कंजूस: भाग 1- आखिर क्या था विमल का दर्दभरा सच

लेखक- अनूप श्रीवास्तव

विमल जब अपनी दुकान बंद कर घर लौटे तो रात के 10 बजने वाले थे. वे रोज की तरह सीधे बाथरूम में गए जहां उन की पत्नी श्रद्धा ने उन के कपड़े, तौलिया वगैरा पहले से रख दिए थे. नवंबर का महीना आधे से अधिक बीत जाने से ठंड का मौसम शुरू हो गया था. विशेषकर, रात में ठंड का एहसास होने लगा था. इसलिए विमल ने दुकान से आने पर रात में नहाना बंद कर दिया था. बस, अच्छे से हाथमुंह धो कर कपड़े बदलते और सीधे खाना खाने पहुंचते. उन की इच्छा या बल्कि हुक्म के अनुसार, खाने की मेज पर उन की पत्नी, दोनों बेटे और बेटी उन का साथ देते. विमल का यही विचार था कि कम से कम रात का खाना पूरे परिवार को एकसाथ खाना चाहिए. इस से जहां सब को एकदूसरे का पूरे दिन का हालचाल मिल जाता है, आपस में बातचीत का एक अनिवार्य ठिकाना व बहाना मिलता है, वहीं पारिवारिक रिश्ते भी मधुर व सुदृढ़ होते हैं.

विमल ने खाने को देखा तो चौंक गए. एक कटोरी में उन की मनपसंद पनीर की सब्जी, ठीक उसी तरह से ही बनी थी जैसे उन को बचपन से अच्छी लगती थी. श्रद्धा तो किचन में थी पर सामने बैठे तीनों बच्चों को अपनी हंसी रोकने की कोशिश करते देख वे बोल ही उठे, ‘‘क्या रज्जो आई है?’’ उन का इतना कहना था कि सामने बैठे बच्चों के साथसाथ किचन से उन की पत्नी श्रद्धा, बहन रजनी और उस की बेटी की हंसी से सारा घर गूंज उठा. ‘‘अरे रज्जो कब आई? कम से कम मुझ को दुकान में फोन कर के बता देतीं तो रज्जो के लिए कुछ लेता आता,’’ विमल ने शिकायती लहजे में पत्नी से कहा ही था कि रजनी किचन से बाहर आ कर कहने लगी, ‘‘भैया, उस बेचारी को क्यों कह रहे हो. भाभी तो तुम को फोन कर के बताने ही वाली थीं पर मैं ने ही मना कर दिया कि तुम्हारे लिए सरप्राइज होगा. आजकल के बच्चों को देख कर मैं ने भी सरप्राइज देना सीख लिया.’’

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‘‘अरे मामा, आप लोग तो फन, थ्रिल या प्रैंक कुछ भी नहीं जानते. मैं ने ही मां से कहा था कि इस बार आप को सरप्राइज दें. इसलिए हम लोगों ने दिन में आप को नहीं बताया. क्या आप को अच्छा नहीं लगा?’’ रजनी की नटखट बेटी बोल उठी. ‘‘अरे नहीं बेटा, सच कहूं तो तुम लोगों का यह सरप्राइज मुझे बहुत अच्छा लगा. बस, अफसोस इस बात का है कि अगर तुम लोगों के आने के बारे में दिन में ही पता चल जाता तो रज्जो की मनपसंद देशी घी की बालूशाही लेता आता,’’ विमल ने कहा. ‘‘वो तो मैं ने 2 किलो बालूशाही शाम को मंगवा ली थीं और वह भी आप की मनपसंद दुकान से. मुझे पता नहीं है कि बहन का तो नाम होगा लेकिन सब से पहले आप ही बालूशाही खाएंगे,’’ श्रद्धा ने कहा ही था कि सब के कहकहों से घर फिर गूंज उठा.खाना निबटने के बाद श्रद्धा ने  उन सब की रुचि के अनुसार जमीन पर कई गद्दे बिछवा कर उन पर मसनद, कुशन, तकिये व कंबल रखवा दिए. और ढेर सारी मूंगफली मंगा ली थीं. उसे पता था कि भाईबहन का रिश्ता तो स्नेहपूर्ण है ही, बूआ का व्यवहार भी सारे बच्चों को बेहद अच्छा लगता है. जब भी सब लोग इकट्ठे होते हैं तो फिर देर रात तक बातें होती रहती हैं. विशेषकर जाड़े के इस मौसम में देर रात तक मूंगफली खाने के साथसाथ बातें करने का आनंद की कुछ अलग होता है.

रजनी अपने समय की बातें इस रोचक अंदाज में बता रही थी कि बच्चे हंसहंस कर लोटपोट हुए जा रहे थे. विमल और श्रद्धा भी इन सब का आनंद ले रहे थे. बातों का सिलसिला रोकते हुए रजनी ने विमल से कहा, ‘‘अच्छा भैया, एक बात कहूं, ये बच्चे मेरे साथ पिकनिक मनाना चाह रहे हैं. कल रविवार की छुट्टी भी है. अब इतने दिनों बाद अपने शहर आई हूं तो मैं भी भाभी के साथ शौपिंग कर लूंगी. इसी बहाने हम सब मौल घूमेंगे, मल्टीप्लैक्स में सिनेमा देखेंगे और समय मिला तो टूरिस्ट प्लेस भी जाएंगे. अब पूरे दिन बाहर रहेंगे तो हम सब खाना भी बाहर ही खाएंगे. बस, तुम्हारी इजाजत चाहिए.’’ विमल ने देखा कि उस के बच्चों ने अपनी निगाहें झुकाई हुई थीं. यह उन की ही योजना थी लेकिन शायद वे सोच रहे थे कहीं विमल मना न कर दें. ‘‘ठीक है, तुम लोगों के घूमनेफिरने में मुझे क्यों एतराज होगा. मैं सुबह ही ट्रैवल एजेंसी को फोन कर पूरे दिन के लिए एक बड़ी गाड़ी मंगा दूंगा. तुम लोग अपना प्रोग्राम बना कर कल खूब मजे से पिकनिक मना लो. हां, मैं नहीं जा पाऊंगा क्योंकि कल दुकान खुली है,’’ विमल ने सहजता से कहा.

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तीनों बच्चों ने विमल की ओर आश्चर्य से देखा. शायद उन को इस बात की तनिक भी आशा नहीं थी कि विमल इतनी आसानी से हामी भर देंगे क्योंकि जाने क्यों उन लोगों के मन में यह धारणा बनी हुई थी कि उन के पिता कंजूस हैं. इस का कारण यह था कि उन के साथी जितना अधिक शौपिंग करते थे, अकसर ही मोबाइल फोन के मौडल बदलते थे या आएदिन बाहर खाना खाते थे, वे सब उस तरीके से नहीं कर पाते थे. हालांकि विमल को भी अपने बच्चों की सोच का एहसास तो हो गया था पर उन्होंने बच्चों से कभी कुछ कहा नहीं था. लेकिन विमल को यह जरूर लगता था कि बच्चों को भी अपने घर के हालात तो पता होने ही चाहिए, साथ ही अपनी जिम्मेदारियां भी जाननी चाहिए, क्योंकि अब वे बड़े हो रहे हैं. आज कुछ सोच कर विमल पूछने लगे, ‘‘रज्जो, यह प्रोग्राम तुम ने बच्चों के साथ बनाया है न?’’

रज्जो ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘बच्चों को लग रहा था कि तुम मना न कर दो, इसलिए मैं भी जिद करने को तैयार थी पर तुम ने तो एक बार में ही हामी भर दी.’’ इस पर विमल मुसकराए और एकएक कर सब के चेहरे देखने के बाद सहज हो कर कहने लगे, ‘‘रज्जो, तुम शायद इस का कारण नहीं जानती हो कि बच्चों ने ऐसा क्यों कहा होगा. जानना चाहोगी? इस का कारण यह है कि मेरे बच्चे समझते हैं कि मैं, उन का पिता, कंजूस हूं.’’ विमल का इतना कहना था कि तीनों बच्चे शर्मिंदा हो गए और अपने पिता से निगाहें चुराने लगे. एक तो उन को यह पता नहीं था कि उन के पिता उन की इस सोच को जान गए हैं, दूसरे, विमल द्वारा इतनी स्पष्टवादिता के साथ उसे सब के सामने कह देने से वे और भी शर्मिंदगी महसूस करने लगे थे. विमल किन्हीं कारणों से ये सारी बातें करना चाह रहे थे और संयोगवश, आज उन को मौका भी मिल गया.

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दरार: भाग 1- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

ऐसे आदमी पर क्या गुजरती होगी जो अपनी पत्नी को किसी गैरमर्द के साथ रंगेहाथ पकड़ ले और रंगेहाथ भी इस तरह कि पत्नी यह बहाना भी न कर सके कि उस के साथ जबरदस्ती हो रही थी. पहलेपहल उस के पास जब फोन आया तो उसे लगा कि कोई उस के साथ भद्दा मजाक कर रहा है. उस ने फोन करने वाले को डांटाफटकारा भी. उसे कौल ट्रैस करवा कर पुलिस में देने की धमकी भी दी. लेकिन खबर देने वाला पूरी तरह गंभीर था. उस ने कहा, ‘‘आप की पत्नी के अवैध संबंध आज नहीं तो कल उजागर होंगे ही. मैं आप को पहले सूचित कर रहा हूं ताकि आप समय से पहले सचेत हो जाएं. फैलतेफैलते खबर आप तक पहुंची तो आप की ही बदनामी होगी.’’

‘‘क्या सुबूत है तुम्हारे पास?’’ उस ने प्रश्न किया.

‘‘सुबूत तलाशना मेरा काम नहीं है. आप का घर ऐयाशी का अड्डा बन चुका है. सुबूत तुम खुद तलाश करो.’’ और फोन काट दिया गया.

फोन करने वाले की बात पर उसे यकीन न आना स्वाभाविक था. 14 वर्ष हो चुके थे उस के विवाह को. एक बेटा भी था जो अभी स्कूल में पढ़ रहा था. सुखी दांपत्य था उन का. ऐसे में उस की पत्नी के बहकने का कोई कारण नहीं था. घर में सारी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. स्वयं का घर था. अच्छा वेतन था. अच्छी नौकरी थी उस के पास. बैंक में मैनेजर था वह. लेकिन कोई उसे इस तरह फोन क्यों करेगा? उस की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है. 13 वर्ष का बेटा था उस का. पत्नी की उम्र भी 35 वर्ष के लगभग थी. स्वयं उस की आयु 45 वर्ष थी. सुना था उस ने कि इस उम्र में औरत एक बार फिर से युवा होती है. औरत में वही लक्षण उभरते हैं जो 17-18 की उम्र में. लेकिन वह इस बात का पता कैसे लगाए? दिमाग में बैठे शक को कैसे साबित करे? पत्नी के हावभाव, व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं था. जैसी वह पहले थी वैसी अब भी है.

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उस के चेहरे पर परेशानी के भाव देख कर उस के सब से घनिष्ठ मित्र रमन ने पूछा, ‘‘क्या बात है रमेश? कोई परेशानी हो तो कहो?’’

रमन उस का सब से निकटवर्ती मित्र था. दोनों अपनी परेशानियां, अपने दुख एकदूसरे को बता कर मन हलका करते थे. बचपन से साथ में पढ़ेलिखे, साथ में खेले और आज एक ही बैंक में कार्यरत थे. फर्क सिर्फ इतना था कि वह जिस बैंक में मैनेजर था, रमन उसी बैंक में अकाउंटैंट था.

‘‘कुछ नहीं, पारिवारिक कारण है,’’ रमेश ने टालने के अंदाज में कहा. बता कर करता भी क्या? थोड़ी देर के लिए मन हलका हो जाता और यह डर बढ़ जाता कि उसे बात पता चली तो वह किसी न किसी से कहेगा जरूर चाहे वह कितना भी घनिष्ठ मित्र हो. किसी से न कहने की कसम भी उठा ले तो भी ऐसी बातें आदमी अपने तक रख नहीं सकता.

रमेश दुखी था, उदास था. उस के दिलोदिमाग में भयंकर  झं झावात चल रहे थे. न घर में मन लग रहा था न औफिस में. वह करे तो क्या करे? इस सचाई का पता कैसे लगाए? किसी को तो बताना पड़ेगा. तभी तो कोई रास्ता मिलेगा और मन हलका भी होगा. आखिर कब तक वह अंदर ही अंदर घुटता रहेगा. फिर समाधान निकलेगा कैसे? नहीं… किसी को बताने, पूछने से पहले उसे इस बात को प्रत्यक्ष देखना होगा. कभीकभी आंखें भी धोखा खा जाती हैं, फिर यह तो किसी की फोन पर दी गई खबर मात्र है जो गलत हो सकती है.

रमेश अब बिना बताए टाइमबेटाइम घर आने लगा और घर भी इस तरह आता जैसे दबेपांव कोई चोर घुसता है. अचानक घर आने से रमेश की पत्नी के चेहरे पर बेचैनी सी दिखाई देने लगी. हालांकि घर में उस समय कोई नहीं था. लेकिन पत्नी विभा के चेहरे पर आई हड़बड़ाहट ने उस के शक को यकीन में बदल दिया. विभा ने पूछा, ‘‘अचानक, कैसे? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘क्यों, क्या मु झे अपने घर आने के लिए इजाजत लेनी पड़ेगी?’’

‘‘पहले तो कभी नहीं आए दोपहर में. वह भी बैंक के समय पर.’’

‘‘मेरे आने से तुम्हें कोई तकलीफ है?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. पहले कभी नहीं हुआ ऐसा, इसलिए पूछ लिया.’’

‘‘पहले तो बहुतकुछ नहीं हुआ, जो अब हो रहा है,’’ रमेश ने कड़वाहटभरे स्वर में कहा. विभा ने कोई उत्तर नहीं दिया.

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रमेश ने बारीकी से बैडरूम का आंखों से मुआयना किया. लेकिन सबकुछ ठीक था अपनी जगह पर. वह पलंग पर लेट गया. शायद किसी अन्य व्यक्ति का, कुछ देर पहले होने का, उस के जिस्म की गंध का कुछ अनुमान मिले. किंतु वह स्त्री नहीं था. इन बातों को औरत की छठी इंद्रिय भाप लेती है. तभी उसे तकिए के पास एक मोबाइल नजर आया. यह मोबाइल किस का हो सकता है. रमेश ने मोबाइल उठाया ही था कि अचानक चाय ले कर विभा कमरे में आ गई. उस ने तीव्रता से मोबाइल यह कह कर ले लिया कि मेरी सहेली का मोबाइल है. जल्दी में छोड़ गई होगी.

‘‘अगर तुम्हारी सहेली का मोबाइल है तो चील की तरह  झपट्टा मार कर क्यों छीना?’’

‘‘मैं ने  झपट्टा नहीं मारा. सहज ही लिया है. तुम तिल का ताड़ बनाने लगे हो आजकल,’’ विभा ने संभल कर उत्तर दिया.

‘‘तुम्हारी सहेली आई थी?’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम ने बताया नहीं?’’

‘‘वह तो अकसर आती है. इस में बताने वाली क्या बात है?’’ विभा ने सहज हो कर उत्तर दिया. रमेश पूछने ही वाला था कि तुम्हारी सहेली का नाम क्या है? लेकिन वह यह सोच कर चुप हो गया कि पूछताछ से पत्नी को शक हो सकता है. फिर वह सावधान हो जाएगी.

रमेश बैंक में अपनी सीट पर काम कर रहा था. तभी मोबाइल की घंटी बजी. उस तरफ से वही स्वर सुनाई दिया.

‘‘बहुत चालाक है तुम्हारी बीवी. उसे पकड़ना है तो ऐसा समय चुनो जब तुम्हारा बेटा स्कूल में हो.’’

‘‘यदि इतने शुभचिंतक हो तो तुम्हीं बता दो कि कौन, कब आता है?’’

‘‘बीवी तुम्हारी बेवफाई करे और जानकारी मैं दूं?’’

‘‘तो फिर फोन कर के खबर क्यों देते हो?’’

‘‘रंगेहाथ पकड़ोगे तो कोई बहाना नहीं बना पाएगी, वरना स्त्री चरित्र है, रोधो कर स्वयं को सच्चा और जमाने को  झूठा साबित कर देगी.’’

अगले भाग में पढ़ें- ‘‘तुम हत्या कर दोगे? इतना प्यार करते हो मुझे…

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दरार: भाग 2- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

‘‘तुम क्या मेरे घर की चौकीदारी करते हो? तुम्हें कैसे पता कि मेरे घर में कौन आता है, क्यों आता है?’’ रमेश ने चिढ़ कर कहा. दूसरी तरफ से हंसी की आवाज आई और फोन कट गया.

रमेश सोचता रहा, सोचता रहा और एकदम से उस के दिमाग में आइडिया आया. विभा को लगे कि वह घर पर नहीं है, किंतु हो वह घर पर ही.

दूसरे दिन सुबह उस ने अपनी   योजना को अमलीजामा पहनाना  शुरू कर दिया. उस ने कार स्टार्ट की, फिर बंद की. फिर स्टार्ट की, फिर बंद की. इस तरह उस ने कई बार किया. फिर  झल्ला कर कहा, ‘‘कार स्टार्ट नहीं हो रही है. मैं बाहर सड़क से औटो ले लूंगा.’’

विभा उस वक्त बाथरूम में पहुंच चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘दरवाजा अटका कर चले जाना. मैं बाद में बंद कर लूंगी. रमेश ने जोर से दरवाजा खोला, फिर जोर से खींच कर बंद किया और बाहर जाने के बजाय बैडरूम में रखी बड़ी अलमारी के पीछे छिप गया. अपने ही घर में छिपना कितना पीड़ादायक होता है अपनी पत्नी को गैरपुरुष के साथ रंगेहाथ पकड़ना. बेटा तरुण पहले ही स्कूल जा चुका था. अब उसे सांस रोके छिप कर खड़े इंतजार करना था उस भीषण दृश्य का.

रमेश ने मन ही मन सोचा यदि उस की पत्नी ने उसे देख लिया तो क्या सोचेगी उस के बारे में. और यदि यह सच न हुआ, तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाएगा. विचारों के ऊहापोह में उसे पता भी न चला कि उसे दम साधे खड़े हुए कितना वक्त गुजर चुका है. काफी समय तक उसे अपनी पत्नी के इस कमरे में आनेजाने की आहट मिलती रही. फिर पत्नी के मोबाइल की रिंगटोन सुनाई दी. विभा ने मोबाइल उठाया. उस तरफ से कौन बोल रहा था, क्या बोल रहा था, यह उसे विभा की बात से सम झ आ गया.

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‘‘रास्ता साफ है. गाड़ी चालू नहीं हो रही थी. पैदल ही निकल गए. लेकिन जरा चौकस रहना. मु झे लगता है उसे शक हो गया है. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’

फिर विभा गुनगुनाने लगी. थोड़ी देर बाद दरवाजे की घंटी बजी. फिर एक  30-32 वर्ष के आकर्षक गौरवर्ण युवक ने बैडरूम में प्रवेश किया. दोनों लिपट गए. फिर दोनों के मध्य रतिक्रिया आरंभ हुई. दोनों निढाल हो कर बिस्तर पर लेट गए.

‘तुम घबराना मत,’’ युवक ने उसे धैर्य बंधाया, ‘‘रास्ते का कांटा बनेगा तो कांटे को निकाल फेंकना मु झे आता है.’’

‘‘तुम हत्या कर दोगे? इतना प्यार करते हो मुझे,’’ विभा ने लिपटते हुए कहा.

रमेश का खून खौलने लगा. उस के दिल में आया कि कहीं से एक रिवौल्वर का इंतजाम करे और दोनों को गोली से उड़ा दे. यही सजा है दोनों की. किंतु खौलता हुआ रक्त उसे जमता हुआ जान पड़ा. उस के हाथपैर कांपने लगे.  झूठ की ताकत का भी जवाब नहीं, कितनी बेवफाई और ताकत से भरा हुआ था. बेचारा सच अपने ही घर में छिपा हुआ दोनों की प्रणयलीला देख रहा था. फिर मिलने का वादा कर के युवक चला गया और विभा ने कमरा ठीकठाक किया व बिस्तर पर लेट गई. लेटते ही उस के खर्राटे कमरे में गूंजने लगे.

दरवाजे को आहिस्ता से खोल कर रमेश बाहर निकल गया. जो उस ने देखा, जो उस ने भोगा, उस मृत्युतुल्य कष्ट में उस की सम झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. खत्म कर दे दोनों को और जेल चला जाए जीवनभर के लिए या खुद को खत्म कर ले और पीछा छुटाए अपने इस टूटे, हारे, धोखा खाए जीवन से? किंतु दोनों ही स्थितियों में उस के बेटे का क्या होगा? इन लोगों का क्या है इन्हें तो खुली छूट मिल जाएगी किंतु सजा भुगतेगा उस का बेटा. नष्ट हो जाएगा उस के बेटे का भविष्य.

उसे लगा कि अब चाहे जो भी हो, उसे रमन से बात करनी चाहिए कि वह आगे क्या करे? ऐसा ही चलने दे? आंख पर पट्टी बांध कर जीना शुरू कर दे? सब बातों से अनजान बना रहे? उसे लगा कि रमन को बता देना चाहिए. कोई तो हो इस दुर्दांत घड़ी में अपना. उस ने रमन को सबकुछ बता दिया. उस की आंखों से आंसू बहते रहे. उस का कहना जारी रहा और रमन ने सब सुनने के बाद अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘हर समस्या का हल है. तुम क्या चाहते हो?’’

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‘‘मु झे कुछ सम झ में नहीं आ रहा है,’’ रमेश ने विषादभरे स्वर में कहा.

‘‘तो, चलो मेरे साथ,’’ रमन ने कहा और बिना प्रश्न पूछे रमेश उस के पीछे छोटे बच्चे की तरह चल पड़ा. रमेश को रमन एक कौफीहाउस में ले गया और उस से कहा, ‘‘मैं जो पूछूं, सचसच बताना. मैं तुम्हारा दोस्त हूं, एक अच्छा समाधान निकालने की कोशिश करूंगा.’’

‘‘पूछो.’’

‘‘तुम्हारे अंदर कोई कमी है. मेरा मतलब…’’

‘‘कमी होती तो मेरे साथ वह इतना लंबा समय न बिताती. मत भूलो कि मैं एक बच्चे का बाप हूं.’’

‘‘यह सब कब से चल रहा है.’’

‘‘मु झे पता नहीं.’’

‘‘तुम्हें शक कैसे हुआ?’’

‘‘किसी ने फोन पर जानकारी दी.’’

‘‘जो सही निकली.’’

‘‘हां.’’

‘‘तुम क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं उन दोनों का कत्ल करना चाहता हूं.’’

‘‘यह मूर्खता होगी.’’

‘‘तो तुम बताओ, क्या करूं मैं?’’

‘‘मेरे खयाल से तुम्हारा इस संबंध में अपनी पत्नी से बात करना उचित नहीं होगा. यदि तुम बिना सुबूत के तलाक देने की बात करोगे, तो हो सकता है तुम्हारी पत्नी तुम्हें दहेज प्रताड़ना के केस में अंदर करवा दे. मेरा एक मित्र है जो जासूसी का काम करता है. उस के पास चलते हैं. एक बार सुबूत हाथ लग गए तो फिर तुम जैसा चाहे, करो.’’

‘‘तो चलते हैं तुम्हारे जासूस मित्र के पास.’’

इस समय रमेश और रमन टाइगर डिटैक्टिव एजेंसी में बैठ कर जासूस टाइगर को सारी बात सुना रहे थे. पूरी बात सुनने के बाद जासूस टाइगर ने अपनी फीस 10 हजार रुपए एडवांस बताई और सुबूत मिलने के बाद 30 हजार रुपए. जो रमेश ने मंजूर कर ले…

‘‘लेकिन आप सुबूत जुटाएंगे कैसे?’’ रमेश ने पूछा.

अगले भाग में पढ़ें-  अपने बेटे की खातिर, तो मैं तो स्त्री हूं…

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दरार: भाग 4- रमेश के कारण क्यों मजबूर हो गई थी विभा

लखनपाल ने कहा, ‘‘तुम मेरे दामाद हो. मैं तुम से अपनी बेटी की हरकतों के लिए माफी मांगता हूं. किंतु बेवफाई मेरी बेटी ने नहीं, तुम्हारी पत्नी ने की है. शादी के बाद बेटी पराई हो जाती है. मैं अपनी बेटी तुम्हें सौंप चुका हूं और इस बात को 15 वर्ष हो चुके हैं. तुम्हारी सास अब इस दुनिया में नहीं है. नहीं तो उस से कहता बेटी से बात करने को. मैं पिता हूं, मेरा इस मसले को ले कर बेटी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा. अपनी पत्नी को कैसे राह पर लाना है, उस के बहके हुए कदमों को कैसे संभालना है, यह तुम्हारी जिम्मेदारी है. फिर भी तुम कहते हो, तो मैं उसे सम झाऊंगा.’’

रमेश को यहां से भी निराशा हाथ लगी. पिता ने अपनी बेटी को फोन पर सम झाया कि अपना घर, अपना पति, बच्चे, एक औरत के लिए सबकुछ होना चाहिए. तुम जिस रास्ते पर चल रही हो, वह विनाश का रास्ता है. अभी भी वक्त है, मृगतृष्णा के पीछे मत दौड़ो. लेकिन वासना में डूबा व्यक्ति कहां सम झ पाता है? विभा को सम झ में आ गया कि उस के पति को उस के अवैध संबंधों की पूरी जानकारी है. उस ने अंतिम फैसले के उद्देश्य से सुमेरचंद को फोन लगा कर संबंधों की खुलती पोल के विषय में जानकारी देते हुए कहा, ‘‘तुम मु झ से कितना प्यार करते हो?’’

‘‘बहुत.’’

‘‘क्या तुम मु झ से शादी कर सकते हो?’’

‘‘मैं शादीशुदा हूं. मेरी 2 बेटियां हैं. तुम भी शादीशुदा हो और एक बच्चे की मां. मेरी पत्नी को भी हमारे संबंधों की जानकारी हो चुकी है.’’

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‘‘तुम अगर सच में मु झ से प्यार करते हो तो मेरे प्यार की खातिर छोड़ दो सबकुछ. मैं भी तुम्हारे लिए सब छोड़ने को तैयार हूं. भगा ले जाओ मु झे और कर लो मु झ से शादी.’’

‘‘मैं अपनी पत्नी और बेटियों को नहीं छोड़ सकता. हां, मैं तुम से प्यार करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘जब शादी नहीं कर सकते, तो संबंधों को आगे बढ़ाया क्यों?’’

‘‘मैं ने शादी का कभी तुम से वादा नहीं किया. न हमारे बीच में कभी कोई शादी की बात हुई. संबंध रखना हो तो ठीक. अन्यथा ऐसे रिश्ते को समाप्त कर लो.’’

‘‘फिर मैं तुम्हारी क्या हुई? रखैल? मन बहलाने का साधन?’’

‘‘जैसा तुम सम झो. तुम्हारे लिए मैं अपना घर नहीं तोड़ सकता. दिल बहलाना और बात है, शादी करना बहुत बड़ी बात है.’’

‘‘तुम मु झे धोखा दे रहे हो?’’

‘‘मैं तुम्हें नहीं. अपनी पत्नी को धोखा दे रहा हूं और तुम अपने पति को. जब तुम अपने पति की नहीं हुईं तो मैं तुम से कैसे वफा की उम्मीद रखूं. मैं तुम से अभी और इसी वक्त संबंध तोड़ता हूं,’’ इतना कह कर सुमेरचंद ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

उफ, यह मैं ने क्या कर दिया? बहके हुए जज्बातों ने पूरे जीवन पर ग्रहण लगा दिया. कैसे सामना करूंगी अपने पति का. एक गलत कदम ने अर्श से फर्श पर ला पटका मु झे. न मैं अच्छी मां बन सकी, न अच्छी पत्नी. अब क्या होगा? कौन सी विपत्ति आती है, इस का, बस, इंतजार किया जा सकता है. पति के पास मेरी चरित्रहीनता के पूरे सुबूत हैं. यह क्या कर दिया मैं ने. अपने हाथों से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी. अपने हाथों से अपना ही घर जला दिया.

तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, ‘‘हैलो.’’

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘पति छोड़ दे, तो मैं तुम्हें रखने को तैयार हूं.’’

उस ने फोन जोरों से पटक दिया और चीखी, ‘‘मैं वेश्या नहीं हूं.’’

‘‘तो क्या हो?’’ आवाज की दिशा में पलट कर देखा विभा ने. सामने रमेश खड़ा था और पूछ रहा था, ‘‘तो क्या हो?’’

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विभा पति के पैरों पर गिर गई. उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मु झे बहका दिया था सुमेर ने. माफ कर दो मु झे.’’

‘‘तुम कोई दूध पीती बच्ची नहीं हो, जो किसी ने कहा और तुम ने मान लिया,’’ रमेश ने क्रोध से चीख कर कहा, ‘‘तुम ने जो किया, अपनी मरजी से किया.’’

‘‘मु झे माफ कर दीजिए. मु झे एक मौका दीजिए,’’ विभा गिड़गिड़ाई.

‘‘तुम ने मेरे घर को अपनी ऐयाशी का अड्डा बना दिया. मैं तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकता.’’

‘‘अपने बेटे की खातिर मु झे माफ कर दीजिए.’’

‘‘बेटे का खयाल होता तो ऐसी गिरी हुई हरकत न करतीं.’’

‘‘मैं आप से माफी मांगती हूं. आप के पैर पड़ती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरा विश्वास तोड़ा है. तुम ने बेवफाई की है मु झ से. तुम ने प्रेम की, घर की, परिवार की मर्यादा को नष्ट किया है. तुम क्षमा के योग्य नहीं हो.’’

विभा क्षमा मांगती रही. रमेश उसे खरीखोटी सुनाता रहा. तभी बेटा स्कूल से आ गया. पिता को गुस्से में और मां को रोते देख बेटा रोने लगा, ‘‘क्या हुआ मम्मी? पापा आप क्यों गुस्से में हैं?’’

बेटे का चेहरा सामने पड़ते ही रमेश का गुस्सा शांत हो गया. विभा ने बेटे को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अपने पापा से कहो, मु झे माफ कर दें. पत्नी को न सही, मां को ही माफ कर दें.’’ मां को रोते देख बेटे ने अपने पिता से रोते हुए कहा, ‘‘पापा, मम्मी को माफ कर दीजिए. अगर आप का गुस्सा शांत न हो तो मेरी पिटाई कर दीजिए. मु झे डांट लीजिए.’’

बेटे को रोता देख पिता पिघल गया. विभा बेटे को खाना खिलाने ले गई. थोड़ी देर बाद चाय बना कर पति को दी. रमेश ने कहा, ‘‘हमारा बेटा हम दोनों के बीच सेतु है. एक छोर पर तुम, दूसरे छोर पर मैं. मैं तुम्हें बेटे की खातिर तलाक नहीं दूंगा. क्योंकि मैं जानता हूं बेटे को हम दोनों की जरूरत है. लेकिन, मैं तुम्हारी बेवफाई भूल नहीं सकता. मैं तुम्हारी चरित्रहीनता को चाह कर भी नहीं भूल पाऊंगा. हम एक ही छत के नीचे तो रहेंगे, लेकिन वह प्रेम, वह विश्वास अब संभव नहीं है मेरे लिए.’’

विभा फिर से घर को घर बनाने में जुट गई. गुजरते वक्त के साथ मन के भेद मिटे तो सही काफी मात्रा में, लेकिन रमेश के मनमस्तिष्क में एक दरार बन गई हमेशा के लिए.

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भाई का  बदला: भाग 3- क्या हुआ था रीता के साथ

रमन अपने भाई की ओर  सवालिया निगाहों से देखने लगा. अमन ने उसे इशारों से रीता को हां कहने को कहा.

“ठीक है, तब परसों संडे को  शाम ठीक 5 बजे  मेरे कहे समय और पते पर 7 लाख कैश ले कर मिलो.  इस के बाद भी हम अच्छे दोस्त बने रहेंगे, यह मेरा वादा है.  मुझे  अच्छे कालेज में एडमिशन के लिए पैसों की सख्त जरूरत है.“

“ओके, मैं पैसे ले कर आ जाऊंगा.“

“याद रखना, यह बात सिर्फ तुम्हारे और मेरे बीच रहनी चाहिए  वरना मैं तुम्हारे फोटो की कौपी किसी दूसरे दोस्त को फौरवर्ड कर दूंगी.  कुछ ऐसावैसा किया तो वह तुम्हें एक्सपोज कर देगा. हां, एक जरूरी बात, अगर मैं घर से बाहर नहीं निकल सकी तो मेरा बड़ा भाई जा सकता है.   उस के पास सौ रुपए का यह नोट होगा, इस का नंबर नोट कर लो.“

“नहीं, मैं किसी को नहीं बताऊंगा और तुम्हारे दिए समय व पते पर आ जाऊंगा. पर कोई दूसरा आए तो उस के पास तुम्हारा ही फोन होना चाहिए जिस में मेरी तसवीरें हैं,“  रमन ने कहा.

“डोंट वरी, मुझे आम खाने से मतलब है, गुठली गिनने से नहीं. मुझे मेरी रकम चाहिए और कुछ नहीं.“

अगले दिन रीता ने फोन कर रुपयों के साथ आने के समय और स्थान का पता बता दिया. रमन को शहर के पूर्वी छोर पर एक जगह बुलाया. वह जगह अभी डैवलप्ड नहीं थी. कुछ घर बन चुके थे जिन में इक्केदुक्के   लोग रह रहे थे और काफी घर बन रहे थे. वहां अभी सड़कें भी पक्की नहीं बन सकी थीं. रीता ने रमन को एक निर्माणाधीन घर का पता दे कर वहां आने को कहा. अमन ने अपनी कंपनी के एक स्टाफ  को वहां जा कर उस जगह को देखने को कहा. उस ने स्टाफ को सिर्फ इतना बताया कि वहां उसे कुछ प्लौट खरीदना है. अमन के स्टाफ ने आ कर बताया कि उस मकान के 3 ओर अभी गन्ने के खेत थे.  यह जानने के बाद अमन बहुत खुश हुआ और उस ने रमन, शालू और दिया को भी इस की जानकारी दे दी.

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अमन ने बाकी  तीनों लोगों के साथ मिल कर एक प्लान बनाया और सख्त हिदायत दी कि और किसी को इस प्लान की भनक न लगे.  उस ने कहा, “रीता अपने ही बने जाल में फंसने जा रही है. उस ने जगह ऐसी चुनी है कि हम लोग मिल कर उस की घेराबंदी कर लेंगे.

एक ब्रीफकेस में कुछ असली रुपए रख कर उन के नीचे सिर्फ सफ़ेद पेपर के टुकड़े डाल दिए गए.  फैसला हुआ कि  अमन, शालू और दिया तीनों रीता के बताए गंतव्य स्थान पर पूर्व नियोजित समय से काफी पहले से ही  निकट के खेत में छिप जाएंगे. उस दिन कंस्ट्रक्शन वर्कर की छुट्टी थी. इलाका लगभग वीरान था.  रमन का फोन अमन के पास रहेगा और रीता का मैसेज मिलते ही रमन ब्रीफकेस ले कर रीता के पास जाएगा. रमन के पास अमन का फोन होगा और जब रीता का फोन आएगा, अमन कौल रिसीव करेगा और रमन, बस, होंठ चलाते हुए बात करने का उपक्रम करते हुए रीता की और बढ़ेगा. अगर  दिशानिर्देश आदि कोई विशेष जानकारी देनी होगी, तो अमन या शालू उसे रमन को मैसेज कर देंगी.

रीता ने अपनी समझ में  पूरी होशियारी बरती. उस ने खुद न जा कर किसी दूसरे लड़के को भेजा जिसे रीता ने अपना भाई कहा था. रमन ने उस से 100 रुपए के नोट का नंबर मिलाया. फिर कुछ देर तक उसे  इधरउधर की बातों में उलझाए  रखा. उस ने रमन से जल्द ही ब्रीफकेस देने को कहा. रमन ने भी उस से रीता का फोन देने को कहा ताकि वह फोटो डिलीट कर दे. उस ने रीता का फोन रमन को दिया, तभी अचानक अमन और दिया को अपनी तरफ आते देखा. वह घबरा कर भागने लगा पर दिया के ट्वाइकांडों  के एक झटके से वह जमीन पर औंधेमुंह गिर पड़ा.

दिया, अमन और शालू ने मिल कर उस पर काबू पा लिया. अमन बोला, “तुम रीता के भैया हो न, अपनी बहन को कौल कर यहां बुलाओ. जैसा मैं कहूं, वैसा ही उसे बोलना होगा.“

“काहे का भैया? मैं तो उस का प्रेमी हूं. भैया  नहीं, होने वाला सैंया  हूं. रीता भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है.“

“तुम उस के जो  भी हो, उसे जल्द यहां आने को कहो.“

रीता के प्रेमी ने फोन कर  उस से कहा, “रीता, यह कौन सी जगह तुमने चुनी है? रुपए तो पूरे मिल गए पर मुझे सांप ने काट लिया है. मैं अब और चल नहीं सकता हूं. पता नहीं  सांप जहरीला था या नहीं पर बहुत दर्द और जलन हो रही है . जल्दी से मुझे ले चलो यहां से.“

तभी रीता एक पुरानी कार चलाते हुए वहां आई. वहां रमन के अलावा अन्य लोगों को देख वह डर गई. उसे देख कर प्रेमी बोला, “घबराओ नहीं, ये लोग हमारी मदद कर रहे हैं.“

रीता के आते ही दिया के दूसरे पैतरे ने उसे भी चारो खाने चित कर दिया. रीता के पास से दूसरा फोन भी ले लिया गया. रीता और उस के प्रेमी ने कहा, “हम दोनों भाग कर शादी करने जा रहे थे. अपनी नई जिंदगी की शुरुआत के लिए रुपयों की जरूरत थी, इसीलिए हम ने  ऐसा किया है. अमन ने ऐसा एक  कुबूलनामा लिखवा कर दोनों के साइन ले लिए.“

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अमन बोला, “तुम ने रमन के फोटो कहांकहां भेजे हैं?“

“अभी तक कहीं नहीं भेजे हैं. रमन रुपए न देता, तो फिर मजबूर हो कर भेज देती.“

शालू बोली, “आप लोग उस की चिंता न करें.  मैं ISP से सब पता कर लूंगी. वैसे भी, इस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है और कुबूलनामा पर साइन भी किए हैं. कुछ गड़बड़ होने पर दोनों जेल की हवा खाएंगे.“

फिर रमन और उस के साथ आए लोगों ने निर्माणाधीन मकान से रस्सियां ला कर दोनों के हाथ, पैर और मुंह बांध कर कार में बैठा दिया. ब्रीफकेस से असली रुपए निकाल कर अपने पास रख लिए. अमन कार ड्राइव कर रहा था, उस ने  रीता के  घर के सामने कार रोकी और रीता के फोन से ही उस के पापा को फोन किया, “आप की बेटी का कार ऐक्सीडैंट हो गया था. हम उसे ले कर आए हैं. हम नीचे कार में हैं. चोट ज्यादा नहीं लगी है, फिर भी उसे हौस्पिटल ले जाना जरूरी है.”

तब तक शालू और दिया भी दूसरी कार में आ गए थे. अमन और रमन  ने रीता और उस के   प्रेमी को  वहीँ छोड़ दिया. उन्होंने दोनों के फोन अपने पास रख लिए. चारों अपनी  कार में सवार हो कर चल दिए. उन लोगों ने बड़ी चालाकी से बिना एक धेला खर्च किए और बिना पुलिस की मदद से ब्लैकमेलर जोड़ी को उन की औकात बता दी.

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सफेद सियार: भाग 5- क्या अंशिका बनवारी के चंगुल से छूट पाई?

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

चलते समय एक बार और अंशिका के कंधे, सिर और गाल पर हाथ फेरता हुआ बनवारी चला गया.

पर, आज उसे न जाने क्यों बनवारी अंकल की नीयत में खोट नहीं दिखाई दिया. उसे तो औफिस इंचार्ज वाली कुरसी दिखाई दे रही थी.

फिर कंधे, सिर और गाल पर तो उस के पापा भी हाथ फेर लिया करते थे.

अगले दिन 2 बजे तक अंशिका अपने सारे प्रमाणपत्र फाइल में रख कर तैयार हो कर ड्राइवर का इंतजार कर रही थी. बहुत दिनों बाद जिस ढंग से उस ने मां के कहने पर उन की सुंदर सी साड़ी पहन कर अपने को सजायासंवारा था, उस से उस की सुंदरता इतनी निखर आई थी कि मां को उसे अपने पास बुला कर उस के कान के पीछे काजल का टीका लगा कर कहना पड़ा, “मेरी ये साड़ी पहन कर तू कितनी सुंदर लग रही है. मेरा ब्लाउज भी तुझे एकदम फिट आया है. तू तो शादीलायक हो गई है. काश, तेरे पापा और भैया…” कहतेकहते कुमुद रोने लगी.

अंशिका ने पास जा कर मां को संभाला. मुझे रो कर इंटरव्यू के लिए भेजोगी, तो मैं पास होने से रही. और मां रोने से होगा क्या… दिन में कितनी बार रोरो कर तुम अपना बुरा हाल…

अंशिका इतना ही कह पाई थी कि किसी ने बाहरी दरवाजा खटखटाया. अंशिका समझ गई कि उसे लेने बनवारी अंकल का ड्राइवर आ गया है.

उस ने जा कर दरवाजा खोला. जुगल ही था. सजीधजी अंशिका को देख कर वह ठगा सा खड़ा रह गया. ऐसी ही तो पत्नी पाने की चाह वह रखता था. और ये उस सियार के पास नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू देने जा रही है, जो कई मजबूर जीवों का खून चूस कर छोड़ चुका है.

उसे अपनी ओर अपलक यों देखता पा कर अंशिका बोली, “अरे जुगल, मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो? क्या कभी साड़ी पहने लड़की नहीं देखी…?”

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तभी कुमुद बाहरी दरवाजा बंद करने के इरादे से अंशिका के पीछे आ कर खड़ी हो गई. उन्होंने पूछा, ”क्या हुआ बेटी?”

“कुछ नहीं मां. जुगल किशोर नाम का यह ड्राइवर मुझे लेने आया है. मैं जा रही हूं. तुम ठीक से दरवाजा बंद कर लो.”

कुमुद को देखते ही जुगल ने हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते की, फिर अंशिका को अपने साथ वाली आगे की सीट पर बैठा कर कार को आगे बढ़ा ले गया.

यों तो अंशिका वाले घर से संस्था के औफिस तक का रास्ता बमुश्किल 30 मिनट का था, लेकिन जुगल ने थोड़े लंबे वाले रास्ते पर कार को मोड़ दिया, तभी अंशिका पूछ बैठी, “बनवारी लालजी वाला सेवा संस्थान का औफिस यहां से कितनी दूर है?”

“रीवा के न्यू टाउन आउटर इलाके में कृषि विकास प्राधिकरण के नवनिर्मित भवन के पास,” ड्राइवर जुगल ने बताया.

“लेकिन, वहां पहुंचने के लिए पीछे एक टर्न भी तो था, जिसे तुम ने छोड़ दिया. उस से मुड़ते तो हम थोड़ा जल्दी पहुंच जाते.”

“अरे, आप तो यहां के रास्तों से खूब परिचित हैं.”

“सालों से यहां रह रही हूं. यहीं पढ़ीलिखी हूं. खूब परिचित हूं रास्तों से.”

“रास्तों से भले ही परिचत हों, लेकिन आप यहां के इनसानों से परिचित नहीं हैं.”

“क्या मतलब है तुम्हारा…?

“मैं सीधेसीधे यह कहना चाहता हूं कि मेरा दिल आज से आप को चाहने लगा है. जिसे मेरा दिल चाहता है, उसे दलदल की तरफ जाने से रोकना मेरा कर्तव्य है.”

“तुम्हारे कहने का मतलब क्या है…?”

“मेरे कहने का मतलब यही है कि जिस बनवारी लाल के पास आप इंटरव्यू देने जा रही हैं, वह सफेदपोश भेड़िया है. न जाने कितनों का शोषण कर के वह उन की जिंदगी बरबाद कर चुका है. मैं अब किसी और की जिंदगी बरबाद होते नहीं देख सकता.”

“पहले मेरी भी उन के प्रति यही धारणा थी. तुम ने शायद सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर रखा है. मेरे पापा के वे तबके दोस्त हैं, जब मैं 14 साल की थी. वे मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं करेंगे. मैं उन के पास जा कर इंटरव्यू अवश्य दूंगी,” अंशिका अपनी बात पर अड़ गई.

आखिरकार ड्राइवर जुगल को बनवारी लाल नाम के सफेद सियार की मांद में अंशिका को भेजना पड़ा. लेकिन सावधानीवश उस ने वहां के गार्ड शुभम को फोन कर के कुछ निर्देश दे दिए.

इसलिए अंशिका का इंटरव्यू लेने के बहाने जब बनवारी लाल ने उसे साउंडप्रूफ केबिन के अंदर बने एक और केबिन में ले जाने से पहले शुभम को इंसट्रक्शन दिए, ”तुम बाहर ‘डू नोट डिस्टर्ब’ का बोर्ड लगा दो. और जब तक इंटरव्यू खत्म न हो जाए, किसी को भी अंदर मत आने देना.”

आज इंपोर्टेंट इंटरव्यू के बहाने से उन्होंने गार्ड को छोड़ कर सभी स्टाफ को छुट्टी दे रखी थी.

उधर, 10-15 मिनट ही बीत पाए थे कि बाहर से तेज कदमों से चलता हुआ ड्राइवर जुगल आया और शुभम के पीछे बाहर वाले केबिन के कांच के दरवाजे को धकियाता हुआ फिर अंदर वाले केबिन का दरवाजा लात, फिर कंधे की मदद से तोड़ता हुआ अंदर पहुंच गया. पीछेपीछे गार्ड शुभम भी था.

अंदर डरीसहमी, घबराई सी अंशिका बदहवास एक कोने में पेटीकोटब्लाउज में खड़ी थी. उस की साड़ी एक तरफ उतरी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था, अपनी इज्जत बचाने के लिए वह सघर्ष करने में जुटी पड़ी थी.

ड्राइवर जुगल को देखते ही अंशिका उस के पास आ कर लिपटते हुए बोली, “तुम सही कह रहे थे कि ये अंकल नहीं भेड़िया है. उधर अंडरवीयर और बनियान में ही अपना सफेद कुरतापाजामा उठा कर केबिन से बाहर जाने की फिराक में बनवारी को दरवाजे की तरफ सरकता देख गार्ड शुभम ने दरवाजा अंदर से बंद कर जुगल के साथ सोने के मूठ वाली छड़ से तब तक तुड़ाई की, जब तक उस ने कह नहीं दिया कि आज से वह किसी की भी इज्जत से खिलवाड़ नहीं करेगा.

अंशिका के पैर छू कर माफी मांगते हुए वह जुगल और शुभम के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा होते हुए बोला, “तुम दोनों इस बात को अपने तक ही रखना. मैं कल ही अंशिका के नाम वो वाला घर कर दूंगा और इस औफिस का भार भी उसे सौंप देता हूं.”

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कुछ देर बाद सब उस केबिन से इस तरह बाहर निकले, जैसे कुछ हुआ ही न हो.

अंशिका ने अपने को संवार लिया था और बनवारी लाल पिटने के बाद भी सामान्य सी अवस्था में बाहर आ कर अपनी रिवाल्विंग चेयर पर बैठते हुए अंशिका के लिए पहले से ही टाइप किए हुए अपायंटमेंट लैटर पर साइन करने में जुट गया.

ड्राइवर जुगल के साथ कार से वापस लौटते समय अंशिका ने कार एक सन्नाटे वाले पार्क के गेट पर रुकवा ली, फिर अंदर एक मोटे तने वाले पेड़ की आड़ में जुगल के आलिंगन में बंधते हुए वह बोली, “तुम मुझे आप नहीं अंशिका कह कर बुलाया करो. आज मेरी इज्जत तुम ने बचाई है. तुम्हारा प्यार और नई जिंदगी पा कर मैं धन्य हो गई.

“पर, एक बात बताओ, बनवारी अंकल ने मुझे अपायंटमेंट लेटर तो दे दिया है, लेकिन फिर उस की नीयत बिगड़ी तो…?”

“तुम पर क्या, अब तो किसी पर भी उस ने बुरी नजर डाली तो इस से भी ज्यादा हम उस की तुड़ाई करेंगे.”

“और उन्होंने तुम्हारे खिलाफ कोई केस बना कर जेल भिजवा दिया तो…?”

“अव्वल तो चरित्र से कमजोर और भ्रष्ट आदमी को अपनी इज्जत की चिंता ज्यादा रहती है, इसलिए वे किसी को फंसाने के बजाय अपने को बचाए रखने में ही भलाई समझता है.

“बनवारी के खिलाफ हम ने इतने सुबूत इकट्ठा कर रखे हैं कि वे हमें नहीं, बल्कि हम उन्हें जेल भिजवा सकते हैं.”

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सफेद सियार: भाग 4- क्या अंशिका बनवारी के चंगुल से छूट पाई?

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

अंशिका जो बड़े ध्यान से अब तक जुगल की बातें सुन रही थी, अचानक पूछ बैठी, “अच्छा जुगल, एक बात बताओ. तुम इतने उदास और गंभीर क्यों रहते हो?”

“इन सब के पीछे लंबी दास्तान है. शोषण, स्वार्थ और सफेदपोश दिखने वाले लोगों से मैं जितनी नफरत करता था, आज उन्हीं के बीच मजबूरी में ये नौकरी कर रहा हूं. मैं ही नहीं मेरा भाई शिवम, जो उन के औफिस या यों कहो कि पर्सनल सिक्योरिटी में रातदिन लगा रहता है. वह तो इन की काली करतूतें देख कर खून का घूंट पी कर रह जाता है.”

“काली करतूतें…? मैं कुछ समझी नहीं.”

“आप न ही समझिए तो अच्छा है. हम तो मजबूर हैं, इसलिए जमे हुए हैं. जिस दिन स्थितियां अनुकूल होंगी और फैक्टरियां खुल जाएंगी, उसी दिन ऐसी नौकरी को हम लात मार कर चले जाएंगे.”

अंशिका ने आगे पूछा, “तुम्हारे इस संस्थान में कुछ लड़कियां भी काम करती हैं क्या?”

“हां, कंप्यूटर में डाटा एंट्री का काम 3 लड़कियां करती हैं और एक मजबूर शादीशुदा लड़की को उन्होंने अभी कोई एक महीना पहले उस के पति की कोरोना से मौत हो जाने के बाद रखा है.”

“इन दिनों तो इस संस्थान ने हेल्थ वर्कर्स को अपौइंटमेंट कर के अस्पतालों में ड्यूटी पर भेजने का भी ठेका ले रखा है.”

जुगल के जाने के बाद अंशिका सोचने लगी, कंप्यूटर में डाटा एंट्री का कोर्स तो उस ने भी किया हुआ है और मैं यह काम अच्छे से कर भी सकती हूं. लेकिन, बनवारी अंकल की वो गंदी नीयत…

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कई बार उस का मन हुआ कि वह उन्हें फोन लगा कर पूछे, ‘अंकल, क्या मैं भी आप के संस्थान वाले औफिस में डाटा एंट्री औपरेटर के रूप में जौब पा कर कुछ इनकम कर सकती हूं?’

वह जानती थी कि कुछ महीनों पहले तक जो उसे देखने, छूने के बहाने प्यार करने के लिए बेचैन हो जाता था, वह उस की इतनी बात तो मान ही लेगा.

कुमुद की मनोदशा को समझते हुए उस ने इस विषय में अब तक कोई बात नहीं की थी. लेकिन, इस महीने के अंतिम दिन जब बनवारी का फोन अंशिका के पास आया, तो उस ने स्पीकर औन कर के मां को फोन पकड़ाते हुए धीरे से कहा, “बनवारी अंकल का फोन है. लो, बात कर लो.”

उधर से बनवारी की आवाज सुनाई दी, “भाभीजी, आप सोच रही होंगी कि मधुसूदन का ये कैसा दोस्त है, जिस ने उन के और बेटे के कोरोना के कारण जान गंवाने के बाद घर आ कर सुध तक नहीं ली. लेकिन, ऐसा नहीं है. मेरे समाजसेवी संस्थान के वर्कर्स लगातार अंशिका के संपर्क में थे. मैं ने 2-3 बार आप को फोन भी मिलाया, पर शायद अंशी ने काट दिया.”

उधर से इतना सुनते ही अंशिका ने फोन अपने हाथ में ले कर कहा, ”अंकल, मां वैसे ही इतने सदमे में थी. बड़ी मुश्किल से मैं उन्हें संभाले हुए थी. और आप की आवाज सुन कर वह फिर बीते हुए समय में चली जातीं, तब उन्हें संभालना और भी मुश्किल हो जाता, इसलिए मैं ने फोन…”

बात खत्म होने से पहले ही उधर से बनवारी की आवाज सुनाई दी, “मैं समझ सकता हूं अंशी. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. कल से लौकडाउन खत्म हो रहा है. मैं कल तुम्हारे घर आ रहा हूं. बोलो, तुम्हारे लिए क्या लेता आऊं. जलेबी या गरमागरम समोसे…”

“जो भी आप को अच्छा लगे ले आइए अंकल,” अपनी आवाज में पूरी मिठास घोलते हुए अंशिका ने कहा. इस समय तो उस ने बनवारी लाल के संस्थान में नौकरी करने का पक्का मन बना लिया था.

बनवारी लाल भला क्यों न आता. वह आया झक सफेद पठान सूट में. काले रंगे हुए बाल और मूंछ, सुनहरी मूठ वाली छड़ी.

आते ही बनवारी ने जलेबी और समोसे मुसकराते हुए अंशिका को पकड़ाए. पैकेट पकड़ाते समय अंशिका ने अपनी गुदाज हथेली पर बनवारी के उस रेशमी स्पर्श से मिलने वाले प्यार के संकेत को भांप लिया था. परंतु ना जाने क्यों उसे बुरा न लगा. अब कोई किसी को कुछ देगा तो ऐसा स्पर्श स्वाभाविक भी हो सकता है. उस ने अपने मन को समझाया.

इतना तो बनवारी रूपी सफेद सियार के लिए बहुत था कि वह अंशिका रूपी जिस बिल्ली पर कई सालों से घात लगाए बैठा था, वह खुद उस के करीब आने वाली है. इसलिए बनवारी को अपने सामने देख जब कुमुद मधुसूदन को याद कर के विलाप करने लगी, तो वह अपनापन दिखाते हुए बड़े मीठे शब्दों में बोला, “अब देखो न भाभी, होनी कितनी बलवान होती है. उस दिन मधुसूदन को वैक्सीन का पहला टीका लग जाता तो ये सब न हुआ होता. अब जो होना था हो गया. अब मुझे आदेश दो कि मैं तुम्हारी और क्या सहायता कर सकता हूं.”

कुमुद कुछ कहती, इस से पहले ही ट्रे में चाय और प्लेटों में बनवारी द्वारा लाए समोसे, जलेबी सामने वाली मेज पर रखती हुई अंशिका बोली, “अंकल, आप तो बस इतना कर दो कि मुझे अपनी संस्था वाले औफिस में डाटा एंट्री आपरेटर के रूप में नौकरी पर रख लो.”

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“बस इतनी सी बात… मेरे रहते तू डाटा एंट्री आपरेटर की नौकरी करेगी. अरे, तेरे लिए मैं औफिस इंचार्ज की पोस्ट क्रिएट कर के वहां बैठा दूंगा. बस तुझे अपने सारे सर्टिफिकेट ले कर कल शाम तक इंटरव्यू के लिए आना होगा. अब संस्था में नौकरी के लिए फोरमैलिटी तो पूरी करनी ही पड़ेगी.”

“अंकल, मेरा इंटरव्यू तो आप ही लोगे ना?”

“तुझे इतना सब सोचने की जरूरत नही है,” कहते हुए बनवारी ने समोसा खाने के बाद चाय का घूंट भरते हुए कहा, “देख रही हो भाभी, मुझे यह अंकल भी कहती है और डरती भी है, जबकि सेलेक्शन मुझे ही करना है.”

“बेटी, जब अंकल कह रहे हैं तो डरना कैसा…? मेरे लिए तो इस से अच्छी कोई बात हो ही नहीं सकती कि जानपहचान वाली जगह पर तू नौकरी करेगी, तो मैं भी बेफिक्र रहूंगी और घर में खर्चे के लिए कुछ रुपए भी आने लगेंगे. वैसे भी इस महीने का किराया भी तेरे अंकल को देना है.”

“भाभी, वह तो तुम पेटीएम कर देना. अब मैं चलता हूं. कल ड्राइवर को कार के साथ भेजूंगा. वह अंशी को घर से पिकअप कर लेगा और औफिस के इंटरव्यू रूम तक पहुंचा देगा.”

आगे पढ़ें- आज उसे न जाने क्यों बनवारी…

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शादी के 2 दिन बाद Rhea Kapoor ने दिखाई ब्राइडल लुक की झलक, Celebs ने दिए ये रिएक्शन

बौलीवुड एक्टर अनिल कपूर (Anil Kapoor) की दूसरी बेटी रिया कपूर (Rhea Kapoor) की शादी हो गई है. हालांकि उनकी शादी की फोटोज अभी तक मीडिया से दूर थीं. लेकिन अब खुद रिया कपूर ने सोशलमीडिया पर अपनी शादी के लुक और सेरेमनी की फोटोज शेयर की हैं, जो तेजी से वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं कपूर वेडिंग की झलक…

शादी की फोटोज हुई वायरल

 

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14 अगस्त को बौयफ्रेंड संग शादी के बंधन में बंधने के 2 दिन बाद अब रिया कपूर  (Rhea Kapoor) ने अपने ब्राइडल लुक की झलक फैंस को दिखा दी है. वहीं इन फोटोज को शेयर करते हुए रिया कपूर एक प्यारा सा मैसेज भी शेयर किया है. रिया कपूर (Rhea Kapoor) ने लिखा, ’12 साल बाद, मुझे नर्वस या इमोशनल नहीं होना चाहिए था क्योंकि तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त और एक बेहतरीन इंसान हो. लेकिन मैं रोई और अंदर तक हिल गई. इतना की मेरे पेट में दर्द होने लगा. क्योंकि मुझे नहीं पता था कि ये एक्सपीरियंस कैसा होगा. मैं हमेशा वह लड़की रहूंगी जिसे मेरे माता-पिता के सोने से पहले रात 11 बजे से पहले अपने जुहू घर पर पहुंचना होना था. अब तक मुझे नहीं पता था कि मैं कितनी भाग्यशाली हूं. आज कितना टूटा हुई महसूस कर रही हूं. मुझे उम्मीद है कि हम अपने परिवार को इतना करीब बना देंगे कि हमारे पास बहुत सारा प्यार होगा.’

 

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सेलेब्स ने दी बधाई

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रिया कपूर (Rhea Kapoor) के पोस्ट शेयर करते ही जहां फैंस ने उन्हें बधाई दी तो वहीं स्टार्स भी उनके इस पोस्ट पर कमेंट करते नजर आए. वहीं एक्ट्रेस मलाइका अरोड़ा ने हार्ट की इमोजी शेयर करते हुए रिया कपूर (Rhea Kapoor) को ढेर सारा प्यार दिया है. तो वहीं रिया कपूर (Rhea Kapoor) की बेस्ट फ्रेंड मसाबा गुप्ता ने उनकी शादी के सेलिब्रेशन की अनदेखी फोटोज शेयर करते हुए फैंस को हैरान कर दिया है.

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किंजल के बौस के खिलाफ आवाज उठाएगी अनुपमा तो काव्या मारेगी ये ताना

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा में इन दिनों काफी नए ट्विस्ट आ रहे हैं. जहां एक तरफ तोषू घर छोड़ कर चला गया है तो वहीं किंजल के बौस ने उसे Molest किया है, जिसके चलते उनके जौब छोड़ दी हैं. वहीं अब अपकमिंग एपिसोड में रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) स्टारर ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में नए ट्विस्ट एंड टर्न्स फैंस को एंटरटेन करने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

किंजल के बजाय काव्या को मिलेगी नौकरी

अब तक आपने देखा कि किंजल औफिस से रोते हुए अनुपमा के गले लग जाती है, जिसके बाद अनुपमा को कुछ गलत होने का एहसास होता है. वहीं उसे पता चल जाता है कि किंजल का बौस ढोलकिया ने उसके साथ छेड़छाड़ की है, जिसके चलते अनुपमा उसे सबक सिखाने का फैसला करती है. दूसरी तरफ किंजल के नौकरी छोड़ने के बाद ढोलकिया काव्या को दोबारा नौकरी पर बुला देता है.

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वनराज को पता चलेगा सच

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि किंजल के बिहेवियर को देखकर पूरा परिवार परेशान होगा. वहीं अनुपमा ये देखने के बाद वनराज को सब सच बता देगी, जिसके बाद वह गुस्से में ढ़ोलकिया को मारने के लिए जाएगा. हालांकि अनुपमा उसे रोकते हुए कहेगी कि वह किंजल को इंसाफ दिलाएगी और उसके लिए आवाज उठाएगी, जिसे सुनते ही काव्या हंसेगी और कहेगी कि 25 सालों में आज तक आवाज नहीं उठाई तो अब क्या किसी के लिए खड़ी होगी.

आएंगे नए ट्विस्ट

 

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दूसरी तरफ खबरों की मानें तो किंजल के बाद काव्या की ऑफिस में वापसी के चलते ढ़ोलकिया उसे भी देर तक काम करने के लिए रोकेगा और उसके साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश करेगा. वहीं अनुपमा के छोटे बेटे समर को विदेश से नौकरी का अच्छा औफर मिलेगा. लेकिन वह इसके लिए मना कर देगा क्योंकि वह अपनी फैमिली को नही छोड़ना चाहेगा. हालांकि पूरा परिवार उसे मना लेगा. क्योंकि ये उसके करियर के लिए अच्छा मौका है.

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बहन Rhea Kapoor की शादी में छाया सोनम कपूर का लुक, फैंस पूछ रहे हैं कई सवाल

कोरोनाकाल में कई सेलेब्स ने शादी करने का फैसला लिया. वहीं इस लिस्ट में अब बॉलीवुड एक्टर अनिल कपूर की छोटी बेटी Rhea Kapoor का नाम भी शामिल हो गया है. इसी बीच बहन Rhea Kapoor की शादी में एक्ट्रेस सोनम कपूर का लुक सोशलमीडिया पर वायरल हो रहा है. आइए आपको दिखाते हैं Sonam Kapoor के लुक्स की झलक…

सोनम का छाया लुक

 

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हाल ही Rhea Kapoor  ने अपने बॉयफ्रेंड औऱ डायरेक्टर करण बूलानी से शादी कर ली है, जिसमें कोरोना के चलते कुछ चुनिंदा लोगों ही शामिल हुए. हालांकि इस दौरान बौलीवुड एक्ट्रेस सोनम का शानदार लुक फैंस के बीच छा गया. बहन रिया की शादी में माथे पर टीका और बालों में गजरा लगाए रौयल अनारकली लुक में सोनम कपूर का लुक बेहद खूबसूरत लग रहा था. वहीं पति आनंद भी उनके लुक से मैचिंग अंदाज में नजार आए.

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प्रैग्नेंसी पर कर रहे हैं सवाल

 

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बीते दिनों प्रैग्नेंसी की खबर पर सुर्खियों में आईं सोनम कपूर का ये लुक देखने के बाद फैंस उनसे एक बार फिर प्रैग्नेंसी पर सवाल करते नजर आ रहे हैं. क्योंकि बीते दिनों भी सोनम कपूर का अलग लुक फैंस को सोचने पर मजबूर कर रही है कि आखिर माजरा क्या है.

कपूर गर्ल्स का छाया अंदाज

 

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सोनम कपूर के अलावा Rhea Kapoor की शादी में अंशुला कपूर, खुशी कपूर, और शनाया कपूर भी नजर आईं. इस दौरान उनका अंदाज फैंस को काफी पसंद आ रहा था. इंडियन लुक्स में कपूर खानदान की हसीनाएं फैंस का दिल जीत रही थीं. हर किसी का लुक एक से बढ़कर था.

 

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वीडियो एंड फोटो क्रेडिट- Viral Bhayani

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