मीरा नायर की फिल्म ‘मौनसून वैडिंग’ से ऐक्टिंग की शुरुआत करने वाले रणदीप हुड्डा को असली पहचान रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘डी’ से मिली.

हरियाणा, रोहतक के रहने वाले रणदीप से कुछ समय पहले मिलना हुआ तो उन्हें लंबे बालों और दाढ़ी में देख कर अचरज हुआ. जब उन से इस संबंध में पूछा तो मालूम हुआ कि इस समय वे राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘बैटल औफ सारागढ़ी’ में सिख सैनिक की भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘‘मैं जब ऐक्टिंग करता हूं, तो मुझे बस यही डर सताता है कि पता नहीं लोगों की मेरी ऐक्टिंग के बारे में क्या प्रतिक्रिया होगी. इसीलिए मैं जिस दिन से फिल्म साइन करता हूं उसी दिन से किरदार में जीना शुरू कर देता हूं.’’

हमेशा अलग चलता हूं

रफ ऐंड टफ भूमिकाएं ज्यादा निभाए जाने के सवाल पर रणदीप कहते हैं, ‘‘वैसे तो ऐक्टर को जो किरदार दिया जाए उसे वही करना होता है, पर रोल के मामले में मैं बड़ा चूजी हूं. कभी अपने रोल के दोहराव को पसंद नहीं करता. आप मेरी अब तक की सभी फिल्में देखिए. सभी में मैं ने अलगअलग किरदार निभाए हैं. सभी में जो बात समान रही, वह है ‘रफ ऐंड टफ’ इमेज. मैं अभी भी बौलीवुड के तराजू में ‘रफ ऐंड टफ’ रोल्स के लिए ही फिट हूं. पर 40 साल की उम्र में रोमांस करने का भी अपना ही मजा है. फिल्म ‘दो लफ्जों की कहानी’ मेरे लिए अलग अनुभव ले कर आई. यह मेरी पहली पूरी तरह से रोमांटिक फिल्म है. इस से पहले सभी फिल्मों में मेरे भावनात्मक किरदार रहे हैं.

किरदार के अनुसार बौडी बनाता हूं

फिल्म ‘सरबजीत’ में वजन कम करने और ‘दो लफ्जों की कहानी’ में बौक्सर बनने के लिए कैसे अपने शरीर को फिट रखा? के सवाल पर रणदीप हंसते हुए बताते हैं, ‘‘मेरे लिए फिटनैस सब से अहम है. ‘सरबजीत’ के रोल के लिए मैं ने 26 किलोग्राम वजन कम किया था, क्योंकि अगर मैं वजन कम नहीं करता तो फिल्म के करैक्टर के साथ न्याय नहीं कर पाता. उस समय जब शूटिंग के लिए जाता था तो लगता था कि बस अब सांसें थमने वाली हैं. मैं सैट पर भी अच्छी तरह चल नहीं पाता था. पर ‘दो लफ्जों की कहानी’ फिल्म की कहानी के लिए मैं ने अपना वजन बढ़ा कर 95 किलोग्राम किया. बौक्सर की तरह बौडी बनाई. किक बौक्सर बनने के लिए मैं ने 6 महीने बौक्सिंग की ट्रेनिंग ली.’’

एक नाम की फिल्मों से फर्क नहीं पड़ता

‘बैटल औफ सारागढ़ी’ फिल्म की कहानी पर खबर है कि आमिर खान और शाहरुख भी फिल्म बनाना चाहते हैं. ऐसे में आप की फिल्म कहां टिक पाएगी? इस प्रश्न पर रणदीप कहते हैं, ‘‘इस फिल्म के लिए राजकुमार संतोषी कई साल पहले रिसर्च कर चुके थे. पर इन लोगों को पता नहीं इतनी देर से क्यों कहानी पसंद आई. ऐसा पहले भी हो चुका है. भगत सिंह की कहानी पर भी अजय देवगन और बौबी देओल की फिल्में रिलीज हुई थीं. लेकिन उन में भी वही चली, जिस पर मेहनत की गई थी. अगर इस कहानी पर भी और कोई फिल्म बनती है, तो उस से मुझे फर्क पड़ने वाला नहीं.’’

लुक से ही प्रमोशन हो जाता है

पिछले कई महीनों से अलग लुक में नजर आ रहे रणदीप कहते हैं, ‘‘यह लुक मेरी अगली फिल्म ‘बैटल औफ सारागढ़ी’ के लिए है. फिल्म में मैं एक सरदार योद्धा का किरदार निभाने वाला हूं. जब से इस फिल्म को ले कर मेरी बात शुरू हुई है तब से मैं बाल और दाढ़ी नहीं कटवा रहा. अगर मैं इस लुक में नहीं होता तो क्या आप इस बारे में पूछते?’’

यह फिल्म 1897 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी और अफगान ओराकजई कबाइलियों के बीच हुए युद्ध पर आधारित है और इस में रणदीप हवलदार ईशर सिंह का किरदार निभा रहे हैं.

स्पीड का शौकीन हूं

रणदीप का मानना है कि बात चाहे जीवन की हो या फिर कार की उन्हें हर जगह स्पीड पसंद है. इसलिए वे आज भी पोलो, जंपिंग जैसे खेलों से जुड़े हैं. फिल्मों की शूटिंग के बिजी शैड्यूल में से भी खेलों के लिए समय निकाल लेते हैं.

पिछले दिनों वोल्वो की नई कार वी90 क्रौस कंट्री की लौंचिंग पर दिल्ली आए रणदीप के पास कारों का अच्छा कलैक्शन है.

रणदीप की स्कूली शिक्षा मोतीलाल नेहरू स्कूल औफ स्पोर्ट्स सोनीपत से हुई है, जहां उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कई मैडल भी जीते. अपने शौक के चलते उन्होंने मुंबई में कई घोड़े भी पाले हुए हैं.

दिल की सुनो

रणदीप हुड्डा का मानना है कि किसी को भी अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करने से डरना या हिचकना नहीं चाहिए, क्योंकि बाद में पछताना गलती करने से भी बुरा होता है.

युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे? सवाल पर रणदीप ने कहा, ‘‘जो आप का दिल चाहता है करें, क्योंकि दुनिया में प्रतिभा जैसी चीज नहीं बस उत्साह है.’’

सोशल मीडिया अच्छा भी बुरा भी

डीयू की छात्रा गुलमोहर कौर पर दी गई अपनी टिप्पणी को ले कर जिस तरह से रणदीप को लोगों के सवालों का सामना करना पड़ा था उस पर वे कहते हैं, ‘‘अपनी बात सब के सामने रखने के लिए सोशल मीडिया सब से अच्छा साधन है, लेकिन जो बात आप कह रहे हैं उस की प्रतिक्रिया सुनने के लिए भी आप को तैयार रहना होगा, क्योंकि जैसा आप को कहने का अधिकार है दूसरे को भी आप को वैसा जवाब देने का अधिकार है. लेकिन मैं राजनीति से हमेशा दूर रहता हूं. हमेशा यही कोशिश करता हूं कि मेरी बातों का कहीं राजनीतिकरण न हो जाए.’’

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