सई का घर में वेलकम करेगी भवानी तो पाखी को खरी खोटी सुनाएगा विराट

गुम है किसी के प्यार में सीरियल में विराट को पाखी की साजिश का पता चल चुका है. हालांकि अभी तक उसके खिलाफ विराट ने कोई कदम नहीं उठाया है. क्योंकि पहले वह सई पर ध्यान देना चाहता है. वहीं अपकमिंग एपिसोड में सीरियल की कहानी में नया मोड़ आने वाला है, जिसके चलते सई, विराट और पाखी की जिंदगी में नया मोड़ आएगा.

पाखी को खरी खोटी सुनाएगा विराट

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी का सच जानने के बावजूद विराट चुप है. लेकिन पाखी जानबूझ कर विराट के करीब जाने की कोशिश करती हुई नजर आएगी. वहीं पाखी की हरकतें देखकर विराट का गुस्सा बढ़ जाएगा और वह उसे सुनाता हुआ नजर आएगा. दूसरी तरफ विराट की मां भी पाखी पर बरसती नजर आएगी.

 

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विराट के पास लौटेगी सई

 

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दूसरी तरफ विराट के इल्जामों और माफी को भुलाकर सई चौह्वाण परिवार के पास वापस लौट आएगी. वहीं भवानी, सई का दिल से स्वागत करती नजर आएगी, जिसे देखकर सई इमोशनल हो जाएगी और भवानी को गले लगा लेगी. चौह्वान परिवार ये सीन देखकर इमोशनल हो जाएंगे. हालांकि विराट, सई का ख्याल रखते हुए अपने प्यार का एहसास करवाने की कोशिश करेगा. लेकिन पाखी पूरी कोशिश करेगी कि वह दोनों को दूर रख सके. लेकिन इस बार विराट उसके इरादों से अनजान नही है, जिसके चलते वह सई का हरकदम पर साथ देगा.

बता दें बीते दिनों गुम है किसी के प्यार में सीरियल में विराट की बहन देवयानी के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस मिताली नाग ने शो को अलविदा कह दिया है. कहा जा रहा है कि एक्ट्रेस मिताली नाग अपने देवयानी के रोल से खुश नही थीं. वहीं कुछ समय से वह शूटिंग से भी गायब थीं, जिसके बाद उन्होंने शो छ़ोड़ने का फैसला किया है.

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नंदिनी और किंजल की बेइज्जती करेगी पाखी, अनुपमा का टूटेगा दिल

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में फैमिली ड्रामा इन दिनों औडियंस का दिल जीतने में कामयाब हो रहा है, जिसके चलते मेकर्स सीरियल की कहानी को फैमिली ट्विस्ट देने जा रहे हैं. हाल ही में आपने देखा कि काव्या के कारण अनुपमा और बेटी पाखी के बीच दूरियां देखने को मिली. लेकिन अब पाखी का बदला व्यवहार उसे पूरी तरह तोड़ देगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

बापूजी को चोर कहती है काव्या

 

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अब तक आपने देखा कि अनुपमा और वनराज के पास प्रौपर्टी टेक्स देने का नोटिस आता है, जो कि 20 लाख है. वहीं ये बात काव्या को पता चल जाती है और वह शाह हाउस में बखेड़ा कर देती है. वहीं काव्या बाबू जी को कहती है कि वो इतनी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन खुद टैक्स चोर हैं, जिसके बाद वनराज को गुस्सा आता है और वह काव्या पर चिल्लाता है.

 

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राखी दवे को समझाती है अनुपमा

दूसरी तरफ किंजल की मां राखी दवे शाह निवास आती है और अनुपमा के परिवार के परिवार की बेइज्जती करती है और कहती है कि बाहर वालों से भीख मांगने की बजाय उससे पैसे ले लें, जिसका जवाब देते हुए अनुपमा कहेती है कि वह कैफे और डांस एकेडमी से उसके परिवार की सारी उम्मीदें जुड़ी है. लेकिन अभी भी उसके पास वक्त है और वह कुछ न कुछ रास्ता निकाल लेगी.

अनुपमा के लिए पाखी कहेगी ये बात

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि काव्या पाखी को डांस सीखाने से मना कर देगी, जिसके चलते अनुपमा अपनी बेटी की मदद करने की सोचेगी. हालांकि वह यह बात समर से करेगी लेकिन वह कहेगा कि जब वह खुद ही मदद नही चाहती तो आप क्यों उसकी मदद करोगे, जिसके जवाब में अनुपमा कहेगी कि वह उसकी बेटी है. दूसरी तरफ अनुपमा को पाखी की फिक्र करते देख नंदनी पाखी के पास जाएगा तो पाखी उससे कहेगी कि मम्मी खुद नहीं आई तो उसे भेज दिया. वहीं पाखी का यह बर्ताव देखकर किंजल उसे डांटती नजर आएगी, लेकिन पाखी सभी को अनुपमा के चम्मचे होने की बात कहेगी और कहेगी कि उसे इस घर से नफरत है, जिसे देखकर अनुपमा का दिल टूट जाएगा.

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Romantic Story In Hindi: चार मार्च- क्या परवान चढ़ा हर्ष और आभा का प्यार

लेखिका- आशा शर्मा

प्रैग्नेंसी और आईवीएफ से जुड़ी प्रौब्लम का सौल्यूशन बताएं?

सवाल-

मैं 25 साल की विवाहित महिला हूं. मेरे कुछ सपने हैं, इसलिए मैं अभी मां नहीं बनना चाहती. यदि मैं 35-36 की उम्र में मां बनना चाहूं तो क्या इस में कोई समस्या आ सकती है? कुछ लोग कहते हैं कि इस उम्र में मां बनना संभव नहीं है. क्या यह सच है?

जवाब-

बढ़ती उम्र के साथ अंडों की संख्या और गुणवत्ता दोनों ही कम होने लगती है, जिस कारण इस उम्र में कंसीव कर पाना मुश्किल होता है. यदि आप ने ठान लिया है कि आप 35 की उम्र में मां बनना चाहती हैं, तो इस में कोई समस्या नहीं है. आज साइंस और टैक्नोलौजी में प्रगति के कारण कई ऐसी तकनीकें उपलब्ध हैं, जिन के माध्यम से इस उम्र में भी गर्भधारण किया जा सकता है. इस के लिए आप आईवीएफ की मदद ले सकती हैं.

आप की उम्र अभी कम है, इसलिए आप के अंडों की गुणवत्ता अच्छी होगी. आप अपने स्वस्थ अंडे फ्रीज करवा सकती हैं जो भविष्य में मां बनने में आप के लिए सहायक साबित होंगे और आईवीएफ ट्रीटमैंट भी आसानी से पूरा हो जाएगा. फ्रीज किए अंडे को आप के पति के स्पर्म के साथ मिला कर पहले भू्रण तैयार किया जाएगा और फिर उस भ्रूण को आप के गर्भ में इंप्लाट कर दिया जाएगा. कुछ ही दिनों में आप को प्रैगनैंसी की खुशखबरी मिल जाएगी.

सवाल-

मेरी उम्र 35 साल है. मेरी शादी को 8 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी तक कंसीव नहीं कर पाई हूं. मु  झे धूम्रपान की भी आदत है. क्या कोई तरीका है, जिस से मैं मां बन सकूं?

जवाब-

इस उम्र में कंसीव करने में समस्या आना आम बात है, लेकिन इस का सब से बड़ा कारण धूम्रपान है. यदि आप मां बनना चाहती हैं तो धूम्रपान को पूरी तरह छोड़ना होगा. यदि आप के पति भी स्मोकिंग करते हैं, तो उन्हें भी इस आदत को छोड़ने के लिए कहें. आप की उम्र अधिक है, इसलिए जल्दी गर्भधारण करना जरूरी है, वरना वक्त के साथ समस्या और बढ़ सकती है. इस के लिए पहले आप किसी डाक्टर से परामर्श लें. यदि इलाज से फायदा न हो तो आप आईवीएफ ट्रीटमैंट की मदद ले सकती हैं.

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सवाल-

मेरी उम्र 40 साल है. मैं एक बार आईवीएफ ट्रीटमैंट करवा चुकी हूं, लेकिन वह असफल रहा. मैं फिर से आईवीएफ ट्राई करना चाहती हूं. क्या इस में कोई खतरा है?

जवाब-

आप ने आईवीएफ ट्रीटमैंट की असफलता का कारण नहीं बताया. खैर आईवीएफ ट्रीटमैंट की कोई लिमिट नहीं है, इसलिए आप इसे बिना घबराए दोबारा करवा सकती हैं. हां, इसे बारबार करने से गर्भवती होने की संभावना कम हो जाती है. सफल आईवीएफ के लिए तनाव से दूर रहें और वजन को संतुलित रखें.

आजकल आईवीएफ के क्षेत्र में कई नईनई तकनीकों का विकास हो रहा है. चिकित्सक के द्वारा जरूरत के हिसाब से तकनीक का चुनाव करने पर गर्भधारण करने में मदद हो सकती है.

सवाल-

मैं 35 साल की विवाहित महिला हूं. मैं आईवीएफ तकनीक की मदद से मां बनना चाहती हूं और उम्मीद करती हूं कि तकनीक सफल रहे. इसलिए मैं जानना चाहती हूं कि क्या भ्रूण की संख्या गर्भवती होने की संभावना को प्रभावित करती है?

जवाब-

गर्भवती होने के लिए एक भू्रण के साथ सफलता की उम्मीद 28% होती है, जबकि 2 भू्रण के साथ सफलता की उम्मीद 48% होती है. लेकिन इस के साथ ही जुड़वां बच्चे होने की संभावना भी अधिक हो जाती है. यदि आप जुड़वां बच्चों का रिस्क नहीं लेना चाहती हैं, तो आप एक ही भू्रण को इंप्लांट करवा सकती हैं. इस के लिए आप के स्वस्थ अंडे का भू्रण तैयार किया जाएगा और फिर उस भू्रण को आप के गर्भ में इंप्लांट कर दिया जाएगा. यह आप की प्रैगनैंसी की संभावना को भी बढ़ाएगा और आप को अधिक समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ेगा.

सवाल-

मैं 31 साल की कामकाजी महिला हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या आईवीएफ में जुड़वां या एकसाथ कई बच्चे होने की संभावना रहती है?

जवाब-

पहले विशेषज्ञ अच्छे गर्भधारण के लिए एकसाथ कई भू्रण ट्रांसफर करने की सलाह देते थे, क्योंकि तब यह पता लगा पाना मुश्किल होता था कि ट्रांसफर किया गया भू्रण कमजोर है या नहीं. इस की वजह से कभीकभी जुड़वां या एकसाथ कई बच्चों का जन्म हो जाता था, लेकिन अब वक्त बदल चुका है और टैक्नोलौजी भी. आज की ऐडवांस टैक्नोलौजी के चलते यह पता लग जाता है कि भू्रण कमजोर तो नहीं. आप अपनी इच्छा से 1 या जुड़वां बच्चों की मां बन सकती हैं.

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सवाल-

मेरी उम्र 34 साल है. मैं 2 सालों से गर्भवती होने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन अब उम्मीद हार रही हूं. मेरी सहेली ने मु  झे आईवीएफ तकनीक के बारे में बताया. मैं जानना चाहती हूं कि आईवीएफ तकनीक में कोई रिस्क तो नहीं? यह तकनीक मेरे स्वास्थ्य को नुकसान तो नहीं पहुंचाएगी?

जवाब

जी हां, आईवीएफ तकनीक भले ही मां बनने में एक वरदान की तरह है, लेकिन इस के कुछ साइड इफैक्ट भी हो सकते हैं. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि आईवीएफ कराने वाले हर मरीज को इन साइड इफैक्ट्स से गुजरना पड़े.

आईवीएफ ट्रीटमैंट में प्रीमैच्योर बेबी जन्म ले सकता है, इसलिए आप को पूरी प्रैगनैंसी के दौरान खास खयाल रखने को कहा जाता है. बारबार जांच की जाती है ताकि आप की और आप के बच्चे के स्वास्थ्य की हर खबर रखी जा सके.

इस के अलावा इस में व्यवहार में बदलाव, थकान, नींद आना, सिरदर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द, चक्कर आना आदि समस्याएं भी शामिल हैं. यदि आप को इन में से कोई भी समस्या हो तो तुरंत डाक्टर से परामर्श लें. खुद का खास खयाल रखने से आप इन समस्याओं से बच सकती हैं.

-डा. सागरिका अग्रवाल

स्त्रीरोग विशेषज्ञा, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली 

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे… 

गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Friendship Day Special: द साइंस औफ फ्रेंडशिप

फोन आया तो लोगों का मिलना जुलना कम हुआ. लेकिन इससे लोगों के बीच दोस्तियां कम नहीं हुईं. इंटरनेट आया और उसके बाद वीडियो काॅलिंग तो मिलने जुलने की तकरीबन जरूरत ही खत्म हो गई. मगर इससे भी न तो लोगों का सदेह एक दूसरे से मिलना जुलना खत्म हुआ और न ही दोस्ती की जरूरत को वीडिया काॅलिंग दरकिनार कर पायी. लब्बोलुआब यह है कि दोस्ती जैसी भूमिका निभाने के लिए भले कितनी ही कम्युनिकेबल तकनीकें विकसित हो गई हों, लेकिन दुनिया में न तो दोस्त खत्म हुए हैं और न ही दोस्ती की जरूरत खत्म हुई है. शायद इसी आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि भविष्य में भी कमी दोस्ती की जरूरत या दोस्तों का होना खत्म नहीं होगा. सवाल है इसकी वजह क्या है? निश्चित रूप से इसकी वजह है साइंस औफ फ्रेंडशिप.

दोस्ती महज दो लोगों के संयोग से एक दूसरे के प्रति अच्छे भाव रखने और एक दूसरे के साथ सकारात्मक व्यवहार का नाम भर नहीं है. लोगों में दोस्ती की एक बड़ी स्वभाविक जैविक जरूरत होती है. कहने का मतलब यह है कि दोस्ती महज इच्छाभर का खेल नहीं है. इसके पीछे पूरी वैज्ञानिक प्रक्रिया है. दोस्ती शरीर की रासायनिक गतिविधियों का हिस्सा भी है. इसलिए दोस्तियां तब भी थीं, जब हम दोस्ती जैसी भावना को व्यक्त कर पाने में असमर्थ थे और दोस्तियां तब भी होंगी जब हममें इस तरह की किसी भावना की जरूरत नहीं रह जाएगी. चाहे कोई इंसान कितना ही आत्मनिर्भर क्यों न हो जाए, चाहे वह कितना ही प्रोफेशनल ही क्यों न हो जाए? लेकिन जीवन में हर किसी के लिए कम से कम एक दोस्त का होना जरूरी होता है.

हमें दोस्त क्यों चाहिए? अगर मेडिकल साइंस की मानें तो दोस्त हमारी उम्र बढ़ाते हैं, दोस्त हमें स्वस्थ रखते हैं, दोस्त हमें सक्रिय रखते हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि दोस्त हमें जीवन में रूचि बनाये रखने में मदद करते हैं. यकीन मानिये इतना कुछ कहने के बाद भी कभी कोई लेखक दोस्ती के सभी फायदों को कलमबद्ध नहीं कर सकता. इसलिए मानकर चलिये कि हम जीवन के लिए जिन-जिन वजहों के चलते दोस्तों को जरूरी पाते हैं, हमेशा वे वजहें हमारी जानकारियों से बहुत ज्यादा होती है. दोस्ती के महत्व को इंसान आज से नहीं तब से जानता है, जब वह इस जरूरत को अभिव्यक्त भी नहीं कर पाता था.

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शायद इसीलिए दुनिया में सबसे पुराना मानव रिश्ता दोस्ती का ही है. यहां तक कि परिवार और परिवार चलाने के लिए सेक्स संबंधों की जरूरत भी दोस्ती और दोस्तों के बाद की जरूरत है. साल 2011 में एक बहुत बड़े शोध अध्ययन से यह साबित हुआ कि दरअसल हमें दोस्तों की जरूरत इसलिए होती है; क्योंकि ये दोस्त ही हैं जो हमारे दिमाग में एक ऐसे रसायन को स्रावित करने में मददगार होते हैं, जिससे हमें चीजें अच्छी लगती हैं.

शायद यही कारण है कि दुनिया मंे अपवाद के तौरपर भी एक भी आदमी ऐसा नहीं मिलेगा, जिसका कोई दोस्त न हो या जिसकी जीवन में कभी किसी से बहुत पक्की दोस्ती न बनी हो. एक किस्म से दोस्त बनाने में हम अपने तात्कालिक कौशल का भले कुछ उपयोग करते हों, लेकिन दोस्ती एक ऐसी बायोलाॅजिकल प्रक्रिया है, जो अपने आप होती है, उसमें हम बहुत कुछ जोर जबरदस्ती नहीं कर सकते. दरअसल हमारे दोस्त नहीं हैं तो इसका मतलब यह है कि हमारे सकारात्मक सामाजिक संबंध नहीं हैं और सकारात्मक सामाजिक संबंध न होना महज हमारे व्यक्तिगत स्वभाव पर निर्भर नहीं करता. यह वास्तव में हमारे अंदर स्रावित रसायनों का नतीजा होता है. साल 2016 में कुछ शोधकर्ताओं ने पाया कि जब दो दोस्त आपस में बातचीत करते हैं, साथ रहते हैं, एक दूसरे के बारे में सोचते हैं, यहां तक कि लड़ते और झगड़ते हैं तो भी उनके मस्तिष्क में आॅक्सीटाॅसिन रिलीज होता है. इसलिए अब वैज्ञानिकों ने एक फार्मूला विकसित किया है, जिससे वह यह जान सकते हैं कि निजी जीवन में किसी के कितने दोस्त हैं?

दोस्ती हमारे मस्तिष्क के उस हिस्से को उज्वल करती है या प्रखर करती है, जिसमें हम तमाम परेशानियों के बीच भी अपने दोस्तों के साथ खुश रहते हैं और उन्हीं के साथ रहना चाहते हैं. विकासवादी जीव वैज्ञानिक और प्रोफेसर डाॅ. लाॅरेन ब्रेंट के मुताबिक दरअसल दोस्ती की भावना या दोस्ती का मनोविज्ञान हमारी विकासवादी परंपरा का हिस्सा है. जब हम बंदरों के रूप में थे, तब भी हम सामूहिकता की महत्ता को पहचानते थे और एक समूह में रहते थे. यह समूह दोस्तों से मिलकर ही बनता था. हमारे दिलदिमाग में आज भी विकासक्रम का यह सिरा मौजूद है. इसलिए हम अपनी तमाम खुशियां समूह में मनाकर ही खुश होते हैं. अकेले में हम अपनी बड़ी से बड़ी खुशी से भी बहुत ज्यादा खुश नहीं होते.

कहने का मतलब यह कि दोस्ती की प्रक्रिया हमारे अस्तित्व में रची बसी है. हम दोस्ती करना सीखते नहीं हैं बल्कि अपने जेनेटिक्स में मौजूद दोस्ती के प्रारूप को बस अपनी क्षमताओं के हिसाब से खोलते भर हैं या दूसरी शब्दों में उसे विकसित भर करते हैं. बीज रूप में दोस्ती की चाहत हमारे अंदर जन्म लेने के पहले गर्भ से ही मौजूद होती है. अगर हम अकेले में किसी बड़ी से बड़ी भावना से भी दोचार हों तो हमारे दिल की धड़कनें बहुत ज्यादा गति नहीं करतीं. खास करके अगर भावनाओं का रिश्ता खुशी और आनंद से हो. हम दोस्तों के साथ रहकर ही सही मायनों में खुश होते हैं. अगर दुनिया में कोई व्यक्ति दोस्तविहीन है, तो चाहे उसके पास कितना ही धन और ऐश्वर्य क्यों न हो, वह जीवन के मामले में बहुत कंगाल समझा जायेगा.

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प्राचीनकाल में हममें दोस्ती के जो जैविक गुण विकसित हुए और हमेशा हमेशा के लिए हमारे अस्तितव का हिस्सा बन गये, उसमें बड़ी भूमिका असुरक्षा की थी. इंसान करीब एक लाख साल तक भयानक जंगली जानवरों के साथ जीवन साझा किया है, ऐसे में हर समय जीवन को लेकर जोखिम बना रहता था. हर समय असुरक्षा की भावना मजबूत रहती थी. दोस्ती दरअसल इसी असुरक्षा की काट के लिए पैदा हुई. इसलिए हमारे मनो मस्तिष्क में दोस्ती के लाखों साल पुराने बीज है, उन्हें कोई कोरोना या कोई भी संकट कभी भी खत्म नहीं कर सकता.

Romantic Story In Hindi: चार मार्च- भाग 1- क्या परवान चढ़ा हर्ष और आभा का प्यार

लेखिका- आशा शर्मा

‘‘हर्ष,अब क्या होगा?’’ आभा ने कराहते हुए पूछा. उस की आंखों में भय साफ देखा जा सकता था. उसे अपनी चोट से ज्यादा आने वाली स्थिति को ले कर घबराहट हो रही थी.

‘‘कुछ नहीं होगा… मैं हूं न. तुम फिक्र मत करो,’’ हर्ष ने उस का गाल थपथपाते हुए कहा.

मगर आभा चाह कर भी मुसकरा नहीं सकी. हर्ष ने उसे दवा खिला कर आराम करने को कहा और फिर खुद भी उसी के बैड के एक किनारे अधलेटा सा हो गया.

आभा दवा के असर से नींद के आगोश में चली गई. मगर हर्ष के दिमाग में कई उलझनें एकसाथ चहलकदमी कर रही थीं…

कितने खुश थे दोनों जब सुबह रेलवे स्टेशन पर मिले थे. हर्ष की ट्रेन सुबह 8 बजे ही स्टेशन पर लग चुकी थी. आभा की ट्रेन आने में अभी

1 घंटा बाकी था. यह समय हर्ष ने उस से व्हाट्सऐप पर चैटिंग करते हुए ही बिताया था. जैसे ही आभा की ट्रेन के प्लेटफौर्म पर आने की घोषणा हुई, वह आभा के कोच की तरह बढ़ा. आभा ने भी उसे देखते ही जोरजोर से हाथ हिलाया.

स्टेशन की भीड़ से बेपरवाह दोनों वहीं कस कर गले मिले और फिर अपनाअपना बैग ले कर स्टेशन से बाहर निकल आए. एक होटल में कमरा ले कर दोनों ने चैक इन किया. अटैंडैंट के सामान रख कर जाते ही दोनों फिर एकदूसरे से लिपट गए.

थोड़ी देर तक एकदूसरे को महसूस करने के बाद वे नहाधो कर नाश्ता करने बाहर निकले. आभा का बाहर जाने का मन नहीं था. वह तो हर्ष के साथ पूरा दिन कमरे में ही बंद रहना चाहती थी. मगर हर्ष ने ही मनुहार की बाहर जा कर उसे जयपुर की प्याज की स्पैशल कचौरी खिलाने की जिसे वह टाल नहीं सकी थी. हर्ष को अब अपने उस फैसले पर अफसोस हो रहा था कि न वह बाहर जाने की जिद करता और न यह हादसा होता.

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होटल से निकल कर जैसे ही वे मुख्य सड़क पर आए, पीछे से आती एक अनियंत्रित कार ने आभा को टक्कर मार दी. वह लहूलुहान सी वहीं सड़क पर गिर पड़ी. हर्ष ऐंबुलैंस की मदद से उसे हौस्पिटल ले गया. ऐक्सरे जांच में आभा के पांव की हड्डी टूटी पाई गई. डाक्टर ने 6 सप्ताह के लिए पलस्तर बांध हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया.

तभी मोबाइल की आवाज से आभा की नींद टूटी. उस के मोबाइल में रिमाइंडर मैसेज बजा. लिखा था, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टु हर्ष.’ आभा दर्द में भी मुसकरा दी. पिछले साल उस ने हर्ष को विश करने के लिए यह रिमाइंडर अपने मोबाइल में डाला था. दोपहर

12 बजे जैसे ही रिमाइंडर मैसेज ने उसे विश करना याद दिलाया उस ने हर्ष को किस कर के अपने पुनर्मिलन की सालगिरह विश की और उसी वक्त इस में आज की तारीख सैट कर दी थी.

मगर आज वह चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाई थी, क्योंकि वह जख्मी हालत में बैड पर थी. उस ने एक नजर हर्र्ष पर डाली और रिमाइंडर में अगले साल की डेट सैट कर दी. हर्ष अभी भी आंखें मूंदे लेटा था. पता नहीं सो रहा था या कुछ सोच रहा था. आभा ने दर्द को सहन करते हुए एक बार फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं. अब आभा का दिमाग भी यादों की बीती गलियों में घूमने लगा…

लगभग सालभर पहले की बात है. उसे अच्छी तरह याद है वह 4 मार्च की शाम. वह अपने कालेज की तरफ से 2 दिन का एक सेमीनार अटैंड करने जयपुर आई थी. शाम के समय टाइम पास करने के लिए जीटी पर घूमतेघूमते अचानक उसे हर्ष जैसा एक व्यक्ति दिखाई दिया.

वह चौंक गई, ‘हर्ष यहां कैसे हो सकता है?’ सोचतेसोचते वह उस व्यक्ति के पीछे हो ली. एक शौप पर आखिर वह उस के सामने आ ही गई. उस व्यक्ति की आंखों में भी पहचान की परछाईं सी उभरी. दोनों सकपकाए और फिर मुसकरा दिए.

हां, यह हर्ष ही था उस का कालेज का साथी, उस का खास दोस्त, जो न जाने उसे किस अपराध की सजा दे कर अचानक उस से दूर चला गया था. कालेज के आखिरी दिनों में ही हर्ष उस से कुछ खिंचाखिंचा सा रहने लगा था और फिर फाइनल परीक्षा खत्म होतेहोते बिना कुछ कहेसुने हर्ष उस की जिंदगी से चला गया था. कितना ढूंढ़ा था उस ने हर्ष को, मगर किसी से भी उसे हर्ष की कोई खबर नहीं मिली. आभा आज तक हर्ष के उस बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं समझ पाई थी.

धीरेधीरे वक्त अपने रंग दिखाता रहा. डाक्टरेट करने के बाद आभा स्थानीय गर्ल्स कालेज में लैक्चरर लग गई और अपने विगत से लड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी. इस बीच आभा ने अपने पापा की पसंद के लड़के राहुल से शादी भी कर ली.

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2 बच्चों की मां बनने के बाद भी आभा को राहुल के लिए अपने दिल में कभी प्यार वाली तड़प महसूस नहीं हुई. शायद अब भी दिल हर्ष के लिए ही धड़कना चाहता था.

शादी कर के जैसे एक समझौता किया था उस ने अपनी जिंदगी से. हालांकि समय के साथसाथ हर्ष की स्मृतियों पर जमती धूल की परत भी मोटी होती चली गई थी, मगर कहीं न कहीं उस के अवचेतन मन में हर्ष आज भी मौजूद था. शायद इसीलिए वह राहुल को कभी दिल से प्यार नहीं कर पाईर् थी. राहुल सिर्फ उस के तन को ही छू पाया था, मन का दरवाजा आभा उस के लिए नहीं खोल पाई थी.

जीटी में हर्ष को यों अचानक अपने सामने पा कर आभा को यकीन ही नहीं हुआ. हर्ष का भी लगभग यही हाल था.

‘‘कैसी हो आभा?’’ आखिर हर्ष ने ही चुप्पी तोड़ी.

‘तुम कौन होते हो यह पूछने वाले?’ आभा मन ही मन गुस्साई, मगर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘अच्छी हूं… आप सुनाइए… अकेले हैं या आप की मैडम भी साथ हैं?’’

‘‘अभी तो अकेला ही हूं,’’ हर्ष ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए कहा और फिर आभा को कौफी पीने का औफर दिया. उस की मुसकान देख कर आभा का दिल जैसे उछल कर बाहर आ गया. दिल ने कहा कि कमबख्त यह मुसकान… आज भी वैसी ही कातिल है? लेकिन दिमाग ने सहज हो कर हर्ष का प्रस्ताव स्वीकार लिया. शाम दोनों ने साथ बिताई.

थोड़ी देर तो दोनों में औपचारिक बातें हुईं और फिर 1-1 कर के संकोच की

दीवारें टूटने लगीं. देर रात तक गिलेशिकवे होते रहे. कभी हर्ष ने अपनी पलकें नम कीं तो कभी आभा ने अपनी आंखें छलकाईं. हर्ष ने खुद को आभा का गुनहगार मानते हुए अपनी मजबूरियां बताईं. अपनी कायरता भी स्वीकार की और यों बिना कहेसुने चले जाने के लिए उस से माफी भी मांगी.

आभा ने भी जो हुआ सो हुआ कहते हुए उसे माफ कर दिया. फिर डिनर के बाद बिदा लेते हुए दोनों ने एकदूसरे को गले लगाया और अगले दिन शाम को फिर यहीं मिलने का वादा कर के दोनों अपनेअपने होटल की तरफ चल दिए.

अगले दिन बातचीत के दौरान हर्ष ने उसे बताया कि वह एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में साइट इंजीनियर है और इसी सिलसिले में उसे महीने में लगभग 15-20 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है और यह भी बताया कि उस के 2 बच्चे हैं और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से काफी संतुष्ट है.

‘‘तुम अपनी लाइफ से संतुष्ट हो या खुश भी हो?’’ एकाएक आभा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

‘‘दोनों स्थितियां अलग होती हैं क्या?’’ हर्ष ने भी प्रति प्रश्न किया.

‘‘वक्त आने पर बताऊंगी,’’ आभा ने टाल दिया.

आभा की ट्रेन रात 11 बजे की थी और हर्ष तब तक उस के साथ ही था. दोनों ने आगे भी टच में रहने का वादा करते हुए बिदा ली.

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अगले दिन कालेज पहुंचते ही आभा ने हर्ष को फोन किया. हर्ष ने जिस तत्परता से फोन उठाया उसे महसूस कर के आभा को हंसी आ गई. बोली, ‘‘फोन का ही इंतजार कर रहे थे क्या?’’

अब हर्ष को भी अपने उतावलेपन पर आश्चर्य हुआ. बातें करतेकरते कब 1 घंटा बीत गया, दोनों को पता ही नहीं चला. आभा की क्लास का टाइम हो गया. वह पीरियड लेने चली गईर्. वापस आते ही उस ने फिर हर्ष को फोन लगाया. फिर वही लंबी बातें. दिन कब गुजर गया पता ही नहीं चला. देर रात तक दोनों व्हाट्सऐप पर औनलाइन रहे और सुबह उठते ही  फिर वही सिलसिला.

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Romantic Story In Hindi: चार मार्च- भाग 3- क्या परवान चढ़ा हर्ष और आभा का प्यार

लेखिका- आशा शर्मा

राहुल ने आंखें तरेर कर पूछा, ‘‘कौन है यह? कब से चल रहा है ये सब?’’

‘‘यह हर्ष है… वही, जो मुझे छोड़ने आया था,’’ आभा अब राहुल के सवालों के जवाब देने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी थी.

‘‘तो तुम इसलिए बारबार जयपुर जाती थी?’’ राहुल ने फिर पूछा पर आभा ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘अपनी नहीं तो कम से कम मेरी इज्जत का ही खयाल कर लेती… समाज में बात खुलेगी तो क्या होगा, कभी सोचा है तुम ने?’’ राहुल ने उस के चरित्र को निशाना बनाते हुए चोट की.

‘‘तुम्हारी इज्जत का खयाल था इसीलिए तो बाहर मिली उस से वरना यहां इस शहर में भी मिल सकती थी और समाज? किस समाज की बात करते हो तुम? किसे इतनी फुरसत है कि इतनी आपाधापी में मेरे बारे में कोई सोचे? मैं कितना सोचती हूं किसी और के बारे में और यदि कोई सोचता भी है तो 2 दिन सोच कर भूल जाएगा. वैसे भी लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है,’’ आशा ने बहुत ही संयत स्वर में कहा.

‘‘बच्चे क्या सोचेंगे तुम्हारे बारे में? उन का तो कुछ खयाल करो,’’ राहुल ने इस बार इमोशनल वार किया.

‘‘2-4 सालों में बच्चे भी अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाएंगे…? राहुल मैं ने सारी उम्र अपनी जिम्मेदारियां निभाई हैं. बिना तुम से कोई सवाल किए अपना हर फर्ज निभाया है, फिर चाहे वह पत्नी का हो या मां का. अब मैं कुछ समय अपने लिए जीना चाहती हूं. क्या मुझे इतना भी अधिकार नहीं?’’ आभा की आवाज लगभग भर्रा गई थी.

‘‘तुम पत्नी हो मेरी… मैं कैसे तुम्हें किसी और की बांहों में देख सकता हूं?’’ राहुल ने उसे झकझोरते हुए कहा.

‘‘हां, पत्नी हूं तुम्हारी… मेरे शरीर पर तुम्हारा अधिकार है… मगर कभी सोचा है तुम ने कि मेरा मन आज तक तुम्हारा क्यों नहीं हुआ? तुम्हारे प्यार के छींटों से मेरे मन का आंगन क्यों नहीं भीगा? तुम चाहो तो अपने अधिकार का प्रयोग कर के मेरे शरीर को बंदी बना सकते हो… एक जिंदा लाश पर अपने स्वामित्व का हक जता कर अपने अहम को संतुष्ट कर सकते हो, मगर मेरे मन को तुम सीमाओं में नहीं बांध सकते… उसे हर्ष के बारे में सोचने से तुम रोक नहीं सकते,’’ आभा ने शून्य में ताकते हुए कहा.

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‘‘अच्छा, क्या वह हर्ष भी तुम्हारे लिए इतना ही दीवाना है? क्या वह भी तुम्हारे लिए अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार है?’’ राहुल ने व्यंग्य से कहा.

‘‘दीवानगी का कोई पैमाना नहीं होता. वह मेरे लिए किस हद तक जा सकता है, यह मैं नहीं जानती, मगर मैं उस के लिए किसी भी हद तक जा सकती हूं,’’ आभा ने दृढ़ता से कहा.

‘‘अगर तुम ने इस व्यक्ति से अपना रिश्ता खत्म नहीं किया तो मैं उस

के घर जा कर उस की सारी हकीकत बता दूंगा,’’ कहते हुए राहुल ने गुस्से में आ कर आभा के हाथ से मोबाइल छीन कर उसे जमीन पर पटक दिया. मोबाइल बिखर कर आभा के दिल की तरह टुकड़ेटुकड़े हो गया.

राहुल की आखिरी धमकी ने आभा को सचमुच डरा दिया. वह नहीं चाहती थी कि उस के कारण हर्ष की जिंदगी में कोई तूफान आए. वह अपनी खुशियों की इतनी बड़ी कीमत नहीं चुका सकती थी. उस ने मोबाइल के सारे पार्ट्स फिर से जोड़े तो पाया कि वह अभी भी चालू स्थिति में है. एक आखिरी मैसेज उस ने हर्ष को लिखा, ‘‘शायद नियति ने मेरे हिस्से खुशी लिखी ही नहीं… तुम ने जो खूबसूरत यादें मुझे दी हैं उन के लिए तुम्हारा शुक्रिया…’’ और फिर मोबाइल से सिम निकाल कर टुकड़ेटुकड़े कर दी.

हर्ष कुछ भी समझ नहीं पाया कि यह अचानक क्या हो गया. उस ने आभा को फोन लगाया, मगर फोन बंद था. फिर उस ने व्हाट्सऐप पर मैसेज छोड़ा, मगर वह भी अनसीन ही रह गया.

अगले कई दिनों तक हर्ष उसे फोन ट्राई करता रहा, मगर हर बार फोन बंद है का मैसेज पा कर निराश हो उठता. उस के किसी भी मेल का जवाब भी आभा की तरफ से नहीं आया.

एक बार तो हर्ष ने जोधपुर जा कर उस से मिलने का मन भी बनाया, मगर फिर यह सोच कर कि कहीं उस की वजह से स्थिति ज्यादा खराब न हो जाए उस ने दिल पर पत्थर रख लिया. आखिर हर्ष ने सबकुछ वक्त पर छोड़ कर आभा को तलाश करना बंद कर दिया.

इस वाकेआ के बाद आभा ने अब मोबाइल रखना ही बंद कर दिया. राहुल के बहुत जिद करने पर भी उस ने नई सिम नहीं ली. बस कालेज से घर और घर से कालेज तक ही उस ने खुद को सीमित कर लिया. कालेज से भी जब मन उचटने लगा तो उस ने छुट्टियां लेनी शुरू कर दीं. मगर छुट्टियों की भी एक सीमा थी.

धीरेधीरे वह गहरे अवसाद में चली गई. राहुल ने बहुत इलाज करवाया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. अब राहुल भी चिड़चिड़ा सा होने लगा था.

एक तो आभा की बीमारी ऊपर से उस की सैलरी भी कट कर आ रही थी, क्योंकि उस की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. राहुल को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ रही थी जिसे वह सहन नहीं कर पा रहा था.

पतिपत्नी जैसा भी कोईर् रिश्ता अब उन के बीच नहीं रहा था, यहां तक कि आजकल तो खाना भी अकसर या तो राहुल को खुद बनाना पड़ता या फिर बाहर से ही आता.

सारे उपाय करने के बाद अंत में डाक्टर ने भी हाथ खड़े कर लिए. उन्होंने राहुल से कहा, ‘‘मरीज ने शायद खुद को खत्म करने की ठान ली है. जब तक ये खुद जीना नहीं चाहेंगी, कोई भी इलाज इन पर कारगर नहीं हो सकता.’’

आज शाम राहुल ने आभा से तलखी से कहा, ‘‘देखो, अब बहुत हो चुका… मैं अब तुम्हारे नाटक और नहीं सहन कर सकता… आज तुम्हारे प्रिंसिपल का फोन आया था. कह रहे थे कि तुम्हारे कालेज की तरफ से जयपुर में 5 दिनों का एक ट्रेनिंग कैंप लग रहा है. अगर तुम ने उस में भाग नहीं लिया तो तुम्हारा इंक्रीमैंट रुक सकता है. हो सकता है कि नौकरी भी हाथ से चली जाए. मेरी समझ में नहीं आता कि तुम क्यों अच्छीभली नौकरी को लात मारने पर तुली हो… मैं ने तुम्हारे प्रिंसिपल से कह कर कैंप के लिए तुम्हारा नाम जुड़वा दिया है. 2 दिन बाद तुम्हें जयपुर जाना है.’’

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आभा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. आभा के न चाहते हुए भी राहुल ने उसे ट्रेनिंग कैंप में भेज दिया. ट्रेन में बैठाते समय राहुल ने कहा, ‘‘यह लो अपना मोबाइल… इस में नई सिम डाल दी है. अपने प्रिंसिपल को फोन कर के कैंप जौइन करने की सूचना दे देना ताकि उन्हें तसल्ली हो जाए.’’

आभा ने एक नजर अपने पुराने टूटे मोबाइल पर डाली और उसे पर्स में धकेलते हुए टे्रन की तरफ बढ़ गई. सुबह जैसे ही आभा की ट्रेन जयपुर स्टेशन पहुंची वह यंत्रचालित सी नीचे उतरी और धीरेधीरे उसी बैंच की तरफ बढ़ चली जहां हर्ष उसे बैठा मिला करता था. फिर अचानक कुछ याद कर के आभा के आंसुओं का बांध टूट गया. वह उस बैंच पर बैठ कर फफक पड़ी. फिर अपनेआप को संभालते हुए उसी होटल की तरफ चल दी जहां वह हर्ष के साथ रुका करती थी. उसे दोपहर बाद 3 बजे कैंप में पहुंचना था.

संयोग से आभा उस दिन भी उसी कमरे में ठहरी जहां उस ने पिछली दोनों बार  के साथ यादगार लमहे बिताए थे. वह कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी. उस ने रूम का दरवाजा तक बंद नहीं किया था.

तभी अचानक पर्स में रखे मोबाइल में रिमाइंडर मैसेज बज उठा, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टु हर्ष’ देख कर आभा एक बार फिर सिसक उठी, ‘‘उफ्फ, आज 4 मार्च है.’’

तभी अचानक 2 मजबूत हाथ पीछे से आ कर उस के गले के इर्दगिर्द लिपट गए. आभा ने अपना भीगा चेहर ऊपर उठाया तो सामने हर्ष को देख कर उसे यकीन ही नहीं हुआ. वह उस से कस कर लिपट गई.

हर्ष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘हैप्पी ऐनिवर्सरी.’’

आभा का सारा अवसाद आंखों के रास्ते बहता हुआ हर्ष की शर्ट को भिगोने लगा.

वह सबकुछ भूल कर उस के चौड़े सीने में सिमट गई.

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Monsoon Special: स्किन केयर के लिए आजमाएं ये होममेड टिप्स

गरमी का मौसम खत्म होते ही बारिश आती है, जिस से गरमी से तो थोड़ी राहत मिलती है, पर साथ ही इस मौसम में स्किन संबंधी कई समस्याएं भी होने लगती हैं. स्किन अतिसंवेदनशील और शुष्क हो जाती है.

बरसात में आप की स्किन को सब से ज्यादा नुकसान प्रदूषण, धूल, गंदगी और नुकसानदेह यूवी किरणों से होता है. आप सोचती होंगी कि इस मौसम में सनस्क्रीन लगाने से बच जाएंगी, लेकिन इस से आप की स्किन क्षतिग्रस्त हो सकती है. इस मौसम में ज्यादा पसीना आने से चेहरे पर धूल की परत जम जाती है, जिस से फंगल संक्रमण होने का खतरा रहता है.

इस मौसम में स्किन की देखभाल करना कोई ज्यादा मुश्किल काम भी नहीं है. कुछ सरल उपायों पर अमल कर बारिश के मौसम में भी आप स्किन को स्वस्थ और कांतिमय बनाए रख सकती हैं.

घरेलू नुसखे

स्ट्राबैरी फेस मास्क

1/2 कप फ्रोजन या ताजा स्ट्राबैरी को पीस लें और इस में 1 कप दही, 11/2 चम्मच शहद मिला लें. इस लेप को नियमित रूप से चेहरे पर लगाने से स्किन मुलायम और चमकदार बनी रहेगी.

दूध व फलों का फेशियल

एक कस्टर्ड सेब का लेप बना कर उस में 1 चम्मच चीनी, 1/2 कप दूध और कुछ बूंदें कैमोमिल मिला कर चेहरे पर लगाएं. इस से स्किन नमीयुक्त और कांतिमय बनी रहेगी.

टोनिंग

दिन में 2 बार नौनअलकोहलिक टोनर से स्किन की टोनिंग करें. ताकि स्किन का पीएच संतुलन बना रहे.

ऐंटीफंगल क्रीम

रिंगवर्म या खुजली जैसे संक्रमणों से बचने के लिए स्किन को लंबे समय तक भीगे रहने से बचाएं. हलके कुनकुने पानी से नहाएं और इस के बाद फंगल संक्रमण से बचने के लिए ऐंटीफंगल क्रीम लगाएं. नहाने के बाद पंखे की हवा में शरीर के मुड़ने वाले हिस्सों को सुखा लें और ऐंटीफंगल पाउडर लगाएं ताकि ये हिस्से बारबार गीले न हों.

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सफाई

अपने चेहरे को नौनसोपी फेसवाश से दिन में 3-4 बार धोएं ताकि स्किन के रोमछिद्रों में जमी धूल और तेल अच्छी तरह साफ हो जाए.

स्क्रबिंग

स्किन की चमक बनाए रखने के लिए उस की मृत कोशिकाओं वाली परत को सौम्य तरीके से उतारने का उपाय आजमाएं.

फेसपैक

स्किन का तेल कम करने तथा उस की नमी बनाए रखने के लिए सिट्रिक (नीबू आधारित) फेसपैक का इस्तेमाल करें. इस से आप के ब्लैकहैड्स/व्हाइटहैड्स भी मिट जाएंगे.

मौइश्चराइजिंग

स्किन की कोमलता बनाए रखने के लिए जल आधारित मौइश्चराइजर या गुलाबजल अथवा बादाम का तेल इस्तेमाल करें.

सनस्क्रीन

सनस्क्रीन लगाना न भूलें और ऐसे सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें, जिस में एसपीएफ ज्यादा हो ताकि स्किन को नुकसानदेह यूवी किरणों से बचाया जा सके.

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भरपूर पानी पीएं

स्किन की नमी बरकरार रखने के लिए दिन में 8-10 गिलास पानी जरूर पीएं, क्योंकि इस मौसम में बहुत ज्यादा पसीना आने से स्किन की नमी खत्म हो जाती है.

भारी मेकअप से बचें

मौनसून के दौरान स्किन में खुजली से बचने के लिए वाटरप्रूफ और अच्छे ब्रैंड के सौंदर्य उत्पादों का इस्तेमाल करें.

डा. इंदु बल्लानी, डर्मेटोलौजिस्ट, दिल्ली

सास बहू दोनों के लिए जानना जरुरी है घरेलू हिंसा कानून

मेरे महल्ले में एक वृद्ध महिला अपने घर में अकेली रहती हैं. वे बेहद मिलनसार व हंसमुख हैं. उन का इकलौता बेटा और बहू भी इसी शहर में अलग घर ले कर रहते हैं. एक दिन जब मैं ने उन से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने जो कुछ भी बताया वह सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.

उन्होंने बताया, ‘‘मेरे बेटे ने प्रेमविवाह किया था. फिर भी हम ने कोई आपत्ति नहीं की. बहू ने भी आते ही अपने व्यवहार से हम दोनों का दिल जीत लिया. 2 साल बहुत अच्छे से बीते. लेकिन मेरे पति की मृत्यु होते ही मेरे प्रति अप्रत्याशित रूप से बहू का व्यवहार बदलने लगा. अब वह बेटे के सामने तो मेरे साथ अच्छा व्यवहार करती, परंतु उस के जाते ही वह बातबात पर मुझे ताने देती और हर वक्त झल्लाती रहती. मुझे लगता है कि शायद अधिक काम करने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई है, इसलिए मैं ने उस के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. मगर उस ने तो जैसे मेरे हर काम में मीनमेख निकालने की ठान रखी थी.

‘‘धीरेधीरे वह घर की सभी चीजों को अपने तरीके से रखने व इस्तेमाल करने लगी. हद तो तब हो गई जब उस ने फ्रिज और रसोई को भी लौक करना शुरू कर दिया. एक दिन वह मुझ से मेरी अलमारी की चाबी मांगने लगी. मैं ने इनकार किया तो वह झल्लाते हुए मुझे अपशब्द कहने लगी. जब मैं ने यह सबकुछ अपने बेटे को बताया तो वह भी बहू की ही जबान बोलने लगा. फिर तो मुझे अपनी बहू का एक नया ही रूप देखने को मिला. वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगी तथा रसोई में जा कर आत्महत्या का प्रयास भी करने लगी. साथ ही, यह धमकी भी दे रही थी कि वह यह सबकुछ वीडियो बना कर पुलिस में दे देगी और हम सब को दहेज लेने तथा उसे प्रताडि़त करने के इलजाम में जेल की चक्की पिसवाएगी. उस समय तो मैं चुप रह गई, परंतु मैं ने हार नहीं मानी.

‘‘अगले ही दिन बिना बहू को बताए उस के मातापिता को बुलवाया. अपने एक वकील मित्र तथा कुछ रिश्तेदारों को भी बुलवाया. फिर मैं ने सब के सामने अपने कुछ जेवर तथा पति की भविष्यनिधि के कुछ रुपए अपने बेटेबहू को देते हुए इस घर से चले जाने को कहा. मेरे वकील मित्र ने भी बहू को निकालते हुए कहा कि महिला संबंधी कानून सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी सास के लिए भी है. तुम्हारी सास भी चाहे तो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट कर सकती है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सीधी तरह से इस घर से चली जाओ. मेरा यह रूप देख कर बहू और बेटा दोनों ही चुपचाप घर से चले गए. अब मैं भले ही अकेली हूं परंतु स्वस्थ व सुरक्षित महसूस करती हूं.’’

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उक्त महिला की यह स्थिति देख कर मुझे ऐसा लगा कि अब इस रिश्ते को नए नजरिए से भी देखने की आवश्यकता है. सासबहू के बीच झगड़े होना आम बात है. परंतु, जब सास अपनी बहू के क्रियाकलापों से खुद को असुरक्षित व मानसिक रूप से दबाव महसूस करे तो इस रिश्ते से अलग हो जाना ही उचित है. बदलते समय और बिखरते संयुक्त परिवार के साथ सासबहू के रिश्तों में भी काफी परिवर्तन आया है.

एकल परिवार की वृद्धि होने के कारण लड़कियां प्रारंभ से ही सासविहीन ससुराल की ही अपेक्षा करती हैं. वे पति व बच्चे तो चाहती हैं परंतु पति से संबंधित अन्य कोई रिश्ता उन्हें गवारा नहीं होता. शायद वे यह भूल जाती हैं कि आज यदि वे बहू हैं तो कल वे सास भी बनेंगी.

फिल्मों और धारावाहिकों का प्रभाव:

हम मानें या न मानें, फिल्में व धारावाहिक हमारे भारतीय परिवार व समाज पर गहरा असर डालते हैं. पुरानी फिल्मों में बहू को बेचारी तथा सास को दहेजलोभी, कुटिल बताते हुए बहू को जला कर मार डालने वाले दृश्य दिखाए जाते थे.

कई अदाकारा तो विशेषरूप से कुटिल सास का बेहतरीन अभिनय करने के लिए ही जानी जाती हैं. आजकल के सासबहू सीरीज धारावाहिकों का फलक इतना विशाल रहता है कि उस में सबकुछ समाया रहता है. कहीं गोपी, अक्षरा और इशिता जैसी संस्कारशील बहुएं भी हैं तो कहीं गौरा और दादीसा जैसी कठोर व खतरनाक सासें हैं. कोकिला जैसी अच्छी सास भी है तो राधा जैसी सनकी बहू भी है. अब इन में से कौन सा किरदार किस के ऊपर क्या प्रभाव डालता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलता है.

आज के व्यस्त समाज में आशा सहाय और विजयपत सिंघानिया की स्थिति देख कर तो यही लगता है कि अब हम सब को अपनी वृद्धावस्था के लिए पहले से ही ठोस उपाय कर लेने चाहिए. कई यूरोपियन देशों में तो व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद शोक मनाने के लिए भी सारे इंतजाम करने के बाद ही मरता है. हमारे समाज का तो ढांचा ही कुछ ऐसा है कि हम अपने बच्चों से बहुत सारी अपेक्षाएं रखते हैं.

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, बेटेबहू के हाथ से तर्पण व मोक्ष पाने का लालच इतना ज्यादा है कि चाहे जो भी हो जाए, वृद्ध दंपती बेटेबहू के साथ ही रहना चाहते हैं. बेटियां चाहे जितना भी प्यार करें, वे बेटियों के साथ नहीं रह सकते, न ही उन से कोई मदद मांगते हैं. कुछ बेटियां भी शादी के बाद मायके की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना चाहती हैं. और दामाद को तो ससुराल के मामले में बोलने का कोई हक ही नहीं होता.

भारतीय समाज में एक औरत के लिए सास बनना किसी पदवी से कम नहीं होता. महिला को लगता है कि अब तक उस ने बहू बन कर काफी दुख झेले हैं, और अब तो वह सास बन गई है. सो, अब उस के आराम करने के दिन हैं. सास की हमउम्र सहेलियां भी बहू के आते ही उस के कान भरने शुरू कर देती हैं. ‘‘बहू को थोड़ा कंट्रोल में रखो, अभी से छूट दोगी तो पछताओगी बाद में.’’

‘‘उसे घर के रीतिरिवाज अच्छे से समझा देना और उसी के मुताबिक चलने को कहना.’’

‘‘अब तो तुम्हारा बेटा गया तुम्हारे हाथ से’’, इत्यादि जुमले अकसर सुनने को मिलते हैं. ऐसे में नईनई सास बनी एक औरत असुरक्षा की भावना से घिर जाती है और बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी समझ बैठती है. जबकि सही माने में देखा जाए तो सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है. आप चाहें तो गुरु और शिष्या के जैसा भी हो सकता है और सहेलियों जैसा भी.

यदि हम कुछ बातों का विशेषरूप से ध्यान रखें तो ऐसी विपरित परिस्थितियों से निबटा जा सकता है, जैसे-

–       नई बहू के साथ घर के बाकी सदस्यों के जैसा ही व्यवहार करें. उस से प्यार भी करें और विश्वास भी, परंतु न तो चौबीसों घंटे उस पर निगरानी रखें और न ही उस की बातों पर अंधविश्वास करें.

–       नई बहू के सामने हमेशा अपने गहनों व प्रौपर्टी की नुमाइश न करें और न ही उस से बारबार यह कहें कि ‘मेरे मरने के बाद सबकुछ तुम्हारा ही है.’ इस से बहू के मन में लालच पैदा हो सकता है. अच्छा होगा कि आप पहले बहू को ससुराल में घुलमिल जाने दें तथा उस के मन में ससुराल के प्रति लगाव पैदा होने दें.

–       बहू की गलतियों पर न तो उस का मजाक उड़ाएं और न ही उस के मायके वालों को कोसें. बल्कि, अपने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए सहीगलत, उचितअनुचित का ज्ञान दें. परंतु याद रहे कि ‘हमारे जमाने में…’ वाला जुमला न इस्तेमाल करें.

–       बहू की गलतियों के लिए बेटे को ताना न दें, वरना बहू तो आप से चिढ़ेगी ही, बेटा भी आप से दूर हो जाएगा.

–       अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें तथा घरेलू कार्यों में आत्मनिर्भर रहने का प्रयास करें.

–       समसामयिक जानकारियों, कानूनी नियमों, बैंक व जीवनबीमा संबंधी नियमों तथा इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स के बारे में भी अपडेट रहें. इस के लिए आप अपनी बहू का भी सहयोग ले सकती हैं. इस से वह आप को पुरातनपंथी नहीं समझेगी, और वह किसी बात में आप से सलाह लेने में हिचकेगी भी नहीं.

–       अपने पड़ोसी व रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखने का प्रयास करें.

–       बेटेबहू को स्पेस दें. उन के आपसी झगड़ों में बिन मांगे अपनी सलाह न दें.

–       परंपराओं के नाम पर जबरदस्ती के रीतिरिवाज अपनी बहू पर न थोपें. उस के विचारों का भी सम्मान करें.

आखिर में, यदि आप को अपनी बहू का व्यवहार अप्रत्याशित रूप से खतरनाक महसूस हो रहा है तो आप अदालत का दरवाजा खटखटाने में संकोच न करें. याद रखिए घरेलू हिंसा का जो कानून आप की बहू के लिए है वह आप के लिए भी है.

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कानून की नजर में

केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक अंगरेजी अखबार के जरिए यह कहा था कि घरेलू हिंसा कानून ऐसा होना चाहिए जो बहू के साथसाथ सास को भी सुरक्षा प्रदान कर सके. क्योंकि अब बहुओं द्वारा सास को सताने के भी बहुत मामले आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि हिंदू मैरिज कानून के मुताबिक, कोई भी बहू किसी भी बेटे को उस के मांबाप के दायित्वों के निर्वहन से मना नहीं कर सकती.

क्या कहता है समाज

भारतीय समाज के लोगों ने अपने मन में इस रिश्ते को ले कर काफी पूर्वाग्रह पाल रखे हैं. विशेषकर युवा पीढ़ी बहू को हमेशा बेचारी व सास को दोषी मानती है. युवतियां भी शादी से पहले से ही सासबहू के रिश्ते के प्रति वितृष्णा से भरी होती हैं. वे ससुराल में जाते ही सबकुछ अपने तरीके से करने की जिद में लग जाती हैं. वे पति को ममा बौयज कह कर ताने देती हैं और सास को भी अपने बेटे से दूर रखने की कोशिश करती हैं.

Romantic Story In Hindi: चार मार्च- भाग 2- क्या परवान चढ़ा हर्ष और आभा का प्यार

लेखिका- आशा शर्मा

अब तो यह रोज का नियम ही बन गया. न जाने कितनी बातें थीं उन के पास जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. कईर् बार तो यह होता था कि दोनों के ही पास कहने के लिए शब्द नहीं होते थे. मगर बस वे एकदूसरे से जुड़े हुए हैं यही सोच कर फोन थामे रहते. इसी चक्कर में दोनों के कई जरूरी काम भी छूटने लगे. मगर न जाने कैसा नशा सवार था दोनों ही पर कि यदि 1 घंटा भी फोन पर बात न हो तो दोनों को ही बेचैनी होने लगती.

ऐसी दीवानगी तो शायद उस कच्ची उम्र में भी नहीं थी जब उन के प्यार की शुरुआत हुई थी. आभा को लग रहा था जैसे खोया हुआ प्यार फिर से उस के जीवन में दस्तक दे रहा है. मगर हर्ष अब भी इस सचाई को जानते हुए भी यह स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि उसे आभा से प्यार है.

‘‘हर्ष, तुम इस बात को स्वीकार क्यों नहीं कर लेते कि तुम्हें आज भी मुझ से प्यार है?’’ एक दिन आभा ने पूछा.

‘‘अगर मैं यह प्यार स्वीकार कर भी लूं तो क्या समाज इसे स्वीकार करने देगा? कौन इस बात का समर्थन करेगा कि मैं ने शादी किसी और से की है और प्यार तुम से करता हूं,’’ हर्ष ने तड़पते हुए जवाब दिया.

‘‘शादी करना और प्यार करना दोनों अलगअलग बातें हैं हर्ष… जिसे चाहें शादी भी उसी से हो जब यह जरूरी नहीं, तो फिर यह जरूरी क्यों है कि जिस से शादी हो उसी को चाहा भी जाए?’’ आभा ने अपना तर्क दिया. उस का दिल रो रहा था.

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‘‘चलो, माना कि यह जरूरी नहीं, मगर इस में हमारे जीवनसाथियों की क्या गलती है? उन्हें हमारी अधूरी चाहत की सजा क्यों मिले?’’ हर्ष ने फिर तर्क किया.

‘‘हर्ष, मैं किसी को सजा देने की बात नहीं कर रही… हम ने अपनी सारी जिंदगी उन की खुशी के लिए जी है… क्या हमारा अपनेआप के प्रति कोई कर्तव्य नहीं? क्या हमें अपनी खुशी के लिए जीने का अधिकार नहीं? वैसे भी अब हम उम्र की मध्यवय में आ चुके हैं. जीने लायक जिंदगी बची ही कितनी है हमारे पास… मैं कुछ लमहे अपने लिए जीना चाहती हूं. मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं… मैं महसूस करना चाहती हूं कि खुशी क्या होती है,’’ कहतेकहते आभा का स्वर भीग गया.

‘‘क्यों? क्या तुम अपनी लाइफ से अब तक खुश नहीं थीं? क्या कमी है तुम्हें? सबकुछ तो है तुम्हारे पास,’’ हर्ष ने उसे टटोला.

‘‘खुश दिखना और खुश होना दोनों में बहुत फर्क होता है हर्ष. तुम नहीं समझोगे.’’

आभा ने जब यह कहा तो उस की आवाज की तरलता हर्ष ने भी महसूस की. शायद वह भी उस में भीग गया था. मगर सच का सामना करने की हिम्मत फिर भी नहीं जुटा पाया.

लगभग 10 महीने दोनों इसी तरह सोशल मीडिया पर जुड़े रहे. रोज घंटों बातें करने पर भी उन की बातें खत्म नहीं होती थीं. आभा की तड़प इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि अब वह हर्ष से प्रत्यक्ष मिलने के लिए बेचैन होने लगी. लेकिन हर्ष का व्यवहार अभी भी उस के लिए एक पहेली बना हुआ था.

कभी तो उसे लगता जैसे हर्ष आज भी सिर्फ उसी का है और कभी वह एकदम बेगानों सा लगने लगता. वह 2 कदम आगे बढ़ता और अगले ही पल 4 कदम पीछे हो जाता. वह आभा का साथ तो चाहता था, मगर समाज में दोनों की ही प्रतिष्ठा को भी दांव पर नहीं लगाना चाहता था. उसे डर था कि कहीं ऐसा न हो वह एक बार मिलने के बाद आभा से दूर ही न रह पाए… फिर क्या करेगा वह? मगर आभा अब मन ही मन एक ठोस निर्णय ले चुकी थी.

‘4 मार्च’ आने वाला था. आभा ने हर्ष

को याद दिलाया कि पिछले साल इसी दिन वे

2 बिछड़े प्रेमी फिर से मिले थे. उस ने आखिर हर्ष को मना ही लिया था यह दिन एकसाथ मनाने के लिए और बहुत सोचविचार कर के दोनों ने उस दिन जयपुर में मिलना तय किया.

हर्ष दिल्ली से और आभा जोधपुर से सुबह ही जयपुर आई. होटल में पतिपत्नी की तरह रुके. पूरा दिन साथ बिताया… जीभर कर प्यार किया और दोपहर ठीक 12 बजे आभा ने हर्ष को ‘हैप्पी ऐनिवर्सरी’ विश किया और फिर उसी समय अपने मोबाइल में अगले साल के लिए यह रिमाइंडर डाल लिया.

रात को जब बिदा लेने लगे तो आभा ने हर्ष को एक बार फिर चूमते हुए कहा, ‘‘हर्ष,

खुशी क्या होती है, यह आज तुम ने मुझे महसूस करवाया है… थैंक्स… अब अगर मैं मर भी जाऊं तो कोई गम नहीं.’’

‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन… अभी तो हमारी जिंदगी से फिर से मुलाकात हुई है… सच आभा मैं तो मशीन ही बन चुका था. मेरे दिल को फिर से धड़काने के लिए शुक्रिया. और हां, खुशी और संतुष्टि में फर्क महसूस करवाने के लिए भी,’’ हर्ष ने उस के चेहरे पर से बाल हटाते हुए कहा और फिर से उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच लिया.

‘‘अब आशिकी छोड़ो… मेरी टे्रन का टाइम हो रहा है,’’ आभा ने मुसकराते हुए हर्ष को

अपने से अलग किया.

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उसी शाम दोनों ने वादा किया था कि हर साल 4 मार्च को वे दोनों इसी तरह इसी जगह मिला करेंगे. इसी वादे के तहत आज भी दोनों यहां जयपुर आए थे और यह हादसा हो गया.

‘‘आभा, डाक्टर ने तुम्हारे डिस्चार्ज पेपर बना दिए. मैं टैक्सी ले कर आता हूं,’’ हर्ष ने धीरे से उसे जगाते हुए कहा तो आभा फिर से भयभीत हो गई कि कैसे वापस जाएगी अब वह जोधपुर? कैसे राहुल का सामना कर पाएगी? मगर फेस तो करना ही पड़ेगा. जो होगा, देखा जाएगा. सोचते हुए आभा जोधपुर जाने के लिए अपनेआप को मानसिक रूप से तैयार करने लगी.

आभा ने राहुल को फोन कर के अपने ऐक्सीडैंट के बारे में बता दिया. राहुल ने सिर्फ इतना ही पूछा, ‘‘ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’

आभा के नहीं कहते ही राहुल ने अगला प्रश्न दागा, ‘‘सरकारी हौस्पिटल में ही दिखाया था न… ये प्राइवेट वाले तो बस लूटने के मौके ढूंढ़ते हैं.’’

सुन कर आभा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि उसे राहुल से ऐसी ही उम्मीद थी.

आभा ने बहुत कहा कि वह अकेली जोधपुर चली जाएगी, मगर हर्ष ने उस की एक न सुनी और टैक्सी में उस के साथ जोधपुर चल पड़ा.

आभा को हर्ष का सहारा ले कर उतरते देख राहुल का माथा ठनका. आभा ने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘ये मेरे पुराने दोस्त हैं… जयपुर में मेरे साथ ही थे.’’

राहुल ने हर्ष में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘टैक्सी से आने की क्या जरूरत थी? ट्रेन से भी आ सकती थी.’’

आभा को जोधुपर छोड़ उसी टैक्सी से हर्ष लौट गया.

आभा 6 सप्ताह की बैड रैस्ट पर थी. दिनभर बिस्तर पर पड़ेपड़े उसे हर्ष से बातें करने के अलावा और कोई काम ही नहीं सूझता था. कभी जब हर्ष अपने प्रोजैक्ट में बिजी होता तो उस से बात नहीं कर पाता था. यह बात आभा को अखर जाती थी. वह फोन या व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के अपनी नाराजगी जताती. फिर हर्ष उसे मनुहार कर के मनाता. आभा को उस का यों मनाना बहुत सुहाता. वह मन ही मन अपने प्यार पर इतराती.

ऐसे ही एक दिन वह अपने बैड पर लेटीलेटी हर्ष से बातें कर रही थी और उस ने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं. उसे पता ही नहीं चला कि राहुल कब से वहां खड़ा उस की बातें सुन रहा है.

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‘‘बाय… लव यू…’’ कहते हुए फोन रखने के साथ ही जब राहुल

पर उस की नजर पड़ी तो वह सकपका गई. राहुल की आंखों का गुस्सा उसे अंदर तक हिला गया. उसे लगा मानो आज उस की जिंदगी से खुशियों की बिदाई हो गई.

आगे पढ़ें- राहुल ने आंखें तरेर कर…

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