एक्सपर्ट से जानें लैप्स हो जाए इंश्योरेंस पौलिसी तो कैसे करें रिवाइव

अपने परिवार को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए इंश्योरेंस प्लान बेहतर विकल्प होते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यह आपके न रहने पर परिजनों को सम एश्योर्ड दिलवाने का एक किफायती और सुरक्षित माध्यम है. इन प्लान्स के एनुअल प्रीमियम रेट्स काफी कम होते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आप समय पर प्रीमियम का भुगतान करने से चूक जाते हैं तो पौलिसी का क्या हो सकता है? क्या इससे आपकी पौलिसी बंद कर दी जाएगी? हम अपनी इस खबर में आपके इन्हीं सवालों के ही जवाब देने जा रहे हैं.

कब लैप्स होती है इंश्योरेंस पौलिसी?

किसी भी तरह की इंश्योरेंस पौलिसी को खरीदने के बाद हर साल एक निश्चित अवधि तक इसके लिए प्रीमियम का भुगतान किया जाता है. अगर किसी कारणवश आप समय पर इसका भुगतान नहीं कर पाते हैं तो पौलिसी टर्मिनेट कर दी जाती है. इसे शुरु करवाने का कोई और विकल्प नहीं होता. ऐसे में नई पौलिसी खरीदने का औप्शन रह जाता है. यह पुरानी पौलिसी से महंगी पड़ती है क्योंकि इसमें आवेदक की उम्र ज्यादा हो जाती है.

एक्सपर्ट राय

फाइनेंशियल प्लानर्स का मानना है कि इंश्योरेंस पौलिसी लैप्स होने की स्थिति में एक निश्चित ब्याज के साथ प्रीमियम भुगतान कर पौलिसी को रिवाइव कराया जा सकता है. वहीं, अगर आप भुगतान नहीं करते हैं और यह एक ट्रैडिशनल पौलिसी है तो लैप्स पीरियड के खत्म होने पर यह पेड अप पौलिसी बन जाती है. पेड अप पौलिसी में सम एश्योर्ड घट जाता है. यह आपकी ओर से भुगतान किये गये प्रीमियम पर निर्भर करता है. साथ ही सम एश्योर्ड पौलिसी के मैच्यौर होने पर ही मिलता है.

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जानिए पौलिसी लैप्स होने की स्थिति में क्या करें

इस तरह करें लैप्स पौलिसी को रिवाइव

जब आप इंश्योरेंस प्रीमियम का भुगतान करने से चूक जाते हैं तो पौलिसी को ग्रेस पीरियड स्टेट में ट्रांस्फर कर दिया जाता है. इसके तहत इंश्योरेंस कंपनी की जिम्मेदारी बनती है कि पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद वह बेनिफिशयरी को सम एश्योर्ड का भुगतान करे. आमतौर पर इंश्योरर छमाही और एक साल की अवधि के प्रीमियम के लिए 30 दिन और मासिक भुगतान के लिए 15 दिनों का ग्रेस पीरियड देता है. हालांकि, यह हर कंपनी के लिए यह अवधि अलग-अलग हो सकती है. इस ग्रेस पीरियड के दौरान पौलिसीधारक प्रीमियम का भुगतान कर अपनी इंश्योरेंस पौलिसी को फिर से एक्टिव कर सकता है. जानकारी के लिए बता दें कि पौलिसी ग्रेस पीरियड के समाप्त होने के बाद लैप्स मानी जाती है.

पौलिसी लैप्स होने पर क्या होता है

अगर इंश्योरेंस कंपनी की ओर से दिया गया ग्रेस पीरियड खत्म हो जाता है और इसे एक्टिव करने के लिए किसी प्रीमियम का भुगतना नहीं किया जाता तो पौलिसी लैप्स हो जाएगी. ऐसे में बेनिफिशयरी को पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद सम एश्योरेड नहीं मिलेगा.

उदाहरण से समझें

अगर किसी व्यक्ति की दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है और वह टर्म प्लान के प्रीमियम भुगतान से चूक जाता है. ऐसे में अगर दुर्घटना ग्रेस पीरियड के दौरान हुई है तो परिवार के सदस्य क्लेम फाइल कर सकते हैं और इंश्योरेंस कंपनी को सम एश्योर्ड का भुगतना करना ही पड़ेगा. वहीं, अगर दुर्घटना पौलिसी के लैप्स हो जाने के बाद हुई है तो इंश्योरेंस कंपनी परिवार को किसी भी तरह के सम एश्योर्ड का भुगतान नहीं करेगी.

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हालांकि, लैप्स पौलिसी बिल्कुल बेकार नहीं होती. इसे एक्टिव भी कराया जा सकता है. इसके लिए पॉलिसीधारक को रीइंस्टेटमेंट प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. अधिकांश कंपनियां लैप्स पौलिसी को रिवाइव करने का विकल्प देती हैं. यह प्रकिया थोड़ी महंगी साबित हो सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें मेडिकल चेकअप या पेनल्टी देनी पड़ सकती है.

लैप्स हो चुकी पौलिसी को रिवाइव करने की प्रकिया को रीइंस्टेटमेंट कहा जाता है. इसका लाभ तभी उठाया जा सकता है जब ग्रेस पीरियड खत्म हो जाता है. लैप्स पौलिसी की रीइंस्टेटमेंट प्रक्रिया हर कंपनी की अलग होती है. साथ ही यह बीते हुए समय पर, प्रोडक्ट टाइप और इंश्योरेंस कौस्ट पर निर्भर करता है.

Social Story In Hindi: बात एक राज की- दोस्तों की एक योजना का क्या था अंजाम

हमेशा बुरी नहीं जलन

जलन या ईर्ष्या की भावना को आजकल मनोवैज्ञानिक तथा समाज विश्लेषक एक नए अंदाज में देखने लगे हैं. उन के शोध यह साबित कर रहे हैं कि अगर उन्हें किसी की तरक्की का ग्राफ देख कर जलन महसूस होती है तो घबराई सी दशा में रहने के बजाय उस के सकारात्मक पक्ष टटोलें. अगर जलन से प्रेरित हो कर अपनी दशा सुधारने में लग जाएंगे तो हालात सुधरने लगेंगे. इस का लाभ यह होगा कि यह ईर्ष्या कुंठा तक जाने के बजाय खुशियों की राह आसान करती जाएगी.

दूसरे की तरक्की या सफलता देख कर अगर मारे जलन के आप अच्छी मेहनत करने का संकल्प लेते हैं, तो यह ईर्ष्या आप के लिए सुखद परिणाम ला सकती है. यह भविष्य के लिए शुभ संकेत है.

नए प्रयोग करें

कहते हैं न कि भावनाओं पर तो किसी का भी वश नहीं चल पाता, परंतु अपना नजरिया तो ठीक किया ही जा सकता है न? कहने का तात्पर्य यह है कि दृष्टिकोण को सही फ्रेम में लगा कर अपने को अच्छे वातावरण के लिए तैयार करते रहें वरना खाली ईर्ष्या ही ईर्ष्या करने से मानसिक शांति का तो सर्वनाश होगा ही, साथ ही हृदय, लिवर, रक्तचाप आदि बीमारियां भी अपना ठिकाना आप के शरीर में ही बना लेंगी.

समय के मिजाज को भांप कर भी अपनी जलन का लाभ उठाया जा सकता है यानी दुनिया नए प्रयोग कर के आगे बढ़ रही है तो आप भी करिए. अगर समय नवीनता और ताजापन चाहता है तो आप भी वैसा करने की तरफ अपना ध्यान दीजिए.

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लक्ष्य बना लें

मन में जलन की भावना पैठ बना ले तो अपना ध्यान कुछ करने के जज्बे की तरफ मोड़ लेना बहुत लाभकारी हो सकता है. इस मामले में आलसी, निकम्मे लोग बस सोचत ही रह जाते हैं या वक्त को कोसते रहते हैं जबकि सही सोच रखने वाले खुद को भटकने नहीं देते. फट से अपनी कमियों की तरफ ध्यान देते हैं. अपना एक लक्ष्य तय करते हैं और ईर्ष्या को रोग की जगह बना डालते हैं अपनी बहुत अच्छी औषधि.

ईर्ष्या अगर सकारात्मक भाव पैदा करने लगी है, तो ऐसी कथाएं बारबार सुनते हुए या पढ़ते रहना भी लाभदायक है जो आप में एक तरंग पैदा कर दें, आप की ताकत को कई गुना बढ़ा दें और आप एक अच्छा पद, अच्छी स्थिति या फिर अच्छा नाम प्राप्त करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दें.

मूल्यांकन करें

अपनी स्पर्धा अपनेआप से ही करना अति उत्तम होता है यानी हर दिन पिछले दिनों से अच्छा और उत्पादक बने, इस के लिए एक कैलेंडर बना कर रखना बहुत ही मददगार साबित होता है. अपनेआप का सच्चा मूल्यांकन भी करते रहना चाहिए. इस में कैलेंडर सहायक रहता है. समय का चक्र और प्रकृति हमारे लिए हमेशा बेहतर से बेहतर व्यवस्था बना कर रखती है. इस पर विचार अवश्य करते रहना चाहिए.

खुद से ही रायमशविरा करेंगे तो आप की हर कमजोरी खुद आप के सामने आएगी. अपनी कमजोरी को अपनी चुनौती बना कर हौसला रखना सचमुच जिंदादिली का पर्याय है. हिचकिचाएं बिलकुल नहीं, बस नाराजगी और शिकायतों में थोड़ी सी कटौती कर संभावनाएं जाग्रत करें और जीवन को संवार लें.

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Health और Beauty के लिए फायदेमंद है एलोवेरा जूस

अगर आप इस कोरोना वायरस जैसे महामारी से बचना चाहते हैं तो आपको अपना इम्यून सिस्टम मजबूत रखना होगा इसके लिए आपको एलोवेरा जूस का सेवन करना काफी फायदेमंद होगा एलोवेरा एक ऐसी औषधि है जो आसानी से घरों और बाजारों में मिल जाती है एलोवेरा एंटीऑक्सिडेंट्स , विटामिंस और मिनरल्स तत्वों के गुणों से भरपूर होती हैं.  इसके इस्तेमाल करने से आपके त्वचा बालों और पेट से संबंधित समस्याएं दूर होती हैं.  एलोवेरा जूस तो आपके स्वास्थ्य और सुंदर के लिए रामबाण औषधि के रूप में होता है.  यदि Aloe vera जूस का सेवन नियमित रूप से सुबह खाली पेट किया जाए तो इसके कई सारे फायदे होते हैं तो आइए इन फायदों के बारे में जानते हैं.

पाचन तंत्र मजबूत करता है –

यदि Aloe vera जूस का रोजाना सेवन खाली खाली पेट किया जाए तो इससे पाचन तंत्र मजबूत होता है.  इसके साथ ही पेट से संबंधित समस्याएं भी दूर हो जाती हैं जिन लोगों को कब्ज की शिकायत रहती है उन्हें रोजाना दो चम्मच एलोवेरा जूस का सेवन करना चाहिए ऐसा करने से आपको जल्द ही अच्छा परिणाम देखने को मिलेगा.

वजन कम करने में मददगार –

अगर आप अपने बढ़ते वजन को लेकर पहचान है तो ऐसे में आपके लिए एलोवेरा जूस एक असरदार उपाय है आप रोजाना खाली पेट आधा कप एलोवेरा जूस को लेकर सेवन करें एलोवेरा में एंटी इन्फ्लेमेटरी के गुण होते हैं.  जो आपके फैट को बर्न करने में सहायक होते हैं जिससे कि आपका वजन कम होने लगेगा.

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इम्यून सिस्टम को मजबूत करना –

कोविड-19 महामारी ने हम सभी को यह बता दिया है कि इम्यून सिस्टम का मजबूत होना हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है एलोवेरा जूस को पीने से आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है विशेषज्ञों के अनुसार एलोवेरा का जोश इम्यून सिस्टम को बूट करने में काफी मददगार होता है इसके साथ ही इसका सेवन पीएच लेवल को भी सुधरता है.

सूजन कम करना –

एलोवेरा में एंटीऑक्सीडेंट के गुण होते हैं जो आपके शरीर के सूजन को कम करने में मदद करता है.  इसके साथ ही यदि रोजाना खाली पेट एलोवेरा जूस का सेवन किया जाये हैं.  तो आपको सिर दर्द और तनाव से भी राहत मिलती है.  साथ ही आप के जख्म को भरने में भी सहायक होती है.

एलोवेरा जूस का सेवन करने से पहले डॉक्टर कि सलाह जरूर लें.

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Social Story In Hindi: बात एक राज की- भाग 4- दोस्तों की एक योजना का क्या था अंजाम

कुछ ही देर में सेठ शांतिलाल अपनी कार से वहां पहुंच गए.

‘‘कहां है रिवौल्वर और कहां है रुधिर? फार्महाउस में घुसते ही शांतिलाल ने प्रश्न किया.

‘‘बैडरूम में हैं दोनों. आप के लड़के ने उस रिवौल्वर से खुद को गोली मार ली है,’’ पुलिस अफसर ने बताया.

‘‘ओह,’’ शांतिलाल ने अफसोस वाले स्वर में कहा.

‘‘एक बात समझ में नहीं आ रही है शांतिलालजी. इन तीनों बच्चों का कहना है कि इन्होंने रुधिर के साथ मिल कर उस के अपहरण की साजिश रची और जब इन्होंने फिरौती के लिए आप को फोन किया तो आप ने ऐसा कुछ रिस्पौंस नहीं दिया जिस से लगे कि आप को कोई शौक लगा है,’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘क्योंकि मैं इन के अपहरण प्लान के बारे में पहले से ही जानता था,’’ सेठ शांतिलाल ने रहस्योद्घाटन किया, ‘‘इन लोगों की योजना के अनुसार जब रुधिर पहले दिन गैराज में छिपा, उस समय मैं बंगले की छत पर ही था और मैं ने उसे गैराज में जाते हुए देख लिया था. मैं ने सोचा, शायद कुछ सामान लेने के लिए गया है. परंतु जब वह लंबे समय तक बाहर नहीं आया तो मैं ने अपने ड्राइवर को उस की निगरानी के लिए रख दिया. मैं यह भी जानता था कि रुधिर ने मेरे फर्म के नाम पर कुछ सिमें निकलवाई हैं. मुझे यह भी पता था कि रुधिर फार्महाउस पर ही छिपा हुआ है. बच्चे हैं, गलतियां कर रहे हैं, आज नहीं तो कल इन लोगों की समझ में आ जाएगी. यही सोच कर मैं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अगर मैं पुलिस में रिपोर्ट करूंगा तो इन का भविष्य बरबाद हो जाएगा. यही सब सोच कर मैं ने शिकायत नहीं की.’’

‘‘मतलब कल रात को रुधिर घर पर आ गया था?’’ इंस्पैक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी नहीं, उसे तो पता ही नहीं कि उस का प्लान लीक हो गया था,’’ शांतिलाल ने उसी धारा प्रवाह में उत्तर दिया.

‘‘तो फिर रिवौल्वर आज सुबह बंगले से कैसे गायब हुई? उसे तो कल ही रुधिर के साथ गायब हो जाना चाहिए था,’’ अफसर ने कहा.

‘‘जी, जी वो शायद मैं ने कल ध्यान से कबर्ड देखा नहीं था. शायद वह कल ही अपने साथ ले आया हो,’’ शांतिलाल ने भरपूर आत्मविश्वास के बीच अपनी घबराहट छिपाते हुए कहा.

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‘‘आश्चर्य है इतनी बड़ी गलती आप कैसे कर सकते हैं. ऐसी गलती करने पर सरकार आप का लाइसैंस रद्द तक कर सकती है,’’ इंस्पैक्टर ने चेताया.

‘‘मैं ने रिवौल्वर रख कर ही गलती कर दी, साहब. अगर यह रिवौल्वर नहीं होती तो रुधिर आत्महत्या नहीं करता,’’ शांतिलाल अफसोस जाहिर करते हुए बोले.

‘‘सरकार, माईबाप, यह आत्महत्या नहीं हत्या है और सेठजी ने ही रुधिर बाबा की…’’ एक अजनबी घटनास्थल पर प्रवेश करता हुआ बोला.

‘‘तुम कौन हो?’’ इंस्पैक्टर ने कड़क आवाज में पूछा.

‘‘सर, यही हैं यहां के चौकीदार रामू अंकल,’’ रक्ताभ ने बताया.

‘‘कैसे चौकीदार हो तुम? यहां पर इतनी बड़ी घटना हो गई और तुम्हारे पतेठिकाने ही नहीं हैं. जानते हो, इस घटना की सब से पहली सूचना तुम्हें ही पुलिस को देनी चाहिए थी,’’ इंस्पैक्टर रामू को डपटते हुए बोला. ‘‘तुम इतनी आसानी से कैसे कह सकते हो कि खून सेठ शांतिलाल ने ही किया है?’’

‘‘सरकार, मैं ठहरा अनपढ़गंवार. मुझे नहीं पता किसे सूचना देनी चाहिए,’’ रामू मिमियाता हुआ बोला, ‘‘पर आप एक बार मेरी बात ध्यान से सुन लीजिए.’’

‘‘अच्छा, बताओ क्या जानते हो इस घटना के बारे में?’’ इंस्पैक्टर कुछ नरम पड़ कर बोला.

‘‘सरकार, कल सुबह रुधिर बाबा अचानक आ गए. आते ही उन्होंने मुझे चाय बनाने को कहा. मैं किचन में चाय बनाने चला गया. जब मैं वापस लौटा तो उन्होंने मुझे बताया कि वे सेठजी से नाराज हो कर यहां आ गए हैं. लेकिन मैं सेठजी को यह बात किसी कीमत पर न बताऊं कि वे यहां पर हैं. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि बाहर से कोई फोन न आ सके, इसलिए उन्होंने फोन खराब कर दिया है. एकदो दिनों में जब सेठजी का गुस्सा शांत होगा तब वे घर वापस चले जाएंगे. शाम को सेठजी का ड्राइवर आया और बोला कि सुबह साढ़े 6 बजे तक आवश्यक सफाई के लिए बंगले पर बुलवाया है. मैं अकसर तीजत्योहार पर बंगले की सफाई करने जाता ही हूं.

‘‘शाम को खाने में रुधिर बाबा ने चिकन बनाने की फरमाइश रखी. इसी कारण खाना बनाने और सफाई करने में काफी देर हो गई. देर से सोने के कारण नींद भी सुबह देर से खुली. जागा, तब तक साढ़े 7 बज चुके थे. रुधिर बाबा अभी सो ही रहे थे. मैं ने सोचा दिशामैदान कर आता हूं, उस के बाद बाबा को चायनाश्ता करवा कर चला जाऊंगा.

‘‘मैं कुछ दूर झाडि़यों में बैठा ही था कि मैं ने देखा सेठजी खुद कार चला कर फार्महाउस आ गए हैं. मैं ने सोचा शायद मुझे लेने आए हैं. लगभग 5 मिनट के बाद मैं ने देखा कि सेठजी वापस जा रहे हैं. मुझे फार्महाउस में न पा कर शायद सेठजी ने सोचा होगा कि मैं सफाई के लिए पहले ही निकल चुका हूं. मैं जल्दी से फार्महाउस पहुंचा तो देखा कि रुधिर बाबा के सीने में गोली लगी है और हाथ में पिस्तौल है.

‘‘मुझे कुछ समझ में नहीं आया और मैं साइकिल उठा कर सेठजी के घर निकल पड़ा. मैं तकरीबन 11 बजे सेठजी के घर पहुंच गया. लेकिन तब तक सेठजी वहां से निकल पड़े थे. मेरे पूछने पर सेठानीजी ने बताया कि उन की पिस्तौल चोरी हो गई

है और वे इस की सूचना देने के लिए थाने गए हैं.

‘‘तब मैं ने सेठानीजी को फार्महाउस की पूरी घटना की जानकारी दे दी. रुधिर बाबा की मौत की खबर सुन कर वे बेहोश हो गईं. पानी के छींटे डालने और होश में आने पर काफी समझाने के बाद वे सामान्य हुईं. उन्होंने ही मुझे पुलिस को सूचित करने को बोला.

‘‘थाने पहुंचने पर पता चला कि आप लोग फार्महाउस पहुंच चुके हैं. साइकिल से लगभग 2 घंटे बाद यहां पहुंच सका हूं,’’ रामू ने अपने बयान में बताया.

‘‘क्यों शांतिलालजी, रामू ठीक कह रहा है?’’ इस के बयानों की तसदीक आप के ड्राइवर से करवाई जाए?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘नहीं, रामू सही कह रहा है. मैं ने ही रुधिर की हत्या की है,’’ सेठ शांतिलाल ने अपने जुर्म का इकबाल किया.

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वहां खड़े रक्ताभ, लालिमा और सिंदूरी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जो उन्होंने चुना वह ठीक था या नहीं, वे चुपचाप हैरानी से सब देखते रहे.

‘‘तुम ने अपने बेटे का खून क्यों किया?’’ इंस्पैक्टर ने हैरत से पूछा.

‘‘क्योंकि रुधिर मेरा बेटा है ही नहीं,’’ शांतिलाल ने खुलासा किया.

‘‘आप का बेटा नहीं है रुधिर, तो फिर किस का बेटा है?’’ आप को कैसे पता चला रुधिर आप का अपना बेटा नहीं है?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘पता नहीं रुधिर किस का बेटा है. सौभाग्यवती से शादी से पूर्व ही मैं जानता था कि मैं सौभाग्यवती को दुनिया का हर सुख दे सकता हूं सिवा मातृत्व सुख के. मैं ने सोचा था अगर सौभाग्यवती अनुरोध करेगी तो किसी वैज्ञानिक पद्धति से या अनाथालय से बच्चा गोद ले कर वह कमी पूरी कर लेंगे. किंतु सौभाग्यवती ने मुझे बताए बिना यह गलत कदम उठा लिया.

‘‘मैं  ने रुधिर को कभी भी अपना खून नहीं समझा, सिर्फ सौभाग्यवती की खुशी की खातिर उसे मैं अपने साथ रखे हुए था. मुझे उस पर कभी भी विश्वास नहीं था. इसी कारण मैं उसे सिर्फ जरूरत के अनुसार ही आवश्यक सुविधाएं दिया करता था. मेरी धारणा थी कि मेरी दौलत पाने के लिए रुधिर किसी भी स्तर पर गिर सकता है. खुद के अपहरण की इस साजिश ने मेरी इस धारणा को और पक्का कर दिया. इसी कारण अपनेआप को भविष्य में सुरक्षित रखने के दृष्टिकोण से मैं ने यह योजना बनाई. काश, मुझे पता चल पाता कि रुधिर का पिता कौन है,’’ सेठ शांतिलाल स्वीकारोक्ति करते हुए बोला.

‘‘मैं हूं उस का पिता,’’ नजरें झुका आगे आ कर रामू बोला. लगभग 20 साल पहले फार्महाउस पर आप की अनुपस्थिति में मैं सेठानीजी के आग्रह को ठुकरा न सका. वह पहला और आखिरी मिलाप था हमारा. आज जब सेठानीजी को फार्महाउस की घटना बतलाई तो उन्होंने यह राज की बात मुझे बताई. एक तरफ नमक का कर्ज था तो दूसरी तरफ पिता होने का फर्ज. आखिरकार पिता ने अपना आखिरी व एकमात्र कर्तव्य पूरा किया.’’

‘‘चलिए, सेठ शांतिलालजी, गुनाहगार का फैसला अदालत ही करेगी,’’ इंस्पैक्टर असली गुनाहगार को अपने साथ ले जाते हुए बोले.

रक्ताभ, लालिमा, सिंदूरी के होंठ जैसे किसी ने सी दिए हों. मन ही मन तीनों अपनी नादानी पर पछता रहे थे जिस की वजह से उन्होंने अपना प्यारा दोस्त हमेशा के लिए खो दिया था.

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Social Story In Hindi: बात एक राज की- भाग 3- दोस्तों की एक योजना का क्या था अंजाम

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ लालिमा सिंदूरी को कौन्फ्रैंस कौल पर लेती हुए बोली. ‘‘यह लो रक्ताभ, सिंदूरी भी आ गई.’’

‘‘क्या हुआ रक्ताभ? तुम्हारी आवाज घबराई हुई सी क्यों हैं?’’ सिंदूरी फोन पर जौइन करते हुए बोली.

‘‘अरे, मैं अभी रुधिर के फार्महाउस गया था. वहां पर सीन बहुत चौंकाने वाला था? रुधिर ने सुसाइड कर लिया है,’’ रक्ताभ घबराता हुआ बोला.

‘‘क्या? कैसे??’’ दोनों ने एकसाथ घबराई आवाज में पूछा.

‘‘ उस के एक हाथ में रिवौल्वर है और छाती पर गोली लगी है. शायद रिवौल्वर से खुद को बिस्तर पर लेटेलेटे गोली मार ली है,’’ रक्ताभ की आवाज अभी भी लड़खड़ा रही थी.

रुधिर की मौत की खबर सुन कर लालिमा और सिंदूरी दोनों रोने लगीं. रक्ताभ की आंखें भी भर आईं.

‘‘देखो, संभालो अपनेआप को. रुधिर के पापा को जब यह बात मालूम पड़ेगी तो वे पुलिस में अवश्य जाएंगे. तब आज नहीं तो कल, पुलिस हम तक पहुंचेगी जरूर. हमें अपने बचाव के लिए कुछ करना चाहिए,’’ रक्ताभ ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘क्या करें?’’ लालिमा ने पूछा.

‘‘तुम लोग पार्क में आओ. वहीं बैठ कर सोचते हैं कि हमें आगे क्या करना है. हम पर किडनैप करने का आरोप लगा तो हमारा कैरियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा. हम पर किडनैपर होने का ठप्पा लग जाएगा वह अलग,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘ठीक है, एक घंटे बाद पार्क में मिलते हैं,’’ सिंदूरी रोते हुए बोली.

लगभग एक घंटे बाद तीनों पार्क में इकट्ठे हुए. सिंदूरी बहुत गंभीर व उदास लग रही थी. लालिमा की आंखों में भी रोने के कारण लाल डोरे पड़े हुए थे.

‘‘कैसे हुआ रक्ताभ?’’ सिंदूरी ने पूछा.

‘‘पता नहीं,’’ रक्ताभ ने जवाब दिया.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि फोन आने पर रामू अंकल ने रुधिर के पापा को रुधिर के वहां होने की खबर दे दी हो और राज खुलने के डर से घरवालों की नजरों में गिरने से बचने के लिए फार्महाउस पर रखी हुई रिवौल्वर से खुद को शूट कर लिया हो,’’ रक्ताभ चिंतित होते हुए बोला.

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‘‘एक बार पुलिस के हत्थे चढ़ना मतलब आगे की जिंदगी को परेशानियों में डालना,’’ लालिमा भी उसी तरह चिंतित होते हुए बोली.

‘‘अब क्या करें?’’ सिंदूरी ने पूछा.

‘‘मेरे विचार से हमें आगे हो कर पुलिस को सूचना देनी चाहिए. इस से पुलिस हमारी बात सुनेगी भी और विश्वास करेगी भी. हमारी बातों की सचाई जानने के लिए वह सिम बेचने वाले शौपकीपर के पास भी जा सकती है जो हमारी बा?तों को सच साबित करेगा. बाद में तो हमारी बात कोई ठीक से सुनेगा भी नहीं,’’ रक्ताभ ने कहा.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ लालिमा ने भी समर्थन किया.

‘‘जैसा तुम को उचित लगे,’’ सिंदूरी घबराए हुए निराश स्वर में बोली.

‘‘रुधिर के पिताजी के जाने के बाद अंदर चलेंगे ताकि हम अपनी बात अच्छे से रख सकें,’’ रक्ताभ ने सुझाया.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. अभी उन्हें अपने बेटे की मौत का गम और गुस्सा दोनों होगा. पता नहीं हमारे साथ क्या कर बैठें,’’ लालिमा बोली.

‘‘ठीक है, हम उन के जाने के बाद अंदर चलेंगे,’’ रक्ताभ ने समर्थन किया. लगभग 15 मिनट के बाद रुधिर के पिताजी बाहर आ गए.

‘‘सर, हम एक घटना की सूचना देने आए हैं,’’ रक्ताभ, लालिमा और सिंदूरी थाना इंचार्ज के सामने खड़े हो कर कह रहे थे.

‘‘पहले आराम से बैठो. घबराओ मत और बताओ किस घटना की सूचना देना चाहते हो,’’ थाना इंचार्ज ने तीनों को बैठने का इशारा करते हुए कहा.

‘‘सर, हमारे मित्र रुधिर ने आत्महत्या कर ली है,’’ रक्ताभ ने साहस बटोर कर कहा.

‘‘क्या कहा रुधिर? सेठ शांतिलाल का बेटा?’’ थाना इंचार्ज ने प्रश्न किया.

‘‘जी हां, वही,’’ सिंदूरी ने कहा.

‘‘परंतु सेठ शांतिलाल ने तो रिपोर्ट लिखवाई है कि उन का बेटा रुधिर आज सुबह से उन की रिवौल्वर के साथ गायब है,’’ थाना इंचार्ज ने कहा.

‘‘नहीं सर, आज सुबह से नहीं, रुधिर तो कल से ही गायब है,’’ कहते हुए रक्ताभ ने रुधिर के अपहरण की पूरी कहानी बयान कर दी.

‘‘ओह, तो ऐसा है,’’ थाना इंचार्ज ने कहा. ‘‘तुम्हारे अलावा इस योजना के बारे में और कौनकौन जानता था.’’

‘‘कोई भी नहीं. अगर फार्महाउस जाने के बाद रुधिर ने रामू अंकल को यह बात बताई हो, तो पता नहीं,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘एक बात और समझ में नहीं आई. तुम्हारे हिसाब से अपहरण कल सुबह ही हो गया था. और तुम ने इस विषय में शांतिलाल को फोन भी कर दिया था. लेकिन उस ने तुम्हारे फोन को तवज्जुह नहीं दी?’’ पुलिस अफसर ने रक्ताभ से पूछा.

‘‘यस सर,’’ रक्ताभ ने सहमति दी.

‘‘इस का मतलब तो एक ही निकलता है कि जिस समय तुम ने फोन किया उस समय तक रुधिर वापस घर पहुंच चुका था. तुम्हारा प्लान फेल हो चुका था. शायद इसी शर्मिंदगी में रुधिर ने सुबह वापस फार्महाउस जा कर आत्महत्या कर ली,’’ पुलिस अफसर ने अनुमान लगाया.

‘‘हो सकता है. परंतु रुधिर को कम से कम हमें सूचित तो करना चाहिए था,’’ रक्ताभ कुछ सहमते हुए बोला.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मुझे पूरा विश्वास है रुधिर के साथ कुछ गलत जरूर हुआ है.’’ सिंदूरी रुधिर पर विश्वास जताते हुए बोली.

‘‘पहले घटनास्थल पर जा कर मौके का मुआयना करते हैं. शायद कुछ निकल कर आए. आप तीनों को भी साथ चलना पड़ेगा,’’ थाना इंचार्ज ने कहा.

तीनों पुलिस वालों के साथ फार्महाउस पहुंच गए.

‘‘आप डेडबौडी की स्टडी कीजिए और अपने थौट्स के बारे में मुझे बताइए,’’ पुलिस अफसर ने फोरैंसिक ऐक्सपर्ट को निर्देश दिए.

‘‘सर, यह सुसाइड का केस है ही नहीं, यह तो सीधेसीधे मर्डर का केस है,’’ अपनी प्रारंभिक जांच के बाद ऐक्सपर्ट ने कहा.

‘‘क्या?’’ सभी आश्चर्य से बोल पड़े.

‘‘आप कैसे कह सकते हैं कि यह मर्डर है?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘क्योंकि रिवौल्वर पर जिस प्रैशर से फिंगरप्रिंट बनने चाहिए थे उतने प्रैशर से फिंगरप्रिंट बने नहीं हैं. दूसरा, रिवौल्वर चलने के बाद गन पाउडर का कुछ अंश चलाने वाले की कलाइयों पर आ जाता है जो नहीं है. ऐसा लगता है गहरी नींद में सोते हुए रुधिर पर किसी ने बहुत पास से दिल पर गोली मारी है और आत्महत्या दर्शाने के लिए रिवौल्वर हाथ में पकड़ा दी है. इसी कारण रिवौल्वर पर फिंगर एक्सप्रैशन प्रौपर नहीं आ पाए हैं,’’ एक्सपर्ट ने अपनी राय दी.

‘‘ओह, यह तो केस का डायरैक्शन ही चेंज हो गया. मतलब इस केस के बारे में और किसी को भी मालूम था. और उस ने फिरौती न मिलने की दशा में रुधिर को मार डाला. दूसरा एंगल यह है कि चौकीदार रामू ही रुधिर का कातिल हो सकता है. क्योंकि कायदे से तो सब से पहले सूचना उसी को देनी चाहिए थी मगर वह घटना के बाद से ही फरार है,’’ इंस्पैक्टर ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा.

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‘‘किंतु सर, रामू अंकल तो अनपढ़ हैं उन्हें तो लैंडलाइन से फोन करना तक नहीं आता. वे गोली इतनी सही नहीं चला सकते,’’ सिंदूरी ने कहा क्योंकि वह 2-3 बार रुधिर के साथ फार्महाउस आ चुकी थी.

‘‘तीसरा एंगल यह बनता है कि तुम तीनों में से ही किसी ने उस की हत्या की हो और पुलिस की जांच को भटकाने के लिए खुद पहले आ कर शिकायत कर दी ताकि तुम पर शक न हो,’’ इंस्पैक्टर तीनों पर पैनी नजर डालता हुआ बोला, ‘‘पुलिस तुम तीनों को अरैस्ट करती है.’’

‘‘सर, हम ने तो कुछ किया ही नहीं. हमें घर जाने दीजिए, प्लीज सर,’’ घबराते हुए लालिमा बोली.

‘‘जांच पूरी होने तक थाने का लौकअप ही तुम्हारा घर रहेगा. कौंस्टेबल, सेठ शांतिलाल को फोन कर के यही बुलवा लो. बता दो उन की रिवौल्वर मिल गई है,’’ इंस्पैक्टर ने आदेश दिया.

‘‘यस सर,’’ कौंस्टेबल बोला.

आगे पढ़ें- शांतिलाल अपनी कार से वहां पहुंच गए.

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Social Story In Hindi: बात एक राज की- भाग 2- दोस्तों की एक योजना का क्या था अंजाम

बचेंगे 40 हजार रुपए तो तुम लोग भी अपने घर से 40 हजार रुपए जमा करने वाले ही थे. वे पैसे रास्ते के खर्च के लिए रख लेना. सभी के पास बराबर पैसा होगा,’’ रुधिर मुसकराता हुआ बोला.

‘‘और संपर्क करने के लिए फोन कौन सा इस्तेमाल करेंगे?’’ रक्ताभ ने पूछा.

‘‘कोई एक फोन यूज नहीं करेंगे. कल मैं पापा की फर्म का गुमाश्ता और्डर की फोटोकौपी, लैटरपैड, सील और बाकी डौक्युमैंट्स ले कर आ जाऊंगा. इतने डौक्युमैंट्स से कौर्पोरेट के नाम पर जितनी चाहे उतनी सिम ले सकते हैं. मैं 5 पोस्टपेड सिम निकलवा दूंगा. अगर कभी पुलिस कंप्लैंट हुई भी, तो शौपकीपर मेरा ही हुलिया बताएगा. इस से यह स्पष्ट होगा कि पापा की फर्म का ही कोई प्रतिद्वंद्वी यह काम मुझ से दबाव डलवा कर करवा रहा है. तुम लोगों पर कोई शक नहीं जाएगा,’’ रुधिर ने योजना का पूरा खुलासा किया.

‘‘फिरौती की रकम किस जगह ली जाएगी?’’ रक्ताभ ने अगली परेशानी प्रस्तुत की.

‘‘हमारे फार्महाउस के बिलकुल विपरीत शहर के दूसरे छोर पर. रुपए किसी शौपिंग बैग में ही लेना ताकि किसी को शक न हो. रुपए लेने के बाद बताना कि तुम ने मुझे फार्महाउस के नजदीक छोड़ दिया है. यहां पर तो मैं पहले से रहूंगा ही,’’ रुधिर ने स्पष्ट किया.

‘‘हम लोगों का तो कोई काम नहीं रहेगा न? इतना काम तो तुम निबटा ही लोगे?’’ लालिमा ने पूछा.

‘‘अरे मैडम, मेन रोल तो आप लोगों का ही रहेगा. रक्ताभ के धमकीभरे फोन करने के बाद फौलोअप करने का काम बारीबारी से तुम दोनों करोगे. इस से ऐसा लगेगा कि गु्रप बहुत बड़ा व खतरनाक है. यदि वौयस चेंजिंग ऐप से कौल करोगे तो बेहतर रहेगा. कोई तुम्हारी आवाज को ट्रैस नहीं कर सकेगा. दूसरा, पैसे लेने भी तुम लोग ही जाओगे, क्योंकि रक्ताभ अगर अपना मुंह कवर करेगा तो लोगों के शक के घेरे में आ जाएगा और तुम लोग स्टौल से कवर कर के आसानी से जा सकती हो,’’ रुधिर ने दोनों लड़कियों को समझाया.

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‘‘तुम्हारी योजना तो बहुत आकर्षक लग रही है. मुझे विश्वास है जरूर सफल होगी.’’ रक्ताभ ने आशा प्रकट की.

‘‘फार्महाउस पर रामू अंकल रहेंगे. वे अनाथ हैं, दादाजी उन्हें किसी अनाथालय से उठा कर लाए थे. इस कारण वे हमेशा हमारे एहसानमंद रहते हैं. मुझे बहुत अधिक चाहते हैं. इस कारण वहां खानेपीने, रहने की कोई समस्या नहीं होगी. हां, तुम लोग अपनी तरफ से कोई गलती मत करना,’’ रुधिर समझाते हुआ बोला.

‘‘बिलकुल ठीक,’’ रक्ताभ ने समर्थन किया.

‘‘ठीक है, तो अपनी योजना पक्की रही. कल मैं घर से निकलूंगा मगर कालेज नहीं आऊंगा. मैं कल ही सिमों का इंतजाम कर के पहुंचा दूंगा. आज से ठीक 6 दिनों बाद मेरा किडनैप कर के मेरे घर पर फोन कर देना. मेरे मम्मी व पापा का नंबर अभी से नोट कर लो,’’ रुधिर नंबर लिख कर देता हुआ बोला.

‘‘ठीक है, औल द बैस्ट,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘औल द बैस्ट,’’ चारों एक स्वर में मगर धीमे से बुदबुदा कर बोले.

अगले 5 दिनों तक सभीकुछ तय योजना के मुताबिक चलता रहा. छठे दिन रुधिर तय समय पर निकल कर निश्चित किए गए रैस्टोरैंट के सामने साइकिल रख कर पैदल चल पड़ा. लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद रक्ताभ अपनी बाइक पर इंतजार करता हुआ मिल गया. वह उसे फार्महाउस पर छोड़ आया.

कालेज समाप्त होने के लगभग आधा घंटा बाद रक्ताभ ने रुधिर के पापा को फोन किया.

‘‘हैलो, शांतिलाल बोल रहे हैं?’’ रक्ताभ ने आवाज बदल कर पूछा.

‘‘हां, मैं शांतिलाल बोल रहा हूं. आप कौन?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो और किसी दूसरे को बताने की कोशिश मत करना. हम ने तुम्हारे लड़के रुधिर का अपहरण कर लिया है. अगर उस की सलामती चाहते हो तो आज शाम 5 लाख रुपयों का इंतजाम कर लो. रुपया कहां लाना हैं, इस के बारे में हम शाम को बताएंगे. पुलिस को बताने पर अपने लड़के की लाश ही पाओगे,’’ रक्ताभ ने भरपूर पेशेवर रवैया अपनाते हुए कहा.

‘‘अपहरण? मेरे लड़के का? बहुत अच्छा किया. मेरी तरफ से जान ले लो उस की. रुपया छोड़ो, मैं एक पैसा भी नहीं देने वाला,’’ उधर से रुधिर के पापा ने कहा.

यह सुन कर रक्ताभ घबरा गया और उस ने फोन काट दिया. साथ में खड़ी हुई लालिमा और सिंदूरी से पूरी बात बताते हुए वह बोला, ‘‘कहीं हमारा दांव उलटा तो नहीं पड़ गया?’’

‘‘अब क्या होगा?’’ लालिमा घबराते हुए बोली.

‘‘अरे, इस समय तक तो रुधिर घर पहुंचता ही नहीं है. हम ने फोन में जल्दबाजी कर दी है. इसी कारण अतिआत्मविश्वास के साथ वे ऐसी बातें कर रहे हैं. 2 घंटे बाद उन्हें जब मालूम पड़ेगा की रुधिर सचमुच घर नहीं पहुंचा, तब वे घबराएंगे और हमारी बात मान लेंगे,’’ सिंदूरी ने अनुमान लगाया.

‘‘हां, हां, शायद ऐसा हो. ऐसा करते हैं हम शाम को 6 बजे पार्क में मिल कर फोन लगाते हैं,’’ रक्ताभ ने सहमति जताई.

‘‘सिंदूरी इस बार तुम फोन लगाओ. अब तो 6 घंटे गुजर चुके हैं. शायद अब तक रुधिर के घर वाले घबरा गए हों,’’ रक्ताभ ने पार्क में मिलते ही कहा.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ लालिमा ने समर्थन किया.

‘‘ठीक है, मैं फोन लगाती हूं,’’ सिंदूरी ने कहा और फोन लगाने लगी, ‘‘हैलो, शांतिलालजी…’’

‘‘हां, मैं शांतिलाल ही बोल रहा हूं.’’ वे बीच में ही सिंदूरी की बात काटते हुए बोले, ‘‘तुम किडनैपर्स गैंग से बोल रही हो न? मेरा जवाब अभी भी वही है जो पहले था. आप लोग मेरा व अपना समय बरबाद न करें,’’ कहते हुए शांतिलाल ने गुस्से में फोन काट दिया.

‘‘अब क्या करें? इन पर तो कोई असर नहीं हो रहा,’’ लालिमा बोली.

‘‘अब तो हमें रुधिर से संपर्क करना ही पड़ेगा. वह ही बता सकता है आगे क्या करना है, ‘‘सिंदूरी ने कहा.

‘‘शायद रुधिर लैंडलाइन फोन बंद न कर पाया हो और शांतिलालजी का फोन आने पर रामू अंकल ने रुधिर की उपस्थिति के बारे में बता दिया हो,’’ लालिमा ने आशंका व्यक्त की.

‘‘हां, हो सकता है. अगर ऐसा है तो हमें रुधिर से संपर्क स्थापित करना चाहिए,’’ सिंदूरी बोली.

‘‘ठीक है मैं रुधिर का मोबाइल लगाता हूं,’’ रक्ताभ रुधिर को फोन डायल करते हुए बोला, ‘‘अरे, इस का फोन तो स्विच औफ है.’’

‘‘मतलब, रुधिर को इस बारे में कुछ नहीं मालूम. हमें उसे बताना चाहिए,’’ सिंदूरी बोली.

‘‘मगर बताएं कैसे?’’ रक्ताभ बोला.

‘‘चलो, अभी तुम्हारी बाइक से चलते हैं,’’ सिंदूरी बोली.

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‘‘नहीं, अभी नहीं जा सकते क्योंकि वह इलाका सुनसान है और अकसर वहां लूटडकैती की वारदातें होती रहती हैं,’’ रक्ताभ ने बताया.

‘‘फिर क्या करें?’’ सिंदूरी नर्वस होती हुई बोली.

‘‘देखो, कल संडे है. मैं 9 साढ़े 9 बजे जा कर उस से मिल लूंगा. वहीं पर अगली रूपरेखा बना लेंगे,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ लालिमा ने समर्थन किया.

‘‘हैलो लालिमा. तुरंत सिंदूरी को कौन्फ्रैंस कौल पर लो,’’ सुबह साढ़े 9 बजे रक्ताभ की घबराई हुई आवाज में फोन आया.

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Social Story In Hindi: बात एक राज की- भाग 1- दोस्तों की एक योजना का क्या था अंजाम

रक्ताभ, रुधिर, लालिमा और सिंदूरी चारों कालेज के कैंपस में बैठ कर गपशप कर रहे थे, तभी शिरा ने आ कर सूचना दी.

‘‘फ्रैंड्स, खुश हो जाओ. कालेज हम लोगों का एनुअल टूर अरेंज कर रहा है

अगले महीने.’’

‘‘अरे वाह, किस ने बताया तुझे?’’  लालिमा ने पूछा, ‘‘कहां जा रहा है?’’

‘‘नोटिस बोर्ड पर नोटिस लगा है. नौर्थ इंडिया का टूर है. शिमला, कुल्लूमनाली, डलहौजी, धर्मशाला और भी कई जगहें हैं. पूरे 15 दिनों का टूर है,’’ शिरा ने बताया.

‘‘कितने पैसे लगेंगे?’’ सिंदूरी ने पूछा.

‘‘40 हजार रुपए पर हैड,’’ शिरा ने बताया और बाय कर के चली गई.

‘‘यार, हमारा तो फाइनल ईयर है. हमें तो जाना ही चाहिए. भविष्य में हमें साथ जाने का मौका शायद न मिले,’’ रक्ताभ खुश होता हुआ बोला.

‘‘मैं तो जाऊंगी,’’ लालिमा चहकते हुए बोली.

‘‘मैं भी,’’ सिंदूरी भी उसी लय में बोली.

‘‘मैं नहीं जा पाऊंगा. मेरा कंजूस बाप फीस के लिए तो बड़ी मुश्किल से पैसे देता है. टूर के लिए तो बिलकुल नहीं देगा,’’ रुधिर कुछ गंभीर किंतु निराश स्वर में बोला.

‘‘ऐसा नहीं है, यार. तेरे पापा का इतना अच्छा बिजनैस है. करोड़ों की फर्म है. कई ट्रस्ट और पार्कों में उन के द्वारा दान में दी गई वस्तुएं लगी हैं. एक बार रिक्वैस्ट कर के तो देख. बेटे की खुशी से बढ़ कर एक पिता के लिए और कुछ नहीं होता,’’ रक्ताभ रुधिर को समझाते हुआ बोला.

‘‘अगर रुधिर नहीं जाएगा तो मैं भी नहीं जाऊंगी,’’ रुधिर की क्लोज फ्रैंड सिंदूरी बोली.

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‘‘सिंदूरी नहीं गई तो मेरे घर वाले मुझे भी नहीं जाने देंगे. क्योंकि मेरे घर वाले किसी और पर विश्वास नहीं करते,’’ लालिमा बोली.

‘‘लो, यह लो. यह तो पूरा प्लान ही खत्म हो गया,’’ रक्ताभ निराशाभरे स्वर में बोला.

‘‘क्या रुधिर के लिए चंदा इकट्ठा नहीं कर सकते?’’ सिंदूरी ने प्रश्न किया.

‘‘हम सब साधारण घरों से हैं. 40 हजार रुपए के अलावा 10 हजार रुपए खर्चे के लिए चाहिए. मतलब 50 हजार रुपए. इतना पैसा भी निकालना हमारे घर वालों के लिए मुश्किल होगा,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘हां, यह बात तो सही है,’’ लालिमा ने सहमति व्यक्त की.

‘‘टूर अगले महीने की 25 तारीख को जाएगा. आज तो 3 ही तारीख है. अभी डेढ़ महीने से ज्यादा समय है. कल मिल कर सोचते हैं क्या करना है,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘नहीं, जो सोचना है आज ही सोचना है. बैठो और बैठ कर सोचो,’’ रुधिर बोला, ‘‘मेरे पापा से पैसे कैसे निकलवाए जाएं.’’

‘‘उन्होंने शायद बहुत मुश्किलों से यह पैसा कमाया है और शायद यह चाहते हों कि तुझे पैसों की सही कीमत पता चले. इसलिए तुझे पैसे देने की आनाकानी करते हों,’’ रक्ताभ ने अपने विचार रखे.

‘‘कारण कुछ भी हो, अभी टूर के लिए पैसे कैसे जमा किए जाएं, यह सोचो,’’ रुधिर सामान्य होता हुआ बोला.

‘‘क्या सोचूं? किसी का मर्डर करूं? किसी का किडनैप कर फिरौती मांगूं?’’ रक्ताभ झुंझलाता हुआ बोला.

‘‘किडनैप? वाह, क्या बढि़या आइडिया है. हम किडनैप ही करेंगे,’’ रुधिर खुशी से उछलते हुए बोला.

‘‘किडनैप? अरे बाप रे,’’ लालिमा डर कर आश्चर्य से बोली.

‘‘किस का किडनैप करोगे, रुधिर? देखो, कोई गलत कदम मत उठाना वरना सारी उम्र पछताना पड़ेगा,’’ सिंदूरी भी विरोध करते हुए बोली.

‘‘अरे, किसी दूसरे का नहीं, मेरा किडनैप, तुम सब मिल कर मेरा किडनैप करोगे और मेरे बाप से फिरौती मांगोगे. कम से कम लोकलाज की खातिर वे फिरौती तो देंगे ही,’’ रुधिर अपनी योजना बताते हुए बोला.

‘‘और अगर पुलिस को बता दिया तो हम सब अंदर जाएंगे,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘मेरी मां ऐसा नहीं करने देंगी,’’ रुधिर ने कहा.

‘‘लेकिन पुलिस को सूचना दे दी तो? तब क्या होगा?’’ रक्ताभ ने संशय जाहिर किया.

‘‘चलो, हम सब बैठते हैं और एक फूलप्रूफ प्लान बनाते हैं,’’ रुधिर सभी को बैठाते हुए बोला.

‘‘नहीं रुधिर, यह गलत है,’’ सिंदूरी ने एक बार फिर विरोध किया.

‘‘क्या सही क्या गलत? एक फिल्म के गाने की लाइन है ‘जहां सच न चले वहां झूठ सही, जहां हक न मिले वहां लूट सही… मैं अपना हक ही तो ले रहा हूं,’’ रुधिर बोला.

‘‘चल ठीक है. अपना प्लान बता,’’ रक्ताभ बात को समाप्त करने के दृष्टिकोण से बोला, ‘‘हमारी योजना में सब से बड़ी बाधा पुलिस ही रहेगी.’’

‘‘वह कैसे?’’ रुधिर ने पूछा.

‘‘वह ऐसे कि कालेज में हम चारों का ही ग्रुप है. यदि किसी एक को अचानक कुछ होता है तो बाकी के 3 शक के दायरे में आएंगे ही न,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘इस का समाधान खोज लिया है मैं ने. प्लान शुरू होने के 3-4 दिनों से पहले से मैं घर से कालेज के लिए निकलूंगा जरूर, मगर मैं कालेज में आऊंगा नहीं. कालेज रिकौर्ड से यह साफ हो जाएगा कि मैं कालेज आ ही नहीं रहा हूं, बल्कि यह भी साबित होगा कि मैं किसी तीसरे के साथ हूं,’’ रुधिर ने अपनी योजना बतानी प्रारंभ की.

‘‘तो तू रहेगा कहां? किसी को तो दिखाई देगा न?’’ लालिमा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं किसी को भी दिखाई नहीं दूंगा क्योंकि मैं घर से निकल कर पास के प्लौट पर बने गैराज में छिप जाऊंगा. जब से पापा ने नई कार ली है तब से गैराज में पुरानी गाड़ी ही खड़ी रहती है. मेरी साइकिल भी वहां पर आसानी से घुस जाएगी. कालेज छूटने के समय मैं वापस घर पहुंच जाऊंगा. मां अकसर घर के अंदर ही रहती हैं, इसलिए उन्हें कुछ मालूम नहीं पड़ेगा और तुम लोग भी शक के दायरे से बाहर ही रहोगे,’’ रुधिर ने अपनी योजना का पहला दृश्य सामने रखा.

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‘‘चलो, यहां तक तो ठीक है पर किडनैपिंग होगी कैसे? और किडनैपिंग के बाद तुझे रखेंगे कहां?’’ सिंदूरी ने उत्सुकता से प्रश्न किया.

‘‘जो भी दिन किडनैपिंग के लिए निश्चित किया जाएगा उस दिन मैं कालेज के नाम पर निकल कर शहर के दूसरे छोर पर बने रैस्टोरैंट में पहुंच जाऊंगा. वहां पर मैं अपनी साइकिल रख कर लगभग आधा किलोमीटर पैदल जाऊंगा. इतने बड़े शहर में मुझे कोई पहचानेगा, इस बात की संभावना कम ही है. वहां से रक्ताभ मुझे अपनी बाइक से 20 किलोमीटर दूर मेरे फार्महाउस पर छोड़ आएगा. पुलिस सब जगह ढूंढे़गी मगर मुझे मेरे ही घर में नहीं ढूंढे़गी.’’ रुधिर ने आगे कहा.

‘‘पर वहां तो तुम्हारे बरसों पुराने चौकीदार रामू अंकल हैं न?’’ रक्ताभ ने कहा.

‘‘हां, हैं तो सही. वे बहुत ही सीधे और अनपढ़ हैं. उन्हें तो लैंडलाइन से डायल करना भी नहीं आता. मैं जाते ही फोन को डेड कर दूंगा. मेरा विचार है एक या ज्यादा से ज्यादा 2 दिनों में ही अपना प्लान कंपलीट हो जाएगा,’’ रुधिर ने आशा जताई.

‘‘वह सब तो ठीक है. फिरौती की रकम कब, कहां और कितनी मांगनी है?’’ रक्ताभ ने पूछा.

‘‘हमारी आवश्यकता तो सिर्फ 40 हजार रुपए ही है,’’ लालिमा बोली.

‘‘अरे, नाक कटवाओगे क्या? इतनी रकम तो लोग कुत्तेबिल्ली का किडनैप करने के भी नहीं मांगते हैं. तुम ऐसा करना 5 लाख रुपए मांग लेना,’’ रुधिर रक्ताभ को निर्देश देता हुआ बोला.

‘‘5 लाख रुपए? यह तो बहुत अधिक हो जाएगा. क्या करेंगे हम इतने रुपयों का?’’ रक्ताभ का मुंह आश्चर्य से खुल गया.

‘‘देखो, जैसी कि रीत है, मांगने वाले को उतने पैसे तो मिलते नहीं हैं जितने वह चाहता है. कुछ मोलभाव अवश्य होता है. ऐसी स्थिति में तुम 2 लाख रुपए पर डील पक्की कर लेना,’’ रुधिर ने समझाया.

‘‘2 लाख रुपए भी ज्यादा हैं. क्या करेंगे हम इतने पैसों का?’’ लालिमा कुछ चिंतित स्वर में बोली.

‘‘तुम लोगों के टूर के पैसे भी मैं दे दूंगा.

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भाई का  बदला: भाग 2- क्या हुआ था रीता के साथ

इधर अमन और उस के पिता समझ चुके थे कि रमन का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है.  वह दिनभर फोन और कंप्यूटर पर लगा रहता है  हालांकि रीता के बारे में उन्हें कुछ पता न था.  सेठ ने  दोनों बेटों को बुला कर कहा, “मैं सोच रहा हूं, तुम दोनों की शादी पक्की कर दूं.  सेठ जमुनालाल ने अपनी इकलौती बेटी दिया के लिए रमन में दिलचस्पी दिखाई है. हालांकि, दिया  ट्वेल्फ्थ ड्रौपआउट  है पर उस में अन्य सराहनीय गुण हैं. मैं देख रहा हूं कि   रमन का जी पढ़ाई में नहीं लग रहा है.   अमन के लिए भी एक लड़की है मेरी नजर में, कल ही उस के पिता से बात करता हूं. उसे तुम भी जानते हो, शालू, जो कुछ साल तुम्हारे ही स्कूल में पढ़ी थी.  वह बहुत अच्छी लड़की है, मुझे तो पसंद है.“

अमन बोला, “हां, मैं शालू को जानता हूं पर  पापा मेरी पढ़ाई अगले साल पूरी हो रही है, इसलिए तब तक  मैं शादी नहीं करूंगा.“

“मैं ने शालू के पिता को भरोसा दिया है कि अमन मेरी बात नहीं टालेगा. उन्हें इनकार कर मुझे बहुत दुख होगा.“

“पापा, आप का भरोसा मैं नहीं टूटने दूंगा, न ही आप उन्हें इनकार करेंगे. बस, आप उन से कहिए कि चाहें तो सगाई अभी कर सकते हैं और शादी मेरे फाइनल एग्जाम के बाद होगी.”

“बहुत  अच्छी बात कही है तुम ने बेटा, सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे वाली बात हुई. ठीक है, मैं उन्हें बता दूंगा.“

“ठीक है, शादी अगले साल ही होगी.  इसी साल किसी अच्छे मुहूर्त देख कर तुम दोनों भाइयों की सगाई कर देता हूं.“

“ओके पापा.“

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एक महीने के अंदर दोनों भाइयों  की सगाई होने वाली थी.  रमन ने यह सूचना अपनी फेसबुक फ्रैंड रीता को बता दी.  रीता ने उसे बधाई  दी.  अगले दिन से रीता के अकाउंट्स से रमन को धमकियां  मिलने लगीं- “तुम ने एक नाबालिग लड़की से फेसबुक पर अश्लील हरकतें की हैं.  मैं तुम्हारे सारे फोटो तुम्हारी मंगेतर, तुम्हारे पापामम्मी और सारे फ्रैंड्स व रिश्तेदारों  को फौरवर्ड कर दूंगी  और साथ ही, सोशल मीडिया पर भी.“

“तुम कैसी फ्रैंड हो…  मैं ने तुम्हारी मदद की और अब तुम मुझे बेइज्जत करने की सोच रही हो?“ रमन ने कहा.

“मैं कुछ नहीं जानती, एक नाबालिग लड़की से ऐसी गंदी हरकतें करने के पहले तुम्हें सोचना चाहिए था.  अगर तुम अपने परिवार को बेइज्जती और बदनामी से बचाना चाहते हो तो  तुम को मुझे 10 लाख रुपए देने होंगे.  सेठ रोशनलाल के बेटे  हो और सेठ जमुनालाल के इकलौते दामाद बनने जा रहे हो. इतनी रकम जुटाना कोई बड़ी बात नहीं है.“

“इतनी बड़ी रकम मैं नहीं दे सकता.“

“अगर तुम नहीं मानते,  तब मुझे भी मजबूर हो कर सख्त कदम उठाना होगा. सभी को तुम्हारी गंदी और अश्लील हरकतों की जानकारी देनी होगी. दोनों परिवारों की बदनामी तो होगी ही और तुम दोनों भाइयों की शादी का क्या होगा, वह तुम समझ सकते हो.“

कुछ दिनों तक दोनों के बीच ऐसा ही चलता रहा.  रमन बहुत परेशान और दुखी रहने लगा.  घरवालों के पूछने पर कुछ बताता भी नहीं था.  अब  सगाई में मात्र 10 दिन रह गए थे.  रीता ने रमन से कहा, “ब मैं और इंतजार नहीं कर सकती.  तुम्हें, बस, 3  दिन का समय दे रही हूं.  तुम रुपए ले कर जहां कहूं वहां आ जाना. कब और कहां, मैं थोड़ी देर में  बता दूंगी.  वरना, अंजाम तुम समझ सकते हो.“

एक रात अमन  छोटे भाई रमन  के कमरे के सामने से गुजर रहा था. रमन का कमरा अधखुला था.  उस ने रमन को  कमरे में तकिए में मुंह छिपा कर सिसकते देखा. वह  रमन के पास गया  और उस से रोने का कारण पूछा. रमन अपने भाई के गले लग कर रोने लगा. अमन ने उसे चुप कराया और  कहा, “अपने भाई से अपने दुख का कारण शेयर करो. अगर  मैं तुम्हारा दुख कम नहीं कर सका, तब भी शेयर करने से  कम से कम मन का बोझ कम हो सकता है.  चुप हो जाओ और अब  शेयर करो अपनी बात.“

रमन ने रोते हुए अपने  और रीता के बीच हुई सारी बातें बताईं. रमन की बातें सुन कर अमन बोला, “बस, इतनी सी बात है. तुम अब इस की चिंता छोड़ दो. हम दोनों मिल कर उस रीता की बच्ची को छठी के  दूध की याद दिला देंगे. इतना ही नहीं, हम दोनों की भावी पत्नियां भी रीता को सबक सिखाने में हमारी मदद करेंगी.“

“पर क्या शालू भाभी और दिया को यह बताना सही होगा?“

“अगर सही नहीं है तो इस में कुछ गलत भी नहीं है. तुम्हारी गलती इतनी है कि तुम अपनी  नादानी और बेवकूफी के कारण  रीता के ब्लैकमेल के जाल  में फंस चुके हो. तुम्हें शायद पता नहीं है कि शालू को आईटी की अच्छी जानकारी है. दिया तुम्हारी भावी पत्नी है, उसे तुम सचाई बता सकते हो. इतना ही नहीं, दिया ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट ले चुकी है. इन दोनों को अपने जैसा कमजोर न समझो. हम चारों मिल कर इस स्थिति से निबटने का कोई  उपाय निकाल लेंगे.  तुम दिया को कौन्फिडैंस में लो और रीता से बात करते रहो कि पैसों  का इंतजाम कर रहा हूं, कुछ समय दो.“

“क्या हमें पुलिस की मदद लेनी होगी?“  रमन ने पूछा.

“नहीं, अगर लेनी भी पड़ी तो  रीता को पकड़ने के बाद. आखिर तुम्हारी तसवीरें तो उस के मोबाइल या अन्य सिस्टम में स्टोर हैं और वह तुम्हें गलत साबित कर सकती है.”

दोनों भाई और उन की भावी पत्नियों ने मिल कर रीता से निबटने का प्लान बनाया. रमन ने रीता को फोन कर कहा, “देखो 10 लाख रुपए का इंतजाम तो मैं नहीं कर सकता, 5 लाख रुपए तो तैयार ही समझो. इतने से  तुम्हारा काम हो जाना चाहिए.“

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फोन की बातें अमन, दिया और शालू भी सुन रहे थे. रीता ने कहा, “नहीं, 5 लाख से काम नहीं चलेगा.“

रमन बोला, “तब ठीक है, कल के पेपर में मेरे सुसाइड करने की खबर पढ़ कर तुम्हारा काम हो  जाना चाहिए.“

“अरे नहीं यार, मैं उतनी जालिम नहीं हूं. तुम्हारे मरने से मुझे क्या हासिल होगा. ऐसा करो, 2 लाख और दे देना. बस, फुल एंड फाइनल,“ रीता बोली.

आगे पढ़ें- अगले दिन रीता ने फोन कर रुपयों के साथ..

सफेद सियार: भाग 3- क्या अंशिका बनवारी के चंगुल से छूट पाई?

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

अंशिका ने कार के पीछे वाले कांच पर पेंट से लिखा हुआ प्रचार विज्ञापन पढ़ा, “कोरोना विपदा की इस घड़ी में आप का सच्चा साथी ‘जागृति सेवा संस्थान’. उस के नीचे ब्रैकेट के अंदर छोटे अक्षरों में लिखा था, “आप भी इस संस्था को कोई भी राशि दान कर सकते हैं. आप का छोटा सा सहयोग इस आपदा की घड़ी में गरीबों और जरूरतमंदों के काम आ सकता है.”

उन के जाते ही बाहरी दरवाजा बंद कर के अंदर आ कर अंशिका ने सामान एक तरफ रखा. कमरे में झांक कर मां को देखा. वे अभी भी सो ही रही थीं.

पूरे घर में उदास सा सन्नाटा पसरा था. फ्रेश होने के लिए बाथरूम की तरफ कदम बढ़ाने से पहले अंशिका ने हाथ में पकड़े कार्ड पर नजर डाली और संस्था के संस्थापक और संचालक का नाम पढ़ कर चौंक पड़ी, ‘बनवारी लाल’.

फ्रेश होने के बाद वह चाय का थर्मस और 2 कप लिए हुए गहरी नींद में सो रही मां के पलंग के पास पड़ी कुरसी पर आ कर बैठ गई. उस ने एक बार और कार्ड को फिर से उलटपुलट कर देखा और सोचने लगी कि बनवारी अंकल तो बहुत बड़ी समाजसेवा में जुटे हैं. उन के प्रति अब तक तो वह बहुत गलत धारणा पाले हुए थी.

उस की नजरों मे वो दृश्य घूम गया, जब 4 साल पहले वह अपने मातापिता और भैया के साथ बनवारी अंकल की कार में बैठ कर उन का ये घर देखने आई थी. उसी साल उस के पिता फर्टिलाइजर फैक्टरी के स्टोर इंचार्ज पद से रिटायर हुए थे. पेंशन न के बराबर थी. फंड का जो पैसा मिला था, उस में से कुछ रकम उन्होंने एफडी में डाल दी थी और कुछ रुपया जमीन खरीदने में फंसा दिया था.

मधुसूदन सोचते थे कि जमीन मिलते ही रजिस्ट्री करवा कर अंशिका की शादी के लिए जब वह उसे बेचेंगे तो अच्छी रकम हाथ आ जाएगी, इसलिए वह निश्चिंत थे.

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मधुसूदन के रिटायरमेंट से कुछ महीने पहले आलोक का ग्रेजुएशन पूरा हो चुका था. उस की रुचि टूर ऐंड ट्रेवल्स के क्षेत्र में जाने की ज्यादा थी, इसलिए उस ने मास्टर इन टूरिज्म का डिप्लोमा करने के बाद कई जगह एप्लाई करना शुरू कर दिया था. दिन बीत रहे थे, लेकिन कोरोना ने सारी प्लानिंग चौपट कर दी थी.
हालांकि तब तक वे सब इस घर में आ चुके थे.

इस से पहले जिस घर में पिछले कई सालों से वे किराए पर रहते थे, वह काफी पुराना और कई तरह की सुविधाओं से वंचित था. धूप तो आती ही नहीं थी. पानी की भी हमेशा किल्लत बनी रहती थी.

फिर जब एक दिन मधुसूदन ने घर आ कर बताया कि कभी उन के साथ ही स्टोर का कार्यभार संभालने वाला बनवारी लाल, जो बीच में ही नौकरी छोड़ कर क्षेत्रीय राजनीति में घुस कर ठेकेदारी करने लगा था, उस का धनबाद में एक नया बना मकान खाली पड़ा है और वो हमें किराए पर देने को तैयार है.

उन सब को अपनी कार में ले कर जब वह इस घर में आया, तो मकान दिखाते समय बनवारी ने कई बार अंशिका के कंधों पर, पीठ पर या फिर सिर पर प्यार भरे हाथ फेरते हुए उसे अंशिका की जगह अंशी कहते हुए पूछा, “क्यों अंशी, कैसा लगा मकान?”

बनवारी का स्पर्श तभी होता था, जब सब का ध्यान मकान में बनी सुविधाएं देखने में लगा होता.

जब अंशिका उन की तरफ देखती, तो उसे अंकल की नीयत में खोट लगती. वह दौड़ कर मां या भाई के पास पहुंच कर खड़ी हो जाती.

मधुसूदन, कुमुद और आलोक के साथ मकान तो अंशिका को भी पसंद आ गया था, परंतु उसे बनवारी अंकल की नीयत समझ में नहीं आई थी. उस ने अपने मन को समझाया, ”अरे, कौन सा मुझे यहां अकेले रहना है…? पापा, भैया और मम्मी सभी तो साथ रहेंगे.”

मधुसूदन और उस का पूरा परिवार बनवारी के इस मकान में किराए पर रहने लगा. बनवारी 1 से 7 तारीख के बीच मिलने आ जाता. एक मकसद तो किराया लेना होता था और दूसरा अंशिका पर अपना प्रभाव डालना.

इस के लिए बनवारी कभी जलेबी, तो कभी गरमागरम समोसे, गुलाब जामुन या फिर खस्ता कचौड़ी अवश्य ले आता और तब खाता, जब पापा या मम्मी द्वारा अंशिका को सामने बुला कर बैठा न लेता…

मधुसूदन के हार्ट के आपरेशन के बाद जब कुमुद अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में देखरेख के लिए वहीं रहती और आलोक घर से अस्पताल की दौड़भाग में लगा होता, तो बनवारी मौका ताड़ कर अंशिका से मिलने चला आता.

हाथ में पकड़े हुए गरम समोसे और जलेबी के पैकेट अंशिका को पकड़ाते हुए कहता, “तुम्हारे पापा को देख कर अस्पताल से लौट रहा था, तो मन हुआ कि अपनी अंशी के लिए लेता चलूं और उस के हाथ की चाय पीता जाऊं.”

अंशिका को समझ में नहीं आता कि वह करे तो क्या करे. वह उन के लिए जल्दी चाय बना लाती, ताकि जल्द ही वह घर से चला जाए. बनवारी की नीयत वह खूब समझती थी.

एक दिन अंशिका ने हिम्मत कर के टोक ही दिया, ”अंकल, अब मुझे न समोसे पसंद आते हैं और न ही जलेबी. आप को ये सब लाने की कोई जरूरत नहीं है.”

“तो तुझे और क्या पसंद है, मुझे बता. मैं वही चीज ले आया करूंगा.”

“मुझे एकांत और अकेले में रहना पसंद है. मैं चाहती हूं कि कोई मुझे डिस्टर्ब न करे.”

उस के बाद बनवारी के आने वाले समय पर अंशिका घर में ताला लगा कर अड़ोसपड़ोस की किसी सहेली के यहां चली जाती और वहीं से भाई आलोक को फोन कर के बता देती कि लौटते समय वह उसे ले ले.

मधुसूदन के अस्पताल से वापस आने तक यही चलता रहा. फिर सब सामान्य हो गया.

बनवारी मधुसूदन से किराया लेने तो आता, पर उसे लगता कि अंशिका ने अपनी मां को कहीं सब बता न दिया हो, क्योंकि वह एक अज्ञात डर से कुमुद से बहुत देर तक आंख मिला कर बात नहीं करता.

एक बार कुमुद ने टोक दिया, “क्यों बनवारी भैया, अब तुम हमें समोसे ला कर नहीं खिलाते.”

इतना सुनते ही वह चौंक गया, फिर बात बनाते हुए बोला, “अरे भाभी, अब मेरा उधर जाना नहीं होता. और फिर मुझे अब समोसेजलेबी अच्छे भी नहीं लगते,” कहते हुए वह किराया ले कर तुरंत मधुसूदन के पास से उठ जाता, लेकिन उस की चोर निगाहें अंशिका को आसपास खोजतीं जरूर.

समय ऐसे ही बीत रहा था.

वह तो भला हो कि पिछला पूरा साल लौकडाउन में बीता और बनवारी लाल का इस घर में आनाजाना न के बराबर हो गया. शायद उसे डर था कि कहीं वह भी कोरोना वायरस की चपेट में न आ जाए.

आलोक ने अपनी मां कुमुद के मोबाइल पर पेटीएम अकाउंट बना दिया था. महीने का किराया उसी से बनवारी के पेटीएम अकाउंट में जमा हो जाता था.

अचानक अंशिका विचारों से बाहर निकल आई. कुमुद की आंख खुल गई थी. हड़बड़ा कर वह उठ कर पलंग के नीचे पैर लटका कर बैठ गई.

कुछ देर बाद जैसे ही उस के मस्तिष्क ने कल रात के घटनाक्रम को आज के समय से जोड़ा, तो वह फिर जोरों से कराह उठी, रोने और सिसकने लगी.

अंशिका ने कुरसी से उठ कर मां से सट कर बैठते हुए बड़ों की तरह समझाया, “मां, अब हमें धैर्य और हिम्मत से काम लेना होगा. रोनेधोने से कोई भी वापस आने वाला नहीं. तुम उठो, फ्रेश हो, हाथमुंह धो लो, कुल्लामंजन करो, फिर मैं तुम्हें गरमागरम चाय बना कर पिलाती हूं.”

“अरे, चाय तू ने कब बनाना सीख ली. तुझे तो पता है कि घर में किसी की डेथ हो जाने के बाद 5 दिन तक चूल्हा नहीं जलता है… और तू…”

“लेकिन मां, मैं ने चूल्हा नहीं जलाया. हां, यदि समाजसेवी संस्था वाले इस थर्मस में चाय और दोनों वक्त का खाना न दे जाते तो मैं गैस जला कर चाय और खाना जरूर बनाती. आप को भूखा थोड़े ही रहने देती और न खुद रहती.”

“लेकिन, अभी दाह संस्कार और शुद्धि हवन तक नहीं हुआ है और…”

“सब हो गया मां. समाजसेवी संस्था के जो लोग आए थे, उन्होंने पापा और भैया का दाह संस्कार भी कर दिया और शुद्धि हवन भी वही करवा देंगे.”

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“लेकिन बेटी…?”

“मां प्लीज अब सामने जो सच है, उसे स्वीकार करो. और सोच लो कि अब हमें और तुम्हें ही अपना जीवन चलाना है. तुम ने ही नहीं, मैं ने भी अपनों को खोया है, लेकिन ये निराशा भरी और पुरानी सोच वाली बातें भूल जाओ, पहले फ्रेश हो कर आओ.”

कुमुद यंत्रवत सी उठी. लौटी तो अंशिका ने उन्हें चाय पिलाई.

देखते ही देखते ये हफ्ता, इस से अगला हफ्ता भी बीत गया. लौकडाउन की अवधि 1-1 हफ्ते के हिसाब से राज्य सरकार द्वारा बढ़ाई जाती रही.

‘जागृति सेवा संस्थान’ के लड़के अदलबदल कर हालचाल लेने और आवश्यक घरेलू सामान पहुंचाने आते रहे. उन्हीं में से एक लड़का इधर लगातार आ रहा था, जो देखने मे हैंडसम और पहनावे से कुछ पढ़ालिखा और किसी अच्छे परिवार का लग रहा था, लेकिन कम बोलता था. चेहरे से हमेशा गंभीर बना रहता था. उस से अंशिका ने एक दिन पूछ लिया, ”क्या नाम है तुम्हारा?”

“जुगल किशोर.”

“इस संस्था में कब से जुड़े हो?”

“पिछले 5 महीने से. मोटर के स्पेयर पार्ट बनाने वाली फैक्टरी पिछले लौकडाउन में ही बंद हो गई थी और हमारे जैसे सभी टेक्निकल सर्टिफिकेट कोर्स करे हुए मजदूरों को नौकरी से निकाल दिया गया था.

“अब घर में सब का पेट तो भरना ही है, इसलिए बनवारी लाल के सेवा संस्थान में ड्राइवर की नौकरी कर ली. उन की परमिट मिली गाड़ी ले कर संस्थान के काम से इधरउधर जाता रहता हूं.

“मेरा शादीशुदा चचेरा भाई भी बेरोजगार हो कर परेशान था. उसे भी मैं ने इस संस्थान के औफिस में सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी पर लगवा दिया है.”

आगे पढ़ें- अंशिका ने आगे पूछा..

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