Interesting Hindi Stories : अमन ने श्रद्धा को सब से पहले एक बसस्टौप पर देखा था. सिंपल मगर आकर्षक गुलाबी रंग के टौप और डैनिम में दोस्तों साथ खड़ी थी. दूसरों से बहुत अलग दिख रही थी. उस के चेहरे पर शालीनता थी. खूबसूरत इतनी कि नजरें न हटें. अमन एकटक उसे देखता रहा जब तक कि वह बस में चढ़ नहीं गई. अगले दिन जानबूझ कर अमन उसी समय बसस्टौप के पास कार खड़ी कर रुक गया. उस की नजरें श्रद्धा को तलाश रही थीं. थोड़ी दूर पर उसे श्रद्धा नजर आ गई. आज उस ने स्काई ब्लू रंग की ड्रैस पहनी थी, जिस में वह बहुत जंच रही थी.
ऐसा दोतीन दिनों तक लगातार होता रहा. अमन समय पर उसी बसस्टौप पर पहुंचता. एक दिन बस आई और जब श्रद्धा उस में चढ़ने लगी तो अचानक अमन ने भी अपनी कार पार्क की और तेजी से बस में चढ़ गया. श्रद्धा बाराखंबा मैट्रो स्टेशन की बगल वाले बसस्टैंड पर उतरी और वहां से वाक करते हुए सूर्यकिरण बिल्डिंग में घुस गई. पीछेपीछे अमन भी उसी बिल्डिंग में घुसा. वह लड़की सीढ़ियां चढ़ती हुई तीसरेफ्लोर पर जा कर रुकी. वहां एक एडवरटाइजिंग कंपनी का बड़ा सा औफिस था. लड़की उस औफिस में दाखिल हो गई.
अमन कुछ देर बाहर टहलता रहा. फिर उस ने बाहर खड़े गार्ड से पूछा, “भैया, अभी जो मैडम अंदर गई हैं, वे यहां की मैनेजर हैं क्या?””जी, वे यहां डिजिटल मार्केटिंग मैनेजर और कौपी एडिटर हैं. आप को क्या काम है? क्या आप श्रद्धा मैडम से मिलना चाहते हैं?”
“जी हां, मैं मिलना चाहता हूं,” अमन ने कहा.”ठीक है. मैं उन्हें खबर दे कर आता हूं,” कह कर गार्ड अंदर चला गया और कुछ ही देर में निकल आया.
उस ने अमन को अंदर जाने का इशारा किया. अमन अंदर पहुंचा तो चपरासी उसे श्रद्धा के केबिन तक ले गया. केबिन बहुत आकर्षक था. सारी चीजें करीने से रखी हुई थीं. एक कोने में छोटेछोटे गमलों में कुछ पौधे भी थे. अमन को बैठने का इशारा करते हुए श्रद्धा उस की तरफ मुखातिब हुई. अमन उसे देखता रह गया. दिल का प्यार आंखों में उभर आया. श्रद्धा अमन से पहली बार मिल रही थी.
उस ने सवालिया नजरों से देखते हुए पूछा, “जी हां, बताइए मैं आप की क्या मदद कर सकती हूं?” “ऐक्चुअली मेरी एक कंपनी है. हम स्नैक्स आइटम्स बनाते हैं. मैं आप से अपने प्रोडक्ट्स की ब्रैंडिंग और ऐड कैंपेन के सिलसिले में बात करना चाहता था. आप कौपी एडिटर भी हैं, सो, आप से ऐड भी लिखवाना था.”
“मगर मैं ही क्यों?” श्रद्धा ने कहा, तो अमन को कोई जवाब नहीं सूझा.फिर कुछ सोचता हुआ बोला, “दरअसल, मेरे एक दोस्त ने आप का नाम रेफर किया था. इस कंपनी के बारे में भी बताया था. काफी तारीफ़ की थी.”
“चलिए ठीक है. हम इस सिलसिले में विस्तार से बात करेंगे. अपने कुछ सहयोगियों के साथ मैं आप के मैनेजर की एक मीटिंग फिक्स कर देती हूं. आप या आप के मैनेजर मीटिंग अटेंड कर सकते हैं.”जी, मीटिंग में मैनेजर नहीं, बल्कि मैं खुद ही आना चाहता हूं. मैं इस तरह के कामों को खुद ही हैंडल करता हूं. मैं तो चाहूंगा कि आप भी उस मीटिंग में जरूर रहें, प्लीज.”
“ग्रेट. तो ठीक है. अगले मंडे हम मीटिंग कर लेते हैं.”अमन ने खुश हो कर हामी में सिर हिलाया और वापस लौट आया. मगर अपना दिल श्रद्धा के पास ही छोड़ आया. उस की आंखों के आगे श्रद्धा का ही शालीन और खूबसूरत चेहरा घूमता रहा. वह बेसब्री से अगले मंडे का इंतजार करने लगा.
अगले मंडे समय से पहले ही वह मीटिंग के लिए पहुंच गया. श्रद्धा को देख कर उस के चेहरे पर मीठी मुसकान खिल गई थी. श्रद्धा के साथ 2 और लोग थे. ऐड कैंपेन के बारे में डिटेल में बातें हुईं. मीटिंग के बाद श्रद्धा के दोनों सहयोगी चले गए. अमन अभी श्रद्धा के पास ही बैठा रहा. कोई न कोई बात निकालता रहा.
2 दिनों बाद वह फिर काम की प्रोग्रैस के बारे में जानने के बहाने श्रद्धा के पास पहुंच गया. अब तक अमन के व्यवहार और बातचीत के लहजे से श्रद्धा को महसूस होने लगा था कि अमन के मन में क्या चल रहा है. अमन के लिए भी अपनी फीलिंग अब और अधिक छिपाना कठिन हो रहा था.
अगली दफा वह श्रद्धा के पास एक कार्ड ले कर पहुंचा. कार्ड देते हुए अमन ने हौले से कहा, “इस कार्ड में लिखी एकएक बात मेरे दिल की आवाज है. प्लीज, एक बार पूरा पढ़ लो, फिर जवाब देना.”
श्रद्धा ने कार्ड खोला और पढ़ने लगी. उस में लिखा था, “मैं लव ऐट फर्स्ट साइट पर विश्वास नहीं करता था. मगर बसस्टैंड पर तुम्हें पहली नजर देखते ही दिल दे बैठा हूं. तुम्हारे लिए जो महसूस कर रहा हूं वह आज तक जिंदगी में किसी के लिए भी महसूस नहीं किया. रियली, आई लव यू. क्या तुम्हें हमेशा के लिए मेरा बनना स्वीकार होगा?”
श्रद्धा ने पलकें उठाईं और अमन की तरफ मुसकरा कर देखती हुई बोली, “बसस्टैंड से मेरे औफिस तक का आप का सफर कमाल का रहा. मुझे भी इतने प्यार से कभी किसी ने अपना बनने की इल्तिजा नहीं की. मैं आप का प्रपोजल स्वीकार करती हूं,” कहते हुए श्रद्धा की आंखें शर्म से झुक गईं और अमन का चेहरा खुशी से खिल उठा.
अमन ने अपने घर में श्रद्धा के बारे में बताया, तो सब दंग रह गए कि अमन जैसा शर्मीला लड़का लव मैरिज की बात कर रहा है. यानी, लड़की में कुछ तो खास बात जरूर होगी. अमन के घर में मांबाप के अलावा 2 बड़े भाई, भाभियां और एक बहन तुषिता थे. भाइयों के 2 छोटेछोटे बच्चे भी थे. उन के परिवार की गिनती शहर के जानेमाने रईसों में होती थी. जबकि, श्रद्धा एक गरीब परिवार की लड़की थी. उस ने अपनी काबिलीयत और लगन के बल पर ऊंची पढ़ाई की और एक बड़ी कंपनी में ऊंचे ओहदे तक पहुंची. उस के अंदर स्वाभिमान कूटकूट कर भरा था. वह मेहनती होने के साथ ही जिंदगी बहुत व्यवस्थित ढंग से जीना पसंद करती थी
जल्द ही दोनों के परिवार वालों की रजामंदी मिल गई और अमन ने श्रद्धा से शादी कर ली.शादी के बाद पहले दिन जब वह किचन की तरफ बढ़ी तो सास ने उस से कहा, “बेटा, रिवाज है कि नई बहू कुछ मीठा बनाती है. जा तू हलवा बना ले. उस के बाद तुझे किचन में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. बहुत सारे कुक हैं हमारे पास.”
इस पर श्रद्धा ने बड़े प्रेम व आदर के साथ सास की बात का विरोध करते हुए कहा था, “मम्मी जी, मैं कुक के बनाए तरहतरह के व्यंजनों के बजाय अपना बनाया हुआ साधारण मगर हैल्दी खाना पसंद करती हूं. प्लीज, मुझ से किचन में काम करने का मेरा अधिकार मत छीनिएगा.’
उस की बात सुन कर सास को कुछ अटपटा सा लगा और भाभियों ने भी भवें चढ़ा लीं. छोटी भाभी ने व्यंग्य से कहा, “श्रद्धा, यह तुम्हारा छोटा सा घर नहीं है जहां खुद ही खाना बनाना पड़े. हमारे यहां बहुत सारे नौकरचाकर और रसोइए दिनरात काम में लगे रहते हैं.”
श्रद्धा मुसकरा कर किचन में चली गई. उस ने अपने हाथों से पूरा खाना तैयार किया. हलवा भी बनाया. जब श्रद्धा ने खाना परोसा, तो खाना खा कर सब उंगलियां चाटते रह गए. सबों को खाना बहुत पसंद आया. अमन तो उस के खाने की तारीफ करते नहीं थक रहा था. सासससुर ने खुश हो कर उसे नेग भी दिया.
बाद में भी घर में भले ही कुक तरहतरह के व्यंजन तैयार करते रहते मगर वह अपने हाथों का बना साधारण खाना ही खाती और अमन भी उस के हाथ का खाना ही पसंद करने लगा था. अमन को श्रद्धा के खाने की तारीफें करता देख दोनों भाभियों ने भी अपने हाथों से कुछ आइटम्स बना कर अपनेअपने पति को रिझाने का प्रयास किया. फिर तो अकसर ही दोनों भाभियां किचन में दिखने लगी थीं.
श्रद्धा भले ही अपना छोटा सा घर छोड़ कर बड़े बंगले में रहने आ गई थी मगर उस के रहने के तरीकों में कोई परिवर्तन नहीं आया था. उस ने अपने कमरे के बाहर वाले बरामदे में एक टेबलकुरसी डाल कर उसे स्टडीरूम बना लिया था. कंप्यूटर, प्रिंटर, टेबललैंप आदि अपने टेबल पर सजा लिए. अमन के कहने पर एक छोटा सा फ्रिज भी उस ने साइड में रखवा लिया. बरामदा बड़ा था और शीशे की खिड़कियां लगी हुई थीं. वह बाहर का नजारा देखते हुए बहुत आराम से अपना काम करती. जब दिल करता, खिड़कियां खोल कर ताजी हवा का आनंद लेती. बरामदे के कोने में 3 -4 छोटे गमलों में पौधे भी लगवा दिए.
भले ही उस की अलमारियां लेटेस्ट स्टाइल के कपड़ों व गहनों से भरी हुई थीं मगर वह अपनी पसंद के साधारण मगर कंफर्टेबल कपड़ों में ही रहना पसंद करती थी.
शानदार बाथटब होने के बावजूद वह शावर के नीचे खड़ी हो कर नहाती. तरहतरह के शैंपू होने के बावजूद वह मुल्तानी मिट्टी से बाल धोती. कभी भी हेयर ड्रायर या ऐसी चीजों का इस्तेमाल वह न करती.
घर में कई सारी कीमती गाड़ियों के होते हुए भी वह पहले की तरह बस से औफिस आतीजाती रही. बसस्टैंड पर उतर कर 10 मिनट वाक कर के औफिस पहुंचने की आदत बरकरार रखी.
शादी के बाद पहले दिन जब वह बस से औफिस जा रही थी तो तुषिता ने टोका था, “भाभी, हमारे घर में इतनी गाड़ियां हैं. कोई क्या कहेगा कि इतने बड़े खानदान की नईनवेली बहू बस से औफिस जा रही है.”
“तुषि, मैं बस से औफिस मजबूरी में नहीं जा रही हूं बल्कि इसलिए जा रही हूं ताकि मेरी दौड़नेभागने और वाक करने की आदत बनी रहे. बचपन से ही मुझे शरीर को जरूरत से ज्यादा आराम देने की आदत नहीं रही है. वैसे भी, बस में आप 10 लोगों से इंटरैक्ट करते हो. आप की प्रैक्टिकल नौलेज बढ़ती है. इस में गलत क्या है?”
“जी, गलत तो कुछ नहीं,” मुंह बना कर तुषिता ने कहा और अंदर चली गई.श्रद्धा ने अपने कमरे में से तमाम ऐसी चीजें निकाल कर बाहर कर दीं जो केवल शोऔफ के लिए थीं या लग्जरियस लाइफ के लिए थीं. जब श्रद्धा अपने कमरे से कुछ सामान बाहर करवा रही थी तो सास ने सवाल किया था, “यह क्या कर रही हो बहू?”
“मम्मी जी, मुझे कमरा खुलाखुला सा अच्छा लगता है. जिन चीजों की जरूरत नहीं, उन्हें हटा रही हूं. आप ही बताइए, नकली फूलों से सजे इस कीमती फ्लौवर पौट के बजाय क्या मिट्टी का यह गमला और इस में मनीप्लांट का पौधा अच्छा नहीं लग रहा? बाजार से खरीदे गए इन शोपीसेज के बजाय मैं ने अपने हाथ की बनाई कुछ कलात्मक चीजें दीवार पर लगा दी हैं. आप कहें तो हटा दूं. वैसे, मुझे तो अच्छी लग रही हैं.
“नहींनहीं, रहने दो. दूसरों को भी तो पता चले कि हमारी छोटी बहू में कितने हुनर हैं,” कह कर सास ने चुप्पी लगा ली.
श्रद्धा ने खुद को अपनी मिट्टी से भी जोड़े रखा था. सुबह उठ कर ऐक्सरसाइज करना, घास पर नंगे पांव चलना, गार्डनिंग करना, कुकिंग करना, वाक करना आदि उस की पसंदीदा गतिविधियां थीं. अमन के कहने पर उस ने स्विमिंग करना और कार चलाना जरूर सीख लिया था मगर दैनिक जीवन में इन से दूर ही रहती. शाम को समय मिलने पर डांस करती तो सुबहसुबह साइकिल ले कर निकल पड़ती. पैसे भले ही कितने भी आ जाएं मगर फालतू पैसे खर्च नहीं करती.
उस की ये हरकतें देख कर अमन के दोनों भाईभाभियां, बहन और मांबाप कसमसा कर रह जाते, पर कुछ कह नहीं पाते क्योंकि श्रद्धा शिकायत के लायक कुछ भी गलत नहीं करती थी.
इधर एक दिन जब दोनों भाभियां सास के साथ किटी पार्टी में जाने के लिए सजधज रही थीं तो सास ने श्रद्धा से भी चलने को कहा. इस पर श्रद्धा ने जवाब दिया, “मम्मी जी, आज तो मैं एक लैक्चर अटैंड करने जा रही हूं. संदीप माहेश्वरी के मोटिवेशनल स्पीच का प्रोग्राम है. सौरी, मैं आप के साथ किटी पार्टी में नहीं आ पाऊंगी.”
श्रद्धा को प्यार और आश्चर्य से देखते हुए सास ने कहा, “दूसरों से बहुत अलग है तू. पर, सही है. मुझे तेरी बातें कभीकभी अच्छी लगती हैं. एक दिन मैं भी चलूंगी तेरे साथ लेक्चर सुनने. पर आज किटी पार्टी का ही प्लान है. मेरी सहेली ने अरेंज किया है न.”
“जी मम्मी, जरूर,” कह कर श्रद्धा मुसकरा पड़ी.अगले संडे सास भी श्रद्धा के साथ लेक्चर सुनने गई और आ कर बहुत तारीफें कीं.
इसी तरह वक्त गुजरता गया. शुरू में श्रद्धा की आदतों और हरकतों से चिढ़ने और पसंद न करने वाली श्रद्धा की सास, ननद और भाभियां धीरेधीरे उसी के रंग में रंगती चली गईं. अब वे भी अकसर कार अवौयड कर देतीं.
घर की पार्किंग में महंगी व आलीशान कारों के साथ अब छोटी कारें भी खड़ी हो गईं. सास और भाभियां कई बार उस के साथ लेक्चर अटेंड करने पहुंचने लगीं. उन्हें भी समझ आ रहा था कि किटी पार्टीज में गहनेकपड़ों का शोऔफ़ करने या बिचिंग करने में समय बरबाद करने के बजाय बहुत अच्छा है नई बातें जानना और जीवन को दिशा देने वाले लेक्चर व सैमिनार अटेंड करना, ज्ञान बढ़ाना, किताबें पढ़ना और कला दीर्घा जैसी जगहों में जाना.
श्रद्धा ने कुछ किताबें और पत्रिकाएं खरीदी थीं और उन्हें अपने कमरे की एक छोटी सी अलमारी में करीने से लगा दिया था. पर धीरेधीरे जब किताबों और पत्रिकाओं की संख्या बढ़ने लगी तो अमन के कहने पर उस ने घर के एक कमरे को छोटी सी लाइब्रेरी का रूप दे दिया और सारी किताबें व पत्रिकाएं वहां सजा दीं. अब तो परिवार के दूसरे सदस्य भी आ कर वहां बैठते और शांति व सुकून के साथ पत्रिकाएं, किताबें पढ़ते.
श्रद्धा से प्रभावित हो कर घर धीरेधीरे घर का माहौल बदलने लगा था. दोनों भाभियों ने कुक को हटा कर खुद ही किचन का काम संभाल लिया, तो सास ने भी घर के माली का हिसाब कर दिया. अब सासबहू मिल कर गार्डनिंग करतीं. श्रद्धा की देखादेखी भाभियां खुद कपड़े धोने, प्रैस करने और घर को व्यवस्थित रखने की जिम्मेदारियां निभाने लगी थीं. तुषिता भी अपने छोटेमोटे सारे काम खुद निबटा लेती.
इस तरह के परिवर्तनों का एक सकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि परिवार के सदस्य अपना ज्यादा से ज्यादा समय एकदूसरे के साथ बिताने लगे. खाना बनाते समय जहां दोनों भाभियों, सास और श्रद्धा को आपस में अच्छा समय बिताने का मौका मिलता, वहीँ घर के सभी सदस्य प्यार से एक ही डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खाना खाने लगे. खाने की तारीफें होने लगीं. घर की बहुओं को और अच्छा करने का प्रोत्साहन मिलने लगा. वहीं, गार्डनिंग के शौक ने सास के साथ श्रद्धा की बौन्डिंग बेहतर कर दी. अब तुषिता भी गार्डनिंग में रुचि लेने लगी थी. ननद और सास के साथ श्रद्धा इन पलों का खूब आनंद लेती.
इसी तरह शौपिंग के लिए नौकरों को भेजने के बजाय श्रद्धा खुद अमन को ले कर पैदल बाजार तक जाती. मौल के बजाय वह लोकल मार्केट से सामान लेना पसंद करती. फलसब्जियां भी खुद ही ले कर आती. श्रद्धा को देख कर बाकी दोनों भाभियां भी संडे शाम को अकसर अपने पति को ले कर शौपिंग के लिए निकलने लगीं. उन्हें अपने पति के साथ समय बिताने का अच्छा मौका मिल जाता था.
समय के साथ परिवार के सभी सदस्यों को नौकरों पर निर्भर रहने के बजाय खुद अपना काम करने की आदत लग चुकी थी. घर में प्यार और शांति का माहौल था. व्यापार पर भी इस का बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा. उन का व्यापार चमचमाने लगा था. बड़े बड़े और्डर्स मिलने लगे. दूरदूर तक उन के आउटलेट्स खुलने लगे थे. हर तरह के पारिवारिक, व्यावसायिक और सामाजिक विवाद समाप्त हो चले थे.
श्रद्धाके अच्छे व्यवहार का नतीजा था कि रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ उन के संबंध और भी ज्यादा सुधरने लगे थे. किसी रिश्तेदार या पड़ोसी के साथ घर के किसी सदस्य का विवाद होता, तो श्रद्धा उसे समझाती. उस की ग़लतियों की तरफ ध्यान दिलाती. वह समझाती कि पड़ोसियों और रिश्तेदारों से अच्छे रिश्ते के लिए थोड़ा सब्र कर लेना और एकदूसरे को माफ कर देना भी जरूरी होता है. इस से रिश्ते गहरे हो जाते हैं. श्रद्धा की सोच और उस के व्यवहार का तरीका घर के सभी सदस्यों पर असर डाल रहा था. उन की जिंदगी बदल रही थी.
इसी दौरान एक दिन शाम के समय सास का फ़ोन आया. वह काफी घबराई हुई आवाज में बोली, “श्रद्धा, बेटा तू जल्दी से सिटी हौस्पिटल आ जा. तेरी अलका भाभी का एक्सिडैंट हो गया है. वह तुषिता के साथ स्कूटी पर जा रही थी, तभी किसी ने टक्कर मार दी. अलका को बहुत गहरी चोट लगी है. मैं और तुषिता हौस्पिटल में हैं. तेरे दोनों जेठ आज बिज़नैस के सिलसिले में ग्रेटर नोएडा गए हुए हैं. उन को आने में देर हो जाएगी. अमन भी लगता है मीटिंग में है, फोन नहीं उठा रहा.”
“कोई नहीं मां, आप घबराओ नहीं. मैं तुरंत आती हूं.”श्रद्धा ने तुरंत कैब किया और सिटी हौस्पिटल पहुंच गई. अलका के सिर में गहरी चोट लगी थी. उस का खून काफी बह गया था. उसे तुरंत औपरेट करना था, खून भी चढ़ाना था. श्रद्धा ने डाक्टर से अपना खून देने की बात की क्योंकि उस का ब्लड ग्रुप भी ‘ओ पौजिटिव’ था.
फटाफट सारे काम हो गए. आते समय श्रद्धा अपनी चैकबुक साथ लाई थी. डाक्टर ने 2 लाख रुपए जमा करने को कहा. उस ने तुरंत जमा कर दिए.
शाम तक घर के बाकी लोग भी हौस्पिटल पहुंच गए थे. अलका अभी आईसीयू में ही थी. उसे होश नहीं आया था. अगले दिन डाक्टर्स ने कहा कि अलका अब खतरे से बाहर है, मगर अभी उस के एक पैर की सर्जरी भी होनी है क्योंकि इस दुर्घटना में उस के एक पैर के घुटने से नीचे वाली हड्डी डैमेज हो गई थी. सो, उसे भी औपरेट करना था. आननफानन यह काम भी हो गया. एक सप्ताह हौस्पिटल में रह कर अलका घर आ गई. मगर अभी भी उसे करीब 2 महीने बैडरैस्ट पर रहना था.
ऐसे समय में श्रद्धा ने अलका की सारी जिम्मेदारियां उठा लीं. उस ने औफिस से 15 दिनों की छुट्टी ले ली. अलका के सारे काम वह अपने हाथों से करती. यहां तक कि उस के बच्चों को तैयार कर स्कूल भेजना, स्कूल से लाना, पढ़ाना, खिलानापिलाना यह सब श्रद्धा करने लगी. औफिस जौइन करने के बाद भी वह सारी जिम्मेदारियां बखूबी उठाती रही. हालांकि, अब तुषिता भी यथासंभव उस की मदद करती.
धीरेधीरे यह कठिन समय भी गुजर गया. अलका अब ठीक हो गई थी. सारा परिवार श्रद्धा के व्यवहार की तारीफ़ करते नहीं थकता था. उस ने अपने प्यारभरे व्यवहार से सब को अपना मुरीद बना लिया था. सुख और दुख दोनों में ही श्रद्धा ने जिस तरह अपने जीवन में संतुलन बना कर रखा और परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाया था, उस से हर कोई प्रभावित था.
कई महीनों बाद जब अलका पूर तरह ठीक हो गई तो सासससुर ने घर में ग्रैंड पार्टी रखी और उस में अपनी बहू श्रद्धा को ‘बेस्ट बहू औफ द हाउस’ का अवार्ड दे कर सम्मानित किया. घर का हर सदस्य आज मिल कर श्रद्धा के लिए तालियां बजा रहा था.