Mother’s Day Special: Curd वेज राइस

चावल एक ऐसा अनाज है जो भारतीय भोजन में बहुतायत से खाया जाता है. मालवा, और दक्षिण भारत जैसे प्रान्तों में तो चावल ही प्रमुख भोजन के रूप में खाया जाता है. चावल से खीर, इडली, डोसा, पुलाव और खिचड़ी जैसे अनेकों व्यंजन बनाये जाते हैं. आमतौर पर यह रंग में सफेद होता है परन्तु आजकल ब्राउन राइस का चलन भी जोरों पर है जो केमिकल रहित और रंग में भूरा होता है. चावल में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी, मैगनीज, फॉस्फोरस, आयरन और फैटी एसिड पाए जाते हैं. यद्यपि भूरे चावल की अपेक्षा सफेद चावल की पौष्टिकता कुछ कम होती है परन्तु अधिकांशतया भारतीय भोजन में सफेद चावल का ही प्रयोग किया जाता है.

चावल जल्दी पचने वाला भोजन है इसलिए गर्मियों में इसका सेवन लाभदायक होता है. आज हम आपको चावल की एक रेसिपी बता रहे हैं जो गर्मियों में खाने के लिए बहुत उत्तम है. इसमें सब्जियां और दही के प्रयोग करने से इसकी पौष्टिकता भी दोगुनी हो जाती है. इसे आप फ्रिज में रखकर ठंडा भी खा सकतीं हैं साथ ही यह जल्दी खराब भी नहीं होती अतः आप सफर पर जाते समय भी एयरटाइट जार में भरकर ले जा सकतीं हैं. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कर्ड वेज राइस

सामग्री

चावल 1 कटोरी

दही डेढ़ कटोरी

पानी 1/2 कटोरी

नमक 1/2 टीस्पून

घी 1 टीस्पून

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: घर पर ऐसे बनाएं आम की खीर

तेजपात पत्ता 2

बड़ी इलायची 2

सामग्री फ्राई करने के लिए

घी 2 टेबलस्पून

जीरा 1/4 टीस्पून

लम्बा कटा प्याज 1

लम्बी कटी शिमला मिर्च 1

लम्बी कटी बीन्स 1/4 कप

लम्बी कटी गाजर 1/4 कप

मूंगफली दाना 1 टेबलस्पून

खड़ी लाल मिर्च 2

राई 1/4 टीस्पून

मीठा नीम 1 टीस्पून

बीच से कटी हरी मिर्च 2

नमक 1/4 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया 1/4 टीस्पून

विधि

चावलों को धोकर आधे घण्टे के लिए रख दें. दही और पानी को एकसाथ फेंट लें. फेंटे दही में चावल, नमक, तेजपात पत्ता, इलायची और घी डालकर तेज आंच पर प्रेशर कुकर में एक सीटी लेकर पका लें. गैस से उतारकर प्रेशर निकाल दें. अब एक पैन में घी गरम करके मीठा नीम, साबुत लाल व कटी हरी मिर्च, जीरा व राई तड़काकर प्याज व सभी सब्जियां सॉते करें. उबले चावल व भुनी मूंगफली दाना डालकर चलाएं. हरा धनिया डालकर सर्व करें. ध्यान रखे कि चावलों को दही और पानी से बनी छाछ में ही पकाना है.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: विटामिन सी से भरपूर है टेस्टी नींबू की चटनी

बॉडी शेमिंग की शिकार हो चुकी हैं ‘अनुपमा’, ताने कसते थे लोग

स्टार प्लस का सीरियल अनुपमा टाआरपी चार्ट्स में बीते कई हफ्तों से धमाल मचा रहा है. वहीं आज शो के सितारे घर-घर में फेमस हो गए हैं. हालांकि शो में लीड रोल में नजर आ रही अनुपमा यानी रुपाली गांगुली बौडी शेमिंग की शिकार भी हो चुकी हैं, जिसका खुलासा हाल ही में रुपाली गांगुली ने किया है. आइए आपको बताते हैं क्या कहती हैं अनुपमा….

प्रैग्नेंसी के बाद बढ़ा वजन

रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) यानी हम सबकी अनुपमा ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि उन्हें भी बॉडी शेमिंग का दर्द झेलना पड़ा है. दरअसल, रुपाली ने बताया कि बेटे रुद्रांश के जन्म के समय उनका वजह 58 किलो से 86 किलो हो गया था, जिसके कारण वह मोटी दिखने लगी. वहीं जब वह टहलने के लिए जाती थी लोग उन्हें आंटी कहकर बुलाने लगते तो कुछ उनकी बॉडी पर तंज कसते रहते थे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rups (@rupaliganguly)

ये भी पढ़ें- शादी के 6 महीने बाद ही Neha Kakkar और पति रोहनप्रीत के बीच हुई हाथापाई! VIDEO VIRAL

बेटे के लिए हुईं एक्टिंग की दुनिया से दूर

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rups (@rupaliganguly)

रुपाली ने बताया कि लोग उस समय मुझे मोनिशा के नाम से जानते थे. मुझे देखकर कहते थे कि अरे तुम तो मोनिशा हो कितनी मोटी हो गई हो. एक मां को जज करने का अधिकार किसी का नहीं होता. किसी को यह पता नहीं होता कि अपनी प्रेग्नेंसी के समय एक महिला किन-किन परिस्थितियों से गुजरती है. दरअसल, रुपाली थायरॉयड की समस्‍या झेल रही थीं, जिसमें प्रजनन क्षमता कम हो जाती है. वहीं कई हेल्थ इशु झेल रही रुपाली कई सालों बाद मां बनी, जिसके कारण वह एक्टिंग की दुनिया से दूर रहीं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rups (@rupaliganguly)

बता दें, सीरियल साराभाई वर्सेज साराभाई की मोनिशा से फैंस के दिल में जगह बना चुकीं रुपाली गांगुली कई साल बाद टीवी पर नजर आई हैं. वहीं शो में उनकी एक्टिंग की तारीफ इन दिनों हर कोई करता नजर आ रहा है.

ये भी पढ़ें- सुसाइड करेगी काव्या तो तलाक के बाद वनराज को अपना मंगलसूत्र देगी अनुपमा, पढ़ें खबर

शादी के 6 महीने बाद ही Neha Kakkar और पति रोहनप्रीत के बीच हुई हाथापाई! VIDEO VIRAL

बौलीवुड की पौपुलर सिंगर नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) आए दिन सुर्खियों में रहती हैं. जहां हर कोई उनके गानों का फैन है तो वहीं उनकी लव लाइफ की हर कोई तारीफें करता रहता है. लेकिन इस बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें नेहा पति रोहनप्रीत संग हाथापाई करती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

हाथापाई का वीडियो वायरल

हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें पहले रोहनप्रीत अपनी पत्नी नेहा को पिटते नज़र आ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बदले में नेहा भी उनके साथ हाथापाई करती हुईं नज़र आ रही हैं. दोनों का ये वीडियो देखकर फैंस चौंक गए हैं. क्योंकि अभी नेहा और रोहनप्रीत सिंह की शादी को 6 महीने हुए हैं और दोनों के बीच हाथापाई शुरु हो गई है.

ये भी पढ़ें- Shocking! श्वेता तिवारी ने शेयर किया एक्स हस्बैंड का CCTV फुटेज, ऐसे किया बेटे संग बुरा बर्ताव

ये है वीडियो का सच

दरअसल दोनों सोशलमीडिया पर वायरल वीडियो एक मस्ती की वीडियो है, जिसे खुद नेहा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया है. वहीं नेहा और रोहनप्रीत के फैन्स इस वीडियो में उनकी मस्ती और उनकी बॉन्डिंग को खूब पसंद कर रहे हैं. फैंस इस वीडियो पर कमेंट कर लिख रहे हैं. कि , “शादी के बाद के हालात”.

बता दें कि नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) और रोहनप्रीत सिंह (Rohanpreet Singh) की मुलाकात एक गाने की शूटिंग के दौरान हुई थी, जिसके बाद दोनों ने अपने प्यार का इजहार करने के बाद बीते साल शादी कर ली थी, जिसके बाद दोनों जल्द एक बार फिर साथ एक वीडियो में नजर आने वाले हैं.

ये भी पढ़ें- Salman Khan की फैमिली में हुई कोरोना की एंट्री, बहने हुईं कोरोना पॉजिटिव

महाराष्ट्र: कोरोना के प्रसार में महाराष्ट्र सरकार की लापरवाही

कोरोना महामारी के चलते देश संकट के दौर से गुजर रहा है. बच्चों के सर से माता पिता का साया उठ रहा है. माता पिता अपने बच्चे को खो रहे हैं. महिलाएं विधवा हो रही हंै. इससे भारत के दक्षिण मध्य में स्थित महाराष्ट्र राज्य भी अछूता नही है. महाराष्ट्र की गिनती भारत के सबसे धनी एवं समृद्ध राज्यों में की जाती है, इसके बावजूद कोरोना के चलते अब तक 75000(पचहत्तर हजार)लोग अपनी जिंदगी गंवा चुके हैं. परिणामतः कई परिवार संतान विहीन, तो कई परिवारों में विधवाओं की संख्या बढ़ गयी है. कई बच्चों के सर से माता पिता का साया उठ चुका है. लेकिन केंद्र सरकार के साथ साथ महाराष्ट्र की राज्य सरकार ने कोरोना के चलते जिनका निधन हुआ, उनके परिवारों के लिए कुछ नहीं किया.

हमें यह नही भूलना चाहिए कि महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा औद्योगिक राज्य है. और मुंबई देश की आर्थिक राजधानी मानी जाती है. पुणे शिक्षा और आई टी का केंद्र माना जाता है. महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे,  पालघर, नागपुर के हालात बद से बदतर हैं. यह हालात तब हैं, जब मुंबई, नागपुर, पुणे सबसे अधिक विकसित शहर हैं. महाराष्ट्र के मुंबई,  पुणे (पुणे शहर भारत का छठवाँ सबसे बड़ा शहर है. ), नागपुर, ठाणे,  पालघर सहित कई शहर व जिलों में उत्कृष्ट स्वास्थ्य सुविधाएं हैं.

लोगो की जिंदगी पटरी पर आने से पहले ही लुढ़क गयी

कोरोना महामारी के असर से राजनेता, उद्योगपति, बड़ी फिल्मी हस्तियां वगैरह काफी हद तक सुरक्षित ही रहे है. यह एक अलग बात है कि कुछ लोग जरुर इस बीमारी से काल के मुंह में समा गए. लेकिन कोरोना महामारी के चलते 25 मार्च 2020 से आम लोगो, नौकरीपेशा लोगो, छोटे छोटे व्यापारी व उद्योग धंधों पर इस तरह से मार पड़ी है कि इनकी जिंदगी आज भी पटरी पर लौट नहीं पायी है. जनवरी 2021 से सभी की जिंदगी धीरे धीरे पटरी पर लौटना शुरू ही हुई थी कि कोरोना की दूसरी लहर और इससे निपटने की बजाय इसकी तरफ महाराष्ट्र सरकार की लापरवाही ने लोगों की जिंदगी को पटरी पर आने से पहले ही उखाड़ फेंका. महंगाई चरम पर है. 15 अप्रैल से लागू लॉकबंदी से एक बार फिर पूरे राज्य में फिल्म इंडस्ट्री, ज्वेलरी बाजार, स्टील बर्तन बनाने के उद्योग, भवन निर्माण से जुड़े मजदूर से जुड़े लोगों के साथ ही सभी मजदूरों, दिहाड़ी कामगारांे, फेरीवालो व नौकरीपेशा लोगों के सामने एक बार फिर दो वक्त की रोटी का सवाल मुंह बाएं खड़ा हो चुका है. किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है कि वह अपनी जिंदगी की नाव आगे कैसे खेंएंगे?सरकार के पास भी इसका कोई जवाब नही है.

ये भी पढ़ें- #Coronavirus: 4000 नहीं, भारत में हो रही हैं रोजाना 80,000 मौतें

सरकारी मददः उंट के मुंह में जीरा

15 अप्रैल से घोषित लॉक डाउन में महाराष्ट्र सरकार ने गरीबों को दो माह तक मुफ्त मे राशन मुहैय्या कराने का ऐलान किया है. रिक्शाचालकों को दो माह तक प्रति माह डेढ़ हजार रूपए देने की बात की है. शिवथाली मुफ्त में दी जा रही है. मगर जिस जगह शिवथाली वितरित की जा रही है, वहां तक पहुंचना आम गरीब के लिए संभव नही. इसके अलावा फेरीवाले, दिहाड़ी मजदूर, फिल्म इंडस्ट्री के मजदूरों के लिए कोई कुछ नही कर रहा है.

क्या महाराष्ट्र कोरोना का प्रसारक  बना?

धार्मिक भावनाओ के चलते कोरोना की अनदेखी

पूरा देश संकट में है. मगर इस संकट के प्रसार में पांच राज्योंके विधान सभा और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों के साथ साथ महाराष्ट्र सरकार की कार्यशैली भी जिम्मेदार है. महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कॉग्रेस की मिली जुली सरकार है, जो कि सेक्लुअर यानी कि धर्म निरपेक्ष होने का दावा करती है. मगर उद्धव सरकार के निर्णयों पर ध्यान दिया जाए, तो उद्धव सरकार ने सारे निर्णय धर्म के मद्दे नजर ही लिए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने राज्य की महिलाओं को ख्ुाश करने के लिए नवरात्रि के प्रथम दिन यानी कि 17 अक्टूबर 2020 से सभी महिलाओं को मुंबई की लोकल ट्ेन में यात्रा करने की इजाजत दी. फिर मराठी चित्रपट संस्था और ब्राडकॉस्टर के दबाव में 27 जून से टीवी सीरियलों की शूटिंग की इजाजत दी. तमाम सुरक्षा उपायों के बावजूद लगभग हर दिन किसी न किसी टीवी सीरियल के सेट पर कोरोना संक्रमित आते रहे. दशहरे तक मुंबई में लगभग सभी गतिविधियां शुरू हो चुकी थी. तो वहीं कोरोना संक्रमण बदस्तूर लगातार जारी था. इसके बावजूद फरवरी 2021 माह में पूरी आजादी दे दी गयी. आम पुरूष यात्री भी लोकल ट्ेन में यात्रा करने लगा. इस बीच कोरोना के फं्रटवर्करों व स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना वैक्सीन लगने लगी. फिर एक मार्च से साठ वर्ष से अधिक और एक अप्रैल से 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन लगने लगी.

दूसरी लहर की शुरूआत महाराष्ट्र से

कोरोना का पहला केस फरवरी 2020 में सबसे पहले केरला मंे मिला था. जबकि महाराष्ट्र में कोरोना की पुष्टि 9 मार्च 2020 को हुई थी. जी हॉ!महाराष्ट्र में कोरोना वायरस का पहला पुष्ट मामला 9 मार्च 2020 को पुणे में दर्ज किया गया, जहाँ दुबई से लौट रहे एक दंपति कोरोना पॉजीटिब पाए गए. 11 मार्च 2020 को मुंबई में दो मरीज मिले और शाम तक कुल संख्या ग्यारह हो गयी थी. देखते ही देखते 15 मार्च से इसके केस सबसे अधिक महाराष्ट्र राज्य में ही आने लगे थे. 25 मार्च 2020 से पूरे देश में लॉक डाउन लगने के बावजूद मई 2020 माह तक कोरोना के मामले सर्वाधिक महाराष्ट्र में ही आते रहे. 29 जुलाई को कुल मामलों की संख्या 400, 651 हो गयी थी, जिसमें से  1, 46, 433 सक्रिय थे 14, 463 मौतें हुई थीं. जबकि लॉक डाउन के दौरान मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश, बिहार के प्रवासी मजदूरांे ने अपने अपने राज्य की तरफ पलायन कर लिया. पर सरकार ने इस पलायन को रोकने या प्रवासी मजदूरों के हित में कोई कदम नहीं उठाया. ऐसा ही दूसरी लहर आने पर भी हुआ.

कोरोना की दूसरी लहर की शुरूआत भी महाराष्ट्र से ही हुई. और दूसरी लहर को फैलाने में महाराष्ट्र सरकार की लापरवाही का ही योगदान रहा.  मार्च 2021 के दूसरे सप्ताह से अचानक कोरोना संक्रमितों की संख्या मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ने लगी. पर सरकार ने अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रखा. वास्तव में तब तक गुजरात के अहमदाबाद में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मुलाकात हो चुकी थी, जिसके चलते उद्धव ठाकरे अनावश्यक दबाव में आ गए और खुद को लोकप्रिय मुख्यमंत्री और लोकप्रिय सरकार साबित करने के लिए ढिलाई बरतते रहे, पर कोरोना की रफ्तार बढत़ी रही. महाराष्ट्र में एक दिन में कोरोना संक्रमितों की संख्या 40, 000 (चालिस हजार) से अधिक पहुॅच गयी. तब दबाव में आकर मुख्यमंत्री ने रात्रि कर्फू की शुरूआत की. और दावा करते रहे कि वह लॉक डाउन लगाने के पक्ष में नही है. ग्यारह अप्रैल 2021 को 24 घंटे के अंदर कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 61695 पहुंच गया. लेकिन महाराष्ट्र सरकार को तो हिंदुओं के नव वर्ष@ ‘गुड़ी पाड़वा’ यानी कि 13 अप्रैल 2021 का इंतजार था. (यहां यह याद रखना जरुरी है कि तब तक मुंबई में ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ सहित जिन फिल्मों व नब्बे सीरियलों की शूटिंग चल रही थी, उन सभी के सेट पर हर दिन कई कोरोना संक्रमित आ रहे थे. यहां तक कि संजय लीला भंसाली व आलिया भट्ट सहित कई हस्तियंा कोरोना संक्रमित हुए, पर उद्धव सरकार इसे अनदेखा करती रही. ) ज्ञातब्य है कि उत्तर भारत में इस दिन नवरात्रि पर्व की शुरूआत होती है और महाराष्ट्र में ‘गुड़ी पाड़वा’का जश्न बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है. गुड़ी पाड़वा संपन्न होने के बाद 15 अप्रैल 2021 से उद्धव ठाकरे ने पंढरपुर जैसे उन जिलों को छोड़कर, जिनमें उपचुनाव होने थे, पूरे राज्य में लॉक डाउन का ऐलान कर दिया. और एक बार फिर महाराष्ट्र से प्रवासी मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार व अन्य निकटवर्ती राज्यों की तरफ भागने लगे. महाराष्ट्र से पलायन कर उत्तर भारत के राज्यांे में पहुॅचे अप्रवासी मजदूरों की वजह से उत्तर भारत के राज्यों में भी तेजी से कोरोना फैला. हमें याद रखना होगा कि तब तक महाराष्ट्र में संक्रमण अपने चरम पर पहुॅच चुका था. 24 अप्रैल के दिन सर्वाधिक 69000 के आसपास कोरोना मरीज पाए गए थे. (गनीमत यह है कि वैक्सीन फं्रटलाइन वर्करो और बुजुर्गों को लग गईथी, अन्यथा परिस्थिति और भीषण होती. )क्यों कि सरकार ने तेजी से बढ़ रहे केसों का सही तरीके से संज्ञान ही नहीं लिया और उसके लिए आवश्यक योजना नहीं बनाई. टीकाकरण पर भी भ्रम फैलाया गया, जिससे उस कार्य में तेजी नहीं आ सकी. सबसे बड़ी बात तो यह रही कि कोरोना वैक्सीन का निर्माण कर ही कंपनी ‘सीरम इंस्टीट्यूट के आडर पूनावाला को धमकियाँ दी गईं और उन्हेे देश छोड़कर लंदन जाने के लिए मजबूर किया गया. अब महाराष् ट् सरकार दावा कर रही है कि उसे वैक्सीन की डोज नही मिल रही है, इसलिए पिछले एक सप्ताह से महाराष्ट्र में कैक्सीनेशन का कार्य ठप्प सा पड़ा है. अब केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है कि महाराष्ट्र के स्वास्थ्यमंत्री राजेश टोपे के इलाके मे सारी वैक्सीन कैसे दी गयी?

आईपीएल क्रिकेट को इजाजत क्यों दी गयी?

इतना ही नही कोरोना संक्रमण बढ़ता रहा, पर महाराष्ट्र सरकार ने ‘आई पीएल क्रिकेट;पर रोक नही लगाई.  सरकार ने 15 अप्रैल से जिम, पार्क, सहित सब कुछ बंद कर कई कड़े प्रतिबंध लगा दिए, मगर दस अप्रैल से 24 अप्रैल तक दस आईपीएल मैच मुंबई के वानखेड़े क्रिकेट मैदान पर खेले गए. आई पीएल क्रिकेट से जुड़े क्रिकेटरों को मैदान पर प्रैक्टिस करने की भी छूट दी गयी. ऐसे मेें लोग सवाल उठा रहे हे कि आखिर सरकार ने आईपीएल पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया?जबकि आईपीएल से भी कोरोना बढ़ा. अंततः कई खिलाड़ी व कोच के संक्रमित होने के बाद चार मई से ‘आई पीएल’पर पाबंदी लगा दी गयी, तब तक मुंबई में सभी ‘आई पीएल मैेच’खेले जा चुके थे.

वसूली में लिप्त सरकार

वास्तव में महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना की पहली लहर के पूरी तरह से खत्म होने से पहले ही पूरे राज्य में हर तरह की बंदिशे हटाकर सारे उद्योग शुरू कर दिए थे. फिर जैसा कि महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर आरोप लगा है, यह सरकार फरवरी 2021 से सौ करोड़ की वसूली में लिप्त होने के चलते कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार की रोकथाम की तरफ ध्यान नहीं दिया. इस वसूली कांड में भले ही एनसीपी का हाथ रहा है, पर इसका खामियाजा आगामी चुनाव में शिवसेना को भुगतना पड़ सकता है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की शालीनता या. . ?

कोरोना की पहली लहर की शुरूआत से कुछ माह पहले ही महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले उद्धव ठाकरे अब तक कोरोना काल में लगभग चुप ही रहते आए हैं. इस दौरान उन्होने महाराष्ट्र की जनता को भी बड़े शांत मन से ही संबोधित किया. उन्होने कभी किसी के प्रति रोष जाहिर नही किया. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की भांति उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार पर कभी कोई आरोप नहीं लगाया. उद्धव ठाकरे ने ऑक्सीजन की कमी या दवाओं की कमी या प्लाज्मा की कमी को लेकर भी केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कोई हंगामा खड़ा नहीं किया. यदा कदा उन्होने महाराष्ट्र की जनता से यह जरुर कहा कि केंद्र सरकार ने उन्हे काफी दूर से आक्सीजन लाने की इजजत दी है. पर हंगामा करने वाले या शिकायत करने वाले वीडियो जारी नहीं किए. केंद्र सरकार के खिलाफ अदालत का भी रूख नहीं किया. मुंबई हाईकोर्ट तो उद्धव ठाकरे के काम की सराहना कर रहा है. जबकि कोरोना की पहली लहर के दौरान भी पूरे देश के सभी राज्यों के मुकाबले सर्वाधिक कोरोना संक्रमित मरीज महाराष्ट्र मंे ही आए थे. उस वक्त एक दिन का आंकड़ा 35 हजार से अधिक तक पहुॅचा था. जबकि दूसरी लहर में यह आंकड़ा एक दिन में 69 हजार तक पहुॅच चुका है. यह एक अलग बात है कि आठ मई को चैबिस घ्ंाटे में 53 हजार छह सौ पांच मरीज  संक्रमित हुए. जबकि पूरे राज्य में कुल सक्रिय मरीजों का आंकड़ा आठ मई को पचास लाख पचास हजार से अधिक रहा. सिर्फ मुंबई मे ही आठ मई तक कुल एक लाख से अधिक कोरोना संक्रमित मरीज हैं. सात मई को आंकड़े कम आने पर आरोप लग रहे है कि पिछले एक सप्ताह से महाराष्ट्र में जॉंच कम की जा रही है. महाराष्ट्र में यदि कोरोना की वजह से मृतकों की संख्या देखी जाए, तो एक दिन में नौ सौ तक के आंकड़े आए हैं. आठ मई को भी आठ सौ चैसठ लोगों ने अपनी जिंदगी गंवाई है.

कुछ लोग महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की इस शालीनता को उनके शंात व सौम्य स्वभाव की वजह मानते हैं. तो वहीं राजनीति के तमाम जानकार इसे उनकी शालीनता की बजाय राजनीतिक मजबूरी बताते हैं. अरविंद केजरीवाल की तरह उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी शिवसेना के बल परमुख्यमंत्री नही बने हैं. बल्कि उनकी कुर्सी एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन पर टिकी है. उद्धव ठाकरे की नजर में भाजपा व एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार के बीच बढ़ी हुई नजदीकियां भी हैं. रेमडीसीर दवा के एक प्रकरण को छोड़ दें, तो भाजपा भी यहां ज्यादा हमलावर नही है.

मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र राज्य में दूसरे राज्यों की तरह ऑक्सीजन,  दवा, बेड की भारी कमी है. हर दिन कोरोना से मरने वालांे की संख्या दूसरे राज्यों के मुकाबले कई गुना है. फिर भी राजनीतिक मजबूरी के चलते उद्धव ठाकरे व उनके सिपहसलार माने जाने वाले शिवसेना सांसद संजय राउत भी केंद्र पर हमलावर नही है. मजेदार बात यह भी कि पूरा मीडिया महाराष्ट्र के हालात दिखाने से लगातार बचता आ रहा है.

फिल्म उद्योग के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार

आर्थिक राजधानी मुंबई व महाराष्ट्र राज्य के राजकोष को बढ़ाने में सर्वाधिक योगदान देने वाली फिल्म इंडस्ट्री के प्रति उद्धव सरकार अति उपेक्षापूर्ण रवैया अपना रही है. वह भी ऐसे वक्त में जबकि कुछ लोग फिल्म उद्धोग को महाराष्ट्र से बाहर ले जाने के लिए प्रयासरत हैं. फिल्म उद्योग के लिए महाराष्ट्र सरकार की कोई सोच नही है. कुछ जानकारों की माने तो इन दिनों जिस तरह से मुंबई की फिल्म नगरी में ‘भाजपा’ समर्थकों की बढ़ती संख्या इसकी मूल वजह है.

कोरोना के खिलाफ जागरूकता अभियान का अभाव

महाराष्ट्र राज्य कोरोना संक्रमण सबसे अधिक तेज गति से फैलता रहा, मगर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से कोरोना को लेकर या कोरोना से बचाव के सुरक्षा उपायों को लेकर जागरूकता अभियान को भी कोई तवज्जो नहीं दी. महाराष्ट्र में फिल्मी हस्तियों के अलावा खेल जगत की हस्तियोंं का जमावड़ा है, मगर सरकार ने इनमें से किसी भी बड़ी सेेलेब्रिटी को इस मुहीम का हिस्सा नही बनाया.

ये भी पढ़ें- धर्म पर होती धन की बरबादी

सोशल मीडिया पर हीरो बने हुए हैं उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र राज्य में कोरोना महामारी का संक्रमण भले ही सर्वाधिक हो, लोगों को बेड न मिल रहे हों, वैक्सीन न मिल रही हो,  आम लोगों की जिंदगी पटरी से उटरी हो, मगर सोशल मीडिया पर उद्धव ठाकरे हीरो बने हुए हैं. मुंबई हाई कोर्ट की ही तरह सोशल मीडिया पर भी लोग कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए उद्धव सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की तारीफ करते नही थक रहे हैं. सोशल मीडिया पर लोग उद्धव की इस बात के लिए तारीफ कर रहे हैं कि वह जनता को संबोधित करते समय भी बड़े शंात भाव से बात करते हैं और अपने साथ सारे आंकड़े लेकर बैठते हैं. पूणे के सीरम इंस्टीट्यूट के आडर पूनावाला के लंदन भाग जाने के लिए भी सोशल मीडिया पर लोग शिवसेना को दोष नही दे रहे हैं.

बहरहाल, कोरोना संक्रमण के बीच आम इंसानो की फिक्र करना बहुत जरुरी है. अब केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को चाहिए कि कोरोना का इलाज, वैक्सीन, कोरंटीन सेंटर आदि नियमित चालू रखे, पर साथ ही साथ बेरोजगारी व महँगाई कम करने की दिशा में भी कदम उठाएं. अन्यथा  हो सकता है कि देश मंे कोरोना से ज्यादा भुखमरी से लोग मर जाए. अथवा देश में लूटपाट की घटनाएं बढ़ जाएं. वैसे आजकल देश भर में लूटपाट, सेंधमारी की घटनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं, जिनकी एफआरआई तक दर्ज नहीं हो रही है. केवल पुलिस बुक में लिखकर चली जाती है,  जिसके कारण यह ना तो मीडिया में आ रहा है और ना ही किसी सरकार को ठीक से पता चल रहा है.

मदद के लिए फिल्म वाले आगे आए

कोरोना की पहली लहर के वक्त शुरूआत के तीन माह तक कई कलाकारों व निर्माता संगठनों ने फिल्म इंडस्ट्ी के वर्करों की मदद के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया था. मगर कोरोना की दूसरी लहर और 15 अप्रैल से महाराष्ट्र राज्य मंे लगे लॉक डाउन के चलते पूर्णरूपेण बंद फिल्म इंडस्ट्ी के वर्करो की किसी ने सुध नहीं ली. अक्षय कुमार ने फिल्म इंडस्ट्ी के वर्करों की मदद करने की बजाय दिल्ली में भजपा सांसद के एनजीओ ‘‘गौतम गंभीर फाउंडेशन’’ को एक करेाउ़ रूपए दिए. पर ऐसे मौके पर सबसे पहले गायिका पलकमुछाल सामने आयरं. उन्होने हर जरुतमंद को भरसक कोशिश कर प्लाज्मा,  बेड,  ऑक्सीजन आदि दिलाने में मदद करना शुरू किया. इसके बाद विराट कोहली व अनुश्का शर्मा ने ऑक्सीजन की मदद के लिए हाथ बढ़ाया. फिर अजय देवगन सामने आए और हिंदुजा अस्पताल के साथ मिलकर शिवाजी पार्क में कोविड अस्पताल के निर्माण में योगदान दे रहे हैं. सोनू सूद अपने तरीके से लोगो की मदद कर रहे हैं. यशराज फिल्मस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर तीस हजार वर्करों के वैक्सीनेशन का खर्च उठाने की बात कही है. अब सलमान खान ने ‘‘फैडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इंम्प्लाएज ’’के 25000 वर्करों को सहायता राशि देने की बात कही है. सलमान खान एफडब्लूआइसीई से जुड़े 25 हजार सदस्यों को 1500 रुपये की आर्थिक मदद करेंगे. सलमान खान 2020 में भी एफडब्लूआइसीई से जुड़े वर्करों की कोरोना के पहले दौर में मदद कर चुके हैं. तो वहीं उर्वशी राउतेला ने 27 आक्सीजन कॉंन्सेंटेंटर्स दान किए हैं. शिल्पा शेट्टी व जॉन अब्राहम ने भी कुछ मदद की है. जबकि मनीष पॉल और ताहिरा कश्यप लोगों के अंदर सकारात्मकता को फैलाने का काम कर रहे हैं.

यदि ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इंम्पलाइज’’के अध्यक्ष बी एन तिवारी की माने तो अब ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स और प्रोड्यूसर बॉडी गिल्ड की ओर से तथा सिद्धार्थ रॉय कपूर और मनीष गोस्वामी की ओर से 7000 सदस्यों को पांच -पांच हजार की मदद की जाएगी. इनके अलावा ‘यश चोपड़ा फाउंडेशन’ के सौजन्य से एफडब्लूआइसीई से जुड़ीं चार यूनियनों एलायड मजदूर यूनियन,  जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन, महिला आर्टिस्ट एसोसिएशन, जनरेटर वैनिटी वैन अटेंडेंट एसोसिएशन से जुड़े  वर्करों को जिन वर्करों की उम्र 60 साल से ऊपर हो चुकी है, उन वरिष्ठ वर्करों को पांच-पांच हजार रुपये और इन चार यूनियन के प्रत्येक  सदस्यों को परिवार में चार सदस्यों के हिसाब से एक महीने की जरूरी खाद्य सामग्री दी जाएगी.

Summer Special: Tasseled ड्रेस से लेकर प्रिंटेड साड़ी में छाया उतरन एक्ट्रेस का जलवा

सीरियल उतरन फेम एक्ट्रेस टीना दत्ता (Tina Dutta) सोशलमीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं, जिसमें वह अपने लुक्स की फोटोज फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. वहीं उनके फैंस को लुक्स काफी पसंद आते हैं. इसी बीच टीना दत्ता ने अपने इंडियन से लेकर वेस्टर्न, लुक्स शेयर किए हैं, जिसे समर में आप ट्राय कर सकती हैं. आइए आपको दिखाते हैं टीना दत्ता (Tina Dutta) के लेटेस्ट वायरल फोटोज…

ब्लैक ड्रैस में बिखेरे जलवे

उतरन एक्ट्रेस टीना दत्ता (Tina Dutta) ने ब्लैक tasseled ड्रेस में अपनी कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें उनका लुक हौट लग रहा है. वहीं कुछ लोग उनके इस लुक को कैटरीना कैफ की ड्रेस से कौपी किया हुआ बता रहे हैं. स्ट्रैपलेस ब्लैक ड्रेस में के साथ टीना का पोनीटेल हेयरस्टाइल फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

ये भी पढ़ें- भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट हैं दिशा पटानी की छोटी बहन, फैशन के मामले में कम नहीं

समर पार्टी के लिए लुक है परफेक्ट

ब्लैक ड्रैस के अलावा टीना दत्ता ने अपनी कुछ और फोटोज शेयर की हैं, जिनमें उनका लुक काफी ट्रैंडी नजर आ रहे हैं. वहीं टीना का ये समर पार्टी लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है. वाइट प्लेन स्कर्ट के साथ शिमरी औफ शोल्डर फिटिंग टौप टीना के लुक को पार्टी स्पैशल बना रहा है. वहीं इस लुक के साथ हील्स टीना के लुक को कम्पलीट कर रही हैं.

फैमिली फंक्शन के लिए है लुक करें ट्राय

ड्रैसेस के अलावा टीना ने अपनी साड़ी के साथ भी कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिनमें प्रिंटेड साड़ी फैंस का ध्यान खींच रही हैं. प्रिंटेड साड़ी के साथ चोकर नेकलेस टीना दत्ता के लुक को कम्पलीट कर रहा है. इसके साथ कर्ल किए हुए हेयर में टीना बेहद खूबसूरत और एलीगेंट लग रही हैं. फैंस को उनका ये लुक काफी पसंद आ रहा है, जिसके चलते सोशलमीडिया पर उनकी तारीफें हो रही हैं.

ये भी पढ़ें- Mother’s Day Special: शिल्पा शेट्टी के ये इंडियन लुक करें ट्राय

छैल-छबीली: भाग 2- क्यों चिंता में थी बहू अवनि के बदले हावभाव देख सुगंधा

पिछला भाग- छैल-छबीली: भाग-1

उन के कहने के ढंग पर महेश खूब हंसे. बोले, ‘‘जैसे मैं तुम्हें जानता ही नहीं कि तुम कितना डांटने वाली सास हो.’’

शाम को महेश उमा के आने से कुछ पहले ही आ गए ताकि वे कोई शिकायत न करे. चायनाश्ते के दौरान उमा अवनि के हालचाल लेने लगीं कि कैसी बहू है? सेवा क्या करती होगी जब औफिस में ही रहती है?

जवाब महेश ने दिया, ‘‘सेवा किसे करवानी है… कोई बीमार थोड़े ही है. अवनि बहुत अच्छी, समझदार लड़की है, जीजी.’’

अवनि के जिक्र से सुगंधा के चेहरे पर जो एक मायूसी आई, उमा की तेज नजरों ने उसे भांप लिया. बहुत अंदाजे भी लगा लिए. उमा महेश से बड़ी थीं. अब मातापिता रहे नहीं थे. दोनों भाईबहन अपना रिश्ता अच्छी तरह निभाते आए थे.

उमा धार्मिक कर्मकांडों में फंसी एक बहुत ही पारंपरिक विचारधारा की महिला थीं. अपने घर में भी उन का बहुत दबदबा था. स्वामी लोकनाथ की अनुयायी थीं. पूरे देश में स्वामीजी का कहीं भी प्रवचन होता, जा कर जरूर सुनतीं. विशाल शिविर में पूरे भक्तिभाव से 4-5 दिन रह आतीं.

ये भी पढ़ें- Short Story: अकेले हम अकेले तुम

अब मुंबई इसीलिए आई थीं कि शिविर अंधेरी में था. अजय और अवनि भी औफिस से आ गए, उन का चरणस्पर्श किया. अवनि फ्रैश हो कर साथ बैठी. डिनर करते हुए अवनि वैसे ही अपनी मस्ती से बातें कर रही थी जैसे हमेशा करती थी. उमा हैरान थीं. फिर अवनि महेश को नागरिकता बिल के विरोध में अपने विचार बताने लगी. उमा अपने घर में इस बिल के समर्थन में अपने पति के विचार सुनती आई थीं. लगा उन के पति की बात जैसे काट रही हो यह लड़की. गुस्सा तो आया पर खुद को कुछ जानकारी थी नहीं, कहतीं भी तो क्या.

अवनि कह रही थी, ‘‘पापा, मेरे फ्रैंड्स इस बिल के विरोध में बहुत शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं. मेरा भी उन्हें जौइन करने का मन है पर औफिस में जरूरी मीटिंग्स चल रही हैं.’’

उमा ने जैसे चिढ़ कर जानबूझ कर उस की बात काटी, ‘‘मैं सोच रही थी, इस बार सुगंधा भी मेरे साथ चल कर स्वामीजी के शिविर में रह ले. तुम जरा घर देख लेना, बहू.’’

‘‘बूआजी, मां तो नहीं जाएंगी शिविर में.’’

सुगंधा हैरान रह गईं कि यह छैलछबीली बताएगी कि मैं कहां जाऊंगी कहां नहीं. उमा को जैसे करंट लगा. इस कल की आई लड़की ने उन की बात काटी. अत: थोड़ी सख्ती से बोलीं, ‘‘स्वामीजी की बातें सुनता हुआ इंसान सारे दुखदर्द भूल जाता है.’’

अवनि ने ठहाका लगाया, ‘‘ये स्वामीजी बंद करवाएंगे सारे डाक्टर्स के क्लिनिक? नासा वाले न पकड़ कर ले जाएं इन्हें.’’

‘‘बहू, तुम ने कभी ज्ञानध्यान की बातें

नहीं सुनीं शायद… सजसंवर कर सुबहसुबह औफिस जाना एक बात है, आध्यात्म के रास्ते पर चलना दूसरी.’’

इस सख्त सी आवाज पर अवनि का

चेहरा मुरझा सा गया. वह प्यारी लड़की थी, खुशमिजाज, यहां भी उस से कभी कोई ऐसे नहीं बोला था. पर अवनि भी अपनी तरह की एक ही थी. धीरे से बोली, ‘‘बूआजी, ज्ञानध्यान की बातों में मेरी सच में कोई रुचि नहीं.’’

उमा के माथे पर त्योरियां आ गईं. सुगंधा को घूरा, ‘‘साथ चल रही हो?’’

सुगंधा को अपने घर की शांति बहुत प्यारी थी पर जीजी को साफ मना करने की हिम्मत नहीं होती कभी. धीरे से बोल ही दीं, ‘‘जा नहीं पाऊंगी, जीजी… बैठने में मुश्किल होती है.’’

उमा के चेहरे पर झुंझलाहट थी. सुगंधा आज बोलीं तो अजय ने भी कहा, ‘‘हां मां, आप को जाना भी नहीं चाहिए. बूआ, आप ही हो आना.’’

उमा के चेहरे पर नागवारी छाई रही.

रात को जब सब सोने चले गए तो उमा ने सुगंधा को सोफे पर बैठा कर कहा, ‘‘सुगंधा, बहू तो बड़ी तेज लग रही है तुम्हारी.’’

सुगंधा चुप रहीं.

ये भी पढ़ें- जलन: क्यों प्रिया के मां बनने की खुशी कोई बांटना नही चाहता था

‘‘इस की लगाम कस कर रखो.’’

सुगंधा हंस दीं, ‘‘जीजी, बहू है, घोड़ी थोड़े ही है जो कोई उस की लगाम कसेगा,’’ सुगंधा हंसमुख, शांतिप्रिय महिला थीं, लड़ाईझगड़ा उन के स्वभाव में नहीं था.

उमा ने फिर कहा, ‘‘सुगंधा, यह छम्मकछल्लो जैसी लड़की अजय ने पसंद तो कर ली पर मुझे नहीं लगता यह घर में किसी को शांति से रहने देगी. कैसी सजीसंवरी सी, मेकअप किए रहती है. कैसे पटरपटर किए जा रही थी. यह नहीं कि बड़ों के सामने मुंह बंद रखे.’’

सुगंधा फिर मुसकरा दीं. न चाहते हुए भी बोल ही पड़ीं, ‘‘छम्मकछल्लो? हाहा, जीजी, मैं तो इसे मन ही मन छैलछबीली कहती हूं.’’

उमा को जरा हंसी नहीं आई. बोलीं, ‘‘लटकेझटके देखे? और अजय? उसी को निहारता रहता है… यह रोज रात तक ऐसे ही फ्रैश बैठी रहती है?’’

‘‘हां, जीजी, ढंग से पहननेओढ़ने की बहुत शौकीन है.’’

‘‘कुछ नहीं, पति को रिझा कर अपने पल्लू से बांधने में होशियार है ये लड़कियां आजकल.’’

सुगंधा को बहुत सारा ज्ञान बघार कर उमा अगली सुबह शिविर में रहने चली गईं. वहीं से पुणे लौट जाएंगी.

उन के जाने के बाद अजय ने कहा, ‘‘अवनि, तुम तो बूआजी के सामने काफी बोल लीं… मां तो आज तक इतना नहीं बोलीं.’’

‘‘मां जितनी सीधी हैं न अजय, उतना सीधा बन कर आज के जमाने में काम नहीं चलता है. बोलना पड़ता है,’’ शांत और गंभीर स्वर में कही अवनि की इस बात पर सुगंधा ने अवनि को ध्यान से देखा. वह औफिस के लिए तैयार थी. उस के चेहरे पर हमेशा एक चमक रहती थी, खुश, शांत, सुंदर चेहरा.

अजय से 4 साल बड़ी नीतू अपने दोनों बच्चों यश और रिनी के साथ छुट्टियों में पुणे से मुंबई आई. उस ने आ कर कहा, ‘‘अवनि के साथ रहने से मन ही नहीं भरा था, बड़ी मुश्किल से छुट्टी होते ही आ पाई.’’

नीतू का पति सुधीर साथ नहीं आया था. वह पुणे में अपने सासससुर के साथ रहती थी. नीतू और अवनि की खूब जमी. बच्चे अपनी मामी पर फिदा थे. सुगंधा तब हैरान रह गईं जब अवनि ने किसी के बिना कहे नीतू के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी ले ली. नीतू परंपरावादी सास के कठोर अनुशासन में रह रही बहू थी. नीतू अपने सासससुर के नियमों के कारण खुल कर सांस लेना ही भूल चुकी थी. सुधीर भी मां की ही तरह था. नीतू के हाथों, गले में पता नहीं कितने धागे बंधे हुए थे.

अवनि ने कहा, ‘‘दीदी, आजकल मैचिंग ऐक्सैसरीज पहनने का जमाना है… आप ने यह सब कहां से पहन लिया?’’

ये भी पढ़ें- Short Story: नैगेटिव से पौजिटिव

नीतू झेंप गई, ‘‘मेरी सास पता नहीं कितने पंडितों, मंदिरों के चक्कर काटती रहती हैं. कुछ भी हो जाए, झट से एक धागा ला कर बांध देती हैं. मेरी तो छोड़ो, सुधीर को देखना, कितने धागों में लिपटे औफिस जाते हैं. मुझे तो यही लगता है कि उन का औफिस में मजाक न बनता हो.’’

अवनि खुल कर हंसी, ‘‘अगर उन के औफिस में कोई मेरे जैसी लड़की होगी तो मजाक जरूर बनता होगा.’’

आगे पढ़ें- सुगंधा वहीं बैठी थीं. बोलीं, ‘‘अवनि, अपने ननदोई का…

योगी सरकार के कोविड प्रबंधन का कायल हुआ डब्‍ल्‍यूएचओ

योगी सरकार के शानदार कोविड प्रबंधन पर एक बार फिर विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने मुहर लगा दी है. ग्रामीण इलाकों में राज्‍य सरकार के कोरोना के माइक्रो मैनेजमेंट का डब्‍ल्‍यूएचओ भी कायल‍ है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने अपनी वेबसाइट पर यूपी सरकार के कोविड प्रबंधन की खुल कर तारीफ की है.

डब्‍ल्‍यूएचओ ने यूपी के ग्रामीण इलाकों में कोरोना को रोकने के लिए  चलाए जा रहे महा अभियान की चर्चा करते हुए अपनी रिपोर्ट में बताया  है कि राज्‍य सरकार ने किस तरह से 75 जिलों के 97941 गांवों में घर घर संपर्क कर कोरोना की जांच करने के साथ आइसोलेशन और मेडिकल किट की सुविधा उपलब्‍ध कराई.

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने योगी सरकार के कोविड मैनेजमेंट को धरातल पर परखने के लिए यूपी के ग्रामीण इलाकों में 10 हजार घरों का दौरा किया . डब्‍ल्‍यू एचओ की टीम ने खुद गांवों में कोविड मैनेजमेंट का हाल जाना. कोरोना मरीजों से उनको मिल रही चिकित्‍सीय सुविधाओं के बारे में पूछताछ की. इतना ही नहीं विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के विशेषज्ञों ने फील्‍ड में काम कर रही 2 हजार सरकारी टीमों के काम काज की गहन समीक्षा भी की है.

डब्‍ल्‍यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में  बताया है कि किस तरह यूपी के ग्रामीण इलाकों में किस तरह योगी सरकार ने सामुदायिक केंद्रों, पंचायत भवनों और स्‍कूलों में कोरोना मरीजों की जांच और इलाज की सुविधा दे रही है. जिले के हर ब्‍लाक में कोविड जांच के लिए राज्‍य सरकार की ओर से दो मोबाइल वैन तैनात की गई है. कोरोना के खिलाफ महाअभियान के लिए स्‍वास्‍थ्‍य विभाग की 141610 टीमें दिन रात काम कर रही हैं.

कोविड मैनेजमेंट की इस पूरे अभियान पर नजर रखने के लिए योगी सरकार ने 21242 पर्यवेक्षकों की तैनाती की है.

ग्रामीण इलाकों में कोविड समेत अन्‍य संक्रामक बीमारियों की  रोकथाम के लिए योगी सरकार ने बड़े स्‍तर पर स्‍वच्‍छता अभियान चला रखा है. 60 हजार से अधिक निगरानी समितियों के 4 लाख सदस्‍य गांवों में घर घर पहुंच कर न सिर्फ कोविड के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं बल्कि साफ, सफाई और स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं से भी जोड़ रहे हैं. राज्‍य में इस तरह का अभियान चलाने वाला यूपी देश का पहला राज्‍य है.  गौरतलब है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान भी योगी सरकार के शानदार कोविड मैनेजमेंट की डब्‍ल्‍यूएचओ समेत देश और दुनिया में जम कर तारीफ हुई थी.

Summer Cracked स्किन को ठीक करने के लिए अपनाएं ये 10 आसान टिप्स

क्रैक्ड स्किन आमतौर पर तब दिखाई देती है जब किसी भी कारण किसी भी प्रकार के स्किन बैरियर से समझौता किया जाता है. यह ड्राई और इर्रिटेटेड स्किन का लक्षण है, लेकिन विशेष रूप से कई संभावित कारण जैसे गर्मियों में टेम्परेचर का बढ़ना क्रैक्ड स्किन के मुख्य कारण हैं. पैर, हाथ और होंठ अन्य भागों की तुलना में अधिक क्रैक्ड की संभावना होती है. फटी या क्रैक्ड स्किन पर कोई भी रैशेस, कट्स या निशान आमतौर पर तब होते हैं जब किसी व्यक्ति की स्किन ड्राई और इर्रिटेटेड होती है. ड्राई और फटी स्किन में इचिंग,फ्लैकी और खून की मात्रा ज्यादा होती है. क्रैक्ड स्किन के लिए किसी भी स्किनकेयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते समय आप अनप्लीजेंट सेंसेशन महसूस कर सकते हैं. इस स्थिति में स्किन भी पानी के टेम्परेचर और घरेलू क्लीनिंग प्रोडक्ट्स के प्रति अधिक सेंसिटिव महसूस करती है.

क्रैक्ड स्किन बॉडी के किसी भी हिस्से पर दिखाई दे सकती है, लेकिन वैसे हिस्से जो ज्यादा
एक्सपोज्ड होते है या सूरज की किरणों के संपर्क में ज्यादा आते है, वहाँ ज्यादा दिखाई देते है और उनपर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है. यह स्किन में होने वाली सबसे आम समस्या है जिसका सामना लोग गर्मियों के दौरान करते हैं. ज़रूरत से ज्यादा धोने से हाथ और कलाई का सूखना एक ऐसी स्थिति है जो क्रैक्ड स्किन के होने का मुख्य कारण होते है. इसकी उपस्थिति को रोकने के लिए, हर

बार हाथ धोने के बाद मॉइस्चराइज़र का उपयोग करने की आवश्यकता होती है. कुछ मामलों में, क्रैक्ड स्किन एक अंडरलाइंग मेडिकल कंडीशन के सिम्पटम्स भी हो सकते है. कुछ लोगों में, स्किन की स्थिति के कारण क्रैक्ड स्किन की स्थिति हो सकती है, जैसे कि एक्जिमा या सोरायसिस, या क्योंकि स्किन एक इर्रिटेटिंग सब्सटांस के कांटेक्ट में आई थी. स्मूद और हाइड्रेटेड स्किन में, स्किन की लेयर में मौजूद नेचुरल ऑयल मॉइस्चर को बरकरार रखते हुए स्किन को सूखने से रोकते हैं.

ये भी पढ़ें- फेस की झुर्रियां हटाने के लिए अपनाएं ये 5 होममेड टिप्स

लेकिन अगर स्किन में पर्याप्त ऑयल नहीं है तो यह मॉइस्चर खो देता है. जो स्किन को ड्राई और सिकुड़ देता है जिससे क्रैक्ड स्किन की समस्या पैदा होती है जो खासकर गर्मियों में ज़्यादा होती है.

अगर आपकी हालत बहुत गंभीर है तो ऐसे कई तरीके हैं जिनसे आप घर पर ही अपनी क्रैक्ड स्किन का इलाज कर सकते हैं. क्रैक्ड स्किन से छुटकारा कैसे पाएं ये बता रहें हैं, डॉ. अजय राणा, डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन, संस्थापक और निदेशक, आईएलएएमईडी.

क्रैक्ड स्किन से छुटकारा पाने के लिए इन टिप्स का प्रयोग कर सकते है :

1. मॉइस्चराइजिंग मरहम या क्रीम – क्योंकि ड्राई स्किन क्रैक्ड स्किन का कारण बन सकती है और ज्यादातर मामलों में यह खराब हो सकती है , इसलिए आपकी स्किन को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रखना महत्वपूर्ण है. क्रैक्ड स्किन वाले एरिया में आप हमेशा मॉइस्चराइज़र का इस्तेमाल करें.

2. ऐसे स्किनकेयर प्रोडक्ट्स का उपयोग करें जिनमें जोजोबा तेल, नारियल तेल, जैतून का तेल और शीया बटर जैसे इंग्रीडिएंट्स शामिल हो.

3. गर्म पानी से हाथ धोने से बचें. हॉट बाथ और शॉवर लेने से स्किन की स्थिति ड्राई या क्रैक्ड हो सकती है.

4. टॉपिकल हाइड्रोकार्टिसोन क्रीम का उपयोग करें जो क्रैक्ड स्किन के लिए एक अच्छा उपाय है, जो क्रैक्ड स्किन के कारण होने वाले रेड पैचेज और इचिंग को कम करने में मदद करता है. इसमें कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स होते हैं, जो किसी भी तरह की जलन और सूजन को कम करते हैं.

5. अपनी स्किन को नियमित रूप से एक्सफोलिएट करें. जेंटल एक्सफोलिएशन स्किन की लेयर से डेड और ड्राई सेल्स को हटाने में मदद करता है. यह उपाय सबसे प्रभावी है जो फ़टे पैर और एड़ी के लिए कारगर साबित होता है.

6. गर्मियों में होने वाले क्रैक्ड स्किन से बचने के लिए आप ऐंटिफंगल दवा भी ले सकते हैं, यदि आपको लगता है कि आपके पास एथलीट फुट जैसे टेरीबिनाफिन (लैमिसिल) है, और इसे पैरों पर अफेक्टेड एरिया पर उपयोग करें.

7. क्रैक्ड स्किन को थोड़ी मात्रा में सौम्य खुशबू वाले क्लींजर से धोएं.

8. कुछ कपड़े ड्राई स्किन को परेशान कर सकते हैं. इसीलिए हमेशा स्मूद और ब्रिदेबल फैब्रिक्स जैसे कॉटन और सिल्क पहने और टेक्सचरड मैटेरियल्स के कपड़े पहनने से बचें. किसी भी तरह के हाइपोएलर्जेनिक डिटर्जेंट और फैब्रिक सॉफ्टनर का उपयोग करने से भी क्रैक्ड स्किन के कारण होने वाली जलन को कम करने में मदद मिल सकती है.

ये भी पढ़ें- किसी खतरे से कम नहीं ये 5 Beauty ट्रेंड्स

9. गहरी क्रैक्ड स्किन का इलाज करने के लिए एक लिक्विड स्किन बैंडेज एक अच्छा ऑप्शन है. यह ओटीसी ट्रीटमेंट क्रैक्ड स्किन को एक साथ रखता है, जो स्किन की हीलिंग प्रोसेस को बढ़ाता है. इस उपलब्ध लिक्विड स्किन बैंडेज में एक छोटे ब्रश के साथ लिक्विड को स्किन में लगाए. लिक्विड सूख जाएगा और स्किन को सील कर देगा.

10. पेट्रोलियम जेली स्किन को सील और प्रोटेक्ट करके क्रैक्ड स्किन का इलाज करती है. यह स्किन को मॉइस्चर में लॉक करके, क्रैक्ड स्किन को ठीक करने में मदद करता है.

फाइब्रोइड से गर्भाशय बचाने के उपचार

गर्भाशय फाइब्रोइड्ससुसाध्य (गैरकैंसर) ट्यूमर है, जो गर्भाश्य की मांसपेशीय परत पर अथवा उसके भीतर विकसति होता है.इसमें तंतुमय टिश्यू और चिकने मांसपेशी सेल्स होते है, जिनका पोषण रक्तवाहिनी के सघन नेटवर्क से होता है. फाइब्रोइड्स महिलाओं में होने वाला बहुत ही सामान्य सुसाध्य ट्यूमर है. अनुमान है कि 30 से 50 वर्ष के बीच की महिलाओं में करीब 25 से 35 प्रतिशत में फाइब्रोइड्स का इलाज सापेक्ष हो गया है. सामान्यतया जिस महिला में गर्भाशय फाइब्रोइड्स की समस्या है, उनमें एक से अधिक फाइब्रोइड्स है और वे बडे़ आकार के हो सकते है. कुछ मटर से बडे़ नहीं होते है, जबकि अन्य बढ़कर खरबूजे के आकार का हो सकते है.

लक्षण

एक महिला मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव, दर्दभरा मासिकधर्म, मासिकधर्म के दौरान रक्तस्राव और पीठशूल या पीठदर्द जैसे लक्षणों से इसका अनुभव करती है. अधिकतर मरीजों में रक्तस्राव इतना अधिक होगा किउनमें यह खून की कमी का कारण बन जाता है. खून की कमी से थकान,सिरदर्द हो सकता है.जब फाइब्रोइड्स आकार में बड़ा होता है, तब यह अन्य पेल्विक अंगो पर दबाव बनाने लगता है. इसके फलस्वरूप पेट के नीचले हिस्से में भारीपन, बार-बार पेशाब लगना, पेशाब होने में कठिनाई और कब्ज महसूस हो सकता है. ये लक्षण किसी को हल्का, कम आकर्षक लग सकते है और चिड़चिड़ापन आगे चलकर कामेच्छा घटा सकती है और इसका असर लोगों की जिंदगी पर पड़ सकता है. ओबेस्ट्रिक्स एंड ग्यानकोलाजी जर्नल तथा वुमेन हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार गर्भाशय फाइब्रोइड से काफी भय एवं रूग्णता हो सकती है और वर्कप्लेस प्रदशर्न से समझौता करना पड़ सकता है.

ये भी पढें- सावधान! कोरोना का नया रूप, आखिर क्या है म्यूकोर माइकोसिस ?

उपचार

आमतौर पर गर्भाशय फाइब्रॉएड के उपचार में लक्षणों से राहत देने के लिए फाइब्रोइड्स की निगरानी अथवा अनुशासित ध्यान से लेकर इनवैसिव सर्जिकल जैसे कि मायोमेक्टोमी और हिस्टेरेक्टोमी तक शामिल है. हिस्टेरेक्टोमी एक सर्जरी है, जो महिला का गर्भाशय एवं सरविक्स निकालने के लिए किया जाता है. ऐसा करने पर सभी मामलों में मासिक धर्म बंद हो जाता है और एक महिला बच्चा पैदा करने की क्षमता खो देती है.

मायोमेक्टोमी गर्भाशय को हटाए बिना गर्भाशय फाइब्रोइड्स को दूर करता है. हालांकि यह सभी तरह के फाइब्रोइड्स  के लिए अनुकूल नहीं है तथा फाइब्रॉइड्स फिर से होने की संभावना को यह दूर नहीं करता है. फाइब्रोइड्स के प्रबंधन में अपनी खामियों के कारण यह हिस्टेरेक्टोमी की तुलना में कम जाना जाता है.

यूटरीन फाइब्रोइड इम्बोलाइजेशन

यूटरीन फाइब्रोइड इम्बोलाइजेशन (यूएफई) एक नया छोटा इनवैसिव नान-सर्जिकल प्रक्रिया है, जो अनेक फाइब्रोइड्स लक्षणों को समाप्त करता है तथा फाइब्रोइड्स को रक्त प्रवाह रोककर सुरक्षित एवं प्रभावशाली ढंग से फाइब्रोइड्स के आकार को घटाता है, ऐसा करने से यह काफी सिकुड़ जाता है. एक यूएफई प्रकिया विशेषतौर पर प्रशिक्षित वैसकुलर इंटरवेंशनल रेडियोलाॅजिस्ट डाॅक्टर द्वारा की जाती है. इस प्रकिया में पेट एवं जांघ के बीच का हिस्सा अथवा कलाई में एक 1मिलीमीटर से कम छेद किया जाता है, इसी के माध्यम से कैथेटर नामक एक छोटी प्लास्टिक ट्यूब अंदर डाली जाती है. जिसे फाइब्रोइड्स को आपूर्ति करती रक्तधमनी में घुसाया जाता है. इसके बाद यह छोटा पार्टिकल्स फाइब्रोइड्स को रक्त आपूर्ति रोक देता है. यूएफई पूरे विश्व में अग्रणी स्वास्थ्य नियामकों द्वारा स्वीकृत है कि यह फाइब्रोइड्स के लिए एक सुरक्षित एवं प्रभावशाली गैर-सर्जिकल उपचार है, इसके साथ ही करीब 90 प्रतिशत महिलाओं ने दर्दभरे लक्षणों से तेजी राहत मिलने की जानकारी दी है.

यूएफई सुरक्षित है

सर्जरी की तुलना में यूएफई सुरक्षित है और यह एक छोटा इनवैसिव है, जिसमें जटिलताएं कम तथा डरने की कोई जरूरत नहीं है. इसमें किसी जनरल/स्पाइनल एनेस्थेसिया की आवश्यकता नहीं और यह स्थानीय एनेस्थेसिया के तहत किया जाता है. मरीज का उसी दिन यूएफई का उपयोग कर उपचार किया जाता है और सामान्यतया एक सप्ताह के अंदर वह अपने कार्य एवं दैनिक गतिविधियों की ओर लौट सकता है. यह महिला की मदद अपना गर्भाशय बनाए रखने में करता है, जो भविष्य में उनको गर्भवती होने की क्षमता सुनिश्चित करता है.

ये भी पढ़ें- मां बनने के लिए इनसे बचना है जरूरी

यूटरीन फाइब्रोइड्स इम्बोलाइजेशन

हिस्टीरेक्टोमी अर्थात गर्भाशय निकालना भारत में दूसरा सर्वाधिक आम सर्जरी है, जबकि वास्तविकता यह है कि आधी आबादी (पुरूष) में गर्भाशय नहीं होता है. महिलाओं में हिस्टेरेक्टोमी कराने का अहम कारण फाइब्रोइड्स होते हैं, जो कि एक सुसाध्य ट्यूमर है. आमतौर पर जिस मरीज की हिस्टेरेक्टोमी की जाती है, सर्जरी कराने से उसे गायनेकोलॉजिकल समस्याओं से राहत मिलती है. यद्यपि वे इस बात से अनभिज्ञ है कि इस सर्जिकल उपचार के साथ काफी  जटिलताएं जुड़ी हुई है.  इसके कारण नई स्वास्थ्य समस्याएं जैसे कि समय से पहले रजोनिवृत्ति शामिल हैं. हर वर्ष, लाखों युवा महिलाएं, जो प्रजनन उम्र की है, उनकी हिस्ट्रेक्टोमी सर्जरी फाइब्रॉयड्स के कारण की जाती है.  एक विकल्प जो पूरी तरह से गैर सर्जिकल है, जो महिला को उसका गर्भाशय बनाए रखने की आजादी देता है, यूटरीन फाइब्रोइड्स इम्बोलाइजेशन है और यह महिला स्वास्थ्य में सच में एक बड़ी उन्नति है.

डॉ. संतोष बी पाटिल

सलाहकार न्यूरो और वैस्कुलर इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट -वेन सेंटर

मेरी सास बातबेबात टोकती रहती हैं, क्या करूं?

सवाल-

मैं 23 वर्षीय नवविवाहिता हूं. शादी के बाद ढेरों सपने संजोए मायके से ससुराल आई, मगर ससुराल का माहौल मुझे जरा भी पसंद नहीं आ रहा. मेरी सास बातबेबात टोकाटाकी करती रहती हैं और कब खुश और कब नाराज हो जाएं, मैं समझ ही नहीं पाती. वे अकसर मुझ से कहती रहती हैं कि अब तुम शादीशुदा हो और तुम्हें उसी के अनुरूप रहना चाहिए. मन बहुत दुखी है. मैं क्या करूं, कृपया सलाह दें?

जवाब-

अगर आप की सास का मूड पलपल में बनताबिगड़ता रहता है, तो सब से पहले आप को उन्हें समझने की कोशिश करनी होगी. खुद को कोसते रहना और सास को गलत समझने की भूल आप को नहीं करनी चाहिए. घरगृहस्थी के दबाव में हो सकता है कि वे कभीकभी आप पर अपना गुस्सा उतार देती हों, मगर इस का मतलब यह कतई नहीं हो सकता कि उन का प्यार और स्नेह आप के लिए कम है.

दूसरा, अपनी हर समस्या के समाधान और अपनी हर मांग पूरी कराने के लिए आप ने शादी की है, यह सोचना व्यर्थ होगा. किसी बात के लिए मना कर देने से यह जरूरी तो नहीं कि वे आप की बेइज्जती करती हैं.

आज की सास आधुनिक खयालात वाली और घरगृहस्थी को स्मार्ट तरीके से चलाने की कूवत रखती हैं. एक बहू को बेटी बना कर तराशने का काम सास ही करती हैं. जाहिर है, घरपरिवार को कुशलता से चलाने और उन्हें समझाने के लिए आप की सास आप को अभी से तैयार कर रही हों.

बेहतर यही होगा कि आप एक बहू नहीं बेटी बन कर रहें. सास के साथ अधिक से अधिक समय रहें, साथ घूमने जाएं, शौपिंग करने जाएं. जब आप की सास को यकीन हो जाएगा कि अब आप घरगृहस्थी संभाल सकती हैं तो वे घर की चाबी आप को सौंप निश्चिंत हो जाएंगी.

ये भी पढ़ें- मेरी स्किन ड्राई है. उस के लिए कौन सा स्क्रब अच्छा रहेगा?

ये भी पढ़ें- 

विविधता से परिपूर्ण हमारे देश में भांतिभांति के अजूबे पाए जाते हैं. हमारी हर बात निराली होती है. लेकिन हमारे देश की संस्कृति में एक अजूबा चरित्र ऐसा भी है, जो भारत की विविधताओं में एकता का गुरुतर भार अपने कंधों पर सदियों से ढोता आ रहा है.

कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक संपूर्ण भारतवर्ष में यह जीव सर्वत्र नजर आता है. इस अद्भुत चरित्र का नाम है सास. प्रादेशिक भाषाओं में इसे सासू, सास, सासूमां अथवा अन्य किसी संबोधन से पुकारा जाता है, लेकिन इस का मुख्य अर्थ है पति की माताश्री, जिन्हें आदर के साथ सास कहा जाता है. वैसे पत्नी की माताश्री भी जंवाई राजा की सास कहलाती है, लेकिन वह सास का गौणरूप है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- Short Story: सासें भांति भांति की

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें