कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो फिल्म इंडस्ट्री में स्टार किड्स चल नहीं पाए हैं. शुरू की एकदो फिल्मों में उन के नाम का हल्ला जरूर रहता है पर कुछ समय बाद वे गायब से हो जाते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि उन में जिस तरह की स्किल्स चाहिए होती हैं वे कैटर नहीं कर पाते.

बौलीवुड व नैपोटिजम का एक उदाहरण इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल होते देखा जा रहा है. अपने डायरैक्शन के खास स्टाइल के लिए जानी जाने वाली जोया अख्तर ने ‘आर्चीज’ नाम से फिल्म बनाई, जिस में स्टार्स के बच्चों को एज ए रंगरूट भरती किया गया पर जैसे ही इस फिल्म और इस के ऐक्टर्स को ले कर सोशल मीडिया पर रिस्पौंस मिलने की गुंजाइश थी, वैसा ही हुआ.

फिल्म में नएनवेले ऐक्टर्स की एक्ंिटग को ले कर खूब मजे लिए गए. जो जैसा लताड़ सकता था उस ने वैसे लताड़ा. फिल्म के एक सीन में खुशी कपूर और सुहाना खान एक रैस्टोरैंट में बैठे होते हैं और बात कर रहे हैं जिस में सुहाना खान खुशी कपूर से माफी मांग रही होती है. उन के माफी मांगने वाले सीन में दोनों के ही फेस पर उन के एक्सप्रैशन उन के डायलौग से जरा भी मैच नहीं कर रहे होते.

एक और सीन है जिस में खुशी कहती है, ‘‘अगर हम ने आज यह पार्क जाने दिया तो एक भी पेड़ नहीं बचेगा.’’ यह डायलौग बोलते हुए खुशी सपाट लग रही होती है. उस से पेड़ शब्द भी सही से बोला नहीं जा रहा होता. जबकि फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले जोया अख्तर ने स्टारकिड्स को एक साल की ऐक्ंिटग वर्कशौप भी करवाई थी. लेकिन फिर भी इन की यह हालत बताती है कि इस पेशे में जबरन घुसपैठ करना खुद के आग में हाथ डालने जैसा है.

फिल्म देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि स्टारकिड्स को मम्मीपापा के फेमस होने का पूरा फायदा मिला है. तभी नैटफ्लिक्स पर रिलीज हुई इस फिल्म में स्टारकिड्स की ऐक्ंिटग देखने के बाद इन्फ्लुएंसर्स और यूट्यूबर्स ने जम कर इन की क्लास भी लगाई है.

सोशल मीडिया पर कईयों ने लिखा, ‘इन से अच्छी ऐक्ंिटग तो मेरी कामवाली बाई कर लेती है.’ कुछ ने यहां तक लिख दिया कि इसे देखने के बाद मेरे सिर में दर्द होने लगा. कई यूट्यूबर्स ने निर्माता जोया अख्तर से अपील की है कि अगर आप नहीं चाहतीं कि आप की फिल्म को थिएटर में अंडे पड़ें तो इस के लिए आप स्टारकिड्स का साथ छोड दें.

फिल्म की सभी स्टारकास्ट बौलीवुड के हीरोहीरोइन के बच्चे हैं जो सिर्फ लाइमलाइट में आना जानते हैं, ऐक्ंिटग से दूरदूर तक इन का नाता नहीं है, चाहे खुद उन के घर में बड़ेबड़े स्टार्स क्यों न हों. अगर किसी का ऐक्ंिटग से जुड़ाव भी हो तो भी ये सोसाइटी से इतने कटेकटे रहते हैं कि एक्ट तो कर लेते हैं पर इमोशन नहीं पकड़ पाते.

बात करें अगर खुशी कपूर की लाइफ की तो ऐक्ट्रैस श्रीदेवी और मशहूर निर्माता बोनी कपूर की बेटी है जिस का जन्म 5 नंवबर, 2000 को महाराष्ट्र के मुंबई शहर में हुआ था. खुशी कपूर ने अपनी स्कूली पढ़ाई धीरूभाई अंबानी इंटरनैशनल स्कूल से की है. उस ने लंदन कालेज से ग्रेजुएशन की है.

उस की बड़ी बहन जाह्नवी कपूर बौलीवुड का एक जानामाना चेहरा है. वहीं उन के सौतेले भाई अर्जुन कपूर भी एक ऐक्टर हैं. तीनों भाईबहन ऐक्ंिटग के लिहाज से सामान्य से नीचे हैं. उस की एक सौतेली बहन अंशुला कपूर भी है जो सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती है और अपनी पोस्ट के जरिए लाखों रुपए कमाती है. साथ ही, वह प्रोडक्ट्स के प्रमोशन भी करती है.

खुशी कपूर यंगस्टर्स के बीच कितनी फेमस है, इस का अंदाजा उस के इंस्टाग्राम अकांउट से ही लगाया जा सकता है. उस की इंस्ट्राग्राम आईडी है ्यद्धह्वह्यद्धद्ब05-173. उस के इंस्टाग्राम पर 1.3 मिलियन फौलोअर्स हैं. उस की एक पोस्ट पर लाखों लाइक्स आते हैं. इस के अलावा वह अपने स्टाइल और फैशन सैंस के लिए यंगस्टर्स के बीच काफी पौपुलर है.

वह रैगुलर जिम जाती है. उस का फेवरेट सिंगर जस्टिन बीबर है. शुरुआत में वह एक मौडल बनना चाहती थी लेकिन फिल्मी बैकग्राउंड के चलते वह भी फिल्मों में आ गई क्योंकि उसे यह खानदानी बिजनैस लगा पर लगता है उस का यह डिसिजन उसे ले डूबेगा क्योंकि उस की हालिया रिलीज फिल्म देख कर महसूस होता है कि अगर कोई करन जौहर टाइप निर्देशक उस के ऊपर लंबे समय तक दांव लगा सके तो ही वह आगे कुछ निखर पाए.

खुशी कपूर ने जोया अख्तर की फिल्म ‘द आर्चीज’ से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की है. फिल्म देख कर यह साफ कहा जा सकता है कि वह ऐक्ंिटग के मामले में नौसिखिया है. उस के फेस पर कोई एक्सप्रैशन नहीं हैं. डायलौग डिलीवरी तो ऐसी कि 12 साल का बच्चा उस से ज्यादा अच्छी ऐक्ंिटग कर ले.

स्टार और स्टारकिड्स को यह समझना चाहिए कि जरूरी नहीं है कि डाक्टर का बेटा डाक्टर ही बने, क्रिकेटर का बेटा क्रिकेटर ही बने. अगर आप किसी और चीज में माहिर हैं तो वहां हाथ आजमा कर बहुत आगे बढ़ा जा सकता है. वह काम करो जिस में आप का मन हो या अपनी स्किल्स पर काम कर सको और रिजल्ट में दम लाओ. इस के बाद ही फैसला करो कि आप को ऐक्टर बनना भी है या नहीं.

दरअसल, समस्या यह है कि खुशी कपूर या उस के समकक्ष स्टारकिड्स एक तरह की लैविश लाइफ जीते हैं, उन्हें पार्टियां करना पसंद है, देशविदेश की यात्राएं करते हैं, बड़ेबड़े महंगे देशविदेश के स्कूलकालेज में पढ़ते हैं. इन स्टारकिड्स को चकाचौंध तो पसंद आती है लेकिन उस चकाचौंध को कमाया कैसे जाता है, यह नहीं आता.

इन में से आधे से ज्यादा ऐक्टर्स को ठीक से हिंदी तक नहीं आती. ये लिटरेचर भी पढ़ते हैं तो अधिकतर विदेश का. रोमियोजूलियट पढ़ते हुए प्रेम में डूब जाते हैं पर हीररांझा, सोनीमहिवाल, लैलामजनूं के प्रेम को महसूस ही नहीं कर पाते. शेक्सपियर, हेनरी, फ्रेनान्दो, मिखाइल, पाब्लो, चार्ल्स डिकेन, दोस्तोवस्की को तो पढ़ लेते हैं पर कबीर, टैगोर, मिर्जा, खुशवंत, प्रेमचंद, निराला, मुक्तिबोध को भूल जाते हैं.

इन स्टारकिड्स को समझना चाहिए कि आज भी शाहरुख खान नौन फिल्मी बैकग्राउंड के कलाकारों के लिए रोलमौडल इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने यह मुकाम तब हासिल किया जब उन के पास दौलत व शोहरत कुछ भी न थी. उन्होंने अगर परदे पर रोमांस किया तो उस का भारतीयकरण किया. इसी ने युवाओं को उन से जोड़ा.

हर बार जरूरी नहीं कि अच्छी शक्ल और फिगर काम कर जाए. टैलेंट होगा तो फिगर और शक्ल भी नोटिस की जाएगी.

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