नपुंसक : भाग 3- नौकरानी के जाल में कैसे फंस गए रंजीत

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह

यह पछतावा तब ज्वालामुखी बन कर फूट पड़ा, जब ममता के मंदिर जाने पर देवी ने रंजीत को बताया कि इस महीने उसे महीना नहीं हुआ. अब वह क्या करे? यह सुन कर रंजीत पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा था. धरती भी नहीं फटने वाली थी कि वह उस में समा जाते. उन्हें खुद से घृणा हो गई.

उन्होंने एक लड़की की जिंदगी बरबाद की थी. इस अपराधबोध से उन का रोमरोम सुलग रहा था. लेकिन अब पछताने से कुछ होने वाला नहीं था. अब तो समाधान ढूंढना था. उन्होंने देवी से कहा, ‘‘तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो, उस के पहले ही कुछ करना होगा. मैं दवा की व्यवस्था करता हूं. तुम दवा खा लो, सब ठीक हो जाएगा.’’

लेकिन देवी ने कोई भी दवा खाने से साफ मना कर दिया. रंजीत उसे मनाते रहे, पर वह जिद पर अड़ी थी. रंजीत की अंतरात्मा कचोट रही थी कि उन्होंने कितना घोर पाप किया है. आज तक उन्होंने जो भी भलाई के काम किए थे, इस एक काम ने सारे कामों पर पानी फेर दिया था.

ये भी पढे़ं- बदबू : कमली की अनोखी कहानी

वह पापी हैं. चिंता और अपराधबोध से ग्रस्त रंजीत को देवी ने दूसरा झटका यह कह कर दिया कि उस के पापा उन से मिलना चाहते हैं. जो न सुनना चाहिए, वह सुनने की तैयारी के साथ रंजीत देवी के घर पहुंचे. उस दिन ड्राइवर की नौकरी करने वाले देवी के बाप रामप्रसाद का अलग ही रूप था.

हमेशा रंजीत के सामने हाथ जोड़ कर सिर झुकाए खड़े रहने वाले रामप्रसाद ने उन पर हाथ भले ही नहीं उठाया, पर लानतमलामत खूब की. रंजीत सिर झुकाए अपनी गलती स्वीकार करते रहे और रामप्रसाद से कोई रास्ता निकालने की विनती करते रहे. अंत में रामप्रसाद ने रास्ता निकाला कि वह देवी की शादी और अन्य खर्चों के लिए पैसा दे दें.

‘‘हां…हां, जितने पैसे की जरूरत पड़ेगी, मैं दे दूंगा.’’ राहत महसूस करते हुए रंजीत ने कहा, ‘‘कब करनी है शादी?’’

‘‘अगले सप्ताह. बलबीर का कहना है, ऐसे में देर करना ठीक नहीं है.’’

‘‘बलबीर? वही जो आवारा लड़कों की तरह घूमता रहता है. तुम्हें वही नालायक मिला है ब्याह के लिए?’’

‘‘वह नालायक…आप से तो अच्छा है जो इस हालत में भी शादी के लिए तैयार है.’’

बलबीर का नाम सुन कर रंजीत हैरान थे, लेकिन वह कुछ कहने या करने की स्थिति में नहीं थे. देवी की शादी और अन्य खर्च के लिए रंजीत को 10 लाख रुपए देने पड़े. इस के अलावा उपहार के रूप में कुछ गहने भी.

शादी के बाद रहने की बात आई तो रंजीत ने अपना बंद पड़ा फ्लैट खोल दिया. ऐसा उन्होंने खुशीखुशी नहीं किया था बल्कि यह काम दबाव डाल कर करवाया गया था. इज्जत बचाने के लिए वह रामप्रसाद के हाथों का खिलौना बने हुए थे.

फ्लैट के लिए ममता ने ऐतराज किया तो उन्होंने उसे यह कह कर चुप करा दिया कि देवी अपने ही घर पलीबढ़ी है. शादी के बाद कुछ दिन सुकून से रह सके, इसलिए हमें इतना तो करना ही चाहिए.

देवी की शादी के 7 महीने ही बीते थे कि ममता ने रंजीत को बताया कि देवी को बेटा हुआ है. रंजीत मन ही मन गिनती करते रहे, पर वह हिसाब नहीं लगा सके. ममता ने कहा, ‘‘हमें देवी का बच्चा देखने जाना चाहिए.’’

ममता के कहने पर रंजीत मना नहीं कर सके. वह पत्नी के साथ देवी के यहां पहुंचे तो बलबीर बच्चा उन की गोद में डालते हुए बोला, ‘‘एकदम बाप पर गया है.’’

रंजीत कांप उठे. ममता ने कहा, ‘‘देखो न, बच्चे के नाकनक्श बलबीर जैसे ही हैं.’’

अगले दिन बलबीर ने शोरूम पर जा कर रंजीत से कहा, ‘‘आप अपना बच्चा गोद ले लीजिए.’’

ये भी पढ़ें- वो भूली दास्तां लो फिर याद आ गई

‘‘इस में कोई बुराई तो नहीं है, पर ममता से पूछना पड़ेगा.’’

रंजीत को बलबीर का प्रस्ताव उचित ही लगा था. लेकिन बलबीर ने शर्त रखी थी कि जिस फ्लैट में वह रहता है, वह फ्लैट उस के नाम कराने के अलावा कामधंधा शुरू करने के लिए कम से कम 25 लाख रुपए देने होंगे.

सब कुछ रंजीत की समझ में आ गया था. उन्होंने पैसा कम करने को कहा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. कारोबारी रंजीत समझ गए कि अब खींचने से कोई फायदा नहीं है. उन्होंने ममता से बात की. थोड़ा समझाने बुझाने पर वह देवी का बच्चा गोद लेने को राजी हो गई.

बच्चे को गोद लेने के साथसाथ अपने वकील को उन्होंने फ्लैट देवी के नाम कराने के कागज तैयार करने के लिए कह दिया. 25 लाख देने के लिए रंजीत को प्लौट का सौदा करना था. इस के लिए उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को सहेज दिया था. इतना सब होने के बावजूद ममता का मन अभी पराया बच्चा गोद लेने का नहीं हो रहा था. इसलिए उस ने रंजीत से कहा, ‘‘बच्चा गोद लेने से पहले आप एक बार अपनी जांच करा लीजिए.’’

रंजीत ने सोचा, उन का टैस्ट तो हो चुका है. उन्हीं के पुरुषत्व का नतीजा है देवी का बच्चा. फिर भी पत्नी का मन रखने के लिए उन्होंने अपनी जांच करा ली. इस जांच की जो रिपोर्ट आई, उसे देख कर रंजीत के होश उड़ गए. वह खड़े नहीं रह सके तो सोफे पर बैठ गए. तभी उन्हें एक दिन देवी की फोन पर हो रही बात समझ में आ गई, जिसे वह उन पर डोरे डालते समय किसी से कर रही थी.

देवी ने जब पहली बार रंजीत का हाथ पकड़ा था, तब उन्होंने उसे कोई भाव नहीं दिया था. इस के बाद उस ने फोन पर किसी से कहा था, ‘‘तुम्हारे कहे अनुसार कोशिश तो कर रही हूं. प्लीज थोड़ा समय दो. तब तक वह वीडियो…’’

तभी रंजीत वहां आ गए. उन्हें देख कर देवी सन्न रह गई थी. उसे परेशान देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

देवी ने बहाना बनाया कि वह किसी सहेली से वीडियो देखने की बात कर रही थी. अब रंजीत की समझ में आया कि उस समय देवी की बलबीर से बात हो रही थी. देवी का कोई वीडियो उस के पास था, जिस की बदौलत वह देवी से उसे फंसाने के लिए दबाव डाल रहा था.

ये भी पढ़ें- अजनबी: परिवार के लिए क्यों अनजान बन गई भारती

रिपोर्ट देख कर साफ हो गया था कि देवी का बच्चा बलबीर का था. उन्हें अपनी मूर्खता पर शरम आई. लेकिन उन्होंने जो गलती की थी, उस की सजा तो उन्हें भोगनी ही थी.

रंजीत ने वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन कर के प्लौट का सौदा और फ्लैट के पेपर बनाने से रोक दिया. अब न उन्हें बच्चा गोद लेना था, न फ्लैट देवी के नाम करना था. अब उन्हें प्लौट भी नहीं बेचना था. वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन करने के बाद उन्होंने ममता को बुला कर कहा, ‘‘ममता मैडिकल रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट के अनुसार मेरे अंदर बाप बनने की क्षमता नहीं है. मैं संतान पैदा करने में सक्षम नहीं हूं.’’

ममता की समझ में नहीं आया कि उस का पति अपने नपुंसक होने की बात इतना खुश हो कर क्यों बता रहा है.

नपुंसक : भाग 2- नौकरानी के जाल में कैसे फंस गए रंजीत

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह

कभी किसी चीज को हाथ न लगाने वाली देवी कितनी ही बार रंजीत की जेब से पैसे निकाल चुकी थी. उसे पैसे निकालते देख लेने पर भी रंजीत और ममता अनजान बने रहते थे. वे सोचते थे कि कोई जरूरत रही होगी. देवी चोरी भी होशियारी से करती थी. वह पूरे पैसे कभी नहीं निकालती थी.

इधर एक लड़का, जिस का नाम बलबीर था, अकसर रंजीत की कोठी के बाहर खड़ा दिखाई देने लगा था. ममता ने जब उसे देवी को इशारा करते देखा तो देवी को तो टोका ही, उसे भी खूब डांटाफटकारा. इस से उस का उधर आनाजाना कम तो हो गया था, लेकिन बंद नहीं हुआ था. एक रात रंजीत वाशरूम जाने के लिए उठे तो उन्हें बाहर बरामदे से खुसरफुसर की कुछ आवाज आती सुनाई दी.

खुसरफुसर करने वाले कौन हैं, जानने के लिए वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. उन के बाहर आते ही कोई अंधेरे का लाभ उठा कर दीवार कूद कर भाग गया. उन्होंने लाइट जलाई तो देवी को कपड़े ठीक करते हुए पीछे की ओर जाते देखा.

यह सब देख कर रंजीत को बहुत गुस्सा आया. उन्होंने सारी बात ममता को बताई तो उन्होंने देवी को खूब डांटा, साथ ही हिदायत भी दी कि दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए. इस के बाद देवी का व्यवहार एकदम से बदल गया. वह रंजीत और ममता से कटीकटी तो रहने ही लगी, दोनों की उपेक्षा भी करने लगी.

देवी के इस व्यवहार से रंजीत और ममता को उस की चिंता होने लगी थी. शायद इसी वजह से उन्होंने देवी के मातापिता से उस की शादी कर देने को कह दिया था.

ये भी पढ़ें- आखिरी लोकल : शिवानी और शिवेश की कहानी

अचानक देवी का व्यवहार फिर बदल गया. ममता के साथ तो वह पहले जैसा ही व्यवहार करती रही, पर रंजीत से वह हंसहंस कर इस तरह बातें करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. रंजीत ने गौर किया, वह जब भी अकेली होती, उदास रहती. कभीकभी वह फोन करते हुए रो देती. उस से वजह पूछी जाती तो कोई बहाना बना कर टाल देती.

एक दिन तो उस ने हद कर दी. रोज की तरह उस दिन भी ममता मंदिर गई थी. रंजीत शोरूम पर जाने की तैयारी कर रहे थे. एकदम से देवी रंजीत के पास आई और उन के गाल को चुटकी में भर कर बोली, ‘‘आप कितने स्मार्ट हैं, मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.’’

पहले तो रंजीत की समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो रहा है. जब समझ में आया तो हैरान रह गए. वह कुछ कहे बगैर नहाने चले गए. आज पहली बार उन्हें लगा था कि देवी अब बच्ची नहीं रही, जवान हो गई है.

अगले दिन जैसे ही ममता मंदिर के लिए निकली, देवी दरवाजा बंद कर के सोफे पर बैठे रंजीत के बगल में आ कर बैठ गई. उस ने अपना हाथ रंजीत की जांघ पर रखा तो उन का तनमन झनझना उठा. उन्होंने तुरंत मन को काबू में किया और उठ कर अपने कमरे में चले गए. वह दिन कुछ अलग तरह से बीता.

पूरे दिन देवी ही उन के खयालों में घूमती रही. आखिर वह चाहती क्या है. एक विचार आता कि यह ठीक नहीं. देवी तो नादान है जबकि वह समझदार हैं. कोई ऊंचनीच हो गई तो लोग उन्हीं पर थूकेंगे. जबकि दूसरा विचार आता कि जो हो रहा है, होने दो. वह तो अपनी तरफ से कुछ कर नहीं रहे हैं, जो कर रही है वही कर रही है.

अगले दिन सवेरा होते ही रंजीत के दिल का एक हिस्सा ममता के मंदिर जाने का इंतजार कर रहा था, जबकि दूसरा हिस्सा सचेत कर रहा था कि वह जो करने की सोच रहे हैं, वह ठीक नहीं है. ममता के मंदिर जाने पर देवी दरवाजा बंद कर रही थी, तभी वह नहाने के बहाने बाथरूम में घुस गए. दिल उन्हें बाहर निकलने के लिए उकसा रहा था. रोकने वाली आवाज काफी कमजोर थी. शायद इसीलिए वह नहाधो कर जल्दी से बाहर आ गए.

देवी रसोई में काम कर रही थी. उस के चेहरे से ही लग रहा था कि वह नाराज है. रंजीत सोफे पर बैठ कर उस का इंतजार करने लगे. लेकिन वह नहीं आई. पानी देने के बहाने उन्होंने बुलाया. पानी का गिलास मेज पर रख कर जाते हुए उस ने धीरे से कहा, ‘‘नपुंसक.’’

रंजीत अवाक रह गए. देवी के इस एक शब्द ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. डाक्टर के कहने पर उन के मन में अपने लिए जो संदेह था, देवी के कहने पर उसे बल मिला. उन का चेहरा उतर गया. उसी समय ममता मंदिर से वापस आ गईं. पति का चेहरा उतरा देख कर उस से पूछा, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

रंजीत क्या जवाब देते. अगले दिन उन्होंने नहाने जाने में जल्दी नहीं की. दरवाजा बंद कर के देवी उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. जैसे ही रंजीत ने उस की ओर देखा, उस ने झट से कहा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

ये भी पढ़ें- और सीता जीत गई

‘‘बहुत सुंदर.’’ रंजीत ने कहा. लेकिन यह बात उन के दिल से नहीं, गले से निकली थी. देवी रंजीत की गोद में बैठ गई. वह कुछ कहते, उस के पहले ही उन का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ‘‘मैं आप को अच्छी नहीं लगती क्या?’’

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है.’’ रंजीत ने कहा.

इस के आगे क्या कहें, यह उन की समझ में नहीं आया तो ममता के आने की बात कह कर उसे उठाया और जल्दी से बाथरूम में घुस गए. इसी तरह 2-3 दिन चलता रहा. रंजीत अब पत्नी के मंदिर जाने का इंतजार करने लगे. अब देवी की हरकतें उन्हें अच्छी लगने लगी थीं. क्योंकि 40 के करीब पहुंच रहे रंजीत पर एक 18 साल की लड़की मर रही थी.

यही अनुभूति रंजीत को पतन की राह की ओर उतरने के लिए उकसा रही थी. उन का पुरुष होने का अहं बढ़ता जा रहा था. खुद पर विश्वास बढ़ने लगा था. इस के बावजूद वह खुद को आगे बढ़ने से रोके हुए थे. पर एक सुबह वह दिल के आगे हार गए. जैसे ही देवी आ कर बगल में बैठी, वह होश खो बैठे.

नहाने गए तो उन के ऊपर जो आनंद छाया था, वह अपराधबोध से घिरा था. पूरे दिन वह सहीगलत की गंगा में डूबतेउतराते रहे. अगले दिन वह ममता के मंदिर जाने से पहले ही तैयार हो गए. ममता हैरान थी, जबकि देवी उन्हें अजीब निगाहों से ताक रही थी. रंजीत उस की ओर आकर्षित हो रहे थे.

लेकिन आज दिमाग उन पर हावी था. दिमाग कह रहा था, ‘लड़की तो नासमझ है, उस की भी बुद्धि घास चरने चली गई है, जो अच्छाबुरा नहीं सोच पा रहा है. उस ने जो किया है, वह ठीक नहीं है.’ अब उन्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा था.

आगे पढ़ें- एक लड़की की जिंदगी बरबाद की..

ये भी पढ़ें- खुशियों का उजास: बानी की जिंदगी में कौनसा नया मोड़ा आया

नपुंसक : भाग 1- नौकरानी के जाल में कैसे फंस गए रंजीत

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह

रंजीत को जिस तरह साजिश रच कर ठगा गया था, उस से वह हैरान तो थे ही उन्हें गुस्सा भी बहुत आया था. उस गुस्से में उन का शरीर कांपने लगा था. कंपकंपी को छिपाने के लिए उन्होंने दोनों हाथों की मुट्ठियां कस लीं, लेकिन बढ़ी हुई धड़कनों पर वह काबू नहीं कर पा रहे थे.

उन्हें डर था कि अगर रसोई में काम कर रही ममता आ गई तो उन की हालत देख कर पूछ सकती है कि क्या हुआ जो आप इतने परेशान हैं. एक बार तो उन के मन में आया कि सारी बात पुलिस को बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दें लेकिन तुरंत ही उन की समझ में आ गया कि गलती उन की भी थी. सच्चाई खुल गई तो वह भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

पत्नी के डर से उन्होंने मेज पर पड़ी अपनी मैडिकल रिपोर्ट अखबारों के नीचे छिपा दी थी. मोबाइल उठा कर उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को प्लौट का सौदा रद्द करने के लिए कह दिया. उस की कोई भी बात सुने बगैर रंजीत ने फोन काट दिया था. हमेशा शांत रहने वाले रंजीत मल्होत्रा जितना परेशान और बेचैन थे, इतना परेशान या बेचैन वह तब भी नहीं हुए थे, जब उन्हें साजिश का शिकार बनाया गया था. फिर भी वह यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे थे कि वह जरा भी परेशान या विचलित नहीं हैं.

रंजीत मल्होत्रा एक इज्जतदार आदमी थे. शहर के मुख्य बाजार में उन का ब्रांडेड कपड़ों का शोरूम तो था ही, वह साडि़यों के थोक विक्रेता भी थे. कपड़ा व्यापार संघ के अध्यक्ष होने के नाते व्यापारियों में उन की प्रतिष्ठा थी. उन के मन में कोई गलत काम करने का विचार तक नहीं आया था. उन के पास पैसा और शोहरत दोनों थे. इस के बावजूद उन में जरा भी घमंड नहीं था. वह अकेले थे, लेकिन हर तरह से सफल थे.

ये भी पढ़ें- टूटे हुए पंखों की उड़ान: अर्चना ने क्या चुना परिवार या सपना

उन की तरक्की से कई लोग ईर्ष्या करते थे. इतना सब कुछ होते हुए भी उन्हें हमेशा इस बात का दुख सालता था कि शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन सके थे. उन की पत्नी ममता की गोद अभी तक सूनी थी.

रंजीत और ममता की शादी के बाद की जिंदगी किसी परीकथा से कम नहीं थी. हंसीखुशी से दिन कट रहे थे. जब उन की शादी हुई थी तो ममता की खूबसूरती को देख कर उन के दोस्त जलभुन उठे थे. उन्होंने कहा था, ‘‘भई आप तो बड़े भाग्यशाली हो, हीरोइन जैसी भाभी मिली है.’’

ममता थी ही ऐसी. शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी उन की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई थी. शरीर अभी भी वैसा ही गठा हुआ था. पिछले 10 सालों से रंजीत के यहां देवी नाम की लड़की काम कर रही थी. जब वह 10-11 साल की थी, तभी से उन के यहां काम कर रही थी. देवी हंसमुख और चंचल तो थी ही, काम भी जल्दी और साफसुथरा करती थी. इसलिए पतिपत्नी उस से खुश रहते थे. अपने काम और बातव्यवहार से वह दोनों की लाडली बनी हुई थी.

घर में कोई बालबच्चा था नहीं, इसलिए पतिपत्नी उसे बच्चे की तरह प्यार करते थे. जहां तक हो सकता था, देवी भी ममता को कोई काम नहीं करने देती थी. हालांकि वह इस घर की सदस्य नहीं थी, फिर भी अपने बातव्यवहार और काम की वजह से घर के सदस्य जैसी हो गई थी. पतिपत्नी उसे मानते भी उसी तरह थे. जब उस की शादी हुई तो ममता पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन रंजीत पूरी तरह बदल गए थे.

देवी की शादी रंजीत के लिए किसी कड़वे घूंट से कम नहीं थी. उस की शादी को 2 साल हो चुके थे. इन 2 सालों में रंजीत के जीवन में कितना कुछ बदल गया था, जिंदगी में कितने ही व्यवधान आए थे. शादी के 10 साल बीत जाने पर गोद सूनी होने की वजह से ममता काफी हताश और निराश रहने लगी थी.

वह हर वक्त खुद को कोसती रहती थी. ईश्वर में जरा भी विश्वास न करने वाली ममता पूरी तरह आस्तिक हो गई थी. किसी तरह उस की गोद भर जाए, इस के लिए उस ने तमाम प्रयास किए थे. इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला तो ममता शांत हो कर बैठ गई.

शादी के 4 सालों बाद दोनों को लगा कि अब उन्हें बच्चे के लिए प्रयास करना चाहिए. इस के बाद उन्होंने प्रेग्नेंसी रोकने के उपाय बंद कर दिए. बच्चे के लिए उन्हें जो करना चाहिए था, किया. दोनों को पूरा विश्वास था कि उन का प्रयास सफल होगा. उन्हें अपने बारे में जरा भी शंका नहीं थी, क्योंकि दोनों ही नौरमल और स्वस्थ थे.

इस तरह उम्मीदों में समय बीतने लगा. आशा और निराशा के बीच कोशिश चलती रही. रंजीत ममता को भरोसा देते कि जो होना होगा, वही होगा. उन्होंने डाक्टरों से भी सलाह ली और तमाम अन्य उपाय भी किए. पर कोई लाभ नहीं हुआ. पति समझाता कि चिंता मत करो. हम दोनों आराम से रहेंगे लेकिन पति के जाते ही अकेली ममता हताश और निराश हो जाती. रंजीत का पूरा दिन तो कारोबार में बीत जाता था, लेकिन वह अपना दिन कैसे बिताती.

ये भी पढ़ें- अपराधिनी: क्या था उसका शैली के लिए उसका अपराध

सारे प्रयासों को असफल होते देख डाक्टर ने रंजीत से अपनी जांच कराने को कहा. अभी तक रंजीत ने अपनी जांच कराने की जरूरत महसूस नहीं की थी. वह दवाएं भी कम ही खाते थे. रंजीत ऊपर से भले ही निश्चिंत लगते थे, लेकिन संतान के लिए वह भी परेशान थे. चिंता की वजह से रंजीत का किसी काम में मन भी नहीं लगता था. चिंता में वह शारीरिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे थे.

काम करते हुए उन्हें थकान होने लगी थी. खुद पर से विश्वास भी उठ सा गया था. शांत और धीरगंभीर रहने वाले रंजीत अब चिड़चिड़े हो गए थे. बातबात पर उन्हें गुस्सा आने लगा था. घर में तो वह किसी तरह खुद पर काबू रखते थे, पर शोरूम पर वह कर्मचारियों से ही नहीं, ग्राहकों से भी उलझ जाते थे.

घर में भी ममता से तो वह कुछ नहीं कहते थे, पर जरा सी भी गलती पर नौकरानी देवी पर खीझ उठते थे. देवी भी अब जवान हो चुकी थी, इसलिए उन के खीझने पर ममता उन्हें समझाती, ‘‘पराई लड़की है. अब जवान भी हो गई है, उस पर इस तरह गुस्सा करना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम ने ही इसे सिर चढ़ा रखा है, इसीलिए इस के जो मन में आता है, वह करती है.’’ रंजीत कह देते. बात आईगई हो जाती. जबकि देवी पर इस सब का कोई असर नहीं पड़ता था. वह उन के यहां इस तरह रहती और मस्ती से काम करती थी, जैसे उसी का घर है. ममता भले ही देवी का पक्ष लेती थी, लेकिन वह भी महसूस कर रही थी कि अब वह काफी बदल गई है.

आगे पढ़ें- इधर एक लड़का, जिस का नाम बलबीर…

ये भी पढ़ें- लौकडाउन : मालिनी ने शांतनु को क्यों ठुकरा दिया था?

फेस्टिवल और वेडिंग सीजन में चाहिए हेयर फॉल फ्री बाल तो आज से ही करिए ये काम

जल्द ही फेस्टिवल और वेडिंग सीजन की शुरुआत होने वाली है, जिसके लिए कपड़े, ज्वैलरी और मेकअप से जुड़ी सारी तैयारियां आपने शुरु कर दी होगी. लेकिन क्या आपने अपने बालों के बारे में कुछ सोचा है. क्योंकि अगर आप रूखे सूखे या कमजोर बालों के साथ तैयार होगी तो आपका सारा लुक खराब हो जाएगा जी हां आपका हेयरस्टाइल कैसा भी क्यों न हो उसके लिए मजबूत और सुंदर बाल होना बेहद जरुरी है.

बदलते मौसम में झड़ते और ड्राय बालों के कारण फेस्टिव सीजन का मजा भी किरकिरा हो सकता है. इसीलिए आज हम आपको बताने वाले हैं Kesh King Ayurvedic Medicinal Oil के बारे में, जो आपके ड्राय और झड़ते बालों को न सिर्फ ठीक करेगा बल्कि उन्हें मजबूज और खूबसूरत भी बनाएगा.

हेयर फॉल को कहें बाय-बाय

ये आयुर्वेदिक तेल बालों से जुड़ी अनेक प्रौबल्म से छुटकारा दिलाता है. 21 आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से बनाया गया ये तेल बालों को झड़ने से रोकता है और उन्हें जड़ से पोषण देता है और बिना किसी कैमिकल के नुकसान के हर उम्र के लोगों के बालों को हेल्दी और मजबूत बनाता है.

रोजाना इस्तेमाल से होंगे ये फायदे

दीवाली हो या दशहरा या शादी खास दिन पर हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है. लेकिन इसके लिए आपको आज से ही शुरूआत करनी होगी. न सिर्फ अपने चेहरे की बल्कि अपने बालों की भी खास केयर करनी होगी. इस तेल के रोजाना इस्तेमाल से ना सिर्फ आपके बाल झड़ना बंद होंगे. बल्कि आपके बेजान बालों को एक नई चमक मिलेंगे, जिससे आप नई नई हेयर स्टाइल भी बना सकेंगे और हर लुक से लोगों की तारीफें भी बटोर पाएंगे.

Kesh King Ayurvedic Medicinal Oil के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहां क्लिक करें… 

  1. चंपी है जरूरी

अगर बालों की जड़ें सूखी हैं तो इस तेल की मालिश उन्हें ताकत देती है और बालों को बढ़ने  में मदद करती है. ये तेल बालों को टूटने व उलझने से रोकता है, साथ ही तेल से सिर की मालिश करने से सिर में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है.

  1. शाइनी बालों के लिए करें मसाज

इस तेल से बालों में नमी आती है, जिससे बाल मुलायम व चमकदार बनते हैं. ये  तेल स्कैल्प तक अच्छी तरह पहुंचता है, जिससे बाल खूबसूरत लगते हैं. बालों की ग्रोथ के हेयर ऑयल बेहद जरूरी है. इस तेल की मालिश से आपके सिर की कोशिकाएं काफी सक्रिय हो जाती हैं, जिससे बाल जल्दी लंबे होते हैं.

बकरा: भाग 1- क्या हुआ था डिंपल और कांता के साथ

लेखक- कृष्ण चंद्र महादेविया

‘‘कांता, ये गुर, चेला और मौहता जैसे लोग आज भी इनसान को इनसान से बांटे हुए हैं, ताकि इन का दबदबा बना रहे और इन की रोजीरोटी मुफ्त में चलती रहे. ये पाखंडी लोग औरतों को हमेशा इस्तेमाल की चीज बनाए रखना चाहते हैं.’’

‘‘सब से खास बात तो यह है कि ये लोग गरीबों और औरतों का शोषण करने के लिए देवीदेवता के गुस्से और कसमों के इतनी चालाकी से बहाने गढ़ते हैं कि लोगों में समाया देवीदेवता का डर उन के मरने तक भी कभी दूर नहीं होता,’’ डिंपल ने कहा.

‘‘हां डिंपल, तुम्हारा कहना एकदम सही है. ये राजनीति के मंजे खिलाड़ी आदमी को आदमी से बांटे ही रखना चाहते हैं. इन्होंने तो बड़ी होशियारी से रास्ते तक बांट दिए हैं, ताकि इन की चालाक सोच इन्हें मालामाल करती रहे,’’ कांता बोली.

‘‘बिलकुल सही कहा तुम ने कांता. इस पहाड़ी समाज को अंधेरे में रखने वाले इन भेडि़यों को सबक सिखाने के लिए हमें अपनी भूमिका अच्छे से निभानी होगी.

‘‘देवीदेवता के नाम पर ठगने वाले इन पाखंडियों की असलियत लोगों के सामने लाने के लिए हमें कुछ न कुछ करना ही होगा,’’ डिंपल ने गंभीर आवाज में कांता से कहा.

‘‘हां, यह बहुत जरूरी है डिंपल. मैं जीजान से तुम्हारे साथ हूं. जान दे कर भी दोस्ती निभाऊंगी,’’ कांता बोली.

इस के बाद उन दोनों ने एकदूसरे को प्यार से देखा और गले मिल गईं.

‘‘तुम मेरी सच्ची दोस्त हो कांता. देखो, आजादी के इतने साल बाद भी इस गांव के लोग अंधविश्वास में फंसे हुए हैं. इन्हें जगाने के लिए हम दोनों मिल कर काम करेंगी,’’ डिंपल ने अपनी बात रखी.

‘‘जरूर डिंपल, यही एकमात्र रास्ता है,’’ कांता ने कहा. डिंपल और कांता ने योजना बनाई और लटूरी देवता के मेले में मिलने की बात पक्की कर के तेजी से अपने घरों की ओर चल दीं.

ये भी पढ़ें- अरैंजमैंट: क्या आयुषी को दोबारा अपना पाया तरंग

डिंपल लोहारों की, तो कांता खशों की बेटी थी. कांता ने 23-24 साल की उम्र में ही घाटघाट का पानी पी रखा था. यह तो डिंपल की दोस्ती का असर था कि वह राह भटकने से बच गई थी. हमउम्र वे दोनों चानणा गांव की रहने वाली थीं.

नैशनल हाईवे से मीलों दूर पहाड़जंगल, नदीनालों के उस पार कच्ची सड़क से पहुंचते थे. वह कच्ची सड़क लंबा डग नदी तक जाती थी. नदी तट से 2 मील ऊपर नकटे पहाड़ पर सीधी चढ़ाई के बाद चानणा गांव तक पहुंचते थे.

वहां ऊंचाई की ओर खशों और निचली ओर लोहारों की बस्ती थी. खशों को ऊंची जाति और लोहारों को निचली जाति का दर्जा मिला हुआ था. वहां चलने के लिए ऊंची और छोटी जाति के अलगअलग रास्ते थे.

लोहारों को खशों के रास्ते चलने की इजाजत न थी. वे उन के घरआंगन तक को छू नहीं सकते थे, जबकि खशों को लोहारों के रास्ते चलने का पूरा हक था. वे उन के घरआंगन में बिना डरे कभी भी आजा सकते थे. यहां तक कि उन के चूल्हों में बीड़ीसिगरेट तक भी सुलगा आते थे.

पर गलती से भी कोई लोहार खशों के रास्ते या घरआंगन से छू गया, तो उस की शामत आ जाती थी. इस से गांव का देवता नाराज हो जाता था और उन्हें दंड में देवता को बकरे की बलि देनी पड़ती थी. मजाल है कि कोई इस प्रथा के खिलाफ एक शब्द भी कह सके. लोहारों और खशों की बस्तियों के बीच तकरीबन 4-5 एकड़ का मैदान था, जहां बीच में लटूरी देवता का लकड़ी का मंदिर और गढ़ की तरह भंडारगृह था. देवता के गुर का नाम खालटू था. गुर में प्रवेश कर देवता अपनी इच्छा बताता था.

लटूरी देवता गुर के जरीए ही शुभ और अशुभ, बारिश, सूखा, तूफान की बात कहता था. गांव और आसपास शादीब्याह, मेलाउत्सव, पर्वत्योहार सब देवता की इच्छा पर तय होते थे. यहां तक कि फसल बोना, घास काटना भी देवता की इच्छा पर तय था. गुर खालटू को सभी पूजते थे. उसे खूब इज्जत मिलती थी. एक खास बात और थी कि देवता का बजंतरी दल भी था, जो देव रथ के आगेआगे चलता था. इन में ढोलनगाड़े, शहनाई तो लोहार बजाते थे, पर तुरही, करनाल वगैरह खश बजाते थे. देवता का रथ भी खश उठाते थे, लोहारों को तो छूने की इजाजत तक न थी.

लोहारों के रास्ते चलते गुर खालटू, चेला छांगू और मौहता भागू जैसे ही माधो लोहार के घर के पास पहुंचे, उस का मोटातगड़ा बकरा और जवान बेटी देख कर वे एकदम रुक गए.

गुर खालटू के मुंह में आई लार को छांगू और भागू ने देख लिया था. चेला छांगू तो 3 साल से माधो की बेटी डिंपल पर नजर गड़ाए था, पर वह उस के हाथ न लगी थी. तीनों की नजरें बारबार बकरे से फिसलती थीं और माधो की बेटी पर अटक जाती थीं. ‘‘ऐ माधो की लड़की, कहां है तेरा बापू?’’ गुर खालटू ने पूछा.

‘‘वे मेले में ढोल बजाने गए हैं,’’ तीनों को नमस्ते कर के डिंपल ने कहा.

‘‘आजकल कहां रहती हो? दिखाई नहीं देती हो?’’

डिंपल ने चेले छांगू की बात का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि बकरे से बतियाते हुए उसे घासपत्ते खिलाती रही, जैसे उस ने कुछ सुना ही न हो.

‘‘बकरा बेचना तो होगा न माधो को?’’

‘‘नहीं मौहताजी, छोटे से बच्चे को दूध पिलापिला कर बच्चे की तरह पालपोस कर बड़ा किया है. इसे हम नहीं बेचेंगे,’’ नजरें झुकाए डिंपल ने कहा और बकरे को पत्ते दिखाती दूसरी ओर ले गई. उस ने तीनों को बैठने तक को न बोला. तीनों बेशर्मी से दांत निकालते हुए मेले की ओर चल दिए. माधो लोहार को सभी लोग पसंद करते थे. एक तो उस के घराट का आटा सभी को भाता था, दूसरे नगाड़ा बजाने में माहिर उस जैसा पूरे इलाके में कोई दूसरा न था.

डिंपल माधो की एकलौती औलाद थी. गांव में पढ़ने के बाद वह शहर में बीएससी फाइनल के इम्तिहान दे कर आई थी. वह खेलों में भी कई मैडल जीत चुकी थी. गुर, चेला, कारदार चानणा गांव के साथ आसपास के अनेक गांव में अपना डंका जैसेतैसे बजाए हुए थे. देवता के खासमखास कहे जाने वाले वे देव यात्रा के नाम पर शराबमांस की धामें करवाते और औरतों का रातरात भर नाच करवाते थे. गांव में खश व लोहार पूरे लकीर के फकीर थे और देवता पर उन्हें अंधश्रद्धा थी. यह श्रद्धा बढ़ाने का क्रेडिट गुर व चेला जैसे लोगों को ही जाता था. लटूरी देवता का मेला भरने लगा था. गुर खालटू के पहुंचते ही प्रधान रातकू और गांव वालों ने उन की खूब आवभगत की.

ये भी पढ़ें- मारिया: भारतीय परंपराओं में जकड़ा राहुल क्या कशमकश से निकल पाया

गुर ने मंदिर से लटूरी देवता की पिंडी निकाली. पिंडी को स्नान करा कर धूपदीप व चावल से पूजाअर्चना कर के भेड़ू और मुरगे की बलि दिलाई गई. फिर देवता का रथ निकाल कर पूरे मेले में घुमाया गया. इस के बाद गुर खालटू ने लोगों को मेले में गाने का आदेश दिया. ढोलनगाड़े, शहनाईरणसींगे बजने लगे और मर्दऔरत लाइनों में गोलगोल नाचने लगे.

गुर के आदेश पर प्रधान रातकू खशों द्वारा धाम भी इस मैदान पर दी जानी थी. केवल लोहारों को मैदान से हट कर निचले खेत में खिलानेपिलाने का इंतजाम था. शाम ढलने तक नाच और बाजे बंद हो गए थे. शराब का दौर शुरू हो गया था, जिस में मर्दऔरत बराबर शामिल थे. जिसे जितनी पीनी थी पीए, कोई रोक नहीं थी. नशे में झूमते लोगों में मांसभात की धाम कोईकोई ही खा पाया था. वहां से लोग झूमतेगाते आधी रात तक अपनेअपने घर पहुंचते थे. नाचगानों और प्रधान रातकू की धाम के साथ हलके अंधेरे में लोगों से दूर एकांत में घटी एक घटना बड़ी ही दिलचस्प थी, जिस का 3 के सिवाय चौथे को पता न चला था. हुआ यों था कि डिंपल अपनी सहेली कांता के साथ मेले में घूमने आई थी. मेले की जगड़ से कुछ दूर एक पेड़ के नीचे खड़ी हो कर वे आपस में बातें करने लगी थीं.

आगे पढें- उस ने चेले को बड़ी मीठी आवाज में…

ये भी पढ़ें- टूटे कांच की चमक

मोहमोह के धागे: भाग 1- मानसिक यंत्रणा झेल रही रेवती की कहानी

वीर प्रताप के घर के सामने रिश्तेदार, पड़ोसियों और दूरदराज के सभी जानने वालों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. दुखद सन्नाटा पसरा था. लोग सिर  झुकाए खड़े थे. बीचबीच में महिलाओं के दिल दहलाने वाली रोने की आवाजें बाहर तक आ जाती थीं. दरअसल, कल ही वीर प्रताप का बड़ा बेटा रणवीर, जम्मू के पास कुछ आतंकवादियों के साथ होने वाली मुठभेड़ में शहीद हो गया था. खबर मिलते ही लोग जमा होने लगे.

जब रणवीर का पार्थिव शरीर ले कर घर पहुंचे तो हाहाकार मच गया. एक ओर शहीद रणवीर की जयजयकार से आसपास का सारा इलाका गुंजित हो रहा था, दूसरी ओर उस के पार्थिव शरीर को देखते ही घर में रुदन, चीखपुकार का दृश्य दिल दहला रहा था. शाम होतेहोते पूरे राजकीय सम्मान के साथ रणवीर का अंतिम संस्कार हो गया.

घर में गहरी उदासी छाई थी. रणवीर की मां को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि उस का लाड़ला दुनिया से विदा हो चुका है. वे रो नहीं रही थीं बल्कि विस्फारित आंखों से देख रही थीं. कुछ महिलाएं उन्हें रुलाने की असफल कोशिश कर रही थीं.

सब से दयनीय हालत शहीद रणवीर की पत्नी रेवती की थी. रेवती सिर्फ 3 वर्षों पहले इस घर में सजीले रणवीर की बहू बन कर आई थी. राजपूती कदकाठी, चेहरे पर नूर, आंखों में अथाह मस्तीभरी थी. इन्हीं गुणों को देख रणवीर ने पहली बार देखने पर ही विवाह की हामी भर दी थी. दानदहेज न मिलने की आशंका पहले से ही थी. रेवती पितृविहीन थी. घर में मां और छोटा भाई था. रेवती के बहू बन कर आते ही घर में उजाला सा हो गया. रणवीर 2 महीने की छुट्टी पर आता. घर में रौनक हो जाती थी.

ये भी पढ़ें- रस्मे विदाई: क्यों विदाई के दिन नहीं रोई मिट्ठी

दोनों भाई मिल कर रेवती से हंसीमजाक करते थे. रेवती हाजिरजवाब थी. उस के खुशमिजाज स्वभाव से सारा घर गुलजार रहता. वही रेवती आज पति की मृत्यु के गहरे आघात से बेहोश पड़ी थी. विवाह के 2 महीने बाद ही रणवीर चला गया था. रेवती ने ससुराल में बड़ी बहू की जिम्मेदारी को बड़ी कुशलता से संभाल लिया था. रणवीर साल में एक या दो बार आता. परिवार को साथ नहीं रख सकता था. इसलिए रेवती ससुराल में ही रही.

जिस रेवती के रूपशृंगार से सारा घर दमकता था, उसी शृंगार को उजाड़ने के लिए रूढि़वाद समाज डट कर खड़ा हो गया. रिश्तेनाते, पड़ोस की महिलाएं बेहोश रेवती को पानी डालडाल कर होश में ला रही थीं. उन में से कुछ बड़ी बेदर्दी से उस की चूडि़यां तोड़ने, मांग का सिंदूर, बिंदी मिटाने, मंगलसूत्र, पायल, और बिछुए जैसी सुहाग की निशानियां उतारने के लिए बड़ी तत्परता से जुटी थीं. रेवती के ऊपर अमानवीय अत्याचार इस पढ़ेलिखे समाज के सामने होते रहे. परंतु कहीं से कोई विरोध का स्वर नहीं उठा.

देखतेदेखते चौथे की बैठक भी हो गई. थोड़ी सी जयजयकार करवा कर बेचारा रणवीर पत्नी को निसंतान छोड़ कर दुनिया से चला गया. पीछे अनेक ज्वलंत समस्याएं रह गईं जो अभी पत्नी और परिवार वालों को सुल झानी शेष थीं.

हर साल देश में आतंकवाद के नाम पर, नक्सलवादियों के हमलों में निर्दोष जवान शहीद होते हैं. चंद दिनों की जयजयकार कर समाज उन्हें भुला देता है और उन के परिवारों को  असहाय हाल में छोड़ दिया जाता है. उन को किनकिन संकटों से गुजरना पड़ता है, यह तो उन की विधवाएं या परिवार ही जानते हैं. परिवार वाले क्याक्या कुर्बानियां देते हैं, यह कोई नहीं जानता.

रेवती के इस उजड़े रूप को देखना सभी के लिए मुश्किल था. सहसा देख कर विश्वास नहीं होता कि यह वही रेवती है जो राजस्थान की परंपरागत पोशाक लहंगाचुनर, जो चटकीले रंगों के होते हैं, लाख की चूडि़यां, माथे पर बोरला, पैरों में पायल पहने छमछम करती घर में घूमा करती थी.

अभी 2 महीने पहले ही तो रणवीर के छोटे भाई राजवीर की शादी में कितना नाची थी. सारे रिश्तेदार देखते ही रह गए. कभी घूमरघूमर कर पद्मावती की तरह नाचती, तो कभी ‘मोरनी बागा में बोले आधी रात में…’ गाने की धुन पर नाचती. रणवीर को भी पकड़ कर साथ नाचने के लिए बाध्य करती. रोशनी से नहाई कोठी आज रणवीर की शहादत के बाद अंधेरे में डूबी सी उदास खड़ी थी.

कुछ दिनों बाद दुनिया पहले की तरह चलने लगी. राजवीर का औफिस उसी शहर में था. उस ने औफिस जाना शुरू कर दिया. देवरानी भी एक स्कूल में लग गई. रेवती को कुछ समय के लिए मायके भेज दिया गया. मायके में मां और भाईभाभी ही थे. मायके में जा कर रेवती का मन और व्यथित हो गया. रणवीर के साथ, या राखी, भाईदूज पर जब वह आती तो मां, भाईभाभी मानो बिछबिछ जाते. पूरे सजधज में जब वह आती तो महल्ले के लोग भी उस को देख रश्क करते. मां बचाई जमापूंजी से अच्छी से अच्छी खातिर करने की कोशिश करतीं. रेवती सब के लिए उपहार और मिठाई ले कर जाती. इस बार हालात बदल चुके थे.

ये भी पढ़ें- लव ऐट ट्रैफिक सिगनल: क्या था अमित और शोभना की कहानी का अंत

रेवती का ऐसा उजड़ा रूप, मुख पर गहरी उदासी देखी नहीं जा रही थी. उस के मायके में पहुंचते ही एक बार फिर रुदनविलाप के स्वर गूंजे. बहुत नजदीकी पड़ोस वाले भी आ कर जमा हो गए. कुछ महिलाएं आत्मीयता और सहानुभूति दिखाने के लिए स्वर में स्वर मिला रोेने लगीं. कुछ पड़ोसिनें तो बजाय रेवती को दिलासा देने के, उस के बुरे समय के किस्से कहने लगीं. कुछ देर बाद मातमपुरसी को आई महिलाओं को हाथ जोड़ते हुए विदा किया गया. रेवती एक मूर्ति की तरह अंदर सिर  झुका कर बैठ गई.

मायके में कुछ दिन निकल गए. पर अब रेवती को अपने प्रति सब का बदला हुआ व्यवहार महसूस होने लगा. मां की डोर भी भाईभाभी के हाथ में थी. विधवा बेटी के लिए कुछ नहीं कर पातीं. उधर, भाभी का फुसफुसाते हुए उस के बारे में बातें करना वह कितनी बार सुन चुकी थी. जब भाभी तैयार हो कर घूमने या किसी आयोजन में जातीं, तो रेवती से छिप कर निकलतीं. मां भी इशारोंइशारों में रेवती को संकेत दे चुकी थीं कि शुभ अवसरों पर कमरे के अंदर ही बैठना.

रेवती का मन अब मायके से उचाट हो गया था. जाए तो कहां जाए? जब तक ससुराल से कोई बुलाए नहीं, वहां भी तो नहीं जा सकती. एक दिन अचानक देवर लेने आ गया. उसे कुछ तसल्ली हो गई. दरअसल, रणवीर के औफिस में कुछ जरूरी कागजात पर साइन करने के लिए रेवती को बुलाया गया था. रेवती उसी दिन ससुराल के लिए लौट गई. मां या भाईभाभी किसी ने भी उसे दोबारा आने को नहीं कहा. रेवती का दिल अंदर ही अंदर टुकड़ेटुकड़े हो गया. इसी मायके के लिए वह कैसी उतावली रहा करती थी.

ससुराल में भी जा कर मन को शांति न मिली. 3-4 दिन ससुर के साथ रणवीर के औफिस जाने में बीत गए. जो पैसा मिला, उस की रेवती के नाम की एफडी बनवा दी गई. पहले सास और बहू मिल कर घर के काम पूरे कर लिया करती थीं. शाम को देवरानी भी साथ देती थी. अब सास एकदम कमजोर हो गई थीं. बातचीत भी कम ही करतीं. ससुर सारा दिन अखबार या टीवी देख समय बिताते. देवरदेवरानी सुबह से गए, शाम को घर आते.

ये भी पढ़ें- आगामी अतीत: भावना क्या मां ज्योत्सना का दर्द समझ सकी

देवरानी रसोई में आ कर रेवती का हाथ बंटाती. वह अपनी स्कूल की दिनचर्या, सहकर्मियों के साथ की गई बातचीत, बच्चों की मासूम शरारतों के बारे में बताती रहती. रेवती के पास तो कुछ भी नहीं होता बताने को. वह मन मसोस कर काम में लगी रहती. सोचती, एक बच्चा ही होता तो जिंदगी कट जाती. अब सास तो शारीरिक कमजोरी की वजह से कहीं आतीजाती न थीं. घर में ही सोच में पड़ी रहतीं. किसी विशेष दिन या त्योहार पर रेवती ही परिवार की ओर से मंदिर में चढ़ावा, दान आदि देने जाने लगी.

एक दिन रेवती ने सुना कि मंदिर में एक बहुत पहुंचे हुए साधु महाराज

10 दिन के लिए आने वाले हैं. वह कई सालों में से किसी घने अरण्य में तपस्या में लीन थे. उन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई है. अब वे मानव कल्याण हेतु विभिन्न मंदिरों में जा कर प्रवचन देंगे और भक्तों की समस्याओं का निदान करेंगे. यह सुन रेवती को मानो राह मिल गई. उस ने सोचा, साधुमहाराज से अपने कष्टों के निवारण के लिए उपाय पूछेगी.

अगले दिन रेवती ने जल्दी ही घर के काम निबटा लिए. वह मंदिर में जा कर साधुमहाराज के दर्शन के लिए खड़ी हो गई. कुछ ही देर में एक फूलों से सजी जीप में अपने अनुयायियों के साथ एक युवा साधु उतरे. उन के उतरते ही वहां खड़ी भीड़ ने फूलों की वर्षा के साथ गगनभेदी जयजयकार से पूरा इलाका गुंजित कर दिया. मंदिर के अन्य सेवकजनों ने उन्हें बड़े सम्मान से अंदर ले जा कर एक ऊंची गद्दी पर विराजमान कर दिया.

अगले भाग में पढ़ें- रणवीर की शहादत के बाद वह अवसाद की ओर चली गई थी.

प्यार का विसर्जन : भाग 1- क्यों दीपक से रिश्ता तोड़ना चाहती थी स्वाति

अलसाई आंखों से मोबाइल चैक किया तो देखा 17 मिस्ड कौल्स हैं. सुबह की लाली आंगन में छाई हुई थी. सूरज नारंगी बला पहने खिड़की के अधखुले परदे के बीच से झंक रहा था. मैं ने जल्दी से खिड़कियों के परदे हटा दिए. मेरे पूरे कमरे में नारंगी छटा बिखर गई थी. सामने शीशे पर सूरज की किरण पड़ने से मेरी आंखें चौंधिया सी गई थीं. मिचमिचाई आंखों से मोबाइल दोबारा चैक किया. फिर व्हाट्सऐप मैसेज देखे पर अनरीड ही छोड़ कर बाथरूम में चली गई. फिर फै्रश हो कर किचन में जा कर गरमागरम अदरक वाली चाय बनाई और मोबाइल ले कर चाय पीने बैठ गई.

ओह, ये 17 मिस्ड कौल्स. किस की हैं? कौंटैक्ट लिस्ट में मेरे पास इस का नाम भी नहीं. सोचा कि कोई जानने वाला होगा वरना थोड़े ही इतनी बार फोन करता. मैं ने उस नंबर पर कौलबैक किया और उत्सुकतावश सोचने लगी कि शायद मेरी किसी फ्रैंड का होगा.

तभी वहां से बड़ी तेज डांटने की आवाज आई, ‘‘क्या लगा रखा है साक्षी, सारी रात मैं ने तुम को कितना फोन किया, तुम ने फोन क्यों नहीं उठाया? हम सब कितना परेशान थे. मम्मीपापा तुम्हारी चिंता में रातभर सोए भी नहीं. तुम इतनी बेपरवाह कैसे हो सकती हो?’’

‘‘हैलो, हैलो, आप कौन, मैं साक्षी नहीं, स्वाति हूं. शायद रौंग नंबर है,’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया और कालेज जाने के लिए तैयार होने चली गई.ॉ

ये भी पढ़ें- मीनू: एक सच्ची कहानी

आज कालेज जल्दी जाना था. कुछ प्रोजैक्ट भी सब्मिट करने थे, सो, मैं ने फोन का ज्यादा सिरदर्द लेना ठीक नहीं समझ. बहरहाल, उस दिन से अजीब सी बातें होने लगीं. उस नंबर की मिस्ड कौल अकसर मेरे मोबाइल पर आ जाती. शायद लास्ट डिजिट में एकदो नंबर चेंज होने से यह फोन मुझे लग जाता था. कभीकभी गुस्सा भी आता, मगर दूसरी तरफ जो भी था, बड़ी शिष्टता से बात करता, तो मैं नौर्मल हो जाती. अब हम लोगों के बीच हाय और हैलो भी शुरू हो गई. कभीकभी हम लोग उत्सुकतावश एकदूसरे के बारे में जानकारी भी बटोरने लगते.

एक दिन मैं क्लास से बाहर आ रही थी. तभी वही मिस्ड कौल वाले का फोन आया. साथ में मेरी फ्रैंड थी, तो मैं ने फोन उठाना उचित न समझ. जल्दी से गार्डन में जा कर बैठ कर फोन देखने लगी कि कहीं फिर दोबारा कौल न आ जाए. मगर अनायास उंगलियां कीबोर्ड पर नंबर डायल करने लगीं. जैसे ही रिंग गई, दिल को अजीब सा सुकून मिला. पता नहीं क्यों हम दोनों के बीच एक रिश्ता सा कायम होता जा रहा था. शायद वह भी इसलिए बारबार यह गलती दोहरा रहा था. तभी गार्डन में सामने बैठे एक लड़के का भी मोबाइल बजने लगा.

जैसे मैं ने हैलो कहा तो उस ने भी हैलो कहा. मैं ने उस से कहा, ‘‘क्या कर रहे हो?’’ तो उस ने जवाब दिया, ‘‘गार्डन में खड़ा हूं और तुम से बात कर रहा हूं और मेरे सामने एक लड़की भी किसी से बात कर रही है.’’ दोनों एकसाथ खुशी से चीख पड़े, ‘‘स्वाति, तुम?’’ ‘‘दीपक, तुम?’’

‘‘अरे, हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ते हैं. क्या बात है, हमारा मिलना एकदम फिल्मी स्टाइल में हुआ. मैं ने तुम को बहुत बार देखा है.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम्हें फर्स्ट टाइम देखा है. क्या रोज कालेज नहीं आती हो?’’

‘‘अरे, ऐसा नहीं. मैं तो रोज कालेज आती हूं. मैं बीए फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट हूं.’’

‘‘और मैं यहां फाइन आर्ट्स में एमए फाइनल ईयर का स्टूडैंट हूं.’’

‘‘ओह, तब तो मुझे आप को सर कहना होगा,’’ और दोनों हंसने लगे.

‘‘अरे यार, सर नहीं, दीपक ही बोलो.’’

ये भी पढ़ें- यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी

‘‘तो आप को पेंटिंग का शौक है.’’

‘‘हां, एक दिन तुम मेरे घर आना, मैं तुम्हें अपनी सारी पेंटिंग्स दिखाऊंगा. कई बार मेरी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी लग चुकी है.’’

‘‘कोई पेंटिंग बिकी या लोग देख कर ही भाग गए.’’

‘‘अभी बताता हूं.’’ और दीपक मेरी तरफ बढ़ा तो मैं उधर से भाग गई.

कुछ ही दिनों में हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए. कभीकभी दीपक मुझे पेंटिंग दिखाने घर भी ले जाया करता. मेरे मांबाप तो गांव में थे और मेरा दीपक से यों दोस्ती करना अच्छा भी न लगता. कभी हम दोनों साथ फिल्म देखने जाते तो कभी गार्डन में पेड़ों के झरमुट के बीच बैठ कर घंटों बतियाते रहते और जब अंधेरा घिरने लगता तो अपनेअपने घोंसलों में लौट जाते.

एक जमाना था कि प्रेम की अभिव्यक्ति बहुत मुश्किल हुआ करती थी. ज्यादातर बातें इशारों या मौन संवादों से ही समझ जाती थीं. तब प्रेम में लज्जा और शालीनता एक मूल्य माना जाता था. बदलते वक्त के साथ प्रेम की परिभाषा मुखर हुई. और अब तो रिश्तों में भी कई रंग निखरने लगे हैं. अब तो प्रेम व्यक्त करना सरल, सहज और सुगम भी हो गया है. यहां तक कि फरवरी का महीना प्रेम के नाम हो गया है.

अगले भाग में पढ़ें – घर में सभी समझते कि उस के पास काम का बोझ ज्यादा है…

ये भी पढ़ें- वापसी: क्या वापस लौटा पूनम का फौजी पति

रस्मे विदाई: भाग 1- क्यों विदाई के दिन नहीं रोई मिट्ठी

‘‘यह क्या है मिट्ठी? 2 दिन रह गए हैं तुम्हारी विदाई को और तुम यहां बैठी खीखी कर रही हो, नाक कटवाओगी क्या? तुम लड़कियों को कुछ काम नहीं है क्या? अरे, शादी का घर है, सैंकड़ों काम पड़े हैं, थोड़े हाथपैर चलाओगी तो छोटी नहीं हो जाओगी,’’ नीरा ने अपनी बेटी मिट्ठी और उस की सहेलियों को इस तरह लताड़ा कि सब सकते में आ गईं. सहेलियां उठ कर कमरे से बाहर निकल गईं और इधरउधर कार्य करने का दिखावा करने लगीं. मिट्ठी वहीं बैठी रही और अपनी मां को अपलक देखती रही.

‘‘अब हम क्या करें, मां, कुछ काम भी तो करने नहीं देती हैं आप? हमारे हंसनेबोलने से आप की नाक कटने का खतरा कैसे पैदा हो गया, यह भी हमारी समझ में नहीं आया.’’

‘‘हांहां, तुम्हारी समझ में क्यों आने लगा. अकेले में तुम्हें समझा सकूं, इसीलिए उन लड़कियों को यहां से भगा दिया. हमारे जमाने में तो विवाह से

10-12 दिनों पहले से ही लड़कियां धीरेधीरे स्वर में रोने लगती थीं. आनेजाने वाले भी लड़की से गले मिल कर दो आंसू बहा लेते थे कि लड़की अब पराई होने जा रही है. माना, अब नया जमाना है पर 2 दिन पहले तो धीरेधीरे रो ही सकती हो. नहीं तो लोग क्या कहेंगे कि लड़की को शादी की बड़ी खुशी है.’’

‘‘वाह मां, किस युग की बातें कर रही हैं आप, आजकल विदाई के समय कोई नहीं रोता. हमारी बात तो आप जाने दीजिए, पर आजकल की अधिकतर लड़कियां पढ़ीलिखी हैं, अपने पैरों पर खड़ी हैं. वे इन पुराने ढकोसलों में विश्वास नहीं करतीं.’’

‘‘बदल गया होगा जमाना, पर इस महल्ले में तो सब जैसे का तैसा है, यहां लोग अभी भी पुरानी परंपराओं का पालन करते हैं. हर विवाह के बाद वर्षों यह चर्चा चलती रहती है कि लड़की विदाई के समय कितना रोई. उसी से तो मायके के प्रति लगाव का पता चलता है. अच्छा, मैं चलती हूं, ढेरों काम पड़े हैं, पर अब ठहाके सुनाई न दें, इस का ध्यान रखना,’’ कहती हुई नीरा चली गई थीं.

ये भी पढ़ें- सीलन-उमा बचपन की सहेली से क्यों अलग हो गई?

उन के जाते ही मिट्ठी का मन हुआ कि वह इतना जोर से खिलखिला कर हंसे कि सारा घर कांप जाए. विदाई के समय रोने की प्रथा को इतनी गंभीरता से तो शायद ही कभी किसी ने लिया हो. 40 वर्ष की उम्र के करीब पहुंच रही है मिट्ठी, अब क्या रोना और क्या हंसना. लेकिन मां नहीं समझेंगी.

आज भी वह दिन मिट्ठी की यादों में उतना ही ताजा है, जब पहली बार उसे वर पक्ष के लोग देखने आए थे. उन दिनों तो उस का अपना अलग ही स्वप्निल संसार था और वास्तविकता से उस का दूरदूर कोई वास्ता नहीं था. घूमनाफिरना, सिनेमा देखना और उत्सवों व विवाहों में भाग लेना, यही उस की दिनचर्या थी. कालेज जाना भी इस में शामिल था पर उस में पढ़ाई से अधिक महत्त्व सहेलियों, फिल्मों और गपशप का था. कालेज जाना तो विवाह होने तक के समय का सदुपयोग मात्र था.

भावी वर को देख कर तो उस की आंखें चौंधिया गई थीं. वैसा सुदर्शन युवक आज तक उस की नजरों के सामने से नहीं गुजरा. साथ ही ऊंची नौकरी, संपन्न परिवार, उस की तो मानो रातोंरात काया ही पलट गईर् थी.

पर जब एक सप्ताह बीतने पर भी उधर से कोई जवाब नहीं मिला था तो सब का माथा ठनका था. शीघ्र ही देवदत्त बाबू से, जो मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे, संपर्क किया गया तो वे स्वयं ही चले आए और आते ही मिट्ठी के पिता को ऐसी खरीखोटी सुनाई थी कि बेचारे के मुख से आवाज नहीं निकली थी.

‘इतने ऊंचे स्तर का घरवर और आप ने उन्हें अच्छे दहेज तक का प्रलोभन नहीं दिया? पूरी बिरादरी में कहीं देखा है ऐसा सजीला युवक?’ देवदत्त बाबू बोले थे.

‘लेकिन देवदत्त बाबू, देखनेसुनने में तो अपनी मिट्ठी भी किसी से कम नहीं है,’ उस के पिता सर्वेश्वर बाबू बोले.

‘हां जी, आप की मिट्ठी तो परी है परी. कल कोई राजकुमार आएगा और फोकट में उसे ब्याह कर ले जाएगा.’ देवदत्त बाबू के स्वर ने अंदर अपने कमरे में बैठी मिट्ठी को पूरी तरह से लहूलुहान कर दिया था और पता नहीं सर्वेश्वर बाबू पर क्या बीती थी.

‘मैं ने तो फोकट में विवाह करने की बात कभी की नहीं, मैं ने आप से पहले ही कहा था कि हम 3 लाख रुपए तक खर्च करने को तैयार हैं,’ सर्वेश्वर बाबू दबे स्वर में बोले थे.

‘सच कहूं? 3 लाख रुपए की बात सुन कर देर तक हंसते रहे थे लड़के के घर वाले. लड़के की मां ने तो सुना ही दिया कि 3 लाख रुपए में कहीं शादी होती है. अरे, इतने में तो ठीक से बरात की खातिरदारी भी नहीं हो सकेगी,’ देवदत्त बाबू ने एक और वार किया था.

ये भी पढे़ं- बुजदिल : कलावती का कैसे फायदा उठाया

‘इस से अधिक तो मेरे लिए संभव नहीं हो सकेगा. आप तो जानते हैं कि मिट्ठी से छोटे 4 और भाईबहन हैं. बहुत कोशिश करने पर 3 का साढ़े 3 लाख रुपए हो जाएगा.’

‘फिर तो आप उसी स्तर का वर ढूंढ़ लीजिए अपनी मिट्ठी के लिए. आप तो जानते ही हैं कि जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा. वैसे भी उस लड़के का संबंध तय हो गया और 15 लाख रुपए पर बात पक्की हुईर् है. 5-6 लाख रुपए का तो केवल तिलक आएगा,’ कहते हुए देवदत्त बाबू उठ खड़े हुए थे.

मिट्ठी ने बीए पास कर एमए में दाखिला ले लिया था. उधर सर्वेश्वर बाबू ने वर खोजो अभियान तेज कर दिया था. हर माह 2-3 भावी वर और उस के मातापिता उसे देखने आते. पर कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था कि बात बनतेबनते रह जाती. सर्वेश्वर बाबू ने अब यह कहना भी बंद कर दिया था कि वे दहेज प्रथा में विश्वास नहीं करते और प्रस्तावित दहेज की रकम बढ़ा कर 4 लाख रुपए कर दी थी. पर जब सभी प्रयत्नों के बाद भी वह बेटी के लिए एक अदद वर नहीं ढूंढ़ पाए तो सब का क्रोध मिट्ठी पर उतरने लगा था. उस की दादीमां ने तो एक दिन खुलेआम ऐलान भी कर दिया था कि घर में कन्या पैदा होने से बड़ा अभिशाप कोई और नहीं है.

अगले भाग में पढ़ें- पुष्पी ने तो मुग्ध हो कर मिट्ठी की उंगलियां ही चूम ली थीं.

ये भी पढ़ें- नपुंसक : नौकरानी के जाल में कैसे फंस गए रंजीत

वक्त की अदालत में: भाग 6- मेहर ने शौहर मुकीम के खिलाफ क्या फैसला लिया

नया परिवेश, नए लोग, नए मौसम के बीच तालमेल बैठाने की पुरजोर कोशिश में लगी हुई थी. एक दिन प्राचार्य ने स्कूल के बाद मिलने के लिए कहा. अतीत के नुकीले पत्थर पर पड़ कर फिर से कहीं पैर लहुलूहान न हो जाए, अटकलों, ऊहापोहों ने इंटरवल के बाद के 4 पीरियड में पेट में हौल पैदा कर दी. समय की काली छाया मेरा पीछा करते इस नितांत अनजान टापू में तो नहीं घुस आई. ‘यह किसी अब्दुल मुकीम का लैटर मेरे नाम आया है. आप के कैरेक्टर के बारे में बड़ी एब्यूज लैंग्वेज और बैड इन्फौर्मेशन लिखी है. डू यू नो हिम?’

‘यस सर, ही इज माई हसबैंड,’ मैं ने सिर  झुका लिया.

‘ओह, आय सी. तभी तो आप को 2 छोटेछोटे बच्चों के साथ मीलों का सफर अकेले तय कर के नए माहौल में आने की वजह ढूंढ़ता रहा मैं.’

दुखती नस पर किसी ने हाथ रख दिया. दर्द से बिलबिला गई. आंखों में सावन की  झड़ी लग गई.

‘डोंट वरी, आई विल टैकल दिस मैटर. यू जस्ट कन्सैन्ट्रेट अपौन योर ड्यूटी ऐंड योर चिल्ड्रन.’

‘सर, प्लीज स्टाफ में किसी से…’ मेरे होंठ थरथराए.

‘नो मैडम, कीप फेथ औन मी. आई विल सेव योर रिस्पैक्ट ऐंड औनर.’

घसीटते कदमों ने घर तो पहुंचा दिया मगर कमरे की निस्तब्धता ने कस कर बाहों में बांध लिया. तेज रुलाई फूटी. देर तक निढाल फर्श पर बैठी रही.

ये भी पढ़ें- सीलन-उमा बचपन की सहेली से क्यों अलग हो गई?

पतझड़ सावन में, सावन बंसत में तबदील होते रहे. गरमी की छुट्टियों में बच्चों के साथ कभी समुद्री जहाज से, कभी फ्लाईट से अब्बूअम्मी के पास आती रही. केसों की हियरिंग पर अपनी बरबादी की, मूकदर्शक बनी सड़कों की खाक छानना मेरी मजबूरी बन गई. सहेलियों, रिश्तेदारों से मुकीम की नईनई खबरें मिलती रहीं. मेरे घर से निकलने के 6 महीने बाद ही उस की मां मर गईं. शराब की लत और शक्की स्वभाव ने कोर्ट में मिली औरत को जल्द ही उकता दिया और वह एक रात उस की पूरी तनख्वाह ले कर घर से भाग गई.

16 महीने मुकीम ने नई जोड़ीदार की पुरजोर तलाश की. मुसलिम समाज में मर्द कपड़ों की तरह औरत बदलता है तो बेवा और तलाकशुदा औरतें 2 रोटी और एक छत के लिए किसी भी कमाऊ के साथ निकाह करने के लिए मजबूर हो जाती हैं. समाज का यह लिजलिजा विकृत रूप उस की खोखली व्यवस्था की चूलें हिला कर रख देता है. बीमार मानसिकता, आघातप्रतिघात, दोषारोपण की खरपतवार आने वाली फसल को कमजोर बनाती जा रही है. अशिक्षित मुसलिम समाज भारत की प्रगति में कंधे से कंधे मिलाना तो दूर, मजहबी संकीर्णता की खोह में लिपटा कुलबुलाकुलबुला कर ही दम तोड़ देता है.

एक साल के बाद ही मुकीम ने एक बच्चे की बेवा मां का सिरमौर बनने का फख्र हासिल कर लिया.  उस ने एक साल बाद मुकीम को एक लड़की का पिता बना दिया. मुकीम सीना ताने घूमता, ‘अभी और 10 बच्चे पैदा करने की ताकत रखता हूं. औरतें मेरे लिए नहीं, मैं औरतों का उद्धार करने के लिए पैदा हुआ हूं, वरना 200 रुपयों में तो कितनी औरतें बिछबिछ जाएं.’

पुलिस केस से बचने के लिए उस ने सरकारी वकील को खरीद लिया. मेरा स्लम एरिया का मकान मात्र 17 हजार रुपए में बेच दिया. 10 साल के बेटे ने जज के सामने बाप की दरिंदगी का एकएक सफा खोल कर रख दिया. केस का फैसला मेरे हक में हो गया.

मुकीम की म झले भाई के साथ घर के मेंटिनैंस और बिजलीपानी के खर्च को ले कर होने वाली तकरारों ने म झले को रेलवे क्वार्टर लेने के लिए मजबूर कर दिया. पूरे घर पर अब मुकीम का एकछत्र अधिकार. लेकिन जीने की लकड़ी की सीढि़यां बुरी तरह हिलने लगी थीं. छत की दीवारों का रंग और प्लास्टर उधड़ने लगा. शराब, जुए की लत उसे घुन की तरह चाट कर कंगाल बनाने लगी. कर्जदारों की फेहरिस्त बढ़ने लगी.

मेरे दोनों बच्चों ने 10वीं, 12वीं के बोर्ड इम्तिहान में आशातीत सफलता हासिल कर के स्पोर्ट्स में भी अच्छी जगह बना ली. बेहतरीन इंग्लिश, हिंदी, मिश्रित उर्दू के कारण वे आकाशवाणी के बालजगत कार्यक्रम की एंकरिंग करने लगे. स्वस्थ मानसिकता, तरक्की और कामयाबी की बुनियाद बन गई.

बाद मैं ख्वाबों के खूनी शहर पहुंची तो मालूम हुआ कि मुकीम अपनी तीसरी बीवी के सौतले बेटे की फूटती मूंछों के नीचे से निकली अपने प्रति भर्त्सना बरदाश्त नहीं कर पाया. ‘निकालो साले को यहां से वरना जान से मार डालूंगा. मेरा ही खा कर मु झ पर ही गुर्राता है.’

उस की आएदिन की चिंघाड़ और रौद्र रूप को बेटे के प्रति आसक्त मां बरदाश्त नहीं कर पाई. 6 साल की बेटी को सामान लाने के बहाने बाहर भेज कर मिट्टी तेल छिड़क लिया. धूधू कर के एक बार फिर वही घर जला जिस की बुनियाद केवल देह के सुख और नितांत पुरुषस्वार्थ पर रखी गई थी. 90 प्रतिशत जली तीसरी बीवी ने अपनी मासूम, अबोध के गले पर मुकीम का निरंतर कसता पंजा देख कर सारा दोष खुद पर ले लिया. एक बार फिर अमानुष के गले में फांसी का फंदा पड़ने से पहले ही कमजोर और शिथिल पड़ गया. अदालत को तो चश्मदीद गवाह और ठोस सुबूत चाहिए न.

8 माह बाद कमसिन बच्ची की परवरिश का हवाला दे कर मुकीम की बहन फिर उस के लिए एक अदद हड्डी गोश्त का जिंदा लोथड़ा ढूंढ़ने लगी. 65 वर्ष की तलाकशुदा औरत ने मुकीम से निकाह मंजूर कर लिया जो पिछले 10 सालों से भाभी के घर के सभी सदस्यों की आंखों में कांटे की तरह चुभती रही थी. निकाह के वक्त मुकीम रिटायर हो चुका था. मेरे दोनों बच्चे कौंपिटीटिव एग्जाम में अच्छी रैंक हासिल कर के नेवी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई में व्यस्त हो गए. खुद मैं अपनी काबिलीयत और मेहनत के बल पर 2 प्रमोशन हासिल कर के सीनियर टीचर बन गई. मेरा शांत स्वभाव कभी भी मु झे बहुसंख्यकों के बीच अपना विरोधी पैदा करने नहीं देता.

ये भी पढ़ें- बुजदिल : कलावती का कैसे फायदा उठाया

दर्दीले अतीत की भयावहता से खुद को बचाने के लिए बचपन के 2 अधूरे शौकों को पूरा करने का प्रयास करने लगी. गले का माधुर्य मु झे संगीत के करीब ले जाना चाहता रहा, लेकिन इसलाम में संगीत हराम माना जाता है.  दकियानूसी और अपरिपक्व सोच ने 55 साल की उम्र में गले को साधने की कोशिश को एक बार फिर नाकाम कर दिया. पूरी तवज्जुह सिलाई और मशीन की कशीदाकारी के फन पर आ कर सिमट गई.

बेहतरीन सूट, चादरें, मैक्सी के लुभावने आकर्षक धागे और डिजाइन मेरे कलाकार मन को दिनभर खिलाखिला रखते. वर्तमान शिक्षा पद्धति के साथ खुद को भी अपडेट करने के शगल ने मेरे छोटे बेटे से मु झे कंप्यूटर सिखला दिया. गुनाहों और बदकारियों से दामन बचाने वाली मैं प्रकृति का शुक्रिया अदा करती रहती हूं. बच्चे अपने अब्बू के जल्लादी, जाहिल वजूद की यादों को अपने जेहन से खुरचखुरच कर फेंक चुके थे.

आज नवीन भैया की दी गई खबर ने ठहरे समंदर में तूफान उठा दिया. कई दिनों तक खुद को संतुलित नहीं कर पाई. हार कर नवीन भैया का नंबर डायल कर ही दिया.

‘‘हैलो दीदी, आप ठीक हैं न?’’

‘‘मैं ठीक हूं भैया, लेकिन आप से एक गुजारिश है.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हैं, दीदी. आप के ही स्नेह से मेरे घर में दोदो बेटियों ने जन्म लिया है, वरना हम तो उम्मीद ही छोड़ बैठे थे. आप ने प्रोत्साहित किया, बहू को अपने घर रख कर इलाज करवाया. आप का एहसान…’’ गला भर गया उन का, ‘‘आप तो बस हुक्म कीजिए.’’

‘‘भैया, जिस दिन अब्दुल मुकीम की बेटी के केस की तारीख हो, मैं उस दिन सैशन कोर्ट में केस की कार्रवाई सुनना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, दीदी.’’ मेरे अंतस में उठते हाहाकर की गर्जन साफ सुनाई दे रही थी तजरबेकार कोर्ट सुपरिटैंडैंट को. ‘‘मगर दीदी, अपने किए की सजा तो इस कलियुग में जीतेजी ही भुगतनी पड़ती है. आप क्यों अपने जख्म हरे करना चाहती हैं. भुगतने दो उस को. दूसरे की बेटी की जिंदगी बरबाद की, तो उस की बेटी के साथ.’’

‘‘भैया, जुर्म की सजा कानून भले ही नहीं देता लेकिन वक्त गिनगिन कर सजा देता है. निलोफर के बलात्कारी को कानून तो सजा देगा लेकिन असली कुसूरवार तो मुकीम है जो बारबार मांबाप की लाड़ली बेटियों को अपनी क्रूरता का शिकार बना कर अपनी चालाकी, धूर्तता से कानून की गिरफ्त में आने से खुद  को बचाता रहा. अब जब अपनी बेटी पर जुल्म हुआ तब क्या वह चुप रहेगा? खुद को कचोटेगा, पछताएगा.

‘‘मैं सिर्फ एक बार उस के चेहरे पर दर्दोमलाल की सिलवटें देखना चाहती हूं. उस की आंखों में पस्तहाल शबनम की बूंदें देखना चाहती हूं. उस का मर्दाना दंभ, उस का अभिमानी सिर असमर्थता और बेबसीलाचारी के हथौड़े से कुचलते हुए देखना चाहती हूं. उस की आंखों में दहशत के बवंडर और माथे पर पश्चात्ताप की शिकन देखना चाहती हूं. गुस्से से उबलती उस की मक्कार आंखों में लोहे से पिघलते आंसू देखना चाहती हूं,’’ कहतेकहते मैं हांफने लगी थी.

‘‘दीदी, अगले महीने की 14 तारीख को केस की सुनवाई है. मैं जज से स्पैशली आप के बैठने की इजाजत ले लूंगा. दीदी, अब सो जाओ, बहुत रात हो गई है. कल बात करूंगा. गुड नाइट,’’ कह कर नवीन भैया ने फोन काट दिया. मेरी आंखों में 20-22 वर्षीया लड़की का अक्स उतर आया. निलोफर का आंसुओंभरा चेहरा, पुलिस मर्द की वासना का शिकार, कौन करेगा भोग्या का उद्धार. नहीं, उसे तो उम्रभर की वस्तु सम झ कर मर्द समाज की दूसरी पौध इस्तेमाल करने के जाने कौनकौन से घिनौने मंसूबे बनाएगी. उस के मासूम सपने, घर, पतिबच्चे, प्यारखुशियां, सम्मान, सबकुछ सामाजिक अपमान, तिरस्कार, घृणा की बलिवेदी पर चढ़ गया. कैसे वह अपने भीतर आत्मविश्वास और जीवित रहने की अदम्य इच्छा की दीपशिखा को प्रज्वलित रख पाएगी.

एक अकेले मुकीम ने अपने निर्दयी व्यवहार के कारण 7 लोगों को अर्थहीन, दिशाहीन और पीड़ायुक्त जीवन जीने के लिए मजबूर किया. चिंदीचिंदी कर के रख दिया उन के ख्वाबों, खुशियों और संकल्पों को. हाड़मांस की औरतों के सम्मान, अधिकारों को अपनी मर्दाना ताकत की ज्वाला में नेस्तनाबूद करने वाला शख्स अपनी एक अदद बेटी की अस्मत की सुरक्षा नहीं कर पाया. छि, धिक्कार है ऐसे मर्द पर. लेकिन रहती दुनिया तक ऐसे लाखों हिंदुस्तानी मर्द सिर ऊंचा कर के अपनी पूरी अकड़ और ऐंठ के साथ जिंदा रहेंगे.

मुकीम अपनी तमाम वहशियाना फितरत, मक्कारियों, चालबाजियों के साथ शरीर के हड्डी का ढांचा होने तक, आंखों के फूट जाने तक, अपने गरूर के साथ जिंदा रहेगा. लेकिन जब उस का थरथराता, कंपकंपाता शरीर मौत मांगेगा, रहम की भीख मांगेगा, तब दुनिया उस की फटी छाती की चीत्कार सुन कर भी अनसुना कर देगी. घसीटघसीट कर बुरी मौत मरेगा वह. यही उस वक्त की अदालत का फैसला होगा.

ये भी पढ़ें- नपुंसक : नौकरानी के जाल में कैसे फंस गए रंजीत

परिवर्तन: भाग 1- राहुल और कवि की कहानी

लेखक- खुशीराम पेटवाल

‘‘पर कवि, भगवान तो है ही न.’’

‘‘मैं तुम्हें पहले भी कई बार कह चुकी हूं कि अपना भगवान अपने पास रखो,’’ कवि झुंझला कर बोली, ‘‘वह तुम्हारा है, सिर्फ तुम्हारा. तुम्हारी पत्नी होने के नाते वह मेरा भी है, यह तुम्हारी धारणा गलत है. मैं तुम से कई बार कह चुकी हूं कि तुम्हारा भगवान मंदिरों में ही ठीक लगता है जहां वह मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर इनसानों की दया पर निर्भर है. तुम्हें शायद याद नहीं, यही गुजरात है जहां के सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी ने लूटा था. वह भी एक इनसान था और उस के हाथों पिटा तुम्हारा भगवान. सर्वशक्तिमान हो कर भी कुछ न कर सका. लुटवा दी सारी संपदा, तुड़वा दी अपनी मूरत.’’

‘‘कवि, तुम बातों को सहज रूप में नहीं लेती हो. तुम्हें तो जो तर्क की कसौटी पर सही लगता है उसे ही तुम सही मानती हो. तुम ईश्वर का अस्तित्व वैज्ञानिक धरातल पर तलाशती हो. पर इतना जरूर कहूंगा कि कोई ऐसी एक ताकत जरूर है जो इस संसार को गतिमान कर रही है.’’

‘‘यह तो प्रकृति है जो यहां पहले से ही मौजूद है. ये सब अनादि काल से ऐसा ही चल रहा है.’’

‘‘ठीक है, तो इन में जीवन का संचार कौन कर रहा है?’’

‘‘कौन से क्या मतलब? जीवन का संचार सूर्य से है. सूर्य से ही ऊर्जा मिलती है. गहरे अर्थों में जाओ तो हाइड्रोजन हीलियम में बदलती है और बदलाव से ऊर्जा मिलती है जो सूर्य के अंदर मौजूद है और ऊर्जा से ही यह सारा संसार चलता है.’’

‘‘पर तुम्हारा सूर्य भी तो किसी ने बनाया होगा?’’

ये भी पढ़ें- एहसानमंद: सुधा ने विवेक से ऑफिस जाते समय क्या कहा?

‘‘तुम प्रश्न तो गढ़ते हो पर यह क्यों नहीं मानते कि ये चीजें पहले से ही यहां मौजूद हैं जो निरंतर विकास की अवस्था से गुजरते हुए, अनादि काल से बिना किसी भगवान के सहारे यहां तक पहुंची हैं और आगे भी इसी तरह कुदरती बदलावों के साथ चलती रहेंगी.

‘‘भगवान न कभी था, न है और न होगा. बस, उस के नाम पर धंधा करने वाले लोग एक ढोल बजा कर, भगवान है…भगवान है का शोर इसलिए मचा रहे हैं ताकि वे अपनी गलतियों को ढक सकें. कुछ गलत हो गया तो ‘भगवान की ऐसी ही इच्छा थी.’ जो नहीं जानते उस के लिए ‘भगवान ही जानें.’ कुछ बस में नहीं हुआ तो ‘भगवान’ को आगे कर दिया. कमजोर प्राणी ही भगवान की शरण ढूंढ़ता है.

‘‘हेमंत, तुम भगवान के प्रति इतनी आस्था मत रखा करो. तुम्हें खुद पर विश्वास नहीं है इसलिए तुम अपने टेस्टों में फेल होते हो. मेहनत नहीं कर पाते तो दोष भगवान के माथे मढ़ते हो.’’

‘‘रहने दो कवि, मैं मानता हूं कि मुझ में कहीं कोई कमी है. मैं तुम्हारे आगे हथियार डालता हूं. वैसे इस समय मैं सोने के मूड में हूं क्योंकि सारी रात राहुल ने सोने नहीं दिया है. कान दर्द बताता रहा.’’

‘‘यह कान दर्द भी तुम्हारे भगवान ने दिया होगा. यह क्यों नहीं कहते कि रात को स्टार मूवीज की गरमागरम फिल्म देख रहे थे और बहाना राहुल का बना रहे हो. इस में भी तुम्हारा कोई दोष नहीं क्योंकि भगवान के प्रति आस्था रखने वाले झूठ का सहारा तो लेते ही हैं.’’

‘‘कवि, राहुल उठ गया है उसे ले लो तो मैं थोड़ी देर तक दिल्ली में चल रही गणतंत्रदिवस परेड देख लूं.’’

राहुल को पालने में लिटा कर कवि उस के लिए दूध बनाने रसोईघर में घुसी. दूध बनाने के बाद बोतल से राहुल को दूध पिलाने लगी. घड़ी की टनटन की आवाज के साथ उस ने देखा तो  साढ़े 8 बज गए थे. वह सोचने लगी कि आया भी अभी तक नहीं आई. जाने कब आएगी. आती तो मुझे फुरसत मिलती इस राहुल से.

राहुल की आंखों में कवि की गोद में आने का आग्रह था, पर वह इस लालच में कभी पड़ी ही नहीं. उसे डर था कि यदि बच्चे को मां की गोद में रहने की आदत पड़ गई तो उस के लिए बड़ी दिक्कत हो जाएगी. राहुल हाथपैर हिलाहिला कर दूध पीता रहा.

कवि हेमंत के लिए चाय बना कर उसे प्याले में उड़ेलने लगी. यह क्या, चाय बाहर क्यों गिर रही है? मुझे किस ने धक्का दिया? कहीं मुझे चक्कर तो नहीं आ रहा है? राहुल पालने में जोरजोर से क्यों झूल रहा है? उसे कौन झुला रहा है और ये बरतन हिलते हुए दूसरी तरफ क्यों जा रहे हैं? ओह नो, भूकंप…

कवि घबराई हुई राहुल पर झपटी. उसे गोद में ले कर बेडरूम में भागी, हेमंत उठो, ‘‘भूकंप. गिरजा को लो.’’

शायद हेमंत भी स्थिति को समझ गया था. वह तेजी से गिरजा को गोदी में ले कर भागा. दोनों अपनीअपनी गोद में बच्चों को ले कर सीढि़यों की तरफ भागे. कवि ने देखा कि हेमंत 5-6 सीढि़यां ही उतर पाया था कि अचानक वह सीढि़यों के साथ नीचे गिरता चला गया. कवि के मुंह से चीख निकली, ‘‘हेमंत, बचो,’’ पर यह क्या मैं भी…और मेरे ऊपर भी दीवार भयानक ढंग से नीचे आ रही थी. कवि को बस, उस समय यही लगा था कि सारी बिल्ंिडग नीचे धंस रही है.

अचानक कवि जागी उसे लगा कि सिर और पैर में तेज दर्द है. सिर पर हाथ फिरा कर देखा तो कुछ चिपचिपा सा लगा. पैर में भी चोट आई थी. ‘मैं कहां हूं,’ कवि ने खुद से पूछा तो उसे याद आया कि वह तो राहुल को ले कर नीचे की ओर भागी थी…राहुल, वह कहां है?

ये भी पढ़ें- चौथा कंधा : क्या कौलगर्ल के दाग को हटा पाई पारो

अपने अगलबगल टटोला तो उस से थोड़ी ही दूरी पर राहुल पड़ा था. वह शायद सो रहा था. कवि ने उसे उठाया. सिर से पैर तक उस के अंगों को टटोल कर देखा. अचानक उस के मुंह से निकला, मेरे बच्चे, ‘तुम ठीक तो हो.’ और इस के बाद कवि उसे बेतहाशा चूमने लगी. यह बच्चे के जीवित रहने की खुशी थी जो प्यार बन कर उस के समूचे बदन को चूम रही थी. उस ने टटोल कर देखा तो बच्चे का अंगप्रत्यंग सलामत था. उस के बदन पर कहीं खरोंच तक न थी. मां के शरीर का स्पर्श पा कर राहुल जाग गया और उस के मुंह से निकला, ‘मां…’

कवि ने उसे अपने सीने से चिपका लिया. उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. अचानक उसे गिरजा का खयाल आया और किसी अनहोनी की आशंका से वह सिहर गई. ‘गिरजा…’ वह तो हेमंत के हाथों में थी. हेमंत सीढि़यों सहित नीचे जा गिरा था. वह कहां है, जिंदा भी है या…

और एक अज्ञात भय से

कवि कांप गई. जोर  से चिल्लाई, ‘‘हेमंत…हे…मं…त… गिरजा… गि… र… जा…हे…मं….त…’’

आगे पढ़ें- राहुल रो रहा था. उसे शायद…

ये भी पढ़ें- Top 10 Best Social Story in Hindi : टॉप 10 सोशल कहानियां हिंदी में

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें