धर्म है या धंधा

बाततब की है जब मेरा विवाह हुआ था. मेरे पति एक दिन सुबह कहीं जा रहे थे. उन्हें जाते हुए देखा तो भागीभागी आई और पीछे से आवाज लगा दी, ‘‘आप कहीं जा रहे हो क्या?’’

बस इतना ही कहते वे क्रोधित हो गए और गुस्से में बोले, ‘‘इस तरह क्यों पीछे से आवाज लगा रही हो?’’

मैं बेवकूफ तब भी नहीं सम झी और सामने जा कर खड़ी हो गई. फिर कहा, ‘‘चलो अब बता दो कहां जा रहे हो?’’

उन्होंने मु झे घूर कर ऐसे देखा जैसे मैं ने किसी का कत्ल कर दिया हो, पर घूरने का कारण नहीं सम झ पाई.

2 घंटे बाद जब वापस आए तो बहुत ही आगबबूला होते हुए बोले, ‘‘बड़ी बेवकूफ हो. इतना भी नहीं मालूम कि काम पर जाते समय पीछे से आवाज नहीं लगाते. तुम्हारे टोकने की वजह से मेरा काम नहीं बना.’’

मेरा तो माथा ठनक गया कि यह कैसा अंधविश्वास है भला? मेरे आवाज लगाने से इन का काम कैसे रुक गया? फिर तो इस से अच्छी चाबी और कोई हो ही नहीं सकती. अगर किसी का कोई काम न बनने देना हो तो बस पीछे से आवाज लगा दो. दिन की शुरुआत अपनी दोनों हथेलियों को देख कर करते हैं.

पूजापाठी तो इतने हैं, बस जब देखो, कभी हाथ में हनुमान चालीसा मिलेगा तो कभी शिव चालीसा. 2 घंटे सुबह पूजा, 2 घंटे रात को पूजा. बस पूजा ही पूजा और कोई न दूजा. खुशीखुशी महीने की आधी कमाई पंडितों को दान में दे आएंगे. वैसे कोई गरीब क्व1 भी मांगेगा तो उसे दुत्कार देंगे. जब देखो सासूजी और पतिदेव पंडितों का पेट भरते रहते हैं.

लंबा उपदेश

रोकने पर एक लंबा सा उपदेश, ‘‘ब्राह्मण को दान शास्त्रों में लिखा हुआ है. जितना ब्राह्मणों को दान करोगी उतना फल मिलेगा. अब कोई और फूलेफले या नहीं, लेकिन पंडित जरूर फूलफल रहा है. इतने सालों से पंडितजी को और उन की तोंद को देख रही हूं. फूल कर मोटी होती जा रही है. क्यों न फूले लोगों को बेवकूफ बना कर माल जो खाते हैं.

कितना अजीब सा लगा है ये सब देखना. पर यह बिलकुल सच है कि इस आधुनिक युग में हम आधुनिकीकरण का सिर्फ जामा पहने हुए हैं, परंतु हमारी मानसिकता अब भी वही है. हमारी सोच बदलते वक्त के साथ वही पुरानी है और शायद इस का पूरा श्रेय आजकल के मीडिया चैनलों को जाता है, जो सारा दिन ऐसे अंधविश्वास फैलाते रहते हैं.’’

हर चैनल पर ऐसे कार्यक्रमों की भीड़ है और ऐसे कार्यक्रमों को देखने के लिए दर्शकों की कमी नहीं. एक दिन मेरी सासूमां को सपने में गाय सींग मारते हुए दिखी. बस मानो भूकंप आ गया. पंडितजी को बुलावा भेज दिया.

पंडितों का मायाजाल

पंडितजी ने आते ही कहा, ‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. गाय का सींग मारना तो शुभ संकेत है. अरे, गाय की सेवा करीए. अपने भार बराबर दान दीजिए. आप की सब चिंताएं खत्म होने वाली हैं,’’

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वाह पंडितजी, सपना गाय का और फायदा पंडित का. अब इन पंडितजी की भी सुनिए. एक दिन पंडितजी घर आए. देखने में परेशान लग रहे थे. पतिदेव से मिलने आए थे. पंडितजी के जाने के बाद मैं ने पूछा, ‘‘क्या हो गया पंडितजी को क्यों इतने परेशान हैं?’’

पतिदेव ने बताया, ‘‘पंडितजी इसलिए परेशान हैं क्योंकि उन का काम मंदा चल रहा है. उन के 2 बेटे हैं. लेकिन कोई भी पंडिताई नहीं करना चाहता.’’

मैं अपनी हंसी नहीं रोक पाई. हंसते हुए बोली, ‘‘हां… हां… पंडितजी के बेटों द्वारा पंडिताई न करने की बात तो उन के लिए दुखदाई है, क्योंकि खानदानी पेशा जो बंद हो रहा है. लगता है पंडितजी ने अपनी पत्रिका नहीं देखी. शायद उपाय करने से उन के कष्ट दूर हो जाते,’’ आदतन मेरे मुंह से निकल गया. और मैं कहते ही हंस पड़ी.

इधर मेरा हंसना था और उधर बम विस्फोट होना लाजिम था. गुस्से में पतिदेव बोले, ‘‘जब भी बोलोगी, उलटा ही बोलोगी… चुप नहीं रह सकती क्या?’’

अंधविश्वास के बहाने

अब आप ही बताएं यह पत्रिका देखना, हाथ देखना आदि सब बातें अंधविश्वास के दायरे में आती हैं न? इस वैज्ञानिक युग में काफी लोगों की मानसिकता वही दकियानूसी है… आज भी काफी लोग बिना पंडित की मरजी के पत्ता नहीं हिलाना चाहते. कोई भी कार्य करने से पहले पंडित या तांत्रिक से सलाह लेते हैं. बच्चा कब पैदा होना है? कब नामकरण होना है? ये सब पंडित तय करते हैं. उसी के लिए मुहूर्त के हिसाब से यह कार्य होते हैं. यही नहीं लड़की होनी है या लड़का, यह भी पंडित ही तय करता है.

अगर लड़का चाहिए तो, पंडितजी कुछ दवाइयों की पुडि़यां बना कर हाथ में दे देंगे, इस कथन के साथ कि तीसरे महीने में खिला देना. लड़का ही होगा और यकीन मानिए लोग आंख बंद कर के इस पर विश्वास करते हैं और अपनी बहू या बेटियों को तीसरे महीने में सुबहसुबह खाली पेट यह दवाई खिलाते हैं.

भले ही लड़का हो या लड़की. लड़का हो गया, तो पंडितजी की चांदी और अगर लड़की हुई तो पंडितजी कह देते हैं कि आप ने दवाई खाते टाइम लापरवाही करी होगी.

मतलब हर हाल में पंडितजी सही… निम्नवर्ग के ही नहीं उच्चवर्ग के लोग भी इन अंधविश्वासों में फंसे हुए हैं.

कर्म ही प्रधान है

एक बार मैं ने पतिदेव से कहा, ‘‘आप विश्वास करो, लेकिन अंधविश्वास नहीं. ये पंडित, तांत्रिक, मौलवी सिर्फ अपनी जेबें भरते हैं. कोई कुछ नहीं करता. कर्म ही प्रधान है.’’

इस पर पतिदेव ने कहा, ‘‘अपने विचारऔर अपनी सोच अपने पास रखो… हमें शिक्षा मत दो. तुम्हारे हिसाब से तो यह टाटा, बिरला, अंबानी सभी नास्तिक हैं. क्या तुम ने देखा नहीं ये सब कितना पूजापाठ करते हैं. तुम्हारी सुनूंगा, तो डूब जाऊंगा.’’

मु झे भी जिद चढ़ गई तो मैं ने भी कह दिया, ‘‘डूबिए तो सही. तब हम न उबारें तो कहना.’’

इन के हाथ में इतने कलावे बंधे हैं कि कभीकभी तो ऐसा लगता है, जैसे कोई मन्नत मांगने का खंभा हो. एक दिन मैं ने कहा, ‘‘भूल गए क्या पंडित के कहने पर गाय को बेसन, मुनक्का और घी से बनी लोई खिलाने गए थे? तब गाय ने ऐसा पटका कि 7 दिन लगे थे ठीक होने में.’’

‘‘बस करो, जब देखो तब टेप चालू रहता है,’’ पतिदेव चिड़चिड़ाते हुए बोले.

‘‘मैं क्या गलत कह रही हूं? क्यों रहूं चुप? भूल गए, जब नया औफिस बनवा रहे थे, नींव खुद रही थी, तो पंडितजी ने कहा कि औफिस तैयार होने से पहले पूरे औफिस की नजर उतार दो और पश्चिम दिशा में लाल कपड़े में बांध कर चावल चढ़ा दो. आप ने तो करना ही था. पंडितजी ने जो कहा था, क्योंकि सारी दुनिया की नजर तो आप ही को लगी हुई है न. हुआ क्या चावल चढ़ाने के चक्कर में 7 फुट गहरे गड्ढे में गिर गए थे. वह तो भला हो मजदूरों का, वहां पर मौजूद थे. जैसेतैसे कर के आप को निकाला,’’ मैं ने कटाक्ष करते हुए कहा.

‘‘हां तो क्या हुआ? तुम्हें नहीं लगता है कि मैं पंडितजी की वजह से मैं बच गया?’’ इतने गहरे गड्ढे में गिर कर भी चोट नहीं आई.

‘‘तोबा. आप और आप के पंडित. यह विश्वास नहीं, अंधविश्वास है… पूरा पागलपन है.’’

अंधविश्वास का खेल

सारा साल यही अंधविश्वास का खेल चलता रहता है. सलाह देने वाले पंडितजी और मानने वाले पतिदेव और उन की माताजी, घर

2 खेमों में बंटा हुआ है… एक तरफ सासूजी और पतिदेव, दूसरी ओर मैं और मेरे बच्चे. हर टाइम वाक् युद्ध की स्थिति रहती है.

कभी माघ का महीना है, तो दान करना है. कभी वसंतपंचमी है तो कथा होनी है. नवरात्रे हैं तो हवन करना है. सावन चल रहा है तो रुद्राभिषेक करना है. श्राद्ध हैं, तो पंडितों को खाना खिलाना है और दान करना है. शरद नवरात्रे हैं तो ब्रह्मभोज. कभी सत्यनारायण की कथा तो कभी महामृत्युंजय जाप होने हैं.

‘‘पंडितजी पारिवारिक परेशानी है. खत्म नहीं हो रही. क्या करूं?’’ सासूजी ने पूछा.

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‘‘ऐसा करो एक हवन करवा लो. हवन के आखिर में सवा पांच किलो सूखी लालमिर्च से सब की नजर उतार कर अग्नि कुंड में आहुति दे दी जाएगी. नजर भी उतर जाएगी और पता भी चल जाएगा कि कितनी नजर है तो उपाय हो जाएगा,’’ पंडितजी ने अपना उल्लू सीधा किया.

बहुत से लोग अपने आगे से कोई बिल्ली गुजर जाए, तो वापस आ जाएंगे. सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण लगने पर भोजन नहीं करेंगे और ग्रहण खत्म होते ही सब से पहले नहाएंगे.

यही नहीं फिर पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करेंगे और ब्रह्माण को दान देंगे. अगर कोई गर्भवती है, तो जब तक ग्रहण है उसे गोद में नारियल रख रामायण पढ़ने को कहा जाएगा. दिन के मुताबिक रंगीन कपड़ों को पहनना. कोई छींक दे तो अशुभ मान कर रुक जाना.

हर छोटी सी छोटी बात के लिए पंडित या तांत्रिक. पता नहीं कैसा विश्वास है? शायद इस गहरे विश्वास को ही अंधविश्वास कहा जाता है. बचपन में सुनी और विश्वास की गई ऐसी ही कितनी चीजें कई सालों तक अंधविश्वास बन कर आज भी बहुतों के साथ चल रही हैं. लेकिन ऐसे लोगों में इस अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी होती हैं कि हम चाह कर भी बदल नहीं पाते.

फैले अंधविश्वास

–  भारत में लोग विश्वास करते हैं कि चेचकदेवी माता का प्रकोप है और दवा इत्यादि से आप इस का कुछ नहीं कर सकते. केवल प्रार्थना और कर्मकांड करीए देवी माता की शांति के लिए.

–  भारत में अकसर डाक्टर के क्लीनिक के मुख्य दरवाजे पर बुरी नजर से बचने का प्रतीकचिह्न देखेंगे. अस्पताल में आप बोर्ड देखेंगे ‘हम सेवा करते हैं, वह ठीक करता है.’ कितने ही डाक्टर गुरुवार को काम नहीं करते, क्योंकि वे मानते हैं कि यह अच्छा दिन नहीं होता और आप को फिर से डाक्टर के पास जाना पड़ेगा.

–  भारत में वैज्ञानिक विज्ञान पर भरोसा नहीं करते, बल्कि सफलता के लिए ईश्वर का मुंह ताकते हैं.

–  अशुभ नंबरों को त्याग दिया जाता है. डाक्टरों को नजर लगने से डर लगता है. ये लोग साक्षर तो हैं, परंतु शिक्षित नहीं.

–  अंधविश्वासी लोग दवा और इलाज को भी अंधविश्वास के घेरे में ले आते हैं. पीपल के पेड़ पर भूतों का निवास होता है.

–  बुरी नजर से बचाने के लिए माथे पर बच्चों के टीका लगाते हैं.

–  घर से बाहर निकलते वक्त विधवा औरत दिखे तो अशुभ माना जाता है

–  गले में काला धागा या तावीज पहनने से बुरी आत्माएं दूर रहती हैं.

–  अगर आप के जूते खो जाएं तो आप भाग्यशाली हैं इस से बुरी चीजें चली जाती हैं.

–  कुत्ते का रोना किसी की मृत्यु का पूर्वाभास माना जाता है. रात को नाखून नहीं काटने चाहिए.

–  पतीले या हांडी में पैंदे तक चाटने से उस इंसान की शादी पर बरसात होती है.

–  अगर बिल्ली रास्ता काट जाए तो इसे अशुभ माना जाता है.

–  अगर हिचकी आए तो कोई आप को याद कर रहा है.

–  मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को बाल कटिंग या शेविंग नहीं करवानी चाहिए.

–  अरे हां, एक और शामिल है इस लिस्ट में. आंख का फड़कना.

लेकिन धीरेधीरे जब हम चीजों के ऊपर सोचने की प्रक्रिया से गुजरने लगें, तो लगेगा अरे यह तो निरी मूर्खता है. कोई छींक दे तो क्या हम अपना महत्त्वपूर्ण काम टाल देंगे? बिल्ली रास्ता काट देगी तो क्या हम पेपर देने नहीं जाएंगे?

ऐसी बहुत सी बातों की लंबी लिस्ट है, जो अंधविश्वास के दायरे में आती हैं. लेकिन अंधविश्वासियों के हिसाब से वे धर्म का पालन कर रहे हैं. आप ही बताएं यह कैसा धर्म का पालन है?

इस वैज्ञानिक युग में ऐसी सोच के साथ कोई कैसे तरक्की कर सकता है? अगर तांत्रिकों की पूजा में इतना ही दम है, तो फिर बौर्डर पर सेना की क्या जरूरत है? घर बैठे ही ये पंडित, तांत्रिक हर युद्ध को रोक सकते हैं. असलियत तो यह है आज ये पंडित, पुजारी सब चलतीफिरती दुकानें हैं, जिन्हें सिर्फ अपनी जेब भरने से मतलब है और हमारा समाज धार्मिक, ढोंग, पाखंड, अंधविश्वास, लोभी और गुमराह मुल्लाओं, पंडितों की बेडि़यों द्वारा जकड़ा हुआ समाज है. ऐसा नहीं कि सिर्फ कम पढ़ेलिखे, गरीब ही इन का शिकार होते हैं. धर्म और आस्था के नाम पर बड़बड़े अमीर और पढ़ेलिखे भी इस लिस्ट में शामिल हैं.

महिलाओं का शोषण

चमत्कारी बाबाओं और तांत्रिकों द्वारा महिलाओं के शोषण की बातें हमेशा से प्रकाश में आती रही हैं और धन तो इन के पास दान का इतना आता है कि जिसे ये खुद भी नहीं गिन सकते.

इस के दोषी केवल ये बाबा, मुल्ला या पंडे नहीं, बल्कि हमारा यह भटका हुआ समाज है, जो चमत्कारों से भगवान को पहचानने की गलती करता है. अंधविश्वास की सामाजिक जकड़न का विश्वास ही अंधविश्वास में तबदील होता है.

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अंधविश्वासी लोग स्वयं अपनी स्वतंत्रता नष्ट कर लेते हैं. वे अपनी मरजी से कोई निर्णय नहीं ले सकते, क्योंकि उन्होंने अपने दिमाग को अंधविश्वास की जेल में बंद कर रखा होता है. उन्होंने अपनी बुद्धि को अंधविश्वास के हाथों बेच दिया है नहीं तो वे अपनी जिंदगी अंधविश्वास के बिना और प्रसन्नता से गुजार सकते हैं.

दिल से एक बार इस अंधविश्वास के डर को निकालें, तो फिर अमंगल का खयाल कभी आएगा ही नहीं. सोच कर तो देखें.

Romantic Story: कहीं यह प्यार तो नहीं- विहान को किससे था प्यार

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Romantic Story: कहीं यह प्यार तो नहीं- भाग 1 : विहान को किससे था प्यार

‘‘अरवाह, हो गई तुम्हें जौब औफर. प्राउड औफ यू बेटा. यहां दिल्ली में ही यह कंपनी या कहीं और जाना पड़ेगा?’’

‘‘मम्मा, बस निकल ही रहा हूं कालेज से. घर आ कर बताता हूं सब.’’

बेटे विहान से फोन पर बात होते ही कावेरी पति सुनील से उत्साह में भर कर बोली, ‘‘सुनो, विहान को एक मल्टीनैशनल कंपनी ने नौकरी दी है. मैं अभी जूही के घर जा कर यह खुशखबरी दे दे आती हूं.’’

‘‘वाह, अब कमाऊ हो जायेगा अपना बेटा. मैं भी चलता हूं तुम्हारे साथ. पड़ोसियों को दे ही देते हैं यह गुड न्यूज.’’

‘‘पड़ोसी नहीं, समधी कहो. अब जल्द ही कर देंगे जूही और विहान का रिश्ता पक्का.’’

दोनों खिलखिलाते हुए घर से निकल पड़े.

बीटैक फाइनल ईयर में पढ़ रहे विहान के कालेज में कुछ कंपनियां आज कैंपस प्लेसमैंट के लिए आई थीं. तीक्ष्ण बुद्धि और आकर्षक व्यक्तित्व के विहान को 5 मिनट का साक्षात्कार ले कर ही चुन लिया गया. वह जानता था कि मातापिता को यह बात सुन कर जितनी प्रसन्नता होगी, उतनी ही निराशा यह सुन कर होगी कि उसे समैस्टर पूरा होते ही जौइनिंग के लिए बैंगलुरु जाना होगा.

पड़ोस में रहने वाली जूही विहान की बचपन की मित्र थी. गोरा रंग, औसत कद, भूरी आंखें और मुसकराते भोलेभाले चेहरे वाली जूही विहान से 1 साल छोटी थी. दोनों एक ही स्कूल में पढ़े थे. 12वीं के बाद विहान ने एक इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन ले लिया. कंप्यूटर साइंस से बीटैक कर रहे विहान के कालेज से सटा भवन जूही का इंस्टिट्यूट था, जहां वह ग्राफिक डिजाइन में बैचलर्स कर रही थी. प्रतिदिन दोनों साथसाथ कालेज आतेजाते थे. आज प्लेसमैंट के लिए इंटरव्यू चल रहे थे, इसलिए विहान देर तक कालेज में रुका हुआ था.

विहान के घर पहुंचते ही पहला प्रश्न नौकरी के स्थान को ले कर हुआ.

‘‘जौब मिली भी तो कहां? मु झे तो लगा था कि आसपास ही नोएडा या गुरुग्राम में होगी कंपनी, लेकिन इतनी दूर,’’ कावेरी के मुख पर प्रसन्नता व निराशा के भाव आ जा रहे थे.

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‘‘अरे, कब तक बेटे को अपने पास बैठा कर रखोगी? उड़ने दो पंख फैला कर,’’ सुनील प्रयास कर रहा था कि कावेरी मन से डर को निकाल दे.

‘‘मम्मा, परेशान क्यों होती हो? मैं अकेला थोड़े ही जा रहा हूं. कुछ और फ्रैंड्स का सिलैक्शन भी तो हुआ है न, वे भी तो जाएंगे मेरे साथ,’’ विहान कावेरी के कंधे पर हाथ रखते हुए सांत्वना दे रहा था.

‘‘मैं सोच रही हूं कि क्यों न जाने से पहले तुम्हारी और जूही की सगाई करवा दी जाए? फिर अगले साल उस की डिगरी हो जाएगी तब शादी करवा देंगे. कोई देखने वाला होगा तुम्हें तो हमें चिंता नहीं होगी. पता नहीं कब तक रहना पड़ेगा वहां,’’ कावेरी ने कहा तो सुनील ने सहमति में सिर हिला दिया.

‘‘क्या जूही और मेरी इंगेजमैंट? मम्मा, यह क्या कह रही हो?’’ विहान का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘गलत तो कुछ कहा नहीं कावेरी ने शायद. क्या तुम दोनों…’’

सुनील की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि विहान ने प्रश्नसूचक दृष्टि से देखते हुए पूछा, ‘‘हम दोनों क्या पापा?’’

‘‘अरे, दोनों एकदूसरे को कितना चाहते हो. आज जूही के घर पर भी यही बात कर रहे थे हम सब,’’ कावेरी आश्चर्यचकित थी.

‘‘मैं ने तो कभी जूही को अपनी गर्लफ्रैंड सम झा ही नहीं. ये सब क्या है? अभी उसे कौल करता हूं,’’ विहान जूही का नंबर मिला कर अपने रूम की ओर चल दिया.

‘‘हैलो जूही.’’

‘‘बधाई… आ गए कालेज से? मैं तुम्हें कौल करने ही वाली थी.’’

‘‘थैंक्स जूही… एक बात पूछनी है तुम से.’’

‘‘पूछो.’’

‘‘क्या हम दोनों एकदूसरे से लव करते हैं?’’

‘‘मतलब इश्क वाला लव? यानी जो प्रेमीप्रेमिका के बीच होता है?’’

‘‘हां बाबा हां, वही.’’

‘‘यह हो क्या रहा है? मैं खुद तुम से पूछने वाली थी. आज मेरी मौम भी तुम्हारा नाम ले कर मु झ से अजीब सा मजाक कर रही थीं.’’

‘‘क्या यार, मेरे मम्मीपापा ने तो हमारी मैरिज का प्लान भी बना लिया. बचपन से हम दोनों फ्रैंड्स हैं, एकदूसरे की कंपनी में खुश रहते हैं, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि हमें प्यार है.’’

‘‘वही तो… एकदूसरे की केयर प्यार थोड़े ही है. देखा नहीं मूवीज में कि प्यार होते ही कैसे सब हवा में उड़ने लगते हैं. यहां तो ऐसा नहीं है.’’ जूही ने बात समाप्त की तो दोनों खिलखिला कर हंस दिए.

समैस्टर समाप्त हुआ और विहान बैंगलुरु चला गया. मित्रों ने मिल कर एक फ्लैट ले लिया. काम करने के लिए मेड और कुक का प्रबंध भी हो गया.

अपनी नई जिंदगी से संतुष्ट विहान अपनी औफिस टीम में लोकप्रिय होने लगा. उसी टीम में सुगंधा भी कार्य कर रही थी. अपनी स्मार्टनैस के लिए मशहूर सुगंधा किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती थी. काम में व्यस्त विहान चोर नजरों से उसे देखा करता था. कभी स्कर्ट, कभी जंपसूट तो कभी जींस पहने सुगंधा की ड्रैस सैंस से विहान पहले दिन ही प्रभावित हो गया था. पिंक, पीच या किसी अन्य हलके रंग की लिपस्टिक में लिपटे उस के होंठ और आई मेकअप से सजी बड़ीबड़ी आंखें विहान को बेहद आकर्षक लगती थीं.

उस दिन मुसकराते हुए सुगंधा ने विहान को ‘हाय हैंडसम’ कहा तो विहान की धड़कनें बढ़ गईं. अदा से चलती हुई विहान की सीट तक आ कर वह पास रखी चेयर पर बैठ गई. बात शुरू हुई तो सुगंधा विहान के कपड़ों, जूतों और रिस्ट वौच की प्रशंसा करते हुए उस की पसंद की दाद देने लगी. विहान के मन में लड्डू फूट रहे थे.

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कुछ देर बात करने के बाद जब सुगंधा उठी तो प्लाजो सूट पर लिया उस का दुपट्टा लहराता हुआ विहान के चेहरे से टकरा गया. नाक से होते हुए परफ्यूम की खुशबू विहान के मन में उतर गई.

घर पहुंच कर वह सुगंधा के बारे में सोचता रहा. अगले दिन अच्छी तरह दाढ़ी शेव कर नहाने के बाद अपने ऊपर खूब डियो छिड़क लिया. अपनी पसंदीदा काली टीशर्ट पहन बारबार अपने को दर्पण में देखने के बाद समय से आधा घंटा पहले ही औफिस पहुंच गया. कमरे में सुगंधा को आया देख यह सोचते हुए कि दोनों तरफ आग बराबर लगी है, वह प्रसन्न हो उठा.

सुगंधा के पास जा विहान ने उल्लासित हो बातचीत करना शुरू कर दिया, लेकिन सुगंधा में पहले दिन सा जोश नहीं था. कल जिन नैनों में विहान को प्यार का सागर छलकता दिख रहा था, आज अजनबी रंग लिए वही निगाहें दरवाजे पर लगी थीं. कुछ देर बाद मैनेजर ने प्रवेश किया तो सुगंधा की आंखें चमक उठीं.

बातचीत अधूरी छोड़ वह मुसकरा कर ‘गुड मौर्निंग’ कह इठलाती हुई मैनेजर के पीछेपीछे चल दी. उस के साथ बातें करते हुए एक बार भी उसे विहान का ध्यान नहीं आया. बातचीत के बीच जिस तरह ठहाके लग रहे थे, उस से विहान ने अनुमान लगा लिया कि वहां औफिस के काम की बातें तो बिलकुल नहीं हो रहीं. मैनेजर ने कुछ देर बाद कौफी मंगवा ली. कमरे में उन दोनों के अलावा विहान ही था, लेकिन उस से किसी ने पूछना भी जरूरी नहीं सम झा.

जब अन्य लोग भी आने लगे तो मैनेजर वहां से चलता बना. सुगंधा अपने गु्रप के मित्रों को चटखारे ले कर बताने लगी कि किस प्रकार उस ने बौस के कपड़ों की प्रशंसा कर आज उसे उल्लू बना दिया. ये सब उस ने आने वाले सप्ताह में छुट्टियां लेने के लिए किया था.

‘‘मार डालती हो यार तुम तो अपने गोरे रंग से सभी को, फिर यह मैनेजर का बच्चा क्या चीज है?’’ मनीष के कहते ही सब का मिलाजुला जोरदार ठहाका कमरे में गूंज उठा.

आगे पढ़ें- घर आ कर भी वह स्वयं को उपेक्षित सा महसूस करता रहा….

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आईना- भाग 3 : रिश्तों में संतुलन ना बनाना क्या शोभा की एक बढ़ी गलती थी

चाय बनाने में चारू के हाथ कांप रहे थे. वह डर रही थी तो मैं ने उस का हौसला बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, कुछ कमी होगी तो हम पूरी कर लेंगे. तुम बनाओ तो सही. बनाओ, शाबाश.’’

मेरे इस अभियान में पति भी मेरे साथ हो गए थे. उन्हें विश्वास था कि चारू अच्छी हो जाएगी. शाम को घर आए तो पता चला कि 15 दिन की छुट््टी पर हैं. पूछा तो हंसने लगे, ‘‘क्या करता, आज शोभा का फोन आया था. कहती थी 2 दिन के लिए यहां आना चाहती है. उसे मैं ने टाल दिया. मैं ने कह दिया कि कल से बनारस जा रहे हैं हम, मिल नहीं पाएंगे. इसलिए क्षमा करें.’’

‘‘अच्छा? यह तो मैं ने सोचा ही न था,’’ पति की समझदारी पर भरोसा था मुझे.

‘‘अब चारू के बहाने मैं भी घर पर रह कर आराम करूंगा. चारू नएनए पकवान बनाएगी, है न बिटिया.’’

‘‘मेरी खातिर आप को कितना झूठ बोलना पड़ रहा है.’’

15 दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. सब बदल गया, मानो हमें बेटी मिल गई हो. सुबह नाश्ते से ले कर रात खाने तक सब चारू ही करती रही. मेरे कितने काम रुके पड़े थे जो मैं गरदन में दर्द की वजह से टालती जा रही थी. चारू ने निबटा दिए थे. घर की सब अलमारियां करीने से सजा दीं और बेकार सामान अलग करवा दिया.

घर की साजसज्जा का भी चारू को शौक है. फैब्रिक पेंट और आयल पेंट से हमारा अतिथि कक्ष अलग ही तरह का लगने लगा. नई सोच और नई ऊर्जा पर मेरी थक चुकी उंगलियां संतुष्ट एवं प्रसन्न थीं. काश, ऐसी ही बहू मुझे भी मिल जाए. क्या दीदी को ऐसा नहीं लगता? फिर सोचती हूं उस की उंगलियां थकी ही कब थीं जो बहू में सहारा खोजतीं. उस ने तो आज तक सदा अभिनय किया और दांवपेच खेल कर अपना काम चलाया है. मेरी बनाई पाक कला पर बड़ी सहजता से अपना नाम चिपकाना, बनीबनाई चीज और पराई मेहनत का सारा श्रेय खुद ले जाना दीदी का सदा का शौक रहा है. भला इस में मेहनत कैसी जो वह थक जाती और बहू का सहारा उसे मीठा लगता.

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अनुराग का फोन अकसर आता रहता. चारू उस से बात करने से भी कतराती. पूछने पर बताने लगी, ‘‘बहुत परेशान किया है मुझे अनुराग ने भी. कम से कम इन्हें तो मेरा साथ देना चाहिए. मेरा मन नहीं है बात करने का.’’

एक दिन चारू बोली, ‘‘मौसी, मैं अपने मायके पापा के पास भाग जाना चाहती थी लेकिन डरती हूं कि पापा को मेरी हालत देख कर धक्का लगेगा. उन्हें भी तो दुखी नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस घर को अपने पापा का ही घर समझो, मैं हूं न,’’ भावविह्वल हो कर मेरे पति बोले थे. बरसों से मन में बेटी की साध थी. चारू से इन की अच्छी दोस्ती हो गई थी. दोनों किसी भी विषय पर अच्छी खासी चर्चा कर बैठते.

‘‘बहुत समझदार और बड़ी सूझबूझ वाली है चारू, इसीलिए तुम्हारी बहन के गले में कांटे की तरह फंस गई. यह तो होना ही था. भला शोभा जैसी औरत इसे कैसे बरदाश्त करती?’’ मेरे पति बोले.

15 दिन बाद अनुराग आया और उस के सभी प्रश्नों के उत्तर उस के सामने थे. मेरे घर की नई साजसज्जा, दीवार पर टंगी खूबसूरत पेंटिंग, सोफों पर पड़े सुंदर कुशन, मेज पर सजा स्वादिष्ठ नाश्ता, सब चारू का ही तो कियाधरा था.

‘‘पता चला, मैं क्यों कहती थी कि चारू को मेरे पास छोड़ जा. कुछ नहीं किया मैं ने, सिर्फ उसे मनचाहा करने की आजादी दी है. पिछले 15 दिन से मैं ने पलट कर भी नहीं देखा कि वह क्या कर रही है. जो लड़की मेरा घर सजासंवार सकती है, क्या अपने घर में निपट गंवार होगी? क्या एक कप चाय भी वह तुम्हें नहीं पिला पाती होगी? अपनी मां का इलाज कराओ अनुराग, चारू तो अच्छीभली है. जाओ, जा कर मिलो उस से, अंदर है वह.’’

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शाम तक अनुराग हमारे ही साथ रहा. घर जाने का समय आया तो हम दोनों का भी मन डूबने लगा. अपने मौसा की छाती से लग कर चारू फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘नहीं बिटिया, रोना नहीं. तुम्हारा अपना घर तो वही है न. अब तुम्हें उसी को सजानासंवारना है. जब भी याद आए, मत सोचना तुम्हारे पापा का घर दूर है. नहीं तो एक फोन ही घुमा देना, हम अपनी बच्ची से मिलने आ जाएंगे.’’

हाथ में पकड़ी सुंदर टाप्स की डब्बी इन्होंने चारू को थमा दी.

‘‘पापा के घर से बिटिया खाली हाथ नहीं न जाती. जाओ बच्ची, फलो- फूलो, खुश रहो.’’

दोनों चले गए. हम उदास भी थे और संतुष्ट भी. पूरी रात अपने कदम का निकलने वाला नतीजा कैसा होगा, सोचते रहे. सुबहसुबह इन्होंने शोभा दीदी के घर फोन किया.

‘‘दीदी, हम बनारस से लौट आए हैं. आप आइए न, कुछ दिन हमारे पास,’’ और कुछ देर इधरउधर की बात करने के बाद हंसते हुए फोन रख दिया.

‘‘सुनो, अब तुम्हारी बहन परेशान हैं. क्या उन्हें भी बुला लें. कह रही हैं, चारू अनुराग के साथ कुछ दिनों के लिए टूर पर गई थी और अब लौटी है तो मेमसाहब के रंगढंग ही बदले हुए हैं. कह रही हैं कि अपना और अनुराग का नाश्ता वह खुद ही बनाएंगी.’’

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हैरान रह गई मैं, ‘‘तो क्या बहू की चुगली दीदी आप से कर रही हैं. उन्हें शर्म है कि नहीं?’’

मेरे पति खिलखिला कर हंस पडे़ थे. हमारा प्रयोग सफल रहा था. चारू संभल गई थी. अब भोगने की बारी दीदी की थी. कभी न कभी तो उसे अपना बोया काटना ही पड़ता न, सो उस का समय शुरू होता है अब.

अब अकसर ऐसा होता है, दीदी आती हैं और घंटों चारू के उसी अभिनय को कोसती रहती हैं जिस के सहारे दीदी ने खुद अपनी उम्र गुजारी है. कौन कहे दीदी से कि उसे आईना दिखाया जा रहा है, यह उसी पेड़ का कड़वा फल है जिस का बीज उस ने हमेशा बोया है. कभी सोचती हूं कि दीदी को समझाऊं लेकिन जानती हूं वह समझेंगी नहीं.

भूल जाता है मनुष्य अपने ओछे कर्म को. अपने संताप का कारण कभीकभी वह स्वयं ही होता है. जरा सा संतुलन अगर रिश्तों में शोभा भी बना लेने का प्रयास करती तो न वह कल औरों को दुखी करती और न ही आज स्वयं परेशान होती.

Romantic Story: कैसे कैसे मुखौटे-भाग 3- क्या दिशा पहचान पाई अंबर का प्यार?

दिशा अपने को प्रसन्न रखने का भरपूर प्रयास कर रही थी. स्वयं को सांत्वना देती रहती थी कि कभी न कभी समय और विक्रांत का मन बदल ही जायेगा. लेकिन सुधरना तो दूर विक्रांत की निर्लज्जता दिनों-दिन बढ़ रही थी. हद तो तब हुई जब वह कौल गर्ल्स को घर पर बुलाने लगा. दिशा के बैड-रूम में उसके पति की किसी और के साथ हंसने-खिलखिलाने की आवाज़ बाहर तक आती. जब एक दिन निराश हो दिशा ने इसका विरोध किया तो विक्रांत उसे संकीर्ण विचारधारा की पिछड़ी हुई औरत कहकर मज़ाक उड़ाते हुए बोला, “तुम जैसी कंज़र्वेटिव औरत के लिए मेरे दिल में कभी जगह नहीं हो सकती. चुपचाप घर के कोने में पड़ी रहा करो. पैसा जब चाहे मांग लेना, कभी मना नहीं करूंगा. बस उन पैसों के बदले सोसायटी में मेरी प्यारी सी संस्कारी धर्मपत्नी बनी रहना और मैं बना रहूंगा तुम्हारा शरीफ़ सा सिविलाइज़्ड हज़बैंड!”

गुस्से से थर-थर कांपती दिशा ने यह सुन घर छोड़ने में एक मिनट की भी देरी नहीं की. विक्रांत के क्षमा मांगने पर दिशा के माता-पिता ने उसे एक मौका और देने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी. दिशा की कोई मांग नहीं थी इसलिए तलाक़ जल्दी हो गया. इक्नौमिक्स में एमए करने के बाद एक प्राइवेट बैंक में उसकी नौकरी लग गयी. पिछले तीन वर्षों से माता-पिता के साथ रह रही थी वह.

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अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई और दिशा को आभास हुआ कि वह गैस्ट हाउस में लेटे हुए न जाने कितने वर्ष पीछे चली गयी थी. ‘लगता है डायरेक्टर सर होंगे, मीटिंग को लेकर कुछ ज़रुरी बात करनी होगी.’ सोचते हुए दिशा ने दरवाज़ा खोला तो सामने अम्बर को देख आश्चर्यमिश्रित हर्ष से उसका मुंह खुला रह गया.

“कितने मैसजेस किये मैंने अभी तुम्हें व्हाट्सऐप पर, देखे भी नहीं तुमने….बहुत बिज़ी हो गयी हो.” बैड के पास रखी कुर्सी पर बैठते हुए अम्बर स्नेह भरे शिकायती अंदाज़ में बोला.

“बस सिर दर्द था तो आंख लग गयी थी…..अरे, रात के दस बज गए!” दीवार घड़ी की ओर देखते हुए दिशा बोली.

“तभी तो आया था तुम्हारे पास. सोचा था अब तक तो डिनर भी कर लिया होगा तुमने. तुम्हारे साथ कुछ देर बैठने का मन था. चलो, कहीं बाहर चलते हैं, वैसे खाना मैंने भी नहीं खाया अब तक.” दिशा को मना करने का अवसर ही नहीं मिला. दोनों पास के एक रेस्टोरैंट में चले गए.

दिशा चाह रही थी कि उसके चेहरे पर पीड़ा की एक रेखा भी न आने पाये. अम्बर के सामने वह प्रसन्न दिखने की पूरी कोशिश कर रही थी. कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद अम्बर ने विक्रांत की चर्चा छेड़ दी. दिशा अधिक देर तक अम्बर के समक्ष संतुष्टि और प्रसन्नता का मुखौटा नहीं लगा सकी और पनीली आंखों से जीवन का कड़वा सच उसके सामने खोल कर रख दिया.

“क्या दिशा तुम भी…..! इतने दुःख झेले और मुझे ख़बर तक नहीं दी. आज भी हम नहीं मिलते तो मैं जान ही नहीं पाता कि तुम पर क्या बीती है.” दिशा की पीड़ा का असर अम्बर के दिल से होकर चेहरे पर झलक रहा था.

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डिनर के बाद कुछ देर बाहर टहलते हुए दोनों ने बीते समय की अन्य बातें शेयर की. अम्बर दिशा को गैस्ट हाउस तक छोड़ने आया. बाद में वे जितने दिन गोआ में रहे काम से समय निकालकर कहीं न कहीं घूमने निकल जाते. यूं तो समुद्री तटों के लिए विख्यात गोआ में घूमते हुए दिशा को वह पल याद आ ही जाता था जब वे स्टडी टूर पर गए थे, लेकिन ‘डोना पाउला’ के लवर पौइंट पर जाकर वह खो सी गयी. कहते हैं कि उस समय के वायसराय की बेटी ‘डोना पाउला डी मेनजेस’ एक मछुआरे से बहुत प्रेम करती थी. जब उसके पिता ने दोनों को विवाह की अनुमति नहीं दी तो उसने चट्टान से कूदकर अपनी जान दे दी थी. एक पुरुष और स्त्री की मूर्तियां भी हैं वहां पर. दिशा उनकी कहानी सुनकर उदास हो गयी. उसकी उदासी अम्बर से छुपी न रही और वह उसका मन बहलाने पास की एक मार्किट में ले गया. दिशा ने सीपियों और शंखों से बने कुछ गहने खरीदे और अम्बर ने पुर्तगाली हस्तशिल्प से तैयार नौका का एक शो-पीस. अगले दिन दिशा दिल्ली लौट गयी और तीन दिन बाद अम्बर भी आ गया.

वापिस दिल्ली आने के बाद अम्बर और दिशा अक्सर मिलने लगे. कभी शाम को औफ़िस के बाद वे एक साथ चाय-कौफ़ी पीते तो कभी रविवार के दिन मौल में मिलते. अपने घर में यह सब बताकर दिशा कोई बवंडर खड़ा नहीं करना चाहती थी, किन्तु एक दिन गौरव भैया ने दोनों को साथ-साथ देख लिया.

उन दोनों के एक मित्र, कुणाल का कुछ दिनों बाद विवाह होने वाला था. एक साथ कार्ड देने के उद्देश्य से उसने कुछ दोस्तों को रेस्टोरैंट में बुला लिया. सबसे पहले अम्बर व दिशा वहां पहुंचे. वे जाकर बैठे ही थे कि दिशा की नज़र सामने की टेबल पर पड़ गयी. गौरव अपने एक मित्र के साथ वहां बैठा हुआ था. कुणाल व अन्य मित्रों के आने तक वे दोनों गौरव के पास बैठ गए. सबके आ जाने पर गौरव वापिस चला गया. चाय पीते हुए वे सब कौलेज के दिनों को याद कर ठहाके लगा रहे थे. दिशा भी बातचीत और हंसी-मज़ाक में सबका साथ दे रही थी, लेकिन भीतर ही भीतर भयभीत थी कि घर पर जाने क्या होगा? गौरव भैया अम्बर को लेकर न जाने मम्मी-पापा से क्या कहेंगे?

रेस्टोरैंट से निकलकर दिशा ने अपने मन का डर जब अम्बर के सामने रखा तो उसने आश्वासन देते हुआ कहा कि किसी भी समय यदि उसकी आवश्यकता हो तो दिशा कौल या मैसेज कर दे. वह जल्द से जल्द उनके घर पहुंचकर उसके परिवारवालों को समझा देगा.

दिशा ने डरते हुए घर में कदम रखा. मां उसके लिए चाय लेकर आ गयीं. फिर गौरव और माता-पिता के बीच कानाफूसी होने लगी. कुछ देर बाद वे तीनों मुस्कुराते हुए दिशा के पास आये और बात शुरू करते हुए मां बोली, “बेटा, गौरव बता रहा था कि अम्बर की अभी तक शादी नहीं हो पायी है. हम चाहते हैं कि उसे कल घर पर बुला लो, हम रिश्ते की बात करना चाहते हैं.”

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“यह क्या कह रही हैं आप?” दिशा के माथे पर बल पड़ गए.

“मेरी और पापा की भी यही राय है.” गौरव मुस्कुरा रहा था.

दिशा उनके इस व्यवहार से भौंचक्की रह गयी. गुस्से से तमतमाया चेहरा लेकर वह कमरे से निकल ही रही थी कि पापा बोल उठे, “तुम्हारी भलाई की बात ही कर रहे हैं, बेटा.”

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Monsoon Special: बारिश में लें टेस्टी चाट का मजा

बारिश का मौसम शुरू हो चुका है, और बारिश की रिमझिम फुहारों के पड़ते ही मन कुछ चटपटा और तीखा खाने को करने लगता है. चाट यूं तो हर मौसम में ही अच्छी लगती है परन्तु बारिश में चाट खाने का मजा ही कुछ और होता है. इसी तरीके में आज हम आपको चाट की झटपट बनने वाली दो रेसिपीज के बारे में बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से बना सकती हैं-

-ब्रेड भल्ला चाट

कितने लोंगों के लिए             4

बनने में लगने वाला समय       30 मिनट

मील टाइप                             वेज

सामग्री

ब्राउन ब्रेड स्लाइस                  4

उबले आलू                            2

उबली मटर                            1 टेबलस्पून

बारीक कटी हरी मिर्च               4

तेल                                    1/2 टीस्पून

जीरा                                   1/4 टीस्पून

नमक                                  स्वादानुसार

अमचूर पाउडर                      1/2टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर                   1/4 टीस्पून

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गरम मसाला पाउडर               1/4 टीस्पून

घी                                        1 टेबलस्पून

कटा हरा धनिया                     1 टेबलस्पून

हरी चटनी                              1 टीस्पून

इमली की चटनी                     1 टीस्पून

बारीक फीकी सेव                    1 टीस्पून

अनार के दाने                          1 टीस्पून

चाट मसाला                          1/4 टीस्पून

बारीक कटा प्याज                 1 टीस्पून

विधि

ब्रेड स्लाइस को कटोरी से गोल काट लें. आलू को मैश कर लें. गर्म तेल में जीरा व समस्त मसाले, मैश किये आलू और मटर

के दाने डालकर भली भांति चलाएं. अब ब्रेड के एक ओर आलू का मसाला लगाएं  नॉनस्टिक तवे पर घी लगाकर ब्रेड वाली साइड से भल्ले को रखकर धीमी आंच पर सुनहरा होने तक सेंकें. पलटकर आलू की साइड से भी सुनहरा सेक लें. इसी प्रकार सारे भल्ले तैयार करें. सर्विंग डिश में रखकर ऊपर से लाल, हरी चटनी, सेव, चाट मसाला, हरा धनिया, अनार के दाने और कटा प्याज डालकर सर्व करें.

-इडली चाट

कितने लोंगों के लिए           4

बनने में लगने वाला समय     20 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

तैयार इडली                4

तलने के लिए              तेल

सामग्री (चाट के लिए)

कटा हरा धनिया          1 टीस्पून

फेंटा ताजा दही           1 टेबलस्पून

हरी चटनी                  1 टीस्पून

इमली की लाल चटनी    1 टीस्पून

फीकी सेव                   1 टीस्पून

अनार के दाने               1 टीस्पून

चाट मसाला                 1/4 टीस्पून

बारीक कटा प्याज         1 टीस्पून

मसाला बूंदी                  1 टीस्पून

विधि

तैयार इडली को छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. तेल के अच्छी तरह गर्म हो जाने पर इन टुकड़ों को डालें और तेज आंच पर ही सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें. सर्विंग डिश में तली इडली डालकर ऊपर से चाट की समस्त सामग्री डालकर सर्व करें.

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टेसू के फीके लाल अंगार- भाग 3 : क्या था सिमरन के अतीत की यादों का सच

लेखक- शोभा बंसल

यह सब क्या हो रहा था? लगता है, मैं घंटाभर यों ही वहां बैठी रही. पैट्रिक की बहुत मिन्नत के बाद मैं ने दरवाजा खोला और हम दोनों अपनेअपने साथ हुए हादसे के लिए घंटेभर आंसू बहाते रहे.

पैट्रिक ने वादा करते हुए कहा कि वह मजदूरी कर लेगा, पर दोबारा ऐसा गंदा काम नहीं करेगा. किस्मत अच्छी थी कि मुझे फिर से ट्यूशन मिल गई और एक प्राइवेट स्कूल में कम तनख्वाह पर नौकरी भी. सोचा, अब मैं कमाऊंगी और पैट्रिक अपने फिल्मी कैरियर पर ध्यान देगा. जैसा कि उस ने मुझ से वादा किया था. पर शायद वह मेरी कमाई पर रहने को पचा नहीं पा रहा था. फिर एक दिन पैट्रिक बोला, “कहीं काम मिला है. ज्यादा बड़ा तो नहीं. पर रात को देर से आएगा, क्योंकि शूटिंग रात में ही होगी.”

मैं ने भी सहज ही मान लिया. पर शक का कीड़ा अब कुलबुलाने लगा था, क्योंकि यहां के परिवेश में रहते हुए मैं भी बहुत जल्दी बाहरी दुनिया की असलियत पहचानने लगी थी.

एक रात मैं विंडो के पास खड़ी पैट्रिक का इंतजार कर रही थी तो एक बड़ी सी गाड़ी रुकी और दरवाजा खुला. पैट्रिक के साथी ने गाड़ी से उतर कर बड़े ही वाहियात तरीके से पैट्रिक को चुंबन दिया.

यह देख सिमरन को सारा माजरा समझ आ गया. तो पैट्रिक रात को कौन सी शूटिंग करता था, “यही वाली ना…”

पैट्रिक के घर में पैर रखते ही मैं ने उस की लानतमलामत शुरू कर दी. पर शराब के नशे में धुत्त वो क्या सुनता? सुबह जब पूछा तो जनाब के रंगढंग निराले थे.

“शराब पी कर ही तो जिस्म बेचे जाते हैं. इस फिल्मी लाइन में आगे बढ़ने के लिए कहीं ना कहीं कम्प्रोमाइज तो करना ही पड़ता है. तुम ने तो उस बुढ़िया की नौकरी पर लात मार कर सब से बड़ी बेवकूफी की. पैसा भी गया और नौकरी भी गई. उसी के चलते तुम्हें कहीं ना कहीं तो किसी पिक्चर में काम मिल ही जाता. शायद वह बुढ़िया ही तुम्हारे प्यार में पड़ तुम्हारे साथ कोई पिक्चर बना लेती. कुछ पाने के लिए तुम्हें भी समझौता करना आना चाहिए. मेरे साथ रह रही हो तो दोनों ही तरह की जिंदगी का मजा लो. अपना काम निकलना चाहिए, चाहे सामने वाला मेल हो या फीमेल, इस से फर्क नहीं पड़ता. इस सच को जितनी जल्दी समझ लोगी उतना अच्छा रहेगा.”

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मैं तो यह सुन कर हक्कीबक्की रह गई. उसे समझाया, “आओ, अब अपनी दुनिया में लौट चलें. मांबाप का दिल बहुत बड़ा होता है. वे हमें माफ कर देंगे.”

पर, उस पर तो फिल्मों में काम करने का जिन्न सवार था. उस के फालतू के तर्कवर्क सुन कर मैं उस पर फट पड़ी, “कभी तो तुम बहुत गरूर करते थे, सिमरन के प्रति अपने पजेसिवनेस का. कहां गया वह दम? सब इस मायानगरी के दलदल में गहरा धंस गया है. शर्म नहीं आती तुम्हें अपने ऊपर… मुझे अपने बायसैक्सुअल ग्रुप ज्वाइन करने को कहते हो.

“कालेज में इसी सिमरन पर अगर कोई दूसरा निगाह भी डाल लेता था, तो तुम उस का खून करने को उतारू हो जाते थे. आज कहां गई तुम्हारी ऊष्माभरी पजेसिवनेस… मैनलीबिहेवियर और मैनरिज्म? शोहरत और पैसे के लिए तुम इतने नीचे गिर जाओगे, मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. अभी भी वक्त है, चेते जाओ. तुम तो सैक्स की भूख में अपना जमीर भी खो बैठे हो. पता है बायसैक्सुअल होने पर कितनी बीमारियां लगेंगी? क्या कहेंगे तुम्हारे घर वाले, जब उन को तुम्हारी सचाई का पता चलेगा. इन सेलिब्रिटीज की जिंदगी खुले पन्ने की तरह होती है. फिर भी इन पर कोई उंगली नहीं उठा सकता, क्योंकि इन की ताकत और पैसे के आगे सब बोने हैं. सारा दोष तुम पर ही आएगा. अभी भी सुधर जाओ.”

पर, वह कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था. मैं तो जैसे आसमान से जमीन पर गिरी. क्या करूं? किस से बात करूं? समझ ही नहीं आया. यहां तो कोई किसी की पर्सनल लाइफ में इंटरफेयर ही नहीं करता.
क्या से क्या बन गए थे हम? सपनों को भूल, जीवनयापन की इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मशीन. जीवन का सारा मजा ही लुप्त हो रहा था.

तभी मुझे लगा कि मेरे शरीर में नन्हा सा अंकुर फूट रहा है. जब मैं ने पैट्रिक को यह खबर दी, तो उस ने इस को अपना अंश स्वीकारने से ही मना कर दिया. वह दोषारोपण करने लगा, “क्या पता, मेरे पीछे तुम भी यही सब करती हो, जो मैं रात में करता हूं? यहां तो यह आम बात है.”

गुस्से में मैं ने एक थप्पड उस को लगा दिया और अपने स्कूल आ गई.

उसी वक्त मैं ने एक निर्णय लिया और चुपके से पैट्रिक के घर में फोन कर के बताया, “वह यहां मुंबई में आ कर गलत संगत में पड़ गया है. इसे कोई गंभीर बीमारी हो, उस से पहले ही उसे यहां से जबरदस्ती ले जाएं और उस का जीवन सुधारें.”

यह सुनते ही उस के मातापिता के पैरों तले जमीन निकल गई. उसी रात उन्होंने फ्लाइट से आने का वादा किया. मैं ने उन्हें पैट्रिक के घर का पता दे दिया और कहा कि चाबी वाचमैन से ले लें, यह कह कर मैं ने फोन रखा और अपने कपड़े और पैसे समेटे. भरपूर गीली निगाह अपने बिखरते आशियाने पर डाली और वूमेन होस्टल की डोरमेट्री में रहने आ गई.

2 दशक पहले तक यह लिव इन टैबू था लिव इन कपल को हिकारत या बदचलन के रूप में देखा जाता था और मैं तो कुंआरी मां थी. अब मेरा पेट दिखने लगा था. तो एक दिन हिम्मत कर नाभा के लिए ट्रेन पकड़ी और घर पहुंच गई. पर वहां अब कोई न था.

मेरे दारजी और बेबे घर बेच कर पता नहीं कहां चले गए थे. मुंबई वापस जाने का मन न था. हिम्मत कर के मैं ने पटियाला में अपने ननिहाल में पनाह लेने की सोची. वह तो सुखद संयोग था कि घर पर उस दिन अकेले नानी थी. बाकी सभी किसी की शादी में 2 दिन के लिए दिल्ली गए हुए थे. मेरी नानी ने बहुत हिम्मत से काम लिया. मुझे एक कमरे में छुपा कर रखा, खानेपीने का सामान दिया और फिर कुछ पैसे दिए और यहां से पुडुचेरी में अपने गुरुजी के आश्रम में भेज दिया. वे जब तक जिंदा रहीं, मेरे अकाउंट में कुछ ना कुछ रकम भेजती रहीं. मैं भी आश्रम में बच्चों को पढ़ाने लगी और हर वक्त किसी ना किसी काम में व्यस्त रहती. बस इन्हीं से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ.

मेरी नानी ने अपने गुरुजी को यह बोला था कि मैं विधवा हूं और पेट से हूं, तो किसी ने ज्यादा सवाल नहीं पूछे.

अब तक, मैं भी जिंदगी में इतने धक्के खा कर समझदार हो चुकी थी. एक दिन मेरे अकाउंट में नानी ने एक बहुत बड़ी रकम भेजी.
फिर मैं ने छोटी सी शुरुआत में ही भविष्य की संभावनाएं जोड़ी और अपनी थोड़ीबहुत जमापूंजी और नानी की रकम से यहां छोटा सा घर खरीद लिया. यहां पर शुरू में तो मैं ने पेइंग गेस्ट खोला. मेरे अच्छे व्यवहार और घर जैसे माहौल के चलते यह हमेशा भरा रहने लगा. धीरेधीरे मैं ने उस के आसपास की जगह खरीद होमस्टे का व्यवसाय शुरू किया.

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पिछले दोढाई दशकों में काफीकुछ बदल गया है. अब तो मैं भी सशक्त और आत्मनिर्भर बन गई हूं…

स्नेहा ने उस को रोक कर पूछा, “तुम फिर कभी पैट्रिक से मिली?”

सिमरन ने कहा, “नहीं. असल में हम दोनों एकदूसरे को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहे थे और जिंदगी की वास्तविकता से रूबरू हो अपने ही सपनों को पूरा करना भूल गए.

“स्नेहा, मुझे कभीकभी लगता है कि हमारी सारी चाहतें और इच्छाएं केवल दैहिक वासना से जुड़ी थीं मां की नाल की तरह. दैहिक वासना से अलहदा हो कर शायद हमारा प्यार अब और अधिक मजबूत हो गया होगा.

“पैट्रिक को तो मैं ने उस दिन मुंबई छोड़ते ही अतीत के पन्नों में वहीं दफन कर दिया था. सुखद संयोग आज तुम से मिलना हो गया. आज तुम आई हो तो पूरी जिंदगी को पढ़ लिया. अब तो बस यही जीवन है.

“बस एक ही चाह है कि पैट्रिक मेरे चरित्र पर विश्वास करे. मैं ने उस के अलावा किसी और के साथ, न तब, न उस से रिलेशनशिप टूटने के बाद किसी और से कोई संबंध बनाए. वह एक बार अपनी बेटी को देख कर इस बात को मान ले कि यह उस का ही अंश है और यह सच भी है.

“वह सामने पानी में अपनी फ्रेंड्स के साथ अठखेलियां करती मेरी बेटी सिप्पी है.”

फिर सिमरन ने अपने कमरे की विंडो से आवाज लगाई, “सिप्पी यहां आओ. अपनी कालेज फ्रेंड से तुम्हें मिलवाना है.”

जैसे ही सिप्पी ने विंडो की तरफ देखा, तो स्नेहा हैरान रह गई, “हूबहू सिमरन… पर…?

“पर, आंखें…

“ओह… हरी.

“ये तो पैट्रिक जैसी हैं…”

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वेडिंग रिसेप्शन में रेड साड़ी में दिखीं ‘लॉकडाउन की लव स्टोरी’ एक्ट्रेस, फोटोज वायरल

टीवी सीरियल ‘लॉकडाउन की लव स्टोरी’ (Lockdown Ki Love Story) एक्ट्रेस सना सैय्यद (Sana Sayyad) ने 25 जून को अपने बौयफ्रेंड ईमाद शम्सी (Imaad Shamsi) के साथ निकाह किया था, जिसमें उनका लुक बेहद खूबसूरत लग रहा था. वहीं अब एक्ट्रेस सना सैय्यद के वेडिंग रिसेप्शन की फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं सना सैय्यद के वेडिंग लुक्स की झलक…

रेड साड़ी में दिखीं सना

निकाह के बाद अपने वेडिंग रिसेप्शन पर सना ने नेट वाली रेड साड़ी पहनी थी, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रहीं थीं. वहीं उनके इस लुक को मिनिमल मेकअप, न्यूड लिप शेड औप ओपन हेयर्स ने चार चांद लगा दिए थे. सना का ये लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है, जिसके चलते सोशलमीडिया पर उनकी फोटोज वायरल हो रही हैं.

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शादी का अंदाज था कुछ ऐसा

सना सैय्यद और ईमाद शम्सी के निकाह के लुक की बात करें तो अपने निकाह पर सना ने गोल्डन और बेज कलर का लहंगा पहना था, जिसमें वह बहुत ही खूबसूरत नजर आ रही थीं. वहीं उनके पति ईमाद शम्सी ने उनके लुक को मैच करते हुए आयवरी कलर की शेरवानी पहनी थी, जिसमें वह हैंडसम लग रहे थे.

मेहंदी में अलग था लुक

सना सैय्यद की मेहंदी सेरेमनी लुक की बात करें तो अपनी मेहंदी सेरेमनी के लिए सना ने ग्रीन कलर का लहंगा पहना था, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी और मिनिमल मेकअप ने उनके लुक को खूबसूरत बनाया था.

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हल्दी की फोटोज हुई थी वायरल

अचानक शादी के फैसले के बाद ‘लॉकडाउन की लव स्टोरी’ (Lockdown Ki Love Story) एक्ट्रेस सना सैय्यद (Sana Sayyad) की हल्दी सेरेमनी की फोटोज देखकर फैंस हैरान हो गए थे. वहीं पीले कलर के सूट के साथ फूलों का दुपट्टा पहनकर वायरल हुई फोटोज में फैंस उनकी तारीफें करते हुए नजर आए थे.

REVIEW: जानें कैसी है वेब सीरीज समांतर 2

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताःअरूण सिंह बरन और कर्तक डी निभानवर

लेखकः सुहास शिरवलकर के उपन्यास ‘समांतर’ पर आधारित

निर्देशकः समीर विदवांस

कलाकारः स्वप्निल जोशी,तेजस्वी पंडित,साई ताम्हणकर,नितीश भारद्वाज,विक्रम गायकवाड़,जयंत सावरकर,मनोहर कोल्हाटकर,रिषिकेश पांडे,गणेश महादेव रेवाड़ेकर,अमृत गायकवाड़ व अन्य.

अवधिः 20 से 32 मिनट के दस एपीसोड,लगभग सवा चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्म: एम एक्स प्लेअर

भाषाएं: मराठी,हिंदी,तमिल व तेलगू

यदि आपको पहले से ही पता चल जाए कि भविष्य में क्या होने वाला है,तो आप होने वाली घटनाओं को रोकने और अपनी तकदीर को अपने सपनों जैसा बनाने की कोशिश कर सकते हैं?क्या कोई नियति को चुनौती देकर उससे जीत सकता है?इसी सवाल का जवाब ढूढ़ने के लिए निर्देशक समीर विदवंास मराठी भाषा की दिलचस्प रोमांचक वेब सीरीज ‘समांतर’ का दूसरा सीजन  लेकर आए हैं,जो कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘एम एक्स प्लेअर’ पर एक जुलाई से स्ट्रीम हो रही है. पहले सीजन का निर्देशन समीर ने नही किया था.

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कहानीः

2020 में ‘‘एम एक्स प्लेअर’’ पर ही वेब सीरीज ‘‘सामांतर ’का पहला सीजन स्ट्रीम हुआ था. इस कहानी में एक इंसान,एक साया और इन दोनों के हाथ की लकीरों को जोड़ने का प्रयास है. कहानी के अनुसार  अपनी जिंदगी और रोज रोज की कलह से परेशान होकर शादीशुदा कुमार महाजन (स्वप्निल जोशी)  अपने मित्र की सलाह पर एक स्वामी(जयंत सावरकर)  जी के पास अपना भविष्य जानने गए थे. स्वामी जी ने अपनी विद्या के बल पर कहा था कि उसके हाथ की लकीरें तो किसी और के हाथों की लकीरे हैं,वह इंसान तीस वर्ष पहले अपनी जिंदगी जी चुका है और अब वही कुमार महाजन का भविष्य होने वाला है. स्वामी जी की सलाह पर कुमार महाजन,सुदर्शन चक्रपाणी(नितीश भारद्वाज)की तलाश में निकल पड़ते हैं. उनकी मुलाकात चक्रपाणी से होती है. चक्रपाणी उन्हे डायरी देते हुए कहता है कि इसके पन्नों में चक्रपाणी का अतीत और महाजन का भविष्य लिखा है. चक्रपाणी हिदायत देते हैं कि वह डायरी का जिक्र किसी से न करें तथा एक दिन में सिर्फ एक ही पन्ना पढ़े. यहीं से ‘समांतर’के सीजन दो की कहानी शुरू होती है.

पूरे सीरीज में तीस वर्ष पहले की सुदर्शन चक्रपाणी, उनकी पत्नी और चक्रपाणी की जिंदगी में आने वाली संुदरा(साई ताम्हणकर )की कहानी चलती है,उसी के समांतर कुमार महाजन की जिंदगी में भी वही सब घटित होता रहता है.  इन दोनों की जिंदगी एक जैसी है और शायद उनकी किस्मत भी.

कुमार महाजन(स्वप्निल जोशी)  के ससुर शरद(गणेश महादेव रेवाड़ेकर)  अपनी बेटी व कुमार महाजन की पत्नी नीमा (तेजस्वनी पंडित)को समझा रहे हैं कि कुमार को छोड़ देने में ही उसकी भलाई है. मगर डायरी मिलते ही कुमार महाजन की जिंदगी बदलती है. उसे ‘शाह एंड कंपनी’’ में डिवीजन मैनेजर की नौकरी मिल जाती है और कोल्हापुर में कंपनी की तरफ से बंगला और गाड़ी भी मिलती है. कुमार महाजन अपनी पत्नी नीमा व आठ वर्ष के बेटे संजू(अमृत गायकवाड)  के साथ कोल्हापुर पहुंचते हैं. जिंदगी खुशहाल है. वह इमानदार है. इसी के चलते ‘शाह एंड कंपनी’के पुराने ग्राहक प्रताप बावसकर (रिषिकेश देशपांडे)  से उसकी नही जमती. प्रताप बावसकर,कुमार को खरीदने के लिए नोटों से भरा बैग भेजते हैं. कुमार डायरी का पन्ना पढ़ता है,जिसमे लिख है‘‘एक औरत जिंदगी में आएगी. ’कुमार तय करता है कि वह किसी भी औरत को अपनी जिंदगी में नही आने देगा. पर रात में आफिस से देर में लौटने पर नीमा के सवालों से चिढ़ जाते हैं. गुस्से में नीमा बेटे संजू के साथ अपने पिता शरद के पास मंुबई लौट जाती है. इधर कुमार महाजन,प्रताप बावसकर के घर उनका नोटों का बैग वापस देने जाते है,वहीं पर वह देखता हैं कि प्रताप बावसकर अपनी पत्नी मीरा बावसकर(साई ताम्हणकर)संग विक्षिप्त की तरह शारीरिक संबंध बनाते हुए मीरा को प्रताड़ित कर रहे हैं. कुमार चुपचाप लौट आते हैं. मगर मीरा देख लेती है कि कुमार महाजन पैसे का बैग रख कर गए. फिर मीरा,अपनी नग्न तस्वीर कुमार महाजन के मोबाइल पर भेज देती हैं. इधर मीरा और कुमार के बीच फोन पर मीठी बातें होते होते कड़वाहट आ जाती. तो वहीं मीरा किसी न किसी बहाने कुमार के नजदीक आने के प्रयास में रहती है. कहानी में कई मोड़ आते हैं. कुमार महाजन न चाहते हुए भी मीरा के जाल में फंस जाते हैं,पुलिस पकड़ती है, अदालत में मीरा के एक बयान से अदालत कुमार को निर्दोष बताकर छोड़ देती है,मगर मीरा के बयान से नीमा आहत होती है और अपने पिता के घर जाकर आत्महत्या कर लेती है. उसके बाद कुमार महाजन,चक्रपाणी से मिलते है और कहते हैं कि अब वह अपने वर्तमान व अपने कर्म के बल पर अपनी नियति बनाएंगे,पर चक्रपाणी कहते हैं कि तेरी नियति तकदीर तय है और वही होगा,जो डायरी के अंतिम पन्नें में लिखा है. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः डायरी के अंतिम पन्ने पर लिखी हुई घटना ही घटित होती है.

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लेखन व निर्देशनः

पहले सीजन के मुकाबले दूसरा सीजन काफी कसा हुआ और दर्शकों को बांधकर रखने वाला है. शायद इसकी वजह यह है कि इसका निर्देशन अनुभवी निर्देशक समीर विदवांस ने किया है. लेकिन इस वेब सीरीज में बेवजह गंदी गालियों व अश्लील सेक्सी दृश्यों को ठॅूंसा गया है,यदि इनसे बचने का प्रयास किया जाता,तो भी यह एक बेहतरीन वेब सीरीज बन सकती थी. पर ‘एमएक्स प्लेअर’की हर वेब सीरीज में गालियां और सेक्स दृश्यों का होना अनिवार्य सा होता जा रहा है. फिल्म की गति बेहतरीन है,हर एपीसोड में रोचकता बरकरार रहती है. पर कुछ दृश्यों का दोहराव अखरता है. वहीं कुछ दृश्यों पर यकीन करना मुश्किल होता है. इसके अलावा यह वेब सीरीज कहीं न कहीं ज्योतिष और नियति तकदीर को लेकर अंधविश्वास को बढ़ावा देती है,जिसे सही नही जा सकता. क्योंकि यह वेब सीरीज इंसान के कर्म से भविष्य बदलने को दरकिनार करते हुए कहती है कि इंसान की किस्मत में जो लिखाहै,उसे वह बदल नही सकता. यह व्यावहारिक भी नहीं है. इस सीरीज की कहानी एक नास्तिक इंसान को आस्तिक बनाने का प्रयास ही है.

वेब सीरीज का क्लायमेक्स जबरदस्त है.

अभिनयः

कुमार महाजन में स्वप्निल जोशी का अभिनय शानदार है. कुमार महाजन जिस तरह से डायरी में लिखी बात को गलत साबित करने के लिए एक मानसिक लड़ाई लड़ता है,उसे बेहतर तरीके से स्वप्निल जोशी ने जीवंतता प्रदान की है. नीमा के छोटे किरदार में भी तेजस्वनी पंडित अपनी छाप छोड़ जाती हैं. संुदरा और मीरा की दोहरी भूमिका में कमाल का अभिनय किया है.  सुंदरा और मीरा दोनो का मकसद एक ही है,फिर भी दोनों में उनके आर्थिक पक्ष और जिस माहौल के है,उस अंतर को बाखूबी निभाने में साई ताम्हणकर सफल रही हैं. फिर भी सुंदरा की बनिस्बत मीरा के किरदार में साई ताम्हणकर का अभिनय ज्यादा शानदार है. सुदर्शन चक्रपाणी के किरदार को नितीश भारद्वाज ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है,मगर उनके चेहरे की मुस्कान व हॅंसी का जो मैनेरिज्म है,वह हमें तीस वर्ष पहले सीरियल ‘महाभारत’में उनके द्वारा निभाए गए कृष्ण की मुस्कान की याद दिलाता है. अन्य कलाकार भी अपनी जगह एकदम फिट हैं.

नीम है साथ तो डरने की क्या बात

नीम का पौधा हम सबके आसपास आसानी से मिल जाता है. हम सभी नीम के अनगिनत फायदों को सुनते हुए बड़े हुए हैं. नीम अपने सौंदर्य और आरोग्य लाभों के लिए जाना जाता है, आपके पिंपल्स के इलाज से लेकर डैंड्रफ को कम करने तक, आप नीम को अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए अलगअलग तरीकों से इस्तेमाल कर सकते हैं.

बस इतना ही नहीं और सुनिए, इसमें एंटीबैक्टीरियल गुण भी होते हैं और इसका उपयोग एयरबोर्न बैक्टीरियल रोगों और वायरस को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है. ऐसे कई तरीके हैं जिनसे नीम आपकी सेहत और स्किन को फायदा पहुंचा सकता है, आइए उनके बारे में बात करते हैं:

एंटी-फंगल और एंटी-बैक्टीरियल

नीम की पत्तियों का उपयोग फंगल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन्स का इलाज करने के लिए किया जाता है. नीम का उपयोग वार्ट्स व चिकन पॉक्स के इलाज के लिए भी किया जा सकता है. नीम पेस्ट को सीधे प्रभावित जगह पर लगाया जाता है या फिर व्यक्ति को नीम के पानी से नहलाया जाता है. यह फुट फंगल का भी उपचार कर सकता है, जो काफी लोगों में, विशेषकर एथलीटों में काफी आम है.

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इम्यूनिटी बढ़ाता है

आज जब हमें अपनी इम्यूनिटी को पहले से कहीं अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है, नीम हमारी इम्यूनिटी बढ़ाने और हमें हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस से बचाने के लिए एक सही उपाय है. कई आयुर्वेद विशेषज्ञ नीम को रोजाना अपनी डाइट में रखने की सलाह देते हैं. अगर आपको अपने आसपास नीम का पेड़ नहीं मिल पाता है या आप अपना टाइम और ऐनर्जी बचाना चाहते हैं तो अपने शरीर को बैक्टीरिया और वायरस से छुटकारा दिलाने के लिए आप अयूर हर्बल्स तुलसीम मौइस्चराइजिंग बौडी वॉश विद नीम जैसे किसी प्राकृतिक नीम बॉडी वॉश का उपयोग कर सकते हैं. यह आपकी स्किन को पूरे दिन मॉइस्चराइज्ड रखेगा.

मजबूत और लंबे बाल

नीम बालों की क्वालिटी को मजबूत करने और बालों की हेल्दी ग्रोथ में मदद करता है. नीम के पेस्ट का उपयोग हेयर कंडीशनर के रूप में भी किया जाता है. अपने एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुणों के कारण नीम डैंड्रफ को रोकने का एक शानदार नुस्खा है. यह बालों की जड़ों को मजबूत बनाता है, इस प्रकार बालों की ग्रोथ भी बहुत तेजी से होती है. यह जड़ों को जरूरी पोषण और कंडीशनिंग देता है, जिससे वे मजबूत और चमकदार बनते हैं.

स्किन डिसऑर्डर्स का इलाज भी

नीम में ऐसे कई गुण हैं जिससे इसका उपयोग स्किन की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें डिटॉक्सीफाइंग प्रॉपर्टी होती है. नीम का उपयोग एक्जिमा और दूसरे कई स्किन इन्फेक्शन्स के इलाज के लिए किया जाता है. नीम में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण भी होता है जो मुंहासों को कम करता है. माना जाता है कि नीम स्किन के रूखेपन, स्किन की खुजली और रेडनेस को दूर करता है. यह पिंपल्स और स्किन के दाग-धब्बों को भी रोकता है.

और भी फायदे

नीम स्किन के लिए मॉइश्चराइजर के रूप में भी बेहतरीन काम करता है. अगर आप नीम बॉडी वाश का उपयोग करें तो इसमें मौजूद फैटी एसिड और विटामिन आपकी स्किन को मॉइश्चराइज्ड और सॉफ्ट रखेंगे, जिससे आपकी स्किन फ्रेश और यंग फील करेगी. नीम में विटामिन ई के गुण होते हैं जो स्किन को रिपेयर करते हैं और वातावरण में होने वाले बदलाव के प्रभाव से भी बचाते हैं.

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आमतौर पर नीम बाथ जैल, शैंपू, स्किन लोशन और टूथपेस्ट जैसे प्रोडक्ट्स में पाया जाता है, लेकिन आप कोई भी प्रोडक्ट खरीदने से पहले अच्छे से उसके बारे में जान लें और कोशिश करें कि प्राकृतिक तत्त्वों से बने उत्पाद ही इस्तेमाल करें.

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