Hindi Drama Story: अपना घर

Hindi Drama Story: मुंबई की वर्सोबा मार्केट में सुबहसुबह काफी भीड़ रहती है. मौर्निंग वाक कर के लौटते हुए मानव कुमार और उन की पत्नी नताशा सब्जी खरीदने लगे. ताजाताजा सब्जी देख कर नताशा अपने को नहीं रोक पाई. टमाटरों के मोलभाव में व्यस्त थीं. मानव इधरउधर का नजारा देख रहे थे. सामने से एक लंबी सी लड़की को आते देखा. चेहरा जानापहचाना सा लग रहा था. दीपिका जैसी लग रही थी, मगर इस के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं. मिनी फ्रौक पहनी थी, मगर सिलवटें इतनी मानो यों ही उठ कर चली आई है. नजदीक आई तो उस के घुंघराले वालों ने पुष्टि की कि यह दीपिका ही है.

दीपिका रांची से आई है, बौलीवुड में स्ट्रगल कर रही है. मानव कुमार फिल्म डाइरैक्टर हैं. जब से फिल्मों का दौर बदला है, ओटीटी के लिए फिल्में बनने लगी हैं, उन में बोल्ड सीन और गालीगलौज ने मर्यादाओं की सारी सीमाएं लांघ डाली हैं. मानव ने ऐसी फिल्मों से अपनेआप को अलग कर लिया है. जाहिर है, मानव की आर्थिक स्थिति दिनबदिन खराब होने लग गई. पत्नी ने समझया भी कि आज का दौर ही ऐसा है, सभी कर ही रहे हैं, आप भी कर लीजिए न. मगर मानव टस से मस नहीं हुए.

उन का मानना था कि मन की गवाही के बिना, कला की ‘मुजस्सिमा’ का निर्माण कभी नहीं हो सकता है.’ मानव अपने इसी आदर्श पर डटे रहे. समाज का उत्थान नहीं कर सकते तो पतन में कदापि भागीदार नहीं बनना चाहिए. नताशा सब्जी चुनने में व्यस्त थीं. मानव भी मदद करने लगे.

वे दीपिका से नहीं मिलना चाहते थे. जब दीपिका उन के पीछे से कास कर के आगे बढ़ गई तो मानव ने चैन की सांस ली. 2 कारणों से वे दीपिका से नहीं मिलना चाह रहे थे. एक तो वे अपने से आधी उम्र की इस मौडर्न कपड़ों वाली लड़की से बातें करेंगे तो लोगों की नजरें बारबार उन पर उठेंगी और दूसरा कि साथ में पत्नी थीं. वैसे तो ये बहुत ही ‘ब्रौडमाइंडेड’ औरत हैं, मगर कहीं न कहीं शक की गुंजाइश तो मन में पैदा हो ही जाएगी. पति जवान हो या बूढ़ा, पत्नी उस के प्रति प्रोजेसिच होती ही है. मानव भी तो 50 के हो ही चले थे.

तो क्या, व्यक्ति तो आकर्षक है ही. ‘‘सर जी…’’ अचानक पीछे से आवाज आई तो मानव और नताशा दोनों चौक कर पीछे मुड़े. ‘‘पहचाना सर, आप ने… मैं दीपिका… आप से जमशेदपुर में मिली थी… वह शूटिंग में.’’ ‘‘हां… हां… कैसी हो… मीट माई वाइफ नताशा,’’ बड़ी मुश्किल से पहचान पाने का नाटक करते हुए मानव ने कहा. ‘‘कैसी हो? ठीक हो न?’’ ‘‘हैलो मैडम…’’ दीपिका ने सहजता से कहा. ‘‘ठीक हूं सर, स्ट्रगल कर रही हूं. 1-2 सीन के किरदार मिल जाते हैं. 2 हजार रुपए पर डे मिल जाते हैं, उन में से 1 तो वे कास्टिंग वाले रख लेते हैं. किसी तरह लाइफ खींच रही हूं.

मैं 4 महीनों में ही इतना जान गई हूं कि यह लाइन नौट मेड फौर मी,’’ मुंह बनाते हुए दीपिका ने कहा. मानव का मन चाह रहा था किसी तरह दीपिका की मदद कर दें. वे चाहते थे कि वह उन की पूरी कहानी सुने और कुछ उपयोगी टिप्स दे, मगर यह भी जानते थे कि अनायास ही नताशा की भृकुटियां तन जाएंगी कि मैं उस के लिए इतना जिज्ञासु क्यों हो रहा हूं और प्रश्नों की भरमार हो जाएगी. सच कहा जाता है पुरुष सुलभ मन बड़ा ही लोभी होता है, बारबार मन करता, उस का मोबाइल नंबर मांग लिया जाए. मगर पत्नी थीं. खामोश रहे. नताशा सब्जी ले चुकी थीं.

उन्होंने इशारा किया कि अब चलना चाहिए. दीपिका कुछ कहना चाह रही थी. सीधे पौइंट पर आई, ‘‘सर, मुझे कुछ पैसे दे सकते हैं? सर सौ रुपए.’’ ‘‘रुपए…’’ मानव की कशमकश साफ झलक रही थी. ‘‘सर, कल से कुछ खाया नहीं है. भूख लगी है… वह सिगनल के पास बड़ा पाउ बनाता है, वही खा लूंगी.’’ ‘‘हां… हां…’’ नताशा ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘दे दीजिए न…’’ धीरे से कहा. ‘‘ठीक है…’’ मानव ने अपने कुरते की जेब में हाथ डाला और तभी उन के दिमाग में एक आइडिया कौंधा. उन्होंने पौकेट से रुपए निकालने की जगह अपना मोबाइल निकाला, ‘‘ठीक है… अपना ‘जीपे’ नंबर दे दो. भेज दूंगा. आजकल कैश कहां कोई रखता है. तुम जब तक सिगनल पहुंचोगी पैसा तुम्हें मिल जाएंगे.’’ ‘‘थैंक्स सर… मेरे पास आप का नंबर है, उसी पर मैं आप को ‘रिक्वैस्ट’ भेज देती हूं. थैंक्स सर, बाय मैम…’’ और वह चली गई.

नताशा की आंखों में उभरे प्रश्नों का अंबार भांप कर मानव ने रुख क्लीयर किया कि कैश इसलिए नहीं दिया कि लोग देखेंगे तो तरहतरह की बातें करेंगे जो उन के लिए अच्छा नहीं था. मानव ने बताया कि जमशेदपुर में जिस शूटिंग में गए थे, वहीं यह मिली थी. ये फिल्मों में काम करना चाहती थी, मानव का एक असिस्टैंड डाइरैक्टर विकास बड़ा शातिर है, अपनी बातों के जाल में फंसा लिया.

हीरोइन बनाने का पूर्ण आश्वासन दे कर मुंबई ले आया. गौतम, जो दीपिका का बचपन का दोस्त था ने मना किया, पर नहीं मानी. हीरोइन बनने के सपने में अंधी हो कर दीपिका अपनी मां के गहनों की पोटली चुपके से उठा कर विकास के पास मुंबई आ पहुंची. उस के बाद मुझे कुछ पता नहीं. विकास का भी कोई अतापता नहीं था. आज काफी अरसे बाद मिली है. अगले ही दिन मानव की पुरुष सुलभ उत्सुकता ने उसे फोन घुमाने पर विवश कर दिया. उस के बाद मानव और दीपिका अकसर मिलने लगे. इन्हीं मुलकातों के दौरान दीपिका ने अपनी पूरी कहानी सुना दी. सचमुच करुण कहानी है. दीपिका जब मुंबई आई थी अपने वादे के अनुसार एडी विकास कुमार दादर स्टेशन पर प्रतीक्षा करता मिला. दौड़ कर हग किया, दीपिका के हाथों से बैग ले लिया.

टैक्सी की और अंधेरी के होटल ‘मिड टाउन डी लक्स’ पहुंचा. सजासजाया कमरा, मिठाई के डब्बे के साथ एक फूलों का वुके भी था, जिस में लिखा था, ‘दीपिका वैलकप टू बौलीवुड.’ दीपिका की खुशियों का ठिकाना नहीं था. वह मन ही मन आकाश में उड़ने लगी. उस का हीरोइन बनने का सपना उसे पूरा होता साफ नजर आ रहा था. विकास और उस के 2 दोस्त दीपिका को ऊंचेऊंचे सपने दिखा रहे थे. मगर हुआ वही जो होता आया है. दीपिका के साथ भी वही हुआ. धोखा जो हर ‘स्ट्रगलर’ के साथ होता आया है. रात में कोल्डड्रिंक में नशे की गोली मिला दी और रात में वही गलती जो किसी भी औरत के लिए मौत से भी बदतर हुआ करती है. तीनों वही करने की योजना बना चुके थे.

सुबह दीपिका को जब होश आया उस का सबकुछ लुट चुका था. सूटकेस पर नजर पड़ी तो वह खुला था. उस में रखे सारे पैसे गायब थे. दीपिका के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अंगूठी, गले की सोने की चेन सभी गायब थे. मां की अलमारी से चुराए गहने सब गायब हो चुके थे. दीपिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था. पहले तो खूब रोई फिर शांत हुई, तो पंखे से लटक कर खुदकुशी करनी चाही, मगर हिम्मत नहीं हुई. तीसरी मंजिल से कूदना चाहा, पर साहस नहीं जुटा पाई… न तो जीना चाहती थी, न मर ही पा रही थी. शाम होतेहोते जब दीपिका का मन थोड़ा शांत हुआ तो जमशेदपुर में गौतम को फोन लगाया गौतम को दीपिका के लिए शुरू से ‘क्रश’ था. मगर दीपिका उसे हमेशा इग्नोर करती रहती थी.

फोन मिलते ही गौतम रांची भागा और पहली फ्लाइट पकड़ कर सीधा मुंबई पहुंच गया. गौतम को देख कर दीपिका ने लौटने को कहा, मगर दीपिका किस मुंह से वापस जा सकती थी, मां के गहने चोरी कर के, बिना किसी को बताए चली आई था. किस मुंह से मां, पापा को फेस करेगी. गौतम जानता था, दीपिका को मनाना नामुमकिन है. अंतत: गौतम ने अपने हथियार डाल दिए और दीपिका के सैटल होने के बारे में सोचना शुरू कर दिया. गौतम के एक दोस्त का कजन रहमान अली मुंबई में डांस डाइरैक्टर था. फोन नंबर ले कर उस से बात की और संयोग से उसी के यहां पीजी मिल गया.

होटल की पेमैंट कर के, कुछ रुपए दीपिका के हाथ में दे कर गौतम वापस रांची लौट गया. एक ही दिन की छुट्टी मिली थी. दीपिका रहमान अली के यहां पीजी बन कर रहने लगी. वहीं से स्ट्रगल करना शुरू कर दी. ‘मेरी छोटी बहना’ की हमेशा रट लगाने वाले रहमान भाई की नजर इतनी गंदी थी कि उस के स्पर्श मात्र से ही घिन आ जाती थी. वह तो उस की बीवी शहनाज भाभी इतनी दबंग थीं कि रहमान भाई दीपिका से दूर ही रहता था. दीपिका घर में शहनाज भाभी के आसपास ही रहना चाहती थी. सेफ फील करती.

4 महीने तो दीपिका ने संभाल लिया, मगर अब शहनाज भाभी की मैटरनिटी लीव खत्म हो रही है और सोमवार से वह अपनी ड्यूटी जौइन करने वाली है और वह भी नाइट शिफ्ट है. शहनाज ने जब दीपिका को बताया तो वह कांप उठी. 2 दिन तो वह, आउट डोर शूटिंग का बहाना कर के स्टेशन पर रात बिताई. मगर कब तक ऐसा चल सकता था. एक सहेली के यहां एक लड़की की जरूरत भी थी, मगर वहां डिपौजिट के रूप में 10 हजार देने पड़ते. गौतम से मांगना नहीं चाहती थी. ‘‘तुम्हारे पास कितने हैं?’’ मानव ने पूरी कहानी सुन कर पूछा. ‘‘2 हजार हैं सर, क्राइम पैट्रोल का चैक आज ही आया है.’’

अगले ही मिनट मानव ने उसे 8 हजार जीपे कर दिया. दीपिका की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई. दौड़ीदौड़ी रहमान के घर जा पहुंची और अपना जरूरी सामान बैग में भर कर आउट डोर शूटिंग का बहाना कर के रहमान को हमेशाहमेशा के लिए अलविदा कह के चली आई. वहां दिए हुए डिपौजिट की भी चिंता नहीं की. अपनी सहेली के घर आ कर 10 हजार पकड़ाए और अपने बैड पर लेट गई. उसे लग रहा था सारी दुनिया जीत ली है. रहमान की गंदी छुअन और 24 घंटों के उस डर के माहौल से बाहर आ गई. लगा एक आजाद परिंदे की तरह आकाश में उड़ रही है. दीपिका ने फिल्मों के औफिसों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. छोटेछोटे, 1-2 सीन के रोल मिलने लगे. थोड़े पैसे भी मिल जाते. कहीं काम मिलता तो कहीं पर अनुभव.

एक दिन दीपिका एक धार्मिक सीरियल ‘जय श्री गणेश’ में छोटा किरदार के लिए फोन आया. हीरोइन की सहेली का किरदार था, 10 हजार पर डे की राशि सुन कर दीपिका ने लपक लिया. शूटिंग के दिन समय से सैट पर पहुंच कर, मेकअप करवा कर रैडी बैठी थी. हीरोइन का नामोनिशान नहीं था. पूरी यूनिट रैडी बैठी थी. बारबार हीरोइन को फोन करने पर भी कोई फोन नहीं उठा रहा था. 2 घंटे बीत गए तो उस का फोन आया. मैनेजर ने पैसे बढ़ाने को कहा. प्रोड्यूसर के लिए संभव ही नहीं था.

मानमन्नौअल के बाद भी जब हीरोइन नहीं मानी तो प्रोड्यूसर सिर पकड़ कर बैठ गया. एक दिन का पूरा पैसा उसे बरबाद होता नजर आ रहा था. लाखों का नुकसान. तभी एक असिस्टैंड डाइरैक्टर दौड़ा हुआ प्रोड्यूसर के पास आया और धीरे से कहा, ‘‘सर… एक बात कहूं…’’ प्रोड्यूसर ने उस की ओर देखा तो उस की हिम्मत बढ़ी, ‘‘सर, ये दीपिका है न, वह जो वहां बैठी है. बहुत अच्छी ऐक्ट्रैस है. मैं ने ‘क्राइम पैट्रोल’ के एक ऐपिसोड में उसे देखा है,’’ थोड़ा रुक कर फिर बोला. ‘‘सर… और सर यह उसी रेट में मान भी जाएगी, सर…’’ प्रोड्यूसर की नजरें दीपिका पर टिकी हुई थीं. दूर से वह लगातार दीपिका को एकटक देखता जा रहा था और पार्वती के रूप में कल्पना कर रहा था, उसे वह पावर्ती के रूप में एकदम जंच रही थी. प्रोड्यूसर ने मन ही मन तय कर लिया कि दीपिका ही हीरोइन बनेगी. समय की पाबंद है और अपने वजट में भी है. यही दीपिका कीजिंदगी का पहला खूबसूरत मोड था. टीवी सीरियल ‘जय श्री गणेश’ सुपर हिट हो गया. लोगों ने सीरियल और दीपिका के अभिनय दोनों को खूब पसंद किया, खूब तारीफ बटोरी. टीआरपी हर सप्ताह छलांग लगाती जा रही थी. प्रोड्यूसर के पास पैसे बरसने लगे. दीपिका के पास धार्मिक सीरियल के औफर आने लगे. जल्द ही वह धार्मिक सीरियल की सुपर स्टार बन गई. कुदरत जब देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है. दीपिका पर दोनों हाथों से आशीर्वाद बरसा रहा था.

दीपिका के समय ने ऐसी करवट ली कि फिर उस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. दीपिका अपनी सुघड़ अभिनय क्षमता, विनम्रता और वक्त का सम्मान कर के जल्द ही टौप पर पहुंच गई. उस दिन तो मानो चमत्मकार ही हो गया, जब एक बड़े बैनर की तरफ से दीपिका को औफर आया, फिल्म ‘नया संसार’ के मेन लीड के लिए. 25 लाख साइनिंग अमाउंट देख दीपिका को यकीन नहीं हो रहा था. सैकड़ों दफा अपनेआप को चुटकी काटी कहीं कोई सपना तो नहीं देख रही है. फिर बैग उठा सीधे मानव के घर जा पहुंची. मानव सर को देखते ही वह दौड़ कर उन से लिपट गई.

नताशा के भी गले लगी और अपना पैसों से भरा बैग देते हुए कहा, ‘‘सर, आज मैं ने नीलकंठ प्रोडक्शन की फिल्म साइन की है, हिंदी फिल्म है, बड़े बजट की फिल्म है. यह 25 लाख मुझे साइनिंग अमाउंट भी मिला है. यह लीजिए मेरी पहली बड़ी फिल्म का साइनिंग अमाउंट सर, आप के लिए. प्लीज न मत बोलिएगा. प्लीज.’’ ‘‘अरे… यह तुम्हारी पहली फिल्म की पहली राशि है, तुम्हारे लिए है, न? इसे तुम्हें ही रखना होगा.’’ ‘‘नहीं सर. आप ने मेरे लिए कितना कुछ किया है, सर, आज मैं जो कुछ भी हूं, सब आप की वजह से ही तो हूं. आप ने अभी तक कुछ भी नहीं लिया है सर. आप को लेना ही होगा. ‘‘यह क्या बात हुई. ये 25 लाख हैं. मान जाओ.’’ ‘‘नहीं सर… मैं ने कहा न… अब आप इनकार नहीं कर सकते… लीजिए.’’ ‘‘ठीक है, तुम से भला बहस कर के कौन जीत सकता है…’’ मानव ने बैग उठा लिया तो दीपिका बच्चों की तरह उछलउछल कर तालियां बजाने लग गई. नताशा भी हैरान थीं, मानव ऐसे तो नहीं थे. नताशा की ओर देख कर बोले., ‘‘अरे, देखो न, इस ने दे दिए तो मैं क्या करता.’’ दीपिका उल्लासित थी, मगर नताशा कुछ भी नहीं समझ पा रही थीं. तभी मानव ने एक बम फोड़ दिया, ‘‘मैं ने तुम्हारी बात मान ली, अब खुश हो न…’’ ‘‘बहुत खुश सरजी,’’ दीपिका ने कहा. ‘‘अब यह बैग लो… अब तुम्हें मेरी बता माननी होगी,’’ मानव ने कहा तो दीपिका भौचक्क रह गई.

‘‘नहीं सर… नो यह चीटिंग है,’’ ठुनकती हुई दीपिका मुंह फुला कर कोने में जा बैठी. ‘‘तुम्हारे मानव सर ऐसे ही हैं. आओ मैं ने गरमगरम पकौडि़यां बनाई हैं. आओ… कौफी भी बना ली है. बारिश की रिमझिम में पकोडि़यां और गरम कौफी का मजा ही कुछ और होता है.’’ कौफी का सिप लेते हुए मानव ने कहा, ‘‘अब तुम्हें अपना नया नाम रखना होगा क्योंकि एक दीपिका आलरैडी बौलीवुड में है.’’ ‘‘हां… हां. दीपिका, इन्होंने भी अपना नाम मानव कुमार रख लिया था क्योंकि राकेश पहले से ही बौलीवुड से था.’’ ‘‘सर, आप ही कोई अच्छा सा नाम दीजिए न,’’ दीपिका ने कहा. तब मानव कागजपैन ले कर कैलकुलेशन करने लग गए, ‘‘5 अगस्त है न तुम्हारी जन्मतिथि?’’ ‘‘जी सर, आप को याद है?’’ दीपिका चौंक गई. ‘‘तुम्हारे अर्थ के हिसाब से ‘अ’ अक्षर आता है… अ से कोई नाम?’’ मानव ने कहा. ‘‘सर आप ही बताइए न?’’ दीपिका बोली.

‘‘अ से अनामिका.’’ उसी दिन से दीपिका ‘अनामिका’ बन गई. कौन सी पत्रिका या पत्र होगा, जिस में अनामिका की तसवीर या न्यूज न छपती. टीवी, यूट्यूब, सोशल मीडिया, हर जगह अनामिका की ही चर्चा होती रहती. तरहतरह की गौसिप और स्कैंडल भी अनामिका के बारे में सुनने को मिलते. शहर के मशहूर उद्योगपति केशव के युवा बेटे रोहित के साथ अनामिका के अफेयर के चर्चे अकसर हैडलाइन में छपने लगे. अनामिका का नाम आज टौप के 3 सुपर स्टार्स में गिना जाता है. अनामिका को जब भी वक्त मिलता मानव सर के पास आ धमकती. एक दिन अनामिका मानव के घर आई. सोफे पर पांव चढ़ा कर बैठ गई और नताशा से बोली, ‘‘मैमजी, मुझे आप के हाथ की बनी सेवइयां खानी हैं. खिलाइए न मैम.’’ नताशा मुसकरा कर श्योर बोलीं और रसोई में घुस गईं.

उस दिन बातोंबातों में ही नताशा ने पूछ लिया, ‘‘रोहित के साथ आर यू सीरियस?’’ ‘‘प्लीज मैम…’’ मुंह बनाते हुए अनामिका बोली. ‘‘अरे, मैगजीन में पढ़ा है कि तुम दोनों शादी करने जा रहे हो.’’ ‘‘अरे ये मैगजीन वाले एकदम पागल हैं, कुछ भी…’’ ‘‘उस में तो छपा है कि तुम उस के प्राइवेट जैट में घूमती है?’’ ‘‘उफ… मैम… एक बार, बस एक बार मम्मी की तबीयत सीरियस थी और उधर मेरी शूटिंग ‘डेनाइट’ चल रही थी तो रोहित ने अपना जैट दिया था, मैं शूटिंग कर के शाम को रांची गई थी, वहां से जमशेदपुर बाई रोड गई. मम्मी से मिल कर सुबह मुंबई आ गई थी. बस इसी बात का मीडिया बालों ने बतगंड़ बना दिया. मैम, स्टार बनने की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी न.

शादी और रोहित से… नो… नो,’’ अनामिका ने मुंह बिचका कर कहा. नताशा बोलीं, ‘‘क्यों, रोहित युवा है, स्मार्ट है. करोड़पति नहीं बल्कि अरबपति है, खूबसूरत है,’’ नताशा ने सफाई दी. ‘‘मैम… अपने जीवनसाथी के लिए जो एक काल्पनिक इमेज है मेरे मन में उस में रोहित बिलकुल फिट नहीं बैठता,’’ अनामिका ने अपनी बात साफ कर दी. नताशा बोलीं, ‘‘अच्छा तो वह जमशेदपुर वाला, क्या नाम है उस का… गौतम है न?’’ ‘‘नो मैम… वह मेरा बैस्ट फ्रैंड है, बस, बैस्ट फ्रैंड,’’ अनामिका बोली. ‘‘अरे बाबा तो शादी के लिए तुम्हें कैसा पति चाहिए?’’ ‘‘मैम… वह…’’ अनामिका कुछ बोलना चाह रही थी. फिर मानव को देखा तो उस के शब्द उस के होंठों में ही उलझ कर रह गए. ‘‘पागल छोकरी… दिमाग खराब हो गया है इस का,’’ मानव बड़बडा़या. मानव के होंठों से निकले हर शब्द से खिन्नता झलक रही थी. ‘‘ठीक कह रहे हैं आप…’’ नताशा ने भी हां में हां मिलाई. ‘‘इतने अच्छेअच्छे औफर्स ठुकरा रही हो बेटा?’’ अनामिका के कंधे पर प्यार से हाथ रखती हुई नताशा बोली. ‘‘मैम… जीवनसाथी का मतलब सिर्फ पति नहीं होता है.

एक प्रेमी भी जो गुदगुदाए… एक दोस्त की तरह जो पारदर्शी हो. पिता की तरह प्रोटैक्ट भी करे और एक भाई की तरह हमेशा साथ खड़ा मिले. ‘आदर्श’ हो, ‘आइडल’ हो. ऐसा इंसान, जिस की आंखों से सम्मान छलकता हो, उस के माथे पर ईमानदारी का झिलमिलाता मुकुट चमकता हो, ऐसा इंसान मैम… ऐसी ‘पर्सनैलिटी’, जिसे बस निहारते रहने का मन करता हो. मगर…’’ ‘‘मगर क्या?’’ अनामिका की बात को बीच में ही काट कर नताशा बोलीं, ‘‘ऐसे इंसान तो सिर्फ किताबों के पन्नों या फिल्मों में ही दिखाई पड़ते हैं. फिर भी अगर तुम्हारी नजर में ऐसा कोई इंसान मिल जाए तो मुझे बताना, मैं चल कर उस से तेरा ब्याह करवा दूंगी, मेरी बच्ची.’’ ‘‘नहीं मैम, रीयल लाइफ में भी ऐसे इंसान होते हैं,’’ अनामिका बोली, ‘‘मैं जो चाहती हूं वह न मिले तो मैं वैसे ही रह लूंगी.’’

अनामिका के शब्द वेदना में गुंथे हुए थे और क्रोध से ओतप्रोत थे, जो अश्क बन कर आंखों के रास्ते बह जाना चाहते थे. अनामिका ने तिरछी नजर से मानव को देखा और फिर पर्स उठा कर पैर पटकती चली गई. नताशा कुछ भी समझ नहीं पा रही थीं. अनामिका तो चली गई, मगर मानव और नताशा बैठ कर घंटों शून्य, आकाश में इस का उत्तर तलाशते रहे. अंतत: मानव ने ही मौन तोड़ा, ‘‘पागल है यह छोकरी. दिमाग खराब हो गया है इस का….’’ नताशा शून्य में ताकती जा रही थी, मौन थीं.

अचानक उन की सिक्स्थ सैंस ने दस्तक दी, उन की आंखों में चमक आ गई. आंखों के सामने कई दृश्य किसी फिल्म के सीन की तरह आतेजाते रहे, वे उठ खड़ी हुईं. वे अनामिका की कई बातों को बातों से मिलाने लगीं. नताशा आ कर मानव की बगल में बैठ गईं. उन का चेहरा अपने दोनों हाथों के बीच ले कर गौर से, प्यार से निहारने लगीं. नताशा सोचने लगीं कि सच ही तो बोल रही थी अनामिका. कुदरत ने आजकल ऐसे सच्चे पीस बनाना बंद कर दिए हैं. मानव… मानव तुम कितने अच्छे हो, कितनी लड़कियों के आइडल हो. गौर से देखती रहीं वे मानवजी को. न

ताशा आगे सोचने लगी कि सच ही तो है, मानव ने उसे पगपग पर मदद की, वह भी निस्स्वार्थ भाव से. हमेशा महिलाओं को सम्मान दिया है. फिर चाहे स्ट्रगल हो या सैलिब्रिटी और हां, खुद गुरबत से रहते हुए भी 25 लाख से भरा बैग बिना कुछ सोचे लौटा दिया. अनामिका का शादी का प्रपोजल भी बड़ी विनम्रता से मानव ने लौटा दिया था. वह तो उस के लिए भी तैयार थी कि धर्म बदल कर धर्मेंद्र और हेमामालिनी की तरह शादी रचा ले, मगर मानव ने मुसकरा कर इनकार कर दिया था और कैसी होती है आइडल छवि और कैसा होता है आदर्श व्यक्तित्व. इतनी सारी खूबियां इंसान में कहां, देवपुरुषों में ही पाई जाती है और मैं रही मूर्ख की मूर्ख. घर की मुरगी दाल बराबर.

नताशा अपनी तिरछी नजरों से मानव को देखती जा रही थीं और मुसकरा रही थीं. ‘‘यार, आप तो इस 60+ में भी डिमांड में हैं,’’ मानव के लिए नताशा के दिल में इज्जत और बढ़ गई. 10 साल बीत गए. अनामिका ने नया बंगला खरीद लिया. हौल की पूरी अलमारी ट्रौफियों और शील्ड्स से भर गई थी. इधर मानव अपने घर में गरीबी के दिन गुजार रहे थे. मानव जान गए थे कि अनामिका उन से प्रेम करनेलगी है. वह अपने मन में मानव को बसा कर मन द्वारा की कुंडी बंद कर दी है.

प्यार न तो धर्म देखता है, न उम्र की चिंता करता है… बस भावनाओं के राडार में किसी के कुछ गुण पसंद आ जाने चाहिए. मन पर से अपना अंकुश खो देता है और प्रेम की डोर उसे अपने बाहूपाश से बांध लेती है. मानव भी अनामिका के इस सत्य से अवगत हो चुके थे. वे चाहते थे कि अनामिका अपने काम में ध्यान दे और किसी अच्छे लड़के के साथ शादी कर के अपना घर बसा ले. यही कारण था कि मानव अनामिका को अपने घर आनेजाने को मना कर चुके थे. अपने गानों की रौयल्टी से मिले पैसों से मियांवीबी का किसी तरह गुजारा हो रहा था. अनामिका स्टार बन चुकी थी. कईर् शहरों में उस ने मकान खरीद लिए थे.

आज अनामिका के पास मकान तो कई थे, मगर घर… जो उस का अपना था वह मानव का था जहां वह नताशा के बुलाने पर बिना गाड़ी के औटो में आती और पूरा दिन घर में रह कर तृप्त हो कर जाती. उस का यह घर अच्छेअच्छे फिल्मी पत्रकारों को भी नहीं मालूम था.

Snacks for Weekend: वीकेंड पर बच्चों के लिए बनाएं ये टेस्टी स्नैक्स

Snacks for Weekend

वैज अप्पम

सामग्री

– 200 ग्राम मसाला ओट्स

– 1 बड़ा चम्मच सूजी ड्राई रोस्ट

– 1 गाजर कद्दूकस की

– 8-10 बींस कटी

– थोड़े से करीपत्ते

– 1/2 कप दही

– 2-3 हरीमिर्चें कटी

– 1 छोटा प्याज बारीक कटा

– 1 छोटा चम्मच तेल

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में ओट्स, सूजी, नमक, हरी मिर्चें मिला कर मिश्रण तैयार करें. अब एक पैन में तेल गरम कर करीपत्ते प्याज, बींस व गाजर भून कर ओट्स के मिश्रण में मिला दें. इस में दही व जरूरतानुसार पानी मिला कर अप्पम का मिश्रण तैयार करें. अप्पम पैन में चिकनाई लगा कर अप्पम दोनों तरफ से सेंक कर तैयार करें और हरी चटनी के साथ सर्व करें.

चटपटा पनीर

सामग्री

– 250 ग्राम पनीर

– 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर

– 2 बड़े चम्मच मैदा

1 चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट

– 2 बड़े चम्मच पानी निकला गाढ़ा दही

– 1 छोटा चम्मच चाटमसाला

– 1 छोटा चम्मच तंदूरी मसाला

-1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्च का पेस्ट

– 1 छोटा चुकंदर

– 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– तलने के लिए तेल

– नमक स्वादानुसार.

विधि

चुकंदर को छील कर टुकड़ों में काट कर गलने तक पका लें. फिर पीस कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट में पनीर को छोड़ कर बाकी सारी सामग्री मिला दें. अच्छी तरह मिक्स करें. इस पेस्ट में पनीर के टुकड़े काट कर मिला दें. फिर इसे कुछ देर ऐसे ही रखा रहने दें. यदि पेस्ट ज्यादा गाढ़ा लगे तो उस में थोड़ा पानी मिला सकती हैं. पनीर के टुकड़ों को गरम तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

Working Wife: वर्किंग वाइफ क्यों पसंद करते हैं पुरुष?

Working wife: दिलचस्प बात यह है कि जहां लोग पहले शादी के लिए कामकाज में दक्ष, संस्कारी और घरेलू लड़की पसंद करते थे वहीं आज इस ट्रेंड में बदलाव नजर आ रहा है. अब पुरुष शादी के लिए घर बैठी लड़की नहीं बल्कि वर्किंग वूमन पसंद करने लगे हैं. अपनी वर्किंग वाइफ का दूसरों से परिचय कराते हुए उन्हें गर्व महसूस होता है. आइये जानते हैं पुरुषों की इस बदलती सोच की वजह;

पति की परिस्थितियों को समझती है

अगर पत्नी खुद भी कामकाजी है तो वह पति की काम से जु़ड़ी हर परेशानी को बखूबी समझ जाती है. वह समयसमय पर न तो पति को घर जल्दी आने के लिए फोन करती रहेगी और न घर लौटने पर हजारों सवाल ही करेगी. इस तरह पतिपत्नी का रिश्ता स्मूथली चलता रहता है. दोनों हर संभव एक दूसरे की मदद को भी तैयार रहते हैं. यही वजह है कि पुरुष कामकाजी लड़कियां खोजने लगे हैं.

अपना खर्च खुद उठा सकती हैं

जो महिलाएं जौब नहीं करतीं वे अपने खर्चे के लिए पूरी तरह पति पर निर्भर होती हैं. छोटी सी छोटी चीज़ के लिए भी उन्हें पति और घरवालों के आगे हाथ पसारना पड़ता है. दूसरी तरफ वर्किंग वूमन खर्चों को पूरा करने के लिए पति पर डिपेंडेंट नहीं रहती हैं. वे न सिर्फ अपने खर्चे खुद उठाती हैं बल्कि समय पड़ने पर परिवार की भी मदद करती हैं.

पौजिटिव होती हैं

कामकाजी महिलाओं पर हुई एक रिसर्च के मुताबिक ज्यादातर वर्किंग वूमन सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहती हैं. उन के अंदर आत्मविश्वास और चीज़ों को हैंडल करने का अनूठा जज्बा होता है. उन्हें पता होता है कि किस परेशानी से किस तरह निपटना है.इस लिए वे छोटी छोटी बातों पर हाइपर नहीं होती न ही घबड़ाती हैं. उन्हें पता होता है कि प्रयास करने पर वे काफी आगे बढ़ सकती हैं.

खर्च कम बचत ज्यादा

आज की महंगाई में यदि पतिपत्नी दोनों कमाई करते हैं तो जिंदगी आसान हो जाती है. आप को कोई भी प्लान बनाते समय सोचना नहीं पड़ता. भविष्य के लिए बचत भी आसानी से कर पाते हैं. घर और वाहन खरीदने या फिर किसी और जरुरत के लिए लोन लेना हो तो वह भी दोनों मिल कर आसानी से ले लेते हैं और किश्तें भी चुका पाते हैं. आलम तो यह है कि आज महिलाएं लोन लेने और उसे चुकाने के मामले में पुरुषों से कहीं आगे हैं. वे न सिर्फ पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी घर की धुरी बनती जा रही है.

बढ़ रही है लोन लेने वाली औरतों की संख्या

क्रेडिट इन्फौर्मेशन कंपनी ‘ट्रांसयूनियन सिबिल’ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले 3 सालों में कर्ज लेने के मामले में महिला आवेदको की संख्या लगातार बढ़ रही हैं. देखा जाए तो औरतों ने मर्दों को पीछे छोड़ दिया है.

रिपोर्ट के अनुसार, ‘साल 2015 से 2018 के बीच कर्ज लेने के लिए सफल महिला आवेदकों की संख्या में 48 फीसदी की बढ़त हुई है. इस की तुलना में सफल पुरुष आवेदकों की संख्या में 35 फीसदी की बढ़त हुई है. हालांकि कुल कस्टमर बेस के हिसाब से अभी भी कर्ज लेने वाले पुरुषों की संख्या काफी ज्यादा है.

रिपोर्ट के अनुसार करीब 5.64 करोड़ के कुल लोन अकाउंट में अब भी ज्यादा हिस्सा गोल्ड लोन का है, हालांकि साल 2018 में इस में 13 फीसदी की गिरावट आई है. इस के बाद बिजनेस लोन का स्थान है. कंज्यूमर लोन, पर्सनल लोन और टू व्हीलर लोन के लिए महिलाओं की तरफ से मांग साल-दर-साल बढ़ती जा रही है.

आज हर 4 कर्जधारकों में से एक महिला है. यह अनुपात और भी बदलेगा क्यों कि कर्ज लेने लायक महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. बेहतर शिक्षा और श्रम बाजार में बेहतर हिस्सेदारी की वजह से अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं अपने वित्तीय फैसले खुद ले रही हैं.

Beauty Problems: मेकअप लगाने से चेहरा पैची हो जाता है. समाधान बताएं?

Beauty Problems

मेकअप लगाने के 1 घंटे में ही चेहरा पैची हो जाता है. परेशान हो गई हूं. कोई समाधान बताएं?

पैची मेकअप का मतलब है कि आप की स्किन में हाइड्रेशन की कमी है. कई बार मेकअप से पहले सही तरीके से मौइस्चराइज नहीं किया जाता या स्किन पर डैड स्किन की लेयर होती है. इस के लिए मेकअप से पहले स्किन को अच्छी तरह क्लीन करें, फिर 5 मिनट तक कोई हाइड्रेटिंग क्रीम या ऐलोवेरा लगाएं. स्किन को हफ्ते में 1 बार सौफ्ट स्क्रब करें. प्राइमर जरूर यूज करें. यह मेकअप को टिकाने में मदद करता है. स्पौंज या फिंगर्स से बहुत रगड़ कर लगाने से बचें.

चेहरे पर ग्लो तो है लेकिन अनइवन लगती है. कहीं गालों की स्किन डार्क है तो कहीं फोरहैड डल है. समझ में नहीं आता क्या करूं?

यह अनइवन स्किन टोन कहलाता है जो धूप, हारमोनल बदलाव या गलत प्रोडक्ट्स की वजह से होता है. कई बार एक ही फेस क्रीम पूरे चेहरे के लिए ठीक नहीं होती क्योंकि हर हिस्से की स्किन की थिकनैस अलग होती है. इस से बचने के लिए सुबहसुबह सनस्क्रीन लगाना बिलकुल न भूलें खासकर जब बाहर निकलना हो. रात को गुलाबजल+चंदन पाउडर या दूध+केसर लगा कर सोने से सुधार होता है. पिगमैंटेशन वाले एरिया पर नीबू+शहद (सप्ताह में 2 बार) भी लगा सकती हैं. मुलतानी मिट्टी+खीरे के रस का फेस पैक अनइवन स्किन को स्मूथ करता है.

मेरे फेस पर अचानक छोटेछोटे दाने हो जाते हैं जबकि स्किन ड्राई रहती है. कोई इलाज बताएं?

अकसर महिलाएं समझती हैं कि दाने सिर्फ औयली स्किन पर होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. ड्राई स्किन पर भी अगर आप ज्यादा हार्श फेसवाश यूज कर रही हों या दिनभर में फेस बारबार धो रही हों तो स्किन का नैचुरल मौइस्चर चला जाता है. इस से स्किन बचाव के लिए खुद औयल बनाती है और पोर्स ब्लौक हो जाते हैं. रोज माइल्ड या क्रीम बेस्ड फेसवाश यूज करें. दिन में 2 बार गुलाबजल या ऐलोवेरा जैल लगाएं. हफ्ते में 1 बार जैंटल ऐक्सफौलिएशन जरूर करें जैसे ओटमील और मिल्क मिला कर उस में कुछ दाने खसखस के मिला लें और फेस को हलके हाथों से स्क्रब करें. Beauty Problems

Romantic Story: मिशन लव बर्ड्ज

Romantic Story: हम ने अपने दरवाजे के सामने खड़े अजनबी युवक और युवती की ओर देखा. दोनों के सुंदर चेहरों पर परेशानी नाच रही थी. होंठ सूखे और आंखों में वीरानी थी.

‘‘कहिए?’’ हम ने पूछा.

‘‘जी, आप के पास पेन और कागज मिलेगा?’’ लड़के ने थूक निगल कर हम से पूछा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. मगर आप कुछ परेशान से लग रहे हैं. जो कुछ लिखना है अंदर आ कर आराम से बैठ कर लिखो,’’ हम ने कहा.

दोनों कमरे में आ कर मेज के पास सोफे पर बैठ गए.

‘‘सर, हम आत्महत्या करने जा रहे हैं और हमें आखिरी पत्र लिखना है ताकि हमारी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार न ठहराया जाए,’’ लड़की ने निराशा भरे स्वर में बताया.

‘‘बड़ी समझदारी की बात है,’’ हमारे मुंह से निकला…फिर हम चौंक पडे़, ‘‘तुम दोनों आत्महत्या करने जा रहे हो… पर क्यों?’’

‘‘सर, हम आपस में प्रेम करते हैं और एकदूसरे के बिना जी नहीं सकते. मगर हमारे मातापिता हमारी शादी कराने पर किसी तरह राजी नहीं हैं,’’ लड़के ने बताया.

‘‘और इसीलिए हम यह कदम उठाने पर मजबूर हैं,’’ लड़की निगाह झुका कर  फुसफुसाई.

‘‘तुम दोनों एकदूसरे को इतना चाहते हो तो फिर ब्याह क्यों नहीं कर लेते? कुछ समय बाद तुम्हारे मांबाप भी इस रिश्ते को स्वीकार कर  लेंगे.’’

‘‘नहीं, सर, हमारे मातापिता को आप नहीं जानते. वे हम दोनों का जीवन भर मुंह न देखेंगे और यह भी हो सकता है कि हमें जान से ही मार डालें,’’ लड़के ने आह भरी.

‘‘हम अपनी जान दे देंगे मगर अपने मातापिता के नाम पर, अपने परिवार की इज्जत पर कीचड़ न उछलने देंगे,’’ लड़की की आंखों में आंसू झिलमिला उठे थे.

‘‘अच्छा, ऐसा करते हैं…मैं तुम दोनों के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाऊंगा और मुझे भरोसा है कि इस मिशन में मैं जरूर कामयाब हो जाऊंगा. तुम मुझे अपनेअपने मांबाप का नामपता बताओ, मैं अभी आटो कर के उन के पास जाता हूं. तब तक तुम दोनों यहीं बैठो और वचन दो कि जब तक मैं लौट कर न आ जाऊं तुम दोनों आत्महत्या करने के विचार को पास न फटकने दोगे.’’

लड़के ने उस कागज पर अपने और अपनी प्रेमिका के पिता का नाम लिखा और पते नोट कर दिए.

हम ने कागज पर नाम पढ़े.

‘‘मेरे पिताजी का नाम ‘जी. प्रसाद’ यानी गंगा प्रसाद और इस के पिताजी ‘जे. प्रसाद’ यानी जमुना प्रसाद,’’ लड़के ने बताया.

‘‘और तुम्हारे नाम?’’ हम ने पूछा.

‘‘मैं राजेश और इस का नाम संगीता है.’’

राजेश ने अपनी जेब से पर्स निकाला और उस में से 500 का नोट निकाल कर हमारे हाथ पर रख दिया.

‘‘यह क्या है?’’ हम ने प्रश्न किया.

‘‘सर, यह आटो का भाड़ा.’’

‘‘नहींनहीं. रहने दो,’’ हम ने नोट लौटाते हुए कहा.

‘‘नहीं सर, यह नोट तो आप को लेना ही पड़ेगा. यही क्या कम है कि आप हमारे मम्मीडैडी से मिल कर उन्हें समझाबुझा कर राह पर लाएंगे,’’ लड़की यानी संगीता ने आशा भरी नजरों से हमारी आंखों में झांका.

हम ने नामपते वाला कागज व 500 रुपए का नोट जेब में रखा और घर के बाहर आ गए.

आटो में बैठेबैठे रास्ते भर हम राजेश और संगीता के मांबाप को समझाने का तानाबाना बुनते रहे थे.

उस कालोनी की एक गली में हमारा आटो धीरेधीरे बढ़ रहा था. सड़क के दोनों तरफ के मकानों पर लगी नेम प्लेटों और लेटर बाक्सों पर लिखे नाम हम पढ़ते जा रहे थे.

एक घर के दरवाजे पर ‘जी. प्रसाद’ की नेम प्लेट देख कर हम ने आटो रुकवाया.

‘‘जी. प्रसाद यानी गंगा प्रसाद… राजेश के डैडी का घर,’’ हम ने धीरे से कहा.

‘काल बैल’ के जवाब में एक 55-60 वर्ष के आदमी ने दरवाजा खोला. उन के पीछे रूखे बालों वाली एक स्त्री थी. दोनों काफी परेशान दिखाई दे रहे थे.

‘‘मैं आप लोगों से बहुत नाजुक मामले पर बात करने वाला हूं,’’ हम ने कहना शुरू किया, ‘‘क्या आप मुझे अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’

दंपती ने एकदूसरे की ओर देखा, फिर हमें स्त्री ने अंदर आने का इशारा किया और मुड़ गई.

‘‘देखिए, श्रीमानजी, आप की सारी परेशानी की जड़ आप की हठधर्मी है,’’ हम ने कमरे में कदम रखते ही कहना शुरू किया, ‘‘अरे, अगर आप का बेटा राजेश अपनी इच्छा से किसी लड़की को जीवन साथी बनाना चाहता है तो आप उस के फटे में अपनी टांग क्यों अड़ा रहे हैं?’’

‘‘मगर मेरा बेटा…’’ अधेड़ व्यक्ति ने कहना चाहा.

‘‘आप यही कहेंगे न कि अगर आप का बेटा आप के कहे से बाहर गया तो आप उसे गोली मार देंगे,’’ हम ने बीच में उन्हें टोका, ‘‘आप को तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं. आप का बेटा और उस की प्रेमिका आत्महत्या कर के, खुद ही आप के मानसम्मान की पताका फहराने जा रहे हैं.’’

‘‘मगर भाई साहब, हमारा कोई बेटा नहीं है,’’ रूखे बालों वाली स्त्री ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘मुझे मालूम है. आप गुस्से के कारण ऐसा बोल रही हैं,’’ हम ने महिला से कहा और फिर राजेश के डैडी की ओर मुखातिब हुए, ‘‘मगर जब आप अपने जवान बेटे की लाश को कंधा देंगे…’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा हरगिज न होगा… मुझे मेरे बेटे के पास ले चलो.. मैं उस की हर बात मानूंगा,’’ अधेड़ आदमी ने हमारा हाथ पकड़ा, ‘‘मैं उस की शादी उस की पसंद की लड़की से करा दूंगा.’’

‘‘जरा रुकिए, मैं भी आप के साथ चलूंगी,’’ रूखे बालों वाली स्त्री बिलख पड़ी, ‘‘आप अंदर अपने कमरे में जा कर कपड़े बदल आएं.’’

पति ने वीरान नजरों से अपनी पत्नी की ओर देखा फिर दूसरे कमरे में चला गया.

पतिपत्नी पर अपने शब्दों का जादू देख कर हम मन ही मन झूम पड़े.

‘‘सुनिए भैयाजी,’’ महिला ने हम से कहा, ‘‘सच ही हमारा कोई बेटीबेटा नहीं है. 30 वर्षों के ब्याहता जीवन में हम संतान के सुख को तरसते रहे. हम ने अपनेअपने सगेसंबंधियों में से किसी के बच्चे को गोद लेना चाहा मगर सभी ने कन्नी काट ली. सभी का एक ही खयाल था कि हमारे घर पर किसी डायन का साया है जो हमारे आंगन से उठने वाली बच्चे की किलकारियों का गला घोंट देगी.’’

‘‘आप सच कह रही हैं? हमें विश्वास नहीं हो रहा था.’’

महिला ने सौगंध खाते हुए अपने गले को छुआ और बोली, ‘‘इस  सब से मेरे पति का दिमागी संतुलन गड़बड़ा गया है. पता नहीं कब किस को मारने दौड़ पड़ें.’’

उधर दूसरे कमरे से चीजों के उलटनेपलटने की आवाजें आने लगीं.

‘‘अरे, तुम  ने मेरा रिवाल्वर कहां छिपा दिया?’’ मर्द की दहाड़ सुनाई दी, ‘‘मुझ से मजाक करने आया है…जाने न देना…मैं इस बदमाश की खोपड़ी उड़ा दूंगा.’’

हम ने सिर पर पांव रखने के बजाय सिर पर दोनों हाथ रख बाहर के दरवाजे की ओर दौड़ लगाई और सड़क पर खड़े आटो की सीट पर आ गिरे.

आटो एक झटके से आगे बढ़ा. यह भी अच्छा ही हुआ कि हम ने आटोरिकशा को वापस न किया था.

दूसरी सड़क पर आटो धीमी गति से बढ़ रहा था.

एक मकान पर जे. प्रसाद की पट्टी देख हम ने आटो रुकवाया.

‘‘जमुना प्रसादजी?’’ हम ने काल बैल के जवाब में द्वार खोलने वाले लंबेतगड़े मर्द से पूछा. उस के होंठ पर तलवार मार्का मूंछें और लंबीलंबी कलमें थीं.

‘‘जी,’’ उस ने कहा और हां में सिर हिलाया.

‘‘आप की बेटी का नाम संगीता है?’’

‘‘हां जी, मगर बात क्या है?’’ मर्द ने बेचैनी से तलवार मार्का मूंछों क ो लहराया.

‘‘क्या आप गली में अपनी बदनामी के डंके बजवाना चाहते हैं? मुझे अंदर आने दीजिए.’’

‘‘आओ,’’ लंबातगड़ा मर्द मुड़ा.

ड्राइंगरूम में एक सोफे पर एक दुबलीपतली सुंदर महिला बैठी टेलीविजन देख रही थी. हमें आया देख उस ने टीवी की आवाज कम कर दी.

‘‘कहो,’’ वह सज्जन बोले.

हमें संगीता के पिता पर क्रोध आ रहा था. अत: तमक कर बोले, ‘‘अपनी बेटी के सुखों को आग दिखा कर खुश हो रहे हो? अरे, जब बेटी ही न रहेगी तो खानदान की मानमर्यादा को क्या शहद लगा कर चाटोगे?’’

‘‘क्या अनापशनाप बोले जा रहे हो,’’ उस स्त्री ने टीवी बंद कर दिया.

‘‘आप दोनों पतिपत्नी अपनी बेटी संगीता और राजेश के आपसी विवाह के खिलाफ क्यों हैं. वे एकदूसरे से प्यार करते हैं, दोनों जवान हैं, समझदार हैं फिर वे आप की इज्जत को बचाने के लिए अपनी जान न्योछावर करने को भी तैयार हैं.’’

‘‘ए… जबान को लगाम दो. हमारी बेटी के बारे में क्या अनापशनाप बके जा रहे हो?’’ मर्द चिल्लाया.

‘‘सच्ची बात कड़वी लगती है. मेरे घर में तुम्हारी बेटी संगीता अपने प्रेमी के कांधे पर सिर रखे सिसकियां भर रही है. अगर मैं न रोकता तो अभी तक उन दोनों की लाशें किसी रेलवे लाइन पर कुचली मिलतीं.’’

‘‘ओ…यू फूल…शटअप,’’ मर्द ने हमारा कालर पकड़ लिया.

‘‘हमारी बेटी घर में सो रही है,’’ उस महिला ने कहा.

‘‘हर मां अपनी औलाद के कारनामों पर परदा डालने की कोशिश करती है और पिता की आंखों में धूल झोंकती है. लाइए अपनी बेटी संगीता को, मैं भी तो देखूं,’’ हम ने अपना कालर छुड़ाया.

सुंदर स्त्री सोफे से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई और फिर थोड़ी देर बाद एक 8-9 साल की बच्ची की बांह पकड़े ड्राइंगरूम में लौटी. बच्ची की अधखुली आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं.

‘‘यह आप की बेटी संगीता है?’’ हम ने फंसेफंसे स्वर में पूछा.

‘‘हां,’’ तलवार मार्का मूंछें हम पर टूट पड़ने को तैयार थीं.

‘‘और आप के घर का दरवाजा?’’ हमारे मुंह से निकला.

‘‘यह,’’ इतना कह कर लंबेतगडे़ मर्द ने हमें दरवाजे की ओर इस जोर से धकेला कि हम बाहर सड़क पर खड़े आटो की पिछली सीट पर उड़ते हुए जा गिरे.

कालोनी की बाकी गलियां हम खंगालते रहे. कालोनी की आखिरी गली के आखिरी मकान पर गंगा प्रसाद की नेम प्लेट देख हम ने आटो रुकवाया.

‘‘किस से मिलना है?’’ 10-12 वर्ष के लड़के ने थोड़ा सा दरवाजा खोल हम से पूछा.

‘‘राजेश के मम्मीपापा से,’’ हम ने छोटा सा उत्तर दिया.

‘‘आओ,’’ लड़के ने कहा.

ड्राइंगरूम में 60-65 वर्ष का मर्द पैंटकमीज पहने एक सोफे पर बैठा था. एक दूसरे सोफे पर सूट पहने, टाई बांधे एक और सज्जन विराजमान थे. उन के पास रखे बड़े सोफे पर 20-22 साल की सुंदर लड़की सजीधजी बैठी थी. उस के बगल में एक अधेड़ स्त्री और दूसरी ओर  एक ब्याहता युवती बैठी थी. इन सभी के चेहरों पर खुशी की किरणें जगमगा रही थीं. सभी खूब सजेसंवरे थे.

पैंटकमीज वाले सज्जन के चेहरे पर गिलहरी की दुम जैसी मूंछें थीं. सभी हंसहंस कर बातें कर रहे थे, केवल वह सजीधजी लड़की ही पलकें झुकाए बैठी थी.

‘‘पापा, यह आप से मिलने आए हैं,’’ लड़के ने गिलहरी की दुम जैसी मूंछों वाले से कहा.

सामने दरवाजे से 50-55 साल की भद्र महिला हाथों में चायमिठाई की टे्र ले कर आई और उस ने सेंटर टेबल पर टे्र टिका दी.

‘‘आप राजेश के पापा हैं?’’

‘‘हां, और यह राजेश के होने वाले सासससुर और उन की बेटी, यानी राजेश की होने वाली पत्नी…हमारी होने वाली बहू और साथ में…’’ गिलहरी की दुम जैसी मूंछों तले लंबी मुसकराहट नाच रही थी.

‘‘आप राजेश के पापा नहीं… जल्लाद हैं,’’ राजेश की मंगनी की बात सुन कर हमारा खून खौल उठा, ‘‘यह जानते हुए कि राजेश किसी और लड़की को दिल से चाहता है, आप उस की शादी किसी और से करना चाहते हैं? आप राजेश के सिर पर सेहरा देखने के सपने संजो रहे हैं और वह सिर पर कफन लपेटे अपनी प्रेमिका संगीता के गले में बांहें डाले किसी टे्रन के नीचे कट मरने या नदी में कूद कर आत्महत्या करने जा रहा है.’’

‘‘क्या बक रहे हो?’’ राजेश के पापा का चेहरा क्रोध से काला पड़ गया.

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो,’’ हम ने राजेश के पापा को कड़े शब्दों में जताया, ‘‘राजेश ने आप को सब बता रखा है कि वह संगीता से प्यार करता है और उस के सिवा किसी और लड़की को गले लगाने के बजाय मौत को गले लगा लेगा,’’ हम बिना रुके बोलते गए, ‘‘मगर आप की आंखों पर तो लाखों के दहेज की पट्टी बंधी हुई है.’’

हम थोड़ा दम लेने को रुके.

‘‘और आप,’’ हम राजेश के होने वाले ससुर की ओर पलटे, ‘‘धन का ढेर लगा कर क्या आप अपनी बेटी के लिए दूल्हा खरीदने आए हैं? आप की यह बेटी जिसे आप सुर्ख जोड़े और लाल चूड़े में देखने के सपने सजाए बैठे हैं, विधवा की सफेद साड़ी में लिपटी होगी.’’

‘‘भाई साहब, यह सब क्या है?’’ लड़की की मां ने राजेश के पापा से पूछा.

‘‘यह…यह…कोरी बकवास..कर रहा है,’’ राजेश के पापा ने होने वाली समधन से कहा.

‘‘हांहां… हमारा राजेश हरगिज ऐसा नहीं है…मैं अपने बेटे को अच्छी तरह जानती हूं,’’ चाय की टे्र लाने वाली महिला बोली, ‘‘यह आदमी झूठा है, मक्कार है.’’

‘‘आप लोग मेरे घर चल कर राजेश से स्वयं पूछ लें,’’ हम ने लड़की की मां से कहा फिर उस के पति की ओर देखा, ‘‘आप लोगों को पता चल जाएगा कि मैं झूठा हूं, मक्कार हूं या ये लोग रंगे सियार हैं.’’

‘‘राजेश तुम्हारे घर में है?’’ लड़की के डैडी ने पूछा.

‘‘जी हां,’’ हम ने गला साफ किया, ‘‘वह अपनी प्रेमिका संगीता के साथ आत्महत्या करने जा रहा था कि मैं ने उन्हें अपने घर में बिठा कर इन को समझाने चला आया.’’

‘‘मगर राजेश तो इस समय अपने कमरे में है,’’ राजेश के पिता ने अपने समधीसमधन को बताया.

‘‘बुलाइए…अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है,’’ हम ने राजेश के डैडी को चैलेंज किया.

‘‘राजेश,’’ राजेश के डैडी चिल्लाए.

‘‘और जोर से पुकारिए…आप की आवाज मेरे घर तक न पहुंच पाएगी,’’ हम ने व्यंग्य भरी आवाज में कहा.

‘‘क्या हुआ, डैडी?’’ पिछले दरवाजे की ओर से स्वर गूंजा.

एक 27-28 वर्ष का युवक, सूट पहने, एक जूता पांव में और दूसरा हाथ में ले कर भागता हुआ कमरे में आया.

‘‘आप इतने गुस्से में क्यों हैं, डैडी?’’ युवक ने पूछा.

‘‘राजेश, देखो यह बदमाश क्या बक रहा है?’’

‘‘क्या बात है?’’ नौजवान ने कड़े शब्दों में हम से पूछा.

‘‘त…तुम… राजेश?’’ हम ने हकला कर पूछा, ‘‘और यह तुम्हारे डैडी?’’

‘‘हां.’’

‘‘फिर उस राजेश के डैडी कौन हैं?’’  हमारे मुंह से निकला.

और फिर हम पलट कर बाहर वाले दरवाजे की ओर सरपट भागे.

‘‘पकड़ो इस बदमाश को,’’ राजेश के डैडी चिंघाड़े.

‘‘जाने न पाए,’’ राजेश के होने वाले ससुर ने अपने होने वाले दामाद को दुत्कारा.

राजेश एक पांव में जूता होने के कारण दुलकी चाल से हमारे पीछे लपका.

हम दरवाजे से सड़क पर कूदे और दूसरी छलांग में आटोरिकशा में थे.

आटो चालक शायद मामले को भांप गया था और दूसरे पल आटो धूल उड़ाता उस गली को पार कर रहा था.

अपने घर से कुछ दूर हम ने आटोरिकशा छोड़ दिया. हम ने 500 रुपए का नोट आटो ड्राइवर को दे दिया था. कुछ रुपए तो आटो के भाड़े में और बाकी की रकम 3 स्थानों पर जान पर आए खतरों से हमें बचाने का इनाम था.

हम भारी कदमों से अपने घर के दरवाजे पर पहुंचे. पूरा रास्ता हम राजेश और संगीता को अपने मिशन की नाकामी की दास्तान सुनाने के लिए उपयुक्त शब्द ढूंढ़ते आए थे. हमें डर था कि इतनी देर तक इंतजार की ताव न ला कर उन ‘लव बर्ड्ज’ ने आत्महत्या न कर ली हो.

धड़कते दिल से हम घर के बंद दरवाजे के सामने खड़े हो कर अंदर की आहट लेते रहे.

घर के अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी. मौत की सी खामोशी थी. जरूर उन प्रेम पंछियों को हमारी असफलता का भरोसा हो गया था और उन्होंने मौत को गले लगा लिया होगा.

धड़कते दिल से काल बेल का बटन पुश करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो हम ने दरवाजे पर जोरदार टक्कर मारी और फिर औंधे मुंह हम कमरे में जा पड़े.

दरवाजा बंद न था.

हम ने उस प्रेमी जोड़े की तलाश में इधरउधर नजरें दौड़ाईं. मगर वे दोनों गायब थे. साथ ही गायब था हमारा नया टेलीविजन, वी.सी.आर. और म्यूजिक सिस्टम.

हम जल्दी से उठ खडे़ हुए और स्टील की अलमारी की ओर लपके. अलमारी का लाकर खुला हुआ था और उस में रखी हाउस लोन की पहली किस्त की पूरी रकम गायब थी…

हमारी आंखों तले अंधेरा छा गया. जरूर वह ठगठगनी जोड़ी बैंक से ही हमारे पीछे लग गई थी.

उस प्रेमी युगल की गृहस्थी बसातेबसाते हमें अपनी गृहस्थी उजड़ती नजर आ रही थी क्योंकि आज शाम की गाड़ी से हमारे नए मकान के निर्माण का सुपरविजन करवाने को लीना अपने बलदेव भैया को साथ ले कर आ रही थी.

Hindi Fiction Story: हाय रे पर्यटन

Hindi Fiction Story: आजकल पर्यटन पर खास जोर है. जिसे देखो वही कहीं न कहीं जा रहा है. कोई शिमला, कोई मनाली, कोई ऊटी. पत्नी भी कहां तक सब्र रखती, आखिर एक दिन कह ही दिया, ‘‘देखो, बहुत हो गया. इतने साल हो गए हमारी शादी को, आप कहीं नहीं ले जाते. ले दे कर पीहर और रिश्तेदारों के अलावा आप की डायरी में दूसरी कोई जगह ही नहीं है. अब तो किटी में भी लोग मुझ से पूछते हैं, ‘मिसेज शर्मा, आप कहां जा रही हो.’ अब मैं क्या जवाब दूं. मैं ने भी उन से कह दिया कि हम भी इस बार हिल स्टेशन जा रहे हैं.

‘‘इस बार आप पक्की तरह सुन ही लो. हमें इस बार किसी न किसी हिल स्टेशन पर जाना ही है, चाहे लोन ही क्यों न लेना पड़े. मेरी नाक का सवाल है,’’ यह कह कर वह कोपभवन में चली गईं.

हमारे जैसे शादीशुदा लोग पत्नी के कोप से अच्छी तरह परिचित हैं. वे जानते हैं कि एक बार निर्णय लेने के बाद पत्नियों को कोई नहीं समझा सकता, सो मैं ने समझौतावादी नीति अपनाई और उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित किया. एकतरफा बातचीत के बाद मैं ने मान लिया कि इस बार शिमला जाना ही हमारी नियति है.

रेलवे टाइमटेबिल में से कुछ गाडि़यां नोट कर मैं रिजर्वेशन कराने रेलवे के आरक्षण कार्यालय पहुंचा. कार्यालय बिलकुल खाली पड़ा था. मैं मन ही मन खुश हो उठा कि चलो अच्छा हुआ, अभी 5 मिनट में रिजर्वेशन हो जाएगा.

चंद मिनटों में मेरा नंबर भी आ गया.

‘‘लाइए,’’ यह कहते हुए आरक्षण क्लर्क ने मेरा फार्म पकड़ा और उस पर अपनी पैनी नजर फिरा कर मुझे वापस पकड़ा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘आप ने फार्म वापस क्यों दे दिया?’’

वह क्लर्क हंस कर बोला, ‘‘भाईसाहब, गाड़ी में नो रूम है यानी कि अब जगह नहीं है.’’

‘‘तो कोई बात नहीं, दूसरी गाड़ी में दे दीजिए.’’

‘‘इस समय इस ओर जाने वाली किसी भी गाड़ी में कोई जगह नहीं है.’’

‘‘कैसी बात करते हैं. सारे काउंटर खाली पड़े हैं और आप हैं कि…’’

‘‘ऐसा है, आप तैश मत खाइए. सारी गाडि़यां 2 महीने पहले ही बुक हो गई हैं. अब कहें तो जुलाई का दे दें.’’

एकाएक मुझे खयाल आया कि मैं भी कैसा बेवकूफ हूं. नहीं मिला तो अच्छा ही हुआ. अब कम से कम इस बहाने जाने से तो बचा जा सकता है.

मैं खुशीखुशी घर लौट आया और जैसे ही घर में प्रवेश किया तो यह देख कर हैरान रह गया कि वहां महल्ले की किटी कार्यकारिणी की सभी महिला पदाधिकारी अपने बच्चों सहित मौजूद थीं.

‘‘भाईसाहब, बधाई हो, आप ने शिमला का निर्णय ठीक ही लिया, पर लगे हाथ कुल्लूमनाली भी हो आइएगा,’’ मिसेज वर्मा बोलीं.

‘‘अरे, जब वहां जा रहे हैं तो कुल्लूमनाली को कैसे छोड़ देंगे,’’ श्रीमतीजी चहक कर बोलीं.

‘‘और भाईसाहब, रिजर्वेशन ए.सी. में ही करवाइएगा, नहीं तो आप पूरे रास्ते परेशान हो जाएंगे.’’

‘‘अरे भाभीजी, हमारे साहब के स्वभाव में तकलीफ उठाना तो बिलकुल नहीं है. हम ने तो ए.सी. में ही रिजर्वेशन करवाया है. इन्होंने तो होटल में भी ए.सी. रूम ही बुक करवाए हैं.’’

मुझे काटो तो खून नहीं. केवल स्टेटस सिंबल के लिए श्रीमतीजी झूठ पर झूठ बोलती जा रही थीं.

चायनाश्ते के दौर के बाद जब महिला ब्रिगेड विदा हुई तो मैं धम से सोफे पर पड़ गया.

उन्हें छोड़ कर वे अंदर आईं तो मेरा हाल देख कर घबरा गईं, ‘‘क्या हो गया, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न.’’

मैं ने श्रीमतीजी को रिजर्वेशन की असलियत बताई तो वह बिफर उठीं, ‘‘तुम कैसे आदमी हो, तुम से एक रिजर्वेशन नहीं हुआ. मैं नहीं जानती. मुझे इस बार शिमला जरूर जाना है. अब तो मेरी नाक का सवाल है,’’ कह कर वह अंदर चली गईं.

बेटी, मां की बात सुन कर मुसकराई, ‘‘देखो पापा, मम्मी की नाक का सवाल बहुत बड़ा होता है. इस सवाल में अच्छेअच्छों के कान भी कट जाते हैं. ऐसा करते हैं, गाड़ी कर के चलते हैं.’’

अब इस फैसले को मानने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था.

सीने पर पत्थर रख कर मैं गाड़ी की बात करने गया. गाड़ी का रेट सुन कर मेरे होश उड़ गए, पर क्या करता, श्रीमतीजी की नाक का सवाल सब से बड़ा था. मुझे लगा, जितने पैसे में घूम कर आ जाते, उतना तो गाड़ी ही खा जाएगी, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था.

देखतेदेखते वह दिन भी आ गया. सोसायटी की सभी महिलाएं विदा करने आईं. श्रीमतीजी फूली नहीं समा रही थीं. वह मेरी तरफ ऐसे देख रही थीं जैसे कह रही हों, देखो, मेरी इज्जत. हां, बात करतेकरते सभी महिलाएं अपने लिए शिमला से कुछ न कुछ लाने की फरमाइश कर रही थीं, जिसे श्रीमतीजी सहर्ष स्वीकार करती जा रही थीं. इन फरमाइशों की सूची सुन कर मेरा दिल घबराने लगा था.

अंतत: गाड़ी रवाना हुई तो श्रीमतीजी ने प्रधानमंत्री की तरह हाथ हिला कर सोसायटी वालों से विदा ली. थोड़ी देर में सूरज सिर पर आ गया. लू के थपेड़े चलने लगे. गाड़ी बुरी तरह तप रही थी. जहां हाथ लगाओ वहीं ऐसा लगता था जैसे गरम सलाख दाग दी गई हो. कुछ देर में पत्नी, फिर बेटी धराशायी हो गई.

बेटा मां से लड़ने लगा, ‘‘यह कौन सा हिल स्टेशन है? हम सहारा मरुस्थल में चल रहे हैं क्या?’’

श्रीमतीजी कराहती हुई बोलीं, ‘‘अरे बेटा, यह तेरे पापा की कंजूसी से ऐसा हुआ है. मैं ने तो ए.सी. गाड़ी लाने को कहा था.’’

जवाब में बेटा और बेटी अपने कलियुगी पिता को घूरने लगे. मैं क्या करता, मैं ने निगाहें नीचे कर लीं.

दवाइयां खाते, उलटियां करते जैसेतैसे कर के शिमला तक पहुंचे. शिमला तक का रास्ता आलोचनाओं में अच्छी तरह कटा. उन की आलोचनाओं का केंद्र मैं जो था.

शिमला पहुंच कर सब ने चैन की सांस ली. ड्राइवर ने सड़क के एक ओर गाड़ी लगा दी.

बेटा अचानक गाड़ी को रुकते देख बोला, ‘‘क्यों पापा, होटल आ गया?’’

‘‘हां, बेटा, तेरे पापा ने फाइव स्टार होटल बुक करा रखा है,’’ श्रीमतीजी व्यंग्य से बोलीं.

ड्राइवर भी हैरान रह गया, ‘‘क्या साहब, आप ने होटल भी बुक नहीं करवाया? सीजन का टाइम है. क्या पहली बार घूमने आए हो?’’

‘‘हां, भैया, पहली बार ही आए हैं. हमारी तकदीर में बारबार घूमने आना कहां लिखा है,’’ श्रीमतीजी लगातार वार पर वार कर रही थीं, ‘‘जा बेटा, उठ और होटल ढूंढ़, मेरे तो बस की नहीं है.’’

फिर बेटे और बेटी को ले कर गलीगली घूमने लगा. ज्यादातर होटल भरे हुए थे, हार कर एक बहुत महंगा होटल कर लिया. अब सब बहुत खुश थे.

उस दिन आराम किया. शाम को माल रोड घूमने निकले. मैं उन्हें बता रहा था, ‘‘देखो, रेलिंग के नीचे घाटी कितनी सुंदर लग रही है,’’ पर घाटी को निहारने के बाद अपना सिर घुमाया तो पाया मैं अकेला था. ये तीनों अलगअलग दुकानों में घुसे हुए थे.

थोड़ी देर बाद बेटी आई और हाथ पकड़ कर दुकान में ले गई, ‘‘देखो पापा, कितनी सुंदर ड्रेस है.’’

‘‘अच्छा भई, कितने की है?’’ लाचारी में मुझे पूछना पड़ा.

‘‘बस सर, सस्ती है. आप को डिस्काउंट में दे देंगे. मात्र 2 हजार रुपए.’’

मुझे मानो करंट लगा, ‘‘अरे भई, तुम तो दिन दहाड़े लूटते हो. यह डे्रस तो कोटा में 300-400 से ज्यादा की नहीं मिलती है.’’

दुकानदार ने डे्रस मेरे हाथ से छीन ली, ‘‘कोई दूसरी दुकान देखिए साहब, हमारा टाइम खराब मत कीजिए.’’

बेटी को भारी धक्का पहुंचा. बाहर निकलते ही वह रोने लगी, ‘‘आप भी बस पापा, कितना अपमान करवाते हैं.’’

तभी श्रीमतीजी भी बेटे के साथ आ गईं. बेटी को रोते देख उन्होंने मेरी जो क्लास ली कि मेरी जेब का अच्छाखासा पोस्टमार्टम हो गया.

दूसरे दिन कूफरी घूमने का प्रोग्राम बना. कूफरी में घोड़े वाले पीछे पड़ गए कि साहब, ऊपर पहाड़ी पर चलें. मुझे घुड़सवारी में कोई दिलचस्पी नहीं है और फिर रेट इतने कि मैं ने साफ मना कर दिया.

‘‘तुम ऊपर चले चलोगे तो बच्चों का मन बहल जाएगा. बच्चों का मन रखने के लिए क्या इतना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं कर सकता,’’ मुझे पत्नी पर गुस्सा आ गया, ‘‘एक बार घर वालों का मन रखने के लिए घोड़ी पर चढ़ा था जिस का मजा आज तक भोग रहा हूं… अब और रिस्क नहीं ले सकता.’’

मेरे इस व्यंग्य को सुन कर श्रीमतीजी ने रौद्र रूप धारण कर लिया. फिर क्या था, मुझे सपरिवार घोड़े की सवारी करनी ही पड़ी. लेकिन जिस बात का डर था, वही हुआ. घोड़े पर से उतरते वक्त मैं संतुलन खो बैठा और धड़ाम से नीचे जा गिरा. मेरे पांव में मोच आ गई. मेरा उस दिन का सफर गाड़ी में बैठेबैठे ही पूरा हुआ. वे बाहर घूमतेफिरते, मजे करते रहे और मैं अंदर बैठाबैठा कुढ़ता रहा.

शाम को वहीं एक डाक्टर को दिखाया. उस ने कहा, ‘‘कोई चिंता की बात नहीं है. एकदो दिन आराम करोगे तो ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन सुबह मैं पलंग पर लेटा रहा. तीनों सदस्य अर्थात श्रीमतीजी, पुत्र व पुत्री तैयार होते रहे. थोड़ी देर बाद वे तीनों एकसाथ आ कर मेरे सामने बैठ गए.

मैं बोला, ‘‘कोई बात नहीं. चोट लग गई तो लग गई. तुम लोग परेशान मत हो. जा कर घूम आओ.’’

‘‘हम क्यों परेशान होंगे. हम तो पैसे के लिए बैठे हैं.’’

पैसे ले कर तीनों सुबह के निकले तो रात तक ही लौट कर आए. उन्होंने इतना सामान लाद रखा था कि बड़ी मुश्किल से उठा पा रहे थे.

धीरेधीरे उन्होंने एकएक सामान का रेट बताना शुरू किया तो मेरा दिल बैठ गया. मैं ने खर्च का हिसाब लगाया तो सिर्फ इतने ही रुपए बचे थे कि बस होटल का बिल चुका कर हम जैसेतैसे घर पहुंच सकें.

रात को बैठ कर सारी पैकिंग की गई. कुल्लूमनाली न जाने की बाबत अफसोस जाहिर किया गया और यह चिंता जतलाई गई कि अब श्रीमतीजी घर पहुंच कर कैसे मुंह दिखाएंगी.

दूसरे दिन उदासी भरे चेहरों को ले कर वे शिमला से रवाना हुए और साथ में मुझे लेना भी नहीं भूले.

कुछ घंटों बाद जब हमारी कार पहाड़ों को छोड़ कर मैदानों में पहुंची तो गरमी अपना विकराल रूप दिखाने लगी. लू के थपेड़े खाते हुए जब हम घर पहुंचे तो श्रीमतीजी के आगमन पर पूरा महल्ला इकट्ठा हो गया. श्रीमतीजी रास्ते की थकान भूल गईं.

वह बढ़ाचढ़ा कर शिमला का बखान सुनाने लगीं. सब लोग धैर्य से सुनते रहे. फिर समापन के समय वस्तुवितरण समारोह हुआ. श्रोताओं का धैर्य टूट गया. वे सामानों की आलोचना करने लगे.

‘‘अरे, मिसेज शर्मा, यह शाल थोड़ा आप हलका ले आई हैं.’’

‘‘हां, कपड़े भी ठीक नहीं आए. फुटपाथ से लेने में क्वालिटी हलकी आ ही जाती है.’’

‘‘मिसेज शर्मा, आप ने तो बस घूमने का नाम ही किया, कुल्लूमनाली हो कर आतीं तो कुछ बात भी थी.’’

थोड़ी देर बाद सब चले गए. घर की 3 सदस्यीय ज्यूरी के सामने मैं अपराधी बैठा था. अपराध सिद्ध करने के लिए महल्ले के सभी गवाह पर्याप्त थे.

मुझे दोषी माना गया और सजा दी गई कि अब क्रिसमस की छुट्टियों में गोवा घूमने चलेंगे, जिस का सब इंतजाम बेटा पहले से ही कर लेगा और मुझे सिर्फ एक काम करना होगा, एक भारी राशि का चेक साइन करना होगा ताकि सबकुछ अच्छी तरह से निबट सके.

लेखक- शरद उपाध्याय

Hindi Social Story: हिंदी व्याकरण में सियासत

Hindi Social Story: मैं जब भी किसी नेता को यह कहते हुए सुनता हूं कि वे तो राजनीति छोड़ना चाहते हैं, पर राजनीति उन्हें नहीं छोड़ती, मुझे उस गरीब की याद आ जाती है जो घोर सर्दी में कहीं से एक कंबल पा गया था. उस से अगर कोई पूछता था, ‘‘बहुत सर्दी है क्या?’’ तो उस का जवाब होता था, ‘‘कतई नहीं.’’ अगला सवाल, ‘‘तो कंबल में यों ठिठुर क्यों रहे हो?’’ उस का जवाब होता, ‘‘मैं तो यह कंबल छोड़ना चाहता हूं पर यह कंबल मुझे नहीं छोड़ता.’’

उक्त प्रसंग का एक खास कारण है कि मेरी भी दशा उन नेताओं जैसी बरबस होती जा रही है. मैं कतई राजनीति नहीं पसंद करता. मैं आजीवन हिंदी लेखन का एक छात्र बना रहना चाहता हूं पर मुसीबत तो यह है कि यह राजनीति मेरे व्याकरण पर भी सवार हो चुकी है. अब क्योंकि हिंदी लेखन तो मैं छोड़ नहीं पाऊंगा लिहाजा, इस से भी पिंड छूटता नजर नहीं आता.

गौर कीजिए, जब देश के राष्ट्रपति के पद के लिए प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के नाम का प्रस्ताव आया था तो राजनीतिक हलकों में एक बहस छिड़ गई थी कि अगर उस खास पद पर एक पुरुष हो तो राष्ट्रपति कहा जाना तर्कसंगत है पर जब उस पर कोई महिला हो तो क्या उसे राष्ट्रपत्नी कहा जाना चाहिए? भाई लोगों ने चटखारे लेले कर इस सियासती व्याकरण की खूब खिल्ली उड़ाई थी. प्रतिभा पाटिल के बहाने चली बहस में महात्मा गांधी को भी लपेट लिया गया था कि अगर वे राष्ट्रपिता थे तो क्या कस्तूरबा गांधी राष्ट्रमाता थीं. ऐसी बचकाना हरकत  इंदिरा गांधी के समय में भी एक बार उछाली गई थी. यह एक व्याकरणात्मक राजनीति थी.

अगर इसे आधार मान लिया जाए तो जवाहर लाल नेहरू क्योंकि चाचा नेहरू के नाम से मशहूर हो गए थे, तो क्या उन की पत्नी कमला नेहरू चाची कहलाई गईं?

हरियाणा के एक नेता देवीलाल ताऊ कहलाए जाने लगे थे तो क्या उन की पत्नी ताई कहलाई गईं?

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के एक नेता राजा भैया के नाम से मशहूर हैं. सवाल है कि क्या उन की पत्नी को राजा बहन कहा जाए या रानी भैया कहा जाए या रानी बहन कहा जाए? ये सभी मामले विशुद्ध व्याकरणात्मक राजनीति के हैं जिन से मेरा कोई लेनादेना नहीं है पर जब ये लिखने वाली भाषा के व्याकरण में आने लगते हैं तो मेरी तकलीफ नाजायज नहीं कही जाएगी.

अब गौर कीजिए साली का पुल्लिंग, साला हुआ पर गाली का गाला नहीं हुआ. गठरी का गट्ठा तो हुआ लेकिन मठरी का मट्ठा नहीं हो सकता. लंगड़ी का लंगड़ा तो हुआ, पर गृहिणी का गृहणा नहीं हो सकता, पत्नी का पत्ना भी नहीं हो सकता. पुत्री का पुत्र तो होता है पर नेत्री का नेत्र नहीं हो सकता. खाली का खाला नहीं हो सकता और राजनीति का राजनीता भी नहीं हो सकता. इसी तरह कोयल का कोयला भी नहीं हो सकता.

चाचा का स्त्रीलिंग चाची तो होता है, मामा का मामी भी होता है पर बप्पा का बप्पी कतई नहीं होता. सरकारी कार्यालयों में जूता बोलता है, वह चाहे चांदी का हो या चमड़े का या फिर चाचा, दादा का, पर जूती कतई नहीं बोलती. जबकि दूसरी तरफ दबंग की तूती बोलती है, पर किसी का तूता बोलते आप ने कभी नहीं सुना होगा.

यह समस्या केवल पुल्लिंग और स्त्रीलिंग में ही नहीं है, एकवचन और बहुवचन में भी है. गाड़ी का बहुवचन गाडि़यां होता है, साड़ी का साडि़यां होता है पर कबाड़ी का कबाडि़यां नहीं होता. बात का बातें तो होता है, लात का लातें भी होता है पर तात (पिता) का तातें नहीं हो सकता. पेड़ का बहुवचन भी पेड़ ही है. आप यह नहीं कह सकते कि इस बाग में 10 पेड़ें हैं, सही तो यही होगा कि इस बाग में 10 पेड़ हैं, ‘जंगल में मोर नाचा’ का बहुवचन होगा ‘जंगल में मोर नाचे’ न कि मोरें नाचे.

अब आप ही बताइए, जैसे दबंग सियासतदां कभी भी और कहीं भी अवैध कब्जों के लिए अलिखित अधिकार पाए हुए होते हैं इसी तरह यह सियासत भी कहीं भी अवैध कब्जा करने के लिए आजाद है. वह लेखन के क्षेत्र में ही नहीं, नदी, तालाब या पाताल तक भी जा सकती है. मामला लिंग का जो ठहरा, इस के पास सत्ता होती है. अब सत्ता का शब्द खुद ही पुल्लिंग जैसा दिखता है, इस का पुल्लिंग कैसे बनाया जा सकता है. यह एक व्याकरणात्मक समस्या है राजनीतिक नहीं.

कुछ ऐसा ही मामला विलोम शब्दों के साथ भी है. अंकुश का निरंकुश तो होता है पर माता का निर्माता नहीं हो सकता आदि.

Funny Story in Hindi: सहेलियों की बाढ़

Funny Story in Hindi: ‘जोर लगा के हैया, पत्नी बीमार है मन लगा कर काम करो सैंया.’

पिछले एक सप्ताह से इस लाइन का मनन बेहद सत्यनिष्ठा के साथ कर रहा हूं, ठीक उसी तरह जैसे भक्त भगवान का करते हैं. इस लाइन को भूलना भी चाहूं तो बेचारे बिस्तर को 24 घंटे कष्ट दे रही हमारी श्रीमतीजी की गुब्बारे सी काया हमें भूलने नहीं देती है. इस लाइन को अभी से भूल गया तो आने वाले 3 सप्ताह का सामना कैसे करूंगा, क्योंकि डाक्टर ने कम से कम 4 सप्ताह तक उन्हें पूर्ण आराम की सलाह दी है और उन की संपूर्ण देखरेख की हिदायत मुझे दी है.

आप यह मत सोचिए कि उन्हें कोई गंभीर, खानपान से परहेज वाली बीमारी है. ऐसा बिलकुल नहीं है. उन्हें तो बस, काम से मुक्त आराम करने वाला प्रसाद के रूप में एक अचूक झुनझुना मिल गया है जिस का नाम है ‘स्लिप डिस्क.’

इस की प्राप्ति भी उन्हें कोई गृह कार्यों के बोझ तले दब कर नहीं हुई बल्कि अपनी ढोल सी काया को कमसिन बनाने के लिए की जा रही जीतोड़ उलटीसीधी एक्सरसाइज के कारण हुई है. वैसे तो इस प्रसाद को उन के साथसाथ मैं भी चख रहा हूं. लेकिन दोनों के स्वाद में जमीनआसमान का अंतर है. जहां श्रीमतीजी के सुखों का कारवां फैल कर दोगुना हो गया है वहीं हमारे घरेलू अधिकारों की अर्थी उठने के साथसाथ कर्तव्यों की फसलें सावन में हरियाली की तरह लहलहा रही हैं.

श्रीमतीजी अपनी रेपुटेशन एवं खुशनुमा दिनचर्या के लिए जिन्हें आधार मानती हैं वे मेरे लिए कर्तव्यों की फसल में खरपतवार के समान हैं. यानी उन का हालचाल पूछने व इधरउधर की सनसनीखेज खबरें बताने के लिए दिन भर थोक में आने वाली और श्रीमतीजी पर हम से कई गुना ज्यादा प्रेम बरसा कर हमदर्दी जताने वाली कोई और नहीं उन की प्रिय सहेलियां हैं.

बेमौसम सहेलियों की बाढ़ से घर की अर्थव्यवस्था निरंतर क्षतिग्रस्त होती जा रही है. मेरी समस्या असार्वजनिक होने के कारण दूरदूर तक मुआवजे की भी कोई उम्मीद नहीं है. कपप्लेट, गिलास और ट्रे के साथ मैं भी फुटबाल की तरह दिन भर इधर से उधर टप्पे खाता फिर रहा हूं.

फुटबाल के खेल में दोनों पक्ष गुत्थमगुत्था मेहनत करते हैं तब कहीं जा कर एक पक्ष को जीत नसीब होती है लेकिन यहां तो अंधेर नगरी चौपट राजा है, कमरतोड़ मेहनत भी हम करें और हारें भी हम ही. उधर हमारी श्रीमतीजी की पौबारह है. पांचों उंगली घी में और सिर कड़ाही में है. काम से परहेज किंतु कांवकांव से कोई परहेज नहीं.

अकेले में हलके से हिलना भी हो तो हमारी हाजरी लिफाफे पर टिकट की तरह बेहद जरूरी है. वहीं 4-6 ने आ कर जैसे ही बाहरी दुनिया का बखान शुरू किया नहीं कि यहांवहां की स्वादिष्ठ बातों का श्रवण कर बातबात पर स्ंिप्रग की भांति उन का उछलना तथा आहें भरभर कर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कभी खिसियाना या कभी खीसें निपोरना देखने लायक होता है.

‘‘कल किटी पार्टी में किस ने किस की आरती उतारी, किस ने अध्यक्षा को अपने कोमल हाथों से चरण पादुकाएं पहनाईं, किस ने किस को मक्खन लगाया, पकवानों में कौनकौन से दुर्गुण थे, चाय के नाम पर गरम पानी पिलाया आदि.’’

यह देख हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहता कि एक से बढ़ कर एक जहर से लिपटे शब्दबाण हमारी श्रीमतीजी को घायल करने के बजाय इतना स्फूर्तिदायक बना देते जैसे वह अमृत का प्याला हों. वाह रे खुदा, तेरी खुदाई देख कर लगता है कि इन महिलाओं के लिए निंदा रस से बढ़ कर और कोई मिठाई नहीं है. इन की महफिल से जो परिचिता गायब है, समझ लो वही इन सब के हृदय में निंदा रस प्रज्वलित करने का माध्यम है और इस निंदा रस में डुबकी लगा कर उन सभी के चेहरे एकदम तरोताजा गुलाब की तरह खिल जाते हैं.

निंदा रस के टौनिक से फलती- फूलती इन महिलाओं को लगता है आज किसी की नजर लग गई क्योंकि कमरे के अंदर से आते हुए सभी का सुर अचानक एकदम बदल गया है. ऐसा लग रहा था मानो हमारे बेडरूम में विधानसभा या संसद सत्र चल रहा हो.

हम ने भीगी बिल्ली की तरह चुपके से अंदर झांका तो सभी की भवें अर्जुन के धनुष सी तनी हुई थीं. माथे पर पसीने की बूंदें रेंगती हुई, जबान कौवे की सी कर्कश, चेहरा तपते सूरज सा गरम और हाथ अपनी स्वामिनी के पक्ष में कला- बाजियां खाते इधरउधर डोल रहे थे.

सभी नारियों के तीनइंची होंठ एकसाथ हिलने के कारण अपने कानों व दिमाग की पूर्ण सक्रियता के बावजूद यह समझ नहीं पाए कि इस विस्फोटक नजारे के पीछे किस माचिस की तीली का हाथ है. वह तो भला हो गरमी की छुट्टियों का जिस की वजह से फिलहाल अड़ोसपड़ोस के मकान खालीपन का दुख झेल रहे हैं.

कोई घंटे भर की चांवचांव के बाद लालपीली, शृंगारिकाएं एकएक कर बाहर का रास्ता नापने लगीं. जब श्रीमतीजी इकलौती बचीं तब हम ने उन से व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा, ‘‘आज क्या सामूहिक रूप से तबीयत गरम होने का दिन था?’’

‘‘यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है.’’

‘‘क्या?’’ हमारा मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘और नहीं तो क्या…तुम आ कर इतना भी नहीं बता सकते थे कि मधु मेरी तबीयत देखने के बहाने अंदर आ रही है. हम उसी की बात कर रहे थे और वह कमरे के बाहर कान लगा कर खड़ी हो गई. फिर क्या, ये सब तो होना ही था. अब कोईर् नहीं आएगा मेरा हालचाल पूछने, पड़ी रहूंगी अकेली दिन भर टूटे हुए पत्ते की तरह.’’

इतना कहतेकहते नयनों से झरना फूट पड़ा. ऊपरी मन से हम भी श्रीमतीजी के असह्य दुख में शामिल हो उन्हें सांत्वना देने लगे.

‘‘कोई नहीं आता है तो न आए, मैं तो हूं, सात जन्मों तक तुम्हारी सेवा करने के लिए. मेरे रहते क्यों इतनी दुखी होती हो, प्रिय.’’

लेकिन हमारी इस सांत्वना से बेअसर श्रीमतीजी का बोझिल मन उन के आंसुओं में लगातार इजाफा कर रहा था. हम ने श्रीमतीजी को वहीं, उसी हाल में छोड़ कर पुरानी पेटी से चवन्नी ढूंढ़ घर के देवता को सवा रुपया चढ़ा, उन की चरण वंदना करते हुए कहा, ‘‘हे कुल के देवता, तुझे लाखलाख प्रणाम, जो तुम ने मेरे घर को सहेलियों की बाढ़ से समय पर बचा लिया. अगर इस बाढ़ पर अब शीघ्र अंकुश नहीं लगता तो अनर्थ हो जाता. श्रीमतीजी तो थोड़ी देर में रोधो कर चुप हो जाएंगी लेकिन मैं जितने दिनों दुकान के कर्ज को भरता, रोता ही रहता.’’

Hindi Drama Story: अफवाह के चक्कर में

Hindi Drama Story: जैसे ही बड़े साहब के कमरे में छोटे साहब दाखिल हुए, बड़े साहब हत्थे से उखड़ पड़े, ‘‘इस दीवाली पर प्रदेश में 2 अरब की मिठाई बिक गई, आप लोगों ने व्यापार कर वसूलने की कोई व्यवस्था ही नहीं की. करोड़ों रुपए का राजस्व मारा गया और आप सोते ही रह गए. यह देखिए अखबार में क्या निकला है? नुकसान हुआ सो हुआ ही, महकमे की बदनामी कितनी हुई? पता नहीं आप जैसे अफीमची अफसरों से इस मुल्क को कब छुटकारा मिलेगा?’’

बड़े साहब की दहाड़ सुन कर स्टेनो भी सहम गई. उस के हाथ टाइप करते-करते एकाएक रुक गए. उस ने अपनी लटें संभालते हुए कनखियों से छोटे साहब के चेहरे की ओर देखा, वह पसीनेपसीने हुए जा रहे थे. बड़े साहब द्वारा फेंके गए अखबार को उठा कर बड़े सलीके से सहेजते हुए बोले, ‘‘वह…क्या है सर? हम लोग उस से बड़ी कमाई के चक्कर में पड़े हुए थे…’’

उनकी बात अभी आधी ही हुई थी कि बड़े साहब ने फिर जोरदार डांट पिलाई, ‘‘मुल्क चाहे अमेरिका की तरह पाताल में चला जाए. आप से कोई मतलब नहीं. आप को सिर्फ अपनी जेबें और अपने घर भरने से मतलब है. अरे, मैं पूछता हूं यह घूसखोरी आप को कहां तक ले जाएगी? जिस सरकार का नमक खाते हैं उस के प्रति आप का, कोई फर्ज बनता है कि नहीं?’’

यह कहते-कहते वह स्टेनो की तरफ मुखातिब हो गए, ‘‘अरे, मैडम, आप इधर क्या सुनने लगीं, आप रिपोर्ट टाइप कीजिए, आज वह शासन को जानी है.’’

वह सहमी हुई फिर टाइप शुरू करना ही चाहती थी कि बिजली गुल हो गई. छोटे साहब और स्टेनो दोनों ने ही अंधेरे का फायदा उठाते हुए राहत की कुछ सांसें ले डालीं. पर यह आराम बहुत छोटा सा ही निकला. बिजली वालों की गलती से इस बार बिजली तुरंत ही आ गई.

‘‘सर, बात ऐसी नहीं थी, जैसी आप सोच बैठे. बात यह थी…’’ छोटे साहब ने हकलाते हुए अपनी बात पूरी की.

‘‘फिर कैसी बात थी? बोलिए… बोलिए…’’ बड़े साहब ने गुस्से में आंखें मटकाईं. स्टेनो ने अपनी हंसी को रोकने के लिए दांतों से होंठ काट लिए, तब जा कर हंसी पर कंट्रोल कर पाई.

‘‘सर, हम लोग यह सोच रहे थे कि मिठाई की बिक्री तो 1-2 दिन की थी, जबकि फल और सब्जियों की बिक्री रोज होती है, पापी पेट भरने के लिए सब्जियां खरीदा जाना आम जनता की विवशता है. तो क्यों न उस पर…’’

इतना सुनना था कि बड़े साहब की आंखों में चमक आ गई, वह खुशी से उछल पडे़, ‘‘अरे, वाह, मेरे सोने के शेर. यह बात पहले क्यों नहीं बताई? अब आप बैठ जाइए, मेरी एक चाय पी कर ही यहां से जाएंगे,’’ कहतेकहते फिर स्टेनो की तरफ मुड़े, ‘‘मैडम, जो रिपोर्ट आप टाइप कर रही? थीं, उसे फाड़ दीजिए. अब नया डिक्टेशन देना पड़ेगा. ऐसा कीजिए, चाय का आर्डर दीजिए और आप भी हमारे साथ चाय पीएंगी.’’

अगले दिन से शहर में सब्जियों पर कर लगाने की सूचना घोषित कर दी गई और उस के अगले दिन से धड़ाधड़ छापे पड़ने लगे. अमुक के फ्रिज से 9 किलो टमाटर निकले, अमुक के यहां 5 किलो भिंडियां बरामद हुईं. एक महिला 7 किलो शिमलामिर्च के साथ पकड़ी गई?थी, पर 2 किलो के बदले में उसे छोड़ दिया. जब आईजी से इस बाबत बात की गई तो पता चला कि वह सब्जी बेचने वाली थी, उस ने लाइसेंस के लिए केंद्रीय कार्यालय में अरजी दी हुई है. शहर में सब्जी वालों के कोहराम के बावजूद अच्छा राजस्व आने लगा. बड़े साहब फूले नहीं समा रहे थे.

एक दिन बड़े साहब सपरिवार आउटिंग पर थे. औफिस में सूचना भेज दी थी कि कोई पूछे तो मीटिंग में जाने की बात कह दी जाए. छोटे साहब और स्टेनो, दोनों की तो जैसे लाटरी लग गई. उस दिन सिवा चायनाश्ते के कोई काम ही नहीं करना पड़ा. अभी हंसीमजाक शुरू ही हुआ था कि चपरासी ने उन्हें यह कह कर डिस्टर्ब कर दिया कि कोई मिलने आया है.

छोटे साहब ने कहा, ‘‘मैं देख कर आता हूं,’’ बाहर देखा तो एक नौजवान अच्छे सूट और टाई में सलाम मारता मिला. उसे कोई अधिकारी जान छोटे साहब ने अंदर आने का निमंत्रण दे डाला. उस ने हिचकिचाते हुए अपना परिचय दिया, ‘‘मैं छोटा-मोटा सब्जी का आढ़ती हूं. इधर से गुजर रहा था तो सोचा क्यों न सलाम करता चलूं,’’ यह कहते हुए वह स्टेनो की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘मैडम, यह 1 किलो सोयामेथी आप के लिए?है और ये 6 गोभी के फूल और 2 गड्डी धनिया, छोटे साहब आप के लिए.’’

छोटे साहब ने इधरउधर देखा और पूछा, ‘‘बड़े साहब के लिए?’’

उस ने दबी जबान से बताया, ‘‘एक पेटी टमाटर उन के घर पहुंचा आया हूं.’’

बड़े साहब की रिपोर्ट शासन से होती हुई जब अमेरिका पहुंची तो वहां के नए राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि अगर लोग हिंदुस्तान की सब्जी मार्किट में इनवेस्ट करना शुरू कर दें तो वहां के स्टाक मार्किट में आए भूचाल को समाप्त किया जा सकता है.

एक अखबार ने हिंदुस्तान की फुजूलखर्ची पर अफसोस जताते हुए खबर छापी, ‘‘अगर चंद्रयान के प्रक्षेपण पर खर्च किए धन को सब्जी मार्किट में लगा दिया जाता तो उस के फायदे से लेहमैन जैसी 100 कंपनियां खरीदी जा सकती थीं.’’

जैसे आयकर के छापे पड़ने से बड़े लोगों के सम्मान में चार चांद लगते हैं, बड़ेबड़े घोटालों के संदर्भ में छापे पड़ने से राजनीतिबाज गर्व का अनुभव करते हैं, आपराधिक मुकदमों की संख्या देख कर चुनावी टिकट मिलने की संभावना बढ़ती है वैसे ही सब्जी के संदर्भ में छापे पड़ने से सदियों से त्रस्त हम अल्पआय वालों को भी सम्मान मिल सकता है, यह सोच कर मैं ने भी अपने महल्ले में अफवाह उड़ा दी कि मेरे घर में 5 किलो कद्दू है.

छापे के इंतजार में कई दिन तक कहीं बाहर नहीं निकला. अपनी गली से निकलने वाले हर पुलिस वाले को देख कर ललचाता रहा कि शायद कोई आए. मेरा नाम भी अखबारों में छपे. 15 दिन की प्रतीक्षा के बाद जब मैं यह सोचने को विवश हो चुका था कि कहीं कद्दू को बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) में तो नहीं रख दिया गया? तभी एक पुलिस वाला आ धमका. मेरी आंखों में चमक आ गई. मैं ने बीवी को बुलाया, ‘‘सुनती हो, इन को कद्दू ला के दिखा दो.’’

बीवी मेरे द्वारा बताए गए दिशा- निर्देशों के अनुसार पूरे तौर पर सजसंवर कर…बड़े ही सलीके से 250 ग्राम कद्दू सामने रखती हुई बोली, ‘‘बाकी 15 दिन में खर्च हो गयाजी.’’

पुलिस वाले ने गौर से देखा कि न तो चायपानी की कोई व्यवस्था थी और न ही मेरी कोई मुट्ठी बंद थी. उस की मुद्रा बता रही थी कि वह मेरी बीवी के साजशृंगार और मेरे व्यवहार, दोनों ही से असंतुष्ट था. वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आप को अफवाह फैलाने के अपराध में दरोगाजी ने थाने पर बुलवाया है.’’

Emotional Story : न भूलने वाली यादें

Emotional Story: ‘‘सुनिए, पुताई वाले को कब बुला रहे हो? जल्दी कर लो, वरना सारे काम एकसाथ सिर पर आ जाएंगे.’’

‘‘करता हूं. आज निमंत्रणपत्र छपने के लिए दे कर आया हूं, रंग वाले के पास जाना नहीं हो पाया.’’

‘‘देखिए, शादी के लिए सिर्फ 1 महीना बचा है. एक बार घर की पुताई हो जाए और घर के सामान सही जगह व्यवस्थित हो जाए तो बहुत सहूलियत होगी.’’

‘‘जानता हूं तुम्हारी परेशानी. कल ही पुताई वाले से बात कर के आऊंगा.’’

‘‘2 दिन बाद बुला ही लीजिए. तब तक मैं घर का सारा कबाड़ निकाल कर रखती हूं जिस से उस का काम भी फटाफट हो जाएगा और घर में थोड़ी जगह भी हो जाएगी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. वैसे भी वह छोटा कमरा बेकार की चीजों से भरा पड़ा है. खाली हो जाएगा तो अच्छा है.’

जब से अविनाश की बेटी सपना की शादी तय हुई थी उन की अपनी पत्नी कंचन से ऐसी बातचीत चलती रहती थी. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, काम का बोझ और हड़बड़ाहट बढ़ती जा रही थी.

घर की पुताई कई सालों से टलती चली आ रही थी. दीपक और सपना की पढ़ाई का खर्चा, रिश्तेदारी में शादीब्याह, बाबूजी का औपरेशन वगैरह ऐसी कई वजहों से घर की सफाईपुताई नहीं हुई थी. मगर अब इसे टाला नहीं जा सकता था. बेटी की शादी है, दोस्त, रिश्तेदार सभी आएंगे. और तो और लड़के वालों की तरफ से सारे बराती घर देखने जरूर आएंगे. अब कोई बहाना नहीं चलने वाला. घर अच्छी तरह से साफसुथरा करना ही पड़ेगा.

दूसरे ही दिन कंचन ने छोटा कमरा खाली करना शुरू किया. काफी ऐसा सामान था जो कई सालों से इस्तेमाल नहीं हुआ था. बस, घर में जगह घेरे पड़ा था. उस पर पिछले कई सालों से धूल की मोटी परत जमी हुई थी. सारा  कबाड़ एकएक कर के बाहर आने लगा.

‘‘कल ही कबाड़ी को बुलाऊंगी. थक गई इस कबाड़ को संभालतेसंभालते,’’ कमरा खाली करते हुए कंचन बोल पड़ीं.

आंगन में पुरानी चीजों का एक छोटा सा ढेर लग गया. शाम को अविनाश बाहर से लौटे तो उन्हें आंगन में फेंके हुए सामान का ढेर दिखाई दिया. उस में एक पुराना आईना भी था. 5 फुट ऊंचा और करीब 2 फुट चौड़ा. काफी बड़ा, भारीभरकम, शीशम की लकड़ी का मजबूत फ्रेम वाला आईना. अविनाश की नजर उस आईने पर पड़ी. उस में उन्होंने अपनी छवि देखी. धुंधली सी, मकड़ी के जाले में जकड़ी हुई. शीशे को देख कर उन्हें कुछ याद आया. धीरेधीरे यादों पर से धूल की परतें हटती गईं. बहुत सी यादें जेहन में उजागर हुईं. आईने में एक छवि निखर आई…बिलकुल साफ छवि, कंचन की. 29-30 साल पहले की बात है. नईनवेली दुलहन कंचन, हाथों में मेहंदी, लाल रंग की चूडि़यां, घूंघट में शर्मीली सी…अविनाश को अपने शादी के दिन याद आए.

संयुक्त परिवार में बहू बन कर आई कंचन, दिनभर सास, चाची सास, दादी सास, न जाने कितनी सारी सासों से घिरी रहती थी. उन से अगर फुरसत मिलती तो छोटे ननददेवर अपना हक जमाते. अविनाश बेचारा अपनी पत्नी का इंतजार करतेकरते थक जाता. जब कंचन कमरे में लौटती तो बुरी तरह से थक चुकी होती थी. नौजवान अविनाश पत्नी का साथ पाने के लिए तड़पता रह जाता. पत्नी को एक नजर देख पाना भी उस के लिए मुश्किल था. आखिर उसे एक तरकीब सूझी. उन का कमरा रसोईघर से थोड़ी ऊंचाई पर तिरछे कोण में था. अविनाश ने यह बड़ा सा आईना बाजार से खरीदा और अपने कमरे में ऐसे एंगल (कोण) में लगाया कि कमरे में बैठेबैठे रसोई में काम करती अपनी पत्नी को निहार सके.

इसी आईने ने पतिपत्नी के बीच नजदीकियां बढ़ा दीं. वे दोनों दिल से एकदूसरे के और भी करीब आ गए. उन के इंतजार के लमहों का गवाह था यह आईना. इसी आईने के जरिए वे दोनों एकदूसरे की आंखों में झांका करते थे, एकदूसरे के दिल की पुकार समझा करते थे. यही आईना उन की नजर की जबां बोलता रहा. उन की जवानी के हर पल का गवाह था यह आईना.

आंगन में खड़ेखड़े, अपनेआप में खोए से, अविनाश उन दिनों की सैर कर आए. अपनी नौजवानी के दिनों को, यादों में ही, एक बार फिर से जी लिया. अविनाश ने दीपक को बुलाया और वह आईना उठा कर अपने कमरे में करीने से रखवाया. दीपक अचरज में पड़ गया. ऐसा क्या है इस पुराने आईने में? इतना बड़ा, भारी सा, काफी जगह घेरने वाला, कबाड़ उठवा कर पापा ने अपने कमरे में क्यों लगवाया? वह कुछ समझ नहीं पा रहा था. वह अपनी दादी के पास चला गया.

‘‘दादी, पापा ने वह बड़ा सा आईना कबाड़ से उठवा कर अपने कमरे में लगा दिया.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘दादी, वह कितनी जगह घेरता है? कमरे से बड़ा तो आईना है.’’

दादी अपना मुंह आंचल में छिपाए धीरेधीरे मुसकरा रही थीं. दादी को अपने बेटे की यह तरकीब पता थी. उन्होंने अपने बेटे को आईने में झांकते हुए बहू को निहारते पकड़ा भी था.

दादी की वह नटखट हंसी… हंसतेहंसते शरमाने के पीछे क्या माजरा है, दीपक समझ नहीं सका. पापा भी मुसकरा रहे थे. जाने दो, सोच कर दीपक दादी के कमरे से बाहर निकला.

इतने में मां ने दीपक को आवाज दी. कुछ और सामान बाहर आंगन में रखने के लिए कहा. दीपक ने सारा सामान उठा कर कबाड़ के ढेर में ला पटका, सिवा एक क्रिकेट बैट के. यह वही क्रिकेट बैट था जो 20 साल पहले दादाजी ने उसे खरीदवाया था. वह दादाजी के साथ गांव से शहर आया था. दादाजी का कुछ काम था शहर में, उन के साथ शहर देखने और बाजार घूमने दीपू चल पड़ा था. चलतेचलते दादाजी की चप्पल का अंगूठा टूट गया था. वैसे भी दादाजी कई महीनों से नई चप्पल खरीदने की सोच रहे थे. बाजार घूमतेघूमते दीपू की नजर खिलौने की दुकान पर पड़ी. ऐसी खिलौने वाली दुकान तो उस ने कभी नहीं देखी थी. उस का मन कांच की अलमारी में रखे क्रिकेट के बैट पर आ गया.

उस ने दादाजी से जिद की कि वह बैट उसे चाहिए. दीपू के दादाजी व पिताजी की माली हालत उन दिनों अच्छी नहीं थी. जरूरतें पूरी करना ही मुश्किल होता था. बैट जैसी चीजें तो ऐश में गिनी जाती थीं. दीपू के पास खेल का कोई भी सामान न होने के कारण गली के लड़के उसे अपने साथ खेलने नहीं देते थे. श्याम तो उसे अपने बैट को हाथ लगाने ही नहीं देता था. दीपू मन मसोस कर रह जाता था.

दादाजी इन परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ थे. उन से अपने पोते का दिल नहीं तोड़ा गया. उन्होंने दीपू के लिए वह बैट खरीद लिया. बैट काफी महंगा था. चप्पल के लिए पैसे ही नहीं बचे, तो दोनों बसअड्डे के लिए चल पड़े. रास्ते में चप्पल का पट्टा भी टूट गया. सड़क किनारे बैठे मोची के पास चप्पल सिलवाने पहुंचे तो मोची ने कहा, ‘‘दादाजी, यह चप्पल इतनी फट चुकी है कि इस में सिलाई लगने की कोई गुंजाइश नहीं.’’

दादाजी ने चप्पल वहीं फेंक दीं और नंगे पांव ही चल पड़े. घर पहुंचतेपहुंचते उन के तलवों में फफोले पड़ चुके थे. दीपू अपने नए बैट में मस्त था. अपने पोते का गली के बच्चों में अब रोब होगा, इसी सोच से दादाजी के चेहरे पर रौनक थी. पैरों की जलन का शिकवा न था. चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं थी.

हाथ में बैट लिए दीपक उस दिन को याद कर रहा था. उस की आंखों से आंसू ढलक कर बैट पर टपक पड़े. आज दीपू के दिल ने दादाजी के पैरों की जलन महसूस की जिसे वह अपने आंसुओं से ठंडक पहुंचा रहा था.

तभी, शाम की सैर कर के दादाजी घर लौट आए. उन की नजर उस बैट पर गई जो दीपू ने अपने हाथ में पकड़ रखा था. हंसते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘क्यों बेटा दीपू, याद आया बैट का किस्सा?’’

‘‘हां, दादाजी,’’ दीपू बोला. उस की आंखें भर आईं और वह दादाजी के गले लग गया. दादाजी ने देखा कि दीपू की आंखें नम हो गई थीं. दीपू बैट को प्यार से सहलाते, चूमते अपने कमरे में आया और उसे झाड़पोंछ कर कमरे में ऐसे रख दिया मानो वह उस बैट को हमेशा अपने सीने से लगा कर रखना चाहता है. दादाजी अपने कमरे में पहुंचे तो देखा कि दीपू की दादी पलंग पर बैठी हैं और इर्दगिर्द छोटेछोटे बरतनों का भंडार फैला है.

‘‘इधर तो आइए… देखिए, इन्हें देख कर कुछ याद आया?’’ वे बोलीं.

‘‘अरे, ये तुम्हें कहां से मिले?’’

‘‘बहू ने घर का कबाड़ निकाला है न, उस में से मिल गए.’’

अब वे दोनों पासपास बैठ गए. कभी उन छोटेछोटे बरतनों को देखते तो कभी दोनों दबेदबे से मुसकरा देते. फिर वे पुरानी यादों में खो गए.

यह वही पानदान था जो दादी ने अपनी सास से छिपा कर, चुपके से खरीदा था. दादाजी को पान का बड़ा शौक था, मगर उन दिनों पान खाना अच्छी आदत नहीं मानी जाती थी. दादाजी के शौक के लिए दादीजी का जी बड़ा तड़पता था. अपनी सास से छिपा कर उन्होंने पैसे जोड़ने शुरू किए, कुछ दादाजी से मांगे और फिर यह पानदान दादाजी के लिए खरीद लिया. चोरीछिपे घर में लाईं कि कहीं सास देख न लें. बड़ा सुंदर था पानदान. पानदान के अंदर छोटीछोटी डब्बियां लौंग, इलायची, सुपारी आदि रखने के लिए, छोटी सी हंडिया, चूने और कत्थे के लिए, हंडियों में तिल्लीनुमा कांटे और हंडियों के छोटे से ढक्कन. सारे बरतन पीतल के थे. उस के बाद हर रात पान बनता रहा और हर पान के साथ दादादादी के प्यार का रंग गहरा होता गया.

दादाजी जब बूढ़े हो चले और उन के नकली दांत लग गए तो सुपारी खाना मुश्किल हो गया. दादीजी के हाथों में भी पानदान चमकाने की आदत नहीं रही. बहू को पानदान रखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अत: पानदान स्टोर में डाल दिया गया. आज घर का कबाड़ निकाला तो दादी को यह पानदान मिल गया, दादी ने पानदान उठाया और अपने कमरे में ले आईं. इस बार सास से नहीं अपनी बहू से छिपा कर.

थरथराती हथेलियों से वे पानदान संवार रही थीं. उन छोटी डब्बियों में जो अनकहे भाव छिपे थे, आज फिर से उजागर हो गए. घर के सभी सदस्य रात के समय अपनेअपने कमरों में आराम कर रहे थे. कंचन, अविनाश उसी आईने के सामने एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. दादादादी पान के डब्बे को देख कर पुरानी बातों को ताजा कर रहे थे. दीपक बैट को सीने से लगाए दादाजी के प्यार को अनुभव कर रहा था जब उन्होंने स्वयं चप्पल न खरीद कर उन पैसों से उसे यह बैट खरीद कर दिया था. नंगे पांव चलने के कारण उन के पांवों में छाले हो गए थे.

सपना भी कबाड़ के ढेर में पड़ा अपने खिलौनों का सैट उठा लाई थी जिस से वह बचपन में घरघर खेला करती थी. यह सैट उसे मां ने दिया था.

छोटा सा चूल्हा, छोटेछोटे बरतन, चम्मच, कलछी, कड़ाही, चिमटा, नन्हा सा चकलाबेलन, प्यारा सा हैंडपंप और उस के साथ एक छोटी सी बालटी. बचपन की यादें ताजा हो गईं. राखी के पैसे जो मामाजी ने मां को दिए थे, उन्हीं से वे सपना के लिए ये खिलौने लाई थीं. तब सपना ने बड़े प्यार से सहलाते हुए सारे खिलौनों को पोटली में बांध लिया था. उस पोटली ने उस का बचपन समेट लिया था. आज उन्हीं खिलौनों को देख कर बचपन की एकएक घटना उस की आंखों के सामने घूमने लगी थी. दीपू भैया से लड़ाई, मां का प्यार और दादादादी का दुलार…

जिंदगी में कुछ यादें ऐसी होती हैं, जिन्हें दोबारा जीने को दिल चाहता है, कुछ पल ऐसे होते हैं जिन में खोने को जी चाहता है. हर कोई अपनी जिंदगी से ऐसे पलों को चुन रहा था. यही पल जिंदगी की भागदौड़ में कहीं छूट गए थे. ऐसे पल, ये यादें जिन चीजों से जुड़ी होती हैं वे चीजें कभी कबाड़ नहीं होतीं.

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