शादी से पहले प्यार की सीमाएं

प्राय: मंगनी होते ही लड़कालड़की एकदूसरे को समझने के लिए, प्यार के सागर में गोते लगाना चाहते हैं. एक बात तो तय रहती है खासकर लड़के की ओर से, क्या फर्क पड़ता है, अब तो कुछ दिनों में हम एक होने वाले हैं, फिर क्यों न अभी साथ में घूमेंफिरें. उस की ओर से ये प्रस्ताव अकसर रहते हैं कि चलो रात में घूमने चलते हैं, लौंग ड्राइव पर चलते हैं. वैसे तो आजकल पढ़ीलिखी पीढ़ी है, अपना भलाबुरा समझ सकती है. वह जानती है उस की सीमाएं क्या हैं. भावनाओं पर अंकुश लगाना भी शायद कुछकुछ जानती है. पर क्या यह बेहतर न होगा कि जिसे जीवनसाथी चुन लिया है, उसे अपने तरीके से आप समझाएं कि मुझे आनंद के ऐसे क्षणों से पहले एकदूसरे की भावनाओं व सोच को समझने की बात ज्यादा जरूरी लगती है. मन न माने तो ऐसा कुछ भी न करें, जिस से बाद में पछतावा हो.

मेघा की शादी बहुत ही सज्जन परिवार में तय हुई. पढ़ालिखा, खातापीता परिवार था. मेघा मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे ओहदे पर थी. खुले विचारों की लड़की थी. मंगनी के होते ही लड़के के घर आनेजाने लगी. जिस बेबाकी से वह घर में आतीजाती थी, लगता था वह भूल रही थी कि वह दफ्तर में नहीं, ससुराल परिवार में है. शुरूशुरू में राहुल खुश था. साथ आताजाता, शौपिंग करता. ज्योंज्यों शादी के दिन नजदीक आते गए दूरियां और भी सिमटती जा रही थीं. एक दिन लौंग ड्राइव पर जाने के लिए मेघा ने राहुल से कहा कि क्यों न आज शाम को औफिस के बाद मैं तुम्हें ले लूं. लौंग ड्राइव पर चलेंगे. एंजौय करेंगे. पर यह क्या, यहां तो अच्छाखास रिश्ता ही फ्रीज हो चला. राहुल ने शादी से इनकार कर दिया. कार्ड बंट चुके थे, तैयारियां पूरी हो चली थीं. पर ऐसा क्या हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ? पूछने पर नहीं बताया, बस इतना दोटूक शब्दों में कहा कि रिश्ता खत्म. बहुत बाद में जा कर किसी से सुनने में आया कि मेघा बहुत ही बेशर्म, चालू टाइप की लड़की है. राहुल ने मेघा के पर्स में लौंग ड्राइव के समय रखे कंडोम देख लिए. यह देख कर उस ने रिश्ता ही तोड़ना तय कर लिया. शायद उसे भ्रम था मेघा पहले भी ऐसे ही कई पुरुषों के साथ इस बेबाकी से पेश आ चुकी होगी. आजकल की लड़कियों में धीरेधीरे लुप्त होती जा रही लोकलाज, लज्जा की भनक भी मेघा के सरल व्यवहार में मिलने लगी थी. इन बातों की वजह से ही रिश्ता टूटने वाली बात हुई.

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कौन सी बातें जरूरी

इसलिए बेहतर है कोर्टशिप के दौरान आचरण पर, अपने तौरतरीकों पर, बौडी लैंग्वेज पर विशेष ध्यान दें. वह व्यक्ति जिस से आप घुलमिल रही हैं, भावी जीवनसाथी है, होने वाला पति है, हुआ नहीं. तर्क यह भी हो सकता है, सब कुछ साफसाफ बताना ही ठीक है. भविष्य की बुनियाद झूठ पर रखनी भी तो ठीक नहीं. लेकिन रिश्तों में मधुरता, आकर्षण बनाए रखने के लिए धैर्य की भावनाओं को वश में रखने की व उन पर अंकुश लगाने की जरूरत होती है.

प्यार में डूबें नहीं

शादी के पहले प्यार के सागर में गोते लगाना कोई अक्षम्य अपराध नहीं. मगर डूब न जाएं. कुछ ऐसे गुर जरूर सीखें कि मजे से तैर सकें. सगाई और शादी के बीच का यह समय यादगार बन जाए, पतिदेव उन पलों को याद कर सिहर उठें और आप का प्यार उन के लिए गरूर बन जाए और वे कहें, काश, वे पल लौट आएं. इस के लिए इन बातों के लिए सजग रहें- 

हो सके तो अकेले बाहर न जाएं. अपने छोटे भाईबहन को साथ रखें.

बहुत ज्यादा घुलनामिलना ठीक नहीं.

मुलाकात शौर्ट ऐंड स्वीट रहे.

घर की बातें न करें.

अभी से घर वालों में, रिश्तेदारों में मीनमेख न निकालें.

एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करें.

अनर्गल बातें न करें.

बेबाकी न करें. बेबाक को बेशर्म बनते देर नहीं लगती.

याद रहे, जहां सम्मान नहीं वहां प्यार नहीं, इसलिए रिश्तों को सम्मान दें.

कोशिश कर दिल में जगह बनाएं. घर वाले खुली बांहों से आप का स्वागत करेंगे.

मनमानी को ‘न’ कहने का कौशल सीखें.

चटोरी न बनें

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Housewives ऐसे करें Financial प्लानिंग

भारत में ऐसी हाउसवाइव्स की तादाद बहुत ज्यादा है जो अपने पति पर निर्भर हैं और किसी भी तरह के वित्तीय फैसलों में उनकी भागीदारी न के बराबर हैं. इसके बावजूद वह घर की मैनेजर होती हैं और उनकी जिम्मेदारी अपने घर के बजट को मैनेज करने की होती है.

पिछले कुछ सालों में महंगाई तो बढ़ी है लेकिन उस अनुपात में सैलरी नहीं बढ़ी है. लेकिन कई बार जब घर में कोई इमर्जेंसी आती है जैसे, पति की जॉब छूट जाना या कोई हेल्थ प्रॉब्लम तो ऐसे वक्त में महिलाओं की फाइनेंशियल प्लानिंग ही काम आती है

मनी फ्लो मैनेजमेंट

ज्यादातर घरों में हाउसवाइव्स केवल ग्रॉसरी की खरीदारी तक ही सीमित हो जाती हैं. लेकिन हाउसवाइव्स को इसके आगे बढ़ते हुए फाइनेंस को मैनेज करने का तरीका पता होना चाहिेए. इससे पता चलेगा कि कहां आपको ज्यादा खर्च करना है और कहां बचाना है. और यह कोई रॉकेट साइंस नहीं और न ही इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह की जरूरत है. आप इसे खुद से या अपने पति के सलाह से भी कर सकती हैं.

खर्च कंट्रोल करना

अब जब आप मनी फ्लो मैनेजमेंट करना जान गईं हैं तो अब बारी है खर्चों पर कंट्रोल करने की, जैसे- अगर आपके घर का बिजली का बिल 2 हजार हर महीने आता है तो आपको सोचने की जरूरत है कि कैसे आप इसे कम कर सकती हैं. अगर आप हर रोज वॉशिंग मशीन का इस्तेमाल करती हैं तो हफ्ते में 3-4 दिन ही इस्तेमाल करें. ऐसी ही कई चीजों का ध्यान रखकर आप खर्चों में कटौती कर सकती हैं.

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बचत, बचत और सिर्फ बचत

हमेशा पैसों की बचत के बारे में सोचें. इसके लिए सबसे पहला कदम है एक अकाउंट खोलना. इसके अलावा आप सरकार की ओर से चलाई जा रही जीवन ज्योति जैसी तमाम तरह की योजनाओं में भी अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर फायदा उठा सकती हैं. आप चाहें तो महंगी ब्रांडेड दवाओं की जगह सस्ती जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल करके भी पैसे बचा सकती हैं.

घर बैठे कमाएं पैसे

अगर आप पढ़ी लिखी हैं इसके बावजूद घर की जिम्मेदारियों के चलते आप अपने पति की कोई मदद नहीं कर पा रही हैं तो घर बैठे पैसे कमाने की तरकीब ढूंढना शुरू कर दें. आप फ्रीलांसर की तरह काम कर सकती हैं. इसके अलावा अगर आपकी पेंटिंग, डांसिंग, टीचिंग जैसी कोई हॉबी है तो आप इसके लिए अलग से क्लास चला सकती हैं और घर में क्लास लेकर पैसे कमा सकती हैं.

निवेश करें

निवेश की पहली सीढ़ी है बचत. अगर आप हर महीने पैसे बचाती हैं तो आपको सोचना चाहिए कि महंगाई को काटते हुए कैसे आप अपने पैसे को बढ़ा सकती हैं. कभी भी पैसे को अकाउंट में या घर पर भी खाली पड़े नहीं देना चाहिए. उसे फिक्स या फिर रिकरिंग डिपॉसिट में निवेश करना चाहिए. अगर आपका पैसा 10 हजार से बढ़कर 11 हजार भी हो जाता है तो यह एक फायदे का सौदा है.

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Diwali 2021: झटपट बनाएं ये मिठाईयां

त्यौहार मिठाइयों के बिना अधूरा सा होता है. त्यौहार पर बाजार में मिलने वाली मिठाइयों में बहुत अधिक मिलावट होने का अंदेशा होता है. तो क्यों न इस बार आप घर पर ही कुछ मिठाईयां बनाएं वह भी घर में उपलब्ध वस्तुओं से ही. घर पर बनी मिठाईयां शुद्ध तो होतीं ही हैं साथ ही बाजार की मिठाइयों की अपेक्षा सस्ती भी पड़तीं हैं. आज हम आपको सूजी, बेसन और मूंगफली से बनाई जाने वाली बर्फी बनाना बता रहे हैं जिन्हें बनाना भी बहुत आसान है तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं-

-सूजी की बर्फी

कितने लोगों के लिए         6

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री

सूजी                      1 कप

मिल्क पाउडर           1 कप

फुल क्रीम दूध             2 कप

शकर                        1 कप

इलायची पाउडर         1/2 टीस्पून

पानी                        1/2 कप

नारियल बुरादा            1 कप

नारियल लच्छा            1/4 कप

घी                              1 कप

बारीक कटे मेवा             1/2 कप

विधि

घी में से 2 चम्मच घी अलग करके शेष को एक पैन में डाल दें. जब घी गरम हो जाये तो सूजी डालकर धीमी आंच पर सुनहरा होने तक भूनें. जब सूजी लगभग भुनने को हो तो मेवा भी सूजी के साथ ही भून लें. अब इसमें नारियल बुरादा और मिल्क पाउडर डालकर 2 मिनट तक भूनें और गैस को बंद कर दें. अब एक दूसरे पैन में पानी में शकर डाल दें. जब शकर पिघल जाए तो इसमें दूध डालकर एक दो उबाल लें लें. अब इस शकर की चाशनी को भुनी सूजी में मिलाएं. बचा 2 चम्मच घी और इलायची पाउडर डालकर गैस पर रखें. सूजी को तब तक चलाते हुए मद्धिम आंच पर भूनें जब तक कि मिश्रण पैन के किनारे छोड़कर बीच में इकट्ठा न हो जाये. तैयार मिश्रण को चिकनाई लगी थाली या ट्रे में जमाएं. आधे घण्टे के लिए फ्रिज में सेट होने दें. आधे घण्टे बाद मनचाहे आकार में काटकर सर्व करें.

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-बेसन मलाई बर्फी

कितने लोंगों के लिए        6

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

बेसन                         1 कप

ताजी मलाई                1 कप

पिसी शकर                1 कप

इलायची पाउडर         1 टीस्पून

घी                            1 टेबलस्पून

विधि

1 टीस्पून घी में कटी मेवा को हल्का सा भूनकर एक प्लेट में निकाल लें. अब इसी घी में बेसन और मलाई डालकर धीमी आंच पर सुनहरा होने तक भूनें. भुने बेसन में पिसी शकर डालकर शकर के घुलने तक लगातार चलाते हुए पकाएं. इलायची पाउडर और  कटी मेवा डालकर तब तक पकाएं जब तक कि मिश्रण गाढ़ा होकर पैन के किनारे न छोड़ दें. चिकनाई लगी ट्रे में जमाएं. ठंडा होने पर चौकोर टुकड़ों में काटकर सर्व करें.

-पीनट बर्फी

कितने लोगों के लिए         8

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री

मूंगफली दाना                  1 कप

काजू                               1 कप

पिसी शकर                        डेढ़ कप

इलायची पाउडर             1/4 टीस्पून

घी                                   1 टेबलस्पून

सिल्वर फॉयल                   सजाने के लिए

विधि

मूंगफली दाना को धीमी आंच पर भूनकर ठंडा होने पर छिल्का अलग कर दें. अब काजू और मूंगफली को मिक्सी में पाउडर फॉर्म में पीस लें. एक पैन में घी गर्म करके पिसी मूंगफली, पिसे काजू, इलायची पाउडर और पिसी शकर डालकर अच्छी तरह चलाएं. जब मिश्रण बीच में इकट्ठा सा होने लगे तो चिकनाई लगी ट्रे में जमाएं. ऊपर से सिल्वर फॉयल चिपकाएं. ठंडा होने पर चौकोर टुकड़ों में काटकर एयरटाइट जार में भरकर रखें.

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मां का दिल महान: भाग 3- क्या हुआ था कामिनी के साथ

अगले दिन नाश्ता करने के बाद शुचि रम्या के घर जा पहुंची. द्वार खोलते ही उसे देख कर चौंक गई थी रम्या.

‘‘मांजी की तो तबीयत ठीक नहीं है. मैं ने सोचा मैं ही तुम्हारी सहायता कर दूं,’’ शुचि सोफे पर पसरते हुए लापरवाही से बोली.

‘‘क्या कह रही हो, तुम? आज औफिस नहीं जाना क्या?’’ रम्या चौंक कर बोली.

‘‘आज छुट्टी ले ली है मैं ने. पड़ोसियों के लिए इतना त्याग तो करना ही पड़ता है. सोचा, पहले तुम्हारा हाथ बंटा दूं, उस के बाद हम सब का घूमने जाने का कार्यक्रम है. चलो बताओ, क्या करना है? मेरे पास अधिक समय नहीं है,’’ शुचि बोली.

‘‘काम तो बहुत सारा है. दहीबड़े बनाने हैं. खट्टीमीठी दोनों तरह की चटनी बनानी हैं. कचौड़ी बनाने की तैयारी भी करनी है. तुम्हें आता है ये सब?’’

‘‘पहले ही कहे देती हूं. मांजी की तरह कुशल नहीं हूं मैं. वैसे भी थोड़ा जल्दी थक जाती हूं.’’

‘‘तुम चिंता मत करो, मैं सब संभाल लूंगी.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो? पड़ोसी धर्म भी कोई चीज होती है. पर पहले थोड़ी चाय तो बनाओ. क्या है न, बिना पैट्रोल के गाड़ी चलती नहीं है,’’ शुचि बेबाकी से हंस दी.

‘‘अभी बना देती हूं. हम दोनों ने भी चाय कहां पी है. पलक को ट्यूशन के लिए भेज कर अभी जरा सा समय मिला है. अभी तक सुषमा भी नहीं आई है. हर रोज तो 7 बजे तक आ जाती थी,’’ रम्या चाय बनाने की तैयारी करते हुए बोली.

‘‘इन कामवालियों के संबंध में तो कुछ न कहना ही अच्छा है. इन्हें कुछ भी दो पर इन का मुंह तो कभी सीधा होता ही नहीं,’’ रम्या अब भी केवल अपनी कामवाली सुषमा को कोस रही थी.

‘‘तो काम शुरू करें,’’ चाय के कप उठाते हुए रम्या बोली.

‘‘अवश्य, पर यह तो बताओ कि तुम मुझे दोगी क्या?’’ शुचि पूछ बैठी.

कुछ देर के लिए तो मानो कक्ष की हवा थम सी गई और शुचि का प्रश्न दीवारों से टकरा कर लौट आया.

‘‘क्या कह रही हो तुम? ऐसी बात भला तुम सोच भी कैसे सकती हो?’’

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‘‘कमाल है, आज तुम्हें यह बात बड़ी विचित्र लग रही है. पर कल तो तुम ने यही बात मेरी मांजी से कही थी. तुम तो किसी से बिना पारिश्रमिक दिए काम करवाती ही नहीं हो. है न?’’ शुचि ने व्यंग्य किया.

‘‘वह तो मैं ने यों ही कह दिया था. म…म…मुझे लगा, मांजी खुश हो जाएंगी,’’ रम्या न चाहते हुए भी हकला गई.

‘‘मुझे भी खुश कर दो न. क्या है न, घर में खाने को नहीं है, तुम कुछ दे दोगी तो काम चल जाएगा,’’ शुचि अब भी क्रोध में थी.

‘‘तुम तो व्यर्थ ही बात का बतंगड़ बना रही हो. तुम इन वृद्धों की मानसिकता को समझती नहीं हो. यह कोई भी कार्य कुछ पाने की आशा से ही करते हैं,’’ रम्या अपनी ही बात पर अड़ी थी.

‘‘तुम्हारे विचार जान कर प्रसन्नता हुई. पर इन्हें अपने पास ही रखो. मांजी को बहुत बुरा लगा है, यह तो तुम समझ ही गई होंगी. मैं तो तुम्हें केवल यह बताने आई थी, भविष्य में तुम ने उन्हें अपमानित करने का प्रयत्न किया तो पता नहीं शायक क्या कर बैठें. अभी तो हम ने यह बात उन से छिपा कर रखी है,’’ तीखे स्वर में बोल कर शुचि बाहर निकल गई. रम्या सामने रखी ठंडी होती चाय को देखती रही.

‘‘स्वयं ही चाय बनवाई और छोड़ कर चली गईं. तुम तो अपनी चाय पी लो,’’ सुहास बोला.

‘‘वह मुझे इतना कुछ सुना कर चली गई और तुम चुप बैठे देखते रहे,’’ रम्या सुहास पर ही बरस पड़ी.

‘‘तुम क्या चाहती थीं मैं ढालतलवार ले कर मैदान में कूद पड़ता?’’

‘‘वह तो कोई विरला ही दिन होगा. पर मैं भी चुप नहीं बैठूंगी. ऐसा मजा चखाऊंगी कि शुचि याद रखेगी.’’

‘‘होश की बात करो, रम्या. स्वीकार कर लो कि भूल तुम्हारी थी. तुम ने कामिनी आंटी का अपमान किया है. जा कर क्षमा मांग लो और बात को यहीं समाप्त कर दो. तुम नहीं जाना चाहतीं तो मुझ से कहो, मैं क्षमा मांग लूंगा. वे बड़ी हैं, हमारी मां की आयु की हैं, क्षमा मांगने से हम छोटे नहीं हो जाएंगे. सोचता हूं तो मुझे भी आश्चर्य हो रहा है कि तुम ने उन से ऐसा व्यवहार किया. तुम्हें शायद पता नहीं है कि शायक के पिता रंगपुर के जानेमाने चिकित्सक थे.’’

कुछ देर के लिए रम्या चित्रलिखित सी बैठी रही. बात इतनी बढ़ जाएगी, यह तो उस ने सोचा ही नहीं था. पर अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. अदिति और आर्यन पलक की जन्मदिन पार्टी में नहीं आए तो पलक को कितना बुरा लगेगा.

रम्या चुपचाप शुचि के घर की तरफ चल पड़ी. शुचि ने द्वार खोला तो सामने रम्या को खड़े देख कर हैरान रह गई.

‘‘मांजी, कहां हैं आप? शुचि बता रही थी कि आप नाराज हैं,’’ रम्या उन के पास बैठते हुए बोली, ‘‘मेरा इरादा आप का अपमान करने का नहीं था, न ही मैं आप को दुख पहुंचाना चाहती थी. पता नहीं कैसे वह सब मेरे मुंह से निकल गया. भूल हो गई, क्षमा कर दीजिए.’’

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‘‘अरे बैठो, मैं ने किसी बात का बुरा नहीं माना. समय बहुत बदल गया है. अब न किसी के पास दूसरों के लिए समय है और न ही प्रेम या आदर. ऐसे में क्या बुरा मानना,’’ कामिनी हर शब्द पर जोर दे कर बोलीं.

वे अपनी बात पूरी कर पातीं कि उस से पहले ही सुजाताजी के बेटे अनुराग ने प्रवेश किया. वह बदहवास हो रहा  था.

‘‘क्या हुआ, अनुराग?’’ शुचि उस की हड़बड़ाहट देख कर बोली.

‘‘मां स्नानघर में फिसल कर गिर गईं. शायद हड्डी टूट गई है. अस्पताल ले जाना पड़ेगा. मां ने कामिनी आंटी को फौरन आने को कहा है. कह रही थीं कि भूलचूक माफ कर के तुरंत आ जाएं,’’ वह बोला.

‘‘कैसी भूलचूक?’’ शुचि ने प्रश्न किया.

‘‘मुझे क्या पता. यह तो मां ही बता सकती हैं,’’ अनुराग ने कंधे उचका कर अपनी विवशता प्रकट की तो शुचि ने प्रश्नवाचक मुद्रा में कामिनी पर दृष्टि डाली.

‘‘वह सब बाद में, चल कर सुजाताजी को देखते हैं,’’ कामिनी अनुराग के साथ चल दीं.

सभी लपक कर सुजाताजी के फ्लैट में पहुंचे.

‘‘देखो न कामिनी, यह क्या हो गया,’’ सुजाता कामिनी को देखते ही बोलीं, ‘‘मुझ से तो चला भी नहीं जा रहा.’’ सुजाता ने कस कर कामिनी के हाथ पकड़ लिए. तब तक ऐंबुलैंस आ गई थी. सुजाता को ऐंबुलैंस से अस्पताल पहुंचाया.

सुजाता के पैर की हड्डी न केवल टूट गई थी बल्कि अपने स्थान से खिसक भी गई थी. तुरंत उन का औपरेशन किया गया. पूरे समय सगी बहन से भी बढ़ कर कामिनी ने सुजाता की सेवा की.

3 माह के बाद सुजाता ने बैसाखी के सहारे चलना प्रारंभ किया. सदाशय हाइट्स का तो अब कायाकल्प ही हो गया है. अब केवल कामिनी ही नहीं सब एकदूसरे के इस तरह काम आते हैं मानो एक ही परिवार के सदस्य हों. कामिनी का मन भी शायक और शुचि के पास रम सा गया है, अदिति और आर्यन छात्रावास से घर जो आ गए हैं.

सुजाताजी ने किस भूलचूक की माफी मांगी थी, शुचि ने यह कई बार पूछने का यत्न किया पर हर बार कामिनी ने मुसकरा कर टाल दिया.

‘‘जाने भी दे, शुचि. जब कोई माफी मांग ले तो माफ करने में ही समझदारी है. है कि नहीं?’’

‘‘ठीक है,’’ शुचि बोली पर उस के मन में मां की महानता के लिए सम्मान और बढ़ गया था.

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मेरे अपने: भाग 1- क्यों परिवार से दूर हो गई थी सुरभि

सुबह के 4 बजे थे. फरवरी का  महीना था. नैशनल हार्ट इंस्टिट्यूट की सूनी व सर्द गैलरी की ठंडी बैंच पर बैठी सुरभि को न तो कुछ महसूस हो रहा था न कुछ सूझ रहा था. कोमा की सी स्थिति में सुन्न सुरभि औपरेशन थिएटर के दरवाजे पर नजरें टिकाए बैठी थी. भीतर मास्टरजी का औपरेशन हो रहा था. उन्हें हार्ट अटैक हुआ था.

रात को सोते समय उन्हें कुछ बेचैनी महसूस हो रही थी. उन्होंने सुरभि को बताया तो सुरभि रसोई समेटते हुए बोली, ‘गैस हो गई है पेट में. मैं अभी डायजीन ले कर आती हूं,’ उस ने सपने में भी न सोचा था कि जिन को आज तक साधारण तकलीफों के अतिरिक्त कभी कुछ न हुआ था उन की इस बेचैनी का गैस या बदहजमी के अलावा कोई दूसरा कारण भी हो सकता है. उन्होंने सदा एक नियमित जीवन जीया था. सैर और योगाभ्यास नियम से करते थे. खानपान भी उन का बिलकुल सादा था.

दोनों सुबह 7 बजे अपनेअपने स्कूल के लिए निकल जाते थे. मास्टरजी कार से सुरभि को उस के कन्या विद्यालय छोड़ते, जहां वह अध्यापन कार्य करती थी. उस के बाद अपने राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पहुंचते जहां वे गणित के अध्यापक थे. लौटते भी दोनों एक ही साथ थे. उन के कोई संतान न थी. इसलिए बचे समय में वे अपने विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ाते थे. ये कक्षाएं वित्तीय कारणों से नहीं ली जाती थीं, बल्कि जो होनहार छात्र बड़ेबड़े कोचिंग सैंटरों की मोटी फीस भर पाने में असमर्थ होते थे, उन से नाममात्र की गुरुदक्षिणा ले ये दोनों उन्हें पढ़ाते थे.

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मास्टरजी अपने छात्रों में बहुत लोकप्रिय थे. वे अपने हंसमुख और मित्रवत व्यवहार से छात्रों के गुरु ही नहीं, मित्र भी बन जाते थे. वहीं, टीचर आंटी हालांकि अपने गंभीर और अंतर्मुखी स्वभाव के कारण छात्रों से अधिक घुलतीमिलती नहीं थीं परंतु उन का स्नेह बच्चों के लिए कम न था. पूरा दिन इतने सारे बच्चों में घिरे रह कर उन्हें कभी अपनी संतान के न होने की कमी महसूस ही न हुई थी. अवकाश के दिनों में भी बच्चे अकसर उन के घर कुछ न कुछ पूछनेपढ़ने चले आते थे. पूरा जीवन एक ही ढर्रे पर चलते बीत रहा था.

आखिरकार, एक दिन मास्टरजी रिटायर हो गए. अब उन्हें अपना सरकारी आवास खाली करना था. मास्टरजी उम्र के इस पड़ाव पर आ कर किराए के मकानों में भटकना नहीं चाहते थे. इंदौर में उन का अपना घर था जो वर्षों से बंद पड़ा था. मास्टरजी चाहते थे कि अब वे अपना बाकी का बचा समय अपने उसी पैतृक निवास में व्यतीत करें, जहां उन का बचपन बीता था. सुरभि के रिटायरमैंट को अभी 5 साल बाकी थे. पर उस ने मास्टरजी की इच्छा का सम्मान किया और सेवानिवृत्ति ले ली. इंदौर शिफ्ट होने से पहले उन के मित्रों और छात्रों ने मिल कर उन के लिए विदाई समारोह का आयोजन किया और अश्रुपूरित आंखों से उन्हें विदा किया.

इंदौर हालांकि मास्टरजी का पैतृक निवास था पर जीवन के 40-45 वर्ष उन्होंने कानपुर में व्यतीत किए थे. इतने लंबे अरसे में वे कभी लौट कर यहां नहीं आए थे. अब यहां की दुनिया उन के लिए लगभग अनजान ही थी. शुरू के 8-10 दिन तो सामान इत्यादि व्यवस्थित करने में व्यतीत हो गए. उस के बाद करने को कुछ था ही नहीं. दोनों जैसे नौकरी से सेवानिवृत्त ही न हुए थे बल्कि जीवन की तेज बहती धार से छिटक कर दूर आ गिरे थे.

अपने ही शहर में अपरिचय का एक महासागर ढाढें़ मार रहा था और दोनों पतिपत्नी उस के किनारे हतप्रभ से खड़े थे. अकेले, उदास और किंकर्तव्यविमूढ़. सुरभि रोंआसी हो उठती. इस उम्र में किसी नए स्थान पर फिर अपनी जड़ें जमाना आसान तो नहीं. ऐसा विकराल अकेलापन जीवन में उन्हें कभी महसूस नहीं हुआ था. इंदौर आने का निर्णय कहीं उन की भूल तो नहीं थी.

जिस ‘अपने’ शहर में लौटने को मास्टरजी इतने लालायित थे, वहां दूरदूर तक कोई अपना दिखाई नहीं दे रहा था. अपनी संतान के न होने का दुख भी अब सालने लगा था सुरभि को. काश, समय रहते उन्होंने कोई बच्चा गोद ले लिया होता तो आज उसी के सहारे जिंदगी कट जाती. सुरभि तो सदा अपने आदर्शवादी पति की परछाईं बनी, उन्हीं के पदचिह्नों पर चलती आई थी. मास्टरजी कहते थे कि 1 या 2 स्वयं के पैदा किए बच्चों की रगों में अपना खून दौड़ने से कहीं बेहतर है, पराए कहे जाने वाले बच्चों की रगरग में नैतिकता, मनुष्यता और उत्तम आचारविचार भर दिए जाएं. पूरी उम्र पतिपत्नी दोनों इन्हीं उसूलों और आदर्शों पर चलते आए थे.

आज सुरभि का मन डोलने लगा था. उदास तो मास्टरजी भी थे. पर उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा था. बरसों पहले एक अनजान शहर को उन्होंने अपना बना लिया था तो इस अपने शहर को फिर से अपना बनाने में कितना समय लगेगा. इसी तरह की उत्साहवर्धक बातों से उन्होंने सुरभि का हौसला बनाए रखा. शीघ्र ही घबरा कर हतोत्साहित हो जाने वालों में से तो सुरभि भी न थी. उस ने शीघ्र ही खुद पर काबू पाया और अपने करने के लिए कुछ रचनात्मक कार्य खोजने लगी.

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सुरभि के घर जो कामवाली बाई आती थी उसे पढ़नालिखना न आता था. अध्यापकों के घर में अशिक्षित? न, यह नहीं हो सकता. सुरभि को काम मिल गया था. उस ने उसे शिक्षित करने का बीड़ा उठा लिया. बड़े ही उत्साह से सुरभि उस के लिए स्लेट, पैंसिल व आवश्यक सामान जुटा लाई.

दुलारी की शिक्षा का बीड़ा उन्होंने उठा लिया. 2-4 दिन तो वह बड़े उत्साह से पढ़ने आई लेकिन शीघ्र ही वह इस कवायद से ऊब गई. पढ़ने में आनाकानी करने के उस के पास सौ बहाने थे. दुलारी के अनुसार, वास्तव में अब इस उम्र में उसे पढ़ने की कोई आवश्यकता ही न थी. पर सुरभि ने हार न मानी. उस ने ठान लिया था कि वह दुलारी और उस के जैसी अन्य स्त्रियों को शिक्षा का महत्त्व समझा कर उन्हें पढ़नेलिखने योग्य बना कर ही दम लेगी.

दुलारी पास की बस्ती में रहती थी. सुरभि ने मास्टरजी को अपना मंतव्य बताया और दोनों अब रोज शाम को बस्ती में चक्कर लगाने जाते. उन्हें यह देख कर हैरानी हुई कि वहां लगभग हर कच्चेपक्के घर में रंगीन टीवी, कूलर, फ्रिज इत्यादि मौजूद थे.

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Anik Ghee के साथ बनाएं बनाना स्लाइस

दीवाली में स्वीट्स खाने और बनाने को मन करता है जो स्वाद में अलग हों. तो पेश है ऐसा ही बनाना स्लाइस, जिसे खा कर आप तारीफ किए बगैर नहीं रह सकेंगी.

सामग्री

1 केला पका हुआ

9-10 बिस्कुट

1 1/2 छोटे चम्मच मलाई

200 एमएल अनिक दूध

1 छोटा चम्मच कौर्न पाउडर

2 छोटे चम्मच क्रीम

1 छोटा चम्मच चीनी

2 छोटे चम्मच नारियल कसा हुआ

बनाने का तरीका

बिस्कुटों को मिक्सी में पीस लें. इसमें मलाई डाल कर फिर से मिक्स करें. मोल्ड में इसकी एक परत लगाएं. पैन में अनिक दूध, क्रीम, कच्चा नारियल और कौर्न पाउडर अच्छी तरह मिलाएं. इसे गाढ़ा होने पर आंच से उतार कर ठंडा होने दें. फिर इसे बिस्कुट की परत पर डालें और फ्रिज में सेट होने के लिए रखें. फिर फ्रिज से निकाल कर केला काट कर ऊपर की परत बनाएं और ठंडाठंडा परोसें.

रंग जीवन में नया आयो रे: भाग 3- क्यों परिवार की जिम्मेदारियों में उलझी थी टुलकी

लेखिका- विमला भंडारी

निश्चय करते ही मुझे अस्पताल की थका देने वाली जिंदगी एकाएक उबाऊ व बोझिल लगने लगी. सोच रही थी कि दो दिन पहले ही छुट्टी ले कर चली जाऊं. अपने इस निर्णय पर मैं खुद हैरान थी.

विवाह के 2 दिन पूर्व मैं उदयपुर जा पहुंची. टुलकी ने मुझे दूर से ही देख लिया था. चंचल हिरनी सी कुलांचें मारने वाली वह लड़की हौलेहौले मेरी ओर बढ़ी. कुछ क्षण मैं उसे देख कर ठिठकी और एकटक उसे देखने लगी, ‘यह इतनी सुंदर दिखने लग गई है,’ मैं मन ही मन सोच रही थी कि वह बोली, ‘‘सिस्टर, मुझे पहचाना नहीं?’’ और झट से झुक कर मुझे प्रणाम किया.

मैं उसे बांहों में समेटते हुए बोली, ‘‘टुलकी, तुम तो बहुत बड़ी हो गई हो. बहुत सुंदर भी.’’

मेरे ऐसा कहने पर वह शरमा कर मुसकरा उठी, ‘‘तभी तो शादी हो रही है, सिस्टर.’’

उस से इस तरह के उत्तर की मुझे उम्मीद नहीं थी. सोचने लगी कि इतनी संकोची लड़की कितनी वाचाल हो गई. सचमुच टुलकी में बहुत अंतर आ गया था.

अचानक मेरा ध्यान उस के हाथों की ओर गया, ‘‘यह क्या, टुलकी, तुम ने तो अपने हाथ बहुत खराब कर रखे हैं, जरा भी ध्यान नहीं दिया. बड़ी लापरवाह हो. अरे दुलहन के हाथ तो एकदम मुलायम होने चाहिए. दूल्हे राजा तुम्हारा हाथ अपने हाथ में ले कर क्या सोचेंगे कि क्या किसी लड़की का हाथ है या…?’’ मैं कहे बिना न रह सकी.

मेरी बात बीच में ही काटती हुई टुलकी उदास स्वर में बोल उठी, ‘‘सिस्टर, किसे परवा है मेरे हाथों की, बरतन मांजमांज कर हाथों में ये रेखाएं तो अब पक्की हो गई हैं. आप तो बचपन से ही देख रही हैं. आप से क्या कुछ छिपा है.’’

‘‘अरे, फिर भी क्या हुआ. तुम्हारी मां को अब तुम से कुछ समय तक तो काम नहीं करवाना चाहिए था,’’ मैं ने उलाहना देते हुए कहा.

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‘‘मेरा जन्म इस घर में काम करने के लिए ही हुआ है,’’ रुलाई को रोकने का प्रयत्न करती टुलकी को देख मेरे अंदर फिर कुछ पिघलने लगा. मन कर रहा था कि खींच कर उस को अपने सीने में भींच लूं. उसे दुनिया की तमाम कठोरता से बचा लूं. मेरी नम आंखों को देख कर वह मुसकराने का प्रयत्न करते हुए आगे बोली, ‘‘मैं भी आप से कैसी बातें करने लग गई, वह भी यहीं सड़क पर. चलिए, अंदर चलिए, सिस्टर, आप थक गई होंगी,’’ मुझे अंदर की ओर ले जाती टुलकी कह उठी, ‘‘आप के लिए चाय बना लाती हूं.’’

बड़े आग्रह से उस ने मुझे नाश्ता करवाया. मैं देख रही थी कि यों तो टुलकी में बड़ा फर्क आ गया है पर काम तो वह अब भी पहले की तरह उन्हीं जिम्मेदारियों से कर रही है.

मेरे पूछने पर कहने लगी, ‘‘मां तो नौकरी पर रहती हैं, उन्हें थोड़े ही मालूम है कि घर में कहां, क्या पड़ा है. मैं न देखूंगी तो कौन देखेगा. और यह टिन्नू,’’ अपनी छोटी बहन की ओर इशारा करते हुए कहने लगी, ‘‘इसे तो अपने शृंगार से ही फुरसत नहीं है. अब देखो न सिस्टर, जैसे इस की शादी हो रही हो. रोज ब्यूटीपार्लर जाती है.’’

‘‘दीदी, आज आप की पटोला साड़ी मैं पहन लूं?’’ अंदर आती टिन्नू तुनक कर बोली.

‘‘पहन ले, मोपेड पर जरा संभलकर जाना.’’

‘‘पायलें भी दो न, दीदी.’’

‘‘देख, तू ने लगा ली न वही बिंदी. मैं ने तुझे मना किया था कि नहीं?’’

‘‘मैं ने मां से पूछ कर लगाई है,’’ इतराती हुई टिन्नू निडर हो बोली.

‘‘मां क्या जानें कि मैं क्यों लाई?’’

‘‘आप और ले आना, मुझे पसंद आई तो मैं ने लगा ली. इस पटोला पर मैच कर रही है न. अब मुझे जल्दी से पायलें निकाल कर दे दो. देर हो रही है. अभी बहुत से कार्ड बांटने हैं.’’

‘‘नहीं दूंगी.’’

‘‘तुम नहीं दोगी तो मैं मां से कह कर ले लूंगी,’’ ठुनकती हुई टिन्नू टुलकी को अंगूठा दिखा कर चली गई.

‘‘देखो सिस्टर, मेरा कुछ नहीं है. मैं कुछ नहीं, कोई अहमियत नहीं,’’ भरे गले से टुलकी कह रही थी.

‘‘टुलकी, ओ टुलकी,’’ तभी उस की मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘हलवाई बेसन मांग रहा है.’’

‘‘टुलकी, जरा चाकू लेती आना?’’ किसी दूसरी महिला का स्वर सुनाई दिया.

‘‘दीदी, पाउडर का डब्बा कहां रखा है?’’ टुलकी की छोटी बहन ने पूछा.

‘‘क्या झंझट है, एक पल भी चैन नहीं,’’ झुंझलाती हुई वह उठ खड़ी हुई.

मैं बैठी महसूस कर रही थी कि विवाह के इन खुशी से भरपूर क्षणों में भी टुलकी को चैन नहीं.

दिनभर के काम से थकी टुलकी अपने दोनों हाथों से पैर दबाती, उनींदी आंखें लिए ‘गीतों भरी शाम’ में बैठी थी और ऊंघ रही थी. उल्लास से हुलसती उस की बहनें अपने हाथों में मेहंदी रचाए, बालों में वेणी सजाए, गोटा लगे चोलीघाघरे में ढोलक की थाप पर थिरक रही थीं.

सभी बेटियां एक ही घर में एक ही मातापिता की संतान, एक ही वातावरण में पलीबढ़ीं पर फिर भी कितना अंतर था. कुदरत ने टुलकी को ‘बड़ा’ बना कर एक ही सूत्र में मानो जीवन की सारी मधुरता छीन ली थी.

टुलकी के जीवन की वह सुखद घड़ी भी आई जब द्वार पर बरात आई, शहनाई बज उठी और बिजली के नन्हे बल्ब झिलमिला उठे.

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मैं ने मजाक करते हुए दुलहन बनी टुलकी को छेड़ दिया, ‘‘अब मंडप में बैठी हो. किसी काम के लिए दौड़ मत पड़ना.’’

धीमी सी हंसी हंसती वह मेरे कान में फुसफुसाई, ‘फिर कभी इधर लौट कर नहीं आऊंगी.’

बचपन से चुप रहने वाली टुलकी के कथन मुझे बारबार चौंका रहे थे. इतना परिवर्तन कैसे आ गया इस लड़की में?

मायके से विदा होते वक्त लड़कियां रोरो कर कैसा बुरा हाल कर लेती हैं पर टुलकी का तो अंगप्रत्यंग थिरक रहा था. मुझे लगा, सच, टुलकी के बोझिल जीवन में मधुमास तो अब आया है. उस के वीरान जीवन में खुशियों के इस झोंके ने उसे तरंगित कर दिया है.

विदा के झ्रसमय टुलकी के मातापिता, भाई और बहनों की आंखों में आंसुओं की झड़ी लगी हुई थी लेकिन टुलकी की आंखें खामोश थीं, उन में कहीं भी नमी दिखाई नहीं दे रही थी. इसलिए वह एकाएक आलोचना व चर्चा का विषय बन गई. महिलाओं में खुसरफुसर होने लगी.

लेकिन मैं खामोश खड़ी देख रही थी बंद पिंजरे को छोड़ती एक मैना की ऊंची उड़ान को. एक नए जीवन का स्वागत वह भला आंसुओं से कैसे कर सकती थी.

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मां का दिल महान: भाग 2- क्या हुआ था कामिनी के साथ

‘‘तुम चिंता मत करो, शायक. कोई न कोई राह निकल ही आएगी. पर इस के लिए हम मां को दुख तो नहीं पहुंचा सकते.’’

शायक कसमसा कर रह गया. उस का बस चलता तो वह कुछ अप्रत्याशित कर बैठता पर उस ने चुप रहना ही ठीक समझा.

इस बहस से कामिनी भी आहत हुई थीं पर रम्या से वादा कर दिया था इसलिए उस की सहायता को चली गई. आज उस की गतिविधियों पर उन की पैनी नजर थी. शीघ्र ही उन्हें आभास हो गया कि शायक उन से अधिक समझदार है. रम्या को केवल उन की सहायता नहीं चाहिए थी वह तो सारा काम उन्हीं से करवा रही थी. वह बड़ी होशियारी से उन की प्रशंसा के पुल बांधे जा रही थी. मानो इसी तरह उन्हें बरगला लेगी.

‘‘बालूशाही तो लाजवाब बनी हैं, दहीबड़े और बना दीजिए. आप के हाथों में तो जादू है,’’ बालूशाही बनते ही रम्या ने आगे का कार्यक्रम तैयार कर दिया.

‘‘रम्या बेटी, थक गई हूं. सुबह से काम कर रही हूं. एक कप चाय तो पिला,’’ कामिनी हंसीं.

‘‘पिलाऊंगी, चाय भी पिलाऊंगी. पहले काम तो समाप्त हो जाने दीजिए.’’

रम्या का उत्तर सुन कर दंग रह गईं कामिनी. वे उठ खड़ी हुईं.

‘‘अरे, जा कहां रही हैं आप? काम हो जाने के बाद चाय पी कर चली जाइएगा.’’

‘‘थोड़ी देर आराम कर के आऊंगी, बेटे. बैठेबैठे कमर में दर्द होने लगा है.’’

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‘‘इतने नखरे क्यों दिखा रही हैं आप? पैसे दूंगी. मैं किसी से मुफ्त में काम नहीं करवाती,’’ रम्या बदतमीजी से बोली.

कामिनी अविश्वास से घूरती रह गईं. न आंखों पर विश्वास हुआ न कानों पर. रम्या ने उस के बाद क्या कहा, वे सुन नहीं सकीं. चुपचाप उस के अपार्टमैंट से बाहर निकल आईं. पर वे अपने फ्लैट तक पहुंच पातीं, इस से पहले ही सुजाताजी मिल गईं.

‘‘मैं तो आप के यहां ही गई थी पर आप के यहां ताला पड़ा था,’’ वे उन्हें देखते ही बोलीं.

‘‘मेरे पास घर की एक चाभी हुआ करती है, इसलिए चिंता की बात नहीं है. चलिए न, मैं तो घर ही जा रही थी,’’ कामिनी बोलीं.

सुजाता कामिनी के साथ चली आईं.

‘‘आइए न, बैठिए. मैं अभी आई,’’ कामिनी ने सोफे की ओर इशारा किया.

‘‘मैं बैठने नहीं आई. आप का हिसाब करने आई हूं.’’

‘‘हिसाब? कैसा हिसाब?’’

‘‘आप ने 4-5 दिनों तक मेरी सेवा की, उसी का हिसाब,’’ उन्होंने 500 का नोट दिखाते हुए कहा.

‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने पैसों के लिए आप की सेवा की थी क्या?’’

‘‘अरे तो इस में शरमाने की कौन सी बात है. आजकल के बच्चे ऐसे ही हैं. कितना भी कमाते हों पर मातापिता पर कुछ भी खर्च करने से कतराते हैं,’’ सुजाता नाटकीय स्वर में बोलीं, ‘‘मैं क्या समझती नहीं. कोई बिना मतलब किसी की सहायता क्यों करने लगा? अपने मुंह से कहना आवश्यक थोड़े ही है. 500 रुपए कम हैं क्या? 100 रुपए और ले लीजिए.’’

‘‘बस कीजिए, मैं कुछ कह नहीं रही तो आप जो मन में आए कहे जा रही हैं. आप बीमार थीं, कोई देखभाल करने वाला नहीं था. मानवता के कारण आप की देखभाल कर दी तो आप मुझे अपमानित करने चली आईं,’’ कामिनी क्रोधित हो उठीं.

‘‘लो, भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा. मैं तो आप की सहायता करना चाह रही थी. रम्या से आप की सिफारिश मैं ने ही की थी. कल आप वहां भी लड्डू बना कर आई थीं. अब भी तो वहीं से आ रही थीं आप?’’

‘‘मैं क्या आप को घरघर जा कर काम करने वाली लगती हूं? शरम नहीं आती आप को? आप जैसों को खरीदने की हैसियत है मेरी. निकल जाइए यहां से. मुझे नहीं पता था कि यहां के लोग मानवता की भाषा भी नहीं समझते,’’ वे अपने स्वभाव के विपरीत चीख उठीं.

‘‘लो, मैं ने ऐसा क्या कह दिया, इस तरह आपा क्यों खो रही हैं आप?’’ सुजाता ने कामिनी के घर से निकलते हुए कहा.

उन के जाते ही कामिनी कटे वृक्ष की भांति कुरसी पर गिर गईं. उठ कर चाय बनाने की भी हिम्मत नहीं हुई. वहीं बैठेबैठे सो गई थीं. जब द्वार की घंटी बजी, द्वार खोला तो सामने शुचि खड़ी थी. ‘‘अंदर आओ न,’’ उसे वहीं खड़े देख कर वे बोलीं. तभी समवेत खिलखिलाहट का स्वर गूंजा.

‘‘अरे कौन है? शुचि, आज क्या आर्यन और अदिति को घर ले आई है?’’

‘‘हां दादी. हम दोनों आ गए हैं ऊधम मचा कर आप को सताने. मां कह रही थीं आप का अकेले मन नहीं लग रहा है.’’

मां के पीछे खड़े दोनों बच्चे उन के सामने आ खड़े हुए.

‘‘हां रे, मैं तो वापस जाने की सोच रही थी.’’

‘‘दादी, आप यहां आ जाओ तो हम छात्रावास छोड़ कर घर में रहने लगें.’’

‘‘पहले क्यों नहीं कहा? अपने घर को किराए पर दे कर यहीं आ जाती.’’

‘‘तो अब आ जाओ न, दादीमां,’’ दोनों उन के गले लग कर झूल गए.

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उन की निश्छल हंसी के बीच उन का मन नहीं हुआ कि वे शुचि को अपने कड़वे अनुभवों के बारे में बताएं. पर बताना तो पड़ेगा ही. इतनी बड़ी बात को वे छिपा भी तो नहीं सकतीं, विशेष रूप से अपने बेटे शायक से.

शीघ्र ही शुचि चाय बना लाई और स्वयं वहीं बैठ कर चाय की चुस्कियां लेने लगी.

‘‘मां, हमें भी भूख लगी है,’’ आर्यन और अदिति ने दोनों को चाय पीते देख शोर मचाया.

‘‘धीरज रखो, थक गई हूं. मांजी भी सुबह से अकेले बैठी हैं. चाय तो पीने दो,’’ शुचि ने दोनों को डपटा.

‘‘तुम कह कर जातीं तो मैं दोनों के लिए गरम नाश्ता बना कर रखती. पर तुम ने बताया ही नहीं. तुम दोनों तो कुछ खाते ही नहीं, तलाभुना खाने से वजन जो बढ़ जाता है,’’ कामिनी ने शिकायत की.

‘‘मुझे भी कहां पता था मां? औफिस में अदिति का फोन आया कि स्कूल

3 दिनों के लिए बंद हो रहा है. एनसीसी का कैंप है. मैं जा कर ले आई. छात्रावास में रहने से तो अच्छा है 3 दिनों तक घर में रहेंगे हम सब के साथ. आज मैं बनाती हूं कुछ गरमागरम आप सब के लिए. आप तो दिनभर रम्या की सहायता कर के थक गई होंगी,’’ शुचि चाय समाप्त होते ही उठ खड़ी हुई.

‘‘रम्या आंटी की सहायता, पर क्यों? उन्हें दादी की सहायता की क्या आवश्यकता पड़ गई?’’ अदिति बोली.

‘‘पलक का जन्मदिन है. मांजी उसी के लिए रम्या की सहायता कर रही हैं,’’ शुचि ने समझाया.

‘‘अच्छा, रम्या के बेटे का नाम पलक है? लो भला मुझे तो यह भी पता नहीं. न मैं ने पूछा न रम्या ने बताया. मैं ने तो उसे देखा तक नहीं है. वह भी क्या तुम दोनों की तरह छात्रावास में ही रहता है?’’ कामिनी ने प्रश्न किया.

‘‘रहता तो घर में ही है पर सुबहशाम ट्यूशन में व्यस्त रहता है, इसीलिए आप से भेंट नहीं हुई होगी. सुबह 6 बजे घर से निकलता है तो शाम के 8 बजे घुसता है,’’ शुचि ने बताया.

‘‘यह लो, आजकल के मातापिता अपने ही बच्चों पर कितना अत्याचार करते हैं. हमारे बच्चे तो घंटों अपने मित्रों के साथ खेलते थे. पर आजकल तो पढ़ाई के बोझ तले पिसे जा रहे हैं.’’

‘‘पढ़ाईलिखाई से जो समय बचता है वह कंप्यूटर और टीवी की भेंट चढ़ जाता है. जीवन बहुत उलझ गया है, मां,’’ शुचि हंसी.

‘‘ठीक कहती हो तुम. जीवन केवल उलझा ही नहीं है, बहुत आगे निकल भी गया है. हम जैसे वृद्ध बहुत पीछे छूट गए हैं.’’

कामिनी का उदास स्वर सुन कर चौंक गई शुचि.

‘‘क्या हुआ, मां? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’ उस ने पूछा.

कामिनी सबकुछ कह कर मन हलका करना चाहती थीं पर चुप रह गईं. वे जानती थीं कि शायक को पता चला तो हंगामा हो जाएगा. अपने बेटे के स्वभाव से वे भलीभांति परिचित थीं. यह तो अच्छा हुआ कि शुचि उन के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना रसोई में व्यस्त हो गई थी और वे अदिति और आर्यन के साथ बातों में व्यस्त हो गईं.

कुछ ही देर में शुचि ने पुकारा तो सब खाने की मेज पर जा कर डट गए.

‘‘तुम्हारी मम्मी ने तो जरा सी देर में कितनाकुछ बना डाला,’’ कामिनी ने गरमागरम नाश्ते की प्रशंसा करते हुए कहा.

‘‘क्यों शर्मिंदा करती हैं, मांजी. अभी तो बस पकौड़े बनाए हैं, बाकी सब तो आते हुए खरीद लाई थी,’’ शुचि मुसकराई.

कामिनी भी मुसकरा दीं. अदिति और आर्यन के आने से बड़ी रौनक हो गई थी. वे रम्या और सुजाता प्रकरण को लगभग भूल ही चली थीं कि अचानक द्वार की घंटी बजी. शुचि ने द्वार खोला तो सामने रम्या और उस के पति सुहास खड़े थे.

‘‘आइए, आज तो सूरज अवश्य ही पश्चिम से निकला होगा,’’ शुचि ने उन का स्वागत करते हुए कहा.

‘‘मुझे पता था तुम यही कहोगी. तुम कामकाजी महिलाओं के पास तो सदा एक ही बहाना रहता है, समय की कमी का. पर हम गृहिणियां भी कम व्यस्त नहीं रहतीं.’’

‘‘मैं इस बहस में पड़ना ही नहीं चाहती. कौन अधिक व्यस्त रहता है, इस बात पर तो घंटों बहस हो सकती है. आओ, बैठो,’’ शुचि मुसकराई.

‘‘बैठने का समय भला किस के पास है? हम तो तुम सब को आमंत्रित करने आए हैं. कल पलक का जन्मदिन है न. तुम सब आना. मांजी को भी ले कर आना,’’ सुहास ने आग्रह किया.

‘‘मांजी तो यों भी आएंगी मेरा हाथ बंटाने, आएंगी न आंटी?’’ रम्या बड़ी अदा से बोली.

‘‘नहीं बेटी, मैं नहीं आ सकूंगी. आज तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है.’’

‘‘ओह, मैं तो आप के भरोसे बैठी थी. हो सके तो कल थोड़ी देर के लिए ही सही पर आ जाइएगा.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो, रम्या. मां ने कह दिया न उन की तबीयत ठीक नहीं है. फिर क्यों जोर डाल रही हो?’’ शुचि ने नाराजगी दिखाई.

‘‘चलो ठीक है, मैं किसी प्रकार काम चला लूंगी. अरे वाह, आज तो अदिति और आर्यन भी आए हुए हैं. तुम दोनों को देख कर पलक भी बहुत खुश होगा,’’ रम्या ने बात पलटते हुए कहा.

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‘‘क्या हुआ, मां? रम्या ने कुछ कहा था क्या?’’ शुचि ने थोड़ा सा एकांत पाते ही पूछ लिया.

‘‘बहुत बदतमीजी से पेश आई थी मुझ से. आज तक किसी ने इस तरह बात नहीं की,’’ कामिनी की आंखें भर आईं. उन्होंने शुचि को पूरा प्रकरण कह सुनाया.

‘‘मैं तो आज आप को देखते ही समझ गई थी कि कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है. पर आप चिंता मत करिए. मैं भी उसे ऐसा मजा चखाऊंगी कि वह याद रखेगी. आप शायक से कुछ मत कहिएगा वरना वे व्यर्थ ही भड़क उठेंगे.’’

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Anik Ghee के साथ बनाएं मलाई लड्डू

मार्केट में लड्डू की कई वैरायटी है. लेकिन घर पर हेल्दी प्रौडक्ट्स के साथ बनाए गए लड्डू की बात ही अलग है. इसीलिए आज हम आपको दीवाली के मौके पर मलाई लड्डू की रेसिपी बताएंगे.

सामग्री

1/2 लीटर अनिक दूध

100 ग्राम अनिक पनीर

3 छोटे चम्मच मलाई

41/2 छोटे चम्मच चीनी

1/2 छोटे चम्मच इलायची

बनाने का तरीका

कढ़ाही में अनिक दूध डाल कर गाढ़ा होने तक पकाएं, फिर इसमें चीनी डाल कर धीमी आंच पर चलाते हुए कड़ाह में लगने तक पकाएं, अब इसमें अनिक पनीर, मलाई व इलायची पाउडर डालें. फिर धीमी आंच पर इसे तय समय तक चलाते रहें. जब तक यह शेप होल्ड न करे. आंच से उतार कर ठंडा कर लड्डू बनाएं.

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