थिएटर से फिल्मों में उतरे अभिनेता और निर्देशक रजत कपूर को बचपन से अभिनय का शौक था. उन्होंने अभिनय की दिशा में पढाई दिल्ली में की और आज एक अनुभवी कलाकार के रूप में जाने जाते है. उन्होंने अभिनय को एक नयी दिशा दी है और बहुत ही स्वाभाविक ढंग से अभिनय कर दर्शकों का दिल जीता है. फिल्म मानसून वेडिंग, भेजा फ्राई, दृश्यम आदि कुछ ऐसी फिल्में है, जिसे आलोचकों ने पसंद किया. वे स्पष्टभाषी है और आज के यूथ की प्रतिभा से बहुत प्रभावित है. वे फिल्मों से जुड़े हर काम को पसंद करते है. उनकी वेब सीरीज कोड एम् रिलीज हो चुकी है. जिसमें उन्होंने कर्नल सूर्यवीर चौहान की भूमिका निभाई है, पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-शो में खास क्या है? आपको कितनी तैयारी करनी पड़ी?

ये एक आर्मी बेस्ड शो है, जिसमें आर्मी के उपर घटित एक घटना के इर्द गिर्द ये शो घूम रही है. ये एक एक्शन थ्रिलर शो है. इसमें मुझे स्क्रिप्ट और आर्मी की भूमिका मेरे लिए अच्छी थी, क्योंकि मैंने आर्मी की भूमिका कभी निभायी नहीं थी. यूनिफ़ॉर्म पहनने का जो एक जुनून होता है. वह मुझे इस शो के दौरान मिली है. मैं कभी होमवर्क नहीं करता और मैंने कभी नहीं किया. मेरे लिए स्क्रिप्ट को सही तरीके से पढना ही बहुत बड़ी बात होती है.

ये भी पढ़ें- छोटी सरदारनी: क्या परम और मेहर की जान बचा पाएगा सरब?

सवाल-सेना की यूनिफ़ॉर्म पहनने के बाद आपको किस तरह की दायित्व का आभास हुआ?

मुझे अच्छा लगा. सेना में काम करने वालों के त्याग को समझना आसान नहीं होता. वे किस परिस्थिति से गुजरते है इसे समझना भी आम इंसान के लिए बहुत मुश्किल होता है और इसी को इस सीरीज में दिखाने की कोशिश की गयी है. ये सही है कि इनकी वजह से हम सुरक्षित है, लेकिन एक इंसान के इर्दगिर्द इतनी सारी चीजें होती है, जिसे हम कभी नहीं समझ सकते, मसलन एक डॉक्टर, फायर फाइटर्स, सड़के साफ़ करने वाला, किसान आदि सभी जो अपनी जिंदगी को जोखिम में डालकर हमें अच्छी जिंदगी देने की कोशिश करते है. सभी एक दूसरे पर आधारित है और दुनिया ऐसे चलती है. अकेले कोई नहीं रह सकता. हमारी जिंदगी लाखों लोगों के साथ जुडी हुई है. एक दूसरे के साथ जुडकर ही हर कोई अपना जीवन निर्वाह कर रहा है, लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि हर चीज को आजकल पैसों के द्वारा आंकी जाती है. जो सही नहीं है. लक्जरी चीजो की कीमत इतनी है कि उसे समझ पाना मुश्किल होता है और लोग उसे खरीदकर ख़ुशी जाहिर करते है, बनाने वाले को भी वाहवाही मिलती है, लेकिन पसीने और कड़ी मेहनत करने वालों की कीमत आज कुछ भी नहीं है. उन्हें बेसिक अधिकार और शाबासी तक नहीं मिलती.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...