संबंध : भाग 3- भैया-भाभी के लिए क्या रीना की सोच बदल पाई?

किस से कहें, क्या कहें? भोलीभाली मां छलप्रवंचनाओं के छद्मों को कदापि नहीं पहचान पाई थीं, तभी तो ‘हां’ कर बैठी थीं.

मेहमानों की खुसुरफुसुर सुन कर लग रहा था उन्हें अंजू के बारे में पता लग चुका था. अभी रात्रि के 10 बजे थे. सहसा देविका मौसी घर आई थीं. बोलीं, ‘‘दीदी, तुम सब से अंजू मिलना चाहती है. उस की जिद है कि जब तक विपिन से बात नहीं करेगी, यह विवाह संपन्न न होगा.’’

इस पल तक हर दिल में व्याप्त समुद्री शोर थम सा गया. एक लमहे के लिए मानो सन्नाटा छाया सा लगने लगा था वहां. मुझे कुछ आशा की किरण दमकती लगी. गाड़ी निकाल कर मैं, मां व भैया अंजू के पास गए थे. बाबूजी अपने उच्च रक्तचाप के कारण जा नहीं पाए थे. कमरे में अंजू व देविका मौसी ही थीं. उस ने आगे बढ़ कर मां के चरण स्पर्श किए. मां ने भी आशीर्वाद दिया था. अंजू ने ही मौन तोड़ा था :

‘‘मां, क्या आप मुझे बहू के रूप में स्वीकार कर पाएंगी?’’

मां इस प्रश्न के लिए तैयार न थीं.

वे भैया की ओर उन्मुख हो कर बोलीं, ‘‘कोई भी फैसला किसी भी प्रकार के दबाव में आ कर मत कीजिएगा. इस में देविका चाची का भी कोई दोष नहीं है. लगभग 3 वर्ष पूर्व मेरी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. बुरी तरह जख्मी हो गई थी मैं. डाक्टरों ने प्रयत्न कर के मुझे तो बचा लिया पर आज भी मुझे कई दिनों के अंतराल पर बेहोशी के दौरे पड़ते हैं. उस के 1-2 दिन बाद तक मेरे हाथ यों टेढ़े हो जाते हैं. सामान्य होने में कुछ वक्त लगता है. मांजी, मैं आप के घर की खुशियां बरबाद करना नहीं चाहती. देविका चाची भी इस दुर्घटना के बारे में अनभिज्ञ थीं. मैं पूर्णरूप से एक आदर्श बहू बनने का प्रयत्न करूंगी. विपिनजी, आप का निर्णय ही मेरा अंतिम निर्णय होगा.’’

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स्पष्ट रूप से उस ने बात समझाई थी. मैं ने सोचा, भैया का उत्तर अवश्य ही नकारात्मक होगा. उन्होंने तो एक पल भी हामी भरने में देर न की थी.

मां को भी यह संबंध शायद स्वीकार था. कहीं कोरी वचनबद्धता के तहत तो भैया व मां ने हामी नहीं भरी थी? या दहेज के लालच में आ कर मां अपने बेटे का जीवन बलिदान कर रही थीं? मैं ने भैया से पूछा भी था, ‘एक अपाहिज के साथ जीवन बिता सकेंगे आप?’

मां से भी कहा था, ‘धनदौलत तो हाथों का मैल है, मां. अपने बेटे को यों बेचो मत. भैया का जीवन अंधकारमय हो जाएगा. अब क्या तुम्हारे दिन हैं सेवाटहल करने के, थक जाओगी तुम?’

अपने भाई की खुशियों को आग में जलता देख भला किस बहन का दिल रुदन करने को न चाहेगा. भैया ने अपना स्नेहिल हाथ मेरे सिर पर रख कर कहा था, ‘रीना, यदि अंजू विवाह के बाद यों दुर्घटनाग्रस्त हुई होती तो क्या हम उसे स्वीकार न करते?’

‘तब की बात और थी, भैया.’

‘अच्छा एक बात बता, यदि हमारी कोई बहन अपाहिज होती तो क्या हम उस का घर बसाने का प्रयत्न न करते?’

‘अवश्य करते, पर छल से नहीं.’

‘तो इस पूरे घटनाक्रम में अंजू तो दोषी नहीं. मैं वादा करता हूं मैं अपनी तरफ से किसी को शिकायत का मौका नहीं दूंगा.’

हम सब चुप रह गए थे. सीधासरल व्यक्तित्व लिए भैया भविष्य की दुश्ंिचताओं से अनभिज्ञ से थे. मेरे प्रतिकार, विरोध, प्रतिवाद सब व्यर्थ हो गए थे. मैं मूकदर्शिका सी बनी अपने परिवार की खुशियां अग्नि के हवाले होते देख रही थी. जी चाहा, इस विवाह में सम्मिलित ही न होऊं, कहीं भाग जाऊं. पर सामाजिक बंधनों में जकड़े मनुष्य को मर्यादा के अंश सहेजने ही पड़ते हैं.

भैया का विवाह संपन्न हो गया.

विवाहोपरांत दिए जाने वाले प्रीतिभोज के अवसर पर मेहमानों की अगवानी व स्वागतसत्कार के लिए भैया के साथ खड़ी भाभी मेहमानों की भीड़ में गश खा कर गिर पड़ी थीं. मेहमानों के समक्ष बहाना बनाना पड़ा था, थकावट के कारण ऐसा हुआ है. एक टीस सी उभरी दिल में. यदि तब भाभी मृत्यु की गोद में समा गई होती तो मेरे भैया का जीवन यों बरबाद न होता.

मां व बाबूजी ने पूर्ण स्नेह व सम्मान दिया था बहू को. फूल की कोंपल के समान उस की रक्षा की जाती थी. मां किसी भी अभद्र व्यवहार को बरदाश्त नहीं करती थीं. कपोत की तरह अपने डैनों से ढक कर वे भाभी की रक्षा कर रही थीं. सभी के होंठ सी गए थे. मानवता की मूर्ति बनी थीं वे. यदि भाभी सामान्य होतीं तो मां पर अवश्य गर्व करती. पर एक बीमार स्त्री को अपने बेटे के साथ प्रणयसूत्र में बांध कर उन्होंने उस के प्रति जो अन्याय किया था, उसे मैं भूल नहीं पा रही थी.

दहेज में रंगीन टीवी, वीसीआर और एअरकंडीशनर से ले कर हीरे, माणिक, मोती सभी कुछ तो थे, पर इन चीजों की यहां कोई कमी न थी.

घर आ कर मैं फूटफूट कर इतना रोई कि शायद दीवारें भी पसीज गई होंगी. अश्विनी ने बहुत प्यार से समझाया था, ‘वैवाहिक संबंध संयोगवश बनते हैं. तुम्हारे भैया की शादी जिस से होनी थी, हो गई. इस संबंध में व्यर्थ चिंता करने से क्या लाभ है. और यह भी तो हो सकता है कि तुम्हारी भाभी का स्वभाव इतना मृदु हो कि तुम सब को वह स्नेहपाश में बांध ले.’

मैं चुप हो गई.

तभी सास, ननद आ धमकी थीं. सास बोलीं, ‘‘हां भई, अब तो एसी दहेज में मिलने लगे हैं. हमारे बेटे को तो कूलर भी नहीं मिला था. अब बहू टेढ़ीमेढ़ी हो तो क्या हुआ?’’

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जी चाहा प्रत्युत्तर में उन का मुंह नोच लूं. तुम्हारे हृदय में मानवता हो तो जानो मोल मानवता का, पर अश्विनी ने इशारे से चुप करवा दिया था. 3-4 दिन बाद मां को फोन किया. सोचा, अकेली होंगी. कुछ तो मन हलका कर लेंगी मेरे साथ. भैयाभाभी तो हनीमून पर गए थे. फोन अंजू ने उठाया, ‘‘हैलो, रीना तुम? इतनी जल्दी क्यों आ गईं अपने घर?’’

‘‘……’’

‘‘तुम लोग तो 15 दिन बाद आने वाले थे न?’’

‘‘हां, वहां जा कर मां से फोन पर बात की तो मालूम पड़ा, बाबूजी बीमार हैं, इसीलिए वापस आ गए.’’

उस के स्वर में मिसरी घुली थी. मैं ने सोचा, ‘तुम्हारे जैसी बीमार स्त्री कश्मीर की वादियों में भैया का क्या मन मोह पाई होगी?’

तभी मैं बाबूजी से मिलने चल पड़ी थी.

अंजू उन के सिरहाने बैठी थी. मां को जबरदस्ती सुला दिया था उस ने. बोली, ‘‘परेशान हो जाती हैं मां बाबूजी को देख कर. मैं तो हूं ही यहां.’’

और वह एक ट्रे में बाबूजी के लिए जूस व मेरे लिए चाय ले कर आ गई थी. दीनू को भेज कर समोसे भी मंगवाए थे उस ने. बोली, ‘‘खाओ न, तुम्हें बहुत पसंद हैं न ये.’’

उस के बाद वह हर एक घंटे बाद बाबूजी का बुखार देखती रही. अच्छा तो बहुत लगा यह सब, पर फिर सोचा, कहीं यह आडंबर तो नहीं. अपना दोष छिपाने के लिए नाटक कर रही हो? पर आत्ममंथन करने पर मैं ही ग्लानि से भर गई थी. बेटी होने का मैं ने कौन सा कर्तव्य निभाया.

शाम को उस ने अश्विनी को भी फोन कर बुला लिया. जबरदस्ती हमें रोक लिया था उस ने. पूरी मेज मेरी पसंद के भोजन से सजी थी, पर मेरे मुंह से प्रशंसा का एक भी शब्द नहीं निकल रहा था. भैया भी हाथोंहाथ ले रहे थे. सभी सामान्य थे.

वापस अपने घर आई तो यहां भी जी नहीं लग रहा था. तभी भैया मां को ले कर आए थे. मां बोली थीं, ‘‘कल अंजू फिर बेहोश हो गई थी. उस की तबीयत देख कर घबरा जाती हूं. कौन से अस्पताल में दाखिल करूं, समझ नहीं आता?’’

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पार्किंसंस बीमारी का क्या कोई और इलाज संभव है?

सवाल-

मेरे पिताजी 63 साल के रिटायर बैंक मैनेजर हैं. उन्हें पहली बार पार्किंसंस बीमारी के लक्षण 59 साल की उम्र में महसूस होने लगे थे, जिस वजह से उन्होंने जल्दी रिटायरमैंट ले लिया. पहले उन की दाएं हाथ की उंगलियों में कंपकंपाहट थी और बीमारी का पता चलते ही उन की दवा शुरू हो गई थी, लेकिन अब समय के साथ उन की स्थिति ज्यादा ही खराब होती जा रही है. आजकल वे एकदम अकड़न की स्थिति में आ जाते हैं और उन्हें चलने में दिक्कत होने लगती है. दवाओं का उन पर कुछ असर नहीं हो रहा. क्या कोई और इलाज संभव है?

जवाब-

अगर आप के पिताजी पर दवाएं असर नहीं कर रहीं तो आप डीप बे्रन स्टिमुलेशन (डीबीएस) थेरैपी करवा सकते हैं. डीबीएस थेरैपी से पार्किंसंस बीमारी की परेशानियों जैसे कंपकंपाहट, अकड़न और चलने में दिक्कत वगैरह का इलाज किया जा सकता है, इसलिए डाक्टर से परामर्श ले कर आप अपने पिताजी का डीबीएस करवा सकते हैं.

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हमारे मस्तिष्क का अनगिनत तंत्रतंत्रिकाओं का विस्तृत नैटवर्क एक कंप्यूटर के समान है, जो हमें निर्देश देता है कि किस प्रकार विभिन्न संवेदों, जैसे गरम, ठंडा, दबाव, दर्द आदि के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए. इस के साथ ही यह बोनसस्वरूप हमें भावनाओं व विचारों को सोचनेसमझने की शक्ति भी देता है. हम जो चीज खाते हैं, उस का सीधा असर हमारे मस्तिष्क के कार्य पर पड़ता है. यह सिद्ध किया जा चुका है कि सही भोजन खाने से हमारा आई.क्यू. बेहतर होता है, मनोदशा (मूड) अच्छी रहती है, हम भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत बनते हैं, स्मरणशक्ति तेज होती है व हमारा मस्तिष्क जवान रहता है. यही नहीं, यदि मस्तिष्क को सही पोषक तत्त्व दिए जाएं तो हमारी चिंतन करने की क्षमता बढ़ती है, एकाग्रता बेहतर होती है व हम ज्यादा संतुलित व व्यवस्थित व्यवहार करते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- दिमागी शक्ति बढ़ाता आहार

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

चिड़िया चुग गईं खेत: भाग 5- शादीशुदा मनोज के साथ थाईलैंड में क्या हुआ था

वह शाम भी उस ने जूली के साथ बिताई. पूरे समय जूली उस का आभार प्रकट करती रही. उस ने मनोज को कसम खिलाई कि वह भारत वापस जा कर उसे भूलेगा नहीं और हमेशा उसे फोन करेगा.

दूसरे दिन मनोज भारत के लिए वापस निकल आया. जूली ने आंखों में आंसू भर कर उसे भावभीनी विदाई दी. उस ने वादा किया कि वह जल्द से जल्द उसे पैसे वापस करेगी.

भारत वापस आने पर मनोज का हर रोज जूली से बात करने का सिलसिला जारी रहा. बातों से ही उसे पता चला कि जूली अपने घर लौट गई है और उस ने शौप खोल ली है. वह हर रोज अपने कार्य की प्रगति के बारे में उत्साह से उसे बताती, जैसे आज उस ने क्या खरीदा, उसे शौप में कैसे जमाया, लोग उस की दुकान पर आने लगे हैं, उसे उस के पैसे जल्द से जल्द चुकाने हैं इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा मेहनत कर रही है.

इधर, दिन, हफ्ते, महीने बीत गए पर जूली ने मनोज का एक भी पैसा वापस नहीं किया. मनोज को तो भावेश, सुरेश और बाकी लोगों के पैसे वापस करने ही पड़े. दोनों अकसर उसे कहते कि उस ने धोखा खाया है. जूली ने उसे बेवकूफ बनाया है पर मनोज का मन यह मानने को तैयार नहीं होता. लेकिन आजकल वह जब भी जूली से पैसे लौटाने की बात करता, वह टालमटोल करने लगती, अपनी परेशानियां गिनाने लगती. फिर एक दिन अचानक जूली ने अपना फोन बंद कर दिया. मनोज महीनों उसे फोन लगाता रहा पर वह नंबर स्विच औफ ही आता. अब तो मनोज भी समझ गया कि उस ने धोखा खाया.

वह रातदिन जूली को गालियां देता और अपनी मूर्खता पर पछताता. ठगे जाने से वह बुरी तरह तिलमिला रहा था. उसे सब से ज्यादा जलन इस बात पर हो रही थी कि उस के दोस्त इस से बहुत कम पैसों में लड़कियों के साथ ऐश कर आए और वह इतना सारा पैसा खर्च कर के भी सूखा रह गया. बेकार की भावनात्मक सहानुभूति में पड़ कर अच्छाभला चूना लग गया.

2 साल बीत गए. जूली का अतापता नहीं था. मनोज भी उस कसक को जैसेतैसे कर के भूल गया था.

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एक दिन मुंबई में उस का एक दोस्त उस से मिलने आया. दोनों औफिस में मनोज के केबिन में बैठ कर बातें कर रहे थे. बातों ही बातों में उस के दोस्त अजय ने उसे बताया कि वह हाल ही में थाईलैंड के पटाया शहर गया था. और उस के बाद अजय की कहानी सुन कर मनोज सन्न रह गया. उसे लगा कि जैसे अजय उस की ही कहानी सुना रहा है. उस की कहानी का प्रत्येक शब्द और घटना वही थी जो

2 साल पहले मनोज के साथ घटी थी.

मनोज के घाव हरे हो गए. उस ने अजय को अपनी आपबीती सुनाई. सुन कर अजय भी बुरी तरह चौंक गया. उस ने तुरंत जूली को फोन लगाया क्योंकि उस के पास उस का नया नंबर था ही. उस ने स्पीकर औन कर के जूली से बात की. जूली की आवाज सुनते ही मनोज उसे पहचान गया. उस ने अजय को इशारे से बताया कि यह वही है. अब तो अजय भी बौखला गया और मनोज का तो गुस्से से बुरा हाल हो गया. उस के अंदर लावा उबलने लगा. वह जूली को अनापशनाप बोलने लगा. पहले तो वह अचकचा गई फिर मनोज को पहचान गई. मनोज उसे गालियां देने लगा तो जूली को भी गुस्सा आ गया.

‘‘देखिए, मिस्टर मनोज, जबान संभाल कर बात करिए. आप को कोई हक नहीं बनता मुझे बुराभला बोलने का,’’ जूली तीखे स्वर में बोली.

‘‘धोखेबाज, एक तो धोखा देती हो ऊपर से तेवर दिखाती हो. उलटा चोर कोतवाल को डांटे,’’ मनोज तिलमिला कर बोला.

‘‘धोखेबाज कौन है यह अपनेआप से पूछो,’’ जूली कड़वे स्वर में बोली, ‘‘तुम मर्द लोग विदेश जा कर कम उम्र की लड़कियों के साथ रंगरलियां मनाने और ऐश करने के लिए सदा लालायित रहते हो. दूसरी लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाने को आतुर रहते हो. लड़कियों के साथ घूमने और एंजौय करने, मौजमस्ती करते समय तुम्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आता कि तुम अपनी पत्नियों के साथ धोखा कर रहे हो. लड़कियां तुम्हें हंस कर देख लें, तुम्हारे साथ मौजमस्ती कर लें तो तुम्हें अपना जीवन सार्थक और धन्य नजर आने लगता है. बोलो, तुम्हारा अंतर्मन एक बार भी तुम्हें कचोटता नहीं है?’’

फिर थोड़ा रुक कर –

‘‘मैं ने न तुम्हारी जेब काटी न बंदूक दिखा कर तुम्हें लूटा है. पैसे तुम ने अपनी मरजी से मुझे दिए थे.’’

‘‘लेकिन तुम ने पैसे वापस करने को तो कहा था न? उस का क्या?’’ मनोज गुस्से से बोला.

‘‘हां, कहा था. नहीं कहती तो क्या एक गरीब और असहाय लड़की की सहायता बिना किसी लालच के करते तुम लोग? नहीं, कभी नहीं करते. धोखा असल में मैं ने तुम्हें नहीं दिया, तुम्हारी गलत प्रवृत्ति ने तुम्हें दिया है. सचसच बताना, पैसा देने के बाद क्या तुम्हारे मन में मेरे साथ हमबिस्तर होने की तीव्र इच्छा नहीं हो रही थी? पैसे के एवज में क्या तुम लोग मेरा शरीर नहीं चाह रहे थे. वह तो मैं पूरे समय तुम्हें शराफत का वास्ता देती रही, इसलिए बच गई. और मैं तुम्हारी मर्यादा और चरित्र की झूठी तारीफें भी इसीलिए करती रहती थी कि तुम लोग अपनी हद में रहो.’’

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जूली की बातों की सचाई ने मानो उन्हें नंगा कर दिया. दोनों एकदूसरे से नजरें चुराते हुए सिर नीचा कर के बैठे रहे और जूली बोलती रही.

‘‘सच कहूं तो पुरुषों को उन की प्रवृत्ति ही धोखा देती है. नया रोमांच, नया अनुभव पाने की इच्छा ही उन्हें डुबोती है. तुम लोग अपनी पत्नियों के प्रति वफादार होते नहीं और हमें गालियां देते हो. क्या बुरा करती हूं जो तुम जैसे मर्दों से पैसा ऐंठ कर मैं आज तक अपनी इज्जत बचाती आई हूं. आज के बाद मुझे कभी फोन मत करना क्योंकि यह नंबर मैं आज ही बंद कर दूंगी. अच्छा हुआ, जो अजय को भी सच पता चल गया. गुडबाय,’’ और जूली ने फोन काट दिया.

अजय और मनोज सन्न हो कर चुप बैठे थे, जूली ने उन्हें आईना दिखा दिया था. चिडि़यां खेत चुग चुकी थीं.

चिड़िया चुग गईं खेत: भाग 4- शादीशुदा मनोज के साथ थाईलैंड में क्या हुआ था

बच्चों और सासससुर व घर की देखभाल में लीन एक आदर्श भारतीय नारी. उस की पत्नी, मां और बहू के रूप में आदर्श भारतीय नारी थी. लेकिन वह मनोज के स्वभाव के अनुकूल नहीं थी.

मनोज मस्तमौला, खिलंदड़ स्वभाव का था. वह चाहता था कि मीरा भी उस के साथ दोस्तों की महफिलों में जाए, हंसीमस्ती करे, पार्टियां मनाए, कैंडललाइट डिनर करे, परंतु मीरा को यह सब पसंद नहीं था. उस के पीछे हर समय घर या बच्चों का कोई न कोई काम लगा ही रहता था और मनोज मन मसोस कर रह जाता.

मनोज के दोस्त लड़कियों के साथ अपनी दोस्ती और मौजमस्ती के किस्से सुनाते तो मनोज का दिल भी बल्लियों उछलने लगता था. पर क्या करे, उस के तो औफिस के उस विभाग में, जहां वह काम करता था, एक भी लड़की नहीं थी.

मगर अब जूली से मिलने के बाद मनोज के मन की रंगीनियां जागने लगी थीं. आज का कैंडललाइट डिनर उस के दिल को छू गया था. पैसे को हमेशा किफायत और संभाल कर खर्च करने वाला मनोज अब दिल खोल कर पैसा खर्च कर रहा था ताकि दिल की वर्षों से अधूरी पड़ी तमन्नाएं पूरी हो जाएं.

सुबह मनोज की आंख जल्दी खुल गई. वह देर तक जूली के बारे में सोचता हुआ पलंग पर पड़ा रहा. 8 बजे भावेश और सुरेश फिर से आ धमके मसाज के लिए. आज मनोज सहर्ष तैयार हो गया. तीनों फिर पहुंचे पार्लर. जूली व्यग्रता से मनोज की राह देख रही थी. वह लपक कर उस के पास आई और हाथ पकड़ कर उसे केबिन में ले गई.

आज मसाज के समय मनोज के मन में इच्छाओं के सर्प फन उठा रहे थे. नसों का लहू बारबार आवेश से तेज हो रहा था. पर जूली मसाज करते हुए पूरे समय मनोज के सचरित्र और सभ्यता, संस्कारों के गुण गाती रही, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाया. अपने मन को जबरदस्ती काबू में कर के रखा. आज उन लोगों को शहर से बाहर समुद्र के किनारे पेरासीलिंग के लिए जाना था. बे्रकफास्ट कर के वे लोग निकल जाएंगे और देर शाम को वापस आएंगे. सुनते ही जूली का चेहरा उतर गया तो मनोज ने उसे आश्वासन दिया कि वह डिनर उसी के साथ करेगा.

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दिनभर के कार्यकलापों में मनोज बहुत थक चुका था. वह पलंग पर पड़े रहना चाहता था लेकिन जूली से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा था. गरमागरम पानी से नहा कर वह तैयार हो कर नियत समय पर नियत स्थान पर पहुंच गया. जूली वहां पहले से ही प्रतिक्षारत खड़ी थी. आज उसे देखते ही भावातिरेक में जूली ने उसे गले से लगा लिया. मनोज फड़क उठा. उस की सारी थकान दूर हो गई. देर तक वे पटाया की रंगीन चकाचौंध और मस्ती से भरी हुई सड़कों पर घूमते रहे. फिर एक रैस्टोरेंट में आ कर बैठ गए. वहां का माहौल मदहोश कर देने वाला था. डांसफ्लोर पर जोड़े एकदूसरे की बांहों में खोए हुए झूम रहे थे.

जूली ने मनोज से डांस का प्रस्ताव रखा. उसे तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. वह झट से उठ बैठा. जूली के जवान और मस्ती में चूर शरीर के सान्निध्य में मनोज अपनी सुधबुध खो बैठा. वह इस नए अनुभव में पूरी तरह मदहोश हो गया. जूली का नशा उस पर पूरी तरह चढ़ चुका था. वह उस के जादू में गिरफ्तार हो गया.

डिनर करते समय जूली ने आंखों में आंसू भर कर फिर अपनी व्यथा सुनाई कि मातापिता की वृद्धावस्था और दवाइयों के बढ़ते खर्च के दबाव के चलते उस की मां ने कल फिर से उसे रेड जोन में जाने का आग्रह किया. कल उस की मां ने उसे बहुतकुछ उलटासीधा सुनाया कि उसे उन की जरा सी भी चिंता नहीं है, वह तो बस अपनेआप में ही मस्त है.

‘‘मैं उस गंदे धंधे में नहीं पड़ना चाहती मनोज, पर मां लगातार मुझ पर दबाव बनाती जा रही हैं. हर दूसरे दिन मुझे बुराभला कहती रहती हैं. मैं क्या करूं, इस से तो अच्छा है मैं आत्महत्या कर लूं,’’ जूली सुबकते हुए बोली.

‘‘नहींनहीं, जूली.’’ उस के हाथ पर सहानुभूति से अपना हाथ रखते हुए मनोज ने उसे सांत्वना दी, ‘‘ऐसे निराश नहीं होते. मैं जाने के पहले ऐसा इंतजाम कर जाऊंगा कि तुम्हें इस कीचड़ में न धंसना पड़े.’’

‘‘ओह मनोज, सच में. मैं ने अपने जीवन में तुम्हारे जैसा सच्चे और भले हृदय का आदमी नहीं देखा,’’ भावनाओं के अतिरेक में जूली ने मनोज का हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ कर चूम लिया.

उस रात होटल के कमरे में सोया मनोज सुबह होने तक इसी उधेड़बुन में पड़ा रहा कि क्या करे और क्या नहीं. एक क्षण उसे एहसास होता कि वह व्यर्थ ही जूली के चक्कर में पड़ गया है. 4 दिनों के लिए आया है, घूमेफिरे और लौट जाए. बेकार ही यह जंजाल उस ने अपने गले बांध लिया है. जिंदगी में दोबारा कभी उस से मुलाकात तो होगी नहीं, फिर इतना पैसा वह क्यों उस पर खर्च करने की सोच रहा है.

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पर दूसरे ही क्षण उस का पुरुषत्व उसे धिक्कारता कि वह एक बेबस की मदद करने से कतरा रहा है. वह भी चंद पैसों के लिए. सच तो यह था कि वह गले तक जूली के आकर्षण में डूब चुका था. उस में पता नहीं ऐसा क्या था कि वह अपनेआप को जूली से तटस्थ नहीं रख पा रहा था. आखिर में उस ने यही तय किया कि वह जूली की मदद अवश्य करेगा. तब जा कर उसे नींद आई.

2 हजार डौलर मामूली रकम नहीं थी. दूसरे दिन भावेश, सुरेश और दोएक और दोस्तों के पास से इकट्ठा कर के मनोज ने ठीक 2 हजार डौलर जूली को दिए. क्षणभर को जूली हतप्रभ सी खड़ी डौलर्स को देखती रही, फिर मनोज के गले लग कर रोने लगी. उस की आंखों में खुशी के आंसू बह रहे थे. उस का स्पर्श पा कर मनोज के दिल में तरंगें उठने लगीं. मन में यह लालसा होने लगी कि काश, अब तो जूली खुश हो कर बस एक बार समर्पण कर दे. पर ऊपर से मर्यादावश वह कुछ बोल नहीं सका. अफसोस, जूली ने भी ऐसी कोई इच्छा नहीं जताई.

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चिड़िया चुग गईं खेत: भाग 3- शादीशुदा मनोज के साथ थाईलैंड में क्या हुआ था

‘‘लेकिन यहां पार्लरों में जिस तरह के लोग आते हैं तुम कब तक अपनेआप को बचा कर रख पाओगी?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘हां, कभीकभी बहुत परेशानी में पड़ जाती हूं, बहुत डर लगता है. पर अब तक बची हुई हूं. इसीलिए जल्द से जल्द यहां से वापस जाना चाहती हूं क्योंकि आप जैसे शरीफ और सच्चे लोग हर रोज नहीं मिलते,’’ जूली ने एक बार फिर से मनोज की तारीफ की तो वह और अधिक खिल उठा.

‘‘पर तुम वापस जा कर करोगी क्या?’’ मनोज ने सवाल किया.

‘‘मैं एक गिफ्ट शौप खोलना चाहती हूं. मेरे छोटे से शहर में ज्यादा दुकानें नहीं हैं. अगर मैं शौप खोल पाई तो अपने परिवार का पालनपोषण करने के लायक अच्छा काम कर सकूंगी और फिर मुझे रेड जोन की जिल्लतभरी जिंदगी जीने की कोई जरूरत नहीं रहेगी,’’ जूली आशाभरी आवाज में बोली.

‘‘कितनी रकम की जरूरत है तुम्हें शौप खोलने के लिए?’’ मनोज के मुंह से न चाहते हुए भी जाने कैसे यह सवाल निकल गया.

‘‘2 हजार डौलर में एक अच्छी शौप गांव में खुल सकेगी,’’ जूली ने उत्साहित स्वर में जवाब दिया.

मनोज के गले में जैसे अचानक ही कुछ अटक गया. जूली उस की मनोदशा समझ कर गंभीर मगर रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘मैं जानती हूं, यह बहुत बड़ी रकम है. और आज के युग में इतना बड़ा दिल किसी का नहीं होता कि बिना लड़की का इस्तेमाल कर के उसे एक तिनका भी दे दे. आजकल तो सब मर्द शरीर के लोलुप होते हैं. लड़की का जीभर कर इस्तेमाल किया और फिर उस के हाथ में चंद नोट पकड़ा दिए. बिना स्वार्थपूर्ति के महज इंसानियत के नाते लड़की की मदद करने वाले बड़े दिल के स्वार्थरहित सच्चे मर्द आजकल बचे ही कहां हैं.’’

जूली ने एक तीखी चुभती हुई नजर से मनोज को देखा. जूली के आक्षेप से मनोज के अंदर का मर्द तिलमिला गया. उसी क्षण उस के अहं ने सिर उठाया, ‘क्या तुम सच्चे और शरीफ मर्द नहीं हो?’

‘‘नहींनहीं, जूली, मर्दों के बारे में तुम्हारी यह धारणा सही नहीं है. सारे मर्द ऐसे शरीर लोलुप नहीं होते,’’ मनोज ने हड़बड़ा कर उत्तर दिया.

‘‘अरे जाने दीजिए, मनोजजी, मेरा तो रातदिन मर्दों से ही वास्ता पड़ता रहता है. मैं अच्छे से समझ चुकी हूं मर्दों की फितरत और नियत को,’’ जूली कड़वे स्वर में बोली.

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‘‘नहीं जूली, तुम्हें मर्दों के बारे में गलत धारणा बना कर नहीं रखनी चाहिए. सारे मर्द एक जैसे नहीं होते,’’ मनोज गंभीर स्वर में बोला.

‘‘मेरा पाला तो आज तक कामुक पुरुषों से ही पड़ा है. मसाज करवाते समय ऐसीऐसी हरकतें करते हैं कि अपनेआप से ही घृणा होने लगती है,’’ जूली की आंखें छलछला आईं.

क्षणभर को मनोज को उस अनजान विदेशी लड़की से सच्ची सहानुभूति हो आई पर उस ने जल्द ही अपनेआप को संभाल लिया. कहीं सहानुभूति जताते ही यह पैसा न मांगने लगे. पर तभी मन के एक कोने में एक धिक्कार सी उठी कि उस से मसाज करवाने में बातें करने में उस के साथ रैस्टोरेंट में मिलने आने में उसे कोई एतराज नहीं है पर उस की मदद के नाम से वह कतरा रहा है. आखिर कहीं न कहीं वह एक कम उम्र खूबसूरत जवान लड़की के प्रति किसी प्रकार का तीव्र आकर्षण अपने मन में महसूस तो कर ही रहा है न.

शाम ढलने लगी थी.

‘‘अब आप कहां जाएंगे?’’ जूली उस से पूछ रही थी.

‘‘मैं सोच रहा हूं कि आज फ्री हूं तो पत्नी और बेटों के लिए कुछ शौपिंग कर लूं,’’ मनोज ने कहा, ‘‘यहां आसपास कोई मौल है क्या?’’

‘‘मौल में तो आप को सबकुछ बहुत महंगा मिलेगा. यहां से पास में ही एक लोकल मार्केट है. वहां क्वालिटी भी अच्छी मिलेगी और कीमतें भी मौल की अपेक्षा काफी कम हैं. यदि आप चाहें तो मैं आप को वहां ले जा सकती हूं. शाम को मैं फ्री हूं,’’ जूली ने प्रस्ताव रखा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. चलो, चलते हैं. अच्छा है मुझे एक खूबसूरत और अनुभवी गाइड मिल जाएगी,’’ अब की बार जूली का मन हलका करने के लिए मनोज ने उस की तारीफ कर दी. जूली का चेहरा खिल गया.

दोनों मार्केट की ओर निकल गए. मार्केट जाने वाली स्ट्रीट पर चारों ओर का वातावरण बड़ा ही उन्मुक्त था. हर ओर लड़केलड़कियां, औरतआदमी छोटेछोटे कपड़ों में एकदूसरे की कमर में हाथ डाले मस्ती में चूर दीनदुनिया से बेखबर अपने ही रंग में झूमते हुए घूम रहे थे. मनोज ने अपने जीवन में पहली बार ऐसी उन्मुक्तता देखी थी. उस का दिल यह सब रंगीनियां देख कर फड़कने लगा.

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जूली उस के दिल की हालत समझ गई. उस ने मनोज की कमर में हाथ डाला और उस का हाथ अपने कंधे पर रख लिया और हंस पड़ी. फिर वह भी मनोज के साथ मस्त हो कर घूमने लगी. जूली के स्पर्श से मनोज का रोमरोम सुलगने लगा पर उस ने अपनेआप पर नियंत्रण रखा. हां, उस पर एक मीठी रूमानियत छाने लगी थी. एक लड़की के साथ इस तरह से घूमने का उस का पहला अनुभव था.

जूली ने सही कहा था. यहां पर सुंदर विदेशी वस्तुओं की भरमार थी और काफी सस्ती भी थीं. मनोज ने पत्नी और बच्चों के लिए ढेर सारी शौपिंग कर ली. जूली की आंखों में भी कुछ वस्तुओं को देख कर चमक उभर आई थी जिसे मनोज ने भांप लिया. उस ने जूली को भी वे चीजें खरीद दीं जिन्हें जूली ने बड़े उत्साह और खुशी से स्वीकार कर लिया.

उस रात मनोज ने एक रैस्टोरेंट में जूली के साथ कैंडललाइट डिनर किया. देर रात वह अपने होटल में वापस आया तब तक सब सो चुके थे. उस ने राहत की सांस ली. वरना भावेश और सुरेश व्यर्थ ही प्रश्नों की झड़ी लगा देते.

पलंग पर लेट कर भी मनोज की आंखों में नींद नहीं थी. बचपन से ही वह बौयज स्कूल और कालेज में पढ़ा था, इसलिए कभी लड़कियों से उस का संपर्क और दोस्ती नहीं रही. पढ़ाई के बाद नौकरी और फिर घर की जिम्मेदारियों के चलते मातापिता की मरजी की लड़की से शादी. यही घिसीपिटी कहानी रही उस के जीवन की. विवाह के बाद की जिंदगी भी बहुत ही आम और साधारण रही उस की. कोई नयापन नहीं, कोई रोमांच नहीं.

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चिड़िया चुग गईं खेत: भाग 2- शादीशुदा मनोज के साथ थाईलैंड में क्या हुआ था

किसी का दर्द उस से देखा नहीं जाता था, खासतौर पर लड़कियों का. मसाज का वक्त खत्म हो गया था. मनोज केबिन से निकलने के लिए कपड़े पहनने लगा. जूली का चेहरा उदास सा था, आंखें भरी हुई थीं.

‘‘पता नहीं क्यों, आप से मिलना बहुत अच्छा लगा. आप और लोगों से बहुत अलग हैं. मैं ने सुना था कि भारतीय लोग चरित्र और मन से बहुत सच्चे और अच्छे होते हैं. आज आप के रूप में देख भी लिया.’’

मनोज अपनी तारीफ सुन कर खुश हो गया.

‘‘अब आप से फिर मुलाकात कब होगी? आप पटाया में कब तक हैं?’’ जूली ने आतुर स्वर में पूछा.

‘‘अभी तो मैं 3 दिनों तक यहीं हूं. आज मीटिंग के बाद शाम को फ्री हूं,’’ मनोज ने बताया.

जूली की आंखों में चमक आ गई, ‘‘तो आज शाम को मिल सकते हो क्या?’’ उस ने आग्रहभरे स्वर में पूछा.

‘‘हां, ठीक है. शाम को 6 बजे मिलता हूं,’’ मनोज ने कहा तो जूली खुश हो गई. उस ने मनोज का मोबाइल नंबर ले लिया और अपना उसे दे दिया. जूली से विदा हो कर मनोज बाहर आ गया.

भावेश और सुरेश पहले से ही बाहर उस की राह देख रहे थे. उसे देखते ही दोनों आपस में रहस्यमय ढंग से एकदूसरे को देख कर मुसकराए.

‘‘क्यों बे, तू तो आने को तैयार नहीं था और अब सब से ज्यादा देर अंदर तू ही बैठा रहा,’’ भावेश ने उस की चुटकी ली.

‘‘क्या कर रहा था अंदर? मालिश या और कुछ?’’ सुरेश ने आंख दबाते हुए मनोज की चुटकी ली.

मनोज झेंप गया, ‘‘अरे यार, तुम लोग जैसा समझ रहे हो वैसा कुछ नहीं है.’’

‘‘हां बेटा, हम सब समझते हैं कि कैसा है,’’ दोनों ने उसे चिढ़ाया.

तीनों वापस होटल आ गए. नहाधो कर सब बे्रकफास्ट करने पहुंचे. फिर 11 बजे से मीटिंग शुरू हो गई. 2 बजे लंच के बाद फिर से मीटिंग हुई. साढ़े 4 बजे मीटिंग खत्म होने पर मनोज अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर औंधा पड़ गया. उसे कस कर नींद आ रही थी. अभी वह थोड़ी ही देर सोया होगा कि उस का मोबाइल बजने लगा.

फोन जूली का था. ‘‘क्या हुआ, आप सो रहे थे क्या? माफ कीजिएगा, मैं ने आप की नींद में खलल डाल दिया,’’ जूली क्षमायाचना करते हुए बोली.

‘‘अरे कोई बात नहीं, मैं बस उठ ही रहा था. कहो,’’ मनोज ने कोमल स्वर में कहा.

‘‘कुछ नहीं, मेरी ड्यूटी खत्म हो गई है. आप की याद आई तो सोचा फोन कर लूं,’’ मनोज के कोमल स्वर से उत्साहित हो कर जूली ने बात करनी शुरू की.

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दोनों इधरउधर की बातें करने लगे. बातोंबातों में जूली ने मनोज से मिलने की और कुछ वक्त उस के साथ बिताने की इच्छा जाहिर की. कुछ देर सोचने के बाद मनोज ने 15 मिनट बाद मसाज पार्लर के बाहर मिलने का वादा किया.

15 मिनट बाद नए कपड़े पहन कर और ढेर सारा डियो लगा कर मनोज सब की नजरें बचाते हुए होटल से बाहर निकला. वह नहीं चाहता था कि उस

के साथ आए लोगों में से कोई उसे देख ले और टोके, खासतौर पर भावेश और सुरेश.

जूली पार्लर के बाहर ही खड़ी थी. मनोज को देखते ही उस का चेहरा खिल गया. दोनों पास के एक रैस्टोरेंट में जा कर बैठ गए. जूली ने मनोज के परिवार के बारे में पूछना शुरू किया.

‘‘मेरे घर में पत्नी और 2 बेटे हैं.’’

‘‘क्या करते हैं आप के बेटे? कौन सी क्लास में हैं?’’ जूली के स्वर में उत्सुकता थी.

‘‘बड़ा बेटा इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में है और छोटा बेटा प्रथम वर्ष में,’’ मनोज ने बताया.

‘‘अरे, आप तो बहुत यंग दिखते हैं. आप को देख कर लगता ही नहीं है कि आप के इतने बड़े बच्चे हैं,’’ जूली आश्चर्य से बोली, ‘‘काफी मैंटेन कर के रखा है आप ने अपनेआप को.’’

‘‘थैंक्यू सो मच,’’

मनोज का चेहरा खुशी से लाल हो गया. यह पहली बार हुआ था कि किसी लड़की ने उस की तारीफ की थी.

मनोज ने जूली की इच्छानुसार 2 कोल्ड डिं्रक और 2 बर्गर का और्डर दे दिया. फिर वह जूली से परिवार के बारे में बातें करने लगा.

‘‘तुम यहीं पटाया में रहती हो क्या?’’

‘‘नहीं, मैं बैंकौक के पास एक बहुत छोटे से शहर में रहती हूं,’’ जूली ने बताया.

‘‘फिर तुम यहां पटाया में कैसे आ गई?’’ मनोज ने उत्सुकता से पूछा, ‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरे घर में बूढ़े मातापिता और 2 बड़े भाई हैं. यहां पटाया में मैं अपना और मातापिता का भरणपोषण करने के लिए आई हूं,’’ जूली ने खिड़की से बाहर देखते हुए बताया.

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‘‘जब तुम्हारे 2 बड़े भाई भी हैं तो तुम्हें यहां इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी?’’ मनोज ने आश्चर्य से पूछा.

एक गहरी सांस ले कर जूली ने विस्तार से बताना प्रारंभ किया, ‘‘मेरे दोनों बड़े भाई शादी कर के मातापिता से अलग हो गए हैं. वे घर में एक पैसा भी नहीं देते. यहां तक कि घर में आते भी नहीं हैं. मेरे पिता और मां दोनों जिंदगीभर दूसरों के खेतों में मजदूरी कर के अपना घर चलाते रहे. भाइयों की पढ़ाई और शादी में उन की सारी जमापूंजी खत्म हो गई. अब हमारे पास खाना खाने के भी लाले पड़ गए. पिता अब काफी बूढ़े हो गए हैं और अधिक मजदूरी नहीं कर सकते.’’

‘‘तो तुम ने वहीं कोई नौकरी क्यों नहीं कर ली?’’ मनोज ने सवाल किया.

‘‘पैसों की कमी के कारण पिताजी मुझे ज्यादा पढ़ा नहीं पाए. वहां ऐसी कोई नौकरी नहीं मिली जिस से गुजारे लायक कमा पाऊं. इसलिए मां ने 6 महीने पहले मुझे यहां पटाया भेज दिया ताकि मसाज का काम सीख कर पैसा कमा सकूं. वे तो मुझ से बुरा काम करने पर भी जोर दे रही हैं क्योंकि उस में पैसा बहुत मिलता है. पटाया में हजारों लड़कियों इसी काम में लगी हैं और सैलानियों से अच्?छाखासा पैसा ऐंठती हैं,’’ जूली ने तिक्त स्वर में कहा.

‘‘फिर तुम अब तक…?’’ मनोज ने उस के चेहरे पर एक भेदभरी नजर डालते हुए पूछा.

‘‘नहीं,मैं अभी तक वर्जिन (कुंआरी) हूं,’’ जूली ने तपाक से उत्तर दिया,

‘‘मैं किसी भी कीमत पर रेड जोन में नहीं जाना चाहती, चाहे मर ही क्यों न जाऊं. मैं इज्जत की जिंदगी गुजारना चाहती हूं.’’

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एक मौका और : भाग 4- हमेशा होती है अच्छाई की जीत

लेखिका- मरियम के. खान

सूटकेस में 10 हजार डौलर और अहम कागजात थे. कार उस ने क्लिनिक के गेट पर ही खड़ी कर दी. वह राहिल के साथ क्लिनिक के औफिस में आया तो ठिठक गया. सामने नर्सें, कंपाउंडर और गार्ड नीचे फर्श पर पड़े थे. डाक्टर ने राहिल की तरफ मुड़ना चाहा तो उसे कमर में चुभन का अहसास हुआ. कुछ ही देर में वह बेहोश हो गया. उस के बाद राहिल बाहर आया. बाहर वाले गार्ड को भी वह बेहोश कर के अंदर ले गया.

प्लान के मुताबिक शमा भी वहां पहुंच गई. उस ने पूछा, ‘‘सब ठीक है?’’

राहिल ने जवाब दिया, ‘‘सब पूरी तरह काबू में हैं.’’

उस ने मास्क लगा कर लोगों को एक जगह जमा कर लिया. ये वे जालिम और कातिल लोग थे, जिन्होंने मजबूर और बेबस लोगों को तड़पातड़पा कर मारा था. शमा ने पूछा, ‘‘अब इन के साथ क्या करोगे?’’

‘‘वही, जो इन्होंने दूसरों के साथ किया है,’’ राहिल आगे बोला, ‘‘चलो शमा, जल्दी आओ. हमें बाकी लोगों को यहां से आजाद करना है.’’

चाबियां राहिल के पास थीं. पहले उस ने ऊपर के कमरों के लोगों को एकएक कर आजाद किया और उन्हें धीमी आवाज में सारे हालात समझा दिए. उन्हें सलाह दी कि अपने रिश्तेदारों से बच कर किसी टीवी चैनल में चले जाओ. जब चैनल वाले तुम्हारी कहानी प्रसारित करेंगे, पुलिस खुदबखुद मदद को आ जाएगी.

सभी 17 मरीज आजाद हो गए. इन में नूर और सोहेल भी थे. सारे मरीज डरेसहमे जरूर थे लेकिन आजादी पर खुश नजर आ रहे थे. फिर राहिल औफिस में आया, जहां डा. काशान और उस के साथी बेहोश पड़े थे. उस ने सब की तलाशी ली. उन के पास हजारों रुपए मिले. वह सब उस ने अपने पास रख लिए. डा. काशान के सूटकेस से 10 हजार डौलर निकले जो उस ने सुरक्षित रख लिए. बाकी की सारी लोकल करेंसी मरीजों में बांट दी.

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सभी मरीजों के क्लिनिक से निकल जाने के बाद वह औफिस के पास वाले कमरे में आया, जहां बड़ेबड़े डिब्बे रखे थे, जिन से एक सुतली निकल कर बाहर जा रही थी. सुतली को आग दिखा कर राहिल शमा का हाथ पकड़ कर फौरन इमारत से बाहर आ गया. क्योंकि इमारत को जला कर खाक करने का इंतजाम वह पहले ही कर चुका था.

बाहर डा. काशान की कार खड़ी थी. उस ने सूटकेस उठा कर आग में फेंक दिया. कार की चाबी वह पहले ही ले चुका था. जैसे ही वे दोनों कार में बैठ कर कुछ दूर पहुंचे, बड़े जोर का धमाका हुआ. पूरी इमारत आग की लपटों में घिर गई.

नूर और सोहेल साथसाथ बाहर आए और एक तरफ चल पड़े. सोहेल ने नूर से कहा, ‘‘तुम अभी मेरे साथ चलो. दोनों सोचसमझ कर कोई कदम उठाएंगे.’’

बाकी के 15 लोग बस में बैठ कर एक टीवी चैनल के स्टूडियो की तरफ रवाना हो गए. सोहेल ने एक टैक्सी रोकी. रास्ते से कुछ खानेपीने का सामान लिया और एक शानदार बिल्डिंग के सामने उतरे. इस बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर सोहेल का एक शानदार फ्लैट था.

दरवाजे पर सोहेल ने कुछ नंबर बोल कर अनलौक कहा. दरवाजा क्लिक की आवाज के साथ खुल गया. यह आवाज से खुलने वाला दरवाजा था. दोनों ने फ्रैश हो कर खाना खाया. वहां पहुंच सोहेल ने नूर को अपनी कहानी सुनाई. पिता की जमीन पर सोहेल ने एक हौजरी की फैक्ट्री लगाई थी. धीरेधीरे उस का बिजनैस अच्छी तरह चल निकला. उस ने अपने दोनों भाइयों को भी पढ़ालिखा कर अपने साथ लगा लिया.

सोहेल आमदनी का एक चौथाई हिस्सा गरीब और मजबूर लोगों में बांट देता था और एक चौथाई अपने भाइयों को देता था, जो एक बड़ी रकम थी. पर भाइयों की नीयत बिगड़ गई. बिजनैस पर कब्जा करने के लिए उन्होंने सोहेल को नशीली चीज पिला कर उसे डा. काशान के क्लिनिक में भरती करा दिया.

उस दिन सोहेल ने इतने सालों के बाद नूर से अपनी मोहब्बत का इजहार किया. नूर ने शरमा कर सिर झुका लिया.

सारे मरीज टीवी चैनल के स्टूडियो पहुंचे और जब उन्होंने अपनी दास्तान सुनाई तो पूरे शहर में हंगामा मच गया. आईजी पुलिस ने मीडिया में खबर आते ही उन में से कुछ मरीजों के रिश्तेदारों के भागने से पहले ही दबिश डलवा कर हिरासत में ले लिया. हजारों की संख्या में लोग टीवी चैनल के स्टूडियो के सामने जमा हो गए.

आईजी ने वहां पहुंच कर वादा किया, ‘‘इन मजबूर और बेबस लोगों को जरूर इंसाफ मिलेगा. जो बीमार हैं, उन का इलाज कराया जाएगा. आरोपियों को हिरासत में लिया जा चुका है और उन के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी.’’

दूसरे दिन यह सारी कहानी आम हो गई. पुलिस डा. काशान के क्लिनिक पर भी पहुंची. वहां राख और हड्डियों के अलावा कुछ नहीं मिला. क्या हुआ? कैसे हुआ? क्यों हुआ? यह किसी भी मरीज को पता नहीं था.

नूर जब दूसरे दिन भी घर नहीं पहुंची तो सफदर, असगर और हुमा बेहद परेशान हो गए. डर से उन का बुरा हाल था. तीसरे दिन उन्हें नूर का फोन आया. उस ने उन्हें एक होटल में मिलने के लिए बुलाया.

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नूर को सहीसलामत देख कर उन तीनों की हालत खराब हो गई. वे सब रोरो कर माफी मांगने लगे. नूर ने कहा, ‘‘तुम मेरी औलाद हो. मैं तुम्हें माफ करती हूं पर एक शर्त पर. कंपनी के 55 प्रतिशत शेयर मेरे पास रहेंगे और 45 प्रतिशत तुम तीनों के. अगर तुम्हें मंजूर है तो मैं घर भी तुम्हारे नाम कर देती हूं. नहीं तो अगली मुलाकात अदालत में होगी. सोचने के लिए 2 दिन का टाइम दे रही हूं.’’ यह सब सोहेल का प्लान था.

2 दिन बाद उन लोगों ने इनकार में जवाब दिया. क्योंकि 55 प्रतिशत शेयर नूर के पास होने से वह उन्हें किसी भी बात के लिए मजबूर कर सकती थी. नूर ने पूरी तैयारी की.

नूर ने सीनियर मनोचिकित्सक से दिमागी तौर पर सही होने का सर्टिफिकेट भी ले लिया. इस के बाद उस ने अदालत में केस डाल दिया. सोहेल पूरी तरह से उस के साथ था. उस के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. एक अच्छा वकील भी उस ने कर लिया.

उस दिन अदालत में बहुत हुजूम था. नूर बहुत अच्छे से तैयार हो कर आई थी. अदालत में एक घंटे बहस चलती रही. सबूतों और दलीलों पर जज ने फैसला सुनाया कि नूर पूरी तरह से सेहतमंद है और अपनी कंपनी बहुत अच्छे से चला सकती हैं. इसलिए तीनों औलादें फैक्ट्री से बेदखल की जाती हैं. एक बात और ध्यान रखी जाए कि नूर की शिकायत पर उन्हें जेल भेज दिया जाएगा.

तीनों नाकाम हो कर अदालत से बाहर निकले. पहले ही उन का इतना पैसा खर्च हो चुका था. वे पैसेपैसे को मोहताज हो गए. नूर सोहेल के साथ उस के फ्लैट में चली गई.

सोहेल ने भी अपने भाइयों को 5-5 करोड़ और घर दे कर अपने बिजनैस से अलग कर दिया. वे लोग तो इतने डरे हुए थे कि पता नहीं सोहेल उन के साथ क्या करेगा. पैसे ले कर खुशीखुशी वे अलग हो गए. दूसरे दिन शाम को चंद दोस्तों की मौजूदगी में नूर और सोहेल ने निकाह कर लिया. नूर और सोहेल की बरसों की आरजू पूरी हुई.

नूर को एक चाहने वाला जीवनसाथी मिल गया. नूर ने सोहेल से कहा, ‘‘सोहेल मेरे बच्चे अब बहुत भुगत चुके हैं. उन्हें बहुत सजा मिल चुकी है. इसलिए वह फैक्ट्री में उन के नाम कर के सुकून की जिंदगी जीना चाहती हूं.’’

फिर नूर ने उन्हें बुला कर फैक्ट्री उन के सुपुर्द कर दी. पुराने मैनेजर को बहाल कर दिया और शर्त लगा दी कि चौथाई आमदनी गरीब लोगों में बांटी जाएगी. अगर इस में जरा सी भी गलती हुई तो अंजाम के वे खुद जिम्मेदार होंगे. सारी बातें पक्के तौर पर लिखी गईं. नूर ने एक धमकी और दे दी कि कभी भी उस की और सोहेल की अननेचुरल डेथ होती है तो उस की जिम्मेदारी उन तीनों की ही होगी.

दूसरे दिन नूर और सोहेल हनीमून मनाने के लिए एक हिल स्टेशन की तरफ निकल गए. वहां पर नूर के मोबाइल में कुछ खराबी आ गई थी. माल रोड पर घूमते हुए दोनों एक मोबाइल की दुकान पर पहुंचे. दुकानदार को देख कर दोनों चौंक गए. दुकानदार का भी चेहरा उतर गया. वह जल्दी से बोला, ‘‘मैं आप की क्या खिदमत कर सकता हूं?’’

‘‘कोई अच्छा सा मोबाइल दिखाइए.’’ सोहेल ने कहा.

एक अच्छा सा मोबाइल पसंद कर के सोहेल ने पैसे देते हुए कहा, ‘‘आप हमारे एक पहचान वाले से बहुत मिल रहे हैं. क्या मैं आप नाम जान सकता हूं?’’

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‘‘मेरा नाम नजीर हसन है.’’

नूर ने सोहेल का हाथ दबाते हुए कहा, ‘‘मेरा खयाल है यह वो नहीं है. आइए चलें. शायद आप को गलतफहमी हुई है.’’

सोहेल ने बाहर निकल कर कहा, ‘‘नूर वह राहिल था.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. पर उसी ने तो हम सब को बचाया है. अब वह बहुत बदल गया है.’’ सोहेल ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘सच कह रही हो. उसे भी तो एक मौका मिलना चाहिए.’’

नूर और सोहेल पुरसकून हो कर वहां से चले गए एक लंबी और खुशहाल जिंदगी गुजारने के लिए.

संबंध : भाग 2- भैया-भाभी के लिए क्या रीना की सोच बदल पाई?

मां तो यहां तक कहती हैं कि दहेज भी उन्होंने मौसी को मां से बढ़ कर ही दिया था. पुराने जमाने में रिश्ते निबाहना लोग भली प्रकार जानते थे शायद. वे हमेशा नानाजी के एहसानों से दबी रहती थीं. यदाकदा अमेरिका से आ कर ढेर सारे उपहारों से हमारा घर भर देतीं. हम भाईबहन को बहुत प्यार करतीं. वे दोनों सगी बहनों से बढ़ कर थीं.

‘‘लड़की स्वभाव से सुशील है, सुंदर है और सब से बड़ी बात एमबीए है,’’ खुशी के अतिरेक में मां बही चली जा रही थीं.

‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि वह रूपवती है?’’

मां फोटो निकाल लाई थीं. ऐसा लगा जैसे चांद धरती पर उतर आया हो, पर न जाने क्यों मेरा शंकालु हृदय इस रिश्ते को अनुमति नहीं दे रहा था.

‘‘मां, विदेश में पलीबढ़ी लड़की क्या यहां पर तारतम्य बिठा पाएगी? वहां के रहनसहन और यहां के तौरतरीकों में बहुत अंतर है.’’

‘‘तू नहीं जानती देविका का स्वभाव. मेरे ही साथ पलीबढ़ी है. उस के और मेरे संस्कारों में कोई अंतर थोड़े ही है. क्या उसे नहीं मालूम कि मैं विपिन के लिए कैसी लड़की पसंद करूंगी?’’

मैं देख रही थी भैया की भी मूक अनुमति थी इस संबंध में. बाबूजी का हस्तक्षेप सदा ही नकारात्मक रहा है ऐसे मामलों में. संबंध को स्वीकृति दे दी गई. ब्याह की तारीख 2 माह बाद दी गई थी. मांबाबूजी का विश्वास देखते ही बनता था.

मेरे जाने से जो सूनापन वहां आ गया था उसे अंजू भाभी पाट देंगी, ऐसा उन का अटूट विश्वास था. बारबार कहते, ‘जाओ, बाजार से खरीदारी कर के आओ.’ रोज मैं मां के साथ खरीदारी करती. उस के काल्पनिक गोरे रंग पर क्या फबेगा, यह सोच कर कपड़ा लिया जाता. इस घर में धनदौलत, मोटरबंगला, नौकरचाकर किसी की भी कमी नहीं थी. हीरेमोती के सैट लिए गए थे. समधियों के रहने का इंतजाम एक होटल में किया गया था. हर तरह की सुखसुविधाएं उन के लिए मुहैया थीं. मुझे भी कीमती साड़ी व जड़ाऊ सैट बाबूजी ने दिलवाया था. अश्विनी मना करते रह गए थे. मां का तर्क था कि इकलौते भाई की शादी में यह सब लेने का हक था मुझे.

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एकएक दिन युग के समान प्रतीत हो रहा था. कब वह दिन आए और मैं भाभी से मिलूं? आकांक्षाएं आसमान छू रही थीं. मां का उत्साह इकलौती बहू के प्रति देखते ही बनता था. बारबार कहतीं, ‘जोड़ी सुंदर तो लगेगी न?’ हम मुसकरा कर अपनी सहमति देते थे. विवाह का समय ज्योंज्यों नजदीक आता मांबाबूजी की बेचैनी बढ़ती जाती थी. सब काम अलगअलग लोगों में बंटा था. किसी प्रकार की कमी वह सह नहीं पा रहे थे.

भैया सदैव से अल्पभाषी रहे हैं, पर उन की उत्सुकता मां से छिपी न थी. आज भाभी और उन के पिताजी जो आ रहे थे. बारबार आंखों के सामने एक खूबसूरत चेहरा, छरहरा बदन व लंबे कद की रूपसी खड़ी हो जाती.

हम सब हवाई अड्डे पहुंच चुके थे. वहां पहुंच कर अश्विनी ने छेड़ा, ‘‘मां, अपनी बहू को कैसे पहचानोगी?’’

‘‘देविका के साथ जो सब से सुंदर लड़की होगी वही मेरी बहू है,’’ मां का अटूट विश्वास देखते ही बनता था.

उद्घोषिका ने सूचित किया, अमेरिका से आने वाला वायुयान आ गया है. उत्सुक निगाहें हर आगंतुक में भाभी को ढूंढ़ रही थीं.

सहसा मां को किसी ने अंक में भर लिया था, देविका मौसी थीं.

‘‘हमारी बहू कहां है?’’

‘‘और मेरी भाभी?’’ मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी.

उन्होंने एक 5 फुट की लड़की को आगे कर के कहा, ‘‘यही तो है तुम्हारी बहू.’’

मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था. कहां वह फोटो वाली रूपसी और कहां यह कुम्हलाया सा चेहरा? कहीं ये मजाक तो नहीं कर रही हैं, या मैं ही कोई दुस्वप्न देख रही हूं? उस के दोनों हाथ जुड़े हुए थे, शायद कभी पक्षाघात का शिकार हुई थी. कदकाठी का पूर्ण विकास हुआ लगता ही न था.

बाबूजी संज्ञाशून्य से परिस्थिति का विवेचन कर रहे थे और भैया अपना गांभीर्य ओढ़े कभी अंजू को निहार रहे थे, कभी हम सब को. अपनी जीवनसंगिनी को इस रूप में देख कर उन की आकांक्षाओं पर बुरी तरह तुषारापात हुआ था. मां गश खा कर गिर पड़ी थीं. किसी प्रकार उन्हें उठाया. रुग्ण सी काया व संतप्त मन लिए वे कांपती रही थीं. कितने अनदेखे दंश खाए होंगे उन्होंने, यह मैं भली प्रकार से महसूस कर पा रही थी. शक्ति की स्रोत मां बुरी प्रकार से टूट चुकी थीं.

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पर ऊपरी तौर पर सभी सामान्य थे. किसी ने एक शब्द भी न कहा था. मेरा हृदय चीत्कार कर के देविका मौसी को बुराभला कहने को चाह रहा था. खूब बदला लिया था उन्होंने हम सब से अपने पर किए गए एहसानों का. जाने कब का बदला लिया था उन्होंने भैया से? किंतु मातापिता की शिक्षा के कारण कुछ भी तो अनर्गल न कहा गया था.

फोटो वाली सुंदरसलोनी अंजू की तुलना इस अपाहिज से कर के मन दुखी सा हो गया था. भविष्य की सुंदर सुनहरी हरीतिमा की कल्पना यथार्थ की धरती पर मरुभूमि की सफेदी में परिवर्तित हो गई थी. सारे बिंबप्रतिबिंब टूट पड़े थे. ऐसा प्रतीत होता था कि सामने पड़े वैभव को किसी ने कालिमा से पोत दिया हो.

समधियों को उन के रहने के स्थान पर छोड़ा गया. उन की आवभगत के लिए कुछ लोग तैनात थे. एक बात कुछ विचित्र सी लगी थी, देविका मौसी सामान्य ही थीं. उन के व्यवहार से ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने हमारे साथ विश्वासघात किया हो.

घर आ कर हर परिचित, रिश्तेदार की जबान पर एक ही प्रश्न था, ‘बहू कैसी है?’

क्या बताते? मृत्यु के बाद का सा सन्नाटा छा गया था. ऐसा लगता, हम सब के शरीर का रक्त किसी ने चूस लिया हो. रात्रिभोज तक हम सब सामान्य थे या सामान्य होने का प्रयत्न कर रहे थे. अभी विवाह में 3 दिन का समय बाकी था. रहरह कर मां व बाबूजी पर क्रोध आ रहा था. इस नवीन विचारधारा के युग में महज फोटो देख कर ब्याह निश्चित करना कितनी बड़ी भूल थी. कुंठा कहीं दिल में कैद थी और जबान को मानो ताला लग गया था.

अगले भाग में पढ़ें- मां से भी कहा था, ‘धनदौलत तो हाथों का मैल  

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Video: अनुज की एंट्री होते ही अनुपमा को याद आया पुराना अफसाना, यूं गाने लगीं रोमांटिक गाना

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में अनुज कपाड़िया की एंट्री के बाद कहानी पूरी बदल चुकी है. जहां वनराज और काव्या पूरी कोशिश कर रहे हैं कि अनुज को अपने जाल में फंसा सके तो वहीं अनुज, अनुपमा के लिए अपने दिल में छिपा प्यार दबा नही पा रहा है. इसी बीच अनुपमा की एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें वह रोमांटिक गाना गाते नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो….

यूं रोमेंटिक हुईं अनुपमा

 

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सोशलमीडिया पर एक्टिव रहने वाली सीरियल अनुपमा की लीड एक्ट्रेस रुपाली गांगुली ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह एक पुराना रोमांटिक गाना गाती नजर आ रही हैं. वहीं फैंस को ये गाना बेहद पसंद आ रहा है. साथ ही फैंस इस गाने को अनुज कपाड़िया के लिए अनुपमा के प्यार का इजहार बता रहे हैं और जमकर वीडियो पर कमेंट कर रहे हैं.

 

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सीरियल में की तारीफ

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज कपाड़िया, अनुपमा की तारीफ करते हुए कहेगा कि पुरुषों को क्यों लगता है कि महिलाओं को जिंदगी में कुछ करने के लिए, आगे बढ़ने के लिए पुरुषों की जरूरत पड़ेगी. वह आगे कहता है कि किसी औरत को आगे बढ़न के लिए मर्द का सहारा नहीं चाहिए होता है और अनुपमा ने ये पूरी तरह साबित किया है. इसी के साथ वह अनुपमा का सपना पूरा करता भी नजर आएगा, जिसे देखने के बाद सीरियल की टीआरपी बढ़ जाएगी.

वनराज को होगी जलन


अनुज कपाड़िया और अनुपमा की नजदीकियां देखकर अपकमिंग एपिसोड में वनराज को जलन होने वाली है, जिसके चलते वह कदम कदम पर अनुज को खरी खोटी सुनाता नजर आएगा. हालांकि वनराज की इस जलन को देखकर फैंस उसे उसका सबक मिलने की बात कह रहे हैं और जमकर कोस रहे हैं.

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धारा के विपरीत: भाग 3- निष्ठा के कौनसे निर्णय का हो रहा था विरोध

दोनों घरों में कुहराम मच गया. लेकिन दोनों के दुख अलगअलग थे. एक परिवार ने अपना जवान बेटा खोया था तो दूस के का मानसम्मान और प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. बेटी के भविष्य के बारे में सोचसोच कर निष्ठा के मांपापा घुले जा रहे थे. मृदुल के तीये की बैठक के बहाने वे उस के घर गए.

“अब क्या सांत्वना दें आप को. हम एक ही नाव के सवार हैं,” कहते हूए निष्ठा के पापा लगभग रो दिए. मां के शब्द तो पहले ही आंसुओं में बह गए थे.

“क्या करूं बहन जी, कोई दूसरा बेटा भी तो नहीं वरना निष्ठा बिटिया को बीच राह न छोड़ते,” मृदुल की मम्मी ने निष्ठा को कस कर अपने से सटा लिया.

“हम तो जीते जी मर गए. छठे महीने में बच्चा गिरवाएंगे तो बेटी से भी हाथ धो बैठेंगे,” कहती हुई निष्ठा की मां फिर से सुबकने लगी. तभी मृदुल की चचेरी भाभी वनिता सामने आई.

“बड़े पापा, यदि आप सब को ठीक लगे तो निष्ठा और मृदुल का यह बच्चा हम अपना लें. वैसे भी, हम लोग अपने बच्चे के लिए प्रयास करतेकरते थक चुके हैं और लौकडाउन खुलने के बाद कोई बच्चा गोद लेने का प्लान ही कर रहे थे.” वनिता ने अपने पति रमन की तरफ़ देखते हुए अपनी बात रखी. रमन ने भी सहमति में गरदन हिलाई तो निष्ठा की मां के चेहरे पर उम्मीद की हलकी सी रोशनी चिलकी. सब इस बदली हुई परिस्थिति पर विचार करने लगे.

अंत में तय हुआ कि निष्ठा कुछ समय अपने जौब से ब्रैक लेगी और वनिता तथा रमन के साथ बेंगलुरु जाएगी. वहीं वह अपनी संतान को जन्म देगी और एक महीने के बाद बच्चे को कानूनन वनिता को गोद दे दिया जाएगा. गोद लेने के लिए ‘सेमी ओपन अडौप्शन’ प्रक्रिया का चयन किया जाएगा जिस में बच्चे को सौंपने के बाद निष्ठा उस से नहीं मिलेगी.

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तय कार्यक्रम के अनुसार निष्ठा बेंगलुरु आ गई. उस ने मन ही मन ठान लिया था कि अब वह अपनी कोख में आकार ले रहे शिशु के प्रति किसी प्रकार की आत्मीयता नहीं रखेगी. वह अपने बढ़े हुए पेट को शरीर में पनप रही एक बड़ी गांठ के रूप में ही देखेगी जिस का कुछ समय बाद औपरेशन होना है और गांठ निकलने के बाद वह वापस अपनी सामान्य अवस्था में आ जाएगा.

वनिता और रमन निष्ठा का पूरा खयाल रख रहे थे. वे उसे खुश रखने का प्रयास करते लेकिन निष्ठा कैसे खुश हो? जबकि वह जानती थी कि इस बच्चे पर उस का अधिकार सिर्फ उसे जन्म देने तक ही है. निष्ठा इस सच को स्वीकार कर चुकी थी, शायद, इसलिए भी वह धीरेधीरे बच्चे के मोह से छूट रही थी.

डिलीवरी का समय पास आ रहा था. रमन ने एक अच्छे मैटर्निटी होम में प्रसव की व्यवस्था कर रखी थी. डाक्टर भी निष्ठा के शरीर में हो रहे परिवर्तनों पर निगाह रखे हुए थी. इन सब व्यवस्थाओं से विलग निष्ठा हर समय बालकनी में खुलने वाली खिड़की के पास बैठी बाहर शून्य में ताकती रहती.

एक दिन सुबह निष्ठा की आंख बिल्ली के शोर से खुली. उस ने उत्सुकता से बाहर देखा तो पाया कि बालकनी में एक बिल्ली अपने 3 नवजात बच्चे ले कर आई है. वे बच्चे इतने छोटे थे कि उन की आंखें तक नहीं खुली थीं. बिल्ली बारीबारी से तीनों बच्चों को चाट रही थी. वह कभी उन बच्चों को अपनी बांहों के घेरे में ले लेती तो कभी उन्हें अपनी छाती से सटा कर दूध पिलाने लगती. एक बार जब वह उन्हें अपने मुंह में दबा कर दूसरी जगह ले जाने की कोशिश कर रही थी, तो निष्ठा का दिल धक से रह गया.

‘अरे, संभाल के. कहीं चोट न लग जाए,’ सोचती हुई निष्ठा के हाथ यंत्रवत खिड़की से बाहर निकल आए. वह बिल्ली के नन्हे बच्चों को हाथ में थामने को लालायित हो उठी. फिर कुछ सोच कर खुद ही संभल गई.

उन बच्चों की धीमी सी म्याऊं इतनी प्यारी थी कि निष्ठा उस आवाज में कहीं खो सी गई. अचानक उसे लगा मानो उस के स्तनों में दूध उतर आया. इस के साथ ही उस के हाथ अपने पेट को सहलाने लगे और आंखों से पानी बहने लगा. उस की आंखें तो खिड़की से हट गईं लेकिन उस के कान वहां से नहीं हट सके. रहरह कर बालकनी से आती म्याऊं की सुरीली मोहक आवाजें उसे बेचैन किए जा रही थीं. निष्ठा ने अपने लिए रखा दूध एक कटोरे में उंडेल कर बालकनी में रख दिया.

उसी रात निष्ठा को प्रसव पीड़ा उठी. वनिता और रमन भी तो इसी घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे. वे फ़ौरन निष्ठा को ले कर मैटर्निटी होम गए. 2 ही घंटे बाद एक नन्ही शिशु वनिता की गोद में थी. निष्ठा अभी दवाओं के असर से नीम बेहोशी में थी लेकिन उस के हाथ अपनी बगलों में इधरउधर घूमते हुए कुछ टटोल रहे थे. वनिता उस की पीड़ा समझ गई. उस ने निष्ठा के हाथों को नवजात से छुआया. निष्ठा उस कोमल स्पर्श को पाते ही स्थिर हो गई और उस छुअन को महसूस करने लगी.

शाम को जब निष्ठा को कुछ होश आया तो नर्स ने उसे बच्ची को अपना दूध पिलाने को कहा. थोड़ी कोशिश के बाद बच्ची ने अपनी मां का दूध खींचना शुरू किया. निष्ठा एक अलौकिक सुख में डूब गई. एक ऐसा अनुभव जिसे वह शब्द नहीं दे सकती थी. निष्ठा के हाथ बेटी का सिर सहलाने लगे. दूध पीते समय बच्ची के मुंह से आ रही चुसड़चुसड़ की आवाजें कमरे में बांसुरी सी बजा रही थीं. वनिता मन ही मन इस सुख की कल्पना में डूब-उतर रही थी.

4 दिनों बाद निष्ठा घर आ गई. कमरे में आते ही उस ने सब से पहले बिल्ली के कटोरे में दूध डाला. अब तक निष्ठा की मां भी अपनी बेटी की देखभाल करने के लिए बेंगलुरु आ गई थी. पूरा घर एक छोटे से शिशु के इर्दगिर्द सिमट गया. देखते ही देखते महीना होने को आया. निष्ठा के बच्ची से अलग होने का समय नजदीक आ गया. रमन गोद लेने की प्रक्रिया पूरे जोशोखरोश से निबटा रहा था. एक शाम वह औफिस से घर लौटा तो बहुत खुश मूड में था.

“मैं ने सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं. अब एकदो दिन में हमारे घर का सर्वे किया जाएगा. संतुष्टिजनक रिपोर्ट के बाद कुछ ही दिनों में यह प्यारी सी गुड़िया कानूनन वनिता की हो जाएगी.” रमन ने बच्ची को गोद में उठा कर उस का मुंह चूम लिया. सुनते ही वनिता भी खिल गई. बच्ची की नानी मुसकरा दी. किसी ने भी निष्ठा की प्रतिक्रिया की तरफ ध्यान नहीं दिया. अचानक निष्ठा उठी और उस ने रमन के हाथों से बच्ची को छीन लिया.

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“मैं अपनी बच्ची किसी को नहीं दूंगी,” निष्ठा ने कहा. उस की बात सुनते ही सब सकते में आ गए.

“क्या बकवास कर रही हो. यह सब तो पहले से ही तय था. इसी शर्त पर तो तुम्हें यहां भेजा गया था,” मां ने निष्ठा को झिंझोड़ा.

“आंटी सही कह रही हैं. यह सब तुम्हारी सहमति से ही तो हुआ है,” वनिता ने उसे याद दिलाया.

“हां, लेकिन अब मैं अपनी बच्ची को खुद पालना चाहती हूं,” निष्ठा ने बच्ची को कंधे से लगाते हुए कहा.

“पागल हो गई हो क्या? क्या तुम जानती नहीं कि तुम्हारा यह फैसला समाज के नियमों के खिलाफ है. आत्मघाती है,” मां ने उसे चेताया लेकिन निष्ठा तो कुछ भी सुनने को तैयार न थी. उस ने अपना फैसला बदलने से इनकार कर दिया. वह सब को असमंजस में छोड़ कर अपने कमरे में जा कर अपना और बेटी का सामान पैक करने लगी.

तभी बालकनी से वही मधुर म्याऊं सुनाई दी. निष्ठा ने देखा, बिल्ली के तीनों बच्चे कटोरे में रखा दूध पी रहे हैं. बिल्ली बारीबारी से तीनों को चाट रही है. निष्ठा ने भी बच्ची का माथा चूम लिया.

वह जानती थी कि उस के निर्णय का पुरजोर विरोध होगा लेकिन वह अपनी नाव को धारा के विपरीत बहाने के निर्णय पर अटल थी.

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