Hindi Fiction Story: अब तक आप ने पढ़ा:
बेटी के गायब होने की बात उस के ससुराल वालों को बताना, रोमेश की समझ से बाहर की बात थी. वह एक ऐसे मामले को उजागर करना चाहता था जो न सिर्फ पेचीदा था, दिलचस्प भी था. एक दिन उसे कुछ अहम जानकारी मिली. वह उस मुख्य स्रोत तक पहुंचना चाहता था कि तभी एक अजीब घटना घट गई…
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अगले दिन शाम को प्रिया और एक बार फिर धीर रोमेश के घर पहुंच गए. इस बार दरवाजा एक लड़की ने खोला. 20-21 वर्ष की उम्र रही होगी. गोरीचिट्टी, नैननक्श बहुत ही सुंदर. रेशमी सलवार सूट पहन रखा था. ‘‘किस से मिलना है?’’ आश्चर्य से आंखें फाड़े उस ने दोनों को देखा. उस की आंखें भी सुंदर थीं. उस लड़की को देखते ही दोनों चौंके. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. वह लड़की ईशा थी. ‘‘रोमेशजी और आप से भी.’’ उस लड़की ने जब यह सुना कि दोनों पत्रकार हैं तो लगभग दौड़ती हुई भीतर चली गई.
1 मिनट में रोमेश बाहर आए. रोमेश इस के पहले कुछ कहें, उलटासीधा बोलना शुरू करें उस से पहले ही धीर ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हम दोनों सुरेश के यहां गए थे. उन से बात की है. वे तो जो कह रहे हैं वह अलग मामला है. आप ने जो बताया है उसे गलत जानकारी बता रहे हैं?’’ धीर को उम्मीद थी कि सुरेश का नाम चमत्कार करेगा. हुआ भी यही, रोमेश तुरंत उन दोनों को अंदर ले गए. ‘‘क्या कह रहे हैं वे?’’ ‘‘उन का कहना है कि वे आप से खुद मिलने यहां आए थे. आप ने ही उन्हें बुलाया था.
आप ने ही उन्हें बताया कि ईशा गायब है. उन का यह भी कहना है कि ईशा का हवाईटिकट शिकागो से भेज दिया गया था, आप को टिकट मिल गया था. टिकट मिलने के बाद आप ने यह बताया ईशा नहीं जा सकती. वह घर में नहीं है.’’ रोमेश एकबारगी सकपका गए. फिर तुरंत उन्होंने खुद को संभाला. बोले, ‘‘वे क्या कह रहे हैं यह मैं नहीं जानता. मैं अपनी बात पर कायम हूं. देखिए हम लोग वैसे ही इस घटना को ले कर काफी परेशान हैं. मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद की गई है. कृपया इस समय हम लोगों को हमारे हाल पर छोड़ दीजिए.’’ ‘‘हो सके तो एक बार ईशा से बात करा दीजिए. हमें संतोष हो जाएगा. वे सच बोलेंगी.
आप इजाजत देंगे तो केवल मेरी कलीग भीतर जा कर उन से अकेले में बात कर लेगी.’’ जैसी आशा थी, रोमेश इस पर तैयार होने की जगह भड़क गए, ‘‘वह सच बोलेगी यानी मैं आप से झठ बोल रहा हूं? देखिए मेहरबानी कर के चले जाइए वरना मुझे पुलिस को सूचित करना पड़ेगा.,’’ रोमेश ने धमकी दी. ‘‘अरे रहने दीजिए इतना कष्ट क्यों करेंगे. हम खुद जा रहे हैं.’’ हालांकि धीर को अच्छी तरह से मालूम था रोमेश इन परिस्थितियों में पुलिस को फोन कतई नहीं करेंगे. रोमेश को धन्यवाद कह कर दोनों वहां से निकल आए.
‘‘रोमेश अभी भी झठ बोल रहा है. मुझे लगता है कि ईशा के भागने की बात सही है. लेकिन क्यों? क्या कारण हो सकता है?’’ प्रिया ने गेट से बाहर आते ही तुरंत इतनी उत्सुकता जाहिर की. ‘‘एक बार सुरेश से फिर से बात की जाए. मुझे तो दूसरा ऐंगल लग रहा है.’’ ‘‘क्या?’’ ‘‘पतिपत्नी और वह का लफड़ा. कहीं ईशा का दूसरे लड़के से तो चक्कर नहीं है?’’ थोड़ा हिचकते हुए धीर ने अपनी राय प्रिया के सामने रखी. धीर की बात पर प्रिया ने कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया. जैसे वह पहले से इस ऐंगल को ले कर सोच रही थी. ‘‘हो सकता है. ईशा ने उस लड़के के चक्कर में शिकागो जाने से मना किया हो.
जब उस पर दबाव पड़ा तो भाग गई. शर्म से रोमेश ने सुदीप के घर वालों को यह तो बताया वह घर पर नहीं है पर किसी लड़के साथ गुम हुई है इसे छिपा गए. यह बताना आसान भी नहीं था. मुझे लगता है कि अगर ऐसा है तो सुदीप के मांबाप को भले ही न मालूम हो पर सुरेश को इस बारे में जरूर कुछ मालूम होगा. उन्होंने भी तो छानबीन की होगी?’’ ‘‘एक बार सुरेश को फिर से फोन मिलाना. इस बार मुझ से बात कराना,’’ धीर ने प्रिया से कहा. सुरेश का फोन मिलते ही प्रिया ने धीर को मोबाइल दे दिया.
मोबाइल हाथ में लेते ही धीर ने सुरेश से सीधे पूछ लिया, ‘‘भाई साहब कहीं ऐसा तो नहीं ईशा का शादी के पहले किसी और लड़के से अफेयर चल रहा था? यहां आने के बाद फिर से उस से संबंध बन गए हों? उस लड़के की वजह से ही उस ने सुदीप से संबंध तोड़ लिया हो? उसी के साथ रहना चाहती हो?’’ कुछ सैकंड तक फोन पर चुप्पी बनी रही. फिर सुरेश बोले, ‘‘प्रिया की एक सहेली है निशा. वह भी पंजाबी है.
रोमेश साहब की बगल की ही कोठी में रहती है. उस से बात करें. ईशा से संबंधित उस के पास बहुत सी जानकारी होनी चाहिए. हमेशा दोनों साथ रहती थीं.’’ ‘‘उस से कैसे बात होगी सुरेशजी? आप की उस से बात हुई है क्या?’’ ‘‘देखिए इस में मुझे मत घसीटिए. हम सभी लोग एकदूसरे को जानते हैं. निशा के परिवार से भी मेरा परिचय है. हम सब को यहीं एकसाथ रहना है. मैं उस की कोठी का नंबर दे देता हूं. आप वहां जा कर उस से मिल लें. फोन नंबर मुझे नहीं मालूम,’’ सुरेश ने कहा.
सुरेश ने कुछ बताने से मना कर दिया, लेकिन जिस तरह उन्होंने सहेली का सूत्र पकड़ाया, उस से धीर समझ गया कि कुछ न कुछ मामला है. रोमेश से चिढ़े सुरेश चाहते हैं सारा कुछ बाहर आए. लेकिन रिश्ते की वजह से खुद सामने आने से बचना चाह रहे हैं. सुरेश ने निशा की कोठी का नंबर बता दिया. निशा से मिलना जरूरी था. जब तक यह पता नहीं चलेगा ईशा शिकागो वापस क्यों नहीं गई,कोई खबर नहीं बनेगी. 1 घंटे बाद दोनों ही ग्रेटर कैलाश में सुरेश के बताए पते पर पहुंच गए. दरवाजा संयोग से निशा ने ही खोला.
2 अपरिचितों से अपना नाम सुन कर थोड़ा सकपकाई. लेकिन ईशा का नाम सुनते उन से बात करने को तैयार हो गई. इस शर्त के साथ कि खबर में उस का कहीं भी नाम न आए. पूरी बातचीत में धीर ने प्रिया को आगे कर दिया. प्रिया ने पहले निशा को बताया कि वे दोनों किसकिस से मिल चुके हैं, क्या जानकारी अभी तक मिली है. बातचीत में निशा ईशा से काफी नाराज दिखी, ‘‘बहुत बड़ी बेवकूफी की उस ने. एक अच्छेखासे लड़के का जीवन बरबाद कर दिया.
अपने परिवार के साथ उस के परिवार की इज्जत दांव पर लगा दी. वह अमेरिका से आई तो उस से मिली थी. लेकिन जब यह सब पता चला उस के बाद उस से मिलने ही नहीं गई. न ही उस से मिलने की इच्छा है, जबकि बगल में ही रहती है.’’ ‘‘किस लड़के की वजह से यह सब उस ने किया? ईशा भाग कर उस दिन कहां गई थी?’’ प्रिया ने सीधे यह सवाल किया. ‘‘वह योगेश के यहां घर से भाग कर गई थी. उसी के यहां 2-3 दिन रही थी,’’ निशा ने बगैर संकोच बताना शुरू किया,’’ मैं उस के और योगेश के चक्कर को पहले से जानती थी. उस ने मुझे बता रखा था.
कालेज में हम तीनों अकसर साथ रहते थे. लेकिन जब शादी की बात चली और वह खुशीखुशी से शादी के लिए तैयार हो गई तो मुझे कुछ अजीब लगा. लगा बड़ा घर, पैसे, विदेश के नाते उस ने योगेश से अपना रिश्ता खत्म कर दिया. फिर सोचा व्यावहारिकता के नाते उस ने यह सही फैसला किया है. योगेश गरीब परिवार से है, नौकरी भी नहीं थी. शादी उस से करती तो दोनों की जिंदगी में दिक्कतें आतीं.
‘‘जब वह अमेरिका से आई तो मैं उस से मिलने गई. अकेले में मिलते ही योगेश के बारे में पूछना शुरू कर दिया. मुझे आश्चर्य हुआ. मुझे लगा कि अब शादी हो गई है, वहां इतने दिन रह कर आई है, सब भूल गई होगी. पर वह योगेश को संदेश देने और उस से मिलने की जिद करने लगी. मैं ने उसे डांटा और समझया भी कि यह सब बंद करो. आग से मत खेलो. पर वह पीछे पड़ी रही कि योगेश तक मैं उस का संदेश पहुंचा दूं.’’ ‘‘फिर?’’ ‘‘मैं ने योगेश को कोई संदेश नहीं पहुंचाया.
बाद में वह यूनिवर्सिटी जा कर योगेश से मिली. दोनों के बीच फिर क्या योजना बनी यह मुझे नहीं मालूम. पर इतना जानती हूं कि वह जब घर से भागी थी तो 3-4 दिन योगेश के यहां रुकी थी. उस के पिताजी खोजते हुए जब मेरे पास आए थे तो मैं ने उन्हें योगेश के घर का पता दे दिया था,’’ निशा ने बताया. ‘‘योगेश कहां रहता है?’’ ‘‘सरिता विहार में.’’ ‘‘आप को योगेश के घर का पता कैसे मालूम हुआ?’’ ‘‘शादी के पहले मैं ईशा के साथ 1-2 बार उस के घर जा चुकी थी. मुझे तो ईशा पर आश्चर्य है. सुदीप के मुकाबले किसी चीज में योगेश उस के बराबर नहीं है. पागल है यह लड़की.
अपना बसाबसाया घर उजाड़ लिया,’’ निशा का गुस्सा ईशा की करनी पर बहुत ज्यादा था, लेकिन इस गुस्से में अपनी सहेली के प्रति उस का प्यार भी झलक रहा था. ‘‘आप लोग इस मामले पर खबर दे रहे हैं क्या?’’ निशा ने पूछा ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता ईशा ने गलत किया है और ऐसा दूसरे के साथ न हो इसलिए यह खबर सामने आनी चाहिए?’’ प्रिया ने जवाब में उस से उलटा सवाल किया. निशा कुछ नहीं बोली. यह एक टेढ़ा सवाल था. इस पर हां या न में जवाब देना उस के लिए मुश्किल था. ‘‘मेरी तो अभी तक यह समझ में नहीं आया कि उसे योगेश के साथ रहना था तो उस ने दूसरी जगह शादी ही क्यों की? रोमेश अंकल काफी आजाद खयाल के हैं. ईशा को उन्होंने काफी आजादी दे रखी थी. अब शादी के बाद इतनी हिम्मत दिखा रही है तो क्या शादी के पहले यह साहस नहीं दिखा सकती थी? रोमेश अंकल मान भी जाते.’’
निशा का कहना सही था. सचमुच ईशा को योगेश से इतना प्यार था और इतनी हिम्मत थी तो उस ने यह लड़ाई शादी के पहले क्यों नहीं लड़ी? क्यों शादी के बाद 2 परिवारों को तबाह करने के लिए यह विद्रोह किया? प्रिया ने निशा से योगेश का पता पूछा. उस ने दे दिया. बाहर निकलने से पहले जैसे धीर को कुछ याद आया, उस ने पलट कर निशा से पूछा, ‘‘आप सुरेशजी को जानती हैं क्या?’’ ‘‘जी हां. वे यहां आए भी थे.’’ धीर को जो संदेह था वह सही साबित हुआ.
सुरेश ने निशा का पता बगैर किसी कारण के नहीं दिया था. जाहिर है उन्हें प्रियायोगेश के प्रेम का किस्सा पहले से पता था और वे चाहते थे कि यह जानकारी उन्हें भी मिले. निशा से मिलने के बाद धीर को और एक बात काफी परेशान कर रही थी. निशा के घर से बाहर निकलते ही उस ने प्रिया से इसे साझ किया, ‘‘प्रिया पता नहीं निशा से बात करते समय मुझे बारबार यह क्यों लग रहा था कि इस लड़की को मैं पहले से अच्छी तरह जानता हूं. कहीं करीब से देखा है, मिल चुका हूं इस से.’’
‘‘कहीं करीबवरीब से आप ने नहीं देखा है. न ही इसे पहले से जानते हैं आप. आप ने सुरेश के यहां जो ईशा की शादी का वीडियो देखा था, तस्वीरें देखी थीं उन में कई जगह यह लड़की निशा के साथ नजर आ रही थी. पता नहीं आप लड़कों को किसी लड़की को देखते ही यह क्यों लगने लगता है, पहले देखा है, मिल चुका हूं.’’ पहली बार प्रिया इस तरह से धीर से खुली, उस की खिंचाई की. धीर झेंप गया.
3-4 दिन की रिपोर्टिंग में खबर के साथ प्रिया की दिलचस्पी धीर में बढ़ने लगी थी. उसे यह भी लगता कि होशियार होने के बावजूद वह कुछ रूखा है. इतनी सुंदर लड़की साथ है 4 दिन बीत जाने के बाद भी उस ने कभी मजाक में भी अपनी दिलचस्पी नहीं जाहिर की. एकदम प्रोफैशनल बरताव. निशा के यहां से निकलतेनिकलते शाम हो गई थी, इसलिए तय हुआ कि सरिता विहार, ईशा के कथित प्रेमी से मिलने दूसरे दिन चलेंगे. निशा ने सरिता विहार में योगेश के जिस मकान का पता दिया था, वह एक साधारण एलआईजी फ्लैट था. योगेश की मां मिलीं, योगेश घर में नहीं था.
2 कमरे का मकान. 1 कमरे में एक तरफ पुराना सोफा पड़ा था. दूसरी तरफ दीवार से सटा एक दीवान. मां ने बाहर के ही कमरे में प्रिया और धीर को बैठाया. योगेश के पिता का 5 साल पहले एक ऐक्सीडैंट में निधन हो गया था और इस फ्लैट में केवल मां और बेटा रहते हैं. योगेश की मां ने यह भी बताया कि वे म्युनिसिपल कौरपोरेशन में काम करती हैं. योगेश की पढ़ाई से ले कर घर का खर्च कौरपोरेशन से मिलने वाले उन के वेतन से ही चल रहा है.
प्रिया की नजर कमरे के कोने में रखी मेज पर रखे फोटोफ्रेम पर पड़ी. उस में एक लड़के के साथ एक लड़की की तसवीर लगी थी. ‘‘यह तसवीर किस की है?’’ ‘‘मेरे बेटे योगेश की.’’ ‘‘और साथ में ईशा है?’’ स्याह पड़ गया था मां का चेहरा. दरअसल, अभी तक दोनों ने यह नहीं बताया था कि वे ईशा के सिलसिले में यहां आए हैं. उन्होंने योगेश की मां को इतना ही बताया था कि वे पत्रकार हैं और योगेश से कुछ बात करने आए हैं. योगेश चूंकि क्रिकेट का खिलाड़ी था, विश्वविद्यालय की टीम में था, इसलिए उस की मां ने यही सोचा था कि ये लोग बेटे के इंटरव्यू के लिए आए होंगे.
इस नए रहस्योद्घाटन के बाद उन्हें काटो तो खून नहीं. बात यहां तक बिगड़ जाएगी कि अखबार वाले आने लगेंगे, यह सोच कर उन की घबराहट बढ़ गई. ‘‘जी…’’ कुछ देर की चुप्पी के बाद उन के मुंह से आवाज निकली. ‘‘मांजी हम केवल यह जानना चाहते हैं कि ईशा यहां कितने दिन रुकी थी?’’ धीर ने पूछा. ‘‘3 दिन.’’ ‘‘उस के पिताजी लेने आए थे?’’ ‘‘हां, पर उन्होंने हम लोगों से कुछ कहा नहीं.’’ ‘‘आप को पता था कि आप के बेटे और ईशा का चक्कर चल रहा है?’’ ‘‘ठीक से जानकारी नहीं थी. पहले मुझे लगा था दोनों दोस्त हैं. एकसाथ पढ़ते हैं. जब ईशा यहां 3-4 बार आई तो मैं ने योगेश से पूछा था कि क्या मामला है, पर उस ने मुझे इधरउधर की बातें कह कर टाल दिया.
7 मई को जब ईशा यहां बैग ले कर आई तो मैं चौंकी. जिस तरह उस ने गहने पहन रखे थे, मांग में सिंदूर था उस से मैं घबरा गई. पहले लगा योगेश शादी कर के यहां ले आया है, फिर उन्होंने जब सारी बात बताई तो मैं योगेश के साथ ईशा पर भी बिगड़ी. मैं समझ रही थी कि उस के मांबाप पर क्या बीत रही होगी. पर योगेश और उस की जिद के आगे मैं कुछ नहीं कर पाई. 11 मई को प्रिया के पिता कार से आए और उसे ले गए.’’ ‘‘आप घबराइए नहीं.,’’ इस बार प्रिया बोली, ‘‘हम कुछ ऐसा नहीं लिखने जा रहे हैं जिस से आप की दिक्कतें बढ़ें. हम लोग योगेश का नाम भी नहीं लिखेंगे न ही आप के घर का कोई अतापता.’’ योगेश के घर से बाहर निकलते ही प्रिया बोल पड़ी, ‘‘सी इज जस्ट अ क्रेजी गर्ल.
पिता ने उसे जो आजाद छोड़ा था, उसी का नतीजा उन्हें भुगतना पड़ा. जब जो मन हुआ उस ने वह किया. प्यार क्या होता है वह जानती तक नहीं. ऐसे थोड़े ही होता है. विवाह में उस के साथ जबरदस्ती की गई होती तो माना भी जा सकता था.’’ प्रिया बोल रही थी, धीर हैरानी से उस का चेहरा देख रहा था. वह समझ गया प्रिया ईशा पर गुस्सा निकाल रही है. योगेश की मां से मिल कर वह कुछ ज्यादा भावुक हो गई है. उसे लगा प्रिया सुदंर होने के साथसाथ समझदार भी है. ‘‘और आप यह बारबार योगेश की मां से चक्कर की क्या बात कर रहे थे. चक्कर कोई शब्द होता है. प्यार करने और चक्कर चलाने में अंतर होता है. दोनों प्यार करते थे एकदूसरे से बस.’’ चलतेचलते धीर के कदम रुक गए.
उस ने प्रिया के चेहरे को गौर से देखा. उस के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. बनावटी गुस्सा जरूर दिखाई दिया. ‘‘सारी मैम,’’ धीर ने मुसकराते हुए कहा. खबर पूरी हो चुकी थी. सारी जानकारी इक्ट्ठी हो गई थी. दोनों दोपहर में योगेश के घर से सीधे कनाट प्लेस पहुंचे. वहां एक रेस्तरां में चाय पी. ‘‘स्टोरी लिखने के बाद मैं तुम्हें दिखा दूंगा,’’ धीर ने रेस्तरां से बाहर निकलने के बाद प्रिया से कहा. ‘‘पढ़ने की उत्सुकता तो है. पर छपने के बाद इक्ट्ठे पढ़ेंगे. सस्पैंस बना रहेगा.’’ ‘‘तुम्हारा नाम भी होगा.
बाद में कहने लगे यह क्या लिखा है, मैं यह चाहती थी, मैं वह चाहती थी.,’’ धीर ने हंसते हुए कहा. ‘‘आप जो कुछ भी लिख कर संपादक को देंगे, उस में मेरी सहमति रहेगी, मुझे दिखाने की कोई जरूरत नहीं है.’’ ‘‘जो कुछ हो, पर तुम ने अपने को एक बढि़या इन्वैस्टिगेटिंग रिपोर्टर साबित किया है.’’ ‘‘अब खिंचाई न कीजिए,’’ प्रिया ने मुसकरा कर कहा. वैसे उसे धीर से अपनी प्रशंसा सुन अच्छा लगा था. धीर ने 2 दिन बाद पूरी खबर लिख कर संपादक की मेज पर रख दी. खबर पर दोनों की बाईलाइन थी. ‘‘कर लिया पूरा काम? क्या नतीजा आप ने निकाला है?’’ संपादक ने पूछा. धीर ने संक्षेप में पूरी खबर बताई. किस से मुलाकात हुई, क्या बात हुई, इस सब का ब्योरा संपादक को दे दिया.
‘‘ईशा के प्रेमी और उस की मां से की गई बातचीत का खुलासा जानबूझ कर खबर में नहीं किया है. वे लोग अच्छे हैं, गरीब भी हैं. मैं ने यह जरूर बताया है कि ईशा शिकागो वापस नहीं गई, उस की वजह उस का पुराना अफेयर था. इस बारे में घर के लोग कोई जवाब नहीं देते, उस के साथ पढ़ने वाले का हवाला दिया है और कहा है कि उन से इस बारे में पुख्ता जानकारी मिली. यह बताने की कोशिश की है कि विदेशों में बसे अप्रवासी भारतीय युवकों के साथ भारतीय लड़कियों की होने वाली शादियों में धोखाधड़ी का नतीजा भारत में रहने वाली लड़की को ही नहीं कुछ मामलों में धोखे का शिकार विदेश में बसे युवक और उन के परिवार भी हो जाते हैं. इस मामले में ऐसा ही हुआ है.’’ ‘‘ठीक है… ठीक है.
लेकिन इस बार तो यह छप नहीं सकती. मैगजीन क्लोज हो गई है. अगले इशू में लेंगे इसे.’’ धीर को कोई दिक्कत नहीं थी. ऐसी स्टोरी नहीं थी कि एक अंक के बाद पुरानी पड़ जाए. ‘‘सर परसों से मुझे 3 दिन की छुट्टी चाहिए. घर जाना है,’’ उस ने संपादक के सामने अपनी अर्जी बढ़ा दी. संपादक ने धीर को छुट्टी की मंजूरी दे दी. उस दिन शाम को दफ्तर से निकलने के बाद वह प्रिया से मिला. उसे बताया कि उस ने स्टोरी दे दी है. अगले इशू में आएगी. फिर तुरंत पूछा,’’ आधे घंटे का समय हो तो चाय पीने चलें?’’ प्रिया तैयार हो गई. धीर कुछ परेशान था. खबर पूरी हो चुकी थी. एक बड़ी चुनौती खत्म हो गई.
दिक्कत अब यह थी कि इस स्टोरी की वजह से प्रिया का जो हफ्ते से ज्यादा समय का साथ था, वह अब खत्म हो जाएगा. बातचीत की भी कम गुंजाइश रहेगी. प्रिया का साथ उसे अच्छा लगने लगा था. उस का हंसना, उस का हां कहना, न कहना, साथ चलना, हर चीज का विश्लेषण करना, उस की समझ, उस की तुनकमिजाजी सभी कुछ अलग था. इन सब का वह आदी बनता जा रहा था. उस ने अपनी छवि और खबर पर इतना जोर दे रखा था कि प्रिया के दिल में क्या है, इस की जानकारी उस के पास नहीं थी.
उसे यही लगता था कि वह उसे एक दोस्त समझने लगी है, इस नाते फ्री हो चुकी है, मजाक कर लेती है बस. फिर उस की शादी करीब तय थी. घर से लगातार दबाव पड़ रहा था. वह घर जा भी रहा था इसी सिलसिले में. इसलिए प्रिया को ले कर आगे की दिशा में सोचने की गुंजाइश भी नहीं थी. ‘‘चलो एक दिलचस्प असाइनमैंट पूरा हुआ. तुम नहीं रहतीं तो ये सब चीजें बाहर नहीं आतीं,’’ ढाबे से बाहर निकल कर विदा होने के पहले धीर ने बात शुरू की. ‘‘ऐसा भी कुछ नहीं था. आप जानबूझ कर मुझे बांस पर चढ़ा रहे हैं.’’ ‘‘पता नहीं क्यों तुम्हें यह लग रहा है.
सच पूछो तो तुम्हारी वजह से ही लोग मिलने को तैयार हुए, उन में विश्वास पैदा हुआ और उन्होंने खुल कर बात की खासकर उस लड़की की दोस्त निशा और योगेश की मां ने.’’ प्रिया कुछ बोली नहीं. ‘‘मैं परसों बाहर जा रहां हूं. 3 दिनों के लिए.’’ ‘‘कहां?’’ ‘‘ घर कई बार बुलावा आया है’’ ‘‘सब ठीक तो है न? कोई जरूरी काम?’’ ‘‘सब ठीक है. काम वगैरह भी जरूरी नहीं है. असल में मेरे घर वाले 1 साल से मेरी शादी के चक्कर में पड़े हैं.
किसी लड़की को देखने और रिश्ता फाइनल करने जाना है. मैं लगातार सालभर से टालमटोल कर रहा था,’’ पता नहीं कैसे धीर के मुंह से निकल गया. प्रिया से वह इस समय यह बात कहेगा, उस ने सोचा तक नहीं था. घर से आ कर शादी के बारे में उसे खबर देगा, ऐसी ही उस की योजना थी. शायद किसी अनजाने अपराधबोध के दवाब में उस के मुंह से यह निकल गया. प्रिया एकबारगी सन्नाटे में आ गई. उस के चेहरे पर अजीब तरह का तनाव आ गया जिसे धीर ने स्पष्ट महसूस किया. इस के पहले कि वह आगे किसी निष्कर्ष पर पहुंचे, प्रिया अचानक बोल पड़ी, ‘‘बहुत ही कमीने हैं आप.’’ सन्न रह गया धीर, एकदम से हड़बड़ा गया. लगा कानों के पास कोई तेज धमाके वाला बम फट गया हो.
जो लड़की अभी तक आप से तुम पर नहीं उतर पाई थी, इतने दिनों तक एक भी फालतू शब्द जिस से नहीं सुना था, उस ने अचानक बेतकल्लुफी की सारी हदों को कैसे पार कर लिया, वह समझ नहीं पाया. एक क्षण में सारी औपचारिकताएं, एकदूसरे के बीच कुछ हद तक अपनेपन की खड़ी दीवार गिर गई. प्रिया ने उसे कमीना कह दिया था, बगैर किसी संकोच के. चलतेचलते धीर रुक गया. प्रिया भी रुक गई. दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. धीर ने पाया उस के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं है, किसी तरह का कोई भाव नहीं है. बस तनाव है. उस की आंखों में झंझलाहट जरूर दिखाई दी.
धीर का दिमाग काम करने लगा. प्रिया की यह प्रतिक्रिया उस की शादी की खबर सुनने के बाद आई थी. उसे सारा कुछ समझ में आने लगा. सचमुच वह मूढ़ था इसीलिए तो उसे इतने दिनों तक यह सब समझ में आया नहीं. उसे अब यह समझ में आने लगा कि क्यों जब भी उस ने चाहा, जब भी कहा प्रिया साथ रुकने को तैयार हो जाती थी, कहीं भी बेधड़क साथ चलने के लिए हामी भर देती थी.
क्या यह स्टोरी के लिए ही था? 1 मिनट बीत गया. दोनों को इसी तरह खड़ेखड़े. धीर कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. प्रिया ठंडी और उदासीन निगाहों से उसे अभी तक देख रही थी. फिर एक झटके में बोली, ‘‘चलती हूं.’’ ‘‘चलो घर छोड़ दूं.’’ ‘‘कोई बात नहीं. मैं चली जाऊंगी,’’ उस का लहजा जस का तस था. यह पहली बार नहीं था जब धीर ने घर छोड़ने की बात कही थी. 2-3 बार पहले उस ने पूछा था, घर तक छोड़ा भी था. एक बार तो प्रिया ने धीर को घर के भीतर बुलाया, चाय बना कर पिलाई, अपने मम्मीपापा से परिचय कराया. धीर उसे जाते देखता रहा.
प्रिया ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. 4 दिन में ही धीर घर से लौट आया. दफ्तर पहुंचा, सुबह से इस अवसर की तलाश में था कि प्रिया से आमनासामना हो. वैसे प्रिया ने सुबह दफ्तर आने पर उसे देख लिया था. लेकिन उस के सामने नहीं आई, विश नहीं किया. धीर समझ गया प्रिया जानबूझ कर उस की उपेक्षा कर रही है. लंच ब्रेक हुआ, प्रिया हमेशा की तरह स्तंभ विभाग में ही अपनी उन्हीं महिला सहयोगियों के साथ लंच कर रही थी. धीर वहां पहुंच गया. उसे वहां अचानक देख प्रिया के साथ बैठी तीनों लड़कियां भी चौंक गईं. उस समय तो वे सभी हैरान रह गई जब धीर ने प्रिया से बड़ी बेशर्मी से पूछा, ‘‘एक परांठा फालतू है क्या?’’ प्रिया का लंच बौक्स खुला था, उस में परांठेसब्जी दिख रहे थे. हड़बड़ा प्रिया गई.
उस के साथ बैठी लड़कियों के दिमाग में एकसाथ एक ही बात आई, कितना बदतमीज लड़का है यह. वे प्रिया के गंभीर स्वभाव को 1 साल से देख रही थीं. उन्हें यह भी अजीब लगा कि प्रिया ने गुस्से में होने के बावजूद बिना कुछ कहे चुपचाप टिफिन से एक परांठा निकाल कर धीर की तरफ बढ़ा दिया. टिफिन में रखी सब्जी को भी आगे कर दिया. धीर ने खड़ेखड़े ढीठ बन कर परांठा खाया.
चलतेचलते उस ने प्रिया से यह भी कहा कि वह औफिस के बाद 2 मिनट बात करना चाहता है. प्रिया को धीर की यह हरकत बिलकुल पसंद नहीं आई. खून का घूंट पी कर रह गई. धीर उस के हफ्तेभर के संबंध का इस तरह फायदा उठाएगा, औफिस के 4 लोगों के सामने जलील करेगा, सपने में भी उस ने ऐसा नहीं सोचा था. धीर जा चुका था. मौके की नजाकत देख वह नहीं बोल पाई थी. लेकिन उस ने फैसला कर लिया कि वह शाम को धीर से जरूर मिलेगी. उसे उस की औकात बताएगी.
क्या समझ लिया उस ने अपनेआप को? कैसे सब के बीच औफिस में इस तरह की उस के साथ हरकत कर बैठा. अभी तक निकटता, साथ बिताए समय, अच्छी यादों का कोई दबाव काम कर रहा था जिसने उसे रोक लिया, नहीं तो. दिनभर गुस्से में प्रिया जलीभुनी बैठी रही. शाम को छुट्टी हुई तो गेट पर बाकायदा धीर के निकलने का उस ने इंतजार किया.
धीर के मिलते ही एकदम से फट पड़ी, ‘‘वह क्या मजाक था?’’ धीर समझ गया. उसे अंदाजा था इस का. ‘‘2 मिनट रुक जाओ. लोग औफिस से निकल रहे हैं. सब के सामने तमाशा बन जाएंगे हम दोनों. थोड़ी देर बाद जो चाहे कह लेना,’’ धीर ने विनती के अंदाज में फुसफुसाते हुए कहा. प्रिया मामले की नजाकत समझ कर चुप हो गई. जैसे ही दोनों औफिस से आगे बढ़े, प्रिया बोल पड़ी, ‘‘अब पहले यह बताइए कि लंच में वैसी हरकत क्यों की थी? आप को इस का अंदाजा है कि मेरे बारे में लोग क्या सोचेंगे? मैं तो आप को एक अच्छा और सोबर लड़का समझती थी.’’ ‘‘वह तो मैं हूं,’’ धीर ने मजाक किया. धीर की यह बात सुनते ही प्रिया एक बार फिर भड़क गई.
धीर ने तुरंत हाथ जोड़ लिए. प्रिया ने किसी तरह खुद को शांत किया. ‘‘मैं तुम्हें सुबह से यह बताने को परेशान था कि घर पर क्या हुआ?’’ ‘‘मुझे बताने के लिए आप क्यों परेशान थे?’’ ‘‘क्योंकि तुम मेरी दोस्त हो, तुम्हें मालूम था कि मैं अपनी शादी के सिलसिले में वहां गया था.’’ प्रिया कुछ नहीं बोली. उसे इस के बाद कुछ बोलना अच्छा नहीं लगा. न ही वह यह सुनने को उत्सुक थी कि धीर के घर में क्या हुआ. ‘‘यह बात आप कभी भी बता सकते थे, औफिस के बाहर बता सकते थे. कल बता सकते थे.’’ धीर ने कुछ नहीं कहा.
वह प्रिया के चेहरे पर उतरतेचढ़ते, बदलते रंगों को गौर से देख रहा था. ‘‘जल्दी बताइए क्या हुआ घर पर? लड़की पसंद आ गई न? कब शादी कर रहे हैं?’’ प्रिया ने ही इस चुप्पी को तोड़ा. हालांकि उस की बात में किसी तरह की उत्सुकता धीर को नहीं दिखाई दी. ‘‘शादी नहीं हो रही है यही तो बताना था. लड़की पसंद नहीं आई.’’ प्रिया ने चौंक कर धीर की तरफ देखा, ‘‘फिर?’’ ‘‘फिर क्या. मैं ने घर वालों को मना कर दिया. मैं ने उन से कहा मैं ने एक लड़की पसंद कर ली है. दिल्ली में रहती है.’’ ‘‘अरे आप हैं क्या? मांबाप से भी झठ बोल दिया?’’ ‘‘मैं ने एकदम झठ नहीं बोला.
मैं ने उन को यह भी बताया कि लड़की सुंदर है लेकिन दिक्कत यह है कि वह लड़की गाली दे कर बात करती है.’’ यह सुनते ही प्रिया एकदम शांत हो गया. दिमाग घूम गया, वह समझ गई धीर क्या कह रहा है. लेकिन वह यह नहीं समझ पा रही थी कि वह इस के बाद बोले क्या. आक्रोश की जगह गंभीरता ने ले ली. धीर का भी मजाक का मूड खत्म हो चुका था.
बात सीरियस थी और दोनों इसे समझ रहे थे. ‘‘क्या यह संभव है?’’ ‘‘क्या संभव है?’’ जान कर अनजान बनते हुए प्रिया ने पूछा. ‘‘मुझ से शादी करोगी?’’ अरे… जिसे वह खड़ूस समझती रही वह इतना साहसी निकला? कम से कम इस इंसान से इस तरह से सीधे सवाल पूछे जाने की उसे कोई उम्मीद नहीं थी. प्रिया ने धीर के सवाल का सीधे जवाब नहीं दिया. बोली, ‘‘मेरी शादी मम्मीपापा पर निर्भर है?’’ ‘‘क्यों मजाक करती हो? मम्मीपापा से पूछ कर बताएगी आज्ञाकारी बेटी?’’ धीर मुसकराता प्रिया भी मुसकरा दी. धीर प्रिया को उस के घर के बाहर तक छोड़ने गया.
रास्ते में उस ने प्रिया को बताया कि जाते समय पूरे रास्ते ट्रेन में उस के बारे में ही सोचसोच कर वह परेशान होता रहा. उस ने यह भी बताया कि वह भी उसे पसंद करने लगा था, लेकिन किसी फैसले पर नहीं पहुंच पा रहा था. घर का दबाव था, उन की तरफ से लड़की पसंद कर ली गई थी. प्रिया के मन में क्या है वह जानता नहीं था. ‘‘यह सच है कि तुम से मिलने के पहले उस लड़की के प्रति आकर्षण था, पर उस के लिए कभी प्यार नहीं महसूस कर पाया था. तुम से मिलने के बाद भी दुविधा यह थी कि पता नहीं तुम्हारे दिल में क्या है. लेकिन घर जाने के ऐन पहले जो कुछ हुआ, तुम जैसे गुस्सा हुईं उस से सब साफ हो गया.
घर पहुंचने के पहले मैं ने फैसला कर लिया था. उस लड़की को देखने गया ही नहीं क्योंकि देखने के बाद इनकार करता तो उस का अपमान होता. ये सारी बातें मां को विस्तार से समझईं तो वे मान गईं,’’ धीर ने कहा. ‘‘यह तो बहुत बड़ा रिस्क लिया था आप ने. मैं ने तो आप से कुछ कहा नहीं था. मना कर देती तो आप दोनों तरफ से गए होते,’’ प्रिया को खिंचाई का मौका मिला. ‘‘तुम ने तो जो कहा वह अल्टीमेट था. गाली दे कर किसी के सामने अपने प्यार का दोटूक इजहार दुनिया में इस के पहले किसी भी लड़की ने नहीं किया होगा. लेकिन तुम ने इतनी बड़ी गाली कैसे दे दी यार… उसे पचाने में कई दिन लग गए,’’ धीर हंसा तो प्रिया झेंप गई. ‘‘पता नहीं कैसे मुंह से निकल गया,’’ प्रिया ने हलके से कहा.
ईशा को ढूंढ़तेढूंढ़ते प्रिया और धीर ने एकदूसरे को खोज लिया था. दोनों की शादी हो गई. शादी के बाद प्रिया ने नौकरी छोड़ दी. दोनों इस बात से सहमत थे कि पतिपत्नी को एक जगह नौकरी नहीं करनी चाहिए. साथ रहते 2 महीने हो चुके थे. सुबह बिस्तर पर धीर के साथ चाय पीते हुए प्रिया को अचानक सबकुछ याद आने लगा. धीर कैसे पहली बार उस के पास आया था, 1 हफ्ते में ही वह उस से किस कदर प्यार करने लगी, फिर लगा सबकुछ खत्म हो गया. सबकुछ नाटकीय तरीके से हुआ. ‘‘उस खबर का क्या हुआ जो हम ने साथ की थी. संपादकजी ने तो एक अंक के लिए रोका था. तुम से शादी की व्यस्तता में यह सब भूल ही गई थी. और उस ईशा का क्या हुआ? योगेश के साथ है या शिकागो वापस गई? तुम को फौलोअप करना चाहिए था?’’ उस ने धीर से कहा.
‘‘मुख्य स्टोरी तो छपी ही नहीं, तुम फौलोअप की बात कर रही हो. पहले अंक में न छपने के कुछ दिन बाद संपादक ने बुला कर बताया कि उन के पास कई फोन आ चुके हैं, परिचित हैं सभी, नाम बदलने पर भी सभी को अंदाजा हो जाएगा, इसलिए अब मैगजीन में देना ठीक नहीं है. वह खबर भूल जाओ. मेरी इन खबरों में दिलचस्पी थी भी नहीं. बस एक अफसोस है.’’ ‘‘क्या?’’ हालांकि प्रिया जानती थी कि धीर किस बारे में कह रहा है. लेकिन वह यह बात उस से सुनना चाहती थी. ‘‘शादी के कार्ड में सभी जोड़ों के साथ नाम रहते हैं.
हजारों पाठकों के हाथ में जाने वाली मैगजीन में साथ हम दोनों का नाम रहता तो यह भी एक अनोखी चीज होती, उसी तरह जैसे एक गाली ने हमारी शादी तय की,’’ धीर हंसते हुए बोला. ‘‘ईशा का क्या हुआ?’’ प्रिया ने तुरंत बात पलट दी. ‘‘मैं ने पता लगाने की कोशिश नहीं की. वह तो 15 दिन पहले एक मंत्री के डिनर में सुरेश, सुदीप के फूफाजी से मुलाकात हो गई. उन्होंने ही मुझे पहचाना. ईशा की बात चली तो उन्होंने बताया 1 महीने पहले वह शिकागो चली गई है सुदीप के पास. उस के घर वालों ने ही शिकागो में संपर्क किया था. बताया ईशा अफसोस कर रही है, वहां जाने को तैयार है, बचपना हो गया था उस से. सुदीप अमेरिका में पैदा हुआ, वहीं बड़ा हुआ है.
वहां इन सब बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. तलाक फिर विवाह, फिर तलाक यह सब आम बात है. चलो अंत भला तो सब भला, भारतीय फिल्म की तरह इस कहानी का अंत भी सुखद रहा.’’ ‘‘कैसे सुखद रहा?’’ प्रिया तुनक कर बोली, ‘‘उस लड़के पर क्या बीती, जिस ने प्रिया की वजह से इतना झेला. उस की मां का क्या? एक गरीब की मुहब्बत के साथ एक शहजादी ने जब चाहा तब खिलवाड़ किया. गरीबी एक बार फिर पैसे के आगे हार गई. उस गरीब लड़के के प्यार को ठुकरा कर ईशा ने दूसरे से शादी की, फिर उस के पास प्यार की दुहाई देते हुए आई और फिर उसे ठुकरा कर चली गई.
पति से प्यार होता तो शिकागो जाने से मना ही क्यों करती? फिर अपने प्रेमी को क्यों छोड़ा, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह अमीर नहीं था? यही न, फिर इस कहानी का अंत सुखद कैसे हुआ?’’ ‘‘तुम तो सही में फिल्म का डायलौग बोलने लगी. भाड़ में जाए ईशा और सुदीप. हम पर तो ईशा ने एहसान किया. उस की वजह से हमारी शादी हो गई,’’ कहते ही धीर ने प्रिया को खींच कर अपनी बांहों में भर लिया. hindi fiction story