देखतेदेखते 5 साल गुजर गए थे. उस ने अपनी थीसिस सबमिट कर दी थी जिस में सौरमंडल के ग्रहों के बारे में अतिरिक्त दुर्लभ जानकारियां थीं. उस की थीसिस को अमेरिका के अतिरिक्त अन्य कई देशों की साइंस मैगजींस में प्रकाशित किया गया था. सब ने इस थीसिस की सराहना की थी.
सुजाता एस्ट्रोफिजिक्स में पीएचडी डिग्री प्राप्त कर अब डा. सुजाता थी. स्टैनफोर्ड में भी उस ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा था. पढ़ाई के अतिरिक्त वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों और भारतीय व अमेरिकी उत्सवों में भाग लेती थी. दीक्षांत समारोह के अवसर पर सुजाता ने अपने पिता को भी अमेरिका बुलाया था. वे भी अपनी बिटिया की संघर्षमय सफलता पर प्रसन्न थे.
इस दौरान एक भारतीय विधुर ने सुजाता को प्रोपोज किया था. उस ने अपने पिता से पूछा भी था. रेणु से भी चर्चा की थी. दोनों को कोई आपत्ति न थी. पिता को तो खुशी होती अगर सुजाता का घर फिर बस जाता.
वह एक बार उस विधुर के साथ डेट्स पर भी गई थी, परंतु यह एक औपचारिकताभर थी उस व्यक्ति का स्वभाव और विचार परखने के लिए. सुजाता को यह प्रपोजल स्वीकार नहीं था. उस को लगा कि यह व्यक्ति रेणु का सौतेला पिता बनने के योग्य नहीं था. इस के बाद उस के पास फिर कभी शादी की बात सोचने की फुरसत भी नहीं थी.
पीएचडी करने के दौरान ही सुजाता को नासा से एस्ट्रोफिजिसिस्ट साइंटिस्ट का औफर मिल चुका था. उसे मोफेट कील्ड, कैलिफोर्निया में स्थित नासा के रिसर्च सैंटर में पोस्ट किया गया था. सुजाता को उस की विशिष्ट उपलब्धियों के आधार पर ग्रीन कार्ड आसानी से मिल गया था. अब वह अमेरिका की स्थाई निवासी थी.
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इस बीच, उस के पूर्व पति अतुल को भी अपनी पूर्र्व पत्नी की उपलब्धियों की जानकारी मिल चुकी थी. अमेरिकन लड़की से शादी के बाद उसे भी ग्रीन कार्ड मिल गया था. एक दिन उस ने सुजाता को फोन किया था. परंतु सुजाता ने उस को कोई तवज्जुह नहीं दी थी. उस ने मात्र इतना ही कहा, ‘‘हम मांबेटी दोनों बहुत खुश हैं, अब आगे हमारी जिंदगी में दखल न देना.’’ और फोन काट दिया था.
इधर अतुल की अपनी नई अमेरिकन बीवी के साथ निभ नहीं रही थी. उस की बीवी ने ही तलाक की अर्जी कोर्ट में दे रखी थी जो 6 मास होतेहोते मंजूर भी हो गई थी. अतुल को आधी संपत्ति उस अमेरिकन को देनी पड़ी थी.
सुजाता की बेटी रेणु करीब 15 साल की हो चली थी. वह भी कैलिफोर्निया की जूनियर चैस चैंपियन थी. एक बार फिर अतुल ने सुजाता से फोन कर मिलने की इच्छा व्यक्त की थी. पहले तो वह नहीं मान रही थी, पर उस के बारबार के आग्रह पर रविवार को सुबह मिलने को कहा. सुजाता ने रेणु को भी सारी सचाई बता दी थी, हालांकि, अतीत की कुछ बातें रेणु को अभी भी याद थीं.
डा. सुजाता ने सैन होजे में बड़ा घर खरीद लिया था. अतुल रविवार को सुजाता से मिलने पहुंचा था. रेणु ने स्नैक्स और जूस ला कर सामने टेबल पर रखा था.
रेणु को सामने देख कर अतुल बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘इधर आओ बेटी, मैं तुम्हारा पिता हूं.’’
सुजाता ने उस की बात काटते हुए कहा, ‘‘गलत. बिलकुल गलत. तुम उस के पिता थे. अब नहीं रहे.’’
अतुल बोला, ‘‘सौरी. पर क्या हम फिर से एक नहीं हो सकते? जब जागो तभी सवेरा.’’
सुजाता बोली, ‘‘याद करो, परदेश में तुम ने मुझे बेसहारा समझ सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया था. मैं तो कभी सोई ही नहीं. हमेशा जगी और सचेत थी. हां, तुम जाग कर भी सोए हुए थे. जगे हुए को जगाया नहीं जाता है.’’
अतुल बोला, ‘‘मुझे तुम से तलाक लेने का अफसोस है. पर क्या फिर हम मिल नहीं सकते?’’
सुजाता ने कहा, ‘‘तुम अभी तक 2 बीवियों से तो निभा नहीं सके हो. तुम पर कोई मूर्ख लड़की भी भरोसा नहीं करेगी, मेरा तो सवाल ही नहीं उठता.’’
अतुल बोला, ‘‘एक बार फिर से सोच लो. आखिर, रेणु को भी पिता का संरक्षण मिल जाएगा.’’
सुजाता बोली, ‘‘अब तुम इतने दिनों
से अमेरिका में रह कर भी
बेवकूफी वाली बात कर रहे हो. यहां लड़कियां और औरतें बहुत सुरक्षित हैं. तुम तो कंप्यूटर इंजीनियर हो. तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं जहां भी रहूं, सैलफोन में ऐप्स के द्वारा रेणु और घर पर बराबर नजर रख सकती हूं. वैसे, हम दोनों अपने बल पर अपनी रक्षा कर सकते हैं. तुम्हारे जैसे कमजोर मर्द क्या सुरक्षा देंगे? तुम अपनी फिक्र करो. हो सकता है, तुम्हें किसी औरत का संरक्षण चाहिए.’’
अतुल बोला, ‘‘एक बार रेणु से भी पूछ लो, उसे पिता नहीं चाहिए?’’
सुजाता ने रेणु से पूछा, ‘‘क्यों बेटे, मिस्टर अतुल को क्या जवाब दूं?’’
रेणु बोली, ‘‘मेरी मम्मीपापा दोनों आप हो मौम. हम दोनों में इतनी
शक्ति और क्षमता है कि किसी तीसरे की कोई गुंजाइश नहीं है हमारे बीच. मिस्टर अतुल से कह दो, कृपया चले जाएं.’’
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सुजाता अतुल की तरफ देख कर बोली, ‘‘तुम्हें जवाब चाहिए था, मिल गया न. नाऊ, यू कैन गो. और कभी नारी को अबला समझने की भूल भविष्य में न करना.’’
अतुल बिना कुछ बोले सुजाता के घर से निकल पड़ा था. द्य
ऐसा भी
होता है
बात पुरानी है. हमें हिमाचल प्रदेश के किसी गांव में किसी शादी में जाना था और वह गांव मुख्य सड़क से काफी अंदर जा कर था. बस से हम शाम ढले उस जगह पहुंचे जहां से हमें मुख्य सड़क से गांव की ओर पैदल जाना था लेकिन जब बस से उतरे तब बाहर बहुत तेज वर्षा हो रही थी.
अब गांव जाएं तो कैसे जाएं, यही सोचतेसोचते हम परिवार समेत सड़क किनारे स्थित एक छप्परनुमा दुकान की छत के नीचे खड़े हो गए.
दुकान में बैठे एक बुजुर्ग शायद हमारी समस्या को भांप गए थे. उन्होंने हमें बड़ी विनम्रता से छप्पर के अंदर आने को कहा सो हम अंदर चले गए और वहां पर बने एक चबूतरेनुमा बैंच पर बैठ गए.
उन दिनों मोबाइल भी नहीं होते थे इसलिए गांव में सूचना देना भी संभव नहीं था. उधर वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी.
बातों ही बातों में रात हो गई और सब भूख से बेहाल होने लगे. हमारी स्थिति भांप कर वही बुजुर्ग बोले, ‘‘मैं तुम्हारे सब के लिए खाना बना देता हूं, खाना खा कर तुम सब इसी छप्पर के नीचे सो जाना क्योंकि बारिश तो बहुत तेज हो रही है. थमने का नाम नहीं ले रही. लगता है सुबह तक होती रहेगी. ऐसे में तुम्हारा निकलना संभव नहीं. उन्होंने शायद हमारे मन की बात कह दी थी सो सब ने यह सोच कर चुपचाप उन की बात मान ली कि सुबह चलते समय हम उन को खाने का और ठहरने का दाम दे देंगे. इतना कुछ हमारे लिए कर रहे हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि उन की पैसे से मदद करें.
हम ने भरपेट खाना खाया और थकावट के कारण हमें झट से नींद आ गई. सुबह सो कर उठे तो देखा बारिश भी रुक गई थी तो हम ने सामान उठाया और उन बुजुर्ग को पूरी व्यवस्था के दाम पूछे.
पलट कर बुजुर्ग बोले, ‘‘बेटा यह सब व्यवस्था मैं ने पैसे के लिए नहीं की थी बल्कि इंसानियत के नाते की थी. इस दाने पर तुम्हारा नाम था सो तुम ने खाया.’’
यह सुनते ही मैं ने बुजुर्ग के चरण पकड़ लिए. मैं ने उन्हें कुछ तो पैसे लेने को कहा लेकिन उन्होंने एक पैसा नहीं लिया और यह सोचता चला आया कि दुनिया में इंसानियत अभी जिंदा है,
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