इस Festive Season डर नहीं लाएं खुशियां

त्योहार का मतलब खुशियों का समय, लेकिन पिछले साल से कोरोना के हमारे बीच में रहने की वजह से हम अपने घरों में रहने पर मजबूर हो गए हैं और अगर निकलते भी हैं तो डरडर कर. इस कारण लोगों से मिलनाजुलना न के बराबर हो गया है.

अब त्योहारों पर वह एक्साइटमैंट भी देखने को नहीं मिलता, जो पहले मिलता था. ऐसे में जरूरी हो गया है कि हम त्योहारों को खुल कर ऐंजौय करें. खुद भी पौजिटिव रहें, दूसरों में भी पौजिटिविटी का संचार करें.

तो आइए जानते हैं उन टिप्स के बारे में, जिन से आप इन त्योहारों पर अपने घर में पौजिटिव माहौल बनाए रख सकते हैं:

घर में बदलाव लाएं

त्योहारों के आने का मतलब घर की साफसफाई करने से ले कर ढेर सारी शौपिंग करना, घर के इंटीरियर में बदलाव लाना, घर व अपनों के लिए हर वह चीज खरीदना, जो घर को नया लुक देने के साथसाथ अपनों के जीवन में खुशियां लाने का भी काम करे. तो इन त्योहारों पर आप यह न सोचें कि किस को घर पर आना है या फिर ज्यादा बाहर आनाजाना तो है नहीं, बल्कि इस सोच के साथ घर को सजाएं कि इस से घर को नयापन मिलने के साथसाथ घर में आए बदलाव से आप की जिंदगी की उदासीनता पौजिटिविटी में बदलेगी.

इस के लिए आप ज्यादा बाहर न निकलें बल्कि खुद की क्रिएटिविटी से घर को सजाने के लिए छोटीछोटी चीजें बनाएं या फिर आप मार्केट से भी बजट में सजावट की चीजें खरीद सकती हैं और अगर आप काफी टाइम से घर के लिए कुछ बड़ा सामान खरीदने की सोच रही हैं और आप का बजट भी है तो इन त्योहारों पर उसे खरीद ही लें. यकीन मानिए यह बदलाव आप की जिंदगी में भी खुशियां लाने का काम करेगा.

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करें साथ सैलिब्रेट

त्योहार हों और अपनों से मिलनाजुलना न हो, तो त्योहारों का वह मजा नहीं आ पाता, जो अपनों के साथ सैलिब्रेशन में आता है. इन त्योहारों पर आप सावधानी बरत कर अपनों के साथ खुल कर त्योहारों को सैलिब्रेट करें. अगर आप व आप का परिवार जिन अपनों व दोस्तों के साथ त्योहार मनाने का प्लान कर रहा है और अगर वे फुली वैक्सिनेटेड हैं तो आप उन के साथ सावधानी बरत कर त्योहारों को सैलिब्रेट कर सकते हैं. इस दौरान खुल कर मस्ती करें, खूब सैल्फीवैल्फी लें, जम कर डांस पार्टी करें, अपनों के साथ गेम्स खेल कर त्योहारों की रात को भी रंग डालें.

पार्टी में इतनी धूम मचाएं कि आप के जीवन की सारी उदासीनता ही गायब हो जाए और आप बस इन दिनों हुए ऐंजौयमैंट को याद कर बस यही सोचें कि हर दिन ऐसा ही हो. मतलब सैलिब्रेशन में इतना दम हो कि आप को उस की याद आते ही चेहरे पर मुसकान लौट आए.

खुद को भी रंगे रंगों से

आप ने त्योहारों के लिए घर को तो सजा लिया, लेकिन फैस्टिवल वाले दिन आप का लुक फीकाफीका आप को बिलकुल भी त्योहारों का एहसास नहीं दिलवाएगा. ऐसे में घर को सजाने के साथसाथ आप को अपनी जिंदगी में रंग भरने के लिए खुश रहने के साथसाथ नए कपड़े खरीदना और खुद को सजानासंवारना होगा ताकि आप में आया नया बदलाव देख कर आप का कौन्फिडैंस बढ़े.

आप को खुद लगे कि आप त्योहारों को पूरे मन से सैलिब्रेट कर रही हैं. आप के नए आउटफिट्स पर आप का खिलाखिला चेहरा दूसरों के चेहरे पर भी मुसकान लाने का काम करेगा. आप भले ही किसी से मिलें या न मिलें, लेकिन त्योहारों पर सजनासंवरना जरूर क्योंकि यह बदलाव हमारे अंदर पौजिटिविटी लाने का काम करता है.

गिफ्ट्स से दूसरों में भी बांटें खुशियां

जब भी आप त्योहारों पर किसी के घर जाएं या फिर कोई अपना आप के घर आए तो आप उसे खाली हाथ न लौटाएं बल्कि आपस में खुशियां बांटने के लिए गिफ्ट्स का आदानप्रदान करें. भले ही गिफ्ट्स ज्यादा महंगे न हों, लेकिन ये मन को इस कदर खुशी दे जाते हैं, जिस का अंदाजा भी हम नहीं लगा पाते हैं.

गिफ्ट्स मिलने की खुशी से ले कर उन्हें खोलने व देखने की खुशी हमें अंदर तक गुड फील करवाने का काम करती है. साथ ही इस से किसी स्पैशल डे का भी एहसास होता है. आप औनलाइन भी अपनों तक गिफ्ट्स पहुंचा सकती हैं. तो फिर इन त्योहारों पर अपनों के चेहरों पर गिफ्ट्स से लाएं खुशियां.

खानपान से करें ऐंजौय

अगर आप त्योहारों पर त्योहारों जैसा फील लेना चाहती हैं तो फिर इन दिनों बनने वाले पकवानों का जम कर ऐंजौय करें. यह न सोचें कि अगर हम चार दिन तलाभुना खाना खा लेंगे तो मोटे हो जाएंगे बल्कि इन दिनों बनने वाले हर ट्रैडिशनल फूड का मजा लें. खुद भी खाएं और दूसरों को भी खिलाएं. इस से घर में खुशियों भरा माहौल रहता है.

चाहे कोरोना के कारण त्योहारों को मनाने के स्टाइल में थोड़ा बदलाव जरूर आया है, लेकिन आप त्योहारों को वैसे ही पूरी ऐनर्जी के साथ मनाएं, जैसे पहले मनाती थीं. भले ही कोई न आए, लेकिन आप अपनों के लिए बनाएं पकवान. जब घर में बनेंगे पकवान और उन्हें सब मिल बैठ कर खाएंगे, तो त्योहारों का मजा और दोगुना हो जाएगा.

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सजावट से लाएं पौजिटिविटी

अगर आप घर में एक ही चीज को सालों से देखदेख कर बोर हो गई हैं और घर में पौजिटिविटी लाना चाहती हैं तो घर में छोटीछोटी चीजों से बदलाव लाएं. जैसे कमरे की एक दीवार को हाईलाइट करें. इस से आप के पूरे रूम का लुक बदल जाएगा. वहीं घर में नयापन लाने के लिए कुशन कवर, टेबल कवर, बैडशीट को कौंबिनेशन में डालें. आप पुरानी साडि़यों से भी कुशन कवर बना सकती हैं. आप बाहर बालकनी में हैंगिंग वाले गमले लगाने के साथसाथ खाली बोतलों को भी सजा कर उन में भी पौधे लगा सकती हैं.

ऐसा करना आप को अंदर से खुशी देने के साथसाथ आप के घर में पौजिटिव ऐनर्जी लाने का काम भी करे. वहीं कमरे की दीवारें जो घर की जान होती हैं, उन्हें अपने हाथ से बनी चीजों से सजा कर  फिर से जीवंत करें.

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मेरे देवर को क्राइम शो देखने की लत लग गई है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 32 वर्षीया विवाहिता हूं. सासससुर नहीं रहे इसलिए 17 साल का देवर साथ ही रहता है. मैं उसे अपने बच्चे जैसा प्यार करती हूं. पर इधर कुछ दिनों से देख रही हूं कि वह टीवी पर अकसर क्राइम शो देखता है और उसी पर बातें भी करता है. कुछ दिनों पहले उस का 2-4 लड़कों से झगड़ा भी हो गया था. मैं ने डांटा तो पलट कर जवाब तो नहीं दिया पर उस ने उस दिन से मुझ से बात कम करता है. क्राइम शो देखने की लत कई बार मना करने पर भी उस ने नहीं छोड़ी है. उस की यह लत उसे गलत दिशा में तो नहीं ले जाएगी? कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

टीवी पर दिखने वाले अधिकतर क्राइम शो काल्पनिक होते हैं, जो समाज में जागरूकता तो नहीं फैलाते अलबत्ता लोगों को गुमराह जरूर करते हैं.

अकसर रिश्ते में धोखाधड़ी, एक दोस्त द्वारा दूसरे दोस्त का कत्ल, पैसे के लिए हत्या, शादी में धोखा, अवैध संबंध, पतिपत्नी में रिश्तों में विश्वास का अभाव दिखाना कहीं न कहीं लोगों के मन में अपनों के प्रति अविश्वास का भाव ही पैदा करता है. यकीनन, टीवी पर दिखाए जाने वाले अधिकतर क्राइम शो न सिर्फ रिश्तों को प्रभावित करते हैं, अपराधियों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं.

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हाल ही में एक खबर सुर्खियों में आई थी जिस में एक आदमी ने अपनी ही पत्नी की निर्मम हत्या कर दी थी. जब वह पकड़ा गया तो उस ने पुलिस को बताया कि यह हत्या उस ने टीवी पर प्रसारित एक क्राइम शो देखने के बाद की थी. यह कोई एक मामला नहीं. आएदिन ऐसी घटनाएं घट रही हैं.

अधिकतर क्राइम शो में दिखाया जाता है कि अपराधी किस तरह अपराध करते वक्त एहतियात बरतता है, ताकि वह कानून के चंगुल में फंस न सके. इस से कहीं न कहीं आपराधिक मानसिकता के लोगों का गलत मार्गदर्शन ही होता है.

बच्चों को तो इन धारावाहिकों से दूर ही रखने में भलाई है. और फिर आप के देवर की उम्र तो अभी काफी कम है. उस का मन अभी पढ़ाई की ओर लगना चाहिए. आप उसे प्यार से समझाने की कोशिश करें. उसे अच्छी पत्रिकाएं या अच्छा साहित्य पढ़ने को दें या प्रेरित करें. आप चाहें तो अपने पति से भी बात करें ताकि समय रहते उसे सही दिशा की ओर मोड़ा जा सके.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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Asthma रोगियों को हो सकता है स्लीप एपनिया

रात को सांस लेने में तकलीफ के चलते बारबार आंख खुलने की समस्या से अगर आप परेशान हैं तो इस की वजह स्लीप एपनिया हो सकती है. इस बीमारी में रात को सोते समय ऊपरी एयरवेज ब्लौक होने से सांस लेने में परेशानी होने लगती है. इस बीमारी में सांस 10 से 20 सैकंड के बीच रुकती है. लेकिन समस्या यह है कि ऐसा रात में कई बार होता है और इस वजह से रोगी रातभर सो नहीं पाता.

रात को नींद न पूरी होने के कारण उसे दिनभर नींद की झपकियां आती रहती हैं और चिड़चिड़ाहट रहती है. इस बीमारी की वजह से दुर्घटना होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

आंकड़ों के अनुसार, औब्सट्रैक्टिव स्लीप एपनिया यानी ओएसए से 5 में से 1 वयस्क पुरुष प्रभावित है. सांस से जुड़ी बीमारियों में अस्थमा के बाद यह दूसरी ऐसी बीमारी है जिस की सब से ज्यादा पहचान हुई है. जिन लोगों को यह बीमारी होती है उन की गरदन की मांसपेशियां सोते समय शिथिल हो जाती हैं जिस से एयरवेज सिकुड़ जाते हैं और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है.

ओएसए से उपजी बीमारियां

ओएसए से रोगी को डायबिटीज, हाई ब्लडप्रैशर, दिल की बीमारियां, स्ट्रोक और वजन बढ़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ओएसए और ब्रोनकिल अस्थमा एकदूसरे से जुड़े हुए हैं.

हालिया कुछ अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों से पता चला है कि अस्थमा के रोगियों में ओएसए होने का खतरा ज्यादा रहता है. कई अस्थमा रोगियों को पता ही नहीं चलता कि वे ओएसए से पीडि़त हैं और इस वजह से वे ओएसए का इलाज नहीं कराते. इस कारण उन्हें बारबार अस्थमा का अटैक पड़ता है और लगातार दवाइयों की जरूरत रहती है. इसलिए, स्लीप एपनिया के बारे में जानना और इस का एडवांस तकनीकों से इलाज करा कर जिंदगी को बेहतर बनाना जरूरी है.

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इलाज है जरूरी

अगर स्लीप एपनिया ज्यादा गंभीर नहीं है तो लाइफस्टाइल में बदलाव कर के ठीक किया जा सकता है. इस में वजन कम करना और सोने के तरीके को बदलने जैसे जीवनशैली से जुड़े बदलाव शामिल हैं. लेकिन गंभीर मामलों में, जहां ओएसए से डायबिटीज, हाई ब्लडप्रैशर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियां जुड़ी हों, मैडिकल की नई तकनीकों की मदद से नजात पाया जा सकता है.

अब मैडिकल टैक्नोलौजी की सहायता से ओएसए का समय पर पता लगाया जा सकता है और इस का इलाज किया जा सकता है. मैडिकल की नई तकनीकों की मदद से स्लीप एपनिया के रोगियों की एयरवेज को खोला जाता है ताकि रोगी आसानी से सांस ले कर रातभर चैन की सांस ले सके.

उपयोगी उपकरण

सीपीएपी मशीन, मुंह के उपकरण और खासतौर पर तैयार किए गए तकियों की मदद से ओएसए को नियंत्रित किया जा सकता है. आमतौर पर मेनडीबुलर एडवांसमैंट डिवाइस यानी एमएडी का इस्तेमाल किया जाता है. इसे ऊपर व नीचे के दांतों में लगा दिया जाता है और निचले जबड़ों को आगे ला कर जीभ व तालू को स्थिर रखा जाता है, जिस से सोते समय आसानी से सांस ली जा सके.

कौंटीन्यूअस पौजिटिव एयरवे प्रैशर थेरैपी यानी सीपीएपी स्लीप एपनिया के इलाज में बेहद कारगर है. इस में नाक के ऊपर मास्क लगाया जाता है, जो नाक और मुंह में प्रैशर डालता है और इस से सोते समय सांस की नलियां खुली रहती हैं.

इस के अलावा, जीभ को स्थिर रखने का उपकरण भी इस्तेमाल किया जाता है, जो एयरवेज को खोलता है. कई तरह के तकिए भी डिजाइन किए गए हैं जिन्हें सीपीएपी मशीन के साथ या इस के बिना इस्तेमाल किया जा सकता है. जिन लोगों को सीपीएपी मशीन लगाने में मुश्किल होती है, उन के लिए कुछ नर्व स्टीमुलेशन उपकरण भी उपलब्ध हैं.

साल 2014 में शोधकर्ताओं ने नया इलाज ढूंढ़ा था जिस में जब शरीर को सांस लेने की जरूरत होगी तो सैंसर तंत्रिकाओं को स्टीमुलेट करेंगे और रोगी सांस लेने में सक्षम होगा.

सर्जरी भी है विकल्प

सर्जरी की मदद से भी ओएसए का इलाज किया जाता है. इस में ऊपरी एयरवेज, मुंह के ढांचे और मोटापे के रोगियों की बेरिएट्रिक सर्जरी कर के इलाज किया जाता है. सर्जरी रोगी की स्थिति के अनुसार ही की जाती है. हाल ही में हुई नई खोजों ने सर्जरी को काफी आसान व सुरक्षित कर दिया है जिस में लेजर एसिड युविलोपेलेटोप्लौस्टी, रेडियो फ्रिक्वैंसी एबलेशन, पेलेटल इंप्लांट और ऊपरी एयरवेज मांसपेशियों में इलैक्ट्रिकल स्टीमुलेशन शामिल हैं.

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इस के अलावा, इंस्पायर नाम की थेरैपी में ब्रीदिंग सैंसर, स्टीमुलेशन लीड और छोटी बैटरी/कंप्यूटर प्रत्यारोपित किया जाता है. इस इलाज में भी काफी सफलता मिली है. सो, स्लीप एपनिया की बीमारी से जुड़े लक्षणों को पहचानें और एडवांस तकनीकों की मदद से इलाज करवाएं ताकि आप रात को चैन की नींद का लुत्फ सकें. अगर इसे सामान्य बीमारी समझ कर अनदेखा करेंगे तो बाद में यह लापरवाही बड़ी मुसीबत बन सकती है.

(लेखक नई दिल्ली स्थित नैशनल हार्ट इंस्टिट्यूट में सीनियर कंसल्टैंट हैं.)

महिलाओं के खिलाफ नया हथियार रिवेंज पोर्न

यह उन दिनों की बात है जिन दिनों हाथ में कीपैड वाले फोन तो आम हो गए थे पर स्मार्ट और डिजिटल फोन न के बराबर हुआ करते थे. स्कूल टौयलेट की दीवारों पर लड़कियों के फोन नंबर लिखे होते थे. कहींकहीं स्कूल के पिछवाड़े वाले हिस्से में नाम सहित किसी लड़की की अश्लील चित्रकारी होती थी. स्कूल के ज्यादातर लड़के उन चित्रों को देख कर मादक मुसकान लिए गुजर जाया करते थे.

आमतौर पर यह हरकत 2 तरह के लड़के किया करते थे- एक वे जिन्हें उक्त लड़की बिलकुल भाव न दे रही हो और दूसरे वे जो धोखा महसूस किए लंपट आशिक की तरह लड़की से खासा नफरत कर रहे हों. लेकिन इन दोनों में ही जो बात समान थी वह यह कि ये दोनों प्रवृत्ति के लड़के यह काम लड़की से बदला लेने और उसे बदनाम करने के मकसद से किया करते थे. यह बात उस समय सामान्य तो लगती थी, पर कहीं न कहीं रिवेंज पोर्न के दायरे वाली थी.

समय बदला. युवाओं के हाथ में स्मार्ट फोन के साथसाथ इंटरनैट आया, सर्च बौक्स में डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू का औप्शन मिला तो लोग डिजिटली सोशल हो गए. छोटी दुनिया एकाएक सोशल मीडिया पर बड़ी हो गई. इस बड़ी सी आभासी दुनिया में जहां पूरे विश्व से जानकारी के आदानप्रदान के असीम विकल्प खुले, दूसरों से जुड़ने का मौका भी मिला, वहीं इस आदानप्रदान से कुछ खतरे भी पैदा हुए. इसी खतरे के तौर पर धड़ल्ले से उभरा इंटरनैट वाला रिवेंज पोर्न.

रिवेंज पोर्न के मामले

जैसाकि मरियम वैबस्टर डिक्शनरी द्वारा इसे परिभाषित किया गया, रिवेंज पोर्न- किसी व्यक्ति की अतरंग तसवीरों या क्लिपों को, विशेषरूप से बदला या उत्पीड़न के रूप में, उस व्यक्ति की सहमति के बिना औनलाइन पोस्ट करना है.

यानी किसी व्यक्ति के निजी या व्यक्तिगत पलों से जुड़ी सामग्री या अश्लील सामग्री को उस के पार्टनर या फिर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बिना अनुमति के औनलाइन इस आभासी दुनिया में सा  झा कर देना रिवेंज पोर्न या रिवेंज पोर्नोग्राफी कहलाती है. अब सवाल यह है कि हम इस मसले पर क्यों बात कर रहे हैं?

दरअसल पिछले कुछ सालों में भारत में भी इस तरह का चलन देखने में आ रहा है. सोशल मीडिया पर या पोर्न वैबसाइट पर ऐसे वीडियो या फोटो अपलोड करने की शिकायतें आ रही हैं जो बदले की भावना से किए गए हैं. ऐसी ही एक वारदात इस साल फरवरी में चेन्नई में घटी, जहां एक 29 वर्षीय हसन ने कथित तौर पर एक महिला के अश्लील वीडियो लीक किए.

दरअसल लड़की के मातापिता ने लड़कालड़की की शादी करने से इनकार कर दिया था. पुलिस के अनुसार लड़कालड़की दोनों की 2019 में सगाई हुई थी और कुछ महीने बाद उन की शादी होनी थी. परिवार वालों को लड़के के व्यवहार पर शक हुआ तो उन्होंने शादी रोक दी.

ऐसे में इस बीच जब दोनों रिश्ते में थे, तो लड़के ने उस के प्राइवेट वीडियो रिकौर्ड किए. शादी रुकने के बाद गुस्साए लड़के ने अपने दोस्तों को वे वीडियो लीक कर दिए और सोशल मीडिया पर तसवीरें पोस्ट कर दीं. इस के साथ ही गुस्साए लड़के ने लड़की के भाई को भी ये वीडियो शेयर किए, जिस के बाद लड़की के परिवार में मामला पता चला तो उन्होंने लड़के के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज की.

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ब्रेकअप का बदला

ऐसा ही एक मामला पिछले वर्ष जून माह में घटा था. मामला उत्तर प्रदेश के नोएडा का था, जहां प्रेमी ने अपनी प्रेमिका से ब्रेकअप का बदला लेने के लिए उस के करीब 300 फोटो पोर्न साइट को बेचे और 1000 वीडियो पोर्न साइट पर अपलोड कर दिए.

वह रोजाना फोटो व वीडियो कई प्लेटफौर्म पर अपलोड करता था. इतना ही नहीं पेटीएम के माध्यम से फोटोवीडियो बेचता भी था. पीडि़ता ने तंग आ कर जब पुलिस में शिकायत दर्ज कराई तब उस लड़के को पकड़ा गया.

पुलिस के मुताबिक पूर्व प्रेमी ने प्रेमिकी से बदला लेने के लिए ऐसा किया था. यह रिवेंज पोर्न का मामला था. आरोपी के पीडि़ता के साथ 4-5 साल पहले संबंध थे. तभी आरोपी ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना कर अश्लील वीडियो बनाए थे. उस दौरान भी आरोपी ने कई जगहों पर उस के अश्लील फोटो शेयर की थी.

पहले तो आरोपी ने लड़की को अश्लील वीडियो शेयर करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल किया और आरोपी ने वीडियो कौल के माध्यम से भी उस का यौन शोषण किया. जब पीडि़ता ने आरोपी से बात करनी बंद कर दी तो उस ने वीडियो और फोटो पौर्न साइट पर अपलोड कर दिए.

भूल जाने का अधिकार

यही नहीं 3 मई, 2020 को उड़ीसा के जिला ढेकनाल में एक एफआईआर दर्ज हुई. यहां गिरिधरप्रसाद गांव में कार्तिक पूजा के दिन आरोपी शुभ्रांशु राउत महिला के घर पर गया. चूंकि दोनों एक ही गांव के थे और एकदूसरे के साथ पढ़ते थे, ऐसे में महिला ने शुभ्रांशु राउत को घर पर आने दिया. एफआईआर के मुताबिक, घर पर कोई नहीं है, यह जान कर शुभ्रांशु ने महिला के साथ बलात्कार किया. इस दौरान उस ने अपने मोबाइल से पीडि़ता का वीडियो बनाया और तसवीरें भी खींची.

शुभ्रांशु ने पीडि़ता को धमकी दी कि किसी से शिकायत करने पर वीडियो सार्वजनिक कर देगा. पीडि़ता का आरोप था कि इस घटना के बाद आरोपी 10 नवंबर, 2019 से लगातार धमका कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता रहा. जब पीडि़ता ने तंग आ कर अपने मातापिता को यह बात बताई तो शुभ्रांशु ने पीडि़ता के नाम से ही फेसबुक पर एक अकाउंट बनाया और उस पर वे वीडियो और फोटो अपलोड कर दिए.

कई कोशिशों के बाद पुलिस ने अप्रैल, 2020 में मामला दर्ज किया और शुभ्रांशु को गिरफ्तार किया. उस ने उड़ीसा हाई कोर्ट में जमानत के लिए अर्जी लगाई, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. इस सुनवाई के दौरान ही उड़ीसा हाई कोर्ट में जस्टिस एस के पाणिग्रही ने ‘भूल जाने के अधिकार’ का जिक्र किया.

भूल जाने का अधिकार निजता के अधिकार से इस मामले में अलग है क्योंकि जहां निजता के अधिकार में ऐसी जानकारी शामिल होती है जो सिर्फ अधिकार रखने वाले तक ही सीमित हो सकती है, जबकि भूल जाने के अधिकार में एक निश्चित समय पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी को हटाना और तीसरे पक्ष को जानकारी तक पहुंचने से रोकना भी शामिल है.

आपराधिक धमकी

ऐसे ही एक मामले में चेन्नई की एक अदालत ने दिनोंदिन अपराध के बदलते चलन पर चिंता जताई थी. मामला पिछले वर्ष नवंबर का है. 24 साल के एक शख्स को रेप और आपराधिक धमकी के आरोप में 10 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाते हुए कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की.

कोर्ट ने कहा कि लड़के अपने पार्टनर के साथ बिताए अंतरंग पलों की वीडियोग्राफी कर लेते हैं और बाद में इस का इस्तेमाल धमकी देने और शोषण करने के रूप में करते हैं. कोर्ट ने कहा कि यह चलन एक नई सामाजिक बुराई है. ‘टाइम्स औफ इंडिया’ में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक आरोपी 2014 में पीडि़ता के संपर्क में आया जब दोनों अंबात्तुर की एक फैक्टरी में मिले. पीडि़ता उस फैक्टरी में काम करती थी. आरोपी सुरेश एक बैंक में रिप्रैजेंटेटिव के तौर पर काम करता था और वह फैक्टरी में पीडि़ता की डिटेल्स लेने गया था.

पीडि़ता को अपना बैंक अकाउंट शुरू कराने के लिए डिटेल्स देने की जरूरत थी. पीडि़ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि आरोपी ने मोबाइल नंबर लेने के बाद लड़की को परेशान करना शुरू कर दिया. वह बात करने के लिए उस पर अकसर दबाव बनाता था.

खबर के मुताबिक, कथित तौर पर आरोपी लड़की को काम के सिलसिले में अपने घर ले आया था जहां उस ने उस के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए, जिस के वीडियो आरोपी ने रिकौर्ड कर लिए. आरोपी ने धमकी में उसे बारबार घर आने के लिए कहा और ऐसा न करने पर वीडियो क्लिप वायरल कर देने की धमकी दी. जब लड़की पेट से हो गई तब घर वालों के पता चलने पर आरोपी के खिलाफ शिकायत की गई, जिस में कोर्ट ने आरोपी सुरेश को 10 साल की सजा सुनाई.

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पहले मामले की सुनवाई

भारत में रिवेंज पोर्न का पहला मामला ‘पश्चिम बंगाल राज्य बनाम अनिमेष बौक्सी’ के रूप में 2018 में सामने आया था, जिस में आरोपी को प्राइवेट क्लिप्स और तसवीरें सोशल साइट्स पर बिना पीडि़ता की सहमति के शेयर करने के अपराध में 5 साल की कैद और क्व9 हजार का जुरमाना लगाया गया था.

दरअसल, आरोपी शादी के बहाने पीडि़ता के साथ लगातार संबंध में था. इस दौरान वह दोनों की अतरंग तसवीरें और क्लिप बनाता रहा. जब शादी की   झूठी बात पीडि़ता के सामने आई तो आरोपी तसवीरों को सोशल साइट पर अपलोड करने की धमकी देने लगा. यहां तक कि आरोपी ने लड़की के फोन का इस्तेमाल कर और तसवीरें भी जुटाईं.

बाद में जब पीडि़ता ने रिश्ता खत्म कर लड़के से पिंड छुड़ाने की बात कही, तो आरोपी ने पीडि़ता और उस के पिता की पहचान का खुलासा करते हुए उन तसवीरों को चर्चित एडल्ट वैबसाइट पर अपलोड कर दिया. इस मामले की सुनवाई में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि पीडि़ता को बलात्कार पीडि़ता के रूप में ट्रीट किया जाए और उचित मुआवजा दिया जाए.

महिलाओं पर बढ़ते अपराध के आंकड़े

कोरोना महामारी की वजह से लगे लौकडाउन के दौरान सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रियता बढ़ी. ऐसे में साइबर क्राइम के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 की तुलना में 2020 में रिवेंज पोर्न के अधिक मामले दर्ज किए गए, जबकि यह तब की बात है जब 70% पीडि़त महिलाएं इस तरह के मामले दर्ज ही नहीं करती हैं.

साइबर ऐंड लौ फाउंडेशन नामक गैरसरकारी संगठन द्वारा आयोजित एक सर्वे में पाया गया कि भारत में 13 से 45 वर्ष की आयु के 27% इंटरनैट उपयोगकर्ता रिवेंज पोर्न के ऐसे उदाहरणों के अधीन हैं.

रिवेंज पोर्न के साथ समस्या यह है कि एक बार इसे औनलाइन पोस्ट करने के बाद इसे न केवल भारत में बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी एक्सेस किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त भले ही सामग्री को एक साइट से हटा दिया गया हो, पर इस के प्रसार को समाहित नहीं किया जा सकता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जिस ने सामग्री को डाउनलोड किया है, वह इसे कहीं और पुनर्प्रकाशित कर सकता है, इसलिए इंटरनैट की सामग्री के अस्तित्व को बनाए रखता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 और 2014 के बीच अश्लील सामग्री के औनलाइन सा  झाकरण की मात्रा में क्व104 की वृद्धि हुई थी. वहीं 2010 की साइबर क्राइम रिपोर्ट से पता चला कि सिर्फ 35 फीसदी महिलाएं अपने शिकार की रिपोर्ट करती हैं.  इस में यह भी कहा गया है कि 18.3% महिलाओं को पता भी नहीं था कि उन्हें शिकार बनाया  गया है.

पिछले वर्ष ‘इंटरनैट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन औफ इंडिया’ के एक कार्यक्रम में कानून और आईटी मंत्री ने भारत में रिवेंज पोर्न की घटना के बारे में बात की. उन्होंने खुद माना की भारत में रिवेंज पोर्न की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है जो सही संकेत नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत में रिवेंज पोर्न की   झलक देखने को मिल रही है और इस में यूट्यूब जैसे प्लेटफौर्म का भी दुरुपयोग हो रहा है. मैं ने इस मुद्दे पर सुंदर पिचाई से भी बात की है.’’

महिलाओं के लिए घातक

भारत में डिजिटल पर रिवेंज पोर्न की अधिकतर घटनाएं या यों कहें कि 90 फीसदी घटनाएं महिलाओं के साथ घटती हैं. महिलाएं अपने रोजमर्रा के जीवन में हमेशा अपराध और यौन हिंसा का शिकार होती रहती हैं. इस से पहले भी रिवेंज के नाम पर एसिड अटैक, यौन हमला, हत्या जैसी वारदातें होती ही थीं. अब रिवेंज पोर्न भी महिला उत्पीड़न की पहचान बनता जा रहा है.

भारत में डिजिटलीकरण ने देश के भीतर तकनीकी शक्ति और प्रौद्योगिकी तक पहुंच में वृद्धि की है, किंतु इस आभासी दुनिया में उत्पीड़न और अपराधों के मामलों में बाद में वृद्धि हुई है. ऐसे अपराध जिन्हें साइबर अपराध कहा जाता है, यह एक बड़ी समस्या के रूप में विकसित हुए हैं जिस से देश और दुनियाभर में कानूनी तौर पर भी और न्याय दिलाने के तौर पर भी सरकारें संघर्ष कर रही हैं.

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भारत में ऐसे कई मामले उभरने लगे हैं जहां लड़की से बदला लेने के लिए रिवेंज पोर्न ने कई लड़कियों की जिंदगी तबाह कर दी है. बदला और बदनाम इन 2 बातों के इर्दगिर्द रिवेंज पोर्न की वारदात को अंजाम दिया जाता है. लड़कियों से बदला लेने का यह तरीका बहुत ज्यादा पुराना नहीं है. इस की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है और इस के कारण चिंता और बढ़ती जा रही है.

आईटी एक्ट क्या कहता है

धारा 66 ई: आईटी अधिनियम 2000 की यह धारा उस सजा से संबंधित है जहां किसी व्यक्ति की प्राइवेसी का उल्लंघन होता है. इस में किसी भी व्यक्तिकी ऐसी अतरंग तसवीरें व क्लिप खींचना, छापना और शेयर करना जिस पर उक्त व्यक्ति को आपत्ति हो वह इस धारा के तहत आती है. इस में अपराधी को

3 साल की सजा या 2 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना नहीं हो सकता है या कुछ मामलों में दोनों ही हो सकते हैं.

धारा 67 व धारा 67ए: धारा 67 के अनुसार इलैक्ट्रौनिक माध्यम से अश्लील और यौन सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने से संबंधित है, जिस में अपराधी को 3 साल तक की कैद या 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है. 67ए में दूसरे बार 5 साल की सजा और 10 लाख रुपए जुर्माना है. अगर दूसरी बार अपराधी ने अपराध किया है तो सजा 7 साल तक बढ़ जाती है.

धारा 67बी: यह धारा 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों से संबंधित है. यदि किसी बच्चे को शामिल करते हुए अश्लील सामग्री के प्रकाशन का ऐसा कोई कार्य किया जाता है, तो इस तरह के अपराध के लिए 5 साल की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान होगा.

महिलाओं के अश्लील चित्रण रोकने के कानूनी प्रावधान (1986)

विक्टिम इस की धारा 4 के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है जिस में पेंटिंग फोटोग्राफ या फिल्म के माध्यम से महिला का अश्लील चित्रण हो. धारा 4 का उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान है, जहां अपराधी को कठोर कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है.

ऐसा हो तो क्या करें

साइबर सैल पर रिपोर्ट: भारत में साइबर सैल हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूद है. सभी साइबर सैल में इस से जुड़े क्राइम से निबटा जाता है. कोई भी बड़ी आसानी से इंटरनैट के माध्यम से अपनी रिपोर्ट दर्ज करा सकता है. साइबर अपराध शाखाओं में उन वैबसाइटों की निगरानी के लिए कुछ तंत्र हैं जहां वीडियो अपलोड, देखे या सा  झा किए जाते हैं. शिकायत मिलने पर वे इलैक्ट्रौनिक वस्तुओं को जब्त कर लेते हैं और उन्हें फोरेंसिंक लैब में भेज देते हैं ताकि इस का पूरा इतिहास पता चल सके.

वैबसाइट या प्लेटफौर्म पर सीधी रिपोर्ट: इस में सीधे उसी वैबसाइट या माध्यम पर रिपोर्ट की जा सकती है जहां फोटो या वीडियो प्रसारित किए जा रहे हैं यह या तो स्वयं या कानूनी परामर्शदाता की सहायता से किया जा सकता है. आज सब से लोकप्रिय वैबसाइटों जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब, गूगल आदि की सख्त नीतियां हैं जो न्यूडिटी पर प्रतिबंध करती हैं. ऐसी स्थितियों में यहां से डायरैक्ट रिलीफ मिल सकता है.

सभी सुबूत इकट्ठा करना: जिस ने यह किया है उस से संबंधित कोई सुबूत मिटाएं नहीं. जैसे मैसेजेस, किसी भी धमकी या ब्लैकमेलिंग संदेशों के स्क्रीन रिकौर्ड इत्यादि ताकि बाद में अपराधी के खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सके.

राष्ट्रीय महिला आयोग या स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत: ऐसे मामलों में पीडि़त की ओर से कोई भी शिकायत दर्ज कर सकता है और पीडि़त को पुलिस स्टेशन में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है. जो आरोप दायर किए जा सकते हैं, वे आईपीसी की धारा 504 और 506 के तहत लगाए गए आरोप और प्रसारित छवियों के प्रकारप्रसार पर निर्भर करते हैं. साइबर ब्लौग इंडिया जैसे कुछ विशेषज्ञ हैल्पलाइन नंबर भी हैं जो साइबर अपराध विशेषज्ञों से जोड़ सकते हैं.

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सावधानियां बरतें

खुद की अश्लील, निजी व किसी भी तरह की आपत्तिजनक सामग्री को रोकने का अब तक का सबसे अच्छा और आसान तरीका यही है कि ऐसी सामग्री पैदा होने ही न दें.

– कंप्यूटर और मोबाइल फोन पर सुरक्षा सौफ्टवेयर की मदद ली जा सकती है.

– हमेशा अपने लैपटौप, मोबाइल या किसी भी डिवाइस पर स्ट्रौंग पैटर्न लगा कर रखें.

– कभी भी दूसरों से अपना पासवर्ड शेयर न करें. संभव है कि जो आप का करीबी पहले भरोसेमंद रहा हो वह बाद में न हो.

– यदि किसी करीबी के पास आप के अतरंग फोटो हैं तो उस से हटाने के लिए कहने से कभी नहीं डरना चाहिए और सुनिश्चित करें कि वे हटे या नहीं.

– जागरूकता के तहत मातापिता और स्कूल में शिक्षकों को बच्चों को सैक्सटिंग के जोखिमों से अवगत कराना चाहिए.

– ध्यान रहे कि जब आप किसी प्रकार किसी होटल, पब या माल में जाते हैं तो चेंजिंग से पहले का अच्छी तरह मुआइना कर लें.

मैं हारी कहां: भाग 4- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

उन दोनों की बात सुन मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया. जड़वत हो कर अपने साथ हुई इस धोखे की दास्तां को खुद अपनी आंखों से देख रही थी और मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. ये ऐसे बेशर्म लोग हैं, जो अपने प्यार भरे रिश्तों के साथ ऐसा खिलवाड़ करेंगे… मैं गुस्से और नफरत से कांप रही थी.

तभी पीछे से आवाज आई, ‘‘सुनिए, आप कौन?’’ मैं पूरी तरह से उस इंसान को देख भी नहीं पाई और वहीं गिर कर बेहोश हो गई.

जब आंख खुली तो सामने बेला दीदी और आर्मी यूनीफौर्म में एक फौजी को देखा, दीदी को देख मैं खुद को रोक ना सकी और रोने लगी.

‘‘क्या हुआ मेरी गुडि़या क्यों रो रही हो… अभी कुछ समय पहले खुशी से रो रही थी और अभी ऐसे… प्लीज बताओ क्या हुआ?’’

मैं ने दुख और क्रोध में रोते हुए पूरी बात दीदी को बता दी. यह भी नहीं सोचा कि सामने जो फौजी खड़ा है वह मधु का पति है.

मेरी बात सुन कर उन लोगों ने पहले तो मेरी बात पर विश्वास ही नहीं किया, पर पूरी बात सुनने के बाद उन का मन भी मधु के प्रति नफरत से भर गया. सिर पकड़ वहीं सोफे  पर बैठ गए, तभी दोनों बेशर्मों की तरह एकदूसरे से अनजान बनते हुए आए और बेला दीदी से मेरे बेहोश होने का कारण जानने की कोशिश करने लगे, उन दोनों को देख कर मन हुआ खूब चिल्लाऊं. उन दोनों की बेशर्मी और धोखे की दास्तां सब को चीखचीख कर बताऊं… मेरी नफरत बढ़ती जा रही थी उन दोनों के प्रति.

मधु, दर्शन की तरफ बढ़ी पर दर्शन की आंखों में आंसू और क्रोध से भरा चेहरा देख वहीं जड़ हो गई, उन दोनों को अंदेशा हो गया था शायद उन के बारे में हम दोनों को पता है.

दर्शन ने बताया था कि जब मैं बेहोश हुई थी तो वहां प्रवीण नहीं थे. मेरे बेहोश होने के समय भी ये दोनों खुद को छिपाने में लगे थे, यह सुन कर क्रोध से मेरा दिमाग फटा जा रहा था.

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मैं ने दर्शन और बेला दीदी से कहा कि इन दोनों को कमरे से बाहर करें, मैं अब एक सैकंड भी इन को बरदाश्त नहीं कर सकती. मेरी बातों से अब साफ हो चुका था फर्क मुझे सब पता है और दर्शन को भी.

मधु दर्शन को सफाई देने की कोशिश करने लगी, लेकिन जब दर्शन ने डीएनए टैस्ट की धमकी दी, तो रोतेरोते सब कुबूल कर लिया. प्रवीण तटस्थ खड़े रहे. चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी जैसे कंठ सूख गया हो.

‘‘मेरे साथ ऐसा क्यों किया प्रवीण? तुम पर मैं ने अपना सबकुछ लुटा दिया. प्यार किया, भरोसा किया तुम पर और तुम ने क्या किया… अगर मधु से प्यार करते थे तो थोड़ी हिम्मत और मर्दानगी भी जुटा लेते. मां से बात करते. कम से कम मेरी जिंदगी तो बरबाद नहीं करते,’’ कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, पर जिस की आंखों और विचारों में शर्म नहीं, उस से कुछ भी कहनेसुनने से क्या फायदा. इन दोनों ने एक पल में मेरी जिंदगी बदल दी. कहां मैं अपनी खुशियां बांटने चली थी और अभी इन के दिए गए धोखे से टूटी हुई हौस्पिटल के बैड पर पड़ी हूं. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं, किधर जाऊं.

मेरे इस बुरे वक्त में बेला दीदी और दर्शन जो खुद मेरी तरह इन के धोखे का शिकार हुए थे, मेरे साथ साहस से खड़े रहे.

दीदी ने मां और मेरे मायके में फोन कर उन लोगों को भी बुला लिया.

मांबाबा मेरी हालत देख टूट से गए. अकेले में दोनों रोते पर मेरे सामने हिम्मत और समझदारी की बात करते. बेला दीदी मुझे और मांबाबा को अपने घर ले गई.

मांबाबा को मेरी प्रैगनैंसी के बारे में पता था. वे समाज और परिवार के लिए मुझे समझौते के लिए राजी करने में लगे थे. उन का सोचना था अकेले इस पुरुषवादी समाज में कैसे मैं एक बच्चे को पाल सकती हूं, इसलिए मैं प्रवीण को माफ कर दूं.

मैं विवश हो कर इन की बातें सुनती और सोचती रहती क्या हम औरतें इतनी कमजोर हैं कि अकेले बच्चे नहीं पाल सकतीं, अकेले रह नहीं सकतीं? क्यों हर पल हमें जीने के लिए पुरुष का सहारा चाहिए? अपनी पत्नी, मां को धोखा देने वाले पुरुष को क्या कहेंगे? जब वह एकसाथ 2 औरतों से संबंध रखे, तो उस के पुरुषत्व का क्या नाम देंगे?

समझौता सिर्फ स्त्री करे और पुरुष अपने बड़े से बड़े गुनाहों को छिपा कर समाज में सिर उठा कर चले, मुझे यह मंजूर नहीं था पर बेला दीदी के अलावा कोई मेरी इस बात को नहीं समझ रहा था.

अगले दिन सुबहसुबह प्रवीण आए. मुझ से संभलने की इच्छा जाहिर की, पर मैं ने साफ कह दिया कि मैं उन की उपस्थिति बरदाश्त नहीं कर सकती, मेरी प्रैगनैंसी की खबर उन्हें लग गई थी शायद मां ने सासूमां को बताया हो.

बच्चे का हवाला दे कर बहुत मनाने की कोशिश की गई पर मैं अपनी फैसले पर अडिग रही.

ऐसे इंसान के साथ अब मैं एक पल भी नहीं रह सकती जिस की एक रखैल और उस की एक बेटी भी हो.

जिंदगी में कभीकभी ऐसे मुकाम भी आते हैं, जब हमें दिल से नहीं दिमाग से फैसले लेने पड़ते हैं. आज मैं भी उसी मोड़ पर खड़ी हूं.

भाईभाभी का भी साथ मिला. बेला दीदी तो पहले ही मेरे साथ थी. मेरे लिए फैसला लेना अब इतना भी मुश्किल नहीं था.

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भाई के सहयोग से एक अच्छा वकील मिल गया और मैं ने तलाक के लिए केस दर्ज कराया. तलाक की लंबी प्रक्रिया के बीच कहीं मैं हिम्मत न हार जाऊं, यह सोच कर भाई ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में मेरा एडमिशन करा दिया. मैं ने अपना पूरा ध्यान अब पढ़ाई में लगा दिया. सासूमां भी अपने बेटे को छोड़ मेरे साथ आ गईं, मेरा हौसला बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. प्रवीण को अपनी तमाम संपत्ति से बेदखल कर दिया और सबकुछ मेरे और मेरे होने वाले बच्चे के नाम कर दिया.

समाज और परिवार के खिलाफ जा कर मां ने जो मेरे लिए किया, उस के आगे हम सभी नतमस्तक हो गए थे.

मां ने दिल्ली में मेरे नाम से फ्लैट ले लिया और मेरे साथ मेरी देखभाल के लिए रहने लगीं. मांबाबा को वापस भेज दिया था. वे लोग बीचबीच में आते रहते मुझ से मिलने.

भाई फोन से सारी जानकारी लेता रहता और अपने मित्रों के सहयोग से मेरे हर काम में मदद करता रहता. पढ़ाई के साथ तलाक लेने में जो भी मुश्किलें आतीं, सब का हल मेरे परिवार के निस्स्वार्थ सहयोग से ही संभव हुआ.

मैं अब अकेली नहीं, पर इस समय प्रवीण अकेले हो गए थे. उन की मां ने भी उन का साथ नहीं दिया. फिर दोस्त भी कहां तक साथ देते. सुनने में आया कि अब प्रवीण मधु और अपनी बेटी के साथ ही रहने लगे हैं. दर्शन भी मधु को तलाक देने के लिए केस कर चुके थे. मेरा और दर्शन के केस का फैसला लगभग एकसाथ होना था.

दिन, महीने गुजरते गए, डाक्टर ने डिलिवरी के लिए अगले महीने की तारीख दे दी. मैं प्रैगनैंसी के उस दौर में थी, जब चलनाफिरना भी मुश्किल होता है और इस वक्त मैं अपना पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई में लगाना चाहती थी. अगले महीने से परीक्षाएं भी शुरू होने वाली थीं.

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मैं हारी कहां: भाग 3- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

अगले दिन प्रवीण के औफिस जाने के बाद दरवाजे पर खटखट की आवाज

आई. मैं ने दरवाजा खोला तो सामने एक बेहद खूबसूरत औरत, जिस के हाथ में चाबी थी, शायद वह फ्लैट का लौक खोलने की कोशिश कर रही थी. मुझे एकटक देखे जा रही थी… जैसे कोई अजूबा देख लिया हो.

‘‘आप कौन? अपनी तरफ ऐसे देख मैं थोड़ी घबरा गई, इसलिए सीधा सवाल किया.

‘‘यह फ्लैट तो प्रवीण का है, आप कौन हैं?’’ उस ने मेरे सवाल का जवाब सवाल में दिया.

‘‘मैं प्रवीण की वाइफ गौरी हूं. कल ही हम लोग आए हैं.’’

मेरा यह कहना था कि वह मुझे चौंक कर देख कर चकरा गई. मैं ने झट से उसे सहारा दिया और अंदर ले आई. पानी पिलाया तो वह कुछ संभली.

‘‘आप ठीक तो हैं, कौन हैं आप?’’ मेरे जेहन में कई तरह के सवाल आ रहे थे.

‘‘जी, माफ करें, मैं आप के ऊपर वाले फ्लैट में रहती हूं, कल बाहर गई थी. रात में वापस आई, इसलिए पता नहीं चला कि प्रवीण वापस आ गए हैं, मैं तो सफाई करवाने आई थी,’’ उस ने खुद को सयंत करते हुए कहा.

‘‘वह तो.. वह आप हैं, कल प्रवीण ने बताया था कि उन के कोई फ्रैंड ऊपर वाले

फ्लैट में रहते हैं, वही साफसफाई करवा देते

हैं, पर आप की तबीयत सही नहीं लग रही,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां कमजोरी महसूस कर रही हूं कुछ दिनों से, शायद इसीलिए चक्कर आ गया होगा.’’

‘‘अरे… तो फिर आप को आराम करना चाहिए और आप मेरे घर की देखभाल में लगी हैं, आप बैठिए मैं चाय बनाती हूं.’’

‘‘आप प्लीज, परेशान न हों.’’

‘‘परेशानी कैसी… आप के बहाने मैं भी चाय पी लूंगी,’’ कहते हुए मैं किचन में चली गई.

‘‘देखिए, मैं भी कितनी अजीब हूं इतनी देर से हम बातें कर रहे हैं

और आप का नाम तो मैं ने पूछा ही नहीं.’’

‘‘मैं मधु, मेरे पति दर्शन आर्मी में हैं, पोस्टिंग भी ऐसी जगह पर है, जहां परिवार को नहीं रख सकते, इसलिए मैं अकेली अपनी बेटी को ले कर रहती हूं.

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‘‘आप दिल्ली जैसे शहर में अकेली रह रही हैं? मधुजी आप में बहुत हिम्मत है, मैं तो अकेले रह ही नहीं सकती, प्रवीण जब तक औफिस से आते नहीं, मैं तो बेचैनी से उन का इंतजार करती रहती हूं.’’

मेरी बात सुन कर वह अजीब नजरों से

मुझे एकटक देख रही थी. मैं ने गौर तो किया,

पर कुछ समझ नहीं आया कि वह ऐसे क्यों देख रही मुझे.

सूर्य अस्त होने लगा था. आसमान में चारों तरफ लालिमा छाई थी. मैं गेट पर खड़ी प्रवीण का इंतजार कर रही थी और प्रकृति के इस खूबसूरत नजारे और अपनी खुद की बनाई सपनों की दुनिया में खोई हुई थी, तभी प्रवीण की आवाज ने मुझे खयालों की दुनिया से बाहर निकाला.

-क्र

‘‘यहां क्या कर रही हो, गौरी? तुम अभी इस शहर से पूर्णतया अनजान हो. ऐसे बाहर निकल कर मत खड़ी हुआ करो,’’ घर में घुसते ही प्रवीण शुरू हो गए.

‘‘तो क्या मैं पूरा दिन घर में बैठी रहूं, बाहर सिर्फ मैं ही नहीं और भी औरतें खड़ी हैं और मैं इस शहर से इतनी भी अनजान नहीं. भाई जब यहां पढ़ता था तो मैं भी उस के पास रहती थी,’’ कहते हुए मैं चाय बनाने चली गई या यों कह लें कि बात बढ़ने से रोकने के लिए हट गई.

चाय पीने के साथ प्रवीण भी सहज हो गए थे. तभी मैं ने मधुजी के बारे में बताया. मधु का नाम सुन प्रवीण बहुत असहज हो गए. उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. हावभाव अचानक बदल गए.

‘‘क्या हुआ आप को? तबीयत तो ठीक है आप की?’’ मैं उन्हें ऐसे देख घबरा गई.

‘‘नहीं कुछ नहीं, मैं ठीक हूं तुम परेशान न हो. शायद ब्लडप्रैशर बढ़ गया होगा,’’ कहते हुए प्रवीण खुद को सहज करने की कोशिश करने लगे.

‘‘क्या बात हुई तुम दोनों में?’’ प्रवीण ने पूछा.

‘‘कुछ खास नहीं, उन्हें शायद हमारी शादी के बारे में पता नहीं था, इसलिए मुझे देख थोड़ी नर्वस लग रही थी,’’ कहते हुए मैं डिनर की तैयारी में लग गई.

समय बीतते देर नहीं लगती. ऐसे ही दिन गुजरने लगे थे. प्रवीण मेरी तरफ से निश्चिंत थे और मैं उन की तरफ से.

मुझे अपने प्यार पर भरोसा था. शक की कोई गुंजाइश नहीं थी. मधुजी भी कब मेरी बड़ी बहन के रूप में मेरी जिंदगी में एक अहम किरदार में आ गई, पता ही नहीं चला.

हंसतेमुसकराते खुशियां बटोरते यों ही 3 महीने गुजर गए, एक दिन सुबह से ही तबीयत ठीक नहीं लग रही थी. प्रवीण आजकल बैंक के काम से शहर से बाहर गए थे, इसलिए खुद ही बेला दीदी को फोन कर उन के हौस्पिटल चली गई, दीदी ने कुछ जरूरी जांच के बाद बताया कि मैं मां बनने वाली हूं.

खुशी और डर दोनों भाव मेरे अंदर समाहित हो मेरे आंसू छलक पड़े. दीदी ने भी खुशी से मुझे बधाई देते हुए गले लगा लिया.

दीदी ने कुछ खास एहतियात बरतने को और समय से मैडिसिन लेने को कहा. फिर मैं खुशी से घर की तरफ बढ़ गई.

आज प्रवीण भी टूर से वापस आने वाले थे. मैं भी उन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. अब यह न्यूज सुन कर मेरी बेसब्री बेचैनी में बदल गई थी. जल्द से जल्द घर पहुंच कर प्रवीण को हमारी जिंदगी की सब से बड़ी खुशी देना चाहती थी.

घर पहुंच गई पर प्रवीण अभी आए नहीं थे. उन की फ्लाइट की टाइमिंग के हिसाब से उन्हें घर पर होना चाहिए, हो सकता हो घर बंद देख वापस औफिस चले गए हों फोन भी बंद आ रहा है.

मेरी बेसब्री अब चिंता में बदल गई, दिमाग में तरहतरह की बातें आ रही थीं, फिर मैं मधु दीदी के घर की तरफ बढ़ गई. सोचा हो सकता है कि उन से बात कर अपनी परेशानी का हल निकाल सकूं.

दरवाजा पूरी तरह से बंद नहीं था, इसलिए बिना नोक किए मैं अंदर चली गई. वैसे भी अब उन से मैं इतनी घुलमिल हो गई थी कि सामान्य औपचारिकता की जरूरत नहीं थी.

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तभी मुझे मधु दीदी की जोरजोर से लड़ने की आवाज आई, किसी पर बहुत बुरी तरह नाराज थी. मुझे लगा शायद मैं गलत वक्त पर आ गई हूं, इसलिए चुपचाप निकलने वाली ही थी कि प्रवीण की आवाज सुन मेरे कदम वहीं जड़ हो गए, प्रवीण दीदी को शांत होने के लिए बोल रहे थे, मुझे सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था और मैं विश्वास करना भी नहीं चाहती थी, फिर भी अपनी शंका दूर करने के लिए दरवाजे से झांक कर देखा, सामने प्रवीण और मधु दीदी बैठे थे.

प्रवीण के कंधे पर सिर टिका कर मधु दीदी रो रही थी, ‘‘प्रवीण, आखिर कब तक मुझे ऐसी जिंदगी जीनी होगी… मैं तुम्हारे लिए अपने पति की न हो सकी. कभी सोचा है हमारे रिश्ते के बारे में दर्शन को पता चल गया और सब से बड़ा सच हमारी बेटी… जो दर्शन को लगता है उस की बेटी है यह सच उसे पता चल गया तो वह न मुझे छोड़ेगा न तुम्हें.’’

‘‘मधु, तुम परेशान न हो. ऐसा कुछ नहीं होगा जैसा तुम सोच रही हो. गौरी को बहुत जल्दी मां के पास छोड़ आऊंगा, फिर हम पहले की तरह रहेंगे.’’

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मैं हारी कहां: भाग 2- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

मुंहदिखाई के लिए पड़ोस की महिलाएं और घर में आए हुए रिश्तेदार थे. सभी ने मेरी खूबसूरती और साथ आए हुए साजोसामान की खुले दिल से तारीफ की. मैं ने अपनी सासूमां की तरफ देखा… उन का चेहरा गर्व और खुशी से दमक रहा था.

सब को संतुष्ट देख मन को शांति मिली. सभी के जाने के बाद सासूमां ने मां को फोन किया और उन्हें भरोसा दिलाया कि उन की बेटी अब इस घर की बेटी है, मुझ से बात कराई.

शाम ढलने को थी. प्रवीण गृहप्रवेश रस्मों के बाद से दिखे नहीं थे. मुझे एक

सजेसजाए कमरे में ले जा कर बैठा दिया गया. हर लड़की की तरह अपनी सुहागरात के सुंदर सपने सजाए मैं प्रवीण का इंतजार करने लगी.

दिनभर की रस्मों से थकान महसूस हो

रही थी, कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘गौरी, उठो बेटी,’’ सासूमां की आवाज सुन मैं चौंक कर

उठ बैठी.

‘‘सौरी मां मैं इतनी देर तक नहीं सोती, पता नहीं ऐसे कैसे सो गई थी,’’ मेरी नजर शर्म से फर्श पर टिकी थी.

‘‘कोई बात नहीं बेटी, तुम बहुत थकी हुई थी, इसलिए नींद आ गई

चलो अब नहा लो और तैयार हो कर बाहर आ जाओ, कुछ रिश्तेदार जाएंगे अभी थोड़ी देर में,’’ हंसते हुए उन्होंने मेरे सिर पर अपना प्यारभरा

हाथ रखा.

‘‘जी मां, अभी तैयार हो कर आती हूं.’’

सासूमां के जाने के बाद मैं प्रवीण के लिए सोच रही थी. संकोचवश उन से पूछ भी न सकी. रात में वे कमरे में आए भी थे या नहीं या सुबह उठ कर चले गए हों, ‘उफ गौरी ऐसे कैसे अपनी सुहागरात में घोड़े बेच कर सो गई,’ खुद को कोसते हुई तैयार होने के लिए उठी.

लगभग सभी रिश्तेदार जाने के लिए तैयार थे. सासूमां सभी की विदाई कर रही थीं. मैं भी उन की मदद के लिए उन के साथ जा कर खड़ी हो गई पर मेरी नजर प्रवीण को ढूंढ़ रही थी. वे कहीं नहीं दिख रहे थे.

सासूमां को शायद मेरी मनोस्थिति का भान हो गया था.

‘‘अत: गौरी, सुबह से प्रवीण सभी के लिए टैक्सी का इंतजाम करने में लगा है. तुम परेशान

न हो.’’

मैं झेंप कर इधरउधर देखने लगी और वे मुसकरा रही थीं.

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सभी के जाने के लगभग 1 घंटे बाद प्रवीण कमरे में आए. बोले, ‘‘कल रात बहुत गहरी नींद में सो रही थी… शायद तुम इन 3-4 दिनों से ऐसी बोझिल रस्मों से थक गई थी.’’

‘‘जी, कल नींद आ गई थी मुझे, पर आप जगा सकते थे मुझे,’’ अपनी तरफ  से मैं ने भी सफाई दी.

‘‘कोई बात नहीं,’’ उन्होंने मुझे मुसकराते हुए देखा.

सच कहूं तो जिंदगी में पहली बार मुझे ऐसा कुछ महसूस हो रहा था, जिस को मैं समझ नहीं पा रही थी और ऊपर से प्रवीण की मुसकराहट, मैं खुद पर नियंत्रण खोती जा रही थी. जिंदगी खूबसूरत लगने लगी, सबकुछ अच्छा लग रहा था. ये क्या हो रहा है मुझे… कहीं मुझे प्रवीण से प्यार तो नहीं हो गया.

‘इतनी जल्दी…’

अभी तक प्रवीण से मेरी ज्यादा बात भी नहीं हुई और मैं क्याक्या सोच रही हूं, ‘‘पागल गौरी,’’ खुद से बात करते हुए हंस पड़ी मैं.

कुछ समय ऐसे ही नईनवेली दुलहन और उस के सपनों को जीती हुई मेरी प्यारी सी छोटी सी दुनिया… जिस में मैं रचबस गई थी.

कुछ दिनों बाद सासूमां ने फरमान जारी फरमान जारी किया, ‘‘बहू अपनी भी पैकिंग कर लो, कल प्रवीण के साथ अपने मातापिता से मिलने चली जाना और परसों दिल्ली.’’

‘‘मां ऐसे अचानक, अभी तो कुछ समय और रुकना था.’’

‘‘नहीं बेटी, प्रवीण की छुट्टियां खत्म हो रही हैं. वह परसों चला जाएगा तो तुम यहां क्या करोगी?’’

सासूमां का फैसला था, मानना तो था ही. अत: मैं ने भी अपनी पैकिंग शुरू कर दी, पर प्रवीण के चेहरे पर एक अजीब घबराहट और बेचैनी महसूस की मैं ने. पर क्यों? हो सकता है… मुझे साथ नहीं ले जाना चाहते हों… एक बार पूछूं क्या? पूछने पर कहीं नाराज न हो जाएं,’ मन में कई तरह के सवाल चल रहे थे. अचानक ऐसी तबदीली देख किसी का भी मन संशय में पड़ जाए और यह मेरा भ्रम भी तो हो सकता है… मां को छोड़ कर जाने से भी मन उदास हो सकता है.

‘मैं भी क्या, कुछ भी सोच कर बैठ जाती हूं, यही सच होगा… मां के लिए ही प्रवीण चिंतित होंगे,’ सोच कर काम में जुट गई.

अगले दिन सुबहसुबह मायके के लिए निकल गए हम दोनों. मां, बाबा हम दोनों को देख बहुत खुश हुए थे, ‘‘गौरी बिटिया, आज कुछ भी नानुकुर नहीं करना, सब अच्छे से खा लेना, तुम्हारी मां सुबह से रसोई से निकली नहीं, तुम्हारी पसंद का सब बनाया है, दामाद बाबू की पसंद के बारे में ज्यादा कुछ अभी पता नहीं, जो पता था, वह सब बन गया है.’’

‘‘अरे बाबा, आप नाहक परेशान हो रहे हैं और मां को भी परेशान किए हुए हैं, प्रवीण सबकुछ खाते है.’’

मेरी बाबा से प्यारी नोकझोंक चल रही थी पर मेरी नजर प्रवीण पर ही थी, उन के चेहरे पर पहले से अधिक परेशानी दिख रही थी, आखिर बात क्या है? यहां भी कुछ पूछा नहीं जा सकता था. मां तो मेरी शक्ल देख कर ही मेरा दिमाग पढ़ लेंगी… मुझे सहज होना होगा. किसी तरह दिन बीता, मैं खुद को सहज रखने का भरसक प्रयत्न करती रही.

‘‘दामाद बाबू कम बोलते हैं या नाराज हैं, तुझ से? जब से आए हैं, गुमसुम से हैं, हर सवाल का हां या न में जवाब दे रहे हैं,’’ आखिर मां ने पूछ ही लिया मां की नजरों से कैसे कोई छिप सकता है, पर मैं बोली, ‘‘मां, आप भी क्याक्या सोच लेती हैं… हां प्रवीण कम बोलते हैं, पर मुझ से नाराज क्यों होंगे, वे मां को अकेले छोड़ कर जाने की वजह से थोड़े परेशान हैं बस,’’ मां को किसी तरह समझा लिया, पर सच तो यह था कि प्रवीण का यह व्यवहार मेरी समझ से भी परे था.

मांबाबा से विदा ले कर हम उसी रात चले आए. यहां भी सासूमां हमारा इंतजार कर रही थीं. खाना खा कर आए थे. थके हुए भी थे इसलिए ज्यादा बात न कर सिर्फ वहां का हालचाल बता कर सोने चले गए.

भोर की किरणें जब चेहरे पर पड़ी तो मेरी नींद खुली, बगल में प्रवीण भी गहरी

नहीं में थे.

यों तो सभी के सामने धीरगंभीर रूप में रहते हैं पर अभी चेहरे पर यह कैसी मासूमियत झलक रही है… मैं एकटक निहारे जा रही थी.

तभी प्रवीण की आंख खुली. मुझे ऐसे देखते हुए झेंप गए, ‘‘क्या बात है… आज सुबहसुबह इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे जनाब के?’’

प्रवीण की बात सुन मैं भी शरमा गई. चोरी जो पकड़ी गई थी.

पूरा दिन सामान समेटने में चला गया. हम रात की ट्रेन से दिल्ली के लिए निकल गए.

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सुबह प्रवीण का मूड ठीक था पर जैसेजैसे जाने का वक्त आ रहा था, प्रवीण के चेहरे की परेशानी बढ़ती जा रही थी.

स्टेशन से टैक्सी कर घर आ गए, प्रवीण ने मुझे फ्लैट नंबर बता कर चाबी दी और खुद सामान उतारने लगे.

‘घर तो बहुत गंदा होगा लगभग 15 दिनों से प्रवीण थे नहीं यहां, पता नहीं,’ कोई मेड भी है या नहीं यही सोचते हुए मैं ने लौक खोला तो मेरी आंखें खुली की खुली रह गई, ‘‘यह क्या, आप इतने दिनों बाद आए हो, फिर भी घर ऐसे साफ जैसे हर रोज सफाई होती हो?’’ पीछे आते हुए प्रवीण से मैं ने पूछा.

आ अ… हा… वह मेरे एक फ्रैंड की फैमिली भी यहीं रहती है… मैं ने उन्हें सफाई

के लिए बोल दिया था,’’ प्रवीण अचकचाते

हुए बोले.

‘‘यह तो सही किया आप ने… अच्छा किचन कहां है?’’ मैं ने प्रवीण से पूछा.

‘‘तुम फ्रैश हो जाओ मैं खाना और्डर कर देता हूं, तुम बहुत थकी हुई हो, खाना खा कर आराम करो, किचन देख लो पर खाना शाम को बनाना,’’ वे बड़े प्यार से मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोले.

‘‘जी, जैसा आप कहें हुजूर,’’ मैं ने भी नजाकत से आंखें झुका कर बोला, फिर दोनों

हंस पड़े.

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मैं हारी कहां: भाग 1- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

‘‘दीदी…दीदी सो रही हो क्या अभी तक?’’

‘अरे यह तो रामलाल की आवाज है,’ सोच जल्दी से उठ कर मेन दरवाजे की तरफ भागी.

दरवाजे पर रामलाल दूध वाला चिंतित सा खड़ा था. उसे ऐसे खड़ा देख हंसी आ गई, ‘‘क्या हुआ रामलाल ऐसे क्यों मुंह बनाए हो?’’

‘‘दीदी, आप ने तो मुझे डरा दिया. रोज तो मेरे आने से पहले दरवाजे पर खड़ी हो जाती थीं. आज आधे घंटे से दरवाजे पर खड़ा हूं.’’

‘‘हां, आज कुछ सिर भारीभारी लग रहा था. रविवार की छुट्टी भी है, इसलिए… अच्छा अब चलो जल्दी दूध दे दो.’’

सिरदर्द बढ़ने लगा तो रामलाल को जाने को बोल दिया नहीं तो वह अपनी रामकहानी शुरू ही करने वाला था.

‘‘अच्छा, दीदी मैं चलता हूं आप अदरक वाली चाय पी लो, आराम मिलेगा.’’

‘‘ठीक है रामलाल,’’ कहते हुए मैं ने दरवाजा बंद कर दिया.

‘देर तो हो ही गई है नहा कर ही चाय बनाऊंगी,’ सोचते हुए मैं बाथरूम की तरफ बढ़ गई.

चाय ले कर बालकनी में रखी और आरामकुरसी पर बैठ गई. शालीन के जाने के बाद आज पहली बार अकेलेपन और खालीपन का आभास हो रहा था, पर वह भी कब तक अपनी मां के पास रहता, एक न एक दिन उसे अपनी जिंदगी की शुरुआत तो करनी ही थी. पिछले सप्ताह शालीन ने कहा, ‘‘मां अब आप रिटारमैंट ले लो और मेरे साथ चलो.’’

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‘‘तू कहां जा रहा है और मैं क्यों रिटायरमैंट लूं?’’ मैं ने अचरज से उस की तरफ देखा.

‘‘मां पुलिस अधीक्षक ट्रेनिंग के बाद मेरी पहली पोस्टिंग बीकानेर में मिली है.’’

जितनी खुशी उस के पुलिस अधीक्षक के चयन के समय मुझे हुई थी, आज

उतनी ही तकलीफ उस के दूर जाने से हो रही थी, पर किसी तरह खुद को मजबूत दिखाते हुए मैं ने कहा, ‘‘बेटा, मैं कहांकहां तुम्हारे साथ घूमूंगी… तुम अब बहुत बड़ी जिम्मेदारी के पद पर हो. अपना काम ईमानदारी और पूरी लगन से करना और मेरी फिक्रन करे. मैं अभी अपना काम करने में सक्षम हूं और फिर तुम्हारी बेला मां और चाचा तो हैं न मेरे पास.’’

बेला और रमेश भैया के बहुत समझाने और भरोसा दिलाने के बाद शालीन बीकानेर के लिए रवाना हुआ. फोन की घंटी सुन सोच से बाहर आई. जरूर शालीन होगा. चैन नहीं उसे भी,’ सोचते हुए फोन उठाया.

मेरे कुछ कहने से पहले ही उधर से एक महिला की आवाज आई, ‘‘हैलो… हैलो… गौरी

है क्या?’’

उफ यह तो उसी की आवाज है… अब क्या लेना है इसे मुझ से… मेरा सबकुछ छीन कर भी चैन नहीं इसे.

बिना कुछ बोले फोन रख दिया मैं ने… इतने वर्षों बाद उस की आवाज सुन मेरे हाथपैर सुन्न पड़ गए थे, दिलदिमाग दोनों मेरे बस में नहीं थे. उस के प्रति दबी हुई नफरत और बढ़ गई. इतने वर्षों बाद उस ने क्यों फोन किया मुझे? लगता है मेरा घर उजाड़ कर अभी तक मन नहीं भरा उस का… नाराजगी और नफरत से मेरा सिरदर्द और बढ़ गया. किसी तरह खुद को समेटे वहीं सोफे पर लेट गई.

बेला दीदी से बात करूं क्या? पर वे तो अभी अस्पताल में होंगी, अभी फोन करना मुनासिब नहीं होगा. इसी उधेड़बुन में कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला. आंख खुली तो 3 बज गए थे. दर्द कुछ कम हुआ था, भूख भी लगी थी. आज शांता भी छुट्टी पर थी, इसलिए आज रसोई में कुछ बना ही नहीं.

मेरा भी कुछ बनाने का मन नहीं कर रहा था. अभी तक उस की आवाज मेरे कानों में गूंज रही थी. पर भूख के आगे मन कब तक मनमानी करता… रसोई की तरफ खुदबखुद पांव बढ़ गए. परांठे सेंके और ड्राइंगरूम में ही टीवी के सामने बैठ गई. लाख कोशिशों के बाद भी उस की आवाज से पीछा नहीं छुड़ा पा रही थी. आखिर उस के फोन करने का सबब क्या था? इतने वर्षों बाद उसे मेरी याद कैसे आ गई?

उस की धोखे की कहानी फिर आंखों

के सामने आ गई जैसे कुछ समय पहले की ही बात हो. बचपन में मैं ने अपने मातापिता को

एक सड़क दुर्घटना में खो दिया था. लड़की होने के नाते घर वालों ने मेरी जिम्मेदारी लेने से

इनकार कर दिया. ऐसे समय में मेरी मामी मेरे लिए खड़ी हुईं. उन्होंने मेरी दादी और घर वालों को खूब खरीखोटी सुनाई और मुझे ले कर बनारस आ गईं.

मामामामी का एक बेटा था अविनाश, मेरे रूप में उन्हें एक बेटी मिल गई और मुझे मातापिता के साथ एक भाई. नानी थीं… मां के गुजरने के कुछ समय बाद वे भी चल बसीं.

मैं मामामामी के प्यारदुलार में बड़ी

हुई. मातापिता को तो कभी देखा नहीं था, तो

वही मेरे लिए मेरे मातापिता थे. मैं उन्हें मांबाबा बुलाती.

पढ़ाई के साथसाथ मां की सीख से मैं गृहकार्यों में पारंगत हो गई थी. रंगरूप भी ऐसा था कि कोई देख कर प्रभावित हुए बिना नहीं रहता.

समय बीतता गया… अविनाश भैया इंजीनियरिंग पूरा करने के बाद सिंगापुर चले गए. उन्हें वहीं अपनी एक सहकर्मी से प्यार हो गया. भैया ने फोन पर अपनी प्रेम कहानी के बारे में मांबाबा को बताया और अगले महीने शादी की इच्छा बताई. बाबा ने तो सहर्ष स्वीकृति दे दी, पर मां कुछ दिन नाराज रहीं.

भैया बनारस आ गए और शादीब्याह की तैयारियों में लग गए. मां भी अपने इकलौते बेटे से कब तक नाराज रहतीं. भैया को देख सारी नाराजगी भूल गईं और सभी रस्मोंरिवाजों के साथ धूमधाम से भैया का विवाह संपन्न हुआ. भाभी बहुत खूबसूरत और स्मार्ट थी. दोनों की जोड़ी बहुत प्यारी थी. मैं बहुत खुश थी कि भाभी के रूप में मुझे एक अच्छी सहेली मिल गई. महीनाभर घर में खूब रौनक रही. मां ने भी भाभी को अपनी बहू के रूप में खुले दिल से स्वीकार कर लिया.

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1 महीना कब बीत गया, पता ही नहीं चला… अब भाभी और भैया हम सब को छोड़ सिंगापुर वापस जा रह थे. दोनों की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. उन के जाने के बाद घर में अजीब सी उदासी छा गई थी.

कुछ महीनों के बाद मेरे लिए बाबा के एक सहयोगी के रिश्तेदार के यहां से रिश्ता आया.

लड़का दिल्ली में रहता है, बैंक में उच्च पद पर है, घर में सिर्फ मां है, जो गांव में रहती हैं, दहेज के नाम पर दुलहन सिर्फ एक जोड़े में और विवाह 15 दिनों के अंदर ही होना चाहिए.

ऐसा रिश्ता पा कर मां मेरी बालाएं लिए नहीं थक रही थीं. बाबा भी हर किसी आनेजाने वाले से अपनी खुशियां बांटने में लगे थे. पर एक सवाल सब के मन में था कि विवाह के लिए इतनी जल्दी क्यों?

मां की सहेली की बेटी बेला दीदी दिल्ली

में डाक्टर थी. मां ने दीदी को फोन पर सारी

बात बता कर लड़के के बारे में पूरी जानकारी लेने को कहा.

दीदी ने अपने स्तर से सभी तरह की मालूमात हासिल की और मां को बताया कि लड़के का नाम प्रवीण है. वह देखने में अच्छा है, नौकरी भी बहुत अच्छी है, 2 कमरों का फ्लैट खरीद लिया है और उस में अकेला रहता है. भैयाभाभी की भी सहमति मिल गई कि 15 दिन में शादी हो जाए. वे लोग भी 1-2 दिन के लिए आ जाएंगे, फिर क्या था… मांबाबा विवाह की तैयारी में जोरशोर से लग गए. समय कम होने के कारण रिश्तेदारों की फौज तो जमा नहीं हो पाई थी, हां कुछ आसपास रहने वाले रिश्तेदार जरूर आ गए थे.

विवाह सादगी से होना था यह लड़के की मांग थी. फिर भी मां ने अपने घर

की सभी रस्मों को पूरा किया और मेरा विवाह संपन्न हुआ. सभी रिश्तेदार मुझ पर रश्क कर रहे थे कि इतने कम समय में ऐसा परिवार और इतना होनहार दूल्हा मिल गया.

मुझे दुलहन के रूप में देख मांबाबा के आंसू छलक पड़े थे, फिर भी वे खुद को मेरे सामने कमजोर नहीं दिखा रहे थे. विदाई की घड़ी भी आ गई. मांबाबा का धैर्य अब टूट चुका था. मुझे बांहों में ले कर दोनों फूटफूट कर रोने लगे. किसी तरह भैया और भाभी ने दोनों को संभाला और मेरी विदाई की गई. मैं पूरा रास्ता रोती रही, पर प्रवीण 1-2 बार ही मुझे चुप रहने के लिए बोले. कार में भी अपनी सीट पर तटस्थ बैठे रहे.

उस समय मैं ने कुछ ज्यादा ध्यान नहीं दिया, एक तो अपने मांबाबा से दूर जाने का गम दूसरा अनजान लोगों के साथ रहने का डर. कोई और विचार मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था.

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जैसेतैसे रोतेबिलखते ससुराल पहुंची, वहां कुछ रिश्तेदार और सासूमां मेरे स्वागत में खड़ी थीं. सासूमां का व्यवहार काफी स्नेही लगा, बड़े प्यार से मुझे कमरे में ले गईं. आंसू पोंछ कर मुझे गले लगा कर बोलीं, ‘‘बेटी नहीं है इस घर में, तुम आज से मेरी बेटी हो और अब रोना नहीं… हंसते हुए मेरे धीरगंभीर बेटे को संभालना. चलो मुंह धो लो और बाल ठीक कर लो. कुछ देर में सभी मुंहदिखाई की रस्म के लिए आएंगे.’’

उन का प्यार पा कर मेरा डर गायब हो गया. मैं ने पूरे मन से खुद को वहां की रस्मों के लिए तैयार कर लिया.

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मैं हारी कहां: भाग 5- उस औरत का क्या था प्रवीण के साथ रिश्ता

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

भाई का फोन आया कि अगले माह शायद फैसला मिल जाए.

‘‘मां, मैं अगले महीने क्याक्या करूंगी. ऐग्जाम्स भी सिर पर हैं, डिलिवरी डेट भी अगले महीने और मेरे और प्रवीण के तलाक का फैसला भी अगले महीने,’’ मैं मां की गोद में सिर रख कर रोने लगी.

‘‘गौरी… मेरी बच्ची, ऐसे हिम्मत नहीं हार सकती, तुम इतने महीनों से किसकिस मानसिक तनाव से गुजरते हुए यहां तक पहुंची हो और जब सभी परेशानियों का हल निकलने जा रहा है तो तुम्हारी आंखों में आंसू,’’ मां ने मेरे आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘इन आंसुओं को अपनी हिम्मत बनाओ और आगे बढ़ो बेटी, तुम्हारे साथ हम सब खड़े हैं, मां की बातें और उन के प्यार से मुझे हिम्मत मिली.

मां, बाबा, भाई, भाभी, बेला दीदी और मां सब की कितनी उम्मीदें हैं मुझ से, सभी ने मुझ पर भरोसा किया है कि मैं इस कठिन समय को हरा दूंगी, इतनी आसानी से मैं हार नहीं मान सकती. इन सब के साथ मेरी कोख में पल रहे मेरे बच्चे का भी तो साथ है, कभीकभी महसूस होता है जैसे वह कह रहा है कि मां तुम कभी अपना हौसला न खोना, यह लड़ाई मैं भी लड़ रहा हूं तुम्हार साथ.

आखिर वह दिन भी आ ही गया. मेरा और प्रवीण का रिश्ता अब खत्म हो चुका था. प्रवीण उदास से खड़े कभी मुझे देखते तो कभी मां को, जो मेरा हाथ पकड़ कर खड़ी थीं. मां ने उन की तरफ देखा भी नहीं और मेरा हाथ थामे कोर्ट की सीढि़यां उतरने लगीं, उस दिन के बाद मैं ने कभी प्रवीण को नहीं देखा.

कुछ दिनों बाद ही शालीन का जन्म हुआ. शालीन के आते ही घर की उदासी दूरहो गई. दादी पूरा समय अपने पोते की देखभाल में ही गुजार देतीं. नानानानी भी आ गए थे, तीनों उस की मुसकराहट देख अपने सारे दुख भूल जाते.

मैं निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई में जुट गई. 10 दिन रह गए थे परीक्षा में. बैड पर लेटेलेटे ही पढ़ाई करती क्योंकि शरीर अभी कमजोर था और मेरी दोनों मांओं की सख्त हिदायत थी कि मैं कोई भी काम न करूं.

इसी तरह मां और मांबाबा की देखरेख में मैं ने बीएड कर लिया. टीचर ट्रेंनिग की भी डिगरी ले ली. 3 साल कब गुजर गए, पता ही नहीं चला.

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जल्दी ही मुझे दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर की नौकरी भी मिल गई. धीरेधीरे मेरी गाड़ी पटरी पर आ रही थी. व्यस्तता बढ़ गई थी. ऐसे समय में परिवार का साथ मेरे लिए वरदान से कम नहीं था.

बेला दीदी की भी शादी हो गई और उन्होंने नया घर मेरे घर के पास ही ले लिया. शालीन बेला दीदी से बहुत हिलमिल गया था. दीदी को बेला मां कहता और दीदी भी उस पर अपना सारा स्नेह लुटाती रहती. बेला दीदी के पति रमेश भैया बहुत सुलझे हुए इंसान थे. मेरी जिंदगी में वे मेरे दूसरे भाई बन कर आए थे.

तभी फोन की घंटी मुझे अतीत से वर्तमान में ले आई.

‘‘हैलोहैलो मां,’’ शालीन की आवाज सुन कर मैं ने अपने आंसुओं को पोंछते हुए खुद को संभालने का भरसक प्रयत्न किया.

‘‘हां बेटा सब ठीक है वहां? तुम ठीक तो हो? कुछ खाया कि नहीं?’’

‘‘अरे रुको मेरी प्यारी मां मैं ठीक हूं. यहां घर भी बड़ा है, रसोईया भी है इसलिए खाना भी खा चुका हूं,’’ बोलते हुए वह हंसने लगा.

‘‘अच्छा अब ज्यादा मजाक न बना मेरा, बदमाश, इतना बड़ा अधिकारी बन गया पर मां की बातों का मजाक बनाना नहीं छोड़ा,’’ मैं ने भी झूठा गुस्सा दिखाया.

‘‘मां, मैं चाहे कितना भी बड़ा बन जाऊं, पर दिल से हमेशा आप का छोटा बेटा ही रहूंगा,’’ शालीन की बातों से मैं और इमोशनल हो गई, पर खुद को संयत करते हुए शालीन को प्रवीण के फोन के बारे में बताया.

शालीन ने साफ मना कर दिया कि न ही मैं कभी फोन उठाऊं और न ही उन के बारे में सोचूं.

शालीन ने बेला दीदी और भैया को भी बता दिया कि वे लोग मेरे पास आ जाएं ताकि मैं अतीत की यादों में न चली जाऊं. शालीन को प्रवीण के बारे में सारा सच पता था, खुद मां ने उसे उस के पिता की सारी सचाई बता दी थी.

वह अपने पिता का नाम भी सुनना पसंद नहीं करता और न ही कभी मिलने की इच्छा जाहिर की. मां और मैं ने उस से कई बार पूछा था, अगर वह अपने पिता से मिलना चाहे तो हम नहीं रोकेंगे पर शालीन को प्रवीण का नाम भी सुनना पसंद नहीं था और न ही कभी प्रवीण ने भी शालीन से मिलने की इच्छा दिखाई.

पिछले साल मां की मृत्यु की खबर प्रवीण तक पहुंचा दी गई थी पर प्रवीण ने अपनी मां के अंतिम संस्कार में भी आना जरूरी नहीं समझा और आज इस फोन ने मुझ से मेरा चैन छीन लिया. बेला दीदी आई तो उन्होंने बताया कि मधु उन के ही हौस्पिटल में इलाज के लिए आई है, उसे कैंसर हो गया है. सुन कर मुझे बहुत दुख हुआ. एक पल तो मैं ने भी उन का बुरा सोचा था, पर ऐसी सजा मिले, यह कभी नहीं चाहा था.

पूरी रात इन तमाम दुविधा में गुजरी कि क्या करूं, जाऊं कि न जाऊं. सुबह उठी तो सिर फिर भारीभारी सा लग रहा था, नाश्ते के बाद दवा खा ली और तैयार होने लगी कालेज जाने के लिए निकली पर मेरे कदम न चाहत हुए भी हौस्पिटल की तरफ बढ़ गए.

प्रवीण मधु के बैड की साइड चेयर पर बैठे थे, टूटे, कमजोर व सिर झुकाए, शायद मुझ से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं थी उन के अंदर.

मुझे देख मधु रोने लगी, ‘‘गौरी, हम दोनों को माफ कर दो, तुम से माफी मांगने का भी हम दोनों हक नहीं रखते, फिर भी तुम से हाथ जोड़ माफी मांगती हूं. हम दोनों ने तुम्हें बहुत दुख दिया… मुझे मेरे मरने से पहले मेरे गुनाहों की माफी मिल जाए, तो मेरी तकलीफ कुछ कम हो जाए,’’ रोतेरोते लड़खड़ाती जबान से किसी तरह मधु ने अपनी बात कही. प्रवीण भी सिर झुकाए हाथ जोड़ रहे थे.

इन दोनों की ऐसी अवस्था देख मैं खुश होना चाह रही थी, पर खुश नहीं थी. इन दोनों ने मिल कर मुझे जिंदगी का सब से बड़ा दुख दिया, फिर भी मैं इन के दुख में खुद को दुखी महसूस कर रही थी.

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‘‘मधु, माफ तो मैं ने तुम्हें कब का कर दिया था और प्रवीण तुम्हें भी, तुम दोनों से नफरत करने से ज्यादा मुझे अपनी और अपने परिवार की जिंदगी संवारने में खुद को लगाना ज्यादा सही लगा और मैं ने वही किया. काश, तुम दोनों ने समय से अपने बारे में परिवार को पहले बताया होता तो यों मेरी और दर्शन की जिंदगी में तुम दोनों नासूर न बने होते. मेरे साथ तो मेरे अपनों का साथ और आशीर्वाद था, इसलिए आज मैं यहां खड़ी हूं.’’

‘‘आज मैं और मेरा बेटा जो कुछ भी है, मां के बिना मुमकिन नहीं था, प्रवीण तुम्हें तो मां ने जन्म दिया. पालपोस कर इस लायक बनाया और तुम ने अपनी जननी को ही धोखा दिया. उन के अंतिम संस्कार में भी आना जरूरी नहीं समझा.’’

आज मैं बरसों से दबी हुई सारी भड़ास निकाल देना चाह रही थी पर प्रवीण की सिसकियां सुन कर रुक गई.

‘‘तुम दोनों अब अतीत से बाहर निकलो और अपने इलाज पर ध्यान दो, मेरे मन में अब तुम दोनों के लिए कोई दुरभावना नहीं है, न ही प्यार की और न ही नफरत की, रमेश भैया अच्छे डाक्टर हैं पूरे विश्वास के साथ इलाज कराओ, कुदरत तुम दोनों का भला करे,’’ कहते हुए मैं बाहर निकलने लगी.

तभी पीछे से प्रवीण की आवाज आई,’’ गौरी, मेरा बेटा…’’

‘‘प्रवीण, तुम्हारा कोई बेटा नहीं है, जिसे मेरा बेटा कहा अभी. क्या उस का नाम पता है तुम्हें?’’ मैं ने झट से प्रवीण की बातों को काटते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी एक बेटी है, जो मुझे पता है, बस उस को और अपनी बीमार पत्नी को देखो, आज के बाद मुझे फोन करने या मुझ से मिलने की कोशिश भी नहीं करना, मैं यहां आई थी सिर्फ तुम दोनों को यह एहसास दिलाने कि अपनों का साथ कितना जरूरी होता है. धोखे और झूठ पर घरौंदे नहीं बनते प्रवीण.’’

उस कमरे से निकलते समय लगा मैं अपने अतीत की इन कड़वी यादों से भी निकल गई हूं. मेरा मन साफ हो गया जैसे यादों की कड़वाहट ने मेरे मन से निकल कर मेरे मन को शुद्ध कर दिया. हलकी बारिश की बूंदें अपने चेहरे पर महसूस कर रही थी और ठंडी हवाओं ने मेरे मन को तृप्त कर दिया था.

आसमान की तरफ देखते हुए कुदरत से कहा कि माफ कर दो इन दोनों को, मैं ने भी माफ कर दिया और फिर मैं कालेज की तरफ चल पड़ी.

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अपहरण नहीं हरण : भाग 2- क्या हरिराम के जुल्मों से छूट पाई मुनिया?

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर 

जो मजदूर बस में पहले घुस आए थे, उन्होंने बस की तरकीबन सभी अच्छी सीटों पर कब्जा जमा रखा था. उन्हीं में एक बांका और गठीले बदन का दिखने वाला देवा भी था. आगे से चौथी लाइन में पड़ने वाली बाईं ओर की  2 सीटों में से एक सीट पर खुद जम कर बैठ गया था और दूसरी सीट पर अपना बैग उस ने कुछ इस अंदाज से रख  लिया था कि देखने वाला समझ जाए  कि वह सीट खाली नहीं है.

बस के पास पहुंच कर हरीराम ने जैसेतैसे अटैची, बक्सा और बालटी बस की छत पर लादे जाने वाले सामान के बीच में ठूंस देने के लिए ऊपर चढ़े एक आदमी को पकड़ा दी और मुनिया की पीठ पर धौल जमा कर आगे धकियाते हुए जैसेतैसे बस के अंदर दाखिल हुआ. पीछे से लोगों के धक्के खा कर आगे बढ़ती मुनिया पास से गुजरी और आगे खड़े लोगों के बढ़ने का इंतजार कर रही थी, तभी देवा की आंखें मुनिया की कजरारी आंखों से टकराईं.

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दोनों की नजरों से एक कौंध सी निकल कर एकदूसरे के दिल में समा गई. देवा ने पास रखा बैग उठा कर अपनी जांघों पर रख लिया और मुनिया को इशारे से खाली सीट पर बैठ जाने  को कहा.  मजदूरों से भरी इस भीड़ वाली बस में बगल में बैठी कमसिन मुनिया के साथ लंबे और सुहाने सफर की सोच से देवा ने खुश होना शुरू ही किया था कि पीछे से हरीराम की आवाज आई, ‘‘अपने बैठने की बहुत जल्दी है. पति की चिंता नहीं है कि वह कहां बैठेगा,’’ कहते हुए उस ने मुनिया के सिर पर पीछे से एक धौल जमा दी.

हरीराम शायद उसे एकाध हाथ और भी जड़ता, लेकिन तब तक मुनिया खिड़की की तरफ वाली सीट पर बैठ चुकी थी और उस के बगल में देवा ने बैठ कर हरीराम को घूरना शुरू कर दिया. देवा का बस चलता तो ऐसे बेहूदा आदमी की तो वह गरदन दबा देता. तभी पीछे से किसी ने हरीराम को देख कर आवाज लगाई, ‘‘अरे ओ हरीराम, इधर पीछे आ जाओ, एक सीट खाली है.’’ यह उसी फैक्टरी में काम करने वाले जग्गू दादा की आवाज थी. वे मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के रहने वाले थे और  2 महीने बाद ही उन की रिटायरमैंट थी.

भांग के शौकीन जग्गू दादा की आवाज सुन कर हरीराम ने राहत की सांस ली और उन की बगल की सीट पर जा कर बैठ गया. हरीराम इस बात से भी खुश था कि बीड़ी तो बस के अंदर पी नहीं पाएगा, पर पानी के साथ भांग तो पी जा सकेगी. अच्छी बात यह थी कि सब ठुंसे हुए लोग अपनीअपनी सीटों पर बैठ चुके थे और कोई भी आदमी खड़ा नहीं था. बस जैसे ही स्टार्ट हुई, देवा ने अपने बाएं हाथ की कलाई पर बंधी घड़ी को देखा. शाम के 4 बज चुके थे.

बगल में बैठी मुनिया को उस की कलाई में बंधी काले पट्टे वाली घड़ी बहुत पसंद आई. उस की नजरें अपनेआप ही कलाई से हट कर देवा के चेहरे की तरफ चली गईं. इस बार नजरें मिलीं तो मुनिया सहजता से हंस दी. देवा ने सुन रखा था  कि औरत हंसी तो जानो फंसी. यही सोच कर उस के दिल की धड़कनें तेज हो गईं  मुनिया तो इस बात से इतनी खुश थी कि कम से कम उसे अपने खड़ूस पति की बगल में बैठ कर यह लंबा सफर तो नहीं तय करना पड़ेगा.

तभी देवा को लगा कि मुनिया उस से कुछ कह रही है, लेकिन बस के इंजन का शोर इतना तेज था कि वह क्या कह रही है, देवा सुन नहीं पा रहा था, इसलिए मुनिया के पास खिसक कर, थोड़ा झुकते हुए उस ने अपना कान मुनिया के होंठों से मानो चिपका सा दिया. मुनिया का मन तो हुआ कि इसी समय वह देवा के कानों को अपने होंठों से काट ले, पर लाजशर्म भी कुछ होती है, इसलिए उस ने अपने शब्द दोहराए, ‘‘पता नहीं, यह सीट न मिलती तो हम कहां बैठ कर जाते…’’ ‘अरे, सीट न मिलती तो हम तुम को अपने दिल में बैठा के ले चलते,’ देवा ने यह तो मन में सोचा, पर कहा कुछ यों, ‘‘अरे, हमारे होते सीट क्यों न मिलती तुम को.’’ ‘‘तो तुम को मालूम था कि हम ही यहां आ कर बैठेंगे? और मान लो, हमारे पति यहां बैठने की जिद पकड़ लेते तो…?’’ ‘‘तब की तब देखी जाती, पर यह पक्का जानो कि हम अपने बगल में उसे कभी न बैठने देते.

हमें जो इंसान पसंद नहीं आता है, उसे हम अपने से बहुत दूर रखते हैं,’’ देवा ने अपने सीने पर एक हाथ रखते हुए कहा, तो मुनिया उस के चेहरे पर उभर आए दृढ़ विश्वास से बहुत प्रभावित हुई. उस कैंपस से बाहर निकल कर वह बस सड़क पर एक दिशा में जाने को खड़ी हो गई थी. उस का इंजन स्टार्ट था. बीचबीच में ड्राइवर हौर्न भी बजा देता  था और कंडक्टर बस के अगले गेट  पर लटकता हुआ चिल्लाता, ‘‘भोपाल, भोपाल…’’ आखिरकार बस अपनी दिशा की तरफ चल दी.

मुनिया ने गरदन घुमा कर पीछे की तरफ देखा, तो वह निश्चिंत हो गई. जग्गू दादा के साथ हरीराम आराम से बैठा बतिया रहा था. हां, बीचबीच में उस की खांसी उठनी शुरू हो जाती थी. बस ने अब थोड़ी रफ्तार पकड़ ली थी. स्टेयरिंग काटते हुए जब बस झटका खाती और मुनिया का शरीर जब देवा से टकराता तो उसे वह छुअन अच्छी लगती. फिर तो देवा ने अपनी बांहें उस की बांहों से चिपका दीं और पूछा, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ मुनिया ने हंसते हुए कहा, ‘‘पहले तुम अपना नाम बताओ, तब हम अपना नाम बताएंगे.’’ हमारा तो सीधासादा नाम है, ‘‘देवा’’. ‘‘तो हमारा कौन सा घुमावदार नाम है. वह भी बिलकुल सीधा है मुनिया…’’ होंठों को गोल कर के कजरारी आंखें नचाते हुए जब मुनिया ने अपना नाम बताया, तो देवा तो उस की इस अदा पर फिदा हो गया.

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आज 2 साल बाद मुनिया को अपना मन बहुत हलका लग रहा था. खुद को इतना खुश होते देख उसे एक अरसा बीत गया था. वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे वह देवा से इतनी जल्दी घुलमिल कर बातें किए जा रही है. इतने अपनेपन से तो मुनिया से कभी हरीराम ने भी बातें नहीं की थीं. सुहागरात वाले दिन भी नहीं.

आखिर हरीराम ने उसे कौन सा सुख दिया है? जिस्मानी सुख भी तो वह ढंग से नहीं दे पाया. पता नहीं उस के बापू ने क्या देख कर उसे जबरदस्ती हरीराम के पल्ले बांध दिया. मुनिया को इस समय अपनी मां पर भी गुस्सा आया. वह पीछे न पड़ती तो अभी बापू शादी न करता. उस की शादी तो देवा जैसे किसी बांके जवान के साथ होनी चाहिए थी.

कितने प्यार से बातें कर रहा है… और एक हरीराम है… लगता है, अभी खा जाएगा. पता नहीं, कितनी खुरदरी जबान पाई है हरीराम ने. मीठा तो बोलना ही नहीं जानता. बातबात पर हाथ अलग उठा देता है. ऐसे ब्याही से तो बिन ब्याही रहना ही अच्छा था. मुनिया को बस की खिड़की से बाहर कहीं खोया देख कर देवा ने मुनिया के घुटने पर थपकी देते हुए पूछा, ‘‘कहां खो गई थी? क्या सोच रही थी?’’ चेहरे से गंभीरता हटा कर मुनिया ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं. सोचने लगी थी कि तुम्हारी पत्नी तो बहुत सुखी रहती होगी तुम्हारा प्यार पा कर.

वह अपने को धन्य समझती होगी.’’ ‘‘अरे मुनिया, क्या मैं तुम्हें शादीशुदा लगता हूं? मैं शादी लायक जरूर हो गया हूं, पर अभी तक इस बारे में कुछ सोचा नहीं. मैं अभी तक कुंआरा हूं.’’ ‘‘तो हरियाणा में अकेले ही रहते हो? काम क्या करते हो? और मध्य प्रदेश में कहां के रहने वाले हो?’’ ‘‘बाप रे, एकसाथ इतने सवाल. इतने सवाल तो फिटर के रूप में मेरी नौकरी लगने पर भी नहीं पूछे गए थे,’’ कहते हुए देवा खिलखिलाया और इस अदा पर मुनिया उस की ओर ताकती रही.

उस का मन हुआ कि वह अपनी बांहें फैला कर देवा के सीने से लिपट जाए. तभी देवा ने बताना शुरू किया, ‘‘मैं देवास के पास का हूं. मेरे पिता किसान हैं और 2 बहनें भी हैं, जो शादीशुदा हैं और अपनीअपनी ससुराल में रहती हैं.  ‘‘मुझे गांव में बुढ़ापे की औलाद कहा जाता है, क्योंकि मैं अपनी दूसरी बहन के पैदा होने के 10 साल बाद पैदा हुआ था. ‘‘मैं जब बड़ा हुआ, तो इंटर के बाद मेरे बड़े पापा यानी ताऊजी मुझे अपने साथ देवास ले आए.

वहीं से मैं ने पौलिटैक्निक कालेज से मेकैनिकल का डिप्लोमा किया और फिर हरियाणा में चारा काटने वाली मशीन के पार्ट बनाने वाली कंपनी में फिटर का काम मिल गया. अभी तकरीबन 2 साल से यहां हूं. ‘‘अब कुछ तुम अपने बारे में बताओ. देखो, बातोंबातों में समय अच्छा कट जाता है. तुम रास्तेभर मुझ से ऐसे ही बतियाती रहना, समय आराम से कट जाएगा.

‘‘और हां, यह गठरी कब तक यों पकड़े रहोगी, मुझे दो. मैं इसे ऊपर रख देता हूं,’’ कह कर देवा चलती हुई बस में खड़ा हुआ और गठरी अपने बैग के बगल में ठूंस दी. खड़े होते समय उस ने हरीराम की सीट की तरफ भी नजर डाली थी. वह शायद सो गया था, क्योंकि बस के साथ उस का और उस के साथी का सिर भी इधरउधर झूल रहा था. ‘इंसान जब शरीर से कमजोर होता है, तो किसी भी सवारी से वह सफर करे, जल्दी ही ऊंघने लगता है,’ हरीराम को देख कर देवा को अपने ताऊजी यानी बड़े पापा के कहे शब्द याद आ गए थे.

जानें आगे क्या हुआ कहानी के अगले भाग में…

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