Hindi Social Story: इंद्रधनुष का आठवां रंग

Hindi Social Story: वसुधा की नजरें अभी भी दरवाजे पर ही टिकी थीं. इसी दरवाजे से अभीअभी रावी अपने पति के साथ निकली थी. पीली साड़ी, सादगी से बनाया जूड़ा, माथे पर बिंदिया, मांग में सिंदूर, हाथों में भरीभरी चूडि़यां… कुल मिला कर संपूर्ण भारतीय नारी की छवि को साकार करती रावी बहुत खूबसूरत लग रही थी. गोद में लिए नन्हे बच्चे ने एक स्त्री को मां के रूप में परिवर्तित कर कितना गरिमामय बना दिया था.

वसुधा ने अपना सिर कुरसी पर टिका आराम की मुद्रा में आंखें बंद कर लीं. उन की आंखों में 3-4 साल पहले के वे दिन चलचित्र की भांति घूम गए जब रावी के मम्मीपापा उसे काउंसलिंग के लिए वसुधा के पास लाए थे.

वसुधा सरकारी हौस्पिटल में मनोवैज्ञानिक हैं, साथ ही सोशल काउंसलर भी. हौस्पिटल के व्यस्त लमहों में से कुछ पल निकाल कर वे सोशल काउंसलिंग करती हैं. अवसाद से घिरे और जिंदगी से हारे हताशनिराश लोगों को अंधेरे से बाहर निकाल कर उन्हें फिर से जिंदगी के रंगों से परिचित करवाना ही उन का एकमात्र उद्देश्य है.

रावी को 3-4 साल पहले वसुधा के हौस्पिटल में भरती करवाया गया था. छत के पंखे से लटक कर आत्महत्या की कोशिश की थी उस ने, मगर वक्त रहते उस की मां ने देख लिया और उसे तुरंत हौस्पिटल लाया गया. समय पर चिकित्सा सुविधा मिलने से रावी को बचा लिया गया था. मगर वसुधा पहली ही नजर में भांप गई थीं कि उस के शरीर से भी ज्यादा उस का मन आहत और जख्मी है.

वसुधा ने हकीकत जानने के लिए रावी की मां शांति से बात की. पहले तो वे नानुकुर करती टालती रहीं, मगर जब वसुधा ने उन्हें पूरी बात को गोपनीय रखने और उन की मदद करने का भरोसा दिलाया तब जा कर उन्होंने अपने आधेअधूरे शब्दों और इशारों से जो बताया उसे सुन कर वसुधा का मासूम रावी पर स्नेह उमड़ आया.

शांति ने उन्हें बताया, ‘‘रावी दुराचार का शिकार हुई है और वह भी अपने पिता के खास दोस्त के द्वारा. पिता का जिगरी दोस्त होने के नाते उन के घर में उस का बिना रोकटोक आनाजाना था. कोई शक करे भी तो कैसे? उस की सब से छोटी बेटी रावी की सहेली भी थी. दोनों एक ही क्लास में पढ़ती थीं. एक दिन रावी अपनी सहेली से एक प्रोजैक्ट फाइल लेने उस के घर गई. सहेली अपनी मां के साथ बाजार गई हुई थी. अत: उस के पापा ने कहा कि तेरी सहेली का बैग अंदर रखा है. अंदर जा कर ले ले जो भी लेना है. उस के बाद जब रावी वापस घर आई, तो चुपचाप कमरे में जा कर सो गई. सुबह उसे तेज बुखार चढ़ गया. हम ने इसे काफी हलके में लिया. कई दिन तक जब रावी कालेज भी नहीं गई, तो हम ने सोचा शायद पीरियड नहीं लग रहे होंगे.

‘‘फिर एक दिन जब इन के दोस्त घर आए तो हमेशा की तरह उन्हें पानी का गिलास देने को भागने वाली रावी कमरे में जा कर छिप गई. तब मेरा माथा ठनका. मैं ने रावी का सिर सहलाते हुए उसे विश्वास में लिया, तो उस ने सुबकतेसुबकते इस घिनौनी घटना का जिक्र किया, जिसे सुन कर मेरे तनबदन में आग लग गई. मैं ने तुरंत इस के पिता से पुलिस में शिकायत करने को कहा. मगर इन्होंने मुझे शांति से काम लेने को कह समझाया कि पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करा कर केस करना तो बहुत आसान है, मगर उस की पेशियां भुगतना बहुत कष्टदाई होता है. अपराधी को सजा दिलवाना तो नाकों चने चबाना जैसा होता है. सब से पहले तो अपराध को साबित करना ही मुश्किल होता है, क्योंकि ऐसे केस में कोई गवाह नहीं होता. फिर हर पेशी पर जब रावी को वकीलों के नंगे करते सवालों के जवाब देने पड़ेंगे, तो हमारी फूल सी बेटी को फिर से उस हादसे को जीना पड़ेगा. अभी तो यह बात सिर्फ हमारे बीच में ही है, जब समाज में चली जाएगी तो बेटी का जीना मुश्किल हो जाएगा. पूरी जिंदगी पड़ी है उस के सामने… कौन ब्याहेगा उसे?’’

कुछ देर रुक शांति ने एक उदास सी सांस ली और फिर आगे कहना शुरू किया, ‘‘बेटी का हाल देख कर मन तो करता था कि उस दरिंदे को भरे बाजार गोली मार दूं, मगर पति की बात में भी सचाई थी. बेटी का वर्तमान तो खराब हो ही चुका था कम से कम उस का भविष्य तो खराब न हो, यही सोच कर हम ने कलेजे पर पत्थर रख लिया. रावी को समझाबुझा कर फिर से कालेज जाने को राजी किया. भाई उसे लेने और छोड़ने जाता. मैं भी सारा दिन उस के आसपास ही रहती. उसे आगापीछा समझाती, मगर उस की उदासी दूर नहीं कर सकी. इसी बीच एक दिन मैं थोड़ी देर के लिए पड़ोसिन के घर किसी काम से गई, तो इस ने यह कदम उठा लिया.’’

वसुधा बड़े ध्यान से सारा घटनाक्रम सुन रही थीं. जैसे ही शांति ने अपनी बात खत्म की, वसुधा जैसे नींद से जागीं. यों लग रहा था मानो वे सुन नहीं रही थीं, बल्कि इस सारे घटनाक्रम को जी रही थीं. उन्होंने शांति से रावी को अपने घर लाने के लिए कहा.

पहली बार वसुधा के सामने रावी ने अपनी जबान नहीं खोली. चुपचाप आंखें नीचे किए रही. दूसरी बार भी कुछ ऐसा ही हुआ. बस फर्क इतना था कि इस बार रावी ने नजरें उठा कर वसुधा की तरफ देखा था. इसी तरह 2 और सिटिंग्स हुईं. वसुधा उसे हर तरह से समझाने की कोशिश करतीं, मगर रावी चुपचाप खाली दीवारों को ताकती रहती.

एक दिन रावी ने बहुत ही ठहरे हुए शब्दों में वसुधा से कहा, ‘‘बहुत आसान होता है सब कुछ भूल कर आगे बढ़ने और जीने की सलाह देना. मगर जो मेरे साथ घटित हुआ वह मिट्टी पर लिखा वाक्य नहीं, जिसे पानी की लहरों से मिटा दिया जाए… आप समझ ही नहीं सकतीं उस दर्द को जो मैं ने भोगा है…जब दर्द देने वाला कोई अपना ही हो तो तन से भी ज्यादा मन लहूलुहान होता है,’’ और फिर वह फफक पड़ी.

वसुधा उसे सीने से लगा कर मन ही मन बुदबुदाईं कि यह दर्द मुझ से बेहतर और कौन समझ सकता है मेरी बच्ची.

रावी ने आश्चर्य से वसुधा की ओर देखा. उन की छलकी आंखें देख कर वह अपना रोना भूल गई. वसुधा उस की बांह थाम कर उसे 20 वर्ष पहले की यादों की गलियों में ले गईं.

‘‘स्कूल के अंतिम वर्ष में फेयरवैल पार्टी से लौटते वक्त रात अधिक हो गई थी. मैं और मेरी सहेली रूपा दोनों परेशान सी औटो की राह देख रही थीं. तभी एक कार हमारे पास आ कर रुकी. हम दोनों कुछ समझ पातीं, उस से पहले ही 2 गुंडों ने मुझे कार में खींच लिया. रूपा अंधेरे का फायदा उठा कर भागने में कामयाब हो गई. उस ने किसी तरह मेरे घर वालों को खबर दी. मगर जब तक वे मुझ तक पहुंच पाते गुंडे मेरी इज्जत को तारतार कर मुझे बेहोशी की हालत में सड़क के किनारे फेंक कर जा चुके थे.

‘‘मुझे अधमरी हालत में घर लाया गया. मांपापा रोतेधोते खुद को कोसते रह गए. मुझे अपनेआप से घिन होने लगी. मैं ने कालेज जाना छोड़ दिया. घंटों बाथरूम में अपने शरीर को रगड़रगड़ कर नहाती, मगर फिर भी उस लिजलिजे स्पर्श से अपनेआप को आजाद नहीं कर पाती. मुझे लगता मानो सैकड़ों कौकरोच मेरे शरीर पर रेंग रहे हों. एक दिन मुझे एहसास हुआ कि उस हादसे का अंश मेरे भीतर आकार

ले रहा है. तब मैं ने भी तुम्हारी ही तरह अपनी जान देने की कोशिश की, मगर जान देना इतना आसान नहीं था. मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. मैं बिलकुल टूट चुकी थी. मेरी इस मुश्किल घड़ी में मेरी मां मेरे साथ थीं. उन्होंने मुझे समझाया कि मैं क्यों उस अपराध की सजा अपनेआप को देने पर तुली हूं, जो मैं ने किया ही नहीं…शर्म मुझे नहीं उन दरिंदों को आनी चाहिए… धिक्कार उन्हें होना चाहिए…

‘‘और एक दिन मां मुझे अपनी जानपहचान की डाक्टर के पास ले गईं. उन्होंने मुझे इस पाप की निशानी से छुटकारा दिलाया. वह मेरा नया जन्म था और उसी दिन मैं ने ठान लिया था कि आज से मैं अपने लिए नहीं, बल्कि अपने जैसों के लिए जीऊंगी. मुझे खुशी होगी, अगर मैं तुम्हें वापस जीना सिखा सकूं,’’ वसुधा ने सब कुछ एक ही सांस में कह डाला मानो वे भी आज एक बोझ से मुक्त हुई हों.

‘‘आप को समाज से डर नहीं लगा?’’ रावी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कैसा डर? किस समाज से… अब मैं हर डर से आजाद हो चुकी थी. वैसे भी मेरे पास खोने के लिए बचा ही क्या था. अब तो मुझे सब कुछ वापस पाना था.’’

‘‘फिर क्या हुआ? मेरा मतलब. आप यहां, इस मुकाम तक कैसे पहुंचीं?’’ रावी को अभी भी वसुधा की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था.

‘‘उस हादसे को भूलने के लिए मैं ने वह शहर छोड़ दिया. आगे की पढ़ाई मैं ने होस्टल में रह कर पूरी की. अब बस मेरा एक मात्र लक्ष्य था मनोविज्ञान में मास्टर डिगरी हासिल करना ताकि मैं इनसान के मन के भीतर की उस तह तक पहुंच सकूं जहां वह अपने सारे अवसाद, राज और विकार छिपा कर रखता है. मैं ने अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना कर अपनी लड़ाई लड़ी और उस पर विजय पाई,’’ थोड़ी देर रुक कर वसुधा ने रावी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहना जारी रखा, ‘‘बेटा, हमें यह जीवन कुदरत ने जीने के लिए दिया है. किसी और के कुकर्मों की सजा हम अपनेआप को क्यों दें? तुम्हें भी बहादुरी से अपनी लड़ाई लड़नी है… अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है… तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो…और हां, अपने बच्चे के नामकरण पर मुझे जरूर बुलाना,’’ वसुधा ने रावी के चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश की.

‘‘आप ने शादीक्यों नहीं की?’’ रावी ने यह जलता प्रश्न उछाला, तो इस बार उस की लपटें वसुधा के आंचल तक जा पहुंचीं. एक लंबी सांस ले कर वे बोलीं, ‘‘हां, यहां मैं चूक गई. मेरे साथ पढ़ने वाले डा. नमन ने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था. मैं भी उन्हें पसंद करती थी, मगर मेरी साफगोई शायद उन्हें पसंद नहीं आई. मैं ने शादी से पहले उन्हें अपने बारे में सब कुछ बता दिया, जिसे उन का पुरुषोचित अहं स्वीकार नहीं कर पाया. हालांकि उन्होंने शादी करने से मना नहीं किया था, मगर मैं ही पीछे हट गई. अब मुझे उन के प्यार में दया की बू आने लगी थी और इस मुकाम पर पहुंचने के बाद मैं किसी की दया की पात्र नहीं बनना चाहती थी. मैं जानती थी कि आज नहीं तो कल यह प्यार सहानुभूति में बदल जाएगा और मैं वह स्थिति अपने सामने नहीं आने देना चाहती थी.’’

‘‘फिर आप मुझे शादी करने के लिए क्यों कह रही हैं? यह परिस्थिति तो मेरे सामने भी आएगी.’’

‘‘वही मैं तुम्हें समझाना चाह रही हूं कि जो गलती मैं ने की वह तुम भूल कर भी मत करना. यह एक कड़वी सचाई है कि खुद कई गर्लफ्रैंड्स रखने वाले पुरुष भी पत्नी वर्जिन ही चाहते हैं. तुम्हें किसी को भी सफाई देने की जरूरत नहीं  है. जब तक तुम खुद किसी को नहीं बताओगी, तुम्हारे साथ हुए हादसे के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’

‘‘मगर यह तो किसी को धोखा देने जैसा हुआ?’’ रावी अभी भी तर्क कर रही थी.

‘‘धोखा तो वह था जो तुम्हारे पापा के दोस्त ने तुम्हारे पापा को दिया… अपने परिवार को दिया… तुम्हारी मासूमियत और इनसानियत को दिया. हम औरतों को अब अपने लिए थोड़ा स्वार्थी होना ही पड़ेगा… जीवन के इंद्रधनुष में 8वां रंग हमें खुद भरना होगा. अच्छा एक बात बताओ तुम्हारा वह तथाकथित अंकल बिना किसी को कुछ बताए समाज में शान से रह रहा है न? फिर तुम क्यों नहीं? अगर सोने पर कीचड़ लग जाए, तो भी उस की शुद्धता में रत्ती भर भी फर्क नहीं आता. तुम्हें भी इस हादसे को एक बुरा सपना मान कर भूलना होगा,’’ कह वसुधा ने उसे सोचने के लिए छोड़ दिया.

‘‘अगर अंकल ने मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश की तो?’’ रावी ने अपनी शंका जाहिर की.

‘‘वह ऐसा नहीं करेगा, क्योंकि ऐसा करने पर खुद उस की पहचान भी तो उजागर होगी और फिर कोई भी व्यक्ति अपने परिवार और समाज के सामने जलील नहीं होना चाहेगा,’’ वसुधा ने अपने अनुभव के आधार पर कहा.

बात रावी की समझ में आ गई थी. वह पूरे आत्मविश्वास के साथ उठ कर वसुधा के चैंबर से निकल गई. उस के कालेज के लास्ट ईयर के फाइनल ऐग्जाम का टाइमटेबल आ चुका था. उस ने मन लगा कर परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी से पास हुई. उस के बाद उस ने कंप्यूटर का बेसिक कोर्स किया और फिर उसी संस्थान में काम करने लगी. साल भर पहले एक अच्छा सा लड़का देख कर उस के घर वालों ने उस की शादी कर दी. उस के बाद रावी आज ही वसुधा से मिलने आई थी. अपने बेटे के नामकरण का निमंत्रण देने.

इस बीच वसुधा निरंतर शांति के संपर्क में रहीं. कदमकदम पर उन्हें राह दिखाती रहीं, मगर रावी से दूर ही रहीं. वे उसे खुद ही गिर कर उठने देना चाहती थीं. वे संतुष्ट थीं कि उन्होंने एक और कली को मुरझाने से बचा लिया.

रावी ने तो अपना वादा निभा दिया था, अब उन की बारी थी. अत: तैयार हो वे अपना पर्स उठा नन्हे मेहमान के लिए गिफ्ट लेने बाजार चल दीं. Hindi Social Story

Sad Story in Hindi: खामोशियां- क्यों पति को इग्नोर कर रही थी रोमा?

Sad Story in Hindi: देखने में तो घर में सब सामान्य लग रहा था पर ऐसा था नहीं. रोमा के दिल में एक तूफ़ान सा उठा था. वह कैसे बाहर जाए, सारा दिन तो घर में नहीं बैठ सकती थी, वह भी वन बैडरूम के इस फ्लैट में.

सुजय से बात करने के लिए रोमा को कोई कोना नहीं मिल रहा था. पति रवि कोरोना के टाइम में पूरा दिन घर में रहता, सारा दिन वर्क फ्रौम होम करता. 2 साल का बेटा सोनू खूब खुश था कि मम्मीपापा सारा दिन सामने हैं. पर मां के दिल में उठते तूफ़ान को वह 2 साल का बच्चा कैसे जान पाता.

जैसे ही औफिस के काम से कुछ छुट्टी मिलती, रवि घर के कामों में रोमा का खूब हाथ बंटाता. पर फिर भी रोमा के चेहरे पर चिढ़ और गुस्से के भाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे तो उस ने कहा, “रोमा, घर के काम जो भी मुश्किल लग रहे हैं, मुझे बता दिया करो, तुम्हारे चेहरे से तो हंसी जैसे गायब हो गई है.”

रोमा फट पड़ी, “नहीं रहा जाता मुझ से पूरा दिन घर में बंद हो कर.”

“पर डिअर, तुम तो पहले भी घर पर ही रहती थीं न, मैं ही तो औफिस जाता था और मैं तो चुपचाप हूं घर पर, कोई शिकायत भी नहीं करता. तुम्हें और सोनू को देख कर ही खुश हो जाता हूं.”

रोमा मन ही मन फुंफकारती रह गई. कैसे कहे किसी से कि सुजय से प्यार हो गया है उसे और वह रोज उस से मिलती थी. शाम को जब वह सोनू को ले कर पार्क में जाती, तो वह भी वहीं दौड़ रहा होता. आंखों ही आंखों में उस के सुगठित शरीर को देख कर तारीफ़ कर उठती तो सुजय भी समझ जाता और उसे देख एक स्माइल करता पास से निकल जाता. धीरेधीरे हायहैलो से शुरू हुई बातचीत अब एक अच्छाख़ासा अफेयर बन चुकी थी. सुजय अविवाहित था. वह पास की ही एक बिल्डिंग में अपने पेरैंट्स और एक छोटी बहन के साथ रहता था.

रवि की अनुपस्थिति में रोमा ने एकदो बार सुजय को घर भी बुलाया था. ज्यादातर बातें मिलने पर या फोन पर ही होतीं. रोज मिलना एक नियम बन गया था. अच्छी तरह सजसंवर कर रोज सोनू को ले कर पार्क में जाना और सुजय से बातें करना जैसे रोमा को एक नए उत्साह से भर जाता.

अब लौकडाउन में सबकुछ बंद था. पार्क को बंद कर दिया गया था. सामान लेने के बहाने भी वह बाहर नहीं जा सकती थी. शौप्स बंद थीं. सब सामान औनलाइन आ रहा था. सुजय भी बाहर नहीं निकल रहा था.

सुजय के कभीकभी एकदो मैसेज आते जिन्हें रोमा फौरन डिलीट इसलिए करती कि कहीं रवि देख न ले. रवि रोमा को खुश रखने की बहुत कोशिश कर रहा था. पर रोमा की चिड़चिड़ाहट कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. रात के अंतरंग पलों में जब रोमा का मन होता तो

रवि का साथ देती, जब सुजय की तरफ मन खिंच रहा होता तो रवि का हाथ झटक देती.

रोमा जानती थी कि रवि एक सादा इंसान है जिस की ख़ुशी पत्नी और बच्चे को खुश देखने में ही है. न रवि में कोई ऐब था, न कोई और बुराई. कमाल की सादगी थी उस में. पर रोमा अलग स्वभाव की लड़की थी जिस ने पेरैंट्स के दबाव में आ कर रवि से शादी कर तो ली थी पर शादी के बाद सुजय से संबंध रखने में जरा भी नहीं हिचकिचाई थी. वह हमेशा रवि पर हावी

रहने की कोशिश करती.

एक दिन रवि ने पूछा, “रोमा, तुम मुझ से शादी कर के खुश तो हो न? आजकल जब से मैं घर

पर हूं, तुम बहुत गुस्से में दिखती हो.”

“शादी तो हो ही गई, अब खुश रहूं या दुखी, क्या फर्क पड़ता है, रोमा ने अनमनी हो कर जवाब दिया तो रवि ने उसे बांहों में भर कर कहा, “मुझे बताओ तो, आजकल क्यों इतना मूड खराब रहता है तुम्हारा?”

“मुझे घर में घुटन हो रही है, मुझे बाहर जाना है.”

“अच्छा,बताओ, कहां जाना है, मैं घुमा कर लाता हूं. पर, सब तो बंद है.”

“तुम्हारे साथ नहीं, अकेले जाने का मन है,” रोमा ने सपाट स्वर में कहा तो रवि उस का मुंह देखता रह गया. रोमा ने उस का बढ़ा हुआ हाथ झटका और बेरुखी से वहां से चली गई.

रवि की कुछ जरूरी मीटिंग थी, वह लैपटौप पर बैठ तो गया पर उस का दिल आज बहुत उदास था. वह सोचने लगा, क्या मिल रहा है उसे अपने पेरैंट्स की पसंद से शादी कर के. रोमा उसे पसंद नहीं करती, यह एहसास उसे होने लगा था. उस के पेरैंट्स रोमा से कुंडली मिलने पर बहुत

खुश हुए थे कि खूब अच्छी जोड़ी रहेगी. पर आज वह अपने मन का दुख किसी से भी शेयर नहीं कर सकता था.

रोमा से रुका नहीं गया तो रवि जब एक दिन नहाने गया, उस ने सुजय को फोन मिला दिया. सुजय मीटिंग में था. वह भी घर से काम कर रहा था. वह फोन नहीं उठा पाया. रोमा का दिल बुझ गया. सुजय ने जब वापस उसे फोन किया तो रवि आसपास था. वह फोन नहीं उठा पाई और उसे रवि पर इतनी जोर से गुस्सा आया कि उस ने रवि को नाश्ते की प्लेट इतनी जोर से पटक कर दी कि रवि को गुस्सा आ गया, बोला, “दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा? यह खाना देने की तमीज है तुम्हारी?”

रोमा पर सुजय का भूत सवार था, आवारागर्दियां याद आ रही थीं, चिल्ला कर बोली, “खाना है, तो खाओ वरना मेरी बला से.”

रोमा के इतनी जोर से चिल्लाने पर सोनू डर कर जोर से रो उठा. रवि ने उसे सीने से लगा लिया और चुप करवाने लगा. अभी जो भी हुआ था, रवि को यकीन ही नहीं आ रहा था कि कभी रोमा ऐसे भी बात कर सकती है. वह हैरान था, खामोश था. यह खामोशी अब उसे अंदरअंदर जलाने लगी थी. क्या हुआ है रोमा को, कुछ समझ नहीं आ रहा था.

रोमा का फोन कभी रवि ने चैक नहीं किया था. उस ने रोमा के पर्सनल स्पेस में कभी हस्तक्षेप नहीं किया था. उस ने हमेशा उसे पूरी आज़ादी दी थी. गलती कहां हो रही है जो घर का माहौल इतना खराब होता जा रहा था, यह सोचसोच कर रवि का दिमाग परेशान हो चुका था.

एक दिन लंच कर के रोमा सोनू के साथ सोने के लिए लेटी. रवि लिविंगरूम में काम कर रहा था. रोमा ने सुजय को मैसेज किए. उधर से भी फौरन रोमांस शुरू हो गया. सुजय की बेचैनी देख रोमा को अच्छा लगा पर मिलने की मजबूरी ने रोमा का फिर मूड खराब कर दिया और उसे रवि पर फिर गुस्सा आने लगा कि पता नहीं कितने दिनों तक रवि घर में बैठा रहेगा, कब जाएगा औफिस.

थोड़ी देर में फोन रख वह बिना बात के किचन में जा कर खटपट करने लगी. रवि ने इशारा किया कि वह जरूरी मीटिंग में है, शोर न हो. पर रोमा जानबूझ कर और शोर करने लगी. यहां तक कि लिविंगरूम में रखा टी वी भी चला कर बैठ गई. मीटिंग से

उठते ही रवि ने रोमा को डांटा, “यह क्या बदतमीजी है, टीवी अभी देखना जरूरी था?”

“तो कब देखूं? सारा दिन तो घर में डटे हो, कहीं जाते भी नहीं जो थोड़ी देर चैन से जी लूं. सारी प्राइवेसी ख़त्म हो गई मेरी. अपनी मरजी से जी भी नहीं सकती,” यह कहतेकहते रोमा ने रिमोट जोर से सोफे पर पटका तो रवि ने यह सोच कर कि सोनू फिर न रोने लगे, अपनी आवाज धीरे की और समझाया, “क्यों इतनी परेशान हो रही हो, अच्छा, तुम देख लो टीवी, मैं अंदर ही बैठ कर काम कर लूंगा.” यह कह कर रवि अपना लैपटौप उठा कर अंदर जाने लगा तो रोमा ने अंदर जाते हुए कहा, “नहीं, अब मैं आराम करने जा रही हूं.”

हैरानपरेशान रवि सिर पकड़ कर बैठ गया. क्या हो गया है रोमा को, कैसे चलेगा ऐसे. फिर सोचा, शायद घर में रहरह कर सभी को ऐसी ही परेशानी है, वह खुद एडजस्ट कर लेता है हर चीज तो जरूरी तो नहीं कि कोई और परेशान न हो. छोटा बच्चा है, उस के भी काम आदि करने में वह थक जाती होगी. मेड आ नहीं रही है, लखनऊ में केसेस भी काफी हो गए हैं.

कहां इस सोसाइटी में रोमा कितनी ख़ुशी से घूमतीफिरती थी, कहां उस का सबकुछ बंद हो गया. किस पर गुस्सा निकलेगा, मुझ पर ही न, सब रिश्तेदार भी जब फोन पर बातें करते हैं, यही कोरोना की बातें तो रह गई हैं. इंसान खुश भी हो तो किस बात पर. कहीं तो चिढ़ निकलेगी ही न रोमा की. नहीं, ये हालात की ही बात है.

सबकुछ रोमा के पक्ष में ही सोच कर रवि फिर रोमा के पास जा कर बैठ गया और उस का सिर सहलाने लगा. सोनू सोया हुआ था. सुजय ने अभी चैट शुरू ही की थी कि रवि के आने से उस में विघ्न पड़ गया. रोमा आगबबूला हो गई, गुर्राई, “तुम चैन से मत जीने देना मुझे.”

रवि का चेहरा अपमान से लाल हो गया. क्याक्या सोच कर वह रोमा के पास आया था. चुपचाप उठ कर सोफे पर आ कर लेट गया. आंखों की कोरों से नमी सी बह निकली.

सोसाइटी की हर बिल्डिंग में पार्किंग के एरिया में थोड़ी खुली जगह थी. वहां रात को इक्कादुक्का लोग टहलने के लिए आ जाते. सुजय ने प्रोग्राम बनाया कि रात 9 बजे डिनर के बाद वहां टहलते हुए, दूर से ही सही, एकदूसरे को देखा जा सकता है. और कोई न रहा, तो बातें भी हो सकती हैं. रोमा को यही सब तो चाहिए था. वह चहक उठी. उस दिन रवि से भी कुछ बदतमीजी नहीं की.

रवि ने भी अब खामोशी ओढ़ ली थी. हर समय रोमा का मूड देख कर ही बात करना मुश्किल था. अब वह सिर्फ काम की ही बात करता, सोनू से खेलता और घर के कई काम चुपचाप करता रहता. रोमा डिनर के बाद अकेली टहलने जाने लगी. यह एक नियम सा बन गया. कहां रवि और सोनू को घर से निकलते हुए लंबा टाइम हो जाता, वहां रोमा रोज अब चहकती सी जाने लगी.

रवि ने यह सोच कर तसल्ली कर ली कि चलो, इतने से ही रोमा खुश है, तो अच्छा है. इस का मतलब, यह बस घर में ही परेशान हो रही थी. इस का बाहर जाना बंद हो गया था, इसलिए यह गुस्से में रहती थी. ऐसा तो कोरोना के टाइम में बहुत से लोगों के साथ हुआ

है. चलो, कोई बात नहीं.

सुजय के पेरैंट्स कुछ बीमार चल रहे थे, इसलिए उस ने रोमा को मैसेज किया, “रोमा, कुछ दिन अब फिर नहीं मिलेंगे, मम्मीपापा का ध्यान रखना है. नीचे काफी लोग आने लगे हैं. मैं कहीं कोई इंफैक्शन न ले आऊं, मम्मीपापा को कोई प्रौब्लम न हो जाए, इसलिए घर पर ही रहूंगा अभी. फिर कभी मिलेंगे.”

रोमा को फिर एक झटका सा लगा. उस का मूड खराब हो गया. उसे तो यही लगने लगा था कि लाइफ में जो भी उत्साह है, सब सुजय से है. रवि तो घर में रहरह कर उस की प्राइवेसी को ही भंग करता है. रवि के कारण ही वह फोन पर सुजय से बात भी नहीं कर पाती है. रवि पर वह फिर खूब बरसने लगी. रवि परेशान था. वह कितना चुप रहे, क्या करे, लड़नाझगड़ना उस की फितरत ही नहीं थी. बेहद शांत स्वभाव का इंसान ऐसी स्थिति में खामोश रहना ही हल

समझने लगता है. रवि भी वही कर रहा था.

कुछ दिन ऐसे ही खराब, अनमने से बीते. फिर एक दिन सुजय का मैसेज आया, “रोमा, बहुत बढ़िया मौका है. यहां से थोड़ी दूर की सोसाइटी में हमारा जो फ्लैट किराए पर था, वह किराएदार अपने घर चला गया है. अब वह फ्लैट खाली है. फुली फर्निश्ड है. वहां मिल सकते हैं. कितने दिन हो गए, तुम्हें जीभर देखा भी नहीं, आओगी?”

रोमा ने टाइप किया, “आना है तो बहुत मुश्किल, पर कोशिश करूंगी.”

“अरे, यह मौका जाने दोगी?”

“रवि से क्या कहूंगी? वह वर्क फ्रौम होम करता है, सोनू को भी देखना होता है.”

“यार, ये सब अब तुम देखो, आओ किसी तरह.”

रोमा ने सारा दिमाग लगा दिया कि कैसे निकले घर से, कोई बहाना काम करता नहीं दिख रहा था. बात नहीं बनी तो सारे कोप का भाजन रवि ही बनता चला गया. उस दिन रवि लंच लगाने में हैल्प करने उठा तो रोमा ने कहा, “रहने दो, मैं कर लूंगी.”

 

रवि कुछ बोला नहीं, चुपचाप प्लेट्स रखता रहा. आजकल वह खामोश होता जा रहा था. कुकर गरम था. जैसे ही वह राइस का कुकर उठा कर लाने लगा, रोमा के दिल में सुजय से न मिल पाने की कसक उस पर इतनी हावी थी कि उस ने चिढ़ कर उसे धक्का सा दे दिया. गरम कुकर रवि के हाथ से छूट कर उस के पैर पर गिरा. वह दर्द से तड़प उठा. रोमा ने एक जलती निगाह उस पर डाली, फिर कुकर उठा टेबल पर जा कर रखा और सोनू को पास रखी चेयर पर बिठाया व अपनी प्लेट में खाना निकाल कर खुद भी खाने लगी और उसे भी खिलाने लगी.

रवि अब तक अपने पैर पर लगाने के लिए फ्रिज से आइस पैक निकाल कर सोफे पर आ कर बैठ गया. रोमा पर नजर डाली, वह आराम से रवि को अनदेखा कर खाना खाने में बिजी थी. जलन से रवि का बुरा हाल था. बहने को तैयार आंसुओं को बड़ी मुश्किल से रोक रखा था रवि ने.

कौन कहता है पुरुष को रोना नहीं आता, आता है जबजब रोमा जैसी पत्नियां इस पर उतर आती हैं कि उन्हें अपनी मौजमस्ती के आगे घर, पति बंधन लगने लगें तब यही होता है. पुरुष के सीने में ऐसी खामोशियों का सागर तूफ़ान मचा रहा होता है जिन की आवाज भी बाहर नहीं आ पाती. इन खामोशियों का शोर बहुत जानलेवा होता है.

बहुत ही बेबस रवि को कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह आराम से खाना खाती रोमा को देखता रह गया. उसे किस बात की सजा मिल रही है, यह वह समझ ही नहीं पा रहा था. Sad Story in Hindi

Love story in Hindi: पार्टनर- कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है

Love story in Hindi: आवाज में वही मधुरता, जैसे कुछ हुआ ही नहीं. काम है, करना तो पड़ेगा, कोई लिहाज नहीं है. दुखी हो तो हो जाओ, किसे पड़ी है. बिजनैस देना है तो प्यार से बोलना पड़ेगा. छवि अब भी फोन पर बात करती तो उसी मिठास के साथ कि मानो कुछ हुआ ही नहीं. वैसे कुछ हुआ भी नहीं.

बस, एक धुंधली तसवीर को डैस्क से ड्रौअर के नीचे वाले हिस्से में रखा ही तो है. अब उस की औफिस डैस्क पर केवल एक कंप्यूटर, एक पैनहोल्डर और उस के पसंदीदा गुलाबी कप में अलगअलग रंग के हाइलाइटर्स रखे थे. 2 हफ्ते पहले तक उस की डैस्क की शान थी ब्रांच मैनेजर मिस्टर दीपक से बैस्ट एंप्लौयी की ट्रौफी लेते हुए फोटो. कैसे बड़े भाई की तरह उस के सिर पर हाथ रख वे उसे आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहे थे.

आज उस ने फोटो को नीचे ड्रौअर में रख दिया. अब वह ड्रौअर के निचले हिस्से को बंद ही रखती. वह फोटो उस के लिए बहुत माने रखती थी. इस कंपनी में पिछले 6 महीने से छवि सभी एंप्लौयीज के लिए रोलमौडल थी और दीपक सर के लिए एक मिसाल. छवि ने घड़ी देखी, 5 बजने में अब भी 25 मिनट बाकी थे. अगर उस के पास कोई अदृश्य ताकत होती तो समय की इस बाधा को हाथ से पकड़ कर पूरा कर देती. समय चूंकि अपनी गति से धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था, छवि ने अपने चेहरे पर हाथ रख, आंखों को ढक अपनी विवशता को कुछ कम किया.

अभी तो उसे लौगआउट करने से पहले रीजनल मैनेजर विनोद को दिनभर की रिपोर्टिंग करनी थी, यही सोच कर उस का मन रोने को कर रहा था. अगर उस ने फोन नहीं किया तो कभी भी उन का फोन आ सकता है. औफिस का काम औफिस में ही खत्म हो जाए तो अच्छा है.

घर तक ले जाने की न तो उस की ताकत थी और न ही मंशा. यह आखिरी काम खत्म कर छवि एक पंख के कबूतर की तरह अपनी कंपनी के वन बैडरूम फ्लैट में आ गई. फ्लैट की औफव्हाइट दीवारों ने उस का स्वागत उसी तरह किया जैसे उस ने किसी अनजान पड़ोसी को गुडमौर्निंग कहा हो. फ्लैट में कंपनी ने उसे बेसिक मगर ब्रैंडेड फर्नीचर मुहैया करवा रखे थे. कभी उसे लगता घर भी औफिस का ही एक हिस्सा है और वह कभी घर आती ही नहीं. सच भी तो है, पिछले 6 महीने में वह एक बार भी घर नहीं गई थी.

मात्र 100 किलोमीटर की दूरी पर उस का कसबा था, सराय अजीतमल. पर वहां दिलों की बहुत दूरी थी. पिता के देहांत के बाद मां ने पिता के एक दोस्त प्रोफैसर महेश से लिवइन रिलेशन बना लिए. अब छवि का घर, जहां वह 22 साल रही, 2 प्रेमियों का अड्डा बन गया जहां उस के पहुंचने से पहले ही उस के जाने के बारे में जानकारी ले ली जाती.

कभीकभी तो उसे अपनी मां पर आश्चर्य होता कि वह क्या उस के पिता के मरने का ही इंतजार कर रही थी. पिता पिछले 5 सालों से कैंसर से जूझ रहे थे. इसी कारण छवि को बीच में पढ़ाई छोड़ जौब करनी पड़ी और महेश अंकल ने तो मदद की ही थी. यह बात और है कि उसे न चाहते हुए भी अब उन्हें पापा कहना पड़ता.

छवि ने अपनेआप को आईने में देखा और थोड़ा मुसकराई, वह सुंदर लग रही थी. औफिस में नौजवान एंप्लौयी चोरीछिपे उसे देखने का बहाना ढूंढ़ते और कुछेक अधेड़ बेशर्मी के साथ उस से कौफी पीने का अनुरोध करते. दीपक सर की चहेती होने से कोई सीधा हमला नहीं कर पाता. क्या फोन पर रिपोर्टिंग करते समय विनोद सर जान पाते होंगे कि यह एक पंख की कबूतर कौन्ट्रैक्ट की वजह से अब तक इस नौकरी को निभा रही है, हां…दीपक सर का अपनापन भी एक प्रमुख कारण था कि वह दूसरा जौब नहीं ढूंढ़ पाई. क्या पता उन्हें मालूम हो कि औफिस जाना उसे कितना गंदा लगता है.

वह नीचे झुकी, ड्रैसिंग टेबल पर फाइवस्टार रिजोर्ट में 2 दिन और 3 रातों का पैकेज टिकट पड़ा था. मन किया उस के टुकड़ेटुकड़े कर फाड़ कर फेंक दे, पर उस ने केवल एक आह भरी और कमरे की दीवारों को देखने लगी. दीवारों की सफेदी ने उसे पिछले महीने गोवा में समंदर किनारे हुई क्लाइंट मीटिंग की याद दिला दी. मन कसैला हो गया. कैसे समुद्र का चिपचिपा नमकीन पानी बारबार कमर तक टकरा रहा था और 2 क्लाइंट उस से अगलबगल चिपके खड़े थे. उन दोनों की बांहों के किले में वह जकड़ी थी और विनोद सर से ‘चीज’ कह कर एक ग्रुप फोटो लेने में व्यस्त थे.

छवि एक बिन ताज की महारानी की तरह कंपनी और क्लाइंट के बीच होने वाली डील में पिस रही थी. एक लहर ने आ कर उसे गिरा दिया, वह सोचने लगी कि क्या वह सचमुच गिर गई थी. बस, विनोद सर बीचबीच में हौसला बढ़ाते रहते, ‘बिजनैस है, हंसना तो पड़ेगा.’ उन के शब्द याद आते ही उस का मन रोने का किया. उसे लगा इस कमरे की दीवारें सफेद लहरें हैं जो उस के मुंह पर उछलउछल कर गिर रही हैं.

वह जमीन पर बैठ गईर् और घुटनों को सीने से लगा सुबकने लगी. अपनी कंपनी से एक कौन्ट्रैक्ट साइन कर उस ने 3 साल की सैलरी का 60 प्रतिशत हिस्सा पहले ही ले लिया था. सारा पैसा पिता की बीमारी में लग गया. छवि का मन रोने से हलका हो गया. थोड़ी राहत मिली तो उठ कर बैड पर बैठ गई. डिनर करने का मन नहीं था, इसलिए सो गई.

सुबह 7 बजे सूरज की किरणें जब परदे को पार कर आंखों में चुभने लगीं तो वह हड़बड़ा कर उठी. वह ठीक 9 बजे औफिस पहुंच गई, उस के पास एक छोटा बैग था. दीपक सर उसे देख कर हलका सा मुसकराए. वह उन से भी छिपती हुई जल्दी से अपने कैबिन में आ कर बैठ गई.

1 घंटा प्रैजैंटेशन बनाने के बाद उसे बड़ी थकान लगने लगी, लगता था कल के रोने ने उस की बहुत ताकत खींच ली थी. तभी फोन बजा और उस का आलस टूटा. दूसरी लाइन पर दीपक सर थे, बोले, ‘‘तुम ने क्या सोचा?’’

ड्रौअर के नीचे के आखिरी खाने में कौन्ट्रैक्ट की कौपी और दीपक सर के साथ उस की फोटो थी. उस ने कौन्ट्रैक्ट को बिना देखे, फोटो को उठा अपने बैग में डाल लिया और बोली, ‘‘आप के साथ पार्टनरशिप,’’ और छवि ने फोन काट दिया. यह कोई पागलपन नहीं था, बल्कि एक सोचासमझा फैसला था.

छवि ने ड्रौअर को ताला लगाया और चाबियों को झिझकते हुए, पर दृढ़ता से, पर्स में डाल दिया. 15 दिन लगे पर उसे अपने फैसले पर विश्वास था. फोटो को बैग से निकाल कर एक बार फिर देखा, थोड़ा धुंधला लग रहा था पर उस में अब भी चमक थी.

छवि की आंखों में हलका गीलापन था, कौन्ट्रैक्ट का पैसा दीपक सर की हैल्प से भर पा रही थी. अब वह कंपनी में कभी नहीं आएगी. वह अब आजाद थी. पर 2 दिन और 3 रातें दीपक सर के साथ रिजोर्ट में बिता कर वह उन्हीं के नए फ्लैट में रहेगी, एक पार्टनर बन कर. Love story in Hindi

Hair Care Tips: बाल धोने के अगले ही दिन चिपचिपे हो जाते हैं. कोई उपाय?

Hair Care Tips

 बाल धोने के अगले ही दिन चिपचिपे हो जाते हैं जबकि मैं शैंपू अच्छे से करती हूं. कोई उपाय बताएं?

शायद आप शैंपू तो सही कर रही हैं लेकिन कंडीशनर स्कैल्प पर लग जाता है जिस से जड़ें औयली हो जाती हैं या फिर शैंपू सल्फेट फ्री नहीं है जो नैचुरल औयल को पूरी तरह हटा देता है और स्किन उस से लड़ने के लिए ऐक्स्ट्रा औयल बनाती है. हमेशा कंडीशनर को सिर्फ बालों के बीच और उन के सिरों तक ही लगाएं, जड़ों पर नहीं. लाइट आयुर्वेदिक या सल्फेट फ्री शैंपू यूज करें. हफ्ते में 1 बार बालों में नीम के पानी या मेथी के पानी से रिंस करें.

 मेरे सिर की स्किन बहुत टाइट और गरम लगती है, बाल भी झड़ते हैं. क्या करूं?

यह ‘स्कैल्प हीट’ कहलाता है. जब आप की स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन सही नहीं रहता या बहुत स्ट्रैस होता है तो सिर गरम हो जाता है और बालों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं. गरमियों में या स्ट्रीट फूड ज्यादा खाने पर भी ऐसा होता है. इस से बचने के लिए हफ्ते में 2 बार ठंडी तासीर वाले तेल जैसे ब्राह्मी, भृंगराज या नारियल से मसाज करें. खाने में चटपटा, ज्यादा तला हुआ खाना कम करें. कुछ दिन रात को सोने से पहले आंवला या शतावरी का चूर्ण पानी के साथ लें. स्कैल्प कूलिंग मिस्ट या हर्बल हेयर टौनिक का यूज भी बहुत फायदेमंद रहता है.

Health Problems: रोज एक्सरसाइज फिर भी वजन नहीं घट रहा, क्या करूं?

Health Problems

मैं 32 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले 2 वर्षों से मैं नियमित रूप से ऐक्सरसाइज कर रही हूं, लेकिन मेरा वजन कम नहीं हो रहा है. मैं जानना चाहती हूं कि खानपान की वजन कम करने में क्या भूमिका है?

वजन कम करने में खानपान की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका है. आप कितनी भी ऐक्सरसाइज कर लें, लेकिन अगर आप अपनी कैलोरी इनटेक को नियंत्रित नहीं रखेंगी तो वजन कम कर पाना संभव नहीं होगा. दिन में 3 बार मेगा मील खाने के बजाय 6 बार मिनी मील खाएं. गेहूं के बजाय मल्टीग्रेन आटे का सेवन करें. हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी और सरसों खूब खाएं. 1 दिन में 600 ग्राम हरी सब्जियां खाने की कोशिश करें.

जितनी बार भोजन करें उतनी बार आप की थाली में एक ऐसा पकवान जरूर हो, जिस में प्रोटीन हो. चावल, चौकलेट, कौफी, चिप्स, मिठाई तथा फास्ट फूड के स्थान पर सादा, सुपाच्य तथा संतुलित भोजन लें. भोजन को खूब चबाचबा कर खाएं तथा हमेशा कुछ न कुछ खाते रहने से परहेज करें. रात का खाना सोने से 2 घंटे पहले कर लें.

 

मुझे फल खाने बहुत पसंद हैं, लेकिन मुझे डायबिटीज है. ऐसे में क्या मुझे इन्हें खाना बंद कर देना चाहिए?

यह एक सामान्य लेकिन पूरी तरह से गलत धारणा है. जिन्हें डायबिटीज है वे सामान्य लोगों की तरह सभी फल खा सकते हैं लेकिन उन्हें केवल मात्रा का ध्यान रखना है. आप रोज 150-200 ग्राम फल बिना किसी परेशानी के खा सकती हैं. जिन्हें डायबिटीज है, उन्हें ऐसे फल खाने चाहिए जिन का ग्लाइसेमिक इंडैक्स कम हो जैसे सेब, संतरा, पपीता, नाशपाती, अमरूद, अनार. अंगूर, आम, चीकू, पाइनऐप्पल से परहेज करना चाहिए, लेकिन अगर बहुत मन करे तो कभीकभार बिलकुल थोड़ी मात्रा में इन्हें ले सकती हैं. आप कभीकभी 1 छोटा केला भी खा सकती हैं, लेकिन बड़े आकार का केला न खाएं.

 

मैं 45 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे पिछले कुछ महीनों से उच्च रक्तदाब की शिकायत हो गई है. क्या मुझे नमक खाना पूरी तरह बंद कर देना चाहिए?

नहीं, आप को बिलकुल ऐसा नहीं करना चाहिए. शरीर के सुचारु रूप से काम करने के लिए उचित मात्रा में नमक का सेवन जरूरी है. आप का रक्तदाब सामान्य से अधिक रहने लगा है, इसलिए आप को नमक का सेवन थोड़ा कम कर देना चाहिए. जिन्हें हाइपरटैंशन है, नमक का अधिक मात्रा में सेवन उन के रक्तदाब को खतरनाक स्तर तक बढ़ा देता है.

नमक में सोडियम होता है जो रक्तनलिकाओं को कड़ा और संकरा कर देता है. इस से हृदय को शरीर में रक्त पंप करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है, जिस से हृदय रोगों, स्ट्रोक और गुरदे की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है. अगर आप नमक का सेवन पूरी तरह बंद कर देंगी तो आप का रक्तदाब खतरनाक स्तर तक कम हो जाएगा और शरीर के दूसरे अंगों की कार्यप्रणाली भी प्रभावित होगी.

Hindi Love Story: राधा, रवि और हसीन सपने

Hindi Love Story: ‘‘अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी, तो मैं खुद को खत्म कर लूंगी. फिर तुम मुझे कभी नहीं पा सकोगे. अगर तुम वाकई मुझ से प्यार करते हो, तो जैसा मैं कहती हूं, वही तुम्हें करना होगा.’’

रवि ने जब राधा की धमकी सुनी, तो उस के होश उड़ गए. उस ने कभी नहीं सोचा था कि राधा अपने ही भाई को मौत के घाट उतारने के लिए इस कदर बेकरार होगी.

रवि एक बार फिर उसे समझाते हुए बोला, ‘‘राधा, अगर हम ने तुम्हारे भाई उमेश की जान ली, तो हमें भी अपनी जवानी जेल की दीवारों के बीच गुजारनी पड़ सकती है.’’

रवि की बात सुनते ही राधा गुस्से में बोली, ‘‘तो ठीक है, तुम जाओ यहां से. मैं सबकुछ समझ गई. तुम्हें मेरी बात पर जरा भी भरोसा नहीं है…’’

इतना कह कर राधा ने रवि की तरफ से मुंह फेर लिया और करवट बदल कर दूसरी तरफ देखने लगी. रवि और राधा इस वक्त रवि के घर की दूसरी मंजिल पर पलंग पर बिना कपड़ों के लेटे थे. रवि का सारा मजा किरकिरा हो गया था, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था. रवि ने राधा को अपनी तरफ घुमा कर पहले जी भर कर चूमा और फिर जब दोनों प्यार की आग में दहकने लगे, तो एकदूसरे में समा गए.  राधा रवि को तब से चाहती थी, जब वह 12वीं जमात के इम्तिहान देने शहर के स्कूल गई थी.

चूंकि राधा और रवि एक ही जगह के रहने वाले थे, इसलिए वहां उन की जानपहचान हो गई थी. राधा अगड़ी जाति की थी और रवि निचली जाति का, इसलिए दोनों के लिए परेशानी थी. लेकिन तकरीबन 3 साल तक लुकछिप कर मुहब्बत करने के बाद जब एक दिन राधा ने परिवार वालों को अपने और रवि के बीच प्यार और शादी की तमन्ना वाली बात बताई, तो उस के घर का माहौल अचानक खराब हो गया.

राधा की 5 बहनों की शादी हो चुकी थी. वह सब से छोटी थी. उमेश इन बहनों के बीच अकेला भाई था. उसी ने राधा के इस प्यार का विरोध किया था. राधा की मां काफी बूढ़ी हो चुकी थीं. पिताजी की मौत एक हादसे में पहले ही हो चुकी थी. उमेश को पिताजी की जगह क्लर्क की नौकरी मिल चुकी थी. उमेश शादीशुदा था, लेकिन राधा का बेहद विरोधी था, इसीलिए राधा भाई उमेश और भाभी साक्षी को अपना दुश्मन मानती थी.

जब एक दिन रात को राधा रवि से फोन पर बातें कर रही थी, तभी उमेश ने उसे बातें करते देख कई तमाचे जड़ दिए थे. इतना ही नहीं, राधा के हाथ से मोबाइल फोन छीन कर उसे बड़ी बहन के घर छोड़ आया था. राधा रवि को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी, वहीं उमेश की जिद थी कि वह राधा की शादी रवि से कभी नहीं होने देगा.

राधा चाहती थी कि रवि उमेश को जान से मार दे, ताकि उस के प्यार पर कोई पाबंदी लगाने वाला न बचे, लेकिन रवि राधा की बात मानने को तैयार नहीं था. वह जानता था कि राधा जो चाहती है, वह जुर्म है. लकिन रवि भी इश्क की चाशनी का स्वाद चख चुका था. लाख मना करने के बाद भी आखिर में वह वही करने को तैयार हो गया, जो राधा चाहती थी. तय समय और तारीख पर रवि को राधा के फोन का इंतजार था.

जब राधा का फोन आया, तब रवि तुरंत अपने मनसूबों को अंजाम देने चल दिया. राधा और रवि एकएक कदम सावधानी से आगे बढ़ा रहे थे. शायद इसीलिए जब वे दोनों एकसाथ उमेश के कमरे के पास पहुंचे, तो अचानक राधा ने रवि को हाथ से इशारा कर के रोक दिया और अकेले ही उस के कमरे में घुस गई. राधा ने सब से पहले कमरे की लाइट जलाई और देखा कि उमेश गहरी नींद में सो गया है या नहीं. जब राधा को इतमीनान हो गया कि उमेश गहरी नींद में है, तो उस ने रवि को अंदर बुलाया.

रवि ने उमेश को चादर में लपेट दिया और जोर से उस का गला दबाने लगा. उमेश छटपटा कर पलंग के नीचे गिर गया, लेकिन जल्दी ही राधा और रवि ने उस पर काबू पा लिया था. जब उन दोनों को भरोसा हो गया कि उमेश अब जिंदा नहीं है, तभी उन्होंने उसे छोड़ा था. फिर उन दोनों ने उमेश का बिस्तर ठीक किया और दोबारा चादर इस तरह ढक दी, जैसे वह गहरी नींद में सो रहा हो. फिर वे दोनों एकदूसरे को बांहों में भर कर चूमने लगे. उस समय राधा काफी सैक्सी लग रही थी. एक बार जब राधा की प्यास जाग जाती थी, तो आसानी से उसे संतुष्ट कर पाना सब के बस की बात न थी. रवि कसरती बदन का मालिक था. वह राधा को बेहद और भरपूर मजा देता था, इसीलिए राधा उसे जीजान से चाहती थी. राधा और रवि इस कदर इश्क में अंधे हो गए कि बगल में पड़ी लाश भी न दिखाई दी. दोनों वहीं पर प्यार के समुद्र में गोते लगाने लगे.

सुबह हुई, तो राधा बिलखबिलख कर पूरे महल्ले के सामने कह रही थी, ‘‘हाय, मेरा एकलौता भाई… कहां चला गया तू…’’ उस ने उमेश की मौत को स्वाभाविक मौत मानने पर सब को मजबूर कर दिया था.

पुलिस भी यही मान कर चल रही थी कि उमेश की मौत स्वाभाविक है कि तभी थाना इंचार्ज ने कहा, ‘‘उमेश की तो शादी हो चुकी है. इस की बीवी को आ जाने दीजिए.’’ तब राधा ने बड़ी चालाकी से कहा, ‘‘अरे साहब, वह तो इस से झगड़ा कर के मायके गई है. वह आ भी जाएगी, तो क्या करेगी. कम से कम मेरे भाई का अंतिम संस्कार तो समय पर हो जाने दीजिए.’’ राधा की बारबार अंतिम संस्कार की बात पर पहले तो सभी को अटपटा लगा, लेकिन जब वह लाश के सड़नेगलने की बात करने लगी, तो पुलिस भी इस के लिए राजी हो गई. पुलिस अपना काम पूरा समझ कर वहां से जाने ही वाली थी, तभी बाजी पलट गई. उसी वक्त उमेश की पत्नी साक्षी अपने मायके वालों के साथ वहां आ गई. साक्षी ने आते ही पुलिस से लाश का पोस्टमार्टम कराने की बात कही, तो राधा के होश उड़ गए. जैसे ही पुलिस को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली, तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

शक होते ही राधा को तुरंत गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई. इस के बाद पुलिस रवि की खोज में दौड़ गई और उसे भी धर दबोचा. राधा और रवि के हसीन सपने बहुत देर तक पुलिस केसामने टिक न सके.

राधा खुद अपनी जबान से काली करतूत बयान करने लगी, ‘‘साहब, हम 6 बहनें हैं. उमेश मेरा एकलौता भाई था. लेकिन केवल कहने का भाई था. उसे अपनी बीवी के अलावा किसी और की चिंता न थी. वह अपनी बीवी के कहने पर मुझ पर जुल्म ढाता था, इसलिए मैं ने उसे खत्म करने का फैसला कर लिया था.

‘‘मैं मौके की तलाश में थी, तभी इस का अपनी बीवी से झगड़ा हो गया. वह अपने मायके चली गई. मैं ने मौका पा कर रवि को फोन कर के बुलाया था. हम दोनों ने उमेश का गला दबा कर उसे मार डाला था.

‘‘साहब, मैं रवि से प्यार करती हूं और उसे मैं किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहती थी…’’ राधा बिना किसी झिझक के अपना बयान दे रही थी. रवि पुलिस के सामने जहां फूटफूट कर रो रहा था, वहीं राधा की आंखों में आंसू का एक भी कतरा नहीं था. उसे अपने हसीन सपनों के लिए भाई की जान लेने का जरा भी दुख नहीं था. Hindi Love Story

लेखक- केपी सिंह ‘किर्तीखेड़ा’

Family Story in Hindi: लिमिट लाइन

Family Story in Hindi: तनु और नलिन के दांपत्य जीवन में सैकड़ों बार छोटीछोटी बातों को ले कर नोकझोंक हुई, लेकिन उस की एक सीमा थी. आज जब नलिन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गया तो भी क्यों दोनों ने अपने इगो को छोड़ कर अपनीअपनी गलती मान ली? इस प्रकार उन दोनों के द्वारा उस बौर्डरलाइन को पार न करने पर क्या उन्हें सैटिस्फैक्शन मिली ही? ‘‘तुम हमेशा दूध का पाउच यों ही सिंक में छोड़ देती हो, बिना धोए.’’ ‘‘हमेशा?’’ ‘‘जी हां हमेशा.

धो कर वेस्ट बास्केट में डालने में तकलीफ होती है तुम्हें?’’ ‘‘सवेरे और भी ढेर सारे काम रहते हैं. अब गुडि़या 2-3 बजे दूध पीएगी. पाउच फाड़ कर दूध उबाला, उसे चुप कराया फिर ठंडा कर के पिलाया तो थोड़ी देर में धो कर फेंक दूंगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? कभीकभी ही तो रखी रह जाती है, हमेशा नहीं.’’ ‘‘कभीकभी नहीं अकसर रखी रह जाती है.’’ ‘‘अकसर कहां रखी रह जाती है?’’ तनु की आवाज में तेजी आ गई थी.

‘‘एक तो पाउच धो कर नहीं रखा, ऊपर से बहस कर रही हो. सुबहसुबह पाउच स्मैल करने लगता है. तुम्हारी हमेशा की आदत है… चाय की छलनी भी पड़ी है. अभी तक वह भी नहीं धो कर रखी,’’ नलिन भी तमतमा गया. ‘‘आप रसोई में घुसते ही क्यों हैं? जब देखो तब मेरे क्षेत्र में दखल देते रहते हैं,’’ तनु तुनक कर बोली. नाश्ते के लिए भीगे चने बीनते हुए उस के हाथ रुक गए, ‘‘खाना बनाने को कह दूं तो कह देते हो कि तुम्हें लैपटौप पर काम करना है.’’ ‘‘यह देखने के लिए कि हमारी मेहनत की कमाई का कैसा दुरुपयोग हो रहा है. देवीजी, पाउच का बचा हुआ दूध वैसा ही बंद पड़ापड़ा सड़ जाएगा, जब तक आप को उसे धोने की फुरसत मिलेगी,’’ कहते हुए नलिन ने पाउच धो कर डस्टबिन में डाल दिया.

‘‘हांहां मुझो तो कोई काम करना नहीं आता. 10 साल से तो भाड़ झोंक रही हूं,’’ नलिन की बात पर तनु तिलमिला गई. बड़बड़ाना जारी ही था तनु का कि नलिन रसोई से बाहर निकल गया. चने कड़ाही में छौंक कर तनु ने लंच बौक्स में परांठे, सब्जी और अचार रख कर उसे बंद कर दिया. काफी देर हो रही थी. आज उसे उठने में भी देर हो गई थी. हड़बड़ाहट में उस ने कुछ कच्चे चने ही प्लेट में निकाल दिए.

जल्दीजल्दी उन के ऊपर कच्चा प्याज बुरका फिर जैसे ही दही का कटोरा उठाया कि चिकनाई की वजह से वह हाथ से फिसल गया. सारा दही जमीन पर बिखर गया. ‘‘उफ शिट,’’ उस के मुंह से निकला, ‘‘आज तो वे वैसे ही बहुत नाराज हैं. देर भी हो गई है ऊपर से दही भी फैल गया मेरी लापरवाही से.’’ तनु ने जल्दी से चनों में नीबू छिड़का और प्लेटें हाथ में उठा कर बाहर आ ही रही थी कि बाहर से बाइक स्टार्ट होने की आवाज आई. उस ने प्लेटें मेज पर रख दीं और जल्दीजल्दी बाहर दौड़ी. तब तक बाइक अगले मोड़ पर मुड़ गई और नलिन आंखों से ओझल हो गया.

तनु निराश सी अंदर आ गई. घड़ी देखी 9.40 हो रहे थे. जरा सी ही तो देर हुई है, सिर्फ 10 मिनट. ऐसा भी क्या? कह कर तो जाते. लंचबौक्स भी नहीं ले गए, तनु ने मन ही मन सोचा. वह रसोई में जा कर सफाई करने लगी. मूड तो पहले ही उखड़ गया था. धीरेधीरे तनु को क्रोध आने लगा कि चले गए तो चले जाएं. अभी ऐसा क्या हो गया जो जनाब तुनक कर चले गए. कई बार कहा कि मेरे काम के बीच में न बोला करो पर नहीं. भुनभुनाते हुए उस ने आंच जला कर दूध की बोतल उबलने रख दी. इसी मुई के पीछे लड़ाई हुई आज. अब गुडि़या की बोतल से दूध पीने की आदत भी छुड़ानी है.

2 साल की होने को आई पर अभी भी दूध पीने के लिए बोतल ही चाहिए. अब उसे गुडि़या पर गुस्सा आने लगा. पर उस बेचारी की क्या गलती, वह तो नासमझ है अभी. फिर वह सोचने लगी कि मेरी ही गलती है. सोचती हमेशा हूं, पर छुड़ाने की कोशिश में कोई उपाय नहीं करती. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. मोनू ने भी 3 साल तक बोतल से दूध पीया था. बड़ी परेशानी हुई थी. रसोई साफ कर के तनु जल्दी बाहर गई. आज उस का मन नहीं लग रहा था. गुडि़या पड़ोस में खेल रही थी. तनु ने गुडि़या को आवाज दी तो रीता उसे ले आई. ‘‘जा अपनी मां के पास, मुझे भी कालेज जाना है,’’

गुडि़या को प्यार से धौल जमाती हुई रीता ने गुडि़या को तनु के हवाले कर दिया. गुडि़या को ले कर वह जल्दी अंदर आ गई. उस का मन छटपटा रहा था कि रीता से कह दे आज गुडि़या के पापा बिना नाश्ता किए गुस्से में चले गए पर फिर मन काबू में कर लिया कि क्या बताना? अभी यह बताऊंगी फिर यदि वह कहीं बढ़ाचढ़ा कर अपनी भाभी या मां को बता देगी तो वे पूछने ही चली आएंगी. उन्हें पूरा विस्तार सहित वर्णन कर के सुनाओ. फिर फायदा ही क्या है? अपनी ही बदनामी होगी.

कल को महल्लेभर में हवा फैल जाएगी कि तनु की तो अपने पति से पटती ही नहीं है. जबतब नाराज हो कर भूखे ही चले जाते हैं बेचारे. यही तो होता है इस कालोनी में. हालांकि 10 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है. वैसे पड़ोसी अच्छे हैं. बच्चों के कारण उठनाबैठना हो जाता है. उन के घर में छोटे बच्चे नहीं हैं तो सब शौक से ले जाते हैं गुडि़या को खिलाने. वह भी सोचती है चलो अच्छा ही है काम आराम से हो जाता है थोड़ा, नहीं तो यह गुडि़या परेशान करती है. तनु ने गुडि़या को नहलाधुला कर तैयार किया.

फिर दोपहर बाद मोनू स्कूल से आ गया. मोनू के भी कपड़े बदलवा कर मुंहहाथ धुलाए. खाना खिला कर दोनों को सुला दिया. आज उस का मन बड़ा अनमना था. तनु को बीते दिनों की यादें सहलाने लगीं… जब उस की शादी हुई थी और नईनई आई थी तो नलिन कितनी तारीफ करता था उस की. तब नयानया चाव था. घर को खूब साफसुथरा और सजा कर रखती थी वह. उस की जौब अच्छी थी. दिनभर काम कर के भी वह घर सजाने में थकती नहीं थी. दिनरात कैसे इंद्रधनुष की तरह सतरंगे थे. फिर मोनू आ गया.

दोनों बहुत खुश हुए. वे दोनों मोनू की 1-1 हरकत को जिज्ञासु बन कर देखते, उस के साथ बच्चे बन कर खेलते. फिर मोनू हो गया. अब चाह कर मेड होने पर भी वह घर को उतना साफसुथरा नहीं रख पाती थी. मोनू में भी व्यस्त रहना पड़ता. मोनू के 5 साल के होतेहोते गुडि़या हो गई. तनु खुश हो गई कि उस का परिवार पूर्ण हो गया. वह सोचती अब और कुछ नहीं चाहिए. छोटीछोटी बातों को ले कर तो 10 वर्षों में सैकड़ों बार नोकझोंक हुई दोनों में पर ऐसा पहली बार हुआ कि नलिन नाश्ता और खाना छोड़ कर बिना बताए चला गया. इसीलिए तनु का बिलकुल मन नहीं लग रहा था किसी भी काम में.

उस ने भी खाना नहीं खाया. न नाश्ता ही किया. भूखी ही पड़ी रही. भूख के कारण रहरह कर क्रोध भी आ रहा था. मां के यहां रहने को कितना मन करता है, वह सोचने लगी पर रह नहीं पाती, इसीलिए कि इन्हें खानेपीने की तकलीफ होगी मेरे पीछे. उसे गए 10-12 दिन हुए नहीं कि नलिन के फोन आने लगेंगे, धड़ाधड़. फिर उस का मन ही नहीं लगता. पर मां से कहते हुए झिझक लगती है कि मैं अब जाऊंगी.

इसीलिए भाभी से कहलवाती है. पर भाभी भी कम थोड़े ही हैं, बहुत तेज हैं. बड़ी शरारत से मां से कहेंगी, ‘‘दीदी का अब मन नहीं लग रहा है मां आप के घर में. उन्हें भेज दीजिए.’’ तनु आंखें तरेरती है. तब चुटकी काट कर भाभी कहतीं, ‘‘अब आंखें क्यों दिखा रही हो? तुम्हीं ने तो कहा था कि मां से कह कर तुम्हें भिजवा दूं.’’ भाभी की शरारतें याद कर के तनु को मीठीमीठी गुदगुदी सी होने लगी कि बड़ी अच्छी हैं बेचारी, पर उन के पास अधिक दिन रह नहीं पाती. तनु फिर वर्तमान में लौट गई. पता नहीं क्या खाया होगा नलिन ने. 2 बार सोचा फोन करे पर फिर डर लगा कि कहीं वे गुस्सा न करें. कैंटीन का खाना नलिन को बिलकुल पसंद नहीं आता. मिर्च ज्यादा रहती है और वे मिर्च एकदम नहीं खा पाते, इसीलिए घर से खाना ले जाते हैं.

तनु का क्रोध बर्फ पर पड़ रही धूप की तरह धीरेधीरे पिघलने लगा. अब उसे स्वयं पर क्रोध आने लगा कि गलती मेरी है, ठीक ही तो कहते हैं नलिन, मैं छोटीछोटी बातों में बहुत लापरवाही करती हूं कई बार. सुबह से बहस में लग गई. बस यही कह देती कि भूल गई अभी रख दूंगी. बात वहीं खत्म हो जाती. तनु को मन ही मन ग्लानि होने लगी… कितना प्यार करते हैं नलिन उसे और एक वह है कि उन का जरा ध्यान नहीं रख पाती. बहुत देर से दबाया हुआ सैलाब उमड़ पड़ा. वह अभी रो ही रही थी कि मोनू जाग गया. उसे रोता देख कर वह सहम गया, ‘‘क्या हुआ मां?’’ मोनू ने पूछा. ‘‘कुछ नहीं,’’ तनु जल्दी से आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘तुम मुंह धो कर आओ मैं दूध ला रही हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ मोनू ने आगे कुछ नहीं पूछा और मुंह धोने चला गया. तनु रसोई में दूध गरम कर ही रही थी कि मोनू वहीं पहुंच गया, ‘‘अरे आज पापा लंच बाक्स नहीं ले गए?’’ रसोई में रखे लंचबौक्स को देख कर मोनू ने पूछा. बिलकुल बाप पर गया है, तनु मन ही मनु बड़बड़ाई. हर बात की खबर रहती है इसे. ‘‘क्यों नहीं ले गए मां,’’ मोनू ने कोई जवाब न पा कर फिर पूछा. ‘‘जल्दी में भूल गए और सुन, तू रसोई में मत घुसा कर. अभी से हर बात में ऐसा क्यों, वैसा क्यों नहीं करते.’’ झिड़की सुन कर मोनू चुप हो गया. फिर जल्दीजल्दी दूध पी कर अपने मोबाइल में बिजी हो गया.

तनु फिर सोचने लगी कि नलिन कहता है छोटीछोटी तकरार और नोकझोंक जीवन का स्वाद बदलने के लिए जरूरी है तनु. इस से आपसी प्यार भी बढ़ता है, पर इस की भी एक सीमा होनी चाहिए. उस चरमसीमा को हम कभी पार नहीं करेंगे. आज वह सीमा पार कर गई है क्या? नहीं, बिलकुल नहीं. तनु ने सोचा कि नलिन के आते ही वह उस से माफी मांग लेगी. गलती उसी की है. वह सीमा तो तब पार होगी जब उस का झठा अहं आड़े आएगा. पतिपत्नी के बीच अहं कैसा? 10 वर्षों से सुखी दांपत्य जीवन में उन के अहं आपस में कभी नहीं टकराए.

गलती महसूस हुई तो स्वीकार भी कर ली, नहीं हुई तो बात को वहीं छोड़ कर भूल गए. यह नहीं कि बोलचाल बंद हुई हो या मनमुटाव बढ़ गया हो. आज यह पहली बार हुआ कि नलिन तनु से बिना कुछ कहे चला गया. शायद ज्यादा नाराज हैं. तनु ने सोचा कि मना लूंगी. 5 बजते ही मोनू अपना होमवर्क पूरा कर मोबाइल छोड़ कर बालकनी में खड़ा हो गया. कितना भी खेल में मस्त होगा, पर न जाने उसे समय का अंदाज कैसे पड़ जाता है. नलिन की बाइक दिखते ही दोनों बच्चे खुश हो जाते हैं. ‘‘पापा, पापा आज आप अपना लंचबौक्स नहीं ले गए थे, फिर खाया क्या?’’ मोनू ने नलिन के आते ही गले में लटक कर पूछा. ‘‘खा लिया था कैंटीन में ही.’’ ‘‘पापा, आज मां पता नहीं क्यों रो रही थीं?’’ ‘‘चलो भागो, अपना काम करो,’’ नलिन चुगली की आदत पर नाराज हो गया.

कनखियों से नलिन के चेहरे पर होने वाली प्रतिक्रिया पर तनु ने गौर किया. एक क्षण को उस के चेहरे पर ग्लानि के भाव उभरे. ‘‘आज मेरे कारण ही सब हुआ. मुझ से सचमुच गलती हो गई,’’ तनु की रोंआसी सी आवाज निकली. अपनी सफाई में वह अधिक नहीं बोल पाई. ‘‘अरे नहीं, गलती मेरी है. तुम्हें तुम्हारे ढंग से काम नहीं करने देता, अपनी टांग अड़ाता हूं हर काम में,’’ नलिन तनु को बांहों के घेरे में समेट कर बोला, ‘‘और सुबह तो मैं गुस्से में था ही. अचानक याद आया कि आज तो जल्दी जाना था तो बस फटाफट तैयार हो कर चल दिया. मैं ने बाहर से ही आवाज भी दी थी कि मैं जा रहा हूं. शायद तुम ने सुना न होगा.

अंदर आ कर कहता तो तुम्हें सब बताना पड़ता. कहां जाना है? क्यों जाना है? देर हो जाती. इसलिए बाद में बहुत पछताया. बिलकुल समय नहीं मिला, नहीं तो बीच में मैसेज कर देता. एक के पीछे एक काम लगा रहा.’’ ‘‘मेरा तो दिनभर किसी काम में मन ही नहीं लगा,’’ तनु बोली, ‘‘अब ऐसा मत करना. कुछ खाया भी नहीं गया. पर अब मैं बेमतलब की बहस नहीं करूंगी. वादा करती हूं.’’ ‘‘ऐसे वादे तो तुम पहले भी कई बार कर चुकी हो और मैं भी कई बार कह चुका हूं कि मैं भी तुम्हारे काम में दखल नहीं दूंगा.

अब घरगृहस्थी की जिम्मेदारी तुम्हारी है, तुम जानो,’’ नलिन ठहाका लगा कर बोला. ‘‘चलो इसी खुशी में आज चाय मैं बनाता हूं.’’ ‘‘लेकिन तुम तो अभी कह रहे थे…’’ ‘‘कि तुम्हारे काम में दखल नहीं दूंगा. चाय बनाते समय खबरदार तुम किचन में आई. पकौड़े भी बनाऊंगा. चायपकौड़े बनाने के लिए थोड़े ही मना किया है,’’ नलिन ने इस ढंग से कहा कि तनु भी जोर से हंस पड़ी. उस की दिनभर की उदासी और नलिन की थकान दूर हो गई और दोनों खो गए फिर अपने सुखमय संसार में, जहां एकदूसरे के सान्निध्य में उन्हें एक अलौकिक सुख की अनुभूति होती है, आत्मिक तृप्ति मिलती है. Family Story in Hindi

Hindi Sad Story: सुख के सब साथी

Hindi Sad Story: ‘‘भैया, मैं… मैं जल्द ही आप के पैसे लौटा दूंगी, सच कहती हूं. लेकिन अभी मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. प्लीज भैया,’’ घिघायाते हुए आरती अपने बड़े भाई से बोल रही थी कि इस संकट की घड़ी में मायके वालों के सिवा और कोई नहीं है जो उस की मदद कर सके. मगर आरती के भाई ने दोटूक शब्दों में यह बोल कर फोन रख दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं तो कहां से दे.

आरती ने जब अपने छोटे भाई मनोज से जोकि अपने परिवार के साथ बैंगलुरु में रहता है, मदद मांगी तो उस ने भी यह बोल कर फोन रख दिया कि इतने बड़े शहर में यहां अपना ही खर्चा चलाना मुश्किल है तो वह उसे पैसे कहां से दे पाएगा. फिर कई बार उस ने फोन मिलाया, पर उस के भाइयों ने फोन बंद कर दिया ताकि आरती फोन करकर के उन्हें परेशान न कर सके. दोस्त, नातेरिश्तेदारों ने भी इस आढ़े वक्त में आरती की मदद करने से इनकार कर दिया. जब अपनों ने ही मुंह मोड़ लिया तो परायों से क्या आस.

लेकिन आरती को अब समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करेगी? कहां से पैसे लाएगी? नरेश से तो कुछ बोल नहीं सकती है क्योंकि वह तो खुद ही अस्पताल में पड़ा है और बच्चे क्या समझेंगे उस की परेशानी? उन्हें तो यही पता है कि उस के पापा को चोट लगी है इसलिए अस्पताल में भरती हैं, जल्दी घर वापस आ जाएंगे. नरेश के ऐक्सीडैंट के बारे में बता कर वह बच्चों को टैंशन नहीं देना चाहती थी. इसलिए उन से इतना ही कहा कि उन के पापा को मामूली चोट लगी है, जल्दी ठीक हो कर घर आ जाएंगे. मगर बिट्टू अब कोई बच्चा नहीं रहा, सब समझता है वह.

दरअसल, उस रोज औफिस जाते समय नरेश की बाइक को पीछे से एक गाड़ी ने इतनी जोर का धक्का मारा कि वह सीधे खाई में जा गिरा. वह गाड़ी वाला तो वहां से भाग गया, लेकिन आसपास के लोगों ने दौड़ कर नरेश को वहां से बाहर निकाला वरना तो शायद वह वहां पड़ापड़ा मर ही जाता. उन लोगों ने ही पुलिस को खबर दी. नरेश को जल्दी अस्पताल पहुंचाया गया. आरती को जब नरेश के ऐक्सीडैंट की बात पता चली तो उस के तो हाथपांव ही थरथराने लगे थे.

दोनों बच्चे स्कूल में थे इसलिए पड़ोस में चाबी दे कर वह पागलों की तरह अस्पताल भागी. डाक्टर ने जब बताया कि उस ऐक्सीडैंट में नरेश के कमर और दोनों पैरों की हड्डियां टूट गई हैं तो आरती वहीं धम्म से जमीन पर बैठ कर बिलखबिलख कर रोने लगी. आरती की मनोस्थिति देख तभी नरेश के एक दोस्त ने अस्पताल में पैसे भर दिए थे ताकि जल्दी से जल्दी उस का औपरेशन शुरू हो सके.

औपरेशन के बाद डाक्टर ने बताया कि नरेश खतरे से बाहर हैं, लेकिन अभी उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में कम से कम 6 महीने तो लग ही जाएंगे. ‘6 महीने’ सोच कर ही आरती का दिमाग घूम गया था क्योंकि अब घर का खर्चा, नरेश की दवाइयां, बच्चों की पढ़ाई वगैरह कैसे हो पाएगी. 6 महीने अकेले सबकुछ कैसे मैनेज करेगी वह? लेकिन जब इंसान पर दुख पड़ता है तो सहने की शक्ति भी आ जाती है. नरेश का एक दोस्त रात में उस के पास रुक जाता था. सुबह वह बच्चों को स्कूल भेज कर, घर के सारे काम निबटा कर अस्पताल चली आती थी.

इन दिनों वह जिन झंझवातों से गुजर रही थी वही जानती थी. पैसों की किल्लत, घरबच्चों की देखभाल और सुबहशाम अस्पताल के चक्कर लगातेलगाते वह थक चुकी थी तन और मन दोनों से. कभी मन होता नरेश को बताए. लेकिन वह तो खुद ही अभी बैड पर पड़ा कराह रहा है तो उस से क्या कहे. दर्द के मारे जब नरेश चिल्लाने लगता तो आरती दौड़ कर नर्स को बुला लाती ताकि वह उसे दर्द का इंजैक्शन लगा सके और नरेश चैन की नींद सो सके.

जब नरेश कभी यहां दर्द तो कभी वहां दर्द की शिकायतें करता तो मन ही मन आरती चिढ़ उठती कि खुद तो कष्ट में हैं ही, परिवार को भी कष्ट मे डाल दिया. क्या ठीक से बाइक नहीं चला सकते थे? कितनी बार समझया था आरती ने बाइक से नहीं कार से औफिस जाया करो. लेकिन वे कहते कि क्यों ज्यादा पैट्रोल खर्च करे जब बाइक से औफिस जाया जा सकता है. लेकिन कुछ पैसे बचाने के चक्कर में कैसे चक्कर में पड़ गए यह तो देखो. मगर क्या गारंटी थी कि कार से नरेश का ऐक्सीडैंट नहीं हो सकता था? होनी तो हो कर रहती है, चाहे जैसे हो. अपने मन में ही सोच आरती खुद को समझती. लेकिन ये सब जो समस्याएं आन पड़ी हैं उन से वह अकेले कैसे निबट रही है वही जानती है.

आज सोचती है पैसे बचा कर रखने की आदत डालती तो यों उस सब के सामने हाथ न फैलाना पड़ता. घर खर्च से जो भी पैसे बचते उन से वह शौपिंग कर आती थी. पैसे आते ही उस के हाथों में खुजली होने लगती थी. नरेश को पता था आरती बहुत खर्चालु औरत है. तभी तो वह उसे कोई कार्ड वगैरह हाथ में नहीं देता था. एक मायका ही था जिस से आरती को आस थी. लेकिन उन्होंने भी आरती की मदद करने से इनकार कर दिया. भाइयों का परायापन व्यवहार देख कर आरती के दिल को कितनी ठेश पहुंची थी वही जानती है.

लेकिन किस से कहे वह अपना दर्द? जिस भाई ने बचपन से उसे एक पिता की तरह प्यार किया, आज कैसे वह एकदम से पराया हो गया सोच कर ही आरती के आंसू नहीं रुक रहे थे. जिस छोटे भाई को आरती ने अपनी गोद में खेलाया, आज उसी भाई को बहन का दर्द दिखाई नहीं दिया. कैसे पलट कर बोल दिया कि यहां अपने ही खर्चे कम हैं क्या? यही आरती अपने भाइयों को राखी बांधती आई है. उन की लंबी उम्र की दुआ मांगती आई है. लेकिन आज जब उस के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है तो कैसे उन्हीं भाइयों ने उस से मुंह फेर लिया. कहावत है न, ‘हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और.’

समाज की नजरों में एक अच्छे भाई बनने का सिर्फ दिखावा किया उन्होंने. लेकिन आज जब सच में कुछ करने की बारी आई तो हाथ खड़े कर दिए. आरती के भाईभाभियों का कुछ महीनों से अजीब व्यवहार हो गया था क्योंकि जब भी आरती तीजत्योहार पर अपने मायके जाती, निश्चित तौर पर उन के बीच झगड़ा शुरू हो जाता था. हमेशा की तरह भावनाओं में बह कर आरती सब के लिए उपहार ले कर जाती ही थी.

लेकिन कैसे उस की भाभी उस के लाए उपहार कहीं कोने में रख देती और कहती कि अब ये सब लाने की क्या जरूरत थी. जितनी हंसीखुशी से आरती अपने मायके जाती थी उतनी ही दुखी हो कर वापस आती थी. फिर भी कभी आरती को यह नहीं लगा कि अब उस का मायका पहले जैसा नहीं रहा.उसे तो अब भी यही लगता था कि उस के भैयाभाभी उस से बहुत स्नेह रखते हैं. लेकिन आज आरती का भ्रम टूट चुका था.

अपनी ससुराल वालों से आरती किस मुंह से मदद मांगती क्योंकि उस ने ही तो उन से अपना सारा नातारिश्ता खत्म कर लिया था. नरेश के दिल में उन के प्रति इतनी नफरत भर दी कि नरेश अपने परिवार वालों को देखना भी नहीं चाहता कि वह उन की जिंदगी में कोई दखल दें या यहां आएं. नरेश के परिवार वाले उस की सुखसुविधाओं और संपन्नता से जलते हैं. उस के मातापिता नरेश से ज्यादा अपने बड़े बेटेबहू और उन के बच्चों को प्यार करते हैं. तभी तो हर वक्त उन्हें उन्हीं की चिंता लगी रहती है.

आरती यह कहकह कर नरेश के मन में उन के लिए जहर भरती रहती थी कि कहीं घर और जमीनजायदाद भी उस के मातापिता अपने बड़े बेटेबहू के नाम न कर दें. आरती की बातों में आ कर नरेश को भी लगने लगा था कि उस के मांपिताजी उस से ज्यादा उस के बड़े भाई विनोद को प्यार करते हैं. तभी तो जब देखो उन की ही फिक्र लगी रहती है उन्हें. लेकिन नरेश यह बात भूल गया कि पैसे की कमी के बावजूद उस के पिताजी ने उसे बाहर पढ़ने भेजा था ताकि वह एक बड़ा इंजीनियर बन सके.

तब विनोद भी तो बोल सकता था न कि उसे शहर पढ़ने क्यों नहीं भेजा गया? उसे क्यों नहीं इंजीनियर बनाया? क्यों उसे 12वीं तक पढ़ा कर खेतीबाड़ी में लगा दिया गया? लेकिन कभी उस ने अपने मुंह से ऐसी बात नहीं निकाली बल्कि वह तो खुश होता था अपने छोटे भाई को इतनी बड़ी पोस्ट पर देख कर. जब भी विनोद दिल्ली अपने भाई के घर आता उस के जीनेरहने के तौरतरीके देख कर खुश हो जाता था.

आरती के सासससुर जब भी दिल्ली आते, अपने साथ घर का बना घी, पेडे़, देशी चबाना ले कर आते थे. मगर खुश होने के बजाय आरती मुंह बनाते हुए कहती, ‘‘हुं. कौन खाता है ये सब चीजें. बेकार में माता लाया करो, बरबाद ही होते हैं,’’ कह कर वह अपनी सास के सामने ही उन के लाए सामान को घर के नौकर को दे देती थी. बेचारी उस की सास को कितना बुरा लगता होगा यह उस ने कभी नहीं सोचा. उन के आने से घर के काम बढ़ जाते थे, जगह छोटी पड़ जाती थी. इस बात की भी वह नरेश से शिकायत करती. आरती यह बोल कर नरेश के कान भरती, ‘‘जानते हो तुम्हारे मांबाबूजी क्या बोल रहे थे? कह रहे थे कि नरेश को तो इतनी अच्छी नौकरी है, अपने दोनों बेटों को बड़ेबड़े स्कूल में पढ़ालिखा सकता है. प

र बेचारा विनोद क्या करेगा. कैसे 3-3 बेटियों को पालेगा? सोच कर ही मुझे चिंता होती है. तुम्हारे मांबाबूजी के बोलने का मतलब है कि हम अपना हिस्सा छोड दें. अरे, हम क्यों छोड़ें अपना हिस्सा? देखो, मैं तो कहती हूं जितनी जल्दी हो सके अपना हिस्सा ले कर रामसलाम कर दो इन्हें. कल को क्या पाता अगर तुम्हारे मांबाबूजी नहीं रहें तो तुम्हारे भैयाभाभी तो सारी संपत्ति हड़प लेंगे. फिर समझ लो कुछ हाथ नहीं आएगा हमारे. कब से सोच रही हूं एक बड़ा 3 कमरे वाला घर हो हमारा.

बच्चे बड़े हो रहे हैं तो इन्हें भी तो अब अपना कमरा चाहिए कि नहीं.’’ आरती की कही 1-1 बात नरेश को सही लगने लगा था. उसे भी लगने था कि अगर उस के मांबाबूजी को कुछ हो गया तो कहीं उस के भैयाभाभी सारी संपत्ति अपने नाम न करा लें. इसलिए अपने मांबाबूजी से लड़झगड़ कर नरेश ने अपना हिस्सा अपने नाम करवा लिया और फिर उस संपत्ति को बेच कर उसने यहां दिल्ली में बड़ा घर खरीद लिया. नरेश और आरती के पराए व्यवहार से दुखी हो कर उन लोगों ने यहां आना ही छोड़ दिया फिर.

अब आरती यही तो चाहती थी कि उस की ससुराल वाले उन से दूर रहें ताकि वह अपने मायके वालों का खुल कर सत्कार कर सके. जब भी आरती के मायके वाले दिल्ली आते, आरती पागलों की तरह उन की खातिरदारी में लग जाती थी और सिर्फ आरती ही नहीं, नरेश भी उन के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे. उन की खातिरदारी में कोई कमी न रहे इसलिए वह छुट्टी ले कर तैनात रहता था.

कभीकभी तो महीनोंमहीनों वे आरती के घर रह जाते थे क्योंकि कहां बिहार का एक छोटा सा शहर और कहां दिल्ली जैसा बड़ा शहर. आते तो फिर जाने का मन ही नहीं होता उन का. क्या तब आरती के घर का बजट नहीं बिगड़ता था? उस के मायके वालों के आने से उस का घर छोटा नहीं पड़ता था? कैसे खुशीखुशी वह उन के लिए रोज नएनए पकवान बनाती और खिलाती थी. छुट्टी ले कर, पैट्रोल खर्च कर नरेश उन्हें दिल्ली की सैर कराता. बड़ेबड़े होटलों में पार्टी देता. लेकिन कभी उफ तक नहीं करता कि इतना खर्च क्यों करती हो, कहां से लाऊंगा मैं पैसे? जब वे लोग यहां से जाने लगते तो आरती सब के लिए महंगेमहंगे उपहार खरीदती.

उन के लिए प्लेन का टिकट भी वही कटवा कर देती थी यह बोल कर कि क्या बेटी का हक नहीं है अपने मायके वालों के लिए कुछ करने का? मगर आज उन्हीं मायके वालों ने कैसे उसे ठेंगा दिखा दिया. आरती को दुख तो इस बात का है कि भाभियां तो फिर भी दूसरे घर की हैं, लेकिन दोनों भाई तो उस के अपने थे न? फिर कैसे उन्हें उस का दुख नजर नहीं आया. मां के गुजरने के बाद जिन भाइयों को उस ने पिता का दर्जा दिया और भाभियों को मां का, उन्होंने ही इस संकट की घड़ी में उस से मुंह मोड़ लिया.

अभी भी आरती को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा है कि उस के भाइयों ने उस की मदद करने से इनकार कर दिया. सही कहते हैं लोग कि सुख के सब साथी, दुख में न कोई. जब आरती के पास पैसा था कैसे वही लोग लाड दिखादिखा कर यहां चले आते थे. लेकिन आज वही लोग मुसीबत पड़ने पर देखने तक नहीं आए. शायद यह सोच कर कि कहीं अस्पताल के सारे बिल उन्हें ही न चुकाने पड़ जाएं, इसलिए कोई भी बहाना बना दिया, सोचते हुए आरती ने एक गहरी सांस भरी कि तभी नर्स आ कर उसे दवाई का परचा पकड़ा गई और कहा कि इसे तुरंत लाना है. अब तक गिरवी रखी 2 सोने की चूडि़यों से खर्चे चल रहे थे. लेकिन अब आगे वह क्या करेगी समझ नहीं आ रहा था.

कभी इन्हीं भाईभतीजों पर आरती ने दोनों हाथों से पैसे लुटाए थे लेकिन आज वही 1-1 पैसे के लिए मुहताज हो रही है. उस के खर्चीले स्वभाव देख कर कभीकभी नरेश कहता भी कि आरती, घर खर्च से जो भी पैसे बचते हैं, उन्हें बचत खाते में डाल कर भूल जाया करो. देखना कभी काम आएंगे. मगर हंसते हुए आरती कहती कि जिंदगी 4 दिन की होती है नरेश. खाओपीयो, मौज करो. कभी उस ने नरेश की बातों को सीरियसली लिया ही नहीं. अगर कुछ पैसे जोड़े होते तो आज यह नौबत न आती.

नरेश के लिए सीमित आमदनी और बढ़ती महंगाई में घर चलना कितना मुश्किल हो जाता था यह आरती समझती ही नहीं थी. दिल्ली जैसे महानगर में एक इंजीनियर की तनख्वाह से क्या हो सकता था? केवल दोनों बच्चों की पढ़ाई में ही लाखों रुपए स्वाहा हो जाते थे. लेकिन आरती को कौन समझए यह सब. उसे तो बस होटलों में खाना, घूमना और मायके वालों को बुलाने से ही फुरसत नहीं थी. आरती के खर्चीले व्यवहार के कारण कभीकभी नरेश चिंचित हो उठता था.

कहता कि किसी पर खर्च करो, मना नहीं करता मैं, पर अपनी हैसियत के अनुसार खर्च करो. हम कोई अंबानी या टाटा, बिरला तो हैं नहीं कि खर्चे का हम पर कोई असर नहीं पड़ेगा.अगर मैं आर्थिक रूप से कमजोर हो जाऊंगा तो तुम भी हो जाओगी. मगर आरती को समझने का मतलब था पत्थर पर सिर पटकना और तो और वह नरेश को ही कंजूस बोल कर उस का मजाक उड़ाती थी. लेकिन आज उसे एहसास हो रहा है कि नरेश कितना सही कहते थे. खैर, अब जो भी जेवर बचे थे उन्हें ही बेच कर वह किसी तरह घर चलाएगी क्योंकि अभी नरेश को दवाइयां और पौष्टिक खाने की जरूरत है. बच्चों की पढ़ाई का खर्चा, सब कैसे हो पाएगा? इसलिए आरती अपने गहने ले कर सुनार के पास चली गई.

गहने देखनेपरखने के बाद सुनार ने उसे 1 लाख और कुछ हजार दिए. अभी वह पैसे ले कर दुकान से निकली ही थी कि एक आदमी ने पीछे से टोका कि बहनजी, आप का कुछ गिर गया है. वह देखने के लिए जैसे ही मुड़ी, दूसरा आदमी उस के हाथ से पर्स ले कर रफूचक्कर हो गया. वह भागी उस के पीछे, चिल्लाई. उस की मदद के लिए वहां खड़े लोग भी भागे भी पर न जाने वह आदमी कहां लापता हो गया. वहां खड़े लोग कहने लगे कि चोरों का एक गिरोह है यहां, इसलिए उसे संभल कर रहना चाहिए था. सही कहते हैं, जब मुसीबत आती है तो चारों तरफ से आती है.

अपने आंसू पोछते हुए किसी तरह लड़खड़ाते कदमों से आरती आगे बढ़ने लगी. समझ नहीं आ रहा था अब क्या करेगी ? कहां से पैसे लाएगी? मन तो कर रहा था ट्रेन के नीचे सिर दे दे ताकि सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाए. लेकिन वह भी नहीं कर सकती थी वह क्योंकि वहां अस्पताल में पति पड़ा है और घर में बच्चे उस का इंतजार कर रहे हैं. इतने दिनों से कैसे उस ने अपने आंसू जब्त किए हुए हैं वही जानती है क्योंकि न तो वह बीमार पति के सामने रो सकती थी और न ही बच्चों के समाने. सारे दुख अपने अंदर समेटे तिलतिल कर मर रही थी. आरती कुछ देर पार्क की बैंच पर जा कर बैठ गई और सिसकसिसक कर रोने लगी. उसे आज पूरी दुनिया वीरान, सुनसान लग रही थी. वह अपनेआप को आज एकदम अकेला महसूस कर रही थी. उसे लग रहा था ये रिश्तेनाते सब झठे हैं. कोई किसी का नहीं है इस दुनिया में.

सब मतलबी और स्वार्थी हैं. जब सुख और अच्छा वक्त था, मायके वाले उस के साथ रहे. जब तक वह सब के मनमुताबिक चलती रही, उन के काम आती रही, अच्छी थी. लेकिन आज उस पर दुख की जरा सी छाया क्या पड़ गई, सब कैसे पराए हो गए. सपने में भी नहीं सोचा था कि उस के मायके वाले यों उस से मुंह फेर लेंगे. संपत्ति भाइयों के हाथ आते कैसे उन के तेवर भी बदल गए. आरती के पिता के मरते ही दोनों भाइयों ने सारी संपत्ति बराबर में बांट ली. दोनों बहनों को पूछा तक नहीं. लेकिन क्या यहां पापा की गलती नहीं थी? अगर वे जीतेजी अपने चारों बच्चों में संपत्ति का बंटवारा कर देते तो अच्छा नहीं होता. आरती की बड़ी बहन गीता गुस्से से उबल रही थी. उस का कहना था कि जब संपत्ति में वे दोनों भी बराबर की हकदार हैं, फिर क्यों छोड़ें अपना हक? उन के भी तो बच्चे हैं, उन्हें भी तो अपने बच्चों को ऊंची शिक्षा दिलानी है.

अगर आरती साथ दे तो वे अपना हक मांग सकती हैं. अगर देने से आनाकानी करेंगे तो फिर कानून तो है ही. गीता का कहना था कि वे अपना हक कानून के जरीए ले सकती हैं. लेकिन उस की बात पर आंखें बड़ी कर आरती बोली थी कि क्या अब अपने भाइयों को हम कोर्ट में घसीटेंगे? और कमी क्या है हमें जो कुछ पैसों के लिए हम भाइयों से अपना रिश्ता बिगाड़ें? नहीं चाहिए हमें कोई हकवक. मायका बना रहे, मानसम्मान मिलता रहे यही काफी है. अगर गीता को लेना है तो मांगे जा कर, पर उसे कुछ भी नहीं चाहिए और तब से ही दोनों बहनों में मतभेद हो गया था. दोनों ने एकदूसरे के घर आनाजाना और बातचीत करना भी बंद कर दिया था.

नहीं पता था आरती को कि जिन भाइयों के लिए उस के दिल में इतना प्यार और सम्मान था, जिन के लिए उस ने अपनी बड़ी बहन से रिश्ता बिगाड़ लिया, ससुराल वालों की भी परवाह नहीं की, उन्हीं भाइयों के दिल में उस के लिए इतना मैल भरा है. सही कहती थी गीता कि यह सब बस कुछ दिनों का दिखावा है. देखना एक दिन ये हमें पूछना तो दूर अपने घर में चढ़ने तक नहीं देंगे. मगर तब आरती ने उस की बातों को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दिया था. उसे लगा था गीता पगला गई है, इसलिए कुछ भी बोल देती है. उसे अपनी बहन एक लालची औरत और भाइयों का दुश्मन नजर आई थी, लेकिन आज लगता है गीता कितनी सही थी. कितना समझती थी वह उन्हें. आरती ही पगली थी जो अपने पति की मेहनत की कमाई उन पर लुटाती रही. तभी फोन की घंटी से आरती वर्तमान में पहुंच गई. देखा तो बिट्टू का फोन था. वह बिट्टू को नरेश के पास छोड़ आई थी कि पता नहीं कब उसे किस चीज की जरूरत पड़ जाए. पिंकी छोटी है उसे अस्पताल में नहीं छोड़ सकती थी.

लेकिन बिट्टू जरा समझदार है इसलिए उसे ही नरेश के पास कुछ देर छोड़ देती है रोज ताकि घरबाहर के काम कर सके. फोन पर बिट्टू की घबराहट भरी आवाज सुन कर आरती के तो होश ही उ़ड़ गए. उसे लगा कहीं नरेश को कुछ हो तो नहीं गया ? ‘‘क्या हुआ बिट्टू… तुम्हारे पापा तो ठीक हैं न? बता न?’’ घबराते हुए आरती बोली. मगर बिट्टू ने यह बोल कर फोन रख दिया कि जल्दी आओ. किसी तरह दौड़तेहांफते आरती जब अस्पताल पहुंची तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जो वह देख रही है सही है.

उस की ससुराल वाले नरेश को घेरे खड़े थे और नरेश मुसकरा रहा था, ‘‘मां…’’ कह कर आरती अपनी सास के गले लग कर फूटफूट कर रोने लगी. उस का रोना देख सास की भी रुलाई फूट पड़ी. ‘‘तो क्या हम इतने पराए हो गए कि छोटे बबुआ के ऐक्सीडैंट की खबर भी नहीं दे सकती थी? बिट्टू न बताता तो हमें पता भी नहीं चलता,’’ एक मीठे उलाहने के साथ आरती की जेठानी ने भींच कर उसे सीने से सटा लिया. अभी कुछ देर पहले जो आरती अपनेआप को बहुत अकेला और कमजोर समझ रही थी, इन्हें देख अपनेआप को ताकतवर महसूस करने लगी. लगा एकदम से दुख आधा हो गया उस का.

अपने परिवार से मिल कर नरेश कैसे अपना सारा दर्द भूल कर हंस रहा था और बच्चे भी अपने दादादादी, तायाताई को देख कितने खुश नजर आ रहे थे. मन ही मन आरती अपनेआप को कोस रही थी कि उस ने ही नरेश को उस के परिवार से तुड़वाया, सब के लिए उस के मन में जहर भरा. कितनी बेइज्जती की थी उस ने अपनी ससुराल वालों की, वह भी सिर्फ अपने मायके वालो के लिए. लेकिन आज इस दुख की घड़ी में इन्हीं लोगों ने उस का साथ दिया. डाक्टर को अंदर आते देख सब साइड में खड़े हो गए. जांच कर हंसते हुए डाक्टर ने कहा कि नरेश अच्छा इंपूर्व कर रहा है और अगर ऐसा ही रहा तो जल्द ही वह अपने घर जा सकता है. सुन कर सब हर्षित हो गए कि नरेश ठीक हो रहा है. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पा कर जब आरती मुड़ी और सामने अपनी बड़ी बहन गीता को देखा तो भरभरा कर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. गीता को भी बिट्टू ने ही फोन कर नरेश के एंक्सीडैंट की खबर दी थी.

‘‘दीदी, मुझे माफ कर दो मैं ने आप के साथ बहुत गलत…’’ मगर गीता ने बीच में ही उस के मुंह पर उंगली रख दी यह बोल कर कि जो हुआ उसे भूल जाओ. ‘‘नहीं दीदी, नहीं भूल सकती मैं. कैसे मैं ने आप का अपमान किया था. यहां तक कि मैं ने आप को लालची और भाइयों का दुश्मन भी बोल दिया था. लेकिन फिर भी आप सबकुछ भूल कर नरेश को देखने आईं. लेकिन हमारे स्वार्थी भाइयों ने जो मेरे साथ किया उसे मैं कभी भूल नहीं सकती दीदी. देख लिया मैं ने दीदी कि कौन मेरे सुख के साथी थे और कौन दुख के हैं. वादा करती हूं दीदी कि अब से आप जो कहोगी मैं वही करूंगी,’’ कह कर आरती बहन के गले लग गई. Hindi Sad Story

Hindi Fiction Story: अंतिम किस्त

Hindi Fiction Story: अब तक आप ने पढ़ा:

बेटी के गायब होने की बात उस के ससुराल वालों को बताना, रोमेश की समझ से बाहर की बात थी. वह एक ऐसे मामले को उजागर करना चाहता था जो न सिर्फ पेचीदा था, दिलचस्प भी था. एक दिन उसे कुछ अहम जानकारी मिली. वह उस मुख्य स्रोत तक पहुंचना चाहता था कि तभी एक अजीब घटना घट गई…

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अगले दिन शाम को प्रिया और एक बार फिर धीर रोमेश के घर पहुंच गए. इस बार दरवाजा एक लड़की ने खोला. 20-21 वर्ष की उम्र रही होगी. गोरीचिट्टी, नैननक्श बहुत ही सुंदर. रेशमी सलवार सूट पहन रखा था. ‘‘किस से मिलना है?’’ आश्चर्य से आंखें फाड़े उस ने दोनों को देखा. उस की आंखें भी सुंदर थीं. उस लड़की को देखते ही दोनों चौंके. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. वह लड़की ईशा थी. ‘‘रोमेशजी और आप से भी.’’ उस लड़की ने जब यह सुना कि दोनों पत्रकार हैं तो लगभग दौड़ती हुई भीतर चली गई.

1 मिनट में रोमेश बाहर आए. रोमेश इस के पहले कुछ कहें, उलटासीधा बोलना शुरू करें उस से पहले ही धीर ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हम दोनों सुरेश के यहां गए थे. उन से बात की है. वे तो जो कह रहे हैं वह अलग मामला है. आप ने जो बताया है उसे गलत जानकारी बता रहे हैं?’’ धीर को उम्मीद थी कि सुरेश का नाम चमत्कार करेगा. हुआ भी यही, रोमेश तुरंत उन दोनों को अंदर ले गए. ‘‘क्या कह रहे हैं वे?’’ ‘‘उन का कहना है कि वे आप से खुद मिलने यहां आए थे. आप ने ही उन्हें बुलाया था.

आप ने ही उन्हें बताया कि ईशा गायब है. उन का यह भी कहना है कि ईशा का हवाईटिकट शिकागो से भेज दिया गया था, आप को टिकट मिल गया था. टिकट मिलने के बाद आप ने यह बताया ईशा नहीं जा सकती. वह घर में नहीं है.’’ रोमेश एकबारगी सकपका गए. फिर तुरंत उन्होंने खुद को संभाला. बोले, ‘‘वे क्या कह रहे हैं यह मैं नहीं जानता. मैं अपनी बात पर कायम हूं. देखिए हम लोग वैसे ही इस घटना को ले कर काफी परेशान हैं. मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद की गई है. कृपया इस समय हम लोगों को हमारे हाल पर छोड़ दीजिए.’’ ‘‘हो सके तो एक बार ईशा से बात करा दीजिए. हमें संतोष हो जाएगा. वे सच बोलेंगी.

आप इजाजत देंगे तो केवल मेरी कलीग भीतर जा कर उन से अकेले में बात कर लेगी.’’ जैसी आशा थी, रोमेश इस पर तैयार होने की जगह भड़क गए, ‘‘वह सच बोलेगी यानी मैं आप से झठ बोल रहा हूं? देखिए मेहरबानी कर के चले जाइए वरना मुझे पुलिस को सूचित करना पड़ेगा.,’’ रोमेश ने धमकी दी. ‘‘अरे रहने दीजिए इतना कष्ट क्यों करेंगे. हम खुद जा रहे हैं.’’ हालांकि धीर को अच्छी तरह से मालूम था रोमेश इन परिस्थितियों में पुलिस को फोन कतई नहीं करेंगे. रोमेश को धन्यवाद कह कर दोनों वहां से निकल आए.

‘‘रोमेश अभी भी झठ बोल रहा है. मुझे लगता है कि ईशा के भागने की बात सही है. लेकिन क्यों? क्या कारण हो सकता है?’’ प्रिया ने गेट से बाहर आते ही तुरंत इतनी उत्सुकता जाहिर की. ‘‘एक बार सुरेश से फिर से बात की जाए. मुझे तो दूसरा ऐंगल लग रहा है.’’ ‘‘क्या?’’ ‘‘पतिपत्नी और वह का लफड़ा. कहीं ईशा का दूसरे लड़के से तो चक्कर नहीं है?’’ थोड़ा हिचकते हुए धीर ने अपनी राय प्रिया के सामने रखी. धीर की बात पर प्रिया ने कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया. जैसे वह पहले से इस ऐंगल को ले कर सोच रही थी. ‘‘हो सकता है. ईशा ने उस लड़के के चक्कर में शिकागो जाने से मना किया हो.

जब उस पर दबाव पड़ा तो भाग गई. शर्म से रोमेश ने सुदीप के घर वालों को यह तो बताया वह घर पर नहीं है पर किसी लड़के साथ गुम हुई है इसे छिपा गए. यह बताना आसान भी नहीं था. मुझे लगता है कि अगर ऐसा है तो सुदीप के मांबाप को भले ही न मालूम हो पर सुरेश को इस बारे में जरूर कुछ मालूम होगा. उन्होंने भी तो छानबीन की होगी?’’ ‘‘एक बार सुरेश को फिर से फोन मिलाना. इस बार मुझ से बात कराना,’’ धीर ने प्रिया से कहा. सुरेश का फोन मिलते ही प्रिया ने धीर को मोबाइल दे दिया.

मोबाइल हाथ में लेते ही धीर ने सुरेश से सीधे पूछ लिया, ‘‘भाई साहब कहीं ऐसा तो नहीं ईशा का शादी के पहले किसी और लड़के से अफेयर चल रहा था? यहां आने के बाद फिर से उस से संबंध बन गए हों? उस लड़के की वजह से ही उस ने सुदीप से संबंध तोड़ लिया हो? उसी के साथ रहना चाहती हो?’’ कुछ सैकंड तक फोन पर चुप्पी बनी रही. फिर सुरेश बोले, ‘‘प्रिया की एक सहेली है निशा. वह भी पंजाबी है.

रोमेश साहब की बगल की ही कोठी में रहती है. उस से बात करें. ईशा से संबंधित उस के पास बहुत सी जानकारी होनी चाहिए. हमेशा दोनों साथ रहती थीं.’’ ‘‘उस से कैसे बात होगी सुरेशजी? आप की उस से बात हुई है क्या?’’ ‘‘देखिए इस में मुझे मत घसीटिए. हम सभी लोग एकदूसरे को जानते हैं. निशा के परिवार से भी मेरा परिचय है. हम सब को यहीं एकसाथ रहना है. मैं उस की कोठी का नंबर दे देता हूं. आप वहां जा कर उस से मिल लें. फोन नंबर मुझे नहीं मालूम,’’ सुरेश ने कहा.

सुरेश ने कुछ बताने से मना कर दिया, लेकिन जिस तरह उन्होंने सहेली का सूत्र पकड़ाया, उस से धीर समझ गया कि कुछ न कुछ मामला है. रोमेश से चिढ़े सुरेश चाहते हैं सारा कुछ बाहर आए. लेकिन रिश्ते की वजह से खुद सामने आने से बचना चाह रहे हैं. सुरेश ने निशा की कोठी का नंबर बता दिया. निशा से मिलना जरूरी था. जब तक यह पता नहीं चलेगा ईशा शिकागो वापस क्यों नहीं गई,कोई खबर नहीं बनेगी. 1 घंटे बाद दोनों ही ग्रेटर कैलाश में सुरेश के बताए पते पर पहुंच गए. दरवाजा संयोग से निशा ने ही खोला.

2 अपरिचितों से अपना नाम सुन कर थोड़ा सकपकाई. लेकिन ईशा का नाम सुनते उन से बात करने को तैयार हो गई. इस शर्त के साथ कि खबर में उस का कहीं भी नाम न आए. पूरी बातचीत में धीर ने प्रिया को आगे कर दिया. प्रिया ने पहले निशा को बताया कि वे दोनों किसकिस से मिल चुके हैं, क्या जानकारी अभी तक मिली है. बातचीत में निशा ईशा से काफी नाराज दिखी, ‘‘बहुत बड़ी बेवकूफी की उस ने. एक अच्छेखासे लड़के का जीवन बरबाद कर दिया.

अपने परिवार के साथ उस के परिवार की इज्जत दांव पर लगा दी. वह अमेरिका से आई तो उस से मिली थी. लेकिन जब यह सब पता चला उस के बाद उस से मिलने ही नहीं गई. न ही उस से मिलने की इच्छा है, जबकि बगल में ही रहती है.’’ ‘‘किस लड़के की वजह से यह सब उस ने किया? ईशा भाग कर उस दिन कहां गई थी?’’ प्रिया ने सीधे यह सवाल किया. ‘‘वह योगेश के यहां घर से भाग कर गई थी. उसी के यहां 2-3 दिन रही थी,’’ निशा ने बगैर संकोच बताना शुरू किया,’’ मैं उस के और योगेश के चक्कर को पहले से जानती थी. उस ने मुझे बता रखा था.

कालेज में हम तीनों अकसर साथ रहते थे. लेकिन जब शादी की बात चली और वह खुशीखुशी से शादी के लिए तैयार हो गई तो मुझे कुछ अजीब लगा. लगा बड़ा घर, पैसे, विदेश के नाते उस ने योगेश से अपना रिश्ता खत्म कर दिया. फिर सोचा व्यावहारिकता के नाते उस ने यह सही फैसला किया है. योगेश गरीब परिवार से है, नौकरी भी नहीं थी. शादी उस से करती तो दोनों की जिंदगी में दिक्कतें आतीं.

‘‘जब वह अमेरिका से आई तो मैं उस से मिलने गई. अकेले में मिलते ही योगेश के बारे में पूछना शुरू कर दिया. मुझे आश्चर्य हुआ. मुझे लगा कि अब शादी हो गई है, वहां इतने दिन रह कर आई है, सब भूल गई होगी. पर वह योगेश को संदेश देने और उस से मिलने की जिद करने लगी. मैं ने उसे डांटा और समझया भी कि यह सब बंद करो. आग से मत खेलो. पर वह पीछे पड़ी रही कि योगेश तक मैं उस का संदेश पहुंचा दूं.’’ ‘‘फिर?’’ ‘‘मैं ने योगेश को कोई संदेश नहीं पहुंचाया.

बाद में वह यूनिवर्सिटी जा कर योगेश से मिली. दोनों के बीच फिर क्या योजना बनी यह मुझे नहीं मालूम. पर इतना जानती हूं कि वह जब घर से भागी थी तो 3-4 दिन योगेश के यहां रुकी थी. उस के पिताजी खोजते हुए जब मेरे पास आए थे तो मैं ने उन्हें योगेश के घर का पता दे दिया था,’’ निशा ने बताया. ‘‘योगेश कहां रहता है?’’ ‘‘सरिता विहार में.’’ ‘‘आप को योगेश के घर का पता कैसे मालूम हुआ?’’ ‘‘शादी के पहले मैं ईशा के साथ 1-2 बार उस के घर जा चुकी थी. मुझे तो ईशा पर आश्चर्य है. सुदीप के मुकाबले किसी चीज में योगेश उस के बराबर नहीं है. पागल है यह लड़की.

अपना बसाबसाया घर उजाड़ लिया,’’ निशा का गुस्सा ईशा की करनी पर बहुत ज्यादा था, लेकिन इस गुस्से में अपनी सहेली के प्रति उस का प्यार भी झलक रहा था. ‘‘आप लोग इस मामले पर खबर दे रहे हैं क्या?’’ निशा ने पूछा ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता ईशा ने गलत किया है और ऐसा दूसरे के साथ न हो इसलिए यह खबर सामने आनी चाहिए?’’ प्रिया ने जवाब में उस से उलटा सवाल किया. निशा कुछ नहीं बोली. यह एक टेढ़ा सवाल था. इस पर हां या न में जवाब देना उस के लिए मुश्किल था. ‘‘मेरी तो अभी तक यह समझ में नहीं आया कि उसे योगेश के साथ रहना था तो उस ने दूसरी जगह शादी ही क्यों की? रोमेश अंकल काफी आजाद खयाल के हैं. ईशा को उन्होंने काफी आजादी दे रखी थी. अब शादी के बाद इतनी हिम्मत दिखा रही है तो क्या शादी के पहले यह साहस नहीं दिखा सकती थी? रोमेश अंकल मान भी जाते.’’

निशा का कहना सही था. सचमुच ईशा को योगेश से इतना प्यार था और इतनी हिम्मत थी तो उस ने यह लड़ाई शादी के पहले क्यों नहीं लड़ी? क्यों शादी के बाद 2 परिवारों को तबाह करने के लिए यह विद्रोह किया? प्रिया ने निशा से योगेश का पता पूछा. उस ने दे दिया. बाहर निकलने से पहले जैसे धीर को कुछ याद आया, उस ने पलट कर निशा से पूछा, ‘‘आप सुरेशजी को जानती हैं क्या?’’ ‘‘जी हां. वे यहां आए भी थे.’’ धीर को जो संदेह था वह सही साबित हुआ.

सुरेश ने निशा का पता बगैर किसी कारण के नहीं दिया था. जाहिर है उन्हें प्रियायोगेश के प्रेम का किस्सा पहले से पता था और वे चाहते थे कि यह जानकारी उन्हें भी मिले. निशा से मिलने के बाद धीर को और एक बात काफी परेशान कर रही थी. निशा के घर से बाहर निकलते ही उस ने प्रिया से इसे साझ किया, ‘‘प्रिया पता नहीं निशा से बात करते समय मुझे बारबार यह क्यों लग रहा था कि इस लड़की को मैं पहले से अच्छी तरह जानता हूं. कहीं करीब से देखा है, मिल चुका हूं इस से.’’

‘‘कहीं करीबवरीब से आप ने नहीं देखा है. न ही इसे पहले से जानते हैं आप. आप ने सुरेश के यहां जो ईशा की शादी का वीडियो देखा था, तस्वीरें देखी थीं उन में कई जगह यह लड़की निशा के साथ नजर आ रही थी. पता नहीं आप लड़कों को किसी लड़की को देखते ही यह क्यों लगने लगता है, पहले देखा है, मिल चुका हूं.’’ पहली बार प्रिया इस तरह से धीर से खुली, उस की खिंचाई की. धीर झेंप गया.

3-4 दिन की रिपोर्टिंग में खबर के साथ प्रिया की दिलचस्पी धीर में बढ़ने लगी थी. उसे यह भी लगता कि होशियार होने के बावजूद वह कुछ रूखा है. इतनी सुंदर लड़की साथ है 4 दिन बीत जाने के बाद भी उस ने कभी मजाक में भी अपनी दिलचस्पी नहीं जाहिर की. एकदम प्रोफैशनल बरताव. निशा के यहां से निकलतेनिकलते शाम हो गई थी, इसलिए तय हुआ कि सरिता विहार, ईशा के कथित प्रेमी से मिलने दूसरे दिन चलेंगे. निशा ने सरिता विहार में योगेश के जिस मकान का पता दिया था, वह एक साधारण एलआईजी फ्लैट था. योगेश की मां मिलीं, योगेश घर में नहीं था.

2 कमरे का मकान. 1 कमरे में एक तरफ पुराना सोफा पड़ा था. दूसरी तरफ दीवार से सटा एक दीवान. मां ने बाहर के ही कमरे में प्रिया और धीर को बैठाया. योगेश के पिता का 5 साल पहले एक ऐक्सीडैंट में निधन हो गया था और इस फ्लैट में केवल मां और बेटा रहते हैं. योगेश की मां ने यह भी बताया कि वे म्युनिसिपल कौरपोरेशन में काम करती हैं. योगेश की पढ़ाई से ले कर घर का खर्च कौरपोरेशन से मिलने वाले उन के वेतन से ही चल रहा है.

प्रिया की नजर कमरे के कोने में रखी मेज पर रखे फोटोफ्रेम पर पड़ी. उस में एक लड़के के साथ एक लड़की की तसवीर लगी थी. ‘‘यह तसवीर किस की है?’’ ‘‘मेरे बेटे योगेश की.’’ ‘‘और साथ में ईशा है?’’ स्याह पड़ गया था मां का चेहरा. दरअसल, अभी तक दोनों ने यह नहीं बताया था कि वे ईशा के सिलसिले में यहां आए हैं. उन्होंने योगेश की मां को इतना ही बताया था कि वे पत्रकार हैं और योगेश से कुछ बात करने आए हैं. योगेश चूंकि क्रिकेट का खिलाड़ी था, विश्वविद्यालय की टीम में था, इसलिए उस की मां ने यही सोचा था कि ये लोग बेटे के इंटरव्यू के लिए आए होंगे.

इस नए रहस्योद्घाटन के बाद उन्हें काटो तो खून नहीं. बात यहां तक बिगड़ जाएगी कि अखबार वाले आने लगेंगे, यह सोच कर उन की घबराहट बढ़ गई. ‘‘जी…’’ कुछ देर की चुप्पी के बाद उन के मुंह से आवाज निकली. ‘‘मांजी हम केवल यह जानना चाहते हैं कि ईशा यहां कितने दिन रुकी थी?’’ धीर ने पूछा. ‘‘3 दिन.’’ ‘‘उस के पिताजी लेने आए थे?’’ ‘‘हां, पर उन्होंने हम लोगों से कुछ कहा नहीं.’’ ‘‘आप को पता था कि आप के बेटे और ईशा का चक्कर चल रहा है?’’ ‘‘ठीक से जानकारी नहीं थी. पहले मुझे लगा था दोनों दोस्त हैं. एकसाथ पढ़ते हैं. जब ईशा यहां 3-4 बार आई तो मैं ने योगेश से पूछा था कि क्या मामला है, पर उस ने मुझे इधरउधर की बातें कह कर टाल दिया.

7 मई को जब ईशा यहां बैग ले कर आई तो मैं चौंकी. जिस तरह उस ने गहने पहन रखे थे, मांग में सिंदूर था उस से मैं घबरा गई. पहले लगा योगेश शादी कर के यहां ले आया है, फिर उन्होंने जब सारी बात बताई तो मैं योगेश के साथ ईशा पर भी बिगड़ी. मैं समझ रही थी कि उस के मांबाप पर क्या बीत रही होगी. पर योगेश और उस की जिद के आगे मैं कुछ नहीं कर पाई. 11 मई को प्रिया के पिता कार से आए और उसे ले गए.’’ ‘‘आप घबराइए नहीं.,’’ इस बार प्रिया बोली, ‘‘हम कुछ ऐसा नहीं लिखने जा रहे हैं जिस से आप की दिक्कतें बढ़ें. हम लोग योगेश का नाम भी नहीं लिखेंगे न ही आप के घर का कोई अतापता.’’ योगेश के घर से बाहर निकलते ही प्रिया बोल पड़ी, ‘‘सी इज जस्ट अ क्रेजी गर्ल.

पिता ने उसे जो आजाद छोड़ा था, उसी का नतीजा उन्हें भुगतना पड़ा. जब जो मन हुआ उस ने वह किया. प्यार क्या होता है वह जानती तक नहीं. ऐसे थोड़े ही होता है. विवाह में उस के साथ जबरदस्ती की गई होती तो माना भी जा सकता था.’’ प्रिया बोल रही थी, धीर हैरानी से उस का चेहरा देख रहा था. वह समझ गया प्रिया ईशा पर गुस्सा निकाल रही है. योगेश की मां से मिल कर वह कुछ ज्यादा भावुक हो गई है. उसे लगा प्रिया सुदंर होने के साथसाथ समझदार भी है. ‘‘और आप यह बारबार योगेश की मां से चक्कर की क्या बात कर रहे थे. चक्कर कोई शब्द होता है. प्यार करने और चक्कर चलाने में अंतर होता है. दोनों प्यार करते थे एकदूसरे से बस.’’ चलतेचलते धीर के कदम रुक गए.

उस ने प्रिया के चेहरे को गौर से देखा. उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. बनावटी गुस्सा जरूर दिखाई दिया. ‘‘सारी मैम,’’ धीर ने मुसकराते हुए कहा. खबर पूरी हो चुकी थी. सारी जानकारी इक्ट्ठी हो गई थी. दोनों दोपहर में योगेश के घर से सीधे कनाट प्लेस पहुंचे. वहां एक रेस्तरां में चाय पी. ‘‘स्टोरी लिखने के बाद मैं तुम्हें दिखा दूंगा,’’ धीर ने रेस्तरां से बाहर निकलने के बाद प्रिया से कहा. ‘‘पढ़ने की उत्सुकता तो है. पर छपने के बाद इक्ट्ठे पढ़ेंगे. सस्पैंस बना रहेगा.’’ ‘‘तुम्हारा नाम भी होगा.

बाद में कहने लगे यह क्या लिखा है, मैं यह चाहती थी, मैं वह चाहती थी.,’’ धीर ने हंसते हुए कहा. ‘‘आप जो कुछ भी लिख कर संपादक को देंगे, उस में मेरी सहमति रहेगी, मुझे दिखाने की कोई जरूरत नहीं है.’’ ‘‘जो कुछ हो, पर तुम ने अपने को एक बढि़या इन्वैस्टिगेटिंग रिपोर्टर साबित किया है.’’ ‘‘अब खिंचाई न कीजिए,’’ प्रिया ने मुसकरा कर कहा. वैसे उसे धीर से अपनी प्रशंसा सुन अच्छा लगा था. धीर ने 2 दिन बाद पूरी खबर लिख कर संपादक की मेज पर रख दी. खबर पर दोनों की बाईलाइन थी. ‘‘कर लिया पूरा काम? क्या नतीजा आप ने निकाला है?’’ संपादक ने पूछा. धीर ने संक्षेप में पूरी खबर बताई. किस से मुलाकात हुई, क्या बात हुई, इस सब का ब्योरा संपादक को दे दिया.

‘‘ईशा के प्रेमी और उस की मां से की गई बातचीत का खुलासा जानबूझ कर खबर में नहीं किया है. वे लोग अच्छे हैं, गरीब भी हैं. मैं ने यह जरूर बताया है कि ईशा शिकागो वापस नहीं गई, उस की वजह उस का पुराना अफेयर था. इस बारे में घर के लोग कोई जवाब नहीं देते, उस के साथ पढ़ने वाले का हवाला दिया है और कहा है कि उन से इस बारे में पुख्ता जानकारी मिली. यह बताने की कोशिश की है कि विदेशों में बसे अप्रवासी भारतीय युवकों के साथ भारतीय लड़कियों की होने वाली शादियों में धोखाधड़ी का नतीजा भारत में रहने वाली लड़की को ही नहीं कुछ मामलों में धोखे का शिकार विदेश में बसे युवक और उन के परिवार भी हो जाते हैं. इस मामले में ऐसा ही हुआ है.’’ ‘‘ठीक है… ठीक है.

लेकिन इस बार तो यह छप नहीं सकती. मैगजीन क्लोज हो गई है. अगले इशू में लेंगे इसे.’’ धीर को कोई दिक्कत नहीं थी. ऐसी स्टोरी नहीं थी कि एक अंक के बाद पुरानी पड़ जाए. ‘‘सर परसों से मुझे 3 दिन की छुट्टी चाहिए. घर जाना है,’’ उस ने संपादक के सामने अपनी अर्जी बढ़ा दी. संपादक ने धीर को छुट्टी की मंजूरी दे दी. उस दिन शाम को दफ्तर से निकलने के बाद वह प्रिया से मिला. उसे बताया कि उस ने स्टोरी दे दी है. अगले इशू में आएगी. फिर तुरंत पूछा,’’ आधे घंटे का समय हो तो चाय पीने चलें?’’ प्रिया तैयार हो गई. धीर कुछ परेशान था. खबर पूरी हो चुकी थी. एक बड़ी चुनौती खत्म हो गई.

दिक्कत अब यह थी कि इस स्टोरी की वजह से प्रिया का जो हफ्ते से ज्यादा समय का साथ था, वह अब खत्म हो जाएगा. बातचीत की भी कम गुंजाइश रहेगी. प्रिया का साथ उसे अच्छा लगने लगा था. उस का हंसना, उस का हां कहना, न कहना, साथ चलना, हर चीज का विश्लेषण करना, उस की समझ, उस की तुनकमिजाजी सभी कुछ अलग था. इन सब का वह आदी बनता जा रहा था. उस ने अपनी छवि और खबर पर इतना जोर दे रखा था कि प्रिया के दिल में क्या है, इस की जानकारी उस के पास नहीं थी.

उसे यही लगता था कि वह उसे एक दोस्त समझने लगी है, इस नाते फ्री हो चुकी है, मजाक कर लेती है बस. फिर उस की शादी करीब तय थी. घर से लगातार दबाव पड़ रहा था. वह घर जा भी रहा था इसी सिलसिले में. इसलिए प्रिया को ले कर आगे की दिशा में सोचने की गुंजाइश भी नहीं थी. ‘‘चलो एक दिलचस्प असाइनमैंट पूरा हुआ. तुम नहीं रहतीं तो ये सब चीजें बाहर नहीं आतीं,’’ ढाबे से बाहर निकल कर विदा होने के पहले धीर ने बात शुरू की. ‘‘ऐसा भी कुछ नहीं था. आप जानबूझ कर मुझे बांस पर चढ़ा रहे हैं.’’ ‘‘पता नहीं क्यों तुम्हें यह लग रहा है.

सच पूछो तो तुम्हारी वजह से ही लोग मिलने को तैयार हुए, उन में विश्वास पैदा हुआ और उन्होंने खुल कर बात की खासकर उस लड़की की दोस्त निशा और योगेश की मां ने.’’ प्रिया कुछ बोली नहीं. ‘‘मैं परसों बाहर जा रहां हूं. 3 दिनों के लिए.’’ ‘‘कहां?’’ ‘‘ घर कई बार बुलावा आया है’’ ‘‘सब ठीक तो है न? कोई जरूरी काम?’’ ‘‘सब ठीक है. काम वगैरह भी जरूरी नहीं है. असल में मेरे घर वाले 1 साल से मेरी शादी के चक्कर में पड़े हैं.

किसी लड़की को देखने और रिश्ता फाइनल करने जाना है. मैं लगातार सालभर से टालमटोल कर रहा था,’’ पता नहीं कैसे धीर के मुंह से निकल गया. प्रिया से वह इस समय यह बात कहेगा, उस ने सोचा तक नहीं था. घर से आ कर शादी के बारे में उसे खबर देगा, ऐसी ही उस की योजना थी. शायद किसी अनजाने अपराधबोध के दवाब में उस के मुंह से यह निकल गया. प्रिया एकबारगी सन्नाटे में आ गई. उस के चेहरे पर अजीब तरह का तनाव आ गया जिसे धीर ने स्पष्ट महसूस किया. इस के पहले कि वह आगे किसी निष्कर्ष पर पहुंचे, प्रिया अचानक बोल पड़ी, ‘‘बहुत ही कमीने हैं आप.’’ सन्न रह गया धीर, एकदम से हड़बड़ा गया. लगा कानों के पास कोई तेज धमाके वाला बम फट गया हो.

जो लड़की अभी तक आप से तुम पर नहीं उतर पाई थी, इतने दिनों तक एक भी फालतू शब्द जिस से नहीं सुना था, उस ने अचानक बेतकल्लुफी की सारी हदों को कैसे पार कर लिया, वह समझ नहीं पाया. एक क्षण में सारी औपचारिकताएं, एकदूसरे के बीच कुछ हद तक अपनेपन की खड़ी दीवार गिर गई. प्रिया ने उसे कमीना कह दिया था, बगैर किसी संकोच के. चलतेचलते धीर रुक गया. प्रिया भी रुक गई. दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. धीर ने पाया उस के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं है, किसी तरह का कोई भाव नहीं है. बस तनाव है. उस की आंखों में झंझलाहट जरूर दिखाई दी.

धीर का दिमाग काम करने लगा. प्रिया की यह प्रतिक्रिया उस की शादी की खबर सुनने के बाद आई थी. उसे सारा कुछ समझ में आने लगा. सचमुच वह मूढ़ था इसीलिए तो उसे इतने दिनों तक यह सब समझ में आया नहीं. उसे अब यह समझ में आने लगा कि क्यों जब भी उस ने चाहा, जब भी कहा प्रिया साथ रुकने को तैयार हो जाती थी, कहीं भी बेधड़क साथ चलने के लिए हामी भर देती थी.

क्या यह स्टोरी के लिए ही था? 1 मिनट बीत गया. दोनों को इसी तरह खड़ेखड़े. धीर कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. प्रिया ठंडी और उदासीन निगाहों से उसे अभी तक देख रही थी. फिर एक झटके में बोली, ‘‘चलती हूं.’’ ‘‘चलो घर छोड़ दूं.’’ ‘‘कोई बात नहीं. मैं चली जाऊंगी,’’ उस का लहजा जस का तस था. यह पहली बार नहीं था जब धीर ने घर छोड़ने की बात कही थी. 2-3 बार पहले उस ने पूछा था, घर तक छोड़ा भी था. एक बार तो प्रिया ने धीर को घर के भीतर बुलाया, चाय बना कर पिलाई, अपने मम्मीपापा से परिचय कराया. धीर उसे जाते देखता रहा.

प्रिया ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. 4 दिन में ही धीर घर से लौट आया. दफ्तर पहुंचा, सुबह से इस अवसर की तलाश में था कि प्रिया से आमनासामना हो. वैसे प्रिया ने सुबह दफ्तर आने पर उसे देख लिया था. लेकिन उस के सामने नहीं आई, विश नहीं किया. धीर समझ गया प्रिया जानबूझ कर उस की उपेक्षा कर रही है. लंच ब्रेक हुआ, प्रिया हमेशा की तरह स्तंभ विभाग में ही अपनी उन्हीं महिला सहयोगियों के साथ लंच कर रही थी. धीर वहां पहुंच गया. उसे वहां अचानक देख प्रिया के साथ बैठी तीनों लड़कियां भी चौंक गईं. उस समय तो वे सभी हैरान रह गई जब धीर ने प्रिया से बड़ी बेशर्मी से पूछा, ‘‘एक परांठा फालतू है क्या?’’ प्रिया का लंच बौक्स खुला था, उस में परांठेसब्जी दिख रहे थे. हड़बड़ा प्रिया गई.

उस के साथ बैठी लड़कियों के दिमाग में एकसाथ एक ही बात आई, कितना बदतमीज लड़का है यह. वे प्रिया के गंभीर स्वभाव को 1 साल से देख रही थीं. उन्हें यह भी अजीब लगा कि प्रिया ने गुस्से में होने के बावजूद बिना कुछ कहे चुपचाप टिफिन से एक परांठा निकाल कर धीर की तरफ बढ़ा दिया. टिफिन में रखी सब्जी को भी आगे कर दिया. धीर ने खड़ेखड़े ढीठ बन कर परांठा खाया.

चलतेचलते उस ने प्रिया से यह भी कहा कि वह औफिस के बाद 2 मिनट बात करना चाहता है. प्रिया को धीर की यह हरकत बिलकुल पसंद नहीं आई. खून का घूंट पी कर रह गई. धीर उस के हफ्तेभर के संबंध का इस तरह फायदा उठाएगा, औफिस के 4 लोगों के सामने जलील करेगा, सपने में भी उस ने ऐसा नहीं सोचा था. धीर जा चुका था. मौके की नजाकत देख वह नहीं बोल पाई थी. लेकिन उस ने फैसला कर लिया कि वह शाम को धीर से जरूर मिलेगी. उसे उस की औकात बताएगी.

क्या समझ लिया उस ने अपनेआप को? कैसे सब के बीच औफिस में इस तरह की उस के साथ हरकत कर बैठा. अभी तक निकटता, साथ बिताए समय, अच्छी यादों का कोई दबाव काम कर रहा था जिसने उसे रोक लिया, नहीं तो. दिनभर गुस्से में प्रिया जलीभुनी बैठी रही. शाम को छुट्टी हुई तो गेट पर बाकायदा धीर के निकलने का उस ने इंतजार किया.

धीर के मिलते ही एकदम से फट पड़ी, ‘‘वह क्या मजाक था?’’ धीर समझ गया. उसे अंदाजा था इस का. ‘‘2 मिनट रुक जाओ. लोग औफिस से निकल रहे हैं. सब के सामने तमाशा बन जाएंगे हम दोनों. थोड़ी देर बाद जो चाहे कह लेना,’’ धीर ने विनती के अंदाज में फुसफुसाते हुए कहा. प्रिया मामले की नजाकत समझ कर चुप हो गई. जैसे ही दोनों औफिस से आगे बढ़े, प्रिया बोल पड़ी, ‘‘अब पहले यह बताइए कि लंच में वैसी हरकत क्यों की थी? आप को इस का अंदाजा है कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे? मैं तो आप को एक अच्छा और सोबर लड़का समझती थी.’’ ‘‘वह तो मैं हूं,’’ धीर ने मजाक किया. धीर की यह बात सुनते ही प्रिया एक बार फिर भड़क गई.

धीर ने तुरंत हाथ जोड़ लिए. प्रिया ने किसी तरह खुद को शांत किया. ‘‘मैं तुम्हें सुबह से यह बताने को परेशान था कि घर पर क्या हुआ?’’ ‘‘मुझे बताने के लिए आप क्यों परेशान थे?’’ ‘‘क्योंकि तुम मेरी दोस्त हो, तुम्हें मालूम था कि मैं अपनी शादी के सिलसिले में वहां गया था.’’ प्रिया कुछ नहीं बोली. उसे इस के बाद कुछ बोलना अच्छा नहीं लगा. न ही वह यह सुनने को उत्सुक थी कि धीर के घर में क्या हुआ. ‘‘यह बात आप कभी भी बता सकते थे, औफिस के बाहर बता सकते थे. कल बता सकते थे.’’ धीर ने कुछ नहीं कहा.

वह प्रिया के चेहरे पर उतरतेचढ़ते, बदलते रंगों को गौर से देख रहा था. ‘‘जल्दी बताइए क्या हुआ घर पर? लड़की पसंद आ गई न? कब शादी कर रहे हैं?’’ प्रिया ने ही इस चुप्पी को तोड़ा. हालांकि उस की बात में किसी तरह की उत्सुकता धीर को नहीं दिखाई दी. ‘‘शादी नहीं हो रही है यही तो बताना था. लड़की पसंद नहीं आई.’’ प्रिया ने चौंक कर धीर की तरफ देखा, ‘‘फिर?’’ ‘‘फिर क्या. मैं ने घर वालों को मना कर दिया. मैं ने उन से कहा मैं ने एक लड़की पसंद कर ली है. दिल्ली में रहती है.’’ ‘‘अरे आप हैं क्या? मांबाप से भी झठ बोल दिया?’’ ‘‘मैं ने एकदम झठ नहीं बोला.

मैं ने उन को यह भी बताया कि लड़की सुंदर है लेकिन दिक्कत यह है कि वह लड़की गाली दे कर बात करती है.’’ यह सुनते ही प्रिया एकदम शांत हो गया. दिमाग घूम गया, वह समझ गई धीर क्या कह रहा है. लेकिन वह यह नहीं समझ पा रही थी कि वह इस के बाद बोले क्या. आक्रोश की जगह गंभीरता ने ले ली. धीर का भी मजाक का मूड खत्म हो चुका था.

बात सीरियस थी और दोनों इसे समझ रहे थे. ‘‘क्या यह संभव है?’’ ‘‘क्या संभव है?’’ जान कर अनजान बनते हुए प्रिया ने पूछा. ‘‘मुझ से शादी करोगी?’’ अरे… जिसे वह खड़ूस समझती रही वह इतना साहसी निकला? कम से कम इस इंसान से इस तरह से सीधे सवाल पूछे जाने की उसे कोई उम्मीद नहीं थी. प्रिया ने धीर के सवाल का सीधे जवाब नहीं दिया. बोली, ‘‘मेरी शादी मम्मीपापा पर निर्भर है?’’ ‘‘क्यों मजाक करती हो? मम्मीपापा से पूछ कर बताएगी आज्ञाकारी बेटी?’’ धीर मुसकराता प्रिया भी मुसकरा दी. धीर प्रिया को उस के घर के बाहर तक छोड़ने गया.

रास्ते में उस ने प्रिया को बताया कि जाते समय पूरे रास्ते ट्रेन में उस के बारे में ही सोचसोच कर वह परेशान होता रहा. उस ने यह भी बताया कि वह भी उसे पसंद करने लगा था, लेकिन किसी फैसले पर नहीं पहुंच पा रहा था. घर का दबाव था, उन की तरफ से लड़की पसंद कर ली गई थी. प्रिया के मन में क्या है वह जानता नहीं था. ‘‘यह सच है कि तुम से मिलने के पहले उस लड़की के प्रति आकर्षण था, पर उस के लिए कभी प्यार नहीं महसूस कर पाया था. तुम से मिलने के बाद भी दुविधा यह थी कि पता नहीं तुम्हारे दिल में क्या है. लेकिन घर जाने के ऐन पहले जो कुछ हुआ, तुम जैसे गुस्सा हुईं उस से सब साफ हो गया.

घर पहुंचने के पहले मैं ने फैसला कर लिया था. उस लड़की को देखने गया ही नहीं क्योंकि देखने के बाद इनकार करता तो उस का अपमान होता. ये सारी बातें मां को विस्तार से समझईं तो वे मान गईं,’’ धीर ने कहा. ‘‘यह तो बहुत बड़ा रिस्क लिया था आप ने. मैं ने तो आप से कुछ कहा नहीं था. मना कर देती तो आप दोनों तरफ से गए होते,’’ प्रिया को खिंचाई का मौका मिला. ‘‘तुम ने तो जो कहा वह अल्टीमेट था. गाली दे कर किसी के सामने अपने प्यार का दोटूक इजहार दुनिया में इस के पहले किसी भी लड़की ने नहीं किया होगा. लेकिन तुम ने इतनी बड़ी गाली कैसे दे दी यार… उसे पचाने में कई दिन लग गए,’’ धीर हंसा तो प्रिया झेंप गई. ‘‘पता नहीं कैसे मुंह से निकल गया,’’ प्रिया ने हलके से कहा.

ईशा को ढूंढ़तेढूंढ़ते प्रिया और धीर ने एकदूसरे को खोज लिया था. दोनों की शादी हो गई. शादी के बाद प्रिया ने नौकरी छोड़ दी. दोनों इस बात से सहमत थे कि पतिपत्नी को एक जगह नौकरी नहीं करनी चाहिए. साथ रहते 2 महीने हो चुके थे. सुबह बिस्तर पर धीर के साथ चाय पीते हुए प्रिया को अचानक सबकुछ याद आने लगा. धीर कैसे पहली बार उस के पास आया था, 1 हफ्ते में ही वह उस से किस कदर प्यार करने लगी, फिर लगा सबकुछ खत्म हो गया. सबकुछ नाटकीय तरीके से हुआ. ‘‘उस खबर का क्या हुआ जो हम ने साथ की थी. संपादकजी ने तो एक अंक के लिए रोका था. तुम से शादी की व्यस्तता में यह सब भूल ही गई थी. और उस ईशा का क्या हुआ? योगेश के साथ है या शिकागो वापस गई? तुम को फौलोअप करना चाहिए था?’’ उस ने धीर से कहा.

‘‘मुख्य स्टोरी तो छपी ही नहीं, तुम फौलोअप की बात कर रही हो. पहले अंक में न छपने के कुछ दिन बाद संपादक ने बुला कर बताया कि उन के पास कई फोन आ चुके हैं, परिचित हैं सभी, नाम बदलने पर भी सभी को अंदाजा हो जाएगा, इसलिए अब मैगजीन में देना ठीक नहीं है. वह खबर भूल जाओ. मेरी इन खबरों में दिलचस्पी थी भी नहीं. बस एक अफसोस है.’’ ‘‘क्या?’’ हालांकि प्रिया जानती थी कि धीर किस बारे में कह रहा है. लेकिन वह यह बात उस से सुनना चाहती थी. ‘‘शादी के कार्ड में सभी जोड़ों के साथ नाम रहते हैं.

हजारों पाठकों के हाथ में जाने वाली मैगजीन में साथ हम दोनों का नाम रहता तो यह भी एक अनोखी चीज होती, उसी तरह जैसे एक गाली ने हमारी शादी तय की,’’ धीर हंसते हुए बोला. ‘‘ईशा का क्या हुआ?’’ प्रिया ने तुरंत बात पलट दी. ‘‘मैं ने पता लगाने की कोशिश नहीं की. वह तो 15 दिन पहले एक मंत्री के डिनर में सुरेश, सुदीप के फूफाजी से मुलाकात हो गई. उन्होंने ही मुझे पहचाना. ईशा की बात चली तो उन्होंने बताया 1 महीने पहले वह शिकागो चली गई है सुदीप के पास. उस के घर वालों ने ही शिकागो में संपर्क किया था. बताया ईशा अफसोस कर रही है, वहां जाने को तैयार है, बचपना हो गया था उस से. सुदीप अमेरिका में पैदा हुआ, वहीं बड़ा हुआ है.

वहां इन सब बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. तलाक फिर विवाह, फिर तलाक यह सब आम बात है. चलो अंत भला तो सब भला, भारतीय फिल्म की तरह इस कहानी का अंत भी सुखद रहा.’’ ‘‘कैसे सुखद रहा?’’ प्रिया तुनक कर बोली, ‘‘उस लड़के पर क्या बीती, जिस ने प्रिया की वजह से इतना झेला. उस की मां का क्या? एक गरीब की मुहब्बत के साथ एक शहजादी ने जब चाहा तब खिलवाड़ किया. गरीबी एक बार फिर पैसे के आगे हार गई. उस गरीब लड़के के प्यार को ठुकरा कर ईशा ने दूसरे से शादी की, फिर उस के पास प्यार की दुहाई देते हुए आई और फिर उसे ठुकरा कर चली गई.

पति से प्यार होता तो शिकागो जाने से मना ही क्यों करती? फिर अपने प्रेमी को क्यों छोड़ा, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह अमीर नहीं था? यही न, फिर इस कहानी का अंत सुखद कैसे हुआ?’’ ‘‘तुम तो सही में फिल्म का डायलौग बोलने लगी. भाड़ में जाए ईशा और सुदीप. हम पर तो ईशा ने एहसान किया. उस की वजह से हमारी शादी हो गई,’’ कहते ही धीर ने प्रिया को खींच कर अपनी बांहों में भर लिया. hindi fiction story

Romantic Story: बेनाम रिश्ता

Romantic Story: हर रोज की तरह आज भी शाम की चाय पीने के बाद तृष्णा अपने कमरे की गैलरी में भावशून्य सी खड़ी बाहर की ओर टकटकी लगाए देख रही थी. अपने बंगले की सब से प्यारी जगह उसे अपनी गैलरी ही लगती थी, वहां से वह मसूरी की खूबसूरत वादियों, आकाश में उड़ते पंछियों, मुसकराते फूलों और उन पर मंडराते भौंरों व तितलियों को घंटों निहारती रहती हैं. एक ऐसी प्यास है तृष्णा की आंखों में जो उस के नाम को सार्थक करती है लेकिन आज तक इस बंगले का कोई भी व्यक्ति यह न जान पाया कि वह कौन सी तृष्णा है इस तृष्णा के भीतर.

अभी बारिश का महीना है और पहाड़ों में बारिश का अंदाज ही कुछ और होता है. यह वही समझ सकता है जिसे यहां की बारिश की बूंदों ने छुआ हो, बारिश की फुहार बेरंग होते हुए भी फिजाओं को खुशगवार और रंगीन बना देती है लेकिन आज की इस मूसलाधार बारिश में ऐसी कोई बात नजर नहीं आ रही है. ऐसा लग रहा है जैसे आज की यह तूफानी बारिश किसी की जीवनदशा को मोड़ने या फिर बिखेरने के लिए बरस रही हो. यह तूफानी बारिश न जाने क्या कहर बरसाने वाली है. इतनी घनघोर बारिश और तेज हवा में भी तृष्णा अपनी गैलरी में मसूरी के अडिग पहाड़ों की तरह तटस्थ खड़ी हुई है.

वैसे तो यहां पहाड़ियों में अंधेरा जल्दी घिर आता है लेकिन आज की इस तूफानी बारिश की वजह से समय से पहले ही अंधियारे ने दस्तक दे दी. स्ट्रीट लाइट और बंगले की लाइट जलने के बावजूद सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा है. तभी बंगले के गेट के करीब एक औटोरिकशा आ कर रुका. उस में से एक औरत उतरी और उस ने अपना छाता खोला और फिर बंगले की ओर बढ़ने लगी. तभी जोरदार बिजली कौंधी जिस से उस औरत का खूबसूरत चेहरा तृष्णा ने देखा और देखती रह गई.

साधारण सी साड़ी में लिपटी हुई वह प्रकृति की अनुपम कृति थी. तृष्णा सोचने लगी यह कौन है? इस से पहले तो उस ने कभी इसे इस बंगले में नहीं देखा. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सामने तृष्णा का सेक्रैटरी और बंगले का केयर टेकर प्रकाश उसी औरत के साथ खड़ा था. तृष्णा को देखते ही उस खूबसूरत औरत ने उसे धीरे से सिर झका कर नमस्ते कहा. तभी प्रकाश बोला, ‘‘मैडम, मैं ने आप को जिस नर्स के बारे में बताया था यह वही नर्स है तृप्ति. यदि आप की अनुमति हो तो कल से यह साहब की सेवा में हाजिर हो जाएगी.’’ तृष्णा ने घूर कर तृप्ति की ओर देखा और फिर बोली, ‘‘प्रकाश, तुम जाओ मैं इस से कुछ बातें करना चाहती हूं.’’ ‘‘जी मैडम,’’ कह कर प्रकाश वहां से चला गया. तृष्णा बड़ी शान के साथ अपने कमरे में रखे काउच पर पैर के ऊपर पैर चढ़ा कर बैठ गई और फिर बोली, ‘‘तुम्हें पता है न. तुम्हें काम क्या करना है?’’ ‘‘जी मैडम इस बंगले के मालिक और आप के पति की देखभाल करनी है.’’

तृष्णा जोर से हंसी और फिर उस ने बड़े ही रोब से कहा, ‘‘नहीं, तुम्हें इस बंगले के मालिक की देखभाल नहीं करनी है क्योंकि इस बंगले की मालिक मैं हूं. तुम्हें केवल मेरे बीमार पति की देखभाल करनी है जो न बोल सकते, न सुन सकते और न ही बिस्तर से उठ सकते हैं क्योंकि पिछले 5 सालों से पैरालाइज्ड हैं. तुम्हें उन का सारा काम करना होगा, सारा काम….कर पाओगी?’’ ‘‘जी मैडम, मैं साहब का सारा काम कर लूंगी. मैं ट्रेंड नर्स हूं, मैं ने हौस्पिटल में काम किया है,’’ तृप्ति ने शांत भाव से कहा. ‘‘क्या तुम शादीशुदा हो?’’

तृष्णा ने एक और प्रश्न दागा. तृप्ति ने विनम्रता से जवाब दिया, ‘‘जी मैडम. मेरे 2 बच्चे भी हैं.’’ ‘‘ओह… तब तुम अपने काम पर फोकस कैसे कर पाओगी? तुम खूबसूरत हो, जवान हो और शादीशुदा भी… क्या तुम्हारा पति एक पराए मर्द की सेवा सुबह से रात तक करने की इजाजत दे देगा यह जानते हुए कि तुम्हें उस बीमार आदमी के कपड़े भी बदलने होंगे और जब कपड़े बदलोगी तो उसे निर्वस्त्र भी देखना होगा?’’ तृष्णा चहलकदमी करते हुए कहने लगी. ‘‘आप चिंता न करें मैडम एक बीमार व्यक्ति नर्स के लिए अपने बच्चे के समान होता है और एक मां जब भी अपने बच्चे को नहलाती या उस के कपड़े बदलती है तो बच्चा नग्न ही होता है. उस में कैसी शर्म और रही बात मेरे पति की तो वह आप मुझ पर छोड़ दीजिए,’’

तृप्ति ने पूरे आत्मविश्वास से कहा. ‘‘अच्छा तो ठीक है, कल से क्यों आज से ही अपना काम शुरू कर दो. जा कर प्रकाश से मिल लो, वह तुम्हें बता देगा इस वक्त कौन सा इंजैक्शन देना है और क्या करना है.’’ ‘‘जी अच्छा,’’ कह कर जब तृप्ति जाने लगी तो तृष्णा ने कहा, ‘‘तृप्ति… सुनो प्रकाश से यह भी कह देना कि सुबह तक कोई मेरे कमरे में न आए. मैं कोई डिस्टर्बैंस नहीं चाहती.’’ ‘‘जी,’’ कह कर तृप्ति वहां से चली गई. बारिश भी अब थम चुकी थी. कमरे की सारी लाइटें बंद कर तृष्णा सोफे पर टिक कर बैठ गई.

आज 5 वर्षों बाद उसे पहली बार वह आईना दिखा, जिस में उसे अपने स्वयं का अक्स नजर आया.वैसी ही खूबसूरती, वैसा ही आत्मविश्वास. तृप्ति से मिलने के बाद तृष्णा को अपने कालेज की वह काली रात याद आ गई जिस के बाद उस की सारी दुनिया ही बदल गई. तृष्णा आज भी नहीं भूली है वह रात जब वह ग्रैजुएशन के फाइनल ईयर में थी और हर बार की तरह इस बार भी वह ऐनुअल फंक्शन में सोलो डांस परफौर्म करने वाली थी. इस बार के फंक्शन में बतौर चीफ गैस्ट शहर के जानेमाने उद्योगपति राघवेंद्र प्रताप सिंह थे. पूरी मसूरी में इन की तूती बोलती थी. किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी उन के आगे अपनी जबान खोल सके.

अपनी परफौर्मैंस देने और फंक्शन बाद होने के पश्चात जब तृष्णा कालेज गेट से बाहर निकली तो एक आदमी बड़े अदब से उसके करीब आ कर बोला, ‘‘मैडम, मैं राघवेंद्र साहब का सैक्रेटरी प्रकाश हूं. साहब ने आप को अपनी गाड़ी में घर छोड़ने को कहा है.’’ ‘‘लेकिन क्यों? मैं औटोरिकशा से चली जाऊंगी. मेरा घर यहीं पास में ही है.’’ ‘‘नहीं मैडम, आप प्लीज हमारे साथ इस कार में चलिए वरना मेरी नौकरी चली जाएगी.’’ यह सुनने के बाद तृष्णा कार में बैठ गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि शहर की जानीमानी हस्ती ने उस के लिए कार क्यों भेजी है? प्रकाश ने बड़ी इज्जत के साथ उसे घर पर छोड़ा. तृष्णा इस बात से बेहद खुश थी कि इस बार भी उस की डांस परफौर्मैंस बैस्ट थी.

अभी तृष्णा की नींद खुली भी नही थी कि उसे कुछ आवाजें सुनाई पड़ीं. 2 कमरों का छोटा सा घर था सो वह अपने ही कमरे में परदे की ओट से सुनने लगी. उसे राघवेंद्र प्रताप सिंह की आवाज सुनाई पड़ी. वे कह रहे थे कि मैं आप की बड़ी बेटी तृष्णा से ब्याह करना चाहता हूं. कल रात उस की परफौर्मैंस और खूबसूरती ने मेरा दिल जीत लिया. यदि आप ने अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथों में दे दिया तो आप को फिर अपनी बाकी बेटियों और बुढ़ापे की चिंता करने की जरूरत नहीं,’’ कह कर राघवेंद्र प्रताप सिंह चले गए. मातापिता की गरीबी,बहनों का भविष्य और प्रतापजी की बेशुमार दौलत और दबंगता के आगे तृष्णा को अपने आत्मसम्मान और सपनों की बली चढ़ा कर घुटने टेकने ही पड़े.

न चाहते हुए भी उसे अपने से दोगुनी उम्र और तलाकशुदा आदमी से शादी करनी पड़ी. भव्य समारोह के साथ तृष्णा की शादी संपन्न हुई, साथ में हुई कई तरह की बातें, कोई उसे किस्मत वाली तो कोई बेचारी कह रह था.शादी की पहली रात गुलाब की पंखुडि़यों से सजी सेज और पूरे कमरे की खूबसूरत सजावट तृष्णा को ऐसा महसूस करा रही थी. जैसे वह किसी राज्य की रानी हो. मगर यह भ्रम उसी रात टूट गया. तृष्णा इस शहर के सब से आलीशान बंगले की उन तमाम महंगी और खूबसूरत सजावटी वस्तुओं में एक थी जो इस बंगले की शोभा बढ़ा रही थी.

बस फर्क इतना था कि वह सजीव थी, उस की सांसें चल रही थीं और उस के अंदर भावनाओं की लहर उफान पर थी लेकिन थी तो वह भी सजावट और उपभोग की ही वस्तु न. उस रात तृष्णा एक और बात जान गई थी और वह थी अपने पति के पहले तलाक की वजह. भले ही समाज और सारी दुनिया कुछ भी कहे लेकिन तलाक का कारण स्वयं राघवेंद्रजी ही थे. उन की पत्नी उन्हें वारिस नहीं दे पाई क्योंकि वे इस योग्य ही नहीं थे और आरोप लगा उन की निर्दोष पत्नी पर जिसे अपनी पवित्रता की वजह से बांझ होने का ताना सुनना पड़ा और फिर तलाक का दंश सहना पड़ा.

तृष्णा के भीतर की तपिश न उस रात शिथिल हो पाई थी और न आज तक हो पाई है. मैडममैडम की आवाज तृष्णा को अतीत से वर्तमान में लौटा लाई. स्वयं को सहज करती हुए उस ने कहा, ‘‘हां, अंदर आ जाओ.’’ तृप्ति चाय ले कर खड़ी थी. ‘‘अरे तृप्ति यह तुम क्यों ले आई कोई और ले आता,’’ तृष्णा ने आश्चर्य से कहा. ‘‘बस यों ही मैडम. मैं इस ओर आ ही रही थी. वैसे भी साहब की सारी दवाइयां देने और मैडिकल रिपोर्ट व्यवस्थित करने के बाद अभी थोड़ी देर के लिए मैं फ्री हूं इसलिए ले आई,’’ तृप्ति मुसकराती हुई बोली.

चाय दे कर जब तृप्ति जाने लगी तो तृष्णा ने उसे रोक लिया और चाय पीने के बाद तृष्णा आंखों में थोड़ी शरारत लिए बोली, ‘‘तुम ने चाय तो बड़ी अच्छी बनाई है सुबहसुबह तुम्हारे हाथों की चाय पी के तुम्हारे पति तो खुश हो जाते होंगे?’’ यह सुन तृप्ति बुझे स्वर में बोल पड़ी, ‘‘हां बहुत खुश होते हैं लेकिन केवल रात में, मुझे दर्द पहुंचा कर.’’ तृप्ति का इतना कहना था कि कुछ वक्त के लिए दोनों ने चुप्पी साध ली. फिर धीरे से तृष्णा ने कहा, ‘‘तुम विरोध क्यों नहीं करती?’’ ‘‘क्या फायदा? विरोध करने से भी आज तक भला कोई मर्द रुका है, जो यह रुक जाएगा और फिर विरोध कर के मैं जाऊंगी कहां? रहना तो उस के साथ ही है,’’ कहती हुई तृप्ति कप और ट्रे समेटने लगी.

‘‘वैसे तुम्हारा पति काम क्या करता है?’’ व्यंग्यात्मक मुसकान लबों पर लिए हुए तृप्ति बोली, ‘‘शादी के पहले तो कहीं काम करता था लेकिन शादी के बाद मैं काम करती हूं और मेरे पैसों पर वह ऐयाशी… बस यही काम है उस का.’’ अभी ये सब बातें चल ही रही थीं कि प्रकाश आ गया और उन्हें अपने बातों पर विराम लगाना पड़ा. प्रकाश को देख तृष्णा ने तृप्ति को जाने का इशारा किया.

तृप्ति के जाते ही प्रकाश आज पूरे दिन का शैड्यूल तृष्णा को बताने लगा. तय समय पर तृष्णा अपने औफिस पहुंची. पिछले 5 सालों से अपने पति के पैरालाइज्ड होने के बाद से वही सारा कारोबार संभाल रही है. लेकिन आज तृष्णा का मन औफिस में नहीं लग रहा था. वह अपनेआप में ही इस सवाल का हल ढूंढ़ने का प्रयास कर रही थी कि इस समाज में हर स्त्री को उपभोग की नजरों से क्यों देखा जाता है? रहरह कर तष्णा को तृप्ति की वेदना का आभाश पीड़ा का एहसास करा रहा था इसलिए वह अपने सारे काम स्थगित कर बंगले में लौट आई.

जब वह अपने पति के कमरे में पहुंची तो उस ने देखा तृप्ति उस के पति का डायपर बदल रही थी. यह देख वह अपने कमरे में लौट आई और अपने मेड से चाय लाने को कहा. धीरेधीरे तृष्णा और तृप्ति में नजदीकियां बढ़ रही थीं और ये नजदीकियां बंगले के अन्य लोगों को खटकने भी लगी थीं क्योंकि तृप्ति छोटी जाति की थी और छोटी जाति की औरत के साथ तृष्णा का इतना घुलनामिलना बाकी लोगों को बड़ा अजीब लग रहा था. जब भी तृष्णा के पास वक्त होता वह तृप्ति को अपने कमरे में बुला लेती और तृप्ति अब साहब के साथसाथ तृष्णा का भी खयाल रखने लगी थी. अब रोज सुबह और शाम की चाय तृष्णा के लिए तृप्ति ही बनाने लगी थी जो सभी की आंखों को चुभने लगा था.

जब तक राघवेंद्रजी ठीक थे मजाल है कोई छोटी जाति का व्यक्ति बंगले की चौखट पर भी पैर रखता लेकिन जब से उन की तबीयत खराब हुई और ऊंची जाति के सभी लोगों ने उन की गंदगी साफ करने से मना कर दिया तब जा कर तृप्ति इस बंगले में आई. आई भी तो ऐसे कि तृष्णा के सब से करीब जा पहुंची. गैलरी में बैठी तृष्णा के लिए तृप्ति चाय ले कर आई और उसे चाय देने के बाद उस के कंधों को दबाने लगी अकसर तृप्ति के ऐसा करने से तृष्णा खुद को रिलैक्स महसूस करती.

तृप्ति कंधों को दबाती हुई बोली, ‘‘मैडम. आप बुरा न माने तो एक बात पूछूं?’’ ‘‘हां पूछो.’’ ‘‘साहब की ऐसी हालत कैसे हुई?’’ तृप्ति हिचकिचाती हुई बोली तृष्णा गहरी सांस भरती हुई बोली, ‘‘हमारी शादी को अभी सालभर नहीं गुजरा था लेकिन मुझे एहसास हो चुका था कि मेरी इच्छा, मेरी संतुष्टि, मेरा आनंद इन के लिए कोई माने नहीं रखता लेकिन मैं उस सुख को पाना चाहती थी, उसे जीना चाहती थी और मेरे पति बस खुद को शांत करने के लिए ही मेरे पास आते. यह जानने के बाद मैं ने विरोध जताना शुरू कर दिया.

मैं उनके इशारे पर नाचने वाली कठपुतली नहीं थी. ‘‘इसी बात को ले कर एक रात हमारे बीच बहुत बहस हुई और वे गुस्से में रात को कार ले कर मूसलाधार हो रही बारिश में निकल पड़े और उन का ऐक्सिडैंट हो गया. बस तब से यह हाल है.’’ ‘‘उफ… मतलब आप भी उस आग में जल रही हैं जिस अंगारे पर मैं रोज बिछती हूं और जलती भी हूं.’’ उस दिन के बाद तृष्णा और तृप्ति के बीच जो मन की निकटता थी वह शारीरिक नजदीकियों में तब्दील हो गई. अब जब भी उन्हें वक्त मिलता दोनों एकदूसरे की बांहों में होती.

पूरे बंगले में कानाफूसी होने लगी थी लेकिन स्पष्ट रूप से कोई भी कुछ कहने में असमर्थ था क्योंकि दोनों औरतें थीं और तृप्ति के 2 बच्चे भी थे जो मसूरी के ही किसी होस्टल में रहते थे लेकिन दोनों की इतनी नजदीकियां लोगों की समझ से परे थी. उस पर तृप्ति का छोटी जाति का होना. दोनों का प्यार और एकदूसरे के लिए तड़प बढ़ती ही जा रही थी और इस दौरान एक दिन राघवेंद्रजी की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई और उन की मृत्यु हो गई. अब इस बंगले को नर्स की जरूरत नहीं थी, फिर भी तृप्ति का आना बंद नहीं हुआ. लोग दबी जबान तरहतरह की बातें करने लगे.

मगर तृष्णा और तृप्ति को लोगों की परवाह नहीं थी. दोनों एकदूजे में डूबी हुई थी. एक दिन अचानक प्रकाश को लगा तृष्णा अपने कमरे में अकेली है, यह सोच वह अंदर चला गया और फिर उस ने जो देखा उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. बिस्तर पर पड़ी सिलवटें, तृष्णा और तृप्ति के बिखरे बालों ने प्रकाश को यह इशारा कर दिया कि दोनों के बीच एक नए अध्याय का पदार्पण हो चुका.

दोनों को प्रकाश ने जिस अवस्था में देखा वह इस बात पर मुहर लगा रहा था कि उन के बीच वह संबंध है जिसे समाज कभी स्वीकृति नही देगा लेकिन वह मौन रहा और मैडम मैं बाद में आता हूं कह कर वहां से चला गया. अब दोनों के लिए अपने संबंध को ज्यादा दिनों तक लोगों से छिपा पाना संभव नही था और अलग हो जाना कोई समाधान भी नहीं था इसलिए प्रकाश के जाते ही तृष्णा तृप्ति के माथे को चूमती हुई बोली, ‘‘तृप्ति, अब जंग का समय आ गया है.

इस जंग में या तो हमारी हार होगी या फिर जीत, बीच का कोई रास्ता नहीं है. मैं जानती हूं हमारे इस बेनाम रिश्ते को शायद कोई समझ नहीं पाएगा, हो सकता है समाज भी हमारे इस रिश्ते को नहीं स्वीकारेगा. तुम चाहो तो मुझे छोड़ कर अपनी दुनिया में वापस जा सकती हो. ‘‘मैं तुम से कोई सवाल नही करूंगी या फिर सबकुछ छोड़ कर मेरे पास यहां आ जाओ. मरजी तुम्हारी अपनी है. बस यहां आने से पहले इस बात का खयाल रखना कि लड़ाई मुश्किल है और लंबी भी.’’ यह सब सुनने के बाद तृप्ति बिना कोई जवाब दिए वहां से चली गई और तृष्णा अपने गैलरी में जा खड़ी हुई.

आज भी मूसलाधार बारिश हो रही थी. तृष्णा बगैर पलकें झपकाए बंगले के गेट की ओर देखती रही. तभी एक औटोरिकशा आ कर रुका और तृप्ति अपने कुछ सामान के साथ उस रिकशा से उतरी. यह देख तृष्णा भागती हुई गेट की तरफ बढ़ी और हांफती हुई तृप्ति के सामने जा खड़ी हुई. तृप्ति तृष्णा से लिपट गई और कहने लगी, ‘‘मैं सबकुछ छोड़ तुम्हारे पास आ गई हूं और अब हर लड़ाई लड़ने को तैयार हूं.’’

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