कोल्ड वॉर की खबरों के बीच ‘वनराज’ ने शेयर किया Anupamaa का ये वीडियो, साथ दिखे Rupali-Sudhanshu

बीते कुछ दिनों से अनुपमा कास्ट के बीच कोल्ड वौर की खबरों ने फैंस को परेशान कर दिया है. हालांकि सीरियल के सितार इन खबरों को नकारते नजर आए थे. दरअसल, खबरें थीं कि अनुपमा स्टार सुधांशु पांडे और रूपाली गांगुली के बीच कोल्ड वॉर चल रही है. हालांकि अब सुधांशू शर्मा ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें रुपाली गांगुली नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वीडियो…

शेयर किया अनुपमा के सेट से वीडियो

 

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खबरें थीं कि सुधांशु पांडे और रूपाली गांगुली के बीच कोल्ड वौर के कारण ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की टीम दो गुटों में बंट चुकी है. वहीं अब सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) ने सोशल मीडिया पर अनुपमा के सेट से एक ऐसा वीडियो शेयर किया है, जिससे कोल्ड वॉर की बात अफवाह नजर आ रही है. दरअसल, वीडियो में सुधांशु पांडे रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) के साथ-साथ पारस कलनावत (Paras Kalnawat), अल्पना बुच, निधि शाह और ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की बाकी स्टारकास्ट मस्ती करते हुए शूटिंग करती नजर आ रही है.

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इस कारण बढ़ी थी बात

 

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दरअसल, सुधांशु पांडे ने एक पोस्ट में बाकी सभी लोगों को टैग करके रूपाली को नजरअंदाज किया. हालांकि रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) ने भी एक पोस्ट शेयर करके लिखा था कि जिसे जो सोचना है सोचे…हर बात की सफाई नहीं दी जा सकती है. वहीं सुधांशू पांडे में इस मामले में बाते साफ करते हुए कहा था कि ‘ये काफी छोटी बातें हैं…और किसी को टैग ना करके किसी को अपने करियर में क्या फायदा होगा? ये बात लाजमी है कि फोटो से जुड़े लोगों को टैग किया जाता है और कई बार तो मैं सोशल मीडिया से दूसरे की ही पोस्ट उठाता हूं और कॉपी पेस्ट कर देता हूं. जब ये शो शुरु हुआ था तो मैंने और रूपाली ने साथ में कई वीडियो शेयर किए थे क्योंकि शो में हम शादीशुदा थे. लेकिन अब शो में मैंने काव्या से शादी कर ली है तो ये भी लाजमी है कि अब हम साथ में ही वीडियो डालेंगे.’

 

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बता दें, सीरियल में वनराज की शादी काव्या से हो चुकी है. हालांकि वनराज के दिल में आज भी अनुपमा के लिए हमदर्दी देखने को मिलती है, जिसके कारण फैंस भी बैचेन रहते हैं.

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एक बार फिर ट्रोल हुईं Kareena Kapoor Khan, फोटोज देख कही ये बात

बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर खान (Kareena Kapoor Khan) आए दिन सुर्खियों में छाई रहती हैं. हालांकि कई बार वह ट्रोलिंग का शिकार भी हो जाती हैं. इसी बीच एक्ट्रेस करीना कपूर (Kareena Kapoor Khan) के लेटेस्ट फोटोज के चलते ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है. दरअसल, हाल ही में दूसरी बार मां बनने के बाद करीना कपूर खान के फोटोज शेयर की थीं, जिसमें उनका ट्रांसफौर्मेशन देख फैंस का रिएक्शन देखने को मिल रहा है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

फोटोज में दिखा ट्रांसफौर्मेशन

दूसरी बार मां बनने के बाद एक्ट्रेस करीना का वजन बढ़ गया था, जिसके कारण ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता था. इसी बीच हाल ही में शेयर की गई फोटोज में करीना कपूर खान घर की बालकनी में योगा करती हुई नजर आईं थीं, जिसके बाद फैंस का रिएक्शन देखने को मिला था. वहीं कुछ लोगों ने उन्हें बूढ़ी भी कह दिया था.

 

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ट्रोलर्स ने कही ये बात

करीना कपूर की फोटोज पर ट्रोलर्स को एक बार फिर से अपनी भड़ास निकालने का मौका मिल गया है. एक यूजर ने फोटोज पर कॉमेंट किया है, तुम इतनी सूजी हुई क्यों दिख रही हो बेबो? ऐसा लग रहा है कि किसी ने तुम्हें कई बार मारा है. एक दूसरे यूजर ने लिखा है, बेबो अब तुम बूढ़ी हो गई हो.

बता दें, बीते दिनों करीना कपूर बहन करिश्मा की बर्थडे पार्टी में नजर आईं थीं, जिसमें उनका लुक बेहद खूबसूरत लग रहा था. हालांकि ट्रोलर्स ने उनके मोटापे को लेकर ट्रोल करना शुरु कर दिया था. हालांकि वह अपनी नई फिल्म के लिए दोबारा ट्रांसफौर्मेशन के लिए तैयार हो रही हैं. अब देखना है कि बेबो ट्रोलर्स को कैसे करारा जवाब देती हैं.

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Anupamaa: शादी के बाद हुआ काव्या और किंजल का बुरा हाल, देखें Video

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में इन दिनों फैमिली ड्रामा देखने को मिल रहा है. इसी बीच किंजल और अनुपमा के बीच तनाव देखने को मिला, जिसको लेकर काव्या बेहद खुश हैं. हालांकि औफस्क्रीन किंजल यानी निधि शाह और काव्या यानी मदालसा शर्मा ने शादी के बाद हुए बुरे हाल का एक वीडियो शेयर किया है, जिसे फैंस पसंद कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

शादी के बाद का बताया हाल

काव्या यानी मदालसा शर्मा अनुपमा के सेट से अपनी फोटोज और वीडियो लगातार फैन्स के साथ शेयर करती हैं. इसी बीच मदालसा शर्मा ने निधि शाह यानी किंजल के साथ मिलकर शादी के बाद होने वाले बुरे हाल के बारे में बताया है. दरअसल, वीडियो शेयर करते हुए मदालसा शर्मा ने लिखा, ‘काव्या और किंजू शादी के पहले और शादी के बाद’.

वीडियो में दिखी बौंडिग

दरअसल, वीडियो में काव्या (मदालसा) और किंजल (निधि शाह) शादी से पहले ‘मुझे साजन के घर जाना है’ गाने पर बड़ी खूबसूरती के साथ डांस करती नजर आ रही हैं. वहीं इसके तुरंत बाद दोनों किचन में घर का काम करते नजर आती हैं और रोते हुए बोलती हैं- मुझे अपने घर जाना है. मदालसा और निधि के इस वीडियो को फैंस बेहद पसंद कर रहे हैं.

सीरियल में दिख रहा है कुछ ऐसा ही ट्रैक

अनुपमा के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो शादी के बाद काव्या का भी बुरा हाल देखने को मिल रहा है. वहीं इसी कारण वह किंजल को भी अनुपमा के खिलाफ भड़काती नजर आ रही है. दरअसल, किंजल को अनुपमा की तरह किचन संभालने की बात पर काव्या, किंजल और उसकी मां राखी को भ़ड़का रही है, जिसके कारण शाह परिवार में ड्रामा देखने को मिल रहा है.

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यंगिस्तान: कही आप यूज तो नहीं हो रहे है!  

लॉक डाउन का समय चल रहा है , दिल दिमाग में नए -पुराने यादों के बीच महानता को ले कर संघर्ष चल रहा है. वही इस बदलते ज़माने के साथ रिश्ते नाते, दोस्ती और प्यार में आ रहे बदलाव का भी मूल्यांकन हो रहा है. इन सबके बीच कई बातें उभर कर सामने आ रही है. गिरती मानसिकता और बढ़ता स्वार्थ यंगिस्तान के एक बड़े समूह को मानसिक पतन को ओर अग्रसर कर रहा है. अपने पास खर्च के पैसे नही होते , लेकिन अगर उनके सबसे नजदीक साथी या उनका प्यार किसी चीज की मांग करे तो वह हर कीमत पर उसे पूरा करने में लग जाते है.

अपने मोबाईल में बैलेंस नहीं होता, लेकिन उनका रिचार्ज की उन्हें चिंता होती है. घरवालो को कभी फईनेसली मदद करे ना करे, लेकिन अपने खास दोस्त और प्यार के लिए पैसा जुटा कर उन्हें देना इनके लिए कोई बड़ा काम नही है . यंगिस्तान का एक बड़ा तबका भावनाओ में डूबा हुआ,आधुनिक रिश्ते नाते और प्यार में यह समझ ही नही पा रहा है ,कि कहा किसने उनका जम कर यूज किया. तो आइये 09 विन्दु के माध्यम से समझते है कही आप को कोई यूज तो नहीं कर रहा है.

1. किसी को आर्थिक रूप से दो या तीन बार सहायता करना बुरा नहीं है और वह भी ऐसा खास को जिसे आप पसंद करते हैं, जिसके साथ आपके मजबूत रोमांटिक संबंध हैं या जिसे आप अपने लिए सबसे खास सबसे अलग मानते है.लेकिन इस तरह की सहायता की भी सीमा होती है. अगर आप सीमा को नही समझ पा रहे है, और हर मांग को अपना खास मान कर पूरा करते जा रहे है, तो यह आपके लिए भारी पड़ सकता है.

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2. सहायता किसी भी आर्थिक मदद के रूप में हो सकती है.अगर आपका साथी बार-बार और बहुत कम अंतराल में आपसे पैसों की डिमांड करता है और वह उन पैसों को वापस लौटाता भी नहीं है तो इसकी पूरी संभावना है कि वह पैसों के लिए आपको यूज कर रहा है. ऐसे में आप उसके मांग पर धीरे धीरे पैसे या सामान देना बंद कर दें, फिर देखें कि क्या वह तब भी आपके साथ है या नही ?

3. अगर आपका खास दोस्त या आपका प्यार आपसे हर बार मोबाईल बिल या रिचार्ज का बात कर आपका इमोशनल कर रही हो या कर रहा हो तो आप सावधान रहिए, हो सकता है आपका एक दो बार का मदद उसे आप पर निर्भर ना बना दे.

4. कभी कभी ऐसा भी होता है कि आप अपने उस खास के पार्टी में जाते है और जाने से पहले भी प्रेशर होता है एक महँगी गिफ्ट का ,तो उस समय आपका वह महंगा नही जरुरी लगता है लेकिन यही गिफ्ट  उसे आपके महंगे गिफ्टो कि आदत डालती है.इस तरह अगर आप इमोशन में डूबते उनके हर मांग को पूरा करते जायेगे तो आप एक साकेट दे रहे हाई कि आप खुद यूज होने के लिए तैयार है.

5. समाजशास्त्री डाँ प्रीति आरोड़ा का कहना है कि अधिकतर युवाओ कोइस बात का अहसास ही नहीं होता कि अपने फायदे और केवल टाइम पास के लिए उनका खास दोस्त, उनका पार्टनर या ब्वॉयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड उनका यूज कर रहे होते है. सच्चाईतो यह है कि चाहे महिला हो या पुरुष, कोई भी किसी की स्वार्थपूर्ति के लिए यूज नहीं होना चाहता. लेकिन आज के युवाओ के बीच पनपी आधुनिक रिश्तो से एक दुसरे का समय पर उपयोग करने की प्रणाली बन गई है. यह अदृश्य प्रणाली हर साल ना जाने कितने युवाओ को सुनहरे रिश्ते और प्यार के बदले में धोका का जख्म दे रही है.

6. जब कोई केवल सेक्सुअल पर्पज के लिए किसी को यूज करता है तो उसमें पैसा, मौज-मस्ती और थोड़ी देर का साथ शामिल होता है. हालांकि यह बात आम है कि जब खुद के यूज होने की सच्चाई सामने आती है, तो लोग यूज करने वाले से किनारा काट लेते हैं, उससे विश्वास उठ जाता है.

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7. युवाओ को जन संचार की शिक्षा देने वाले संदीप दुबे का कहना है किअपनी आवश्यकताओं और स्वार्थ की पूर्ति के लिए साथी का मिसयूज करना कोई नई बात नहीं है. लेकिन आधुनिक दौर में यह बढ़ा है. जब यह सच्चाई जब सामने आती है तो बहुत दुख पहुंचाती है.

8. वही अपने खास प्यार के हाथो यूज होने के बाद इंजीनियरिंग छात्र सुनील कहते है कि पहले मैं इन बातो को नही मनाता था, लेकिन अब मनाता हूँ और किसी पर विश्वास करने से पहले दस दफा सोचता हूँ. जबकि 25 साल की सीमा का कहना है, कि यूज करने की बात तभी दमंग में आती है, जब हमारे रिश्तो में स्वार्थ  छिपा होता है और यूज होने के बाद किसी भी इंसान को जीवन का सबसे बड़ा दुःख होता है .

9. अगर आपको थोड़ा भी शक है कि आपको इस्तेमाल किया जा रहा है, तो आप जिस व्यक्ति के साथ रिलेशन में हैं, उसके साथ ज्यादा अलर्ट और ऑब्जव्रेट बने, साथ ही साथ उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां भी एकत्र करें. अगर आप फिर भी यूज होती हैं, तो जितनी जल्दी संभव हो, उस संबंध को तोड़ दें.

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‘आजकल तो यह अपने गुप्त समाचार विभाग की बिल्लियों के बहुत गुणगान करती रहती है. वह भूल जाती है कि मैं एक लंबे काल से उस के दुखसुख का साथी, जिसे मक्कार, झूठा, बेईमान, बदमाश, चोर, निर्लज्ज घोषित कर दिया गया है. जैसेजैसे उस के कटाक्ष लंबे होते जाते हैं, मेरे दुख बढ़ते जाते हैं. रही बात बच्चों की, तुम्हीं बताओ, भारतीय अमेरिकी बहुओं के घर भला कितने दिन जा कर रहा जा सकता है?’

‘धर्मवीर, मुझे तुम्हारी चिंता होने लगी है. बस, यही कह सकता हूं कि वार्त्तालाप का रास्ता खुला रहना जरूरी है.’

‘हरि मित्तर, कोशिश तो बहुत करता हूं. पर जब परिचित लोगों के सामने मेरी धज्जियां उड़ाई जाती हैं, लांछन लगाए जाते हैं तब मैं बौखला जाता हूं. बोलता हूं तो मुसीबत, नहीं बोलता तो मुसीबत. इस उम्र में इतना तोड़ डालेगी, वजूद इतना चकनाचूर कर डालेगी, कभी सोचा न था. जब स्थिति की जटिलता बेकाबू होने लगती है, मैं उठ कर बाहर चला जाता हूं या किताबों को उथलपुथल करने लगता हूं. तब दोनों अपनेअपने कोकून में बंद रहने लगते हैं, मानो एकदूसरे को रख कर भूल गए हों. साथ ही तो रह जाता है केवल? दिन बड़ी मुश्किल से गुजरते हैं. जैसे छाती पर कोई पत्थर रखा हो और रातें, जैसे कभी न होने वाली सुबह. कामना करता हूं, इस से अच्छा तो बाहर सड़क पर किसी खूंटी पर टंगा होता. थोड़ा जीवित, थोड़ा मृत. फिर सोचता हूं कहीं दूर भाग जाऊं जहां कम से कम ये लंबे दिनरात कलेजे पर अपना वजन महसूस करते तो नहीं गुजरेंगे. पूरे घर की हवा में उदासी छितरी रहती है. तब एहसास होता है, शायद यह उदासी मेरे मरते दम तक हवा में ही ठहरी रहेगी. तू भली प्रकार से जानताहै कि मेरे भीतर एक कैदखाना है. कैसे भाग सकता हूं यथार्थ से.

‘रही बात से बात कायम रखने की? जरूरत उस की है, मात्र उस की. इन लंबेलंबे दिनों और काली रातों के अटूट मौन में आवाज बनाए रखने की गरज भी उस की है, मात्र उस की. मेरी भावनाओं को कुचल कर चीथड़ेचीथड़े कर दिए हैं उस ने. गरीब हो गया हूं भावनाओं से. सरकतेरपटते रहते हैं मेरे शब्द, बेअसर, सपाट. तुम्हारी भाभी की चेतना सुनती नहीं, मस्तिष्क सोकता नहीं.’

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हरि मित्तर ने घड़ी देखते हुए कहा, ‘धर्मवीर, बहुत देर हो गई है. मौसम भी खराब होता जा रहा है. अब चलते हैं. जल्दी ही मिलेंगे.’

धर्मवीर आज सबकुछ उगलने को तैयार था. धर्मवीर की बातें सुन कर हरि का मन भारी हो गया. उसे इस समस्या का कोई हल दिखाई नहीं दे रहा था कि वह कैसे धर्मवीर की सहायता करे.

धर्म को लगा जैसे कोई तो है, जो उसे समझता है. फोन की प्रतीक्षा करतेकरते धर्म ने 4 दिन बाद हरि को फोन किया, ‘हैलो हरि, कैसे हो?’

‘ठीक हूं, और तुम?’

कुछ ही देर में धर्म हरि के द्वार पर था.

‘धर्मवीर, आज तुम मेरे यहां आ जाओ. तुम्हारी भाभी अपने भाई के यहां गई है.’

‘चाय बनाओ, आता हूं.’

‘अंदर आओ धर्म, बैठो. आज मैं तुम्हें अपने इलैक्ट्रौनिक खिलौने दिखाता हूं. यह है मेरा आईपौड और यह ‘वी’ इस में अलगअलग खेल हैं. 4 लोग एकसाथ खेल सकते हैं. जब कुछ करने को नहीं मिलता, हम बूढ़ाबूढ़ी खेलते रहते हैं. या फिर ताश. चलो, एक गेम तुम्हारे साथ हो जाए. ध्यान भी दूसरी ओर जाएगा और समय का भी सदुपयोग हो जाएगा.’

‘नहीं यार, यह मुमकिन नहीं. मुझे समय व्यतीत करने की कोई समस्या नहीं. चलो, अगलीपिछली बातें करते हैं.’

‘धर्मवीर, अभी तक मैं यह समझ नहीं पाया कि तुम इतना कुछ अकेले क्यों सहते रहे? एक बार जिक्र तो किया होता?’

‘चाहता तो था किंतु कब एक शून्य मेरे चारों ओर भरता गया, पता ही नहीं चला. कोई ऐसा दिखाई भी नहीं दिया जिस से ऐसी व्यक्तिगत बात कर सकता, जो मेरे भयावह शून्य को समझता और मेरी बरबादी का कहानी पर विश्वास करता. 2 बार आत्महत्या का प्रयत्न भी किया. मुझे लगा, मुक्ति का रास्ता यही है. जानते हुए भी कि सब अलगअलग अपनीअपनी सूली पर चढ़ते हैं. कोई किसी के काम नहीं आता. किसी का दुख नहीं बांटता. केवल मुंह हिला देते हैं या तमाशा देखते हैं.’

‘धर्मवीर, मेरी तो सोच भी जवाब दे चुकी है. तुम किसी करीब के रिश्तेदार से बात कर के तो देखो या काउंसलिंग की मदद ले कर देखो. घर के वातावरण को सामान्य रखने का प्रयत्न करो. शायद कोई परिवर्तन आ जाए.’

‘हरि, यह भी सुन लो, एक दिन घर पर बहुत मेहमान आने वाले थे. सुबह से तुम्हारी भाभी अपने विरोधी भावों की धूपछांव में अपना कर्तव्य निभाती रही. दिन अच्छी तरह से बीता. शाम की चाय के समय किसी ने पूछ लिया कि तुम्हारी ‘उस’ सहेली का क्या हाल है?

‘‘उस’ शब्द सुनते ही मेरी पत्नी की उनींदी सी सुस्ती एकदम तन गई. उस का कभी न रुकने वाला राग शुरू हो गया. सभी मेहमानों के सामने उस ने मुझ पर अनेक लांछन लगा कर मेरे चरित्र की धज्जियां उड़ा दीं. एक ही झटके में मुझे घर छोड़ने को कहा. सामने बैठे मेरी जिह्वा तालू से चिपकने लगी. एक मौन जमने लगा. मैं चुप. सब चुप. खामोशी का एक पहाड़ और भीतर की उदासी मुझे चुभने लगी. मुझे लगा, शायद यह मौन सदा के लिए हमारे साथ बैठ जाएगा. मैं ने गहरी पीडि़त सांसें लीं. रुदन की अतिशयता से मेरा शरीर कांपने लगा. मैं पसीने से तर हो गया.

‘मेरे सीने में एक बेचैनी सी घर कर गई. अपनी खुद्दारी को इतना घायल कभी नहीं पाया. उस की बातों से ऐसा लगा, मानो अपराधबोध की छोटी सी सूई मन के अथाह सागर में डाल दी गई हो, जो तल में बैठ कर अपना काम करने लगी. उस ने भीतर से मुझे अस्थिर कर दिया. वह लगातार कहर ढाती शब्दावली का बोझ डालती रही. मैं अपने ही घर में कठघरे में खड़ा रहा जिस का प्रभाव मेरे रोजमर्रा के जीवन पर पड़ने लगा.’

‘धर्म, अगर तुम कहो तो मैं भाभी से बात कर के देखूं?’

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‘ना-ना, जब से विमला को पता लगा कि हम दोनों हर हफ्ते मिलते हैं, उस ने तुम्हें दलाल के खिताब से सुशोभित कर दिया है. अब अपनी ही नियति में अकेला निशब्द सब सहता जा रहा हूं. मेरे उसूलों की गड्डमड्ड. उस दिन मेहमानों के सामने उस की निर्लज्जता का रूप देख कर मैं सकते में आ गया. वह रूप मेरे मन पर चिपका रहा. मैं चूरचूर हो गया. उसे मेरे टुकड़े भी पसंद नहीं थे. पर टुकड़े तो उसी ने किए थे. उस ने ही मेरे उसूलों को अस्वीकारा और मुझे 2 टुकड़ों में बांट दिया. मैं सफाई के बोझ से दबा पड़ा हूं. न जाने कौन सा मेरा हिस्सा हृदय रोग के हमले के बाद मर जाने वाले हृदयकोष्ट की तरह ठंडा हो गया.’

वह हमारी आखिरी मुलाकात थी. इस के बाद मुझे उस से मिलने का अवसर ही नहीं मिला.

काश उस से मिल पाता. आज इस वक्त मैं धर्मवीर के अंत्येष्टि संस्कार पर उस के घर बैठा खुद को धिक्कार रहा हूं. वह चिल्लाता रहा. मेरा दोस्त मोमबत्ती की तरह पिघलपिघल कर अंधेरों में विलीन हो गया. रहरह कर मुझे उस के शब्द याद आ रहे थे – ‘हरि, मेरे शब्दों की उसे (विमला) अपेक्षा ही कहां थी?’ मेरे भीतर का एहसास कातर पलपल छटपटाता रहा. मैं बोल नहीं पा रहा था पर उस के कहे शब्द बारबार मस्तिष्क को झकझोर रहे थे- ‘तारतार कर देने से वस्तु ही मिट जाती है. और मैं तो टर्रटर्र टर्राता रहा, विमला तुम्हीं को चाहा है, सिर्फ तुम्हीं को. चाहो तो अग्नि परीक्षा ले लो.’

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लेजर हेयर रिमूविंग एट होम  

हेयरलेस दिखना सबको अच्छा लगता है ख़ास कर गर्मी के मौसम में शार्ट ड्रेस में तो यह जरूरी ही हो जाता है. आप चाहें शेविंग , वैक्सिंग या ट्विचिंग करा सकती हैं. पर अब घर बैठे आप खुद लेजर हेयर रिमूवर से अनचाहे बालों से छुटकारा पा सकती हैं. अगर आप लेजर हेयर रिमूविंग की शौक़ीन हैं तो आजकल अफोर्डेबल लेजर हेयर रिमूवर बाजार में उपलब्ध हैं. इस से आपको काफी समय और रुपयों की बचत भी होगी .

लेजर हेयर रिमूवर क्या हैलेजर प्रकाश किरणों से  हेयर फॉलिकल्स को जला कर नष्ट कर देते हैं जिसके चलते हेयर रिप्रोडक्शन नहीं हो पाता है . इस प्रोसेस में  एक से ज्यादा सेसन लगता है , यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको शरीर के किस भाग के बाल हटाने हैं .

सेल्फ लेजर हेयर रिमूवर लेजर तकनीक दो तरीकों से बाल हटाता है – एक आईपीएल ( IPL ) और दूसरा  लेजर हेयर रिमूवर . दोनों एक ही सिद्धांत पर काम करते हैं – हेयर फॉलिकल्स को नष्ट करना . आमतौर पर  घर में हैंड हेल्ड आईपीएल रिमूवर से बाल हटाते हैं हालांकि इसमें  लेजर बीम नहीं होता है फिर भी इंटेंस पल्स लाइट बीम द्वारा यह टारगेट एरिया के बालों के जड़ तक पहुँच कर फॉलिकल्स को लेजर की तरह मार देता है जिसके चलते वह एरिया बहुत दिनों तक हेयरलेस रहता है . इसे चेहरे पर भी यूज कर सकती हैं पर आँखों को बचा कर.

आईपीएल हेयर रिमूवर किसके लिए सही हैआधुनिक विकसित तकनीक से निर्मित आईपीएल रिमूवर सभी तरह के बालों से छुटकारा पाने का दावा करते हैं . आमतौर पर त्वचा और बाल के रंग में  कंट्रास्ट यानि स्पष्ट अंतर रहने पर यह अच्छा परिणाम देता है , जैसे फेयर स्किन और डार्क हेयर . फिर भी लेजर हेयर रिमूविंग के पहले एक बार त्वचा विशेषज्ञ से सलाह लेनी  चाहिए . डार्क स्किन में  यह उतना अच्छा काम नहीं कर सकता है क्योंकि इसे मेलेनिन और फॉलिकल्स में अंतर समझने में कठिनाई होती है , ऐसे में स्किन बर्न की संभावना है.

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आईपीएल की सीमा लेजर की तुलना में आईपीएल कम शक्तिशाली होता है इसलिए हेयर फॉलिकल्स को उतनी   ज्यादा शक्ति से नहीं मारता है जितना प्रोफेसनल लेजर रिमूवर से और इसलिए  इसका असर धीमा होता है. इसे 2 आंखों के अत्यंत निकट , होंठों के ऊपर इस्तेमाल न करें.आँखों के निकट यूज के पहले चश्मा या सनग्लास पहन कर इस्तेमाल करना बेहतर होगा. प्रेग्नेंनसी और ब्रेस्टफीडिंग में बिना डॉक्टर की सलाह के न इस्तेमाल करें. इसके अतिरिक्त बिकिनी एरिया के अंदर नाजुक अंगों पर भी आईपीएल डिवाइस नहीं करनी चाहिए. आधुनिक तकनीक से बने डिवाइस तिल या मांसों पर इस्तेमाल करने का दावा करते हैं पर डार्क एरिया के लिए यह ठीक नहीं है .

आईपीएल इस्तेमाल के पहले –  पहली बार शुरूआत शरद या सर्दी के मौसम में बेहतर है. टारगेट एरिया पर कोई पाउडर , परफ्यूम या केमिकल न हों.बाल अधिक बड़े हों तो उन्हें  3 – 4 मिली मीटर तक  ट्रिम कर लें.

कैसे इस्तेमाल करें – आईपीएल हेयर रिमूवर को इस्तेमाल करना आसान है.आईपीएल को बिजली लाइन में प्लग कर  मशीन को टारगेट एरिया के निकट लाएं.फिर उस एरिया पर अवलम्ब ( 90 डिग्री ) पर रखते हुए इसे ऑन कर आईपीएल बीम फोकस करें . यह प्रति मिनट 100 या ज्यादा शॉट्स या फ्लैशेज उत्पन्न  कर आपके बालों को मिनटों में हटा देगा. लगभग 30 मिनटों के अंदर  आप पैरों , काँख और बिकिनी लाइन के बालों से मुक्त हो सकती हैं. अपनी त्वचा और बालों के रंग  ( काले , भूरे , सुनहरे ) रूप ( मोटाई , लंबाई  ) के अनुसार दिए गए निर्देशानुसार लाइट इंटेंसिटी को एडजस्ट कर सकती हैं.  शुरू में इसे  दो  सप्ताह  के अंतराल पर फिर इस्तेमाल करना होगा. बाद में पूर्णतः  हेयरलेस त्वचा दिखने के लिए हर तीन चार महीनों पर इसे यूज करना होगा पर बाल पहले की तुलना में कम घने , पतले  और हल्के रंग के होंगे.

फायदे इसका प्रयोग आप अपने घर के कम्फर्ट जोन में अपने समयानुसार कर सकती हैं. किसी लेजर सैलून या प्रोफेसनल के यहाँ बार बार जाने की जरूरत नहीं है . यह प्रोफेसनल लेजर रिमूवल की तुलना में बहुत सस्ता है.

यह कम शक्तिशाली प्रकाश किरणों का इस्तेमाल करता है जिससे लेजर की तुलना में बहुत कम साइड इफेक्ट होने की संभावना है.

इसके लिए बार बार बैट्री बदलने या रिचार्ज की आवश्यकता नहीं है. आमतौर पर निर्माता  इस  डिवाइस  की लाइफ 10 + वर्षों तक बताते हैं.

शेविंग , वैक्सिंग और ट्वीचिंग  की अपेक्षा यह ज्यादा सुविधाजनक है और इसमें दर्द लगभग नहीं होता है.

आईपीएल मुंहासे , बर्थ मार्क , फाइन लाइन्स आदि के  कुछ हल्के दाग – धब्बे भी हटा सकता है .

साइड इफेक्ट्स – 

इस्तेमाल के दौरान हल्का दर्द महसूस होना. ऐसे में आइस पैक या नंबिंग क्रीम से आराम मिलेगा.

टारगेट एरिया के त्वचा का  हल्का रेड या पिंक होना या फूलना. यह दो तीन दिनों में स्वतः ठीक हो जाता है.

विरले ही बहुत ज्यादा लाइट के चलते  मामूली स्किन बर्न हो सकता है .

कभी  स्किन पिग्मेंट मेलेनिन को हानि होने से धब्बा  हो सकता है.

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विशेष कोई चाहे कितना भी दावा करे लेजर  से भी परमानेंट हेयरलेस होना सम्भव नहीं है.कुछ महीनों के बाद इसे फिर रिपीट करना होगा.लेजर  आईपीएल  से बेहतर है पर यह बहुत महंगा है.

लेजर हेयर रिमूवल कॉस्टसाधरतया प्रोफेसनल से  लेजर हेयर रिमूविंग का कॉस्ट इन बातों पर निर्भर करता है – शहर या मेट्रो ,शरीर के  किस भाग का बाल हटाना या टारगेट एरिया , त्वचा और बालों का रंग , कितने सिटिंग्स लगेंगे और  लेजर विधि का  चुनाव. आमतौर पर प्रोफेसनल द्वारा फुलबॉडी लेजर रिमूविंग का कॉस्ट करीब  दो लाख रुपये होता है.

उदाहरण – काँख के बाल के लिए 2000 से 4000 , हाथ 7000 से 14500 , पैर 11000 से 21000 तक हो सकता है – शहर या मेट्रो के अनुसार.

आईपीएल का कॉस्ट मीडियम लेवल आईपीएल करीब 5500 रुपये में मिल जाता है. इसका मूल्य नंबर ऑफ़ शॉट्स या फ्लैशेज और अन्य फीचर्स पर भी निर्भर करता है.

बेटियां भी संपत्ति में बराबर की हकदार

बीते साल,11 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने हिन्दू उत्तराधिकारी (संशोधन ) अधिनियम 2005 की पुनवर्याख्या करते हुए बेटियों के हक में एक बड़ा फैसला दिया था कि  बेटियों का संयुक्त हिन्दू परिवार की पैतृक संपत्ति पर उतना ही हक होगा, जितना बेटों का.सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, एक हिन्दू महिला जन्म के साथ ही पिता की संपत्ति में बराबर की हकदार हो जाती है, यह इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि उसका पिता जीवित है या नहीं.  सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस निर्णय में हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम में वर्ष 2005में किए गए संशोधन का विस्तार किया और इस संशोधन के माध्यम से बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार देकर हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम, 1956 की धारा 6 में निहित भेदभाव को दूर किया गया.

पुनवर्याख्या की जरूरत क्यों पड़ी ?

ये एक ऐसा सवाल है जिससे ज़्यादातर महिलाएं जूझ रही हैं.  क्योंकि भारत में महिलाओं को पिता की संपत्ति में अधिकार की मांग करने के लिए कानून से पहले एक लंबी सामाजिक जंग को जितना पड़ता है.  महिलाएं जब सामाजिक रिश्तों को ताक पर रखकर अपने पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी की मांग करती थीं तो हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन कानून 2005 कई महिलाओं के सामने अड़चन पैदा किया करता था. वजह ये थी कि कानून पास होने के बाद कई स्तर पर ये सवाल खड़ा हुआ कि क्या ये कानून रेट्रोस्पेक्टिव्ली यानि बीते हुए समय में लागू होगा ? यानि क्या इस कानून के तहत वो महिलाएं भी पैतृक संपत्ति की मांग कर सकती है जिनके पिता कानून संशोधन के वक़्त जिंदा नहीं थे.  इस वजह से महिलाएं कोर्ट तक पहुंची लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी.  वहीं,2015 में दन्नमा बनाम अमर मामले में कोर्ट ने महिलाओं के हक में फैसला किया. अब यह स्पष्ट है कि भले ही पिता की मृत्यु हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन ) कानून, 2005 लागू होने से पहले हो गई हो, फिर भी बेटियों का माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा.सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि बेटी को वही उत्तराधिकारिता हासिल होगी जितनी उसे उस स्थिति में होती अगर वह एक पुत्र के रूप में जन्म लेती.  अर्थात बेटी को भी अब बेटे के बराबर संपत्ति में अधिकार मिलेगा, चाहे उसके पिता की मृत्यु कभी भी हुई हो. ये फैसला संयुक्त हिन्दू परिवारों के साथ-साथ बौद्ध, सिख, जैन, आर्य समाज और ब्रह्म समाज से संबन्धित समुदायों पर भी लागू होगा.

इस फैसले के तहत अब वे महिलाएं भी अपने पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार की मांग कर सकती हैं जिनके पिता का 9 सितंबर 2005 के पहले निधन हो चुका है.

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अब तक क्या होता था ?

साल 2005 में हिन्दू उत्तराधिकार कानून में संशोधन करके ये व्यवस्था की गई थी कि महिलाओं को पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलना चाहिए.  लेकिन जब महिलाओं की ओर से अधिकारों की मांग की गई तो ये मामले कोर्ट पहुंचे और कोर्ट पहुँचकर भी महिलाओं के हक में फैसले नहीं हुए.  साल 2015 में प्रकाश बनाम फूलवती केस में दो जजों की एक बेंच ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि अगर पिता की मौत हिन्दू अधिकार संशोधन कानून के 9 सितंबर, 2005 को पास होने से पहले हो गई है तो बेटी को पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलेगा.  लेकिन इसके बाद साल 2018 में फिर एक फैसला आया कि भले ही पिता की मौत कानून लागू होने के बाद हुई हो तब भी बेटी को पिता की संपत्ति में बराबर का हक मिलना चाहिए.  लेकिन कोर्ट ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि बेटियों को भी उतनी ही हिस्सेदारी मिलेगी जीतने बेटों को.  क्योंकि संपत्ति में दोनों बराबर के हकदार हैं.

  • अगर बेटी विवाहित हो 

2005 से पहले हिन्दू उत्तराधिकार कानून में बेटियाँ सिर्फ हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) की सदस्य मानी जाती थी, हमवारिस यानि समान उत्तराधिकारी नहीं. हमवारिस या समान उत्तराधिकारी वे होते थे जिनका अपने से पहले चार पीढ़ियाँ की अविभाजित सम्पत्तियों पर हक होता था. हालांकि, बेटी का विवाह हो जाने पर उसे हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) का भी हिस्सा नहीं माना जाता था. लेकिन 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस यानि समान उत्तराधिकारी माना जाने लगा. बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आयेगा. यानि, विवाह के बाद भी बेटियाँ पिता की संपत्ति की अधिकार मानी जाएगी.

मौखिक बंटवारा मान्य नहीं 

कानून में संशोधन से यानि 2005 से पहले मौखिक तौर पर बंटवारा मान्य था. लेकिन अब शीर्ष कोर्ट ने साफ कह दिया कि यह मान्य नहीं होगा, क्योंकि इसमें धोखाधड़ी और बेटी को उसके अधिकार से वंचित रखे जाने की गुंजाइश हो सकती है. यह वैधानिक नहीं है. हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि अपवाद के तौर पर किसी पब्लिक दस्तावेज़ से गुंजाइश निकलने पर इसे मान्य किया जा सकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा थाकि बेटे सिर्फ शादी तक बेटे रहते हैं. लेकिन बेटी हमेशा बेटी ही रहती है. विवाह के बाद बेटों की नियत और व्यवहार में बदलाव आ जाता है. लेकिन एक बेटी अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक माता-पिता के लिए प्यारी बेटी ही होती है. इसलिए बेटी पैतृक संपत्ति में बराबर की हकदार मानी जाएगी, भले ही  उसके पिता जीवित हों या नहीं.

  • दो तरह की होती हैं संपत्ति 

हिन्दू उत्तराधिकर कानून के मुताबिक, संपत्ति दो तरह की होती है. एक संपत्ति पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति और दूसरी पैतृक संपत्ति होती है., जो पिछले 3 पीढ़ियों से परिवार को मिलती आई है. कानून के मुताबिक, बेटा हो या बेटी, पैतृक संपत्ति पर दोनों का जन्म से बराबर का अधिकार होता है. इस तरह की संपत्ति को कोई पिता, अपने मन से किसी को नहीं दे सकता यानि एक के नाम पर वसीयत नहीं कर सकता है और ना ही बेटी को उसका हिस्सा देने से वंचित रख सकता है. अगर पिता ने संपत्ति खुद अपनी आय से खरीदी है तो उसे अपनी इच्छा से किसी को भी ये संपत्ति देने का अधिकार है, लेकिन इस पर भी बेटे, बेटी आपत्ति जता सकते हैं.

आपको बता दें कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने साल 1951 में हिन्दू कोड बिल संसद में पेश किया था.  जिसके अनुसार पुरुषों के एक से ज्यादा शादी करने पर रोक लगाने, महिलाओं को तलाक लेने के अधिकार देने और महिलाओं को पिता की संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार देने की बात कही गई थी.  लेकिन महिलाओं के लिए संसद में पेश किए गए इस बिल का जमकर विरोध हुआ था.  हिन्दू महासभा ने इसे हिन्दू धर्म के लिए खतरा बताया था.  हिन्दू महासभा, आरएसएस व अन्य हिन्दू संगठनों ने इसका विरोध किया था.  जिसके कारण नेहरू जी भी इस बिल को पास नहीं करवा पाए थे.  जिसके बाद बाबा साहब ने नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था.  हालांकि, बाद में इस बिल को चार हिस्सों में विभाजित कर इसे संसद में पास किया गया था.

  • समाज को ताकत दिखाता निर्णय 

सांसद व वकील मीनाक्षी लेखी का कहना कि इस फैसले को खुशी से स्वीकार किया जा रहा है. यह हमारे परिवार और समाज को ताकत दिखाता है कि समय के अनुसार, हमें बदलना भी आता है. बराबरी के अधिकार को हम सही मायनों में मानते हैं और नियमों के अनुसार, अपनी ज़िंदगी को बदलने की ताकत रखते हैं.  ये कानून बेटियों को बराबर का अधिकार और शक्ति देने वाला है. अभी तक हमारे समाज में बेटियों के साथ भेदभाव होता आया है. अक्सर घर वाले चाहते हैं कि जल्द से जल्द बेटी की शादी हो जाए. शादी के लिए दूसरे पक्ष से दहेज का दबाव भी होता है. इस दोनों पक्षों के बीच अक्सर बेटियाँ पिस जाती हैं. कभी-कभी ऐसी स्थिति बन जाती है कि ससुराल में बेटियाँ परेशान होती है. लेकिन उसके मायके वाले उस पर दबाव डालते हैं कि किसी तरह बेटी अपने ससुराल में ही टिकी रहें. यानि जब बेटियाँ परेशानी में फँसती है तो उसे शरण देने वाला कोई नहीं होता. लेकिन पैतृक संपत्ति में बराबर अधिकार से उसे न सिर्फ ताकत मिलेगी, बल्कि समाज में सम्मान के साथ जीने का हक भी मिलेगा. लेकिन ये बराबरी सिर्फ कहने के लिए ना हो. क्योंकि क्या पता कल को इस कानून का भी दुरुपयोग होने लगे? और बेटियाँ अब भी अपने हक से वंचित रह जाए ?

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  • बेटियां हकदार लेकिन कई मुश्किलें भी 

सर्वोच्च न्यायालय के इस नए फैसले ने देश की बेटियाँ को अपने पिता की संपत्ति में बराबरी का हकदार बना दिया है. अदालत के पुराने फैसले रद्द हो गए, जिनमें कई किन्तु-परंतु लगाकर बेटियों को पैतृक संपत्ति के अधिकार से वंचित रखा जाता था.  मिताक्षर पद्धति या हिन्दू कानून में यह माना जाता था कि बेटी का ज्यों ही विवाह हुआ, वह पराई बन जाती है. माँ-बाप की संपत्ति में उसका कोई अधिकार नहीं रहता. मायके के मामलों में उसका कोई दखल नहीं होता, लेकिन अब पैतृक संपत्ति में बेटियों का अधिकार बेटों के बराबर ही होगा. यह फैसला नर-नारी समता का संदेशवाहक है. यह स्त्रियॉं के सम्मान और सुविधाओं की रक्षा करेगा. उनका आत्मविश्वास बढ़ाएगा. लेकिन यह ऐतिहासिक फैसला कई नए प्रश्नों को भी जन्म देगा. जैसे पिता की संपत्ति पर तो उसकी संतान का बराबर अधिकार होगा लेकिन क्या यह नियम माता की संपत्ति पर भी लागू होगा ? क्योंकि आजकल कई लोग कई-कई कारणों से अपनी सम्पत्तियां अपने नाम पर रखने की बजाय अपनी पत्नी के नाम करवा देते हैं. क्या ऐसी सम्पत्तियों पर भी अदालत का यह नया नियम लागू होगा ? क्या सचमुच सभी बहनें अपने भाइयों से अब पैतृक-संपत्ति की बंदरबांट का आग्रह करेगी ? क्या वे अदालतों की शरण लेंगी ? यदि हाँ, तो यह निश्चित जानिए की देश की अदालत में हर साल लाखों मामले बढ़ते चले जाएंगे. यदि बहनें अपने भाइयों से संपत्ति के बंटवारे का आग्रह नहीं भी करे, तो कल को उनके बच्चे संपत्ति में अपना हिस्सा मांग सकते हैं. कानून के अनुसार, बेटी की मौत के बाद उनके बच्चे भी पैतृक संपत्ति में अपना दावा ठोक सकते हैं. दूसरे शब्दों में यह नया अदालती फैसला पारिवारिक झगड़ों की सबसे बड़ी जड़ बन सकता है.

  • समाज की चूलें हिला देना वाला फैसला 

कल तक जो राजा, महाराजा, जागीरदार ठेकेदार अपनी बहन-बेटियों के साथ संपत्ति के मामले में अन्याय करते आए थे, अब ऐसा नहीं होगा. सत्ता और नाम के इस नशे ने हमेशा इन परिवारों में महिलाओं की स्थिति को कमजोर बना कर रखा था. सर्वोच्च न्यायालय के इस ताजे फैसले के बाद पिता की मृत्यु चाहे कभी भी हुई हो या नहीं हुई हो, बेटियों को पैतृक संपत्ति में उसी तरह के अधिकार मिलेगा, जिस तरह बेटों को मिलता है. इस निर्णय के बाद सीधे रास्ते से, इस कानून के तहत बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया गया है.

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज की व्यवस्था में सत्ता के तीन मूल केंद्र हैं, संपत्ति, संतति, और सत्ता. ये तीनों ही अधिष्ठान  इन बड़े घरानों में पुरुषों के पास केन्द्रित थे. अब तक की परिपाटी है बच्चे के जन्म के बाद पिता का ही नाम चलता है, संपत्ति का उत्तराधिकारी बेटे को ही बनाया जाता रहा है. इसी तरह सत्ता भी पुरुषों के हाथ में ही रही है. चाहे वह सामाजिक हो, आर्थिक हो, राजनीतिक हो या धार्मिक. इसी कारण समाज में स्त्रियों का दर्जा दोयम रहा है. इसी कारण संपत्ति का जो अधिकार, स्वाभाविक अधिकार के तौर पर बेटियों को मिलना चाहिए था, वह उन्हें नहीं मिल पाया था.  लेकिन अब बेटियाँ भी बाप-दादा की संपत्ति में बराबरकी हकदार होंगी.

बहनें बचपन से ही भाइयों के प्रति प्रेम में अपने छोटे-छोटे हकों को छोड़ती आई हैं.  शायद इसी कारण भाई बड़े होने पर इस बात के लिए तैयार नहीं हो पाते कि संपत्ति में बहनों कोभी बराबरी का हिस्सादेना है.  यह भी अजीब ही है कि पैतृक संपत्ति या मायके के साथ संबद्ध में से कोई एक चीज चुनने का विकल्प अक्सर भाई ही अपनी बहनों के सामने रखते हैं.  उसके बावजूद संबंध तोड़ने का अपराधबोध में बहनें ही रहती हैं, भाई नहीं.  लेकिन सवाल यह उठता है कि जो संबद्ध आर्थिक हित छोड़ने भर से बना हुआ है, आखिर वह कितना गहरा और सच्चा है ? सवाल यह भी किया जाना चाहिए कि बहन और संपत्ति में से अगर किसी  एक को चुनना पड़े तो भाई किसे चुनेंगे ? असल में यह सवाल पूछे जाने से पहले ही भाई इन दोनों में से संपत्ति का चुनाव कर चुके होते हैं.  यदि वे बहन के साथ संबंध और संपत्ति में से संपत्ति का चुनाव न करते तो बहनों के सामने ऐसा जटिल विकल्प कभी पैदा ही नहीं होता.

लड़की सिर्फ अपने हिस्से का हक मांगने भर से लालची, तेज-तर्रार और विद्रोही मान ली जाती है.  जबकि भाई अपनी बहन के आर्थिक हक को मारने के बाद भी लालची नहीं माने जाते.  भाई-बहन जैसे खूबसूरत और निहायत ही अनोखे रिश्ते में भी प्यार की कसौटी पर खरा उतरना बहन की ही एकतरफा ज़िम्मेदारी समझा जाता है.  अक्सर बहनों का हक छीन कर खाने पर न तो भाइयों को और ना ही समाज परिवार को शर्म महसूस होता है.  लेकिन अगर वही बहन अपना हक मांग ले तो वही समाज परिवार तन कर खड़े हो जाते हैं. यहाँ तक की बहनों द्वारा अपने हिस्से की मांग करने पर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है ताकि बहनों को उनका हिस्सा न देना पड़े. आज भी कई लड़कियां जो अन्यन्य कारणों से शादी के रिश्ते से बाहर निकलना चाहती हैं, लेकिन उनके सामने प्रश्न यह आ जाता है कि वे कहाँ जाएँ ?

लेकिन अब यह सोच खत्म होनी चाहिए, बेटियों को संपत्ति, खासकर पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार देने को समाज की स्वीकृति मिलनी चाहिए.माँ-बाप कोभी बेटियों के दिमाग में यह बात बिठानी होगी कि जो कुछ भी उनका है, बेटा बेटी दोनों का है. हालांकि, इस निर्णय को सबसे पहले माता-पिता को खुद स्वीकार करना होगा. उन्हें इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि बेटी की शादी करके भेज देंगे और बेटा घर संपत्ति का मालिक बनेगा, नहीं चलेगा अब.

बेटियों को भी अपना अधिकार मांगने में संकोच करने की जगह अपनी जबान खोलनी होगी. माता-पिता और भाइयों को यह बात समझाना होगा कि यह उनका अधिकार है, वे अलग से कुछ भी नहीं मांग रही हैं. वैसे, जो पैतृक संपत्ति पिता को मिली है, उन्होंने अर्जित नहीं की है. उसमें भी बेटी का हक है. माता-पिता व पुत्र को यह बातें स्वीकार करनी होगी कि संपत्ति में बेटियाँ का भी बराबर का कह है और रहेगा.

एक बात तो एकदम तय है कि बदलाव से हमारे सामाजिक ताने-बने में थोड़ा फर्क तो आयेगा ही. परिवर्तन की अपनी कीमत होती है, वह ऐसे नहीं आता. पुराना उजड़ने के बाद ही हम कुछ नया बना पाते हैं.इसलिए यहाँ भी रिश्तों में थोड़ी दरार तो आएगी. लेकिन इसमें बहुत ज्यादा सोचने की आवश्यक नहीं है. यदि इस दरार के पड़ने से समाज में सुधार आता है, तो इस दरार का पड़ना बेहतर  है. ये दरार ही बाद में मरहम का काम करेगी. अभी तो मुकदमेबाजी में सारे कानून में बैर ही बढ़ाती रही है. देश के सारे कानून विभागों में मकड़जाल में उलझे हैं. कानून तभी फलदायी हो सकेगा जब इसके साथ महिला और बाल-विकास विभाग जैसे विभाग सदाशयता बरतें.

  • संपत्ति में बेटे-बेटी का बराबर हक और ज़िम्मेदारी भी बराबर 

पैतृक संपत्ति पर अधिकार के मामले में बेटे और बेटी को बराबरी का हक है, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि सिर्फ अधिकार नहीं, बल्कि दायित्व भी बराबरी का है.

कुछ सालो पहले पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने एक फैसला दिया था, जहां एक पिता बेटे के मर्जी के बिना पैतृक संपत्ति का कुछ हिस्सा बहारियों से बेच दी थी उस पर बेटे ने पिता द्वारा बेची गई संपत्ति को कोर्ट में चुनौती दी थी.  बेटे का कहना था कि चूंकि यह पारिवारिक संपत्ति थी और पिता ने उसके मर्जी के बिना संपत्ति बेची इसलिए यह अमान्य है.  और जिस पर कोर्ट ने अपनी मुहर लगाई थी.

2005 में हिन्दू उताराधिकार अधिनियम में संशोधन होने तक, परिवार के केवल पुरुष सदस्यों को सहदायिक माना जाता था.  हालांकि, संशोधन के बाद, जब बेटों और बेटियों दोनों को एक समान माना गया है, अब दोनों को सहदायिक के रूप एक माना जाता है और इस तरह दोनों एचयूएफ ( Hindu Undivided Family ) संपत्ति के विभाजन के लिए पूछने के लिए समान रूप से अधिकार हैं.

बहुत से लोग पैतृक संपत्ति को बेचना चाहते हैं लेकिन लोगों को इसके नियम के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती है.  जिसके कारण पैतृक संपत्ति बेचने वाला और खरीदने वाला दोनों कानूनी झंझट में पड़ जाता है. नए कानून बनने के बाद चूंकि खरीदार ‘नो ऑबजेक्शन बेटियों से मांगता है.  मगर वहाँ भाई बहन को कुछ पैसा देकर समझौता कर लेते हैं या बहनों की जगह किसी और को खड़ा कर जमीन बेच देते हैं.

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राजनांदगाँव का एक मामला, जहां पैतृक संपत्ति में बहन भी बराबर की हकदार थीं.  मगर भाई ने बहन को बताए बिना, किसी और महिला को बहन बनाकर रजिस्ट्री में खड़ा किया और  जमीन बेच दी.  लेकिन जब खरीदार ने नामांतरण कराना चाहा तब यह बात सामने आई कि रजिस्ट्री के दिन असली बहन वहाँ थी ही नहीं. उसकी जगह पर किसी और महिला को खड़ा किया गया था.  बहन को हिस्सा न देना पड़े इसलिए भाई ने ऐसा कर्मकांड रचा और बाद में पकड़ा गया.  ऐसे कितने ही केसेस हुए हैं जहां बहन की जगह किसी और महिला को खड़ा कर संपत्ति बेची गई.  नकली हस्ताक्षर करवाए गए,ताकि बहनों को संपत्ति में हिस्सा न देना पड़े. आज संपत्ति में बेटों और बेटियों का बराबर का हिस्सा है लेकिन ज़्यादातर केस में बेटियों से एनओसी नॉन ऑबजेक्शन सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करवा लेते हैं जिससे सारी ज्याददाद भाइयों के नाम हो जाती है. डॉ के के शुक्ला एडवोकेट लखनऊ हाईकोर्ट बताते हैं कि ऐसे केस ज्यादा आ रहे हैं जिनमें लेखपाल से ही फर्जी एनओसी लगवाकर लोग पूरी ज्यादाद अपने नाम करवा लेते हैं. बहन को पता भी नहीं चलता उसके नाम कोई ज्यादाद है.

एक महिला का कहना है, कानून में भले ही कितने ही बदलाव कर दिये जाए लेकिन लोगों की मानसिकता आज भी वही है. अगर कोई लड़की अपना हक मांग भी लेती है तो उसे रिश्तों का हवाला देकर भावनात्मक रूप से कमजोर कर दिया जाता है.  परिवार समाज की दुहाई दी जाती है कि अगर वह ऐसा करेगी तो सब नाराज हो जाएंगे, मायके से उसका रिश्ता टूट जाएगा.

वर्तमान में महिला समाज को भूमि,संपत्ति संबंधी अधिकारों से वंचित रखना वास्तव में उस आधी आबादी अथवा आधी दुनिया की अवमानना है, जो एक माँ, बहन, बेटी और पत्नी अथवा महिला किसान के रूप में दो गज जमीन और मुट्ठी भर संपत्ति की वाजिब हकदार हैं. भारत में महिलाओं के भूमि तथा संपत्ति पर अधिकार, केवल वैधानिक अवमानना के उलझे सवाल भर नहीं हैं, बल्कि उसका मूल उस सामाजिक जड़ता में है जिसे आज आधुनिक भारत में नैतिकता के आधार पर चुनौती दिया जाना चाहिए. भारत विश्व के उस चुनिन्दा देशों से है जहां संवैधानिक प्रतिबद्धता और वैधानिक प्रावधानों के बावजूद महिलाओं की आधी आबादी आज भी धरातल पर अपनी जड़ों की सतत तलाश में है.

पैतृक संपत्ति को बेचने के नियम क्या हैं ?  जाने नए कानून…..

  • कानून के अनुसार पैतृक संपत्ति को बेचने को लेकर नियम काफी कठोर हैं. आप ऐसे ही इस संपत्ति को नहीं बेच सकते हैं.
  • दरअसल, पैतृक संपत्ति में कई लोगों का हिस्सा होता है. इसलिए कानून किसी एक व्यक्ति को संपत्ति बेचने का अधिकार नहीं देता है.
  • कानून के मुताबिक अगर बंटवारा न हुआ हो तो कोई भी शख़्स पैतृक संपत्ति को अपनी ,मर्जी से नहीं बेच सकता.
  • मिली जानकारी के मुताबिक,पैतृक संपत्ति बेचने के लिए सभी हिस्सेदारों की सहमति जरूरी है. अगर एक भी हिस्सेदार मना करता है तो आप संपत्ति नहीं बेच सकते हैं.
  • कानून के अनुसार अगर सभी हिस्सेदार संपत्ति बेचने के लिए राजी हैं तो पैतृक संपत्ति बेची जा सकती है, इसे कानून इजाजत देती है.

घर बैठे करें लाइफ इंश्योर

डिजिटल पेमेंट का फायदा

आज जिंदगी उलझी हुई जरूर है, लेकिन कुछ चीजों में आसान भी है, क्योंकि आज टेक्नोलॉजी का साथ जो है.  जो काम पहले घंटों लाइन में लगकर होता था, वह काम अब बस एक क्लिक करते ही हो जाता है. जैसे किसी भी चीज का बिल पे करना, टिकट बुक करवाना इत्यादि. यही नहीं बल्कि डिजिटल पेमेंट के जरिए आप खुद के पास रिकॉर्ड रख सकते हैं, ऑफर्स का लाभ उठा सकते हैं, क्योंकि ऑनलाइन पेमेंट करने पर आपको कभी कैशबैक तो कभी अलगअलग तरह के ऑफर्स मिलते हैं, जो ऑफलाइन में संभव नहीं हैं. वहीं कई बार हमें बिलकुल ऐंड मूमेंट पर याद आता है कि आज तो बिल या पॉलिसी की पेमेंट देने की आखिरी तारीख थी. ऐसे में देर होने पर पेनेल्टी भरने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता, जबकि ऑनलाइन पेमेंट करने की एक खास विशेषता यह है कि आप अपने पिछले व जाने वाले खर्चों की जानकारी रखकर अपने खर्चों पर नजर रख सकते हैं और यहां तक कि हिसाब में बड़ी गड़बड़ी होने पर भी इस के जरिए हम उसका पता लगा सकते हैं

कोविड-19 ने हमें बहुत कुछ सिखा दिया है. बीमा का महत्व अब पहले से और ज्यादा बढ़ गया है, क्योंकि कब, किस पर क्या मुसीबत आ जाए, परिवार में कब क्या जरूरत पड़ जाए, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में हैल्थ व जिंदगी से जुड़ा किसी भी तरह का बीमा आप पर भारी-भरकम खर्च का बोझ नहीं आने देता. लेकिन यह जरूरी है कि आप समय पर बीमा लें, ताकि आप व आपका परिवार उसका समय पर फायदा उठा सके. आप अपने साथ अपने परिवार की सुरक्षा के लिए घर बैठे भी बीमा ले सकते हैं. तो आइए जानते हैं घर बैठे आप बीमा कैसे ले सकते हैं-

बेहतर ऑप्शन

जाहिर सी बात है कि आप घर बैठे जो भी पॉलिसी खरीदना चाहेंगे, उसके बारे में आप पहले पूरी तरह से वाकिफ होना चाहेंगे. ऐसे में अगर आपके पास पॉलिसी के बारे में सारी जानकारी पहले से है तो आप उसे डायरेक्ट बीमा कंपनी की साइट से खरीद सकते हैं. लेकिन अगर आप विभिन्न बीमा कंपनीज के प्लान की तुलना करने के बाद उसे खरीदना चाहते हैं तो आपके लिए एग्रीगेटर्स वेबसाइट्स के जरिए खरीदने का ऑप्शन भी है, क्योंकि इसके जरिए आपको विभिन्न बीमा कंपनीज की पॉलिसी की शर्तों, फायदों व प्रीमियम की तुलना करने की सुविधा जो मिलती है. जिससे आपको उस पॉलिसी को समझने व खरीदने में आसानी होती है.

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बेसिक डिटेल्स हैं जरूरी

चाहे आप बीमा कंपनी की डायरेक्ट साइट पर जाएं या फिर एग्रीगेटर्स वेबसाइट पर, आपको किसी भी प्लान को देखने, कम्पेअर करने के लिए कुछ बेसिक सी जानकारी देनी जरूरी होती है, जैसे बात करें अगर टर्म इंश्योरेंस खरीदने की, तो आपको अपना नाम, डेट ऑफ बर्थ, मोबाइल नंबर की जानकारी देनी होगी. साथ ही बताना होगा कि आप स्मोकिंग या तंबाकू का सेवन करते हैं या नहीं. आपकी एनुअल इनकम कितनी है आदि. उसी तरह अगर आप यूलिप प्लान में निवेश करते हैं, जो कि मार्केट लिंक्ड प्लान होता है. इससे आपकी इनकम भी होती है और जीवन सुरक्षा भी मिलती है. इस प्लान के लिए भी आपको कंपनी द्वारा पूछी गई बेसिक डिटेल्स भरनी होती हैं. इसी के आधार पर आपके सामने सभी बीमा कंपनीज के प्लान आते हैं, जिनके फीचर्स को अच्छे से जानकर आप अपनी पॉकेट व जरूरत के हिसाब से पॉलिसी खरीद सकते हैं.

खरीदने की प्रक्रिया

एक बार जब आप मन बना लेते हैं कि आपको कौन सी पॉलिसी खरीदनी है तो आप बस उस पॉलिसी के बाए ऑनलाइन के ऑप्शन पर क्लिक करें, जिसमें आपको अपनी ईमेल आईडी, शहर, व्यवसाय टाइप, पैन कार्ड नंबर आदि की जानकारी भरनी होगी. आपको उसी पेज पर पॉलिसी से संबंधित व प्रीमियम संबंधित सारी जानकारी मिल जाएगी. सहमत होने पर आप प्रोसीड वाले ऑप्शन पर क्लिक करके आपको कुछ एडिशनल इन्फॉर्मेशन जैसे नोमिनी डिटेल्स, अपने एड्रेस व आईडी प्रूफ संबंधित डाक्यूमेंट्स आदि अपलोड करने के बाद आपका प्रीमियम कैलकुलेट हो जाता है. इसके बाद आप चूज कर सकते हैं कि आपको प्रीमियम अपनी सहूलियत के अनुसार मंथली, ईयरली कैसे पे करना है. फिर उस के बाद पेमेंट का ऑप्शन आता है, जिसमें आप अपने कार्ड से, नेटबैंकिंग से, यूपीआई से, ऑनलाइन वॉलेट से प्रीमियम का भुगतान कर सकते हैं. सफल भुगतान होने पर ग्राहक को कन्फर्मेशन मैसेज और ईमेल आईडी के माध्यम से मिल जाता है. हैल्थ व टर्म इंश्योरेंस में कई बार मेडिकल टेस्ट जरूरी होता है. लेकिन इस समय आपको कई बेहतर पॉलिसीज बिना टेस्ट के भी मिल जाएंगी.

वेरीफिकेशन

पॉलिसी कंपनीज वेरिफिकेशन के बाद आपको पॉलिसी इशू कर देती हैं. साथ ही पॉलिसी डॉक्यूमेंट आ जाए तो आप उसे एक बार ठीक से चेक कर लें ताकि आगे किसी तरह की कोई दिक्कत न हो. इसमें यह भी ऑप्शन होता है कि अगर आपको पोलिसी पसंद नहीं आती तो आप हर कंपनी की शर्तों के अनुसार उतने दिनों में आसानी से वापस कर सकते हैं. इसलिए घबराए नहीं बल्कि बेफिक्र होकर ऑनलाइन पॉलिसी खरीदें. आप पॉलिसी खरीदने के लिए विश्वसनीय बीमा कंपनी एलआईसी की वेबसाइट पर या उसके ऐप की मदद से भी अपनी जरूरत के अनुसार अलगअलग तरह की पॉलिसी ऑनलाइन खरीद सकते हैं.

ऑनलाइन इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने के फायदे

आज जहां हर जगह डर का माहौल है, ऐसे में कोई भी घर से बाहर निकलना जरूरी नहीं समझ रहा है और बात भी सही है. ऐसे में आप जान, माल व अपनों को सुरक्षा देने के लिए घर बैठे इंश्योरेंस ले सकते हैं और वह भी बिना किसी झंझट के. साथ ही इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने के फायदे भी हैं, जो इस प्रकार से हैं-

– जब भी हम मार्केट में कुछ खरीदने  जाते हैं, तो हम बजट को सबसे पहले ध्यान में रखते हैं, ऐसे में ऑनलाइन इंश्योरेंस खरीदने से आपका बजट नहीं बिगड़ता, क्योंकि ऑनलाइन पॉलिसी आपको ऑफलाइन के मुकाबले में सस्ते में मिलती है, क्योंकि इसे आप सीधे बीमा कंपनी से खरीदते हैं और इसमें बीच में कोई नहीं होता.

– बीमा कंपनियां ऑनलाइन अपनी पॉलिसी की पूरी जानकारी देती हैं, जिससे ग्राहक को पॉलिसी को समझने में आसानी होने के साथसाथ सभी चीजें भी स्पष्ट होती हैं, जबकि ऑफलाइन एजेंट पर निर्भर रहने के कारण बहुत सारी चीजें पॉलिसी खरीदने के बाद पता चलती हैं, जिनसे हम कभीकभी सहमत भी नहीं होते.

– ऑनलाइन आपको दूसरी पॉलिसी खरीदने वाले ग्राहकों के फीडबैक भी मिल जाएंगे,

जिससे आपको कंपनी की इमेज के बारे में पता लगने के साथसाथ क्लेम सेटलमेंट में क्या दिक्कतें आती है या नहीं, इस बारे में भी स्पष्ट पता चल जाएगा, जबकि ऑफलाइन यह पता चलना काफी मुश्किल है.

– ऑनलाइन एग्रीगेटर्स कंपनीज ग्राहक को ऑनलाइन प्लान्स को कंपेअर करने की सुविधा देती हैं, जिससे तुलना करके सही प्लान को खरीदने में आसानी होती है.

– ऑनलाइन पॉलिसी खरीदना मतलब कम पेपर वर्क और हैसल फ्री प्रोसेस.

– ऑनलाइन पॉलिसी लेने पर आपको मेल पर सॉफ्ट कॉपी मिलती है, जबकि अगर आप हार्ड कॉपी के ही भरोसे बैठे हैं, तो उसके खो जाने पर आपको दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

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कैसे करें सेफ ऑनलाइन पेमेंट

अकसर हमारे मन में यही डर रहता  है कि अगर हम ऑनलाइन पेमेंट करेंगे तो कहीं हमारा अकाउंट हैक न हो जाए,

डेटा लीक न हो जाए. लेकिन अगर आप स्मार्टली कुछ बातों का ध्यान रखकर ऑनलाइन  पेमेंट करेंगे

तो आप सुरक्षित तरीके से  पेमेंट कर पाएंगे. तो जानते हैं उन बातों  के बारे में-

– अपने कार्ड का पासवर्ड व नेटबैंकिंग डिटेल्स किसी से शेयर न करें.

– अपना पासवर्ड समयसमय पर बदलते रहें.

– वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) का प्रयोग करें, जो कि आपकी ट्रांजैक्शन को और सिक्योर बना देगा.

– अपनी ट्रांजैक्शन के लिए प्राइवेट ब्राउजर का ही इस्तेमाल करें, क्योंकि यह ज्यादा सेफ होता है.

– आप काम होने के बाद पेज को लॉगआउट जरूर करें.

– जिस साइट से आप ऑनलाइन ट्रांजैक्शन कर रहे हैं, देख लें कि वह साइट सिक्योर है या नहीं.

– किसी भी पब्लिक वाईफाई व कंप्यूटर  का इस्तेमाल ऑनलाइन ट्रांजैक्शन में  न करें.

– यदि आप ऑनलाइन ट्रांजैक्शन के लिए अपने फोन का इस्तेमाल करते हैं तो सिर्फ वेरीफाई एप्स को ही अपने फोन में डाउनलोड करें.

जो कि प्ले स्टोर, एप्पल स्टोर्स पर लिस्टेड हो.

– फोन में एप डाउनलोड होने के साथ कैमरा, फोन, फोटोज, कॉन्टेक्ट्स, मैसेज आदि की परमिशन मांगते हैं.

इस बात का ध्यान रखें कि जहां जरूरत हो उन्हीं एप्स का एक्सेस दें बाकियों के लिए डिनाई करें.

जब बेवजह हो चिड़चिड़ाहट

श्वेता को आजकल हर छोटीबड़ी बात मन पर लग जाती है. कोरोनाकाल में पूरा दिन घर में कैद रह कर उस का मन हर समय बु झाबु झा रहता था. अब कोरोनाकाल तो समाप्ति की तरफ है परंतु श्वेता के अंदर एक ऐसी मायूसी बैठ गई है कि अब  बातबात पर पति और बच्चों को  झिड़कना श्वेता की जिंदगी में आम हो गया है. परिणामस्वरूप पति और बच्चे श्वेता से कटेकटे रहते हैं.

मनीषा का किस्सा कुछ अलग है. नित नए पकवान, ब्यूटी ट्रीटमैंट और घर के कोनेकोने को चमकना सबकुछ मनीषा की दिनचर्या का हिस्सा था. परंतु जब शादी के 4 वर्ष बाद भी उसे कोई संतान नहीं हुई तो वह बेहद निराश हो गई. पासपड़ोस और रिश्तेदारों के बारबार तहकीकात करने पर मनीषा चिड़चिड़ी हो गई थी.

अब वह अपने पति और सासससुर की हर छोटी बात पर रिएक्ट कर देती है. उसे लगने लगा जैसे उस की जिंदगी से रौनक चली गई है. अब वह जिंदगी को बस ढो रही है.

गौरव की कंपनी में छंटनी शुरू हो गई है. वह पिछले 3 माह से एक अज्ञात भय में जी रहा है. हर समय घर के खर्चों पर टोकाटाकी करता रहता है. उस की पत्नी पूनम को अब सम झ ही नहीं आता कि वह गौरव के साथ कैसे डील करे. दोनों के बीच एक घुटन व्याप्त है जो कभी भी बम की तरह फूट सकती है.

नीति की समस्या कुछ अलग है. बेटी को जन्म देने के पश्चात पिछले 5 माह से नीति ने पार्लर का मुंह नहीं देखा है. अपने रूखेसूखे  झाड़ जैसे बाल, बढ़ी हुई आई ब्रोज और अपर लिप्स सबकुछ उसे चिड़चिड़ा रहा है.

नीति के अनुसार, ‘‘मैं खुद अपनी शक्ल आईने में देखने से डरती हूं, एक अजीब सी हीनभावना मन में घर कर गई है.’’

नीति को अपनी बेटी दुश्मन सी लगने  लगी थी.

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आजकल के समय में यह चिड़चिड़ापन, अकेलापन, अवसाद दिनप्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. जिंदगी में कब क्या हादसा हो जाए, कोई नहीं जानता है. पर जिंदगी की खुशियों पर चिड़चिड़ाहट का ब्रेक न लगाएं. कुछ छोटेछोटे बदलाव कर के आप अपनेआप को स्थिर और शांत कर सकती हैं.

आदतों को स्वीकार करें:

चिड़चड़ाहट का मुख्य कारण होता है कि सामने वाला मेरे हिसाब से क्यों व्यवहार नहीं कर रहा है. परिवार के हर सदस्य को जैसा है वैसा ही स्वीकार करें. न खुद बदलें, न उन्हें बदलने को कहें.

आप उन्हें सलाह जरूर दे सकती हैं क्योंकि आप उन की शुभचिंतक हैं. उन्हें अगर ठीक लगेगा तो वे अवश्य उसे अपनाएंगे. अपनी मनोस्थिति को उन के व्यवहार के ऊपर निर्भर न होने दे.

खुद को समय दें:

जब तक आप खुद खुश नहीं रहेंगी तो दूसरों को कैसेखुश रखेंगी. इस के लिए खुद के साथ समय बिताएं. इस का मतलब यह नही है कि कमरा बंद कर के बैठ जाएं.

कोई भी ऐसा कार्य करें जो आप को स्फूर्ति और खुशी दे. आप अंदर से जितनी ऊर्जावान महसूस करेंगी उतना ही दूसरों के साथ आप के रिश्ते अच्छे बनेंगे.

प्लानिंग करें:

अधिकांश परिवारों में आर्थिक मंदी चिड़चिड़ापन बढ़ने का एक मुख्य कारण होता है. आर्थिक मंदी का अस्थायी दौर  होता है जो गुजर जाता है. यही वह समय है जब आप अपने पति या परिवार के सदस्यों को मानसिक एवं आत्मिक संबल दे सकती हैं.

हर माह के आरंभ में ही प्लानिंग करें और गैरजरूरी खर्चे जैसे बेवजह की औनलाइन शौपिंग, कपड़े, कौस्मैटिक्स आदि पर कटौती बड़े आराम से कर सकती हैं. जब यह प्लानिंग करें अपने परिवार के हर सदस्य को शामिल करें.

हर सदस्य को जब आर्थिक स्थिति का पता रहेगा तो कोई भी ताना या उलहाना नहीं देगा. यह परिवार में बेवजह का तनाव पनपने नहीं देगा.

सकारात्मक सोच रखें:

कैसी भी परिस्थिति हो, अगर आप नकारात्मक सोच रखेंगी तो चिड़चिड़ापन और अधिक बढ़ जाएगा. सकारात्मक सोच के साथ यदि परिस्थिति का सामना करेंगी तो बुरी से बुरी परिस्थिति का भी सामना बेहतर ढंग से कर पाएंगी. सकारात्मक सोच आप की सेहत के लिए भी एक रामबाण की तरह है.

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दिनचर्या को व्यवस्थित करें:

आजकल यह आम हो गया है कि लोग किसी भी समय सो रहे हैं और उठ रहे हैं. पहले बच्चों के स्कूल जाने के कारण बहुत हद तक सोनेउठने का समय व्यवस्थित था. अब समयसारिणी बिखर सी गई है.

याद रखें एक अव्यवस्थित दिनचर्या तनाव को बढ़ाने में सहायक होती है. घर पर रहने का मतलब यह नहीं कि आप किसी भी समय उठें या सोएं. ऐसा कर के अनजाने में आप बहुत सारी बीमारियों को भी न्योता दे रही हैं.

तुलना करना है व्यर्थ:

आप जहां भी हैं और जैसी भी हैं इस समय एकदम परफैक्ट हैं. जीवन के उतारचढ़ाव में आप को अपने से बेहतर भी और कमतर भी मिलेंगे. आप से कमतर लोग हो सकता है.

आप से बेहतर कर  रहे हों परंतु तुलना कर के चिड़चिड़ापन मत बढ़ाएं क्योंकि यह जीवन है और  इस का कोई फिक्स्ड फौर्मूला नहीं होता है. चिड़चिड़ापन आप के साथसाथ आप के रिश्तों पर भी बुरा प्रभाव डालेगा. ‘ये वक्त तो अपनों के सहारे कट जाएगा, संयम से आने वाला कल बेहतर हो पाएगा.’ –

रितु वर्मा

ऑलिव पत्तियों वाली चाय दिलाए स्ट्रेस से राहत

आज स्ट्रेस हमारे जीवन का हिस्सा बन गई है, क्योंकि आज वर्क फ्रॉम होम का बढ़ता चलन, बच्चे घरों में रहने पर मजबूर हैं, महिलाओं पर काम की ज्यादा जिम्मेदारी है. साथ ही बहुत सारी खबरें हमारे चारों तरफ फैली हुई हैं. हम इस बात से भी अनजान हैं कि बढ़ते स्ट्रेस के कारण हमारी इम्युनिटी कमजोर हो रही है. जो बाल झड़ने व दिल की समस्या के साथ सिर दर्द व तनाव का भी कारण बन रही है. कोई नहीं चाहता कि स्ट्रेस उस पर हावी हो और उसका सुकून छिन जाए. यही नहीं बल्कि आज लोग पहले के मुकाबले में ज्यादा हैल्थ कॉन्सियस हो गए हैं. वे हर सूरत में खुद को व अपनों को स्ट्रेस से दूर रखना चाहते हैं. इस के लिए अपनी डाइट में उन सभी चीजों को शामिल करते हैं, जिससे उनकी इम्युनिटी बूस्ट हो. वे स्ट्रेस से दूर रहने के लिए दिन में कई कप चाय व कॉफी का सेवन कर लेते हैं. लेकिन हम आपको एक ऐसी खास चाय के बारे में बताते हैं, जो ऑलिव की पत्तियों से युक्त है. जो आपकी इम्युनिटी को बूस्ट करने के साथसाथ आपके स्ट्रेस को भी कम करने में मददगार साबित हो सकती है.

क्यों है खास

आज के लाइफस्टाइल में स्ट्रेस से बचना शायद मुश्किल हो, लेकिन अगर आप रोजाना ऑलिव की पत्तियों से युक्त चाय का सेवन करेंगे, तो ये आपके दिमाग को रिलैक्स करने, नसों को शांत करने, आपके मूड को ठीक करने व आपकी स्लीप क्वालिटी को ठीक करने में मदद कर सकती है. यकीन मानिए आप खुद बदलाव महसूस करेंगे.

इम्युनिटी को बढ़ाए

हालिया अनेक अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि ऑलिव की पत्तियों में पोलीफेनोल एन्टिऑक्सीडेंट होता है, जिसमें बहुत ज्यादा फ्री रेडिकल्स से लड़ने की क्षमता होती है. इसमें मुख्य फेनोल तत्व ओलियूरोपियन होता है, जो इम्युनिटी को बढ़ाने का काम करता है. साथ ही फेनोल के साथ फ्लेवोनोइड्स इसे और पावरफुल एन्टिऑक्सीडेंट बना देता है. इसमें ग्रीन टी की तुलना में दोगुने एन्टिऑक्सीडेंट भी होते हैं, जो इसे ग्रीन टी से खास बनाते हैं.

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ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखने में सहायक

इसमें ओलियूरोपियन तत्व होता है. जो नेचुरल तरीके से ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने का काम करता है. बता दें कि ब्लड प्रेशर व स्ट्रेस सीधे तौर पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. जबकि ऑलिव की पत्तियों को स्ट्रेस को कंट्रोल करने के लिए बहुत ही असरदार थेरेपी माना जाता है.

दिल को रखे सेहतमंद

अनेक अध्ययनों से यह पता चला है कि ऑलिव लीफ के नियमित सेवन से यह बैड कोलेस्ट्रॉल को आपकी रक्त धमनियों में जमने से रोक सकता है. जिससे शरीर में रक्त के प्रवाह को बढ़ाने और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद मिलती है. जिससे यह आपके दिल की सेहत का खास ध्यान रखने का काम करता है.

वजन का भी ध्यान

आज हमारे खराब लाइफस्टाइल की वजह से हम में से अधिकांश लोग मोटापे की समस्या से परेशान हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऑलिव की पत्तियों में पाया जाने वाला ओलियूरोपियन तत्व बॉडी के फैट को कम करने में सहायक है, साथ ही मेटाबॉलिज्म को भी बूस्ट करता है. जिससे धीरेधीरे शरीर फिगर में आने लगता है, क्योंकि ये हमारी बारबार की भूख को शांत करके हमें ओवरईटिंग की आदत से दूर जो रखता  है.

डायबिटीज कंट्रोल करने में सहायक

आज बच्चों से लेकर बड़ों तक हर कोई डायबिटीज का शिकार हो रहा है. और इसके लिए हमारा खराब लाइफस्टाइल जिम्मेदार है. लेकिन ऑलिव की पत्तियों से युक्त चाय आपकी शुगर को भी कंट्रोल करने में मददगार हो सकती है. ये ब्लड में इंसुलिन के लेवल को रेगुलेट करता है, जिससे ब्लड शुगर को अच्छे से मैनेज कर पाता है.

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नो कैफीन ओरिजिनल फ्लेवर

हम खुद को स्ट्रेस से दूर रखने के लिए दिन में कईकई बार चाय, कॉफी व ग्रीन टी का सेवन करते हैं. जिससे भले ही आप खुद को तरोताजा और ऊर्जावान पाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके अधिक सेवन से आपको बेचैनी, नींद में खलल, सिरदर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. फिर चाहे बात हो ग्रीन टी की, क्योंकि इसमें भी कैफीन होता है, जिससे आपको इसकी लत पड़ जाती है. लेकिन ऑलिव की पत्तियों से युक्त चाय आपके पूरे दिन को फ्रैश बनाने का तो काम करेगी ही, साथ ही आपको बीमारियों से दूर रखकर आपके स्ट्रेस को भी कम करेगी. इसमें कैफिन भी नहीं होता. तो फिर हो जाए दिन की शुरुआत ऑलिव की पत्तियों की खूबियों से भरपूर चाय से.

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