कुछ दिनों से मुझे पेशाब करने में परेशानी हो रही है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल-

मेरी उम्र 50 वर्ष है. मुझे 10 वर्षों से शुगर की शिकायत है, जिस की दवा चल रही है. मगर कुछ दिनों से मुझे पेशाब करने में परेशानी हो रही है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

आप कुछ अच्छी आदतों को अपना कर तथा कुछ सावधानी बरत कर अपनी शुगर को नियंत्रित कर सकते हैं तथा सामान्य जीवन जी सकते हैं. आप को स्मोकिंग से बचना चाहिए. अपना ब्लड प्रैशर तथा कोलैस्ट्रौल लैवल नियंत्रित रखें, रोजाना व्यायाम करें, खाने में चीनी की तथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा में कमी लाएं, पानी ज्यादा पीएं, ज्यादा फाइबर वाली चीजें खाएं और विटामिन डी का अनुकूल स्तर बनाए रखें.

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हम सभी जानते हैं कि खाने-पीने के रेडीमेड सामानों और सॉफ्ट ड्रिंक्स के जरिए हम सबसे ज्यादा शुगर (चीनी) कंज्यूम करते हैं. ये शूगर ही हमारे शरीर को कई तरह से सबसे ज्यादा नुकसान भी पहुंचाती है.

इस एक्स्ट्रा शुगर से आपकी सेहत को कोई भी फायदा नहीं होता बल्कि जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक ये शरीर में घटिया किस्म के कॉलेस्ट्रोल को बढ़ावा देती है जिससे आगे चलकर दिल से संबंधित बीमारियों का खतरा पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है.

ज्यादा शुगर वाली खाने-पीने की चीजें इस्तेमाल करने से डायबिटीज का खतरा भी बढ़ जाता है. एडल्ट्स को करीब 30 ग्राम शुगर एक दिन में कंज्यूम करने की सलाह दी जाती है जबकि 4 से 6 साल के बच्चों के लिए ये मात्रा 19 ग्राम और 7 से 10 साल के बच्चों के लिए 34 ग्राम है.

अगर आप मीठा खाने के बहुत ज्यादा शौकीन हैं और डायबिटीज जैसे इसके नुकसानों से भी बचे रहना चाहते हैं तो न्यूट्रीशन एक्सपर्ट डॉक्टर मर्लिन ग्लेनविल बता रहीं हैं ऐसे 6 तरीके जिससे आप अपनी आदत बदले बिना रह सकते हैं डायबिटीज से दूर.

1. बाहर संभल कर खाएं: सबसे ज्यादा शुगर बाहर से खाने-पीने वाली चीजों के जरिये कंज्यूम की जाती हैं. ऐसे में थोड़े सी सतर्कता से आप मीठा खाकर भी बीमारियों से बचे रह सकते हैं. आपको करना बस इतना है कि स्पैगिटी सॉस और मियोनीज की जगह ऑर्गनिक योगार्ट इस्तेमाल करें और ऐसी दुकानों पर खाएं जो अपने सॉस खुद तैयार करते हैं. घर में बने सॉस में अपेक्षाकृत कम शुगर होती है.

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कभी न करें ये 5 मेकअप मिस्टेक्स

चाहे चेहरे की रौनक को फाउंडेशन से बढ़ाने की बात हो या फिर लिप्स को ग्लौस व लिपस्टिक से शाइनी व कलर देने की बात हो या चीकबोंस को हाइलाइटर से उभारने की या फिर आंखों को आईशैडो से ग्लैमरस लुक देने की, लड़कियां व महिलाएं किसी भी तरह का मेकअप करने में पीछे नहीं रहतीं. मेकअप के साथ आए दिन नएनए ऐक्सपैरिमैंट्स करना उन्हें पसंद होता है.

मगर क्या आप जानती हैं कि इस दौरान आप अनजाने में कुछ मेकअप मिस्टेक्स भी कर देती हैं, जो स्किन के लिए नुकसानदायक साबित होती हैं? तो आइए जानते हैं उन मिस्टेक्स के बारे में:

1. मेकअप को रिमूव न करना

जितनी ऐक्साइटमैंट महिलाओं की मेकअप को अप्लाई करने की होती है, उतनी मेकअप रिमूव करने की नहीं होती. वे यही सोचती हैं कि उन्होंने ब्रैंडेड प्रोडक्ट चेहरे पर अप्लाई किया है, इसलिए मेकअप चाहे रिमूव नहीं भी करें तो भी चलेगा, जबकि उन की यह सोच गलत है क्योंकि मेकअप को लंबे समय तक स्किन पर लगाए रखना या फिर उसे बिना हटाए सो जाने से मेकअप में इस्तेमाल होने वाले कैमिकल्स, धूलमिट्टी के कारण स्किन पर जमी गंदगी व बैक्टीरिया पोर्स को क्लोग करने के साथसाथ स्किन ऐलर्जी का कारण भी बनते हैं. इसलिए कभी भी मेकअप उतारे बिना न सोएं.

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2. मौइस्चराइजर के बिना मेकअप

महिलाओं को मेकअप करना तो पसंद होता है, लेकिन उन्हें कई बार मेकअप से संबंधित बहुत सी चीजों की जानकारी नहीं होती है, जिस में से एक है कि बिना मौइस्चराइजर अप्लाई किए मेकअप करने की भूल.

वे यही सोचती हैं कि जो काम मेकअप को करना है वह तो हो ही जाएगा, फिर मौइस्चराइजर लगाने की क्या जरूरत. लेकिन वे यह भूल जाती हैं कि जब वे बिना मौइस्चराइजर के स्किन पर मेकअप अप्लाई करती हैं तो उस से स्किन पर ड्राईनैस रहने के कारण मेकअप क्रैकी लुक देने लगता है और मेकअप भी लंबे समय तक स्टे नहीं कर पाता है और स्किन हैल्दी भी नहीं रहती. इसलिए जरूरी है कि मेकअप अप्लाई करने से पहले स्किन को मौइस्चराइज जरूर करें.

3. कंसीलर का गलत इस्तेमाल

कंसीलर जिसे कलर करैक्टर भी कहते हैं, यह डार्क सर्कल्स, ऐज स्पौट्स, बड़े पोर्स व स्किन पर दागधब्बों को छिपाने का काम करता है, जिस से स्किन टोन में भी काफी फर्क नजर आता है. लेकिन जब कंसीलर को सही तरीके से नहीं लगाते यानी जरूरत से ज्यादा कंसीलर का इस्तेमाल करती हैं तो स्किन अपना नैचुरल लुक खोने के साथसाथ पैचीपैची सी भी नजर आने लगती है.

इसलिए जब भी लगाएं तो इसे ड्रौपड्रौप कर के ही लगाएं. साथ ही लेयर्स पर लेयर्स लगाने की कोशिश न करें वरना चेहरा भद्दा नजर आने लगेगा.

4. मसकारा की कई लेयर्स

मसकारा आंखों की खूबसूरती को बढ़ाने का काम करता है क्योंकि यह पलकों को शेप देने के साथसाथ उन्हें घना दिखाने का भी काम करता है और कई बार महिलाएं इस की खूबसूरती को बढ़ाने के चक्कर में इस की एक बार में ही कईकई लेयर्स अप्लाई कर लेती हैं, जिस से पलकें काफी मोटी लगने के साथसाथ वे ड्राई होने के बाद अलगअलग हो कर आंखें खूबसूरत लगने के बजाय काफी अजीब सा लुक देने लगती हैं. इसलिए 1-2 बार इसे ब्रश से पतलापतला ही लैशेज पर अप्लाई करें. इस से लुक बिगड़ने का डर नहीं रहता और आंखें भी ग्लैमरस लगती हैं.

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5. मेकअप ब्रश को क्लीन न करना

महिलाएं मेकअप प्रोडक्ट्स को मेकअप ब्रश व ब्यूटी ब्लैंडर से ही लगाना पसंद करती हैं खासकर क्रीमी मेकअप प्रोडक्ट्स व फाउंडेशन को. लेकिन वे इन ब्रश व ब्यूटी ब्लैंडर को इस्तेमाल करने के बाद क्लीन करना जरूरी नहीं समझतीं, जिस से चेहरे पर स्किन प्रौब्लम्स जैसे एक्ने, ब्रेकआउट जैसी प्रोब्लम्स हो जाती हैं. मौइस्ट व गंदे  ब्रश आदि में बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं, जो स्किन के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं होते हैं. इसलिए जब भी इस्तेमाल करें तो इन्हें क्लीन कर के सही जगह रखें.

हैप्पी लाइफ के लिए बनिए स्मार्ट वूमन

रक्षिता एक संयुक्त परिवार की छोटी बहू है. परिवार का रैडीमेड कपड़ों का बड़ा व्यवसाय है, पढ़ीलिखी तो थी ही, सो शादी के बाद वह भी व्यवसाय में मदद करने लगी. जहां उस की 2 जेठानियां घर पर रहतीं, वह हर दिन तैयार हो कर दुकान जाती और बिजनैस में सहभागी होती. परंतु उस की आर्थिक स्वतंत्रता बिलकुल अपनी जेठानियों के ही स्तर की रही. वह एक कर्मचारी की ही तरह काम करती और वित्तीय मामलों में उस के सुझवों को उस के अधिकारों का अतिक्रमण माना जाता है.

रक्षिता को भी इस व्यवस्था में कोई खामी नजर नहीं आती है और घर से बाहर जाने के मिले अधिकार की खुशी में ही संतुष्ट रहती है. उस के ससुर, जेठ या उस के पति यह सोच भी नहीं सकता कि घर की औरतों को आयव्यय, बचत, हिसाब जानने की कोई जरूरत भी है. वहीं कुछ महिलाएं खुद ही यह मान कर चलती हैं कि घर के वित्तीय मामले उन के लिए नहीं हैं.

शर्माजी कोविडग्रस्त हो 75 साल की उम्र में गुजर गए. सबकुछ इतना अचानक हुआ कि उन की पत्नी जिंदगी में आए इस बदलाव से भौचक सी रह गई. आर्थिक रूप से शर्मा दंपती बेहद संपन्न थे. शर्माजी के गुजरने के बाद भी मजबूत बैंक बैलेंस, पैंशन और इंश्योरैंस की मजबूत आर्थिक सुरक्षा थी. परंतु अफसोस यह है कि शर्माजी की पत्नी अपनी आर्थिक सुदृढ़ता से पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं.

विवाह के शुरुआती दिनों से उन्होंने कभी भी यह सीखने या जानने की कोशिश नहीं की कि घर में कितने पैसे आ रहे हैं, कहां खर्च हो रहे हैं या फिर कहां क्या बचत हो रही है. शर्माजी उन के लिए सदा एटीएम बने रहे.

बच्चों पर निर्भरता

बेटे के बड़े होने और अवकाशप्राप्ति के बाद शर्माजी ने बड़ी कोशिश करी उर्मला को अपना वित्तीय स्टैटस समझने की, बैंक और औनलाइन ट्रांजैक्शन समझने की, परंतु उर्मला को यही लगता कि कौन इस झमेले में पड़े, जब उन के पति सब कर ही लेते हैं.

अब जब शर्माजी नहीं रहें तो अचानक वे पूरी तरह अपने बेटे पर निर्भर हो गईं, अकेले रहने लायक वे थी ही नहीं. अब पाईपाई के लिए बेटे पर निर्भरता उन्हें बेहद खलती है पर अब कोई चारा नहीं है.

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उर्मला के विपरीत कंचन बाजपेयी ने देर से ही सही पर सबकुछ सीखा और अपने आत्मसम्मान के साथ एक आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत कर रही हैं. यदाकदा जरूरत पड़ने पर बच्चों या किसी और की मदद लेती हैं. वे भी उर्मला की ही तरह गृहिणी थीं और वित्तीय जानकारी उन की भी शून्य ही थी.

यहां बाजपेयी ने कभी बताने की भी जरूरत नहीं समझ थी कि ‘मैं तो हूं’ ही. परंतु मरने से 10 वर्ष पहले जब उन्हें पहली बार हार्टअटैक आया तो अपनी पत्नी की अनभिज्ञता के चलते उन्हें रिश्तेदारों और दोस्तों पर निर्भर होना पड़ा. अस्पताल के बिल चुकाने से ले कर अन्य बातों के लिए. बाद में स्वस्थ होने पर उन्होंने ठान लिया कि पत्नी को सब सिखाना है.

60 वर्षीय कंचन बाजपेयी न सिर्फ एटीएम से पैसे निकालना जानती हैं बल्कि विभिन्न औनलाइन पोर्टल से ट्रांजैक्शन करना भी उन्हें आता है. कहां किस बैंक में कितने पैसे हैं, कौन नौमिनी है, खर्चों के पैसों को किस अकाउंट से निकालना है इत्यादि उन्हें सब पता है. अपनी इस वित्तीय जागरूकता के चलते वे निर्णय लेने की क्षमता भी रखती हैं और बच्चों के घर में एक फर्नीचर की तरह रहने की जगह वे अपने घर में अपनी इच्छानुसार रहती हैं.

आर्थिक गुलामी

आर्थिक आत्मनिर्भरता हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है. अब दिनोंदिन कामकाजी और आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं की गिनती बढ़ रही है पर अब भी उन महिलाओं की गिनती अधिक है जो आर्थिक स्वावल?ंबन से दूर हैं. यह लेख मूलतया उन्हीं महिलाओं के लिए है, जो संपन्न होने के बावजूद आर्थिक गुलामी की जिंदगी चुन लेती हैं.

अधिकतर महिलाएं आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं चाहे पिता पर, पति पर या फिर पुत्र पर. माइंड कंडीशनिंग कुछ ऐसी होती है महिलाओं

की कि उन्हें बुरा भी नहीं महसूस होता है. मगर उन्हें मालूम होना चाहिए कि यह गुलामी का ही प्रतीक है.

बेटियों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना हर मातापिता का फर्ज है. फिर भी यदि किसी कारणवश एक लड़की आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं प्राप्त कर पाती है तो भी उस का यह हक है कि अपनी गृहस्थी के फाइनैंशियल स्टेटस को पूरी तरह सम?ो.

जरूरतें और मुसीबतें कभी बता कर नहीं आती हैं. हर परिस्थिति के लिए पतिपत्नी को शुरू से प्लानिंग करनी चाहिए और महत्त्वपूर्ण बातों को आपस में शेयर करना चाहिए. पतिपत्नी दोनों को मिल कर अपने भविष्य की तैयारी करनी चाहिए, न कि पति अपनी घरवाली को सिर्फ घरेलू काम की ही इंसान सम?ो. बहुत लोग दोस्तों से, रिश्तेदारों से अपनी वित्तीय जानकारी शेयर करते हैं पर अपनी घरवाली को अनभिज्ञ रखेंगे. घर की महिलाओं को पता ही नहीं रहता है कि आड़े वक्त में पैसे कहां से आएंगे.

कदमकदम पर धोखा

रामकली घर पर ब्लाउज सिलने का काम करती थी. वह कुछ दर्जियों से जुड़ी हुई थी जो उस से सिलवा कर अपने ग्राहकों को देते थे. ठीकठाक कमा लेती थी. वह जो कमाती अपने पति रणबीर के हाथों में दे कर निश्चिंत हो जाती थी जो खुद टैंपो चलाता था. एक दिन रणबीर टेम्पो सहित दुर्घटनाग्रस्त हो गया. आसपास के लोगों की मदद से उसे पास के अस्पताल में भरती करवाने के बाद रामकली को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह अस्पताल के बिल कैसे और कहां से भरे.

उस ने पूरा घर छान मारा पर कुछ हजार रुपयों के अलावा उसे कुछ नहीं मिला. रणबीर तो बेहोश था. इसलिए वह कैसे पूछती कि पैसे कहां रखे हैं. नतीजा समय पर पैसे नहीं जमा करने के कारण उस के इलाज में देरी हो गई. सिलाईमशीन छोड़ वह घर का 1-1 समान बेच कर किसी तरह इलाज करवा और सदा के लिए अपंग हो गए पति को घर ला पाई.

बाद में पता चला कि रणबीर अपनी और रामकली की सारी कमाई अपने दोस्त को ब्याज पर उधार दे रखी थी, जिस ने पूरी रकम डकार ली. इस धोखे के बाद रामकली ने फिर से ब्लाउज सिलने शुरू किए तो खुद अपनी कमाई का हिसाबकिताब रखने लगी.

गलती किस की

बिल गेट्स की एक प्रसिद्ध उक्ति है कि यदि आप गरीब परिवार में जन्म लेते हैं तो यह आप की गलती नहीं है पर यदि आप गरीब ही मर जाते हैं तो यह आप की गलती है.

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इसी तर्ज पर यदि कोई महिला पूर्णरूपेण समृद्ध होते हुए भी अपनी नासमझ और अज्ञानता के कारण किसी पर आश्रित हो कर जीती है तो यह उस की गलती है. अपने आसपास ऐसी कई औरतें दिख जाएंगी जो हर तरह से समृद्ध होते हुए भी पति के गुजरने पर बेबस और पराश्रित हो जाती हैं. अफसोस होता है उन की पराधीनता पर. अकसर घरेलू और कई बार कामकाजी कमाऊ पत्नियां भी पति के बताने के बावजूद फाइनैंशियल ज्ञान से बेखबर रहना पसंद करती  हैं. यह गलत है. शुरू से ही पति की सहायिका बन कर सारी जानकारी रखनी चाहिए. बदलते वक्त के साथ खुद को अपडेट भी करते रहना चाहिए. बैंकिंग और टैक्नोलौजी के प्रति आप  की थोड़ी सी जागरूकता भविष्य में बहुत  सहायक होगी.

सरला माथुर 72 वर्ष की आयु में भी काफी सक्रिय रहती हैं. माथुर साहब कुछ वर्षों से बहुत बीमार रहने लगे तो न सिर्फ सरलाजी ने सारी जिम्मेदारियों को अपने पर ले लिया बल्कि बैंक, पोस्ट औफिस, पैंशन और मैडिकल इंश्योरैंस सहित सभी वित्तीय मामलों की लगाम अपने हाथों में थाम लिया. कभी बच्चों के घर जा कर रहने पर भी वे उन पर आश्रित नहीं रहतीं. गृहस्थी की शुरुआत से ही पतिपत्नी के बीच एक मधुर सामंजस्य रहा. जब जिंदगी में जैसी जरूरत पड़ी रोल बदल कर उन्होंने जिंदगी आसान और खुशनुमा बनाए रखी.

यह एक कड़वा सत्य है कि पतिपत्नी में एक को पहले गुजरना है, उम्र में कम होने के चलते ज्यादातर पत्नियां रह जाती हैं. एक तो जुदाई का गम दूसरा अपनी परतंत्रता स्त्रियों पर दोहरी गाज बन गिरती है, इसलिए स्मार्ट वूमन बनिए और जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीते रहने की कला से वाकिफ रहिए. आर्थिक स्वतंत्रता ही सुखद, उन्मुक्त जीवन की कुंजी है ताउम्र. -रीता गुप्ता द्य

घर में पेंट करवाने से पहले ये बातें रखें याद

एशियन पेंट का एक विज्ञापन तो आप सभी को याद ही होगा, जिस में सुनील बाबू की जिंदगी आगे बढ़ती रहती है. हर चीज में बदलाव आता रहता है, पर एक चीज जो नहीं बदलती है वह है उन का घर, जो हमेशा नयानया सा लगता है.

अगर आप भी अपने घर को पेंट करवाने की सोच रहे हैं तो थोड़ी समझदारी आप भी दिखाएं ताकि आप का घर भी हमेशा नयानया सा लगे और लोग आप की तारीफ करते न थकें. तो आइए जानते हैं कि घर को पेंट करवाते समय किन बातों का ध्यान रखें और रंगों का चुनाव कैसे करें:

कर्टेंस व इंटीरियर को ध्यान में रखें

जब भी आप अपने घर में पेंट करवाने के बारे में विचार करें, तो सब से पहले देख लें कि आप के घर में कर्टेंस किस तरह के लगे हुए हैं, क्योंकि हमेशा पेंट घर के परदों को, इंटीरियर को ध्यान में रख कर ही करवाना चाहिए क्योंकि उसी से घर का लुक निखरता है.

ऐसा भी हमेशा जरूरी नहीं है कि पूरे घर में एक जैसा ही पेंट करवाएं. आप अपनी चौइस के हिसाब से अलगअलग कमरों में मैच करता पेंट करवा सकते हैं, जो खूबसूरत लगने के साथसाथ आजकल काफी ट्रैंड में भी है. इस के लिए आप किसी ऐक्सपर्ट की राय जरूर लें ताकि आप के घर को सही तरीके से न्यू मेकओवर मिलने में मदद मिल सके.

बच्चों को ध्यान में रख कर करवाएं पेंट 

जब भी घर में पेंट करवाएं तो बच्चों को ध्यान में जरूर रखें. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप के घर में छोटे बच्चे हैं और आप दीवारों पर नौर्मल पेंट करवाने की सोच रहे हैं, तो आप के पेंट के जल्दी खराब होने के साथसाथ बच्चों के द्वारा दीवारों पर लिखने या पेंटिंग करने से वे भद्दी लगने के साथसाथ घर की खूबसूरती को भी कम करती हैं.

इस की जगह आप दीवारों पर औयल पेंट, वाटरपू्रफ पेंट करवा सकते हैं, जिस पर दाग लगने पर वह तुरंत वाश करने पर हट जाता है. साथ ही अगर आप घर को खूबसूरत बनाने के लिए अच्छा व महंगा पेंट करवाने का विचार कर रहे हैं तो आप बच्चों के रूम में उन के थीम का ध्यान जरूर रखें क्योंकि उन के रूम में फैवरिट थीम का वाल पेंट जैसे कार्टून करैक्टर्स बगैरा होने से बच्चे उस की ओर अट्रैक्ट होते हैं और वहां बैठ कर मन से हर चीज करने के लिए तैयार हो जाते हैं.

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तरहतरह के पेंट्स

अगर आप अपने घर को फ्रैश लुक देने के लिए पेंट करवाने के बारे में सोच रहे हैं, तो उस के लिए आप को सही पेंट, कलर व उस की फिनिश का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, तभी आप अपने घर को खूबसूरत बना पाएंगे. लेकिन इस के लिए पहले आप को कौनकौन से पेंट मार्केट में उपलब्ध हैं, यह ध्यान में रखना बहुत जरूरी है ताकि आप हर तरह के पेंट के बारे में जान कर आप को अपने घर के लिए पेंट का चुनाव करने में आसानी हो.

तो जानते हैं पेंट्स के बारे में:

– ऐनामेल पेंट औयल बेस्ड पेंट होता है, जो लंबे समय तक टिके रहने के साथसाथ दीवारों को ग्लौसी फिनिश देने के कारण घर को रौयल लुक देने का भी काम भी करते है. यह पेंट उन जगहों पर ज्यादा सूट करता है, जहां ज्यादा मौइस्चर व ह्यूमिडिटी होती है. लेकिन इस पेंट में समय बीतने के साथसाथ क्रैक्स पड़ने शुरू हो जाते हैं.

– डिस्टैंपर पेंट पौकेट फ्रैंडली होने के साथसाथ इन्हें दीवारों पर बिना प्राइमर अप्लाई किए डाइरैक्ट अप्लाई किया जा सकता है. लेकिन ये वाटरपू्रफ नहीं होते. गीला होने पर डिस्टैंपर निकल जाता है.

– टैक्सचर पेंट दीवारों को काफी यूनिक टच देने का काम करता है. यह वाटरपू्रफ होने के साथसाथ दीवारों पर विशेष टैक्नीक का सहारा ले कर दीवारों को खास इफैक्ट देने का काम करता है. लेकिन यह पेंट काफी महंगा होने के साथसाथ इसे ऐक्सपर्ट पेंटर्स ही कर सकते हैं.

– मैटेलिक पेंट वाटर बेस्ड होने के साथसाथ दीवारों को मैटेलिक फिनिश देने के कारण घर को लग्जरियस लुक देने का काम करता है. यह पेंट ज्यादा महंगा होता है, इसलिए यह शानदार इफैक्ट देने के लिए सिर्फ छोटे से हिस्से में ही लगाया जाता है.

– ऐक्रिलिक पेंट वाटरप्रूफ होने के साथसाथ अधिकांश लोगों की पसंद है क्योंकि यह लंबे समय तक चलने के साथसाथ ज्यादा टिकाऊ जो है. यह मैट, साटिन, सिल्क हर तरह की फिनिश में उपलब्ध रहता है. यह दीवारों पर क्रैक्स भी नहीं पड़ने देता. बस इस पेंट को करवाने से पहले दीवारों पर प्राइमर का कोट करवाना जरूरी होता है.

कलर्स का ध्यान रखें

– लिविंगरूम घर का वह रूम होता है, जहां हम परिवार के साथ बैठ कर सब से ज्यादा समय व्यतीत करते हैं. यहां तक कि यही वह रूम होता है, जो बाहर से आए लोगों को अट्रैक्ट करता है. ऐसे में इस खास जगह के लिए न्यूट्रल शेड्स का चुनाव कर सकते हैं.

– अगर आप डाइनिंगरूम को कौफी लुक देना चाहते हैं तो आप रैड शेड्स चूज करें क्योंकि रैड कलर लाइवलीनैस को प्रमोट करने के साथसाथ भूख को भी बढ़ाने का काम करता है.

यही वजह है कि स्पेनिश रैस्टोरैंट्स रैड कलर के फैन हैं. वहीं यलो कलर खुशहाली का प्रतीक होने के साथसाथ आप ज्यादा कंफर्ट हो कर अच्छा खाने के बारे में सोचते हैं. ग्रीन डाइनिंगरूम नेचर के करीब लाने के साथसाथ आप को अच्छा खाने के लिए भी प्रमोट करने का काम करता है.

– बच्चों के रूम में हमेशा सौफ्ट टोन्स वाले पेंट्स ही ज्यादा करवाने चाहिए क्योंकि ये उन्हें शांत व कूल रखने का काम करते हैं.

– बैडरूम घर की वह जगह होती है, जहां हम खुद को रिलैक्स करने के लिए जाते हैं. ऐसे में जब भी बैडरूम के लिए पेंट कलर्स का चयन करें तो वे सौफ्ट कलर्स यानी लाइटर कलर्स औफ टोन्स हों, जो आप को रिलैक्स फील करवाने का काम करें.

– जब बात आए किचन की तो आप किचन  में व्हाइट, ग्रे, ब्लू, रैड, यलो, ग्रीन जैसे शेड्स चूज करें क्योंकि ये कलर्स ज्यादा शाइन  करने के साथसाथ अट्रैक्ट करने का भी  काम करते हैं.

– बाथरूम में व्हाइट कलर काफी बैस्ट रहता है क्योंकि यह हमेशा फ्रैश व क्लीन फील देने का काम करता है, साथ ही आप सौफ्ट ग्रे, लाइट ब्लू, पिस्ता, लाइट ग्रीन जैसे शेड्स भी ट्राई कर सकते हैं. ये कलर्स भी काफी कूल फील देने का काम करते हैं.

ट्रैडिशनल पेंट्स का भी ट्रैंड

अगर आप अपने घर को ट्रैडिशनल लुक देना चाहते हैं, तो आजकल ट्रैंड में चल रहे मधुबनी पेंट्स से दीवारों को सजा सकते हैं. पहले मधुबनी पेंटिंग रंगोली के रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत होती थी, लेकिन अब यह आधुनिक रूप में कपड़ों, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है. इस कला को न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी खूब पसंद किया जाता है.

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  बदलाव है जरूरी

अगर आप इन फैस्टिवल्स पर अपने घर को पेंट करवाने के बारे में सोच रहे हैं, तो बदलाव के बारे में जरूर सोचें क्योंकि हम जब भी अपने घर को सालों से एक ही रंग में रंगा हुआ देखते हैं, तो हमें उसे उसी लुक में देखने की आदत सी पड़ जाती है. ऐसे में हम बदलाव करना जरूरी नहीं समझते. लेकिन दीवारों पर पेंट न सिर्फ आप के घर को खूबसूरत बनाता है बल्कि अलगअलग दिल को छू जाने वाले रंगों के बीच जब हम रहते हैं तो वे हमारे अंदर पौजिटिव ऐनर्जी का संचार करते हैं और यही पौजिटिव ऐनर्जी हमें अच्छा सोचने, कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती है.

  बजट का भी ध्यान रखें

जब भी अपने घर में पेंट करवाएं, तो जल्दबाजी न करें क्योंकि इस से आप को क्वालिटी वर्क भी नहीं मिलेगा और साथ ही आप का बजट भी गड़बड़ा जाएगा. अगर आप इन फैस्टिवल्स पर अपने घर को रंगने का विचार कर रहे हैं तो और देर न करें, बल्कि कुछ ही दिनों में निर्णय ले कर अपने घर में पेंट का काम शुरू करवा सकते हैं. इस से आप को जरूरत के हिसाब से कहां कौन सा पेंट करवाना है, कौन सा कलर करवाना है, किस ऐक्सपर्ट पेंटर से पेंट करवाना है, समय होने के कारण निर्णय लेने में आसानी होगी और आप अपने बजट का भी ध्यान रख पाएंगे.

फैमिली के लिए बनाएं राइस पीनट्स फ्राइड इडली

इडली एक हेल्दी डिश है, जिसे कई तरह से परोसा जा सकता है. आज हम आपको राइस पीनट्स फ्राइड इडली की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली के लिए बना सकते हैं.

सामग्री

– 1 कप चावल पके

– 1/2 कप मूंगफली के दाने उबले

– 4-5 लालमिर्च साबूत उबली

– 1/2 कप दही – 1/4 कप सूजी

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– 11/2 छोटे चम्मच राईदाना

– 8-10 करीपत्ते

– 4-5 हरीमिर्चें

– 1 छोटा चम्मच उरद दाल

– 1 छोटा चम्मच चना दाल

– 1 बड़ा चम्मच रिफाइंड

– नमक स्वादानुसार.

विधि

चावल, मूंगफली के दाने, लालमिर्च और दही डाल कर ग्राइंड कर लें. पैन में रिफाइंड गरम कर के राई और उरद दाल डालें. तड़कने लगे तो सूजी डाल कर 1 मिनट भूनें. अब सूजी को चावल के मिश्रण में डाल कर मिला लें. नमक डाल कर दोबारा मिक्स करें व इडली के सांचे में चिकनाई लगा कर तैयार मिश्रण डालें और स्टीम करें. फ्राइंग पैन में फिर से रिफाइंड गरम कर के राई, चीरा लगी हरीमिर्चें, उरद दाल, चना दाल व करीपत्ते डाल कर तड़कने पर इडली को काट कर तड़के में मिक्स कर दें. आंच बंद कर के सर्विंग बाउल में निकालें व चटनी के साथ परोसें.

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और बाइज्जत बरी…

17जनवरी, 2014 को सुनंदा पुष्कर नई दिल्ली के 7 स्टार होटल लीला पैलेस के सुइट नंबर 345 में मृत पाई गईं. प्रथम दृष्टया यह सभी को आत्महत्या का मामला लगा.

19 जनवरी, 2014 को सुनंदा पुष्कर का पोस्ट मार्टम हुआ. डाक्टरों ने कहा कि यह अचानक अप्राकृतिक मौत का मामला लगता है. उन के शरीर में ऐंटी ऐंग्जाइटी दवा अल्प्राजोलम के नाममात्र के संकेत मिले हैं. सुनंदा के हाथों पर एक दर्जन से ज्यादा चोट के निशान थे. उन के गाल पर घर्षण का एक निशान था और उन की बाईं हथेली के किनारे पर दांत से काटे का निशान था.

सुनंदा पुष्कर की मौत की जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपी गई. लेकिन मामला 2 दिन बाद वापस दिल्ली पुलिस को ट्रांसफर कर दिया गया.

जुलाई, 2014 में सुनंदा पुष्कर का पोस्ट मार्टम करने वाले पैनल के लीडर एम्स के डाक्टर सुधीर गुप्ता ने दावा किया कि उन पर औटोप्सी  रिपोर्ट में हेरफेर करने के लिए दबाव बनाया गया था. सुधीर गुप्ता ने केट यानी केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में एक हलफनामा दायर कर आरोप लगाया कि उन पर मामले को छिपाने और क्वाटर मैडिकल रिपोर्ट देने के लिए दबाव बनाया गया. सुधीर ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सुनंदा के शरीर पर चोट के 15 निशान थे जिन में से अधिकांश ने मौत में योगदान नहीं दिया. बकौल डाक्टर सुधीर गुप्ता सुनंदा के पेट में अल्प्राजोलम दवा की अधिक मात्रा मौजूद थी.

जनवरी, 2015 में दिल्ली के तत्कालीन पुलिस आयुक्त बीएस बस्सी ने कहा कि सुनंदा पुष्कर ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उन की हत्या की गई है. इस के बाद दिल्ली पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.

फरवरी, 2016 में दिल्ली पुलिस के विशेष जांच दल ने शशि थरूर से पूछताछ की जिस में उन्होंने कहा कि सुनंदा की मौत दवा की ओवर डोज के कारण हुई.

जुलाई, 2017 में भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली हाई कोर्ट से मांग की कि इस मामले की जांच सीबीआई के नेतृत्व वाले विशेष जांच दल से अदालत की निगरानी में करवाई जाए.

2018 में दिल्ली पुलिस ने शशि थरूर पर अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर को आत्महत्या के लिए उकसाने (आईपीसी की धारा 306) और क्रूरता (धारा 498ए) का आरोप लगाया. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें इस मामले में मुजरिम माना.

15 मई, 2018 को पुलिस ने शशि थरूर के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया.

जुलाई, 2018 में एक सैसन कोर्ट ने शशि थरूर को इस मामले में अग्रिम जमानत दी, जिसे बाद में नियमित जमानत में बदल दिया गया.

12 अप्रैल, 2021 को अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा.

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18 अगस्त, 2021 को एक वर्चुवल सुनवाई में अदालत ने शशि थरूर को बरी कर दिया. अपना फैसले में अदालत ने कहा कि शशि थरूर के खिलाफ उन्हें ऐसा कोई साक्ष्य नजर नहीं आया जिस के आधार पर उन के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी जा सके. कोई भी जांच या रिपोर्ट सीधे तौर पर उन्हें कठघरे में खड़ा नहीं कर रही है इसलिए शशि थरूर को आरोपमुक्त किया जाता है.

यह हाई प्रोफाइल मामला जो बाद में टांयटांय फिस्स साबित हुआ पूरे साढ़े 7 साल चला लेकिन इस का जिम्मेदार शनि नाम का वह काल्पनिक क्रूर ग्रह नहीं है जो ज्योतिषियों की आमदनी का बड़ा जरीया है, जिस का खौफ भारतीयों के दिलोदिमाग में इस तरह बैठा दिया गया है कि वे इस से छुटकारा पाने के लिए मुहमांगी दानदक्षिणा देने को तैयार रहते हैं.

शशि थरूर पर कानूनी प्रक्रिया का शनि था जिस ने उन्हें साढ़े 7 साल चैन से न तो खानेपीने और न ही सोने दिया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सामान्य जिंदगी जीते हुए पूरे आत्मविश्वास से लड़े और जीते भी.

ऐसी थी इन की लव स्टोरी

सुनंदा पुष्कर उतनी ही सुंदर थीं जितना कि कश्मीर के बोमाई इलाके में जन्मी एक कश्मीरी पंडित परिवार की लड़की को होना चाहिए. सुनंदा के पिता पुष्कर नाथ दास सेना में लैफ्टिनैंट कर्नल थे. सुनंदा जितनी खुबसूरत थीं उतनी ही मेहनती, हिम्मती और महत्त्वाकांक्षी भी थीं. स्कूली और कालेज की पढ़ाई सुनंदा ने श्रीनगर के गवर्नमैंट ‘कालेज फौर वूमन’ से की और बतौर कैरियर बजाय नौकरी के बिजनैस को चुना. सुनंदा की पहली शादी कश्मीर के ही संजय रैना से हुई थी लेकिन दोनों में 3 साल में ही खटपट होने लगी जिस के चलते तलाक हो गया.

3 साल बाद ही 1991 में सुनंदा ने सुजीत मेनन नाम के व्यापारी से दूसरी शादी कर ली और दोनों व्यापार के लिए दुबई चले गए. व्यापार शुरू में तो ठीक चला पर बाद में जब घाटा होने लगा तो सुजीत भारत आ गए. इन दोनों को तब तक एक बेटा हो चुका था जिस का नाम इन्होंने शिव मेनन रखा.

सुजीत की 1997 में एक ऐक्सीडैंट में मौत हो गई तो सुनंदा टूट गईं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने दम पर बेटे की परवरिश करती रहीं. दुबई में उन्होंने ‘ऐक्सप्रैस’ नाम की इवेंट कंपनी शुरू की थी जो तरहतरह के इवेंट आयोजित करती थी. जिंदगी चलाने और पैसा कमाने के लिए सुनंदा ने कई नौकरियां भी कीं और आर्टिफिशियल ज्वैलरी का काम भी किया.

पैसा कमाने पर ज्यादा फोकस

बेटे शिव की एक बीमारी के इलाज के लिए सुनंदा लंबे वक्त तक कनाडा में रहीं और वहां की नागरिकता भी उन्होंने ले ली. दुबई वापस आने के बाद उन्होंने कई कंपनियों के साथ काम किया और खासा पैसा बनाया इतना कि दुबई के पौश इलाकों में उन्होंने 3 मकान ले लिए. पहले पति से तलाक और दूसरे की मौत का दुख सुनंदा भूलने लगीं क्योंकि उन्होंने लगातार खुद को व्यस्त रखा और ज्यादा से ज्यादा फोकस पैसा कमाने पर किया जो उन के लिए बहुत जरूरी थी.

सदमों से उबर चुकी सुनंदा को फिर सहारे की जरूरत महसूस हुई जो पूरी शशि थरूर जैसी नामी हस्ती से हुई. इन दोनों की पहली मुलाकात 2008 में दिल्ली में इंपीरियल अवार्ड समारोह में हुई थी. यहीं दोनों में दोस्ती हो गई. 1 साल दोनों एकदूसरे को डेट करते रहे. तब सुनंदा 46 साल की थीं और शशि थरूर 52 साल के थे. फिर दोनों दुबई में मिले तब सुनंदा वहीं रहती थीं.

दोनों परिपक्व थे, लिहाजा उन्होंने रोमांस के साथसाथ दुनियाजहान की भी बातें कीं और आने वाली जिंदगी की भी प्लानिंग की. शशि थरूर तब केंद्रीय मंत्रिमंडल में थे इसलिए उन्हें काफी संभल कर रहना पड़ता था.

छिपा नहीं प्यार

मगर यह प्यार छिपा नहीं रह सका लिहाजा सस्पेंस खत्म करते हुए दोनों ने न केवल शादी की घोषणा कर दी बल्कि 22 अगस्त, 2010 को शादी कर भी ली.

यह शादी शशि थरूर के पैतृक गांव पल्लल्कड में समारोहपूर्वक हुई जिस की चर्चा सिर्फ केरल में ही नहीं बल्कि पूरे देश और विदेशों में भी हुई थी. तिरुअनंतपुरम में भी प्रीतिभोज हुआ था और उस के बाद शशिसुनंदा हनीमून मनाने स्पेन के लिए उड़ लिए थे. दिलचस्प बात यह थी कि दुलहन की तरह दूल्हे की भी तीसरी शादी थी.

सब से आकर्षक और सोशल मीडिया पर सैक्सी व रोमांटिक सांसद के खिताब से नवाज दिए गए शशि थरूर की पहली शादी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और नेहरु मंत्रिमंडल में शामिल रहे कैलाश नाथ काटजू की पोती तिलोत्तमा मुखर्जी से 1981 में हुई थी.

तिलोत्तमा भी कालेज में बेहद लोकप्रिय थीं उस पर बेमिसाल खूबसूरत भी तो शशि उम्र में अपने से बड़ी इस लड़की पर मर मिटे. दोनों आधुनिक और अमीर परिवारों से थे, इसलिए कोई अड़चन उन की लव मैरिज में नहीं आई. शादी के बाद तिलोत्तमा नागपुर के एक कालेज में पढ़ाने लगीं और शशि संयुक्त राष्ट्र से जुड़ गए. शादी के बाद दूसरे साल ही इस कपल को जुड़वां बेटे हुए. नामालूम वजहों के चलते दोनों 2007 में अलग हो गए. तिलोत्तमा न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर हो गईं.

जाग उठी महत्त्वाकांक्षाएं

इस शादी के टूटने के बाद अफवाह यह उड़ी थी कि शशि का अफेयर संयुक्त राष्ट्र के एक विभाग की डिप्टी सैक्रेटी चेरिस्टा गिल से चल रहा था जो तिलोत्तमा को नागवार गुजरा था. इन दोनों के रोमांस के चर्चे भी संयुक्त राष्ट्र के गलियारे में होने लगे थे. सच क्या है यह तो शशि थरूर ही बेहतर बता सकते हैं, लेकिन अफवाहें निराधार नहीं थीं. उन्होंने 2007 में चेरिस्टा से शादी कर ली. अब तक वे संयुक्त राष्ट्र में डिप्टी सैक्रेटरी बन चुके थे जो पूरे देश के लिए गर्व की बात थी.

2008 में शशि थरूर देश वापस आ गए और कांग्रेस जौइन कर ली और 2009 का चुनाव जीत कर लोक सभा भी पहुंचे. इस खूबसूरत नेता को लोगों ने हाथोंहाथ लिया तो उन की महत्त्वाकांक्षाएं और भी सिर उठाने लगीं. लेकिन चेरिस्टा को भारतीय आवोहवा रास नहीं आई और एक तलाक और हो गया. हालांकि इस तलाक की वजह सुनंदा पुष्कर से उन की बढ़ती नजदीकियां भी आंकी गई थीं.

फिर आई मेहर

लगता ऐसा है कि शशि थरूर को पहले शादी फिर किसी और से रोमांस और फिर पत्नी को तलाक देने की लत सी पड़ती जा रही थी. सुनंदा ने उन के इस स्वभाव के बारे में शायद ज्यादा नहीं सोचा था या फिर ज्यादा ही सोच लिया होगा इसलिए वे डिप्रैशन की शिकार रहने लगीं. अब चर्चा उड़ी शशि थरूर और पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के अफेयर की जो शशि की जिंदगी में घोषित तौर पर आई तीनों महिलाओं से कम सुंदर और कम प्रतिभाशाली नहीं थीं.

जैसे ही एक दिन अपनेआप में घुट रहीं सुनंदा ने ट्विटर पर अपने पति के नए प्यार का अनावरण कर डाला तो फिर हल्ला मचा जो विवाद में उस वक्त बदला जब मेहर ने सोशल मीडिया पर इस पर प्रतिक्रिया दी. लगा ऐसा था मानों झग्गीझेंपड़ी की 2 औरतें साड़ी कमर में खोंसे एकदूसरे से कह रही हों कि संभाल कर क्यों नहीं रखती अपने खसम को और जबाव में दूसरी उसी टोन में कह रही है कि संभाल कर तो तू अपनेआप को रख… यहांवहां कमर मटकाती घूमती रहती है.

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मीडिया ने इस बार भी खूब चटखारे लिए तो शशिसुनंदा को संयुक्त बयान जारी कर अपनी निजी जिंदगी और गृहस्थी की दुहाई देनी पड़ी. लेकिन सुनंदा की मौत के कुछ दिन बाद ही ये अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि शशि अब मेहर से निकाह कर लेंगे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता पर मुकदमा चला तो शशि थरूर को पहली दफा कानून के माने समझ आए और अपना दर्द उन्होंने जताया भी जो आमतौर पर हर उस पति का है जिस पर घरेलू हिंसा का केस दर्ज है या फिर तलाक का मुकदमा चल रहा है.

बेनाम भी हैं परेशान

यह दर्द वही महसूस और बयान कर सकता है जिस ने झठे आरोपों से छुटकारा पाने के लिए सालोंसाल अदालत की चौखट पर एडि़यां रगड़ी हों. इस यंत्रणा को भोपाल के एक पत्रकार योगेश तिवारी के मामले से सहज समझ जा सकता है जिन के तलाक के मुकदमे का निबटारा 14 साल बाद भी नहीं हो पा रहा.

निचली अदालत ने तलाक की डिक्री दी तो पत्नी हाई कोर्ट पहुंच गई जो 11 साल में तय नहीं कर पा रहा कि तलाक का निचली अदालत का फैसला सही था या नहीं. हां उस ने पत्नी को स्थगन आदेश जरूर दे दिया.

अब मैं यह तय नहीं कर पा रहा कि मैं शादीशुदा हूं, अविवाहित हूं या फिर तलाकशुदा हूं. योगेश कहते हैं कि मेरी वैवाहिक स्थिति कानूनन क्या है यह बताने को कोई तैयार नहीं. मैं अब अधेड़ हो चला हूं, लेकिन जब तक हाई कोर्ट अपना फैसला नहीं देता तब तक मैं दूसरी शादी भी नहीं कर सकता. 14 साल से मैं कानूनी ज्यादतियों का शिकार हो रहा हूं. मैं किस से अपना दुखड़ा रोऊं. समाज और रिश्तेदारी में खूब बदनामी हो चुकी है.

क्या शादी करना और पटरी न बैठने पर तलाक के लिए अदालत जाना अपराध है? अदालतें और कानून क्यों पतिपत्नी की परेशानियां नहीं समझते?

कोर्ट की चिंता

ये परेशानियां हर वे पति और पत्नी भुगत  रहे हैं जिन्होंने अदालत का रुख किया. लेकिन चूंकि अदालत के बाहर शादी तो की जा सकती

है पर तलाक नहीं दिया जा सकता इसलिए  लोग इस और इस से जुड़े कानूनों को कोसते नजर आते हैं तो वे गलत कहीं से नहीं हैं.

अकेले जबलपुर हाई कोर्ट में तलाक के करीब  10 हजार योगेश जैसे मामले निबटारे की बाट  देख रहे हैं.

फिर देशभर के दूसरे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अलावा निचली अदालतों का क्या हाल होगा सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. बुढ़ाते कई पतिपत्नी अब नई जिंदगी की आस छोड़ने लगे हैं तो दोषी कानून नहीं तो और कौन है?

घरेलू हिंसा के कानून पर अब अदालतें खुद चिंता जताने लगी हैं कि इस का दुरुपयोग ज्यादा होने लगा है तो इस मासूमियत और अदा पर हंसी भी आती है और रोना भी कि कानून इस तरह बनाए ही क्यों जाते हैं जिन का दुरुपयोग होना संभव हो. योगेश जैसे पीडि़तों और भुक्तभोगियों से कोई सबक क्यों नहीं लिया जाता. कोई तलाक चाहता है चाहे वह पति हो या फिर  पत्नी उसे शादी के बंधन से जल्दी छुटकारा क्यों नहीं मिलता?

क्रूरता नहीं है तलाक

तलाक कोई क्रूरता नहीं है बल्कि क्रूरता से बचने का सब से आसान रास्ता है. जब पतिपत्नी का एक छत के नीचे रहना वजहें कुछ भी हों दूभर हो जाए तो उन्हें साथ रहने की नसीहत क्यों दी जाती है इस सवाल का जबाव ही फसाद और परेशानियों की असल जड़ है. कोई पत्नी या पति अदालत तलाक के लिए जाता है तो परिवार और समाज की निगाह में तो गुनहगार हो ही जाता है लेकिन कानून भी उसे बख्शता नहीं.

अदालत परिवार परामर्श केंद्र और दूसरी सरकारी एजेंसियां सुलह के लिए दबाव क्यों बनाती हैं? यहां से शुरू होती है परिक्रमा जिस से पीडि़तों को मिलता तो कुछ नहीं उलटे काफी कुछ छिन जाता है. मसलन, मानसिक शांति, प्रतिष्ठा, पैसा और सामाजिक स्थिरता जो सामान्य जिंदगी जीने के लिए हवा, पानी और भोजन की तरह जरूरी हैं.

फसाद की एक बड़ी जड़ तलाक से जड़े दूसरे कानून भी हैं. विदिशा की एक वकील उषा विक्रोल बताती हैं कि जल्दी तलाक के लिए अकसर महिलाएं पति और ससुराल बालों के खिलाफ दहेज मांगने और प्रताड़ना की झठी शिकायत दर्ज करा देती हैं और तुरंत ही भरणपोषण का भी दावा कर देती हैं जिस से एकसाथ 3 मुकदमे एक ही मंशा और मामले के चलने लगते हैं.

इन में अलगअलग तारीखें पड़ती रहती हैं और धीरेधीरे सुलह की गुंजाइश भी खत्म होती जाती है. पत्नी सोचती है कि पति तलाक देने में आनाकानी कर रहा है और पति सोचता है कि जिस औरत ने झठे आरोप लगा दिए अब तो उस के साथ सुलह व गुजर और भी मुश्किल है.

पतिपत्नी में से किस की कितनी गलती इस बात के कोई माने नहीं. उषा कहती हैं कि तलाक कानून और प्रक्रिया को नल या बिजली के कनैक्शन की तरह होना चाहिए कि एक आवेदन से वे कट जाएं. इस से मुमकिन है तलाक की दर बढ़ जाए पर उस में हरज क्या है. कानूनी अड़चनों और देरी के डर से हैरानपरेशान लोग अदालत ही न आएं यह कौन सा न्याय होगा और आने के बाद लोगों की हालत देख तरस आए यह भी न्याय नहीं कहा जा सकता. कुछ नहीं बल्कि कई मुवक्किलों की हालत देख कर तो लगता है कि पंचायत का जमाना ही ठीक था जब एक चबूतरे पर बैठे 4-5 लोग तलाक का फैसला सुना देते थे. अब तो फैसला ही मुश्किल हो चला है.

यह दर्द वही महसूस और बयान कर सकता है जिस ने झूठे आरोपों से छुटकारा पाने के लिए सालोंसाल अदालत की चौखट पर एडि़यां रगड़ी हों.

कानून के फ्रेम में थरूर

कानून की वेवजह की देर जो अंधेर से कम नहीं के फ्रेम में शशि थरूर भी फिट होते हैं जो मुमकिन है राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार हुए हों. लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि सुनवाई और फैसलों में गैरजरूरी देरी क्यों? अदालत से बरी होने के बाद उन की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि यह अकेले उन की नहीं बल्कि लाखोंकरोड़ों लोगों की व्यथा है.

उन का 2 बार आसानी से तलाक हुआ क्योंकि दोनों ही पक्ष पर्याप्त शिक्षित, आधुनिक और परिपक्व होने के अलावा समझदार भी थे. लेकिन सुनंदा की मौत के बाद उन्हें कानूनी कू्ररता का एहसास हुआ तो उन्होंने फैसला देने वाली न्यायाधीश गीतांजलि गोयल का आभार व्यक्त करने के बाद कहा-

यह साढ़े 7 साल की पूर्ण यातना थी. यह उस डरावने सपने का अंत है जिस ने मेरी दिवंगत पत्नी सुनंदा के दुखद निधन के बाद मुझे घेर लिया था.

? मैं ने भारतीय न्यायपालिका में अपने विश्वास की वजह से दर्जनों निराधार आरोपों और मीडिया में की गई बदनामी को

धैर्यपूर्वक झेला है और न्यायपालिका में आज मेरा विश्वास सही साबित हुआ है.

? हमारी न्यायप्रणाली में अकसर सजा ही  होती है.

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न्याय मिलने के बाद मैं और मेरा परिवार सुनंदा का शोक शांति से मना पाएंगे. लेकिन सब से ज्यादा अहम शशि थरूर के वकील विकास पाहवा का यह कहना उल्लेखनीय रहा कि पुलिस ने जो आत्महत्या के लिए उकसाने और क्रूरता के आरोप थरूर पर लगाए थे वे बेतुके थे. यह बात अदालत में साबित भी हो चुकी है जिस के चलते जो यंत्रणाएं शशि थरूर ने भुगतीं और जो दूसरे लोग भुगत रहे हैं उन्हें राहत देने के लिए कोई राह क्यों नहीं तलाशी जा रही? पुलिस और सीबीआई जैसी संस्थाओं को सरकार का तोता कहा जाने लगा है तो इसमें गलत क्या है? किसी आत्महत्या के 4 साल बाद किसी को अभियुक्त बनाया जाना और आत्महत्या को हत्या का मामला बनाए जाने की कोशिश करना कानून की हत्या नहीं तो क्या है जिसे करता कोई और है और सजा बेगुनाहों को भुगतना पड़ती है?

रातों रात Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin के एक्टर ने छोड़ा शो, पढ़ें खबर

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) आए दिन सुर्खियों में रहता है, जिसका कारण सीरियल की कहानी और उसके सितारे होते हैं. इसी बीच खबर है कि सीरियल में नजर आने वाले एक एक्टर ने अचानक शो छोड़ने का फैसला लिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

शो छोड़ने की वजह है ये

 

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टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में मोहित चौहान का रोल प्ले करने वाले आदिश वैद्य, महेश माजरेकर (Mahesh Manjrekar) के बिग बॉस मराठी के सीजन 3 में नजर आएंगे. माना जा रहा है एक्टर को शो के लिए अच्छी खासी रकम दी जा रही है.

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सेट पर करते थे मस्ती

 

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मोहित चौहान का रोल प्ले करने वाले आदिश वैद्य की बौंडिंग की बात करें तो वह सई यानी आएशा सिंह के साथ अक्सर मस्ती करते नजर आते थे, जिसका अंदाजा उनकी रील्स को देखकर लगाया जा सकता है. फैंस को दोनों की कैमेस्ट्री काफी पसंद है.

 

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पाखी चलेगी नई चाल

दूसरी तरफ सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो विराट के मना करने के बावजूद सई कौलेज चली जाती है. लेकिन गलती का एहसास होते ही वह दोबारा घर लौट आती है. वहीं सई अपने रिश्ते को दूसरा मौका देने के बारे में सोचती है. इसी बीच अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि गृहशांति की पूजा में सई वापस घर लौट आती है, जिसे देखकर पाखी के चेहरे की हवाइयां उड़ जाती है और वह नया प्लान बनाते हुए अपना दुपट्टा हवन की आग में डाल देगी. लेकिन समय रहते सम्राट देख लेता है और उसे बचा लेगा. लेकिन पाखी इस बात से नाखुश होगी. वही इन सब के बीच सई अपनी बातों में उलझी नजर आएगी.

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यूपी चुनाव से पहले “आप” की मुफ्त बिजली के वादे पर कृषि मंत्री ने कसा तंज

घरेलू बिजली उपभोक्ता को मुफ्त बिजली देने का वादा कर यूपी विधानसभा चुनाव जोर-आजमाइश कर रही आम आदमी पार्टी को कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने आड़े हाथों लिया है. शाही ने कहा कि ‘केजरीवाल प्राइवेट लिमिटेड’ को यह तो मालूम ही है कि गरीबों, गांव में रहने वालों और किसानों का योगी सरकार ने कितना ध्यान रखा है.

योगी सरकार बिजली का मीटर रखने वाले ग्रामीण उपभोक्ताओं को प्रति यूनिट 2.80 रुपए के और बगैर मीटर वालों को 4.07 रुपए की छूट शुरू से ही दे रही है. इसके अलावा एक किलोवाट लोड तक और 100 यूनिट की खपत तक के शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं को भी चार रुपए से अधिक प्रति यूनिट छूट मिलती है.

यही नहीं गांव में मीटर और बिना मीटर वाले कृषि उपभोक्ताओं को तो छूट क्रमशः पांच रुपए और 6.32 रूपए है. इस तरह सरकार ग्यारह हजार करोड़ की सब्सिडी तो सिर्फ गरीब और किसानों के लिए देती है.

कृषि मंत्री ने तंज किया कि केजरीवाल के पास यूपी की जनता के लिए विकास का कोई मॉडल नहीं है. दिल्ली में अब तक यह पार्टी ने कोई ऐसा काम नहीं कर सकी जिसे वह अपना बता सके. ऐसे में “मुफ्तखोरी के लालच” को उसने चुनावी हथियार बनाया है.

उन्होंने कहा कि यूपी की योगी सरकार ने जिला मुख्यालयों पर 24 घंटे, तहसील मुख्यालयों पर 20 घंटे और गांवों में 18 घंटे बिजली देने का वादा किया था और उसे पूरा किया. यही नहीं, साढ़े चार साल में यूपी के हर कोने को बिजली से रोशन कर दिया गया है. सौभाग्य योजना से 01 करोड़ 40 लाख घरों में बिजली आई है. चार साल पहले तक यूपी में बिजली आना अखबारों की सुर्खियां बनती थीं, आज अगर कभी बिजली कट जाए तो लोग हैरान होते हैं. यह होता है विकास, लेकिन ऐसे विकास के लिए जिस विजन की जरूरत होती है, वह न अरविंद केजरीवाल के पास है न मनीष सिसौदिया के पास. ऐसे में ले देकर मुफ्त बिजली देने का लालच ही उनके पास बचा है.

सूर्य प्रताप शाही ने कहा कि लोकतंत्र में इस तरह की बेतुकी एवं घोषणाएं राजनीति को दूषित करते हैं, जो न केवल घातक है बल्कि एक बड़ी विसंगति भी है.

वनराज को चुनौती देगी Anupama, कहेगी ये बात

बीते साल शुरु हुआ स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा फैंस के दिलों पर राज कर रहा है, जिसके चलते मेकर्स सीरियल की कहानी को नया मोड़ देने के लिए तैयार हैं. वहीं अनुज कपाड़िया के आने से अनुपमा की जिंदगी में भी कई नए और बड़े बदलाव होने जा रहे हैं, जिसके चलते वनराज गुस्से में हैं. लेकिन अब अनुपमा अपनी जिंदगी के कुछ नए फैसले लेने वाली है, जिसके साथ ही वह वनराज को चुनौती दे रही है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वनराज को चुनौती देगी अनुपमा

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वेदिका के कहने पर अनुज संग डील के लिए हां करने वाली अनुपमा अपने फैसले से काफी खुश है, जिसके चलते वह वनराज के सामने अनुज की डील के पेपर पर साइन करेगी और साथ ही वह कहेगी कि वह अनुज के साथ औफिस जाएगी, जिसके जवाब में वनराज कहेगा कि पुराने क्रश से मिलते ही पर निकल आए. इस बात पर अनुपमा कहती है कि अब मेरे पर नही उड़ान देखिएगा. वनराज कहेगा कि उड़ने दूंगा तो उड़ोगी ना. लेकिन अनुपमा कहेगी कि रोकने की कोशिश तो किजिए हार जाएंगे.


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बापूजी देंगे अनुपमा का साथ

 

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जहां अनुपमा के फैसले से बा नाराज होंगी तो वहीं बापूजी अनुपमा का साथ देंगे. वहीं अनुपमा को अनुज के घर देने की बात पर बापूजी उसे शाह हाउस से जाने के लिए कहेंगे ताकि वह अपने सपनों को पूरा कर सके.

 

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बा हुई अनुपमा के खिलाफ

 

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अब तक आपने देखा कि बा और वनराज के मना करने से उलझन में फंसी अनुपमा को उसकी दोस्त नया रास्ता दिखाती है. वह उसे अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की सलाह देती है, जिसके चलते अनुपमा, अनुज कपाड़िया से मिला पार्टनरशिप का औफर स्वीकार कर लेती है. वहीं इस बात को लेकर वह घरवालों को मिठाई खिलाती है. लेकिन बा, अनुपमा के इस फैसले से जहां नाराज होती हैं तो वहीं वनराज गुस्से में नजर आता है.

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लेनदेन का व्यवहार 

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

“नेहा मेरी नैंसी को तुम ने गुस्से में कुछ कहा क्यों?” गुस्से में लालपीली होते हुए मालती जोरजोर से कह रही थी.

“अरे मालती मैं तो नैंसी और विश्वा, दोनों पर गुस्सा कर रही थी. वह भी इसलिए कि दोनों बहुत धमाल कर रही थीं.” नेहा ने शांति से कहा.

“बच्चे धमाल नहीं करेंगें तो कौन करेगा?” कटाक्ष करते हुए मालती बोली.

“अगर बच्चे इतने ही प्यारे हैं तो अपने घर बुला कर धमाल कराओ न. मुझे नहीं अच्छा लगता. एक तो सभी को संभालो, ऊपर से ताना भी सुनो.” मालती की बातों से तंग आ कर नेहा गुस्से में बोली.

“मुझे सब पता है. नैंसी ने मुझे सब बताया है, जो तुम ने उसे कहा है. तुम ने उसे घर जाने के लिए भी कहा है. यह लड़की समझती ही नहीं, वरना किसी के घर जाने की क्या जरूरत है?”

“किसी के घर नहीं मालती, जिस तरह मैं अपनी विश्वा को रखती हूं,  उसी तरह नैंसी को भी रखती हूं. अगर कभी गुस्सा आ गया तो इसमें क्या हो गया? अगर विश्वा कभी कोई गलती करती है तो मैं उस पर भी गुस्सा करती हूं.”

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दोनों पड़ोसन सहेलियों ने छोटी सी बात पर पूरी कालोनी सिर पर उठा ली थी. एक छोटी सी बात ने बहुत बड़ा रूप ले लिया था. दोनों के गुग्स्से का पारा लिमिट के ऊपर जा रहा था. अगलबगल वाले अपना काम छोड़ कर जुगल जोड़ी कही जाने वाली सहेलियों का झगड़ा देखने लगी थी. वैसे भी जिनके पास कामधाम नहीं होता, इस तरह के लोग किसी के घर आग लगने पर उसे बुझाने के बजाय उसमें तेल डाल कर रोटी सेंकने में माहिर होते हैं. यहां भी लोगों के लिए रंगमंच पर नाटक जमा हुआ था और कोई भी यह मजा छोड़ना नहीं चाहता, इस तरह जमा हुआ था.

देखतेदेखते दोनों पक्षों से उनके पति भी उन्हें शांत कराने के लिए सामने आ गए. अब सभी को और मजा आने लगा था. छोटी सी बात का बतंगड़ बन गया था और छोटे बच्चों को ले कर बड़े झगड़ने लगे थे. कोई ऐसा नहीं था, जो इन लोगों को शांत कराता. हर कोई दोनों ओर से अच्छा बन कर होम में घी डाल कर हाथ सेंकना चाहता था. इस बात को नेहा और मालती समझे बगैर लोगों का मनोरंजन करते हुए मूर्ख बन रही थीं. दोनों के बीच हमेशा छोटी से छोटी चीज को ले कर मित्र भाव से लेनदेन का व्यवहार चलता रहता था. उस दिन भी जब एक शब्द पर दो कटाक्ष भरे शब्दों के बाण द्वारा लेनदेन का व्यवहार चल रहा था. दोनों में से कोई भी समझने को तैयार नहीं था.

उन दोनों का झगड़ा कम होने का नाम नहीं ले रहा था. उसी बीच नैंसी के जोरजोर से रोने की आवाज आई तो सभी का ध्यान उसकी तरफ चला गया. नैंसी और विश्वा आपस में झगड़ रही थीं. उसी की वजह से नैंसी रोने लगी थी. बिटिया को रोते देख मालती का गुस्सा और बढ़ गया. गुस्से में पैर पटकते हुए बेटी के पास जा कर वह लगभग चीखते हुए बोली, “तुम से कितनी बार कहा कि इसके साथ मत खेला करो, क्या किया विश्वा तुम ने?”

“मम्मी आप ने ही तो कहा था कि जिसका लेना चाहिए, उसे वापस भी करना चाहिए. आप नेहा आंटी से कुछ लेती हैं तो ज्यादा ही वापस करती हैं. आप कहती हैं कि इसे लेनदेन का व्यवहार कहा जाता है. मैं भी वही कर रही थी. विश्वा ने कल मुझे अपनी चाकलेट दी थी. अब मैं अपनी चाकलेट दे रही हूं तो यह मना कर रही है. यह कह रही है कि इसकी मम्मी ने कहा है कि अगर दोस्तों को कुछ देते हैं तो उनसे वापस नहीं लेते. इसमें व्यवहार नहीं होता.” रोते हुए नैंसी ने मालती की ओर देखते हुए कहा.

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जिनके लिए अब तक झगड़ा हो रहा था, वे एकदूसरे को खुश करने के लिए परेशान थीं. यह संस्कार भी तो इन्हीं लोगों का दिया हुआ था. इन छोटे बच्चों की समझदारी देख कर मालती और नेहा को अपनी गलती का अहसास हो गया. दोनों ही एकदूसरे से माफी मांगते हुए अपनीअपनी बेटी पर गर्व महसूस करते हुए खुश हो रही थीं. घड़ी भर पहले जो मुस्से की आग बरस लही थी, अब उस पर होने वाली इस प्रेम की बरसात ने वातावरण को एकदम शीतल बना दिया था. जिससे सभी के चेहरे चमक रहे थे.

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