लगभग 35 वर्षों से मॉडलिंग और थिएटर से कैरियर की शुरूआत कर टीवी सीरियलों व फिल्मों में अपनी एक अलग मौजूदगी दर्ज करा चुकी अदाकारा किट्टू गिडवाणी ने हिंदी के अलावा अंग्रेजी व फ्रेंच भाषा में भी अभिनय किया है. इन दिनों वह ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘सोनी लिव’’ पर  वेब सीरीज ‘‘पॉटलक’’ में नजर आ रही हैं.

प्रस्तुत है किट्टू गिडवाणी से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .

अपनी अब तक की अभिनय यात्रा को किस तरह से देखती हैं?

-मेरी अभिनय यात्रा काफी रोचक व रचनात्मक रही. मैंने थिएटर,  टीवी, फिल्म व ओटीटी प्लेटफार्म सहित हर प्लेटफार्म पर काम बेहतरीन काम किया. मुझ पर कोई इमेज चस्पा नही हो सकी. मैं वर्सेटाइल कलाकार हूं. मुझे सदैव रंगमंच पर काम करने में आनंद की अनुभूति होती है. मुझे बेहतरीन टीवी कार्यक्रमों में काम करना पसद है. फिल्में करना पसंद है. मैने ‘फैशन’सहित कुछ फिल्में करते हुए इंज्वॉय किया, तो वहीं मैने ‘तृष्णा’,  ‘स्वाभिमान’, ‘जुनून’, ‘एअरहोस्टेस’और ‘खोज’ जैसे सीरियल करते हुए काफी इंज्वॉय किया. मुझे नहीं लगता कि मेरी तरह सभी कलाकार हर माध्यम में काम करने में सहज हों. मैने लंदन व पेरिस जाकर फिल्म व रंगमंच पर काम किया. मैने लंदन में एक अंग्रेजी नाटक में अभिनय किया. जबकि फ्रांस में मैने दो फ्रेंच फिल्मों में अभिनय किया.  मैं पूरे संसार पर अंकुश नही लगा सकती, लेकिन मैने अपनी क्षमता के अनुरूप हर माध्यम पर कई प्रयोग किए. मुझे गर्व है कि मंैने अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जी है.

1985 में कैरियर शुरू किया था. उन दिनों जिस तरह के सीरियल किए थे, उनसे इसमें क्या अंतर पाती हैं?

-‘स्वाभिमान’’ 1995 में किया था. उससे पहले ‘एअरहोस्टेस’सहित कई सीरियल किए थे. वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है. लोगों की सोच बदलती है. एक्सपोजर जितना अधिक होता है, उसके अनुसार बहुत कुछ बदलता है. जैसे कि हमने ‘पॉटलक’में अपर मिडल क्लास परिवार को लिया है. इसलिए ‘पॉटलक’ के साथ ‘स्वाभिमान’ को जोड़कर नहीं देख सकते. ‘स्वाभिमान’ उच्च वर्ग की कहानी थी. उन दिनों हम सारे संवाद हिंदी में बोलते थे. अब तो हम हिंदी व अंग्रेजी मिश्रित संवाद बोलते हैं. हर जमाने में रचनात्मकता बदलती रहती है. हर जमाने में ताकत, अच्छाई व बुराई भी होती है. ऐसे में एक वक्त के सीरियल की तुलना दूसरे वक्त के सीरियल से करना ठीक नही है. पहले जब हम वीकली सीरियल कर रहे थे, उन दिनों बजट कम हुआ करते थे, जबकि अब बजट काफी हो गए हैं.

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मेरा सवाल कलाकार के तौर पर संतुष्टि को लेकर है?

-देखिए, कलाकार के तौर पर संतुष्टि मुझे ‘स्वाभिमान’ में भी मिली थी और ‘जुनून’ में भी मिली थी. मैने काम करते हुए काफी इंज्वॉय किया था. अब ‘पॉटलक’ करके भी काफी संतुष्टि मिली. मेरे लिए प्रोजेक्ट अच्छा होना चाहिए, तभी मैं उसके साथ जुड़ती हूं. फिर वह प्रोजेक्ट चाहे फिल्म हो,  थिएटर हो या सीरियल हो या वेब सीरीज हो. हर प्रोजेक्ट की अपनी एक जान होती है. मेरी राय में हर कलाकार संतुष्टि के पीछे ही भागता रहता है.

वेब सीरीज ‘‘ पॉटलक ’’ से जुड़ने के लिए आपको किस बात ने प्रेरित किया?

-इसकी पटकथा काफी सुंदर है. निर्देशक काफी समझदार और एक नई व ताजी सोच वाली हैं. वह पूरे दस वर्ष तक अमरीका में रहने के बाद भारत वापस आयी हैं. संवादों की स्टाइल काफी नेच्युरल स्वाभाविक है. इसमें हास्य के पल भी हैं. इन सारी बातों ने मुझे इसके साथ जुड़ने के लिए आकर्षित किया.

‘‘पॉटलक’में आपका किरदार?

-निजी जीवन में मेरी अपनी कोई संतान नही है. मगर वेब सीरीज ‘पॉटलक’में मैं मैने प्रमिला शास्त्रीका किरदार निभाया है, जिनके दो बेटे व एक बेटी है. बेटों की शादी हो चुकी है, पर बेटी की शादी की उसे चिंता है. इसमें सिचुएशनल कॉमेडी है, जो आजकल कम देखने को मिलती है.

जब आपने ‘जुनून’ या ‘स्वाभिमान’में अभिनय किया था, उन दिनों समाज के हर तबके में परिवार व संयुक्त परिवार बहुत मायने रखता था. आज आधुनिक युग में संयुक्त परिवारों की जगह एकाकी परिवार आ गए हैं. ऐसे में ‘पॉटलक’ से क्या सीख मिलेगी?

-‘पॉटलक’ लोगों से कहती है कि हम बहुत मुश्किल जमाने से गुजर रहे हैं, ऐसे वक्त में हमें इस बात का ख्याल रखना है कि कहीं अहम विखर न जाएं. इसके लिए जरुरी है कि आप सभी एक दूसरे को समझने का प्रयास करेंं, कुछ चीजों को नजरंदाज करें. वर्तमान समय में बच्चों को लगता है कि उनके माता पिता बेवजह बकवास करते रहते हैं, तो वहीं माता पिता को लगता है कि बच्चे उनसे जुदा हो गए हैं, परिवार विखर गया है, बच्चे अपनी अलग सोच के साथ जिंदगी जी रहे हैं. बच्चे पूरे दिन मोबाइल पर लगे रहते हैं,  परिवार के साथ उनका कोई जुड़ाव ही नहीं रहता है. इन सारी शिकायतों के बावजूद यदि आप एक दूसरे के करीब आने की कोशिश करते हैंं, तो क्या होता है, इसका परिणाम अच्छा होता है या बुरा होता है, यही सब ‘पॉटलक’ में बताया गया है. ‘पॉटलक’में दिखाया है कि कभी अच्छा, तो कभी बुरा होता है, मगर अंत में परिवार तो परिवार ही होता है. लेकिन ‘पॉटलक’ देखने के बाद लोगांे की सहमति या असहमति हो सकती है. लेकिन हमने तो यही कहने की कोशिश की है कि साथ रहने में ही फायदा है. एकता में ताकत है, यह बात हर इंसान को समझनी चाहिए.

आपने कई बेहतरीन फिल्में व सीरियल किए, पर बीच में काफी समय तक गायब रही?

-ऐसा न कहें. मैं गायब तो नही हुई. देखिए, जब मुझे अच्छी फिल्म या सीरियल करने का अवसर मिलता है, तो मैं करती हूं. महज संख्या गिनाने के लिए कोई भी फिल्म या सीरियल नही करती. मैं अच्छा काम नही मिलता तो नही करती. मैं जबरन ख्ुाद को व्यस्त रखने में यकीन नहीं करती.

यह सच है कि मैंने लंबे समय से टीवी करना बंद कर रखा है. मैने पिछले 15 वर्षों से सीरियल नहीं किए हैं. इसकी मूल वजह यह है कि अब टीवी का कंटेंट ही अच्छा नही है. सच कह रही हूं और आप भी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि अब टीवी का कंटेंट काफी बुरा हो गया है. मैं अपने कैरियर के इस मुकाम पर ‘सास बहू मार्का ’ सीरियल नहीं कर सकती. मैं किचन पोलीटिक्स वाले सीरियलो में फिट ही नही होती. एसे सीरियलों में कलाकार के तौर पर मेरे लिए कोई जगह ही नही है.

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इन दिनों नारी स्वतंत्रता, फेमेनिजम आदि की काफी चर्चाएं हो रही हैं. आपके लिए फेमेनिजम क्या है?

-फेमेनिजम को परिभाषित नहीं किया जा सकता. हर औरत की अपनी एक यात्रा होती है. हर औरत के लिए फेमेनिजम की अपनी परिभाषा होती है. फेमेनिज्म के बारे में हर किसी का एक सिद्धांतवादी दृष्टिकोण होता है. मुझे नहीं लगता कि किसी को मुझे बताने की जरुरत है कि फेमेनिजम क्या है. मेरे लिए फेमेनिजम की परिभाषा यह है कि मैं एक औरत होने के नाते जो करना चाहूं, वह कर सकूं. जो मुझे सही लगता है, उसे लेकर मैं किसी को भी उसका फायदा लेने नहीं दूंूगी. मैं अपनी क्षमता के अनुरूप काम करती रहूंगी. किसी भी संस्था को अधिकार नही है कि वह फेमेनिजम को परिभाषित करे.

जब आप शूटिंग नही कर रही होती हैं, उस वक्त आपकी क्या गतिविधियां होती हैं?

-मैं बहुत कुछ पढ़ती हूं. राजनीति व अर्थशास्त्र को लेकर काफी कुछ पढ़ती हूं. मैं भारतीय दर्शन शास्त्र पढ़ती व सीखती हूं. नृत्य भी सीखती हूं. यात्राएं करने का भी शौक है.

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