लेखिका- आशा शर्मा
राहुल ने आंखें तरेर कर पूछा, ‘‘कौन है यह? कब से चल रहा है ये सब?’’
‘‘यह हर्ष है… वही, जो मुझे छोड़ने आया था,’’ आभा अब राहुल के सवालों के जवाब देने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी थी.
‘‘तो तुम इसलिए बारबार जयपुर जाती थी?’’ राहुल ने फिर पूछा पर आभा ने कोई जवाब नहीं दिया.
‘‘अपनी नहीं तो कम से कम मेरी इज्जत का ही खयाल कर लेती… समाज में बात खुलेगी तो क्या होगा, कभी सोचा है तुम ने?’’ राहुल ने उस के चरित्र को निशाना बनाते हुए चोट की.
‘‘तुम्हारी इज्जत का खयाल था इसीलिए तो बाहर मिली उस से वरना यहां इस शहर में भी मिल सकती थी और समाज? किस समाज की बात करते हो तुम? किसे इतनी फुरसत है कि इतनी आपाधापी में मेरे बारे में कोई सोचे? मैं कितना सोचती हूं किसी और के बारे में और यदि कोई सोचता भी है तो 2 दिन सोच कर भूल जाएगा. वैसे भी लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है,’’ आशा ने बहुत ही संयत स्वर में कहा.
‘‘बच्चे क्या सोचेंगे तुम्हारे बारे में? उन का तो कुछ खयाल करो,’’ राहुल ने इस बार इमोशनल वार किया.
‘‘2-4 सालों में बच्चे भी अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाएंगे…? राहुल मैं ने सारी उम्र अपनी जिम्मेदारियां निभाई हैं. बिना तुम से कोई सवाल किए अपना हर फर्ज निभाया है, फिर चाहे वह पत्नी का हो या मां का. अब मैं कुछ समय अपने लिए जीना चाहती हूं. क्या मुझे इतना भी अधिकार नहीं?’’ आभा की आवाज लगभग भर्रा गई थी.
‘‘तुम पत्नी हो मेरी… मैं कैसे तुम्हें किसी और की बांहों में देख सकता हूं?’’ राहुल ने उसे झकझोरते हुए कहा.
‘‘हां, पत्नी हूं तुम्हारी… मेरे शरीर पर तुम्हारा अधिकार है… मगर कभी सोचा है तुम ने कि मेरा मन आज तक तुम्हारा क्यों नहीं हुआ? तुम्हारे प्यार के छींटों से मेरे मन का आंगन क्यों नहीं भीगा? तुम चाहो तो अपने अधिकार का प्रयोग कर के मेरे शरीर को बंदी बना सकते हो… एक जिंदा लाश पर अपने स्वामित्व का हक जता कर अपने अहम को संतुष्ट कर सकते हो, मगर मेरे मन को तुम सीमाओं में नहीं बांध सकते… उसे हर्ष के बारे में सोचने से तुम रोक नहीं सकते,’’ आभा ने शून्य में ताकते हुए कहा.
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‘‘अच्छा, क्या वह हर्ष भी तुम्हारे लिए इतना ही दीवाना है? क्या वह भी तुम्हारे लिए अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार है?’’ राहुल ने व्यंग्य से कहा.
‘‘दीवानगी का कोई पैमाना नहीं होता. वह मेरे लिए किस हद तक जा सकता है, यह मैं नहीं जानती, मगर मैं उस के लिए किसी भी हद तक जा सकती हूं,’’ आभा ने दृढ़ता से कहा.
‘‘अगर तुम ने इस व्यक्ति से अपना रिश्ता खत्म नहीं किया तो मैं उस
के घर जा कर उस की सारी हकीकत बता दूंगा,’’ कहते हुए राहुल ने गुस्से में आ कर आभा के हाथ से मोबाइल छीन कर उसे जमीन पर पटक दिया. मोबाइल बिखर कर आभा के दिल की तरह टुकड़ेटुकड़े हो गया.
राहुल की आखिरी धमकी ने आभा को सचमुच डरा दिया. वह नहीं चाहती थी कि उस के कारण हर्ष की जिंदगी में कोई तूफान आए. वह अपनी खुशियों की इतनी बड़ी कीमत नहीं चुका सकती थी. उस ने मोबाइल के सारे पार्ट्स फिर से जोड़े तो पाया कि वह अभी भी चालू स्थिति में है. एक आखिरी मैसेज उस ने हर्ष को लिखा, ‘‘शायद नियति ने मेरे हिस्से खुशी लिखी ही नहीं… तुम ने जो खूबसूरत यादें मुझे दी हैं उन के लिए तुम्हारा शुक्रिया…’’ और फिर मोबाइल से सिम निकाल कर टुकड़ेटुकड़े कर दी.
हर्ष कुछ भी समझ नहीं पाया कि यह अचानक क्या हो गया. उस ने आभा को फोन लगाया, मगर फोन बंद था. फिर उस ने व्हाट्सऐप पर मैसेज छोड़ा, मगर वह भी अनसीन ही रह गया.
अगले कई दिनों तक हर्ष उसे फोन ट्राई करता रहा, मगर हर बार फोन बंद है का मैसेज पा कर निराश हो उठता. उस के किसी भी मेल का जवाब भी आभा की तरफ से नहीं आया.
एक बार तो हर्ष ने जोधपुर जा कर उस से मिलने का मन भी बनाया, मगर फिर यह सोच कर कि कहीं उस की वजह से स्थिति ज्यादा खराब न हो जाए उस ने दिल पर पत्थर रख लिया. आखिर हर्ष ने सबकुछ वक्त पर छोड़ कर आभा को तलाश करना बंद कर दिया.
इस वाकेआ के बाद आभा ने अब मोबाइल रखना ही बंद कर दिया. राहुल के बहुत जिद करने पर भी उस ने नई सिम नहीं ली. बस कालेज से घर और घर से कालेज तक ही उस ने खुद को सीमित कर लिया. कालेज से भी जब मन उचटने लगा तो उस ने छुट्टियां लेनी शुरू कर दीं. मगर छुट्टियों की भी एक सीमा थी.
धीरेधीरे वह गहरे अवसाद में चली गई. राहुल ने बहुत इलाज करवाया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. अब राहुल भी चिड़चिड़ा सा होने लगा था.
एक तो आभा की बीमारी ऊपर से उस की सैलरी भी कट कर आ रही थी, क्योंकि उस की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. राहुल को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ रही थी जिसे वह सहन नहीं कर पा रहा था.
पतिपत्नी जैसा भी कोईर् रिश्ता अब उन के बीच नहीं रहा था, यहां तक कि आजकल तो खाना भी अकसर या तो राहुल को खुद बनाना पड़ता या फिर बाहर से ही आता.
सारे उपाय करने के बाद अंत में डाक्टर ने भी हाथ खड़े कर लिए. उन्होंने राहुल से कहा, ‘‘मरीज ने शायद खुद को खत्म करने की ठान ली है. जब तक ये खुद जीना नहीं चाहेंगी, कोई भी इलाज इन पर कारगर नहीं हो सकता.’’
आज शाम राहुल ने आभा से तलखी से कहा, ‘‘देखो, अब बहुत हो चुका… मैं अब तुम्हारे नाटक और नहीं सहन कर सकता… आज तुम्हारे प्रिंसिपल का फोन आया था. कह रहे थे कि तुम्हारे कालेज की तरफ से जयपुर में 5 दिनों का एक ट्रेनिंग कैंप लग रहा है. अगर तुम ने उस में भाग नहीं लिया तो तुम्हारा इंक्रीमैंट रुक सकता है. हो सकता है कि नौकरी भी हाथ से चली जाए. मेरी समझ में नहीं आता कि तुम क्यों अच्छीभली नौकरी को लात मारने पर तुली हो… मैं ने तुम्हारे प्रिंसिपल से कह कर कैंप के लिए तुम्हारा नाम जुड़वा दिया है. 2 दिन बाद तुम्हें जयपुर जाना है.’’
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आभा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. आभा के न चाहते हुए भी राहुल ने उसे ट्रेनिंग कैंप में भेज दिया. ट्रेन में बैठाते समय राहुल ने कहा, ‘‘यह लो अपना मोबाइल… इस में नई सिम डाल दी है. अपने प्रिंसिपल को फोन कर के कैंप जौइन करने की सूचना दे देना ताकि उन्हें तसल्ली हो जाए.’’
आभा ने एक नजर अपने पुराने टूटे मोबाइल पर डाली और उसे पर्स में धकेलते हुए टे्रन की तरफ बढ़ गई. सुबह जैसे ही आभा की ट्रेन जयपुर स्टेशन पहुंची वह यंत्रचालित सी नीचे उतरी और धीरेधीरे उसी बैंच की तरफ बढ़ चली जहां हर्ष उसे बैठा मिला करता था. फिर अचानक कुछ याद कर के आभा के आंसुओं का बांध टूट गया. वह उस बैंच पर बैठ कर फफक पड़ी. फिर अपनेआप को संभालते हुए उसी होटल की तरफ चल दी जहां वह हर्ष के साथ रुका करती थी. उसे दोपहर बाद 3 बजे कैंप में पहुंचना था.
संयोग से आभा उस दिन भी उसी कमरे में ठहरी जहां उस ने पिछली दोनों बार के साथ यादगार लमहे बिताए थे. वह कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी. उस ने रूम का दरवाजा तक बंद नहीं किया था.
तभी अचानक पर्स में रखे मोबाइल में रिमाइंडर मैसेज बज उठा, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टु हर्ष’ देख कर आभा एक बार फिर सिसक उठी, ‘‘उफ्फ, आज 4 मार्च है.’’
तभी अचानक 2 मजबूत हाथ पीछे से आ कर उस के गले के इर्दगिर्द लिपट गए. आभा ने अपना भीगा चेहर ऊपर उठाया तो सामने हर्ष को देख कर उसे यकीन ही नहीं हुआ. वह उस से कस कर लिपट गई.
हर्ष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘हैप्पी ऐनिवर्सरी.’’
आभा का सारा अवसाद आंखों के रास्ते बहता हुआ हर्ष की शर्ट को भिगोने लगा.
वह सबकुछ भूल कर उस के चौड़े सीने में सिमट गई.
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