REVIEW: जानें कैसी है Akshay Kumar और Katrina Kaif की Sooryavanshi

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः करण जोहर,रोहित शेट्टी, केप आफ गुड फिल्मस और रिलायंस इंटरटेनमेंट

निर्देशकः रोहित शेट्टी

कलाकारः अक्षय कुमार,कटरीना कैफ,अजय देवगन,रणवीर सिंह,कुमुद मिश्रा,जावेद जाफरी,अभिमन्यू सिंह, राजेंद्र गुप्ता ,निहारिका रायजादा, निकितन धीर,विवान भथेना,

अवधिः दो घंटा 25 मिनट

लगभग पौने दो वर्ष बाद मुंबई के सभी सिनेमाघर पचास प्रतिशत की क्षमता के साथ 22 अक्टूबर से खुल चुके हैं. लेकिन अफसोस अब तक एक भी फिल्म दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर पायी है.  फिल्म जगत से जुड़े लोगों को आज 5 नवंबर को देश विदेश के सिनेमाघरों में पहुॅची रोहित शेट्टी की महंगी और मल्टीस्टारर एक्शन मसाला फिल्म ‘‘सूर्यवंशी’’से काफी उम्मीदें थी.  कोविड महामारी के बाद भारतीय सिनेमा की जो दयनीय स्थिति हो गयी है,उसे सुधारने के लिए आवश्यक है कि लोग सिनेमा देखने सिनेमाघर के अंदर जाएं.  हम भी चाहते है कि लोग पूरे परिवार के साथ फिल्म देखने सिनेमाघर में जाएं. मगर रोहित शेट्टीे की फिल्म ‘‘सूर्यवंशी’’ को दर्शकों का साथ मिलेगा,ऐसी उम्मीद कम नजर आ रही हैं. फिल्मकारों को भी  सिनेमा जगत को पुनः जीवन प्रदान करने के लिए फिल्म निर्माण के विषय वगैरह पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है.

कहानीः

रोहित शेट्टी के दिमाग मे पुलिस किरदारों की अपनी एक अलग कल्पना है. ‘सिंघम’ और ‘सिंबा’के बाद उसी कड़ी में उनकी यह तीसरी फिल्म ‘सूर्यवंशी है. जिसके प्री क्लायमेक्स में सिंबा यानी कि रणवीर सिंह और क्लायमेक्स में सिंघम यानीकि अजय देवगन भी सूर्यवंशी यानी कि अक्षय कुमार का साथ देने आ जाते हैं.

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एक काल्पनिक कथा को यथार्थ परक बताने के लिए ही रोहित शेट्टी ने फिल्म की कहानी की शुरूआत ही मार्च 1993 में मुबई में हुए लगातर सात बम विस्फोट से होती है. इस बम विस्फोट के बाद पुलिस अफसर कबीर श्राफ(जावेद जाफरी) इस बम विस्फोट के लगभग हर गुनाहगार को पकड़ लेेते हैं. मगर बम ब्लास्ट के मास्टर माइंड बिलाल (कुमुद मिश्रा) और ओमर हफीज (जैकी श्रॉफ) मुंबई में अमानवीय कांड करके पाकिस्तान भाग गए थे. पर अपने फर्ज को अपनी डॉक्टर पत्नी रिया (कटरीना कैफ) और बेटे से भी उपर रखने वाले बहादुर पुलिस अफसर सूर्यवंशी को बिलाल और ओमर हफीज की तलाश है. क्यांेकि मुंबई बम विस्फोट में सूर्यवंशी अपने माता-पिता को खो चुके हैं. कबीर श्राफ को जांच में पता चला था कि मुंबई बम विस्फोट के लिए  असल में एक हजार किलो आरडीएक्स लाया गया था, जिसमें से महज 400 किलो का इस्तेमाल करके तबाही मचाई गई थी. जबकि 600 किलो आरडीएक्स मुंबई में ही कहीं छिपा कर रखा है. अब सुर्यवंशी उसी की जांच को आगे बढ़ाते हुए सूर्यवंशी यह पता लगाने में सफल हो जाते हैं कि पिछले 27 वर्षों से आतंकी संगठन लश्कर के स्लीपर सेल फर्जी नाम वह भी हिंदू बनकर देश के विभिन्न प्रदेशों में रह रहे हैं. अब ओमर हाफिज अपने दो बेटों रियाज(अभिमन्यू सिंह) व राजा(सिकंदर खेर ) को भारत भेजता है कि वह वहां सावंत वाड़ी में उस्मानी की मदद से छिपाकर रखे गए छह सो किलो आरडीएक्स का उपयोग कर मुंबई के सात मुख्य  भीड़भाड़ वाले इलाकों में एक बार फिर बम विस्फोट कर देश को दहला दे. मगर सूर्यवंशी अपनी सूझबूझ से रियाज को गिरफ््तार कर जेल में डाल देता है. तब ओमर शरीफ पाकिस्तान से पुनः बिलाल को भेजता है. अब मुंबई को आतंकी हमले से सूर्यवंशी,सिंबा और सिंघम की मदद से किस तरह बचाते हैं,यह तो फिल्म देखकर ही पता चलेगा.

लेखन व निर्देशनः

पटकथा तेज गति की है. मगर फिल्म ‘सूर्यवंशी’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसकी कहानी और फरहाद सामजी के संवाद हैं. फरहाद सामजी के संवाद अति साधारण हैं.  कुछ संवाद अतिबचकाने हैं. 1993 में मुंबई आए एक टन आरडीएक्स में से मार्च 1993 में मुंबई बम विस्फोट में सिर्फ चार सौ किलो आरडीएक्स उपयोग किया गया था. बाकी की तलाश व अपराधियों को पकड़ने की कहानी में जबरन राष्ट्वाद ठूंसने की कोशिश की गयी है. एक दृश्य में मंदिर से भगवान गणेश जी की मूर्ति को स्थानांतरित करते समय मौलानाओं को गणेश जी की मूर्ति उठाते हुए दिखाया गया है. रोहित शेट्टी ने सूर्यवंशी ( अक्षय कुमार)के किरदार को जिस तरह से गढ़ा है,वह भी हास्यास्पद ही है. सूर्यवंशी( अक्षय कुमार) हमेशा अपने साथ काम करने वालों के नाम भूल जाते हैं. मगर मुस्लिमों को धर्मनिरपेक्षता, देशभक्ति और मुस्लिम कट्टरपंथियो का समर्थन देने के खतरे को लेकर भाषणबाजी देना नही भूलते.

रोहित शेट्टी ने अपनी पुरानी फिल्मों के दृश्यों को ही फिर से इस फिल्म में पिरो दिया. इसमें फिल्म में जॉन को पकड़ने के लिए सूर्यवंशी को बैंकॉक भेजने वाला पूरा घटनाक्रम अनावश्यक है. हकीकत में बतौर निर्देशक रोहित शेट्टी इस फिल्म में काफी मात खा गए हैं. फिल्म के कई दृश्यों का वीएफएक्स भी काफी कमजोर है. फिल्म में नयापन नही है. यहां तक कि रोहित शेट्टी ने क्लायमेक्स के लिए कई दृश्यों को अपनी पुरानी फिल्म ‘‘सिंघम’’से चुराए हैं.

रोहित शेट्टी ने नायक के साथ साथ खलनायकों के परिवार, उनके सुख दुःख के साथ   भावनात्मक  इंसान के रूप में दिखाया जाना गले नही उतरता.

अक्षय कुमार और कटरीना कैफ के बीच रोमांस सिर्फ एक गाने में है. कहानी की बजाय सिर्फ एक्शन देखने के शौकीन लोग जरुर खुश होंगे. रोहित शेट्टी के अंदाज के अनुरूप इसमें गाड़ियों का उड़ना नजर आता है. लेकिन यह सारे एक्शन दृश्य हौलीवुड फिल्मों के एक्शन दृश्यों से प्रेरित हैं.

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अभिनयः

अक्षय कुमार के अभिनय मे भी दोहराव ही है. वह हर दृश्य में किरदार की बजाय अक्षय कुमार ही नजर आते हैं. कटरीना कैफ  गाने ‘टिप टिप बरसा पानी’ में सेक्सी व सिजलिंग नजर आयी हैं. कुमुद मिश्रा,जैकी श्राफ और गुलशन ग्रोवर की प्रतिभा को जाया किया गया है. इनके किरदारांे के साथ न्याय नही हुआ.

कभी ना करें ये Beauty Blunders

मेकअप करने में कई बार छोटी-छोटी गलतियां हो जाती हैं. मेकअप मिस्टेक्स किसी से भी हो सकती है, लेकिन जरूरी है उसे समय पर सुधार लेना. जानते हैं कुछ ऐसे ही कॉमन मेकअप मिस्टेक के बारे में.

ब्लशर की लेयर

ब्लशर आपके चेहरे को डिफाइन करता है, लेकिन जरूरत से अधिक ब्लशर लगाने या सही ढंग से ब्लेंड न करने के कारण यह आपकी उम्र को बढ़ा देता है. पीच, पिंक, गोल्डन या ब्राउन शेड्स में से आपकी स्किन के साथ कौन सा शेड सबसे अधिक फबेगा, यह जानना भी जरूरी है.

डार्क आई मेकअप

रात की पार्टी के लिए स्मोकी आई लुक सबसे अधिक पसंद किया जाता है, लेकिन डार्क मेकअप आपकी आंखों को छोटा कर देता है. यह आंखों के चारों तरफ के पार्ट को ब्लैक कर देता है, जिससे आंखों के अंदर का वाइट पार्ट दिखाई नहीं देता और आंखें छोटी लगने लगती हैं.

अधिक फाउंडेशन का यूज

कभी-कभी जल्दबाजी में ज्यादा फाउंडेशन लग जाता है. सूखने पर पता चलता है ढेर सारे फाउंडेशन से आपको चेहरा केकी लग रहा है. अगर आपका फेस ड्राई है, तो पाउडर फाउंडेशन का यूज न करें. बजाय इसके लिक्विड या क्रीमी फॉमूर्ला यूज करें. मिक्स स्किन के लिए क्रीम टू पाउडर फाउंडेशन का यूज करें.

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हेयर कलर

एक बात का ध्यान रखें कि जिस तरह हेयर का कलर मैग्जीन में दिख रही मॉडल, एक्ट्रेस या आपके किसी कलिग के बालों पर नजर आ रहा है, जरूरी नहीं कि वह कलर आपके बालों पर भी उतना ही अच्छा लगे. दरअसल, हर किसी के बालों का टेक्सचर अलग होता है. इसलिए हेयर कलर चुनते समय हेयर टेक्सचर को जरूर ध्यान में रखें. इसमें प्रोफेशनल आपकी मदद बखूबी कर सकते हैं. वह आपके बालों को देखने के बाद आपको सही कलर की जानकारी दे देंगे.

ब्लीचिंग क्रीम

चेहरे की कलर को क्लीन करने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन इसके इस्तेमाल से पहले ब्यूटीशियन से सलाह लेना बेहद जरूरी है. अगर आप कोई भी ब्लीचिंग क्रीम खरीदकर अपने चेहरे पर अप्लाई करेंगे, तो चेहरे पर दाने, खुजली व स्किन बर्न की दिक्कत से गुजर सकते हैं. इसे खरीदते समय अपनी स्किन टोन का ध्यान जरूर रखें.

होम मेड ब्यूटी मास्क

यह नैचुरल चीजों को मिलाकर तैयार किया जाता है. इसमें कोई केमिकल्स नहीं मिलाया जाता. लेकिन कभी-कभार यह आपकी स्किन पर रैशेज की वजह भी बन सकता है. अगर ऐसा होता है, तो एक साफ कपड़े को दूध में भिगोएं और इसे स्किन की उन जगहों पर लगाएं. यह आपकी स्किन पर होने वाली इरिटेशन को कम कर देगा.

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वैक्सिंग

गर्म वैक्स से बालों को निकालना बेहद दर्द देने वाली प्रोसेस है. लेकिन यह तब ज्यादा पैनफुल हो जाता है, जब वैक्स जरूरत से ज्यादा गर्म हो जाए. यह स्किन को बर्न कर दाग-धब्बे छोड़ देता है. इसलिए वैक्स को सही टेंपरेचर में गर्म करें. जब आप यह करवा रही हों, तो चेहरे व आईब्रो वाली जगह का खास ख्याल रखें. क्योंकि अगर गलती से भी यह वैक्स चेहरे पर लगा जाए, तो चेहरा बर्न हो सकता है.

मौसम और Mood: क्या होता है असर 

बरसात के मौसम में बच्चों का बाहर निकल कर खेलना कूदना बंद हो जाता है और वे कहते हैं- रेन रेन गो अवे… उसी तरह अधिक गरमी या जाड़े में परेशान हो कर हम कहते हैं कि यह मौसम कब जाएगा. मौसम का अपना एक नैचुरल साइकिल है और आमतौर पर किसी खास भौगोलिक स्थान पर यह अपने समय पर आता जाता है. हालांकि आजकल क्लाइमेट चेंज के चलते बेमौसम के भी कभी मौसम में बदलाव देखने को मिल सकता है.

कोई भी स्थिति ज्यादा बरसात या ज्यादा गरमी या ज्यादा ठंड जब लगातार लंबे समय के लिए हमें परेशान करता है तब मन में कुढ़न होती है. मगर क्या यह मात्र मन की परिकल्पना है कि सच में मौसम का असर हमारे मूड पर पड़ता है? 70 के अंत और 80 की शुरुआत में इन का संबंध उभर कर आने लगा था जब कुछ वैज्ञानिकों ने इस विषय पर अध्ययन शुरू किया है

मौसम और मूड का संबंध: यह संबंध बहुत मर्की है जिसे आप धुंधला, उदास, फीका या गंदा कुछ भी कह सकते हैं. विज्ञान के अनुसार मौसम और मूड का संबंध विवादों से घिरा है और दोनों तरह के तर्कवितर्क भिन्न हो सकते हैं. 1984 में वैज्ञानिकों ने मूड चेंज के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन किया. इस अध्ययन में देखा गया कि मूड में परिवर्तन जैसे क्रोध, खुशी, चिंता, आशा, निराशा या आक्रामक व्यवहार जिन पहलुओं पर निर्भर करता है वे हैं- धूप, तापमान, हवा,  ह्यूमिडिटी, वायुमंडल का दबाव और उतावलापन.

अध्ययन में देखा गया कि जिन बातों का सर्वाधिक असर मूड पर पड़ता है वे हैं- सनशाइन या धूप, तापमान और ह्यूमिडिटी. खास कर ज्यादा   ह्यूमिडिटी बढ़ने पर कंसंट्रेशन में कमी होती है और सोने को जी चाहता है. 2005 के एक अध्ययन में देखा गया कि अच्छे मौसम में बाहर घूमने या समय बिताने से मूड अच्छा होता है और याददाश्त में बढ़त देखने को मिलती है.

अच्छा और खराब

वसंत ऋतु में मूड सब से अच्छा और गर्मी में खराब होता है. पर कुछ वैज्ञानिक इस अध्ययन से सहमत नहीं थे और उन्होंने 2008 में अलग अध्ययन किया. इस अध्य्यन में उन्होंने देखा कि धूप, टैंपरेचर और ह्यूमिडिटी का मूड पर कुछ खास सकारात्मक या नकारात्मक असर नहीं पड़ता है. अगर है भी तो वह नगण्य है. उन्होंने यह भी देखा कि 2005 के अध्ययन में कहे गए अच्छे मौसम का बहुत ही मामूली सकारात्मक प्रभाव मूड पर पड़ता है.

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मौसम और मूड के संबंध में अभी और अध्ययन की जरूरत है. पर एक बात जिस पर लगभग सभी सहमत हैं वह यह कि मौसम का आदमी पर प्रभाव किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है जो सभी के लिए समान नहीं हो सकता है.

क्या हर आदमी वैदर टाइप होता है: मौसम के प्रति प्रतिक्रिया या संवेदनशीलता हर आदमी की अलग होती है. उदाहरण के लिए स््नष्ठ (सीजनल इफैक्टिव डिसऔर्डर) जिसे मौसम के अनुसार मूड में बदलाव कहते हैं को लें तो जाड़ों में दिन छोटा होने से कुछ लोगों के मूड डिप्रैसिव पाए गए हैं जिसे विंटर ब्लू भी कहते हैं.

वैज्ञानिकों के अनुसार विंटर ब्लू सिंड्रोम दुनिया की 6% आबादी में देखा गया है, इसलिए इसे रेयर मूड रिलेटेड डिसऔर्डर कहा जाता है. अमेरिका के नैशनल इंस्टियूट औफ मैंटल हैल्थ के अनुसार स््नष्ठ एक अति साधारण स्तर का डिसऔर्डर है.

समर सैड: अध्ययन में देखा गया है कि कुछ लोगों में समर सैड होता है जिस से वे डिप्रैस्ड अनुभव करते हैं . खास कर बाइपोलर डिसऔर्डर रोग में गरमी के चलते लोगों को दौरा पड़ सकता है जिस से वे उन्मत्त या हाइपोमैनियक हो सकते हैं. कुछ लोग गरमियों में चिंतित, चिड़चिड़े या हिंसक भी हो सकते हैं.

कुछ मामलों में बुरे मौसम (व्यक्ति विशेष के लिए ज्यादा गरमी या ठंड अथवा बरसात कुछ भी हो सकता है) में लो मूड और खराब हो सकता है. ह्यूमिडिटी (आर्द्रता) में असहज और प्रेरणाहीन महसूस हो सकता है.

संबंधित प्रतिक्रिया

इस के बाद पुन: 2011 में अध्ययन किया गया जिस में कहा गया है कि मौसम का असर मूड पर जरूर पड़ता है, भले ही थोड़े लोगों में न हो. जिन लोगों पर यह अध्ययन किया गया उन में 50% पर मौसम का कोई प्रभाव नहीं देखा गया? जबकि शेष 50% में इस का पौजिटिव या नैगेटिव असर देखने को मिला.

इन सभी अध्ययनों के बाद, अध्ययन में शामिल लोगों में निम्नलिखित 4 मौसम संबंधित बातें या प्रतिक्रिया देखने को मिली है-

मौसम और मूड का कोई संबंध नहीं: जिन पर मौसम का कोई असर नहीं उन के अनुसार मूड और मौसम का कोई संबंध नहीं है.

समर लवर्स: कुछ लोगों में गरमी और सनशाइन के मौसम में मूड अच्छा रहता है.

समर हेटर्स: ठंडे और बादल वाले दिनों में मूड अच्छा रहता है.

रेन हेटर्स: इन्हें बरसात का मौसम बिलकुल पसंद नहीं है. इन दिनों इन का मूड अच्छा नहीं (लो) रहता है. करीब 9% लोग इस श्रेणी में आते हैं. अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डा. टैक्सिआ एवंस के अनुसार बरसात की अंधेरी रातों में अकेलापन और डर महसूस होता है और मूड अच्छा नहीं रहता है.

इस के विपरीत न्यूयौर्क की मनोचिकित्सक और लाइट थेरैपिस्ट डा. जूलिया सैम्टन बरसात और क्लाउडी दिनों में भी अपने रोगी को बाहर प्रकाश में जाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. उन के अनुसार लाइट से कुछ लोगों का सिरकाडियन रिद्म रैगुलेट होता है और उन का मूड अच्छा होता है.

पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के फैलो डा. उरी सिमोन्सन द्वारा प्रस्तुत शोध पेपर ‘क्लाउड्स मेक नर्ड लुक बैटर’ (बादल बेवकूफ को बेहतर बनाते हैं)’ में कहा गया है कि यूनिवर्सिटी के एडमिशन अफसर विद्यार्थियों के शैक्षणिक  गुण का आकलन क्लाउडी दिनों में करते हैं और गैरशैक्षणिक योग्यता का आकलन धूप के दिनों में करते हैं.

दूसरी ओर धूप हो न हो तापमान का असर भी व्यक्ति के व्यवहार और मस्तिष्क पर पड़ता है. सामान्यतया 25% तापमान से जितनी दूर (ज्यादा  या कम हों) आदमी हो उतना ही ज्यादा असहज महसूस करता है. एक अध्ययन में देखा गया है कि इस तापमान से दूर होने पर आदमी में  सहायता करने की प्रवृत्ति कम हो जाती है.

क्या मौसम और सैक्स में संबंध है: हालांकि मौसम और सैक्स के बारे में कोई एक जनरल नियम नहीं है जो सब पर लागू हो. फिर भी मौसम का असर कुछ हद तक सैक्स ड्राइव पर पड़ता है.

गरमियों में सैक्स ड्राइव जाड़े की तुलना में बेहतर: विडंबना यह है कि गरमी के मौसम में ठंड की अपेक्षा सैक्स की इच्छा ज्यादा होती है. वैज्ञानिकों के अनुसार इस के लिए हारमोन बधाई का पात्र है. महिलाओं के सैक्स हारमोन गरमी और सनशाइन में ज्यादा बनते हैं जिस के चलते उन में सैक्स ड्राइव बढ़ा देता है. इसके अलावा फील गुड न्यूरो ट्रांसमीटर, सैरोटोनिन, महिलाओं और पुरुषों दोनों में वसंत और गरमी में ज्यादा बनते हैं जिस के चलते मूड अच्छा रहता है.

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जाड़े में सैक्स ड्राइव: इस मौसम में फील गुड हारमोन. सैरोटोनिन कम बनता है और महिलाओं में ऐस्ट्रोजन भी कम बनता है जिस के चलते सैक्स में कमी हो सकती है. इस के अतिरिक्त ठंड में बदन पर हमेशा ज्यादा कपड़े होने से स्किन का ऐक्सपोजर कम होता है जिस के चलते परस्पर आकर्षण में कुछ कमी होती है. इस मौसम में अनड्रैस होना भी कठिन है. धूप में कम ऐक्सपोजर होने से विटामिन डी का कम बनना भी एक कारण हो सकता है.

मौनसून सैक्स के लिए सब से अच्छा: मौनसून को सैक्स के लिए सर्वोत्तम मौसम माना जाता है. बिजली की चमक और बादलों की गर्जना से एक अलग थ्रिल का एहसास होता है और सैक्स का उन्माद जाग्रत होता है.

ठंडी हवा और बारिश की फुहारें सैक्स की चिनगारी भड़काती हैं. बरसात में कडलिंग से लव हारमोन औक्सीटोसिन भी ज्यादा बनता है जो दोनों पार्टनर में सैक्स ड्राइव बढ़ा देता है.

इन अध्ययन से प्रतीत होता है कि कुछ व्यक्ति मौसम के प्रति लचीला व्यवहार करते हैं यानी एक तरह से वैदरपू्रफ हैं, उन पर किसी मौसम का कोई खास असर नहीं पड़ता है. सब से अच्छी बात यह है कि ज्यादातर आदमी स्वाभाविक रूप से मौसम के अनुकूल अपने को एडजस्ट कर सकता है.

दूसरी ओर कुछ लोग मौसम विशेष के प्रति संवेदनशील होते हैं और मौसम की प्रतिक्रिया की तीव्रता उस व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है.

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क्या यही है लोकतंत्र

धर्म व राजसत्ता का गठजोड़ फासीवाद व अंधवाद पैदा करता है. धर्म को सत्ता से दूर करने के लिए ही लोकतंत्र का उद्भव हुआ था. रोम को धराशायी करने में सब से बड़ा योगदान समानता, संप्रभुता व बंधुत्व का नारा ले कर निकले लोगों का था. ये लोग धर्म के दुरुपयोग से सत्ता पर कब्जा कर के बैठे लोगों को उखाड़ कर फेंकने को मैदान में उतरे थे व राजशाही को एक महल तक समेट कर ब्रिटेन में लोकतंत्र की ओर आगे बढ़े.

बहुत सारे यूरोपीय देश इस से भी आगे निकल कर राजतंत्र को दफन करते हुए लोकतंत्र की ओर बढ़े और धर्म को सत्ता के गलियारों से हटा कर एक चारदीवारी तक समेट दिया, जिसे नाम दिया गया वैटिकन सिटी.

आज किसी भी यूरोपीय देश में धर्मगुरु सत्ता के गलियारों में घुसते नजर नहीं आएंगे. ये तमाम बदलाव 16वीं शताब्दी के बाद नजर आने लगे, जिसे पुनर्जागरण काल कहा जाने लगा अर्थात पहले लोग सही राह पर थे, फिर धार्मिक उन्माद फैला कर लोगों का शोषण किया गया और अब लोग धर्म के पाखंड को छोड़ कर उच्चता की ओर दोबारा अग्रसर हो चुके हैं.

सोच में बदलाव

आज यूरोपीय समाज वैज्ञानिक शिक्षा व तर्कशीलता के बूते दुनिया का अग्रणी समाज है. मानव सभ्यता की दौड़ में कहीं ठहराव आता है तो कहीं विरोधाभास पनपता है, लेकिन उस का तोड़ व नई ऊर्जा वैज्ञानिकता के बूते हासिल तकनीक से हासिल कर ली जाती है.

आज हमारे देश में सत्ता पर कब्जा किए बैठे लोगों की सोच 14वीं शताब्दी में व्याप्त यूरोपीय सत्ताधारी लोगों से ज्यादा जुदा नहीं है. मेहनतकश लोगों व वैज्ञानिकों के एकाकी जीवन व उच्च सोच के कारण कुछ बदलाव नजर तो आ रहे हैं, लेकिन धर्मवाद व पाखंडवाद में लिप्त नेताओं ने उन को इस बात का कभी क्रैडिट नहीं दिया.

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जब किसी मंच पर आधुनिकता की बात करने की मजबूरी होती है तो ये इन लोगों की मेहनत व सोच को अपनी उपलब्धि बताने की कोशिश करने लगते हैं. यही लोग दूसरे मंच पर जाते हैं तो रूढि़वाद व पाखंडवाद में डूबे इतिहास का रंगरोगन करने लग जाते हैं.

धर्मगुरुओं का चोला पहन कर इन बौद्धिक व नैतिक भ्रष्ट नेताओं के सहयोगी पहले तो लोगों के बीच भय व उन्माद का माहौल पैदा करते हैं और फिर सत्ता मिलते ही अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता के केंद्र बन बैठते हैं.

सरकारें किसी भी दल की हों, यह कारनामा करने से कोई नहीं हिचकता. पंडित नेहरू से ले कर नरेंद्र मोदी तक हर प्रधानमंत्री की तसवीरें धर्मगुरुओं के चरणों में नतमस्तक होते नजर आ जाएंगी.

गौरतलब है कि जब धर्मगुरु जनता द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री से ऊपर होते हैं तो लोकतंत्र सिर्फ दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं होता और बेईमान लोग इसी लोकतंत्र नाम की दुहाई दे कर मखौल उड़ाते नजर आते हैं.

लोकतंत्र अपने पतन की ओर

इसी रोगग्रस्त लोकतंत्र की चौपाई का जाप करतेकरते अपराधी संसद में बैठने लगते हैं तो धर्मगुरु लोकतंत्र के संस्थानों को मंदिर बता कर पाखंड के प्रवचन देने लग जाते हैं और नागरिकों का दिमाग चकरघिन्नी की तरह घूमने लग जाता है. नागरिक भ्रमित हो कर संविधान भूल जाते हैं और टुकड़ों में बंटी सत्ता के टीलों के इर्दगिर्द भटकने लग जाते है. जहां जाने के दरवाजे तो बड़े चमकीले होते हैं, लेकिन लौटने के मार्ग मरणासन्न तक पहुंचा देते हैं.

इस प्रकार लोकतंत्र समर्थक होने का दावा करने वाले लोग प्राचीनकालीन कबायली जीवन जीने लग जाते हैं, जहां हर 5-7 परिवारों का मुखिया महाराज अधिराज कहलाता था. आजकल लोकतंत्र में यह उपाधि वार्ड पंच, निगम पार्षद व लगभग हर सरकारी कर्मचारी ने हासिल कर ली है. जिन को नहीं मिली वे कोई निजी संगठन का मनगढ़ंत निर्माण कर के हासिल कर लेता है. इस प्रकार मानव सभ्यता वापस पुरातनकाल की ओर चलने लग गई व लोकतंत्र अपने पतन की ओर.

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निराशाजनक रवैया

जहां सत्ता धर्म के सहारे की उम्मीद करने लगे व धर्म सत्ता के सहारे की तो लोकतंत्र का पतन नजदीक होता है. अब हर अपराधी, भ्रष्ट, बेईमान, धर्मगुरु, लुटेरे आदि हरकोई अपनेअपने हिसाब से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करने लग गया है. संवैधानिक प्रावधान चमत्कार का रूप ले चुके हैं, जिन्हें सुना जाए तो बहुत ही सुहावने लगते हैं, लेकिन कभी हकीकत में नहीं बदल सकते.

किसान आंदोलन के प्रति राजनीतिक व धार्मिक दोनों सत्ता के केंद्रों का रवैया दुश्मनों जैसा है. अपने ही देश के नागरिकों व अपने ही धर्म के अनुयायियों के प्रति यह निर्लज्ज क्रूरता देख कर प्रतीत होता है कि अब लोकतंत्र नहीं रहा.

मनपसंद के लिए इतना तो कीजिए

लेखिका -स्नेहा सिंह

अब उस से मिलने के लिए मन बेचैन नहीं होता. सबकुछ छोड़ कर उस के पास जाने की इच्छा की धार कुंद हो गई है. बातों के विषय खत्म हो गए हैं. भावनाएं फर्ज बन कर रह गई हैं. शरीर का आकर्षण मर चुका है. जो स्पर्श पतिंगे उड़ा सकता था, अब वह शरीर पर कांटे की तरह चुभता है. संस्कार कमिटमैंट, संबंध और समाज ने अभी एकदूसरे के साथ जोड़ रखा है. पर सचाई और कही न जा सके वास्तविकता यह है कि अब उस के साथ पहले जैसा अच्छा नहीं लगता.

जब आप किसी के साथ संबंध में होती हैं तो उस संबंध को बनाए रखने के लिए उस का जमाउधार नियमित जांचते रहना चाहिए. धंधे में संबंध का उसूल और संबंध में धंधे का उसूल रखने और पालन करने की कोशिश करेंगी तो दोनों ओर से कोई दिक्कत नहीं आएगी. आप महिला हैं. आप को मनपसंद पुरुष के लिए हमेशा इंटरैस्टिंग बने रहना जरूरी होगा.

आप को इंटरैस्टिंग बने रहना होगा

सामाजिक जिम्मेदारियों और बच्चों के बीच महिलाएं इस तरह खो जाती हैं कि पति के प्रति इंटरैस्टिंग बन कर रहना भूल जाती हैं. ऐसा ही पति के साथ भी होता है. पैसा और नाम कमाने में व्यस्त रहना पतिपत्नी को ‘अच्छा’ लगने की कोशिश नहीं कराता. प्रेम संबंध में भी ऐसा ही होता है. इंटरैस्टिंग बन कर रहना यानी आप अपने पसंद के व्यक्ति के लिए शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह से रुचिकर रहें.

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मानसिक अपग्रेडेशन

एक घर अच्छी तरह चले, इस में गृहिणी की बहुत बड़ी भूमिका होती है पर घर संभालने के चक्कर में गृहिणियां संबंध संभालने में चूक जाती हैं. आप हाउसवाइफ हैं तो क्या हो गया. मानसिक रूप से अपग्रेडेड रह सकती हैं और रहना भी चाहिए. हाउसवाइफ को पढ़ना चाहिए, अच्छी फिल्में देखनी चाहिए, अच्छे गाने सुनने चाहिए और देशविदेश के समाचार जानने चाहिए.

शरीर

शरीर को संभालना और यथास्थित रखना महिलाओं के लिए एक नैशनल समस्या बन गई है. कमर लचीली न रहे, चलेगा, पर वहां चरबी घर कर जाए, यह नहीं चलेगा. सैक्सलाइफ के लिए शरीर को संभाल कर रखना जरूरी है. नियमित वैक्स, अंडरआर्म्स, विकिनी वैक्स कराते रहना जरूरी है. प्राइवेट पार्ट की सफाई भी उतनी ही जरूरी है.

मैनर्स

पति की अनुपस्थिति में उन का व्हाट्सऐप पढ़ना, उन का कौल लौग देखना मैनर्स नहीं है. ऐसा ही पत्नी के फोन के साथ भी नहीं किया जा सकता. खाना आप बहुत अच्छा बनाती हैं, पर उसे परोसना भी आना चाहिए. थाली में सब्जी कहां रखी जाए और रोटी किस तरह रखी जाए, यह सब पता होना चाहिए. कहां रोका जाए, इस का भी ज्ञान होना चाहिए. आप को समय नहीं देते, यह शिकायत हर समय नहीं होनी चाहिए.

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अभिव्यक्ति

किसी भी संबंध को बनाए रखने के लिए अभिव्यक्ति बहुत जरूरी है. आप कितना प्रेम करती हैं, आप एकदूसरे को कितना मिस करते हैं, आप दोनों को क्या अच्छा लगता है, क्या नहीं , इस बात की अभिव्यक्ति जरूरी है. तमाम लोग यह कह देते हैं कि मैं इंट्रोवर्ट हूं, पर इंट्रोवर्ट रह कर भी आप के व्यवहार से प्रेम की अभिव्यक्ति हो सकती है.

आप के पार्टनर की बदल रही जरूरतें आप को पता होनी चाहिए. उसे आप से क्या अपेक्षाएं हैं, इस की भी आप को खबर होनी चाहिए. बातबात में आप को अपनी जरूरतें भी पार्टनर से कह देनी चाहिए.

मेरा प्रेरणा स्रोत- मर्कट!

मेरा एक प्रेरणास्रोत है.

आप कहेंगे- सभी के अपने-अपने प्रेरणास्रोत होते हैं, इसमें नयी क्या बात है ?
आपकी बात सही है, मगर सुनिए तो, मेरा प्रेरणास्रोत एक ईमानदार बंदर है, मर्कट है .
पड़ गए न आश्चार्य में ? दोस्तों ! अब मनुष्य, मानव, महामानव कहां रहे, कहिए, क्या मैं गलत कहता हूं .अब तो प्रेरणा लेने का समय उल्लू, मच्छर, चूहे, श्वान इत्यादि आदि से लेने का आ गया है.
जी हां! मेरी बात बड़ी गंभीर है. मैं ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि पशु- पक्षी हमारे बेहतरीन प्रेरणास्रोत हो सकते हैं . और हमसे ईमानदारी का पुट हो जाए तो फिर बात ही क्या ?
तो, आइये आपको अपने प्रेरणास्रोत ईमानदार बंदर जी से मुलाकात करवाऊ…आइये, मेरे साथ हमारे शहर के पुष्पलता वन में जहां बंदर जी ईमानदारी पूर्वक एक वृक्ष पर बैठे हुए हैं . दोस्तों, यह आम का वृक्ष है . देखिए ऊपर एक डाल पर दूर कहीं एक बंदर बैठा है . मगर बंदर तो बहुतेरे बैठे हैं . पेड़ पर चंहु और बंदर ही बंदर बैठे हैं .देखो ! निराश न हो… देखो! दूर एक मोटा तगड़ा नाटे कद का बंदर बैठा है न ! मैं अभी उसे बुलाता हूं -” नेताजी…”

-” नेताजी .” मैंने जोर की आवाज दी .

वृक्ष की ऊंची डाल पर आम्रकुंज में पके आम खाता और नीचे फेंकता एक बंदर मुस्कुराता नीचे उतर आया- “अरे आप हैं बहुत दिनों बाद दिखे, कहां थे . उन्होंने आत्मीयता से गले लगाते हुए कहा ।
‘ नेताजी ।’ मैंने उदिग्नता से कहा- ‘मैं आप से बड़ा प्रेरणास्रोत ढूंढ रहा था. मगर नहीं मिला .अंततः एक दिन आपके बारे में मित्रों को बताया तो सभी आपसे मिलने को उत्सुक हुए देखिए इन्हें भी ले आया हूं .”

बंदर के चेहरे पर मुस्कुराहट घनी हो उठी-” मैं नाचीज क्या हूं .यह तो आप की महानता है जो मुझसे इंप्रेस होते हो, मैं तो अपने स्वभाव के अनुरूप इस डाल से उस डाल इस पेड़ से उस पेड़ उछलता, गीत गाता रहता हूं . भई! हमारी इतनी प्रशंसा कर जाते हो कि मैं शर्म से पानी-पानी हो जाता हूं . बंदर ने सहज भाव से अपना पक्ष रखा.

-“यही तो गुण हैं जो हमें प्रेरित करता है .”

-” सच ईमान से कहता हूं मैं आज जिस मुकाम पर हूं वह नेता जी, आपकी कृपा दृष्टि अर्थात प्रेरणा का प्रताप है .’
बंदर जी मुस्कुराए-” आप मुझे नेताजी ! क्यों कहते हैं.”

-“देखिए ! यह सम्मानसूचक संबोधन है । हम आप में नेतृत्व का गुण धर्म देखते हैं और इसके पीछे कोई गलत भावना नहीं है .’ मैंने दीर्घ नि:श्वास लेकर सफाई में कहा .
‘ -अच्छा, आपके तो बहुतेरे संगी साथी हो गए हैं . नए नए चेहरे पुराने नहीं दिख रहे हैं .’

‘ मैं आपकी तरह मुड़कर नहीं देखता.’ मैंने हंस कर कहा.
‘अच्छा इनका परिचय .’ बंदर जी बोले
‘ ओह माफ करिए नेताजी. ये है हमारे पूज्यनीय महाराज राजेंद्र भैय्या अभी हमारी पार्टी के अध्यक्ष हैं और यह हैं भैय्या लखनानंद शहर के पूर्व मेयर . और और पीछे खड़ी है हमारी बहन उमा देवी . आप पार्टी की महिला विंग की अध्यक्ष है, बाकी कार्यकर्ता हैं जिनका परिचय मैंने चिरपरिचित शैली में हंसते-हंसते कहा .’
‘ मगर आपने यह तो बताया नहीं अभी किस पार्टी में है .” बंदर जी ने सकुचाते आंखों को गोल घुमाते हुए पूछा.
‘ अरे मैं यह तो बताना भूल ही गया . क्षमा… नेताजी… क्षमा मैं इन दिनों एक राष्ट्रीय पार्टी का वरिष्ठ नेता हूं .”
‘अरे वाह ! क्या गजब ढातें हो… क्या सचमुच नेता हो .’
‘ जी हां नेताजी, आपसे क्या छुपाना .

‘ ‘क्या बात है… अभी प्रदेश में यही पार्टी ही सत्तासीन है न ? बंदर जी ने कहा .

‘ ‘हां, नेताजी, हमारी ही पार्टी की सरकार है .’ मैंने सकुचाकर कहा.

‘ वाह ! तुम सचमुच मुझसे इंप्रेस हो, यह मैं आज मान गया. समय की नजाकत को ताड़ना और निर्णय लेना कोई छोटी मोटी बात नहीं . मनुष्य का भविष्य इसी पर निर्भर करता है . छोटी सी भूल और जीवन अंधकारमय .’ बंदर जी ने उत्साहित भाव से ज्ञान प्रदर्शित किया.

‘ नेताजी ! आपने पीठ ठोंकी है तो मैं आश्वस्त हुआ कि मैंने सही निर्णय लिया है.’ मैंने साहस कर कहा.
‘ मगर सतर्क भी रहना, ऐसा नहीं की इसी में रम गये .’
‘अजी नहीं .मैं स्थिति को सूंघने की क्षमता भी रखता हूं . जैसे ही मुझे अहसास होगा पार्टी का समय अंधकारमय है मैं कुद कर दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लूंगा .’

‘ ठीक मेरी तरह .” बंदर जी ने हंसकर कहा और उछलकर वृक्ष की एक मजबूत फलदार डाल पर बैठ गया और मीठा आम तोड़ खाने लगा.

‘ लेकिन नेताजी ! मैं कब तक पार्टियां बदलता रहूंगा. कभी विद्याचरण कभी श्यामाचरण कभी भाजपा कभी समाजवादी आखिर कब तक….’
बंदर ने पेड़ से मीठे फल तोड़कर मेरी और उछाले मैंने कैच कर दोस्तों को बांटे और स्वयं भी रस लेकर खाने लगा मेरे प्रेरणा पुरुष बंदर जी… ओह नेता जी के श्रीमुख से स्वर गूंजा- ‘जब तक कुर्सी न मिले तब तक .
‘ मैं मित्रों सहित बंदर को नमन कर लौट आया .

Anik Ghee के साथ बनाएं टमाटर की बरफी

टमाटर सब्जियों में स्वाद लाने के लिए बेहद परफेक्ट होता है. लेकिन क्या आपने टमाटर से बनी मिठाई कभी ट्राय की है. आज हम आपको Anik Ghee से बनीं टमाटर की बरफी की रेसिपी बताएंगे, जिससे आप बिना हेल्थ की चिंता किए खा और खिला सकती हैं.

सामग्री

2 छोटे चम्मच अनिक घी

3 टमाटर

1/2 कप खोया

100 एमएल अनिक दूध

3 छोटे चम्मच कौर्न पाउडर

6 छोटे चम्मच चीनी

गार्निशिंगगगग के लिए थोड़े से कटे नट्स.

बनाने का तरीका

टमाटरों को धो व काट कर मिक्सी में प्यूरी बना लें. कड़ाही में अनिक घ गरम कर प्यूरी को पका लें. अनिक दूध में कौर्न पाउडर डाल कर कढ़ाही में गरम करें. धीमी आंच पर गाढ़ा होन पर इसमें चीनी, टौमेटो प्यूरी और खोया डालें व चीनी के घुलने तक पकाएं, फिर सिलिकौन मोल्ड में सैट करने के लिए फ्रिज में रखें.

मेरे अपने: भाग 3- क्यों परिवार से दूर हो गई थी सुरभि

उधर से गुजरती एक नर्स की दृष्टि उस पर पड़ी तो वह पास आ कर सुरभि को सांत्वना देने लगी. जब उस ने देखा कि बिना पूरे गरम कपड़ों के वह ठंड से कांप रही है तो उस ने तुरंत वार्ड बौय को आवाज लगाई और एक कंबल मंगवाया. उस के लिए एक कप कौफी मंगवा कर जबरदस्ती पिलाई. फिर धीरे से बोली, ‘‘मैडम, सर ठीक हो जाएंगे. आप चिंता मत करो. मैं देख रही हूं कि आप कब से अकेले ही भागदौड़ कर रही हैं. आप अपने बच्चों और रिश्तेदारों को फोन कर दो. फोन है न आप के पास. नहीं तो मैं दूं.’’

नर्स द्वारा पहुंचाई गई बाह्य उपकरणों की गरमी और उस की स्नेहमयी सांत्वना की गरमाई ने पत्थर बनी सुरभि को पिघला दिया. उस की आंखों में आंसू आ गए. कानपुर में होते तो एक फोन करने की देर थी, सारा शहर एकत्र हो जाता पर मास्टरजी के इस ‘अपने’ अनजान शहर में उसे एक भी व्यक्ति याद न आया जिस को संकट की इस घड़ी में वह सहायतार्थ बुला सके. 8 महीने हो गए थे यहां आए. पर अड़ोसपड़ोस से सामान्य परिचय से अधिक संबंध बनाने का अवसर ही न मिला था. बस्ती के कई व्यक्तियों, मीडिया व नाट्य अकादमी के कई छात्रों के फोन नंबर थे उस के पास. पर वह निश्चय न कर पा रही थी कि क्या कार्य संबंधी कुछ मुलाकातों में उन लोगों से इतना रिश्ता जुड़ गया है कि अपनी निजी आवश्यकताओं के समय उन्हें सहायता के लिए बुलाया जा सके.

सुरभि को एक बार फिर से उन अपनों की कमी खलने लगी थी जिन का अस्तित्व कभी था ही नहीं. मास्टरजी के मातापिता उन्हें किशोरावस्था में ही अकेला छोड़ कर इस दुनिया से चले गए थे. मास्टरजी अपने मातापिता के इकलौते पुत्र थे. मातृपितृविहीन बालक से धीरेधीरे सभी सगेसंबंधियों ने दूरी बना ली थी. सभी को डर था

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कि कहीं अनाथ हो गए बालक का उत्तरदायित्व उन पर न आ पड़े. दूसरी ओर सुरभि ने अपने मातापिता को कभी देखा

ही न था. उस का पालनपोषण उस के चाचाचाची ने किया था. मास्टरजी के साथ ब्याह कर उन्होंने फिर कभी उन की ओर पलट कर भी न देखा था. इन दोनों ने विवाह के बाद जब अपना छोटा सा नीड़ बसाया तो उसे प्रेम, मधुरता, स्नेह और आपसी समर्पण से ऐसे सजाया कि किसी अन्य रिश्ते के अभाव की ओर उन का ध्यान ही न गया. 10 साल यों ही बीत गए थे. फिर धीरेधीरे उन्हें अपने आंगन में किलकारियों की कमी सताने लगी.

शादी के इतने बरस बाद भी वे इस सुख से वंचित थे. सारे चिकित्सकीय प्रयास भी जब निष्फल रहे तो सुरभि ने मास्टरजी के विरोध और अपनी स्वयं की अवधारणाओं के विपरीत जा कर पूजापाठ, व्रत, मन्नत, पंडित, मौलवी कुछ भी न छोड़ा लेकिन सब व्यर्थ के पाखंड सिद्ध हुए. धीरेधीरे सुरभि की मां बनने की संभावना क्षीण होती जा रही थी. अब वह बच्चा गोद लेने का मन बना रही थी पर मास्टरजी के आदर्श कुछ और ही थे. उन के अनुसार, एक बच्चे को गोद ले कर उसे अपना वारिस बनाने से उत्तम है उस हर बच्चे में प्रेम बांटना, जो उन के पास पढ़ने आता है. एक बालक को अपना नाम देने से बेहतर है सब को ज्ञान देना. एक को ‘मेरा’ कहने से बेहतर है सब को अपना कहना. सुरभि ने सदा की भांति इस विषय में भी मास्टरजी का विरोध न किया था और अपने मातृत्व की धारा को उसी ओर मोड़ दिया था जिस ओर मास्टरजी चाहते थे. पर आज… आज कहां हैं वे सब अपने? कहां हैं वे?

अचानक रिसैप्शन की ओर कुछ हलचल सी हुई. 15-20 लोग हड़बड़ाए हुए तेजी से भीतर घुसे और रिसैप्शन को घेर कर कुछ पूछताछ करने लगे. रिसैप्शनिस्ट ने उन्हें इशारे से कुछ बताया और भीड़ तेजी से औपरेशन थिएटर की ओर लपक पड़ी. कुछ पास आने पर सुरभि ने देखा कि भीड़ में सब से आगे मीडिया केंद्र के कुछ लड़केलड़कियां थे. कुछ लोग नाट्य अकादमी के थे. उन के साथ पड़ोस में रहने वाले राजीवजी और उन की पत्नी थीं. कुछ और लोग भी थे जिन्हें सुरभि ने अकसर बस्ती में नुक्कड़ पर अड्डेबाजी करते देखा था.

‘‘अम्मा…’’ कहते हुए वृंदा दौड़ कर सुरभि के पास पहुंची और उस से लिपट गई. वे लोग पता नहीं क्याक्या कहनेपूछने लगे. सुरभि को बस एक ही आवाज सुनाई दे रही थी. क्या कहा था उस लड़की ने, ‘अम्मा…’

सुरभि को अम्मा कहा था उस लड़की ने.

ये सब विद्यार्थी अकसर उस के घर आते थे. कभीकभी किचन में भी घुस जाते थे चायकौफी या नाश्ता बनाने. मास्टरजी स्वयं बच्चों के साथ बच्चा हो जाते थे. पर सुरभि के साथ वे सब कभी अनौपचारिक न हो पाए थे. उस के गुरुगंभीर चेहरे को और भी गुरुता प्रदान करती बालों में

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चांदी की चंद तारें और आंखों पर चढ़ा मोटे शीशों वाला चश्मा, कलफ लगी सिलवटविहीन सूती साड़ी और सदा कसे रहने वाले होंठों के कोर, ये सबकुछ मिला कर उस का व्यक्तित्व जैसे एक अदृश्य प्रभामंडल से घिरा रहता था जिस पर मानो प्रवेश निषेध की तख्ती लगी रहती थी. इन सब के साथ सुरभि की आत्मीयता थी, पर वह उद्दंड बरसाती झरने सी न हो कर शांत गंभीर मानसरोवर सी थी.

ऐसे में वह आदर और सम्मान की औपचारिकता में बंधे विद्यार्थियों व अन्य बस्ती वालों के लिए ‘मैम’ ही थी. पर आज यह क्या हुआ. शुष्क वर्जनाओं को ध्वस्त करता यह कौन सा झोंका था जो सुरभि को विभोर कर गया या वह स्वयं ही कोई और थी इस समय. बीती रात्रि का एकएक पल उस के चेहरे पर चिंता की झुर्रियां बन कर बिछा हुआ था. झुकी कमर और दुख से कातर आंखों में न जाने वह कौन सा खिंचाव था जो वृंदा उस के गले आ लगी थी. विकास, तरुण, तारा, सुबोध, रुचि सब ने उसे घेर लिया.

‘‘अम्मा, आप ने हमें फोन क्यों नहीं किया?’’ अरुण बोला.

‘‘वह तो अच्छा हुआ कि भूरा चाचा को मेज पर रखा मास्टरजी का फोन मिल गया. आप दरवाजे जो खुले छोड़ आई थीं. तब भूरा चाचा ने हमें ढूंढ़ कर सबकुछ बताया,’’ रुचि बोलतेबोलते रोंआसी हो आई थी.

उस के बाद किसी ने डाक्टरों और नर्सों से मास्टरजी के औपरेशन के विषय में जानकारी लेनी आरंभ कर दी, तो कोई नर्स द्वारा थमाया गया दवाओं का परचा ले कर कैमिस्ट की दुकान की ओर भागा. रुचि ने उस की पीठ के पीछे एक तकिया लगाया और उस के पांव बैंच के ऊपर कर दिए. फिर ठीक से कंबल ओढ़ा दिया. मालती शर्मा ने तुरंत थर्मस में से चाय निकाल कर उन्हें स्नेहपगी जिद के साथ पिलाई. अधिक खून की आवश्यकता न पड़ जाए, इसलिए सब बच्चों ने तुरंत अपने खून के सैंपल दिए जांच के लिए. बस्ती के टैक्सी ड्राइवर ने अपनी गाड़ी अस्पताल के बाहर ही खड़ी कर दी थी कि कहीं भागदौड़ की आवश्यकता न पड़ जाए. भूरा ने बताया कि वह दुलारी और अपनी घरवाली को मास्टरजी के घर बिठा कर आया है, इसलिए सुरभि को घर की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है.

सुरभि भौचक्की सी कभी एक की सूरत देखती कभी दूसरे की. कितने प्यारे, कितने अपने लग रहे थे आज ये सब. सुरभि ने पहली बार अपने भीतर मातृत्व को अंगड़ाई लेते महसूस किया था. उस ने बांहें फैला कर बच्चों को सीने से लगा लिया.

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मेरे अपने: भाग 2- क्यों परिवार से दूर हो गई थी सुरभि

बिजली के नियमित कनैक्शन न होने के कारण मेन सड़क पर से गुजरते हाईटैंशन तार से बिजली चुराई जाती थी. मोबाइल फोन तो खैर हर छोटेबड़े के हाथ में था ही. प्रगति के नाम पर क्या ये कम था, चाहे जगहजगह कचरे के ढेर और कच्ची गलियों में जमा कीचड़ व मच्छरों की भरमार क्यों न हो. खुली नालियों में शौच करते बच्चों पर भी किसी को एतराज न था. सामुदायिक नल के काई जमे चबूतरे पर पानी भरने के इंतजार में लड़तीझगड़ती औरतों के पास फुरसत ही कहां थी वहां की गंदगी साफ करने की. मर्द चाहे निठल्ले हों या कामगार, शाम होते ही दारू के अड्डे पर जमा हो कर पीनापिलाना, औरतों पर फिकरे कसना और मारकुटाई, गालीगलौज करना उन का प्रिय टाइमपास था. बचीखुची मर्दानगी घर पहुंच कर औरतों को पीटने में खर्च होती. बच्चों को इन लोगों ने सरकारी स्कूलों में तो डाल रखा था पर उस का कारण शिक्षा के प्रति जागरूकता कतई न था. सरकार की ओर से हर विद्यार्थी को छात्रवृत्ति मिलती थी और किताबें मुफ्त बांटी जाती थीं. स्कूल में मिलने वाला भोजन भी बच्चों को वहां भेजने के मुख्य कारणों में से एक था.

जितना बुरा हाल उस बस्ती का था, उतनी ही दृढ़ता से सुरभि ने निश्चय कर लिया उसे सुधारने का. मास्टरजी का उसे पूरा सहयोग मिला. सब से पहले दोनों कई संबंधित अधिकारियों से मिले. कई दफ्तरों के चक्कर काटे. इलाके के विधायक से भी मिले. सब को उन्होंने बस्ती की दुर्दशा और अपने प्रोजैक्ट के विषय में बताया. सर्वोदय विद्यालय के प्रधानाध्यापक से भी मिले और वहां रात्रिकालीन प्रौढ़ शिक्षा केंद्र शुरू करने का प्रबंध किया. लोगों को केंद्र पर आने के लिए आकर्षित करने के लिए सुरभि ने एक अनूठा कार्यक्रम बनाया. वह यूनिवर्सिटी के टैली कम्यूनिकेशन ऐंड मल्टीमीडिया विभाग के डीन से मिली और उन्हें अपना प्रोजैक्ट समझा कर उन से सहायता मांगी.

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वह चाहती थी कि छात्र सामाजिक जागरूकता व महिला कल्याण जैसे विषयों पर कुछ ऐसी रोचक व विचारोत्तेजक फीचर और ऐनिमेशन फिल्मों का निर्माण करें जो नीरस डाक्युमैंट्री फिल्मों जैसी न हों. मनोरंजन के साथसाथ वे फिल्में उन के दिलोदिमाग को झकझोर कर सोचने पर मजबूर कर दें. छात्रों ने उन को भरपूर सहयोग दिया और ऐसी कई टैलीफिल्मों का निर्माण किया जिन का प्रदर्शन हर रविवार को केंद्र पर किया जाने लगा. इस के साथ ही सुरभि ने इंदौर युवा नाट्य कला केंद्र के नुक्कड़ नाटक करने वाले कलाकारों को भी अपने अभियान में शामिल कर लिया. ये लोग हफ्ते में 1 दिन वहां सामाजिक जागरूकता संबंधित नाटक खेलते. बड़ी भीड़ जुट जाती थी. कुछ लोग केवल फिल्में और नाटक देखने आते और कुछ केंद्र द्वारा परोसी गई चाय पीने. कुछ भी हो, चिंगारी लग चुकी थी.

बस्ती के जिन लोगों ने इन दोनों पतिपत्नी को पागल की संज्ञा दी थी वही अब उन के अथक परिश्रम और लगन से विस्मित थे. लोग हैरान थे, कुछ तो बात है इन में. जो कुछ भी ये लोग कर रहे हैं शायद सच में ही उस से हमारा भला होगा और धीरेधीरे बात बन गई. स्कूल चल निकला. सुरभि और मास्टरजी के चेहरों पर थकान तो थी पर सफलता की रौनक का तेज भी था.

सुरभि ने जो कार्य अपने खाली समय के सदुपयोग के लिए शुरू  किया था वह अब एक लक्ष्य बन गया था. सारी उम्र एक नियमित जीवन जीने वाले व्यक्तियों की दिनचर्या अब इस उम्र में आ कर अस्तव्यस्त हो रही थी. देर रात तक काम करने की वजह से अकसर सुबह की सैर छूट जाती.

नाश्ते के समय कभी नुक्कड़ नाटक वाले तो कभी मल्टीमीडिया के विद्यार्थी आ जुटते नएनए विषयों पर विचारविमर्श करने. कभी बस्ती के निवासी ही आ जाते अपनी समस्याओं के निवारणार्थ. कोई अपने घरेलू झगड़ों का निबटारा मैडमजी से करवाना चाहता तो कोई किसी सरकारी दफ्तर में फंसी अपनी किसी समस्या के निराकरण का रास्ता पूछने आता था.

कभी कुछ लोग एकत्र हो कर आते और अपनी नईनई आवश्यकताओं की सूची मास्टरजी को पकड़ा देते. खुली नालियां ढकवानी हों या बहते सीवरों की सफाई, मच्छर मारने की दवा छिड़कवानी हो या जमा हुए पानी में लाल दवाई, लोग अब सरकारी दफ्तरों के चक्कर न काट कर सीधे मास्टरजी के पास ही आते थे. सुरभि और मास्टरजी जैसे उन की हर समस्या की ‘मास्टर की’ बन गए थे.

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सारी उम्र मास्टरजी ने एक जगह बैठ कर मात्र अध्यापन कार्य ही किया था. इस तरह की भागदौड़ उन के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही थी. उत्तरदायित्वों को अपने आराम के लिए बीच में ही अधूरा छोड़ देना उन्होंने न तो स्वयं सीखा था न अपने विद्यार्थियों को सिखाया था. सुरभि कभी आराम करने या समय पर खानेपीने को टोकती भी तो वे नजरअंदाज कर जाते. काम के जनून में वे अब अकसर अपनी छोटीमोटी शारीरिक परेशानियों और थकावट को सुरभि से छिपा जाते थे. उसी का नतीजा आज सामने था.

रात को सोते समय दी गई डायजीन की गोलियां कुछ काम न आई थीं. अपनी बेचैनी को वे भरसक दबा रहे थे. उधर, सुरभि रजाई में घुसते ही सो गई थी. मास्टरजी कुछ देर तक यों ही बेचैनी में करवटें बदलते रहे. फिर धीरे से उठ कर कमरे में ही टहलने लगे. उन्हें पसीना आने लगा. अचानक सीने में और बाएं बाजू में उन्हें तेज दर्द महसूस हुआ. आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. सीने में एक बार फिर तेज दर्द की लहर उठी और वे कराह कर बिस्तर पर लुढ़क गए.

सुरभि की नींद टूट गई. वह घबरा कर उठी और मास्टरजी को अर्धबेहोशी में पसीने से भीगा व दर्द से कराहते देख कर उस की चीख निकल गई. सारे संकेत हार्ट अटैक की ओर इशारा कर रहे थे. उस ने दौड़ कर दवाओं का डब्बा उठाया और एक एस्प्रिन टैबलेट पानी में घोल कर मास्टरजी को पिला दी. फिर उन्हें शाल ओढ़ाई और भाग कर गाड़ी की चाबी उठाई. दरवाजा खोल कर चौकीदार को बुलाया और उस की सहायता से मास्टरजी को गाड़ी में लिटाया. फिर घर के दरवाजे तक बंद करने की चिंता किए बिना तूफानी गति से गाड़ी दौड़ाती वह अस्पताल पहुंच गई.

आपातकालीन विभाग में तुरंत उन्हें डाक्टरों ने घेर लिया. आवश्यक टैस्ट किए गए. यह एक मेजर हार्ट अटैक था. मास्टरजी को आननफानन औपरेशन थिएटर में शिफ्ट कर दिया गया. सुरभि को रिसैप्शन पर जा कर औपरेशन संबंधी आवश्यक कार्यवाही पूरी करने को कहा गया. खून का प्रबंध भी करना था. सुरभि जैसे सम्मोहन अवस्था में थी. वह यंत्रवत भागभाग कर सारी व्यवस्था करने लगी. औपरेशन शुरू हो गया था. सुबह के 6 बजे थे. औपरेशन थिएटर के बाहर सूने गलियारे में सुरभि 2 घंटे से मूर्तिवत जड़ बैठी थी.

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