क्या कूल हैं ये: भाग 2- बेटे- बहू से मिलने पहुंचे समर का कैसा था सफर

40-45 उम्र का अच्छाखासा आदमी लग रहा था. पहले ही दिन पूरा इतिहास जान लिया मैं ने उस का… भारत में कहां का रहने वाला है, परिवार में 2 बड़े बच्चे हैं और कौनकौन है, वगैरहवगैरह.

बेटा हतप्रभ, ‘‘ममा, इतने वक्त में हमें नहीं पता यह कहां का है और आप ने इतनी जल्दी इस की 7 पुश्तें खंगाल डालीं.’’

‘‘ममा लेखिका जो हैं,’’ समर ने चुटकी ली.

मैं दोनों की चुटकियों को अनसुना कर पूरण को खाना बनाते देख रही थी. ‘‘ऐसे क्या बना रहे हो तुम. ऐसे कोई सब्जी बनती है?’’ कुकिंग का बेहद शौक है मु झे. जैसातैसा नहीं खा सकती. इसलिए कामवालों का बनाया खाना पसंद नहीं आता. भारत में आशा के अलावा आउट हाउस में एक परिवार रहता है. इसलिए आशा और सविता के रहतेकाम करने की जरूरत भले ही न पड़े, पर खाना बनाना मेरा प्रिय शगल था. वह मैं किसी पर नहीं छोड़ती हूं.

‘‘तुम ने गैस बंद क्यों कर दी? अभी तो सब्जी भुनी भी नहीं है, पूरण. ऐसा ही खाना खिलाते हो बच्चों को?’’

‘‘अरे ममा, चलो,’’ बेटा मु झे हंस कर खींचते हुए बोला, ‘‘आप को पूरण का बनाया खाना पसंद नहीं आएगा तो बाहर से और्डर कर दूंगा, यहां भारतीय खाना जितना अच्छा और फ्रैश मिलता है, उतना तो भारत में भी नहीं मिलता.’’

मजबूरी में मैं बेटे के साथ आ गई. लेकिन दिल कर रहा था, अभी के अभी इसे पूरी कुकिंग सिखा दूं कि ऐसा खाना खाते हैं मेरे बच्चे.

लेकिन पूरण का बनाया खाना 4-5 दिनों तक खाने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि शुक्रवार और शनिवार 2 दिन छुट्टी के थे और उस के बाद भी बच्चों ने कुछ दिनों की छुट्टी ले ली थी. घर से एक बार निकले हम चारों, रात एकडेढ़ बजे से पहले घर नहीं आ पाते थे.

जैसे उम्र का और रिश्ते का अंतर ही नहीं रह गया था चारों में. कितनी शिकायतें हैं आज के समय में इस नई पीढ़ी से सब को. पर इस कूल जनरेशन के रंग में रंग जाओ, तो लगता है जैसे अपनी उम्र से कई साल पीछे लौट गए. कुछ भी याद नहीं रह रहा था. उन्हीं के जैसी बातें, मस्ती, कहकहे और ताकत भी… पता नहीं कहां से आ गई थी. न बच्चे सोच रहे थे कि वे हमें सुबह 11 बजे से रात 11 बजे तक चला रहे हैं और न हम सोच रहे थे. न समय का ध्यान था और न डेट याद रह रही थी.

लग रहा था जैसे चारों दोस्त होस्टल में रह रहे हैं. और सब से बढ़ कर तो घर में मुश्किल से 3-4 साल पहले आई हमारी प्यारी बहू इशिता, उस के साथ महसूस ही नहीं हो रहा था कि वह कभी हम से जुदा भी थी. घूमने जाते तो वह कभी एक बड़ा कप आइसक्रीम ला कर सब को बारीबारी से खिलाती रहती तो कभी कोल्डडिं्रक ला कर सब को पिलाती. वह जूठे तक का परहेज न करती हमारे साथ. उसे देख कर लगता जैसे यहीं जन्म लिया हो उस ने. उस के आचरण से उस के संस्कार भी साफ दिखाई देते और महसूस करा देते कि जब मातापिता तबीयत से बेटी का पालनपोषण करते हैं तो बेटियां भी ऐसे ही प्यार से  2 घरों को जोड़ देती हैं.

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छुट्टियां खत्म हो गई थीं और अब कल से बच्चों को औफिस जाना था, इसलिए आज जल्दी वापस आ गए थे. डिनर और्डर कर रहा था रिषभ, मैं बीच में बोल पड़ी, ‘‘चपाती और्डर करने की जरूरत नहीं, रिषभ, मैं बना लूंगी.’’

‘‘क्यों बना लेंगी, ममा. कोई जरूरत नहीं बनाने की,’’ इशिता बोली.

‘‘इसलिए, क्योंकि चपाती तो घरवाली ही अच्छी होती है,’’ मैं किचन की तरफ जाते हुए बोली और बच्चों की बात अनसुना कर चपाती बनाने लगी. डिनर आ गया था. इशिता ने टेबल पर लगा दिया. बच्चे टेबल पर बैठ गए थे और समर वौशरूम में. मैं ने चपाती बना कर बच्चों को दी और फिर गरम चपाती समर की प्लेट में भी रख दी. समर इतनी देर में भी बाहर नहीं आए. मैं तबतक दूसरी गरम चपाती बना कर ले आई थी. समर की प्लेट की चपाती अपनी प्लेट में रख कर मैं ने दूसरी गरम चपाती समर की प्लेट में डाल दी. तब तक समर भी आ गए.

‘‘ये क्या, ममा?’’ रिषभ आश्चर्य से मेरे क्रियाकलाप देखते हुए बोला, ‘‘ऐसा क्यों किया आप ने?’’

‘‘वह वाली थोड़ी ठंडी हो गई थी न,’’ मैं व्यस्त भाव से बोली. रिषभ आश्चर्यचकित हो बोला, ‘‘ठंडी हो गई थी, सिर्फ 2 मिनट में? पापा, वैसे काफी बिगड़ी आदतें हैं आप की.’’ और फिर अर्थपूर्ण मुसकराहट से वह इशिता को देख कर हंसने लगा.

समर खिसिया कर खाना खाने लगे, ‘‘असल में घर में सविता गरमगरम चपाती बना कर लाती है न, तो आदत पड़ गई.’’

पर मेरा मन बल्लियां उछलने को कर रहा था. जो बात वर्षों नहीं बोल पाई थी उस बात को रिषभ ने क्या मजे से कह दिया था. आज के पति कितने कूल हैं. उन्हें फर्क नहीं पड़ता. वे सबकुछ प्लेट में किचन से एकसाथ डाल कर खा लेते हैं. प्लेट न मिलने पर पेपर प्लेट में भी खा लेते हैं. प्रौपर डिनर, लंच न मिले तो बर्गर, मैगी या औमलेटब्रैड से भी पेट भर लेते हैं. ‘सब ठीक है’ के अंदाज में मजे से जीते हैं. खूब कमाते हैं और खूब खर्च करते हैं. पतिपत्नी दोस्तों जैसे रहते हैं. मिलजुल कर कोई भी काम कर लेते हैं.

एक हमारा जमाना था कि मायके तक जाना मुश्किल था. नौकरी करना तो और भी मुश्किल था. ‘खाना कौन बनाएगा?’ जैसी एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या थी पतियों की, जिस से पार पाना कठिन ही नहीं, नामुमकिन था बीवियों का. नाश्ते, लंच, डिनर में बाकायदा पूरी टेबल सजती थी. पत्नी का टैलेंट गया बक्से में और आधी जिंदगी किचन में. मैं मन ही मन हंसहंस कर लोटपोट हुई जा रही थी.

बच्चों को बड़ों से कुछ सीखना चाहिए. पर मेरी सम झ से तो आज के समय में पापाओं को अपने बेटों से सही तरीके से पति बनना सीखना चाहिए. समर बहुत गंभीरता से खाना खा रहे थे और इशिता व रिषभ आंखोंआंखों ही में चुहलबाजी में मस्त थे. मैं मन ही मन इस प्यारी जोड़ी का प्यार देख आनंद से सराबोर हो रही थी.

दूसरे दिन दोनों बच्चे औफिस चले गए. जब इशिता जाने लगी तो मैं उसे लिफ्ट तक जाते देखती रही. बेटी नहीं है मेरी और मैं घर से किसी लड़की को पहली बार यों चुस्तदुरुस्त, स्मार्ट ड्रैस में औफिस जाते देख हुलसिक हो रही थी. इन बच्चियों का साथ दो, सपोर्ट दो, उड़ने दो इन्हें खुले गगन में. इन के पंख मत नोचो. बहुतकुछ कर सकती हैं ये. आज परिवार भी तो कितने छोटे हो गए हैं. किचन में 4 रोटियां बनाना ही तो जीवन में सबकुछ नहीं है.

सही कहता है रिषभ, ‘ममा, आज के समय में अगर बीवी घर पर रहेगी तो घर थोड़ा और ज्यादा सुंदर व व्यवस्थित हो जाएगा. लेकिन यह सब एक लड़की के सपने टूटने की कीमत पर ही होगा न,’ कितनी सम झ है उसे. कितनी बड़ी बात कह गया. दोनों मिल कर फटाफट कई काम कर डालते हैं, एकदूसरे की मुंडी से मुंडी मिला कर कई प्रोग्राम बना डालते हैं और ढेर सारी शौपिंग करने में भी हाथ नहीं हिचकिचाते उन के.

ठीक तो है, पतिपत्नी में आपसी सम झ होनी चाहिए. चाहे फिर पत्नी बाहर काम करे या घर में रहे. सोचती हुई मैं किचन की अलमारियां खोलखोल कर देखने लगी. ‘आज सारी की सारी ठीक कर डालूंगी,’ मैं बड़बड़ाई.

‘‘क्या?’’ समर पास से गुजरे, ‘‘जो ठीक करना है, बाद में करना. पहले कुछ भूख शांत कर दो.’’

‘‘क्या कहा?’’ मैं ने त्योरियां चढ़ा लीं.

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‘‘नहींनहीं, पेट की भई. तुम तो हर समय गलत ही सम झ जाती हो.’’ मेरी चढ़ी त्योरियां देख, समर भाग खड़े हुए.

लंच से निबट कर मैं अपने अभियान में जुट गई. एकएक कर सारी अलमारियां व्यवस्थित कर डालीं. फालतू सामान बाहर कर दिया. इन्हीं कामों में शाम हो गई. तब तक रिषभ औफिस से आ गया. मैं किचन में फैले समान के अंबार के बीच बैठी थी.

‘‘यह क्या, ममा, बहुत शौक है आप को काम करने का. यहां भी शुरू हो गईं.’’

‘‘नहीं, देख रही थी कुछ सामान डबल है. कुछ 3-4 डब्बों में रखा है पीछे. शायद, तुम्हें पता नहीं है, वही सब ठीक किया. कुछ खराब भी हो गया, इसलिए बाहर निकाल दिया. अब कुछ खाएगा तू?’’

‘‘नहीं, वह सब मैं खुद कर लूंगा. आप और पापा के लिए भी कुछ बना देता हूं,’’ कह कर रिषभ ने फ्रीजर से कुछ स्नैक्स निकाल कर ओवन में गरम कर के, उन में अपनी कुछ कलाकारी दिखा कर, प्लेट में सजा कर टेबल पर रख दिया. तब तक सबकुछ समेट कर मैं भी आ गई.

तभी घंटी बज गई. इशिता आ गई थी. मैं ने दरवाजा खोला और इशिता को दोनों बांहों में समेट लिया. ‘‘आ गई मेरी गुडि़या.’’ समर ने भी लपेट लिया उसे. इशिता  झूठीमूठी गुमानभरी नजरें रिषभ पर डालती हुई बोली, ‘‘आप को भी किया था ऐसा प्यार? मु झे देखो, कितना प्यार करते हैं ममापापा.’’

‘‘इधर आओ,’’ रिषभ भी हंसता हुआ उसे खींच कर ले गया और अलमारियां दिखाता हुआ बोला, ‘‘जब मैं आया तो ममा यह सब कर रही थीं. मु झे प्यार कहां से करतीं.’’

दोनों ऐसी चुहल कर रहे थे कि हृदय हर्षित हो गया. इशिता बैग एक तरफ रख कर कोल्ड कौफी बना लाई और हम चारों बैठ कर खानेपीने लगे. मैं सोच रही थी कि कितने मजे से लेते हैं ये युवा जिंदगी को. औफिस से आए हैं दोनों, मैं कुछ बना कर देती, उलटा उन्हीं का बनाया हुआ खा रहे हैं. जब हम इस उम्र में थे तो पति लोग औफिस से ऐसे आते थे जैसे पहाड़ तोड़ कर आए हों. ये दोनों ऐसे आए हैं जैसे बैडमिंटन खेल कर आए हों.

हालांकि पता है मुझे कि दोनों पर नौकरियों का तनाव हावी रहता है. पर आजकल के युवा इन तनावों को भूल कर मनोरंजन करना भी खूब जानते हैं. रिश्तेदारों व पड़ोसियों के तानों में उल झ कर, उन की परवाह कर और तनाव नहीं पालना चाहता आज का युवा वर्ग. बस, शायद इसीलिए बदनाम रहता है. जो इन के रंग में रंग गया वह जिंदगी का लुत्फ उठा लेता है. वरना, रुकने का नाम तो जिंदगी नहीं.

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क्या कूल हैं ये: भाग 3- बेटे- बहू से मिलने पहुंचे समर का कैसा था सफर

चारों तैयार हो कर फिर घर से बाहर चले गए. पूरण को आने से मना कर दिया. लेकिन अगले दिन पूरण फिर 4 बजे ही हाजिर था.

‘‘सब्जीदाल बता दीजिए क्या बनानी है,’’ वह बोला. मैं उसे सबकुछ दे कर, चाय बनाने के लिए कह कर टीवी पर न्यूज सुनने लगी. पूरण ने दोनों को चाय ला कर दी. बरतन भी पूरण ही धोता था. चाय खत्म करते हुए मैं सोच रही थी कि आज तो इसे इत्मीनान से कुछ सिखा ही दूंगी. बच्चे भी नहीं हैं, पर जब तक किचन में आई, पूरण की सब्जी कट कर बन भी चुकी थी.

‘‘माताजी, देखिए, आज कितनी बढि़या तोरी की सब्जी बनाई है मैं ने,’’ पूरण उस हरीपानी वाली बिना टमाटर की तोरी की सब्जी में करछी चलाता हुआ बोला. उस भयानक सब्जी से भी अधिक मेरा ध्यान उस के बोलने पर चला गया, ‘माताजी.’ मैं माताजी सुन कर बुरी तरह चौंक गई. क्या मैं माताजी जैसी दिखने लगी हूं? सासूमां की याद आ गई. उन्हें जानपहचान वाले माताजी कह देते थे. पर मैं? अभी तक तो भारत में किसी ने मु झे माताजी कहने की हिमाकत नहीं की थी. महिलाएं तो आंटी बोलने से ही जलभुन जाती हैं और मु झे यहां दुबई में माताजी?

भाग कर शीशे में देखा, हर एंगल से खुद को. अभी तो ठीकठाक सी ही हूं. सीनियर सिटिजन भी नहीं हुई अभी. टिकट में कन्सैशन भी नहीं मिलता है मु झे अभी तो. और इस आदमी की ऐसी जुर्रत. दिल किया खड़ेखड़े निकाल दूं. किचन में वापस आई.

‘‘माताजी,’’ पूरण खीसें निपोरता दोबारा बोला.

‘‘हां बोलो, भाई,’’ कुढ़ कर, हथियार डालते मैं मन ही मन बोली, ‘तुम्हारा माताजी तो मैं पचा लूंगी, पर तुम्हें निकाल कर अपने बच्चों को कष्ट नहीं दे सकती, खुश रहो तुम.’

इसी बीच दीवाली आ गई. 15 लोगों की मित्रमंडली जमा हो रही थी घर पर. हमारे समय में तो इतनों के खाने का मतलब सुबह से तैयारी. पर बच्चे कितने मस्त थे. उन के पास तो इतने बरतन भी नहीं थे. कुछ थोड़ाबहुत घर में तैयारी की. बाकी खाना बाहर से और्डर हुआ. पेपर प्लेट, डिस्पोजेबल गिलास, चम्मच वगैरह कुछ कम थे. दोनों को ही लाने के लिए कह दिया और हो गई मजेदार हंगामे वाली पार्टी.

पार्टी शुरू हुई तो हम बैडरूम में बैठ गए पर बच्चों ने खींच लिया हमें भी. कुछ बच्चे सौफ्टडिं्रक ले रहे थे तो अधिकतर हार्डडिं्रक. इशिता और रिषभ डिं्रक नहीं करते, लेकिन मित्रमंडली के साथ पूरी मस्ती करते हैं बिना पिए ही. साथ में हंसतेखिलखिलाते, लोटपोट होते देख लगता ही नहीं है कि यह सब पी कर हो रहा है या बिन पिए. छोटीछोटी डै्रसेज पहनने वाली लड़कियां आज दीवाली पर स्टाइलिश साड़ी या दूसरे भारतीय परिधान पहने हुए थीं. इतनी मस्ती तो हम ने भारत में न की थी दीवाली पर.

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क्या कूल जनरेशन है. जो समस्याएं हमारे जीवन में थीं, वे तो इन के लिए समस्याएं ही नहीं हैं. दुबई में मेरी स्कूल, कालेज की फ्रैंड सुरभि रहती है. एक दिन वह पूरा दिन मेरे पास बिता गई और एक दिन मु झे उस के पास जाना था, उस के साथ सारा प्रोग्राम फिक्स कर मैं ने डाइनिंग टेबल पर ऐलान कर दिया, ‘‘कल सुरभि के घर जा रही हूं. पूरा दिन बिताने.’’

‘‘किस के साथ?’’ पति महोदय आश्चर्य से बोले.

‘‘अरे ममा, कल क्यों बनाया प्रोग्राम. मैं छोड़ देता आप को किसी दिन. कल तो बहुत बिजी हूं,’’ रिषभ बोला.

‘‘तु झे परेशान होने ही जरूरत नहीं. मैं तो नीचे से टैक्सी ले लूंगी. दुबई तो कितना सेफ है. यहीं जेएलटी में ही तो रहती है वह,’’ मैं इत्मीनान से बोली.

‘‘हांहां, सब को अपने जैसा सम झा है न,’’ समर बड़बड़ाते हुए बोले, ‘‘तुम इतनी सीधीशरीफ हो, अक्ल तो है नहीं तुम में, कोई भी बेवकूफ बना देगा, यहां दुबई में भी.’’

‘‘हां ममा, टैक्सी से तो मैं भी आप को अकेले नहीं जाने दे सकता,’’ रिषभ भी फैसला सुनाता हुआ बोला.

पर पति की बात ने तो भूचाल ला दिया था दिमाग में. शब्द तारीफ में नहीं कहे गए थे. अंदर की लेखिका ने कई पन्ने रंग डाले महिला सशक्तीकरण के पक्ष में. मैं ने सब पर अपनी निगाहें घुमाईं. तीनों मेरे बारे में फैसला कर आराम से खाना खा रहे थे.

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‘‘हां, यह तो है कि बीवियों को 25 में भी, अक्ल नहीं होती और 50 में भी पर पता नहीं पतियों को कैसे 25 में भी अक्ल आ जाती है और 50 में तो होती ही है.’’ बुदबुदाते हुए मैं लंबी सांस खींच कर, रोटी का टुकड़ा मुंह में डाल, गुस्से में जोरजोर से चबाने लगी. तीनों अचानक चौंक कर मेरी तरफ देखने लगे. पति भी अपनी भावुक मिजाज की हरदम प्रसन्नचित्त बीवी का ऐसा करारा जवाब सुन कर हतप्रभ थे और दोनों बच्चे अब तक सबकुछ सम झ कर हंसहंस कर बेहाल हुए जा रहे थे. न चाहते हुए भी समर को भी उन की हंसी में शामिल होना पड़ा और उन सब को हंसता देख मैं भी मुसकराने लगी.

‘‘डोंट वरी ममा. कल जल्दी तैयार हो जाना. मैं छोड़ दूंगा आप को,’’ रिषभ हंसता हुआ बोला.

‘‘हां, कल चली जाओ, तुम,’’ समर भी खाना खत्म कर उठते हुए बोले.

‘‘कोई जरूरत नहीं. बात तो गई मेरी सुरभि से. वह मु झे लेने आएगी 11 बजे.’’

‘‘तो आप हमारा इम्तिहान ले रही थीं,’’ इशिता भी मासूमियत से कुनमुनाई.

‘‘और क्या,’’ मैं ठहाका मारते हुए बोली, ‘‘देखना चाहती थी कि मेरे बंदीगृह की दीवारें और कितनी मजबूत हुई हैं, कितने पहरेदार पैदा हो गए हैं मेरे.’’

‘‘अरे नहीं, ममा,’’ रिषभ लाड़ से मु झ से लिपटता हुआ बोला, ‘‘बहुत प्यार करते हैं आप से, इसलिए फिक्र करते हैं आप की. आप को पता नहीं, कितने इंपौर्टेंट हो आप हमारे लिए. कल लेने मैं आ जाऊंगा आप को. जब आने का मन हो, तब फोन कर देना. तभी निकलूंगा औफिस से.’’

‘‘मु झे मालूम है, बेटा,’’ मैं स्नेह से उस की बांह व चेहरा सहलाते हुए बोली.

ऐसे ही हंसतेहंसाते एक महीना कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. दुबई का वीजा या तो एक महीने का बनता है या 3 महीने का. यदि एक महीने से एक हफ्ता भी ऊपर रहना है तो फिर वीजा

3 महीने का ही बनाना पड़ता है. आने का समय हो गया. कितना कुछ भर दिया था इशिता और रिषभ ने. अटैचियां निर्धारित वजन से ज्यादा हो रही थीं. उस पर भी अच्छाखासा हंगामा हो रहा था कि क्या रखें और क्या छोड़ें. दुबई के एयरपोर्ट पर साथ में आया कोई भी, सामान के चैकइन काउंटर तक छोड़ने जा सकता है. रिषभ ने सामान चैकइन करवा दिया. अब हमें अंदर सिक्योरिटी को पार करना था. बच्चों को यहीं पर अलविदा कहना था.

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दिल तो भावनाओं के ज्वर से उमड़घुमड़ रहा था. पर अपने आंसू सरलता से दिखाने की आदत नहीं है मेरी. इसलिए हंसतेमुसकराते बच्चों से विदा ले रहे थे हम. बच्चे अपनी जगह पर खड़े हाथ हिला रहे थे. और मैं पीछे मुड़मुड़ कर उन की भुवनमोहिनी जोड़ी को मन ही मन अनंत शुभकामनाएं दे रही थी. लेकिन अंदर जाते ही आंखें बरसने लगीं.

मन उदास हो रहा था. पर सोच रही थी बच्चों ने इतने दिन याद न रहने दिया अपनी उम्र को. अपने रंग में रंग दिया हमें. इस युवा पीढ़ी के साथ जिस ने कदमताल कर दिया, उस ने इन का सुख पा लिया. वरना यदि अपने अडि़यल रवैए और अडि़यल विचारों पर अड़ी रहेगी पुरानी पीढ़ी तो यह पीढ़ी इतनी तेज दौड़ रही है कि फासला बढ़ते देर नहीं लगेगी. यह पीढ़ी उन्हीं के लिए कदम धीरे करेगी, जो इन के साथ दौड़ने की कोशिश करेंगे.

यही सब सोचतेसोचते समर और मैं सिक्योरिटी पार कर डिपार्चर लाउंज की तरफ चल दिए.

आज फिर तुम पे प्यार आया है : भाग 4- किस बेगुनाह देव को किस बात की मिली सजा

इधर बेटे के गम में कल्याणी की हार्टफेल हो जाने से मृत्यु हो गई और कुछ साल बाद जय भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. पूरा घर तितरबितर हो गया. निखिल भी अपने परिवार के साथ कहीं और रहने चला गया.

देव की बदचलनी की बात सुन कर तनिका के मातापिता ने भी उस की शादी कहीं और कर दी. अपनी दयनीय स्थिति पर स्वयं देव को भी तरस आ रहा था. सोचता वह कि आखिर उस ने ऐसा किया ही क्यों रमा के साथ? अगर नहीं किया होता तो आज सबकुछ सही होता. कोसता रहता वह अपनेआप को. मन तो करता उस का कि खूब चीखेचिल्लाए और कहे कि उसे फांसी पर लटका दिया जाए क्योंकि अब उसे जीने का कोई हक नहीं है.

अपने दोस्त मनोज को याद कर के वह रो पड़ता और सोचता कि शायद वह भी मुझ से घृणा करने लगा है. नहीं तो क्या एक बार भी वह मुझ से मिलने नहीं आता? लेकिन उस रोज मनोज आया उस से मिलने और जो उस ने बताया उसे सुन कर देव के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

बताने लगा वह कि देव गलत नहीं है बल्कि उसे फंसाया गया है और यह सब रमा का कियाधरा है.

‘‘पर तुम्हें यह सब कैसे पता?’’

देव के पूछने पर मनोज कहने लगा कि एक दिन जब किसी काम से वह उस के घर गया, तब रमा को प्रीति से कहते सुना, ‘‘देख लिया न दीदी, मु?झो न कहने का अंजाम. अरे, मैं उस देव से प्यार करती थी सच्चा प्यार और वह उस तनिका से शादी के सपने देखने लगा. तो बताओ मैं कैसे बरदाश्त कर पाती. पहले तो सुन कर मैं घर वापस चली गई और बहुत रोईकलपी, फिर लगा जो मेरा नहीं हो पाया उसे मैं किसी और का बनता कैसे देख सकती हूं भला. बस उसी दिन ठान लिया मैं ने कि मु?झो क्या करना है.’’

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‘‘क्या किया तुम ने?’’ आश्चर्य से प्रीति ने पूछा.

प्रीति के पूछने पर पहले तो वह हंसी, फिर कहने लगी, ‘‘उस संगीत वाली रात उस ने देव की कौफी में नशे की गोलियां मिला दी थीं और जब घर में सब सो गए तो वह किसी तरह देव को अपने कमरे तक ले आई और फिर खुद ही अपने सारे कपड़े उतार दिए और वह सब करवाया उस ने देव से जो चाहा. नशे में धुत्त देव को होश कहां था कि वह कहां है और क्या कर रहा है और फिर क्या हुआ वह तो आप सब को पता ही है दीदी,’’ अपने मुंह से अंगारे उगलते हुए रमा ठहाके लगा कर हंसने लगी.

प्रीति भाभी हतप्रभ उसे देखने लगी. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि देव की बरबादी के पीछे रमा का हाथ है.

अपनी बहन के गाल पर तड़ातड़ थप्पड़ बरसाते हुए प्रीति भाभी कहने लगी, ‘‘क्यों, क्यों किया तुम ने ऐसा? सिर्फ बदला लेने के लिए? बरबाद कर दिया मेरे हंसतेखेलते परिवार को तुम ने सिर्फ अपनी जिद के कारण? अरे, देव तो तुम्हारी इज्जत करता था और तुमने… अगर निखिल को यह बात पता चल गई न तो वह मु?झो अपनी जिंदगी से बेदखल कर देगा रमा? बताओ क्यों ऐसा किया तुम ने?’’ बोल कर प्रीति भाभी वहीं नीचे बैठ गई और रोने लगी. फिर बोली, ‘‘गलती मेरी थी जो मैं ने तुम्हें अपने घर में रखा. अगर तुम पर दया कर मैं तुम्हें यहां न लाई होती तो आज हमारा परिवार हमारे साथ होता,’’ बोल कर भाभी फिर रोने लगी.

मगर उस कमीनी रमा को अपनी बहन पर भी दया न आई. बोली, ‘‘हां, तो क्यों बुलाया मु?झो और निखिल जीजाजी को बताएगा कौन, तुम? तो बता दो मु?झो किसी से कोई डरवर नहीं और ऐसा कर के तुम अपनी ही गृहस्थी खराब करोगी,’’ कह कर उस ने अपना मुंह फेर लिया.

यह देख कर प्रीति भाभी सकते में आ गई और फिर रमा को धक्के दे कर अपने घर से बाहर निकालते हुए कहा कि अब उस का उन से कोई वास्ता नहीं है.

सच सुन कर देव के पैरों तले की जमीन खिसक गई, ‘‘तो रमा ने यह सब जानबुझ कर किया? सिर्फ मुझ से बदला लेनेके लिए उस ने मेरा पूरा घरपरिवार बरबाद कर दिया? कह देती एक बार तो मैं तनिका से मिलना ही छोड़ देता, पर वह ऐसा जुल्म तो न करती हमारे साथ,’’ कह कर देव फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘अरे भाई, उतरना नहीं है क्या? यह आखिरी स्टेशन है,’’ एक यात्री की आवाज से देव चौंक पड़ा और यादों के भंवर से बाहर आ गया. पूछने पर कि कौन सा स्टेशन है तो उस आदमी ने बताया कि यह अहमदाबाद स्टेशन है. गाड़ी से उतरते हुए सोचने लगा देव कि कितनी जल्दी रास्ता तय हो गया? काश, यह ट्रेन यों ही चलती रहती और वह पूरी उम्र इसी ट्रेन में गुजार देता. ट्रेन से उतरते ही अपने वादे अनुसार सब से पहले उस ने एसटीडी फोन से अपने दोस्त को यह बताने के लिए फोन घुमा दिया कि वह अहमदाबाद पहुंच गया है.

‘‘तू जहां भी है जल्दी वापस आ जा, जल्दी,’’ मनोज ने जब कहा तो देव डर गया. लगा उसे कि कहीं उस के भाभीभाई को तो कुछ नहीं हो गया? जोर दे कर पूछने पर मनोज ने इतना ही कहा कि वह उसी कौफी हाउस में पहुंच जाए जहां तनिका से मिला करता था. रास्ते भर वह इसी उलझन में रहा कि आखिर बात क्या हो सकती है… जो सफर कुछ देर पहले उसे छोटा लग रहा था, अब वही रास्ता उसे लंबा लगने लगा था.

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कौफी हाउस पहुंचते ही जब उस की नजर तनिका पर पड़ी, तो वह हतप्रभ रह गया, ‘‘तुम?’’ उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि जो वह देख रहा है वह सच है. बड़ी गौर से उस ने फिर तनिका को देखा. न तो उस के गले में मंगलसूत्र था और न ही मांग में सिंदूर.

‘‘क्या देख रहा है देव? यह तनिका है तुम्हारी तनिका,’’ मनोज ने उसे झक?झोरते हुए कहा.

‘‘पर तुम्हारी तो शादी…’’

‘‘हां देव, पर हुई नहीं. मैं आज भी तुम्हारी हूं देव,’’ कह कर वह अपने देव से लिपट गई.

दोनों के आंसू रुक नहीं रहे थे. बताने लगी तनिका कि उसे तो पहले से पता था कि लोग जो भी कहें, पर उस का देव सही था और है. रही बात शादी करने की तो मंडप तक गई वह, पर फिर यह बोल कर उठ गई कि उस की सगाई यानी आधी शादी तो हो चुकी है देव से, तो फिर कैसे वह किसी और की हो सकती है अब?

‘‘देव, आखिर आज मैं ने तुम्हें पा ही लिया. अब हमें एकदूसरे से कोई जुदा नहीं कर पाएगा देव,’’ कह कर छलकते नयनों से फिर वह अपने देव के सीने से लग गईर् और देव ने भी कस कर उसे अपने आगोश में ले लिया.

आज फिर उन के दिल में असीम खुशी और उमंगें हिलोरें मारने लगी थीं. फिर दोनों एकदूसरे के साथ भविष्य के असंख्य सुनहरे सपने देखने लगे. आज फिर उन्हें एकदूसरे पे प्यार आया.

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अनुपमा: वनराज पर भड़केगी काव्या, पाखी पार करेगी बदतमीजी की सारी हदें

सीरियल अनुपमा में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ काव्या शाह परिवार में आए दिन ड्रामा करती है तो वहीं पाखी भी अनुपमा को सताने का एक भी मौका नही छोड़ रही है. इसी बीच शाह परिवार में पाखी के कारण एक बार फिर बवाल देखने को मिलने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

टूटने लगा अनुपमा का परिवार

 

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अब तक आपने देखा कि 20 लाख प्रौपर्टी टैक्स भरने को लेकर शाह परिवार में काफी हंगामा होता है. जिसके चलते राखी दवे अपने दामाद यानी परितोष को भड़काती है. हालांकि किंजल उसे समझाने कि कोशिश करती है. लेकिन तोषू शाह हाउस से निकलने की बात कहता है, जिसे अनुपमा सुन लेती है. दूसरी तरफ काव्या के डांस सिखाने के लिए मना करने पर पाखी अपना गुस्सा किंजल और नंदिनी पर निकालती नजर आती है, जिसके चलते अनुपमा के सामने उसकी बहूएं और बेटी लड़ती नजर आती हैं.

 

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अनुपमा का टूटेगा दिल

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज, काव्या के दोस्तों को लोन लेने की बात बता देता है, जिसके चलते जब काव्या और वनराज वापस आ रहे होते हैं तो  काव्या, वनराज से कहती है कि उसे क्या जरूरत थी उसके दोस्त से लोन की बात करने की और कहती है कि उसने उसे ले जाकर ही बड़ी गलती कर दी, जिसके बाद  वनराज, काव्या पर चिल्लाने लगता है. लेकिन काव्या कहती है कि वह उससे ऊंची आवाज में बात ना करे. वहीं वनराज कहता है कि उसने अभी तक उसकी आवाज़ नहीं सुनी है. दूसरी तरफ पाखी से अनुपमा की दूरी बढ़ती जा रही है. दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा, पाखी की ड्रेस को ठीक करेगी. लेकिन तभी पाखी आकर अनुपमा से अपनी ड्रेस छीन लेगी और कहेगी कि वह बड़ी हो गई है और उसे अब अनुपमा की जरुरत नही है, जिसे सुनकर अनुपमा का दिल टूट जाएगा.

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तेरा मेरा साथ रहे: गोपी से लेकर कोकिला बेन तक, 7 सालों में इतना बदल गया सबका लुक

पौपुलर सीरियल साथ निभाना साथिया का प्रीक्वल तेरा मेरा साथ रहे का प्रोमो बीते दिनों सुर्खियों में रहा था. वहीं बाद में सीरियल के मेकर्स ने रिलीज डेट का खुलासा भी कर दिया है. इसी बीच 16 अगस्त से शुरु हो रहा #teramerasaathrahe सीरियल कास्ट का भी इन दिनों फैंस के बीच छा गई है. आइए आपको दिखाते हैं कि कौनसी पुरानी और नई कास्ट होगी सीरियल तेरा मेरा साथ रहे में शामिल…

गोपिका का बदला लुक

 

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सीरियल तेरा मेरा साथ रहे की गोपी बहू (Gia Manek) यानी गोपिका का लुक बदला बदला नजर आने वाला है. वहीं उनके परिवार में शामिल होने वाले कई किरदार भी बदल चुके हैं. दरअसल, इस बार गोपिका की मामी तो वही रहेंगी लेकिन उनके बाकी के परिवार के सदस्य बदल जाएंगे.

 

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कोकिला बनीं मैथिली

 

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साथ निभाना साथिया में गोपी की सास के किरदार में नजर आने वाली कोकिला अब तेरा मेरा साथ रहे में मैथिली के रोल में नजर आएंगी. वहीं सीरियल में उनका लुक भी काफी स्टाइलिश देखने को मिलने वाला है. दूसरी तरफ मैथिली के पति के रोल में एक बार फिर एक्टर केशव नजर आने वाले हैं.

सक्षम बने नाजिम

 

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अहम के रोल में फैंस के बीच फेमस एक्टर मोहम्मद नाजिम  (Mohammad Nazim) जल्द ही सीरियल तेरा मेरा प्यार रहे में सक्षम के रोल में नजर आएंगे. वहीं उनका लुक भी काफी स्टाइलिश होगा.

गोपिका की मामी का लुक होगा कुछ ऐसा

 

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साथ निभाना साथिया में गोपी बहू की मामी बनी एक्ट्रेस वन्दना (Vandana Botadkar Vithlani) एक बार फिर अपने दमदार रोल में नजर आने वाली हैं. वहीं उनका लुक भी थोड़ा बदला-बदला नजर आ रहा है.

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बता दें, सीरियल में कई और नए कलाकार शामिल हुए हैं, जिन्हें फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं हाल ही में सीरियल के सेट से कुछ फोटोज वायरल हुई हैं, जिनमें सक्षम और गोपिका का पूरा परिवार नजर आ रहा है.

तीज पर ट्राय करें सोनम कपूर का ये रौयल लुक

बौलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर अक्सर अपने फैशन से जहां सभी को हैरान करती हैं वहीं अपने फैंस को इंस्पायर भी करती हैं. हाल ही में फैशन और वेडिंग मैगजीन के एक फोटोशूट में सोनम के ब्राइडल लुक ने उनके फैंस को खुश कर दिया है. आज हम आपको उनके ब्राइडल लुक के लिए फैशन के बारे में बताएंगे, जिसे आप हरियाली तीज के लिए ट्राय कर सकती हैं. सोनम का ये रौयल लुक तीज पर आपके लुक में चार चांद लगा देगा.

1. हरियाली तीज के लिए सोनम का ये लुक है बेस्ट

सोनम गोल्डन और सिल्वर रंग के कौम्बिनेशन वाले लंहगे में दिखीं, जिसके साथ नौट वाला ब्लौउज तो सोनम के इस लुक में चार चांद लग रहा है. अगर आपको भी सोनम का ये लुक पसंद आया है तो आप भी तीज में ये लुक ट्राय कर सकती हैं. साथ ही सोनम की तरह आप भी अपने जुड़े में लाल रंग के गुलाब लगाकर अपने लुक को रौयल लुक दे सकती हैं.

2. सौनम की तरह ज्वैलरी को दें खास लुक

किसी भी साड़ी या लहंगे के साथ ज्वैलरी की महत्व होता है. अगर आप भी तीज के लिए साड़ी या लहंगा पहनने का सोच रही हैं तो लहंगे साथ पर्ल की ज्वैलरी ट्राय करें या फिर आप कुंदन की ज्वैलरी ट्राय कर सकती हैं. ये आपके लुक को रौयल लुक देगा.

3. तीज के लिए साड़ी लुक भी है बेस्ट

सोनम ने इस फोटोशूट के लिए ना सिर्फ लंहगे बल्कि साड़ी को भी पहनी. अगर आप भी तीज के लिए साड़ी पहनने की सोच रही हैं तो सोनम का ये साड़ी लुक बेस्ट है. तीज में अक्सर लोग ग्रीन कलर ज्यादा पहनना पसंद करते हैं. पर कुछ नया करने के लिए आप सोनम की तरह क्रीम साड़ी पहन सकती हैं. साथ ही अगर आप साड़ी को ग्रीन लुक देना चाहती हैं तो ग्रीन कलर की ज्वैलरी के साथ मैच कर सकते हैं.

फ्लेवर्ड मिठाइयां बनाने के 8 टिप्स

मीठा भारतीय भोजन की शान है. भोजन में मीठा न हो तो भोजन को सम्पूर्ण नहीं माना जा सकता.  यूं तो मिठाईयां खाना सभी को बहुत पसंद होता है परन्तु आजकल शुगर की बीमारी और वजन बढ़ने की समस्या के चलते लोग मीठा खाने से परहेज करने लगे हैं. अक्सर मिठाई बनाने में बेसन, आटा, खोया आदि का प्रयोग किया जाता है परन्तु आजकल कद्दू, लौकी, सीताफल और चुकंदर आदि से भी फ्लेवर्ड मिठाईयां बनाई जाती हैं.

सब्जी और फलों से इन मिठाइयों को बनाने का सबसे बड़ा लाभ है कि इनमें अलग से फ़ूड कलर और बहुत अधिक शकर डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती बल्कि कुछ मिठाइयों में तो उनकी स्वाभाविक मिठास ही पर्याप्त होती है. इन्हें बनाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक होता है तो आइए जानते हैं इन्हें बनाने के कुछ टिप्स-

-चुकंदर, लौकी, कद्दू आदि से बर्फी या लड्डू बनाने के लिए इन्हें किसकर गलने तक खोलकर पकाएं. नम हो जाने के बाद दूध के स्थान पर मिल्क पाउडर मिलाएं, हल्वा बनाने के लिए मिश्रण को बहुत अधिक न सुखाएं और यदि लड्डू बनाना चाहतीं हैं तो पूरी तरह सूख जाने पर लड्डू या बर्फी बनाएं.

-मटर, हरे चने और कॉर्न की बर्फी बनाने के लिए इन्हें दूध के साथ पीस लें. 1 टेबलस्पून घी में मिश्रण को अच्छी तरह भूनकर बराबर की मात्रा में शकर की 3 तार की चाशनी बनाकर मिश्रण में मिलाएं. इलायची पाउडर डालकर जमाएं.

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-मैथी, पालक, चौलाई और पान की खीर बनाने के लिए दूध में चावल डालकर खीर तैयार करें. हरी सब्जियों को काटकर हाथों से दबाकर पानी निचोड़ दें. एक नॉनस्टिक पैन में घी गरम करें और इन निचोड़ी सब्जियों को डालकर तेज आंच पर चलाते हुए पानी सूखने तक भूनें. ठंडा होने पर तैयार खीर में मिलाएं.

-परवल की मिठाई बनाने के लिए ताजे और बड़े आकार के परवल लें. इन्हें बीच से चीरकर बीज निकाल दें और गरम पानी में नरम होने तक उबालें.  छानकर पानी निकाल दें. एक तार की चाशनी बनाकर परवल डाल दें. 2-3 उबाल लेकर गैस बन्द कर दें. आधे घण्टे बाद निकाल कर छलनी पर रखें ताकि अतिरिक्त चाशनी निकल जाए. अब आप इनमें मनचाही फिलिंग भरकर मिठाई तैयार कर  सकतीं हैं.

-ऑरेंज, आम जैसे खट्टे फलों से मिठाई बनाते समय इन फलों के गूदे को सबसे अंत में मिलाएं अन्यथा इनकी खटास पूरे डेजर्ट का स्वाद खराब कर देगी.

-शकर मिलाने से पूर्व मिठाई को चख लें और फिर आवश्यकतानुसार शकर मिलाएं आप चाहें तो शकर के स्थान पर गुड़ का प्रयोग भी कर सकतीं हैं.

-इन मिठाइयों को बनाने में दूध के स्थान पर मिल्क पाउडर का प्रयोग करना उचित रहता है क्योंकि मिल्क पाउडर पानी को सोखकर मिश्रण को जल्दी गाढ़ा कर देता है और आपकी अतिरिक्त मेहनत बच जाती है.

-इन्हें बनाते समय बहुत अधिक मेवा और घी डालने से बचें ताकि इनका स्वाभाविक स्वाद और फ्लेवर बना रहे.

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Corona में धूम्रपान करने वाले लोगों को है न्यूलॉजिकल बीमारियां होने का खतरा

कोविड ने दूसरी लहर के दौरान अपना प्रकोप दिखाया और इसने बहुत अधिक नुकसान भी किया है. इस दौरान हमें देखने को मिला कि है यह केवल हमारे फेफड़ों को ही नहीं बल्कि बहुत से अन्य और मुख्य ऑर्गन को भी प्रभावित करता है. इसमें न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा भी शामिल है और इस खतरे में हमारा नर्वस सिस्टम डेमेज होने से लेकर हमारी सभी सेंस लॉस होने तक का खतरा शामिल है. यह सारी समस्याएं कोविड होने के दूसरे या चौथे हफ्ते में देखने को मिलती हैं.

इनमें से अधिकतर लक्षणों में. सिर दर्द, चक्कर आना, बेहोश रहना, सिजर्स आदि बीमारियां शामिल हैं. हमारा स्वाद और सूंघने की क्षमता भी चली जाती है और ऐसा 30 से 40% कोविड के मरीजों में देखने को मिला है हालांकि न्यूरो बीमारियों से कोविड संबंधी केस केवल 0.1 प्रतिशत पाए गए है. स्ट्रोक का खतरा भी 60 से 70% है.

स्ट्रोक का रिस्क डायबिटिक और हाइपर टेंशन के मरीजों में अधिक देखने को मिलता है और इसमें कोरोनरी आर्टरी डिजीज का खतरा भी शामिल होता है. इसके कारण कोविड के मरीज की 6 से 8 हफ्ते के बाद अचानक से मृत्यु भी हो सकती है. स्ट्रोक में हमारा दिमाग अचानक से काम करना बंद कर देता है और जब कोई इंफेक्शन इसके साथ शामिल हो जाती है तो स्ट्रोक और अधिक खतरनाक बन जाता है.

न्यूरोपैथी में फेस के साथ साथ हमारे हाथ और पैरों जैसे लिंब्स को भी खतरा होता है. इसे जीबी सिंड्रोम कहा जाता है और यह दवाइयों के द्वारा ठीक किया जा सकता है. सिर दर्द , चैन की नींद न आना , थकान रहना इस सिंड्रोम के कुछ मामूली से लक्षण होते है.

फंगल एब्सेस उन लोगों में देखने को मिलता है जिनकी डायबिटीज नियंत्रण में नहीं रहती है और जिन्हें साथ में कोविड भी होता है. इंसीफेलाइटीस एक गंभीर स्थिति होती है और यह 20 से 50% केसों में वायरस के द्वारा होती है. यह सारी बीमारियों जो ऊपर मेंशन की गई हैं न्यूरोलॉजिकल असामान्यताओं के कारण ही होती हैं और अधिकतर में इनके लक्षण दुविधा में रहना, कंफ्यूज हो जाना, असामान्य गतिविधि करना आदि होते हैं.

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सीजर भी कोविड 19 के दौरान होने वाली न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में से एक है. अगर आप धूम्रपान करते हैं तो आपका इन सभी बीमारियों का रोगी होने के चांस बढ़ जाते हैं और यह आपके हृदय से जुड़े रोगों के रिस्क भी बढ़ा सकता है. वैसे तो धूम्रपान करना आपके फेफड़ों के लिए पहले से ही नुकसान दायक होता है लेकिन अगर आप कोविड होने के बावजूद भी धूम्रपान जारी रखते हैं तो आपके फेफड़ों का खतरा और अधिक बढ़ जाता है. इससे आपका वेसल स्ट्रोक होने का रिस्क भी बढ़ जाता है.

धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को जो कोविड पॉजिटिव भी है, उसे स्ट्रोक का रिस्क क्यों होता है?

स्ट्रोक होने के बहुत से अलग अलग रिस्क फैक्टर होते हैं जिनमें से एक धूम्रपान करना भी है. स्मोकिंग के कारण आपकी आर्टरीज ब्लॉक होने का और ब्लड क्लोट का रिस्क काफी ज्यादा बढ़ जाता है. इस समस्या का कारण जानने के लिए बहुत सारी स्टडीज की गई. और इसका एक कारण यह पाया गया की धूम्रपान की चीजों यानी टोबेको से युक्त चीजों में बहुत से ऐसे खतरनाक कैमिकल मिले हुए होते हैं जो ब्लड क्लाॅट का रिस्क बढ़ा देते हैं.

आज ही धूम्रपान करना छोड़ दें

अगर आप धूम्रपान करना जारी रखते हैं तो इससे आपकी एक ऐसी आदत बन जाती है जिसे छोड़ पाना बहुत मुश्किल होता है. अगर आपकी धूम्रपान की आदत बनी हुई है तो आपको इसे छोड़ने का एक माइंड सेट बनाना होगा क्योंकि इसके बिना इसे छोड़ पाना बहुत मुश्किल होता है. चाहे आप नियमित रूप से धूम्रपान करते हैं या फिर कभी कभार दोनों ही तरह से यह आपकी शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है . अगर आपको सिगरेट पीने का मन करता है तो खुद को केवल एक या आखरी कह कर बुद्धू मत बनाइए क्योंकि ऐसा कोई तरीका काम नहीं करता है. इस की बजाए आप अपने आप को 15 मिनट रोकें और किसी अन्य गतिविधि में शामिल कर लें. इसे छोड़ने के लिए अधिक से अधिक पानी पिएं और च्यूइंग गम का प्रयोग करें. इससे आपकी स्मोकिंग की क्रेविंग शांत होगी.

डॉ शैलेश जैन, प्रिंसिपल कंसलटेंट, न्यूरोसाइंस ,मैक्स हॉस्पिटल, शालीमार बाग, नई दिल्ली से बातचीत पर आधारित

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खूबसूरती का खजाना है अंडमान निकोबार

कश्मीर के बारे में कहा जाता है कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है. ठीक वैसे ही अगर पूछा जाए कि समुद्र के बीच प्रकृति का स्वर्ग कहां है तो सभी यही कहेंगे कि अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में. बंगाल की खाड़ी में म्यांमार के दक्षिणी ओर से एकदम दक्षिण इंडोनेशिया के क्षेत्र तक मोतियों की माला की लडि़यों की तरह फैले हुए हैं अंडमान निकोबार के द्वीपसमूह. उत्तर से दक्षिण तक अंडमान निकोबार की समुद्री तटीय लंबाई 1912 किलोमीटर है और इस का क्षेत्रफल 8249 किलोमीटर है. अंडमान निकोबार द्वीपसमूह 572 छोटेबड़े द्वीपों से मिल कर बना है, जिन में केवल 37 द्वीपों में ही मानव आबादी है. शेष जंगलों से आच्छादित हैं. यहां की जलवायु उष्णकटिबंधीय है. वर्ष भर निम्न तापमान 23 डिग्री सैल्सियस और उच्चतम 30 डिग्री सैल्सियस रहता है. आर्द्रर्ता 70 से 90% और वर्षा लगभग 3200 मिलीमीटर आंकी गई है.

सागर तट पर दूरदूर तक फैली रेत की मखमली चादर, सदाबहार हरियाली ओढ़े दुर्लभ पेड़पौधों से आच्छा दित वन, प्रदूषणरहित प्रकृति, मन को गुदगुदाती हर समय बहती मंदमंद बयार एवं मिलनसार लोग पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. अंडमान आने के लिए पर्यटकों को अक्तूबर से मई तक का समय बेहतर रहता है. यहां वर्षा मई से सितंबर और नवंबर से जनवरी तक रहती है. अंडमान समुद्री एवं हवाई मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है. समुद्री जहाज द्वारा चेन्नई, कोलकाता एवं विशाखापट्टनम से पहुंचा जा सकता है. टिकटों के लिए वहां के शिपिंग कौरपोरेशन के कार्यालय से संपर्क किया जा सकता है. हवाई मार्ग द्वारा दिल्ली, कोलकाता एवं चेन्नई से आया जा सकता है, पोर्टब्लेयर में उतर कर पर्यटकों को प्रशासन के पर्यटन विभाग से संपर्क करना होगा.

खाड़ी के इन द्वीपों को 2 हिस्सों में बांटा जा सकता है- उत्तरी द्वीप शृंखलाएं एवं दक्षिणी द्वीप शृंखलाएं. उत्तरी द्वीप शृंखलाओं में शामिल हैं- उत्तरी अंडमान, मध्य अंडमान एवं दक्षिण अंडमान. इन्हें समुद्री खाडि़यां अलग करती हैं. दक्षिणी द्वीप शृंखलाओं में शामिल हैं- निकोबार के द्वीप समूह जिन में पहले आता है- कार निकोबार. पर्यटकों के लिए यहां पहुंचना दुष्कर है. इस के प्रतिबंधित क्षेत्र होने के कारण सैलानी सरकार से अनुमति लिए बिना यहां नहीं आ सकते. 10 डिग्री चैनल इन दोनों द्वीपशृंखलाओं को अलग करता है. अंडमान की राजधानी पोर्टब्लेयर है. यहीं पर हवाईअड्डा एवं बंदरगाह स्थित है. पोर्टब्लेयर ही अंडमान के व्यापार का केंद्र है. यहां करोड़ों रुपयों का व्यापार होता है. हैवलौक द्वीप का राधानगर सागर तट एशिया में प्रसिद्ध है. उत्तरपूर्व में ही देश का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी बैरन द्वीप स्थित है.

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एकदम दक्षिण छोर पर स्थित है ग्रेट निकोबार जिस का मुख्यालय कैंपबेल बे है. निकोबार द्वीप शृंखलाओं का प्रशासनिक मुख्यालय निकोबार नामक द्वीप है, जहां प्रशासन के कार्यालय स्थित हैं. 125 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस भूखंड में आदिवासी समुदाय वास करता है. यह जगह अपने सागर तटों एवं नरियल के पेड़ों की संपदा के लिए जानी जाती है.

राजधानी पोर्टब्लेयर के दर्शनीय स्थल

राजधानी पोर्टब्लेयर में उतरते ही पर्यटकों को शहर के आसपास के अनेक दर्शनीय स्थल देखने को मिलेंगे. दिशानिर्देश के लिए उन्हें प्रशासन के पर्यटन विभाग से संपर्क करना होगा. इस में सब से प्रमुख है चाथम द्वीप. यह एक छोटा सा टापू है, जो पोर्टब्लेयर से एक पक्के पुल द्वारा जुड़ा हुआ है. इसी द्वीप पर 10 मार्च, 1858 को 1857 के 200 विद्रोही सिपाहियों को लाया गया था. यह एक पुराना बंदरगाह भी है. पहले जहाज यही पर रुकते थे और यहां से छूटते थे. अब जहाजों के आने व ठहरने के लिए चाथम के पश्चिम में नया घाट- हैडो वार्फ बन गया है. चाथम द्वीप पर एशिया की सब से बड़ी सरकारी आरा मिल स्थापित है. लकड़ी के बड़ेबड़े लट्ठों की कटाई यहां देखते ही बनती है, चाथम से एकडेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ही है- हैडो मिनी चिडि़याघर. इस का आनंद लेने के बाद अब पर्यटकों को नौसेना द्वारा चलाया जा रहा म्यूजियम समुद्रिका भी जरूर देखना चाहिए. समुद्र के भीतर की रंगीन मछलियां, समुद्री सीपियां एवं कोरेल आप इस संग्रहालय में देख सकते हैं. यहां से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर मिडल पौइंट नामक स्थान पर भारतीय मानव विज्ञान संग्रहालय एक दर्शनीय म्यूजियम है. इसी संग्रहालय में द्वीपों में रह रही 5 आदिम जनजातियों के रहनसहन व जीवनयापन की विस्तृत जानकारी आप को मिल जाएगी. मिडल पौइंट नामक स्थल पर ही यहां के उद्योग विभाग द्वारा संचालित सागरिका म्यूजियम देखने लायक है. इस संग्रहालय में आप को सीपी, बेंत, बांस और लकड़ी की विभिन्न कला के नमूने देखने को मिलेंगे. समुद्री सीपियों से तैयार किए कई तरह के आभूषण एवं घरेलू सजावट का सामान आप यहां से खरीद सकते हैं.

सैल्युलर जेल

पोर्टब्लेयर उतर कर यदि आप ने सैल्युलर जेल नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा. यह जेल पोर्टब्लेयर के अबेरदीन बाजार से कुछ ही दूरी पर स्थित है. इस का निर्माण 1886 में शुरू हुआ था और 1906 में बन कर तैयार हुआ. शुरू में इस की 7 भुजाएं थीं और 698 कोठरियां थीं. अब 3 भुजाएं ही रह गई हैं. आजादी के दीवानों को इन कोठरियों में कैद में रखा जाता था. यहीं पर उन्होंने ब्रिटिश सरकार की तरहतरह की यातनाएं सही थीं. अब इसे भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक (नैशनल मैमोरियल) घोषित कर दिया है. इसी के प्रांगण में ध्वनि एवं प्रकाश का एक विशेष कार्यक्रम दिखाया जाता है. यह कार्यक्रम इस जेल के इतिहास एवं क्रांतिकारियों के जीवन पर आधारित है. दर्शकों को यह अतीत की एक रोमांचकारी दुनिया में ले जाता है. इस के लिए टिकट खरीदना होता है. सैल्युलर जेल से थोड़ी ही दूरी पर सागर तट से लगा है- मैरिना पार्क, जो नगर का एकमात्र सुंदर पार्क है. यहां शाम को लोगों का मेला लगता है. सागर की ठंडी हवा का यहां आनंद लिया जा सकता है. पोर्टब्लेयर के पास ही एक छोटा सा रास द्वीप है. यहीं पर 1858 से 1941 तक ब्रिटिश सरकार का मुख्यालय था. आज भी यहां उस समय के गिरजाघर, मुख्यायुक्त का बंगला, अस्पताल, बाजार, मंदिर आदि के खंडहर देखने को मिलते हैं. इस द्वीप के लिए अबेरदीन जेटी से बोट की सेवा उपलब्ध है.

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लाडली को सिखाएं रिश्ते संवारना

‘मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो,’ टीवी पर आ रहे इस सीरियल की नायिका जब विवाह कर के अपनी ससुराल पहुंचती है, तो उस की मां उस की हर गतिविधि पर नजर रखने लगती है. मां वीडियो कौलिंग कर बेटी की घरगृहस्थी में घुसी रहती है, जो कतई उचित नहीं होता है.

भले मां बेटी को जन्म देती हैं, उसे पालपोस कर बड़ा करती हैं, हर पल बेटी का हित चाहती हैं, पर कई बार उन की जरूरत से ज्यादा फिक्रमंद रहने की आदत बेटी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है. मांबेटी का रिश्ता प्यार की डोर से बंधा होता है.

शुरुआत में बरतें सावधानी

बेटी की सुरक्षा और उस के सुखद भविष्य के लिए मां हर मुमकिन प्रयास करती है. दोनों एकदूसरे की दुनिया होती हैं, पर जब बेटी की शादी हो जाती है तो बेटी एक दूसरी दुनिया में प्रवेश करती है. उस के जीवन में नए लोग और नए रिश्ते आते हैं. इन नए रिश्तों को प्यार से सींचने के लिए बेटी को काफी कंप्रोमाइज करने होते हैं और यह जरूरी भी है, क्योंकि रिश्तों का पौधा मजबूत बन सके, इस के लिए शुरुआती दिनों में ही ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है.

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बेटी को संवारने दें अपनी दुनिया

बेटी जब बिदा हो कर ससुराल चली जाए तो मां को बाद में भी उस के साथ चिपके नहीं रहना चाहिए. बेटी को अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने दें. अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने का मौका दें. अपनी परिस्थितियों के साथ एडजस्ट करने दें.

बातबात पर यदि मां बेटी को अपनी सलाह देती रहेगी तो बेटी कभी स्वतंत्र निर्णय लेना नहीं सीख पाएगी. वैसे भी जब मां उस घर में नहीं है, तो सारी परिस्थितियों को समझे बगैर दी गई सलाह एकतरफा ही रहेगी और बेटी की समस्याएं सुलझने के बजाय उलझती चली जाएंगी.

बेटी समझे ससुराल को अपना घर जब शादी कर के लड़की पति के घर आती है तो फिर वही उस का अपना घर बन जाता है. नए रिश्ते ज्यादा करीब हो जाते हैं और ससुराल का मानसम्मान उस का अपना हो जाता है. लड़की को सदैव इस हकीकत को समझना चाहिए.

हमेशा यह याद रखना चाहिए कि रिश्ता टूटने में एक भी पल नहीं लगता, अगर एक बार रिश्ते में दरार आ जाए तो फिर उसे पाटा नहीं

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जा सकता. यदि दरार भर भी जाए तो खटास फिर भी नहीं जाती. इसलिए रिश्ते की डोर को अपने प्रयासों से मजबूत बनाने का प्रयास करें. एक बार रिश्ता मजबूती से जुड़ जाए तो फिर उसे कोई नहीं तोड़ सकता.

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