उर्दूलेखक सआदत हसन मंटो पर बन रही फिल्म में मंटो का किरदार नवाजुद्दीन सिद्दीकी निभाने वाले हैं. खबर मिली है कि इसकी शूटिंग मार्च में शुरू हो रही है, रईस की रिलीज के बाद से नवाज, मंटो को समझने के लिए हर कोशिश में जुटे हैं.

कुछ दिन पहले नवाज की एक तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हुई थी, जिसमें वे हूबहू मंटों के अवतार में दिखाई दे रहे थे. जानकारी के मुताबिक नवाजुद्दीन सिद्दीकी जितना ज्यादा से ज्यादा मंटो को पढ़ सकते है, पढ़ रहे हैं. यहां तक कि नवाज ने मंटो जैसा ही सोचने और समझने के लिए अपने निजी जीवन में काफी सारे बदलाव किए हैं.

खबर है कि नवाज ने हाल ही में कहा है कि, ‘मंटो के किरदार को निभाने के लिए मेरे लिए सबसे जरूरी यह है कि मैं उन्हीं की तरह सभी काम करूं, इसलिए मैंने मंटो की दुनिया को अपने इर्द-गिर्द रीक्रिएट करने का प्लान बनाया है. मैं अपने कमरे को भी रीफर्निश करने जा रहा हूं, वहां सिर्फ वहीं चीजें मौजूद होंगी जिनके साथ मंटो वक्त बिताया करते थे.’

मंटो की सभी आदतों की जानकारी नवाजुद्दीन सिद्दीकी एकत्रित कर रहे हैं. उनकी ईटिंग हेबिट्स के बारे में, वे कैसे तैयार होते थे, वे बात कैसे करते थे, यहां तक कि वे कैसे बिस्तर पर सोते थे. ये सब जानकारियां नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बटोरी हैं.

दरअसल, मुझे लगता है कि अगर मैं उनके फिजिकल वर्ल्ड में प्रवेश कर जाता हूं, तो ही मैं उन्हें अच्छे से समझ सकूंगा.’ नवाज ने आगे बताया, सुत्रों से पता चला है कि जब तक नवाजुद्दीन सिद्दीकी मंटो की बायोपिक में काम कर रहे हैं, तब तक वे किसी भी अन्य प्रोजेक्ट में काम करेंगे. क्योंकि मंटो के किरदार के साथ नवाजुद्दीन सिद्दीकी कोई भी गलती करना नहीं चाहते हैं. नवाजुद्दीन सिद्दीकी इसके लिए कोई भी त्याग करने को तैयार है.

मंटो की इस बायोपिक की सबसे शानदार खाशियत यह है कि इस फिल्म में जो भी चीजें उपयोग में लाई जाएंगी वे सभी मंटो के दौर की होंगी.

सआदत हसन मंटो की गिनती ऐसे साहित्यकारों में की जाती है जिनकी कलम ने अपने वक्त से आगे की ऐसी रचनाएं लिख डालीं जिनकी गहराई को समझने की दुनिया आज भी कोशिश कर रही है. सआदत हसन के क्रांतिकारी दिमाग और अतिसंवेदनशील हृदय ने उन्हें मंटो बना दिया और तब जलियांवाला बाग की घटना से निकल कर कहानी ‘तमाशा’ आई. 1936 में मंटो का पहला मौलिक उर्दू कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ, उसका शीर्षक था “आतिशपारे.” जनवरी, उनके रेडियो-नाटकों के चार संग्रह प्रकाशित हुए ‘आओ’, ‘मंटो के ड्रामे’, ‘जनाज़े’ तथा ‘तीन औरतें’. 1948 के बाद मंटो पाकिस्तान चले गए. पाकिस्तान में उनके 14 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें 161 कहानियां संग्रहित हैं.

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