Winter Special: स्नैक्स में बनाएं हलके मीठे शकरपारे

स्नैक्स में अगर आप कोई आसान और कोई टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो हलके मीठे शकरपारे आपके लिए परफेक्ट रेसिपी है.

सामग्री

–  1/2 कप आटा

–  1/2 कप मैदा

–  2 छोटे चम्मच सूजी

–  1/2 कप दूध –  1/6 कप घी

–  1/2 कप चीनी

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– 1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

–  1/8 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा

–  2 छोटे चम्मच तिल

–  थोड़ा सा रिफाइंड औयल शकरपारे सेंकने के लिए.

विधि

दूध में चीनी और घी डाल कर उबालें. मैदा, सूजी और आटा छान लें. इस में दूध वाला मिश्रण, बेकिंग सोडा, इलायची पाउडर और तिल डाल कर आटा गूंध लें. 15 मिनट ढक कर रखें फिर छोटीछोटी लोइयां बना कर मोटा बेलें और मनचाहे आकार में काट लें. गरम तेल में मीडियम आंच पर सुनहरा होने तक सेंक लें. ये भी काफी दिनों तक खराब नहीं होते.ट

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सेहत की निशानी नहीं मोटापा

भारतीयों में पिछले 12-15 वर्षों के दौरान मोटापा बड़ी तेजी से बढ़ा है. मोटापे की 2 श्रेणियां मानी जाती हैं. पहली है ओवरवेट यानी जरूरत से ज्यादा वजन. इस से दिल और सांस से जुड़ी कई बीमारियां हो जाती हैं. दूसरी श्रेणी है ओबेसिटी, जो ढेर सारी बीमारियों का आधार होने के अलावा खुद में एक बीमारी है. इसे डाक्टर की मदद के बिना ठीक नहीं किया जा सकता है.

मैडिकल जर्नल ‘लांसेट’ में प्रकाशित सर्वे के अनुसार, भारत में करीब 20 प्रतिशत लोग मोटापे से जुड़ी किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त हैं. खाने की खराब गुणवत्ता और शारीरिक श्रम का अभाव मोटापे की 2 बड़ी वजहें मानी जाती हैं. कार से सफर करना, एयरकंडीशंड में रहना, होटलों में खानापीना व लेटनाइट पार्टियों के मजे लेना आदि आज खातेपीते लोगों की जीवनशैली बन चुकी है.

ऐसी आदतों और जीवनशैली को ले कर हमें समय रहते चेत जाना जरूरी है क्योंकि कड़ी मेहनत की कमाई अगर हमें मोटापे से जुड़ी बीमारियों पर लुटानी पड़े तो यह अफसोसजनक है.

एक अन्य अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2030 तक मोटापा नौन कम्यूनिकेबल डिजीज का एक बड़ा कारण बन जाएगा और दुनिया में 70 प्रतिशत मौतें मोटापे से जुड़ी बीमारियों की वजह से होंगी. इस सर्वे के अनुसार, वर्ष 2030 तक मोटापे से जुड़ी बीमारियों से मरने वाले लोगों में भारत जैसे विकासशील देश के लोगों की संख्या काफी अधिक होगी. मोटापा महामारी बन जाए, इस से पहले इस की रोक पर हमें गंभीर प्रयास शुरू कर देने चाहिए.

यह सवाल, कि हम ओवरवेट या मोटे हैं या नहीं, इस को डा. पारुल आर सेठ की रिपोर्ट से बेहतर ढंग से जाना जा सकता है.

कैसे जानें अपना बीएमआई :

अपनी लंबाई और वजन के जरिए बौडी मास इंडैक्स यानी बीएमआई को कैलकुलेट किया जा सकता है. बीएमआई को जानने के लिए अपनी लंबाई को (मीटर में) इसी नंबर से गुणा कर दें. फिर जो नंबर मिले उसे अपने वजन (किलोग्राम) से भाग कर दें. इस से जो नंबर आएगा वह आप की बौडी का बीएमआई होगा.

क्या हो बीएमआई :

अगर आप का बीएमआई 18.50 से कम है तो आप अंडरवेट हैं. बीएमआई 30 से ज्यादा होने का मतलब है कि आप मोटे हैं और आप को अपने बढ़ते वजन पर नियंत्रण करने की जरूरत है.

कमर कितनी हो: शरीर के मध्य भाग पर जमे फैट का अंदाजा कमर के मापने से हो जाएगा. इस के लिए टेप को अपने लोअर रिब्स और हिप्स के बीच के हिस्से में रखते हुए गहरी सांस छोड़ते हुए घेरा नापें.

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पुरुषों में यह नाप 94 सैंटीमीटर और महिलाओं में 88 सैंटीमीटर से ज्यादा होने का मतलब है कि आप कार्डियोवैस्कुलर, स्ट्रोक या डायबिटीज जैसी बीमारियों के खतरे पर खड़े हैं. पुरुषों में यह नाप 102 सैंटीमीटर और महिलाओं में 88 सैंटीमीटर से ऊपर जाने की स्थिति में मोटापे से जुड़ी बहुत सी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

वेस्ट-हिप रेशियो :

वेस्ट यानी कमर, हिप्स यानी कूल्हे पर जमे फैट का अंदाजा लगाने के लिए उन का रेशियो निकाला जाता है. नाभि के पास से कमर की नाप लें और फिर कूल्हे के निचले हिस्से को नापें. कमर की नाप को कूल्हे की नाप से भाग कर दें. पुरुषों में यह रेशियो एक से ज्यादा और महिलाओं में 0.8 से ज्यादा आने का मतलब है कि आप हैल्थ प्रौब्लम के रिस्क जोन में हैं. ऐसे में आप को अपनी सेहत को ले कर सावधान हो जाने की सख्त जरूरत है.

वेट ज्यादा है तो :

बीएमआई और वेस्ट की नाप ज्यादा होने का साफसाफ मतलब है कि आप ओवरवेट हैं और अपने वजन को नियंत्रण में रखने के लिए अब आप को हैल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की सख्त जरूरत है. इस समय अगर आप अब भी रोजाना ऐक्सरसाइज व नियंत्रित खानपान पर ध्यान नहीं देंगे तो आप का शरीर और भी फैल जाएगा.

बढ़ते वजन पर नियंत्रण : सब से पहले हमें इस मूल धारणा को दिमाग से निकालना होगा कि बढ़ता वजन ‘सेहत बन रही है’ की निशानी है. दरअसल, बढ़ता वजन सेहत की नहीं, मोटापे की निशानी है. वजन पर नियंत्रण करें.

मोटापे से बचने के उपाय

–      प्रतिदिन ऐक्सरसाइज अवश्य करें. जिस में एरोबिक व कार्डियो ऐक्सरसाइज भी हो सकती हैं.

–      भोजन एकसाथ ज्यादा न करें. इकट्ठा बहुत सारा भोजन मोटापा लाता है. दिनभर में 6-7 बार थोड़ाथोड़ा कर भोजन लें.

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–      हमेशा सुबह जल्दी सो कर उठें. सो कर उठने के बाद एकदम से काम में न लग जाएं. कम से कम 5 मिनट तक सीधा हो कर हलकेहलके कदम से कमरे के भीतर ही चलफिर कर शरीर का रक्तसंचार ठीक कर लें. फिर काम में लगें.

–      खाने में फल, जूस, दालें और कच्ची हरी सब्जियों का सेवन अधिक करें.

–      अपना आकारप्रकार देख कर और यदि ज्यादा असुविधा न हो तो किसी डाक्टर से परामर्श ले कर वजन व रक्त की मात्रा के आधार पर भोजन का निर्धारण करें.

–      तेलयुक्त चीजों का सेवन कम से कम करें.

–      डिनर जल्दी लिया करें.

–      लंच व डिनर हलका लें किंतु ब्रेकफास्ट भारी लिया करें.

Winter Special: Moisturized स्किन है जरूरी

चाहे सर्दी हो गर्मी, हैल्दी और मॉइस्चराज्ड स्किन बहुत जरूरी है, हमें अक्सर कहा जाता है कि स्किन पर मॉइस्चराइजर जरूर लगाएं. स्किन की चमक बढ़ाने के लिए यह बहुत जरूरी है. ग्लोइंग और निखरी स्किन हम सभी की चाहत है. खासतौर पर गर्ल्स चाहती हैं कि उनकी स्किन हर समय सॉफ्ट बनी रहे. ताकि वे अपनी मनपसंद शॉर्ट्स पहनें और खूबसूरत दिखें. लेकिन स्मूद और ग्लोइंग स्किन के लिए जरूरी होता है कि आप अपनी स्किन को मॉइस्चराइज करें. आइए, जानते हैं कि मॉइस्चराइजर आपकी स्किन पर कैसे काम करता है.

1. ड्राईनेस रोकता है

अब मौसम बदलने लगा है. खासतौर पर ड्राईनेस की दिक्कत विंटर में होती है. लेकिन हम लोग अब ज्यादातर वक्त एसी में रहते हैं. ऐसे में हमारी स्किन को मॉइस्चराइजर की जरूरत होती है. इससे हमारी स्किन सेल्स में नमी बनी रहती है. हर मौसम में अपनी स्किन को तैयार रखें ताकि आपकी स्किन खिलीखिली और ग्लोइंग रहे.

2. उम्र का असर कम करता है

शरीर को मॉइस्चराइज्ड रखने से बढ़ती उम्र का असर जल्दी से स्किन पर नजर नहीं आता. स्किन को जरूरी पोषण मिलने से फाइन लाइन्स और रिंकल्स की समस्या नहीं होती है. इससे आप हमेशा युवा नजर आती हैं. आपकी स्किन का खास खयाल रखा जाये, तो आप दावे के साथ 10 साल जवान लग सकते हैं, अपने लिए सही मॉइस्चराइजर चुनें.

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3. ऐक्ने से रोकथाम

ऐक्ने की समस्या आमतौर पर ऑइली स्किन वालों को होती है. ऐसे में मॉइस्चर लगाने की सलाह देना आपको अजीब लग सकता है. लेकिन यह सच है कि ऑइली स्किन को क्लीन करके समय-समय पर मॉइस्चराइज किया जाए तो ऐक्ने की समस्या को दूर किया जा सकता है. चेहरे पर मसाज करने से स्किन पोर खुलते हैं और स्किन स्वस्थ बनती है.

4. लाइट वेट मॉइस्चराइजर

एक लाइट वेट मॉइस्चराइजर आपके लिए किसी जादू से कम नहीं, अपने लिए सही प्रोडक्ट चुनें, ताकि आपकी स्किन को सही देखभाल मिल सके और आपकी स्किन का मॉइस्चर बना रहे.

5. सन प्रोटेक्शन

धूप के कारण होने वाली टैनिंग भी बहुत जल्दी स्किन पर असर नहीं डाल पाती अगर आपकी स्किन में नमी और पूरा पोषण होगा. इसलिए सन प्रोटेक्शन में भी मॉइस्चराइजर मददगार है. इसलिए अपनी स्किन की जरूरत के हिसाब से सही एसपीएफ वाला मॉइस्चराइजर और मॉइस्चराइजिंग क्रीम आपको ठंड के मौसम में भी अप्लाई करनी चाहिए.

6. रूखी स्किन

मॉइस्चराइजर का इस्तेमाल न करने की वजह से आपको एक और स्किन की समस्या हो सकती है. अगर महिलाएं नियमित रूप से मॉइस्चराइजर नहीं करती हैं तो उससे उनकी स्किन रूखी हो जाती है, जो महिलाएं नियमित रूप से मॉइस्चराइजर लगाती हैं, उनकी स्किन स्मूथ और सॉफ्ट रहती है.

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7. डिहाइड्रेटेड स्किन

अगर आप अपने चेहरे पर अच्छी तरह मॉइस्चराइजर नहीं लगते हैं तो ऐसे में आपकी स्किन डिहाइड्रेटेड भी हो सकती है. इससे आपकी स्किन पर अन्य दिक्कतें आ सकती हैं जो आपकी स्किन को काफी हद तक नुकसान पहुंचा सकती हैं. फ्रूटामिन लोशन, फ्रूटामिन क्रीम और रोज वॉटर आपको आपकी स्किन हाइड्रेट करने में मदद कर सकते हैं.

बच्चों पर बुरा असर डालता है तलाक

‘परफैक्शनिस्ट’ अभिनेता आमिर खान और किरण राव का 15 साल बाद तलाक लेना शौकिंग है क्योंकि हर इंटरव्यू में आमिर खान हमेशा किरण राव की तारीफ करते थे. हालांकि दोनों ने आपसी सहमति से डिवोर्स लिया है, जिस में आमिर खान और किरण राव एक पेरैंट्स की तरह ही आजाद का पालनपोषण करेंगे, लेकिन मातापिता के अलग होने पर सब से अधिक प्रभाव बच्चों पर होता है क्योंकि उन्हें कभी भी मातापिता का मतभेद और डिवोर्स पसंद नहीं होता और फिर बड़े हो कर वे किसी रिश्ते में जाना पसंद नहीं करते.

आमिर की पहली पत्नी रीना दत्त से डिवोर्स लेने के बाद भी कई साल जुनैद डिप्रैशन का शिकार रहा. उस का मन पढ़ाई में नहीं लगता था. कक्षा में पीछे बैठ कर सोता रहता था. बाद में टीचर को पता चला कि आमिर खान और रीना में डिवोर्स हुआ है. बहुत मुश्किल से रीना ने अपने बच्चे जुनैद और ईरा को संभाला है. वैसी हालत एक बार फिर किरण को 10 साल के आजाद को संभालने में होगी. उन के डिवोर्स की खबर के बाद ‘दंगल’ गर्ल फातिमा सना शेख की तसवीरें सोशल मीडिया पर ट्रोल हुई हैं. हालांकि आमिर ने डिवोर्स की वजह नहीं बताई है, पर समय के साथ सब पता चल जाएगा.

मुश्किल घड़ी

मिस्टर परफैक्शनिस्ट आमिर खान का फिल्मी कैरियर बहुत सफल रहा, लेकिन उन का निजी जीवन नहीं क्योंकि पहले की दोनों पत्नियों ने कई सालों तक साथ रहने के बाद डिवोर्स दिया, लेकिन आमिर खान दोनों पत्नियों से डिवोर्स के बाद कोपेरैंट रह कर बच्चों की परवरिश करने की बात कह चुके हैं. पेरैंट्स और कोपेरैंट में बहुत अंतर होता है, जिसे हर मातापिता को मानना आवश्यक है.

एक इंटरव्यू के दौरान आमिर कह चुके है कि जब मेरी और रीना का डिवोर्स हुआ और मीडिया में बात फैली, तब उस का फोन आया कि वह मुझ से मिलना चाहती है और मुझे डिवोर्स से रोकना चाहती है. मैं उस समय किसी से मिलना भी नहीं चाहता था, लेकिन वह आई और उसे न छोड़ने की सलाह दी थी. मुझे उस दिन लगा था कि कहीं न कहीं उस के दिल में मेरे लिए जगह है, जिस से वह मेरी मुश्किल घड़ी में मुझ से मिलने आई.

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मानसिक और शारीरिक विकास पर असर

इस बारे में मुंबई की मनोवैज्ञानिक राशिदा कपाडि़या कहती हैं कि अभिनेता आमिर खान एक अच्छे कलाकार के साथसाथ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं. उन की अधिकतर फिल्मों के सफल होने में उन का खुद हर फिल्म को बनाने में सक्रिय होना है. उन्हें 2003 में पद्मश्री और वर्ष 2010 में पद्मभूषण अवार्ड भी मिल चुका है. उन की अच्छी इमेज है और उन्हें लोग फौलो करते हैं. ऐसे में इस तरह की छवि ठीक नहीं. कोपेरैंट का अर्थ साथ रहना नहीं, बल्कि कभीकभी बच्चे से मिलना होता है. इस से बच्चा बहुत कन्फ्यूजन में रहता है कि वह किसे अपनाए, किस की बात सुने, किस की नहीं. मातापिता के अलग होने में बच्चे ही सब से अधिक प्रभावित होते हैं. मातापिता की मनमानी से बच्चे खुद को उपेक्षित महसूस करने लगते हैं. देखा जाय तो बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है. कुछ प्रभाव निम्न हैं, जिन से बच्चे को निकलना आसान नहीं होता:

– बच्चों को मातापिता दोनों का प्यार चाहिए, पिता का सहयोग और मां की ममता बच्चे दोनों  चाहते हैं.

– दोनों के साथ रहने पर बच्चों को एक स्ट्रैंथ मिलती है, उन्हें समझ में आता है कि परिवार उन की अच्छी परवरिश के लिए कमाई कर  उन्हें एक अच्छा इंसान बनाना चाहता है.

– मातापिता के अलग होने पर सपोर्ट की दीवार एकदम गिर जाती है. बच्चे बहुत अकेला महसूस करते हैं क्योंकि जब पिता होते हैं. तो मां नहीं और जब मां होती है, तो पिता नहीं क्योंकि मातापिता एकदूसरे के साथ सामंजस्य कर के ही एक अच्छी परिवेश देते हैं.

– मां का प्यार पिता नहीं दे सकता और पिता की स्ट्रैंथ मां नहीं दे सकती. बच्चों का मानसिक संतुलन बिगड़ता है. कई बार वे मातापिता के अलग होने का जिम्मेदार खुद को मानने लगते हैं.

– बच्चे बड़े हो कर परिवार, रिश्तों और प्यार में विश्वास करना भूल जाते हैं.

– डिवोर्स हो कर भी साथ में रहना, बहुत ही अलग बात है. यह औनलाइन मीटिंग की तरह है, बात में साथ हूं, लेकिन शारीरिक रूप से दूर हूं,

औफिस में बैठ कर काम करना और औनलाइन काम करने में बहुत बड़ा अंतर होता है, बौंडिंग अलग तरह की होती है, मातापिता बनने के लिए फिजिकल बौंडिंग की जरूरत होती है.

– मानसिक के अलावा शारीरिक विकास पर भी अधिक प्रभाव होता है क्योंकि बच्चे स्ट्रैस में होते हैं. खानेपीने की इच्छा नहीं होती. शरीर कमजोर होने पर वे बीमार पढ़ने लगते हैं.

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– इन हालात से खुद को दूर रखने के लिए वे खुद, ड्रग और नशे का शिकार हो जाते हैं, गलत आदतें पाल लेते हैं और बुरी संगत में रहने लगते हैं.

– किसी के कुछ कहने पर बच्चे चिड़चिड़ेपन के शिकार हो कर विद्रोही हो जाते हैं. उन की बातचीत का तरीका बहुत गलत हो जाता है.

– इस के अलावा बच्चे कन्फ्यूज हो जाते हैं क्योंकि अलग होने के बाद अगर आमिर खान की कोई गर्लफ्रैंड अगर साथ में आई या किरण राव के साथ कोई आता है, तो बच्चे को नया रिलेशन जोड़ना पड़ता है.

– मां के साथ आए व्यक्ति को वह दूसरा पिता या स्टैप फादर कह कर संबोधन करेगा और पिता के साथ आई दूसरी महिला को वह स्टैप मदर या डैडी की गर्लफ्रैंड कहेगा और वह बहुत मुश्किल होता है. बच्चा अगर टीनऐजर है, तो वह नए व्यक्ति को अपने परिवार का सदस्य नहीं मान सकता क्योंकि उसे ये सब थोपा जाने वाला रिश्ता लगने लगता है.     -सोमा घोष –

 

किचन में न दें कीटाणुओं को दावत, इन बातों का रखें ध्यान

किचन घर की सब से महत्त्वपूर्ण जगह होती है. यहीं पूरे घर के सदस्यों के लिए पोषक भोजन तैयार होता है. मगर यदि किचन में कीटाणुओं को दूर रखने का पर्याप्त इंतजाम न हो तो भोजन के संक्रमित होने का खतरा भी सब से ज्यादा यहीं होता है. इस का मतलब यह नहीं कि आप बारबार किचन के दरवाजे, दराजों, स्लैब आदि पर पोंछा लगाती रहें. कुछ आवश्यक बातों का खयाल रख कर आप इस खतरे को दूर रख सकती हैं. पहले ध्यान दीजिए कि कीटाणुओं के पनपने की वजह क्या हो सकती है.

रसोई का कपड़ा

रसोई के कपड़ा कीटाणुओं के पनपने की एक मुख्य वजह बन सकते हैं. इन में नमी रहती है. रसोई का कपड़ा रोज इस्तेमाल के बाद धो कर रखें. खाना बनाने के बाद स्लैब आदि पोंछने के लिए लाइजोल किचन क्लीनर स्प्रे कर कपड़े से साफ करें. कुकिंग टौप व स्लैब इत्यादि साफ करने वाला कपड़ा और हाथ पोंछने वाला कपड़ा अलगअलग होना चाहिए ताकि कीटाणुओं को फैलने से रोका जा सके.

काटने की जगह

कच्ची फलसब्जियां, सलाद आदि काटने की जगह साफ करती रहें. खासकर यदि उपयोग करने के बाद इस जगह को बगैर धोए हुए छोड़ दिया जाए तो कीटाणुओं को दावत मिल जाती है. इसी तरह चाकू को काम में लाने के बाद अच्छी तरह साफ करना चाहिए. कटिंग बोर्ड को भी हर बार इस्तेमाल के बाद धो कर रखें.

कुंडी, हत्था नल, फ्रिज की सतह, प्रैशर कुकर का हत्था, दरवाजे की कुंडी, दराज का हत्था, डब्बों के ढक्कन आदि को भी समयसमय पर कीटाणुमुक्त करते रहना चाहिए वरना इन के जरीए कीटाणु हमारे हाथ में आएंगे और फिर खाने को दूषित करेंगे.

कचरे का डब्बा

कचरे का डब्बा हमेशा कीटाणुओं के आकर्षण का केंद्र रहता है. फलसब्जियों को छीलनेकाटने के बाद बची फालतू सामग्री के साथ अकसर हम सड़ी या बची खाने की चीजें भी कूड़ेदान में फेंक देते हैं. इस से कीटाणुओं को वहां पनपने का पूरा मौका मिलता है. इसलिए कोशिश करें कि ढक्कन वाले कचरे का डब्बा ही उपयोग में लाएं और बचे हुए खाद्यपदार्थों को कूड़ेदान में फेंकने के बजाय अलगअलग पैकेट में बांध कर फिर कूड़ेदान में फेंकें. कूड़ेदान में डब्बे और आसपास की जगह को बीचबीच में लाइजोल किचन क्लीनर या ऐसे ही किसी अन्य कीटाणुनाशक से धोती रहें.

हाथों के जरिए

कीटाणु हाथों के जरीए भी आप के भोजन में जा सकते हैं. इसलिए खाना बनाने की तैयारी से पहले, खाना खाने से पहले और खाना परोसते समय अपने हाथों को साबुन से साफ जरूर करें.

यदि स्लैब पर खाने के कण छूटे हुए हैं तो वे चींटियों और कौकरोचों को दावत देंगे. इसलिए खाना बनाने के बाद स्लैब और चूल्हे को लाइजोल किचन क्लीनर से अच्छी तरह साफ करना न भूलें. खाने को ढक कर रखें. पैन और कड़ाही पर ढक्कन जरूर रखें ताकि उन पर मक्खियों, कौकरोच या कीटाणुओं का हमला न हो और वे दूषित होने से बचे रह सकें.

कीटाणु हमारे शरीर के लिए काफी खतरनाक हो सकते हैं. इन के कारण सामान्य त्वचा रोग होने से ले कर जानलेवा बीमारियां तक हो सकती हैं. कीटाणुओं के कारण फैलने वाली प्रमुख बीमारियां हैं:

निमोनिया

निमोनिया फेफड़ों की सूजन से संबंधित एक खतरनाक बीमारी है. इस के प्रमुख लक्षण हैं- सीने में तेज दर्द के साथ बुखार आना, सांस लेने में कठिनाईर् होना आदि. ये रोग सीधे व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को प्रभावित करते हैं.

ट्यूबरकुलोसिस

ट्यूबरकुलोसिस यानी क्षय रोग भी कीटाणुओं के कारण फैलता है. यह प्रमुख रूप से फेफड़ों को नष्ट करता है. इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति से यह रोग दूसरे व्यक्तियों में हवा के जरीए आसानी से हो सकता है, क्योंकि उस के थूकखांसी में इस रोग के कीटाणु होते हैं. बुखार, पसीना आना, वजन कम होना और बारबार कफ वाली खांसी होना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं.

हैजा

यह कीटाणुओं से फैलन वाली एक संक्रामक बीमारी है. इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं- लगातार उल्टियां आना, पानी जैसे दस्त होना, मांसपेशियों में ऐंठन. यदि दस्त बहुत ज्यादा होने लगें तो व्यक्ति के शरीर में डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है जिस से जिंदगी खतरे में पड़ सकती है. इस बीमारी के कीटाणु खासतौर पर सड़ीगली सब्जियों और फलों, गंदे भोजन और दूषित पानी में पाए जाते हैं. मक्खियां इस बीमारी की प्रमुख वाहक होती हैं जो गंदी चीजों पर बैठती हैं और फिर कीटाणुओं को खाने में मिला देती हैं.

टिटनैस

टिटनैस भी कीटाणुओं की वजह से फैलता है. धूलमिट्टी, लार और पशुओं के मल में पाए जाने वाले टिटनैस के कीटाणु शरीर की कटीफटी त्वचा के जरीए शरीर में प्रवेश करते हैं.

टाइफाइड

टाइफाइड को आंतों का बुखार भी कहते हैं. टाइफाइड पैदा करने वाले कीटाणु मनुष्य की आंतों में रह कर वृद्धि करते हैं और फिर वहां से खून में पहुंच जाते हैं. कीटाणु अकसर दूषित भोजन और पानी से शरीर में पहुंचते हैं. इस के कारण पेट दर्द और कब्ज की शिकायत, कमजोरी और तेज बुखार हो सकता है.

बंद किताब : रत्ना के लिए क्या करना चाहता था अभिषेक

लेखक- रामदेव लाल श्रीवास्तव

‘‘तुम…’’

‘‘मुझे अभिषेक कहते हैं.’’

‘‘कैसे आए?’’

‘‘मुझे एक बीमारी है.’’

‘‘कैसी बीमारी?’’

‘‘पहले भीतर आने को तो कहो.’’

‘‘आओ, अब बताओ कैसी बीमारी?’’

‘‘किसी को मुसीबत में देख कर मैं अपनेआप को रोक नहीं पाता.’’

‘‘मैं तो किसी मुसीबत में नहीं हूं.’’

‘‘क्या तुम्हारे पति बीमार नहीं हैं?’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘मैं अस्पताल में बतौर कंपाउंडर काम करता हूं.’’

‘‘मैं ने तो उन्हें प्राइवेट नर्सिंग होम में दिखाया था.’’

‘‘वह बात भी मैं जानता हूं.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘तुम ने सर्जन राजेश से अपने पति को दिखाया था न?’’

‘‘हां.’’

‘‘उन्होंने तुम्हारी मदद करने के लिए मुझे फोन किया था.’’

‘‘तुम्हें क्यों?’’

‘‘उन्हें मेरी काबिलीयत और ईमानदारी पर भरोसा है. वे हर केस में मुझे ही बुलाते हैं.’’

‘‘खैर, तुम असली बात पर आओ.’’

‘‘मैं यह कहने आया था कि यही मौका है, जब तुम अपने पति से छुटकारा पा सकती हो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘बनो मत. मैं ने जोकुछ कहा है, वह तुम्हारे ही मन की बात है. तुम्हारी उम्र इस समय 30 साल से ज्यादा नहीं है, जबकि तुम्हारे पति 60 से ऊपर के हैं. औरत को सिर्फ दौलत ही नहीं चाहिए, उस की कुछ जिस्मानी जरूरतें भी होती हैं, जो तुम्हारे बूढ़े प्रोफैसर कभी पूरी नहीं कर सके.

‘‘10 साल पहले किन हालात में तुम्हारी शादी हुई थी, वह भी मैं जानता हूं. उस समय तुम 20 साल की थीं और प्रोफैसर साहब 50 के थे. शादी से ले कर आज तक मैं ने तुम्हारी आंखों में खुशी नहीं देखी है. तुम्हारी हर मुसकराहट में मजबूरी होती है.’’

‘‘वह तो अपनाअपना नसीब है.’’

‘‘देखो, नसीब, किस्मत, भाग्य का कोई मतलब नहीं होता. 2 विश्व युद्ध हुए, जिन में करोड़ों आदमी मार दिए गए. इस देश ने 4 युद्ध झेले हैं. उन में भी लाखों लोग मारे गए. बंगलादेश की आजादी की लड़ाई में 20 लाख बेगुनाह लोगों की हत्याएं हुईं. क्या यह मान लिया जाए कि सब की किस्मत

खराब थी?

‘‘उन में से हजारों तो भगवान पर भरोसा करने वाले भी होंगे, लेकिन कोई भगवान या खुदा उन्हें बचाने नहीं आया. इसलिए इन बातों को भूल जाओ. ये बातें सिर्फ कहने और सुनने में अच्छी लगती हैं. मैं सिर्फ 25 हजार रुपए लूंगा और बड़ी सफाई से तुम्हारे बूढ़े पति को रास्ते से हटा दूंगा.’’

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अभिषेक की बातें सुन कर रत्ना चीख पड़ी, ‘‘चले जाओ यहां से. दोबारा अपना मुंह मत दिखाना. तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मैं इतनी नीचता पर उतर आऊंगी?’’

‘‘अभी जाता हूं, लेकिन 2 दिन के बाद फिर आऊंगा. शायद तब तक मेरी बात तुम्हारी समझ में आ जाए,’’ इतना कह कर अभिषेक लौट गया.

रत्ना अपने बैडरूम में जा कर फफकफफक कर रोने लगी. अभिषेक ने जोकुछ कहा था, वह बिलकुल सही था.

रत्ना को ताज्जुब हो रहा था कि वह उस के बारे में इतनी सारी बातें कैसे जानता था. हो सकता है कि उस का कोई दोस्त रत्ना के कालेज में पढ़ता रहा हो, क्योंकि वह तो रत्ना के साथ कालेज में था नहीं. वह उस की कालोनी में भी नहीं रहता था.

रत्ना के पति बीमारी के पहले रोज सुबह टहलने जाया करते थे. हो सकता है कि अभिषेक भी उन के साथ टहलने जाता रहा हो. वहीं उस का उस के पति से परिचय हुआ हो और उन्होंने ही ये सारी बातें उसे बता दी हों. उस के लिए अभिषेक इतना बड़ा जोखिम क्यों उठाना चाहता है. आखिर यह तो एक तरह की हत्या ही हुई. बात खुल भी सकती है. कहीं अभिषेक का यह पेशा तो नहीं है? बेमेल शादी केवल उसी की तो नहीं हुई है. इस तरह के बहुत सारे मामले हैं. अभिषेक के चेहरे से तो ऐसा नहीं लगता कि वह अपराधी किस्म का आदमी है. कहीं उस के दिल में उस के लिए प्यार तो नहीं पैदा हो गया है.

रत्ना को किसी भी तरह के सुख की कमी नहीं थी. प्रोफैसर साहब अच्छीखासी तनख्वाह पाते थे. उस के लिए काफीकुछ कर रखा था. 5 कमरों का मकान, 3 लाख के जेवर, 5 लाख बैंक बैलेंस, सबकुछ उस के हाथ में था. 50 हजार रुपए सालाना तो प्रोफैसर साहब की किताबों की रौयल्टी आती थी. इन सब बातों के बावजूद रत्ना को जिस्मानी सुख कभी नहीं मिल सका. प्रोफैसर साहब की पहली बीवी बिना किसी बालबच्चे के मरी थी. रत्ना को भी कोई बच्चा नहीं था. कसबाई माहौल में पलीबढ़ी रत्ना पति को मारने का कलंक अपने सिर लेने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

रत्ना ने अभिषेक से चले जाने के लिए कह तो दिया था, लेकिन बाद में उसे लगने लगा था कि उस की बात को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता था. रत्ना अपनेआप को तोलने लगी थी कि 2 दिन के बाद अभिषेक आएगा, तो वह उस को क्या जवाब देगी. इस योजना में शामिल होने की उस की हिम्मत नहीं हो पा रही थी.

अभिषेक अपने वादे के मुताबिक 2 दिन बाद आया. इस बार रत्ना उसे चले जाने को नहीं कह सकी. उस की आवाज में पहले वाली कठोरता भी नहीं थी. रत्ना को देखते ही अभिषेक मुसकराया, ‘‘हां बताओ, तुम ने क्या सोचा?’’

‘‘कहीं बात खुल गई तो…’’

‘‘वह सब मेरे ऊपर छोड़ दो. मैं सारी बातें इतनी खूबसूरती के साथ करूंगा कि किसी को भी पता नहीं चलेगा. हां, इस काम के लिए 10 हजार रुपए बतौर पेशगी देनी होगी. यह मत समझो कि यह मेरा पेशा है. मैं यह सब तुम्हारे लिए करूंगा.’’

‘‘मेरे लिए क्यों?’’

‘‘सही बात यह है कि मैं तुम्हें  पिछले 15 साल से जानता हूं. तुम्हारे पिता ने मुझे प्राइमरी स्कूल में पढ़ाया था. मैं जानता हूं कि किन मजबूरियों में गुरुजी ने तुम्हारी शादी इस बूढ़े प्रोफैसर से की थी.’’

‘‘मेरी इज्जत तो इन्हीं की वजह से है. इन के न रहने पर तो मैं बिलकुल अकेली हो जाऊंगी.’’

‘‘जब से तुम्हारी शादी हुई है, तभी से तुम अकेली हो गई रत्ना, और आज तक अकेली हो.’’

‘‘मुझे भीतर से बहुत डर लग रहा है.’’

‘‘तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है. अगर भेद खुल भी जाता है, तो मैं सबकुछ अपने ऊपर ले लूंगा, तुम्हारा नाम कहीं भी नहीं आने पाएगा. मैं तुम्हें सुखी देखना चाहता हूं रत्ना. मेरा और कोई दूसरा मकसद नहीं है.’’

‘‘तो ठीक है, तुम्हें पेशगी के रुपए मिल जाएंगे,’’ कह कर रत्ना भीतर गई और 10 हजार रुपए की एक गड्डी ला कर अभिषेक के हाथों पर रख दी. रुपए ले कर अभिषेक वापस लौट गया.

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तय समय पर रत्ना के पति को नर्सिंग होम में भरती करवा दिया गया. सभी तरह की जांच होने के बाद प्रोफैसर साहब का आपरेशन किया गया, जो पूरी तरह से कामयाब रहा. बाद में उन्हें खून चढ़ाया जाना था. अभिषेक सर्जन राजेश की पूरी मदद करता रहा. डाक्टर साहब आपरेशन के बाद अपने बंगले पर चले गए थे. खून चढ़ाने वगैरह की सारी जिम्मेदारी अभिषेक पर थी. सारा इंतजाम कर के अभिषेक अपनी जगह पर आ कर बैठ गया था. रत्ना भी पास ही कुरसी पर बैठी हुई थी. अभिषेक ने उसे आराम करने को कह दिया था.

रत्ना ने आंखें मूंद ली थीं, पर उस के भीतर उथलपुथल मची हुई थी. उस का दिमाग तेजी से काम कर रहा था. दिमाग में अनेकअनेक तरह के विचार पैदा हो रहे थे. अभिषेक ड्रिप में बूंदबूंद गिर कर प्रोफैसर के शरीर में जाते हुए खून को देख रहा था. अचानक वह उठा. अब तक रात काफी गहरी हो गई थी. वह मरीज के पास आया और ड्रिप से शरीर में जाते हुए खून को तेज करना चाहा, ताकि प्रोफैसर का कमजोर दिल उसे बरदाश्त न कर सके. तभी अचानक रत्ना झटके से अपनी सीट से उठी और उस ने अभिषेक को वैसा करने से रोक दिया.

वह उसे ले कर एकांत में गई और फुसफुसा कर कहा, ‘‘तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे, रुपए भले ही अपने पास रख लो. मैं अपने पति को मौत के पहले मरते नहीं देख सकती. जैसे इतने साल उन के साथ गुजारे हैं, बाकी समय भी गुजर जाएगा.’’ अभिषेक ने उस की आंखों में झांका. थोड़ी देर तक वह चुप रहा, फिर बोला, ‘‘तुम बड़ी कमजोर हो रत्ना. तुम जैसी औरतों की यही कमजोरी है. जिंदगीभर घुटघुट कर मरती रहेंगी, पर उस से उबरने का कोई उपाय नहीं करेंगी. खैर, जैसी तुम्हारी मरजी,’’ इतना कह कर अभिषेक ने पेशगी के रुपए उसे वापस कर दिए. इस के बाद वह आगे कहने लगा, ‘‘जिस बात को मैं ने इतने सालों से छिपा रखा था, आज उसे साफसाफ कहना पड़ रहा है.

‘‘रत्ना, जिस दिन मैं ने तुम्हें देखा था, उसी दिन से तुम्हें ले कर मेरे दिल में प्यार फूट पड़ा था, जो आज बढ़तेबढ़ते यहां तक पहुंच गया है. ‘‘इस बात को मैं कभी तुम से कह नहीं पाया. प्यार शादी में ही बदल जाए, ऐसा मैं ने कभी नहीं माना.

‘‘मैं उम्मीद में था कि तुम अपनी बेमेल शादी के खिलाफ एक न एक दिन बगावत करोगी. मेरी भावनाओं को खुदबखुद समझ जाओगी या मैं ही हिम्मत कर के तुम से अपनी बात कह दूंगा.

‘‘इसी जद्दोजेहद में मैं ने 15 साल गुजार दिए. आज तक मैं तुम्हारा ही इंतजार करता रहा. जब बरदाश्त की हद हो गई, तब मौका पा कर तुम्हारे पति को खत्म करने की योजना बना डाली. रुपए की बात मैं ने बीच में इसलिए रखी थी कि तुम मेरी भावनाओं को समझ न सको.

‘‘तुम ने इस घिनौने काम में मेरी मदद न कर मुझे एक अपराध से बचा लिया. वैसे, मैं तुम्हारे लिए जेल भी जाने को तैयार था, फांसी का फंदा भी चूमने को तैयार था.

‘‘मैं तुम्हें तिलतिल मरते हुए नहीं देख सकता था रत्ना, इसलिए मैं ने इतना बड़ा कदम उठाने का फैसला लिया था.’’

अपनी बात कह कर अभिषेक ने चुप्पी साध ली. रत्ना उसे एकटक देखती रह गई.

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अंधविश्वास की बलिवेदी पर : रूपल क्या बचा पाई इज्जत

‘‘अरे बावली, कहां रह गई तू?’’ रमा की कड़कती हुई आवाज ने रूपल के पैरों की रफ्तार को बढ़ा दिया.

‘‘बस, आ रही हूं मामी,’’ तेज कदमों से चलते हुए रूपल ने मामी से आगे बढ़ हाथ के दोनों थैले जमीन पर रख दरवाजे का ताला खोला.

‘‘जल्दी से रात के खाने की तैयारी कर ले, तेरे मामा औफिस से आते ही होंगे,’’ रमा ने सोफे पर पसरते हुए कहा.

‘‘जी मामी,’’ कह कर रूपल कपड़े बदल कर चौके में जा घुसी. एक तरफ कुकर में आलू उबलने के लिए गैस पर रखे और दूसरी तरफ जल्दी से परात निकाल कर आटा गूंधने लगी.

आटा गूंधते समय रूपल का ध्यान अचानक अपने हाथों पर चला गया. उसे अपने हाथों से घिन हो आई. आज भी गुरु महाराज उसके हाथों को देर तक थामे सहलाते रहे और वह कुछ न कह सकी. उन्हें देख कर कितनी नफरत होती है, पर मामी को कैसे मना करे. वे तो हर दूसरेतीसरे दिन ही उसे गुरु कमलाप्रसाद की सेवादारी में भेज देती हैं.

पहली बार जब रूपल वहां गई थी तो बड़ा सा आश्रम देख कर उसे बहुत अच्छा लगा था. खुलीखुली जगह, चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी.

खिचड़ी बालों की लंबी दाढ़ी, कुछ आगे को निकली तोंद, माथे पर बड़ा सा तिलक लगाए सफेद कपड़े पहने, चांदी से चमकते सिंहासन पर आंखें बंद किए बैठे गुरु महाराज रूपल को पहली नजर में बहुत पहुंचे हुए महात्मा लगे थे जिन के दर्शन से उस की और उस के घर की सारी समस्याओं का जैसे खात्मा हो जाने वाला था.

अपनी बारी आने पर बेखौफ रूपल उन के पास जा पहुंची थी. महाराज उस के सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देते हुए देर तक उसे देखते रहे.

मामी की खुशी का ठिकाना नहीं था. उस दिन गुरु महाराज की कृपा उस पर औरों से ज्यादा बरसी थी.

वापसी में महाराज के एक सेवादार ने मामी के कान में कुछ कहा, जिस से उन के चेहरे पर एक चमक आ गई. तब से हर दूसरेतीसरे दिन वे रूपल को महाराज के पास भेज देती हैं.

मामी कहती हैं कि गुरु महाराज की कृपा से उस के घर के हालात सुधर जाएंगे जिस से दोनों छोटी बहनों की पढ़ाईलिखाई आसान हो जाएगी और उन का भविष्य बन जाएगा.

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रूपल भी तो यही चाहती है कि मां की मदद कर उन के बोझ को कुछ कम कर सके, तभी तो दोनों छोटी बहनों और उन्हें गांव में छोड़ वह यहां मामामामी के पास रहने आ गई है.

पिछले साल जब मामामामी गांव आए थे तब अपने दुखड़े बताती मां को आंचल से आंखों के गीले कोर पोंछते देख रूपल को बड़ी तकलीफ हुई थी.

14 साल की हो चुकी थी रूपल, पर अभी भी अपने बचपने से बाहर नहीं निकल पाई थी. माली हालत खराब होने से पढ़ाई तो छूट गई थी, पर सखियों के संग मौजमस्ती अभी भी चालू थी.

ठाकुर चाचा के आम के बगीचे से कच्चे आम चुराने हों या फुलवा ताई के दालान से कांटों की परवाह किए बगैर झरबेरी के बेर तोड़ने में उस का कहीं कोई मुकाबला न था.

पर उस दिन किवाड़ के पीछे खड़ी रूपल अपनी मां की तकलीफें जान कर हैरान रह गई थी. 4 साल पहले उस के अध्यापक बाऊजी किसी लाइलाज बीमारी में चल बसे थे. मां बहुत पढ़ीलिखी न थीं इसलिए स्कूल मैनेजमैंट बाऊजी की जगह पर उन के लिए टीचर की नौकरी का इंतजाम न कर पाया. अलबत्ता, उन्हें चपरासी और बाइयों के सुपरविजन का काम दे कर एक छोटी सी तनख्वाह का जुगाड़ कर दिया था.

इधर बाऊजी के इलाज में काफी जमीन बेचनी पड़ गई थी. घर भी ठाकुर चाचा के पास ही गिरवी पड़ा था. सो, अब नाममात्र की खेतीबारी और मां की छोटी सी नौकरी 4 जनों का खर्चा पूरा करने में नाकाम थी.

रूपल को उस वक्त अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया था कि वह मां के दुखों से कैसे अनजान रही, इसीलिए जब मामी ने अपने साथ चलने के लिए पूछा तो उस ने कुछ भी सोचेसमझे बिना एकदम से हां कर दी.

तभी से मामामामी के साथ रह रही रूपल ने उन्हें शिकायत का कोई मौका नहीं दिया था. शुरुआत में मामी ने उसे यही कहा था, ‘देख रूपल, हमारे तो कोई औलाद है नहीं, इसलिए तुझे हम ने जिज्जी से मांग लिया है. अब से तुझे यहीं रहना है और हमें ही अपने मांबाप समझना है. हम तुझे खूब पढ़ाएंगे, जितना तू चाहे.’

बस, मामी के इन्हीं शब्दों को रूपल ने गांठ से बांध लिया था. लेकिन उन के साथ रहते हुए वह इतना तो समझ गई थी कि मामी अपने किसी निजी फायदे के तहत ही उसे यहां लाई हैं. फिर भी उन की किसी बात का विरोध करे बगैर वह गूंगी गुडि़या बन मामी की सभी बातों को मानती चली जा रही थी ताकि गांव में मां और बहनें कुछ बेहतर जिंदगी जी सकें.

रूपल को यहां आए तकरीबन 6-8 महीने हो चुके थे, लेकिन मामी ने उस का किसी भी स्कूल में दाखिला नहीं कराया था, बल्कि इस बीच मामी उस से पूरे घर का काम कराने लगी थीं.

मामा काम के सिलसिले में अकसर बाहर रहा करते थे. वैसे तो घर के काम करने में रूपल को कोई तकलीफ नहीं थी और रही उस की पढ़ाई की बात तो वह गांव में भी छूटी हुई थी. उसे तो बस मामी के दकियानूसी विचारों से परेशानी होती थी, क्योंकि वे बड़ी ही अंधविश्वासी थीं और उस से उलटेसीधे काम कराया करती थीं.

वे कभी आधा नीबू काट कर उस पर सिंदूर लगा कर उसे तिराहे पर रख आने को कहतीं तो कभी किसी पोटली में कुछ बांध कर आधी रात को उसे किसी के घर के सामने फेंक कर आने को कहतीं. महल्ले में किसी से उन की ज्यादा पटती नहीं थी.

मामी की बातें रूपल को चिंतित कर देती थीं. वह भले ही गांव की रहने वाली थी, पर उस के बाऊजी बड़े प्रगतिशील विचारों के थे. उन की तीनों बेटियां उन की शान थीं.

गांव के माहौल में 3-3 लड़कियां होने के बाद भी उन्हें कभी इस बात की शर्मिंदगी नहीं हुई कि उन के बेटा नहीं है. उन के ही विचारों से भरी रूपल इन अंधविश्वासों पर बिलकुल यकीन नहीं करती थी. पर न चाहते हुए भी उसे मामी के इन ढकोसलों का न सिर्फ हिस्सा बनना पड़ता, बल्कि उन्हें मानने को भी मजबूर होना पड़ता. क्योंकि अगर वह इस में जरा भी आनाकानी करती तो मामी तुरंत उस की मां को फोन लगा कर उस की बहुत चुगली करतीं और उस के लिए उलटासीधा भिड़ाया करतीं.

पर अभी जो रूपल के साथ हो रहा था, वह तो और भी बुरा था. पिछले कुछ वक्त से उस ने महसूस किया था कि आश्रम के काम के बहाने उसे गुरुजी के साथ जानबूझ कर अकेले छोड़ा जाता है.

रूपल छोटी जरूर थी, पर इतनी भी नहीं कि अपने शरीर पर रेंगते उन हाथों की बदनीयती पहचान न सके. वैसे भी उस ने गुरुदेव को अपने खास कमरे में आश्रम की एक दूसरी सेवादारिन के साथ जिन कपड़ों और हालात में देखा था, वे उसे बहुत गलत लगे थे. गुरुदेव के प्रति उस की भक्ति और आस्था उसी वक्त चूर हो चुकी थी.

मगर उस ने यह बात जब मामी को बताई तो उन्होंने इसे नजर का धोखा कह कर बात वहीं खत्म करने को कह दिया था. तब से रूपल के मन में एक दहशत सी समा गई थी. वह बिना मामी के उस आश्रम में पैर भी नहीं रखना चाहती थी. सपने में भी वह बाबा अपनी आंखों में लाल डोरे लिए अट्टहास लगाता उस की ओर बढ़ता चला आता और नींद में ही डर से कांपते हुए रूपल की चीख निकल जाती. पर मामी का गुस्सा उसे वहां जाने पर मजबूर कर देता.

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‘आखिर इस हालत में कब तक मैं बची रह सकती हूं. काश, मैं मां को बता सकती. वे आ कर मुझे यहां से ले जातीं…’ रूपल का दर्द आंखों से बह निकला.

‘‘बहरी हो गई क्या. कुकर सीटी पर सीटी दिए जा रहा?है, तुझे सुनाई नहीं देता?’’ अचानक मामी के चिल्लाने पर रूपल ने गालों पर ढुलक आए आंसू आहिस्ता से पोंछ डाले, ‘‘जी मामी, यहीं हूं,’’ कह कर उस ने गैस पर से कुकर उतारा.

‘‘सुन, आज गुरुजी का बुलावा है. सब काम निबटा कर वहां चली जाना,’’ सुबह मामा के औफिस जाते ही मामी ने रूपल को फरमान सुनाया.

‘‘मामीजी, एक बात कहनी थी आप से…’’ थोड़ा डरते हुए रूपल के मुंह से निकला, ‘‘दरअसल, मैं उन बाबा के पास नहीं जाना चाहती. वह मुझे अकेले में बुला कर यहांवहां छूने की कोशिश करता है. मुझे बहुत घिन आती है.’’

‘‘पागल हुई है लड़की… इतने बड़े महात्मा पर इतना घिनौना इलजाम लगाते हुए तुझे शर्म नहीं आती. उस दिन भी तू उन के बारे में अनापशनाप बके जा रही थी. तू बखूबी जानती भी है कि वे कितने चमत्कारी हैं.’’

‘‘मामीजी, मैं आप से सच कह रही हूं. प्लीज, आप मुझ से कोई भी काम करा लो लेकिन उन के पास मत भेजो,’’ रूपल की आंखों में दहशत साफ दिखाई दे रही थी.

‘‘देख रूपल, अगर तुझे यहां रहना है, तो फिर मेरी बात माननी पड़ेगी, नहीं तो तेरी मां को फोन लगाती हूं और तुझे यहां से ले जाने के लिए कहती हूं.’’

‘‘नहीं मामी, मां पहले ही बहुत परेशान हैं, आप उन्हें फोन मत करना. आप जहां कहेंगी मैं चली जाऊंगी,’’ रूपल ने दुखी हो कर हथियार डाल दिए.

यह सुन कर मामी के होंठों पर एक राजभरी मुसकान बिखर गई. पता नहीं पर उस दिन रूपल की मामी भी उस के साथ गुरुजी के आश्रम पहुंचीं. कुछ ही देर में बाबा भक्तों को दर्शन देने वाले थे.

‘‘तू यहीं बैठ, मैं अंदर कुछ जरूरी काम से जा रही हूं,’’ मामी बोलीं.

रूपल को सब से अगली लाइन में बिठा कर मामी ने उसे अपना मोबाइल फोन पकड़ाया.

‘‘बाबा, मैं ने अपना काम पूरा किया. आप को एक कन्या भेंट की है. अब तो मेरी गोदी में नन्हा राजकुमार खेलेगा न?’’ मामी ने बाबा के सामने अपना आंचल फैलाते हुए कहा.

‘‘अभी देवी से प्रभु का मिलन बाकी है. जब तक यह काम नहीं हो जाता, तू कोई उम्मीद लगा कर मत बैठना,’’ बाबा के पास खड़े सेवादार ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन, मैं ने तो अपना काम पूरा कर दिया…’’

‘‘हम ने तुझे पहले ही कहा था कि प्रभु और देवी के मिलन में कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए. तुझे उसे खुद तैयार करना होगा. इस काम में प्रभु को जबरदस्ती पसंद नहीं.’’

‘‘ठीक है, कल तक यह काम भी हो जाएगा,’’ मामी ने बाबा के पैरों को छूते हुए कहा. उधर तुरंत ही किसी काम से मामा का फोन आने से मामी के पीछे चल पड़ी रूपल ने जैसे ही ये बातें सुनीं, उस के पैरों तले जमीन सरक गई.

मामी को आते देख रूपल थोड़ी सी आड़ में हो गई. ‘कहां गई थी?’’ उसे अपने पीछे से आते देख मामी हैरान हो उठीं.

‘‘बाथरूम गई थी…’’ रूपल ने धीरे से इशारों में बताया.

रूपल बुरी तरह डर चुकी थी. अपनी मामी का खौफनाक चेहरा उस के सामने आ चुका था. अब तक उसे यही लगता था कि मामी भले ही तेज हैं, पर वे अच्छी हैं और बाबा की सचाई से बेखबर हैं, जिस दिन उन्हें गुरुजी की असलियत पता चलेगी वे उसे कभी आश्रम नहीं भेजेंगी. पर अब खुद उस की आंखों पर पड़ा परदा उठ गया था. उसे मामी की हर चाल अब समझ आ चुकी थी.

शादी के 10 साल तक बेऔलाद होने का दुख उन्होंने इस तरह दूर करने की कोशिश की. गांव में आ कर उन की गरीबी पर तरस खा कर उसे यहां एक साजिश के तहत लाना और बाबा के आश्रम में जबरदस्ती भेजना. इन बातों का मतलब अब वह समझ चुकी थी.

लेकिन अब रूपल क्या करे. उसे अपनी मां की बहुत याद आ रही थी. वह बस हमेशा की तरह उन के आंचल के पीछे छिप जाना चाहती थी.

‘मैं मां से इस बारे में बात करूं क्या… पर मां तो मामी की बातों पर इतना भरोसा करती हैं कि मेरी बात उन्हें झूठी ही लगेगी. और फिर घर के हालात… अगर मां जान भी जाएं तो क्या उस का गांव जाना ठीक होगा. वहां मां अकेली 4-4 जनों का खानाखर्चा कैसे संभालेंगी?’ बेबसी और पीड़ा से उस की आंखें भर आईं.

‘‘रूपल… 2 लिटर दूध ले आना, आज तेरी पसंद की सेवइयां बना दूंगी. तुझे मेरे हाथ की बहुत अच्छी लगती हैं न,’’ बातों में मामी ने उसे भरपूर प्यार परोसा.

खाना खा कर रात को बिस्तर पर लेटी रूपल की आंखों से नींद कोसों दूर थी. मामी ने आज उसे बहुत लाड़ किया था और मांबहनों के सुखद भविष्य का वास्ता दे कर सच्चे भाव से बाबा की हर बात मान कर उन की भक्ति में डूब जाने को कहा था. पर अब वह बाबा की भक्ति में डूब जाने का मतलब अच्छी तरह समझती थी.

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अगले दिन मामी की योजना के तहत रूपल बाबा के खास कमरे में थी. दूसरी सेवादारिनों ने उसे देवी की तरह कपड़े व गहने वगैरह पहना कर दुलहन की तरह सजा दिया था.

पलपल कांपती रूपल को आज अपनी इज्जत लुट जाने का डर था. लेकिन वह किसी भी तरह से हार नहीं मानना चाहती थी. अभी भी वह अपने बचाव की सारी उम्मीदों पर सोच रही थी कि गुरु कमलाप्रसाद ने कमरे में प्रवेश किया. आमजन का भगवान एक शैतान की तरह अट्टहास लगाता रूपल की तरफ बढ़ चला.

‘‘बाबा, मैं पैर पड़ती हूं आप के, मुझ पर दया करो. मुझे जाने दो,’’ उस ने दौड़ कर बाबा के चरण पकड़ लिए.

‘‘देख लड़की, सुहाग सेज पर मुझे किसी तरह का दखल पसंद नहीं. क्या तुझे समर्पण का भाव नहीं समझाया गया?’’

बाबा की आंखों में वासना का ज्वार अपनी हद पर था. उस के मुंह से निकला शराब का भभका रूपल की सांसों में पिघलते सीसे जैसा समाने लगा.

‘‘बाबा, छोड़ दीजिए मुझे, हाथ जोड़ती हूं आप के आगे…’’ रूपल ने अपने शरीर पर रेंग रहे उन हाथों को हटाने की पूरी कोशिश की.

‘‘वैसे तो मैं किसी से जबरदस्ती नहीं करता, पर तेरे रूप ने मुझे सम्मोहित कर दिया है. पहले ही मैं बहुत इंतजार कर चुका हूं, अब और नहीं… चिल्लाने की सारी कोशिशें बेकार हैं. तेरी आवाज यहां से बाहर नहीं जा सकती,’’ कह कर बाबा ने रूपल के मुंह पर हाथ रख उसे बिस्तर पर पटक दिया और एक वहशी दरिंदे की तरह उस पर टूट पड़ा.

तभी अचानक ‘धाड़’ की आवाज से कमरे का दरवाजा खुला. अगले ही पल पुलिस कमरे के अंदर थी. बाबा की पकड़ तनिक ढीली पड़ते ही घबराई रूपल झटक कर अलग खड़ी हो गई.

पुलिस के पीछे ही ‘रूपल…’ जोर से आवाज लगाती उस की मां ने कमरे में प्रवेश किया और डर से कांप रही रूपल को अपनी छाती से चिपटा लिया.

इस तरह अचानक रंगे हाथों पकड़े जाने से हवस के पुजारी गुरु कमलाप्रसाद के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. फिर भी वह पुलिस वालों को अपने रोब का हवाला दे कर धमकाने लगा.

तभी उस की एक पुरानी सेवादारिन ने आगे बढ़ कर उस के गाल पर एक जोरदार तमाचा रसीद किया. पहले वह भी इसी वहशी की हवस का शिकार हुई थी. वह बाबा के खिलाफ पुलिस की गवाह बनने को तैयार हो गई.

बाबा का मुखौटा लगाए उस ढोंगी का परदाफाश हो चुका था. आखिरकार एक नाबालिग लड़की पर रेप और जबरदस्ती करने के जुर्म में बाबा को

तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया. उस के सभी चेलेचपाटे कानून के शिकंजे में पहले ही कसे जा चुके थे.

मां की छाती से लगी रूपल को अभी भी अपने सुरक्षित बच जाने का यकीन नहीं हो रहा था, ‘‘मां… मामी ने मुझे जबरदस्ती यहां…’’

‘‘मैं सब जान चुकी हूं मेरी बच्ची…’’ मां ने उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा. ‘‘तू चिंता मत कर, भाभी को भी सजा मिल कर रहेगी. पुलिस उन्हें पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है.

‘‘मैं अपनी बच्ची की इस बदहाली के लिए उन्हें कभी माफ नहीं करूंगी. तू मेरे ही पास रहेगी मेरी बच्ची. तेरी मां गरीब जरूर है, पर लाचार नहीं. मैं तुझ पर कभी कोई आंच नहीं आने दूंगी.

‘‘मेरी मति मारी गई थी कि मैं भाभी की बातों में आ गई और सुनहरे भविष्य के लालच में तुझे अपने से दूर कर दिया.

‘‘भला हो तुम्हारे उस पड़ोसी का, जिस ने तुम्हारे दिए नंबर पर फोन कर के मुझे इस बात की जानकारी दे दी वरना मैं अपनेआप को कभी माफ न कर पाती,’’ शर्मिंदगी में मां अपनेआप को कोसे जा रही थीं.

‘‘मुझे माफ कर दो दीदी. मैं रमा की असलियत से अनजान था. गलती तो मुझ से भी हुई है. मैं ने सबकुछ उस के भरोसे छोड़ दिया, यह कभी जानने की कोशिश नहीं की कि रूपल किस तरह से कैसे हालात में रह रही है,’’ सामने से आ रहे मामा ने अपनी बहन के पैर पकड़ लिए.

बहन ने कोई जवाब न देते हुए भाई पर एक तीखी नजर डाली और बेटी का हाथ पकड़ कर अपने घर की राह पकड़ी. रूपल मन ही मन उस पड़ोसी का शुक्रिया अदा कर रही थी जिसे सेवइयों के लिए दूध लाते वक्त उस ने मां का फोन नंबर दिया था और उस ने ही समय रहते मां को मामी की कारगुजारी के बारे में बताया था जिस के चलते ही आज वह अंधविश्वास की बलिवेदी पर भेंट चढ़ने से बच गई थी.

मां का हाथ थामे गांव लौटती रूपल अब खुली हवा में एक बार फिर सुकून की सांसें ले रही थी.

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उन दोनों का सच: भाग 3- क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा

लेखिका- रेणु गुप्ता

तभी उन्हीं दिनों कोविड के प्रकोप से आई विश्वव्यापी मंदी की वजह से पलाश की छंटनी हो गई. एक तरफ उस की महंगी महंगी दवाओं का खर्च, दूसरी तरफ घरगृहस्थी के सौ खर्चे. पलाश की उड़ाऊ आदत और अस्पताल में उस के इलाज पर हुए खर्चे के चलते उस के पास बचत भी कोई खास न थी. नौकरी के दिनों में बिब्बो से अफेयर चलातेचलाते वह उस पर महंगेमहंगे तोहफों के रूप में अपनी तनख्वाह की एक बड़ी रकम उस पर खर्च करता आया था, लेकिन अब उस के बेरोजगार होने पर वह उस पर पहले की तरह उपहारों की बारिश नहीं कर पाता. सो उस की कड़की देख कर उस ने भी पलाश से आंखें फेर ली और किसी दूसरे मुरगे की तलाश में जुट गई. वक्त के साथ अब पलाश के घर उस का आना न के बराबर रह गया था.

पिछले 1 साल से गौरा की मां अपने पड़ोस में किराए पर रहने वाले 10-15 लड़कों के लिए 2 वक्त के खाने का टिफिन भेजने का काम कर रही थी, जो दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था. गौरा की मां पाककला में निपुण थीं. एक बार जो भी उन का बनाया खाना, खासकर सब्जी, दाल चख लेता, उन के स्वाद का दीवाना बने न रहता. वक्त के साथ गौरा की मां के टिफिन के और्डर बढ़ते ही जा रहे थे. काम इतना बढ़ता जा रहा था कि उन से अकेले सिमट नहीं पा रहा था.

तभी घर में पलाश की नौकरी जाने की दशा में गौरा की मां ने गौरा से भी यह काम शुरू करने के लिए कहा, और अपने कुछ और्डर उसे दे दिए. गौरा भी कुकिंग में अपनी मां की तरह सिद्धहस्त थी. गौरा ने पूरी मेहनत और लगन से यह काम शुरू किया और मां की तरह उस की टिफिन सर्विस भी अच्छी चल निकली.
वक्त का फेर, पलाश की नौकरी गए 6 माह होने आए, लेकिन उसे कोई दूसरी अच्छी नौकरी नहीं मिली. नौकरी गई, माशूका गई और इस के साथ ही आर्थिक स्वतंत्रता जाने के साथसाथ पलाश अब गौरा पर पूरी तरह से आश्रित हो गया.

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उस की महंगीमहंगी दवाएं सालभर तक चलने वाली थीं. परिस्थितियों के इस मोड़ पर उसे बिब्बो और गौरा के बीच का अंतर स्पष्ट दिखाई देने लगा था. गौरा मुंह से कुछ न कहती, न जताती लेकिन उस के प्रति किए गए अपने अन्याय के एहसास से वह अब उस से आंखें न मिला पाता. उस के मन का चोर उसे हर लमहा शर्मिंदा करता.

वक्त के साथ गौरा की टिफिन सर्विस का काम अच्छाखासा बढ़ता जा रहा था. अब उसने रसोई में अपनी मदद के लिए 2 सहायिकाएं रख लीं थीं, जो पूरे काम में उस की मदद करतीं. उसे अब अपनी जिंदगी का मकसद मिल गया था. पति की बेशर्म बेवफाई के बाद यह एक सुखद परिवर्तन था.उधर जिंदगी के इस कठिन दौर ने पलाश को भी एहसास दिला दिया था कि गौरा खरा सोना है और बिब्बो जैसी मतलबपरस्त, चरित्रहीन औरत के लिए उस की बेकद्री कर के उस ने अपनी जिंदगी की महत भूल की थी.
अब वह गौरा के प्रति अपने दुर्व्यवहार को ले कर बेहद शर्मिंदा महसूस करता. इतना कुछ हो जाने के बाद भी गौरा के पति के प्रति पूर्ण समर्पण और परवाह में कोई कमी नहीं आई थी.

वह एक परंपरावादी महिला थी, जो पति के साथ हर हाल में एक छत के नीचे रहने में विश्वास रखती थी. पलाश की बचत लगभग खत्म होने आई थी. अब घर का खर्च पूरी तरह से गौरा की टिफिन सर्विस की आमदनी से चलता. पलाश की महंगीमहंगी दवाओं का आना बदस्तूर जारी रहा. डाक्टरों के निर्देशों के मुताबिक उस के त्वरित स्वास्थ्य लाभ के लिए उस की थाली में भरपूर महंगेमहंगे पोषक खाद्य पदार्थ रहते. उन में किसी तरह की कोई कमी एक दिन के लिए भी नहीं आई. कमी आई थी तो महज पति के प्रति उस के व्यवहार में.

पति के निर्लज्ज प्रेम प्रसंग से उस का उस से मन पूरी तरह से फट गया. उसे उस की शक्ल तक देखना गवारा नहीं था. वह दिनदिन भर मात्र अपनी टिफिन सर्विस के काम में अपने होंठ भींचे व्यस्त रहती. पति के साथ उस की बोलचाल मात्र हां या न तक सीमित रह गई. उस की उस से बात करने की तनिक भी इच्छा न होती.

पति के बेशर्म आचरण से क्षतविक्षत आहत मन उस ने अपनेआप को मौन के अभेद्य खोल में समेट लिया था. पलाश कभी उस से बात भी करता तो वह मात्र हूंहां कर वहां से इधरउधर हो जाती. पिछले कुछ समय से पत्नी के इस नितांत शुष्क और रूखे व्यवहार से पलाश बेहद बेचैनी का अनुभव कर रहा था.

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उस दिन गौरा की दोनों सहायिकाओं ने अचानक किसी जरूरी काम से छुट्टी ले ली. गौरा को खुश करने की मंशा से पलाश भी रसोई में घुस गया. उस ने पूरे वक्त एक पैर पर खड़े रह पत्नी की यथासंभव मदद की. अपनी गलती का मन से एहसास कर वह एक बार फिर से पत्नी से अपने संबंध सामान्य बनाना चाहता था. जब से बिब्बो उन दोनों के बीच आई थी, गौरा दोनों बच्चों के साथ दूसरे बैडरूम में सोने लगी थी. गौरा बच्चों के साथ उन के बैडरूम में लेटी हुई थी कि पलाश ने दोनों सोते हुए बच्चों को गोद में उठा कर अपने बैडरूम के पलंग पर सुलाया और खुद पत्नी के बगल में लेट गया.

तभी उसे पलंग पर आया देख गौरा ने उठने का उपक्रम किया ही था कि पलाश ने उसे खींच कर अपने सीने पर गिरा दिया और उस की आंखों में झांकते हुए उस से बोला, “गौरा और कितने दिन मुझ से गुस्सा रहोगी? अब गुस्सा थूक भी दो. मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो गया है.

“बिब्बो जैसी औरत के लिए मैं ने तुम्हारी बेकद्री की. मुझ से बड़ी भूल हुई. प्लीज, मुझे माफ कर दो,” पति की यह बातें सुन कर गौरा की आंखों में आंसुओं का सैलाब उतर आया और रुंधे गले से वह बोली, “तुम्हारी गलती की कोई माफी नहीं है. तुम ने बिब्बो जैसी सस्ती औरत के लिए मुझे खून के आंसू रुलाए. मैं तुम्हें जिंदगी भर माफ नहीं करूंगी. तुम ने मेरा बहुत जी दुखाया है. अब मुझ से माफी की उम्मीद मत रखो.”

पलाश के पास पत्नी के इस कड़वे उलाहने का कोई जवाब नहीं था. उस ने बेबस करवट बदल कर आंखें मूंद लीं. गोरा की आंखों में खून के आंसू थे तो पलाश की आंखों में पश्चाताप के. अब शायद आंसू ही उन दोनों की नियति थी, उन दोनों का सच था.

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उन दोनों का सच: भाग 2- क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा

लेखिका- रेणु गुप्ता

उस मुश्किल घड़ी में पति की यह हालत देख वह बेहद घबरा गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि आखिरकार पति को उस के पीछे एसी की बाहरी यूनिट को साफ करने की जरूरत क्या आन पड़ी और वह भी तब, जब वह घर पर नहीं थी.

उधर पलाश गिरने के बाद पूरी तरह से मौन हो गया था. उस ने गिरने के बाद गौरा से बिलकुल कोई भी बात नहीं की. वह बस वीरान निगाहों से शून्य में ताक रहा था. एक तरफ उस की यह हालत देख उस का कलेजा मुंह में था, वहीं दूसरी ओर उस के प्रति गुस्से का भाव भी था कि आखिर वह बेवजह एसी की बाहरी यूनिट साफ करने उस ऊंचे स्टूल पर चढ़ा ही क्यों जिस से आज उसे अस्पताल में धक्के खाने की नौबत आ गई. उस नाजुक वक्त में बिब्बो ने उसे बहुत सहारा दिया.

बिब्बो भी ग्रैजुएट ही थी, लेकिन दुनिया देखीभाली, खेलीखाई महिला थी. पुरुषों से बेहद धड़ल्ले से बातें करती. सो पलाश के इलाज के सिलसिले में डाक्टरों से बातचीत करने में वही आगे रही .

अस्पताल के डाक्टर मिहिर और उन की टीम ने पलाश का ट्रीटमैंट शुरू किया. गौरा तो बस बेहद घबराई हुई कलेजा मुंह में लिए डाक्टरों और बिब्बो की बातें सुनती रहती. तभी डाक्टर मिहिर ने गौरा से कहा, “गौरा, आप के हसबैंड के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई करवाना पड़ेगा, यह देखने के लिए कि कहीं उन्हें कोई अंदरूनी चोट तो नहीं पहुंची.”

“ठीक है डाक्टर साहब, आप जो ठीक समझें”, गौरा ने डॉक्टर से कहा.

“डाक्टर साहब, पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई होगा? एक बात बताइए डाक्टर साहब, इन की गरदन के पीछे कुछ दाने हो रहे हैं. सीटी स्कैन और एमआरआई में कोई दिक्कत तो नहीं आएगी?” बिब्बो के मुंह से अनायास यह शब्द निकले ही थे कि अगले ही क्षण अपनी जीभ काटते हुए वह चुप हो गई.

यह वह क्या कह बैठी, अगले ही क्षण उसे एहसास हुआ और वह घबरा गई.

“नहींनहीं, उस की वजह से कोई परेशानी नहीं होगी,” डाक्टर ने जवाब दिया.

इधर बिब्बो के मुंह से पति की गरदन के पीछे हुए दानों के बारे में सुन कर गौरा के जेहन में घंटी बजी, यह बिब्बो को पलाश की गरदन के पीछे के दानों के बारे में कैसे पता? वह एक असहज बेचैनी में डूब गई. बारबार एक ही प्रश्न उस के दिलोदिमाग को मथने लगा, ‘आखिर बिब्बो ने यह बात कैसे बोली?’

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पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई हुआ और उन की रिपोर्ट से पता चला कि पलाश के ऊंचाई से गिरने की वजह से उस के ब्रेन में तीव्र हेमरेज हुआ था. दोनों जांचों की रिपोर्ट आने के बाद डाक्टर ने उस की हालत बेहद गंभीर बताई.

पति की गंभीर हालत के विषय में सुन कर गौरा के हाथों के तोते उड़ गए. डाक्टर ने उसे यह भी कहा कि पलाश की हालत बहुत नाजुक है. अगले ढाई घंटों में कुछ भी हो सकता है.”

आखिरकार डाक्टरों का इलाज रंग लाई. ढाई घंटे सकुशल बिना किसी अनहोनी के बीत गए. उस के बाद पलाश की हालत में शीघ्रता से सुधार हुआ. करीब 1 सप्ताह आईसीयू में रहने के बाद पलाश को एक अलग कमरे में शिफ्ट किया गया. अस्पताल में गुजरा वह समय गौरा के लिए बेहद उथलपुथल भरा रहा, पर वहां बीता आखिरी दिन उसे एक जबरदस्त झटका दे गया.

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उस दिन पलाश को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी. उसे डिस्चार्ज करने के पहले डाक्टर मिहिर उसे उस की दवाओं और घर पर ली जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने के लिए अपने चैंबर ले गए. आधे घंटे बाद डाक्टर से बात कर गौरा जैसे ही पलाश के कमरे में घुसी, यह देख कर उस के पांवों तले जमीन न रही कि पलाश अपनी आंखें मूंदे बिब्बो के दोनों हाथों को अपने हाथों में थामे हुए उन्हें चूम रहा था और बुदबुदा रहा था, “तुम ने मेरी जान बचा दी. अगर तुम मुझे उस दिन वक्त पर अस्पताल नहीं लातीं तो न जाने क्या होता?”

उस के अचानक कमरे में पहुंचने पर बिब्बो ने सकपका कर अपने हाथ पलाश के हाथों की गिरफ्त से छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन पलाश ने उस के हाथ नहीं छोड़े और गौरा पर एक घोर उपेक्षा की दृष्टि डाल वह बिब्बो से इधरउधर की बातें करता रहा.

एक ओर पति की गंभीर शारीरिक हालत, तो दूसरी ओर उस का निर्लज्ज आचरण गौरा के सीने में छुरियां चला रहा था. वह सोच नहीं पा रही थी कि जिंदगी के इस कठिन मुकाम पर वह उन विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करे? बिस्तर पर पड़े पलाश और बिब्बो का अनवरत प्रेमालाप देख उस का खून उबल उठता, लेकिन वह हालातों के आगे बेबस थी. आर्थिक तौर पर वह पूरी तरह से पलाश पर आश्रित थी.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस दिन पलाश अपने 5 साल के बेटे और 7 साल की बेटी के सामने ही गौरा द्वारा परोसी गई लौकी की सब्जी को परे हटा बिब्बो की लाई सब्जी की चटखारे लेते खा रहा था और बिब्बो की कुकिंग की प्रशंसा कर रहा था, “बिब्बो से सीखो सब्जी बनाना. तुम्हें तो तुम्हारी मां ने महज हींगजीरे का छौंक लगाना सिखाया है. बिब्बो के हाथ की बनी यह पनीर की सब्जी खा कर देखो तो समझ आएगा कुकिंग किसे कहते हैं.”

पलाश की इस बात से गौरा का चेहरा स्याह हो आया और उस दिन वह अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई और बिब्बो के अपने घर जाते ही घोर आवेश में आ उस से बोल पड़ी, “बिब्बो के हाथ की बनी सब्जी तो बहुत अच्छी लग रही है आप को. उस की तरह मैं भी किसी गैर मर्द के साथ इश्क के पेंच लड़ाऊं तो भी आप को बहुत अच्छा लगेगा न?”

गौरा की यह हिमाकत देख पलाश आगबबूला हो गया और गुस्से में गौरा पर फट पड़ा, “मैं जो चाहे करूं, तुम होती कौन हो मुझे आंख दिखाने वाली? मेरा ही खाती है और मुझ पर ही गुर्राती है बदजात? इतनी ही ऊंची नाक है तो चली जा अपनी मां के घर.”

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गौरा के पास पति की प्रताड़ना को सहने के अलावा और कोई चारा न था. एक बार को तो उस का मन किया कि वह सबकुछ छोड़छाड़ मां के घर चली जाए, लेकिन वृद्धा विधवा मां जो अपना और एक बेटी का गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रही हो वह उसे किस दम पर संभालती? सो बस आंखों में पानी भर उस ने पति के इस तिरस्कार को खून के घूंट पीते हुए सहा, लेकिन उस दिन उस ने जिंदगी में पहली बार अपने आत्मनिर्भर होने की दिशा में सोचा.

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उन दोनों का सच: भाग 1- क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा

लेखिका- रेणु गुप्ता

“बिब्बो…बिब्बो…” पलाश ने अपने फ्लैट की साइड की बालकनी से अपनी माशूका बिब्बो के बैडरूम से लगी बालकनी में कूद कर उस के बैडरूम के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन भीतर से कोई जवाब नहीं आया.

उसे उस के दरवाजे को खटखटाते 5 मिनट हो गए कि तभी पलाश ने देखा बिब्बो के फ्लैट के ठीक सामने ड्यूटी पर तैनात उन की सोसाइटी का गार्ड शायद उस की दस्तक की आवाज सुन कर उसी तरफ चला आ रहा था. उसी की वजह से वह बिब्बो के घर मेन दरवाजे से नहीं घुस पाता था. गार्ड को अपनी ओर आता देख कर पलाश के पसीने छूट गए. वह अपनेआप को उस से छिपाने के उद्देश्य से झट से नीचे बैठ गया.

करीब 5 मिनट बाद उस ने धीमे से उचकते हुए देखा, गार्ड जा चुका था. उस ने चैन की सांस ली. तभी उसे खयाल आया वह बिब्बो को फोन ही कर देता. वह उसे फोन लगा कर धीमे से फुसफुसाया “बिब्बो… दरवाजा खोलो भई. कितनी देर से तुम्हारी बालकनी में खड़ा हूं.”

“सौरी जानू, नहा रही थी.”

“अब दरवाजा तो खोलो.”

“अभी आई.”

तभी दरवाजा खुला और पलाश झपट कर भीतर घुस गया और चैन की सांस लेते हुए बोला, “यह कमीना गार्ड, इतनी सी देर में उस ने यहां के 10 चक्कर लगा लिए. कुछ ज्यादा ही चौकीदारी करता है यह.”

“ओ जानू, क्यों अपसेट हो रहे हो. जाने दो, उस का तो काम ही है चौकीदारी करना. अब वह तो करेगा ही न. चलो अब यह बताओ जरा, आज मैं कैसी लग रही हूं?”

“गजब ढा रही हो जानेमन. तुम तो हमेशा ही बिजली गिराती हो स्वीटू. तभी तो मैं तुम पर फिदा हूं. चलो अब दूरदूर रह कर मुझे टौर्चर मत करो,” यह कहते हुए पलाश ने हाथ बढ़ा कर बिब्बो को अपनी ओर खींच लिया और बांहों में भर उसे बेहताशा चूमने लगा.

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करीब घंटे भर तक प्रेम सागर में गोते लगा कर एकदूसरे से तृप्त हो कर दोनों प्रेमियों को समय का भान हुआ तो पलाश बोला, “1 बजने आए. मैं चलता हूं. गौरा आ जाएगी.”

“गौरा कहां गई है?”

“उस की मां बीमार है. उन्हें देखने गई है.”

“अच्छा.”

“तो ठीक है जान, कल मिलते हैं.”

“ओके स्वीटहार्ट, बायबाय”, यह कहते हुए पलाश बालकनी में आया. वह बालकनी की नीची दीवार पर पैर रखते हुए नीचे कूदा, लेकिन न जाने कैसे उस का संतुलन बिगड़ गया और वह पलक झपकते ही अपनी बालकनी में उतरने की बजाय उसके बाहर अपनी सोसाइटी के कैंपस में गिर गया.

उसे यों सोसाइटी के कैंपस में गिरते देख अपनी बालकनी में खड़ी बिब्बो आननफानन में लगभग दौड़ती हुए बदहवास उस के पास पहुंची. पलाश को यों अविचल जमीन पर पड़े देख बिब्बो का कलेजा मुंह में आ गया और उस ने उस का हाथ पकड़ कर हिलाया, “पलाश…पलाश… आंखें खोलो,” लेकिन उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई.

तभी वह दौड़ कर भीतर अपने फ्लैट में गई और एक गिलास में पानी ले आई और उस के चेहरे पर छींटे मारने लगी. 5 मिनट में उसे होश आ गया, लेकिन वह सामान्य नहीं लग रहा था. वह फटीफटी निगाहों से बिब्बो को देख रहा था. उस की शून्य में ताकती दृष्टि से परेशान हो बिब्बो ने उसे झिंझोड़ा और उस से कहा, “पलाश उठो, क्या हुआ? कैसे गिर गए? अपना बैलेंस लूज कर दिया तुम ने,” लेकिन पलाश कुछ नहीं बोला.
इस बार तनिक घबराते हुए उस ने उस के कंधों को थाम उसे उठाने का प्रयास किया, “उठो पलाश, प्लीज उठो. तुम्हें यहां गिरा हुआ देख कर लोग बातें बनाएंगे.”

संयोग से अभी तक पलाश को वहां गिरते हुए किसी ने नहीं देखा था. उस वक्त गार्ड भी अपनी जगह पर नहीं था. उन दोनों को यों साथ देख लेने के खौफ से बिब्बो का घबराहट से बहुत बुरा हाल था. उस ने अपना पूरा दम लगा कर उसे उठाया और अपना सहारा दे उसे उस के फ्लैट में पहुंचा दिया.

पलाश अभी तक सामान्य नहीं था. उसे यों फटीफटी निगाहों से अपने चारों ओर ताकते देख वह बेहद घबरा गई. ‘उसे कोई अंदरूनी चोट तो नहीं लगी’, इस सोच ने उसे बेहद परेशान कर दिया.

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वह सोचने लगी, ‘पलाश सामान्य बिहेव नहीं कर रहा. उस के ऊंचाई से गिरने की बात उसकी पत्नी गौरा को बिना बताए नहीं चलने वाला, लेकिन उसे वह कैसे बताए कि वह अपनी बालकनी से उस की बालकनी में कूदने की कोशिश में गिरा. यह तो वह बुरी फंसी.’

घबराहट से उस के होश फाख्ता होने लगे कि तभी पलाश की बालकनी में रखे झाड़न और एक ऊंचे स्टूल को देख कर उस ने सोचा, ‘मैं गौरा से कह दूंगी, पलाश अपनी बालकनी में लगे एसी के ऐक्सटर्नल यूनिट को साफ करने के लिए स्टूल पर चढ़ा था और वह उस से गिर गया. उस समय संयोग से वह भी अपनी बालकनी में थी और वह उस के सामने गिरा था.’

तनिक देर तक सोचविचार कर उस ने सोचा, ‘हां यही बहाना ठीक रहेगा,’ इस खयाल से उस की व्यग्रता तनिक कम हुई और उस ने झट से पलाश से कहा, “पलाश, मैं अभी बिब्बो को फोन करने जा रही हूं. वह तुम से पूछे कि तुम कैसे गिरे तो तुम्हें कहना है कि तुम उस स्टूल पर एसी की यूनिट साफ करने के लिए चढ़े थे और वहां से गिर गए. ठीक है न? प्लीज, यही बहाना बनाना ठीक रहेगा. और कुछ मत कहना. ओके पलाश, तुम मुझे सामान्य नहीं लग रहे. तुम्हें चैकअप के लिए अस्पताल ले ही जाना होगा, कहीं कोई अंदरूनी चोट न आई हो,” उस से यह कहते हुए बिब्बो ने गौरा को फोन कर उसे फौरन घर आने की ताकीद की.

10-15 मिनट में तो गौरा अपनी मां के घर से लौट आई. पलाश को गिरे हुए करीब घंटा बीत चला था, लेकिन वह अभी भी सामान्य नहीं हुआ था. उस की यह हालत देख कर गौरा पलाश को घर के निकट एक अस्पताल ले गई. बिब्बो उस के साथ साथ अस्पताल गई. उस के मन में अपराध भावना थी कि पलाश उस की वजह से दुर्घटनाग्रस्त हुआ. उस आड़े वक्त में बिब्बो उस के साथसाथ रही. वह अपने घर से एक बड़ी रकम अपने साथ ले गई.

पलाश की पत्नी गौरा मात्र बीए पास, सीधीसादी घरेलू किस्म की औरत थी जिस की दुनिया महज घरगृहस्थी, पति, बच्चों तक ही सीमित थी. वह पुरुषों से पूरे आत्मविश्वास से बात न कर पाती. यहां जयपुर में उस का ऐसा कोई रिश्तेदार न था जो इस मुश्किल घड़ी में अस्पताल के मसलों में उस की मदद कर पाता.

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गौरा के मायके में मात्र वृद्धा विधवा मां थी जो अपनी किशोरवय की बेटी के साथ रहतीं. वह बड़ी मुश्किल से लोगों के कपड़े सील कर अपना और अपनी बेटी का पेट पालती. उस के ससुराल में भी उस के मात्र वयोवृद्ध ससुर थे, जो जयपुर के पास के एक गांव में अपनी वृद्धा बहन के साथ रहा करते. इसलिए गौरा को दोनों ही पक्षों से किसी तरह के सहारे की कोई उम्मीद न थी .

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