Dumb Phone Trend: सोचिए, सुबह उठते ही सब से पहले हाथ में मोबाइल. सोने से पहले भी जब तक कम से कम एक घंटा स्क्रौलिंग न कर लें तब तक नींद नहीं पड़ती. दिन भर न जाने कितनी बार फोन चैक करते हैं, सोशल मीडिया स्क्रौल करते हैं, नोटिफिकेशन देखते हैं. कुछ मिस न हो जाए, इस डर में जीते हैं. यही है डिजिटल एडिक्शन, जिस से आज की पीढ़ी ही नहीं बल्कि सोसायटी का हर तबका जूझ रहा है.

लेकिन अब एक नया ट्रैंड सामने आ रहा है डंब फोन का. मतलब वही पुराने जमाने वाले मोबाइल जिन में न इंटरनैट है, न सोशल मीडिया, न कैमरा क्वालिटी, न ऐप्स. बस, कौल व एसएमएस.

आज लोग जानबूझ कर स्मार्टफोन छोड़ कर डंब फोन की तरफ लौट रहे हैं. ऐसा क्यों हो रहा है? क्या यह वाकई जरूरी है? क्या लोग इसे अपना पा रहे हैं या बस शोऔफ के लिए एक ट्रैंड सेट कर दिया गया है. इस से पहले जान लेते हैं कि ये डंब फोन आखिर होते क्या हैं.

डंब फोन क्या होते हैं?

डंब फोन यानी वे मोबाइल जो सिर्फ कौल और एसएमएस के लिए बने हैं. उन में स्मार्टफोन जैसी सुविधाएं नहीं होतीं. म्यूजिक सुन सकते हैं, अलार्म लगा सकते हैं लेकिन उन में इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप या यूट्यूब जैसे ऐप नहीं चलते. कुछ मौडलों में बेसिक कैमरा या रेडियो होता है, लेकिन बहुत लिमिटेड फंक्शन होते हैं.

डिजिटल डिटौक्स क्या है?

डिजिटल डिटौक्स का मतलब है खुद को कुछ वक्त के लिए डिजिटल स्क्रीन से दूर रखना. जैसे सोशल मीडिया से ब्रेक लेना, मोबाइल से दूरी बनाना, सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही इंटरनैट यूज करना.

सवाल उठता है कि लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्यों बढ़ रहा है डंब फोन का ट्रैंड?

स्क्रीनटाइम से थक चुके लोग : ईवाई कंपनी की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में औसत स्क्रीनटाइम 5 घंटे प्रतिदिन तक पहुंच चुका है. इस में सब से ज्यादा समय सोशल मीडिया, यूट्यूब और औनलाइन शौपिंग पर जाता है.

लोग कहने लगे हैं, ‘बस, बहुत हो गया. हर समय फोन में घुसे रहना थका देता है.’

मैंटल हैल्थ पर असर : डब्ल्यूएचओ ने भी माना है कि ज्यादा डिजिटल एक्सपोजर से एंग्जायटी, डिप्रैशन और नींद की कमी की समस्या बढ़ रही है. दिल्ली की रहने वाली 25 वर्षीया काम्या बताती हैं, “मैं हर वक्त इंस्टाग्राम पर स्क्रौल करती थी. मुझे लगने लगा था कि सब की जिंदगी बेहतर है, मेरी क्यों नहीं? तब मैं ने एक महीना डंब फोन यूज किया. यकीन मानिए, मैं ने खुद से दोबारा जुड़ना सीखा. मैं फालतू की शौपिंग करने से बची और दिनभर रील्स और शौर्ट देख कर दिमाग भी दुखने लगा था. खुद की कोई स्किल्स यूज नहीं हो रही थी, बस, वही कौपी-पेस्ट. अब इस ब्रेनरौट से भी धीरेधीरे छुटकारा मिल रहा है.”

हालांकि काम्या ने बताया कि वह अपने स्मार्टफोन से फुलटाइम दूर नहीं हो पा रही थी. औफिस का कोई काम, रिश्तेदारों और दोस्तों से वीडियोकौल या किसी जानकारी के लिए वह बारबार स्मार्टफोन की ओर खिंची चली आ रही थी. वह कहती है कि आजकल हम इंटरनैट पर इतना डिपैंडेंट हो गए हैं कि चाह कर भी उस का बौयकौट नहीं कर सकते.

फोकस और प्रोडक्टिविटी में गिरावट : वर्क फ्रौम होम और डिजिटल क्लासेस के कारण भी फोन की आदत बढ़ी है. लेकिन इस का सीधा असर हमारे फोकस पर पड़ा. रिसर्च कहती है कि एक नोटिफिकेशन भी आप का ध्यान भटका सकता है और फिर दोबारा से उसी काम में फोकस करने के लिए 20-25 मिनट तक लग सकते हैं.

रिलेशनशिप में दूरी : हर कोई फोन में व्यस्त है. एक ही घर में बैठे लोग भी आपस में बात नहीं करते. इसीलिए कुछ कपल्स अब वीकैंड्स पर डंब फोन यूज करने का ‘पैक्ट’ बना रहे हैं.

रिपोर्टस की मानें तो अमेरिका में पिछले 2-3 सालों में डंब फोन की डिमांड बढ़ी है. भारत में भी धीरेधीर जियो, नोकिया, सैमसंग और मोटोरोला फोन की डिमांड सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही, अब यंगस्टर्स भी इसे ‘डिटौक्स फोन’ की तरह खरीदने की तैयारी में हैं.

योरगवर्मेंट की रिपोर्ट कहती है कि 67 फीसदी युवा मानते हैं कि सोशल मीडिया से ब्रेक लेना मानसिक रूप से फायदेमंद है.

कौन लोग अपना रहे हैं यह ट्रैंड?

-यंग प्रोफैशनल्स – जो काम में ध्यान लगाना चाहते हैं.

-मैडिटेशन प्रैक्टिशनर्स – जो ‘साइलेंस’ और ‘माइंडफुलनैस’ को तवज्जुह देते हैं.

-स्टूडैंट्स – जो पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रहे.

-ट्रैवलर और हाइकर्स – जो डिजिटल डिस्कनैक्ट को फ्रीडम मानते हैं.

क्या डंब फोन सब के लिए सही है?

जरूरी नहीं कि हर किसी के लिए यह पूरा काम करे. कुछ लोगों को काम के लिए स्मार्टफोन जरूरी होता है. लेकिन हां, ‘डिटौक्स मोड’ में आ कर कुछ समय के लिए खुद को स्क्रीन से दूर रखना हर किसी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.

रेडिट की एक पोस्ट में एक यूजर ने शेयर किया कि उस के एक दोस्त ने डिजिटल डिटौक्स के लिए कीपैड फोन रखने का फैसला किया. जब एक दिन वह अपने दोस्त के घर मूवी नाइट के लिए गया तो उस ने पाया कि उस का दोस्त सिर्फ कौलिंग के लिए डंब फोन को इस्तेमाल करता है और सारा समय अपने आईपैड पर डूमस्क्रौलिंग करता है (डूमस्क्रौलिंग का मतलब है सोशल मीडिया या वैबसाइट्स पर लगातार नकारात्मक खबरों को देखते रहना, खासकर बुरी खबरों को देखने की लत लगना).

ऐसे में डंब फोन रखने का कोई फायदा नहीं. और देखा जाए तो भारत में डंब फोन रखने का ट्रैंड सिर्फ शोऔफ के लिए है.

डंब फोन का ट्रैंड क्या सिर्फ फैशन है?

कुछ लोग इसे ‘नया फैशन’ मानते हैं. इंस्टाग्राम पर कई लोग डंब फोन के साथ पोज डालते हैं जैसे वह कोई स्टाइल स्टेटमैंट हो. लेकिन इस के पीछे की असल भावना सिंपलिसिटी का दिखावा है.

आज की बिजी लाइफस्टाइल में स्मार्टफोन से दूरी बनाना टेढ़ी खीर है. डंब फोन एक अच्छा औप्शन हो सकता है लेकिन यह पूरी तरह से पौसिबल नहीं है. इस के अलावा आप डंब फोन न इस्तेमाल करते हुए भी नीचे दिए जा रहे टिप्स को फौलो कर फोन से चिपके रहने की आदत से छुटकारा पा सकते हैं.

  • रोज एक घंटा बिना फोन बिताएं.
  • रविवार को ‘नो स्क्रीन डे’ बनाएं.
  • छुट्टी के दौरान डंब फोन का इस्तेमाल करें.

डंब फोन यूज करने के फायदे

  • माइंड रिलैक्स रहता है.
  • नींद बेहतर होती है.
  • आंखों को आराम मिलता है.
  • रिश्तों में ध्यान आता है.
  • खुद से जुड़ाव बढ़ता है.
  • नोटिफिकेशन की टैंशन नहीं रहती.

डिजिटल दुनिया ने हमें कई सहूलियतें दी हैं लेकिन साथ ही वह हमें खुद से दूर भी ले जा रही है. ऐसे में डंब फोन जैसे ट्रैंड हमें याद दिलाते हैं कि जिंदगी सिर्फ औनलाइन नहीं होती, असली जिंदगी वह है जो आप की स्क्रीन के बाहर चल रही है.

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