Summer Tips : गरमियों में अपने घर को ऐसे करें तैयार, ताकि घर रहे कूलकूल

Summer Tips :  गरमियों का आगमन हो चुका है.मार्च अप्रैल के महीने में ही गरमी ने पसीने छुड़ाने शुरू कर दिए हैं.आने वाले महीनो में क्या होगा, यह सोच कर ही मन में बेचैनी सी होने लगती है.

इसलिए परेशानी आने से पहले उस का निदान करना ही बेहतर है.गरमियों में कैसे हम अपने घर को ठंडा रख सकते हैं, इस के लिए कुछ तरीके अपनाने होंगे जिस की तैयारी हम अभी से शुरू कर दें तो बेहतर होगा.

गरमियों में बिना एसी चलाए भी घर को ठंडा रखने के कई आसान और किफायती उपाय अपना सकते हैं. इस इकोफ्रैंडली स्टाइल से बिजली की बचत होगी और घर प्राकृतिक रूप से ठंडा रहेगा और स्टाइलिश भी लगेगा.

वैंटीलेशन है जरूरी

दिन के समय कमरों की खिड़की बंद रखें जिस से गरमी अंदर न आ सके.शाम के समय खिड़कियां खोल दें जिस से ताजा हवा आ सके और उमस घर से बाहर निकल सके.

हरियाली दें ठंडक और सौंदर्य

अपने घर में इंडोर पौधे लगाएं जो घर को ठंडक तो देंगे ही साथ में आप के घर का सौंदर्य भी बढ़ाएंगे.साथ ही आप छत पर व बालकनी में पौधे लगाएं क्योंकि जितनी ज्यादा हरियाली रहेगी, गरमी उतनी दूर रहेगी साथ ही घर का वातावरण भी प्रदूषण रहित रहेगा.

छत पर रखें पौधों पर ग्रीन शैड

एरिया अवश्य बनाएं.इस से पौधे भी तेज गरमी से बचे रहेंगे और छत भी कम गरम रहेगी.कोशिश करें कि यदि आप के घर के आसपास खाली जगह है तो वहां पर भी नीम, बरगद, पीपल जैसे औक्सीजन देने वाले पौधे लगाएं.

परदे हैं सहायक

परदे घर को ठंडा रखने में अहम भूमिका निभाते हैं.इसलिए यदि आप को गरमी से बचने के लिए परदे लगाने हों तो ब्लैकआउट कर्टेन लगवाएं.

एलईडी बल्ब का करें उपयोग

यह बल्ब कम गरम होते हैं जिस से घर का तापमान भी अधिक नहीं बढ़ता.कोशिश करें कि जरूरत न हो तो बल्ब औफ ही रखें.ऐसा करने से आप का बिजली बिल भी कम आएगा और घर भी ठंडा रहेगा.

कारपेट हटाएं

कारपेट कमरे को गरम रखते हैं. इसलिए ज्यादा जरूरत पड़ने पर ही इन्हें बिछाएं.लकड़ी की फ्लोरिंग, मार्बल या टाइल्स घर को ठंडा रखने में सहायक होते हैं.

Beauty vs Intelligence : कैरियर हो या फिर शादी, ब्यूटी जरूरी है या स्मार्टनैस, जरूर जानिए

Beauty vs Intelligence : कई लड़कियां कम सुंदर होने की वजह से हीन भावना से ग्रस्त हो जाती हैं कि हम लोगों की पसंद की दौड़ में कहीं हैं ही नहीं और हमें इस दौड़ में शामिल भी नहीं होना. वे अपने पर बिलकुल ही ध्यान देना बंद कर देती हैं जिस की वजह से उन्हें हर जगह रिजैक्शन मिलती है और उस का कारण उन की सुंदरता नहीं, बल्कि उन की अपनी सोच है जिस वजह से उन्हें लगता है कि हमें तो कुछ करने की जरूरत नहीं है, हम जैसे हैं लोग हमें वैसे ही पसंद करें. आइए, जानें इस सोच से कैसे बाहर निकलें…

रिजैक्टेड क्यों समझती हैं

जहां एक तरफ सुंदर लड़कियां अपनी ब्यूटी को और भी अधिक चमकाने के लिए रोजरोज ब्यूटी पार्लर और शौपिंग मौल के चक्कर लगाती नहीं थकतीं, वहीं दूसरी तरफ कई बार देखने में आता है कि जो कम सुंदर लड़कियां होती हैं उन्हें लगता है कि हम तो जैसे हैं वैसे ही रहेंगे और सुंदर लड़कियों से हम कहीं मुकाबले में नहीं हैं. इसलिए वे अपनेआप को पहले ही हारा हुआ मान कर बैठ जाती हैं.

लोगों से खुद के बारे में कई तरह के कमैंट्स सुनती हुए वे बड़ी होती हैं. जैसे,”अरे देखो, इस का रंग कितना काला है. यह तो कुछ भी लगा लें काली ही रहेंगी”. कोई कहता है,”इस के फीचर्स और इस का डीलडौल इतना बेकार है कि इस पर तो कुछ जंचता ही नहीं है,” वगैरह.

ये सब बातें इस तरह की थोड़ी कम सुंदर लड़कियां अपने मन में कुछ इस तरह बैठा लेती हैं कि उन का खुद पर तवोज्जो देना, खुद से प्यार करना खुद को परखना लगभग खत्म ही हो जाता है. ये लड़कियां जब किसी जौब के लिए इंटरव्यू देने जाती हैं या फिर शादी के लिए किसी लड़के से मिलने जाती हैं तो पहले से ही खुद को रिजैक्टेड मान कर जाती हैं.

खुद को कमतर मान लेती हैं

उन्हें लगता है भला कोई लड़का मुझे क्यों पसंद करेगा. दुनिया में इतनी स्मार्ट लड़कियां हैं तो वे मुझे क्यों हां करेगा और अगर करना ही है तो मैं जैसी हूं वे मुझे वैसे ही हां करें.

इसी तरह इन्हें लगता है कि जौब में मेरी काबिलियत और एजुकेशन ही काम आएगी, वहां मेरी ब्यूटी का क्या काम. यही सब सोच कर ये लड़कियां बिलकुल तैयार हो कर नहीं रहतीं। इस का नतीजा यह होता है कि अच्छी फिगर होते हुए भी ये अपने बेकार ड्रैसिंग सैंस और नौन स्मार्ट बिहेवियर की वजह से रिजैक्ट हो जाती हैं न कि अपने कम सुंदर होने की वजह से.

स्मार्ट बनने में क्या बुराई है

अगर आप सुंदर नहीं हैं, तो क्या हुआ, आप को तो और भी ज्यादा अपनी ब्यूटी पर काम करने की जरूरत है. रैगुलर पार्लर जाएं, खूब मनपसंद शौपिंग करें, जिम जाएं और फिट रहें, नएनए फैशन को फौलो करें, अपने पर सूट करने वाले मेकअप को यूज करें, खुद में कौन्फिडेंस लाएं, खुश रहें फिर देखें कि कैसे आप के चेहरे पर निखार आता है. फिर लोग आप को रिजैक्ट नहीं करेंगे बल्कि हर गैदरिंग में आप का वेट करेंगे कि आप आज क्या खास पहन कर आ रही हैं.

जरूरी है ड्रैसिंग सैंस

आप की परफौर्मेंस के अलावा आप की पर्सनैलिटी भी आप को नौकरी देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. अगर इंटरव्यू देने जा रही हैं तो आप को अपने आउटफिट से ले कर कई बातों पर ध्यान देना होगा.

इंटरव्यू के लिए ऐसे आउटफिट का चयन करें जिस में आप प्रोफैशनल लगें. कोशिश करें कि ऐसा आउटफिट पहनें जिस में आप का व्यक्तित्व निखर कर सामने आए. इंटरव्यू में फौर्मल लुक ही कैरी करें। लेकिन अगर आप चाहें तो अपने कैजुअल आउटफिट को भी सही तरीके से लेयरिंग कर के पहन सकती हैं, ताकि ये फौर्मल का लुक दें। इस के लिए अपने साथ हमेशा एक ब्लैजर कैरी करें। आप चाहे जींस या ट्राउजर्स के साथ फौर्मल दिखने वाली टौप पहन सकती हैं.

अगर आप किसी जगह इंटरव्यू के गई हैं जहां का माहौल ज्यादा फौर्मल है तो ऐसे में ब्लैजर पहन कर आप अपने कैजुअल लुक फौर्मल टच दे सकती हैं.

जौब इंटरव्यू के लिए आप 2 पीस सूट भी पहन सकती हैं, जो आप की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता है. पर उस की लुक ग्रेसफुल होनी चाहिए। इस में आप का लुक भी बहुत अच्छा नजर आता है.

आप को अपने फुटवियर पर भी ध्यान देना चाहिए कि वे कम हील्स के साथ कंफर्टेबल होने चाहिए. यदि मौडर्न ड्रैस पहन रही हैं तो फुटवियर भी उस के अनुसार हों और यदि ट्रैडिशनल आउटफिट पहनें तो फुटवियर भी वैसा ही होना चाहिए.

अगर आप इंटरव्यू के लिए नए कपडे पहन रही हैं तो एक बार पहले तय जरूर करें कि आप उन में कौन्फिडेंट फील कर रही हैं या नहीं.

इंटरव्यू के लिए जा रही हैं तो भी मेकअप जरूर करें लेकिन मेकअप बहुत लाइट होना चाहिए और डिसेंट लगना चाहिए.

ज्वैलरी भी बेहद सिंपल होनी चाहिए. ऐसा न हो कि बिना इयरिंग के ही आप इंटरव्यू देने पहुंच जाएं. इस से आप का लुक बहुत खराब लगेगा. आप अपने लुक में घड़ी के साथ लाइट वेट ब्रैसलेट, चेन और स्टड ईयररिंग्स ऐड कर सकती हैं.

शादी के लिए किसी लड़के से मिलने जा रही हैं तो थोड़ा तैयार हो कर जाएं

अगर किसी लड़के से मिलने जाना हो तो ₹500-1000 खर्च कर के ब्यूटी पार्लर जरूर चली जाएं. थोड़ी फेस क्लींजिंग, वैक्स, आइब्रो आदि थोड़ीबहुत चीजे करवा लें. इस से लुक चेंज हो जाता है.

अगर लड़के की पूरी फैमिली मिलने आ रही हो तो उसी हिसाब से तैयार हों और अगर लड़का अकेले मिलने आ रहा है तो उसी हिसाब से तैयार हों. जैसेकि अगर पूरी फैमिली आ रही है तो आप हलकी साड़ी या फिर कोई डिसेंट सा सूट पहन लें. पार्लर जा कर हलका मेकअप भी करा सकती हैं. ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जो लड़के वाले आप को देखने आ रहें है वे भी आप से अपने स्टैंडर्ड के अकौर्डिंग कुछ तो चाहेंगे। आप उन की सोसाइटी में उठनेबैठने लायक तो लगें, तभी वे आप को पसंद करेंगे. इसलिए थोड़ाबहुत तैयार होने में कोई बुराई नहीं है.

अगर अकेले लड़के से मिलने जा रही हैं तो आप जींस आदि कुछ भी अच्छा सा पहनें जो आप पर सूट करता हो. बल्कि 1-2 अच्छे जोड़े इस चीज के लिए खरीद कर रख लें ताकि कभी किसी लड़के से मिलने जाना हो तो आप को सोचना न पड़े कि क्या पहनें.

अकेले लड़के से मिलने जा रही हैं तो अपने पास कुछ मेकअप की चीजें रखें जैसे फाउंडेशन, लिपस्टिक, कौंपैक्ट, हेयर स्ट्रैटनर आदि ताकि अगर आप को खुद घर पर ही तैयार होना हो तो आप के पास किसी भी चीज की कमी न हो.

दूसरे शब्दों में कहें तो जौब हो या शादी, आप को थोड़ी सी स्टडी करनी होगी कि जो दूसरा व्यक्ति है उस का घरबार कैसा है जो आप को मिलने आ रहा है, मैं इस के लायक हूं या नहीं, अगर नहीं हूं तो किस तरह से बन सकती हूं. यह कहने से काम नहीं चलने वाला कि जिसे पसंद करना होगा वह ऐसे ही कर लेगा. जौब में भी इस तरह से रिजैक्शन के चांस रहते हैं. आप के पास डिग्री है लेकिन आप का अच्छा बन कर नहीं आ रही हैं तो लोग आप को पसंद नहीं करेंगे. औफिस में काम करने के लिए लोगों को स्मार्ट लड़कियों की तलाश रहती है सुंदर लड़कियों की नहीं.

इसलिए भले ही आप सुंदर न हों लेकिन स्मार्ट तो आप को बनना ही पड़ेगा तभी आप सोसाइटी में मूव कर पाएंगी.

बच्चों की खातिर Divorce न ले कर मजबूरी में साथ रहने वाले शादीशुदा जोड़े बच्चों के लिए हो सकते हैं घातक

Divorce :  आज के समय में शादी करना उतना मुश्किल नहीं है जितना शादी को निभाना क्योंकि पहले जब एक बार शादी हो जाती थी तो पत्नी हजारों मुश्किलों के बावजूद पति का घर नहीं छोड़ती थी. कहते हैं, शादी एक समझौता है और यह समझौता दोनों तरफ से होता है जिस के लिए सहनशीलता, एकदूसरे का सम्मान, एकदूसरे पर विश्वास ही पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाता है. लेकिन आज के दौर में जबकि ज्यादातर औरतें आत्मनिर्भर हैं, पति के टक्कर का कमाती हैं, स्वाबलंबी हैं, ऐसे में शादी के रिश्ते को बनाए रखने के लिए पति और पत्नी दोनों में ही सहनशीलता और विश्वास की कमी आ जाती है और स्वाभिमान से ज्यादा अभिमान बीच में आ जाता है.

वजह क्या है

आज के समय में न तो कोई किसी से दबना चाहता है, न तो कोई किसी को अपनेआप से कम समझता है, जिस की वजह से शादी के कुछ महीनों बाद ही पतिपत्नी में प्रौब्लम शुरू हो जाती है। कभी वह बहस तक सीमित रहती है, तो कभीकभी मारपीट तक पहुंच जाती है. धीरेधीरे यह प्यारभरा रिश्ता कड़वाहट में बदल कर तलाक तक पहुंच जाता है.

अगर फिल्म इंडस्ट्री की बात करें तो यहां पर भी 15 से 25 साल पुराने शादीशुदा रिश्ते टूटने की कगार पर हैं क्योंकि कोई भी अपनेआप को कमतर नहीं समझता. यही वजह है कि कई सारे रिश्ते जैसे ऐश्वर्या अभिषेक, गोविंद सुनीता, मलाइका अरबाज, ऋतिक सुजेन आदि के शादीशुदा रिश्ते कड़वाहट से गुजर रहे हैं.

दरकते रिश्ते

शादी में कड़वाहट के बावजूद तलाक न ले कर बिना मन और मजबूरी में बच्चों की खातिर एक ही घर में अजनबी की तरह रहना और एकदूसरे को नापसंद करते हुए भी रिश्ता निभाना कहां तक सही और कहा तक आसान है? क्या उन टूटे रिश्तों में रहने वाले पतिपत्नी के बच्चे ऐसे मांबाप के साथ खुश रह पाएंगे, जिन मांबाप में खुद ही प्यार नहीं है? क्या वे अपने बच्चों को सुरक्षित भविष्य दे पाएंगे? क्या ऐसे मांबाप के साथ बच्चे खुश रहेंगे? पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

जब प्यार के बीच झगङा होने लगें

कई मातापिता जो एक समय में प्यार करने वाले पतिपत्नी थे, एकदूसरे के लिए जान देने वाले जीवनसाथी थे, वे लगातार झगड़ों के चलते अब एकदूसरे का मुंह भी नहीं देखना चाहते. लेकिन फिर भी बच्चों की खातिर एकदूसरे के साथ रहने को मजबूर हैं क्योंकि ऐसे लोगों का मानना है कि अगर वे तलाक ले लेंगे तो इस का असर बच्चों पर पङेगा. बच्चों का भविष्य अंधेरे में चला जाएगा.

देखा जाए तो वे अपने तरीके से सही भी सोच रहे हैं क्योंकि अपने बच्चों को अपने आपस के झगड़े और तनाव से दूर रखना हर मातापिता चाहते हैं. लेकिन एक ही घर में एक ही साथ रहने वाले पतिपत्नी और बच्चे क्या इस तनाव से बेखबर रह सकते हैं? मांबाप के बीच का झगड़ा, गालीगलौच और तनाव क्या बच्चों के मानसिक स्तर पर बुरा प्रभाव नहीं छोड़ते? ऐसे तनावपूर्ण माहौल में जहां मांबाप एकदूसरे को जरा भी पसंद नहीं करते और हमेशा एकदूसरे को ताने मारते रहते हैं, ऐसे घरों में क्या बच्चा खुश रह पाएगा?

ऐक्ट्रैस मलाइका अरोङा का दर्द

हाल ही में ऐक्ट्रैस मलाइका अरोड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन का बेटा भी चाहता था कि मलाइका अपने पति से अलग हो जाएं क्योंकि उन का बेटा अपनी मां को दुखी या रोते हुए नहीं बल्कि खुश देखना चाहता था. मलाइका के अनुसार, अरबाज से तलाक के बाद उन के बेटे ने हमेशा उन का साथ दिया. यहां तक कि दोनों ने साथ मिल कर रैस्टोरेंट भी शुरू किया.

वहीं सोहेल खान की पत्नी ने भी अपने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि वे अपने बेटे से कुछ नहीं छिपातीं बल्कि अपनी हर बात अपने बेटे से शेयर करती हैं.

सोहेल की पत्नी के अनुसार, सोहेल से तलाक के बाद उन का बेटा हमेशा उन के साथ रहा और अपने पिता को भी उस ने पूरी इज्जत और सम्मान दिया क्योंकि बेटा चाहता था कि वे अपनी जिंदगी जीना शुरू करें, बजाए दुखी होने के.

कैसे खत्म हो मनमुटाव

इन दोनों की बातों से यही लगता है कि अगर पतिपत्नी बच्चों की खातिर साथ रह भी जाते हैं तो मांबाप के बीच मनमुटाव कभी खत्म नहीं होगा और न ही उन के बीच प्यार वाला रिश्ता फिर से बन पाएगा.

अगर ऐसे मांबाप जो बच्चों की खातिर तलाक न ले कर एकदूसरे से नफरत के बावजूद साथ में रहते हैं, ऐसा सोचते हैं कि तलाक न ले कर वे बच्चों पर एहसान कर रहे हैं। उन के तलाक न लेने से बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा, तो वे गलत सोच रहे हैं. उस के बजाए अगर पतिपत्नी बिना तलाक लिए भी अलग रह कर बच्चों का पालनपोषण करते हैं तो बच्चों का भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा क्योंकि हो सकता है कि मांबाप के खराब रिश्तों को देखने के बाद वे खुद भी शायद भविष्य में शादी के खिलाफ हो जाएं क्योंकि उन्होंने अपने मांबाप को शादी के बाद हमेशा लड़तेझगड़ते ही देखा है.

वक्त किसी के लिए नहीं ठहरता 

लिहाजा, मांबाप को अगर सही में बच्चों की चिंता है तो अपने झगड़े को साइड में रख कर बच्चों की खातिर ही सही अगर तलाक नहीं भी लेना चाहते तो कम से कम अलग हो कर बच्चों को सारी सचाई बता कर ठोस निर्णय के साथ अपनी आगे की जिंदगी जीना शुरू करें क्योंकि वक्त किसी के लिए नहीं ठहरता और जिंदगी भी बारबार नहीं मिलती, इसलिए इसे लड़झगड़ कर या रोपीट कर जाया न करें. जिंदगी में आगे बढ़ें, रास्ते अपनेआप बन जाएंगे.

Marriage : शादी के लिए मेरे घरवाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं, मैं क्या करूं ?

Marriage : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 27 साल की हूं शादी को ले कर मेरे घर वाले मुझ पर प्रैशर डाल रहे हैं. कई लड़कों से मिली, लेकिन बात नहीं बनी. भविष्य को ले कर काफी टैंशन में हो जाती हूं और अपना वर्तमान समय उस से खराब कर लेती हूं. जब ऐसे विचार आते हैं तब ऐसा लगता जैसे भविष्य एकदम अंधकारमय है. मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

कभीकभार फैमिली का प्रैशर हमें कुछ निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है. मगर शादी एक बहुत ही अहम निर्णय है. इसे किसी के दबाव में आ कर न लिया जाए. जब आप को लगे कि आप इमोशनली, मैंटली और फाइनैंशली तैयार हैं तभी शादी करने का निर्णय लें.

फैमिली मैंबर्स से बात कर उन्हें समझाएं कि आप फिलहाल शादी के लिए तैयार नहीं हैं. जब हो जाएंगी तब खुद उन्हें बता देंगी. आप के ऐसा करने से वे रिलैक्स फील करेंगे.

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सोनिया 20 साल की हुई नहीं कि उस की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगी. लेकिन सोनिया ने तो ठान लिया है कि वह पहले पढ़ाई पूरी करेगी, फिर नौकरी करेगी और तब महसूस हुआ तो शादी करेगी वरना नहीं. सोनिया की इस घोषणा की जानकारी मिलते ही परिवार में हलचल मच गई. सभी सोनिया से प्रश्न पर प्रश्न पूछने लगे तो वह फट पड़ी, ‘‘बताओ भला, शादी में रखा ही क्या है? एक तो अपना घर छोड़ो, दूसरे पराए घर जा कर सब की जीहुजूरी करो. अरे, शादी से पतियों को होता आराम, लेकिन हमारा तो होता है जीना हराम. पति तो बस बैठेबैठे पत्नियों पर हुक्म चलाते हैं. खटना तो बेचारी पत्नियों को पड़ता है. कुदरत ने भी पत्नियों के सिर मां बनने का बोझ डाल कर नाइंसाफी की है. उस के बाद बच्चे के जन्म से ले कर खानेपीने, पढ़ानेलिखाने की जिम्मेदारी भी पत्नी की ही होती है. पतियों का क्या? शाम को दफ्तर से लौट कर बच्चों को मन हुआ पुचकार लिया वरना डांटडपट कर दूसरे कमरे में भेज आराम फरमा लिया.’’

यह बात नहीं है कि ऐसा सिर्फ सोनिया का ही कहना है. पिछले दिनों अंजु, रचना, मधु, स्मृति से मिलना हुआ तो पता लगा अंजु इसलिए शादी नहीं करना चाहती, क्योंकि उस की बहन को उस के पति ने दहेज के लिए बेहद तंग कर के वापस घर भेज दिया. रचना को लगता है कि शादी एक सुनहरा पिंजरा है, जिस की रचना लड़कियों की आजादी को छीनने के लिए की गई है. स्मृति को शादीशुदा जीवन के नाम से ही डर लगता है. उस का कहना है कि यह क्या बात हुई. जिस इज्जत को ले कर मांबाप 20 साल तक बेहद चिंतित रहते हैं, उसे पराए लड़के के हाथों निस्संकोच सौंप देते हैं. उन की बातें सुन कर मन में यही खयाल आया कि क्या शादी करना जरूरी है. उत्तर मिला, हां, जरूरी है, क्योंकि पति और पत्नी एकदूसरे के पूरक होते हैं. दोनों को एकदूसरे के साथ की जरूरत होती है. शादी करने से घर और जिंदगी को संभालने वाला विश्वसनीय साथी मिल जाता है. व्यावहारिकता में शादी निजी जरूरत है, क्योंकि पति/पत्नी जैसा दोस्त मिल ही नहीं सकता.

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कितना जरूरी वसीयत का रजिस्ट्रेशन

वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है, जिस में व्यक्ति अपनी मौत के बाद अपनी संपत्ति को किस तरह से किसकिस को देना चाहता है. वसीयत करने वाले व्यक्ति को वसीयतकर्ता कहा जाता है. वसीयत बनाने से संपत्ति के बंटवारे में होने वाले झगड़ों से बचा जा सकता है. वसीयत में वसीयत करने वाला अपनी इच्छाओं को कानूनी रूप से दर्ज करता है. इस में दान और अपने अंतिम संस्कार की इच्छा भी बता सकते हैं. वसीयत करने वाले को स्वस्थ और दिमागी रूप से ठीक होना चाहिए. अंधे या बहरे लोग भी वसीयत कर सकते हैं. वसीयतकर्ता अपनी जिंदगी में कभी भी वसीयत बदल सकता है या किसी और के नाम कर सकता है.

वसीयत 1925 के भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम यानी आईएसए के अनुसार बनाई जाती है. वसीयत से जुडे़ विवाद इसी कानून के अनुसार सुलझाए जाते हैं. आईएसए की धारा 57 से 191 में 23 सैक्शन है. जो वसीयत के नियमों को बताते हैं. वसीयत शब्द लैटिन के वोलंटस से बना है, जिस का इस्तेमाल रोमन कानून में वसीयतकर्ता के इरादे को व्यक्त करने के लिए किया जाता था. आईएसए की धारा 61 से 70 के द्वारा किसी भी वसीयत या वसीयत के किसी भाग को शून्य घोषित करती है यदि वह धोखाधड़ी, जबरदस्ती बनाई गई हो.

कितना जरूरी है रजिस्ट्रेशन

वसीयत पर वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान होना चाहिए. वसीयत को 2 या अधिक गवाहों द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए जिन्होंने वसीयतकर्ता को हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लगाते देखा हो. वसीयत को ले कर एक सवाल सब से अधिक पूछा जाता है कि क्या वसीयत का रजिस्ट्रेशन जरूरी है? वसीयत का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है. बिना रजिस्टर्ड वसीयत उतनी ही वैध है यदि वह भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार बनी हो. राज्य सरकारों के द्वारा इस तरह का दबाव बनाया जाता है कि वसीयत का रजिस्टर्ड होना जरूरी है. जब मसला कोर्ट में जाता है तो यह देखा जाता है वहां गैररजिस्टर्ड और गैररजिस्टर्ड का भेद नहीं होता है.

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत गैररजिस्टर्ड को बाद में रजिस्टर्ड भी कराया जा सकता है. वसीयत का रजिस्टर्ड होना कानूनी नहीं व्यावहारिक विचारों को ध्यान में रख कर देखा जाता है. यदि पहली वसीयत पंजीकृत है और बाद की नहीं हैं तो यह पंजीकृत वसीयत के आधार पर भरने की स्थिति पैदा हो सकती है. इस तरह की परेशानियों से बचने के लिए वसीयत को पंजीकृत करना उचित है. वसीयत सादे कागज पर भी हो सकती है. कई बार 100 रुपए के स्टांप पर भी लिखी जाती है.

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम यानी आईएसए की धारा 218 में बताया गया है कि जब कोई हिंदू व्यक्ति बिना वसीयत के मर जाता है, तो उस की संपत्ति को प्रशासन किसी भी ऐसे व्यक्ति को दे सकता है जो उत्तराधिकार नियमों के अनुसार मरे व्यक्ति की संपत्ति में विरासत का हकदार होगा. यदि कई व्यक्ति प्रशासन के लिए आवेदन करते हैं तो न्यायालय के पास उन में से एक या अधिक को इसे देने का विवेकाधिकार है.

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

श्रीमती लीला देवी मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वसीयत का रजिस्टर्ड होना उस की मान्यता नहीं देता है. वसीयतकर्ता लीला देवी द्वारा हस्ताक्षरित वसीयत की सचाई के बारे में विवाद हुआ. इस मामले में वसीयतकर्ता के भाई के बेटे यानी भतीजे ने अपील की थी. उस ने कहा कि वसीयतकर्ता ने 27 अक्तूबर, 1987 को उस के पक्ष में वसीयत की थी. वसीयत 03 नवंबर, 1987 को वसीयतकर्ता और 2 गवाहों की मौजूदगी में रजिस्टर्ड भी की गई थी.

ट्रायल कोर्ट ने पाया कि वसीयत के 2 गवाहों द्वारा दिए गए साक्ष्य सही नहीं थे. ट्रायल कोर्ट ने माना कि वसीयतकर्ता 70 वर्ष की अपनी वृद्धावस्था के बावजूद स्वस्थ दिमाग की थी और उस के लिए भतीजे के पक्ष में वसीयत करना स्वाभाविक था क्योंकि उस ने और उस के परिवार ने वसीयतकर्ता के अंतिम वर्षों के दौरान उस की भलाई का खयाल रखा था.

उच्च न्यायालय का मानना था कि चूंकि भतीजे ने वसीयत के तैयार करने और रजिस्ट्रेशन में गहरी रुचि ली थी, इसलिए यह अपनेआप में कुछ संदेह पैदा करने का कारण बनता है. उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि वसीयत के 2 सत्यापनकर्ता गवाहों द्वारा दिए गए 2 अलगअलग बयान भी अहम बात कहते हैं. इसलिए यह माना गया कि वसीयत साक्ष्य अधिनियम और आईएसए के कानून पर खरी नहीं उतर रही है. इस के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. वसीयत से जुडे़ तथ्यों और कानून को देखते व सम?ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वसीयत को साबित करने के लिए आवश्यक तथ्य मिलान नहीं करते हैं.

गवाहों की भूमिका

यह वसीयत अंगरेजी में लिखी गई थी लेकिन वसीयतकर्ता ने हिंदी में अपने हस्ताक्षर किए थे. गवाहों के हस्ताक्षर वसीयत के सभी पन्नों पर नहीं थे बल्कि केवल आखिरी पन्ने के नीचे थे. इस के अलावा गवाहों ने अलगअलग तरीके से हस्ताक्षर किए थे. एक ने उन के नाम के ऊपर और एक ने उन के नाम के नीचे हस्ताक्षर किए थे. गवाहों के हस्ताक्षर पहले पृष्ठ के पीछे की ओर दिखाई दिए. एक गवाह ने पृष्ठ के बाईं ओर और दूसरे ने दाईं ओर हस्ताक्षर किए थे. जबकि वसीयतकर्ता ने बीच में हस्ताक्षर किए थे.

पहले गवाह ने दावा किया कि वह वसीयत के पंजीकरण के समय मौजूद था और तहसीलदार ने वसीयतकर्ता को वसीयत के बारे में सम?ाया था और उस ने इसे सम?ा और स्वेच्छा से वसीयत पर हस्ताक्षर किए थे. दूसरे गवाह ने कहा कि वह भतीजे से मिला था जिस समय भतीजे ने दूसरे गवाह को बताया था कि कुछ कागजात पर उस के हस्ताक्षर की आवश्यकता है. दूसरे गवाह ने कागजात पर हस्ताक्षर किए बिना ही उस की विषय वस्तु के बारे में जानकारी हासिल कर ली. दूसरे गवाह ने कहा कि उस ने पहले गवाह को अपनी मौजूदगी में हस्ताक्षर करते नहीं देखा और न ही उस ने वसीयतकर्ता को अपनी मौजूदगी में वसीयत पर हस्ताक्षर करते देखा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भतीजा वसीयत को सही साबित करने में विफल रहा. भले ही पहले गवाह ने दावा किया कि वसीयतकर्ता ने उस की उपस्थिति में और दूसरे गवाह की उपस्थिति में वसीयत पर हस्ताक्षर किए, लेकिन दूसरे गवाह ने इस बात से साफ इनकार किया. इस के अलावा पहले गवाह ने कभी यह नहीं कहा कि उस ने वसीयतकर्ता की उपस्थिति में वसीयत पर अपने हस्ताक्षर किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वसीयत का रजिस्टर्ड होना ही उस को सच साबित नहीं करता है.

कैसे तैयार करें वसीयत

वसीयत लिखने से पहले संपत्ति के कानूनी पहलू को किसी जानकार वकील से सम?ाना जरूरी होता है. इस के अलावा वसीयत स्पष्ट पढ़ी जाने योग्य लिखी होनी चाहिए. ऐसे में अगर यह टाइप हो तो और भी बेहतर रहता है. यदि वसीयत हाथ से लिखी गई है तो यह बिना किसी ओवर राइटिंग या कटिंग के लिखी होनी चाहिए. जिस दिन यह लिखी गई हो उस का सही तरह से उल्लेख होना चाहिए. वसीयत की भाषा वह हो जिसे वसीयत करने वाला सम?ाता हो. वसीयत के हर पन्ने पर वसीयत करने वाले और गवाहों के पूरे हस्ताक्षर जरूरी होते हैं.

अगर गवाह वसीयत का लाभार्थी न हो तो तो बेहतर होता है. वैसे यह कानूनी प्रतिबंध नहीं है. गवाह कम आयु के हों क्योंकि वसीयत को चुनौती दिए जाने की स्थिति में उन की अदालत में गवाही देने की आवश्यकता पड़ सकती है. वसीयत मेें संपत्ति का बंटवारा स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए. अगर जरूरत पड़े तो संपत्तियों का पूरा विवरण वसीयत के साथ संलग्न एक अलग सूची में लिख दिया जाए. इस में बैंक और डीमैट खातों का विवरण भी लिखा जाना ठीक रहता है.

वसीयत को मजबूती

वसीयत में अनावश्यक बातें न लिखी हों जो भविष्य में विवाद का कारण बनें. वसीयत में यह बताना जरूरी है कि यह वसीयत पहली वसीयत है. अगर पहले कोई वसीयत है तो एक पैरा में पिछली वसीयत को स्पष्ट रूप से निरस्त करने की बात लिखनी चाहिए. यदि किसी उत्तराधिकारी को खास कारणों से उत्तराधिकार प्राप्त करने से बाहर रखा जाना है तो वसीयत मेें इस बहिष्कार को स्पष्ट रूप से बताएं और इस निर्णय के लिए छोटा सा स्पष्टीकरण भी दें. यदि कोई विरासत किसी ऐसे व्यक्ति को दी जाती है जो उत्तराधिकारी नहीं है तो ऐसी विरासत देने के कारणों को संक्षेप में दर्ज करें.

वसीयत का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है. अगर रजिस्ट्रेशन कराना संभव है तो करा लेना चाहिए. यह वसीयत को मजबूती देता है. अगर वसीयत सही है उसे रजिस्टर्ड कराने का समय नहीं मिला तो भी कोई दिक्कत नहीं होती है. इस से अदालत के सामने रख कर इस के अनुरूप संपत्ति का विभाजन हो सकता है. विवाद की दशा में अदालत यह तय करने का अधिकार रखती है

कि कौन सी वसीयत मान्य है. वसीयत का मूल कानून इस के रजिस्ट्रेशन की बात नहीं कहता है. सरकारें विवादों से बचने के लिए रजिस्ट्रेशन पर बल देती हैं.

Skin Care Tips : बेधड़क फ्लौंट करें ब्यूटीफुल स्किन

Skin Care Tips :  हेयर रिमूवल क्रीम का इस्तेमाल कर मिनटों में समर रैडी लुक पाना है, तो यह जानकारी आप के लिए ही है… गरमियों में आप के पास फैशनेबल और स्टाइलिश कपड़े पहनने के बहुत से औप्शंस होते हैं. आप बैकलेस और स्लीवलेस ड्रैसेस जैसे गाउन, औफशोल्डर ड्रैस, मिनीज, शौर्ट्स, क्रौप टौप्स, सिंगल शोल्डर्ड ड्रैस, नूडल्स स्ट्रेपी, स्लिटेड एंड वनपीस वगैरह कितने ही आउटफिट्स पहन कर दूसरों को मंत्रमुग्ध कर सकती हैं.

मगर इस के लिए साफ चमकती त्वचा का होना भी जरुरी है यानी आप को अपनी बाहों, टांगों, अंडरआर्म्स और पीठ के हिस्सों को बालरहित साफ और कोमल रखना होगा और इस के लिए अनचाहे बालों से छुटकारा पाना होगा.मसलन शौर्ट्स पहननी है तो चिकनी टांगों की ख्वाहिश होती है, समुद्र तट पर जा कर स्विमिंग का आनंद लेना है तो अपनी बिकिनी लाइन से अनचाहे बालों से छुटकारा पाना जरुरी है, बैकलेस या औफ शोल्डर ड्रैसेस के लिए बैक की स्किन को क्लीन रखना मस्ट है. इसी तरह स्लीवलेस ब्लाउज या ड्रैसेस पहनने के लिए बाहों का चिकना होना जरूरी है.

हेयर रिमूवल क्रीम हैं बेस्ट औप्शन

बाल साफ करना या हेयर रिमूवल एक ऐसी प्रक्रिया है जिस के द्वारा शरीर से बालों को हटाया जाता है. अनचाहे बाल एक बड़ी परेशानी हो सकते हैं और ऐसे में एक अच्छी क्वालिटी वाला हेयर रिमूवल या बाल साफ करने वाली क्रीम खासे सहायक सिद्ध हो सकते हैं. ये मौइस्चराइजिंग और पौष्टिक एजेंटों से युक्त होती है, जो आप की त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं. वैसे बाजार में कई हेयर रिमूवल विकल्प मौजूद हैं, जिन में शेविंग, वैक्सिंग, थ्रेडिंग, हेयर रिमूवल क्रीम ,लेजर और इलैक्ट्रोलाइसिस शामिल हैं.हेयर रिमूवल के लिए सही औप्शन चुनना भी महत्त्व रखता है.

यदि आप तैयार होने और बाहर जाने को ले कर बहुत जल्दबाजी में होती हैं तो अनचाहे बालों को हटाने के लिए रेजर का उपयोग सस्ता पड़ता है. मगर रेजर केवल आप की त्वचा की सतह पर बालों को काटता है. जिस का अर्थ है कि त्वचा को जो चिकनापन यह प्रदान करता है वह बहुत ही अल्पकालिक होता है और बहुत कम समय में ही आप के बालों की ग्रोथ वापस आ जाती है. जिस से आप को जल्दीजल्दी उसी प्रक्रिया से गुजरना होता है. रेजर के प्रयोग के बाद नए बाल पहले की तुलना में अधिक घने, मोटे और पैने भी होते हैं. इसी तरह लेजर का इस्तेमाल काफी महंगा है. समय भी लगता है.इस के विपरीत हेयर रिमूवल क्रीम का इस्तेमाल करने की प्रक्त्रिया सस्ता होने के साथ इजी और लंबे समय में अधिक फायदेमंद साबित होती है. आप को पार्लर जा कर समय लगाने या दूसरों पर निर्भर होने की जरुरत नहीं पड़ती. आप घर पर बहुत आसानी से इस का इस्तेमाल कर सकती हैं.

इस के प्रयोग के बाद बालों को फिर से बढ़ने में अधिक समय लगेगा और ये वापस महीन और नर्म उगेंगे. हेयर रिमूवल क्रीम आप के शरीर के अधिकांश हिस्सों के अनचाहे बालों से छुटकारा पाने के लिए एकदम सही विधि है चाहे वह आप की बगल हो, टांगें हों, बिकिनी लाइन हो. ये अनचाहे बालों से मुक्ति पाने वाले सभी तरीकों में सब से कम पीड़ारहित तरीका भी है.क्रीम को बस उन बालों पर अच्छी तरह लगाना होता है जिन से आप छुटकारा पाना चाहती हैं. यह बालों में केराटिन प्रोटीन को घोलने का काम करती है. फिर उन्हें जेली जैसे पदार्थ में बदल देती है जो क्रीम को साफ करते समय आप की त्वचा से आसानी से हट जाते हैं. इस प्रक्रिया में आप को अलग से खुद कुछ नहीं करना होता इसलिए एक बार जब आप क्रीम लगाती हैं तो निर्दिष्ट समय तक उसे लगा छोड़ कर अन्य काम भी कर सकती हैं.

बढ़ता है कौन्फिडेंस

शरीर पर बहुत ज्यादा बाल होना कोई शर्म की बात नहीं है मगर इन्हें हटा दिए जाएं तो लुक बेहतर बनता है और आप के अंदर अलग तरह का आत्मविश्वास आता है. आप हर तरह के फैशनेबल कपड़े बिना बेझिझक के पहन पाती हैं. चाहे वे बगल के बाल हों, पैर के बाल हों या चेहरे के बाल हों. अपनेआप में आत्मविश्वास और सहज महसूस करना बहुत महत्त्वपूर्ण है. हेयर रिमूवल के बाद न सिर्फ आप का आत्मविश्वास बढ़ता है बल्कि आप जीभर कर स्टाइलिश कपड़े पहन पाती हैं. आप अपनी त्वचा को ले कर आश्वस्त रहती हैं.साफसुथरा लुक हेयर रिमूवल से त्वचा चिकनी और मुलायम दिखाई देती है जिस से आप का लुक निखरता है. आप के शरीर की सफाई भी होती है और रोम छिद्र खुलते हैं. आप ज्यादा साफसुथरी और डिसेंट लगती हैं. आप का आकर्षण भी बढ़ता है.

बच्चों को डायबिटीज से कैसे बचाएं

डायबिटीज एक क्रोनिक रोग है जो हर उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. टाइप 1 डायबिटीज बच्चों और किशोरों में ज्यादा पाई जाती है, जबकि टाइप 2 डायबिटीज ज्यादातर युवा और वयस्कों को होती है. डायबिटीज से पीडि़त बच्चों की देखभाल करना मुश्किल हो सकता है खासतौर पर तब जब आप को पता हो कि आप के बच्चे को जीवनभर इसी के साथ जीना पड़ सकता है.

मातापिता की तरह डायबिटीज का असर बच्चों के मन पर भी पड़ता है. वे हमेशा अपनेआप को दूसरे बच्चों से अलग महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें कई चीजों के लिए रोका जाता है. ऐसे में इन बच्चों का आत्मविश्वास भी कम हो सकता है.

पेश हैं, इस संदर्भ में डा. मुदित सबरवाल (कंसलटैंट डायबेटोलौजिस्ट एवं हैड औफ मैडिकल अफेयर्स, बीटो) के कुछ सु झाव:

डायबिटीज से ग्रस्त बच्चे का जीवन

टाइप 1 डायबिटीज एक क्रोनिक रोग है. इस स्थिति में पैंक्रियाज में इंसुलिन नहीं बनता है या कम मात्रा में बनता है. इसलिए शरीर को बाहर से इंसुलिन देना पड़ता है.

टाइप 1 डायबिटीज से पीडि़त बच्चा तनाव और थकान महसूस करता है. वह अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो सकता है. ‘डायबिटीज बर्नआउट’ एक ऐसी स्थिति है जिस में व्यक्ति अपनी डायबिटीज को नियंत्रित करतेकरते थक जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चे अपने ब्लड ग्लूकोस लैवल को मौनिटर करना, इसे रिकौर्ड करना या इंसुलिन लेना नहीं चाहते.

ऐसे में मातापिता होने के नाते आप को अपने बच्चे के डायबिटीज मैनेजमैंट में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है. बच्चे को खुद अपनी स्थिति पर नियंत्रण रखने दें. इस बीच उसे पूरा सहयोग दें और मार्गदर्शन करें.

डायबिटीज से पीडि़त बच्चों की देखभाल

डायबिटीज मैनेजमैंट में सब से जरूरी चीज है ब्लड शुगर लैवल को सही रेंज में रखना. इस के लिए आप के बच्चे को इंसुलिन लेना पड़ सकता है, हर बार के खाने में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा सीमित करनी पड़ती है और साथ ही ऐक्टिव भी रहना होता है.

रोजाना डाक्टर की सलाह के अनुसार निर्धारित समय पर ब्लड शुगर नापें. इस के लिए आप बीटो का स्मार्टफोन कनैक्टेड ग्लूकोमीटर इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के साथ ब्लड शुगर को मौनिटर करना बेहद आसान हो जाता है. आप जब चाहें, जहां चाहें ब्लड ग्लूकोस नाप सकते हैं.

मातापिता के लिए सुझाव

जरूरत से ज्यादा रोकटोक न करें:

आप को अपने बच्चे को अनचाही जटिलताओं से सुरक्षित रखना है. लेकिन ध्यान रखें कि उसे स्पेस दें. आप की मदद से बच्चा खुद अपनी जिम्मेदारी सम झेगा और डायबिटीज मैनेजमैंट कर सकेगा. इस से बच्चे में आत्मविश्वास भी पैदा होगा.

उस की सामान्य जीवन जीने में मदद करें:

हमेशा बच्चे का उत्साह बढ़ाएं. जिस चीज में उस की रुचि है उसे वह करने का मौका दें. आप उसे सिंगिंग, पेंटिंग, स्विमिंग क्लासेज में भेज सकते हैं. देखें कि उसे किस चीज का शौक है.

उसे सिखाएं कि अगर कोई उसे चिढ़ाता है तो उसे क्या करना है:

अकसर डायबिटीज से पीडि़त बच्चे को क्लास के दूसरे बच्चे चिढ़ाते हैं. ऐसे में बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर असर हो सकता है. ध्यान रखें कि इन चीजों का बच्चे पर बुरा असर न पड़े. इस की वजह से वह स्कूल में ब्लड ग्लूकोस मौनिटर करना बंद न कर दे. अगर आप के बच्चे के साथ ऐसा होता है, तो उसे सिखाएं कि उसे ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए, साथ ही दूसरे बच्चों को भी सम झाएं कि वे ऐसा न करें. इस के लिए आप उन के मातापिता, अभिभावकों या अन्य साथियों की मदद ले सकते हैं.

उसे सिखाएं कि उसे सही पोषक आहार ही खाना चाहिए:

बच्चों को चौकलेट, फास्ट फूड बहुत पसंद होता है. हालांकि डायबिटीज से पीडि़त बच्चों को थोड़ा सतर्क रहना होता है. बच्चे को डांटने के बजाय आराम से सम झाएं कि पोषक और सेहतमंद आहार से ही उसे फायदा होगा. उसे साबूत अनाज, ताजा फल और सब्जियां, लीन प्रोटीन और सेहतमंद फैट्स का सेवन करने के लिए कहें.

किसी डायबिटीज ग्रुप के साथ जुड़े:

डायबिटीज से पीडि़त बच्चे की देखभाल करना मुश्किल हो सकता है. इस के लिए आप किसी डायबिटीज गु्रप में शामिल हो सकते हैं जहां आप अपनी समस्याओं पर चर्चा कर सकते हैं. जरूरत पड़ने पर नोट्स बनाएं, एकदूसरे के सु झाव लें. इस के अलावा अपने पार्टनर की मदद लें. ऐसे बच्चे के लिए परिवार का सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण होता है.

ध्यान रखें:

अगर बच्चे में डिप्रैशन के लक्षण दिखते हैं जैसे उदासी, चिड़चिड़ापन, थकान, भूख में बदलाव, सोने की आदत में बदलाव तो डाक्टर से संपर्क करें. नियमित रिमाइंडर्स और नोटिफिकेशंस के द्वारा आप डायबिटीज को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं. बीटो ऐप डायबिटीज मैनेजमैंट के लिए हर जरूरी समाधान उपलब्ध कराता है.

Hindi Fiction Stories : मन की सुंदरता- कैसी थी शोभना

Hindi Fiction Stories : शोभना बचपन से ही नटखट स्वभाव की थी.किन्तु वह अपने स्वभाव को सभी के सामने जाहिर नही करती थी.

वह बच्चों के सँग बच्ची और बड़ों के सङ्ग बड़ी बन जाती थी और कभी बेवज़ह ही शांत होकर एक कोना पकड़कर बैठ जाती थी.

वह बहुत जल्दी क्रोधित भी हो जाती थी.मगर उसमे एक ख़ास बात भी थी कि उसे गलत बात बिल्कुल पसँद नही थी. वह हर माहौल में ढल तो जाती थी, लेकिन उसे व उसके स्वभाव को समझने वाला कोई नही था.

शोभना बहुत ही जज्बाती और संवेदनशील लड़की थी. वह दूसरे के दुख को अपना समझकर कभी   स्वयं ही हैरान परेशान हो जाती थी.

शोभना बी०ए० प्रथम वर्ष की छात्रा थी जो कि पढ़ने में बहुत ही होशियार थी.इसलिए कॉलेज के सभी लड़के उस पर जान छिड़कते थे परंतु शोभना किसी को तनिक भी अपने करीब  फटकने नही देती थी.

उसकी सभी सहेलियां उससे इसलिये चिढ़ती भी थी. इसमें क्या है जो मुझमें नही  है. धीर- धीरे समय गुजर रहा था कि शोभना का जीवन ही अगले दिशा में बदल गई.

शोभना रोजाना की भाँति उस दिन भी कॉलेज जा रही थी, जिस दिन उसका जन्मदिन था.

घर के सभी लोग उसे उस दिन मना कर रहे थे कि शोभू आज कॉलेज मत जा, आज हम सबलोग तेरे बर्थडे पर कुछ स्पेशल करेंगे. फिर भी वह नही मानी. क्योंकि उसे अपने दोस्तों को पार्टी देनी थी, इसलिए शोभना खुशी खुशी कॉलेज जा रही थी वह अपने जन्मदिन को बहुत ही अधिक मान देती थी. वह उस दिन पीले रँग की फ़्रॉक सूट और पीले रंग की एक हाथ मे चूड़ी व दूसरे हाथ मे घड़ी पहनी हुई थी. और माथे पर एक छोटी सी काली बिंदी लगाई थी जिसे वह रोज लगाती है.

वह उस दिन मानो स्वर्ग से उतरी कोई अप्सरा भाँति दिख रही थी. शोभना की इसी सादगी भरी सुंदरता पर कॉलेज के सभी लड़के उस पर फ़िदा थे और उसमें से एक ने तो एकदम से जीना ही दुश्वार कर रखा था. शोभना का,जो इस कॉलेज के मैनेजर  का बेटा था. जिससे सभी डरते थे।वह हमेशा ड्रग्स के नशे में धुत्त रहा करता था. वह सबको डराता धमकाता पर लड़कियों पर कभी नज़र उठाकर नही देखता था.मगर शोभना को देख कर वह पागलों जैसा हरक़त करने लगा था.

शोभना उससे परेशान होकर सभी लड़के लड़कियों के सामने एक दिन उसके बदतमीजी पर उसके गाल पर खींचकर अपनी पांचों उंगलियों की छाप छोड़ दी,जिससे वह मवाली व नशेड़ी लड़का बौखला पड़ा था.वह उसी दिन से बदला लेने के  लिए बेताब हो गया.

उस दिन उसको अवसर मिल ही गया. जिस दिन उसका  जन्म दिन था .  मंद – मंद मुस्कान बिखरी हुई थी. चाँद स्वरूप मुखड़े पर ,जो उसे न सुहाई और  शोभना द्वारा प्रेम प्रस्ताव न स्वीकारने पर व प्रतिशोध की आग में जला हुआ आवेश में आकर रास्ते में उसके चेहरे पर तेजाब का भरा बोतल फेंककर ठहाका मारते हुए बोला- “तुझे अपने सुंदरता पर बहुत नाज़ था न! तो लो अब दिखाओ ना.”

इतना बोलकर वह वहाँ से रफूचक्कर हो गया।जनता तमाशा देख रही थी.कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नही आया। जब वह बेसुध होकर सड़कपर कराह रही थी. तब वहाँ मीडिया भी कैमरा लेकर आ खड़ी हो गई। मीडिया वालों के लिए एक नई सनसनीखेज ख़बर मिल गई थी.

शोभना की हालत बिगड़ती जा रही थी तभी भीड़ को चीरकर एक युवक सामने आया. वही शोभना को उठाकर अस्पताल ले गया जो डॉ० विक्रम ही था , जिसका तभी तबादला हुआ था  इस नये शहर में.

 शोभना को अस्पताल में  आये यहाँ एक महीना हो गया था, और स्वास्थ्य भी बेहतर हो रहा था.

पर शोभना का वो चँचल पन कहीं विलुप्त हो चुका था. रेत के भाँति सब बिखर गया था.

उसके लिए, उसका चेहरा ही एक  पहचान थी.वह भी जल कर ख़ाक हो गया. फिर भी शोभना डॉक्टर विक्रम से काफी अच्छे से घुल मिल गई थी उसे विक्रम की जिंदादिली बहुत अच्छी लगती थी.वे हर हाल में खुश नजर आते थे।और इधर विक्रम भी शोभना का समय -समय पर दवा पुछने आ जाते थे.इसी बीच दोनो की दोस्ती हो गई । शोभना को बातों -बातों में शायरी बोलने की आदत ने अपनी ओर आकर्षित कर रही थी विक्रम को.  जब शोभना कुछ बोलती तो दर्द भरी शायरी जरूर बोलती और विक्रम उसके होंठों को  और उसके आँखों को ध्यान से देखता, जिससे शोभना भी वाकिफ़ थी. मग़र वह अपनी जली हुई सूरत के कारण डॉ० विक्रम से नज़रें नही मिला पाती थी. एक दिन बातों ही बातों में डॉ०विक्रम अपनी बात शोभना के सामने रख ही दिए. परन्तु शोभना इंकार कर बैठी और सिसकती हुई बोली- “विक्रम जी आप मुझ जैसी लड़की को क्यों इतना चाहते हो। मेरी जो सुन्दरता थी वह अभिशाप बन गई। मेरे लिए .  मैं अब कहीं की नहीं हूँ.”

फिर कुछ ही क्षण में सम्भल कर बोली- “हम सिर्फ़ दोस्त बनकर आजीवन रहेंगें। वादा कीजिये.”

“ठीक है जो आपको सही लगे। लेकिन मेरे ख्याल से सुंदरता चेहरे से नहीं, इंसान के मन से होता है. आप दिल से बहुत सुंदर हो.”

विक्रम की बातें सुनकर शोभना विक्रम का कसकर हाथ पकड़कर बोली- “मुझे कभी उम्मीद ही नही था कि आपके जैसा कोई इतना मन से तन से सुंदर साथी मुझे मिलेगा.मेरा जीवन फिर से सँवर गया.”

शोभना के आँखों मे एक पल के लिए खुशी की लहर उमड़ पड़ी.

अरे! शोभना तुम मेरे जीवन की रौशनी हो. अब तुमसे ही मेरा बंजर घर फिर से हरा- भरा होगा.घर की शोभा बढ़ेगी. तुम अपने पवित्र व सुंदर मन से मेरे नहीं… अपने घर को सुसज्जित करोगी.

बस एक दिन दो दिन में तुम्हारे डिस्चार्ज होने के बाद मैं अपने पापा को लेकर तुम्हारे घर आऊँगा.

जीवन भर के लिए. तुम्हारा हाथ और साथ दोनों माँगने के लिए. और साथ ही साथ उस मवाली को भी सलाखों के पीछे करके तुम्हे न्याय भी दिलाने की भरसक प्रयास करूँगा.”

फिर मुस्करा कर बोला, “और यह भी न भूलो कि चिक्तिसा विज्ञानं में हर रोज नई तकनीक का विकास हो रहा है. कल नहीं तो वर्षों बाद तुम पहले जैसी हो जाओगी और मैं रिस्क नहीं लेना चाहता कि तब कोई और तुम्हें उड़ा ले.”

शोभना बूत समान ख़ामोश होकर आँखों में प्रेम के समंदर को थाम कर विक्रम को एक टक देखे जा रही थी. और भविष्य के दिन के लम्हों को सँजोने के लिए कुछ सँकोच-सी सोच लिए अग्रसरित होने को उतावली भी हो रही थी.

Hindi Moral Tales : बहिष्कार

Hindi Moral Tales : ‘‘महेश… अब उठ भी जाओ… यूनिवर्सिटी नहीं जाना है क्या?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘उठ रहा हूं…’’ इतना कह कर महेश फिर से करवट बदल कर सो गया.

दीपक अखबार को एक तरफ फेंकते हुए तेजी से बढ़ा और महेश को तकरीबन झकझोरते हुए चीख पड़ा, ‘‘यार, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है… रातभर क्या करते रहते हो…’’

‘‘ठीक है दीपक भाई, आप नाश्ता तैयार करो, तब तक मैं तैयार होता हूं,’’ महेश अंगड़ाई लेता हुआ बोला और जल्दी से बाथरूम की तरफ लपका.

आधा घंटे के अंदर ही दीपक ने नाश्ता तैयार कर लिया. महेश भी फ्रैश हो कर तैयार था.

‘‘यार दीपू, जल्दी से नाश्ता कर के क्लास के लिए चलो.’’

‘‘हां, मेरी वजह से ही देर हो रही है जैसे,’’ दीपक ने तंज मारा.

दीपक की झल्लाहट देख महेश को हंसी आ गई.

‘‘अच्छा ठीक है… कोई खास खबर,’’ महेश ने दीपक की तरफ सवाल उछाला.

दीपक ने कहा, ‘‘अब नेता लोग दलितों के घरों में जा कर भोजन करने लगे हैं.’’

‘‘क्या बोल रहा है यार… क्या यह सच?है…’’

‘‘जी हां, यह बिलकुल सच है,’’ कह कर दीपक लंबी सांस छोड़ते हुए खामोश हो गया, मानो यादों के झरोखों में जाने लगा हो. कमरे में एक अनजानी सी खामोशी पसर गई.

‘‘नाश्ता जल्दी खत्म करो,’’ कह कर महेश ने शांति भंग की.

अब नेताओं के बीच दलितों के घरों में भोजन करने के लिए रिकौर्ड बनाए जाने लगे हैं. वक्तवक्त की बात है. पहले दलितों के घर भोजन करना तो दूर की बात थी, उन को सुबह देखने से ही सारा दिन मनहूस हो जाता था. लेकिन राजनीति बड़ेबड़ों को घुटनों पर झुका देती है.

‘‘भाई, आप को क्या लगता है? क्या वाकई ऐसा हो रहा है या महज दिखावा है? ये सारे हथकंडे सिर्फ हम लोगों को अपनी तरफ जोड़ने के लिए हो रहे हैं, इन्हें दलितों से कोई हमदर्दी नहीं है. अगर हमदर्दी है तो बस वोट के लिए…’’

दीपक महेश को रोकते हुए बोला, ‘‘यार, हमेशा उलटी बातें ही क्यों सोचते हो? अब वक्त बदल रहा है. समाज अब पहले से ज्यादा पढ़ालिखा हो गया है, इसलिए बड़ेबड़े नेता दलितों के यहां जाते हैं, न कि सिर्फ वोट के लिए, समझे?’’

‘‘मैं तो समझ ही रहा हूं, आप क्यों ऐसे नेताओं का पक्ष ले रहे हैं. चुनाव खत्म तो दलितों के यहां खाने का रिवाज भी खत्म. फिर जब वोट की भूख होगी, खुद ही थाली में प्रकट हो जाएंगे, बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

दीपक बात को बीच में काटते हुए बोला, ‘‘सुन महेश, मुझे कल सुबह की ट्रेन से गांव जाना है.’’

‘‘क्यों? अचानक से… कौन सा ऐसा काम पड़ गया, जो कल जाने की बात कर रहा है? घर पर सब ठीक तो हैं न?’’ महेश ने सवाल दागे.

‘‘हां, सब ठीक हैं. बात यह है कि गांव के शर्माजी के यहां तेरहवीं है तो जाना जरूरी है.’’

महेश बोला, ‘‘दीपू, ये वही शर्माजी हैं जो नेतागीरी करते हैं.’’

‘‘सही पकड़े महेश बाबू,’’ मजाकिया अंदाज में दीपू ने हंस कर सिर हिलाया.

अगले दिन दीपक अपने गांव पहुंच गया. उसे देखते ही मां ने गले लगाने के लिए अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए.

‘‘मां, पिताजी कहां हैं? वे घर पर दिख नहीं रहे?’’

‘‘अरे, वे तो शर्माजी के यहां काम कराने गए हैं. सुबह के ही निकले हैं. अब तक कोई अतापता नहीं है. क्या पता कुछ खाने को मिला भी है कि नहीं.’’

‘‘अरे अम्मां, क्यों परेशान हो रही हो? पिताजी कोई छोटे बच्चे थोड़ी हैं, जो अभी भूखे होंगे. फिर शर्माजी तो पिताजी को बहुत मानते हैं. अब उन की टैंशन छोड़ो और मेरी फिक्र करो. सुबह से मैं ने कुछ नहीं खाया है.’’

थोड़ी देर बाद मां ने बड़े ही प्यार से दीपक को खाना खिलाया. खाना खा कर थोड़ी देर आराम करने के बाद दीपक भी शर्माजी के यहां पिताजी का हाथ बंटाने के लिए चल पड़ा.

तकरीबन 15 मिनट चलने के बाद गांव के किनारे मैदान में बड़ा सा पंडाल दिख गया, जहां पर तेजी के साथ काम चल रहा था. पास जा कर देखा तो पिताजी मजदूरों को जल्दीजल्दी काम करने का निर्देश दे रहे थे.

तभी पिताजी की नजर दीपक पर पड़ी. दीपक ने जल्दी से पिताजी के पैर छू लिए.

पिताजी ने दीपक से हालचाल पूछा, ‘‘बेटा, पढ़ाई कैसी चल रही है? तुम्हें रहनेखाने की कोई तकलीफ तो नहीं है?’’

दीपक ने कहा, ‘‘बाबूजी, मेरी फिक्र छोडि़ए, यह बताइए कि आप की तबीयत अब कैसी है?’’

‘‘बेटा, मैं बिलकुल ठीक हूं.’’

दीपक ने इधरउधर देख कर पूछा, ‘‘सारा काम हो ही गया है, बस एकडेढ़ घंटे का काम बचा है,’’ इस पर पिता ओमप्रकाश ने हामी भरी. इस के बाद दोनों घर की तरफ चल पड़े.

रात को 8 बजे के बाद दीपक घर आया तो मां ने पूछा, ‘‘दीपू अभी तक कहां था, कब से तेरे बाबूजी इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘अरे मां, अब क्या बताऊं… गोलू के घर की तरफ चला गया था. वहां रमेश, जीतू, राजू भी आ गए तो बातों के आगे वक्त का पता ही नहीं चला.’’

मां बोलीं, ‘‘खैर, कोई बात नहीं. अब जल्दी से शर्माजी के यहां जा कर भोजन कर आ.’’

कुछ ही देर में गोलू के घर पहुंच कर दीपक ने उसे आवाज लगाई.

गोलू जोर से चिल्लाया, ‘‘रुकना भैया, अभी आया. बस, एक मिनट.’’

5 मिनट बाद गोलू हांफता हुआ आया तो दीपक ने कहा, ‘‘क्या यार, मेकअप कर रहा था क्या, जो इतना समय लगा दिया?’’

गोलू सांस छोड़ते हुए बोला, ‘‘दीपू भाई, वह क्या है कि छोटी कटोरी नहीं मिल रही थी. तू तो जानता है कि मुझे रायता कितना पसंद है तो…’’

‘‘पसंद है तो कटोरी का क्या काम है?’’ दीपक ने अचरज से पूछा.

गोलू थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, ‘‘दीपक, क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हम लोग हमेशा से ही ऊंची जाति वालों के यहां घर से ही अपने बरतन ले कर जाते हैं, तभी खाने को मिलता है.’’

‘‘हां पता है, लेकिन अब ये पुरानी बातें हो गई हैं. अब तो हर पार्टी के बड़ेबड़े नेता भी दलितों के यहां जा कर खाना खाते हैं.’’

गोलू ने बताया, ‘‘ऊंची जाति के लोगों के लिए पूजा और भोजन का इंतजाम बड़े पंडाल में है, ताकि छोटी जाति वालों को पूजापाठ की जगह से दूर बैठा कर खाना खिलाया जा सके, जिस से भगवान और ऊंची जाति वालों का धर्म खराब न हो.

‘‘दलितों को खाना अलग दूर बैठा कर खिलाया ही जाता है, इस पर यह शर्त होती है कि दलित अपने बरतन घरों से लाएं, जिस से उन के जूठे बरतन धोने का पाप ऊंची जाति वालों को न लगे,’’ इतना कहने के बाद गोलू चुप हो गया.

लेकिन दीपक की बांहें फड़कने लगीं, ‘‘आखिर इन लोगों ने हमें समझ क्या रखा है, क्या हम इनसान नहीं हैं.

‘‘सुन गोलू, मैं तो इस बेइज्जती के साथ खाना नहीं खाऊंगा, चाहे जो हो जाए,’’ दीपक की तेज आवाज सुन कर वहां कई लोग जमा होने लगे.

‘‘क्या बात है? क्यों गुस्सा कर रहे हो?’’ एक ने पूछा.

‘‘अरे चाचा, कोई छोटीमोटी बात नहीं है. आखिर हम लोग कब तक ऊंची जातियों के लोगों के जूते को सिर पर रख कर ढोते रहेंगे, क्या हम इनसान नहीं हैं? आखिर कब तक हम उन की जूठन पर जीते रहेंगे?’’

‘‘यह भीड़ यहां पर क्यों इकट्ठा है? यह सब क्या हो रहा है,’’ पिता ओमप्रकाश ने भीड़ को चीरते हुए दीपक से पूछा.

इस से पहले दीपक कुछ बोल पाता, बगल में खड़े चाचाजी बोल पड़े, ‘‘ओम भैया, तुम ने दीपू को कुछ ज्यादा ही पढ़ालिखा दिया है, जो दुनिया उलटने की बात कर रहा है. इसे जरा भी लाज नहीं आई कि जिन के बारे में यह बुराभला कह रहा है, वही हमारे भाग्य विधाता?हैं. अरे, जो कुछ हमारे वेदों और शास्त्रों में लिखा है, वही तो हम लोग कर रहे हैं.’’

‘‘चाचाजी…’’ दीपक चीखा, ‘‘यही तो सब से बड़ी समस्या है, जो आप लोग समझना नहीं चाहते. क्या आप को पता है कि ये ऊंची जाति के लोगों ने खुद ही इस तरह की बातें गढ़ ली हैं. जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उस का कोई धर्म या मजहब नहीं होता, वह मां के पेट से कोई मजहब या काम सीख कर नहीं आता.

‘‘सुनिए चाचाजी, जब बच्चे जन्म लेते हैं तो वे सब आजाद होते हैं, लेकिन ये हमारी बदकिस्मती है कि धर्म के ठेकेदार अपने फायदे के लिए लोगों को धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, संप्रदाय के नाम पर, भाषा के नाम पर बांट देते हैं.

‘‘क्या आप लोगों को नहीं पता कि मेरे पिताजी ने मुझे पढ़ाया है. अगर वे भी यह सोच लेते कि दलितशूद्रों का पढ़ना मना है, तो क्या मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा होता?

‘‘इसी छुआछूत को मिटाने के लिए कई पढ़ेलिखे जागरूक दलितों ने कितने कष्ट उठाए, अगर वे पढ़ेलिखे नहीं होते तो क्यों उन्हें संविधान बनाने की जिम्मेदारी दी जाती?’’

एक आदमी ने कहा, ‘‘अरे दीपक, तू तो पढ़ालिखा है, मगर हम तो जमाने से यही देखते चले आ रहे हैं कि भोज में बरतन अपने घर से ले कर जाने पड़ते हैं. जैसा चल रहा है वैसा ही चलने दो?’’

‘‘नहीं दादा, हम से यह न होगा, जिसे खाना खिलाना होगा, वह हमें भी अपने साथ इज्जत से खिलाए, वरना हम किसी के खाने के भूखे नहीं हैं. अब बहुत हो गया जुल्म बरदाश्त करतेकरते. मैं इस तरह से खाना नहीं खाऊंगा.’’

दीपक की बातों से गोलू को जोश आ गया. उस ने भी अपने बरतन फेंक दिए. इस से हुआ यह कि गांव के ज्यादातर दलितों ने इस तरह से खाने का बहिष्कार कर दिया.

‘‘शर्माजी, गजब हो गया,’’ एक आदमी बोला.

‘‘क्या हुआ? क्या बात है? सब ठीक तो है?’’

‘‘कुछ ठीक नहीं है. बस्ती के सारे दलित बिना खाना खाए वापस अपने घरों को जा रहे हैं. लेकिन मुझे यह नहीं पता कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं.’’

शर्माजी ने जल्दी से दौड़ लगा दी. दौड़ते हुए ही वे आवाज लगाने लगे, ‘‘अरे क्या हुआ, क्या कोई बात हो गई है, आप लोग रुकिए तो…’’

भीड़ में सन्नाटा छा गया. अब शर्माजी को कोई क्या जवाब दे.

‘‘देखिए शर्माजी…’’ दीपक बोला, ‘‘हम सब आप लोगों की बड़ी इज्जत करते हैं.’’

‘‘अरे दीपक, यह भी कोई कहने की बात है,’’ शर्माजी ने बीच में ही दीपक को टोका.

‘‘बात यह है कि अब से हम लोग इस तरह आप लोगों के यहां किसी भी तरह का भोजन नहीं किया करेंगे, क्योंकि हमारी भी इज्जत है. हम भी आप की तरह इनसान हैं, तो आप हमारे लिए अलग से क्यों कायदेकानून बना रखे हैं?

‘‘जब वोट लेना होता है तो आप लोग ही दलितों के यहां खाने को ले कर होड़ मचाए रहते हैं. जब चुनाव हो जाता है तो दलित फिर से दलित हो जाता है.’’

शर्माजी को कोई जवाब नहीं सूझा. वे चुपचाप अपना सा मुंह लटकाए वहीं खड़े रहे.

Hindi Stories Online : मोको कहां ढूंढे रे बंदे – कौन थी चीकू

Hindi Stories Online : आज फिर कांता ने छुट्टी कर ली थी और वो भी बिना बताए. रसोई से ज़ोर – ज़ोर से बर्तनों का शोर आ रहा था. बेचारे गुस्से के कारण बहुत पिटाई खा रहे थे. पर इस गुस्से के कारण कुछ बर्तनों पर इतनी जम के हाथ पड़ रहा था कि मानो उनका भी  रंग रूप निखर आया हो. वही जैसे फेशियल के बाद चेहरे पर आता है. अरे, “आज मुझे पार्लर भी तो जाना है.” अचानक याद आया. सारा काम जल्दी – जल्दी निपटा  दिया. थकान भी लग रही थी. पर सोचा चलो, वही रिलैक्स हो जाऊंगी. घर का सारा काम निपटा कर मैं पार्लर पहुंच गई.

जब फेशियल हो गया तो पार्लर वाली बोली…….

“दीदी कल देखना, क्या ग्लो आता है.” उफ़….एक तो उसका “दीदी” बोलना और दूसरा अंग्रेजी का “ग्लो” ग्लो~~ वाह!! सच, मन कितना आनंद से भर जाता है. खुश होकर मैंने कुछ टिप उसके हाथ में रख दी, “थैंक यू दीदी” उसने कहा.सच में अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस होने लगा, जैसे न जाने कितना महान काम कर दिया हो.घर वापसी के लिए पार्लर का दरवाज़ा खोलते समय सचमुच में एक सेलेब्रिटी वाली फीलिंग आने लगती है. लगता है जैसे बाहर कई सारे फोटोग्राफर और ऑटोग्राफ लेने वाले इंतजार में खड़े होंगे… मैडम, मैडम!हेल्लो.. हेल्लो.. प्लीज़ प्लीज़ एक फोटो. इधर,  इधर, मैडम. ऐसा सोचते ही एक गर्वीली मुस्कुराहट अनायास ही चेहरे पर आ गई.

पर ये क्या? पार्लर से निकलते ही सब्ज़ी वाला भईया दिख गया. उफ़…मेरे ख्यालों की दुनिया जैसे पल भर में गायब हो गई. मुझे देखते ही वो अपने चिरपरिचित अंदाज़ में बोला “हां,…. चाहिए कुछ?” मैं जैसे सपने से जागी.अरे हां,आलू तो खत्म हो ही गए है. परांठे कैसे बनेंगे कल.सन्डे को कुछ स्पेशल तो सबको चाहिए ही. फिर चाहे लंच में छोले चावल बन जाएंगे. टमाटर भी लेे ही लेती हूं. रखे रहेंगे, बिगड़ते थोड़े ही है. कुछ और सब्जियां भी ‘सेफर साइड योजना’ के तहत लेे ली जाती है.अब आती है असली जिम्मेदारी निभाने की बारी..यानी हिसाब लगवाने की बारी “क्या भईया, क्यूं इतनी मंहगी  लगा रहे हो?”
“हमेशा तो आपसे ही लेती हूं.”

“आज क्या कोई पहली बार सब्ज़ी थोड़े खरीद रही हूं आपसे?”
“उधर, बाहर मार्केट में बैठते हो तो कम भाव लगाते हो” “हमारी कॉलोनी में आते ही सबके भाव बढ़ जाते है”अन्तिम डायलॉग बोलते समय थोड़ा फक्र महसूस होता है. देखा हम कितनी पॉश कॉलोनी के वासी है. परन्तु फ्री का धनिया और हरी मिर्च मांगते वक्त मैं अपने वास्तविक रूप में लौट आती.बनावट तो अस्थाई होती है, वास्तविकता ही हमारे साथ स्थाई रूप से रहती है.पर ये हमें शायद बहुत कम या कहिए देर से समझ आता है.

खैर….सब्जी वाले के साथ मोल भाव करने और कुछ एक्स्ट्रा लेने में अपनी कला पर खुद को ही शाबाशी दे डाली, हमेशा की तरह. वरना, घर पर ये सब बताओ तो इन समझदारी की बातों को भला कौन समझता है? उल्टा प्रवचन अलग मिल जाता है पतिदेव से …”क्या तुम भी, यूं दो – चार रुपयों के लिए इन मेहनतकश लोगो से इतना तोल मोल करती हो” इतनी सुबह- सुबह दूर मंडी से तुम्हें ये सब घर बैठे ही मिल जाता है. ये भी तो फ्री होम डिलीवर ही है. हमें तो इनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए.

उहं मैंने मन ही मन  मुंह बनाया. अरे, घर चलाना कोई खेल नहीं है. बहुत सारी बातें सोचनी पड़ती है. ये मर्दों के बस की बात नहीं है. अपने और उनके दोनों के ही हिस्से की बातें मैं मन ही मन सोच रही थी.
जब सब्ज़ियां खरीद ली तो याद आया. ओह, हां.. .’ब्रेड और मख्खन भी तो नहीं है और छोटे बेटे ने अपना शैंपू लाने के लिए भी तो कहा था.’ कुछ चिप्स और चॉकलेट भी लेे लूंगी उसके लिए. घर पहुंचते ही  बोलता है “मेरे लिए क्या लाई हो मम्मी?” दुकान पर पहुंची तो कुछ अन्य वस्तुओं पर भी नज़र गई . उन्हें देख कर सोचा..”अच्छा हुआ जो नजर पड़ गई, ये सामान भी तो लगभग खत्म ही होने लगा है.” ये तो बहुत अच्छा हुआ, जो देखकर याद आ गया. वरना फिर से आना पड़ता. सारा सामान लेे कर  थकी – हारी घर पहुंची. रिक्शे वाले से भी थोड़ी बहस हो गई किराए को लेकर. आज तो सारा मूड ही खराब हो गया.

डोरबेल बजाई तो चीकू ने दरवाज़ा खोला और चिल्ला कर बोला… पापा,  “मम्मी आ गई हैं.” “पता नहीं क्यूं ये हमेशा अपने पापा को सावधान होने का संकेत देता है.” जैसे, “मैं नहीं, कोई खतरे की घड़ी आ गई हो.”
हमेशा की तरह मैंने इस बात को नजर अंदाज़ किया.

चीकू बोला ,”मेरे लिए क्या लाई हो मम्मी?” हर बार उसकी यही जिज्ञासा होती. अरे. “हर बार क्यूं पूछते हो?” “मैं कोई विदेश यात्रा से आती हूं.” थकान अब तल्खी में बदल रही थी.

पतिदेव ने शायद इसे महसूस कर लिया था. वे कमरे से बाहर आये और माहौल की नज़ाकत को समझते हुए चिंटू को अंदर जाने का इशारा किया और सामान भीतर लेे जाने के लिए उठाने लगे. फिर अचानक जैसे उन्हें कुछ याद आया. वे  सहानुभूति जताते हुए बोले…अरे,,”तुम तो पार्लर गई थी ना?”
“क्या पार्लर बंद था?” ओह! “लगता है सारा समय घर की खरीदी में ही निकल गया.”

क्या इन्हें मेरा “ग्लो” नजर नहीं आ रहा? बाल भी तो ठीक कराए थे, क्या वो भी दिखाई नहीं पड़  रहे?
एक वो पार्लर वाली है जो बोल रही थी….”दीदी”, “आप अपने पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही हो” “देखो तो कितनी ड्रायनेस आ गई है हाथों पर और बाल भी कितने हल्के होते जा रहे है” “आप थोड़ा जल्दी जल्दी विजिट किया करे” सच में मेरा कितना ख्याल करती है, और इन्हें देखो, इतना कुछ करवा कर आने के बाद भी पूछ रहे है…”क्या पार्लर नहीं गई?”

हद है. दिनभर की थकान,  सबसे हुई बहस और पति की नज़र का दोष.एक धमाके का रूप ले चुका था. मैंने जोर से पांव पटके और धड़ाम से दरवाज़ा बंद किया और कहा..

“कभी तो मुझ पर ध्यान दीजिए, कभी तो फुरसत निकालिए” “क्या आपको कहीं भी?… कुछ?.. सुंदरता नजर आती है?” मैंने एक – एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा “हर समय बस, ये अख़बार और टीवी” “क्या बार बार वही न्यूज सुनते रहते हो””घर -बाहर का सारा काम कर करके मेरे चेहरे का ग्लो ही खत्म हो गया” ये देखो, बर्तन मांज – मांज कर मेरे हाथ कितने ड्राई हो गए है”

“ये नाखून तो जैसे सारे ही टूट गए है.” मैं  गुस्से में बोल रही थी. आवाज़ से लग रहा था, बस रो ही पडूंगी, पर उनके सामने रोना अपनी बात को कमज़ोर बनाना था. मैं सीधे अपने कमरे में चली गई. अचानक एक छोटे से प्रश्न पर इतना भड़क जाना? उनकी कुछ समझ नहीं आ रहा था. पतिदेव ज्यादा बहस के मूड में नहीं  थे. चुपचाप सारा सामान रसोई में रख अख़बार उठा कर पढ़ने लगे.

कुछ देर बाद मैंने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला. देखा रसोई में कुछ खुसुर – पुसुर हो रही थी.
चीकू की आवाज़ आ रही थी….”पापा आज बाहर से कुछ मंगवा  ले?”और पतिदेव बोल रहे थे..”यार चीकू मैगी ही बना लेते है.” “अब, मम्मी से कौन पता करे कि उन्हें क्या खाना है?”

अब मुझे अपने आप पर भी गुस्सा आने. आखिर इतना बवाल करने की क्या जरूरत थी.
मैंने रसोई में जाकर बिना प्यास के पानी पिया. बस टोह लेने के लिए कि क्या चल रहा है. फिर सपाट और संयमित स्वर में पूछा..”क्या खाओगे?” दोनों एक साथ बोल उठे…”खिचड़ी”

“ये तो कमाल हो गया, यार चीकू ” पापा ने बड़ी प्रशंसा भरी नज़रों से चीकू को शाबाशी दी और चीकू ने भी अपनी आंखे झपकाकर पापा को “टू गुड” कहा.  “वाह!”

“इतनी अंडरस्टैंडिंग” सच में कमाल ही है. जो खिचड़ी के नाम से ही बिदकते हो आज खुद खिचड़ी खाने के लिए कह रहे हैं. जो मैं अपनी थकान की स्थिति के विकल्प रूप में बनाती हूं. मैं मन ही मन मुस्कुराई पर स्वयं की प्रतिष्ठा के मद्देनजर चेहरा संजीदा ही बनाए रखा.

अब वे दोनों चुपचाप रसोई से बाहर निकल कर टेबल लगाने लगे. खाने के बाद के सारे काम निपटा कर जब मैं चीकू के कमरे में गई तो वो सो चुका था. आज इसे अकारण ही डांट दिया. बहुत बुरा लग रहा था. कॉमिक्स उसके हाथ से निकाल कर हौले से उसके बालों को सहलाया. बत्ती बंद कर  मैंने अपने कमरे की ओर रुख किया.

आश्चर्य है आज उनके हाथ में न अख़बार था न मोबाइल मुझे देख कर वे थोड़ा मुस्कराए मुझे थोड़ा अटपटा लगा. पता नहीं क्या बात है? मैं उनकी ओर पीठ घुमाकर  अपने ड्राई हाथों पर क्रीम मलने लगी. आज थोड़ी ज्यादा देर तक हाथों को क्रीम मलती रही. शायद उनके बुलाने का इंतजार कर रही थी. सोचे जा रही थी…”इतना धैर्य भी भला किस काम का? जो बोलने में भी इतना समय लगे.” मन में बोले गए वाक्य के पूरा होने की देर थी कि आवाज़ आई…”आओ!” “तुम्हें कुछ दिखाना है” ये हो क्या रहा है? शाम के खाने से लेकर अभी तक आश्चर्य ही आश्चर्य इतने आश्चर्य वाली धाराएं तो पहले कभी नहीं देखी.

मैं बिना कुछ कहे बैठ गई..वे अलमारी से एक बड़ा सा लिफाफा निकाल रहे थे. मैं सोच रहीं थीं, अभी न तो मेरा जन्मदिन है, न शादी की सालगिरह. फिर तोहफे लेने देने वाली परंपरा भी तो ज़रा कम ही है हमारे बीच.उन्होंने वो बड़ा सा लिफाफा मेरे सामने रख दिया. “ये क्या?”  “लिफाफा तो पुराना सा दिख रहा है” मुझे कुछ अजीब लगा.

मैंने धीरे से पूछा… .. ….”क्या है इसमें ?”
“आज तुम पार्लर से आकर पूछ रही थी ना…. कि क्या मुझे  कहीं भी, किसी भी रूप में कुछ सुंदरता दिखाई देती है?” “ये वही सुंदरता वाला लिफाफा है.” वे एकदम शांत और संयत आवाज़ में बोले.

अब तो सच में, मैं आश्चर्य के समुद्र में गोते लगाने लगी. देखो, अनु, “सुंदरता की सबकी अपनी परिभाषा होती है.” “सुंदरता देखने का सबका अपना अलग – अलग नज़रिया होता है.”

“किसी को तन की सुंदरता मोहित करती है, तो किसी को मन की, कोई स्वभाव की सुंदरता देखता है तो कोई भाषा की.” “कोई  प्रकृति की सुंदरता में खो जाता है, तो किसी को खेत – खलिहान में काम करने वाले उन मेहनतकश मजदूर और उन पर लगी उस माटी की सुंदरता मोहित करती है.” “कोई रसोई में खाना बनाती उस गृहिणी और उसके माथे पर आने वालेे पसीने की बूंदों में सुंदरता देखता है, जिसमें परिवार के लिए स्नेह झलकता है, जो मैं तुममें भी अक्सर देखता हूं.” “मुझे तुम्हारा वो ग्लो ज्यादा अच्छा लगता है, तो इसमें मेरा क्या कसूर है?” वे बोलते जा रहे थे. मैं अपना सिर नीचे किए बस उन्हें सुन रही थी. आंखों में आंसू डबडबाने लगे थे.

तभी लिफाफे के खुलने की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी. “ये देखो.” मैंने पनीली आंखों से देखा….”ये मां की बरसों पुरानी तस्वीर है.” मैंने देखा सासू मां की उस ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर को … एक सादी सी सुती साड़ी पहने, माथे पर बड़ी सी बिंदी, बालों की एक लंबी ढीली सी चोटी.इतनी सादगी और कितनी सुंदर. मैं मोहित हो कर देखने लगी. सचमुच सुंदर.

फिर निकली एक बड़ी सी राखी जो बचपन में बहन ने बांधी थी. उस समय वो कलाई से भी काफी बड़ी रही होगी. मुझे अपने भाई की याद गई वो भी तो ऐसी ही बड़ी सी राखी बंधवाता था और फिर सारे मोहल्ले को दिखता था. उसे याद कर मैं धीरे से हंस पड़ी.

फिर निकली एक पुरानी सी कैसेट जिसमें मेरी नानी के गाए भजन और उनके साथ की गई बातचीत की पर्ची लगी हुई थी.

पिताजी जी के साथ देखी गई फिल्म का पोस्टर. सचमुच कमाल. हमारी पहली यात्रा के टिकिट, चीकू की पहली पेंटिंग वाला कागज़. सारी चीजे इतने जतन से संभाली हुई.

अब तो मेरी बहुत कोशिश से रोकी हुई रुलाई फूट पड़ी. “देखो अनु,” “मैं तुम्हारा दिल दुखना हरगिज़ नहीं चाहता.” “पार्लर जाना कोई बुरी बात नहीं है.” “न ही मैंने तुम्हें कभी रोका है.”

“अपने आप को अच्छा रखना और लगना कोई गुनाह नहीं है.” “दरसअल, हमें जो अच्छा लगता है, हम चाहते है सामने वाले को भी वो, उसी रूप में अच्छा लगे और वो उसकी तारीफ करे,पर ऐसा हर बार जरूरी तो नहीं.”

“उसकी अपनी सोच हमसे अलग भी तो हो सकती है.” “मुझे लगता है, जब हम सुंदरता का कोई रूप देख कर खुश होते है,तो आपकी आंतरिक खुशी  चेहरे पर अपने आप आ जाती है.”

उस खुशी से चेहरा दमकने लगता है. शायद तभी चेहरे को दर्पण कहा   जाता है. बिना बोले ही कितनी बातें कह जाता है. “मेरा अपना सुंदरता का क्या नज़रिया है, वो मैंने तुम्हें बता दिया.”

“मेरा तुम्हारा मन दुखाने का कभी भी कोई मकसद नहीं होता.”  एक गहरे निःश्वास के साथ वे चुप हो गए. उस दिन मैं एक नए संवेदनशील इंसान से मिली.अब मेरी आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे. सुंदरता की ऐसी परिभाषा तो शायद मैंने पहले कभी सोची ही नहीं.आज कुछ अलग सा महसूस किया था. सच,एक नया अर्थ समझ आया था.

मुझे लगा जैसे आज संवेदनाओं की कितनी उलझने सुलझ गई थी. दूर बादलों की ओट से चांद बाहर निकल रहा था. ठीक मेरे मन की तरह. शिकवे- शिकायतों के सारे काले बादल शांत, श्वेत चांदनी में बदल गए थे. खिड़की से झांकती चांदनी मुस्कुरा रही थी.

हम दोनों खामोश थे.बस आंखें बोल रही थी. मैंने उनकी ओर देखा और  झूठ – मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा… चलिए, “अब सो जाइए. कल सुबह मुझे आलू के परांठे भी बनाने है.” “वाकई. तुम्हारे आलू परांठे होते बहुत सुंदर है.” पतिदेव एक शरारती मुस्कान लिए बोले. देखा नहीं? “उन्हें देखते ही मेरे और चीकू के चेहरे पर कितना “ग्लो”~~ आ जाता है.” हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

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