कैसे बनें अच्छे अभिभावक

अगर कोई बच्चा कोई शरारत करे, तो मांबाप क्या करेंगे? उसे 1-2 चपत लगा देंगे, डांट देंगे या अधिक से अधिक एक समय का खाना बंद कर देंगे.

मगर जापान के टोक्यो शहर में एक मांबाप ने अपने 7 साल के बच्चे को सजा के तौर पर घने जंगल में छोड़ दिया, जहां जंगली जानवरों का बोलबाला था. मांबाप को अपनी गलती का भान तब हुआ जब 5 मिनट बाद वे वापस बच्चे को लेने पहुंचे. मगर वह कहीं नहीं मिला. 1 हफ्ते तक घने जंगल में बच्चे की तलाश की गई. पूरी दुनिया में यह खबर आग की तरह फैल गई और पेरैंट्स को खूब कोसा जाने लगा.

3 जून, 2016 को यामातो तानूका नामक यह बच्चा एक मिलिटरी कैंप में मिला. वहां उस ने एक झोंपड़ी में शरण ली थी. पानी पी कर और जमीन पर सो कर उस ने खुद को जिंदा रखा था.

एक इंटरव्यू में उस बच्चे के पिता ने रुंधे गले से कहा कि उस ने यामातो से माफी मांगी.

दरअसल, कुछ पेरैंट्स बच्चे को परफैक्ट बनाने के चक्कर में कभीकभी इतनी अधिक सख्ती कर बैठते हैं कि बाद में उन्हें पछताना पड़ता है.

2011 में एमी चुआ नाम की येल प्रोफैसर ने अपनी किताब ‘बैटल हाइम औफ द टाइगर मदर’ में टाइगर मौम की अवधारणा का जिक्र किया. टाइगर मौम पेरैंट्स से तात्पर्य ऐसे स्ट्रिक्ट और डिमांडिंग पेरैंट्स से है, जो अपने बच्चों पर हर क्षेत्र में बेहतर परफौर्मैंस देने का दबाव डालते हैं. पढ़ाई के साथसाथ दूसरे अवार्ड विनिंग क्षेत्रों में भी अव्वल रखने का प्रयास करते हैं ताकि आज के प्रतियोगी युग में बच्चे अपना स्थान सुरक्षित कर सकें.

जब टाइगर पेरैंट्स के बच्चे अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं, तो वे बच्चों को भावनात्मक धमकियों के साथसाथ हलके शारीरिक दंड भी देते हैं. ऐसे पेरैंट्स बच्चों को कभी अपने फैसले स्वयं लेने की अनुमति नहीं देते.

एमी चुआ ऐसी ही स्ट्रिक्ट टाइगर मौम थी. वह स्वीकार करती है कि अपनी दोनों बेटियों लुलु और सोफिया को सब के सामने कूड़ा कहने में भी उसे कोई गुरेज नहीं था. उस का मानना है कि बच्चों की सफल परवरिश उन के मांबाप की कुशलता को दर्शाती है और बच्चों की कामयाबी मांबाप के कद को ऊंचा करती है.

य-पि आज उस की दोनों बेटियां अपने कैरियर के लिहाज से अच्छी जगह पर हैं. मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि जरूरत से ज्यादा सख्ती बरतने से बच्चों को स्कूल में ऐडजस्ट करने में दिक्कत आती है. उन का आत्मविश्वास कम होता है और उन के अवसादग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है.

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चाइना के हैंगझोऊ नामक स्थान पर किए गए एक यूथ सर्वे, जिस में 589 हाई और मिडिल स्कूल के बच्चों को शामिल किया गया, में पाया गया कि टाइगर मौम टाइप पेरैंटिंग लाभदायक नहीं. जरूरत से ज्यादा नियंत्रण बच्चों में हताशा पैदा कर सकता है.

सरोज सुपर स्पैश्यलिटी अस्पताल दिल्ली के डा. संदीप गोविल कहते हैं कि जब मांबाप तानाशाह की तरह बच्चों पर अपनी पसंद और अनुशासन थोपते हैं और उन्हें बोलने का मौका नहीं देते हैं, तो वे यह नहीं समझ पाते कि ऐसा कर वे अपने बच्चों का आत्मविश्वास खत्म कर रहे हैं. आप अपने बच्चों को अनुशासन में रखें, लेकिन जहां प्यार और आप के साथ की जरूरत हो, उन्हें यह उपलब्ध कराएं. चाहे प्यार हो या अनुशासन, एक सीमा निर्धारित करना बहुत जरूरी है. जब आप कोई भी चीज सीमा से अधिक करेंगे, तो उस का बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. अगर बच्चे को बिहेवियर प्रौब्लम है, तो आप को इस ओर ध्यान देना होगा कि आप का अपने बच्चे से रिश्ता कैसा है.

अच्छी परवरिश वह है, जिस में सहानुभूति, ईमानदारी, आत्मविश्वास, आत्मनियंत्रण, दयालुता, सहयोग, मानवता आदि गुण विकसित हों. ऐसी परवरिश बच्चे को ऐंग्जाइटी, डिप्रैशन, ईटिंग डिसऔर्डर, असामाजिक व्यवहार और नशे आदि का शिकार होने से बचाती है.

अच्छा अभिभावक बनने के लिए इन बातों का ध्यान रखें:

अत्यधिक अनुशासित पालनपोषण के नुकसान

डा. संदीप गोविल बताते हैं कि जो मातापिता अपने बच्चों को अत्यधिक अनुशासन में पालते हैं, वे हर चीज के लिए कड़े नियम बना देते हैं. पढ़ाई और सुरक्षा के नियम होने ठीक हैं, लेकिन अगर आप अपने बच्चे के जीवन के हर पहलू के लिए कड़े नियम बना देंगे तो निम्न समस्याएं खड़ी हो जाएंगी:

विद्रोह: जो बच्चे अत्यधिक कड़े नियमों में पलते हैं, उन्हें अपनी स्वतंत्रता नहीं मिलती, जो उन के लिए जिम्मेदार इनसान बनने के लिए जरूरी है. वे खुद कभी यह नहीं सीख पाते कि सही क्या है और गलत क्या है. उन में आंतरिक स्वअनुशासन विकसित नहीं हो पाता, क्योंकि उन्हें केवल नियमों का पालन करना सिखाया जाता है, खुद को नियंत्रित करना नहीं. ऐसे में कई बार बच्चों में विद्रोह करने की प्रवृत्ति पनपने लगती है.

संवाद की समस्या: स्ट्रिक्ट पेरैंट्स और बच्चों में संवाद की कमी होती है. जब बच्चों को इस बात का डर होता है कि यदि वे अपनी भावनाएं, विचार या कार्य अपने मातापिता से साझा करेंगे तो उन्हें डांट या मार पड़ेगी, तो ऐसे में वे उन से बातें छिपा लेते हैं. जब बच्चों के समक्ष कोई ऐसी समस्या आती है, जिस का समाधान वे स्वयं नहीं ढूंढ़ पाते तब भी वे अपने मातापिता से उस समस्या को साझा नहीं करते हैं.

निर्णय लेने की क्षमता: जो मातापिता अपने बच्चों को कड़े अनुशासन में रखते हैं, स्वयं निर्णय नहीं लेने देते वे बच्चे बड़े हो कर भी अपने निर्णय स्वयं नहीं ले पाते और अगर ले लेते हैं, तो उन पर डटे नहीं रहते. उन में हमेशा अपने से शक्तिशाली का अनुसरण करने की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है.

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उदाहरण प्रस्तुत करें: याद रखें, बच्चे अपने मातापिता को देख कर ही सीखते हैं. आप के कार्यों की गूंज आप के शब्दों से तेज होती है. पहले खुद अच्छे व्यवहार के द्वारा सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करें. फिर बच्चों से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा करें.

अत्यधिक प्यार न दें: अत्यधिक प्यार दे कर बच्चों को बिगाड़ें नहीं, बच्चों की हर बात न मानें, क्योंकि उन की समझ विकसित नहीं हुई होती है.

हमेशा साथ होने का एहसास कराएं: बच्चों की हर जरूरत के समय उन के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से उपलब्ध रहें. लेकिन उन्हें थोड़ा स्पेस भी दें. हमेशा उन के साथ साए की तरह न रहें.

परवरिश में बदलाव लाते रहें: बच्चे जैसेजैसे बड़े होते हैं, उन के व्यवहार में बदलाव आता है. आप 3 और 13 साल के बच्चे के साथ एकसमान व्यवहार नहीं कर सकते. जैसेजैसे बच्चों के व्यवहार में बदलाव हो, उस के अनुरूप उन के साथ अपने संबंधों में बदलाव लाएं.

नियम बनाएं: प्यार के साथ अनुशासन की भी जरूरत होती है. कड़े नियम न बनाएं. लेकिन बचपन से ही उन में जिम्मेदारी की भावना विकसित करें. उन्हें आत्मनियंत्रण के गुर सिखाएं.

बच्चों को स्वतंत्रता दें: हमेशा अपनी पसंदनापसंद बच्चों पर न थोपें. उन्हें थोड़ा स्पेस दें ताकि उन का अपना व्यक्तित्व विकसित हो सके.

बच्चों से अच्छा व्यवहार करें: बच्चों से विनम्रता से बात करें. उन के विचारों को  ध्यान से सुनें. उन से प्रेमपूर्वक व्यवहार करें. ध्यान रखें, आप के बच्चों के साथ आप का व्यवहार दूसरों के साथ उन के व्यवहार की आधारशिला है.

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बच्चों से ये बातें कभी न कहें

कभीकभी मातापिता बच्चों को ऐसी बातें कह देते हैं, जो उन के मन में घर कर जाती हैं, इसलिए ये बातें कहने से बचें:

– मैं जब तुम्हारी उम्र की थी तो अधिक जिम्मेदार थी.

– तुम तो हमेशा गलत फैसले लेते/लेती हो.

– तुम अपने भाई/बहन की तरह क्यों नहीं बनते?

– तुम्हें खुद पर शर्म आनी चाहिए.

– तुम्हारे जैसी औलाद होने से तो अच्छा होता मैं बेऔलाद होती.

– अपने गंदे दोस्तों का साथ छोड़ो.

गरमियों में बारबार पीलिया हो जाता है, इसका कारण बताएं?

सवाल-

मेरे पति की उम्र 45 साल के करीब हैं. उन्हें गरमी के मौसम में बारबार पीलिया हो जाता है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इसे रोकने का कोई उपाय है?

जवाब-

आप के पति को बारबार पीलिया होना इस बात का संकेत हो सकता है कि उन का लिवर ठीक काम नहीं कर रहा अथवा उन के हैपेटोबिलिअरी सिस्टम में संक्रमण है. बारबार पीलिया होना लिवर में किसी रोग का लक्षण है. इस का कारण जानने के लिए किसी गैस्ट्रोऐंटरोलौजिस्ट से जांच करवाएं. गरमी के मौसम और मौनसून में दूषित जल व गंदे भोजन के कारण यह बीमारी होना आम बात है. अत: केवल उबला पानी पीएं और मसालेदार, तैलीय भोजन का सेवन न करें.

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दाल जैसे, राजमा, उरद, मूंग आदि में खूब सारा प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और आयरन आदि जैसे ढेर सारे पोषक तत्‍व मिले होते हैं. अगर आप वेजिटेरियन हैं तो दालों को अपने खाने में हर रोज शामिल कीजिये. आइये देखते हैं कि कौन सी दाल में कौन से गुण छुपे हुए हैं.

1. प्रोटीन का भंडार राजमा

राजमा (किडनी बीन्स) में बहुत सारा प्रोटीन होता है. यही नहीं इसमें आयरन, फौसफोरस, मैगनीशियम और विटामिन बी9 पाया जाता है. साथ ही यह सोडियम और पोटैशियम में सबसे लो आहार हैं. राजमा में सोया प्रोडक्‍ट के मुकाबले अधिक प्रोटीन होता है.

2. मसूर दाल

मसूर दाल की प्रकृति गर्म, शुष्क, रक्तवर्द्धक एवं रक्त में गाढ़ापन लाने वाली होती है. इस दाल को खाने से बहुत शक्‍ति मिलती है. दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज व अनियमित पाचन क्रिया में मसूर की दाल का सेवन लाभकारी होता है. सौदर्य के हिसाब से भी यह दाल बहुत उपयोगी है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hunarbaaz के सेट पर Bharti Singh ने किया बच्चे के नाम का खुलासा!

टीवी की पौपुलर कौमेडियन में से एक भारती सिंह (Bharti Singh) इन दिनों अपनी प्रैग्नेंसी के चलते सुर्खियों में हैं. वहीं जल्द ही अप्रैल में वह और उनके पति हर्ष लिंबाचिया (Haarsh Limbachiyaa) पेरेंट्स बनने की तैयारी करने में जुटे हैं, जिसके चलते दोनों ने अपने बच्चे का नाम भी चुन लिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

जज से मांगा बच्चे के नाम का सुझाव

 

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इन दिनों कलर्स के रियलिटी शो  ‘हुनरबाज’ (Hunarbaaz) को होस्ट कर रहीं भारती सिंह और हर्ष लिंबाचिया हाल ही में सेट पर अपने होने वाले बच्चे का नाम का सुझाव मांगती नजर आईं थीं, जिसके जवाब में शो के जज करण जौहर ने एक सुझाव दिया, जिस पर एक्ट्रेस भारती का मजेदार रिएक्शन देखने को मिला.

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भारती सिंह ने बताया बच्चों का नाम

 

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दरअसल, भारती सिंह के सुझाव मांगने पर करण जौहर कहते नजर आते हैं कि उनके और परिणीति चोपड़ा के पास बच्चों के नाम हैं. वहीं करण जौहर और परिणीति चोपड़ा कहते हैं कि अगर बेटा हुआ तो नाम हुनर होगा और अगर बेटी होगी तो नाम बाज होगा. इस पर भारती सिंह अपने अंदाज में कहती हैं कि वह अपने बच्चों के नाम यश और रूही रख चुकी हैं और वह उनके बच्चे के नाम के लिए ऐसे सुझाव दे रहे हैं. हालांकि करण जौहर कहते हैं कि हुनर प्यारा नाम है, जिस पर भारती के पति हर्ष लिंबाचिया सहमति दिखाते हुए नजर आते हैं.

प्रैग्नेंसी में भी कर रही हैं काम

 

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हंसी मजाक के अलावा बात करें तो भारती सिंह प्रैग्नेंसी के नौंवे महीने में भी हुनरबाज के सेट पर पति संग काम करती हुई नजर आ रही हैं. हालांकि फैंस उनके इस काम की तारीफ करते हुए नजर आ रहे हैं.

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औनस्क्रीन ननद के बर्थडे में रियल लाइफ पति के साथ पहुंची अनुपमा

सीरियल अनुपमा में बीते दिनों मालविका के किरदार को खत्म करने का फैसला लिया गया, जिसके चलते इन दिनों अनेरी वजानी  (Aneri Vajani) सीरियल के सेट से दूर नजर आ रही हैं. इसी बीच एक्ट्रेस ने अपनी अनुपमा फैमिली के साथ मिलकर बर्थडे सेलिब्रेट किया. वहीं बर्थडे सेलिब्रेशन में अनुपमा यानी रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) अपने रियल लाइफ पति और अनुज यानी गौरव खन्ना के साथ नजर आईं. आइए आपको दिखाते हैं बर्थडे सेलिब्रेशन की झलक (Aneri Vajani birthday)…

ननद के बर्थडे में पहुंची

हाल ही में 26 मार्च को मालविका यानी एक्ट्रेस अनेरी वजानी ने अपना जन्मदिन सेलीब्रेट किया, जिसमें उनकी ऑनस्क्रीन होने वाली भाभी अनुपमा यानी रुपाली गांगुली अपने औनस्क्रीन पति और औफस्क्रीन होने वाली पति यानी गौरव खन्ना के साथ पहुंची जमकर फोटोज क्लिक करवाई.

फोटोज क्लिक करवाती दिखीं एक्ट्रेस

अनुपमा यानी रुपाली गांगुली ने सोशल मीडिया पर अनेरी वजानी के बर्थडे की कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह औनस्क्रीन ननद अनेरी वजानी संग जमकर मस्ती करती नजर आ रही हैं. वहीं इस मस्ती में सीरियल अनुपमा के और सितारे भी नजर आ रहे हैं. फैंस जमकर एक्ट्रेस की इन फोटोज पर कमेंट करते नजर आ रहे हैं.

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मौर्डर्न अंदाज में दिखीं बा

 

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फोटोज की बात करें तो अनेरी वाजनी के बर्थडे बैश में रुपाली गांगुली स्टारर सीरियल अनुपमा की टीम के अलावा एक्ट्रेस के रियल लाइफ हस्बैंड भी नजर आए. वहीं इस दौरान सीरियल में बा के रोल में नजर आने वाली अल्पना बलुच मौर्डर्न अंदाज में पोज देती दिखीं.

सीरियल में आएगा ट्विस्ट

 

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सीरियल अनुपमा में इन दिनों अनुज से शादी के फैसले पर पूरा शाह परिवार अनुपमा के खिलाफ खड़ा हो गया है. हालांकि किंजल, समर और बापूजी, अनुपमा के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. वहीं अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा अपनी खुशी का ऐलान करती हुई नजर आएगी और अपने फैसले पर अड़ी रहेगी, जिसके चलते उसे बा, वनराज और अपने बच्चों से बेइज्जती का सामना करना पड़ेगा.

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महिलाओं का शोषण

बेटे पैदा करने का दबाव औरतों पर कितना ज्यादा होता है इस का नमूना दिल्ली के एक गांव में मिला जिस में एक मां ने अपनी 2 माह की बेटी की गला घोंट कर हत्या कर दी और फिर उसे कुछ नहीं सुझा तो एक खराब ओवन में छिपा कर बच्ची के चोरी होने का ड्रामा करने लगी. इस औरत के पहले ही एक बेटा था और आमतौर पर औरतें एक बेटे के बाद और बेटी से खुश ही होती हैं.

हमारा समाज चाहे कुछ पढ़लिख गया हो पर धार्मिक कहानियों का दबाव आज भी इतना ज्यादा है कि हर पैदा हुई लडक़ी एक बोझ ही लगती है. हमारे यहां पौराणिक कहानियों में बेटियों को इतना अधिक कोसा जाता है कि हर गर्भवती बेटे की कल्पना करने लगती है. रामसीता की कहानी में राम तो सजा बने पर सीमा के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा. महाभारत काल की कहानी में कुंती हो या द्रौपदी या हिडिवा सब को वे काम करने पड़े थे जो बहुत सुखदायी नहीं थे.

ये कहानियां अब हमारी शिक्षा का अंग बनने लगी हैं. औरतों को त्याग की देवी का रूप कहकह कर उन का जम कर शोषण किया जाता है और वे जीवन भर रोती कलपति रहती हैं. कांग्रेसी शासन में बने कानूनों में औरतों को हक मिले पर उन का भी खमियाजा औरतों को भुगतना पड़ता है क्योंकि हर हक भोगने के लिए पुलिस और अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है और भाई या पिता को उस के साथ जाना पड़ता है तो वे उस दिन को कोसते हैं जब बेटी पैदा हुई थी. हर औरत के अवचेतन मन में इन पौराणिक कहानियों और औरतों के व्रतों, त्यौहारों से यही सोच बैठी है कि वे कमतर हैं और उन्हें ही अपने सुखों का बलिदान करना है.

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रोचक बात है कि लगभग सारे सभ्य समाज में, जहां धर्म का बोलवाला है, औरतें एक न एक अत्याचार की शिकार रहती हैं. पश्चिमी अमीर देशों में भी औरतों की स्थिति पुरुषों के मुकाबले कमजोर है और बराबर की योग्यता के बावजूद वे खास बिलिंग की शिकार रहती हैं और एक स्वर के बाद उन की पदोन्नति रूक जाती है. जब पूरे विश्व में पुरुषों का बोलबाला हो तो क्या आश्चर्य कि दिल्ली के चिराग दिल्ली गांव की नई मां को बेटे के जन्म पर अपना दोष दिखना लगा हो और गलती को सुधारने के लिए उसे मार ही डाला हो.

अब इस औरत को सजा देने की जगह मानसिक रोगी अस्पताल में कुछ दिन रखा जाना चाहिए. वह अपराधी है पर उस के अपहरण पर उसे जेल भेजा गया तो उस के पति और बेटे का जीवन दुश्वार हो जाएगा. पति न तो दूसरी शादी कर सकता है, न घर अकेले चला सकता है.

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Summer Special: लंच में परोसें वेजिटेबल बिरयानी

अपने घर में जब भी महिलाएं खाना बनाने के बारे में सोचती हैं तो उस वक्त उन्हें कुछ समझ में नहीं आता कि क्या बनाए और क्या नहीं. इस चक्कर में वह अपने घरवालों से पूछती हैं कि क्या बनाया जाए आज. उनसे भी कोई संतुष्ट जवाब न मिलने पर वे सोच में पड़ जाती हैं. तो यदि आपको कुछ और नहीं सूझ रहा बनाने के लिए तो आइए हम आपको आज बताते हैं कुछ अलग बनाना जिसे आप अपने परिवार के साथ मिलकर खा सकती हैं और रोज के खाने में बदलाव भी कर सकती हैं. आज हम बताते हैं आपको वेजिटेबल बिरयानी बनाना.

सामग्री

1. बासमती चावल – 350 ग्राम

2. कटी हुई गोभी – डेढ़ कप

3. घी या तेल – 4 टेबल स्पून

4. कटे हुए प्याज – 2

5. कटे और उबले हुए अंडे – 2

6. कटे हुए टमाटर – 3

7. धनिया पाउडर – 1 छोटा चम्मच

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8. आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर

9. हल्दी – 1 छोटा चम्मच

10. कटे हुए मशरुम – 2

11.1 कटा हुआ बैंगन

12. बींस – 1 कप, 2 हरी मिर्च

13.कटी हुई हरी धनिया

14. आधा कप काजू

15. आधा चमम्च जीरा

16. लहसुन की कली – 2

17. एक छोटी अदरक

विधि:

सबसे पहले कड़ाही में तेल डालकर गर्म करें. फिर उसमें कटे हुए प्याज़ डालकर भूनें जबतक की वो लाल न हो जाए. अब इसमें बारीक कटा हुआ लहसुन, अदरक और बाकी मसाले डालकर इसे अच्छी तरह से भूनें. जब मसाला लाल हो जाए तब इसमें टमाटर, बैंगन डालें और अच्छी तरह से चलाते रहें. थोड़ी देर के बाद इसमें लाल मिर्च पाउडर डालकर तब तक पकाएं जब तक की इसका पानी न सूख जाए. अब एक अलग बड़ा बर्तन लें और इसमें चावल, बींस, गोभी और मशरुम डालकर 15 मिनट तक पकाते रहें. जब यह पक जाए तो इस चावल में पहले तैयार किया गया मसाला मिश्रण लेकर इसमें मिलाएं. इसके साथ ही इसमें काजू भी डाल दें और कुछ देर तक चलाते रहें. अब आपका वेजिटेबल बिरयानी तैयार है. इसे कटे हुए अंडे और कटी हुई हरी धनिया से सजाकर सर्व करें.

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फूड सप्लिमैंट भी है जरूरी

आज की व्यस्त और भागदौड़ भरी जिंदगी ने हमारी लाइफस्टाइल को बहुत प्रभावित किया है. इसलिए आज एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए संतुलित व पौष्टिक आहार सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए बहुत जरूरी हो गया है.

अपने जीवन की बुनियाद स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स और अच्छे फैटी ऐसिड होते हैं जो हमारी सेहत को बेहतर बनाते हैं.

कैसा हो आहार

पौष्टिक आहार में कैलोरी, विटामिन और वसा की पर्याप्त मात्रा हमारी शारीरिक गतिविधियों के लिए बहुत जरूरी है. इन तत्त्वों वाला संतुलित आहार शरीर को मजबूत बनाता है तथा रोगों से लड़ने के लिए उस की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. एक स्वस्थ संतुलित आहार में सभी खाद्य समूहों से खाद्यपदार्थ शामिल होते हैं. लेकिन वह भोजन जिस में संतृप्त वसा, ट्रांसफैट और कोलैस्ट्रौल की मात्रा अधिक होती है, वह शरीर के कोलैस्ट्रौल के स्तर में वृद्धि करता है और स्वस्थ आहार की श्रेणी में नहीं आता.

खासतौर पर महिलाओं में अन्य शारीरिक क्रियाओं के साथसाथ दिल और दिमाग को सुचारु रूप से चलाने के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड बेहद जरूरी है. शरीर में इस की पूर्ति के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड वाले खाद्यपदार्थों के अलावा डाक्टर की सलाह से न्यूट्रिलाइट सालमन ओमेगा 3 अपने आहार में शामिल कर सकती हैं.

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अमेरिकन डायटेटिक ऐसोसिएशन के मुताबिक, पौष्टिक आहार में शामिल हैं- फलसब्जियां, गेहूं, कम चिकनाई या कम मलाई वाला दूध, अंडे और ड्राईफ्रूट्स. ऐसे आहार में सैचुरेटेड फैट कम होता है.

नोवा हौस्पिटल की डाइट और न्यूट्रिशियन कंसल्टैंट शीला कृष्णा स्वामी का कहना है कि सेहत भरा आहार ही आप की लंबी और स्वस्थ जिंदगी की चाबी है.

ऐसा आहार जिस में पोषक तत्त्व हों, आप के हृदय के लिए अच्छा होता है और आप के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है.

विटामिन और सप्लिमैंट्स

अकसर हम सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात का खाना ठीक तरह से न खा कर विटामिन और प्रोटीन की उचित मात्रा से वंचित रह जाते हैं. यों तो सब्जियां, फल और दालें हमारे शरीर के लिए जरूरी तत्त्वों का अच्छा स्रोत हैं. लेकिन इस के अलावा शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स का संतुलन बनाए रखने के लिए आप न्यूट्रिलाइट प्रोटीन और डेली को चिकित्सकीय परामर्श से अपनी डाइट का हिस्सा बना सकते हैं.

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सांवली स्किन की करें देखभाल

सांवली त्वचा के नाम से ही हम भारतीय अपनी सुंदरता में कमी महसूस करने लगते हैं. कई महिलाएं तो सांवले रंग को ले कर हीनभावना का शिकार हो जाती हैं, जबकि सांवलासलोना रंग अधिक आकर्षित करता है. अगर एक ब्यूटीशियन की नजर से देखा जाए तो हर तरह की रंगत खूबसूरत होती है. सिर्फ जरूरत है अपनी त्वचा को पहचानने की और उसे संवारने की.

सांवली त्वचा की देखभाल

रोज सुबह नहाने से पहले 1 चम्मच कच्चा दूध, 1 चुटकी नमक, 2 बूंदें नीबू का रस व 2 बूंदें शहद डाल कर 5 मिनट तक चेहरे पर लगाएं. बाद में साफ पानी से चेहरा धो लें.

हफ्ते में 2 बार चंदन व गुलाबजल का फेस पैक जरूर लगाएं.

धूप में सांवली त्वचा गोरी त्वचा से ज्यादा प्रभावित होती है. इसलिए हमेशा सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.

किसी अच्छी कंपनी के वाइटनिंग फेस वाश से चेहरे को दिन में 2 बार जरूर धोएं.

रात को सोते समय अपनी त्वचा के अनुसार वाइटनिंग क्रीम लगाएं.

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भोजन

दिन में 10-12 गिलास पानी जरूर पीएं.

संतरा, मौसमी, अनन्नास और आंवला जैसे फल अधिक खाएं.

विटामिन सी वाली चीजें अधिक इस्तेमाल करें.

दिन में 2 बार दूध पीएं.

खाली पेट खुली हवा में सैर करें.

वस्त्र

सांवली त्वचा वालों को अधिक भड़कीले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए.

नीला, हरा और पीला रंग कम पहनें.

मिक्स रंग भी कम पहनें.

हलका गुलाबी, मैरून, आसमानी, हलके जामुनी आदि रंग अधिक पहनें.

मेकअप

हलकाफुलका मेकअप करें. अपने चेहरे को पाउडर या फाउंडेशन की मोटी परत से न ढकें. रंग को अधिक गोरा दिखाने वाला फाउंडेशन न लगाएं. गोल्डन आइवरी कलर का फाउंडेशन इस्तेमाल करें. सांवली रंगत पर आंखों में काजल अच्छा लगता है. आईलाइनर और मस्कारा भी जरूर लगाएं. रंगबिरंगा आईलाइनर लगाया जा सकता है पर रंग अधिक शोख नहीं होने चाहिए. ग्रे या भूरे रंग के लेंस भी लगाए जा सकते हैं. ब्लशआन का रंग गाजरी, पीच या गुलाबी होना चाहिए. चेहरा कभी भी रूखा नहीं लगना चाहिए. चेहरे पर मास्चराइजर अवश्य लगाएं. गुलाबी, मैरून या ब्राउन लिपस्टिक अच्छी लगेगी.

सांवली त्वचा पर बालों का रंग ब्राउन या काला होना चाहिए. बालों को हफ्ते में 2 बार शैंपू से अवश्य धोएं. कंडीशनर करें और बालों में हेयर सीरम लगाएं. बालों की स्ट्रेटनिंग भी करा सकती हैं. इस प्रकार अगर आप सांवलीसलोनी त्वचा को संवारती रहें तो आप की सुंदरता में चार चांद लग जाएंगे.

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सुख की गारंटी नहीं शादी

लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स के प्रोफैसर (जो हैप्पीनैस ऐक्सपर्ट भी हैं) पाल डोलन के शब्दों में, ‘‘शादी पुरुषों के लिए तो फायदेमंद है, लेकिन महिलाओं के लिए नहीं. इसलिए महिलाओं को शादी के लिए परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि वे बिना पति के ज्यादा खुश रह सकती हैं खासकर मध्य आयुवर्ग की विवाहित महिलाओं में अपनी हमउम्र अविवाहित महिलाओं की तुलना में शारीरिक और मानसिक परेशानियां होने का ज्यादा खतरा होता है. इस से वे मर भी जल्दी सकती हैं.’’

विवाहित महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं ज्यादा खुश रहती हैं. शादीशुदा, कुंआरे, तलाकशुदा, विधवा और अलग रहने वाले लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर पाल डोलन का कहना है कि आबादी में जो हिस्सा सब से स्वस्थ और खुशहाल रहता है वह उन महिलाओं का है जिन्होंने कभी शादी नहीं की और जिन के बच्चे नहीं हैं. उन के मुताबिक जब पतिपत्नी एकसाथ होते हैं और उन से पूछा जाए कि वे कितने खुश हैं तो उन का कहना होता है कि वे बहुत खुश हैं. लेकिन जब पति या पत्नी साथ में नहीं हों तो वे स्वाभाविक रूप से यह कहते सुने जा सकते हैं कि जिंदगी दूभर हो गई है.

अगर कहीं भी शादी की बात पर बहस होती है तो शादी की जरूरत के कई कारण बताए जाते हैं जैसे नई सृष्टि की रचना, भावनात्मक सुरक्षा, सामाजिक व्यवस्था, औरत मां बन कर ही पूरी होती है, स्त्रीपुरुष एकदूसरे के पूरक हैं, समाज में अराजकता रोकने में सहायक आदि. ये सारे कारण शादी को महज एक जरूरत का दर्जा देते हैं, मगर कोई यह नहीं कहता कि हम ने शादी अपनी खुशी के लिए की है.

ज्यादातर घरों में लड़कियों को बचपन से शादी कर के खुशीखुशी घर बसाने के सपने दिखाए जाते हैं. हर बात के पीछे उन्हें समझया जाता है कि शादी के बाद वे अपने मन का कर सकेंगी, शादी के बाद बहुत प्यार मिलेगा, शादी के बाद अपने घर जाएंगी या फिर शादी के बाद ही उन का जीवन सार्थक होगा वगैरहवगैरह. मगर सच तो यह है कि शादी के बाद भी बहुत सी लड़कियों के सपने हकीकत के आईने में बेरंग ही नजर आते हैं.

अपना घर

घर की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा लड़कियों के मन में बचपन से यह बात भरी जाती है कि मां का घर उस का अपना नहीं है. उसे मायका छोड़ कर ससुराल जाना पड़ेगा और वही उस का अपना घर कहलाएगा. ससुराल पहुंच कर लड़की को पता चलता है कि वह इस घर में बाहर से आई है और कभी सगी नहीं कहलाएगी. वह बहू ही रहेगी कभी बेटी नहीं हो सकती.

मायके के पास पैसों की कितनी भी कमी हो पर लड़की को कभी महसूस नहीं होने देते, जबकि ससुराल कितनी भी धनदौलत से पूर्ण हो पर बहू को अपनी सीमा में रहना होता है. शुरुआत में कई साल उसे घरपरिवार के किसी भी मसले में बोलने का हक नहीं दिया जाता. ससुराल वाले कितने भी एडवांस हों, मगर बहू तो बहू ही होती है. वह बेटे या बेटी की बराबरी नहीं कर सकती.

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अकेलापन

लड़कियों को बचपन से शादी के सपने दिखाए जाते हैं. जिस लड़की की किसी कारणवश शादी नहीं हो पाती या फिर वह स्वयं शादी करना नहीं चाहती तो मांबाप या रिश्तेदारों के साथसाथ सारा समाज उसे सिखाता है कि शादी के बाद ही लाइफ सैटल हो पाती है. शादी के बिना जीवन में कुछ भी नहीं रखा. भले ही वह लड़की सैल्फ डिपैंडैंट हो, अच्छा कमा रही हो मगर उसे बुढ़ापे का डर जरूर दिखाया जाता है.

उसे बताया जाता है कि जब घर में सब खुद के परिवारों में व्यस्त हो जाएंगे तो वह अकेली रह जाएगी. यह सोच काफी हद तक सही है क्योंकि समय के साथ जब मांबाप चले जाते हैं और भाईबहन अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं तब अविवाहित लड़की खुद को अकेला महसूस करती है. मगर इस का समाधान कठिन नहीं. यदि वह अपने काम में व्यस्त रहे और रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ अच्छे संबंध बना कर रखे तो इस तरह की समस्या नहीं आती.

बात पते की

लड़कियों को बचपन से यह भी सिखाया जाता है कि एक औरत मां बनने के बाद ही पूर्ण होती है. लड़कियों पर कम उम्र में ही शादी के लिए दबाव डाला जाता है ताकि वे सही उम्र में मां बन जाएं. मां बनना जीवन की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है मगर जरा सोचिए इस के कारण लड़की को सब से पहले तो अपनी पढ़ाई और कैरियर बीच में छोड़ना पड़ता है. फिर वह शादी कर दूसरे घर आ जाती है और वहां एडजस्टमैंट कर ही रही होती है कि हर तरफ से बच्चे के लिए दबाव पड़ने लगती है.

सही समय पर बच्चे हो गए तो सब अच्छा है पर मान लीजिए किसी कारण से बच्चे नहीं हुए तब क्या होता है? दबी आवाज में उस पर ही इलजाम लगाए जाते हैं. उसे बांझ कह कर पुकारा जाता है. सालोंसाल बच्चे की चाह में घर वाले उसे पंडेपुजारियों और झड़फूंक वालों के पास ले जाते हैं. इन सब के बीच उस महिला को कितना मैंटल स्ट्रैस होता होगा यह बात समझनी भी जरूरी है.

शादी के बाद पति गलत आदतों का शिकार निकल जाए तो जरूरी नहीं कि आप की जिंदगी खुशहाल ही रहेगी. शादी के समय आप को यह पता नहीं होता कि आप का पति कैसा है? पति अच्छा निकला तो लड़की सुकूनभरी जिंदगी जीती है, मगर जरूरी नहीं कि हमेशा ऐसा ही हो. कितनी ही लड़कियां शादी के बाद अपने शराबी पति के अत्याचारों का शिकार बन जाती हैं तो कुछ पति की बेवफाई से परेशान रहती हैं.

कुछ के पति बिजनैस डुबो देते हैं तो कुछ दोस्तबाजी के चक्कर में बीवी को रुलाते रहते हैं. बहुत से पति ऐसे भी होते हैं जो पत्नी के साथ मारपीट करते हैं और उसे अपने पैरों की जूती से ज्यादा नहीं समझते. ऐसे में आप यह कैसे कह सकते हैं कि शादी के बाद लड़की को सुख ही मिलेगा और उस का जीवन संवर जाएगा? संभव तो यह भी है न कि उस की जिंदगी बरबाद ही हो जाए और उसे उम्रभर घुटघुट कर जीना पड़े.

ससुराल वालों के सितम

कई बार ऐसा भी होता है कि मांबाप तो अच्छा घर देख कर बेटी की शादी करते हैं, मगर नतीजा उलटा निकलता है. बहुत से मामलों में ससुराल वाले लड़की पर जुल्म करते हैं. कभी दहेज के लिए धमकाते हैं तो कभी घरेलू हिंसा करते हैं. बहुत सी लड़कियों को ससुराल में जिंदा जला दिया जाता है. कुछ घरों में ऊपरी तौर पर भले ही कुछ न किया जाए पर दिनरात ताने दिए जाते हैं, बुराभला कहा जाता है.

अकसर सास बहू के खिलाफ बेटे के कान भरती पाई जाती है. ऐसे हालात में लड़की को शादी के बाद घुटघुट कर जीना पड़ता है और उस की जिंदगी खुशहाल होने के बजाय बरबाद हो जाती है.

मांबाप का कर्तव्य है कि वे अपनी बेटियों को हमेशा अप्रत्याशित के लिए तैयार रहने के काबिल बनाएं. शादी के बाद भी ऐसा बहुत कुछ हो सकता है जिस का मुकाबला करने के लिए खुद को मजबूत बनाना पड़ता है और दिमाग से ही नहीं, मन से व तन से भी. बेहतर होगा कि मातापिता बेटियों पर शादी के लिए दबाव डालने के बजाय उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएं.

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शादी मजबूरी क्यों

एक शादीशुदा महिला ही जानती है कि शादी के बाद असल में उसे क्याक्या ?ोलना पड़ता है. यही वजह है कि आज बहुत सी लड़कियां शादी करना नहीं चाहतीं. उन का मानना है कि जब वे खुद कमा रही हैं और शांति से जी रही हैं तो फिर शादी कर के अपनी परेशानियां क्यों बढ़ाएं. दरअसल, हमारा सामाजिक तानाबाना ही इस तरह का रहा है जहां यह माना जाता है कि महिलाओं का काम घर संभालना और बच्चे पैदा करना होता है जबकि पुरुषों का काम कमाना और महिलाओं को संरक्षण देना. लेकिन वक्त के साथ महिलाओं और पुरुषों के रोल बदल रहे हैं. ऐसे में सोच बदलनी भी जरूरी है.

यह सही है कि अविवाहित जीवन में महिलाओं को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. मगर शादी भी इंसान को अनेक सामाजिक व पारिवारिक झंझटों में फंसाती है. तो फिर अविवाहित जीवन को गलत या हेय क्यों माना जाए? क्यों न लड़कियों को खुद तय करने दिया जाए कि उन्हें क्या करना है?

30-35 साल से ऊपर की अविवाहित महिला अब भी लोगों की आंखों में खटकती है. लड़की भले ही कितना भी पढ़लिख ले और ऊंचे पद पर पहुंच जाए, लेकिन उसे ससुराल भेज कर ही मातापिता के सिर से बोझ उतरता है. ज्यादातर लोगों की सोच यह होती है कि 30 साल से ऊपर की अविवाहित लड़की सुखी हो ही नहीं सकती.

सुख का सीधा संबंध शादी से है. मगर सच तो यह है कि सुखी या दुखी और खुश या नाखुश होने की परिभाषा सब के लिए अलगअलग होती है. ऐसी बहुत सी अविवाहित महिलाएं हैं जो 30 के ऊपर हैं और अपनेआप में पूर्ण हैं. आप मदर टेरेसा, लता मंगेशकर, पीनाज मसानी, बरखा दत्त, सोनल मान सिंह जैसी बहुत सी महिलाओं का नाम ले सकते हैं. हम यदि कहीं भी अचीवर्स लिस्ट ढूंढ़ते हैं तो कभी भी शादी क्राइटेरिया नहीं होता यानी जीवन में आप की खुशी शादी पर निर्भर नहीं करती.

मातापिता का कर्तव्य है कि बच्चों को शिक्षित करें, आत्मनिर्भर बनाएं और उस के बाद अपने जीवन के निर्णय ख़ुद लेने दें. सब के सुख अलगअलग होते हैं. सुख को अगर परिभाषित करें तो कोई भी इंसान जब अपने मन की करता है या कर पाता है शायद तभी वह सब से सुखद स्थिति में होता है.

विवाह तभी करना चाहिए जब आप किसी को इतना चाहें कि उस के साथ जीवन बिताना चाहें. मगर जिस की शादी में रुचि न हो उसे कभी भी नहीं करनी चाहिए. प्रेम हो तो शादी करें, मगर उस में भी खुशी मिलेगी ही यह कहा नहीं जा सकता. जीवन में खुशियां चुननी पड़ती हैं. कोई हाथ में रख कर नहीं देता. खुशियां पाने का यत्न हम सभी करते हैं. कभी सफल होते हैं तो कभी असफल. विवाह करना या न करना व्यक्ति का निजी मामला है. इस में कोई कुछ नहीं कह सकता. हमारे समाज में शादीशुदा, अविवाहित और समलैंगिक के लिए व्यक्ति के स्तर पर समान इज्जत होनी चाहिए. कोई क्या चुनता है यह व्यक्तिगत मसला है.

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मौडर्न लाइफस्टाइल का हिस्सा Kitchen Gadget

आधुनिक किचन गैजेट्स हमारी सफलता का हिस्सा नहीं वरन लाइफस्टाइल के लिए जरूरी चीजें हैं. अगर हमारी परनानी, परदादी या उन से भी पहले की पीढ़ी किचन के नएनए उपकरणों को देख लें तो गश ही खा जाएं. आज से 5 दशक पूर्व अधिकांश घरों में प्रैशर कुकर, गैस स्टोव, माइक्रोवेव ओवन जैसी जरूरी चीजें देखने को नहीं मिलती थीं और महिलाओं का अधिकांश समय किचन में ही बीतता था. मगर अब जमाना बदल गया है. अब प्रैशरकुकर, माइक्रोवेव, ओ.टी.जी. गैस चूल्हा आदि गैजेट्स हमारे किचन के जरूरी हिस्से बन गए हैं. अब कुछ खास किचन गैजेट्स तो औनलाइन भी खरीदे जा सकते हैं. बाजार में इन घरेलू किचन उपकरणों की लंबी रेंज व विभिन्न ब्रांड मौजूद हैं. बस, जरूरत है उन्हें देखने, समझने और उन की कीमत जानने की. साथ ही यह भी सोचना जरूरी है कि क्या वे आप के किचन के लिए जरूरी हैं या नहीं. आइए, डालें एक नजर ऐसे गैजेट्स पर :

झटपट बनाएं चाय/कौफी

किचन गैजेट्स में एक ऐसा उपकरण जुड़ गया है, जिस की जरूरत हम सब को काफी पहले से थी. वह है टी मेकर और कौफी मेकर. मरफी का 1.5 लीटर वाला स्टील का टी मेकर मार्केट में उपलब्ध है. इस में चाय की पत्ती, चीनी, दूध सब डाल कर मिनटों में चाय बनाई जा सकती है. इस के अंदर छलनी भी लगी है और चाय बनने पर इस को कौर्ड से अलग भी किया जा सकता है. सीधे चाय कपों में डालिए. इस के अलावा यह 1/2 लीटर में भी उपलब्ध है. यह सिर्फ सफेद और स्टील कलर में मौजूद है. इस के अलावा चाय बनाने के लिए पानी उबालने वाली कौर्डलैस कैटल भी मौजूद है. इन सभी की विशेषता है कि पानी उबलने पर अपनेआप स्विच औफ हो जाता है. उबले पानी में मिल्क पाउडर, शुगर और टी का सैशे डालें और चाय तैयार है.

अन्य उपयोग : कौर्डलैस कैटल में 3 मिनट में  पानी उबल जाता है. यदि उबला पानी पीना है तो यह अच्छा विकल्प है. इस में अंडे भी उबाले जा सकते हैं. सूप भी बनाया जा सकता है.

विशेषता : यह शौकफ्रूफ है और इस का इस्तेमाल आसान है. पर्यटन के दौरान अपने साथ इसे ले जाया जा सकता है.

कीमत : 995 से शुरू हो कर 1,295 तक व इस से भी अधिक. यह फिलिप्स, टेफौल आदि ब्रांडों में उपलब्ध है.

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इंडक्शन कुक टौप

खाना बनाने के लिए गैस चूल्हे तो कई प्रकार के मौजूद हैं पर अब आ गया है हौट प्लेट स्टाइल में इंडक्शन कुक टौप. यह प्रैस्टिज का है. इस में इसी कंपनी के 4-5 बरतन प्रयोग में आते हैं जैसे प्रैस्टिज का कुकर, नौनस्टिक कड़ाही, सौसपैन, तवा आदि. बरतन ऐसे जो नीचे से चपटे हों. इस में एकसमान ताप का प्रयोग होता है, जिस की वजह से सब्जी जलने का डर भी नहीं रहता और खाना भी जल्दी बनता है.

कीमत : प्रैस्टिज इंडक्शन कुक टौप- 3,595 से 4,495 तक.

टोस्टर, सैंडविच मेकर-ग्रिलर

अब देश के बाहर ही नहीं हमारे देश में भी ज्यादातर घरों में नाश्ते में टोस्ट, सैंडविच आदि का प्रयोग होता है. ब्रैड टोस्ट करने के लिए 2 स्लाइस वाले व 4 स्लाइस वाले विभिन्न ब्रांडों के पौपअप टोस्टर मौजूद हैं. जैसे मरफी, बजाज आदि. इन में रेगुलेटर भी होता है. जिसे करारी ब्रैड खानी है या हलकी सिंकी, उस के लिए रेगुलेटर अपने हिसाब से सैट कर के सेंका जा सकता है. इस में सिंकने के बाद ब्रैड स्वयं ही ऊपर आ जाती है. सैंडविच मेकर अकेला ही आता है व एक में ही 3 काम वाला भी, जैसे सैंडविच सिंकने के अलावा ग्रिल करने के लिए, वैफर्स बनाने के लिए भी.

अन्य उपयोग : इन की विशेषता है कि ये अंदर से नौनस्टिक होते हैं. इन में बहुत कम तेल में चीला, पिज्जा आदि भी बनाए जा सकते हैं.

रखरखाव

टोस्टर है तो उस के नीचे लगी प्लेट को बाहर निकाल कर टोस्ट के गिरे चूरे को फेंक दें.

इस के बाहर के हिस्से को गीले कपड़े से साफ करें.

सैंडविच मेकर को खुला रखें. प्रयोग में लाने के बाद जब ठंडा हो जाए तो हलके गीले कपड़े से पोंछ दें.

पानी से मशीन को धोना नहीं चाहिए.

मास्टर शैफ हैंड ब्लैंडर, चौपर

घरों के लिए फूड प्रौसेसर, मिक्सी आदि काफी उपयोगी मानी जाती है. आमतौर पर आजकल हर गृहिणी के पास मिक्सी मिल ही जाएगी, चाहे दहीबड़े के लिए दाल पीसनी हो या गरममसाले, धनिया आदि. मिक्सी पर सब कुछ आसानी से तैयार हो जाता है. पर रोजमर्रा के कामों के लिए हैंड ब्लैंडर, चौपर की उपयोगिता भी काफी बढ़ गई है. एक तरफ प्याज, अदरक, लहसुन मिनटों में चौप किया, उतनी देर में कड़ाही में तेल गरम हो जाता है. यह थोड़ी सी जगह में आ जाता है. जब जरूरत हो फटाफट काम निबट जाता है. एक तरह से मिनी शैफ बन गया है यह घर के लिए.

ये विभिन्न ब्रांडों में व विभिन्न वाट्स में मौजूद हैं. ये जितनी हाई पावर के होंगे उतनी ही कीमत ज्यादा होगी. ये 3 या 2 जार में मिलते हैं. एक में शेक बनाना हो या प्याज, टमाटर, पीसना हो, दूसरा चौप करने के लिए और तीसरा चटनी मेकर. मिक्सी आज के समय में छोटे घरों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रही है. अलग से सिर्फ चौपर भी मौजूद है, जिस की कीमत कम होती है.

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कीमत : 1,950 से 4,495 या उस से भी ज्यादा.

इलैक्ट्रिक तंदूर

रोस्टेड खाना अब लोगों को खूब पसंद आने लगा है, जिसे बनाना अब घर में भी  संभव हो गया है. इलैक्ट्रिक तंदूर पहले बिना रेगुलेटर के आते थे, जिन में तापमान स्वयं देखना पड़ता था पर अब तापमान को नियंत्रित करने वाले इलैक्ट्रिक तंदूर आ गए हैं. इन में तंदूरी आलू, फूलगोभी, चपाती, नान, मिस्सी रोटी आदि जो चाहें, वह इन की टे्र में डालें और मिनटों में पका, भुना हुआ सामान तैयार है. नौनवेज वालों के लिए भी यह अच्छा गैजेट है.

विशेषता : इस में बहुत कम तेल या बिना तेल डाले भी आप मसाले वाली मूंगफली, ब्रैड पकोड़ा, भरवां परांठे आदि बना सकती हैं.

कीमत : ग्लैमर, ग्लेन का 2,095.

 कहने का मतलब है कि आजकल बाजार में कई प्रकार की रसोई के उपकरण भरे पड़े हैं, बस, जरूरत है अपनी जरूरत के अनुसार उन्हें खरीदने व प्रयोग करने की.

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