प्रिय मीना… आपको नाम से बुलाने का हक तो मुझे नहीं है. पर आपके नाम के साथ कौन सा विशेषण जोड़ के बुलाऊं, इस ऊहापोह से बेहतर है कि सिर्फ नाम से ही पुकारूं. ‘जी’ शब्द भी आपके सामने बहुत छोटा ही लगता है. खूबसूरती के सारे पर्यायों से ऊपर उठ चुकी हैं आप. माहजबीन बानो… आज आपको लोगों के दिलों में जिंदा रखने की जिम्मेदारी तो हम पत्रकारों और लेखकों की ही बनती है. पर वक्त के साथ साथ यादें धुंधली पड़ने लगती है. और शायद आपके साथ भी ऐसा ही हो रहा है.

खैर जन्मदिन पर और पुण्यतिथि पर तो याद करना फर्ज बन जाता है. पर अगर मैं आपसे कहूं की आप आए-दिन मुझे याद आती हैं तो क्या आप मानेंगी? शायद आपको मेरी बातें खोखली लगें. पर हकीकत है. चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था… पर उस सफर में भी आप याद आ गई.

आपसे इतनी लगाव की वजह तो मैं नहीं जानती. आपको ‘ट्रेजेडी क्वीन’ कहा जाता है, पर क्या वजह थी जो आपको ये ताज मिला? सिर्फ फिल्में ही वजह थी, या आपका निजी जीवन भी? इसका जवाब तो आप ही दे सकती हैं, और यह जमीनी हकीकत से परे है, क्योंकि अब इस इंसानों की दुनिया में सिर्फ आपकी कुछ फिल्में और कुछ नज्में ही बाकि हैं. हां, आप नज्में भी लिखती थी, और गुलजार साहब ने इसे प्रकाशित भी किया था. फिर भी शायरों के हुजूम में इन नज्मों को पढ़ने वाले कुछ ही लोग हैं, पर जो भी पढ़ा, इतना दर्द पाया कि आंखें चाह कर भी मुस्कुरा न पाई.

30 साल के फिल्मी करियर में 90 से ज्यादा फिल्में और फिर भी ‘ट्रेजेडी क्वीन’… उफ्फ… ये शब्द ही आपके नाम के साथ गलत जुड़ गया है. क्वीन ठीक था, पर ट्रेजेडी क्यों?

सुना है, आपके साथ काम करने वाले आपके नूर के आगे अपनी लाइनें भूल जाते थे. हम तो आज भी आपकी ब्लैक ऐंड व्हाइट फिल्में देखकर कायल हो जाते हैं. रंगीन में तो पता नहीं क्या होता… ट्रेजिक रोल्स को इतने बखूबी से निभाने का कारण क्या था? शायद असल जिन्दगी का अक्स भी रूपहले पर्दे पर ऊभर आता है, इसलिए तो 60 के दशक की औरतों की कहानी आपने बखूबी कही.

आपका दौर ही कुछ और था. जब एक अभिनेत्री के दम पर भी फिल्में सुपरहिट हो जाती थी. अभी का दौर अलग है कि शरीर पर कपड़ें कम हो तो फिल्में लोग पसंद करते हैं, पर यह एक तबके की बात है. आपको पसंद करने वाले लोग आज भी हैं. आपका वंशवृक्ष तो बंगाल तक फैला है. पढ़कर अचंभा हुआ की आपकी नानी रवींद्रनाथ टैगोर के परिवार से थी. नृत्य और संगीत तो आपको विरासत में मिला, पर यह ‘ट्रेजेडी’ क्यों अपना ली आपने?

इश्क भी क्या खूब था आपका, जो बागों में नहीं पर अस्पताल के गलियारों में परवान चढ़ा. पूना के उस अस्पताल में कमाल साहब को उनकी ‘अनारकली’ मिल गई और शायद आपको आपका सलीम… पर अनारकली का अंत भी दर्दनाक ही था, तो क्या उस वक्त भी आपको मुगलों की वो कहानी याद नहीं आई? देर रातों तक लंबी बातों का सिलसिला शुरु हो गया था. 19 साल की उम्र में निकाह भी कर लिया और परिवार को भी नहीं बताया. यह इंकलाब ही तो था. पर जिस इंकलाब के जरिए आपने पिता का घर छोड़ दिया, वो इंकलाब इश्क में क्यों नहीं था? जब आप सबके दिलों पर राज करती हैं तो एक ऐसे इंसान की हर छोटी-बड़ी शर्त को क्यों माना? ये भी भूल गईं कि कमाल साहब पहले से शादीशुदा थे.

आपका हमसफर ही हर जगह सफाई देता हुआ पाया गया कि आप मां बनना नहीं चाहती. पर नरगिस को आपने कुछ शब्दों में ही हकीकत बता दी ‘कौन सी औरत, मां नहीं बनना चाहती.’ इतना दर्द कैसे छिपा लिया आपने? अकसर इश्क में लोग भूल जाते हैं कि पुरुषों को स्त्रियों की शौहरत बर्दाशत नहीं होती, आपके साथ भी तो यही हुआ.

दवा भी जहर बन जाती है. सोने के लिए एक पेग ब्रान्डी आपकी आदत बन जाएगी, ये तो शायद आपने भी नहीं सोचा था. आपने तलाक नहीं लिया, इश्क वैसे भी किसी को आजादी नहीं देता, उम्रभर का कैदी बना देता है.

पाकीजा को बनने में कितने साल लगा दिए, पर कोई कह नहीं सकता, कि उस फिल्म में आपकी उम्र में दस साल का अंतर है. 16 साल… एक बहुत लंबा अरसा होता है. और सिर्फ 1 गिन्नी में इतना कमाल कर दिया? यह फिल्म शायद आपकी जिन्दगी की हर कहानी कहती है. शायद आप जानती थी, कि इसके बाद आप फिल्में नहीं कर पाएंगी.

कुछ सवाल है जो अकसर दिमाग में आते हैं, जैसे कि, आपने किसी ऐसे से इश्क ही क्यों कर लिया कि आपने खुद से मोहब्बत करना छोड़ दिया. दूसरा सवाल ये, कि जब आपको शराब के ‘गुण’ पता है तो उसे महबूब बनाने की क्या जरूरत थी? फिर दिल से ही जवाब भी मिल जाते हैं, कि इश्क सोच-समझकर नहीं किया जाता, सोच और समझ के तो सारे रास्ते बंद ही हो जाते हैं.

मुझे आपसे बेइंतहा मोहब्बत है. इतनी ज्यादा कभी किसी फनकार से नहीं हो पाई. आज की दुनिया के लोग इस लगाव को न जाने क्या नाम दे. पर मैं सिर्फ आपकी फैन नहीं हूं… फैन शब्द भी बहुत छोटा है, उस एहसास को बयां करने के लिए जो आपकी फिल्में और नज्में पढ़कर मुझे होते हैं. जिन्दगी से यही गिला है मुझे, कि एक दफा हकीकत में आपसे रूबरू होने का मौका नहीं मिला.

जब भी पाकीजा देखती हूं, एक टीस उठती है दिल से… काश, कुछ साल और.. फिर लगता है हर खूबसूरत चीज का अंत खूबसूरत हो, ये जरूरी नहीं.

आपके एक जवाब के इंतजार में…

 

– संचिता पाठक

 

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