ एहसास यूं साझ हो गए कि सारिका अनजाने ही उन के करीब आ गई. 2 सांसें एकदूसरे की आहट को अपने में जज्ब करते कुछ देर यों ही खड़े रहे, फिर जैसे दोनों को अपनीअपनी शर्म और झिझक की फिक्र हो आई.

डाक्टर साहब परे हटते हुए बोले, ‘‘चलो गीजर औन है, नहा लो, फिर लंच के बाद अस्पताल चलना है न.’’

4 दिन और ऐसे ही अस्पताल तक दौड़ लगाते बीतते रहे. इस दलदल भरे जीवन में आखिर कब तक रुके रहते मुकुंदजी. उधर निलय भी अब पापा के लिए परेशान था. फिर उन के अपने मरीज. उन्हें भी डाक्टर साहब की जरूरत थी.

शाम को मुकुंदजी वापस आए तो सारिका से कहा, ‘‘निलय के बारे में सोच रहा हूं,  मुझे अब जाना होगा, मेरे मरीज भी परेशान हैं, मैं ने सुदेश के दोस्त को अच्छी तरह समझ दिया है. वह तुम्हें पूरी तरह मदद देगा. उस का फोन नंबर तो तुम्हारे पास है, अब सुदेश के सामने दोस्त की मदद से बिजनैस आदि की बातें अच्छी तरह समझ लो. घर से रिश्तेदारों को बुला लेना सही रहेगा.’’

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