Pavitra Rishta 2.0: Ankita ने किया Sushant से जुड़े सवाल को नजरअंदाज, फैंस ने किया जमकर ट्रोल

टीवी एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे (Ankita Lokhande) आए दिन ट्रोलिंग का सामना करती नजर आती हैं. वहीं कई बार सुशांत सिंह राजपूत के फैंस से उन्हें भला बुरा भी सुनना पड़ता है. इसी बीच ‘पवित्र रिश्ता 2.0’ (Pavitra Rishta 2.0) के बौयकौट करने की मांग इन दिनों सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. आइए आपको बताते हैं आपको पूरी खबर….

पवित्र रिश्ता 2.0′ में अंकिता आएंगी नजर

जहां बेसब्री के साथ ‘पवित्र रिश्ता 2.0’ का इंतजार फैंस कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग सोशलमीडिया पर इस शो को बौयकौट करने की मांग कर रहे हैं. दरअसल, ‘पवित्र रिश्ता 2.0’ में अंकिता लोखंडे एक बार फिर से अर्चना के किरदार में तो वहीं शाहीर शेख मानव के रोल में नजर आने वाले हैं. हालांकि सुशांत सिंह राजपूत के फैंस इस खबर से नाखुश नजर आ रहे हैं.

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ट्रोल हुईं अंकिता

 

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हाल ही में अपने घर से बाहर निकली अंकिता लोखंडे से मीडिया ने ‘पवित्र रिश्ता 2.0’ को लेकर सवाल पूछें. वहीं इस दौरान अंकिता लोखंडे ने बताया कि वो ‘पवित्र रिश्ता 2.0’ को लेकर बहुत उत्साहित हैं. इसी बीच मीडिया ने क्या अंकिता लोखंडे ‘पवित्र रिश्ता 2.0’ में सुशांत सिंह राजपूत को मिस करने वाली हैं इस पर सवाल पूछा. इस सवाल का जवाब देने से पहले अंकिता लोखंडे पहले तो मुस्कुराईं फिर बाद में उन्होंने बच्चे अब बड़े हो जाओ. और वहां से चली गईं.

फैंस को नापसंद आया अंकिता अंदाज

ankita

अंकिता की यह वीडियो वायरल होने के बाद लोगों के मिलजुले रिएक्शन देखने को मिल रहे हैं. जहां कुछ लोग ‘पवित्र रिश्ता 2.0’ को बायकॉट करने की धमकी देते नजर आ रहे हैं तो वहीं कुछ लोग उन्हें लालची कहते हुए नजर आ रहे हैं.

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REVIEW: जानें कैसी है तापसी पन्नू की फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः भूषण कुमार,किशन कुमार, आनंद एल राय और हिमांशु शर्मा

निर्देशकः विनील मैथ्यू

लेखकः कनिका ढिल्लों

कलाकारः तापसी पन्नू, विक्रात मैसे, हर्षवर्धन राणे, आदित्य श्रीवास्तव, दया शंकर पांडे, अलका कौशल, अमित ठाकुर, पूजा सरुप, अशीष वर्मा व अन्य.

अवधिः दो घंटे 12 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

‘‘पति,पत्नी और वह’’के इर्द गिर्द घूमने वाली कहानियों पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. अब इसी तरह की एक प्रेम त्रिकोण के साथ प्रेम, वासना,विश्वासघात की रोमांचक मर्डर मिस्ट्री युक्त फिल्म ‘‘हसीन दिलरूबा’’ लेकर आए हैं निर्देशक विनील मैथ्यू,जो कि इससे पहले तमाम विज्ञापन फिल्मों के अतिरिक्त फिल्म ‘‘हंसी तो फंंसी’’ का निर्देशन कर चुके हैं.

कहानीः

यह कहानी दक्षिण दिल्ली में पली बढ़ी रानी (तापसी पन्नू )से शुरू होती है. रानी एक ब्यूटीशियन है. वह बिंदास व कामेच्छुक लड़की है. जिसे उच्श्रृंखल पति की चाहती है. उसके अपने सपने हैं कि घर से दस कदम की दूरी पर राफ्टिंग हो,बालकनी से पहाड़ दिखे.

रानी की पसंद के अनुरूप उत्तराखंड में गंगा नदी के तट पर बसे ज्वालापुर में रहने वाले सीधे,शिष्ट व सुशील तथा पेशे से इंजीनियर रिषभ कश्यप उर्फ रिशु (विक्रात मैसे) के साथ शादी हो जाती है. उनके मकान से नदी व पहाड़ सब कुछ नजर आता है. रानी हमेशा दिनेश पंडित लिखित अपराधिक उपन्यासों की दुनिया में रहती है और अक्सर दिनेश पंडित के उपन्यासों के संवादों को गुनगुनाती रहती हैं.

ज्वालापुर पहुंचने के बाद रानी के सास (अलका कौशल) व ससुर (अमित ठाकुर) को पता चलता है कि रानी को खाना बनाना तो दूर चाय बनानी भी नहीं आती. पर रानी अपने ससुर के बाल काले कर,उनके चेहरे पर फेशवाश वगैरह लगाकर खुश कर देती है.

उधर रानी को दिल से प्यार करने वाले मगर होम्योपैथिक दवाओ में अपनी मर्दांनगी को तलाशते रिषभ कश्यप,रानी के साथ पति पत्नी के रिश्ते नही बना पाते,पर वह हमेशा रानी का दिल जीतने के प्रयास में लगे रहते हैं.

मगर शादी के बाद पत्नी को जिस सुख की चाहत है,उसे वह नही दे पा रहे हैं. इस बात की शिकायत रानी अपनी मॉं लता (यामिनी दास) व बीना मौसी (पूजा सरुप) से करती है, जो कि रिषभ को बुरा लगता है. रिषभ सारी बात अपने दोस्त अफजर ( ) को बताता रहता है.

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इसी बीच रिषभ का मौसेरा भाई नील त्रिपाठी (हर्षवर्धन राणे) उनके यहां एक माह के लिए सैलानियों को नाव में बैठाकर नदी की सैर कराने का काम करता है. नील को अहसास हो जाता है कि उसकी भाभी रानी को किस सुख की तलाश है. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनते हैं. और अब रानी चाय से लेकर मटन वगैरह सब कुछ बनाना सीखकर नील सहित पूरे परिवार को बनाकर खिलाती है.

इधर रानी व रिषभ के बीच दूरियां बढ़ती जाती हैं. एक दिन नील से रानी कहती है कि वह रिषभ को सच बताकर नील के साथ दिल्ली जाएगी. लेकिन एक दिन नील बिना किसी को बताए वहां से चला जाता है. उसके बाद रिषभ,रानी से कहता है कि जो अब तक हुआ उसे भूल कर नई शुरूआत करते हैं.

तब रानी, रिषभ को सच बता देती है कि वह तो अब नील से प्यार करती है और नील से उसने शारीरिक संबंध भी बनाए हैं. इस पर नील दिल्ली जाकर रिषभ को मारने का प्रयास करता है,पर खुद मारकर वापस आ जाता है. इससे रानी को अपनी गलती का अहसास होता है और वह रिषभ से माफी मांग कर नई शुरूआत करने की बात कहती है.

रिषभ उसे माफ करने को तैयार नही. लेकिन हालात ऐसे बनते हैं कि रानी व रिषभ के बीच प्यार परवान चढ़ता है. दोनो के बीच पति पत्नी जैसे शारीरिक संबंध भी बनते हैं. मगर एक दिन पता चलता है कि घर में आग लगी और एक कटा हुआ हाथ मिला,जिस पर रानी लिखा हुआ है. इससे पुलिस इंस्पेक्टर किशोर रावत (आदित्य श्रीवास्तव) को अहसास होता है कि रिषभ की हत्या हुई है. वह जांच शुरू करते हैं. शक की सुई रानी पर है.

लेखन व निर्देशनः

पिछले कुछ दिनों से मीडिया में इस बात को प्रचारित किया जाता रहा है कि पहली बार किसी लेखक को सम्मान मिला है. क्योंकि फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’के ट्रेलर व पोस्टर में लेखक कनिका ढिल्लों का नाम दिया गया. जबकि अब तक ऐसा नही होता था. यदि यह बदलाव फिल्म इंडस्ट्री में आता है,तो वह स्वागत योग्य है. हम चाहेंगे कि इसी तरह हर फिल्म में लेखक का नाम प्राथमिकता के साथ दिया जाए.

मगर हमें इस बात को नजरंदाज नही करना चाहिए कि फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’ के निर्माताओं में से एक हिमांशु शर्मा,लेखक कनिका ढिल्लों के निजी जीवन के पति हैं.

फिल्म ‘‘हसीन दिलरुबा’’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इस फिल्म की कहानी,पटकथा व संवाद लेखक कनिका ढिल्लों ही हैं. इस फिल्म को देखते हुए कनिका ढिल्लों की कुछ वर्ष पहले की ‘पति पत्नी और वह’ के इर्द गिर्द घूमने वाली फिल्म ‘‘मनमर्जियां’’ की याद आ जाती है, जिसमें तापसी पन्नू के साथ अभिषेक बच्चन और विक्की कौशल थे.

फर्क सिर्फ इतना है कि ‘हसीन दिलरूबा’में मर्डर मिस्ट्री व रहस्य का तत्व जोड़ दिया गया है. अन्यथा फिल्म ‘मनमर्जिया’ में पति,पत्नी व प्रेमी का चरित्र जिस तरह का था, ठीक उसी तरह से ‘हसीन दिलरूबा’ में भी है. ‘मनमर्जियां’की ही तरह ‘हसीन दिलरुबा’ में पत्नी अपने पति से स्वीकार करती है कि प्रेमी संग उसके शारीरिक संबंध रहे हैं. ‘मनमर्जियां’की ही तरह ‘हसीन दिलरूबा’में टूट कर प्यार करने वाला पति,कामेच्छुक पत्नी व उच्श्रृंखल व हमबिस्तर होने को आमादा प्रेमी है. लेकिन ‘हसीन दिलरूबा’ में कसावट नही है.

फिल्म में रोमांच है,मगर बीच में फिल्म बोझिल हो जाती है. यह लेखक व निर्देशक दोनो की मात है. कई घटनाक्रम विश्वसनीयता व तार्किकता से कई गुना परे हैं. क्लायमेक्स भी गड़बड़ है. बतौर निर्देशक विनील मैथ्यू बुरी तरह से मात खा गए.

फिल्म के कुछ संवाद ठीक ठाक हैं. मसलन-‘अमर प्रेम वही है जिस पर खून के हल्के हल्के-से छींटे हों, ताकि उसे बुरी नजर न लगे. ’ अथवा ‘होश में तो रिश्ते निभाए जाते हैं. ’

कैमरामैन का काम भी औसत दर्जे का है.

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अभिनयः

तापसी पन्नू के अंदर अभिनय क्षमता की कमी नही है. आत्मग्लानि से भर कर अपराध को स्वीकार करने वाली गृहिणी के रूप में तापसी जरुर प्रभावित करती हैं. मगर कई दृश्यों में वह वह खुद को दोहराते हुए ही नजर आती हैं. इससे बचने के लिए तापसी को मुंबइया फिल्म मेंकिंग से दूरी बनाने की जरुरत है.

विक्रांत मैसे 2008 से टीवी व फिल्मों में अभिनय करते आ रहे हैं,पर पता नहीं क्यों वह बार बार किरदार व फिल्मों का चयन गलत करते जा रहे हैं.

इस फिल्म में नील के छोटे किरदार में भी हर्षवर्धन राणे अपने अभिनय का जलवा दिखाकर दर्शकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं. आदित्य श्रीवास्तव,दयाशंकर पांडे आदि कलाकार ठीक ठाक हैं.

समर का बर्थडे मनाएगी अनुपमा तो काव्या करेगी बच्चे की प्लानिंग

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में जल्द ही पार्टी का माहौल नजर आने वाला है. दरअसल, सीरियल में जल्द ही समर का बर्थडे सेलिब्रेट किया जाएगा. तो वहीं काव्या की एक बात से वनराज हैरान हो जाएगा, जिसके चलते इस दौरान काफी फैमिली ड्रामा देखने को भी मिलेगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

बच्चे की प्लानिंग पर होगी वनराज-काव्या की लड़ाई

अब तक आपने देखा कि काव्या के राशन मंगाने को लेकर बा गुस्से में नजर आती है, जिसके कारण काव्या भी तिलमिला जाती है. वहीं वह वनराज को भी खरी खोटी सुनाती है. इसी बीच अपकमिंग एपिसोड में काव्या अपने बच्चे की प्लानिंग की बात कहती नजर आएगी. दरअसल, काव्या, वनराज से फाइनेशियल प्लानिंग की बात कहेगी. साथ ही ये भी कहेगी कि उन्हें खुद के लिए और अपने होने वाले बच्चे के लिए प्लानिंग करनी होगी, जिसे सुनकर वनराज के होश उड़ जाएंगे.

 

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समर के बर्थडे पर नाचेगी अनुपमा

जल्द ही सीरियल में अनुपमा और वनराज अपने बेटे समर का जन्मदिन सेलिब्रेट करेंगे. इस दौरान पूरा परिवार बर्थडे सेलिब्रेट करेगा. वहीं अनुपमा इस सेलिब्रेशन में फैमिली संग समर के लिए डांस करते हुए भी नजर आएगी. वहीं इस दौरान अनुपमा बा से समर-नंदिनी के रिश्ते को स्वीकार करने के लिए भी कहती नजर आएगी.

सेलिब्रेशन की फोटोज हुई वायरल

 

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अपकमिंग एपिसोड में होने वाले सेलिब्रेशन की फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. अनुपमा के सेट से वायरल हुई फोटोज में पूरा शाह परिवार सजधजकर मस्ती करता नजर आ रहा है. वहीं इस दौरान औफस्क्रीन सेल्फी और फोटोज का सिलसिला जारी रहा, जिसकी झलक सितारों ने सोशलमीडिया पर फैंस को भी दिखाई.

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Romantic Story: सार्थक प्रेम- भाग 2- कौन था मृणाल का सच्चा प्यार

कहानी- मधु शर्मा

मृणाल ने इस बार बहुत धीमी और डरी आवाज में पूछा, ‘तो फिर आप मुझे कैसे जानते हैं?’ उस ने इस बार भी मृणाल के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया. उस की इस खामोशी और गंभीरता ने मृणाल के दिमाग में एक द्वंद्व पैदा कर दिया कि यह व्यक्ति कैसे जानता है मुझे, मैं कहां मिली हूं इस से. फिर खुद को संभालते हुए बड़ी भद्रता के साथ फिर बात शुरू की. ‘सर, प्लीज आप बताइए न, आप मुझे कैसे जानते हैं, अगर आप मुझ से कभी मिले ही नहीं.’

‘मैं ने कब कहा कि मैं आप से कभी नहीं मिला.’

अरे, अभी तो कहा आप ने.’

‘आप ने शायद ठीक से सुना नहीं. मैं ने कहा, आप मुझ से कभी नहीं मिलीं.’

‘हां, तो एक ही बात है.’

‘एक  बात नहीं है.’ उस ने फिर से गंभीरता से जवाब दिया और मृणाल उस के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करने लगी.

उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह जाने कि वह कौन है और उस व्यक्ति के चेहरे के भावों ने मृणाल के मन और दिमाग में जो अंतर्द्वंद्व पैदा कर दिया था, वह उन पर भी नियंत्रण नहीं रख पा रही थी. फिर अचानक उस के मुंह से निकल गया, ‘क्या करते हैं सर, आप यह तो बता दीजिए?’

और बहुत देर बाद उस ने फिर मुसकराहट के साथ जवाब दिया, ‘कुछ खास नहीं. आजकल कुछ लिखना शुरू किया है.’

‘मतलब आप किसी पत्रिका या फिर किसी तरह के लेख लिखते हैं. कुछ बताइए न अपने बारे में? दरअसल, मुझे भी पढ़नेलिखने का काफी शौक है.’

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‘मैं जानता हूं,’ उस व्यक्ति ने कहा. मृणाल ने इस बार चौंकते हुए ऊंची आवाज में कहा, ‘क्या आप यह भी जानते हैं. अब तो आप को अपने बारे में बताना ही पड़ेगा, नहीं तो मैं आप का पीछा नहीं छोड़ने वाली.’ मृणाल एक अबोध बच्चे की तरह जिद करने लगी. वह भूल गई कि वह एक अजनबी से बात कर रही है.

वह मृणाल की ओर प्रेम, स्नेह और वात्सल्य के भाव से गौर से देख कर हलके से मुसकराए जा रहा था और मृणाल ने भी अब तक अपने जीवन में किसी को भी अपने लिए इन तीनों भावों को एकसाथ लिए नहीं देखा था. फिर मृणाल ने खुद को संभालते और परिपक्वता दिखाते हुए पूछा, ‘बताइए न सर, जब तक आप बताएंगे नहीं, मेरे दिमाग के घोड़े दौड़ते रहेंगे.’

‘अरेअरे, आप परेशान मत होइए, मैं आप को परेशान बिलकुल नहीं करना चाहता. दरअसल, मैं एक लेखक हूं, छोटीमोटी कहानियां लिख लेता हूं. जैसे शायद आप ने पढ़ी हों और अपनी लिखी हुई कुछ कहानियों के शीर्षक वह मृणाल को बताने लगा.’

‘अच्छा, आप अनय शुक्ला हैं. सर, मैं तो आप की बहुत बड़ी फैन हूं. आप के लिखे कुछ उपन्यास मैं ने पढ़े हैं और आप का लिखा ‘एकतरफा प्रेम’ तो मुझे बहुत पसंद है.

‘लेकिन सर आप इतने बड़े सैलिब्रिटी हैं आप को कौन नहीं जानता पर आप मुझे कैसे जानते हैं. मैं तो एक सामान्य सी महिला हूं, जिसे घरपरिवार और अपने कार्यस्थल के चुनिंदा लोग ही जानते हैं. कभी किसी सामाजिक गतिविधि में भी मैं भाग नहीं लेती. मेरे लिए तो मेरा काम और मेरा घर बस यही मेरा जीवन है. बहुत सीमित सा दायरा है मेरा. फिर आप मुझे कैसे?’ कहते हुए मृणाल वहीं रुक गई. अपनी बात को पूरी किए बिना और इंतजार करने लगी उस के जवाब का पर वह कुछ सैकंड बोला नहीं, फिर उस ने बोलना शुरू किया.

‘देखिए मैडम, दरअसल आप मुझे नहीं जानतीं और अगर आज मेरे बारे में पता चला है तो मेरे काम से, यह काम भी मैं ने पिछले कुछ वर्षों से शुरू किया है. आप को याद है करीब 10 साल हुए होंगे आप उदयपुर में रहती थीं.’ उस की बातचीत काटते हुए मृणाल बोली, ‘हां, मेरे पति की 10 साल पहले उदयपुर में पोस्टिंग थी.’ फिर वह चुप हो गई. उसे लगा जैसे बीच में बात काट कर उस ने ठीक नहीं किया. उस व्यक्ति ने फिर से बोलना शुरू किया, ‘आप को याद है आप जहां रहती थीं वहां आप के बिलकुल बगल में एक बंगला था…’

‘हां, उस के मालिक पुणे में रहते थे,’ मृणाल ने कहा.

‘जी, उस समय मैं एक आर्किटैक्ट था. उस बंगले के रीकंस्ट्रक्शन का काम मैं ने ही करवाया था. इसलिए कुछ महीने मैं वहां रहा था. बगल वाले बंगले में मैं ने आप को अकसर बरामदे में बैठ कर कुछ पढ़तेलिखते या यों कह सकते हैं कि शायद आप की कुछ गतिविधियां जो मैं देख पाता था, देखता था.’

‘सर, इतने साल बाद भी मैं आप को याद हूं. ऐसे तो हम कितने लोगों को रोज देखा करते हैं. मुझे तो कोई ऐसे याद नहीं रहता. आप की याददाश्त तो कमाल की है, सर, तभी आप आज यहां हैं.’ मृणाल ने कहा.

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‘नहीं, ऐसा नहीं है. हर कोई मुझे भी याद नहीं रहता पर…’ कहतेकहते वह चुप हो गया. मृणाल उस की तरफ देखने लगी कि शायद वह कुछ और बोले पर वह नहीं बोला. इतने में पायलट ने अनांउस किया कि फ्लाइट लैंडिंग की ओर है.

फ्लाइट थोड़ी देर में लैंड कर चुकी थी. सभी यात्री एयरपोर्ट से बाहर जा रहे थे. मृणाल भी टैक्सी का इंतजार करने लगी. इतने में एक टैक्सी आ कर उस के सामने रुकी पर उस में कोई पहले से ही बैठा हुआ था. देखा तो वह अनय शुक्ला ही थे. उन्होंने टैक्सी का दरवाजा खोला और बाहर आ कर मृणाल से बोले, ‘कहां जाना है आप को, मैडम, मैं छोड़ देता हूं.’

‘पर आप को कहीं और जाना होगा,’ मृणाल ने कहा.

‘नहीं, कोई बात नहीं, आप को छोड़ते हुए निकल जाऊंगा. ऐसी कोई जल्दी नहीं है मुझे.’

‘दरअसल, मुझे रेलवे स्टेशन जाना है. साढ़े 5 बजे की ट्रेन है मेरी अलवर के लिए,’ मृणाल ने कहा.

‘पर अभी तो 2 बजे हैं और शायद आप ने अभी लंच भी नहीं किया है, अगर आप को एतराज न हो तो हम क्या साथ में लंच कर सकते हैं.’

मृणाल की तो खुशी का ठिकाना नहीं था. इतने बड़े उपन्यासकार ने आज उसे अपने साथ लंच के लिए इनवाइट किया है. मृणाल सोचने लगी, प्रणय को जा कर सब बताएगी क्योंकि जब भी वह उस के नोवल पढ़ती, प्रणय गुस्सा करने लगता और मजाक में तंज कस देता कि जितनी गहराई से इस अनय शुक्ला को पढ़ती हो कभी हमें भी पढ़ लिया करो.

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छोटी-छोटी बातों पर गुस्से में उबल क्यों पड़ते हैं युवा?

क्या युवाओं को बाकी लोगों से ज्यादा गुस्सा आता है? इस सवाल का जवाब है- जी, हां! बहुत ज्यादा आता है. दुनिया में रोड रेज के जितने मामले सामने आते हैं, चलती फिरती जितनी मार कुटाइयां होती हैं, उनमें 90 फीसदी में से ज्यादा में युवकों की भागीदारी होती है. शायद इसीलिए कहा जाता है कि युवावस्था में गुस्सा नाक पर रखा रहता है. लेकिन यह बात सिर्फ युवकों पर लागू होती है, युवतियों पर नहीं. लड़कियां युवावस्था में भी उतनी गुस्सैल नहीं होतीं, जितने कि युवक. यह कोई संयोग नहीं है और न ही इसमें परवरिश का कोई खेल है. अगर शोध, अध्ययनों की मानें तो इसके लिए मेल बायोलाॅजी जिम्मेदार है.
इसका कारण यह है कि युवकों में एक खास किस्म का हार्मोंस होता है. जिनमें इसका स्तर कम होता है, वे युवा, उन युवाओं से कम झगड़ालू होते हैं, जिनमें यह हार्मोन ज्यादा होता है, जिसे हम टेस्टोस्टेरोन कहते हैं. टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर सबसे अधिक 19 से 30 वर्ष के युवाओं में होता है. इसी उम्र के युवा सबसे ज्यादा लड़ते-झगड़ते हैं. चूंकि महिलाओं में यह न के बराबर होता है, इसलिए इसी उम्र की महिलाएं लड़ाई झगड़े से दूर रहती हैं. इस हार्मोन की उपस्थिति से पुरुषों में आपस में प्रतिस्पर्धा का भाव जन्म लेता है, जो एक अवस्था पर पहुंचने के बाद झगड़े या दुश्मनी में बदल जाता है. पुरुषों में सहनशक्ति का कम होना भी इसी रसायन के कारण होता है.

मैलकाॅम पाॅट्स ने अपनी पुस्तक ‘सेक्स एंड वारः हाऊ बायोलाॅजी एक्सप्लेन्स वार एंड औफर्स ए पाथ आफ पीस’ में टेस्टोस्टेरोन माॅलीक्यूल को ही बड़े-बड़े जनसमुदाय के विनाश का कारण बताया है. पाॅट्स, कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी में पाॅपुलेशन और फैमिली प्लानिंग के प्रोफेसर हैं. उन्होंने इस तथ्य की खोज उस समय की जब एक स्पेनी मनोविज्ञानी और यूनेस्को के एंथ्रोपोलोजिस्ट ने बयान दिया कि यह तर्क वैज्ञानिक रूप से गलत है कि इंसान को युद्ध करने के गुण पूर्वजों से मिले, जो एक समय में जानवर थे. पाॅट्स कहते हैं कि यह बात सही है कि पुरुष एक शांत जीव नहीं है. यह प्राणी बहुत कम समय में ही खतरनाक रूप धारण कर सकता है. आदिकाल में युद्धों के दौरान जो भी नरसंहार या बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ बलात्कार होते थे, उसकी वजह कोई एक संस्कृति या सभ्यता नहीं थी बल्कि यह सब कुछ टेस्टोस्टेरोन माॅलीक्यूल के कारण होता है.

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पाॅट्स की बात को सही साबित करने के लिए भारतीय पौराणिक ग्रंथ महाभारत का उदाहरण दिया जा सकता है. पाॅट्स के अनुसार यह रसायन 19 से 30 वर्ष में पुरुषों में ज्यादा सक्रिय रहता है. यही कारण था कि महाभारत के युद्ध में शामिल सभी बुजुर्ग योद्धा उतने जोश से नहीं लड़ते थे. लड़ाई को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह युवाओं में ही दिखता था. इस युद्ध में जिस वीरता का परिचय सबसे कम आयु के अभिमन्यु ने दिया था, उसके आगे तो अर्जुन भी फीके पड़ गए थे. युवा अभिमन्यु में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर सबसे ज्यादा था, जिसके कारण उनमें युद्ध को लेकर एक अलग ही जोश था. मानव की जन्म प्रक्रिया पर लंबे समय से अध्ययन कर रहीं एन गिब्सन कहती हैं कि यह बात बिल्कुल सही है कि इंसान में दया और अच्छाई जैसे गुण भी हार्मोन्स और जीन के करण ही होते हैं; लेकिन इसी के साथ इसमें भी कुछ गलत नहीं है कि कई सदियों से ही इंसान खून-खराबा, मारपीट, यहां तक की अपनी ही प्रजाति को भोजन भी बनाता रहा है यानी अच्छाई के साथ उसमें बुराई के गुण भी शुरूआती दौर से थे. इन गुणों का भी कारण जीन या रसायन ही है, न कि विचाराधारा.

हमने यह अकसर ही देखा है कि किसी खतरनाक गतिविधि में युवा ही शामिल होते हैं, इसके पीछे वजह होती है उनके शरीर में मौजूद जेंडर हार्मोंस का उच्चतम स्तर. हैरानी की बात यह है कि हार्मोंस का यह स्तर अलग-अलग समाज के लोगों में भिन्न-भिन्न होता है. पाटॅ्स के इस शोध से यह तो साबित होता है कि पुराने समय में हुए युद्ध का कारण मनोविज्ञान नहीं बल्कि जीवविज्ञान रहा है; लेकिन आधुनिक युग में इस शोध का उतना महत्व नहीं है. आज के समय में युद्ध की परिभाषा काफी बदल चुकी है. अब लोग जज्बातों से कम और दिमाग से ज्यादा सोचते हैं. ऐसी स्थिति में लड़ाई भी दिमाग से ही लड़ी जाती है. शरीर में टेस्टोस्टेरोन माॅलीक्यूल का आज के समय में एक ही नुकसान नजर आता है. वह है युवा पीढ़ी में बढ़ता गुस्से का स्तर. अगर इस माॅलीक्यूल की मदद से ही इसके प्रभाव केा कम करने या इसका कोई तोड़ निकाला जा सके तो इस शोध का बड़ा फायदा उठाया जा सकता है, वर्ना यह शोध आज के परिदृश्य में कुछ खास मायने नहीं रखता. इसके जरिए यह मालूम हो चुका है कि आदिकाल से लेकर अब तक जो भी युद्ध हुए हैं उनकी वजह कुछ लोगों की सोच या शैतानी दिमाग नहीं बल्कि पुरुषों के शरीर में मौजूद टेस्टोस्टेरोन हार्मोन्स रहा हैं जिसने उन्हें गुस्सैल और आक्रामक स्वाभाव का बनने को मजबूर कर दिया.

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Monsoon Special: मानसून में अपनी खूबसूरती को निखारें

वर्षा का मौसम प्यार और रोमांस का मौसम भी कहा जाता है, इस मौसम में कैसा मेकअप करे, कैसे अपने आपने स्किन का देख-भाल करे , आईये जानते है :-

1. खूबसूरती टिप्स

बरसात के मौसम में मौसम के मिजाज को देखकर मेकअप करे ताकि आपने सौन्दर्य में कोई कमी ना रह जाये. इस मौसम में मेकअप करते की तो बहुत एहतियात बरतने की जरूरत है. कहीं ऐसा न हो कि बारिश की बूंदें आपका सारा मेकअप अपने साथ बहा ले जाएं. फाउंडेशन के बजाय फेस पाउडर लगाना समझदारी होगा. आँखों के लिए इस्तेमाल होने वाले संधानों जैसे आईलाइनर या मस्कारा वगैरह के लिए इनकी वाटरप्रूफ रेंज भी मार्केट में आ रही है. इससे आपका मनचाहा मेकअप भी हो जाएगा और रिमझिम फुहारों का मजा भी आप ले सकेंगी. इस मौसम का आनंद लेते हुए बालों का खास खयाल रखने की जरूरत है. इस सीजन के दौरान बालों में जैल इत्यादि का प्रयोग न करें क्योंकि इस मौसम में जुएँ और डैंड्रफ होने की आशंका रहती है. बेहतर होगा कि हल्के गुनगुने तेल की मालिश लें. यदि आप बाल लंबे है, तो उन्हें बाँधकर रखना ही बढ़िया उपाय है.

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2. स्किन केयर

इस मौसम में होने वाली सभी बीमारियों से बचने के लिए त्वचा की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. कम से कम दिन में दो बार साबुन लगाकर नहाना चाहिए. यदि आप बैचलर है, तो दूसरे के तौलिए और कपड़ों का प्रयोग से बचे. अपने त्वचा पर पसीना न ठहरने दें, किसी साफ कपड़े से पसीना पोंछते रहें. पसीनो से बचाने के लिए आप टेलकम पावडर, एंटी पर्सपीरेंट स्प्रे और डियोडोरेंट का उपयोग कर सकते है.

3. रखे इन बातो का ख्याल

आप बारिश से भीग जाते है,तो आने के बाद अच्छे पानी से एक बार और नहा ले. क्यों कि बारिश का पानी पदूषित होता है. यह बालों को नुकसान पहुंचा सकता है. अगर बच्चे बारिश में भींग कर आते है, तो उन्हें भी नहलाने के बाद टॉवल से अच्छी तरह पौंछकर उन्हें साफ-सुथरे कपड़े पहनाएं. और हो सके तो गर्मागरम सूप पिलाकर उन्हें कुछ देर सोने की सलाह दे दें. इससे वह बीमार नहीं पड़ेंगे. बारिश के मौसम में गर्मी से राहत तो मिलती है लेकिन साथ ही यह लापरवाही बरतनें पर शारीरिक नुकसान भी पहुंचा सकता है. इसलिए इस मौसम का आनंद लेने के लिए सावधनी बरतें.

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Romantic Story: कैसे कैसे मुखौटे-भाग 4- क्या दिशा पहचान पाई अंबर का प्यार?

 दिशा अब चुप नहीं रह सकी. थरथरायी आवाज़ में ग़ुबार निकालते हुए बोली, “मुझे आज बहुत हैरत हो रही है. आप सब कितने स्वार्थी हैं. अम्बर को क्या एक खिलौना समझ रखा है आपने कि जब ज़रूरत पड़ी बेटी के हाथ में थमा दिया और जब बेटी को उससे दूर करना था तो तोड़-मरोड़ कर फेंकने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया. जब मैं अम्बर को चाहती थी तब आपको सिर्फ़ उसकी नीची जाति दिखाई दे रही थी, उसके गुण नहीं. यह कैसे हो सकता है कि पहले मेरी भलाई अम्बर से रिश्ता तोड़ने में थी और अब अम्बर से रिश्ता जोड़ने में? कहां गया अब वह ऊंची जाति का दंभ? आप में अचानक आया यह बदलाव तो वह मुखौटा है जो आज अपनी तलाकशुदा बेटी पर उठ रही समाज की उंगलियों से बचने के लिये आपको लगाना पड़ रहा है. बोलो यही सच है ना?” बात पूरी होते-होते दिशा फूट-फूट कर रोती हुई अपने कमरे में चली गयी.

रात को सोने से पहले अम्बर को ‘सब ठीक है’ का मैसेज भेज वह सोचने लगी, ‘कितना अच्छा होता कि परिवार वाले उसी समय मान गए होते ! आज वह सबको बोझ तो न लगती और अम्बर उसका होता.’ अपने ज़ख्मों पर अम्बर की यादों की मरहम लगाते हुए उसे कब नींद आ गयी पता ही नहीं लगा.

अगले दिन औफ़िस में बैठे हुए भी अम्बर की याद उसे बेचैन कर रही थी. बार-बार कुणाल की शादी का कार्ड निकाल वह गणना करने लगती कि कितने दिनों बाद वह अम्बर के साथ एक सुकून भरी लम्बी शाम बिता सकेगी. दिशा को आज वह पल बहुत याद आ रहा था जब समुद्र किनारे पहली बार दोनों ने प्यार का इज़हार किया था. उसके मन में कुछ पंक्तियां गूंजने लगीं. पर्स में से पेन और कुणाल वाला कार्ड निकालकर उसने भावों को लिपिबद्ध कर दिया…..

समन्दर किनारे बीता भीगा पल याद आता है,

एक-दूजे को यूं ही सा चाहना याद आता है!

मेरा वो ठहरा सा बचपन और नदी सा अल्हड़पन,

किनारा बनकर तुम्हारा समेटे रखना याद आता है!

रेत पर लिखकर नाम दोनों का उंगलियों से अपनी,

घरौंदा छोटा सा पैरों पर बनाना याद आता है!

महक कुछ अलग सी आयी थी उन फूलों से,

बालों में तुम्हारा उनको लगाना याद आता है!

सहारे बहुत ज़िन्दगी ने यूं तो दिए हैं मुझको भी,

जाने क्यों कांधे पर तेरे सिर टिकाना याद आता है!

कार्ड और पेन पर्स में वापिस रख दिशा ने मेज़ पर सिर टिका डबडबायी आंखों को मूंद लिया.

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कुणाल की शादी के दिन दिशा ने आधे दिन की छुट्टी ले ली थी. शाम को अम्बर का मैसेज आते ही वह घर से निकल पडी. अम्बर बाहर कार में प्रतीक्षा कर रहा था. दिशा बहुत दिनों बाद किसी फ़ंक्शन के लिए तैयार हुई थी. अम्बर चांद से चमकते उसके चेहरे को देखता ही रह गया. कढ़ाई वाली गुलाबी नैट की साड़ी के साथ कुंदन और मोतियों से बने नैकलेस सैट में वह किसी अप्सरा सी दिख रही थी. अम्बर को आसमानी कुर्ते और फ्लोरल प्रिंट की जैकेट में देख दिशा का मन भी रीझे जा रहा था. वहां पहुंचकर दोनों दूल्हा-दुल्हन को बधाई देने एक साथ स्टेज पर गये, दोनों ने खाना भी साथ-साथ खाया और रौनक भरे माहौल का एक साथ आनंद लेते रहे. रात को दिशा को घर छोड़ते समय अम्बर ने बताया कि कल वे शाम को नहीं मिल सकेंगे क्योंकि औफ़िस से वह सीधा घर जायेगा. एक लड़की से इन दिनों रिश्ते की बात चल रही है, वही अपने मम्मी-पापा के साथ आएगी. मोबाइल में अम्बर ने दिशा को उसकी तस्वीर भी दिखाई. एक ख़ूबसूरत लड़की से अम्बर के रिश्ते की बात चलती देख दिशा अन्दर ही अन्दर मायूस हो रही थी, किन्तु बेबसी को छुपाते हुए बोली, “इस बार हां कर ही देना अम्बर. लड़की अच्छी लग रही है और जौब भी नोएडा में कर रही है. तुम दोनों को किसी तरह की परेशानी नहीं होगी.” अम्बर मुस्कुरा कर रह गया.

अगले दिन सुबह औफ़िस के लिए निकलने से पहले अम्बर अपनी कार साफ़ कर रहा था. सीट पर कुणाल की शादी का कार्ड रखा था जो कल उसने दिशा से ऐड्रेस देखने के लिए मांगा था. अम्बर कार्ड फाड़कर फेंक ही रहा था कि दिशा के लिखे शब्दों पर उसका ध्यान चला गया. हाथ में कार्ड ले उसने पूरी कविता एक सांस में पढ़ डाली. पढ़कर अम्बर को ऐसा लगा जैसे किसी कुशल चितेरे ने कूची से समुद्र किनारे सालों पहले बीते उस अमूल्य पल को जीवंत कर दिया हो. शब्द-शब्द से प्रेम छलक रहा था. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दिशा अब भी उससे इतना प्यार करती है. अम्बर तो दिशा का साथ हमेशा से ही पाना चाहता था, लेकिन उसे लगता था कि वह किस्सा तो कब का खत्म हो चुका है. उसने बिना देर किये दिल की धड़कनों पर काबू रख दिशा को लंच में मिलने का मैसेज कर दिया.

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लंच टाइम से पहले ही वह कौफ़ी-शॉप में बैठकर अधीरता से दिशा की प्रतीक्षा करने लगा.

“अरे, अच्छा हुआ कि तुमने लंच में मिलने का कार्यक्रम बना लिया. मैं सुबह से बोर हो रही थी. औफ़िस में भी कुछ ख़ास करने को नहीं था आज.” आते ही दिशा मुस्कुराकर बोली.

अम्बर तो जैसे सोचकर ही बैठा था कि उसे क्या कहना है. दिशा की ओर एक मिनट तक चुपचाप मुस्कुराकर देखने के बाद उसने बोलना शुरू किया, “दिशा, कुछ सालों पहले कितना प्यारा था हमारा जीवन. दोनों निश्छल, एक-दूजे में खोये रहते थे. फिर हमें मजबूर होकर दुनिया के बनाये नियमों का मुखौटा लगाना पडा और हम एक-दूसरे के लिए अजनबी से बन गए. तुम्हारी जिंदगी में विक्रांत आया जो शराफ़त का मुखौटा लगाये था. उससे तुम कितनी आहत हुईं, लेकिन अपने अन्दर की घायल दिशा को छुपाने के लिए तुमने दुनिया के सामने एक नौर्मल इंसान बने रहने का और फिर घरवालों को खुश देखने के लिए एक हंसती-खेलती लड़की का मुखौटा लगा लिया. और मैं…..लाख चाहकर भी तुम्हें अपने मन से कभी निकाल नहीं पाया, लेकिन जब तुम मिलीं तो एक दोस्त का मुखौटा लगाकर मिलता रहा तुमसे. कल तुम्हारी लिखी कविता ने मेरी आंखें खोल दीं. मुझे एहसास हुआ कि मेरे सामने तुम भी दोस्ती का मुखौटा लगाकर आती हो. कहीं ऐसा न हो कि मुखौटे चढ़ाते-चढ़ाते हम अपने असली किरदार को ही भूल जाएं. मन में जो प्रेम है वह खो जाये. दिशा, मैं तो उतार देना चाहता हूं आज अपना मुखौटा….प्लीज़ तुम भी उतार दो. अब मैं उस दिशा से मिलना चाहता हूं जिसके सिर चढ़कर मेरे इश्क़ का जादू बोलता था. असली दिशा से मिलना चाहता हूं मैं आज !”

“अम्बर, विक्रांत से शादी और फिर तलाक़. इन बातों ने मुझे अन्दर तक छलनी कर दिया था. गोआ में तुम क्या मिले कि एक बार फिर मेरी ज़िंदगी गुलज़ार हो गयी. यह अहसान ही क्या कम था कि फिर से दोस्त बनकर मेरा दुःख बांटा तुमने. किस मुंह से कहती कि किसी की पत्नी बनने के बाद भी तुमसे प्यार करती हूं ?” अंतिम वाक्य बोलते हुए दिशा की रुलाई फूट पड़ी.

“दिशा, किसी की पत्नी क्या तुम अपनी मर्ज़ी से बनी थीं? समाज के जो लोग जाति-पाति का भेद मन में रखते हैं, वे स्वयं तो आडम्बर का मुखौटा पहनकर रखते ही हैं, हम जैसे लोगों को भी ऐसे मुखौटे पहनने को मज़बूर कर देते हैं. लेकिन वे भूल जाते हैं कि मुखौटा केवल चेहरे पर पहनाया जा सकता है, मन पर नहीं. दिल से हमेशा मैं तुम्हारा था और तुम मेरी. अब दुनिया के सामने भी एक हो जायेंगे हम.”

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“अम्बर, क्या तुम्हारे घरवाले एक तलाकशुदा से…..”

“परवाह नहीं मुझे.” दिशा की बात बीच में काटते हुए अम्बर बोला. “आज हम दोनों इस समाज के बनाये हर उस उसूल को ठुकरा देंगे जो एक प्यार को बेसिर पैर के नियमों से बने मुखौटे पहनने को विवश करता है. तुम्हारा साथ चाहिए बस.”

दिशा ने गीली आंखों से अम्बर को देखा और उसकी हथेली को अपने लरज़ते गर्म होंठों से छू लिया.

बन्धनों का मुखौटा उतार वे एक-दूजे का हाथ थामे कौफ़ी-शॉप से बाहर निकल पड़े.

Monsoon Special: बारिश में बनाएं रेड कैबेज पकौड़े

बारिश का मौसम प्रारम्भ हो चुका है और रिमझिम फुहारों के बीच पकौड़े खाने का मजा भी कुछ अलग ही होता है. आमतौर पर हम प्याज, आलू या मिक्स वेज पकौड़े बनाते हैं पर आज हम आपको इन सबसे अलग रेड कैबेज अर्थात रेड या पर्पल कैबेज के पकोड़े बनाना बता रहे हैं जो सेहतमंद भी हैं और स्वादिष्ट भी. रेड कैबेज में विटामिन के और फाइबर प्रचुर मात्रा में तथा जिंक, मैग्नीशियम और आयरन अल्प मात्रा में पाए जाते हैं. वजन कम करने के इच्छुक लोंगों को इसे अपनी डाइट में अवश्य शामिल करना चाहिए. आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए           4

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                       वेज

सामग्री

कटा रेड कैबेज               500 ग्राम

कटा प्याज                     1

कटी हरी मिर्च                  4

कटी अदरक                    1 गांठ

कटी हरी धनिया                1 टेबलस्पून

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बेसन                               1 कप

चावल का आटा                1/2 कप

नमक                               स्वादानुसार

हींग                                 1 चुटकी

जीरा                                1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर               1/2 टीस्पून

गरम मसाला                      1/2 टीस्पून

चाट मसाला                       1/2 टीस्पून

तलने के लिए तेल

विधि

तेल को कड़ाही में गर्म होने रखें. अब एक बाउल में समस्त सामग्री को एक साथ अच्छी तरह मिलाएं. 1/4 कप पानी मिलाकर गाढ़ा घोल तैयार करें. गर्म तेल में से 1 चम्मच गर्म तेल मिलाएं. अब तैयार घोल में से चम्मच से पकौड़े गर्म तेल में डालें. धीमी आंच पर सुनहरे होने तक तलकर बटर पेपर पर निकालें. स्वादिष्ट पकौड़ों को हरी चटनी या टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

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धर्म की टेढ़ी नजर तो पड़नी ही थी

लोगों की सैक्सुअल चौइस क्या हो, यह फैसला करना  समाज, पुलिस, पेरैंट्स का काम था धर्म का कतईर् नहीं. संविधान का अनुच्छेद 21 सब को अपनी मरजी से जीवन जीने का अधिकार देता है और इस में डिफरैंट सैक्सुअल पसंद रखने वाले होमो सैक्सुअल और लैस्बियन भी शामिल हैं. इन को बिना पुलिस या राजा के हस्तक्षेप आदर व सम्मान की जिंदगी जीने का बराबर का अधिकार है.

न्यायाधीश एन आनंद वैंकटेश एक ऐसे मामले में फैसला दे रहे थे जिस में घर से अपनी सैक्सुअल पसंद के कारण भाग कर आए 2 युवाओं को पुलिस वाले जबरन अस्पताल ले जा कर ट्रीटमैंट कराने की कोशिश कर रहे थे.

मातापिता, पुलिस अधिकारी व डाक्टर यदि युवाओं या किसी की पसंद को सम झ नहीं सकें तो यह उन्हें कुछ गलत करने का अधिकार नहीं देता. जज का कहना है कि होमो सैक्सुअल और लैस्बियन धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ न केवल साथ रहने को स्वतंत्र हैं, उन्हें वही डिग्निटी मिलेगी जो अन्य नागरिकों को मिलती है.

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उच्च न्यायालय ने पुलिस की ऐसे युवाओं को डाक्टरों के पास ले जा कर ‘मरम्मत’ कराने की कोशिश को एकदम असंवैधानिक बताया. उन का निजता का हक स्थापित किया और उन्हें अकारण पुलिस वालों का मुंह न देखना पड़े, यह आदेश भी दिया है.

हालांकि पुलिस वैसे ही काम करती रहेगी जैसे करती है. अगर कोई एफआईआर दाखिल होगी तो पुलिस बिना जानेपरखे नामजद लोगों को थाने में तलब कर लेगी और 2-4 दिन बिना कागज बनाए रख भी लेगी. हाई कोर्ट का आदेश किताबों में रहेगा और पुलिस वह करेगी जो उस की मरजी होगी.

असल में समलैंगिकता चाहे सदियों से समाज में है, धर्म को कभी पसंद नहीं आई क्योंकि इस संबंध में धर्म के दुकानदारों का हिस्सा नहीं रहता. न रस्में होती हैं, न बच्चे होते हैं, न कुंडली देखी जाती है, न होलीदीवाली उस तरह मनाई जाती है कि पंडित को चढ़ावा मिले.

धर्म के दुकानदारों के कहने पर इन जोड़ों को हिकारत की नजरों से देखा जाता है. जो खुद समलैंगिक है वह भी जोड़ों पर पत्थर मारने में लग जाता है ताकि उस का भेद किसी को पता न चल जाए. जितने सैक्स संबंध स्त्रीपुरुषों के बीच बनते हैं, उन के चौथाई स्त्रीस्त्री, पुरुषपुरुष के बीच भी बनते हों तो बड़ी बात नहीं. बस, इन का आंकड़ा जोड़ा नहीं जाता.

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जब एड्स फैलने लगा तो पहली बार गिनती शुरू हुई और सरकारों ने होमोसैक्सुअलिटी और लैस्बियनों को स्वीकार करना शुरू किया. ये समाज के लिए अलग से हों पर समाज को कोई नुकसान पहुंचाते हैं, ऐसा कोई सुबूत नहीं. इस से ज्यादा दुर्गंध तो धर्म के दुकानदार हम और उन में लड़ाई का सा माहौल बना कर फैलाते हैं.

Romantic Story: सार्थक प्रेम- भाग 3- कौन था मृणाल का सच्चा प्यार

कहानी- मधु शर्मा

मृणाल विचारों में डूबी ही थी कि अनय ने कहा, ‘मैं आप का नाम जान सकता हूं, मैम.’

‘जी, मृणाल, मृणाल जोशी नाम है मेरा.’

‘वैरी नाइस, आप के जितना नाम भी खूबसूरत है आप का.’

‘ओह, थैंक्यू सर’ तो आप को फ्लर्ट करना भी आता है? मैं तो सोचती थी आप बहुत गंभीर और संजीदा व्यक्ति होंगे. पर आप तो…’ और बीच में रुक गई.

‘पर आप तो कुछ लंफगे टाइप के हो, फ्लर्ट करते हो,’ कहते हुए अनय ने मृणाल के वाक्य को पूरा करने की कोशिश की.

‘नहींनहीं सर, मेरा वह मतलब नहीं था.’ दोनों जोर से हंसने लगे.

‘सर, सच में मैं आप को बता नहीं सकती मुझे आप से मिल कर कितना अच्छा लग रहा है.’

‘पर मुझ से ज्यादा नहीं,’ अनय ने कहा और एक बार फिर दोनों की हंसी ठहाकों में बदल गई.

‘सर, आप फिर फ्लर्ट कर रहे हैं.’

‘नहीं, मैं फ्लर्ट नहीं कर रहा, मृणाल.’ और कुछ सैकंड के लिए रुक कर अनय बोला, ‘मैं आप का नाम ले सकता हूं.’

‘जी, बिलकुल.’

‘मुझे अच्छा लगेगा अगर आप भी मुझे अनय कहेंगी.’

‘जी, मैं कोशिश करूंगी.’ अनय ने भी सिर हिला कर उस की बात को स्वीकार किया. क्योंकि अनय जानता था कि किसी भद्र महिला का एकदम से किसी अनजान व्यक्ति को नाम से बुलाना आसान नहीं होता.

बातें करतेकरते दोनों एक रैस्तरां में पहुंच गए और लंच और्डर कर दिया. जब तक लंच आता, मृणाल ने अनय से पूछा, ‘सर, आप को आप के लिखे उपन्यास में सब से पसंदीदा कौन सा है?’

‘जो आप को,’ अनय ने बिना कुछ सोचे तपाक से जवाब दिया.

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‘यानी एकतरफा प्रेम’, मृणाल बोली.

‘जी,’ अनय ने जवाब दिया.

फिर अनय ने मृणाल से पूछा, ‘अच्छा बताइए, वह आप को इतना पसंद क्यों है?’ मृणाल कुछ सैकंड के लिए रुकी, फिर बोली, ‘सर, दरअसल, उस में प्रेम का जो रूप आप ने अपने लेखन में चित्रित किया है मुझे वह बहुत पसंद आया कि नायिका को पता नहीं कि कोई उसे कितना प्रेम करता है. असल जिंदगी में तो हम अगर किसी को छोटी सी वस्तु भी देते हैं तो उम्मीद करते हैं कि बदले में हमें भी उस से कुछ मिले. पर वहां तो नायक का गहरा प्रेम है, बिना किसी शर्त के और बदले में किसी प्रकार की कोई चाहत नहीं. बस, प्रेम किए जा रहा है और नायिका को पता ही नहीं.

‘पर सर, एक बात मैं आप से कहूंगी कि उपन्यास का अंत अगर आप इस बात से करते कि किसी भी तरह नायिका को पता चल जाता कि कोई उसे कितना प्रेम करता है तो मेरे हिसाब से बात कुछ और ही होती.’

‘क्या बात, कुछ और होती. मैं कुछ समझा नहीं.’

‘नहीं सर, मेरा मतलब शायद कुछ लोग इस बात को ज्यादा पसंद करते.’

‘हो सकता है,’ अनय ने कहा.

‘अच्छा सर, आप ने नहीं बताया. आप को यह उपन्यास सब से पसंद क्यों है? और आप को कुछ भी लिखने की प्रेरणा कहां से मिली है?’

अनय कुछ देर के लिए रुका और फिर मुसकराते हुए बोलने लगा, ‘सच बताऊं या झूठ?’

मृणाल बोली, ‘सच ही बताइए,’

‘अच्छा सुनिए, मैं ने जो कुछ भी आज तक लिखा वह बहुत हद तक मेरी कल्पना या जो कुछ भी मेरे आसपास घटित होता था उसे अपनी लेखनी में उतारा पर यह उपन्यास मेरे जीवन की वास्तविकता है.’ यह कह कर अनय चुप हो गया और गौर से मृणाल के चेहरे के भावों को पढ़ने लगा. मृणाल स्तब्ध सी रह गई.

‘मतलब सर, इस कहानी के नायक आप हैं. यह सब कुछ आप के जीवन में घटित हो चुका है.’

‘हां, आप कह सकती हैं.’

मृणाल को समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या बोले. उस ने अनय की तरफ देखा. वह ऐसे सिर झुकाए बैठा था जैसे प्रेम में असफल हाराथका एक प्रेमी है जो आज भी यह चाहता है कि कैसे भी वह अपनी प्रेमिका का बता पाए कि उस ने उसे कितना और किस हद तक प्रेम किया. यह सब देख कर मृणाल खुद को रोक नहीं पाई. और उस ने बोलना शुरू किया.

‘माफ कीजिए सर, मुझे आप की जिंदगी में दखलंदाजी का कोई अधिकार नहीं है पर वास्तविक जीवन और एक उपन्यास में फर्क होता है. आप को नहीं लगता कि इंसान की अपने मन के प्रति भी एक जिम्मेदारी बनती है. उसे संतुष्ट करना भी उस का कर्तव्य है, जब तक कि आप के किसी कृत्य से किसी को कोई नुकसान न हो. आप जिस से प्रेम करते हैं कम से कम उसे बता तो देना चाहिए.’

‘हां, कोशिश तो कर रहा हूं,’ बहुत धीमी आवाज में अनय बोला. बीच में ही वेटर ने टेबल पर लंच रख दिया और बोला, ‘मैम, मैं सर्व करूं.’

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‘नहीं, हम कर लेंगे,’ कह कर मृणाल लंच सर्व करने लगी. अनय भी उस की मदद करने लगा और दोनों ने लंच किया. लंच करते हुए अनय बोला, ‘पता है मृणाल, कभी नहीं सोचा था कि जीवन में आप से यों फिर मुलाकात होगी और आप के साथ लंच भी कर पाऊंगा.’

‘आप ने कहा न कि नायक को भी तो आखिर इतने प्रगाढ़ प्रेम के बदले कुछ मिलना चाहिए. मैं ने सुना था कि इंसान अगर कुछ भी साफ नीयत और सच्चे मन से अपने जीवन में करता है तो उस का सकारात्मक परिणाम उसे जरूर मिलता है अपने जीवन में.

‘तुम सच कहती हो, सौरी, आप सच कहती हैं.’

‘नहीं सर, आप मुझे तुम कह सकते हैं,’ मृणाल ने अनय को टोकते हुए कहा.

‘थैंक्यू,’ बोल कर अनय ने बोलना शुरू किया, ‘जिस से हमें प्रेम हो जाए उस की परिस्थितियां ऐसी न हों कि वह हमारे प्रेम को स्वीकार कर पाए और हमारे साथ जीवन में आगे बढ़ सके, तो फिर क्या किया जाए? इसलिए मैं ने अब तक उसे नहीं बताया. पर अब सोचता हूं कि कह दूं उस से.’

मृणाल एकटक स्तब्ध सी अनय की तरफ देखे जा रही थी. उस की आंखों में कुछ सवाल थे जो उस के होंठों पर नहीं आ पा रहे थे. पर अनय ने उस की आंखों को पढ़ लिया और कहने लगा, ‘हां मृणाल, तुम ही हो जिसे मैं उस वक्त चाहने लगा था. उन दिनों सुबह से शाम तक जब भी तुम बाहर आतीजातीं, मैं तुम्हें देखता था. सच बताऊं तो मुझे नहीं पता मुझे तुम्हारी कौन सी बात, कौन सी खूबी इतनी भा गई पर जिस साथी की मैं ने अपने जीवन में कल्पना की थी, तुम बिलकुल वैसी थीं. और मैं ने जब भी तुम्हें अपने परिवार के साथ देखा, तुम बहुत खुश लगती थीं अपने जीवन में. इसलिए जब उस बंगले का काम खत्म हो गया तो बहुत टूटे मन से तुम्हें बिना कुछ बोले नैतिकता को ध्यान में रखते हुए वहां से चला आया.

‘और ऐसा नहीं कि मैं ने कोशिश नहीं की खुद को रोकने की तुम से प्रेम करने से पर मैं नाकाम रहा और तुम्हारे प्रेम में बहता ही चला गया. तुम्हारा प्रेम हमेशा मेरी आंखों से विरह के आंसू बन कर  बहता था. खुद को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा था मेरे लिए. इसलिए अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का यह सब से अच्छा तरीका मुझे लगा और तुम्हारे प्रति जो कुछ भी मैं ने महसूस किया उसे कागज पर अपनी कलम से उतार दिया.

‘एक दिन मेरे एक मित्र के हाथ मेरी वह डायरी लग गई और मुझ से बिना पूछे उस ने अपने एक प्रकाशक मित्र से बात की. उसे यह कहानी बहुत पसंद आई और उस ने इसे छाप दिया और लोगों को भी यह बहुत पसंद आई.

‘इस तरह तुम्हारा प्रेम मेरे लिए प्रेरणा बन गया और मेरे लिए उसे व्यक्त करने का जरिया. और इस तरह एक आर्किटैक्ट लेखक बन गया.’ झूठी मुसकराहट के साथ आंखों में आ रहे आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए अनय ने अपनी बात पूरी की.

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सामने मृणाल सिर झुकाए मुजरिम की तरह बैठी थी और कोशिश कर रही थी अनय उस के आंसू न देख पाए. थोड़ी देर दोनों खामोशी में बैठे रहे, फिर अनय ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘चलो मृणाल, तुम्हारी ट्रेन का वक्त हो गया है, मैं तुम्हें स्टेशन छोड़ देता हूं.’ मृणाल खड़ी हो गई और दोनों अपनीअपनी मंजिल की तरफ चल दिए.

मृणाल खयालों की दुनिया से निकल कर यथार्थ के धरातल पर खड़ी थी. आज उस के सामने अनय नहीं, सिर्फ प्रणय है, सिर्फ प्रणय.

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