मालिनी का खुला प्रैग्नेंसी का राज तो इमली-आदित्य के बीच होगी बहस, पढ़ें खबर

स्टार प्लस के टीवी सीरियल ‘इमली’ (Imlie) में आए दिन नए ट्विस्ट आ रहे हैं. जहां आदित्य (Gashmeer Mahajani) और इमली (Sumbul Touqeer Khan) ने अपने रिश्ते को एक और मौका दिया है तो वहीं मालिनी (Mayuri Deshmukh) के नए इरादे साथ में सामने आ रहे हैं. लेकिन आने वाले एपिसोड  (Imlie Upcoming Episode) में जहां आदित्य की जिंदगी में नए दुश्मन की एंट्री होगी तो वहीं मालिनी का नया प्लान इमली के सामने होगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

मालिनी बताएगी नया सच

 

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अब तक आपने देखा कि डांडिया नाइट में जहां मालिनी की मां अनु, इमली पर हमला करने की कोशिश करती है. तो वहीं मालिनी अपने राज का खुलासा करते हुए इमली को बताती है कि वो अपनी झूठी प्रेग्नेंसी के साथ आदित्य को वापस हासिल कर लेगी, जिसे सुनने के बाद इमली हैरान हो जाती है. दूसरी तरफ अपने प्लान को आगे बढ़ाते हुए मालिनी, आदित्य के सामने अच्छा बनने की कोशिश करती है और आदित्य से दूर जाकर तलाक लेने का फैसला करती है.

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इमली-आदित्य के बीच होगा झगड़ा

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि इमली, मालिनी के नए प्लान के बारे में जान जाएगी. इसी के चलते इमली, आदित्य को सलाह देगी कि मालिनी को उसके घर भेज देना चाहिए, जिसे सुनकर आदित्य उससे नाराज हो जाएगा और उससे कहेगा कि उसका प्यार इतना कमजोर नहीं है कि मालिनी की वजह से दोबारा दोनों अलग हो जाए. हालांकि मालिनी खुद को अच्छा दिखाने के चक्कर में त्रिपाठी हाउस से चली जाएगी, जिसके चलते आदित्य और इमली के बीच एकबार फिर बहस होगी और आदित्य को मालिनी की चिंता होगी, जिसके कारण इमली परेशान नजर आएगी.

आदित्य की लाइफ में होगी विलेन की एंट्री

दूसरी तरफ, आदित्य और इमली की लाइफ में एक नए विलेन की एंट्री होगी. खबरों की मानें तो जल्द ही टीवी एक्टर फहमान खान की एंट्री होने वाली है, जो सीरियल की कहानी में मजेदार ट्विस्ट देखने को मिलेंगे.

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छोटा घर कैसे बनाएं संबंध

बड़े शहरों में सब से बड़ी समस्या आवास की होती है. 2 कमरों के छोटे से फ्लैट में पतिपत्नी, बच्चे और सासससुर रहते हैं. ऐसे में पतिपत्नी एकांत का नितांत अभाव महसूस करते हैं. एकांत न मिल पाने के कारण वे सैक्स संबंध नहीं बना पाते या फिर उन का भरपूर आनंद नहीं उठा पाते क्योंकि यदि संबंध बनाने का मौका मिलता है तो भी सब कुछ जल्दीजल्दी में करना पड़ता है. संबंध बनाने से पूर्व जो तैयारी यानी फोरप्ले जरूरी होता है, वे उसे नहीं कर पाते. इस स्थिति में खासकर पत्नी चरमसुख की स्थिति में नहीं पहुंच पाती है. पतिपत्नी को डर लगा रहता है कि कहीं बच्चे न जाग जाएं, सासससुर न उठ जाएं. मैरिज काउंसलर दीप्ति सिन्हा का कहना है, ‘‘संबंध बनाने के लिए एकांत न मिलने के कारण महिलाएं चिड़चिड़ी, झगड़ालू और उदासीन हो जाती हैं और फिर धीरेधीरे दांपत्य जीवन में दरार पड़नी शुरू हो जाती है, यह दरार अनेक समस्याएं खड़ी कर देती है. कभीकभी तो नौबत हत्या या आत्महत्या तक की आ जाती है.’’

कहीअनकही

विकासपुरी की रहने वाली सीमा के विवाह को 5 वर्ष हो गए हैं. इस दौरान उस के 3 बच्चे हो गए. तीनों बच्चों की देखभाल, सासससुर की सेवाटहल और घर का काम करतेकरते शाम होतेहोते वह पूरी तरह थक जाती है. सीमा का कहना है कि उस के तीनों बच्चे पति के साथ ही बड़े बैड पर सोते हैं. सीमा पलंग के पास ही नीचे जमीन पर बिस्तर लगा कर सोती है. उसे हर वक्त यही डर लगा रहता है कि सैक्स करते समय कोई बच्चा उठ कर उन्हें देख न ले. परिणामस्वरूप वह सैक्स का पूर्ण आनंद नहीं उठा पाती. इस के असर से वह निराशा से घिरने लगी हैं. ढंग से कपड़े पहनने, सजनेसंवरने का उस का मन ही नहीं करता. फिर वह सजेसंवरे भी किसलिए? स्थिति यह हो गई है कि अब पतिपत्नी दोनों में मनमुटाव रहता है.

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खानपान का असर

मांसमछली, शराब आदि का सेवन करने वाले पतियों की सैक्स की अधिक इच्छा होती है और इसीलिए वे न समय देखते हैं और न माहौल, पत्नी पर भूखे भेडि़ए की तरह टूट पड़ते हैं. संबंध बनाने से पहले फोरप्ले की बात तो दूर, वे यह भी नहीं देखते हैं कि बच्चे सोए हैं या जाग रहे हैं अथवा मांबाप ने देख लिया तो वे क्या सोचेंगे. ऐसे में कई बार पत्नी को सासससुर के सामने शर्म महसूस होती है. मांबाप अपने बेटे को कुछ न कह कर बहू को ही सैक्स के लिए उतावली मान बैठते हैं.

संयुक्त परिवार का दबाव

हमारे समाज में विवाह 2 प्राणियों का ही संबंध नहीं, बल्कि 2 परिवारों का संबंध भी होता है. लेकिन मौजूदा हालत में पतिपत्नी अकेले ही अपने बच्चों के साथ रहना पसंद करते हैं. यह उन की मजबूरी भी है, लेकिन यदि पत्नी को परिस्थितिवश सासससुर के साथ छोटे से आशियाने में 2-3 बच्चों के साथ रहना पड़े तो वह कई बार मानसिक दबाव महसूस करती है. सासससुर से शर्म और बातबात पर उन की टोकाटोकी से परेशान बहू पति के लिए खुद को न तो तैयार कर पाती है और न ही एकांत ही ढूंढ़ पाती है. मनोरोगचिकित्सक डाक्टर दिनेश के अनुसार, ‘‘कई बार मेरे पास ऐसे केस आते हैं कि शादी के बाद बच्चे जल्दीजल्दी हो गए. पत्नी उन की देखभाल में लगी रहती है और पति के प्रति उदासीन हो जाती है. इस के चलते पति भी कटाकटा सा रहने लगता है.’’

समय निकालना जरूरी

सैक्स ऐक्स्पर्ट डा. अशोक के अनुसार, ‘‘वास्तव में सैक्स के लिए उम्र की सीमा निर्धारित नहीं होती है कि आप 35 या 40 साल के हो गए हैं. छोटा घर है, बच्चे हैं, सैक्स ऐंजौय नहीं कर सकते. घरगृहस्थी और बच्चों की देखभाल के बाद यदि पतिपत्नी अपने लिए समय निकाल कर शारीरिक संबंध नहीं बनाएंगे तो आगे चल कर उन्हें कई परेशानियां हो सकती हैं. ‘‘डिप्रैशन के अलावा हारमोंस का स्राव भी धीरेधीरे कम हो जाता है. ऐसी स्थिति में अचानक संबंध बनाने पर पत्नी को तकलीफ होती है. फिर निरंतर तनाव बने रहने पर कभीकभी ऐसी स्थिति बन जाती है कि पत्नी को हिस्टीरिया के दौरे तक पड़ने लगते हैं.’’

मन की बात

जनकपुरी की रहने वाली काजल और राजेश ने लव मैरिज की है. उन की शादी को 7 साल हुए हैं. इन 7 सालों में 3 बच्चे भी हो गए. पहला बच्चा 3 साल का है. उस के बाद 2 बेटियां डेढ़ साल और 7 महीने की हैं. काजल कहती हैं, ‘‘हम शादी के शुरुआती दिनों से ही बहुत झगड़ते आ रहे हैं. वजह है राजेश का प्लान कर के साथ नहीं चलना. राजेश ने कहा था कि वे अपने मातापिता के लिए पड़ोस में ही मकान खरीद लेंगे. छोटे से 2 कमरों के मकान में हम ढंग से नहीं रह पाते हैं. मैं राजेश से अपने मन की बात नहीं कर पाती.

‘‘बस, यही डर लगा रहता है कि कहीं सासूमां कुछ कह न दें. जबकि मन की बात करने का मौका पतिपत्नी दोनों को ही मिलना चाहिए.’’ अगर आप भी इस समस्या से गुजर रहे हैं तो निम्न उपाय अपना कर शारीरिक संबंधों का पूर्ण आनंद उठा सकते हैं-

बच्चों को चाचा, मामा के पास भेजें. उन के बच्चों के लिए कोई भेंट भेजें. ऐसा उस समय करें जब सासससुर कहीं शादीविवाह में बाहर गए हों.

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यदि मांबाप को फिल्म देखने या पिकनिक मनाने भेज रहे हों तो बच्चों को भी उन के साथ भेज दें.

अगर आप का कोई मित्र छुट्टी पर अपने घर जा रहा हो तो उस के घर की देखभाल के लिए रात में पतिपत्नी वहां रहें और सैक्स ऐंजौय करें. बदले में मित्र के घर लौटने से पहले घर को सजासंवार कर अच्छा सा खाना बना कर उन के लिए रखें.

संबंध बनाने के लिए यह जरूरी नहीं है कि फोरप्ले ठीक सैक्स से पहले हो. उसे बारबार थोड़ेथोड़े समय में जब भी जहां भी समय मिले किया जा सकता है. इस से सैक्स के समय दोनों पूरी तरह तैयार होंगे.

सुबह जब बच्चे स्कूल जा चुके हों तब मातापिता को सुबह घूमने जाने के लिए प्रेरित करें.

सैक्स का समय बदलें. नयापन मिलेगा.

पत्नी के साथ हर 15 दिन बाद कहीं डेट पर जाएं. यानी गैस्टहाउस या होटल में जा कर रहें और सैक्स ऐंजौय करें.

गरमी का मौसम हो तो पत्नी को देर रात छत पर बने कमरे में ले जाएं.

बरसात की रात में भी पत्नी को छत पर बने कमरे में ले जा कर बरसात की फुहारों का आनंद लेते हुए सैक्स एंजौय करें.

सुबह बच्चों के स्कूल जाने के बाद, रात में छत पर और किसी दिन यदि आप औफिस से जल्दी घर आते हैं और बच्चे स्कूल से नहीं आए हैं, मातापिता पड़ोस में गए हैं, तब भी आप सैक्स ऐंजौय कर सकते हैं. हां, इस के लिए आप पत्नी को पहले से ही तैयार कर लें.

मदिरापान और मैरिड लाइफ से जुड़ी बातों के बारे में बताएं?

सवाल

मैं 32 वर्षीय पुरुष हूं. मैं ने सुना है कि मदिरापान से सैक्स क्षमता बढ़ जाती है. क्या यह बात सच है? क्या किसी हलकेफुलके नशे का कामोन्माद पर कोई असर पड़ता है?

जवाब

मदिरापान और यौन क्षमता के बीच के संबंध को न केवल समाज में, बल्कि पुराने चलचित्रों और नाटकों में भी तरह तरह से उकेरा गया है. शायद इसी के चलते समाज में यह धारणा भी बहुप्रचलित है कि मदिरा सेवन से यौन क्षमता बढ़ जाती है.

मदिरा थोड़ी लें या अधिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है. मदिरा से प्रेम के सुर झंकृत होते हों, ऐसा ठीक नहीं मालूम होता. मदिरा लेने के बाद संवेदनशीलता भी किसी सीमा तक कम हो जाती है.

60 मिलीलीटर से अधिक मात्रा में ली गई मदिरा यौन क्षमता को पक्के तौर पर घटाती है. सचाई से नाता टूटने के कारण तरह तरह के भ्रम भी जन्म ले सकते हैं. लंबे समय तक निरंतर मदिरा सेवन करते रहने से पुंसत्वहीनता भी उत्पन्न हो जाती है.

हलकेफुलके नशे से आप का तात्पर्य क्या है, यह समझ पाना मुश्किल है. पर गांजा, चरस और कोकीन का लंबे समय तक बराबर सेवन यौन सामर्थ्य समाप्त कर सकता है. दूसरे नशों और कुछ दवाओं के सेवन पर भी यही समस्या आम देखी जाती है.

इसी प्रकार प्रशांतक दवाएं जैसे डायजेपाम, लोराजेपाम, सिडेटिव दवाएं, अल्सररोधी दवा रैनिटिडाइन और ब्लडप्रैशर घटाने के लिए दी जाने वाली कुछ उच्च रक्तचापरोधक दवाएं भी पुरुष यौन सामर्थ्य के आड़े आ सकती हैं.

सैक्स का सुख पाने के लिए किसी भी प्रकार के नशे पर निर्भर रहने के बजाय आपसी प्रेम होना अधिक माने रखता है.

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अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.

करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.

डैकोरेशन हो खास: वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.

फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.

सैल्फ ग्रूमिंग: पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.

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Diwali 2021: डिनर में बनाए टेस्टी मसाला भिंडी

अगर आप डिनर में कुछ टेस्टी बनाना चाहते हैं तो मसाला भिंडी आपके लिए बेस्ट औप्शन है. ये आपके बच्चो और फैमिली के लिए आसानी से बनने वाली रेसिपी है.

हमें चाहिए

– भिंडी (250 ग्राम)

– पानी (एक छोटा बाउल)

– सरसों का तेल (7 से 8 टेबल स्पून)

– जीरा (1 टी स्पून)

–  सौंफ (1 टी स्पून)

– प्याज (एक छोटा बाउल)

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– अदरक (1 टी स्पून)

– हल्दी पाउडर (1/2 टी स्पून)

–  आमचूर पाउडर (1/2 टी स्पून)

– सौंफ पाउडर (1 टी स्पून)

– कालीमिर्च पाउडर (1/4 टी स्पून)

– चीनी (1/2 टी स्पून)

– नींबू का रस (1 टी स्पून)

मसाला भिंडी बनाने का तरीका

– सबसे पहले तेल गर्म करके इसमें सौंफ और जीरा डालकर इन्हें चटकने दें.

– अब इसमें प्याज डालकर हल्की ब्राउन होने दें.

– अब इसमें पानी और अदरक डालकर थोड़ी देर चलाएं.

– अब हल्दी पाउडर डालकर दोबारा चलाएं

–  अब इसमें भिंडी और बचा हुआ पानी डालकर लगातार चलाएं.

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– अब भिंडी को अच्छे से मिला लें और इसमें नमक डालें.

– फिर आमचूर और सौंफ डालें.

– फिर कालीमिर्च पाउडर दोबारा मिलाएं.

– अंत में नींबू का रस डालकर अच्छे से मिला लें और फिर सर्व करें.

HarperCollins के सब्सक्रिप्शन प्रोगाम संग अपने बच्चे को रखें एक कदम आगे

हमारे पिछले आर्टिकल में आपने पढ़ा कि बच्चों के विकास के लिए पढ़ना कितना जरूरी है, लेकिन बच्चों के लिए सही किताबों को चुनना आसान नहीं है वो भी तब, जब हर जगह कोरोना का कहर हो. ऐसे में कितना अच्छा हो कि हम घर बैठे ही ऑनलाइन किताबे खरीद ले और किताबे घर तक आ जाएं.

मौजूदा समय में पैरेंट्स की इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए HarperCollins Publishers India लाया है एक अनोखा सब्सक्रिप्शन प्रोगाम. जहां आप अपनी जरूरतों और बजट के हिसाब से सब्सक्रिप्शन ले सकते हैं.

आइए जानते हैं इसके बारे में…

कैसे काम करता है सब्सक्रिप्शन प्रोगाम?

1. सबसे पहले https://harpercollins.co.in/icanread/ पर लॉग इन करें और चेक करें कि आपके बच्चे के लिए कौन सा लेवल सही रहेगा.

2. आपके लिए हर लेवल के सैंपल चैप्टर उपलब्ध कराए गए है ताकि आप समझ सकें कि आपके बच्चे के मौजूदा रीडिंग लेवल के आधार पर कौन सा सबसे अच्छा काम करेगा. नीचे एक उदाहरण में आप इसे समझ सकते हैं…

SHOT

3. आप अपने बच्चे के लेवल के लिए उपलब्ध कुछ पुस्तकों को भी देख सकते हैं

4. एक बार जब आप लेवल सेलेक्ट कर लें तो अपनी पसंद का सब्सक्रिप्शन पैक चुन लें. हर लेवल के लिए 3 महीने, 6 महीने और 12 महीने का पैक उपलब्ध हैं. लेवल 3 का 3 महीने और 6 महीने का पैक है. आपके ट्रांजेक्शन को पूरा करने के लिए आपको पेमेंट पेज पर भेज दिया जाएगा.

सब्सक्रिप्शन के बाद आपको क्या मिलेगा?

1. पहला पैक जो हम आपको भेजेंगे उसमें आपके बच्चे के लिए नोटपैड, पेंसिल और एक्टिविटी शीट जैसे गिफ्ट्स होंगे. इसके साथ ही आपको मिलेगी 100 टिप्स वाली एक बुकलेट जिससे आप जान पाएंगे कि बच्चे में पढ़ने के लिए दिलचस्पी कैसे बरकरार रखें.

2. हर महीने हम आपको आपके चुने हुए लेवल के हिसाब से तीन किताबें भेजेंगे.

3. हर 6 महीने के पैक के साथ आपको मिलेगी 1000 रुपये की किताबें और हर 12 महीने के पैक के साथ मिलेगी 2500 रुपये की किताबें.

4. हर 12 माह वाला पैक ऑटोमैटिकली अगले लेवल को फ्री अपग्रेड करने की सुविधा के साथ आएगा जो आपके बच्चे के पढ़ने की क्षमता व गति को बनाए रखेगा.

हर लेवल के लिए सब्सक्रिप्शन पैक्स

3 months:
3 books per month and welcome kit @INR 1,418

6 months:
3 books per month, welcome kit and free books worth INR 1000 @INR 2678

12 months:
3 books per month, welcome kit and free books worth INR 2500 @INR 5040

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एक घड़ी औरत : भाग 3- क्यों एक घड़ी बनकर रह गई थी प्रिया की जिंदगी

शीलाजी उस दिन उस के सारे चित्र अपने साथ ले गईं. कुछ दिनों बाद औफिस में उन का फोन आया कि वे उन चित्रों की प्रदर्शनी अमृता शेरगिल और हुसैन जैसे नामी चित्रकारों के चित्रों के साथ लगाने जा रही हैं. सुन कर वह हैरान रह गई. प्रदर्शनी में वह अपनी सहेली और नरेश के साथ गई थी. तमाम दर्शकों, खरीदारों और पत्रकारों को देख कर वह पसोपेश में थी. पत्रकारों से बातचीत करने में उसे खासी कठिनाई हुई थी क्योंकि उन के सवालों के जवाब देने जैसी समझ और ज्ञान उस के पास नहीं था. जवाब शीलाजी ने ही दिए थे.

वापस लौटते वक्त शीलाजी ने नरेश से कहा, ‘आप बहुत सुखी हैं जो ऐसी हुनरमंद बीवी मिली है. देखना, एक दिन इन का देश में ही नहीं, विदेशों में भी नाम होगा. आप इन की अन्य कार्यों में मदद किया करो ताकि ये ज्यादा से ज्यादा समय चित्रकारिता के लिए दे सकें. साथ ही, यदि ये मेरे यहां आतीजाती रहें तो मैं इन्हें आधुनिक चित्रकारिता की बारीकियां बता दूंगी. किसी भी कला को निखारने के लिए उस के इतिहास की जानकारी ही काफी नहीं होती, बल्कि आधुनिक तेवर और रुझान भी जानने की जरूरत पड़ती है.’

नरेश के साथ उस दिन लौटते समय प्रिया कहीं खोई हुई थी. नरेश ही बोले, ‘तुम तो सचमुच छिपी रुस्तम निकलीं, प्रिया. मुझे तुम्हारा यह रूप ज्ञात ही न था. मैं तो तुम्हें सिर्फ एक कुशल डिजाइनर समझता था, पर तुम तो मनुष्य के मन को भी अपनी कल्पना के रंग में रंग कर सज्जित कर देती हो.’

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व्यस्तता बहुत बढ़ गई थी. आमदनी का छोटा ही सही, पर एक जरिया प्रिया को नजर आने लगा तो वह पूरे उत्साह से रंग, कूचियां और कैनवस व स्टैंड आदि खरीद लाई. पर समस्या यह थी कि वह क्याक्या करे? कंपनी में ड्रैस डिजाइन करने जाए या घर संभाले, बच्चों की देखरेख करे या पति का मन रखे? अपने स्वास्थ्य की तरफ ध्यान दे या रोज की जरूरतों के लिए बेतहाशा दौड़ में दौड़ती रहे?

प्रिया की दौड़, जो उस दिन से शुरू हुई, आज तक चल रही थी. घर और बाहर की व्यस्तता में उसे अपनी सुध नहीं रही थी.

‘‘अब हमें एक कार ले लेनी चाहिए,’’ एक दिन नरेश ने कहा.

प्रिया सुन कर चीख पड़ी, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं.’’

‘‘क्यों भई, क्यों?’’ नरेश ने हैरानी से पूछा.

‘‘फ्लैट के कर्ज से जैसेतैसे इतने सालों में अब कहीं जा कर हम मुक्त हो पाए हैं,’’ प्रिया बोली, ‘‘कुछ दिन तो चैन की सांस लेने दो. अब बच्चे भी बड़े हो रहे हैं, उन की मांगें भी बढ़ती जा रही हैं. पहले होमवर्क मैं करा दिया करती थी पर अब उन के गणित व विज्ञान…बाप रे बाप… क्याक्या पढ़ाया जाने लगा है. मैं तो बच्चों के लिए ट्यूटर की बात सोच कर ही घबरा रही हूं कि इतने पैसे कहां से आएंगे. पर आप को अब कार लेने की सनक सवार हो गई.’’

‘‘अरे भई, आखिरकार इतनी बड़ी कलाकार का पति हूं. शीलाजी की कलादीर्घा में आताजाता हूं तुम्हें ले कर. लोग देखते हैं कि बड़ा फटीचर पति मिला है बेचारी को, स्कूटर पर घुमाता है. कार तक नहीं ले कर दे सका. नाक तो मेरी कटती है न,’’ नरेश ने हंसते हुए कहा.

‘‘हां मां, पापा ठीक कहते हैं,’’ बच्चों ने भी नरेश के स्वर में स्वर मिलाया, ‘‘अपनी कालोनी में सालभर पहले कुल 30 कारें थीं. आज गिनिए, 200 से ऊपर हैं. अब कार एक जरूरत की चीज बन गई है, जैसे टीवी, फ्रिज, गैस का चूल्हा आदि. आजकल हर किसी के पास ये सब चीजें हैं, मां.’’

‘‘पागल हुए हो तुम लोग क्या,’’ प्रिया बोली, ‘‘कहां है हर किसी के पास ये सब चीजें? क्या हमारे पास वाश्ंिग मशीन और बरतन मांजने की मशीन है? कार ख्वाब की चीज है. टीवी, कुकर, स्टील के बरतन और गैस हैं ही हमारे पास. किसी तरह तुम लोगों के सिर छिपाने के लिए हम यह निजी फ्लैट खरीद सके हैं. घर की नौकरानी रोज छुट्टी कर जाती है, काम का मुझे वक्त नहीं मिलता, पर करती हूं, यह सोच कर कि और कौन है जो करेगा. जरूरी क्या है, तुम्हीं बताओ, कार या अन्य जरूरत की चीजें?’’

‘‘तुम कुछ भी कहो,’’ नरेश हंसे, ‘‘घर की और चीजें आएं या न आएं, बंदा रोजरोज शीलाजी या अन्य किसी के घर इस खटारा स्कूटर पर अपनी इतनी बड़ी कलाकार बीवी को ले कर नहीं जा सकता. आखिर हमारी भी कोईर् इज्जत है या नहीं?’’

उस दिन प्रिया जीवन में पहली बार नरेश पर गुस्सा हुई जब एक शाम वे लौटरी के टिकट खरीद लाए, ‘‘यह क्या तमाशा है, नरेश?’’ उस का स्वर एकदम सख्त हो गया.

‘‘लौटरी के टिकट,’’ नरेश बोले, ‘‘मुझे कार खरीदनी है, और कहीं से पैसे की कोई गुंजाइश निकलती दिखाईर् नहीं देती, इसलिए सोचता हूं…’’

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‘‘अगर मुझे खोना चाहते हो तभी आज के बाद इन टिकटों को फिर खरीद कर लाना. मैं गरीबी में खुश हूं. मैं दिनरात घड़ी की तरह काम कर सकती हूं. मरखप सकती हूं, भागदौड़ करती हुई पूरी तरह खत्म हो सकती हूं, पर यह जुआ नहीं खेलने दूंगी तुम्हें इस घर में. इस से हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा, सिवा बरबादी के.’’

प्रिया का कड़ा रुख देख कर उस दिन के बाद नरेश कभी लौटरी के टिकट नहीं लाए. पर प्रिया की मुसीबतें कम नहीं हुईं. बढ़ती महंगाई, बढ़ते खर्च और जरूरतों में सामंजस्य बैठाने में प्रिया बुरी तरह थकने लगी थी. नरेश में भी अब पहले वाला उत्साह नहीं रह गया था. प्रिया के सिर में भारीपन और दर्र्द रहने लगा था. वह नरेश से अपनी थकान व दर्द की चर्चा अकसर करती पर डाक्टर को ठीक से दिखाने का समय तक दोनों में से कोई नहीं निकाल पाता था.

प्रिया को अब अकसर शीलाजी व अन्य कलापे्रमियों के पास आनाजाना पड़ता, पर वह नरेश के साथ स्कूटर पर या फिर बस से ही जाती. जल्दी होने पर वे आटोरिक्शा ले लेते. और तब वह नरेश की कसमसाहट देखती, उन की नजरें देखती जो अगलबगल से हर गुजरने वाली कार को गौर से देखती रहतीं. वह सब समझती पर चुप रहती. क्या कहे? कैसे कहे? गुंजाइश कहां से निकाले?

‘‘औफिस से डेढ़ लाख रुपए तक का हमें कर्ज मिल सकता है, प्रिया,’’ नरेश ने एक रात उस से कहा, ‘‘शेष रकम हम किसी से फाइनैंस करा लेंगे.’’

‘‘और उसे ब्याज सहित हम कहां से चुकाएंगे?’’ प्रिया ने कटुता से पूछा.

‘‘फाइनैंसर की रकम तुम चुकाना और अपने दफ्तर का कर्ज मैं चुकाऊंगा पर कार ले लेने दो.’’

नरेश जिस अनुनयभरे स्वर में बोले वह प्रिया को अच्छा भी लगा पर वह भीतर ही भीतर कसमसाई भी कि खर्च तो दोनों की तनख्वाह से पूरे नहीं पड़ते, काररूपी यह सफेद हाथी और बांध लिया जाए…पर वह उस वक्त चुप रही, ठीक उस शुतुरमुर्ग की तरह जो आसन्न संकट के बावजूद अपनी सुरक्षा की गलतफहमी में बालू में सिर छिपा लेता है.

पति के जाने के बाद प्रिया जल्दीजल्दी तैयार हो कर अपने दफ्तर चल दी. लेकिन आज वह निकली पूरे 5 मिनट देरी से थी. उस ने अपने कदम तेज किए कि कहीं बस न निकल जाए, बस स्टौप तक आतीआती वह बुरी तरह हांफने लगी थी.

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एक घड़ी औरत : भाग 2- क्यों एक घड़ी बनकर रह गई थी प्रिया की जिंदगी

बाद में किसी न किसी बहाने नरेश औफिस में आते रहे. प्रिया को बहुत जल्दी एहसास हो गया कि महाशय के दिल में कुछ और है. एक दिन वह शाम को औफिस से बाहर निकल रही थी कि नरेश अपने स्कूटर पर आते नजर आए. पहले तो वह मुसकरा दी पर दूसरे ही क्षण वह सावधान हो गई कि अजनबी आदमी से यों सरेराह हंसतेमुसकराते मिलना ठीक नहीं है.

‘अगर बहुत जल्दी न हो आप को, तो मैं पास के रेस्तरां में कुछ देर बैठ कर आप से एक बात करना चाहता हूं,’ नरेश ने पास आ कर कहा.

प्रिया इनकार नहीं कर पाई. उन के साथ रेस्तरां की तरफ चल दी. वेटर को 1-1 डोसा व कौफी का और्डर दे कर नरेश प्रिया से बोले, ‘भूख लगी है, आज सुबह से वक्त नहीं मिला खाने का.’

वह जानती थी कि यह सब असली बात को कहने की भूमिका है. वह चुप रही. नरेश उसे भी बहुत पसंद आए थे… काली घनी मूंछें, लंबा कद और चेहरे पर हर वक्त झलकता आत्मविश्वास…

‘टीवी में एक विज्ञापन आता है, हम कमाते क्यों हैं? खाने के लिए,’ प्रिया हंसी और बोली, ‘कितनी अजीब बात है, वहां विज्ञापन में उस बेचारे का खाना बौस खा जाता है और यहां वक्त नहीं खाने देता.’

‘हां प्रिया, सचमुच वक्त ही तो हमारा सब से बड़ा बौस है,’ नरेश हंसे. फिर जब तक डोसा और कौफी आते तब तक नरेश ने पानी पी कर कहना शुरू किया, ‘अपनी बात कहने से मुझे भी कहीं देर न हो जाए, इसलिए मैं ने आज तय किया कि अपनी बात तुम से कह ही डालूं.’

प्रिया समझ गई थी कि नरेश उस से क्या कहना चाहते हैं, पर सिर झुकाए चुपचाप बैठी रही.

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‘वैसे तो तुम किसी न किसी से शादी करोगी ही, प्रिया, क्या वह व्यक्ति मैं हो सकता हूं? कोई जोरजबरदस्ती नहीं है. अगर तुम ने किसी और के बारे में तय कर रखा हो तो मैं सहर्ष रास्ते से हट जाऊंगा. और अगर तुम्हारे मांबाप तुम्हारी पसंद को स्वीकार कर लें तो मैं तुम्हें अपनी जिंदगी का हमसफर बनाना चाहता हूं.’

प्रिया चुप रही. इसी बीच डोसा व कौफी आ गई. नरेश उस के घरपरिवार के बारे में पूछते रहे, वह बताती रही. उस ने नरेश के बारे में जो पूछा, वह नरेश ने भी बता दिया.

जब नरेश के साथ वह रेस्तरां से बाहर निकली तो एक बार फिर नरेश ने उस की ओर आशाभरी नजरों से ताका, ‘तुम ने मेरे प्रस्ताव के बारे में कोईर् जवाब नहीं दिया, प्रिया?’

‘अपने मांबाप से पूछूंगी. अगर वे राजी होंगे तभी आप की बात मान सकूंगी.’

‘मैं आप की राय जानना चाहता हूं.’ सहसा एक दूरी उन के बीच आ गई.

‘क्यों एक लड़की को सबकुछ कहने के लिए विवश कर रहे हैं?’ वह लजा गई, ‘हर बात कहनी जरूरी तो नहीं होती.’

‘धन्यवाद, प्रिया,’ कह कर नरेश ने स्कूटर स्टार्ट कर दिया, ‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’

उस के बाद जैसे सबकुछ पलक झपकते हो गया. उस ने अपने घर जा कर मातापिता से बात की तो वे नाराज हुए. रिश्ते के लिए तैयार नहीं हुए. जाति बाधा बन गई. वह उदास मन से जब वापस लौटने लगी तो पिता उसे स्टेशन तक छोड़ने आए, ‘तुम्हें वह लड़का हर तरह से ठीक लगता है?’ उन्होंने पूछा.

प्रिया ने सिर्फसिर ‘हां’ में हिलाया. पिता कुछ देर सोचते रहे. जब गाड़ी चलने को हुई तो किसी तरह गले में फंसे अवरोध को साफ करते हुए बोले, ‘बिरादरी में हमारी नाक कट जाएगी और कुछ नहीं प्रिया. वैसे, तुम खुद अब समझदार हो, अपना भलाबुरा स्वयं समझ सकती हो. बाद में कहीं कोई धोखा हुआ तो हमें दोष मत देना.’

मातापिता इस शादी से खुश नहीं थे, इसलिए प्रिया ने उन से आर्थिक सहायता भी नहीं ली. नरेश ने भी अपने मातापिता से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली. दोनों ने शादी कर ली. शादी में मांबाप शामिल जरूर हुए पर अतिथि की तरह.

विवाह कर घर बसाने के लिए अपनी सारी जमापूंजी खर्च करने के बाद भी दोनों को अपने मित्रोंसहेलियों से कुछ उधार लेना पड़ा था. उसे चुका कर वे निबटे ही थे कि पहला बच्चा आ गया. उस के आने से न केवल खर्चे बढ़े, कुछ समय के लिए प्रिया को अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी. जब दूसरी कंपनी में आई तो उसे पहले जैसी सुविधाएं नहीं मिलीं.

नरेश की भागदौड़ और अधिक बढ़ गई थी. घर का खर्च चलाने के लिए वे दिनरात काम में जुटे रहने लगे थे.

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‘मैं ने एक फ्लैट देखा है, प्रिया’ एक दिन नरेश ने अचानक कहा, ‘नया बना है, तीसरी मंजिल पर है.’

‘पैसा कहां से आएगा?’ प्रिया नरेश की बात से खुश नहीं हुई. जानती थी कि फ्लैट जैसी महंगी चीज की कल्पना करना सपना है. पर दूसरे बच्चे की मां बनतेबनते प्रिया ने अपनेआप को सचमुच एक नए फ्लैट में पाया, जिस की कुछ कीमत चुकाई जा चुकी थी पर अधिकांश की अधिक ब्याज पर किस्तें बनी थीं, जिन्हें दोनों अब तक लगातार चुकाते आ रहे थे.

उस की नई बनी सहेली ने प्रिया का परिचय एक दिन शीला से कराया, ‘नगर की कलामर्मज्ञा हैं शीलाजी,’ सहेली ने आगे कहा, ‘अपने मकान के बाहर के 2 कमरों में कलादीर्घा स्थापित की है. आजकल चित्रकारी का फैशन है. इन दिनों हर कोईर् आधुनिक बनने की होड़ में नएपुराने, प्रसिद्ध और कम जानेमाने चित्रकारों के चित्र खरीद कर अपने घरों में लगा रहे हैं. 1-1 चित्र की कीमत हजारों रुपए होती है. तू भी तो कभी चित्रकारी करती थी. अपने बनाए चित्र शीलाजी को दिखाना. शायद ये अपनी कलादीर्घा के लिए उन्हें चुन लें. और अगर इन्होंने कहीं उन की प्रदर्शनी लगा दी तो तेरा न केवल नाम होगा, बल्कि इनाम भी मिलेगा.’

प्रिया शरमा गई, ‘मुझे चित्रकारी बहुत नहीं आती. बस, ऐसे ही जो मन में आया, उलटेसीधे चित्र बना देती थी. न तो मैं ने इस के विषय में कहीं से शिक्षा ली है और न ही किसी नामी चित्रकार से इस कला की बारीकियां जानीसमझी हैं.’

लेकिन वह सचमुच उस वक्त चकित रह गई जब शीलाजी ने बिना हिचक प्रिया के घर चल कर चित्रों को देखना स्वीकार कर लिया. थोड़ी ही देर में तीनों प्रिया के घर पहुंचीं.

2 सूटकेसों में पोलिथीन की बड़ीबड़ी थैलियों में ठीक से पैक कर के रखे अपने सारे चित्रों को प्रिया ने उस दिन शीलाजी के सामने पलंग पर पसार दिए. वे देर तक अपनी पैनी नजरों से उन्हें देखती रहीं, फिर बोलीं, ‘अमृता शेरगिल से प्रभावित लगती हो तुम?’

प्रिया के लिए अमृता शेरगिल का नाम ही अनसुना था. वह हैरान सी उन की तरफ ताकती रही.

‘अब चित्रकारी करना बंद कर दिया है क्या?’

‘हां, अब तो बस 3 चीजें याद रह गई हैं, नून, तेल और लकड़ी,’ हंसते वक्त उसे लगा जैसे वह रो पड़ेगी.

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रंग जीवन में नया आयो रे: भाग 2- क्यों परिवार की जिम्मेदारियों में उलझी थी टुलकी

लेखिका- विमला भंडारी

‘आप को उड़ती हुई पतंग देखना अच्छा लगता है, सिस्टर?’

मैं ने ‘हां’ में गरदन हिलाई और उस को देखती रही कि वह आगे कुछ बोले, पर जब चुप रही तो मैं ने पूछ लिया, ‘क्यों, क्या हुआ?’

वह चुप रही. मन में कुछ तौलती रही कि मुझ से कहे या न कहे. मैं उसे इस स्थिति में देख प्रोत्साहित करते हुए बोली, ‘तुझे पतंग चाहिए?’

उस ने ‘न’ में गरदन हिलाई तो मैं झुंझलाते हुए बोली, ‘तो फिर क्या है?’

वह सहम गई. धीरे से बोली, ‘कुछ नहीं, सिस्टर?’ और जाने को मुड़ी.

‘कुछ कैसे नहीं, कुछ तो है, बता?’ चादर एक तरफ फेंकते हुए मैं उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए बोली.

‘सिस्टर, मैं शाम को छत पर पतंग देख रही थी तो पिताजी ने गुस्से में मेरे बाल खींच लिए. कहने लगे कि नाक कटानी है क्या? लड़की जात है, चल, नीचे उतर. सिस्टर, क्या पतंग देखना बुरी बात है?’

मैं ने बात की तह में जाते हुए पूछ लिया, ‘छत पर तुम्हारे साथ कौन था?’

‘कोई नहीं,’ टुलकी की मासूम आंखें सचाई का प्रमाण दे रही थीं.

‘और पड़ोस की छत पर?’ मैं तहकीकात करते हुए आगे बोली.

‘वहां 2 लड़के थे सिस्टर, पर मैं उन्हें नहीं जानती.’

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बस, बात मेरी समझ में आ गई थी कि टुलकी को डांट क्यों पड़ी. सोचने लगी, ‘छोटी सी अबोध बच्ची पर इतनी पाबंदी. पर मैं कर ही क्या सकती हूं?’

टुलकी के पिता पुलिस में सबइंस्पैक्टर थे, सो रोब तो उन के चेहरे व  आवाज में समाया ही रहता था. अपनी बेटियों से भी वह पुलिसिया अंदाज में पेश आते थे. जरा सी भी गलती हुई नहीं कि टुलकी के गालों पर पिताजी की उंगलियों के निशान उभर आते.

एक दिन अचानक टुलकी के पिता की कर्कश आवाज सुनाई दी, ‘मेरी जान खाने को चारचार बेटियां जन दीं निपूती ने, एक भी बेटा पैदा नहीं किया. सारी उम्र हड्डियां तोड़तोड़ कर दहेज जुटाता रहूंगा और बुढ़ापे में ये सब चल देंगी अपने घर. कोई भी सेवा करने वाला नहीं होगा.’

मारपीट और चीखचिल्लाहट की आवाजें आ रही थीं. मैं अस्पताल जाने के लिए तैयार खड़ी थी पर वह सब सुन कर मुझ से नहीं रहा गया. बाहर निकल कर देखा कि टुलकी भय से थरथर कांपती हुई दीवार से सट कर खड़ी है.

‘इंस्पैक्टर साहब, आप भी क्या बात करते हैं. बेटियां जनी हैं तो इस में नीरा भाभी का क्या दोष?’ एक नजर कलाई पर बंधी घड़ी की ओर फेंकते हुए मैं

ने कहा.

मुझे देख वे जरा संयमित हुए. चेहरे पर छलक आए पसीने को पोंछते हुए बोले, ‘अब आप ही बताओ सिस्टर, चारचार बेटियों का दहेज कहां से जुटा पाऊंगा?’

‘अब कह रहे हैं यह सब. आप को पहले मालूम नहीं था जो चारचार बेटियों की लाइन लगा दी?’

मेरे कहने पर वे थोड़ा झुंझलाए. फिर कुछ कहने ही वाले थे कि मैं फिर घुड़कते हुए बोली, ‘आप अकेले तो नहीं कमा रहे, नीरा भाभी भी तो कमा रही हैं.’

‘कमा रही है तो रोब मार रही है. घर का कुछ खयाल नहीं करती. उस छोटी सी लड़की पर पूरे घर का बोझ डाल दिया है.’

‘नौकरी और घरगृहस्थी ने तो भाभी को निचोड़ ही लिया है. अब उन में जान ही कितनी बची है जो आप उन से और ज्यादा काम की उम्मीद करते हैं.’

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वे दुखी स्वर में बोले, ‘सिस्टर, आप भी मुझे ही दोष दे रही हैं. देखो, टुलकी का प्रगतिपत्र,’ टुलकी का प्रगतिपत्र आगे करते हुए बोले, ‘सब विषयों में फेल है.’

‘इंस्पैक्टर साहब, आप ही थोड़ा जल्दी उठ कर टुलकी को पढ़ा क्यों नहीं देते?’

‘जा री टुलकी, सिस्टर के लिए चाय बना ला,’ वे ऊंचे स्वर में बोले.

‘देखो सिस्टर, सारा दिन ये खुद ही लड़की से काम करवाते रहते हैं और दोष मुझे देते हैं,’ साड़ी के पल्लू से आंखें पोंछते हुए नीरा भाभी रसोई की ओर बढ़ते हुए बोलीं तो मुझे एकाएक ध्यान आया कि इस पूरे प्रकरण में मुझे 10 मिनट की देर हो गई है. मैं उसी क्षण अस्पताल की ओर चल पड़ी.

उस दिन के बाद से इंस्पैक्टर साहब रोज सुबह टुलकी को पढ़ाने लगे पर उस का पढ़ाई में मन ही नहीं लगता था. उस का ध्यान बराबर घर में हो रहे कामकाज व छोटी बहनों पर लगा रहता. उस के पिता उत्तेजित हो जाते और टुलकी सबकुछ भूल जाती और प्रश्नों के उत्तर गलत बता देती.

टुलकी की शिकायतें अकसर स्कूल से भी आती रहती थीं, कभी समय से स्कूल न पहुंचने पर तो कभी गृहकार्य पूरा न करने पर. ऐसे में टुलकी का अध्यापिका द्वारा दंडित होना तो स्वाभाविक था ही, साथ ही अब घर में भी उसे मार पड़ने लगी. मैं सोचती रह जाती, ‘नन्ही सी जान कैसे सह लेती है इतनी मार.’ पर देखती, टुलकी इस से जरा भी विचलित न होती, मानो दंड सहने की आदत पड़ गई हो.

टुलकी की परीक्षाएं नजदीक थीं. सो, नीरा भाभी छुट्टियां ले कर घर रहने लगीं. अब उस की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा.

मातापिता के इस एक माह के प्रयास के कारण टुलकी जैसेतैसे पास हो गई.

एक दिन टुलकी के भाई का जन्म हुआ जो उस के लिए बेहद प्रसन्नता का विषय था. इस से पहले मैं ने कभी टुलकी को इस तरह प्रफुल्लित हो कर चौकडि़यां भरते नहीं देखा था.

मुझे मिठाई का डब्बा देते हुए बोली, ‘जब हम सब चली जाएंगी तब भैया ही मातापिता की सेवा करेगा.’

मैं ने ऐसे ही बेखयाली में पूछ लिया था, ‘कहां चली जाओगी?’

‘ससुराल और कहां,’ मुझे अचरज से देखती टुलकी बोली.

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उस के छोटे से मुंह से इतनी बड़ी बात सुन कर उस समय तो मुझे बहुत हंसी आई थी पर अब उसी टुलकी के विवाह का कार्ड देखा तो मन की राहों से उस का मासूम, बोझिल बचपन गुजरता चला गया.

फिर शीघ्र ही मेरा वहां से तबादला हो गया था. अस्पताल की भागदौड़ में अनेक अविस्मरणीय घटनाएं अकसर घटती ही रहती हैं. मैं तो टुलकी को

लगभग भूल ही चुकी थी. किंतु जब उस ने मुझे याद किया और इतने मनुहार से पत्र लिखा तो हृदय की सुप्त भावनाएं जाग उठीं. सोचा, ‘मैं जरूर उस की शादी में जाऊंगी.’

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यह क्या हो गया: भाग 3- नीता की जिद ने जब तोड़ दिया परिवार

एक हफ्ते बाद भी उन का दर्द ठीक नहीं हुआ है. तुम बच्चों क मांपिताजी के पास छोड़ कर कुछ दिनों के लिए आ जाओ.’’

लतिका ने चिढ़ कर कहा, ‘‘जो इंसान मेरी बात नहीं मानता, मैं उस की चिंता क्यों करूं, तुम ही बताओ? क्या मैं गलत कहती हूं? क्या हमारा हिस्सा नहीं है पिताजी के मकान में?’’

‘‘लेकिन जीजाजी ऐसी बातें करने वाले इंसान नहीं हैं दीदी, अपने परिवार से प्यार करना बुरी बात तो नहीं.’’

‘‘वन्या, तुम छोटी हो, मुझे उपदेश देने की जरूरत नहीं है,’’ कह कर लतिका ने फोन रख दिया. 10-15 दिन बाद भी शेखर के दर्द में कमी नहीं आईर्. प्रणव फिर उन्हें डाक्टर के पास ले कर गए. शेखर तो लगातार छुट्टी पर ही थे. कुछ और टैस्ट हुए. अब की बार रिपोर्ट्स आईं तो सब का दिल दहल गया. शेखर को स्पाइन का कैंसर था जो कमर के निचले हिस्से से सिर के पीछे के हिस्से तक फैल चुका था, और रीढ़ की हड्डी को 65 प्रतिशत नुकसान पहुंचा चुका था. सब एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. स्वभाव से शांत और नरम शेखर ने अपनी स्थिति को बहुत सहजता से स्वीकार कर लिया. औफिस के और लोग भी थे. वे सब से सामान्य रूप से बातचीत करते रहे, जैसे कुछ हुआ ही न हो उन्हें. उन्हें इतना सामान्य देख कर सब के दिलों में उन के लिए इज्जत और भी बढ़ गई. कमर में दर्द तो उन्हें कई बार होता था लेकिन वे इसे अपने काम का टूरिंग जौब और बढ़ती उम्र का प्रैशर समझ लेते थे. अब और दवाएं तुरंत शुरू हो गईं और कीमोथेरैपी शुरू होेने वाली थी. उन्होंने औफिस से लंबी छुट्टी ले ली थी. उन के बौस आनंद कपूर भी उन का बहुत साथ दे रहे थे. उन्होंने कह दिया था, ‘‘बस, तुम आराम करो, अपना इलाज करवाओ और अब अपनी फैमिली को बुला लो तो ठीक रहेगा, तुम्हें आराम मिलेगा.’’

बहुत सोचसमझ कर शेखर ने तन्वी को फोन किया, ‘‘बेटा, अगर हो सके तो 3-4 दिन की छुट्टी ले कर मुंबई आ जाओ.’’

तन्वी घबरा गई, ‘‘पापा, आप ठीक तो हैं न?’’

‘‘हां ठीक हूं, बस तुम लोगों को देखने का मन कर रहा है. तीनों आ जाओ.’’

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तन्वी को पिता के स्वर की उदासी कुछ खटकी. उस ने लतिका से कहा, ‘‘मम्मी, पापा की तबीयत ठीक नहीं लग रही है, हम तीनों मुंबई चलते हैं.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जाना.’’

तन्वी हैरानी से बोली, ‘‘आप कैसी बात कर रही हैं, आप को पापा की चिंता नहीं हो रही है?’’

‘‘जो भी समझो, तुम दोनों को जाना हो तो चले जाओ, मुझे नहीं जाना.’’ तन्वी गुस्से में फिर कुछ नहीं बोली और छुट्टी ले कर सौरभ के साथ मुंबई पहुंच गई. शेखर की हालत देख कर दोनों बच्चे उन के सीने से लग कर फफक पड़े. संध्या वहीं काम कर रही थी. उसे शेखर की बीमारी के बारे में पता था. उस की भी आंखें भर आईं. शेखर से न लेटा जा रहा था, न बैठा. वे बस सोफे पर तकिया रख कर अधलेटे से बैठे रहते थे. रात को भी उसी स्थिति में सोते थे. पिता की हालत देख कर दोनों बच्चे बहुत दुखी हुए. शेखर ने बच्चों को अपने पास बिठा कर अपनी बीमारी के  बारे में बताते हुए कहा, ‘‘मैं तुम लोगों को दुखी नहीं देख पाऊंगा. इलाज शुरू हो ही चुका है. आजकल तो हर बीमारी का इलाज है,’’ यह कहते हुए शेखर हलके से मुसकरा दिए. बच्चों ने हौसला रखते हुए खुद को संभाला, सौरभ ने कहा, ‘‘हां पापा, आप जरूर ठीक हो जाएंगे. अब हम यहीं रहेंगे, आप के पास.’’

शेखर ने कहा, ‘‘नहीं, तुम दोनों अपने काम का नुकसान नहीं करोगे.’’

तन्वी ने कहा, ‘‘पापा, आप का ध्यान रखने से बढ़ कर हमारे लिए और कोई काम जरूरी नहीं है. आप की देखरेख इस समय हमारा सब से पहला काम है.’’

शेखर ने कहा, ‘‘बस मां, पिताजी और चाचू को कुछ मत बताना.’’

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‘‘ठीक है, पापा, मैं फिर मां को आने के लिए कहती हूं.’’

शेखर ने ‘हां’ में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘कह दो.’’ शेखर के दिल में एक आस थी कि शायद उन की बीमारी की बात सुन कर लतिका अपनी जिद, अहं, लालच छोड़ कर फौरन चली आएगी. लतिका ने सारी बात सुन कर तन्वी से कहा, ‘‘उन्हें मेरी जरूरत नहीं है. अगर होती तो इतने दिनों में भी क्या मेरी बात पर ध्यान नहीं देते. अपने परिवार के लिए हमेशा मेरी बात अनसुनी की है. अब उन सब को ही बुलाएं, मुझे क्यों बुला रहे हैं.’’ लतिका ने क्या कहा होगा, तन्वी  का चेहरा देख कर ही शेखर जान गए. फिर वे बहुत देर तक कुछ नहीं बोले.

तन्वी ने कहा, ‘‘सौरभ, हम दोनों में से  कोई एक यहां पापा के पास रहेगा, अभी मैं ने अपने बौस को फोन पर सब बताया है. उन्होंने मुझे घर से ही काम करने की परमिशन दे दी है. अभी तो मैं यहां रहूंगी. तुम चले जाओ. कालेज की छुट्टी होते ही तुम आ जाना. फिर मैं चली जाऊंगी. हम सब मैनेज कर लेंगे.’’ शेखर को अपने बच्चों पर बहुत प्यार आया. तन्वी ने फोन पर वन्या को सब बताया तो वह आकाश के साथ फौरन आ गई. आ कर शेखर के पास बैठ कर रोने लगी, ‘‘दीदी के व्यवहार पर शर्मिंदा हूं मैं जीजाजी, हैरान हूं उन के स्वभाव पर. इस समय भी इतनी जिद और गुस्सा.’’

शेखर ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं ने बहुत कोशिश की पर उस की सोच को बदल नहीं पाया. अगर मैं अपने मातापिता, भाई और उस के परिवार को अपने से अलग नहीं देख सकता तो क्या मेरी गलती है यह? मेरा भाई जिस की नईनई नौकरी है, जो अभी आर्थिक रूप से बहुत मजबूत नहीं है उस पर मैं घर के बंटवारे का दबाव कैसे डालूं. मैं यह सब नहीं कर सकता. और लतिका को मैं ने कभी कोई कमी कहां होने दी पर उस का लालच समय के साथ बढ़ता ही चला गया. और अब मुझे नहीं पता मैं कितने दिन जिऊंगा. तो क्या मैं अब अपने मातापिता को दुखी करूंगा, हिस्से की बात छेड़ कर. यह तो मुझ से कभी नहीं हो पाएगा,’’ शेखर का स्वर भरा र् गया. वहां बैठा हर व्यक्ति दुखी हो गया. शेखर की कीमोथैरेपी का पहला दिन था. प्रणव की कार से ही शेखर, वन्या और तन्वी हौस्पिटल पहुंचे. सौरभ को तन्वी ने भेज दिया था. डाक्टर से बात कर के प्रणव ने कीमो का दिन शनिवार का रखवाया था ताकि वह शेखर के साथ रह सके. उन्हें हौस्पिटल आनेजाने में परेशानी न हो. प्राइवेट रूम बुक कर लिया गया था. नर्स ने शेखर के कपड़े बदलवा कर इंजैक्शन देने की तैयारी शुरू कर दी थी. अपने मन की घबराहट पर काबू पाने के लिए तन्वी ने बाहर पड़ी बैंच पर बैठ कर अपना लैपटौप खोल लिया था. शेखर बैड पर लेट चुके थे. नर्स डाक्टर के आने का इंतजार कर रही थी. शेखर बिलकुल चुप थे. प्रणव बाहर रखी एक दूसरी बैंच पर बैठा तो वन्या वहीं बैठती हुई बोली, ‘‘आप लोगों का बड़ा सहारा है जीजाजी को.’’

आगे पढे़ं- शेखर का इलाज शुरू हो गया तो…

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