परिवर्तन: भाग 3- राहुल और कवि की कहानी

लेखक- खुशीराम पेटवाल

अचानक राहुल कुलबुलाया तो कवि की तंद्रा टूट गई. उसे भूख लग आई है. यह सोच उस ने राहुल के मुंह में अपना स्तन दे दिया और प्यार से बच्चे को थपथपाने लगी.

उस छोटी सी जगह में छेद के रास्ते बाहर से रोशनी का आना कवि को बड़ा सुखद लगा. रोशनी से ही तो जीवन है. जीवन की हलचल है. जीवन का संचार है. रात भर के लिए मौत के आगोश में दबे लोगों के लिए सूरज नया जीवन ले कर आता है. आज भी वह फिर आया है.

अचानक बाहर हलकी सी खटखट हुई. कोई है. किसी को अपनी मौजूदगी का अहसास कराने के लिए कवि फिर चिल्लाने लगी, ‘‘कोई है…कोई है…अरे, कोई तो मुझे बचा लो.’’ पर उसे लगा कि उस की आवाज बाहर नहीं जा रही है. चिल्लातेचिल्लाते वह थक गई. राहुल भी दहशत के मारे रोने लगा. जब कवि थक गई और बाहर से किसी तरह का कोई संकेत नहीं मिला तो वह सोचने लगी, देश भर में भुज में आए भूकंप की खबर फैल गई होगी. बचाव व राहत दल वाले आ चुके होंगे. शायद सेना के लोग हों.  पर मेरा अपार्टमेंट तो मुख्य सड़क से काफी दूर है. इसलिए क्या मेरे यहां तक सहायता पहुंचने में देरी हो रही है क्योंकि राहत व बचाव कार्य पहले सड़क के किनारे वाले अपार्टमेंट में ही तो होगा. बीच में कितने अपार्टमेंट हैं. शायद सभी गिरे पड़े हों. हे भगवान, राहत वालों को यहां जरूर भेजना, लेकिन जब कम रोशनी होने लगी तो भगवान पर से विश्वास उठने के साथ ही उस का दिल भी डूबने लगा.

इस छोटी सी जगह पर जहां बैठना मुश्किल है कवि ने अपने और राहुल के लिए थोड़ी सी जगह साफ कर दी है. कंकड़ बीन लिए हैं. नीचे रेत है और आज उसे थोड़ी ठंड भी लग रही है. राहुल भूख के मारे रोने लगा क्योंकि उस की भूख अब उस के दूध से शांत नहीं हो पा रही है. क्या करूं? इस अंधेरे में, इस मौत के घर में मेरे स्तनों में दूध के अलावा उसे देने को है भी क्या.

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उम्मीद के सहारे जिंदा कवि के स्तनों में दूध न पा कर राहुल ने अपने मसूड़े स्तनों में गड़ा दिए तो भी वह प्यार से उसे देखती रही और सोचती रही, कल तुझे कुछ न कुछ जरूर मिलेगा. कल हम बाहर जरूर जाएंगे मेरे बच्चे.

इतने दिनों बाद पहली बार कवि को अपनी मां की याद आई कि उस ने क्यों नहीं तब उन की सलाह को माना था, मां ने मना किया था कि अपार्टमेंट में मकान न ले, पर मैं ही अपनी जिद पर अड़ी रही. शहर दूरदूर तक देखा जा सकेगा. रात को उस की बालकनी में खड़े हो कर सारे भुज को देखना कितना अच्छा लगता था. वाकई कितना प्यारा, कितना सुंदर, रात के प्रकाश में जग-मगाता भुज. अब हेमंत को कहूंगी कि कोठीनुमा मकान ढूंढ़ेंगे. कवि मुसकराई और उस की आंखें मुंद गईं.

राहुल के चिल्लाने से कवि की नींद टूट गई. स्तनों में दूध नहीं था इसलिए एक बेबस मां की तरह उस ने उसे चिल्लाने दिया. थोड़ी देर में सूरज की रोशनी छेद के रास्ते भीतर आई. रोशनी के साथ ही मेरे भीतर जीवन का संचार हो गया. आशा बलवती हो गई. शायद आज कोई आए. मैं चिल्लाने लगी. राहुल भी मां को चिल्लाता देख कर रोने लगा. जब कवि चिल्लातेचिल्लाते थक गई तो उस ने राहुल की तरफ देखा. वह दोनों हाथों से मुंह में रेत डाल रहा था. ‘‘मिट्टी नो राहुल, नो,’’ कवि के मुंह से वही चिरपरिचित आवाज निकली. जब भी राहुल पार्क में खेलता तो मुंह में मिट्टी डाल लेता था.

विपरीत परिस्थितियां देख कर कवि ने खामोश रहना ही ठीक समझा. वह राहुल को उसी तरह मिट्टी के साथ खातेखेलते अपलक देखती रही. उस ने सोचा, मेरे बच्चे, रेत खाना भी तेरे नसीब में लिखा था.

कवि ने बच्चे को उठा कर अपनी छाती पर बैठा लिया. वह खेलने लगा. उस की नाक व मुंह पर रेत लगी देख कवि ने अपनी साड़ी से उस के मुंह की रेत झाड़ी तो राहुल मुसकरा दिया जिसे देख कर वह कुछ पल को दुखदर्द भूल गई. अतीत में अपनी व्यस्तता और बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को याद कर कवि भावुक हो उठी. उसे पहली बार एहसास हुआ कि जिस आधुनिक खयाल में वह जी रही थी उस में उस ने पाया कम, खोया अधिक है. वह तो ऐसी अभागी मां है जो अपने बच्चे को आज तक एक बार नहला भी न सकी है. हे ईश्वर, मेरे राहुल को बचाना. यह कवि नहीं भीतर बैठी मां के मन से निकली आवाज थी और उस ने राहुल को जोर से अपनी छाती से भींच लिया.

रात फिर घिर आई. कवि का दायां पैर आज तेज दर्द कर रहा था. शायद घुटने में भीतर चोट लगी है. थोड़ी सूजन भी है. सिर में भी हलका दर्द है. उस ने अपने पैर को दबाया, थोड़ा आगेपीछे चलाया जितना कि उस जगह चलाया जा सकता था. दर्द कम नहीं हो रहा पर यह सोच कर कि इसे तो सहना ही है. कवि ने अपने को हालात के हवाले छोड़ दिया.

पिछले 3 दिनों से कवि को प्यास ही नहीं लगी पर अब पानी की जरूरत महसूस हो रही है. भूख तो नहीं है पर प्यास से गला सूखा जा रहा है. क्या करूं? यों ही इसे भी सहना होगा. कवि ने थूक घूंटा तो कुछ राहत महसूस हुई. अब जबजब प्यास लगेगी थूक ही गले के नीचे उतारूंगी.

प्यास तो राहुल को भी लग रही होगी, कवि ने बच्चे की तरफ देख कर सोचा कि यदि दूध होता तब तो जरूरत नहीं थी पर बिना दूध के जाने कैसे जी पाएगा. राहुल को तो इस की ज्यादा जरूरत होगी.

फिर से सुबह का धुंधलका भीतर आ गया. आज कवि को शौच महसूस हो रही है. क्या करना होगा? राहुल तो 3-4 बार यहीं कर भी चुका है. उसे कवि ने रेत से ढक दिया है. यहां इन हालात में तो यही करना होगा.

अचानक लगा कि बाहर धमधम की आवाज हो रही है. लगता है कोई है. ‘बचाओ…बचाओ…मुझे यहां से बचाओ.’ कवि के चिल्लाने के साथ ही राहुल का रोना भी शुरू हो गया. कवि घंटों चिल्लाती रही. इस प्रयास में उस की आवाज भी फट गई पर सब व्यर्थ.

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इस घर में अब फिर से रात ढल आई है. राहुल रेत खा कर सो गया है. वह अब हिलडुल भी कम रहा है. उस के रोने में भी वह ताकत नहीं है. उस की आवाज मंद पड़ती जा रही है. बेटे की यह दशा देख कर बेबस कवि सोचने लगी कि कैसे वह राहुल को दम तोड़ते हुए देख सकती है. वह एक मां है और सबकुछ बरदाश्त कर सकती है पर अपने सामने भूख से मरते बच्चे को तो नहीं देख सकती क्योंकि वह तो एक मां है. जीवन में पहली बार कवि ने ईश्वर को याद कर मनौती मानी कि भगवान, तुम मुझे और मेरे बच्चे को इस संकट से जीवित बचा लो. मैं तो सारे तीर्थ जा कर मत्था टेकूंगी.

कवि की जब आंख खुली तो सुबह का उजाला भीतर प्रवेश कर चुका था. राहुल अभी सो रहा है. जाने कैसे जिंदा है. 5-6 दिन हो गए हैं. इन 5-6 दिनों में हर पल कवि को मरना पड़ा है. वह  मरमर कर जीती रही है. वह एक दूध पीते बच्चे के साथ कैसे इतने दिनों से जिंदा है? इस प्रश्न का उत्तर कवि का मन ढूंढ़ ही रहा था कि अचानक बाहर शोर हुआ. लग रहा है कोई ऊपर है. कोई खोद रहा है.

कवि पूरी ताकत से चिल्लाई, ‘‘मैं यहां हूं, हम यहां हैं.’’ चिल्लातेचिल्लाते फेफड़े थक गए. फिर भी उस का चिल्लाना जारी रहा.

रोते हुए राहुल को थपथपाते हुए कवि बोली, ‘‘चुप हो जा मेरे बच्चे कोई है शायद. आर्मी वाले हों और जीवन पाने की खुशी में कवि राहुल को जोर से भींच कर उसे चूमने लगी. ऊपर से 2 आंखों  ने भीतर झांका तो कवि चिल्लाई और एक बार फिर बेटे को अपने में इस तरह छिपा लिया कि उसे एक खरोंच तक न लगे. ऊपर की दीवार तोड़ी जा रही थी. दो हाथ भीतर आए.

‘‘बच्चे को दो,’’ कई दिनों बाद इनसानी स्वर सुनने को मिला. कवि के उत्साह का ठिकाना न रहा. उस ने राहुल को उन 2 हाथों में थमा दिया.

भगवान यहां भी मूकदर्शक बना रहा. आखिर, इनसान की सहायता में इनसान के 2 हाथ ही आगे बढ़े और थोड़ी देर बाद कवि भी बाहर आ गई.

आर्मी वालों में शोर हुआ, ‘संभल कर,’ ‘‘सावधान’, ‘हुर्रे’. किसी ने किसी की पीठ थपथपाई. ‘बकअप’ और सब में जीवन का अद्भुत संचार हो गया. धन्यवाद, धन्यवाद आर्मी वालो.

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शहीद: भाग 3- क्या था शाहदीप का दीपक के लिए फैसला

शाहीन ने जब अपने मौसामौसी को समझाने की कोशिश की तो उन्होंने यह कह कर उसे चुप करा दिया कि अभी अच्छाबुरा समझने की तुम्हारी उम्र नहीं है.

उस दिन के बाद से मेरे और शाहीन के मिलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया.

मुझे विश्वास था कि मेरे घर वाले मेरा साथ जरूर देंगे किंतु मैं यहां भी गलत था.

डैडी ने फोन पर साफ कह दिया, ‘हम फौजी हैं. हम लोग जातिपांति में विश्वास नहीं रखते. हमारा धर्म, हमारा मजहब सबकुछ हमारा देश है इसलिए अपने जीतेजी मैं दुश्मन की बेटी को अपने घर में घुसने की इजाजत नहीं दे सकता.’

चुपचाप अदालत में जा कर शादी करने के अलावा हमारे पास अब दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा था और हम ने वही किया. शाहीन के मौसामौसी को जब पता चला तो उन्होंने बहुत हंगामा किया किंतु कुछ कर न सके. हम दोनों बालिग थे और अपनी मरजी की शादी करने के लिए आजाद थे.

अपनी दुनिया में हम दोनों बहुत खुश थे. शाहीन ने तय किया था कि छुट्टियों में पाकिस्तान चल कर हम लोग उस के पापा को मना लेंगे. मैं ने पासपोर्ट के लिए आवेदनपत्र भर कर भेज दिया था.

एक दिन शाहीन ने बताया कि वह मां बनने वाली है तो मैं खुशी से झूम उठा. मेरे चौड़े सीने पर सिर रखते हुए उस ने कहा, ‘दीपक, जानते हो अगर मेरा बेटा हुआ तो मैं उस का नाम शाहदीप रखूंगी.’

‘ऐसा नाम तो किसी का नहीं होता,’ मैं ने टोका.

‘लेकिन मेरे बेटे का होगा. शाहीन और दीपक का सम्मिलित रूप शाहदीप. इस नाम का दुनिया में केवल हमारा ही बेटा होगा. जो भी यह नाम सुनेगा जान जाएगा कि वह हमारा बेटा है,’ शाहीन मुसकराई.

कितनी निश्छल मुसकराहट थी शाहीन की लेकिन वह ज्यादा दिनों तक मेरे साथ नहीं रह पाई. एक बार मैं 2 दिन के लिए बाहर गया हुआ था. मेरी गैरमौजूदगी में उस के पापा आए और जबरदस्ती उसे पाकिस्तान ले गए. वह मेरे लिए एक छोटा सा पत्र छोड़ गई थी जिस में लिखा था, ‘हमारी शादी की खबर सुन कर पापा को हार्टअटैक हो गया था. वह बहुत कमजोर हो गए हैं. उन्होंने धमकी दी है कि अगर मैं तुम्हारे साथ रही तो वह जहर खा लेंगे. मैं जानती हूं वह बहुत जिद्दी हैं. मैं उन की मौत की गुनहगार बन कर अपनी दुनिया नहीं बसाना चाहती इसलिए उन के साथ जा रही हूं. लेकिन मैं तुम्हारी हूं और सदा तुम्हारी ही रहूंगी. अगर हो सके तो मुझे माफ कर देना.’

इस घटना ने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया था. मैं पागलों की तरह पाकिस्तान का वीजा पाने के लिए दौड़ लगाने लगा किंतु यह इतना आसान न था. बंटवारे ने दोनों देशों के बीच इतनी ऊंची दीवार खड़ी कर दी थी जिसे लांघ पाने में मुझे कई महीने लग गए. लाहौर पहुंचने पर पता चला कि शाहीन के पापा अपनी सारी जायदाद बेच कर कहीं दूसरी जगह चले गए हैं. मैं ने काफी कोशिश की लेकिन शाहीन का पता नहीं लगा पाया.

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मेरा मन उचट गया था. अत: इंगलैंड न जा कर भारत लौट आया. एम.बी.ए. तो मैं केवल डैडी का मन रखने के लिए कर रहा था वरना बचपन से मेरा सपना भी अपने पूर्वजों की तरह फौज में भरती होने का था. मैं ने वही किया. धीरेधीरे 25 वर्ष बीत गए.

अपने अतीत में खोया मुझे समय का एहसास ही न रहा. ठंड लगी तो घड़ी पर नजर पड़ी. देखा रात के 2 बज गए थे. चारों ओर खामोशी छाई हुई थी. पूरी दुनिया शांति से सो रही थी किंतु मेरे अंदर हाहाकार मचा हुआ था. मेरा बेटा मेरी ही कैद में था और मैं अभी तक उस की कोई मदद नहीं कर पाया था.

बेचैनी जब हद से ज्यादा बढ़ने लगी तो मैं बाहर निकल आया. अनायास ही मेरे कदम बैरक नंबर 4 की ओर बढ़ गए. मन का एक कोना वहां जाने से रोक रहा था किंतु दूसरा कोना उधर खींचे लिए जा रहा था. मुझे इस बात का एहसास भी न था कि इतनी रात में मुझे अकेला एक पाकिस्तानी की बैरक की ओर जाते देख कोई क्या सोचेगा. इस समय अपने ऊपर मेरा कोई नियंत्रण नहीं बचा था. मैं खुद नहीं जानता था कि मैं क्या करने जा रहा हूं.

शाहदीप की बैरक के बाहर बैठा पहरेदार आराम से सो रहा था. मैं दबे पांव उस के करीब पहुंचा तो देखा वह बेहोश पड़ा था. बैरक के भीतर झांका, शाहदीप वहां नहीं था.

‘‘कैदी भाग गया, कैदी भाग गया,’’ मैं पूरी शक्ति से चिल्लाया. रात के सन्नाटे में मेरी आवाज दूर तक गूंज गई.

मैं ने पहरेदार की जेब से चाबी निकाल कर फुरती से बैरक का दरवाजा खोला. भीतर घुसते ही मैं चौंक पड़ा. बैरक के रोशनदान की सलाखें कटी थीं और शाहदीप उस से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था किंतु रोशनदान छोटा होने के कारण उसे परेशानी हो रही थी.

‘‘शाहदीप, रुक जाओ,’’ मैं पूरी ताकत से चीख पड़ा और अपना रिवाल्वर उस पर तान कर सर्द स्वर में बोला, ‘‘शाहदीप, अगर तुम नहीं रुके तो मैं गोली मार दूंगा.’’

मेरे स्वर की सख्ती को शायद शाहदीप ने भांप लिया था. अपने धड़ को पीछे खिसका सिर निकाल कर उस ने कहर भरी दृष्टि से मेरी ओर देखा. अगले ही पल उस का दायां हाथ सामने आया. उस में छोटा सा रिवाल्वर दबा हुआ था. उसे मेरी ओर तानते हुए वह गुर्राया, ‘‘ब्रिगेडियर दीपक कुमार सिंह, वापस लौट जाइए वरना मैं अपने रास्ते में आने वाली हर दीवार को गिरा दूंगा, चाहे वह कितनी ही मजबूत क्यों न हो.’’

इस बीच कैप्टन बोस और कई सैनिक दौड़ कर वहां आ गए थे. इस से पहले कि वे बैरक के भीतर घुस पाते शाहदीप दहाड़ उठा, ‘‘तुम्हारा ब्रिगेडियर मेरे निशाने पर है. अगर किसी ने भी भीतर घुसने की कोशिश की तो मैं इसे गोली मार दूंगा.’’

आगे बढ़ते कदम जहां थे वहीं रुक गए. बड़ी विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई थी. हम दोनों एकदूसरे पर निशाना साधे हुए थे.

‘‘लेफ्टिनेंट शाहदीप, तुम यहां से भाग नहीं सकते,’’ मैं गुर्राया.

‘‘और तुम मुझे पकड़ नहीं सकते, ब्रिगेडियर,’’ शाहदीप ने अपना रिवाल्वर मेरी ओर लहराया, ‘‘मैं आखिरी बार कह रहा हूं कि वापस लौट जाओ वरना मैं गोली मार दूंगा.’’

मेरे वापस लौटने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था. शाहदीप जिस स्थिति में लटका हुआ था उस में ज्यादा देर नहीं रहा जा सकता था. जाने क्या सोच कर उस ने एक बार फिर अपने शरीर को रोशनदान की तरफ बढ़ाने की कोशिश की.

‘‘धांय…धांय…’’ मेरे रिवाल्वर से 2 गोलियां निकलीं. शाहदीप की पीठ इस समय मेरी ओर थी. दोनों ही गोलियां उस की पीठ में समा गईं. वह किसी चिडि़या की तरह नीचे गिर पड़ा और तड़पने लगा.

मुझे और बरदाश्त नहीं हुआ. अपना रिवाल्वर फेंक मैं उस की ओर दौड़ पड़ा और उस का सिर अपने हाथों में ले बुरी तरह फफक पड़ा, ‘‘शाहदीप, मेरे बेटे, मुझे माफ कर दो.’’

कैप्टन बोस दूसरे सैनिकों के साथ इस बीच भीतर आ गए थे. मुझे इस तरह रोता देख वे चौंक पड़े, ‘‘सर, यह आप क्या कह रहे हैं.’’

‘‘कैप्टन, तुम तो जानते ही हो कि मेरी शादी एक पाकिस्तानी लड़की से हुई थी. यह मेरा बेटा है. मैं इस के निशाने पर था अगर चाहता तो यह पहले गोली चला सकता था लेकिन इस ने ऐसा नहीं किया,’’ इतना कह कर मैं ने शाहदीप के सिर को झिंझोड़ते हुए पूछा, ‘‘बता, तू ने मुझे गोली क्यों नहीं मारी? बता, तू ने ऐसा क्यों किया?’’

शाहदीप ने कांपते स्वर में कहा, ‘‘डैडी, जन्मदाता के लिए त्याग करने का अधिकार सिर्फ हिंदुस्तान के लोगों का ही नहीं हम पाकिस्तानियों का भी इस पर बराबर का हक है.’’

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शाहदीप ने एक बार फिर मुझे बहुत छोटा साबित कर दिया था. मैं उसे अपने सीने से लगा कर बुरी तरह रो पड़ा.

‘‘डैडी, जीतेजी तो मैं आप की गोद में न खेल सका किंतु अंतिम समय मेरी यह इच्छा पूरी हो गई. अब मुझे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है.’’

इसी के साथ शाहदीप ने एक जोर की हिचकी ली और उस की गरदन एक ओर ढुलक गई. मेरे हाथ में थमा उस का हाथ फिसल गया और इसी के साथ उस की उंगली में दबी अंगूठी मेरे हाथों में आ गई. उस अंगूठी पर दृष्टि पड़ते ही मैं एक बार फिर चौंक पड़ा. उस में भी एक नन्हा सा कैमरा फिट था. इस का मतलब उस ने एकसाथ 2 कैमरों से वीडियोग्राफी की थी. एक कैमरा हमें दे कर उस ने अपने एक फर्ज की पूर्ति की थी और अब दूसरा कैमरा ले कर अपने दूसरे फर्ज की पूर्ति करने जा रहा था.

शाहदीप के निर्जीव शरीर से लिपट कर मैं विलाप कर उठा. अपने आंसुओं से उसे भिगो कर मैं अपना प्रायश्चित करना चाहता था तभी कैप्टन बोस ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सर, आंसू बहा कर शहीद की आत्मा का अपमान मत कीजिए.’’

मैं ने आंसू भरी नजरों से कैप्टन बोस की ओर देखा फिर भर्राए स्वर में पूछा, ‘‘कैप्टन, क्या तुम मेरे बेटे को शहीद मानते हो?’’

‘‘हां, सर, ऐसी शहादत न तो पहले कभी किसी ने दी थी और न ही आगे कोई देगा. एक वीर के बेटे ने अपने बाप से भी बढ़ कर वीरता दिखाई है. इस का जितना भी सम्मान किया जाए कम है,’’ इतना कह कर कैप्टन बोस ने शाहदीप के पार्थिव शरीर को सैल्यूट मारा फिर पीछे मुड़ कर अपने सैनिकों को इशारा किया.

सब एक कतार में खड़े हो कर आसमान में गोली बरसाने लगे. पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट को 101 गोलियों की सलामी देने के बाद ही हिंदुस्तानी रायफलें शांत हुईं. दुनिया में आज तक किसी भी शहीद को इतना बड़ा सम्मान प्राप्त नहीं हुआ होगा.

मेरे कांपते हाथ खुद ही ऊपर उठे और उस वीर को सलामी देने लगे.

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Sidharth Shukla Funeral: सिद्धार्थ की मौत से बेसुध और बेहाल हुई शहनाज गिल, अंतिम विदाई देने पहुंचीं

Bigg Boss 13 के विनर और एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला  (Sidharth Shukla) के अचानक निधन से पूरी इंडस्ट्री सदमे में हैं. वहीं फैंस उनकी खास दोस्त शहनाज गिल के लिए चिंता जाहिर कर रहे हैं. इसी बीच शहनाज गिल (Shehnaaz Gill) की फोटो सामने आ गई है, जिसमें वह सिद्धार्थ शुक्ला के अंतिम संस्कार में जाती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल फोटोज…

अंतिम संस्कार में पहुंची शहनाज

बीते दिन हार्ट अटैक से दुनिया को अलविदा कहने वाले सिद्धार्थ शुक्ला का अंतिम संस्कार (Sidharth Shukla Funeral) आज यानी शुक्रवार को किया गया. इस दौरान उनकी फैमिली के अलावा उनके दोस्त और शहनाज गिल (Shehnaaz Gill) नजर आईं. बात करें शहनाज गिल की हालत की तो वह बेसुध और रोती हुई नजर आईं, जिसे देखकर फैंस उनकी चिंता कर रहे हैं.

 

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पुलिस को शहनाज ने दिया बयान

 

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खबरों की माने तो शहनाज ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया है कि सिद्धार्थ को बुधवार की शाम से ही परेशानी हो रही थी, जिसके चलते शहनाज ने सिद्धार्थ से डॉक्टर के पास जाने की बात भी कही. लेकिन एक्टर ने उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया. वहीं रात में सोए तो दोबारा नही उठ पाए. वहीं सिद्धार्थ का निधन हुआ तो वहां शहनाज और उनकी मां वहां मौजूद थीं.

बता दें जब से सिद्धार्थ शुक्ला (Sidharth Shukla) के निधन की खबर से उनकी खास दोस्त शहनाज गिल की चिता फैंस को सता रही थी है. वहीं शहनाज गिल के पिता ने भी उनकी खराब हालत को लेकर अपडेट दिया था. दूसरी तरफ सिद्धार्थ के घर पहुंचने वाले अली गोनी और राहुल महाजन (Rahul Mahajan) ने एक ट्वीट में कहा है कि शहनाज का चेहरा पीला पड़ गया है और वह पूरी तरह टूट गई है.

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झूठ से सुकून: भाग 1- शशिकांतजी ने कौनसा झूठ बोला था

लेखक- डा. मनोज मोक्षेंद्र

फ्लैट कल्चर हमें कभी रास नहीं आया. जिस दिन से उस फ्लैट में कदम रखा था, कोई न कोई अनचाही या यों कहिए कि मन के खिलाफ बात हो ही जाती थी. लाख तरीके अपनाने पर भी प्राइवेसी भंग हो जाती थी. दरवाजा भले ही अपनी सहूलियत के लिए भेड़ कर रखा हो, कोई न कोई कौलबैल बजा कर सीधे अंदर घुस आता था किचन और डायनिंगरूम तक, जैसे कि यह कोई घर न हो कर सराय हो. ‘बहनजी, सब्जी वाला आया है, सब्जियां ले लो’, ‘भाभीजी, कपड़े इस्तरी कराने हैं क्या’, ‘मैम, टंकी में पानी फुल कर लेना, वरना 10 बजे बिजली गुल होने के बाद आप को दिक्कत हो जाएगी’ वगैरावगैरा.

मेरी पत्नी को इन बातों से कोई ज्यादा असुविधा नहीं होती थी क्योंकि पड़ोसी खुद हमारी सुविधाओं के लिए चिंतित दिखाई देते थे. पर एक दिन भीमसेनजी ऐन सवेरे का चायनाश्ता करते वक्त, अंदर तक घुसते चले आए, ‘‘भाई साहब, ऊपर वाले उमाकांतजी ने रेलिंग पर गीले कपड़े फैला रखे हैं. बारबार कहने पर भी वे अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं. चलिए, हम मिल कर उन के आगे अपनी आपत्ति दर्ज कराते हैं.’’

‘‘हद हो गई,’’ भुनभुनाते हुए मैं उन के साथ उमाकांतजी से शिकायत करने चला गया.

पर भीमसेनजी की ओर से उमाकांतजी से शिकायत करने का नतीजा बुरा निकला और उन की लौबी वाले उन के चहेते मेरे खिलाफ हो गए. सुबह जब गेट खोला तो पड़ोसी भाभियों की गीली साडि़यां हमारे फ्लैट के ऊपर लटक रही थीं. उन्हें जानबूझ कर ठीक से न निचोड़े जाने के कारण उन से पानी धार से टपक रहा था. मैं ने पत्नी कुलदीपा को हिदायत दी कि इस मसले को तूल मत देना, मैं उन्हें प्यार से समझा दूंगा.

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बहरहाल, इस तरह की आएदिन होने वाली बातों से हम आजिज आ गए और हम ने कौलबैल को बिजली से डिस्कनैक्ट करा दिया. भीतर से दरवाजे पर चटखनी चढ़ा कर अंदर बैडरूम में ही ज्यादातर रहने लगे. लेकिन हमारे इस नकारात्मक रवैए का असर पड़ोसियों पर अच्छा नहीं पड़ा. आखिर टाइमपास के लिए उन्हें हमारा साथ जो चाहिए था. सो, एक शाम जब मैं औफिस से लौट कर हाथमुंह धो रहा था तो दरवाजे के बाहर एक नहीं, कई लोगों के होने की आहट मिली. जब दस्तक हुई तो मैं ने रवाजा खोल दिया. सामने उमाकांतजी हाथ में कोई  फाइल लिए थे और उन के पीछे कोई 7-8 लोग खड़े थे.

‘‘नमस्कार, शशिकांतजी, हम इस अपार्टमैंट में बेहतर सुविधाएं देने के लिए एक वैलफेयर सोसायटी का गठन कर रहे हैं और आप से गुजारिश है कि आप इस में अहम भूमिका निभाएं,’’ उमाकांतजी ने कंधे उचकाउचका कर हमारे सहयोग की गुहार लगाई. भलमनसाहत में मैं भी बागबाग हो उठा, ‘‘अरे, क्यों नहीं, क्यों नहीं, मैं भी तो इसी अपार्टमैंट का एक अभिन्न हिस्सा हूं.’’

‘‘तो फिर, आज शाम आप 8 बजे बी ब्लौक में नीलेशजी के फ्लैट में तशरीफ लाएं,’’ उमाकांतजी मेरी जबान पर लगाम लगा कर चलते बने.

अपने लेटलतीफी स्वभाव के अनुसार मैं ने 8 बजे के बजाय पौने 9 बजे नीलेशजी के फ्लैट में कदम रखा. वहां पहुंचने पर मुझे लगा कि जैसे सबकुछ पहले से तयशुदा था. वहां अपार्टमैंट के रिहाइशदारों की भीड़ में पदाधिकारियों के चुनाव का दौर चल रहा था. मेरे हाजिर होते ही किसी लालजी ने जनरल सैक्रेटरी के पद के लिए मेरे नाम का प्रस्ताव कर दिया. भीड़ के शोरगुल में मेरी नानुकर किसी ने नहीं सुनी और अफरातफरी में बहुमत से मैं वैलफेयर सोसायटी का जनरल सैके्रटरी चुन लिया गया.

मीटिंग से निबटने के बाद जब कंधों पर जिम्मेदारी लादे, मैं मुंह लटकाए घर में दाखिल हुआ तो मेरी पत्नी ने मुझे बधाई दी, ‘‘अजी, जनरल सैके्रटरी बनाए जाने पर आप को लखलख बधाइयां.’’ पत्नी की बात सुन कर मैं आश्चर्य में डूब गया. मेरे आने से पहले यह खबर उन तक ही क्या, पूरे अपार्टमैंट में फैल चुकी थी. तभी तो जब मैं अपार्टमैंट के अंदर से गुजर रहा था तो लोगबाग मेरे बारे में ही खुसुरफुसुर कर रहे थे.

पत्नी कुलदीपा फिर बोल उठी, ‘‘अजी, संतरे सा मुंह क्यों फुला रखा है? कित्ती चंगी गल है कि आप जनरल सैके्रटरी चुने गए हो. अब आप की काबिलीयत इन अपार्टमैंट वालों से तो छिपी नहीं है. सरकारी अफसर होने का फायदा तो इन्हें भी मिलना ही चाहिए.’’

जब कुलदीपा ने ही मुझे ‘जनरल सैके्रटरी’ का तमगा पहना दिया तो इसे कैसे ठुकराया जा सकता था. मैं मन ही मन सोचने लगा, ‘कुलदीपा, अभी तुम्हें यह सब बहुत अच्छा लग रहा है. जब हमारा ड्राइंगरूम नगर निगम के औफिस जैसा एक सार्वजनिक स्थल बन जाएगा तब तुम्हें पता चलेगा आटेदाल का भाव. अरे, हम जैसे बिजी गवर्नमैंट सर्वैंट के लिए ऐसी वैलफेयर सोसायटी जौइन करना कोई आसान बात है क्या?’

खैर, मैं भी तैयार था, यह देखने के लिए कि आगेआगे होता है क्या…

अगले दिन सुबह, बच्चों को स्कूलवैन में बैठाने के बाद जब मैं वापस लौटा तो ड्राइंगरूम में उमाकांतजी, नीलेशजी और भीमसेनजी को देख कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ. वैलफेयर सोसायटी के पदाधिकारियों के साथ अब तो उठनाबैठना लगा ही रहेगा. मैं ने सोचा, ‘लो, इन के साथ कुछ देर तक इन का हालचाल पूछने के बाद ही औफिस के लिए निकलना हो पाएगा, औफिस के लिए एकाध घंटे लेट ही सही.’

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उमाकांतजी, जो कल सोसायटी के प्रैसिडैंट भी चुने गए थे, चाय की चुस्कियों में ही बोल उठे, ‘‘शशिकांतजी, इस अपार्टमैंट का बिल्डर निरंजन निहायत कमीना आदमी निकला. उस ने अपार्टमैंट के चारों ओर फेसिंग कराने का वादा पूरा नहीं किया और यहां से अपना औफिस समेट कर चलता बना.’’ जब मैं ने उस बात पर चिंता जाहिर की तो वे फिर बोल उठे, ‘‘शशिकांतजी, आज मैं भी सदर बाजार काम पर नहीं जा रहा हूं. नीलेशजी ने अपने औफिस से इस काम के लिए पहले ही छुट्टी ले रखी है. भीमसेनजी भी गद्दी में आज नहीं बैठने वाले हैं. यानी, हम सब आज कोर्ट में बिल्डर के खिलाफ एक मुकदमा डालने जा रहे हैं. आप चूंकि खुद एलएलबी हैं और मुझे जानकारी मिली है कि आप कानूनी दांवपेंचों के बड़े जानकार हैं, इसलिए आप का हमारे साथ कोर्ट में मौजूद रहना बेहद जरूरी है.’’

मैं दरवाजे पर खड़ी कुलदीपा के चेहरे को देखते हुए उधेड़बुन में अपनी दाढ़ी खुजलाने लगा कि तभी उस ने आंखों ही आंखों में इशारा किया, ‘अरे, महल्ले की बात है और आप को बड़ी इज्जत से साथ चलने को कह रहे हैं तो कोर्ट से लौटने के बाद कुछ देर से ही औफिस क्यों नहीं चले जाते?’

लिहाजा, कोर्ट में केस की स्टोरी तो मैं ने ही तैयार की जबकि नाममात्र के वकील ने अपने नाम के दस्तावेज और हमारे हलफनामे पर अपनी मुहर लगा कर फाइल पेश की और 3 दिनों बाद हमें फिर हाजिर होने का निर्देश दिया. इस तरह, जब वहां की औपचारिकताओं से निबटने में ही शाम के 4 बज गए तो मैं ने औफिस में फोन कर के उस दिन छुट्टी ले ली. जब मैं कोर्ट में वकील के साथ अपने बिल्डर निरंजन द्वारा किए गए गैरकानूनी मसलों पर बहस कर रहा था तो मेरे साथ आए सोसायटी के पदाधिकारियों को पूरा यकीन हो गया कि मैं सोसायटी की समस्याओं से निबटने के लिए एक सक्षम व्यक्ति हूं. कोर्ट में आ कर मुझे भी अच्छा लग रहा था. वैलफेयर सोसायटी के पदाधिकारियों के रूप में महल्ले में मैं नामचीन हो रहा था. जिधर से मैं गुजरता, लोगबाग मुझे महत्त्व देते हुए मेरा हालचाल जरूर पूछते.

घर लौट कर खाना खाने के बाद मैं ने बैडरूम में आ कर राहत की सांस ली. तभी कुलदीपा ने आ कर बताया कि उमाकांतजी का लड़का राहुल आया है. कह रहा है कि आज अंकल तो औफिस जा नहीं रहे, इसलिए वे हमारे फ्लैट में आ जाएं. पापा उन का इंतजार कर रहे हैं. अपार्टमैंट के कुछ मसलों से संबंधित जरूरी बातें करनी हैं.

मैं ने कुलदीपा की आंखों में बड़े शिकायतभरे अंदाज में देखा और कहा, ‘‘अभी क्या? यह तो खेल का आगाज है. औफिस से लौट कर रोज मुझे इसी तरह सोसायटी के काम के लिए घर से बाहर रहना होगा, वैलफेयर सोसायटी के लोगों के साथ. क्लाइमैक्स तक पहुंचतेपहुंचते नानी याद आ जाएगी.’’

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पर उस ने भी मुसकरा कर और सिर नचा कर मूक अभिनय किया, ‘‘अब आज औफिस नहीं गए तो सोसायटी का ही कुछ काम कर लीजिए. आरामवाराम तो होता रहेगा. अब देखिए, मेरी मरजी के मुताबिक चलेंगे तो एक आदर्श नागरिक के रूप में जाने जाएंगे.’’

मैं टीशर्ट और बरमूडा पहने हुए ही बाहर निकल गया.

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सिद्धार्थ शुक्ला के निधन पर सेलेब्स ने जताया दुख, शहनाज के लिए जाहिर की चिंता

टीवी के पौपुलर एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला के अचानक निधन से पूरी इंडस्ट्री सदमे में हैं. वहीं कई सितारे उनके घर और अस्पताल भी पहुंचे. हालांकि कुछ सितारों ने सोशलमीडिया के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दी. हालांकि इस दौरान सेलेब्स को सिद्धार्थ की खास दोस्त शहनाज गिल की चिंता भी हो रही है, जिसे वह फैंस के साथ शेयर करते नजर आए. आइए आपको बताते हैं सेलेब्स की श्रद्धांजलि और शहनाज से जुड़े अपडेट…

असीम रियाज पहुंचे अस्पताल

बिग बौस 14 में असीम रियाज और सिद्धार्थ शुक्ला की दुश्मनी जगजाहिर  है. लेकिन सिद्धार्थ के निधन की खबर सुनते ही वह कूपर अस्पताल में नजर आए. वहीं सोशलमीडिया पर भी उन्होंने फैंस को सांत्वना दी.

घर पहुंचे ये सितारे

 

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सिद्धार्थ शुक्ला के निधन की खबर सुनते ही सेलेब्स उनके घर पहुंचे जहां पर उनकी मां और शहनाज गिल से मिले. इस दौरान वरुण धवन, रश्मि देसाई, आरती सिंह, देवोलीना बैनर्जी, अर्जुन बिजलानी, राहुल वैद्य वाइफ दिशा परमार संग पहुंचे. इसके साथ इंडस्ट्री से जुड़े कई सितारे सिद्धार्थ के घर पहुंचे नजर आए.

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सलमान से लेकर शाहरुख खान ने जताया दुख

 

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बिग बौस 13 के विनर सिद्धार्थ शुक्ला के निधन से जहां टीवी इंडस्ट्री सदमे में है तो वहीं बौलीवुड सितारों ने भी एक्टर के निधन पर दुख जताया है. एक्टर सलमान खान, शाहरुख खान ने इतनी जल्दी का शोक व्यक्त किया है. वहीं सोनू सूद, अनुपम खेर, सोनम कपूर जैसे कई सेलेब्स ने सोशलमीडिया पर श्रद्धांजलि दी है.

 

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शहनाज की हालत पर फैंस और सेलेब्स को हुई चिंता

जब से सिद्धार्थ शुक्ला (Sidharth Shukla) के निधन की खबर से उनकी खास दोस्त शहनाज गिल की चिता फैंस को सता रही है. इस बीच शहनाज गिल के पिता ने एक इंटरव्यू में बताया है कि उनकी बेटी भरोसा ही नहीं कर पा रही है कि सिद्धार्थ अब इस दुनिया में नहीं रहे. वहीं सिद्धार्थ के घर पहुंचने वाले अली गोनी और राहुल महाजन (Rahul Mahajan) ने शहनाज की हालत को लेकर फैंस को अपडेट दिया. दूसरी तरफ एक्ट्रेस हिंमांशी खुराना ने भी फैंस से शहनाज को हिम्मत देने की बात कही है. वहीं उनकी हालत पर चिंता जताई है.

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वीडियो और फोटोज क्रेडिट- Viral Bhayani

दिल से दिल तक: भाग 1- शादीशुदा आभा के प्यार का क्या था अंजाम

‘‘हर्ष,अब क्या होगा?’’ आभा ने कराहते हुए पूछा. उस की आंखों में भय साफसाफ देखा जा सकता था. उसे अपनी चोट से ज्यादा आने वाली परिस्थिति को ले कर घबराहट हो रही थी.

‘‘कुछ नहीं होगा… मैं हूं न, तुम फिक्र मत करो…’’ हर्ष ने उस के गाल थपथपाते हुए कहा.

मगर आभा चाह कर भी मुसकरा नहीं सकी. हर्ष ने उसे दवा खिला कर आराम करने को कहा और खुद भी उसी बैड के एक किनारे अधलेटा सा हो गया. आभा शायद दवा के असर से नींद के आगोश में चली गई, मगर हर्र्ष के दिमाग में कई उल झनें एकसाथ चहलकदमी कर रही थी…

कितने खुश थे दोनों जब सुबह रेलवे स्टेशन पर मिले थे. उस की ट्रेन सुबह 8 बजे ही स्टेशन पर लग चुकी थी. आभा की ट्रेन आने में अभी

1 घंटा बाकी था. चाय की चुसकियों के साथसाथ वह आभा की चैट का भी घूंटघूंट कर स्वाद ले रहा था. जैसे ही आभा की ट्रेन के प्लेटफौर्म पर आने की घोषणा हुई, वह लपक कर उस के कोच की तरफ बढ़ा. आभा ने उसे देखते ही जोरजोर से हाथ हिलाया. स्टेशन की भीड़ से बेपरवाह दोनों वहीं कस कर गले मिले और फिर अपनाअपना बैग ले कर स्टेशन से बाहर निकल आए.

पोलो विक्ट्री पर एक स्टोर होटल में कमरा ले कर दोनों ने चैक इन किया. अटैंडैंट के सामान रख कर जाते ही दोनों फिर एकदूसरे से लिपट गए. थोड़ी देर तक एकदूसरे को महसूस करने के बाद वे नहाधो कर नाश्ता करने बाहर निकले. हालांकि आभा का मन नहीं था कहीं बाहर जाने का, वह तो हर्ष के साथ पूरा दिन कमरे में ही बंद रहना चाहती थी, मगर हर्ष ने ही मनुहार की थी बाहर जा कर उसे जयपुर की स्पैशल प्याज की कचौरी खिलाने की जिसे वह टाल नहीं सकी थी. हर्ष को अब अपने उस फैसले पर अफसोस हो रहा था. न वह बाहर जाने की जिद करता और न यह हादसा होता…

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होटल से निकल कर जैसे ही वे मुख्य सड़क पर आए, पीछे से आई एक अनियंत्रित कार ने आभा को टक्कर मार दी. वह सड़क पर गिर पड़ी. कोशिश करने के बाद भी जब वह उठ नहीं सकी तो हर्ष ऐबुलैंस की मदद से उसे सिटी हौस्पिटल ले कर आया. ऐक्सरे जांच में आभा के पांव की हड्डी टूटी हुई पाई गई. डाक्टर ने दवाओं की हिदायत देने के साथसाथ 6 सप्ताह का प्लास्टर बांध दिया. थोड़ी देर में दर्द कम होते ही उसे हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया.

मोबाइल की आवाज से आभा की नींद टूटी. उस के मोबाइल में ‘रिमाइंडर मैसेज’ बजा. लिखा था, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टू हर्ष.’ आभ दर्द में भी मुसकरा दी. उस ने हर्ष को विश करने के लिए यह रिमाइंडर अपने मोबाइल में डाला था.

पिछले साल इसी दिन यानी 4 मार्च को दोपहर 12 बजे जैसे ही इस ‘रिमाइंडर मैसेज’ ने उसे विश करना याद दिलाया था उस ने हर्ष को किस कर के अपने पुनर्मिलन की सालगिरह विश की थी और उसी वक्त इस में आज की तारीख सैट कर दी थी. मगर आज वह चाह कर भी हर्ष को गले लगा कर विश नहीं कर पाई क्योंकि वह तो जख्मी हालत में बैड पर है. उस ने एक नजर हर्ष पर डाली और रिमाइंडर में अगले साल की डेट सैट कर दी. हर्ष अभी आंखें मूंदे लेटा था. पता नहीं सो रहा था या कुछ सोच रहा था. आभा ने दर्द को सहन करते हुए एक बार फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं.

‘पता नहीं क्याक्या लिखा है विधि ने मेरे हिस्से में,’ सोचते हुए अब आभा का दिमाग भी चेतन हो कर यादों की बीती गलियों में घूमने लगा…

लगभग सालभर पहले की बात है. उसे अच्छी तरह याद है 4 मार्च की वह शाम. वह अपने कालेज की तरफ से 2 दिन का एक सेमिनार अटैंड करने जयपुर आई थी. शाम के समय टाइम पास करने के लिए जीटी पर घूमतेघूमते अचानक उसे हर्ष जैसा एक व्यक्ति दिखाई दिया. वह चौंक गई.

‘हर्ष यहां कैसे हो सकता है?’ सोचतेसोचते वह उस व्यक्ति के पीछे हो ली. एक  शौप पर आखिर वह उस के सामने आ ही गई. उस व्यक्ति की आंखों में भी पहचान की परछाईं सी उभरी. दोनों सकपकाए और फिर मुसकरा दिए. हां, यह हर्ष ही था… उस का कालेज का साथी… उस का खास दोस्त… जो न जाने उसे किस अपराध की सजा दे कर अचानक उस से दूर चला गया था…

कालेज के आखिरी दिनों में ही हर्ष उस से कुछ खिंचाखिंचा सा रहने लगा था और फिर फाइनल ऐग्जाम खत्म होतेहोते बिना कुछ कहेसुने हर्ष उस की जिंदगी से चला गया. कितना ढूंढ़ा था उस ने हर्ष को, मगर किसी से भी उसे हर्ष की कोई खबर नहीं मिली. आभा आज तक हर्ष के उस बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं सम झ पाई थी.

धीरेधीरे वक्त अपने रंग बदलता रहा. डौक्टरेट करने के बाद आभा  स्थानीय गर्ल्स कालेज में लैक्चरर हो गई और अपने विगत से लड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी. इस बीच आभा ने अपने पापा की पसंद के लड़के राहुल से शादी भी कर ली. बच्चों की मां बनने के बाद भी आभा को राहुल के लिए अपने दिल में कभी प्यार वाली तड़प महसूस नहीं हुई. दिल आज भी हर्ष के लिए धड़क उठता था.

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शादी कर के जैसे उस ने अपनी जिंदगी से एक सम झौता किया था. हालांकि समय के साथसाथ हर्ष की स्मृतियां पर जमती धूल की परत भी मोटी होती चली गई थी, मगर कहीं न कहीं उस के अवचेतन मन में हर्ष आज भी मौजूद था. शायद इसलिए भी वह राहुल को कभी दिल से प्यार नहीं कर पाई थी. राहुल सिर्फ उस के तन को ही छू पाया था, मन के दरवाजे पर न तो कभी राहुल ने दस्तक दी और न ही कभी आभा ने उस के लिए खोलने की कोशिश की.

जीटी में हर्ष को अचानक यों अपने सामने पा कर आभा को यकीन ही नहीं हुआ. हर्ष का भी लगभग यही हाल था.

‘‘कैसी हो आभा?’’ आखिर हर्ष ने ही चुप्पी तोड़ी.

‘तुम कौन होते हो यह पूछने वाले?’ आभा मन ही मन गुस्साई. फिर बोली, ‘‘अच्छी हूं… आप सुनाइए… अकेले हैं या आप की मैडम भी साथ हैं?’’ वह प्रत्यक्ष में बोली.

‘अभी तो अकेला ही हूं,’’ हर्ष ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए कहा और आभा को कौफी पीने का औफर दिया. उस की मुसकान देख कर आभा का दिल जैसे  उछल कर बाहर आ गया.

‘कमबख्त यह मुसकान आज भी वैसी ही कातिल है,’ दिल ने कहा. लेकिन दिमाग ने सहज हो कर हर्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. पूरी शाम दोनों ने साथ बिताई.

थोड़ी देर तो दोनों में औपचारिक बातें हुईं. फिर एकएक कर के संकोच की दीवारें टूटने लगीं और देर रात तक गिलेशिकवे होते रहे. कभी हर्ष ने अपनी पलकें नम कीं तो कभी आभा ने. हर्ष ने अपनेआप को आभा का गुनहगार मानते हुए अपनी मजबूरियां बताईं… अपनी कायरता भी स्वीकार की… और यों बिना कहेसुने चले जाने के लिए उस से माफी भी मांगी…

आभा ने भी ‘‘जो हुआ… सो हुआ…’’ कहते हुए उसे माफ कर दिया. फिर डिनर के बाद विदा लेते हुए दोनों ने एकदूसरे को गले लगाया और अगले दिन शाम को फिर यहीं मिलने का वादा कर के दोनों अपनेअपने होटल की तरफ चल दिए.

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अगले दिन बातचीत के दौरान हर्ष ने उसे बताया कि वह एक कंस्ट्रक्शन  कंपनी में साइट इंजीनियर है और इस सिलसिले में उसे महीने में लगभग 15-20 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है और यह भी कि उस के 2 बच्चे हैं और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से काफी संतुष्ट है.

‘‘तुम अपनी लाइफ से संतुष्ट हो या खुश भी हो?’’ एकाएक आभा ने उस की आंखों में  झांका.

‘‘दोनों में क्या फर्क है?’’ हर्ष ने पूछा.

‘‘वक्त आने पर बताऊंगी,’’ आभा ने टाल दिया.

आगे पढ़ें- बातें करतेकरते कब 1 घंटा बीत गया…

आलीशान घर के मालिक थे सिद्धार्थ शुक्ला, फैंस के साथ शेयर कर चुके हैं घर का नजारा

बीते दिन टीवी इंडस्ट्री को गहरा सदमा लगा है. बिग बॉस 13 के विनर रह चुके टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला ने 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक के चलते दुनिया को अलविदा कह दिया है. हालांकि आज यानी शुक्रवार को उनका अंतिम संस्कार होना है. इसी बीच सोशलमीडिया पर सिद्धार्थ शुक्ला के आलीशान घर की फोटोज वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं कैसा था सिद्धार्थ शुक्ला का घर, जिसे वह फैंस के साथ शेयर कर चुके हैं.

फैंस को दिखाई थी घर की झलक

 

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लौकडाउन में सिद्धार्थ शुक्ला ने फैंस के साथ कई किस्से शेयर किए, जिनमें उन्होंने अपने घर की झलक भी दिखाई थी. सिद्धार्थ ने अपनी एक वीडियो में बड़े घर का डाइनिंग रूम, बेडरूम और यहां तक की अपने अवॉर्ड रूम की झलक भी दे फैंस को दिखाई थी, जिसे देखकर फैंस का मजेदार रिएक्शन देखने को मिला था.

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सजावट थी खास

 

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इसके अलावा सिद्धार्थ ने किचन,लिविंग रूम और लाउंज एरिया की भी झलक दिखाई थी. जहां वह लौकडाउन के दौरान घर बैठे शूटिंग करते थे. वहीं घर की सजावट की बात करें तो लाउंज एरिया ब्लू कलर का बड़ा-सा सोफा और कलरफुल कुशन बेहद खूबसूरत लुक देते हैं. बात करें तो डाइनिंग रूम की तो वह रेस्टोरेंट जैसी वाइब्स देता है. साथ ही वहां एल शेप का सोफा और मेटैलिक टेबल उनके डाइनिंग रुम को शानदार बनाता है.

कुछ ऐसा था सिद्धार्थ का बेडरुम

 

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बात करें सिद्धार्थ शुक्ला के बेडरूम की तो बेडरूम की दीवारों से लेकर बेडशीट और कृष्ण कवर तक सब डार्क कलर का है. जहां उनका हेडबोर्ड ग्रे हैं वहीं उनकी बेडशीट का रंग रॉयल ब्लू नजर आता है, जो उनके कलर और टेस्ट को दिखाता है.

 

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बता दें गुरुवार की सुबह सिद्धार्थ शुक्ला का मुंबई के कूपर अस्पताल में निधन हो गया था. कहा जा रहा है कि वह बुधवार रात से ही असहज थे, जिसकी बात वह अपनी मां से कह चुके थे. वहीं खबरे हैं कि सिद्धार्थ शुक्ला का अंतिम संस्कार ब्रह्मकुमारी समाज से किया जाएगा.

अपराधिनी: भाग 2- क्या था उसका शैली के लिए उसका अपराध

लेखिका-  रेणु खत्री

मेरे लिए कार कंपनी के मालिक, बेहद आकर्षक रोहित का रिश्ता आया. वे मुझे देखने आ रहे थे. मेरी मां, दादी और चाची तो थीं ही मेहमानों की खातिरदारी हेतु, परंतु मैं ने शैली और उस की मां को भी बुलवा लिया. सभी ने मिल कर बहुत अच्छी रसोई बनाई. देखनेदिखाने की रस्म, खानापीना सब अच्छे से संपन्न हो गया. अगले सप्ताह तक जवाब देने को कह कर लड़के वाले विदा ले चले गए.

मधुर पवन की बयार, बादलों की लुकाछिपी, वर्षा की बूंदें, प्रकृति की छुअन के हर नजारे में मुझे अपने साकार होते स्वप्नों की राहत का एहसास होता. लेकिन उस दिन मानो मुझ पर वज्रपात हो गया जब रोहित ने मेरे स्थान पर शैली को पसंद कर लिया. वादे के अनुसार, एक सप्ताह बाद रोहित के मामा ने हमारे यहां आ कर शैली का रिश्ता मांग लिया.

एक बार तो हम सभी हैरान रह गए और परेशान भी हुए. बस, एक मेरी अनुभवी दादी ने सब भांप लिया कि यहां बीच राह में समय खड़ा है. मेरी मां का तो यह हाल था कि वे मुझे ही डांटने लगीं कि तुम ने ही शैली को बुलाया था न, अब भुगतो. पर मेरी दादी रोहित के मामाजी को शैली के घर ले कर गईं. उन्हें समझाया. दादी शैली की शादी से भी खुश थीं.

तनाव दोनों घरों में था. मेरे तो सपने टूट गए. इतना अच्छा रिश्ता शैली की झोली में जाने से मेरी मां का स्वार्थ जाग उठा. वे शैली व उस की मां को भलाबुरा कहने लगीं और मैं ने अपनेआप को एकांत के हवाले कर दिया.

इस घटना से मेरे अंदर न जाने क्या दरक गया कि मेरे जीवन का सुकून खो गया और मेरी मित्रता मेरे अविश्वास की रेत बन कर मेरे हाथों से यों ढह गई मानो हमारी दोस्ती एक छलावा मात्र हो जिसे किसी स्वार्थ के लिए ही ओढ़ा हो.

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उधर, शैली नहीं चाहती थी कि हमारी दोस्ती इस रिश्ते की वजह से समाप्त हो. मेरी दादी ने इस बीच पुल का काम किया. उन्होंने पापा को समझाया, ‘शैली भी हमारी ही बेटी है. बचपन से हमारे यहां आतीजाती रही है. हम उसे अच्छी तरह जानतेसमझते हैं. फिर क्यों नहीं सोचते कि वह स्वार्थी नहीं है. वह हमारी प्रिया के मुकाबले ज्यादा सूबसूरत है, गुणी भी है. क्या हुआ जो रोहित ने उसे पसंद कर लिया. अरे, अपनी प्रिया के लिए रिश्तों की कमी थोड़े ही है.’

पापा दादी की बात से सहमत हो गए. मैं दादी की वजह से इस शादी में बेमन से शरीक हुई थी. विदाई के समय शैली मेरे गले लग कर इस कदर रोई मानो वह मुझ से आखिरी विदाई ले रही हो.

शैली की शादी के बाद उस की मां से मैं ने बोलना छोड़ दिया. लगभग 2 महीने बाद शैली मायके आई. वह मुझ से मिलने आई. मेरी दादी ने उसे बहुत लाड़ किया. पर मैं ने और मेरी मां ने उस के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. मेरी मां तो उसे अनदेखा कर बाजार चली गईं और मैं ने उस का हालचाल पूछने के बजाय उस से गुस्से में कह दिया, ‘अब तो खुश हो न मुझे रुला कर. मेरे हिस्से की खुशियां छीनी हैं तुम ने. तुम कभी सुख से नहीं रह पाओगी.’

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वह रोती हुई बाहर निकल गई और उस के बाद मुझ से कभी नहीं मिली. इस तरह की भाषा बोलना हमारे संस्कारों में नहीं था. और फिर, वह तो मेरी जान थी. फिर भी, पता नहीं कैसे मैं उस के साथ ऐसा व्यवहार कर गई जिस का मुझे उस वक्त कोई पछतावा नहीं था.

दादी को मेरा इस तरह बोलना बहुत बुरा लगा. उन्होंने मुझे बहुत डांटा और उसे मनाने के लिए कहा. पर मैं अपनी जिद पर अड़ी थी. मुझे अपने किए का पछतावा तब हुआ जब शैली का परिवार दिल्ली को ही अलविदा कह कर न जाने कहां बस गया.

वक्त बहुत बड़ा मरहम भी होता है और सबक भी सिखाता है. वह तो निर्बाध गति से चलता रहता है और हर किसी को अपने हिसाब से तोहफे बांटता रहता है. मुझे भी शशांक के रूप में वक्त ने ऐसा तोहफा दिया जो मेरे हर वजूद पर खरा उतरा. इन 19 वर्षों में उन्होंने मुझे शिकायत का कोई अवसर नहीं दिया. मोटर पार्ट्स की कंपनी में मैनेजर के पद पर विराजित शशांक ने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अच्छे से अच्छे विद्यालय में पढ़ाना और घर पर भी हम सभी को हमेशा भरपूर समय दिया है उन्होंने.

वक्त के साथ मैं बहुतकुछ भूल चुकी थी. पर आज शैली के साथसाथ दादी भी बहुत याद आने लगीं. सही कहती थीं दादी, ‘बेटा, कभी ऐसा कोई काम मत करो कि तुम अपनी ही नजरों में गिर जाओ.’ आज मेरा मन बहुत बेचैन था. मैं शैली से मिल अर अपने किए की माफी मांगना चाहती थी. मेरे व्यवहार ने उसे उस समय कितना आहत किया होगा, इसे मैं अब समझ रही थी. यादों के समंदर में गोते खाते वह समय भी नजदीक आ गया जब हमें उस से मिलने जाना था.

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हैदराबाद की राहों पर कदम रखते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गईं. अपनेआप में शर्मिंदगी का भाव लिए बस यही सोचती रही कि कैसे उस का सामना कर पाऊंगी. हमारी आपसी कहानी से शशांक अनभिज्ञ थे. एक बार तो मैं शैली से अकेले ही मिलना चाहती थी. सो, मैं ने शशांक से कहा, ‘‘आप अपने औफिस की मीटिंग में चले जाइए, मैं टैक्सी ले लूंगी, शैली से मिल आऊंगी.’’ उन्हें मेरा सुझाव ठीक लगा.uyj7

अब मैं बिना किसी पूर्व सूचना के शैली के बताए पते पर पहुंच गई. उसी ने दरवाजा खोला. उस का शृंगारविहीन सूना चेहरा देख कर मेरा दिल बैठने लगा. हम दोनों ही गले लग कर जीभर रोए मानो आंसुओं से मैं अपने किए का पश्चात्ताप कर रही थी और वह उस पीड़ा को नयनों से बाहर कर रही थी जिस से मैं अब तक अनजान थी. मैं उस के घर में इधरउधर झांकने लगी कि बच्चे वगैरह हैं या नहीं, मैं पूछ ही बैठी, ‘‘रोहितजी कहां हैं? कैसे हैं? और बच्चे…?’’

मेरा कहना भर था कि उस की आंखें फिर भीग गईं. अब शैली ने बीते 20 वर्षों से, दामन में समाए धूपछांव के टुकड़ों को शब्दों में कुछ यों बयां किया, ‘‘रोहित से मेरा विवाह होने के 4 माह बाद ही एक सड़क दुर्घटना में वे हमें रोता छोड़ कर हमेशा के लिए हम से बिछुड़ गए. सुसराल वालों ने इस का दोष मेरे सिर पर मढ़ा.

अगले भाग में पढ़ें- अब लगता है शायद नियति ने ही ऐसा तय कर रखा था.

Neil Bhatt Interview: असल जिंदगी में ‘पाखी’ के दिवाने हैं ‘गुम हैं किसी के प्यार में’ के विराट, ऐसी है लव स्टोरी

हमेशा से एक अच्छा परफ़ॉर्मर बनने की कोशिश करने वाले अभिनेता नील भट्ट को उनके माता-पिता दोनों ने सहयोग दिया, क्योंकि वे उनके इस पैशन को करीब से देख चुके थे. उनके सुझाव पर उन्होंने एक्टिंग क्लास ज्वाइन किया और पहला ब्रेक धारावाहिक ‘रूप – मर्द का नया स्वरुप’ था, इसके बाद उन्हें बड़ी ब्रेक ‘गुम है किसी के प्यार में’ मिला, जिसमें उन्होंने आईपीएस विराट चव्हाण की भूमिका निभा रहे हैं.

इस शो के दौरान वे अभिनेत्री ऐश्वर्या शर्मा से मिले जो उस शो में पत्रलेखा सालुंके की भूमिका निभा रही है. प्यार हुआ और मंगनी हो चुकी है. कुछ दिनों में शादी भी होने वाली है. नील शादी के रिश्ते को जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते है और सालों तक निभाना चाहते है.

हंसमुख और दृढ़ प्रतिज्ञ नील का शो स्टार प्लस पर हिट चल रहा है, जिससे वे बहुत खुश है, इसका श्रेय वे लेखक और निर्देशक को देना चाहते है, जिन लोगों ने उनके व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर लिखा है. उनसे बात हुई, जो रोचक थी. पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-इस शो से जुड़ने की खास वजह क्या है?

‘गुम है किसी की प्यार है’ में काम करने की खास वजह है, इसकी पूरी टीम, जो एक अच्छी शो मेहनत से बनाना चाहती है और उन्होंने दर्शकों की मनोरंजन को ध्यान में रखते हुए इस शो को बनाया है, जिसे दर्शकगण पसंद कर रहे है और शो हिट भी हुई है. इसके अलावा मुझे इस शो में आईपीएस विराट चव्हाण की भूमिका निभाने का मौका मिलना भी मेरे लिए बड़ी बात है.

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सवाल-इस भूमिका से आप कितना रिलेट कर पाते है?

शुरुआत में तो काफी हद तक इस भूमिका से मैं खुद को रिलेट कर पाता था, क्योंकि तब मैं इस चरित्र को बना रहा था, जिसमें विराट की चाल-चलन, हाँव-भाँव, गुस्सा होना, खुश होना  आदि सब मेरी नार्मल जिंदगी से मैच हो रही थी, लेकिन ये एकड्रामा सीरीज है और लेखक एक चरित्र को माइंड में रखते हुए इसे लिखता है, जिसमें कुछ चीजों से मैं खुद रिलेट नहीं कर पाता. मैंने अपनी बिहैवियर पैटर्न को चरित्र ‘विराट’में ढाला, जिसे दर्शक पसंद कर रहे है, पर इस शो में मुझे वह सब भी करना पड़ा,जिसे मैंनिजी जिंदगी में कभी करने के बारें में सोच नहीं सकता. हाँ इतना जरुर है कि मैं इस चरित्र के इमोशन के साथ खुद को रिलेट कर पाता हूं.

सवाल-अभिनय में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली और परिवार का सहयोग कितना रहा?

मैं बचपन से ही एक परफ़ॉर्मर और डांसर के रूप में दर्शकों के आगे रहा. जब मैं छोटा था तो सपने में भी शाहरुख़ खान और आमिर खान नजर आते थे. 90 के दशक के हीरों की तरह मैं बनना चाहता था, ऐसा एक अनफिनिश्ड ड्रीम मेरे अंदर पनप रही थी. जब पेरेंट्स ने इसे देखा कि मुझे दर्शकों के सामने डांस परफॉर्म करना पसंद है, तो उन्होंने खुद अभिनय के क्षेत्र में कोशिश करने की सलाह दी. माता-पिता की इस सुझाव से मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ और मैंने अभिनय को मेरा प्रोफेशन बनाने की कोशिश करने लगा.

सवाल-आप और एश्वर्या दोनों की जोड़ी ऑन स्क्रीन और ऑफ स्क्रीन पर चर्चित है, आपने उनमे क्या खास देखा, जिससे आप प्रभावित हुए?

ऐश्वर्या मेरी मंगेतर है और मैंने कभी सोचा नहीं था कि ऑन स्क्रीन पार्टनर रियल लाइफ में भी पार्टनर बन जायेगी. पहले प्रोफेशनली मैं ऐश्वर्या से मिला था और जब मैंने पहले उसके साथ मॉक शूट किया, तो उसने हर काम को बड़ी सहजता से किया. इससे मैं बहुत प्रभावित हुआ, क्योंकि कई बार पहले से बहुत अधिक सोच-विचार करने के बाद भी मुझे सही डेलिवर नहीं कर पाते. इसके बाद प्रोड्यूसर की ऑफिस में मीटिंग, रीडिंग आदि किये, मैंने तब उसकी पारदर्शिता और ग्रोथ को अभिनय में देखा, जो मुझे बहुत अच्छा लगा.पर्सनल फ्रंट पर वह बहुत चुलबुली और पारदर्शी है, वह जो सोचती और बोलती है, उसमें एक ईमानदारी रिश्ते को निभाने की है, उसका प्यार उसकी आँखों में दिखता है. इससे अधिक मुझे कुछ नहीं चाहिए.

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सवाल-क्या मंगनी के बाद आप दोनों के रिश्ते में किसी प्रकार का बदलाव आया है?

किसी प्रकार की बदलाव हम दोनों के रिश्ते में नहीं आया है, पहले भी हम जैसे थे, अभी भी वैसे ही प्रोफेशनल तरीके से काम करते है. हाँ जब समय मिलता है, तो थोड़ी बातचीत हो जाती है, ऐसे में इतना कहना चाहता हूं कि हम दोनों अपने रिश्ते से खुश है.

सवाल-प्यार करना और उसे निभाने में, खासकर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में कितनाअंतर होता है?

ये सही है कि मनोरंजन की दुनिया में लोग प्यार में आसानी से पड़ जाते है, लेकिन उसे निभाना मुश्किल होता है. ऐश्वर्या और मैंने जब पहले बात की थी, तो शुरू में ही इस रिश्ते को एक ट्रायल बेसिस पर नहीं रखा. बार-बार शो की वजह से मिलने पर एक दूसरे को काफी हद तक जान चुके थे और हम दोनों का प्यार पुख्ता हो चुका था. दोनों ने ही इस रिश्ते को लम्बे समय निभाने के बारें में सोचा है और कुछ दिनों में हम दोनों शादी भी करने वाले है. निभाना तब मुश्किल होता है, जब दो व्यक्ति एक दूसरे की खामी को सहना नहीं चाहते,बल्कि उसे अपने अनुसार बदलने की कोशिश करते है. एक दूसरे की कमी को समझकर आगे बढ़ने से ही रिश्ता टिक पाता है. मैं और ऐश्वर्या एक दूसरे को हर दिन समझ रहे है. असल में प्यार को महसूस किया जाता है, जबकि रिश्ता निभाने के लिए एक दूसरे को समझना पड़ता है.

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सवाल-क्या आगे आप किसी हिंदी फिल्म या वेब सीरीज में आने की इच्छा रखते है?

हर कलाकार को हिंदी फिल्म और वेब सीरीज में काम करने की इच्छा होती है. मैं अधिक प्लानिंग नही करता और वर्तमान में जीता हूं. इस समय मैं इस शो पर ध्यान केन्द्रित कर खुश हूं.

सवाल-कोई मेसेज जो आप देना चाहते है?

मैं महिलाओं से आत्मनिर्भर होने के लिए कहता हूं, क्योंकि आत्मनिर्भर होने से आत्मशक्ति बढती है और वे अपनी इच्छा के अनुसार रास्ता तय कर पाती है.

5 स्टाइलिश मौनसून फैशन ट्रैंड्स

मौनसून का मौसम आते ही मन खुशी से  झूम उठता है, क्योंकि चिलचिलाती गरमी से राहत जो मिलती है. चारों तरफ घिरे काले बादल और  झमा झम बारिश मन को सुकून पहुंचाती है. मगर जहां ये मौसम सुहावना होता है, वहीं बारिश के कारण स्टाइल बिगड़ने का डर भी रहता है.

ऐसे में अमेजन फैशन के क्रिएटिव डाइरैक्टर नरेंद्र कुमार बताते हैं कि इस मौसम में कुछ टिप्स व ट्रिक्स का ध्यान रख कर खुद को स्टाइलिश दिखा सकते हैं:

 फैशन ट्रैंड इन मौनसून

मौनसून कुछ स्टाइलिश लेकिन फंक्शनल कपड़ों का ट्रैंड लाता है. ऐसे में इस सुहावने मौसम में महिलाएं ब्राइट सौलिड या कुछ फ्लोरल और क्विर्की प्रिंट्स के आरामदायक टौप के साथ मिड्डी ड्रैस और क्रोप पैंट का विकल्प चुन सकती हैं. किमोनो और श्रग जैसे जल्दी सूखने वाले परिधानों को चुन कर वे खुद को स्टाइलिश भी दिखा सकती हैं.

यदि आप सेमी कैजुअल लुक चाहती हैं तो इस के लिए आप प्रिंटेड ब्लाउज के साथ फ्लेयर्ड पैंट के लुक को कैरी कर सकती हैं, जो आप के लुक को अमेजिंग बनाने का काम करेगा. एक कंटैंपरेरी ऐथनिक लुक के लिए सिगरेट पैंट के साथ स्लीवलैस स्ट्रैपी कुरती भी पहन सकती हैं.

इस मौसम में वाइब्रैंट कलर्स और अनूठे प्रिंट वाले कपड़े बच्चों के लिए एकदम उपयुक्त हैं. इस मौसम में ऐसे फैब्रिक्स का चयन करें, जो हलके व जल्दी सूखने वाले हों. आप टीशर्ट या शर्ट के साथ शौर्ट्स व फ्लोरल सैंडल के साथ प्रिंटेड ड्रैस पहन सकती हैं. ब्राइट कलर के रेनकोट्स और गमबूट्स हमेशा आप के पास होने चाहिए. ये मौनसून के फैशन ट्रैंड में चार चांद लगाने का काम करते हैं.

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1. ऐक्सैसरीज व फुटवियर

आप के आउटफिट्स की खूबसूरती को बढ़ाने में ऐक्सैसरीज महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इस मौसम में अगर आप ज्वैलरी कैरी करें तो हलकी ज्वैलरी ही वियर करें. आप स्टड इयररिंग्स के साथ सिलिकौन वाटरपू्रफ बैंड वाच या फिर मैटल स्टैप वाली घड़ी और मैटेलिक शेड्स में ओपन टो का उपयोग आप के लिए इस सीजन में उपयुक्त है.

अगर बात करें फुटवियर की, तो आप को ऐसे फुटवियर का चुनाव करना चाहिए, जिस की ग्रिप मजबूत होने के साथसाथ जल्दी से सूख भी जाए. लैदर बैग व जूतों का उपयोग करने से आप को बचना चाहिए. बच्चों को अच्छी तरह से फिट होने वाले फ्लोटर सैंडल या क्लोग्स पहनाए जा सकते हैं. बच्चों के लिए बरसात के मौसम को और अधिक खूबसूरत बनाने के लिए चमकीले रंग के छाते व क्विर्की पैटर्न वाले गम बूट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. ये लुक बढ़ाने का भी काम करेंगे.

2. कूल कलर कौंबिनेशन फौर कूल मौसम

मौनसून के मौसम का आनंद उठाने के लिए वाइब्रैंट कलर्स का चुनाव करना चाहिए. इन रंगों के साथ पुरुषों के लिए प्रिंट, प्लेन व माइक्रो जिओमैट्रिक प्रिंट वाले कपड़े व महिलाओं के लिए फ्लोरल व कलर ब्लोकैड डिजाइन के कपड़ों को शामिल किया जा सकता है. ये रंग व कौंबिनेशन इस मौसम के लिए काफी उपयुक्त रहता है.

3. मौनसून वार्डरोब क्या इन क्या आउट

आप को हलके और ढीले कपड़ों का चयन करना चाहिए, जो जल्दी सूखने के साथसाथ आप के शरीर से चिपकें भी नहीं. लैगिंग्स या डैनिम से दूर रहें. ऐसे प्रिंट का चयन करें, जो दागों को छिपाता हो. साथ ही ऐसे कपड़ों का चयन करें, जिन में सिलवटें न पड़ती हों. ऐक्सैसरीज के मामले में आप स्टड और यूनिक शेप या कलरफुल जैमस्टोन वाली हलकी ज्वैलरी का इस्तेमाल कर सकती हैं. मोनोक्रोम फुटवियर का चयन न करें. इन की जगह चमकीले रंग और पैटर्न चुन सकती हैं.

4. फैब्रिक सलैक्शन में किन बातों का रखें ध्यान

रेयान, विस्कोस और क्रेप जैसे हलके कपड़े मौनसून के मौसम के लिए एकदम उपयुक्त होते हैं. बदबू या किसी भी प्रकार की स्किन ऐलर्जी से बचने के लिए सिंथैटिक कपड़ों से बचना चाहिए. हलके या जल्दी सूखने वाले फैब्रिक से बने परिधान इस मौसम में अच्छा काम करते हैं. इस मौसम में हमेशा वाटरपू्रफ शूज, बैग्स व ऐक्सैसरीज का ही इस्तेमाल करना सही रहता है.

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5. मौनसून में स्टाइल न हो कैसे कम

आप कंट्रास्ट कलर के साथ प्रिंट के फैशन को फौलो कर सकती हैं. न्यूनतम ऐक्सैसरी का इस्तेमाल कर के आप अपने स्टाइल को अलग लुक दे सकती हैं. ऐसी किसी भी ऐक्सैसरी के इस्तेमाल से बचें, जिस में जंग व दाग पड़ने की संभावना हो. इस मौसम में आप जो भी पहनें व खरीदें, उस का कलर, स्टाइल, फैब्रिक मौसम के अनुसार हो.

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