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जानें क्या हैं महिलाओं के लिए कोविड-19 वैक्सीन से जुड़ी जानकारी

भारत में प्रसूति और स्त्री रोग सोसायटी (FOGSI ) के फेडरेशन ने अपने दिशानिर्देश जारी किये है. जिसमे कहा गया है कि क्या गर्भवती और स्तनपान कराने वाली मां या महिला को अपने पीरियड्स के दौरान कोविड वैक्सीन लगवानी चाहिए? इस दिशानिर्देश के जारी होने से महिलाओं के दिमाग में वैक्सीन को लेकर तमाम मिथक बिल्कुल साफ़ हो गए हैं. भारत को तीसरे चरण के विशाल कोविड वैक्सीनेशन (18 साल से ज्यादा उम्र) के ठीक दो दिन पहले FOGSI  के विस्तृत विवरण में कोविड वैक्सीन से सही महत्वपूर्ण विवरणों और मातृत्व देखभाल में वैक्सीन की सुरक्षा के लिए विकास और प्रकार के बारे में बताया गया है. फेडरेशन का मानना है कि गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए लेकिन किसी भी महिला पर वैक्सीन लगवाने का दबाव नहीं डालना चाहिए. यह महिला की इच्छा पर निर्भर होना चाहिए.

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को वैक्सीनेशन कराने के वास्तविक लाभ इसके सैद्धांतिक और रिमोट रिस्क से बहुत ज्यादा हैं. स्तनपान कराने वाली महिलाओं को कोविड वैक्सीन के काबिल माना जाना चाहिए क्योंकि स्तनपान कराने वाली महिलाओ के नवजात शिशु पर वैक्सीन का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है. महिलाओं को अपना फैसला खुद लेने के लिए देखभाल करने वालों द्वारा सहयोग दिया जाना चाहिए. महिलाओं के बीच कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. और जब भी वैक्सीन लगवाने का मौका आये तब उन्हें वैक्सीन लगवानी चाहिए. यह रिकमेंड किया जाता है कि प्रसूति और स्त्रीरोग विशेषज्ञ और महिलाओं के स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं में कोविड वैक्सीन लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए साथ ही अगर वैक्सीन लगाने के बाद कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो इसके लिए तैयार रहना चाहिए.

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गर्भावस्था की तैयारी करने वालों के लिए सलाह

महिलायें गर्भावस्था के सुनिश्चित होने के पहले किसी भी समय जब भी उनका नम्बर आये या उन्हें मौका मिले तब वैक्सीन लगवा सकती हैं. वैक्सीन लगवाने के लिए गर्भावस्था या उपचार को रोकने का कोई तुक नहीं बनता है. इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि वैक्सीन प्रजनन क्षमता या गर्भपात की दर को प्रभावित करता है.

पीरियड के दौरान

केंद्र सरकार द्वारा 1 मई से 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए वैक्सीनेशन की घोषणा करने के कुछ दिनों बाद कई महिलाओं ने पीरियड्स के दौरान कोविड-19 वैक्सीन लगवाने पर चिंता जताई थी. यहां तक कि सोशल मीडिया भी कई ऐसे पोस्ट से भरे पड़े है जिसमे यह कहा जा रहा है कि महिलाओं को अपने पीरियड साइकल के 5 दिन पहले या पांच दिन बाद कोविड-19 वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए; क्योंकि पीरियड्स के दौरान इम्युनिटी बहुत कम हो जाती है. पीरियड पांच दिनों तक रहता है और जिसमें शरीर से ज्यादा एंडोमेट्रियम रिलीज हो जाता हैं. पीरियड या एस्ट्रस साइकल के दौरान, एंडोमेट्रियम एक मोटी, रक्त वाहिका से समृद्ध, ग्लैंडर टिश्यू की परत में बढ़ता जाता है. इस दौरान आपके अंदर से मात्र खून बह रहा होता है और आपकी इम्युनिटी तथा सभी जरूरी तत्व शरीर में बने रहते हैं. पीरियड्स के दौरान या उससे पहले या बाद में वैक्सीन लगवाना पूरी तरह से सुरक्षित होता है.

मदरहुड हॉस्पिटल, नोयडा के गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्स्टेट्रीशियन कंसल्टेंट डॉ मंजू गुप्ता से बातचीत पर आधारित..

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Mother’s Day Special: कोरोना के दौर में घरेलू शिक्षा में मां की क्या हो भूमिका

कोविड -19 महामारी ने प्रत्येक माता-पिता को, बच्चों को उचित शिक्षा प्रदान करने के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशने के लिए मजबूर किया है. ऐसे हालातों में घर पर रहकर ही बच्चों को सही शिक्षा उपलब्ध कराना ही एकमात्र विकल्प रह गया है. इस परिदृश्य में एक मां ही है जो बच्चे के शुरूआती और बाद के जीवन में बतौर शिक्षक की भूमिका निभाने में महत्वपूर्ण भागीदारी कर सकती है. इसका एक कारण यह भी है कि ज्यादातर यह देखा जाता है कि मां अपने बच्चों की शिक्षा के अच्छे और चुनौतीपूर्ण पहलुओं को समझने के लिए हमेशा तत्पर रहती है.

बच्चे के जन्म लेने के साथ ही माँ उसकी देखभाल करना शुरू कर देती है, जिससे उन्हें बच्चों की भविष्य में सीखने की शैली को पहचानने में मदद मिलती है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए यहां हम घरेलू शिक्षा में मां की भूमिका को निम्न बिंदुओं के माध्यम से देखने जा रहे हैं.

1. एक शेड्यूल बनाएं और उसका पालन करें-

सभी युवा माताएं अपने बच्चों के साथ मिलकर उन सभी चीजों की सूची बनाएं, जिन्हें वे अगले कुछ हफ्तों तक करना चाहते हैं. अंत में, माँ और बच्चे के पास टाइम—टेबल तैयार होगा, जो शारीरिक गतिविधि, स्क्रीन समय, बोर्ड गेम, भरपूर नींद, मनोरंजन और परिवार के साथ अंतर्संबंधों से भरा होगा. घरेलू शिक्षा के लिए यह चुनौतीपूर्ण है, जिसे एक मां और बच्चे द्वारा मिलकर पूरा किया जाना होता है. ऐसे में एक गार्डनर की ‘थ्योरी ऑफ मल्टीपल इंटेलिजेंस’ को ध्यान में रखा जाना बेहद जरूरी है, जो बच्चों की बुद्धिमत्ता को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है. इस सिद्धांत में बताया गया है कि मानव बुद्धि का प्रयोग कई तरह से होता है, जैसे संगीत, अंतर्व्यैक्तिक, स्थानिक—दृश्य, भाषाई ज्ञान आदि.

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2. पर्याप्त गतिविधियाँ करें-

माताएँ अपने बच्चों को ऐसी गतिविधियों में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जो उन्हें सीखने और उनके मानसिक—शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती है. सारे दिन के दौरान ऐसी गातिविधियां संचालित होना आवश्यक हैं, जो बच्चा स्वयं कर सके, क्योंकि माताओं को भी स्वयं के काम के लिए या कुछ आराम हेतु समय निकालना जरूरी होता है. यह जरूरी नहीं कि बिल्कुल टाइम—टेबल के अनुसार ही कार्यों को किया जाए. यदि किसी भी समय माँ को गतिविधियों में नीरसता का एहसास हो, या लगे बच्चा ठीक से सीख नहीं रहा है तो गतिविधियों को सरसता और बच्चे की रूचि के अनुसार बदला भी जा सकता है. सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि दैनिक गतिविधियां ऐसी हो कि बच्चा और मां सीखने के साथ ही गतिविधियों का पर्याप्त रूप से आनंद भी ले सकें.

3. बच्चे के स्क्रीन टाइम को संतुलित करें-

आज की सबसे बड़ी वास्तविकता यह है कि हमारे बच्चों का पूरा जीवन ऑनलाइन हो गया है. हम टेलीविजन, लैपटॉप, फोन या टैबलेट आदि से घिरे हुए हैं, हम इनसे कहीं दूर नहीं जा सकते. लेकिन हम तकनीकी मोह को कम कर सकते हैं. यदि हम ऐसा कर लेते हैं तो हम देखेंगे कि स्वत: ही बच्चों का स्क्रीन टाइम संतुलित होने लगा है.

4. बच्चों को दोस्त बनाने में मदद करें-

बच्चों का अकेलापन दूर करने में माताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. इसलिए जरूरी है कि माताएं बच्चों को नये दोस्त बनाने में मदद करें. ऐसा तब संभव हो पाता है जब बच्चे को हॉबी क्लासेस, आर्ट क्लासेस और एक्टिविटी क्लब जैसी गतिविधियों में शामिल किया जाता है. इससे उसे दोस्त बनाने के लिए प्रोत्साहन प्राप्त होता है.

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5. बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को समझना-

बच्चे अक्सर अपने माता—पिता से ही सीखते हैं. किस तरह उनके माता—पिता विविध परिस्थितियों में व्यवहार करते हैं. यह बच्चों पर बहुत असर करता है. आनलाइन कक्षाओं के दौरान बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को समझना माता—पिता के लिए कठिन होता है. इसलिए यह आवश्यक है कि माता—पिता अपने बच्चे को उसकी भावनाएं व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें. ऐसा बच्चो में उनकी रूचि के प्रति प्रोत्साहित करके और डीप ब्रीदिंग, मेडिटेशन का कौशल सिखाकर किया जा सकता है.

डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी ,’गेट—सेट—पैरेंट विद पल्लवी’ की संस्थापक ,अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन की उपाध्यक्ष से बातचीत पर आधारित..

Mother’s Day Special: घर पर ऐसे बनाएं आम की खीर

अगर आप आम के शौकीन हैं तो घर पर शेक या स्मूदी बनाने की बजाय आम की खीर ट्राय करें. ये रेसिपी हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी रेसिपी है.

सामग्री

– पका आम  (½ कप बारीक कटा हुआ)

–  छोटा चावल ( ¼ कप भिगोकर लिया हुआ)

–  चीनी (½ कप)

–  इलायची पाउडर ( ¼ छोटी चम्मच)

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–  काजू ( 8 से 10)

–  बादाम ( 8 से 10)

–  फूल क्रीम दूध  (1 लीटर)

–  पका आम (1 कप पल्प)

बनाने की विधि

– किसी बड़े बर्तन में दूध उबालने के लिए गैस पर रख दीजिए. इसी बीच, काजू को थोड़ा मोटा-मोटा और बादाम को पतला-पतला काटकर तैयार कर लें.

–  दूध में उबाल आने पर गैस धीमा कर दीजिए और दूध में चावल डाल दीजिए.

–  इन्हें थोड़ी-थोड़ी देर में चलाते हुए पका लें.

– दूध के अच्छे से गाढ़ा हो जाने, चावल दूध में पक जाने पर इसमें थोड़े से कटे हुए काजू और बादाम डाल कर मिक्स कर दें.

– और खीर को चलाते हुए 4-5 मिनिट पकने दीजिए.

– खीर के अच्छे से गाढी़ होने और चावल भी दूध में अच्छे से पक कर एकसार होने पर इसमें चीनी और इलायची पाउडर डालकर मिक्स कर दें.

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– खीर को एकदम धीमी आंच पर 1-2 मिनिट और पका लें. बाद में, गैस बंद कर दें.

– खीर को गैस पर से उतार कर जाली स्टैंड पर रख दीजिए और खीर को थोड़ा ठंडा होने दीजिए.

– खीर के थोड़ा ठंडा हो जाने पर इसमें आम का पल्प डालकर मिला दें.

– साथ ही बारीक कटे हुए आम के टुकड़े भी डाल कर मिक्स कर दीजिए.

– आम की खीर को प्लेट में निकाल लें. इसके ऊपर से काजू-बादाम और आम के टुकड़े डाल कर सजाएं.

#Coronavirus: 4000 नहीं, भारत में हो रही हैं रोजाना 80,000 मौतें

लेखक- शाहनवाज

कोविड की दुसरी लहर ने भारत में कोहराम सा मचा दिया है. बीते कुछ हफ्तों से भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोविड के हर दिन 3.5 लाख से ऊपर मामले सामने आ रहे हैं. वहीं कोविड से मरने वाले लोगों की संख्या सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 3,500 से ऊपर है.

कोविड का संक्रमण इतनी तेजी से फैल रहा है की आए दिन आप न्यूज चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया के माध्यम से ये सुन ही रहे होंगे की कहीं अस्पताल में बैड नहीं है, कहीं औक्सीजन सिलिंडर नहीं है, कहीं औक्सीजन कोनसनट्रेटर नहीं है, कहीं वेंटीलेटर नहीं है, कहीं जरुरी दवाइयां नहीं मिल रही, कहीं वैक्सीन नहीं है इत्यादि. संक्षेप में कहें तो भारत का स्वास्थ सिस्टम पूरी तरह से चरमरा गया है, धाराशाई हो चुका है.

हाल तो इतने बुरे हैं की कोविड से मरने के बाद भी मृतक के अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को धक्के खाने पर मजबूर होना पड़ रहा है. कहीं पर लोगों को शमशानघाट पर लम्बीलम्बी लाइन में लग कर अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ रहा है. कहीं पर शमशानघाटों में शवों के दहन के लिए परिजनों को वहां मौजूद दलालों को घूस भी देनी पड़ी है ताकि उन का नंबर पहले आ जाए. दुनिया भर में शायद भारत ही वह पहला मुल्क होगा जहां पर मुर्दों को अंतिम संस्कार के लिए लाइन में लगना पड़ा है. लेकिन ऐसी क्या स्थिति आन पड़ी है की कोविड से मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार के लिए भी परिजनों को इतनी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है?

सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही देखें तो भारत में कोविड से मरने वाले लोगों की संख्या करीब 3,500 से ऊपर है, जिन के दहन या दफनाने के लिए पूरे भारत के शमशानों और कब्रिस्तानों का भयंकर रूप बीते कुछ दिनों में अलगअलग माध्यमों के जरिए हम सभी ने देखा है. लाइन में लगते हुए शवों की तस्वीरें देख कुछ जरुरी सवाल उठते हैं की भारत में मात्र 3,500 लोगों की मृत्यु प्रशासन पर इतनी भारी पड़ गई है की परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए लाइनों में लगना पड़ रहा है? क्या कोविड से मरने वाले लोगों की संख्या जमीनी स्तर पर कुछ और तथा सरकारी आंकड़ों में कुछ और है? क्या अब भारत में लोग केवल कोविड से ही अपनी जाने गवां रहे हैं इस के इतर नहीं?

सरकारी आंकड़ों से कई गुना ज्यादा है वास्तविक आंकड़ें

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डाक्टर आशीष कुमार झा ने 9 मई 2021 को अपने ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर कहा कि भारत में कोविड-19 से हताहत हुए लोगों के आंकड़ें हमें बताते हैं कि यह बीमारी सरकारी आंकड़ों में बताई हुई स्थिति से बहुत ज्यादा खराब है. उन्होंने 6-7 ट्वीट्स कर कुछ आंकड़ें और कुछ सवाल किए तथा भारत में कोविड की यथास्थिति दिखाने की कोशिश की.

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वह बताते हैं की 2019 में, जब भारत में कोविड संक्रमण नहीं फैला था उस समय तक आम दिनों में प्रतिदिन 27,000 लोगों की मृत्यु होती थी. यदि इन 27,000 मौतों में कोविड से होने वाली 4000 मौतों को और जोड़ दिया जाता है तो प्रशासन को इस से बहुत बड़ी आफत का सामना नहीं करना पड़ता. वे शमशानघाटों द्वारा किए जाने वाले व्यवसाय में होने वाला इजाफा जो की 2 से 4 गुना हो गया है, उसे ध्यान में रखते हुए अनुमान लगाते हैं की देश में 55 हजार से 80 हजार लोगों की मौत प्रतिदिन हो रही है.

डाक्टर झा के अनुसार भारत में वास्तविकता में कोविड मृत्यु दर प्रति दिन 25,000 के करीब हो सकती है जो की आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में बहुत अधिक है. वहीं कोविड से संक्रमितों की संख्या के संबंध में उन का अनुमान है की करीब 20 से 50 लाख लोग हर दिन संक्रमण की चपेट में आ कर बीमार हो रहे हैं.

हालांकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब 4 लाख मामले रोजाना सामने आ रहे हैं. लेकिन डाक्टर झा का अनुमान कुछ खास विशेष आधारों पर टिका हुआ है. अमेरिका में  इन्फेक्शन फेटेलिटी रेशियो, आईएफआर (संक्रमित और मृतकों का अनुपात) केवल 0.6 प्रतिशत ही है. आसान शब्दों में कहें तो यदि 1000 लोग कोविड से संक्रमित होते हैं तो उन में से मात्र 6 लोगों की मृत्यु हो रही है. भारत में युवा आबादी है. इस का अर्थ यह है की भारत का आईएफआर अमेरिका से कम होना चाहिए. उस हिसाब से उदाहरण के लिए यदि आज भारत में 4000 मौतें हुई हैं तो इस का अर्थ यह है की कोविड संक्रमण की कुल संख्या 40 लाख या उस से अधिक ही होगी.

भारत में चाहे कोविड का संक्रमण हो या फिर उस से होने वाली मृत्यु, दोनों ही मामलों में वास्तविक हालात सरकारी आंकड़ों से ज्यादा भयावह है. उदाहरण के लिए गुजरात के स्थानीय अखबार ‘सन्देश’ ने गुजरात में 7 बड़े और प्रमुख शहरों का एक सर्वे किया. इस सर्वे में उन्होंने पाया की कोविड प्रोटोकौल के अनुसार शवों के अंतिम संस्कार और दफनाए गए लोगों की संख्या 17,822 थी. जबकि आधिकारिक मौतों का आंकड़ा मात्र 1,745 ही था. यह 10 गुना से अधिक मौतें हैं.

ठीक उसी तरह से 3 मई की इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश के भोपाल जिले में अप्रैल के महीने में कोविड से मरने वाले लोगों की संख्या सरकारी रजिस्टर के अनुसार केवल 109 बताई गई थी. जबकि खोज में यह पाया गया की भोपाल में 3 शमशान और 1 कब्रिस्तान में कोविड से मरने वाले लोगों की संख्या कुल 2,567 थी. यह आंकड़ा सरकारी आंकड़ों से 25 गुना अधिक था.

भारत में कोविड के सरकारी आंकड़ों और वास्तविक छवि में जमीन-आसमान का फर्क सिर्फ आंकड़ें ही दिखा सकती है. आए दिन सोशल मीडिया और इन्टरनेट पर मौजूद इंडिपेंडेंट मीडिया की खोज से यह पता चलता रहता है की कागजों पर सरकार के दावे और हकीकत में कितना फर्क है. इंग्लैंड में छपने वाले अखबार फाइनेंसियल टाइम्स के सीनियर डेटा-विजुअलाइजेशन जर्नलिस्ट जौन बर्न-मर्डोक ने 21 अप्रैल को अपने एक लेख में यह अनुमान लगाया की भारत में कोविड से मरने वाले लोगों की संख्या जितनी रिपोर्ट की जा रही है, वास्तविक में वह उस से 10 गुना अधिक है.

यूनिवर्सिटी औफ वाशिंगटन के इंस्टिट्यूट औफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमइ) का एक नया विश्लेषण तो बेहद चौकाने वाला है. आईएचएमइ के इस विश्लेषण के अनुसार भारत में कोविड से मरने वाले लोगों का कुल आंकड़ा वास्तविक मृत्यु का केवल एक तिहाई है. 5 मई 2021 तक भारत में कोविड से मरने वाले लोगों की कुल संख्या 2,21,181 थी जो आईएचएमइ के अनुसार इन की वास्तविक संख्या 6,54,395 तक हो सकती है. यह भयावह है.

अन्य देशों में होने वाले विश्लेषण और किए जाने वाले रिसर्च को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. दिन गुजरने के साथसाथ भारत में कोविड की स्थिति बीते दिनों से ज्यादा दयनीय होती जा रही है. यदि हम डाक्टर झा के किए गए अनुमान को ध्यान में रखते हैं तो हालिया स्थिति ठीक वैसी ही नजर आती है जैसा की डाक्टर झा ने अनुमान किया है. पूरे भारत में हर दिन 80,000 तक लोगों की मृत्यु हो रही है, 40 से 50 लाख लोग हर दिन संक्रमित हो रहे हैं और जब बात उस से बचाव की हो तो वह नाकाफी है.

एक रिपोर्ट के अनुसार यदि कोरोना के बढ़ते प्रकोप से बचना है तो हर देश में ‘मास वैक्सीनेशन’ ही एकमात्र उस का उपाय है वो भी जल्द से जल्द. भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, की एक रिपोर्ट के अनुसार हर दिन देश में करीब 18 लाख वैक्सीन के डोस लोगों को दी जा रहे हैं, जो की भारत की सम्पूर्ण जनसंख्या का मात्र 0.13% ही है. यदि इसी गति से हम भारत में लोगों की वैक्सीन देते रहें तो सब को वैक्सीन लगाने में सालों गुजर जाएंगे. याद रखने वाली बात यह है की सरकार को प्रतिदिन 18 लाख लोगों को वैक्सीन लगाने पर खुद पर गर्व होता है, जो की बेहद शर्म की बात है.

समस्या कहां हैं?

यदि हम देश में कोरोना संक्रमण से जुड़े किसी भी सरकारी आंकड़ों को देखें तो स्थिति तो खतरनाक है ही लेकिन वास्तविकता भी हमारी आखों के सामने है. डाक्टर आशीष झा अपने ट्वीट में कहते हैं की भारतीय स्वास्थ सेवा प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है. लोग औक्सीजन की कमी से मर रहे हैं. और यह बात कहीं न कहीं सच साबित भी होती है. यदि देश में स्वास्थ सेवा प्रणाली मजबूत होती तो लोग कम से कम औक्सीजन की कमी से नहीं मरते. नहीं तो यह सोचने का विषय है की देश में कोविड की दूसरी लहर की शुरुआत से ही औक्सीजन की कमी है, यदि लोगों को पर्याप्त मात्रा में औक्सीजन मिल जाती तो शायद कोविड से मरने वाले कई लोगों की जिंदगियां बचा ली जाती.

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सब से बड़ी समस्या है कोविड के बढ़ते प्रकोप से लोगों की जिंदगियां बचाना, देश के नेताओं की प्राथमिकता (प्रायोरिटी) में ही शामिल नहीं है. नहीं तो एक तरफ देश में कोविड की दुसरी लहर की शुरुआत हो चुकी होती है लेकिन देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री 5 राज्यों में अपनी पार्टी के प्रचारमंत्री बन कर रैलियों में बेखौफ घूमते हैं. यदि प्राथमिकता कोविड से लड़ने की होती तो देश में कम पड़ती औक्सीजन पर ध्यान दिया जाता, अस्पतालों में बैड का इंतजाम किया जाता और कोरोना को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाते.

बेशर्मी की हद तो तब पार हो जाती है जब एक तरफ देश में वैक्सीन खरीदने के लिए केंद्र सरकार राज्य सरकारों पर दबाव बना रही है तो वहीं दूसरी तरफ 11,500 करोड़ रूपए की लागत से दिल्ली में नए संसद (सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट) का निर्माण किया जा रहा है. महामारी के दौर में ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं जिस से आम जनता का सिर्फ नुकसान ही हो रहा है.

इन सब के अलावा देश में कोविड से जुड़े आंकड़ों को कम कर के दिखाने का एक मकसद प्रधानमंत्री मोदी की ग्लोबल छवि को नुकसान न पहुंचने देना है. इस झूठी इमेज को बरकरार रखने के लिए लाखों की संख्या में लोगों की जाने जा चुकी है और लगातार लोग अभी भी मर ही रहे हैं. भाजपा देश में और दुनिया में यह दिखाना चाहती है की मोदी ने किस प्रकार से कोरोना पर लगाम कसी हुई है. जिस में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है.

ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट के मंत्र से प्रदेश सरकार कर रही कोरोना का मुकाबला

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कोरोना महामारी के विरुद्ध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में दूसरी लहर का मुकाबला पूरा देश कर रहा है. ‘ट्रेस, टेस्ट व ट्रीट’ का जो मंत्र कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सभी राज्यों को दिया गया है, उसको अपना कर उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेशवासियों को राहत पहुंचाने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि विगत 30 अप्रैल, 2021 की अपेक्षा 77,000 एक्टिव केस कम हुए हैं. पॉजिटिविटी घटी है और रिकवरी दर बढ़ी है. उन्होंने कहा कि वाराणसी मंडल में एक सप्ताह में 9285 एक्टिव केस आए हैं, जिसमें वाराणसी जनपद में 4500 से अधिक केस हैं. कोरोना की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर काफी तीव्र व संक्रामक रही है.

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का आभार व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि पूरे देश में ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस व इंडियन एयर फोर्स के विमान का इस्तेमाल ऑक्सीजन आपूर्ति में किया गया. इससे कोरोना के मरीजों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने में सभी राज्यों को सुगमता हुई.

उन्होंने कहा कि जिस तेजी से कोरोना को संक्रमण बढ़ा, उसी तेजी से ऑक्सीजन की भी डिमांड बढ़ी. वर्तमान में लगभग 1000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में हो रही है. महामारी का मुकाबला सभी के सहयोग से किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि प्रदेश सरकार महामारी का मुकाबला मजबूती से कर रही है. इसके लिए हर स्तर पर संसाधन भी बढ़ाए जा रहे हैं. टीकाकरण पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि दो स्वदेशी वैक्सीन अभी फिलहाल लग रही है और तीसरी वैक्सीन के लिए भी सहमति मिल गई है.

उन्होंने कहा कि सभी को टीके के लिए आगे आना चाहिए. आसानी से टीकाकरण किया जा सके, इसके लिए टीकाकरण केन्द्र बनाए गए हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि काशी चिकित्सा के क्षेत्र का हब है. पूर्वी उत्तर प्रदेश सहित बिहार के लोग चिकित्सा सुविधा यहां प्राप्त करते हैं. 750 बेड के डी0आर0डी0ओ0 की मदद से बनाये गए अस्थायी अस्पताल जिसमें 250 बेड वेंटीलेटर के हंै, से वाराणसी के साथ ही आसपास के जिलों के लोगों को बड़ी राहत होगी. यहां आर्मी मेडिकल कोर के साथ ही बी0एच0यू0, स्वास्थ्य विभाग की ओर से भी स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा अन्य संसाधनों को समन्वय स्थापित कर मुहैया कराया जाएगा. उन्होंने बताया कि भारत सरकार की ओर से पर्याप्त वैक्सीन मिल रही है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना के सेकंड वेव को रोकने के लिए किये गये कार्यों की सार्थकता दिखाई दे रही है. पॉजिटिविटी घटी है और रिकवरी दर बढ़ी है. लेकिन अभी सतर्कता की जरूरत है. मुख्यमंत्री ने जन सामान्य से अपील की कि वह बिना वजह अपने घरों से बाहर न निकलें और अपने घरों में ही सुरक्षित रहें. जरूरत पड़ने पर घरों से बाहर निकलने पर हर व्यक्ति कोविड नियम का पालन करे. चेहरे पर मास्क लगाएं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हर हालत में करें. हाई रिस्क कैटेगरी के लोग घरों से बाहर कतई न निकलें. वैक्सीन लगवाने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराएं और वैक्सीन अवश्य लगवाएं. उन्होंने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि ‘कोरोना हारेगा और देश जीतेगा’.

Shocking! श्वेता तिवारी ने शेयर किया एक्स हस्बैंड का CCTV फुटेज, ऐसे किया बेटे संग बुरा बर्ताव

टीवी की पौपुलर एक्ट्रेस श्वेता तिवारी की पर्सनल लाइफ इन दिनों सुर्खियों में है. जहां एक तरफ उनके पति अभिनव कोहली आए दिन नए-नए आरोप लगा रहे हैं. तो वहीं श्वेता इन सवालों के जवाब देती नजर आ रही हैं. इसी बीच श्वेता तिवारी ने सात समंदर पार से अपने ऊपर लग रहे आरोपों का जवाब दिया है. श्वेता ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें उन्होंने बेटे संग हुए बुरे बर्ताव का वीडियो शेयर किया है. आइए आपको दिखाते हैं शौकिंग वीडियो…

सीसीटीवी की फुटेज की शेयर

दरअसल, पिछले कुछ समय से अभिनव लगातार श्वेता तिवारी पर बेटे रेयांश से न मिलने देने का आरोप लगा रहे हैं. साथ ही उनका कहना है कि श्वेता शूटिंग के लिए विदेश गई हैं और बेटे को उन्होंने किसी होटल में छोड़ दिया है. हालांकि श्वेता ने जवाब में कहा था कि उन्होंने अभिनव को इस बारे में बताया था और रेयांश परिवार के साथ है. लेकिन अब श्वेता तिवारी ने अपनी बिल्डिंग का एक सीसीटीवी फुटेज शेयर किया है जिसमें अभिनव, रेयांश को जबरदस्ती छीनकर अंदर ले जाते दिख रहे हैं. वहीं रेयांश को पकड़ती महिला जमीन पर गिरती हुई नजर आ रही हैं. दूसरी तरफ बिल्डिंग के लोग अभिनव का ऐसा बर्ताव देखकर हैरान नजर आ रहे हैं. वहीं दूसरी वीडियो में रेयांश बेड पर सोया नजर आ रहा है, वहीं एक महिला उन्हें कहती नजर आ रही हैं कि डरने की जरूरत नहीं है, दीदी है आपके पास.

 

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श्वेता ने लिखी ये बात

दोनों वीडियो को शेयर करते हुए श्वेता तिवारी ने अपने पोस्ट के जरिए अभिनव कोहली को जवाब दिया है और लिखा है कि “अब सच को सामने आने दो !!!! (लेकिन यह मेरे अकाउंट में हमेशा के लिए नहीं रहने वाला है, अंततः मैं इसे हटा डिलीट कर दूंगी, मैं इसे सिर्फ सच्चाई सामने लाने के लिए पोस्ट कर रही हूं फिर इसे हटा दूंगी )यही वजह है कि मेरा बच्चा उससे डर गया है! उन्होंने आगे लिखा, इस घटना के बाद मेरा बच्चा एक महीने से ज्यादा समय तक डरा रहा. वह इतना डर गया था कि वो रात में ठीक से सो भी नहीं पाया! उसका हाथ 2 सप्ताह से अधिक समय तक चोटिल रहा. अब भी वह अपने पापा के घर आने या उनसे मिलने से डर है. मैं अपने बच्चे मेंटल ट्रामा से गुजरने नहीं दे सकती…मैं उसे शांत और खुश रखने की पूरी कोशिश करती हूँ! लेकिन यह डरावना शख्स हमेशा इसी कोशिश में लगा रहता है कि वह मानसिक तनाव में रहें. यह शारीरिक शोषण नहीं है तो क्या है !!!! ?? यह मेरी सोसाइटी का सीसीटीवी फुटेज है. ”

बता दें, श्वेता तिवारी इन दिनों रियलिटी शो खतरों के खिलाड़ी 11 की शूटिंग के लिए केपटाउन पहुंची हैं. जहां से वह अभिनव कोहली के सवालों का जवाब देती नजर आ रही हैं.

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Salman Khan की फैमिली में हुई कोरोना की एंट्री, बहने हुईं कोरोना पॉजिटिव

कोरोनावायरस का दूसरी लहर कई लोगों को अपनी चपेट में ले चुकी है. वहीं इनमें बौलीवुड से लेकर टीवी सितारों को नाम भी शामिल है. जहां बीते दिनों रणबीर कपूर से लेकर भूमि पेडनेकर तक कोरोना के शिकार हुए थे. तो वहीं खबर है कि सलमान खान की फैमिली में भी कोरोना ने दस्तक दे दी है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर..

सलमान की बहने हुईं कोरोना पौजिटिव

खबरों की मानें तो सलमान खान की दोनों बहनें अलवीरा अग्निहोत्री और अर्पिता शर्मा को कोरोना वायरस की चपेट में आ गई है. सलमान खान ने खुद अलवीरा और अर्पिता के कोरोना पौजिटिव होने की जानकारी दी है. दरअसल, एक्टर सलमान खान ने अपनी अपकमिंग फिल्म राधे-योर मोस्ट वांटेड भाई के प्रोमोशनल इवेंट के दौरान मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा है कि उनकी दोनों बहने कोरोना की शिकार हो गई हैं.

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कोरोना को लेकर कही ये बात

मीडिया से बात करते हुए सलमान खान ने कहा, ‘हम पहले सुना करते थे कि लोगों को कोरोना वायरस हो गया है. पिछले साल हमारे दो ड्राइवर्स को कोरोना हो गया था लेकिन इस वायरस की दूसरी लहर बहुत खतरनाक है. इस बार कोरोना वायरस हमारे घर में ही घुस गया है. मेरी दोनों बहनों अलवीरा और अर्पिता की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है.’

 

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बता दें, जल्द ही ईद के मौके पर सलमान खान की अपकमिंग फिल्म राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई जी5 की जीप्लेक्स सर्विस पर रिलीज होने वाली है, जिसमें दिशा पाटनी और जैकी श्रॉफ जैसे कलाकार नजर आएंगे. वहीं मेकर्स ने कोरोना के हालातों को देखते हुए डिजिटल और थियेटर दोनों जगह फिल्म को रिलीज करने का फैसला लिया है.

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धर्म पर होती धन की बरबादी

 पढ़ेलिखे और नेता भी शामिल हैं

यह किस्सा है भूपेंद्र सिंह चूडास्मा का, जो गुजरात के शिक्षा मंत्री हैं और आत्माराम परमार, जो राज्य के सामाजिक न्याय मंत्रालय का जिम्मा संभाले हैं, दोनों पिछले दिनों अचानक सुर्खियों में आए. वजह थी कि वह वीडियो वायरल हो गया, जिस में एक तांत्रिक अपना कारनामा दिखा रहा था और जनता ही नहीं, बल्कि गुजरात के ये दोनों मंत्री भी उस नजारे को देख रहे हैं.

भक्ति और पूजा के बीच लोगों में अंधविश्वास इस कदर फैला हुआ है जिस की कोई सीमा नहीं.

विज्ञान के युग में भी अंधविश्वास पूरी तरह लोगों पर हावी है. लोग सचाई के विपरीत बाबाओं के चक्कर में पड़ कर कुछ भी कर रहे हैं. कोई गुरदे की पथरी निकलवा रहा है, तो कोई पेट में कीलें होने का दावा करते तांत्रिक से उन का इलाज करवा रहा है. इन बातों को सुन या देख कर सामने वाले व्यक्ति की बुद्धि पर तरस आता है. अगर भगवान का नाम लेने या पंडेपुजारी के पास जाने और पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं, सुखसमृद्धि मिल जाती है तो दुनिया में इतना दुख ही क्यों होता है.

रा      धेराधे… राधेराधे… राधेराधे… जय श्रीराम… जय श्रीराम… जय श्रीराम… रमाकांत पूरी श्रद्धा के साथ भक्ति में लीन थे. पूरी मंडली साथ में घंटी भी बजा रही थी. ये आवाजें बच्चे को पढ़ने नहीं दे रही थीं. वह बारबार जा कर अपनी मां से कहता, ‘‘मां प्लीज पापा को बोलो ना कि सब लोग थोड़ी हलकी आवाज में पूजा करें. मेरा कल बोर्ड का पेपर है और मैं पढ़ नहीं पा रहा हूं.’’

जब वह अपने गुस्से को जाहिर कर रहा था तभी रमाकांत ने सुन लिया और फिर गुस्से से बोले, ‘‘यह कोई पढ़ने का टाइम है? अगर कल परीक्षा है तो आज तो तुम्हें भगवान के आगे नतमस्तक होना चाहिए.’’

बोलो जय सियाराम… जय सियाराम… फिर रमाकांत अपने बच्चे की परेशानी से बेखबर… उलटा अपनी पत्नी को झिड़कते हुए कि अकल नहीं है क्या तुझ में… महात्मा बैठे हैं पूजा कर रहे हैं तू यहां बच्चे में लगी हुई है. बेवकूफ औरत जाओ सभी के लिए गरम दूध बना कर ले आओ. बेचारी करती भी क्या. डरते हुए , ‘जी’ बोला और लग गई सेवाटहल में.

बीचबीच में उस की सास की भी आवाजें आती रहीं कि प्रसाद बना कि नहीं? बहू बिस्तर लगाया  कि नहीं… देखो महात्मा की सेवा में कोई कमी न रह जाए. जितनी मन से सेवा कर लेगी उतनी ही मेवा मिलेगा… बहुत भाग्य से महात्मा घर में पधारते हैं… कितने लोगों का निमंत्रण गया होगा… लेकिन हमारा ही स्वीकारा और आज हम जो भी हैं वह इन्हीं की वजह से हैं आदिआदि.

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पूरा दिन और आधी रात तो इस सेवा के चक्कर में ही निकल जाती. मुश्किल से 2 घंटे ही लेट पाती कि 4 बजे से ही आवाजें लगने लगतीं कि महात्मा के नहाने का टाइम हो गया है… इंतजाम हुआ कि नहीं… फिर वे सुबह 6 बजे प्रभात फेरी के लिए जाएंगे… याद है न कि तुम्हें उठ कर सब से पहले स्नान करना है.

ऐसा हर साल होता था. जब से वह इस घर में आई थी यही सब देख रही थी. उसे इस बात का बहुत दुख था कि किसी गरीब या जरूरतमंद को तो मांगने पर भी क्व10 नहीं दिए जाते. लेकिन महात्माओं पर लाखों रुपए खर्च कर दिए जाते. शुरूशुरू में तो जब शादी कर के आई तब सिर्फ एक स्वामीजी आते थे. वह भी 2 या 3 घंटों के लिए. लेकिन जैसेजैसे महात्माओं पर विश्वास और उतनी ही तेजी से आदमी की आमदनी बढ़ती गई, वैसे ही एक स्वामी के साथ 2 लोग… और… फिर अब तो महात्मा अपनी पत्नी और पूरे 11 लोगों की मंडली के साथ आते हैं. एक व्यक्ति की सेवाटहल किर भी आसान थी, लेकिन पूरी मंडली की सेवा, ऊपर से पासपड़ोस और रिश्तेदारों का मेला सभी को महात्मा से मिलना होता है और काम करने वाली वह अकेली.

अभी हाल ही की तो बात है जब पड़ोस में साक्षी गोपाल महाराज आए थे, कितने दिनों तक सुबहशाम उन के प्रवचन और सुबह 5 बजे प्रभात फेरी में वे बिना नागा शालमल होते रहे. कामधाम की कोई चिंता नहीं थी. चिंता थी तो बस बिजनैस को बढ़ाना है, महात्मा की सेवा करनी है.

यह कैसा अंधविश्वास

विश्वास या आस्था अपनी जगह है. लेकिन अंधा विश्वास यह मेरी समझ से परे है. ऐसा भी कैसा अंधा विश्वास हो गया जो आप अपने परिवार की दुखतकलीफ न समझ सको. छोटीछोटी बातों के लिए पंडेपुजारियों और महात्माओं के चक्कर लगाते हुए लोगों को देखती हूं तो खून खौलता है.

जैसेजैसे हम ग्लोबलाइजेशन की तरफ बढ़ रहे हैं वैसेवैसे ही लोगों में अंधविश्वास भी बढ़ता जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि भारतीय अंधविश्वास के मामले में पूरी दुनिया में सब से आगे हैं. सच में जिस देश ने सैटेलाइट जैसे वैज्ञानिक दावे किए हों वह नया भारत अंधश्विस की तरफ बढ़ रहा है.

दान क्यों

अकसर नुकसान के डर से पुण्य कमाने को या मनौती मांगने व पूरी होने के एवज में दान दिया जाता है. चढ़ावा चढ़ाया जाता है. कभी कुछ समस्याएं दूर करने के लिए अनापशनाप उपाय बताए जाते हैं. तरहतरह से दान होते हैं . धर्मगुरु, धार्मिक संस्थाएं सभी इसी तरह धन इकट्ठा करने में लगी रहती हैं जैसे राजनीतिक पार्टियां अपना फंड इकट्ठा करने के लिए चंदा उगाही करती हैं.

हकीकत में तो भक्त व श्रद्धालु भले ही गरीब और कंगाल हों, लेकिन जन्म से मरण तक कर्मकांड कर के उन से वसूली बराबर होती रहती है. प्रायश्चित्त करने, ग्रह चाल ठीक कराने, दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने, बहुत सी समस्याओं के हल के बहाने भी मोटी दानदक्षिणा होती है. सोचने की बात यह है कि जिस धर्म पर भगवान के नाम पर लोगों को डराया जाता है उस के नाम पर चलनेठगने व गलत काम करने में खदु पंडितपुजारी क्यों नहीं डरते?

दिखावे से किस का भला

उदाहरण: एक ऐक्सपोर्टर हैं शौक और स्वाद सब पाले हुए हैं. लेकिन साल में 2 बार बांके बिहारी मंदिर वृंदावन जा कर भंडारा कर के आते हैं. पंडों को खुश रखते हैं और यह सोच कर मस्त रहते हैं कि जितना मैं कमा रहा हूं उस का एक हिस्सा भगवान को दे रहा हूं और अब कोई परेशानी नहीं आएगी और नाम होगा वह अलग. घर की महिलाएं भी पूजापाठ में लगी रहती हैं.

मंदिर तो मंदिर लोग घरों में भी बहुत सी मूर्तियां रख लेते हैं और सुबहशाम उन की पूजा की जाती है. घरों में महात्माओं को प्रवचन के लिए बुलाना शान की बात समझी जाती है. जितना बड़ा महात्मा और उस की टोली, उतनी ही समाज में प्रतिष्ठा की बात मानी जाती है.

गरीबों को धन की और अमीरों को यश की इच्छा रहती है. इसलिए मंदिरों में पत्थर लगाए जाते हैं या घरों में इन महात्माओं को बुलाया जाता है. अब दानपुण्य दिखावे की भेंट चढ़ चुका. सब को जताने का जमाना है, अपनी वाहवाही के लिए लोग दान देते हैं या इन महात्माओं को निमंत्रण. ऐसे भी लोग हैं जो काली कमाई तो बहुत करते हैं, लेकिन पाप से डरते हैं, इसलिए वे इस तरह के दान बेफिक्री से करते हैं ताकि उन्हें उतना ही पुण्य मिल जाए. झूठी शान और दिखावा चाहे कैसा भी हो एक बुरी आदत है.

हकीकत में जरूरी क्या है

यदि कोई अनपढ़ ऐसा करे तो भी समझ में आता है, लेकिन कोई पढ़ालिखा व्यक्ति पैसे को पानी की तरह बहाए तो शर्म की बात है. पैसा कमाना ही नहीं बचाना भी एक कला है, क्योंकि जो बचाया समझो बस वही काम आया. इसलिए फुजूलखर्ची कर के दान देने या चढ़ावा चढ़ाने से बेहतर है बचत करना. उस पैसे से दूसरी जरूरतों को पूरा करना. यदि दान देना व चढ़ावा चढ़ाना बंद हो जाए तो मुफ्तखोरी जैसी समस्या ही खत्म हो जाए. लेकिन ऐसा होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है.

हम आज भी अंधविश्वास तथा बेडि़यों की पगडंडी पर घिसट रहे हैं. गरीबी,गंदगी और अशिक्षा विकास के रास्ते का रोड़ा है. ऐसे में दान और चढ़ावा रास्ते के गड्ढे हैं. रोशनी की मशाल नहीं अब पुरानी जंजीरों को तोड़ कर उन से छुटकारा पाने का वक्त आ गया है. अत: दिखावा और मन का वहम छोड़ें.

पढ़ेलिखे भी जिम्मेदार

अगर ढोंगी पंडेपुजारियों की दुकानें चल रही हैं तो इस का एक कारण वे पढ़ेलिखे लोग भी हैं, जो इस जाल में फंस कर अपना बहुत कुछ लुटा देते हैं. बौलीवुड भी अछूता नहीं इस से. कोई भी दुकान तभी चलती है जब ग्राहक उस में जाए पंडेपुजारियों की दुकान है. अगर फूलफल रही है तो इस में जितना हाथ गरीब का है उतना ही इन अमीरों का भी. सोचने वाली बात है कि जिस धर्म, भगवान का नाम ले कर लोग पंडों के पास जाते हैं, उसी भगवान के घर में काम करने वाले कर्मचारियों के मन में गलत हरकत करने की बात क्यों और कैसे आती है?

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नाजायज मांगें

उदाहरण: एक दंपती को कई वर्षों से कोई औलाद नहीं थी. वे अकसर अपने बाबा से इस विषय पर मिलते थे. उस बाबा ने भी मौके का फायदा उठाया और पति से कहा कि रात भर के लिए अपनी पत्नी को मेरे पास छोड़ जाओ. पति ने इस बाबा पर ऐसी अंधभक्ति दिखाई कि उस ने खुद अपनी पत्नी को रातभर के लिए बाबा को सौंप दिया. उस बाबा ने पूरी रात महिला के साथ दुष्कर्म किया.

हैरानी तो यह बात सोच कर होती है कि पढ़ेलिखे लोगों और नेताओं के सामने धर्म का गणुगान करने वाले ये बाबा, महात्मा या तांत्रिक जब कोई आपत्तिजनक मांग रखते हैं तो वे उन्हें तमाचा मारने के बजाय उस नाजायज मांग को पूरा करते हैं. साथ ही अंधी आस्था रखते हैं.

उदाहरण

यूपी का एक बाबा दावा करता हैं कि वह गठिया को ठीक कर सकता है. वह मरीज का खून निकाल कर उसे एक तांबे के बरतन में रख देता है और फिर उसे मरीज को पिलाता है. हुआ यों कि एक फिजिशियन की खुद की बहन उन के द्वारा दी गई चेतावनियों के बाद भी इस बाबा के चक्कर में पड़ गई और किर बहुत बीमार भी हो गई, क्योंकि उस का हीमोग्लोबिन लैवल 2 हो गया (नौर्मल  15 या 12). ऐसे उदाहरण हमें रोज देखने को मिलते हैं. इस लड़की को कई दिन आईसीयू में बिताने पड़े.

कई डाक्टरों व नर्सों ने उस की जान बचाने के लिए बहुत मेहनत की. उसे बचाने के लिए फैमिली ने 5 लाख रुपए खर्च किए. जबकि यदि गठिया का इलाज रूटीन से कराया जाए तो महीने में केवल 1 हजार रुपए तक का खर्च आता है.

छैल-छबीली: भाग 1- क्यों चिंता में थी बहू अवनि के बदले हावभाव देख सुगंधा

सुगंधाके गले में बांहें डाल बाय मां और वहीं बैठे महेश को हाथ हिला कर बाय पापा कह कर अवनि ने गुनगुनाते हुए अपना औफिस का बैग उठा लिया.

सुगंधा ने कहा, ‘‘अवनि, आज जल्दी आ जाना. अजय की बूआ आ रही हैं, याद रखना.’’

‘‘मां, जल्दी आना तो मुश्किल है… औफिस से 5 बजे निकल भी लूं तो भी घर आतेआते

7 बजेंगे ही… आ कर मिल ही लूंगी. डौंट वरी मां,’’  फिर खुद ही जोर से हंस दी, ‘‘बूआ का क्या है. वे मुझ से मिलने थोड़े ही आ रही हैं. अपने बाबाजी के प्रवचन सुनने आ रही हैं.’’

वहीं बैठे अजय को अपनी नईनवेली पत्नी के कहने के ढंग पर हंसी आ गई, ‘‘बकवास मत करो, अवनि… आ जाना समय से.’’

हंसते हुए अवनि अजय को अदा से बाय कह कर निकल गई.

मां के गंभीर चेहरे को देख अजय ने पूछा, ‘‘क्या हुआ मां? मूड खराब है क्या?’’

‘‘नहीं,’’ संक्षिप्त सा उत्तर पा कर अजय ने पिता को देखा तो महेश ने चुप रहने का इशारा किया. पितापुत्र इशारों में बात कर के मुसकराते रहे.

अजय भी औफिस चला गया तो महेश ने कहा, ‘‘मैं आज औफिस से जल्दी आने की कोशिश करूंगा… जीजी के आने तक तो आ ही जाऊंगा… तुम इतनी चुप क्यों हो?’’

सुगंधा पति के पूछने पर जैसे फट पड़ीं, ‘‘चुप न रहूं तो क्या करूं? कितना एडजस्ट करूं? सुबह से ही छैलछबीली बहू को देखतेदेखते मेरा सिर दुखने लगता है.’’

‘‘छैलछबीली? अवनि? यह क्या बोल

रही हो?’’

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‘‘रंगढंग देखते हो न? कहीं से भी बहू लगती है इस घर की? लटकेझटके, बनावशृंगार, नौकरी, इस की बातें, उफ… एक संस्कारी बहू लाने के कितने अरमान थे… कुछ भी कहती हूं हर बात का ऐसा जवाब देती है कि पूछो मत. हर बात को हंसी में उड़ा देती है. अपनी बेटी नीतू को देखा है? उस की ससुराल में सब उस की कैसे तारीफ करते हैं… जो उस की सास कहती है वही करती है और इस अजय ने तो एक छैलछबीली को मेरे सिर पर ला कर बैठा दिया.’’

महेश ने बिफरी पत्नी के कंधों पर हाथ रख कर कहा, ‘‘परेशान क्यों हो रही हो? अवनि को बहू बन कर आए 4 महीने ही हुए हैं. इतनी जल्दी उस के लिए अपने मन में एक इमेज न बना लो. तुम भी पढ़ीलिखी हो, मौडर्न हो, अपनी बहू के जीने के तौरतरीके पर तुम ने उसे छैलछबीली नाम दे दिया है… अजय बहुत समझदार लड़का है. अगर उस ने अवनि को अपने लिए पसंद किया है तो उस के गुण जरूर देखे होंगे.’’

‘‘हां, हैं न गुण. अजय को इन गुणों का गुलाम बना तो रखा है. नालायक सा उस की हर बात पर हंसता है. वह सजीसंवरी सी उस पर फिदा हो कर जोक मारती रहती है और वह हंसता रहता है… मुझे क्यों नहीं दिखते उस के गुण?’’

महेश हंस पड़े. फिर सुगंधा को छेड़ा, ‘‘सास को दिखते हैं कभी अपनी बहू के गुण इतनी आसानी से? फिर तुम इतनी गुणवान थीं, तुम्हारे गुण दिखे कभी तुम्हारी सास को?’’

सुगंधा को इतने गुस्से में भी इस बात पर हंसी आ गई.

महेश बोले, ‘‘अच्छा, अब मैं भी निकलता हूं. तुम गुस्सा मत करो, आराम करना. फिर जीजी भी आ रही हैं, तुम बिजी रहोगी,’’ और फिर वे भी चले गए.

घर के कामों के लिए श्यामा मेड आई तो सुगंधा काम करवाने में व्यस्त हो गईं. सब से फ्री हो कर थोड़ा लेटी ही थीं कि उन की ननद उमा जीजी का फोन आ गया जो आज शाम पुणे से उन के घर आने वाली थीं.

उमा फोन पर कह रही थीं, ‘‘सुगंधा, मैं

6 बजे तक पहुंच जाऊंगी तब तक बहू आ जाएगी न? शादी के समय भी उस से ज्यादा बात नहीं हो पाई थी.’’

‘‘हां, जीजी कोशिश रहेगी.’’

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फिर कुछ निर्देश दे कर उमा ने फोन रख दिया. सुगंधा थोड़ी देर के लिए लेट गईं और बहुत कुछ सोचने लगीं… 4 महीने पहले ही उन के बेटे ने अवनि से 3 साल की दोस्ती के बाद प्रेम विवाह किया था. सबकुछ खुशीखुशी हो गया था. अवनि के पेरैंट्स प्रोफैसर थे. वे बैंगलुरु में रहते थे. मौडर्न, सुशिक्षित परिवार था.

अजय को अवनि बहुत पसंद थी, यही सुगंधा के लिए खुशी की बात थी. वे अपने बच्चों की खुशी में, घरपरिवार में खुश रहने वाली हंसमुख महिला थीं पर अवनि के साथ कुछ ही दिन रहने के बाद सुगंधा के मन में अवनि के लिए एक ही शब्द आया था, छैलछबीली.

अवनि सुंदर थी, स्मार्ट थी, खूब सजसंवर कर रहने का शौक था उसे. वह अजय पर दिलोजान से फिदा है, यह सब को साफसाफ दिखता था. उस का औफिस घर से काफी दूर था. अजय से पहले औफिस निकलती. अजय के बाद ही घर पहुंचती.

मुंबई में औफिस आनेजाने में अच्छीखासी परेशानी होने के बावजूद घर आते ही झट से फ्रैश हो कर सब के साथ उठतीबैठती. हमेशा अपने कपड़ों का,चेहरे का, हेयरस्टाइल का, ऐक्सैसरीज का इतना ध्यान रखती कि सुगंधा हैरान सी देखती रह जातीं. घर में ऐसे रहती जैसे सालों से यही उस का घर था. सुगंधा कई बार महेश के सामने भी उसे छैलछबीली कहतीं तो महेश उन्हें हंस कर टोक भी देते. कुकिंग का अवनि को कोई शौक नहीं था.

एक दिन सुगंधा ने प्यार से अवनि से कहा, ‘‘अवनि, छुट्टी वाले दिन थोड़ीथोड़ी कुकिंग भी सीख लो.’’

उस समय चारों साथ बैठे थे. अवनि ने पूछा, ‘‘क्यों मां?’’

‘‘बेटा, भले ही मेड है, पर कुकिंग आनी भी तो चाहिए.’’

‘‘मां मुझे थोड़ीबहुत कुकिंग आती है… उतने से अभी चल जाएगा, फिर कभी सीख लूंगी,’’ और फिर उस ने सुगंधा के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘मां, मुझ से किचन में घुसा नहीं जाता. जब भी आप को जरूरत होगी, हम फुलटाइम कुक रख लेंगे… आप को भी आराम मिलेगा. मैं तो कहती हूं कुक रख ही लेते हैं.’’

सुगंधा कुक के आइडिया से ही मन ही मन घबरा गईं कि कहीं यह छैलछबीली सच में कुक न रख दे. फिर बोलीं, ‘‘ठीक है, जब तुम्हारा मन हो तो सीख लेना. फिलहाल मुझे कोई जरूरत नहीं… श्यामा सब कर ही जाती है.’’

महेश और अजय तो इस चर्चा पर मुसकराते ही रह गए थे. उस दिन सुगंधा ने महेश से कहा, ‘‘देखा, कोई काम नहीं करना चाहती.. जब भी कुछ सीखने के लिए कहती हूं मेरे गले में लटक जाती है. फिर डांटा भी नहीं जाता.’’

आगे पढ़ें- उन के कहने के ढंग पर महेश खूब हंसे. बोले….

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Mother’s Day Special: मुक्ति-भाग 4

मां को सब से अधिक परेशानी इस बात की थी कि परदेश में उन्हें हंसनेबोलने के लिए कोई संगीसाथी नहीं मिल पाता था, और अकेले कहीं जा कर किसी से अपना परिचय भी नहीं बढ़ा सकती थीं. शिकागो जैसे बड़े शहर में भारतीयों की कोई कमी तो नहीं थी, पर सुनील दंपती लोगों से कम ही मिलाजुला करते थे.

कभीकभी मां को वे मंदिर ले जाते थे. उन्हें वहां पूरा माहौल भारत का सा मिलता था. उस परिसर में घूमती हुई किसी भी बुजुर्ग स्त्री को देखते ही वे देर तक उन से बातें करने के लिए आतुर हो जातीं. वे चाहती थीं कि वे वहां बराबर जाया करें, पर यह  भी कर सकना सुनील या उस की पत्नी के लिए संभव नहीं था. अपनी व्यस्तता के बीच तथा अपनी रुचि के प्रतिकूल सुनील के लिए सप्ताहदोसप्ताह में एक बार से अधिक मंदिर जाना संभव नहीं था और वह भी थोड़े समय के लिए.

कुछ ही समय में सुनील की मां को लगा कि अमेरिका में रहना भारी पड़ रहा है. उन्हें अपने उस घर की याद बहुत तेजी से व्यथित कर जाती जो कभी उन का एकदम अपना था, अपने पति का बनवाया हुआ. वे भूलती नहीं थीं कि अपने घर को बनवाने में उन्होंने खुद भी कितना परिश्रम किया था, निगरानी की थी और दुख झेले थे. और यह भी कि जब वह दोमंजिला मकान बन कर तैयार हो गया था तो उन्हें कितना अधिक गर्व हुआ था.

आज यदि उन के पति जीवित होते तो कहीं और किसी के साथ रहने या अमेरिका आने के चक्कर में उन्हें अपने उस घर को बेचना नहीं पड़ता. उन के हाथों से उन का एकमात्र जीवनाधार जाता रहा था. उन के मन में जबतब अपने उस घर को फिर से देखने और अपनी पुरानी यादों को फिर से जीने की लालसा तेज हो जाती.

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पर अमेरिका आने के बाद तो फिर से भारत जाने और अपने घर को देखने का कोई अवसर ही आता नहीं दिखता था. न तो सुनील को और न ही उस की पत्नी को भारत से कोई लगाव रह गया था या भारत में टूटते अपने सामाजिक संबंधों को फिर से जोड़ने की लालसा. तब सुनील की मां को लगता कि भारत ही नहीं छूटा, उन का सारा अतीत पीछे छूट गया था, सारा जीवन बिछुड़ गया था. यह बेचैनी उन को जबतब हृदय में शूल की तरह चुभा करती. उन्हें लगता कि वे अपनी छायामात्र बन कर रह गई हैं और जीतेजी किसी कुएं में ढकेल दी गई हैं. ऐसी हालत में उन का अमेरिका में रहना जेल में रहने से कम न था.

मां के मन में अतीत के प्रति यह लगाव सुनील को जबतब चिंतित करता. वह जानता था कि उन का यह भाव अतीत के प्रति नहीं, अपने अधिकार के न रहने के प्रति है. मकान को बेच कर जो भी पैसा आया था, जिस का मूल्य अमेरिकी डौलर में बहुत ही कम था, फिर भी उसे वे अपने पुराने चमड़े के बौक्स में इस तरह रखती थीं जैसे वह बहुत बड़ी पूंजी हो और जिसे वे अपने किसी भी बड़े काम के लिए निकाल सकती थीं. कम से कम भारत जाने के लिए वे कई बार कह चुकी थीं कि उन के पास अपना पैसा है, उन्हें बस किसी का साथ चाहिए था.

सुनील देखता था कि वे किस प्रकार घर का काम करने, विशेषकर खाना बनाने के लिए आगे बढ़ा करती थीं पर सुनील की पत्नी उन्हें ऐसा नहीं करने दे सकती थी. कहीं कुछ दुर्घटना घट जाती तो लेने के देने पड़ जाते. बिना इंश्योरैंस के सैकड़ों डौलर बैठेबिठाए फुंक जाते. तब भी, जबतब मां की अपनी विशेषज्ञता जोर पकड़ लेती और वे बहू से कह बैठतीं, यह ऐसे थोड़े बनता है, यह तो इस तरह बनता है. साफ था कि उस की पत्नी को उन से सीख लेने की कोई जरूरत नहीं रह गई थी.

सुनील की मां के लिए अमेरिका छोड़ना हर प्रकार सुखकर हो, ऐसी भी बात नहीं थी. अपने बेटे की नजदीकी ही नहीं, बल्कि सारी मुसीबतों के बावजूद उस की आंखों में चमकता अपनी मां के प्रति प्यार आंखों के बूढ़ी होने के बाद भी उन्हें साफ दिख जाता था. दूसरी ओर अमेरिका में रहने का दुख भी कम नहीं था. उन का जीवन अपने ही पर भार बन कर रह गया था.

अब जहां वे जा रही थीं वहां से पारिवारिक संबंध या स्नेह संबंध तो नाममात्र का था, यह तो एक व्यापारिक संबंध स्थापित होने जा रहा था. ऐसी स्थिति में शिवानी से महीनों तक उन का किसी प्रकार का स्नेहसंबंध नहीं हो पाया. जो केवल पैसे के लिए उन्हें रख रही हो उस से स्नेहसंबंध क्या?

उन का यह बरताव उन की अपनी और अपने बेटे की गौरवगाथा में ही नहीं, बल्कि दिनप्रतिदिन की सामान्य बातचीत में भी जाहिर हो जाता था. उस में मेरातेरा का भाव भरा होता था. यह एसी मेरे बेटे का है, यह फ्रिज मेरा है, यह आया मेरे बेटे के पैसे से रखी गई है, इसलिए मेरा काम पहले करेगी, इत्यादि.

शिवानी को यह सब सिर झुका कर स्वीकार करना पड़ता, कुछ नानी की उम्र का लिहाज कर के, कुछ अपनी दयनीय स्थिति को याद कर के और कुछ इस भार को स्वीकार करने की गलती का एहसास कर के.

मोबाइल की घंटी रात के 2 बजे फिर बज उठी. यह भी समय है फोन करने का? लेकिन होश आया, फोन जरूर मां की बीमारी की गंभीरता के कारण किया गया होगा. सुनील को डर लगा. फोन उठाना ही पड़ा. उधर से आवाज आई, ‘‘अंकल, नानी तो अपना होश खो बैठी हैं.’’

‘‘क्या मतलब, होश खो बैठी हैं? डाक्टर को बुलाया’’ सुनील ने चिंता जताई.

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‘‘डाक्टर ने कहा कि आखिरी वक्त आ गया है, अब कुछ नहीं होगा.’’

सुनील को लगा कि शिवानी अब उसे रांची आने को कहेगी, ‘‘शिवानी, तुम्हीं कुछ उपाय करो वहां. हमारा आना तो नहीं हो सकता. इतनी जल्दी वीजा मिलना, फिर हवाईजहाज का टिकट मिलना दोनों मुश्किल होगा.’’

‘‘हां अंकल, मैं समझती हूं. आप कैसे आ सकते हैं?’’ सुनील को लगा जैसे व्यंग्य का एक करारा तमाचा उस के मुंह पर पड़ा हो.

‘‘किसी दूसरे डाक्टर को भी बुला लो.’’

‘‘अंकल, अब कोई भी डाक्टर क्या करेगा?’’

‘‘पैसे हैं न काफी?’’

‘‘आप ने अभी तो पैसे भेजे थे. उस में सब हो जाएगा.’’

शिवानी की आवाज कांप रही थी, शायद वह रो रही थी. दोनों ओर से सांकेतिक भाषा का ही प्रयोग हो रहा था. कोई भी उस भयंकर शब्द को मुंह में लाना नहीं चाहता था. मोबाइल अचानक बंद हो गया. शायद कट गया था.

3 घंटे के बाद मोबाइल की घंटी बजी. सुनील बारबार के आघातों से बच कर एकबारगी ही अंतिम परिणाम सुनना चाहता था.

शिवानी थी, ‘‘अंकल, जान निकल नहीं रही है. शायद वे किसी को याद कर रही हैं या किसी को अंतिम क्षण में देखना चाहती हैं.’’

सुनील को जैसे पसीना आ गया, ‘‘शिवानी, पानी के घूंट डालो उन के मुंह में.’’

‘‘अंकल, मुंह में पानी नहीं जा रहा.’’ और वह सुबकती रही. फोन बंद हो गया.

सुबह होने से पहले घंटी फिर बजी. सुनील बेफिक्र हो गया कि इस बार वह जिस समाचार की प्रतीक्षा कर रहा था वही मिलेगा. अब किसी और अपराधबोध का सामना करने की चिंता उसे नहीं थी. उस ने बेफिक्री की सांस लेते हुए फोन उठाया और दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अंकल, नानीजी को मुक्ति मिल गई.’’ सुनील के कानों में शब्द गूंजने लगे, बोलना चाहता था लेकिन होंठ जैसे सिल गए थे.

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