आहिस्ताआहिस्ता आकाश हम सब से घुलतामिलता गया. एक रोज मैं ने उस से कहा कि वह मुझे मम्मी कह कर पुकारे. पहले तो वह सकुचाया, फिर बोला, ’मम्मी को क्या कहूंगा? जब उसे पता चलेगा कि मैं ने आप को मम्मी कहना शुरू कर दिया है? उन्हें बुरा लगेगा.’ कुछ सोच कर मैं बोली, ‘बड़ी मम्मी. यह ठीक रहेगा.‘ उस ने बिना नानुकुर के स्वीकार कर लिय.
उस के मुख से मेरे लिए मम्मी का संबोधन तपती रेत पर बारिश की फुहार की तरह था. मेरा रोम रोम पुलक उठा. मैं भावविभोर हो गई. वक्त गुजरता रहा. एक बात की कसक रहती, इतना प्यारदुलार देने के बावजूद वह अपनी पहली मां को भूल नहीं पाया. कभीकभी उन का जिक्र करता, तो मेरा मन आशंकाओं से घिर जाता. हमेशा की तरह झूठ बोल देती कि वे जल्द आएंगी. एक रोज तो हद हो गई जब वह अपने दत्तक मांबाप के पास जाने की जिद कर बैठा.
उस रेाज मुझे अपनी कोख पर लज्जा आई. इतना प्यारदुलार देने के बावजूद भी आकाश को अपना न बना सकी? इसे बिडंबना ही कहेंगे कि वह उन के पास जाना चाहता है जिन्होंने बड़े निर्मोही तरीके से उस का परित्याग कर दिया. आज जाना कि सिर्फ जन्म देने से कोई मां नहीं बन जाती. मां बनने के लिए बच्चे की बेहतर परवरिश जरूरी है, जो आसान नहीं. मम्मी ने पापा से सलाहमशवरा कर के उस की दत्तक मां से बात की.
‘एक बार आप उसे समझाइए, मुझे पूरा विश्वास है कि वह आप की बात को समझेगा,’ मम्मी बोलीं.
‘क्या कहूंगी?’ उधर से जवाब आया.
‘यही कि आप उस के असली मांबाप नहीं हैं. असली मां मेरी बेटी है.’
‘क्या वह मानेगा?’
ये भी पढ़ें -Social Story In Hindi: गुलदारनी- क्यों गुस्से में थी स्वाति
‘और कोई रास्ता हो तो बताइए?’ मम्मी के इस सवाल का उन के पास जवाब न था. क्षणांश चुप्पी के बाद वह बोली, ‘ठीक है, आप आकाश को फोन दीजिए.’ आकाश को दूसरे कमरे से बुला कर उसे मोबाइल थमाया. वह असमंजस में था. तभी उधर से आवाज आई, ‘कैसे हो आकाश?’ आकाश को आवाज पहचानने में देर न लगी. ‘मम्मी’ कहते ही उस का स्वर भर्रा गया, ’आप कहां हैं?’ आकाश रुंधे कंठ से बोला.
‘मैं यहीं हूं. पहले यह बताओ, क्या ये लेाग तुम्हें प्यार नहीं करते?’
‘करते हैं. खूब करते हैं. बड़ी मम्मी तो हर वक्त मेरी ही चिंता करती रहती हैं. एक पल के लिए मुझे अकेला नहीं छोड़तीं. परंतु…’ कहतेकहते उस का गला भर आया.
‘आप की याद हमेशा आती रहती है. क्या आप मुझे लेने नहीं आएंगी?’ पलभर के लिए उस की दत्तक मां भी भावुक हो गई. एक पल वह सोची, आकाश को ले आए मगर यह सोच कर बढ़ते कदम रुक गए कि कल जब उस की अपनी औलाद बड़ी होगी तो निश्चय ही आकाश की असलियत सब के सामने आएगी, तब वह क्या करेगी. जब वे पूछेंगे कि आकाश किस का बेटा है, क्यों लाई थी इसे? तब तो न मैं इधर की रहूंगी न उधर की. आकाश किसी की नाजायज औलाद है. इस कलंक को कैसे धोऊंगी. फिर क्या गारंटी है कि मैं अपनेपराए का भेद न करने लगूंगी? यही सब सोच कर दिमाग ने फैसला लिया कि जो कल होने वाला है उसे आज ही कहसुन कर खत्म किया जाए.
‘आकाश, मैं यहीं हूं. कहीं जाने वाली नहीं. तुम जब चाहे मेरे पास आ सकते हो, परंतु…?’
‘परंतु क्या मम्मी?’
‘मेरा एक कहा मानेागे?’
‘बिलकुल मानूंगा, मगर आप मेरे पास आने का वादा करो.’
‘करती हूं, मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो. जिसे तुम बड़ी मम्मी कहते हो वही तुम्हारी असली मां है. मैं तब बेऔलाद थी. दूरदूर तक औलाद होने की संभावना नहीं दिख रही थी, तब तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें जन्मते मुझे दे दिया था.’
‘क्यों?’
‘इस का जवाब तुम अपनी बड़ी मम्मी से पूछना,’ कह कर दत्तक मां ने फोन काट दिया. आकाश गुमसुम सोफे पर बैठ गया. मैं उस के करीब आई, देखा, उस के गालों पर आंसुओं की बूंदें ढुलक आई थीं. मैं अधीर हो उठी. उसे कलेजे से लगा लेना चाहा मगर उस ने मुझे झटक कर अलग कर दिया.
‘पहले मुझे जवाब दो कि क्या तुम मेरी असली मां हो?’
‘हां,’ भीगेमन से मैं बोली.
‘अब तक कहां थी?’ आकाश के इस कथन का क्या जवाब दूं.
‘तुम ने मुझे उन के पास क्यों भेजा? मेरे पापा कौन हैं?’
ये भी पढ़ें- छली: ससुराल से लौटी मंजरी के साथ अमित ने क्या किया छल
उस के इस सवाल पर मेरी मम्मी ने बात संभाली, ‘समय आने पर सब पता चल जाएगा.’ मम्मी के इस कथन का उस पर कोई असर न पड़ा. वह अपनी जिद पर अड़ा रहा. उस का हठपन देख कर मैं रोने लगी. आकाश था तो बच्चा ही, मेरे आंसुओं को देख कर उस का मन द्रवित हो गया. मेरे पास आ कर बोला, ’बड़ी मम्मी, अब मैं आप को कभी परेशान नहीं करूंगा.’ उस के मुख से यह सुन कर मुझे तसल्ली हुई. उसे अंक में भींच कर देर तक मैं सुबकती रही.
पढ़ाईलिखाई में लग जाने के कारण आकाश अपने अतीत को भूला रहा. अब वह 25 साल का युवा था. एक रोज मैं ने देखा कि वह अपने कमरे में उदास बैठा था. करीब आ कर उस के उदासी का कारण पूछा तो बोला, ’मम्मी, तुम ने एकबार कहा था कि समय आने पर पापा का नाम बताओगी. क्या वह समय नहीं आया?’ आकाश ने फिर से मुझे उसी चैराहे पर ला खड़ा कर दिया जिसे मैं ने अपने सीने में दफन कर के भूल चुकी थी. एकएक कर के अतीत की सारी घटनाएं चलचित्र की भांति मेरी नजरों के सामने घूमने लगीं. जब उबरी, तो आकाश से पूछा, ‘‘क्या जानना जरूरी है?’’
‘‘मम्मी, मेरे लिए यह जानना जरूरी है कि मेरा पिता कौन है क्येांकि आज भी मेरे दिल के कोने में एक खालीपन महसूस होता है. यह खालीपन उस पिता के लिए है जिन का मैं ने कभी मुख तक नहीं देखा. यदि वे जीवित नहीं हैं तो कोई बात नहीं. बस, उन का परिचय बता दो.’’
आकाश समझदार हो गया था. समझदार बेटे को भ्रमित करना आसान न था. मैं ने आत्मचिंतन किया तो पाया कि आज नहीं तो कल, मुझे इस सत्य से आकाश को परिचित करवाना ही पड़ेगा. वह कल आ गया. अब न बताऊंगी तो वह मुझ पर शक करेगा. इस तरह से उस की नजरों में मेरा चरित्र संदेहास्पद हो जाएगा, जो किसी भी स्थिति में उचित न हेागा. कोई भी रिश्ता ईमानदारी पर टिकता है, फिर वह चाहे मांबेटे का हो या पिता पुत्र का. जिन रिश्तों की बुनियाद शक पर टिकी हो, उन का बिखरना तय है. मेरे लिए आकाश ही सबकुछ था. मैं आकाश को खोना नहीं चाहती थी. सो, एकएक कर मैं ने उस उम्र में घटी सारी घटनाओं का खुलासा कर दिया.
आगे पढ़ें- अब आकाश को निर्णय लेना था कि वह…
ये भी पढ़ें- Social Story In Hindi: चोट- आखिर कब तक सहन करती वह जुल्म?