स्टार प्लस का सीरियल पांड्या स्टोर इन दिनों काफी सुर्खियों बटोर रहा है. सीरियल की कहानी दर्शकों को काफी पसंद आ रही है. वहीं इसमें नजर आने वाली धरा के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस शाइनी दोशी की फैन फौलोइंग बढ़ती जा रही है. वहीं खबरे हैं कि संस्कारी बहू के रोल में नजर आने वाली धरा यानी शाइनी दोशी जल्द शादी करने वाली हैं, जिसके सोशलमीडिया पर उनकी फोटोज वायरल हो रही हैं. हालांकि आज हम एक्ट्रेस शाइनी दोशी की लव लाइफ या नहीं प्रोफेशनल लाइफ की नहीं बल्कि उनकी बोल्डनेस और फैशन की करेंगे. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
सीरियल पांड्या स्टोर में संस्कारी बहू के रोल में नजर आने वाली धरा काफी बोल्ड हैं. वह आए दिन अपनी हौट और स्टाइलिश फोटोज सोशलमीडिया पर शेयर करती हैं, जिसे फैंस काफी पसंद करते हैं. वहीं पार्टी हो या वेकेशन हर ओकेजन पर उनका अलग अंदाज देखने को मिलता है. हालांकि हर लुक में वह बेहद खूबसूरत नजर आती हैं.
समर में हर कोई कूल और कंफरटेबल लुक ट्राय करना पसंद करता है. वहीं धरा यानी शाइनी भी अपने समर कलेक्शन में कूल और सिंपल ड्रैसेस कैरी करना पसंद करती हैं. हालांकि वह सिंपल लुक को भी स्टाइलिश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं.
एक्ट्रेस शाइनी दोशी के समर कलेक्शन में फ्लावर प्रिंट पैटर्न देखने को मिलता है. वह आए दिन फ्लावर प्रिंट ड्रैस हो या गाउन, ट्राय करती हुईं नजर आती हैं. हालांकि बौयफ्रेंड संग जब वह क्वालिटी टाइम बिताती हैं तब भी उनका फ्लावर पैटर्न लव देखने को मिलता है.
साड़ी हो या ड्रैस, हर लुक में शाइनी दोशी का लुक देखने लायक होता है. फैंस उनके हर लुक को पसंद करते हैं. वहीं सीरियल में उनका धरा लुक भी फैंस को काफी पसंद आता है. लेकिन समर कलेक्शन के लिए शाइनी का ये कलेक्शन बेहद काम का साबित हो सकता है.
अवधिः लगभग सात घंटे, 45 से 52 मिनट की अवधि के दस एपीसोड
ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव
भारत में बिहार राज्य की गिनती सर्वाधिक पिछड़े राज्य के रूप में होती है. बिहार में गरीबी, अशिक्षा, गुंडागर्दी, हिंसा, भ्रष्टाचार आदि का बोलबाला है. जातिगत हिंसा, भेदभाव, वीर सेना व लाल सेना यानी कि नक्सलवाद के साथ ही राजनीति के जिस कुत्सित चेहरे के बारे में लोग सुनते रहे हैं, उसकी एक झलक वेब सीरीज ‘महारानी’का हिस्सा है. देश की युवा पीढ़ी शायद 1997 से 1999 तक की राजनीति से पूरी तरह वाकिफ नही है. मगर उसी काल में पशुचारा घोटाले में नौ सौ अट्ठावन करोड़ के घोटाले के आरोप के बाद बिहार के मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव ने त्यागपत्र दिया था, मगर नए मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने अपनी अशिक्षित पत्नी व पूरी तरह से घरेलू महिला राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था. सुभाष कपूर ने ‘‘बिहार के इतिहास में दर्ज इसी तरह की राजनीति के एक स्याह अध्याय’’ से प्रेरित होकर एक काल्पनिक राजनीतिक घटनाक्रम वाली वेब सीरीज ‘‘महारानी’’लेकर आए हैं, . इस वेब सीरीज के क्रिएटिब डायरेक्टर होने के साथ ही सुभाष कपूर मुख्य लेखक भी हैं.
कहानी की शुरूआत बिहार के मोरैना गॉंव में निचले तबके के दिलीप( हिमांशु मेहता)द्वारा उच्च जाति के घर पर अपनी पत्नी के काम करने से इंकार करने से होती है. दिलीप कहता है कि अब उंची जाति वालों को याद रखना चाहिए कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भीमा भारती(सोहम शाह )हैं. दिलीप जिस भाषा में बातें करते हैं, उसी वजह से दिलीप को गोली से भून दिया जाता है. इधर अपने लाव लश्कर के साथ मुख्यमंत्री अपने पैतृक गांव मनुपुर, गोपालगंज पत्नी रानी (हुमा कुरेशी ) व बेटो तथा बेटी रोशनी(सिद्धि मालवीय ) से मिलने पहॅुचते हैं. वह बामुश्किल अपनी पत्नी का गुस्सा ठंडा कर पाते हैं. इसी बीच लालसेना के शंकर महतो (हरीश खन्ना ) अपने गैंग के साथ मुरैना गांव में सामूहिक नरसंहार को अंजाम देते हैं. तब मुख्यमंत्री बनने से वंचित रह गए व स्वास्थ्यमंत्री नवीन कुमार (अमित सियाल )अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठकर मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगते हैं. उन्हे अपनी पार्टी यानी कि राष्ट्रीय जन पार्टी के राज्य अध्यक्ष गौरी शंकर पांडे (विनीत कुमार) का वरदहस्त हासिल है. तभी छठ का पर्व आ जाता है और छठ पर्व के दिन जब मुख्यमंत्री भीमा भारती अपनी पत्नी रानी का व्रत पूर्ण करवाने की क्रिया के लिए गांव की ही नदी पर पहुंचते हैं, तब उन पर दो हमलावर गोली चला देते हैं. घायल अवस्था में उन्हे पटना मेडीकल कालेज में भर्ती कराया जाता है. अब रानी बच्चो के साथ पटना स्थित मुख्यमंत्री आवास पहुंच जाती हैं. इस घटनाक्रम से गौरीशंकर पांडे, नवीन कुमार व प्रेम कुमार (मोहम्मद आशिक हुसेन )खुश हैं. पर भीमा के के निजी सहायक मिश्रा जी(प्रमोद पाठक)राजनीति को भांपते हुए अस्पताल के सीएमओ डा. डी डी शर्मा (रिजु बजाज)पर भीमा भारती को मुख्यमंत्री आवास में ही भेजने के लिए कहते हैं और उनसे कहते हैं कि वह मेडिकल बुलेटीन जारी कर कह दें कि अब मुख्यमंत्री खतरे से बाहर हैं, इसलिए उन्हे घर भेज दिया गया. ऐसा ही किया जाता है. मगर डॉ. शर्मा सारा सच नवीन कुमार को बता देते हैं कि अभी छह सात माह तक मुख्यमंत्री ठीक नही हो पाएंगे. नवीन कुमार, प्रेम कुमार व गौरीशंकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामजीवन बोरा (सुधनवा देशपांडे )को बुलाकर मुख्यमंत्री आवास पहुंच जाते हैं, जहंा बोरा, भीमा भारती त्यागपत्र देने का दबाव बनाते हैं. भीमा दावा करते हैं कि बहुमत उनके साथ हैं, इसलिए उनकी पसंद का व्यक्ति ही मुख्यमंत्री बनेगा. बोरा पार्टी के अंदर जांच करने का ऐलान कर देते है कि बहुमत किसके साथ हैं. नवीन कुमार को भरोसा हो जाता है कि अब वही मुख्यमंत्री बनेंगें, मगर अंतिम समय में भीमा के पक्ष में अधिक विधायक जुटते हैं और भीमा भारती अपनी पत्नी रानी भारती(हुमा कुरेशी)को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देते है, जो कि अनपढ़ हैं, अपना नाम तक नहीं लिख सकती. कुछ पढ़ नही सकती. नवीन कुमार अपने विधायको के साथ विपक्षी दल में शामिल हो जाते हैं. राज्यपाल गोवर्धनदास (अतुल तिवारी)उन्हे बामुश्किल शपथ दिलाते हैं. अब नवीन कुमारअपने मौसा व महामहिम राज्यपाल से कहते हैं कि वह रानी भारती को सदन में विश्वासमत हासिल करने के लिए कहें. विश्वासमत के दौरान अपने संबंध में नवीन कुमार के मुंह से कड़वा सच सुनकर रानी भारती तिलमिला जाती हैं. उसके बाद वह ऐसा जवाब देती है कि विश्वासमत हासिल करने में सफल हो जाती हैं. उसके बाद धीरे धीरे मुख्यमंत्री रानी भारती अपनी देहाती समझ के अनुसार ऐसे कदम उठाती हैं कि बहुत कुछ गडमड हो जाता है.
उधर शंकर महतो और वीर सेना के रामेश्वर मुखिया(आलोक चटर्जी ) अपने अंदाज में नरसंहार करते रहते हैं, धीरे धीरे लोगं की समझ में आता है कि इनसे राज्य के मंत्री मिले हुए हैं. तो वहीं मचान बाबा(तरूण कुमार) का अपना खेल चलता रहता है.
मुख्यमंत्री के आदेश पर वित्त सचिव परवेज आलम(इनामुल हक)जांचकर पशुपालन विभाग में 958 करोड़ की चोरी पकड़ते हैं. मुख्यमंत्री रानी , पशुपालन मंत्री प्रेम कुमार को बर्खास्त कर देती हैं. उसके बाद काफी राजनीतिक उठापटक होती है.
लेखनः
सुभाष कपूर ने बिहार की राजनीति के नब्बे के दशक के स्याह अध्याय को काल्पनिक कथा के नाम पर गढ़ने का असफल प्रयास किया है. उनके लेखन में काफी खोखलापन है. कई दृश्यों को देखकर इस बात का अहसास होता है कि सुभाष कपूर इसकी कथा पटकथा लिखते हुए काफी डरे हुए थे और उनकी पूरी कोशिश रही है कि हर पक्ष को खुश किया जाए. बिहार राज्य के अंदर सामाजिक स्तर पर जातिगत भेदभाव को भी बहुत उथला ही पेश किया गया है. वेब सीरीज में कुछ जटिलताएं जरुर रोमांचित करती हैं, मगर दृश्य नही करते, यह लेखन की कमजोर कड़ी है. वेब सीरीज की शुरूआत ही जातिगत भेदभाव की तरफ इशारा करते हुए होती है, लेकिन बहुत जल्द सुभाष कपूर के लेखन की गाड़ी पटरी से उतर जाती है. सुभाष कपूर ने ‘महारानी’ की कहानी का केंद्र मुख्यमंत्री रानी भारती के इर्द गिर्द रखते हुए एक अंगूठा छाप अशिक्षित मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार के सागर में पवित्रता की मूर्ति बताकर पूरी बिहार की राजनीतिक सत्यता को ही उलट पुलट कर एक नए सत्य को लोगों से कबूल करवाने का असफल प्रयास किया है. एक संवाद है, जब रानी भारती अपने पति भीमा भारती व मिश्राजी से कहती हैं-‘‘हम सच जानना चाहते हैं और आप सरकार बचाना चाहते हैं?’’लेकिन लेखक इस बात के लिए बधाई के पात्र है कि उन्होेने रानी को एक ऐसी महिला के रूप में पेश किया है, जो मानती है कि अशिक्षित होने के कारण वह पढ़लिख नही सकती, मगर अपने जीवन के अनुभवांे के आधार पर उसकी जो समझ है, वह उसके लिए काफी मायने रखती है.
लेखक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी यह है कि मुख्यमंत्री भीमा भारती क्यों अपनी पत्नी रानी भारती को अपने साथ रखने की बजाय गांव में ही रखते हैं, इस पर उनकी कलम चुप रह गयी?क्या भीमा अपनी अशिक्षित पत्नी की वजह से ख्ुाद को हीन ग्रंथि का शिकार समझते हैं. गॉंव की रहने वाली, पति की सेवा, अपने बच्चों व अपनी गाय की देखभाल के प्रति समर्पित रानी भारती मुख्यमंत्री बनते ही दो एपीसोड के अंदर ही जिस कुटिल राजनेता की तरह आदेश देना शुरू करती हैं, उसका यह परिवर्तन भी अविश्वसनीय लगता है. रानी को इंसान के तौर पर विकसित करने के लिए मुख्यमंत्री बनते ही उनके समक्ष बाधाओं का अंबार लगा दिया जाता है, मगर वह बिना पति व राजनीतिज्ञ भीमा भारती की सलाह के सारे निर्णय लेती रहती है. यह सब कहीं न कहीं लेखकीय कमजोरी है, भले ही इसके पीछे लेखक की मंशा नारी शक्ति का चित्रण करना ही क्यों न रहा हो, मगर उसका आधार तो सशक्त होना चाहिए. पर लेखक बुरी तरह से मात खा गए हैं. कई जगह बेवजह अश्लील गालियों का समावेश है. राजनीति में धर्म गुरूओं के प्रभाव की लेखक ने हल्की झलक ही पेश की है, जबकि राजनीति व धर्म का मिलाप कई निराले खेल करता रहा है और आज भी कर रहा है. वेब सीरीज में धर्म को बेचने का भी प्रयास है.
इसमें चरित्रगत विसंगतियां भी हैंं. मसलन एक दृश्य में मुख्यमंत्री रानी भारती पुरूष विधायको व मंत्रियो द्वारा विवाहित महिला यानी कि उन्हें फूल मालाएं देने का विरोध करती हैं, तो कुछ एपीसोड के बाद एक दृश्य में वह बड़ी सहजता से स्वीकार करती हैं. यह चरित्र में बदलाव? इतना ही नही एक दृश्य में मिश्राजी जब उसकी बांह पकड़कर बरामदे में उनके पति के पास ले जाते हैं, तो यह वह कैसे स्वीकार कर लेती है?
लेखक ने लाल सेना (नक्सलवाद)और वीर सेना के संग राजनेताओं के गठबंधन का भी चित्रण किया है. मगर नक्सलवाद या वीर सेना क्यो पूरे गॉंव के गॉंव का नरसंहार करते हैं, इसकी वजह व इन दोनो के वजूद को लेकर कोई बात नही करती. शुरूआती एपीसोडों में यह संवाद जरुर है-‘‘पिछड़ो ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए एक हाथ में लाल झंडा और दूसरे हाथ में बंदूक उठा ली है. ’’पर अहम सवाल यह है कि क्या वीर सेना या नक्सलवाद के पीछे महज जातिगत समीकरण ही हैं?ऐसे में नरंसहार?
बिहार के स्याह इतिहास में1995 की बिहार बाढ़, बड़ा नरसंहार जहां माओवादियों ने भूमिहारों को मार गिराया था, और लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार जहां एक भूमिहार उग्रवादी समूह ने अनुसूचित जाति के लोगों को गोली मार दी थीआदि का भी समावेश है, मगर इसे फिल्मकार सही ढंग से चित्रित नही कर पाए. जो कुछ दिखाया, वह प्रभाव नही डालता.
लेखक व क्रिएटिब निर्देशक सुभाष कपूर तथा निर्देशक करण शर्मा इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि बिना अश्लील दृश्यों के भी वह राजनीति के अंदर व्याप्त ‘सेक्स’व नारी शोषण का चित्रण करने में सफल रहे हैं.
निर्देशनः
बतौर निर्देशक करण शर्मा भी इस राजनीतिक घटनाक्रम वाली ‘महारानी’के साथ पूरा न्याय नही कर पाए. वेब सीरीज में अचानक कहीं भी सामूहिक नरसंहार होने लगता है, तो अचानक बाबाजी का प्रवचन शुरू हो जाता है. अचानक भोजपुरिया आइटम सॉंग आ जाता है. दृश्यों के बीच सही तालमेल ही नही है. इतना ही नही लेखक के साथ साथ निर्देशक को भी नही पता है कि 1998 में मोबाइल नही था. मगर चैथे एपीसोड में रॉंची के डीएम माणिक गुप्ता(राजीव रंजन) से जब परवेज आलम कहते है कि छोटे लाल(मुरारी कुमार )को फोन कीजिए, तो डीएम साहब अपनी जेब से मोबाइल निकालकर छोटे लाल(मुरारी कुमार) को फोन करते हैं.
इतना ही नही कुछ दृश्यों में संवाद और किरदारो के चलते ओंठ मेल नही खाते हैं. यह तकनीकी गड़बड़ी है.
कैमरामैन अनूप सिंह बधाई के पात्र हैं. उन्होने कई दृश्यों को अपने कैमरे से इस तरह से कैद किया है कि सब कुछ जीवंत हो जाता है.
अभिनयः
सोहम शाह ने एक चतुर व कुटिल राजनीतिज्ञ भीमा भारती को जिस तरह से अपने अभिनय से उकेरा है, उसके लिए वह प्रशंसा बटोर ले जाते हैं. अपनी पत्नी रानी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उसकी हरकतो से भीमा को अपनी ही चाल पर संदेह होता है, इस बात को सोहम ने बड़ी सहजता से निभाया है. एक दृश्य में भीमा अपनी पत्नी व मुख्यमंत्री रानी से धीरे से कहते हैं-‘‘मुझे नहीं पता कि मुझे किसने अधिक चोट पहुंचाई है।‘‘ ‘‘हत्यारे ने या आप . . ?‘‘ उस वक्त उनकी भाव भंगिमाएं कमाल की हैं. रानी भारती के किरदार में हुमा कुरेशी ने अपनी तरफ से बेहतरीन अभिनय किया है. गॉंव में रह रही घरेलू रानी के किरदार में दर्शक पहचान ही नही पाता कि यह हुमा कुरेशी हैं. मगर कई जगह उन्हे पटकथा से आपेक्षित मदद नही मिली, तो कई जगह निर्देशक की अपनी गलतियों की वजह से वह मात खा गयी हैं. एक ही संवाद में हुमा कुरेशी ‘स्कूल’और‘इस्कूल’कहती है. यह कलाकार की नहीं, निर्देशक की कमजोरी का प्रतीक है. मिश्राजी के किरदार को प्रमोद पाठक ने अपने उत्कृष्ट अभिनय से जीवंतता प्रदान करने मे सफल रहे हैं. नवीन कुमार का किरदार काफी हद तक बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार से प्रेरित नजर आता है. नवीन कुमार के किरदार में अभिनेता अमित सियाल का अभिनय बहुत सहज है. वैसे उन्हे अपनी प्रतिभा को निखारने के कई अवसर मिले हैं. सदन में विश्वासमत के दौरान विपक्ष के नेता के तौर पर उन्ळे काफी अच्छे संवाद भी मिले, पर उन संवादों के साथ वह ठीक से खेल नही पाए. वित्त सचिव परवेज आलम के किरदार में अभिनेता इनामुल हक अपने अभिनय से छाप छोड़ जाते हैं. विनीत कुमार, कानन अरूणाचलम, कनि कुश्रुति, , ज्योति दुबे, अतुल तिवारी, सुशील पांड ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है.
स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में आए दिन नए ट्विस्ट आ रहे हैं. जहां अनुपमा का तलाक हो गया है तो वहीं अब काव्या, वनराज की पत्नी बनने का सपना देख रही है. इसी बीच किंजल की मां राखी की भी शो में वापस एंट्री हो गई है, जिसके बाद शो की कहानी में ट्विस्ट का तड़का लगने वाला है. हालांकि इस दौरान काव्या, अनुपमा का मजाक उड़ाते हुए नजर आने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.
अब तक आपने देखा कि वनराज और अनुपमा के तलाक के बाद अनिरुद्ध और काव्या का भी तलाक हो गया है. हालांकि अनिरुद्ध ने तलाक के लिए हामी भरने के लिए एक शर्त रखी थी, जिसका खुलासा अपकमिंग एपिसोड में होने वाला है, जिसके कारण वनराज और काव्या के रिश्ते पर भी असर पड़ता हुआ नजर आएगा.
दूसरी तरफ तलाक होते ही काव्या ने वनराज संग शादी की तैयारियां शुरु कर दी है. वहीं अपकमिंग एपिसोड में काव्या, अनुपमा का मजाक उड़ाते हुए नजर आएगी. दरअसल, काव्या अपने हाथ पर अनुपमा से वनराज का नाम लिखने के लिए कहेगी, काव्या कहेगी कि वह सिर्फ नाम का पहला अक्षर लिख दे. जिसका जवाब देते हुए अनुपमा कहेगी कि क्या तम वह वनराज से इतना ही प्यार करती हो. चाहो तो मैं उनका पूरा नाम मिसेज काव्या वनराज शाह अहमदाबाद वाले हाथ पर लिख देती हूं. लेकिन काव्या फिर अनुपमा के हाथ से नाम लिखवाने से मना कर देगी. वहीं अनुपमा तंज कसते हुए कहेगी आजकल जो लोग जरुरत से ज्यादा अच्छे होते हैं ना लोग उसे पायदान समझ लेते हैं, जो कि वह नही है. वहीं अनुपमा की बात सुनकर काव्या को झटका लगता है.
इसी के साथ किंजल की मां राखी की भी काव्या की लाइफ में एंट्री हो चुकी है, जो कि काव्या को उसकी समधन की जगह नही देना चाहती है. इसी लिए आने वाले एपिसोड में राखी काव्या के खिलाफ चालें चलती हुई नजर आएगी.
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में फ्री टीकाकरण को लेकर एक जून से होने वाले महाअभियान का प्लान तैयार कर लिया गया है. शहर से लेकर गांवों तक होने वाले टीकाकरण के लिए कम आबादी वाले हर जिले में कम से कम रोजाना एक हजार लोगों का टीकाकरण होगा. ऐसे ही अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में एक से दो अतिरिक्त कार्य स्थल पर कोविड वैक्सीनेशन सेंटर (सीवीसी) स्थापित किए जाएंगे. विभिन्न सरकारी कार्यों में फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीकाकरण में प्राथमिकता दी जाएगी.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विश्व के सबसे बड़े निशुल्क टीकाकरण अभियान को और तेज गति से चलाने के निर्देश दिए हैं. कोविड वैक्सीनेशन संक्रमण से बचाव का सुरक्षा कवर है. देश में सबसे ज्यादा प्रदेश में 18 से 44 आयु वर्ग के युवाओं ने टीका लगवाया है. सीएम के निर्देश पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने फ्री टीकाकरण महाअभियान को लेकर शासनादेश जारी कर दिया है. एक जून से होने वाले टीकाकरण के लिए हर जिले में 18 से 44 आयु वर्ग के लिए रोजाना चार कार्य स्थल पर सीवीसी का आयोजन किया जाएगा. इसमें जिले स्तर पर न्यायालय के लिए, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग कार्यालय में अधिकारियों और मीडिया प्रतिनिधियों के लिए और सरकारी कार्य स्थल के लिए दो सत्र स्थापित किए जाएंगे.
अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में एक से दो अतिरिक्त कार्य स्थल पर सीवीसी लगाए जाएंगे. आवश्यकतानुसार कार्य स्थल पर सीवीसी का स्थान परिवर्तित करते हुए राष्ट्रीयकृत बैंक कर्मी, परिवहन कर्मचारी, रेलवे और अन्य राजकीय कार्यालयों में भी टीकाकरण किया जाएगा. इसके अलावा एक सरकारी कार्य स्थल पर राजकीय और परिषदीय शिक्षकों को वरीयता दी जाएगी. इसके अलावा हर जिले में रोजाना दो अभिभावक स्पेशल सीवीसी स्थापित किए जाएंगे, जिसमें 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के माता-पिता का टीकाकरण किया जाएगा.
सीएमओ को पहले दी जाएगी सूची, फिर होगा टीकाकरण
सूचना विभाग या मीडिया कर्मियों का टीकाकरण होने के बाद इसे सरकारी कर्मचारियों के कार्य स्थल में परिवर्तित कर दिया जाएगा और सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों का टीकाकरण किया जाएगा.
जिले स्तर पर रोजाना लगने वाले टीके की सूची न्यायालयों में जिला जज के कार्यालय से, मीडिया कर्मियों की सूची जिला सूचना अधिकारी से, शिक्षकों की सूची डीआईओएस या बीएसए से और अन्य सरकारी कर्मियों की सूची डीएम कार्यालय से पूर्व से बनाकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी को दिया जाएगा और उसी के अनुसार टीकाकरण कराया जाएगा. इन सभी कार्य स्थल पर सीवीसी में 45 और उससे अधिक आयु वर्ग के लोगों के लिए भी स्लाट रखे जाएंगे.
12 वर्ष से कम बच्चों के अभिभावकों को देना होगा प्रमाण पत्र
हर जिले में रोजाना दो अभिभावक स्पेशल सीवीसी लगाए जाएंगे, जिसमें 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के माता-पिता का टीकाकरण होगा. इसके लिए उन्हें पंजीकरण और टीकाकरण के समय अपने बच्चे की उम्र 12 वर्ष से कम होने का प्रमाण (आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र या कोई अन्य) पत्र देना होगा.
अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में एक अतिरिक्त अभिभावक स्पेशल सीवीसी लगाया जाएगा.
नगरों और गांवों पर भी फोकस
हर जिले में रोजाना तीन नगरीय क्षेत्रों में सीवीसी स्थापित किए जाएंगे. अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में आवश्यकतानुसार अतिरिक्त नगरीय स्पेशल सीवीसी लगाया जाएगा. नगरीय क्षेत्र के पास टीकाकरण के लिए हर जिले में रोजाना एक सीवीसी लगाया जाएगा. ऐसे ही हर जिले में रोजाना ग्रामीण क्षेत्रों के लिए दो सीवीसी स्थापित किए जाएंगे. अधिक आबादी वाले बड़े जिलों में आवश्यकता के अनुसार अतिरिक्त सीवीसी स्थापित किए जाएंगे.
कोविड के संक्रमण से ठीक हुए लोगों की सेहत को लेकर भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ फिक्रमंद हैं. करीब तीन हफ्ते पहले ही उन्होंने हर जिला हॉस्पिटल में पोस्ट कोविड केयर सेंटर बनाने के निर्देश दिए थे. इसी क्रम में अपने बस्ती दौरे के दौरान उन्होंने सभी जिलों में सौ बेड का पोस्ट कोविड वॉर्ड शुरू करने का निर्देश दिया.
बस्ती मंडल की समीक्षा बैठक के दौरान सीएम ने कहा कि प्रदेश के सभी जिलो में 01 जून से 18 से 44 वर्ष आयु के लोगों को कोविड-19 का टीका लगाया जाएगा . 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के अभिभावको, न्यायिक अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों तथा मीडिया के प्रतिनिधियों को टीका लगाने के लिए अलग से काउंटर खोले जायेंगे. उन्होने जनप्रतिनिधियों से कहा कि वे एक-एक सीएचसी/पीएचसी गोद लें और वहां नियमित रूप से विजिट करें. अधिकारियों को निर्देश दिया कि टीकाकरण, सैनिटाइजेशन तथा फागिंग की सूचना जनप्रतिनिधियों को भी उपलब्ध कराएं जिससे वे इसका सत्यापन कर सके.
मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि कि प्रत्येक जिले में स्वच्छता, सैनिटाइजेशन एवं फागिंग, निगरानी समिति द्वारा स्क्रीनिंग एंव दवा किट वितरण, कोविड कमांड एवं कंट्रोल सेंटर द्वारा फील्ड में किए जा रहे कार्य का सत्यापन तथा कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए अस्पतालों की तैयारी को प्राथमिकता दें.
मुख्यमंत्री ने कहा कि बरसात को देखते हुए इंसेफेलाइटिस डेंगू, चिकुनगुनियां आदि बीमारियों से सुरक्षा के लिए भी समुचित प्रबन्ध किए जाएं . इसके लिए हर गांव एवं वार्ड में दिन में सैनिटाइजेशन तथा रात में फागिंग किया जाय.
मच्छरों के लार्वा को खत्म करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाए. उन्होंने ग्रामीणों को खुले में शौच न करने तथा शौचालय का उपयोग करने को लेकर जागरूकता बढाने पर जोर दिया.
उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर को रोकने में सभी ने अच्छा कार्य किया है, लेकिन तब भी हमें सर्तक रहना होगा. यह एक महामारी है इसलिए सामान्य बीमारी से इसकी तुलना करना उचित नहीं है.
प्रदेश के सभी जिलों को आक्सीजन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर जिले में प्लांट स्वीकृत किया गया है, उस पर काम भी चल रहा है. उन्होने निर्देश दिया कि प्रत्येक आक्सीजन प्लांट के लिए एक नोडल अधिकारी नामित करें, जो कार्यदायी संस्था से समन्वय स्थापित करके इसको शीघ्र स्थापित कराए . सरकार ब्लैक फंगस से निपटने के लिए विशेष प्रयास कर रही है.
उन्होंने कहा कि सीएचसी/पीएचसी पर अभी ओपीडी शुरू नही की जाएगी, लेकिन जिला अस्पताल में नानकोविड अस्पताल संचालित करके गंभीर रोगों के मरीजो का इलाज किया जायेगा .
अन्य लोग टेली कन्सल्टेन्सी के माध्यम से डाक्टरों से परामर्श कर सकते हैं . साथ ही महिला एवं बच्चों के लिए अलग से अस्पताल संचालित किए जाने पर उन्होंने जोर दिया . सभी सीएचसी/पीएचसी में साफ-सफाई, रंगाई-पोताई अगले एक सप्ताह में कराने और सभी उपकरण एंव मशीन सही कराने के निर्देश दिए . उन्होंने जिले के अस्पतालों में जिलाधिकारी तथा मेडिकल कालेज में वहां के प्रधानाचार्य, पैरामेडिकल स्टाफ की नियुक्ति के संबंध में कार्रवाई शुरू करने को कहा .
पैरामेडिकल स्टाफ, नर्स को मेडिकल कालेज से सम्पर्क करके टेनिंग दिलाए जाने की बात भी कही. उन्होंने वेंटीलेटर संचालित करने के लिए आईटीआई के छात्रों को ट्रेंड करने के निर्देश दिए.
जिले में कोई भूखा न रहे लिहाजा कम्युनिटी किचन का संचालन हो जिससे अस्पतालों में भर्ती मरीजों के परिजन, मजदूर, स्ट्रीट वेंडर, पल्लेदार एवं फुटपाथ पर रह कर गुजारा करने वालों को दो वक्त का शुद्ध ताजा भोजन मिल सके.
उन्होने कोरोना कर्फ्यू के नियमों का कड़ाई से पालन कराने को कहा. साथ ही कंटेनमेंट जोन में कड़ाई बरते जाने को लेकर निर्देश दिए . उन्होंने कहा कि उद्योग, कृषि, सब्जी मण्डी खोलने की अनुमति दी गयी है, लेकिन वहां बेवजह की भीड़ एकत्र न होने दें. शादी-विवाह में 25 से अधिक लोगों को जाने की अनुमति न दें और इसका कड़ाई से पालन भी कराएं. जून माह में फ्री खाद्यान्न वितरित किया जाएगा. ऐसी व्यवस्था बनाये की पात्र व्यक्तियों को खाद्यान्न मिल सके .
टीवी एक्ट्रेस संजीदा शेख (Sanjeeda Shaikh) अपनी म्यूजिक वीडियोज को लेकर सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं. वहीं पर्सनल लाइफ की बात करें संजीदा इन दिनों अपनी बेटी आयरा संग क्वौलिटी टाइम बिताती नजर आ रही हैं, जिसकी फोटोज और वीडियोज वह सोशलमीडिया पर फैंस संग शेयर करती रहती हैं. इसी बीच संजीदा की बेटी आयरा की क्यूट वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं क्यूट वायरल वीडियो…
संजीदा शेख ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया अकाउंट से बेटी के साथ क्यूट सा वीडियो शेयर किया है, जिसमें संजीदा बेटी का होमवर्क करने में हेल्प करती नजर आ रही हैं. दरअसल, वीडियो में संजीदा अपनी बेटी आयरा को इंग्लिश के अल्फाबेट्स पढ़ा रही हैं, जिसका जवाब देते हुए आयरा बेहद क्यूट लग रही हैं. वहीं फैंस भी इस वीडियो पर जमकर रिएक्शन दे रहे हैं.
सरोगेसी के जरिए मां बनने वाली एक्ट्रेस संजीदा शेख अपनी प्यारी सी बेटी आयरा पर जमकर प्यार लुटाती हैं. वहीं आयरा भी अपनी मम्मा को किस करते हुए नजर आती हैं. दूसरी तरफ संजीदा से अलग हो चुके आमिर अली भी अपनी बेटी आयरा के साथ सोशलमीडिया पर जमकर फोटोज और वीडियोज शेयर करते रहते हैं.
बता दें टीवी के सबसे हॉट कपल की लिस्ट में शामिल होने वाले एक्टर आमिर अली और संजीदा शेख का तलाक हो गया है. वहीं शादी की बात करें दोनों की मुलाकात सीरियल के सेट पर हुई और साल 2012 में दोनों ने शादी करने का फैसला लिया. हालांकि बीते साल ही दोनों के तलाक की खबरें सोशलमीडिया पर वायरल हो रही थीं.
निकिता की बात को राज ने आगे बढ़ाया, ‘‘भोपाल में हमारी बैंक की शाखा में महीने में एक बार काम के बाद सब का एकसाथ डिनर पर जाने का अच्छा चलन था. ऐसे ही एक डिनर के बाद मैं ने निकिता से कहा था, ‘निकिता तुम दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती? अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? ऐसे अकेले कहां तक जिंदगी ढोओगी? शादी कर लोगी तो तुम्हारे बेटे को अगर पिता का नहीं, तो किसी पिता जैसे का प्यार तो मिलेगा.’
‘‘इस पर निकिता ने अपनी शून्य में ताकती निगाहों के साथ मुझ से पूछा था, ‘ये सब कहने में जितना आसान होता है, करने में उतना ही मुश्किल. कौन बिताना चाहेगा मुझ विधवा के साथ जिंदगी? कौन अपनाएगा मुझे मेरे बेटे के साथ? क्या तुम ऐसा करोगे राज, अपनाओगे किसी विधवा को एक बच्चे के साथ?’
‘‘निकिता के शब्दों ने मेरे होश उड़ा दिए थे और उस वक्त मैं सिर्फ ‘सोचूंगा, और तुम्हारे सवाल का जवाब ले कर ही तुम्हारे पास आऊंगा,’ कह कर वहां से चला आया था.
‘‘मैं चला तो आया था मगर निकिता के शब्द मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे थे. मेरे मन में एक अजब सी उथलपुथल मची हुई थी. मेरे मन की उलझन मां से छिपी न रह सकी. उन के पूछने पर मैं ने निकिता के साथ डिनर के दौरान हुए वार्त्तालाप का पूरा ब्योरा उन्हें दे दिया.
‘‘सब सुनने के बाद मां ने कहा, ‘सीधे रास्तों पर तो बहुत लोग हमराही बन जाते है मगर सच्चा पुरुष वह है जो दुर्गम सफर में हमसफर बन कर निभाए. बेटा, एक विधवा हो कर अगर मैं ने दूसरी विधवा स्त्री के दर्द को न समझा तो धिक्कार है मुझ पर. यह मैं ही जानती हूं कि तुम्हारे पिता की मृत्यु के बाद तुम्हें कैसेकैसे कष्ट उठा कर पाला था. कहने को तो मैं संयुक्त परिवार में रहती थी पर तुम्हारे पिता के दुनिया से जाते ही मुझे जीवन की हर खुशी से बेदखल कर दिया गया था.
‘‘‘घर और घर के लोग मेरे होते हुए भी बेगाने हो चुके थे. तुम्हारी परवरिश भी तुम्हारे चाचाताऊ के बच्चों की तरह न थी. जहां उन के बच्चे अच्छे कौन्वैंट स्कूल में जाते थे वहीं तुम्हें मुफ्त के सरकारी स्कूल में भेज दिया गया. जिन कपड़ों को पहन कर उन के बच्चे उकता जाते, वे तुम्हारे लिए दे दिए जाते.
‘‘‘राज बेटा, उस माहौल में मेरा तुम्हारा जीना, जीना नहीं था, सिर्फ जीवन का निर्वाह करना था. बेटा, मुझे तुम पर गर्व होगा अगर तुम निकिता और उस के बच्चे को अपना कर, उन की जिंदगी के पतझड़ को खुशगवार बहार में बदल दो.’ मां ने छलकते हुए आंसुओं के बीच आपबीती बयां की थी.
‘‘दूसरे दिन जब मैं ने निकिता को लंचटाइम में अपनी मां के साथ हुई सारी बातचीत बताई और कहा कि मैं उस से शादी करना चाहता हूं, तब निकिता बोली, ‘मैं किसी की दया की मुहताज नहीं हूं, कमाती हूं, जैसे 4 साल काटे हैं वैसे ही बची जिंदगी भी काट लूंगी.’
‘‘‘निकिता पैसा कमाना ही अगर सबकुछ होता तो संसार में परिवार और घर की परिकल्पना ही न होती. जिंदगी में बहुत से पड़ाव आते हैं जब हमसब को एकसाथी की जरूरत होती है.’
‘‘‘और अगर मुझे अपनाने के कुछ सालों बाद तुम्हें अपने निर्णय पर पछतावा होने लगा तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. पहले ही वक्त का क्रूर प्रहार झेल चुकी हूं. इसलिए किसी से भी मन जोड़ने से घबराती हूं, न मैं किसी से बंधन जोडूं, न वक्त के सितम ये बंधन तोड़ें.’
‘‘‘निकिता, डूबने के डर से किनारे पर खड़े रह कर उम्र बिता देने में कहां की बुद्धिमानी है? ऐसे ही खौफ के अंधेरों को दिल में बसा कर जिओगी तो उम्मीदों का उजाला तो तुम से खुदबखुद रूठा रहेगा.’
‘‘ऐसी ही कुछ और मुलाकातों, कुछ और तकरारों व वादविवादों के बाद अंत में निकिता और मैं शादी के बंधन में बंध गए.’’
राज की माताजी ने अब दिग्गज को अपना नातीपोता ही मान लिया था. वे नहीं चाहती थीं कि निकिता और राज के कोई दूसरी संतान पैदा हो और दिग्गज के प्यार का बंटवारा हो.
उन सब की बातें सुन कर मेरी आंखें छलछला गईं. मैं ने ऐसे महान लोगों के बारे में कहानियों में ही पढ़ा था, आज आमनेसामने बैठ कर देख रही थी.
‘‘क्या बेवकूफ आदमी है,’’ राज के घर से दस कदम दूर आते ही सचिन का पहला वाक्य था.
‘‘कौन?’’
‘‘राज, और कौन.’’
‘‘क्यों, ऐसा क्या कर दिया उस ने. इतने अच्छे से हम दोनों का स्वागत किया, अच्छे से अच्छा बना कर खिलाया, और कैसे होते हैं भले लोग? तुम्हें इस सब में बेवकूफी कहां नजर आ रही है?’’
‘‘जो एक बालबच्चेदार सैकंडहैंड औरत के साथ बंध कर बैठा है, वह बेवकूफ नहीं तो और क्या है? देखने में अच्छाखासा है, बैंक में मैनेजर है, अच्छी से अच्छी कुंआरी लड़की से उस की शादी हो सकती थी.’’
‘‘मगर सचिन…’’
‘‘जैसा राज खुद, वैसी ही उस की वह मदर इंडिया. कह रही थीं कि उन्हें खुद का कोई नातीपोता भी नहीं चाहिए, और दिग्गज ही उन के लिए सबकुछ है. भारत सरकार को उन्हें तो मदर इंडिया के खिताब से नवाजना चाहिए.’’
सचिन राज और उस की मां की बुरी तरह से खिंचाई कर रहे थे. मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा.
वक्त के साथ मेरी और निकिता की दोस्ती पक्की होती जा रही थी. वैसे, मैं निकिता से ज्यादा वक्त उस की सास के साथ बिताती, क्योंकि निकिता तो अपनी नौकरी के कारण ज्यादातर घर में होती ही नहीं थी.
इधर, सचिन के विचारों में कोई परिवर्तन नहीं था. जब कभी भी मेरे घर में राज का जिक्र आता तो सचिन उस को उस के नाम से न बुला कर सैकंडहैंड बीवी वाला कह कर बुलाते. मैं ने उन्हें कई बार समझाने की कोशिश की कि किसी के लिए भी ऐसे शब्द बोलना अच्छी बात नहीं. मगर मेरा उन्हें समझाना चिकने घड़े पर पानी डालने जैसे था.
दिनचर्या अपने ढर्रे पर चल रही थी. सचिन की हाल ही में पदोन्नति हुई थी. काम में उन की व्यस्तता दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, इसलिए दीवाली पर भी हम धौलपुर न जा पाए. एक दिन सचिन ने औफिस से आते ही बताया कि उन के पापा का फोन आया था और तत्काल ही हम दोनों को धौलपुर बुलाया है. मेरी ननद पद्मजा के पति अस्पताल में भरती थे.
‘‘इस में इतना सोचना क्या? जब घर में कोई बीमार है तो हमें जाना ही चाहिए. वैसे भी हम दीवाली पर भी जा नहीं पाए,’’ बुलावे की खबर सुनते ही मैं ने धौलपुर जाने की तत्परता जताई.
पल्स औक्सीमीटर मशीन आज हर घर की जरूरत है. कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच सब से बड़ी दिक्कत औक्सीजन की कमी की आ रही है. सांस लेने में तकलीफ होती है, सांस उखड़ने लगती है और फेफड़े सूखने लगते हैं. अपनी सांसों पर सही नियंत्रण रखना आज के समय में सब से बड़ी चुनौती है. कोरोना सब से ज्यादा असर फेफड़ों पर ही करता है. डाक्टरों और चिकित्सकों के अनुसार, औक्सीजन लैवल 90 से ऊपर होना ठीक रहता है. लेकिन जब डाक्टर हर समय आप के पास मौजूद न हो तो यह कैसे पता किया जाए कि कितना औक्सीजन लैवल है, इसलिए यह काम पल्स औक्सीमीटर करता है. इस से आप हर समय अपने औक्सीजन लैवल को जांच सकते हैं. अब जब इस की जरूरत इस समय सब से अधिक है तो यह बात जान लेनी जरूरी है कि यह कैसे काम करता है और यह कितने प्रकार का होता है. औक्सीमीटर के प्रकार
– फिंगर टिप पल्स औक्सीमीटर.
– हैंडहेल्ड औक्सीमीटर.
– फेटल पल्स औक्सीमीटर.
घरों में फिंगर टिप औक्सीमीटर का प्रयोग किया जाता है. अन्य 2 का उपयोग हौस्पिटल व क्लिनिक्स में किया जाता है. जब भी आप इसे खरीदें तो निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें.
– इसे खरीदते वक्त तीनचार मशीनों में उंगली डाल कर एक्यूरेसी चैक करें. जिस में आप को रीडिंग सटीक लगे, वही खरीदें.
– यदि आप औनलाइन खरीद रहे हैं तो संबंधित मशीन के रिव्यूज पढ़ें, फिर और्डर करें. लेकिन जहां तक मुमकिन हो, ऐसी इलैक्ट्रौनिक चीजें औनलाइन खरीदने से बचें.
– एफडीए, आरओएचएस और सीई जैसी सर्टिफाइड डिवाइस खरीदना सही रहता है क्योंकि इन की सटीकता, क्वालिटी और स्तर पर भरोसा किया जा सकता है.
– डिस्प्ले चमकदार और क्लीयर होना चाहिए. कुछ का डिस्प्ले चारों दिशाओं में घुमाया जा सकता है. कुछ कंपनियां वाटर रैजिस्टैंट मशीन्स भी उपलब्ध करा रही हैं. कुछ में ब्लूटूथ फीचर्स भी उपलब्ध हैं. आप अपनी आवश्यकतानुसार खरीद सकते हैं.
– मशीन के साथ आई डोरी को उस में डाल कर प्रयोग करें, साथ ही प्रयोग करने के बाद फौरन उसे बौक्स में रखें ताकि मशीन सुरक्षित रहे.
– यदि मशीन अधिक उपयोग में लाई जा रही है तो 6 माह में बैटरी बदल दें ताकि रीडिंग सही आए. क्या है कीमत फिंगर टिप औक्सीमीटर की रैंज 700 रुपए से ले कर 5,000 रुपए तक है. चूंकि इस का काम केवल खून में औक्सीजन के स्तर को मापना है, इसलिए बहुत अधिक महंगा लेने का कोई औचित्य नहीं है. 1,500 से 2,000 रुपए तक की रैंज में यह बढि़या मिल जाता है. कैसे करें उपयोग कम से कम 10 मिनट के आराम के बाद ही औक्सीजन का लैवल मापें. सीधा बैठ कर हथेली को दिल की ऊंचाई पर रख कर इंडैक्स फिंगर के अगले हिस्से पर औक्सीमीटर लगाएं. रीडिंग सैंसर आप के नाखून पर न हो कर त्वचा पर होना चाहिए. रीडिंग आने तक शांत रहें और ज्यादा हिलेंडुलें नहीं. शुरुआती रीडिंग के बाद जो रीडिंग आए, उसे ही फाइनल सम झें.
स्मार्टफोन जीवन का सब से अहम हिस्सा बन चुका है. जीवन में स्मार्टफोन का इतना गहरा असर है कि हम कई बार खुद से भी ज्यादा अपने स्मार्टफोन की केयर करते हैं. फोन को साफ करते रहना, ज्यादा यूसेज से कहीं फोन गरम न हो जाए इस बात का ध्यान रखना, बैटरी को सही तरीके से चार्ज करना इत्यादि स्मार्टफोन की केयर करने से जुड़ा हुआ है.
अपने फोन की केयर करतेकरते हम कई बार ऐसी बातों को भी मानना शुरू कर देते हैं जो बिलकुल ही फुजूल हैं. स्मार्टफोन से जुड़ी ऐसी कई भ्रामक अफवाहें हैं जिन्हें अकसर लोग सच मान बैठते हैं. जिस में सब से ज्यादा पौपुलर स्मार्टफोन की बैटरी से जुड़ी भ्रामकता है. आज उन्हीं भ्रामकता को तोड़ने का काम करेंगे जिन्हें बहुसंख्य स्मार्टफोन यूजर्स सच मान बैठते हैं और बेवकूफ बन जाते हैं.
रातभर स्मार्टफोन चार्ज करना
आप ने भी स्मार्टफोन को ले कर कभी न कभी और किसी न किसी से यह जरूर सुना होगा कि अपने फोन को कभी भी देररात तक चार्ज नहीं करना चाहिए वरना तो फोन की बैटरी खराब हो सकती है, फोन ब्लास्ट हो सकता है, बैटरी फूल सकती है वगैरहवगैरह. यह पूरी तरह से एक मिथ्य है.
दरअसल यह अफवाह मार्केट में तब फैली थी जब हमारे स्मार्टफोन इतने स्मार्ट नहीं थे और न ही उन में लीथियम आयन की बैटरी का इस्तेमाल हुआ करता था. आजकल हमारे फोन के प्रोसैसर में जिस अत्याधुनिक एआई का इस्तेमाल किया जाता है, उस की मदद से यदि हमारा फोन एक बार पूरा चार्ज हो जाए तो वह औटोमैटिकली चार्जिंग डिसकनैक्ट कर देता है जिस से हमारे फोन की बैटरी को नुकसान नहीं पहुंचता. लेकिन फिर भी सावधानी बरतना जरूरी है, कम से कम इस बात का ध्यान रखें कि आप अपने बिस्तर के पास अपना फोन चार्ज पर लगा कर न सो जाएं. क्या पता यदि चार्जर में फौल्ट हुआ तो समस्या होने की पौसिबिलिटी तो है ही.
इंटरनैट की दुनिया में कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तरह की अफवाह फैलाते हैं कि अपने फोन को चार्ज पर तभी लगाना चाहिए जब फोन की बैटरी एकदम खत्म होने वाली हो या फिर जब फोन डैड होने वाला हो. जिस के पीछे वे लौजिक देते हैं कि ऐसा करने से फोन की बैटरी की लाइफ अच्छी रहती है. और यही अफवाह ऐसे कई लोग देते हैं जो इसे सच मान बैठते हैं. हालांकि, यह बिलकुल भी सच नहीं है.
तो अब आप के मन में यह सवाल उठ सकता है कि हमें अपने फोन को कब चार्ज पर लगाना चाहिए. इस का जवाब है कि आप अपने फोन को अपनी मरजी से कभी भी चार्ज पर लगा सकते हैं. जब भी आप को लगे कि आप के फोन की बैटरी कम है और उसे चार्ज पर लगाना चाहिए, तब आप अपने फोन को बिना किसी चिंता के चार्ज कर सकते हैं.
हाई वाट के चार्जर से फोन चार्ज ही करना चाहिए
ऐसे कई लोग हैं जिन का मानना होता है कि अपने फोन को हाई वाट के चार्जर से चार्ज नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से स्मार्टफोन की बैटरी डैमेज हो सकती है. जिसे कई लोग मान भी जाते हैं.
सचाई ऐसी नहीं है. आप बिलकुल अपने फोन को हाई वाट के चार्जर से चार्ज कर सकते हैं. आजकल के स्मार्टफोन इतने स्मार्ट होते हैं कि स्मार्टफोन यूजर को किसी भी तरह की टैंशन लेने की जरूरत नहीं होती. उदाहरण के लिए, आप का फोन 18 वाट के चार्जर से चार्ज होता है, यदि आप उसे रिप्लेस कर 35 वाट का चार्जर इस्तेमाल करते हैं तो आप का फोन उतना ही पावर सप्लाई चार्जर से खींचेगा जितना उसे जरूरत है, उस से ज्यादा नहीं. बशर्ते, आप कंपनी का ओरिजिनल चार्जर इस्तेमाल करते हैं तो ऐसे में आप को घबराने की जरूरत नहीं है.
युवाओं में बहुत प्रिय व्हाट्सऐप पर कोरोना के इलाज के आयुर्वेदिक उपचार थोक में मुफ्त मिल रहे हैं. जिन के पास 10-20 ग्रुप हैं वे अगर कोरोना और आयुर्वेद पर व्हाट्सऐपी नुस्खे लिखने शुरू करें तो 500 पेज का ग्रंथ तैयार कर सकते हैं. यह बात दूसरी है कि कोई उस ग्रंथ के 2 कौड़ी भी न दे क्योंकि सब जानते हैं कि आयुर्वेद छलावा है. हां, लोग फिर भी उस का गुणगान करते रहते हैं.
यह गुणगान असल में पंड़ों, पुजारियों, महंतों की देन है जो हरेक से बारबार कहना चाहते हैं कि आधुनिक तकनीक वाली हर चीज खराब है. यह बात दूसरी है कि यही बात उस मोबाइल पर हो रही है जिस में दुनियाभर की तकनीक का विज्ञान भरा है. ये महंतसंत हवाई बातें करते हैं, लेकिन रेडियो तक नहीं बना सकते, मोबाइल की बात दूर. कोरोना का इलाज आयुर्वेद से होने की बात ऐसी ही है जैसी कि हाथ के मैल से सोना निकालना.
इस बार कोरोना के फैलने के 2 केंद्र रहे- चुनाव व कुंभ. कुंभ जहां आयुर्वेद समर्थक अपने साथ एलोपैथिक दवाइयां थैलों में भर कर भी ले जाते हैं और प्रसाद के साथ फांकते हैं. कोराना अब बुरी तरह फैल रहा है और 10 अखाड़ों के महंत तो मर ही गए. सब की मौत अस्पतालों में हुई क्योंकि जब सांस फूलने लगी तो रामदेव की नाक के 2 सिलैंडर और विलोमासन काम नहीं आया, अस्पताल का आईसीयू याद आए, इन नशेडि़यों, भंगेडि़यों को बचाना आसान नहीं होता क्योंकि ये न जाने क्याक्या खाते रहते हैं. असली दवाएं इन पर कारगर ही नहीं होतीं. फिर इन के भक्त अस्पतालों के स्टाफ पर हावी हो जाते हैं. वे इलाज के साथ महंतजी के सामने पूजापाठ में भी लग जाते हैं.
अफसोस यह है कि लाखों युवाओं को ये संतमहंत ऐयाशी और नशे की ट्रेनिंग देदे कर फांस लेते हैं. इन के आश्रमों में हर तरह के काम होते हैं और युवाओं का मन ही कुछ एनालाइज करने वाला हो जाता है. युवा भक्तों की बड़ी फौज इन की पूजा करने को तैयार दिखती है जिन में 50 फीसदी से ज्यादा तो लड़कियां होती हैं जो घरों में भक्ति का पाठ पढ़पढ़ कर सही पढ़ाई को भूल चुकी होती हैं.
स्थिति यह है कि एक बार किसी स्वामी, आश्रम, मठ में घुसे नहीं कि भक्तिजाल में फंसे नहीं. कुछ अपनी मरजी से तो कुछ जबरन. ‘आश्रम’ टीवी धारावाहिक की तर्ज पर महिलाएं आयुर्वेद, योग, पूजा, ध्यान, मैडिटेशन के स्टंट में फंस जाती हैं. जब मुफ्त का खाना मिल रहा हो, सैक्ससुख मिल रहा हो, मातापिता से आजादी हो, पढ़नेलिखने का झं झट न हो तो कौन इस तरह के सुरक्षित भविष्य को नकारेगा. वे यह भूल जाती हैं कि कभी तो कीमत देनी पड़ेगी, व्यक्तिगत रूप से भी, सामूहिक रूप से भी. आज उत्तराखंड कोरोनाग्रस्त राज्यों में आगे होने लगा है जबकि वहां तो गंगा मैया बहती है.
युवाओं को जब प्रयोगशालाओं में होना चाहिए, कारखानों में होना चाहिए तब वे डुबकी लगा रहे हैं. ऐसे में उन्हें देख बेहद दुख होता है. लेकिन, जब मुंह पर नहीं बल्कि दिमाग पर मास्क लगा हो, तो कोई क्या कर सकता है.