किशोरावस्था के शुरू होते ही लड़कियों के शरीर में बदलाव आने लगता है. इस का सब से अधिक प्रभाव लड़कियों की बौडी फीगर पर पड़ता है. इस में भी ब्रैस्ट की शेप को ले कर सब से अधिक परेशानियां होती हैं. किसी को अपने छोटी ब्रैस्ट साइज से दिक्कत होती है तो किसी को अपनी बड़ी ब्रैस्ट से. ऐसे में उन्हें लगता है कि अगर उन का ब्रैस्ट साइज परफैक्ट नहीं होगा तो उन का आकर्षण कम हो जाएगा.

जिन लड़कियों की ब्रैस्ट का आकार छोटा या ज्यादा बड़ा होता है वे परेशान रहती हैं. ऐसे में ब्रैस्ट शेपिंग को ले कर तमाम तरह के प्रयास चलते हैं. ब्रैस्ट शेपिंग की सब से बड़ी चिंता का कारण क्लीवेज होती है. फैशनेबल ड्रैस पहनने वाली लड़कियों को लगता है कि अगर उन की क्लीवेज नहीं दिखेगी तो उन्हें सैक्सी, बोल्ड और ब्यूटीफुल नहीं माना जाएगा.

1. ब्रैस्ट शेपिंग के अलग-अलग तरीके

ब्रैस्ट शेपिंग के 2 तरीके होते हैं- पहला तरीका ब्रैस्ट इंप्लांट होता है. यह सामान्य रूप से नहीं किया जाता. जब ब्रैस्ट बहुत छोटी होती है, तो इस सर्जरी को अपनाया जाता है. ब्रैस्ट का साइज कप साइज के ऊपर निर्भर करता है. महिलाओं के ब्रैस्ट का साइज ‘ए’ से शुरू हो कर ‘एच’ तक बढ़ता रहता है. ‘सी’ और ‘डी’ साइज को भारतीय ब्यूटी में सब से खूबसूरत माना जाता है. ब्रैस्ट के साइज में किशोरावस्था से ले कर मां बनने की उम्र तक में बहुत बदलाव होता है.

खूबसूरत ब्रैस्ट का पैमाना उम्र और लंबाई के हिसाब से जो खूबसूरत लगे उसी को माना जाता है. सब से छोटे साइज को हाइपोमेस्टिया और बहुत बड़े साइज को जिंगटोमेस्टिया कहते हैं. ये दोनों ही साइज औरतों में हीनभावना को बढ़ावा देने वाले होते हैं. बड़े साइज की ब्रैस्ट से फैट निकाल कर उस का साइज ठीक किया जाता है.

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ब्रैस्ट का छोटा होना कुदरती बात होती है. बहुत सारे मामलों में शादी और बच्चा पैदा होने के बाद ब्रैस्ट के साइज में बदलाव होता है. कभीकभी ऐसा नहीं भी होता है. इस तरह के मामलों में कौस्मैटिक सर्जरी के जरीए ब्रैस्ट का इंप्लांट कर के मनचाहा आकार हासिल किया जा सकता है. कभीकभी औरतों में एक ब्रैस्ट छोटी और दूसरी बड़ी भी होती है. आमतौर पर यह फर्क इतना मामूली होता है कि किसी को पता नहीं चलता है. अगर साइज का यह फर्क दूर से दिखाई देने वाला हो तो ब्रैस्ट इंप्लांट के जरीए दोनों का साइज बराबर किया जा सकता है.

ब्रैस्ट इंप्लांट के लिए पहले सिलिकौन इंप्लांट का ही प्रयोग किया जाता था. आधुनिक तकनीक से ब्रैस्ट इंप्लांट में बहुत बदलाव आ गए हैं. इस से ब्रैस्ट नैचुरल लुक देने लगती है. ब्रैस्ट इंप्लांट के लिए मैमरी ग्लैंड के नीचे, सर्कमरिओलर, आर्मपिट या ट्रांसबिलिकल में चीरा लगा कर सिलिकौन पैड डाला जाता है. नीचे चीरा लगने के कारण इस का निशान छिप जाता है और धीरेधीरे खत्म भी हो जाता है. ब्रैस्ट कैंसर वाले मसलों में यह काफी कारगर होने लगा है.

औपरेशन के बाद त्वचा में खिंचाव पैदा होने के कारण कुछ दिनों तक दर्द बना रह सकता है. इसे दूर करने के लिए दवा दी जाती है. अलगअलग साइज के इंप्लांट बाजार में मिलते हैं. ब्रैस्ट इंप्लांट सर्जरी के द्वारा किया जाता है. यह औपरेशन लगभग 1 घंटे का होता है. आमतौर पर औपरेशन के बाद परेशानी नहीं आती है. कुछ माह के बाद मरीज को इस बात का पता ही नहीं चलता कि उस का औपरेशन हुआ है. मां बनने के बाद बच्चे को ब्रैस्ट फीडिंग कराने में भी कोई परेशानी नहीं आती है. जब चाहें इसे निकाला भी जा सकता है.

2. मसाज से ब्रैस्ट शेपिंग

आमतौर पर 20 से 22 साल की उम्र में जब ब्रैस्ट का आकार 30 ब्रा साइज से कम होता है तो उसे छोटा और 34 से ज्यादा होता है तो उसे बड़ा माना जाता है. सर्जरी के अलावा मसाज द्वारा भी ब्रैस्ट को सही आकार दिया जा सकता है.

कई लड़कियों में छोटी ब्रैस्ट की आनुवंशिक समस्या होती है. वहां मसाज कम असरदार होती है. ऐसे में हारमोंस की दवा देने से ब्रैस्ट के आकार को बड़ा किया जाता है. शादी से पहले ब्रैस्ट के आकार को बड़ा या छोटा करने के लिए सर्जिकल प्रोसीजर का प्रयोग नहीं करना चाहिए जब तक कि कोई दूसरा उपाय न हो. अगर बड़ी ब्रैस्ट को छोटा करना है तो डाइट पर ध्यान दे कर शरीर के बढ़ते फैट को कम कर ब्रैस्ट के आकार को ठीक किया जा सकता है. कई लड़कियों में ब्रैस्ट के ढीलेपन की परेशानी भी होती है. इसे भी मसाज और ऐक्सरसाइज से ठीक किया जा सकता है.

भारतीय माहौल में 32 से 34 ब्रा साइज की ब्रैस्ट को सब से परफैक्ट माना जाता है. फैशन के जानकार भी मानते हैं कि इस साइज की ब्रैस्ट में ही सही उभार आता है. सब से सुंदर क्लीवेज भी इसी से बनती है. 32 ब्रा साइज की ब्रैस्ट को ब्रा की सपोर्ट दे कर क्लीवेज उभारने का काम किया जाता है. इस के लिए पैडेड ब्रा, अंडरवायर ब्रा, डबल पैडेड ब्रा का सहारा लिया जाता है. ब्रा से ब्रैस्ट के साइज को ज्यादा और क्लीवेज को सुंदर दिखाया जा सकता है. लड़कियों के लिए परेशानी की बात तब होती है जब ब्रैस्ट को ब्रा का सहारा नहीं देना होता है.

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ब्यूटी प्रोडक्ट्स में ब्रैस्ट की शेपिंग और साइज को बढ़ाने के नाम पर बहुत सारे प्रोडक्ट्स बाजार में मौजूद हैं. लड़कियां ब्रैस्ट के साइज को ले कर मानसिक कुंठा से बाहर निकलें तो उन्हें लगेगा कि ब्रैस्ट का साइज नहीं आत्मविश्वास ज्यादा मैटर करता है. जहां तक क्लीवेज की बात है तो उसे ब्रा के सहारे उभारा जा सकता है. इस तरह की ब्रा का प्रयोग उतने ही समय के लिए करें जितना जरूरी हो. ज्यादा समय तक ऐसी ब्रा पहनने से ब्रैस्ट की परेशानियां बढ़ सकती हैं.

ब्रैस्ट का साइज कभी एकजैसा नहीं होता है. दोनों ब्रैस्ट के साइज में थोड़ाबहुत अंतर अवश्य होता है. यह अंतर ऐसा होता है जो आसानी से दिखता नहीं है. बहुत कम औरतों में यह अंतर ऐसा होता है जो आसानी से पता चला जाता है. यह अंतर इतना ज्यादा होता है कि इसे आसानी से छिपाया नहीं जा सकता है. अगर अंतर इतना ज्यादा है तो डाक्टर से मिलना जरूरी हो जाता है. ज्यादातर मामलों में यह अंतर सामान्य होता है. माहवारी के पहले यह अंतर दिखाई देता है. बाद में अपनेआप सही हो जाता है.

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