Hindi Love Stories : भावनात्मक सुरक्षा

Hindi Love Stories :  मुकेशआज भी अनमना सा था. जब वेटर बिल ले कर आया तो उस के चेहरे पर काफी परेशानी उभर आई. कविता इस बात को समझ सकती थी. हमारे पुरुषप्रधान समाज में यदि स्त्री भुगतान करे तो इसे खराब माना जाता है. हमारे पुरुषप्रधान समाज में ही क्यों शायद सारी दुनिया में इसे अपमानजनक माना जाता है.

कविता को स्कूल के दिन याद आ गए जब वे एक कहानी पढ़ा करती थी लंचियों. इस में एक 40 वर्षीय महिला लेखक विलियम सोमरसेट की दीवानी थी. वह लेखक से एक बड़े रैस्टोरैंट में मिलने की इच्छा व्यक्त करती है. रैस्टोरैंट में दोनों लंच के लिए पहुंचते हैं.

विलियम को बिल की चिंता होती है क्योंकि महिला के द्वारा बिल का भुगतान किया जाना अपमानजनक होता और विलियम के पास ज्यादा पैसे नहीं थे. महिला काफी महंगी खानेपीने की चीजें मंगवाती जाती है और विलियम का दिल धड़कता रहता है.

अंत में स्थिति यह होती है कि उस के पास टिप देने को बहुत कम रकम बचती है और अगले कुछ दिनों के लिए उस के पास कुछ भी नहीं बचता है. यद्यपि यह कहानी हास्य का पुट लिए हुए थी पर यह संदेश तो था ही उस में कि पुरुष के होते महिला के द्वारा बिल का भुगतान करना या बिल शेयर करना ठीक नहीं माना

जाता था.

मगर मुकेश उस के साथ ऐसा क्यों महसूस करता है वह समझ नहीं पाती थी. आखिर वह उस का बौयफ्रैंड था. कई वर्षों से दोनों साथ थे. सुख में भी और दुख में भी. यह ठीक है कि उस की आमदनी कुछ कम थी. वैसे वह उम्र में भी उस से 2 वर्ष छोटा था और जौब भी उस के बाद ही शुरू की थी. परंतु जब इस में उसे कोई परेशानी नहीं थी तो आखिर मुकेश क्यों इतना गंभीर हो जाता था छोटीछोटी बातों पर?

मुकेश का मूड देख कविता ने इस बारे में बात करना मुनासिब नहीं समझ. इधरउधर की बातें कर के उस ने उस से विदा ली. पर यह बात उसे मथती रही. आज वे मित्र हैं कल पतिपत्नी होंगे. उस समय भी यदि मुकेश इसी प्रकार व्यवहार करेगा तो क्या आसान होगी जीवन की यात्रा?

क्या करे वह कुछ समझ नहीं पा रही थी. कहीं मुकेश के मन में हीनभावना न आती जाए और वह उसे छोड़ कर चला न जाए. वह उसे बहुत चाहती थी और उस के साथ जीवन बिताना चाहती थी. पर उस के इस व्यवहार से उस के मन में आशंका होती थी कि कहीं यह रिश्ता दरक न जाए.

कौन इस समस्या से उसे छुटकारा दिला सकता है? कई नाम उस के जेहन में आए जिन से वह चर्चा करने पर विचार कर सकती थी. पर अधिकांश लोगों से बात करने में उसे संदेह था कि लोग उस की खिल्ली न उड़ाएं. ‘रहिमन निज मन की व्यथा मन में राखो गोय, सुनी अठिलइन्हें  लोग सब बांट न लइन्हें कोय,’ उस के जेहन में रहीमदास की पंक्तियां गूंज गईं.

उस के मन में सुजीत का खयाल आया. वह उस का सहकर्मी था और बड़े ही सुलझे विचारों का था. उस से यह सलाह ली जा सकती है. औफिस में आधे घंटे का लंच होता था. वह सुजीत के साथ लंच लेते हुए बात कर सकती थी. वह उस की उलझन सुन हंसेगा नहीं और अपनी तरफ से सही सलाह भी देगा.

दूसरे दिन औफिस पहुंचते ही उस ने इंटरकौम से सुजीत का नंबर मिलाया.

डिस्प्ले पर कविता का नंबर देख सुजीत ने रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘हाय कविता.’’

‘‘हाय, कैसे हो सुजीत?’’ कविता ने पूछा.

‘‘चकाचक, मस्ती, झकास,’’ हमेशा की तरह सुजीत का जवाब था. कितनी भी परेशानी में क्यों न हो उस का यही जवाब होता था. वह कहता भी था, स्थिति जो भी हो जवाब यही होना चाहिए. यदि रोने बैठ जाओगे तो कोई हाल भी नहीं पूछेगा.

‘‘तुम कैसी हो?’’ उस ने पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं पर पूरी तरह नहीं. कुछ उलझन है, तुम से निष्पक्ष सलाह चाहिए,’’ कविता ने कहा.

‘‘सलाह? अरे यह तो थोक के भाव कोई भी दे सकता है अपने देश में,’’ सुजीत ने हंस कर कहा, ‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे.’’

‘‘मुझे पता है. पर मैं किसी सुलझे विचारों वाले व्यक्तिसे ही सलाह लेना चाहती हूं और वह भी थोक के भाव से नहीं. संक्षिप्त और गूढ़ सलाह और मेरे खयाल से तुम सही व्यक्तिहो.’’ कविता ने कहा.

‘‘बड़ी खुशी हुई कि मुझे इस लायक समझ गया. फरमाइए?’’ सुजीत ने कहा.

‘‘अभी नहीं. आज लंच तुम्हारे पास बैठ कर करूंगी और उसी समय बात भी करूंगी.’’

‘‘स्वागत है आप का. ठीक डेढ़ बजे मिलते हैं,’’ सुजीत ने कहा.

‘‘ठीक है,’’ कविता ने कहा और फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

डेढ़ बजे कविता सुजीत के कैबिन में टिफिन बौक्स ले कर पहुंची. वह जानती थी कि सुजीत भी घर से लंच लाता है. फिर उस का कैबिन थोड़ा बड़ा भी था और वहां वह अकेला बैठता था. अत: बात करने में सुविधा भी थी.

दोनों ने एकदूसरे के टिफिन बौक्स से खाद्यसामग्री मिलबांट कर खाई और फिर हाथ धो कर दोनों बातचीत करने बैठ गए.

‘‘क्या बात है?’’ सुजीत ने पूछा.

‘‘मुकेश को तो तुम जानते हो.’’

‘‘हां. तुम्हारा दोस्त.’’

‘‘दोस्त से कुछ ज्यादा… होने वाला जीवनसाथी.’’

‘‘मामला क्या है?’’

‘‘वह मुझ से 2 वर्ष छोटा है. जौब मेरे बाद शुरू की है. मेहनती भी बहुत ज्यादा नहीं है. थोड़ा कम व्यावहारिक भी है. अत: वेतन कम पाता है. स्वाभाविक है हम कहीं साथ होते हैं तो ज्यादातर खर्च मैं ही करती हूं. मुझे कोई आपत्ति भी नहीं है. पर वह इसे अपमानजनक मानता है. मैं उसे खोना नहीं चाहती. मैं क्या करूं?’’ कविता ने एक ही सांस में अपनी बात रख दी.

‘‘हूं, मामला पेचीदा है,’’ सुजीत ने कहा और फिर सोच में डूब गया.

थोड़ी देर सोचने के बाद बोला, ‘‘देखो वह जब तक आर्थिक रूप से समर्थ नहीं हो जाता उस का ऐसा व्यवहार स्वाभाविक है. आखिर वर्षों से जड़ जमाए पितृसत्तात्मक व्यवस्था का हिस्सा है वह. दूसरा उपाय यह है कि वह भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस करे. आर्थिक रूप से समर्थ तो वह अपनी मेहनत और लगन से ही हो सकता है. इस में तुम ज्यादा कुछ नहीं कर सकती. हां भावनात्मक सुरक्षा तुम उसे दे सकती हो. तुम उस से बात करती रहो और बताओ कि तुम ज्यादा क्यों कमाती हो. पहली बात तुम उस से पहले से जौब कर रही हो. दूसरा तुम काफी मेहनत करती हो. तुम उस के साथ लगातार बात करती रहो और उसे समझती रहो. उसे बताओ कि जमाना बदल रहा है. अब पतिपत्नी साथसाथ काम कर रहे हैं. घर का भी, बाहर का भी.

‘‘अब संयुक्त परिवारों का समय नहीं रहा जब महिलाओं को घर के अंदर और पुरुषों को घर के बाहर काम करना होता था. अब वह समय नहीं रहा जब घर में कई महिलाएं होती थीं और कई पुरुष होते थे. महिलाएं आपस में काम बांटती थीं और पुरुष आपस के. अब परिवार में पतिपत्नी और बच्चे होते हैं. पतिपत्नी को ही मिल कर परिवार चलाना होता है. कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं होता. दोनों बराबर होते हैं और अपनी क्षमता के अनुसार कमाते हैं और घर का काम करते हैं. उसे बताओ कि तुम्हें उस की कम आमदनी से कोई परेशानी नहीं है.’’

‘‘ठीक कह रहो हो. मैं उस से बात करूंगी थैंक्यू,’’ कविता ने कहा और टिफिन बौक्स ले कर अपने कैबिन में वापस आ गई.

अगली बार जब कविता मुकेश से मिली तो उस ने कहा, ‘‘एक बुरी खबर सुनानी है.’’ ‘‘क्या?’’ मुकेश चौंका.

‘‘हो सकता है मेरी जौब चली जाए और मुझे कहीं अभी से आधी सैलरी पर काम करना पड़े. कहीं तुम मेरा साथ छोड़ तो नहीं दोगे?’’

‘‘कैसी बात करती हो? क्या मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी सैलरी के लिए जुड़ा हूं? मैं प्यार करता हूं तुम से. आधी सैलरी तो छोड़ो, बगैर सैलरी के भी रहोगी तो हम मिलजुल कर गुजारा कर लेंगे. अभी मेरी सैलरी कम है तो क्या तुम मुझे छोड़ कर चली गई?’’ मुकेश ने कहा.

‘‘नहीं और कभी जाऊंगी भी नहीं. पर तुम कभीकभी ऐसा व्यवहार क्यों करते हो जब कभी मैं बिल का भुगतान करती हूं,’’ कविता ने कहा.

‘‘वह… वह… वह…’’ मुकेश कुछ बोल नहीं पाया. शायद उसे पता भी नहीं था कि उस की प्रतिक्रिया से कविता वाकिफ है.

‘‘देखो मुकेश, जिंदगी में कभी मैं ज्यादा कमाऊंगी कभी तुम ज्यादा कमाओगे. इस से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए. अब मैं और तुम, हम बनने वाले हैं. इन छोटीछोटी बातों को बीच में मत आने दिया करो.’’

मुकेश के चेहरे पर अनिश्चिंतता के भाव थे. शायद वह पूरी तरह सहमत नहीं हो पा रहा था. बाद में भी मुकेश का व्यवहार वैसा ही बना रहा. स्थिति तब और बुरी हो गई जब लौकडाउन के चलते पहले तो उसे वर्क फ्रौम होम का और्डर दिया गया और बाद में उसे जौब से ही हटा दिया गया.

मुकेश कोशिश करता रह गया कहीं काम पाने की पर सफल नहीं हो पाया. धीरेधीरे वह निराशा के गर्त में डूबता चला गया. अब उसे कविता से बारबार पैसे लेने पड़े. इस शहर में उस का और कोई ऐसा नहीं था जिस से वह सहायता ले पाता और घर वाले तो उस पर ही आश्रित थे. उन से वह कुछ मांग नहीं सकता था. कोढ़ में खाज की तरह वह कोरोना से संक्रमित हो गया. वह भी तब, जब सबकुछ सुधरता नजर आ रहा था. एक कंपनी से उस की बात भी हो गई थी और बहुत बढि़या पैकेज पर उसे जौब मिल रही था.

पहले तो हलका बुखार ही था पर जब उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी तो  अस्पताल जाने के अलावा कोई चारा नहीं था. उस ने कविता को बताया कि वह अस्पताल जाने वाला है तो कविता उस के पास आ गई.

‘‘इस बीमारी में पास नहीं आते कविता. दूर ही खड़ी रहो और वापस जाओ,’’ दरवाजा खोलने के साथ ही उस ने कहा.

‘‘पूरी सावधानी के साथ आई हूं मुकेश. यह देखो मास्क, सैनिटाइजर मेरे बैग में हमेशा रहते हैं. तुम्हें अस्पताल में एडमिट करवा कर वापस आऊंगी तो स्नान कर लूंगी,’’ कविता ने कहा.

‘‘मेरे कारण तुम भी संक्रमित हो जाओगी,’’ मुकेश ने थोड़ी नाराजगी से कहा.

‘‘बीमारी कोई भी हो, अपने तो अपने के काम आएंगे. पूरी सावधानी बरतूंगी. अगर फिर भी संक्रमित होना होगा तो हो जाऊंगी, पर तुम्हें अकेले कैसे छोड़ दूं,’’ कविता ने कहा और उसे किनारे होने का इशारा कर अंदर चली आई.

मुकेश लाख समझता रहा पर कविता नहीं मानी. उसे ले कर अस्पताल गई.

डाक्टर ने चैक कर कहा, ‘‘शारीरिक से ज्यादा मानसिक परेशानी है आप की. बहुत ही मामूली संक्रमण है. अस्पताल में भरती होने की आवश्यकता नहीं है. घर पर ही क्वारंटाइन रहें और जो दवाएं लिख रहा हूं उन्हें लेते रहें, जो ऐक्सरसाइज बता रहा हूं वे करते रहें, समयसमय पर भाप लेते रहें.’’

कविता कुछ दिनों के लिए मुकेश के ही फ्लैट में आ गई. उस ने उस का पूरापूरा खयाल रखा. समय पर खानापानी देना, दवा देना, भाप देने की व्यवस्था आदि सबकुछ और साथ ही घर से ही कंपनी का काम भी करती रही.

मुकेश कुछ ही सप्ताह में पूरी तरह स्वस्थ हो गया. धीरेधीरे बात उस की समझ में आ गई कि साथी का क्या मतलब होता है. अब उसे जौब भी मिल गई. अब उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता था कि बिल का भुगतान कविता करती है या वह.

कविता की निस्स्वार्थ सेवा ने उस के मन में भावनात्मक सुरक्षा भर दी थी और अब वे दोनों सुखी दांपत्य जीवन के पथ पर चलने के लिए तैयार थे.

Moral Stories in Hindi : बीमार थीं क्या

Moral Stories in Hindi : ‘‘क्याबात है मुन्नी, पीलीपीली सी क्यों लग रही हो? बीमार थीं क्या?’’ भाभी की मां ने बड़े स्नेह से सिर पर हाथ रख कर

मेरा हालचाल पूछा तो मन भीग सा गया. कोई आप के स्वास्थ्य की इतनी चिंता करे तो अच्छा लगता ही है.

‘‘अपने खानेपीने का खयाल रखा करो बेटा. औरत घर की धुरी होती है. वही अगर बीमार पड़ जाए तो पूरा घर अस्तव्यस्त हो जाता है.’’

‘‘जी, आंटीजी, तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी. पहले वायरल हो गया था. उस के बाद खांसी ने जकड़ लिया. आप सुनाइए, कैसा चल रहा है? घर में सब ठीक हैं न?’’

उन के जाने पर मैं सोच में पड़ गई कि क्या सचमुच मेरा चेहरा पीलापीला लग रहा है? अभी तो मैं भाई की शादी के लिए सजीसंवरी हूं. भारी मेकअप करने और गहनों से लदीफंदी मैं इन्हें पीली क्यों लगी? क्या मेकअप ने भी मेरा पीला रंग नहीं छिपाया?

मुझे चिंता ने घेर लिया कि कितना तो खयाल रखती हूं मैं अपनी सेहत का. फिर भी हर साल बीमार हो जाती हूं. पिछले साल भी टाइफाइड होने पर बेहद कमजोर हो गई थी. पूरे 4 महीने लग गए थे मुझे अपनेआप और घर को संभालने में. राजीव कितनी छुट्टियां लेते. हार कर उन की मां और मेरी मां को हमारा घर संभालना पड़ा था. दोनों बारीबारी से आती थीं. तब से अपना विशेष खयाल रखती हूं, क्योंकि पहले ही मैं ससुराल और मायके वालों को परेशान कर चुकी हूं.

भाभी की मां फिर मेरे पास आ कर बोलीं, ‘‘देखो बेटा, सुबहसुबह उठ कर सैर करने जाया करो. रात को 5-6 बादाम भिगो दिया करो.

सुबह छील कर शहद और अदरक के साथ लिया करो.’’

न जाने वे क्याक्या बोलती रहीं. इस का मतलब मैं अभी तक बीमार हूं. क्या राजीव मुझ से झूठ बोलते हैं? मेरे खून की जांच तो वे कराते रहते हैं. वे तो कहते हैं कि अब मेरी तबीयत पूरी तरह ठीक है. शरीर में सारे तत्त्व पूरे हैं. फिर मैं स्वयं भी कोई कमजोरी महसूस नहीं करती. भाई की शादी की तैयारी में भी मैं ने भागभाग कर सारे काम किए हैं और अभीअभी बरात के लिए तैयार हो कर आई हूं. मुझे किसी ने बताया क्यों नहीं कि मैं इतनी बीमार लग रही हूं.

तभी कोई आ गया और भाभी की मां उन से बातें करने में व्यस्त हो गईं. मैं अनमनी सी भारी कदमों से एक बार फिर भीतर वाले कमरे में चली गई. राजीव ने क्या झूठ बोला मेरे साथ? वे तो कहते थे अब हम अपना परिवार बढ़ाने के बारे में सोच सकते हैं. उस के लिए मेरी सेहत अब पूरी तरह उपयुक्त है, तो क्या राजीव ने झूठ कहा मुझ से कि मैं स्वस्थ हूं? क्या सभी

मुझ से छिपा रहे हैं मेरी बिगड़ी हालत? भैयाभाभी भी, मां भी और विजय भैया भी?

मैं स्वयं को आईने में निहारने लगी कि बीमार तो नहीं लग रही हूं मैं.

एक ही तो बहन हूं मैं अपने भाइयों की. लाडप्यार से पली. सभी सिरआंखों पर लेते हैं मुझे. मैं बीमार हूं किसी ने बताया क्यों नहीं मुझे? क्या सभी ने एकदूसरे को यह समझा रखा है कि जो भी मुझ से मिले बस यही कहे कि मैं बहुत सुंदर लग रही हूं?

अभी बाहर कार से जब मैं निकली तब दिल्ली वाले मौसाजी मिल गए. मुझे देख कर कितने खुश हुए थे, ‘‘अरे वाह, आज तो हमारी बच्ची बहुत सुंदर लग रही है… जीती रहो.’’

अगर मैं बीमार लग रही होती तो क्या मौसाजी बताते नहीं? राजीव तो बारबार तारीफ करते ही हैं मेरी परंतु उन पर अब क्या भरोसा करूं. सवाल यह नहीं है मैं कैसी लग रही हूं, सवाल यह है कि क्या मैं अब भी बीमार ही हूं?

‘‘नीलू, जरा इधर आना तो,’’ भीतर आतेआते दूल्हा बने विजय भैया बोले, ‘‘जरा सूईधागे से सेहरा पगड़ी के साथ ही सी दो… बारबार उतर रहा है. अरे वाह, कितनी सुंदर लग रही है आज मेरी गुडि़या,’’ कुछ पलों को विजय भैया अपना सेहरा संभालना भूल से गए.

मैं शीशे के सामने चुपचाप खड़ी थी. भाई के शब्दों पर आंखें भर आईं मेरी.

‘अरे, क्या हुआ है तुझे नीलू… चुपचाप सी क्यों है?’’

भैया ने पास आ कर सिर पर हाथ रखा.

‘‘क्या मैं अभी भी बीमार लगती हूं विजय भैया?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं तो. किस ने कहा तुम बीमार हो? जब थीं तब थीं अब तो ठीक हो. क्या तुम्हें स्वयं पता नहीं चलता? भागदौड़ कर सारे काम कर रही हो… क्या बीमार महसूस करती हो?’’

मैं चुपचाप सूईधागा ला कर भैया का सेहरा पगड़ी के साथ सीने लगी. तभी वहां राजीव और विजय भैया के मित्र आ गए.

‘‘यह भाभी की मां की बुरी आदत है विजय कि जिस पर भी प्यार आ रहा है उसी की सेहत खराब करती जा रही हैं… बाहर मुझे मिलीं तो कहने लगीं मैं बहुत बीमार लग रहा हूं… रंग पीला पड़ गया है… हटो जरा सामने से मैं देखूं तो कहां से पीलानीला लग रहा हूं मैं,’’ कह विजय भैया को एक तरफ कर राजीव भी शीशे में स्वयं को गौर से देखने लगे. फिर बोले, ‘‘यार, अच्छाभला तो हूं मैं. पिछले ही महीने मैं ने अपने सारे कपड़े खुलवाए हैं. अगर कमजोर होता तो सब से पहले कपड़े ही ढीले पड़ते हैं न?’’

कुछ देर और आईने में खुद को देख कर राजीव बोले, ‘‘आज तो मैं ने भी खास मेकअप किया है भई… घर का दामाद हूं मैं… अच्छीखासी पौलिश की है चेहरे पर. फिर भी मेरा रंग पीला लग रहा है. बता न विजय क्या सचुमच मैं बीमार लग रहा हूं?’’

क्षण भर को विजय भैया ने मेरा हाथ रोक दिया. मैं भी तनिक चौंकी राजीव के शब्दों पर. हम तीनों की नजरें मिलीं और फिर मिलीजुली हंसी कमरे में गूंज गई.

‘‘लगता है तुम दोनों से ही उन्हें खास प्यार है… क्या करें वे भी. तुम उन की बेटी ननद हो… सुना होगा न तुम बीमार थीं बस उसी को लक्ष्य किया होगा… मुझे भी जब मिलती हैं यही कहती हैं क्या बात है विजय बीमार हो क्या? तबीयत तो ठीक है न बड़े कमजोर लग रहे हो.’’

हंसी में उड़ गया सारा तनाव. वास्तव में कुछ लोगों का प्यार करने का यही ढंग होता है. वे आप के दुश्मन नहीं होते. बस एक तरीका होता है प्यार जताने का जबकि आप की सेहत से भी उन का कोई लेनादेना नहीं होता. वे तो मात्र अपने स्नेह और अपनत्व का प्रदर्शन करते हैं. यह अलग बात है मुझ जैसे बीमारी से उठ कर बड़ी मेहनत कर के स्वस्थ होते इंसान पर इस का विपरीत प्रभाव पड़ता है. मैं बीमार थी अब मैं स्वस्थ होना चाहती हूं. अगर वे मुझ से यही कह देतीं कि वाह नीलू, अब तुम अच्छी लग रही हो. अब कमजोर भी नहीं लग रही तो शायद मेरा उत्साह बढ़ जाता और भाई की शादी की चहलपहल में भी मैं अवसाद से न घिरती.

प्यार इस तरह क्यों व्यक्त किया जाए कि जिस से प्यार किया जा रहा हो उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़े और वह राजीव और मेरी तरह पागल होने लगे. आज के व्यस्त जीवन में जीवन जीवन ही कहां रह गया है. मशीन की तरह काम करते हैं हम पतिपत्नी… हंसने के लिए भी समय नहीं. खुश हैं कि नहीं यह भी पता नहीं चलता. मानों हंसना भी एक मशीनी क्रिया है. हंस दिए तो हंस दिए. न तो न सही.

आज दिल से सजधज कर भाई की बरात के लिए तैयार हुई तो उन के प्यार ने सब फीका कर दिया. प्यार प्यार कहां रहा वह तो गाली बन गया. भई, अच्छेभले इंसान से अगर इस तरह प्यार किया जाएगा तो उस पर मुझ जैसे इंसान वाला ही प्रभाव पड़ेगा न.

बरात चल पड़ी. खासी गर्मजोशी थी हम सब में. लड़की वालों के घर पहुंचे. जयमाला की रस्म होने लगी. दुलहन से मिलने लगे सब.

‘‘क्या बात है बेटा, बड़ी कमजोर लग रही हो, तबीयत ठीक नहीं थी क्या?’’ यह सुनाई दिया.

मुड़ कर देखा, भाभी की मां दुलहन से प्यार से पूछ रही थीं. राजीव और विजय मेरी तरफ देख मुसकराने लगे, मगर दुलहन के चेहरे पर वही भाव जो कुछ समय पहले मेरे और राजीव के चेहरे पर थे

Famous Hindi Stories : मैं थी, मैं हूं, मैं रहूंगी

Famous Hindi Stories : रितुल जैसे ही कमरे से बाहर निकली तो ऐसा लगा जैसे उस के मम्मीपापा के साथसाथ उस की 12 साला बेटी भी उसे सवालिया नजरों से देख रहे हैं. एक बार तो मन किया कि वापस कमरे में चली जाए पर कुछ सोच कर वह ठहर गई.

वह जैसे ही रसोई में घुसी तो मम्मी ने नफरत भरी नजरों से उस की तरफ देखा और कहा,”तुम्हें तो अभी तैयार होने में समय लगेगा, मैं खुद कर लूंगी.”

नहाते हुए रितुल सोच रही थी कि क्या करे वह अपनी शरीर की इस क्षुधा का? अगर वह पुरुष होती तो क्या उस से इतने सवालजवाब होते?विधवा है मगर है तो औरत ही न.अगर उसे पुरुषों का साथ भाता है तो वह क्या करे? किसी का घर तो नहीं तोड़ रही है वह… उस के बहुत से पुरुष मित्र हैं पर उस ने कभी भी कुछ चोरीछिपे नहीं किया है और न ही कभी किसी का दिल दुखाया है.

जब वह नहा कर बाहर निकली तो रितुल का मन फूल की तरह हलका हो गया था. हरी तांत वाली कौटन की साड़ी बांधती रितुल के होंठों पर मुसकराहट थिरक उठी. नलिन उसे हमेशा साड़ी में ही देखना पसंद करता था. नलिन के साथ ही तो कल उसे सुरेंद्र चाचा ने होटल से बाहर निकलते हुए देख लिया था. तुरंत छोटे भाई का फर्ज निभाते हुए मम्मीपापा को सूचित कर दिया गया था.

खींसें निपोरते हुए सुरेंद्र ने रितुल के पापा विपुल से कहा,”भैया, अपनी बेटी ऐसा करे, अच्छा नहीं लगता.कभी नलिन तो कभी सचिन, आज मैं ने देखा है कल को कोई और देखेगा तो न जाने क्याक्या बात बनाएं. मेरी बात मानें, समय रहते रितुल की दूसरी शादी कर दीजिए.”

पूरी रात रितुल को उस की मम्मी नीरजा परिवार की इज्जत की दुहाई और जवान होती बेटी की जिम्मेदारी के फर्ज के बारे में समझती रही थी. आखिरकर जब रितुल तंग आ गई तो उस ने झुंझलाते हुए कहा,”मम्मी, जब आप को 60 साल की उम्र में भी एक पुरुष संग की चाह होती है, तो बताओ मैं क्या करूं? आप एक औरत हो कर भलीभांति समझती होंगी, मैं क्या कहना चाहती हूं…”

कल रात का वाकेआ याद करते हुए नीरज सोच रही थी कि रितुल के कारण वह और विपुल अपना घर छोड़ कर यहां रह रहे हैं ताकि रितुल और उस की बेटी मीरा को अकेलापन न लगे और यह नाक कटवाने पर तुली हुई है.

रितुल ने जल्दीजल्दी अपने घुंघराले बालों पर ब्रश फेरा, उस की तरह ही उस के बाल भी एकदम कड़क और जंगली थे. किसी के काबू में नहीं आते थे.

बिना किसी से बात किए रितुल ने नाश्ता किया और मीरा से बोली,”मीरा, चलो स्कूल के लिए देर हो जाएगी.”

पूरे रास्ते मीरा अनमनी सी रही. जब रितुल ने पूछा,”बेटा, क्या हुआ है?अगर कोई बात है तो मुझ से बोल सकती हो…”

मीरा बोली,”मम्मी, आप शादी कर लीजिए.”

रितुल हंसते हुए बोली,”वह क्यों भला?”

मीरा बोली,”आप के बारे में कोई कुछ बोले तो मुझे अच्छा नहीं लगता है. मैं आराम से होस्टल में रह लूंगी.”

रितुल बोली,”तुम्हें यह सब सोचने की जरूरत नहीं है, तुम बस पढ़ाई पर ध्यान लगाओ,” रितुल ने मीरा को उतार कर कार अपने कालेज की दिशा में मोड़ दी.

रितुल एक 35 वर्षीय खूबसूरत विधवा है. महिला इसलिए नहीं है क्योंकि हमारे समाज में अगर कोई महिला विधवा या तलाकशुदा हो जाती है तो फिर वह महिला नहीं, विधवा या तलाकशुदा ही कहलाती है. रितुल का जीवनसाथी 3 साल पहले उसे बीच राह में छोड़ कर चला गया था. जाने वाला चला गया पर रितुल तो एक हाड़मांस की इंसान थी. अपनी दैहिक और मानसिक जरूरतों का वह क्या करे?

शाम को उस का डिनर सचिन के साथ था. सचिन से उस की मुलाकात एक फ्रैंड के घर पर हुई थी. सचिन पिछले 3 सालों से अपनी बीवी से अलग रह रहा था. उसे भी रितुल की बातें और उस का साथ भाता था. रितुल और औरतों से बिलकुल अलग थी. वह न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि अपने विचारों से भी स्वतंत्र थी. उन की दोस्ती को लगभग 1-2 साल हो गए थे, पर आज तक कभी भी रितुल ने उस से शादी या किसी रिश्ते के लिए दबाव नहीं बनाया था.

सचिन और रितुल ने जब डिनर खत्म किया तो रात के 10 बज रहे थे. जब रितुल घर पहुंची तो मम्मीपापा के चेहरे पर तनाव तो था पर उन्होंने कुछ नहीं कहा.

रितुल के जीवन में बहुत से मित्र थे. उस ने उन्हें महिला और पुरुष की परिधि में कभी नहीं रखा था. जब तक उस के पास बीवी का तमगा था किसी ने उस से कोई प्रश्न नहीं किया था. पर जैसे ही वह अकेली हुई उस का अपना परिवार भी उसे सवालिया निगाहों से देखने लगा था. रितुल को समझ नहीं आ रहा था कि पति के न होने से वह कैसे अपनेआप को एकदम से बदल दे?

यह ठीक है कि उस का परिवार उस की दूसरी शादी करने के लिए तैयार था. पर 50-55 साल के टूटे हुए
पुरुषों के साथ रितुल समझौता करने के लिए तैयार नहीं थी. 55 साल का पुरुष उस की मानसिक, भावनात्मक या दैहिक जरूरतें कैसे पूरी कर सकता है?अगर समझौता करना ही है तो क्यों न वह अपनी शर्तों पर करे.

जब शाम को रितुल घर पहुंची तो रितुल के पापा विपुल बोले,”रितुल बेटा, हम सब समझते हैं, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम जल्द से जल्द दूसरी शादी कर लो.”

रितुल बोली,”पापा, आप ठीक कह रहे हैं पर मैं जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करना चाहती हूं. हमारे समाज में अधिकतर विवाह आर्थिक कारणों से होते हैं और मैं आर्थिक रूप से स्वाबलंबी हूं और मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं है. अगर कोई अच्छा साथी टकराया जो मुझे पूरी तरह अपना सके तो मैं आप को बताने में बिलकुल भी गुरेज नहीं करूंगी.”

तभी रितुल की मम्मी नीरजा बोली,”रितुल, दूसरी शादी एक समझौता ही तो है.”

रितुल बोली,”मम्मी, जब समझौता ही करनी है तो यह जिंदगी ही क्या बुरी है?”

नीरजा तिलमिला कर बोली,”अब बहुत अच्छी जिंदगी नहीं जी रही हो. होटलों के कमरों में बंद, कभी नलिन तो कभी सचिन…”

रितुल मुसकराते हुए बोली,”मम्मी, आप की बेटी हूं. कभी ऐसा कोई काम नही करूंगी जिस से मुझे अपनी नजरों में ही शर्मिंदा होना पड़े. मैं न किसी के गले पड़ी हूं और न ही किसी पुरुष से किसी भी तरह का कोई फायदा उठा रही हूं. अगर ये लोग मेरे साथ और मैं इन के साथ खुशी के कुछ पल गुजार लेती हूं तो फिर इस में क्या बुरा है?”

देर रात तक रितुल प्रजैंटेशन पर काम करती रही थी. कल औफिस में नए बौस के सामने प्रजैंटेशन है. सुना था, नए बौस बेहद खङूस हैं. कभी उन्हें किसी ने हंसते हुए नहीं देखा है. नाम है यश. अगले दिन जब रितुल औफिस पहुंची तो देखा अनंत का मूड औफ था. अनंत रितुल के साथ ही उस प्रोजैक्ट पर काम कर रहा था.

रितुल को देख कर बोला,”अच्छा है, आप देर से आई हो. मुझे तो इस खङूस ने इतना सुनाया कि मेरे वारेन्यारे कर दिए.”

रितुल डरतेडरते यश के कैबिन में पहुंची तो यश बोला,”रितुल, आप आज फिर लेट हैं. औरतों के लिए नौकरी बस टाइमपास होती है, बस नारी मुक्ति के नाम पर पतियों को तंग करने का तरीका.”

रितुल बोली,”सर, मेरे पति की 3 साल पहले मौत हो चुकी है.”

यश एकाएक उसे अचरज से देखने लगा. विधवा कहां से लगती है रितुल, कितनी बनीठनी तो रहती है. हमेशा पुरुषों में घिरी रहती है. यश मन ही मन सोचने लगा कि आज प्रजैंटेशन में पता चल जाएगा कि कितनी स्किल्ड है रितुल.

बोर्ड औफ डाइरैक्टर्स के सामने रितुल ने काफी अच्छे से सारे पौइंट्स ऐक्सप्लेन किए. यश चाह कर भी कुछ नुक्स निकाल नहीं पाया था.

जब यश रात को अपने परिवार के साथ डिनर करने गया तो देखा रितुल भी उसी होटल में थी. साथ में कोई
पुरुष भी था. यश का मन खराब हो गया. ये खूबसूरत औरतें ऐसी ही होती हैं.

तभी उस ने देखा कि रितुल और वह पुरुष उस की टेबल की तरफ ही आ रहे थे. रितुल ने यश का परिचय अपने मित्र सचिन से कराया. यश सोच रहा था कि रितुल कैसे इतना खुश रहती है. क्या इसे अपने पति से कोई प्यार नहीं था जो इतनी जल्दी उसे भूल गई? उस के रहनसहन से भी ऐसा ही लगता है.

फिर सचिन और रितुल, सचिन के फ्लैट पर गए और दोनों एकाकार हो गए. घर पहुंचतेपहुंचते रात के 12 बज गए थे. धीरे से उस ने कार पार्क करी और चुपके से मीरा को बांहों में भर कर सो गई. रितुल को पता था कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो उस का प्रोमोशन हो जाएगा और वेतन भी बढ़ जाएगा. तब वह घर के लिए एक परमानैंट मैड रख लेगी. आखिर कब तक मम्मी यों ही खुद को घिसती रहेंगी.

रितुल के काम की सभी ने सराहना की थी पर प्रोमोशन अनंत को मिल गया जो रितुल को बस सहायता ही कर रहा था. रितुल ने जब यह सुना तो उसे अनंत के लिए खुशी तो हो रही थी पर उसे समझ नहीं आया कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?

यश अनंत के प्रोमोशन पर बहुत खुश था. यह सब कियाधरा आखिर उस का ही था. यश को रितुल का हर समय मुसकराते रहना बहुत अखरता था. उसे लगता था कि रितुल बहुत ड्रामा करती है. पर आज भी उस ने देखा कि रितुल अनंत के साथ मजे से लंच कर रही थी.

यश को न जानें क्यों रितुल की मुसकराहट से चिढ़ थी. उस का बननासंवरना सबकुछ उसे अखरता था. धीरेधीरे यह बात रितुल को भी समझ आ गई थी कि यश उसे पसंद नहीं करता है पर फिलहाल उस के पास इस समस्या का कोई हल नहीं था.

कंपनी अपना नया प्रोजैक्ट बैंगलुरू में लगाने जा रही थी. इसी कारण से यश और रितुल को 4 दिन के लिए बैंगलुरू भेजा जा रहा था. यश ने पुरजोर कोशिश की कि उसे रितुल के साथ न जाना पड़े पर कुछ हो नहीं पाया. एअरपोर्ट पर भी यश ने रितुल से एक सम्मानजनक दूरी बना रखी थी. रितुल ने 1-2 बार बात करने की कोशिश भी की पर वह नाकाम ही रही. रितुल के टौप का खुला गला, स्किनफिटिंग की जींस सबकुछ यश को परेशान कर रहा था. यश मन ही मन सोच रहा था कि जरूर वह उसे फंसाने की कोशिश करेगी. पूरी यात्रा के दौरान दोनों चुप ही रहे.

रात को डिनर के समय रितुल ने यश का दरवाजा खटखटाया तो न चाहते हुए भी यश को उठना पड़ा. सफेद सूट में रितुल इतनी प्यारी लग रही थी कि यश के मुंह से अचानक निकल गया,”रितुल, तुम बेहद खूबसूरत और शांत लग रही हो.”

डिनर के समय यश ने अनुभव किया कि रितुल ऐसी भी नहीं है जैसा वह समझता था. वह अपनी बेटी और मम्मीपापा का बहुत खयाल रखती है.

रितुल ने सूप पीते हुए पूछा,”सर, आप के परिवार में कौनकौन हैं?”

यश बोला,”मैं और मम्मी. अगर पूछना चाहती हो कि अब तक शादी क्यों नहीं करी तो बता देता हूं… की थी, मगर मेरी बीवी 5 साल पहले मुझे उल्लू बना कर भाग गई,” रितुल यश को चुपचाप सुनती रही.

“मेरी जिंदगी की खुशी, रंग और रौनक सब को पैरों तले रौंद कर चली गई…”

रितुल बोली,”आप गलत बोल रहे हो, वह बस आप की जिंदगी से गई है. आप ने अपनी खुशियों की बागडोर उस के हाथों में दे दी थी.”

यश तल्खी से बोला,”तुम्हारे और मेरी सिचुएशन में फर्क है.”

रितुल मुसकराते हुए बोली,”क्या फर्क, बस यही कि मैं एक विधवा हो कर भी एक रंगीन जिंदगी जीती हूं और आप की बीवी के जाने से आप का पौरूष इतना आहत हो उठा कि आप ने जीना छोड़ दिया है. आप को क्या लगता है कि मेरी जिंदगी इतनी आसान है… क्या मुझे नहीं पता है कि आप के फीडबैक के कारण ही मुझे प्रोमोशन नहीं मिला है.

“सर, मुझे रोते हुए जिंदगी गुजारना पसंद नहीं है. मेरे पति की जिंदगी खत्म हुई है पर उन के साथ मैं अपनी जिंदगी खत्म नहीं कर सकती हूं…”

तभी फोन की घंटी बजी और रितुल फोन में खो गई थी. फोन नलिन का था. जब रितुल ने फोन रख दिया तो यश बोला,”थकती नहीं हो तुम इस तरह से? क्या मजा मिलता है तुम्हें ऐसे?

रितुल बोली,”जिंदगी जीने के टौनिक हैं मेरे दोस्त.”

अगले दिन तक रितुल से यश काफी खुल गया था. मन ही मन वह सोच रहा था कि वह कितना गलत था रितुल के बारे में.

अगली रात यश और रितुल ने एकसाथ गुजारी थी और अगले दिन यश रितुल को देख कर झेंप उठा और बोला,”आई एम सौरी रितुल.”

रितुल बोली,”अरे यश, वे हम दोनों के साझे पल थे. मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं है तो तुम्हें क्यों है?”

इस औफिसियल ट्रिप ने यश का जिंदगी जीने का नजरिया ही बदल दिया था. उसे समझ आ गया था कि दुखों को गले लगा कर जिंदगी जी नहीं जा सकती है.

अब रितुल के पुरुष मित्रों में यश भी शामिल था. रितुल को अपने पुरुष मित्रों से किसी भी प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी. वे बस मिलते थे और अच्छा समय बिताते थे.

धीरेधीरे यश का मन रितुल की तरफ खींचने लगा था. रितुल को देख कर उसे जीने की प्रेरणा मिलती थी. वह उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहता था. आज रितुल ने अपने प्रोमोशन मिलने की खुशी में एक छोटी सी पार्टी आयोजित की थी. उस में उस ने अपने सभी महिला और पुरुष मित्र आमंत्रित किए थे. यश, सचिन और नलिन तीनों ही बहुत खुश थे. तीनों को रितुल पर नाज था.

पार्टी जोरशोर से चल रही थी कि तभी यश रितुल के पास आ कर बोला, “रितुल, मेरी जिंदगी का हिस्सा बनोगी?”

रितुल हंसते हुए बोली,”यह क्या कह रहे हो तुम?”

यश बोला,”सीधी बात है, तुम्हें हमसफर बनाना चाहता हूं.”

रितुल प्यार से बोली,”यश, इस रिश्ते को दोस्ती तक ही रखो, किसी नाम में बांधने की कोशिश मत करो.”

यश आहत हो कर बोला,”आखिर क्यों?”

रितुल बोली,”क्योंकि मैं अभी तैयार नही हूं.”

यश व्यंग्य कसते हुए बोला,”हां, रोज नएनए स्वाद चखने की आदत जो पड़ गई है.”

रितुल बोली,”यश, मुझे पता था तुम्हारे अंदर अहम बहुत ज्यादा है. इसी कारण से मैं तुम्हारे साथ किसी रिश्ते में बंधना नहीं चाहती हूं. मेरी न ने तुम्हारा असली चेहरा उजागर कर दिया है. मैं लता की तरह किसी पुरुषरूपी वट से लिपटना नहीं चाहती हूं.

“मैं हूं, मैं थी और मैं रहूंगी, हर रिश्ते से ऊपर,” यह कह कर रितुल साङी लहराती नलिन की तरफ चली गई. यश को मलाल आ रहा था कि अपनी सोच के कारण उस ने एक अच्छे दोस्त के साथसाथ खूबसूरत रिश्ते का गला भी घोंट दिया है.

रितुल ने पति के जाने के बाद जो संबंध बनाए वे आज की आवश्यकता हैं क्योंकि अकेले स्त्री पुरूषों की संख्या बढ़ती जा रही है.

इस बारे में पाठकों की राय आमंत्रित है. जिन की राय अच्छी है, उन्हें प्रकाशित किया जाएगा. राय व्हाट्सएप पर … नंबर या sampadak@delhipress.biz पर भेज सकते हैं.

Famous Hindi Stories : जोड़ने की टूटन

Famous Hindi Stories : ‘‘आज पप्पू लौटे तो उस से आरक्षण के लिए कहूं.’’

‘‘आप को यहां कोई तकलीफ है, अम्मांजी?’’ पत्रिका पलटते हुए प्रमिला ने सिर उठा कर पूछा.

‘‘कैसी बात करती हो. अपने घर में भी कोई तकलीफ महसूस करता है, पप्पी.’’

अपनी 3 बहुओं का बड़ी, मझली और छोटी नामकरण करने के बाद अम्मांजी ने अपने सब से छोटे पप्पू की बहू का नाम पप्पी रख लिया था.

‘‘अभी आप को आए कौन से ज्यादा दिन हुए हैं, जो जाने की सोचने लगीं. अभी तो आप कहीं घूमीं भी नहीं. हम तो यही सोचते रहे कि बरसात थमे तो श्रीनगर, पहलगाम चलें.’’

‘‘घूमना तो फिर भी होता रहेगा लेकिन अभी मेरा इलाहाबाद पहुंचना जरूरी है.’’

‘‘छोटे भाई साहब ने तो लिखा है कि अस्पताल में इंतजाम पक्का हो गया है, फिर आप जा कर क्या करेंगी?’’

‘‘तुम समझती नहीं. अस्पताल में तो बिना रोग के भी दाखिल होना पड़े तो बाकी लोगों की दौड़ ही दौड़ हो जाती है. और फिर यह तो अंधी खेती है. ठीक से निबट जाए तो कुछ भी नहीं, वैसे होने को सौ बवाल…’’

‘‘सब ठीक ही होगा. आप बहुत ऊंचनीच सोचती रहती हैं.’’

‘‘सोचना तो सभी कुछ पड़ता है. दशहरा कौन सा दूर है. फिर 20-25 दिन पहले तो पहुंचना ही चाहिए.’’

‘‘सो तो ठीक है, लेकिन यहां अकेले मेरा मन घबराएगा. यह तो सुबह के गए शाम को भी देर से ही लौटते हैं,’’ प्रमिला के चेहरे पर उद्विग्नता छा गई.

‘‘बुरा क्या मुझे नहीं लगता? लेकिन सिर्फ अपने को देख कर दुनिया कहां चलती है, बेटी? मन लगाने के सौ तरीके हैं. तुम किताब भी तो इसीलिए पढ़ती हो.’’

दोपहर को पीछे के बरामदे में बैठी प्रमिला और उस की सास में बातें हो रही थीं. प्रमिला का पति प्रदीप सेना में अफसर था और 2 साल बाद उसे जम्मू में ऐसी नियुक्ति मिली थी जहां वह परिवार को अपने साथ रख सकता था.

प्रमिला के विवाह को अभी डेढ़ वर्ष ही हुआ था और सब से छोटी बहू होने के कारण वह अम्मांजी की विशेष लाड़ली भी थी. अम्मांजी के रहने से उसे घर की चिंता भी नहीं रहती थी. उलटे वह शाम होते ही उसे टोकने लगतीं, ‘‘पप्पू आता होगा. तुम तैयार हो जाओ. कुछ देर को दोनों घूम आना.’’

प्रमिला को बड़ा आश्चर्य हुआ जब शाम को लौटने पर प्रदीप ने अम्मांजी की सीट आरक्षण की बात सुन कर जरा सा भी विरोध नहीं किया और तपाक से कह दिया, ‘‘कल जिस दिन का भी आरक्षण हो सकेगा, उसी दिन का करा दूंगा.’’

रात में पतिपत्नी में चर्चा चलने पर प्रदीप ने प्रमिला से कहा, ‘‘तुम नई हो, अम्मां को नहीं जानतीं. अम्मां की प्राथमिकताएं बड़ी स्पष्ट रहती हैं. जहां वह अपनी जरूरत समझती हैं वहां वह जरूर पहुंचती हैं. आराम और तकलीफ उन के लिए निहायत छोटी बातें हैं. बाबूजी की मृत्यु के बाद अम्मां ने अपने बूते पर ही सारे परिवार को बांध रखा है.

‘‘बड़े भैया पुलिस में हैं. उन को होली पर भी छुट्टी नहीं मिल सकती. इसलिए होली पर सब भाइयों को बड़े भैया के पास पहुंचना पड़ता है, चाहे एक ही दिन को सही. तुम्हारा नया घर व्यवस्थित होना था इसलिए तुम्हारे पास आ गईं. अब छोटी भाभी के पास उन का रहना जरूरी है तो इलाहाबाद जा रही हैं.

‘‘तुम ने शायद ध्यान दिया हो कि अभी 3 महीने पहले बड़े भैया भ्रमण के लिए दक्षिण गए थे. किराया तो खैर सरकार ने दे दिया, लेकिन होटलों में ठहरने आदि में खर्चा अधिक हो गया और लाख चाहने पर भी किसी के लिए वहां की कोई चीज नहीं ला सके.

‘‘लेकिन बड़ी भाभी, दीदी के लिए कांजीवरम की एक साड़ी फिर भी खरीद ही लाईं. पता है क्यों? दीदी की जब शादी हुई थी तब तंगी की हालत थी. हम सब लोग पढ़ रहे थे, इसलिए उन की शादी अच्छे घर में नहीं हो सकी. जीजाजी इतनी लंबी नौकरी के बाद अभी तक बड़े बाबू ही तो हैं.

‘‘हम सभी को यह लगता है कि दीदी के साथ न्याय नहीं हुआ. आज बाबूजी के आशीर्वाद से हम सभी भाई अच्छेअच्छे पदों पर हैं, इसलिए उस का थोड़ाबहुत प्रतिकार करना चाहते हैं. होली, दीवाली, भाईदूज और रक्षाबंधन की साल में 3 साडि़यां तो हर भाई दीदी को देता ही है. फिर उन के बच्चों के लिए भी बराबर कुछ न कुछ दिया ही जाता है.

‘‘कोई भी कहीं बाहर से कोई चीज लाए तो पहले दीदी के लिए सब से बढि़या चीज लाता है. भाइयों से कुछ चूक होने भी लगे तो भाभियां पहले आगे बढ़ जाती हैं.

‘‘बड़ी भाभी तो बिलकुल अम्मांजी का प्रतिरूप हैं. मझली भाभी शुरू में जरूर कुछ कसमसाती थीं, लेकिन जब मझले भैया से कोई प्रोत्साहन नहीं मिला तो वह भी परिवार की लीक पर चलने लगीं. दीदी तो पचासों बार कह चुकी हैं कि शादी हो जाने के बाद भी उन्हें लगता ही नहीं कि वह इस घर से कट कर किसी दूसरे घर की हो गई हैं. अपने लिए साडि़यां तो उन्होंने कभी खरीदी ही नहीं. साल में एकडेढ़ दरजन साडि़यां तो उन्हें मिल ही जाती हैं.’’

‘‘दीदी हैं भी तो बड़े स्नेही स्वभाव की, बच्चों पर तो जान दिए फिरती हैं,’’ प्रमिला ने पति की बात में आगे जोड़ा.

‘‘तभी तो बच्चे बीमार पड़ते ही बूआजी की रट लगाते हैं. दीदी को कहीं सपने में भी किसी की तकलीफ की भनक मिल जाए तो दौड़ी चली आएंगी. इतनी दूरदूर रह कर भी कभी लगता ही नहीं कि हम लोग अलग हैं. अम्मां जिसे जहां जाने को कह दें वह वहीं दौड़ जाएगा, जरा भी आनाकानी नहीं करेगा.

‘‘एक बार मझले भैया को मोतीझरा बुखार हुआ था. अम्मां उन के पास थीं. तभी छोटे भैया को ट्रेनिंग पर जाना पड़ा. छोटी भाभी को धवल की पढ़ाई की वजह से रुकना पड़ा. मकान बहुत सुरक्षित नहीं था और छोटी भाभी हैं भी कुछ डरपोक स्वभाव की.

‘‘अम्मां वहां जा नहीं सकती थीं. उन्होंने बड़ी भाभी को लिखा कि वह छोटी भाभी के पास जा कर रहें, क्योंकि उन के यहां तो पुलिस का पहरेदार रहता ही है और बड़े बच्चों को बड़े भैया पर छोड़ देने में कोई दिक्कत नहीं होगी, अत: बड़ी भाभी न चाहते हुए भी छोटी भाभी के पास चली गईं.’’

प्रदीप अपनी रौ में न जाने क्याक्या कहता चला जा रहा था कि प्रमिला ने उनींदेपन से करवट बदलते हुए कहा, ‘‘अब बहुत हो लिया परिवार पुराण. आखिर सोना है कि नहीं?’’

अम्मांजी के इलाहाबाद जाने के 10 दिन बाद ही प्रदीप को तार मिला कि छोटी भाभी ने एक कन्या को जन्म दिया है और प्रसव में कोई दिक्कत भी नहीं हुई. इस खबर से दोनों ही निश्चिंत तो हुए, परंतु प्रमिला को नवजात शिशु के लिए नए डिजाइन के छोटेछोटे कपड़े सीने का शौक सवार हो गया. वह अनेक रंगबिरंगी पुस्तिकाएं और पत्रिकाएं उलटनेपलटने लगी.

अभी इलाहाबाद जाने का कार्यक्रम बना भी नहीं था कि झांसी से सूचना मिली कि मझले भैया प्रफुल्ल के लड़के मधुप को स्कूटर दुर्घटना में गंभीर चोटें आई हैं. प्रदीप और प्रमिला दोनों ही उसे देखने झांसी पहुंचे तो वहां अम्मांजी सदा की भांति सेवा में तत्पर थीं. देखते ही बोलीं, ‘‘सवा महीना बीतने पर छोटी बहू की लड़की का नामकरण संस्कार करने की सोच ही रही थी कि यहां से फोन आ गया कि मधुप के हाथपैर स्कूटर दुर्घटना में टूट गए हैं.

‘‘फौरन रात की गाड़ी से ही चल कर सुबह यहां पहुंची तो लड़का अस्पताल में कराह रहा था. वह तो खैर हुई कि जान बच गई. 2 जगह पैर की और एक जगह हाथ की हड्डियां टूटी हैं. प्लास्टर चढ़ा है तो क्या 6 हफ्ते से पहले थोड़े ही काटेंगे डाक्टर. दमदिलासा चाहे जैसा दे लें.’’

प्रमिला को यह देख कर कुछ विचित्र सा लगा कि मझली भाभी तो आनेजाने वाले मेहमानों और हितैषियों की खातिरखिदमत में अधिक लगी रहतीं और मधुप के पाखानेपेशाब से ले कर उसे हिलानेडुलाने तथा चादर बदलने तक का सारा काम अम्मांजी करतीं. किसकिस समय कौनकौन सी दवा दी जाती है, इस की पूरी जानकारी भी घर भर में अम्मांजी को ही थी. मझली भाभी तो अम्मांजी को सुबहशाम नहानेधोने की फुरसत देने के लिए ही मधुप के पास बैठतीं और कुछ बातचीत करतीं.

प्रदीप की छुट्टियां कम थीं. वह जब चलने लगा तो प्रमिला स्वयं ही बोली, ‘‘सोचती हूं इस बार दशहरा, दीवाली के त्योहार यहीं पर कर लूं. अगर हो सके तो तुम दीवाली को, चाहे एक दिन को ही, आ जाना. उस दिन तुम्हारे बिना मुझे बहुत बुरा लगेगा.’’

लेकिन अंतिम वाक्य कह कर वह स्वयं ही लजा गई. प्रदीप दाएं हाथ से उसे अपने नजदीक करता हुआ बोला, ‘‘खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग पकड़ता है. अब आना तो पड़ेगा ही.’’

और प्रमिला गुलाबीगुलाबी हो गई.

डेढ़ महीने बाद मधुप का प्लास्टर तो कट गया लेकिन न तो पैर और न हाथ ही पूरी तरह सीधा हो पाता था. डाक्टरों ने बताया कि हड्डियां तो ठीक से जुड़ गई हैं, लेकिन इतने समय एक ही जगह बंधे रहने से मांसपेशियां कड़ी पड़ गई हैं, जिन्हें नरम करने के लिए दिन में 3-4 बार नमक मिले गरम पानी से सिंकाई करनी होगी और सिंकाई  के बाद हलकीहलकी मालिश करने के लिए एक क्रीम भी बता दी.

अम्मांजी नियमित रूप से मधुप के हाथपैरों की सिंकाई करतीं और बड़े हलके हाथ से क्रीम लगा देतीं. वह भी और किसी के हाथ से क्रीम नहीं लगवाता था. हर किसी के हाथ से उसे दर्द होता था. हर बार दादी को ही पुकारता था. कभीकभी उस को बेचैनी होती तो कहता, ‘‘दादी, अब मेरे हाथपैर पहले जैसे तो होने से रहे. यों ही लंगड़ा कर चलना पड़ेगा.’’

लेकिन अम्मांजी तुरंत प्रतिवाद करते हुए उसे दिलासा देतीं, ‘‘तू तो बड़ा बहादुर बेटा है. बहादुर बेटे कहीं ऐसी बात करते हैं. तू थोड़ा धीरज रख. चलना तो क्या, तू तो फुटबाल तक खेलता फिरेगा.’’

इस घटना को बीते सालों हो गए हैं. मधुप आज भी कहता है कि वह अपनी दादी के सतत परिश्रम से ही चलनेफिरने योग्य बन सका है.

गरमियों में सविता दीदी की सब से बड़ी लड़की मंजुला की शादी निश्चित हो गई. लड़का भी अच्छा ही मिल गया. वह तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग में किसी अच्छे पद पर था. यह रिश्ता तय होने से परिवार में सभी को बड़ी प्रसन्नता हुई. शादी में कौनकौन जाएगा और भात में क्याक्या देना होगा, यह सभी अम्मांजी ने चुटकी बजाते तय कर दिया.

‘‘प्रदीप पहले ही काफी छुट्टियां ले चुका है इसलिए उसे तो छुट्टी मिलने से रही. मझले प्रफुल्ल झांसी में हैं. वह भात के लिए चंदेरी से साडि़यां लाए, मर्दाने कपड़ों की व्यवस्था बड़े प्रसून करेंगे. प्रभात और उस की बहू शादी में भात ले कर जाएंगे. इसलिए वहां टीका व नजरन्योछावर करने में जो नकद खर्च करना होगा, उसे वह करेंगे. शादी के लिए अपनी फौजी कैंटीन से सामान जुटाने का जिम्मा प्रदीप का रहेगा,’’ अम्मांजी ने ऐसा ही तय किया और फिर ऐसा ही हुआ. इसी कारण इस शादी की चर्चा रिश्तेदारों में बहुत दिनों तक होती रही.

मंजुला के विवाह का उल्लास अभी परिवार पर छाया ही था कि क्रूर काल ने बाज की तरह एक झपट्टा मारा और मंजुला के पिता हेमंत बिना किसी लंबी बीमारी के एक ही दौरे में चल बसे. सारा परिवार सन्न रह गया. सविता दीदी के वैधव्य को ले कर सभी मर्माहत हो गए. सविता दीदी के बड़े लड़के विशाल ने एम.ए. की परीक्षा दी थी. छोटा तुषार तो बी.ए. में ही पहुंचा था.

पीडि़त परिवार की सहायता के लिए हेमंत के प्रतिष्ठान ने विशाल को क्लर्क की नौकरी देने की पेशकश की परंतु बड़े भैया प्रसून इस के लिए तैयार नहीं हुए. उन्होंने कहा, ‘‘अगर अभी से क्लर्की का पल्लू पकड़ लिया तो जिंदगी भर क्लर्क ही बना रहेगा. इस से अच्छा है कि विशाल मेरे पास रह कर एम.बी.ए. करे. उस के बाद उसे कोई न कोई अच्छी नौकरी अवश्य मिल जाएगी.’’

इस के बाद सविता दीदी भी अधिकांश समय प्रसून के पास ही रहतीं, यद्यपि अन्य भाइयों का भी प्रबल आग्रह रहता कि सविता दीदी कुछ समय उन के पास ही रहें. पिता के देहावसान ने विशाल को और अधिक परिश्रम करने को प्रेरित किया और वह एम.बी.ए. की परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ. इस के फलस्वरूप उसे एक अच्छी कंपनी में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आसानी से नौकरी मिल गई.

तुषार भी इस बीच एम.ए. में आ गया था लेकिन उस पर सरकारी नौकरियों का मोह सवार था और वह अभी से प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी करने लगा था.

बिरादरी और परिचितों में इस परिवार को बड़ी ईर्ष्या किंतु सम्मान से देखा जाता था. कुछ लोग चिढ़ कर कहते, ‘‘जब तक सब भाइयों में सुमति है तभी तक का खेल है, वरना बड़ेबड़े परिवारों को भी टूटने में क्या देर लगी?’’

इस तरह की अनेक बातें अम्मांजी के कानों में भी पहुंचतीं परंतु वह बड़ी शांति से कहतीं, ‘‘संयुक्त परिवार तो तभी चलता है जब परिवार का प्रत्येक सदस्य उस की उन्नति के लिए भरपूर सहयोग दे और अपने निजी स्वार्थ को अधिक महत्त्व न दे. आपसी नोचखसोट और छीनाझपटी शुरू होते ही संयुक्त परिवार बिखर जाता है.’’

हेमंत की मृत्यु के बाद से अम्मांजी काफी चुप रहने लगी थीं परंतु अपने काम में उन्होंने कोई शिथिलता नहीं आने दी थी. अभी भी वह पहले की तरह जहांतहां पहुंचती रहती थीं. प्रसून के हर्निया के आपरेशन के सिलसिले में वह उस के पास आई हुई थीं. आपरेशन ठीक से हो गया था और प्रसून अस्पताल से घर आ चुका था, लेकिन इस बार अम्मांजी की तबीयत कुछ डगमगा गई थी. पड़ोस की एक महिला उन से मिलने आईं तो बोलीं, ‘‘बहनजी, मैं तो आप को 1 साल के बाद देख रही हूं. अब आप काफी टूटी हुई सी लगती हैं.’’

अम्मांजी कुछ देर तो चुप रहीं. फिर कुछ सोचती हुई बोलीं, ‘‘बहनजी, औरत हर बच्चे को जन्म देने में टूटती है, लेकिन स्त्रीपुरुष के संबंधों की कंक्रीट से जुड़ाई बच्चे से ही होती है. वैसे ही परिवार को जोड़े रखने में भी इनसान को कहीं न कहीं टूटना पड़ता है. लेकिन इस जोड़ने की टूटन की पीड़ा बड़ी मीठीमीठी होती है, बिलकुल प्रसव वेदना की तरह.’’

Best Hindi Stories : खाली जगह – क्या दूर हुआ वंदना का शक

Best Hindi Stories : तेजसिरदर्द होने का बहाना बना कर मैं रविवार की सुबह बिस्तर से नहीं उठी. अपने पति समीर की पिछली रात की हरकत याद आते ही मेरे मन में गुस्से की तेज लहर उठ जाती थी.

‘‘तुम आराम से लेटी रहो, वंदना. मैं सब संभाल लूंगा,’’ ऐसा कह कर परेशान नजर आते समीर बच्चों के कमरे में चल गए.

उन को परेशान देख कर मुझे अजीब सी शांति महसूस हुई. मैं तो चाहती ही थी कि मयंक और मानसी के सारे काम करने में आज जनाब को आटेदाल का भाव पता लग जाए.

अफसोस, मेरे मन की यह इच्छा पूरी नहीं हुई. उन तीनों ने बाहर से मंगाया नाश्ता कर लिया. बाद में समीर के साथ वे दोनों खूब शोर मचाते हुए नहाए. अपने मनपसंद कपड़े पहनने के चक्कर में उन दोनों ने सारी अलमारी उलटपुलट कर दी है, यह देख कर मेरा बहुत खून फूंका.

बाद में वे तीनों ड्राइंगरूम में वीडियो गेम खेलने लगे. उन के हंसनेबोलने की आवाजे मेरी चिढ़ व गुस्से को और बढ़ा रही थीं. कुछ देर बाद जब समीर ने दोनों को होम वर्क कराते हुए जोर से कई बार डांटा, तो मुझे उन का कठोर व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगा.

अपने मन में भरे गुस्से व बेचैनी के कारण मैं रात भर ढंग से सो नहीं सकी. इसलिए 11 बजे के करीब कुछ देर को मेरी आंख लग गई.

मेरी पड़ोसिन सरिता मेरी अच्छी सहेली है. समीर से उसे मालूम पड़ा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, तो उस ने अपने यहां से लंच भिजवाने का वादा कर लिया.

जब दोपहर 2 बजे के करीब मेरी आंख खुली तो पाया कि ये तीनों सरिता के हाथ का बना लंच कर भी चुके हैं. बच्चों द्वारा देखे जा रहे कार्टून चैनल की ऊंची आवाज मेरा गुस्सा और चिड़चिड़ापन लगातार बढ़ाने लगी थी.

‘‘टीवी की आवाज कम करोगे या मैं वहीं आ कर इसे फोड़ दूं?’’ मेरी दहाड़ सुनते ही दोनों बच्चों ने टीवी बंद ही कर दिया और अपनेअपने टैबलेट में घुए गए.

कुछ देर बाद समीर सहमे हुए से कमरे में आए और मुझ से पूछा, ‘‘सिरदर्द कैसा है, वंदना?’’

‘‘आप को मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है और मुझे बारबार आ कर परेशान मत करो,’’ रूखे अंदाज में ऐसा जवाब दे कर मैं ने उन की तरफ पीठ कर ली.

शाम को मेरे बुलावे पर मेरी सब से अच्छी सहेली रितु मुझ से मिलने आई. कालेज

के दिनों से ही अपने सारे सुखदुख मैं उस के साथ बांटती आई हूं.

मुझे रितु के हवाले कर वे तीनों पास के पार्क में मौजमस्ती करने चले गए.

रितु के सामने मैं ने अपना दिल खोल कर रख दिया. खूब आंसू बहाने के बाद मेरा मन बड़ी हद तक हलका और शांत हो गया था.

फिर रितु ने मुझे समझने का काम शुरू किया. वह आधे घंटे तक लगातार बोलती रही. उस के मुंह से निकले हर शब्द को मैं ने बड़े ध्यान से सुना.

उस के समझने ने सचमुच जादू सा कर दिया था. बहुत हलके मन से मुसकराते हुए मैं ने घंटे भर बाद उसे विदा किया.

उस के जाने के 10 मिनट के बाद मैं ने समीर के मोबाइल का नंबर अपने मोबाइल से मिला कर बात करी.

‘‘पार्क में घूमने आई सुंदर लड़कियों को देख कर अगर मन भर गया हो, तो घर लौट आइए, जनाब,’’ मैं उन्हें छेड़ने वाले अंदाज में बोली.

‘‘मैं लड़कियों को ताड़ने नहीं बल्कि बच्चों के साथ खेलने आया हूं,’’ उन्होंने फौरन सफाई दी.

‘‘कितनी आसानी से तुम मर्द लोग झठ बोल लेते हो. जींस और लाल टौप पहन कर आई लंबी लड़की का पीछा जनाब की नजरें लगातार कर रही हैं या नहीं?’’

‘‘वैसी लड़की यहां है, पर मेरी उस में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘आप की दिलचस्पी अपनी पत्नी में तो

है न?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि मैं सुबह से भूखी हूं. कुछ खिलवा दो, सरकार.’’

‘‘बोलो क्या खाओगी?’’

‘‘जो मैं कहूंगी, वह खिलाओगे?’’

‘‘श्योर.’’

‘‘अपने हाथ से खिलाओगे?’’

‘‘अपने हाथ से भी खिला देंगे, मैडम,’’ मेरी मस्ती भरी आवाज से प्रभावित हो कर उन की आवाज में भी खुशी के भाव झलक उठे थे.

‘‘मुझे हजरत गंज में जलेबियां खानी हैं.’’

‘‘मैं बच्चों को घर छोड़ कर तुम्हारे लिए जलेबी लाने चला जाऊंगा.’’

‘‘हम सब साथ चलते हैं.’’

‘‘तो तुम पार्क में आ जाओ.’’

‘‘मैं पार्क में आ चुकी हूं. आप बाईं तरफ  नजरे उठा कर जरा देखिए तो सही,’’ यह डायलौग बोल कर मैं ने फोन बंद किया और खिलखिला कर हंस पड़ी.

मेरी हंसी सुन कर उन्होंने बाईं तरफ गरदन घुमाई तो मुझे सामने खड़ा पाया. मयंक और मानसी ने मुझे देखा तो भागते हुए पास आए और मुझ से लिपट कर अपनी खुशी जाहिर करी.

‘‘तुम्हारी तबीयत कैसी है?’’ समीर ने मेरा हाथ पकड़ कर कोमल लहजे में पूछा.

‘‘वैसे बिलकुल ठीक है, पर भूख के मारे दम निकला जा रहा है. हजरत गंज की दुकान की तरफ चलें, स्वीटहार्ट?’’ उन के गाल को प्यार से सहला कर मैं हंसी तो वे शरमा गए.

मानसी और मयंक अभी कुछ देर और अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहते थे. उन की देखभाल करने की जिम्मेदारी अपने पड़ोसी अमनजी के ऊपर डाल कर हम दोनों कार निकाल कर बाजार की तरफ  निकल लिए.

कुछ देर बाद जलेबियां मुझे अपने हाथ से खिलाते हुए वे खूब शरमा रहे थे.

‘‘तुम कभीकभी कैसे अजीब से काम कराने की जिद पकड़ लेती हो,’’ वो बारबार इधरउधर देख रहे थे कि कहीं कोई जानपहचान वाला मुझे यों प्यार से जलेबियां खिलाते देख न रहा हो.

‘‘मेरे सरकार, रोमांस और मौजमस्ती करने का कोई मौका इंसान को नहीं चूकना चाहिए,’’ ऐसा कह कर जब मैं ने रस में नहाई उन की उंगलियों को प्यार से चूमा तो उन की आंखों में मेरे लिए प्यार के भाव गहरा उठे.

बाजार से लौटते हुए मैं फिटनैस वर्ल्ड नाम के जिम के सामने रुकी और समीर से बड़ी मीठी आवाज में कहा, ‘‘इस जिम में मेरी 3 महीने की फीस के क्व10 हजार आप जमा करा दो, प्लीज.’’

‘‘तुम जिम जौइन करोगी?’’ उन्होंने हैरान हो कर पूछा.

‘‘अगर आप फीस जमा करा दोगे, तो जरूर यहां आना चाहूंगी.’’

‘‘कुछ दिनों में अगर तुम्हारा जोश खत्म हो गया, तो सारे पैसे बेकार जाएंगे.’’

‘‘यह मेरा वादा रहा कि मैं एक दिन भी नागा नहीं करूंगी.’’

‘‘इस वक्त तो मेरे पर्स में क्व10 हजार नहीं होंगे.’’

‘‘मैं आप की चैक बुक लाई हूं न,’’ अपना बैग थपथपा कर यह दर्शा दिया कि उन की चैक बुक उस में रखी हुई है.

‘‘पहले घर पहुंच कर इस बारे में अच्छी तरह से सोचविचार तो कर…’’

‘‘अब टालो मत,’’ मैं ने उन का हाथ

पकड़ा और जिम के गेट की तरफ बढ़ चली, ‘‘क्या मेरा शेप में आना आप को अच्छा नहीं लगेगा?’’

‘‘बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन तुम अगर नियमित रूप से यहां…’’ड्ड

‘‘जरूर आया करूंगी,’’ मैं ने प्यार से उन का हाथ दबा कर उन्हें चुप करा दिया.

जिम की फीस जमा करा कर जब हम बाहर आ गए तो मैं ने उन्हें एक और झटका दिया, ‘‘अगले महीने मेरा जन्मदिन है और तब मुझे अपने लिए तगड़ी शौपिंग करनी है.’’

‘‘किस चीज की?’’ उन्होंने चौंक कर पूछा.

‘‘कई सारी नई ड्रैस खरीदनी हैं और आप को मेरे साथ चलना पड़ेगा. मैं वही कपड़े खरीदूंगी जो आप को पसंद आएंगे. वजन कम हो जाने के बाद मैं ऐसी ड्रैस पहनना चाहूंगी कि आप मुझे देख कर सीटी बजा उठें.’’

मेरे गाल पर प्यार से चुटकी काटते हुए वे बोले, ‘‘तुम्हारी बातें सुन कर आज मुझे

कालेज के दिनों की याद आ गई.’’

‘‘वह कैसे?’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘तुम उसी अंदाज में मेरे साथ फ्लर्ट कर रही हो जैसे शादी से पहले किया करती थी,’’ उन की आंखों में अपने लिए प्यार के गहरे भाव पढ़ कर मैं ने मन ही मन अपनी सहेली रितु को दिल से धन्यवाद दिया.

मेरे व्यवहार में आया चुलबुला परिवर्तन रितु के समझने का ही नतीजा था.

शाम को उस के आते ही मैं ने उसे वह सारी घटना अपनी आंखों में आंसू भर कर सुना दी जिस ने मेरे दिल को पिछली रात की पार्टी में बुरी तरह से जख्मी किया था.

उस ने समीर के प्रति मेरी सारी शिकायतें सुनी और फिर सहानुभूति दर्शाने के बजाय चुभते स्वर में पूछा, ‘‘मुझे यह बता कि पिछली बार तू सिर्फ समीर की खुशी के लिए कब बढि़या तरीके से सजधज कर तैयार हुई थी?’’

‘‘मैं नईनवेली दुलहन नहीं बल्कि 2 बच्चों की मां हो गई हूं. जब मेरे घर के काम ही नहीं खत्म होते तो सजनेसंवरने की फुरसत कहां से मिलेगी?’’ मैं ने चिढ़ कर उलटा सवाल पूछा.

‘‘फुरसत तुझे निकालनी चाहिए, वंदना. समीर से नाराज हो कर आज तूने खाना नहीं बनाया तो क्या तेरे बच्चे भूखे रहे?’’

‘‘नहीं, बाजार और मेरी सहेली सरिता की बदौलत इन तीनों ने डट कर पेट पूजा करी थी.’’

‘‘समीर ने रोतेझंकते हुए ही सही, पर बिना तेरी सहायता के दोनों बच्चों की देखभाल व उन्हें होमवर्क कराने का काम पूरा कर ही लिया था न.’’

‘‘तू कहना क्या चाह रही है?’’ मेरा मन उलझन का शिकार बनता जा रहा था.

‘‘यही कि इंसान की जिंदगी में कोई जरूरी काम रुकता नहीं है. समीर को तन

की सुखसुविधा के साथसाथ मन की खुशियां भी चाहिए. देख, अगर तू कुशल पत्नी की भूमिका निभाने के साथसाथ उस के दिल की रानी बन कर नहीं रहेगी, तो उस खाली जगह को कोई और स्त्री भर सकती है. कोई जवाब है तेरे पास इस सवाल का कि सिर्फ 33 साल की उम्र में क्यों इतनी बेडौल हो कर तूने अपने रूप का सारा आकर्षण खो दिया है?’’

‘‘बच्चे हो जाने के बाद वजन को कंट्रोल में रखना आसान नहीं होता है,’’ मैं ने चिढ़े लहजे में सफाई दी.

‘‘अगर समीर की खुशियों को ध्यान में रख कर दिल से मेहनत करेगी, तो तुम्हारा वजन जरूर कम हो जाएगा. तू मेरे एक सवाल का जवाब दे. कौन स्वस्थ पुरुष नहीं चाहेगा कि उस की जिंदगी में सुंदर व आकर्षक दिखने वाली स्त्री न हो?’’

मुझ से कोई जवाब देते नहीं बना तो वह भावुक हो कर बोली, ‘‘तू मुझ से अभी वादा कर कि तू फिर से अपने विवाहित जीवन में रोमांस लौटा लाएगी. घर की जिम्मेदारियां उठाते हुए भी अपने व्यक्तित्व के आकर्षण को बनाए रखने के प्रति सजग रहेगी.’’

उस की आंखों में छलक आए आंसुओं ने मुझे झकझेर दिया. उस के समझने का ऐसा असर हुआ कि इस मामले में मुझे अपनी कमी साफ नजर आने लगी थी.

‘‘रितु, मैं अब से अपने रखरखाव का पूरा ध्यान रखूंगी. कोई शिखा कल को इन की जिंदगी में आ कर मेरी जगह ले, इस की नौबत मैं कभी नहीं आने दूंगी. थैंक यू, मेरी प्यारी सहेली,’’ उस के गले लग कर मैं ने अपने अंदर बदलाव लाने का दिल से वादा कर लिया.

समीर और मैं बड़े अच्छे मूड में घर पहुंचे. कुछ देर बाद मानसी और मयंक भी अमनजी के घर से लौट आए.

मैं ने सब को बहुत जायकेदार पुलाव बना कर खिलाया. समीर को अपने साथ किचन में खड़ा रख मैं उन से खूब बतियाती रही थी.

खाना खाते हुए समीर ने मेरी प्लेट में थोड़ा सा पुलाव देख कर पूछा, ‘‘तुम आज इतना कम क्यों खा रही हो?’’

‘‘इस चरबी को कम करने के लिए अब से मैं कम ही खाया करूंगी. महीने भर बाद मेरी फिगर तुम्हारी किसी भी सहेली की फिगर से कम आकर्षक नहीं दिखेगी,’’ मैं ने बड़े स्टाइल से उन के सवाल का जवाब दिया.

‘‘मेरी कोई सहेली नहीं है,’’ उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘रखो मेरे सिर पर हाथ कि तुम्हारी कोई सहेली नहीं है,’’ मैं ने उन का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया.

‘‘मैं सच कहता हूं कि मेरी कोई सहेली

नहीं है,’’ उन्होंने सहजता से जवाब दिया तो मैं किलस उठी.

‘‘तो कल रात की पार्टी में बाहर लौन में अपने साथ काम करने वाली उस चुड़ैल शिखा का हाथ पकड़ कर क्या उसे रामायण सुना रहे थे?’’ मेरे दिलोदिमाग में पिछली रात से हलचल मचा रही शिकायत आखिरकार मेरी जबान पर आ ही गई.

‘‘ओह, तो क्या अब तुम मेरी जासूसी करने लगी हो?’’ उन्होंने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘जी नहीं, जब आप उस के साथ इश्क लड़ा रहे थे, तब मैं अचानक से खिड़की के पास ठंडी हवा का आनंद लेने आई थी.’’

‘‘तुम जानना चाहेगी कि मैं ने उस का हाथ क्यों पकड़ा हुआ था?’’ वे बहुत गंभीर नजर आने लगे थे.

‘‘मुझे आप के मुंह से मनघड़ंत कहानी नहीं सुननी है. बस, आप मेरी एक बात

कान खोल कर सुन लो. अगर आप ने उस के साथ इश्क का चक्कर चला कर मुझे रिश्तेदारों व परिचितों के बीच हंसी का पात्र बनवा कर अपमानित कराया, तो मैं आत्महत्या कर लूंगी,’’ भावावेश के कारण मेरी अवाज कांप रही थी.

उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कोमल लहजे में कहा, ‘‘अपने फ्लैट की डाउन पेमेंट करने के लिए जो 5 लाख रुपए कम पड़ रहे थे, उन्हें हम उधार देने के लिए शिखा ने अपने पति को तैयार कर लिया है. कल रात मैं शिखा का हाथ पकड़ कर उसे हमारी इतनी बड़ी हैल्प करने के लिए धन्यवाद दे रहा था और तुम न जाने क्या समझ बैठी. क्या तुम मुझे कमजोर चरित्र वाला इंसान मानती हो?’’

उन का आहत स्वर मुझे एकदम से शर्मिंदा कर गया, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज,’’ उन का मूड बहुत जल्दी से ठीक करने के लिए मैं ने फौरन उन से हाथ जोड़ कर माफी मांग ली.

‘‘आज इतनी आसानी से तुम्हें माफी नहीं मिलेगी,’’ मेरा हाथ चूमते हुए उन की आंखों में शरारत के भाव उभर आए.

‘‘तो माफी पाने के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा?’’ मैं ने इतराते हुए पूछा.

मेरे कान के पास मुंह ला कर उन्होंने अपने मन की जो इच्छा जाहिर करी, उसे सुन कर मैं शरमा उठी. उन्होंने प्यार दिखाते हुए मेरे गाल पर चुंबन भी अंकित कर दिया तो मैं जोर से लजा उठी.

मानसी और मयंक की शरारत भरी नजरों का सामना करने के बजाय मैं ने समीर की छाती से लिपट जाना ही बेहतर समझ.

Lifestyle: जहां मदद करने के बाद आप फंस जाओ

Lifestyle: बीमारी या दुर्घटना कहकर नहीं आती मगर महंगे इलाज के लिए रकम जुटाना किसी के लिए भी मुश्किल हो सकता है. कोई दोस्त या रिश्तेदार इलाज के लिए मदद करने को कहे तो इसके लिए कभी मना ना करें. इसी तरह अगर कोई मित्र कोर्ट कचहरी के किसी केस में गलत तरीके से फंस गया है तो उसकी मदद जरूर करें. अगर कोई बच्चा होनहार है और आगे पड़ना चाहता है लेकिन फीस देने में सक्षम नहीं है तो उसकी हेल्प करें.

लेकिन कई बार देखने में आता है कि हम जरुरत ना होने पर भी पहुँच जाते हैं किसी की भी मदद करने और फिर बाद में खुदी परेशां भी होते हैं. इसलिए मदद करना बुरा नहीं है Enturisam समाज मदद करने से बनता है लेकिन मदद करने से पहले भी सोचा जाना चाहिए कि क्या वाकई यहाँ मदद करना बनता है या में बेकार ही मदद करके फंस रहा हूँ.

Enturisam समाज कब बनता है?

Enturisam समाज तब चलता है जब हम एक दूसरे की मदद करते हैं. लेकिन वो हेल्प तब होती है जब सब एक दूसरे की हेल्प कर रहें हो. आप अकेले ही बेफकूफ ना बने सामने वाला आपको तवज्जो ही नहीं दे रहा है और आप हेल्प करें जा रहें हैं. आप अकेले ही ये जिम्मेवारी ज्यादा समय तक नहीं उठा सकते. वो बोझ बन जाएगी. जैसे कि आपने अपनी सोसाइटी में ओल्ड आगे असोसिएशन बनाई और हर जरूरतमंद का बीड़ा आपने अपने कन्धों पर उठा लिया. लेकिन बाकी लोग इन्वॉल्व ही नहीं हो रहें हर काम के लिए आपको आगे कर देते हैं. जबकी अगर किसी एक फैमिली को डॉक्टर के जाने की जरूत है तो आज उसे आप लें गए और अगली बार कोई और लेकिन कोई और सामने आ ही नहीं रहा तो आप अकेले ये सब कब तक कर पाएंगे. इसे चलने के लिए सबके साथ और सहयोग की जरुरत होती है.

हेल्प मांगने पर ही हेल्प करें

कई बार किसी को मदद की जरुरत भी नहीं होती और हम उसकी सिचुएशन देखकर पहुँच जाते हैं मदद करने. ऐसे में कई बार सुनने को भी मिल जाता है भाईसाहब ये हमारे घर का मामला है हम निबटा लेंगें कृपया आप बीच में ना पड़ें. ऐसे में आप अपना सा मुँह लेके आ जाते हैं. ऐसा कई बार अजनबियों की मदद करने पर भी होता है जैसे की :

जिसने मुसीबत में आपका साथ नहीं दिया उसकी हेल्प ना करें

अगर आपने कभी किसी की मदद की लेकिन जरुरत पड़ने पर उस व्यक्ति ने आपको पहचानने से भी इंकार कर दिया और अगली बार आपको भी उसकी मदद करने की जरुरत नहीं है. हो सकता है उसे सबक मिले और आगे से वह इस बात को समझें कि मदद लेना देना गिव एंड टेक से जुड़ा मामला है कल सामने वाले को जरुरत है तो हो सकता है कि कल आपको जरुरत हो.

मदद उसकी करें जिसके साथ सम्बन्ध अच्छ हो

हर अजनबी की मदद करना ठीक नहीं. मदद उसकी करों जिससे आपके सम्बन्ध अच्छे हो. इससे सामाजिकता बढ़ती है. लेकिन अगर मदद लेने वाले से आपकी ज्यादा मित्रता नहीं है और आप फिर भी पहुँच गए मदद करने तो आपसे मदद लेने वो हिचकिचायेगा उसे लगेगा में इससे मदद क्यूँ लूँ अपने फॅमिली मेंबर या दोस्त से मदद लूंगा. ऐसे में आप अपना सा मुँह लेकर लौटेंगे इसका क्या फायदा है.

पैसा देकर फंस गया यार

“पैसा उधार न देना अच्छा, न लेना अच्छा; उधार स्नेह की कैंची है,” अंग्रेज़ नाटककार विलियम शेक्सपियर ने लिखा था. यह तो पक्का है कि पैसा उधार लेना-देना बहुत ही नाज़ुक मामला है और इससे रिश्‍ते तक टूट जाते हैं. चाहे कितनी भी अच्छी योजना क्यों न बनायी गयी हो और कितने भी नेक इरादे क्यों न रहे हों, कब स्थिति बदल जाए हम नहीं जानते.

क्या पता ऐसी स्थिति हो जाए कि उधार लेने वाले के लिए अपना कर्ज़ चुकाना मुश्‍किल या असंभव हो जाए. या ऐसा भी हो सकता है कि उधार देनेवाले को अचानक उस पैसे की ज़रूरत आन पड़े जो उसने उधार दिया है या फिर कई बार उधार लेने वाले की नियत बदल जाती है उसे लगता है अब मैं उधार क्यूँ वापस करूँ इसलिए उधार देने से पहले सोच लें कि कहीं आप अपने पैसे भी गवाएं पर बार बार मांगकर बुरे भी बने. जब ऐसी बातें होती हैं, तो जैसा शेक्सपियर ने कहा, दोस्ती और रिश्‍तों में दरार पड़ सकती है.

सामने वाले को मदद की जरुरत है भी या नहीं देख लें

कई बार हम किसी को मुसीबत में देखकर इमोशनल होकर मदद करने पहुँच जाते हैं लेकिन उन्होंने कह दिया कि अरे आपने बेकार ही कष्ट किया हम तो मैनेज कर ही लेते या आप हेल्प करने चले तो उनके ही घर के 4- 6 आदमी पहले ही आ गए. हेल्प करने में कई बार आप हेल्प भी करते हैं और बात भी नहीं बनती है. इसलिए देख लें सामने वाले वो मदद की जरुरत है भी या नहीं. जैसे कि आप अपने किसी क्लास के स्टूडेंट को उसके घर नोट्स देने बिन बोले पहुँच गएँ ताकि उसकी मदद हो सहकेँ क्यूंकि आज वो छुट्टी पर था लेकिन वहां जाकर पता चला उसने तो व्हाट्सप पर अपने किसी और दोस्त से मंगवा लिए हैं आपने बेकार ही अपना टाइम लगाया.

अजनबियों की मदद करके फंस सकते हैं आप

अगर आपने सड़क पर या मॉल में अगर बच्चे की माँ कहीं इधर उधर है और आपने किसी रोते हुए बच्चे को गोद में उठा लिया तो माँ नाराज होकर आपको किडनेपर भी कह सकती है.इसलिए मदद करने से पहले 10 बार सोचें कि आप किसकी और कैसे मदद करने जा रहे हैं. ऐसा नहीं के आप ने बीच रास्ते में लड़की खड़ी देखी और मदद के लिए रुक गए. वह लड़की फ्रॉड भी हो सकती है. इस तरह नजान की मदद करने में आप फंस भी सकते हो.

अपना जुगाड़ बैठाकर मदद के लिए ऑफर करों नहीं तो फंसोगे

आपने जोश जोश में किसी को कह तो दिया कि हां मैं आपकी जॉब की बात अपनी कंपनी में करूँगा लेकिन यह कहते वक्त आप भूल गएँ कि बॉस से तो आजकल आपकी खटपट चल रही है और आपकी अपनी परफॉर्मेंस पर सवाल उठ रहें हैं ऐसे मी आप दूसरे की जॉब की बात कैसे कर सकते हैं. वही वह व्यक्ति आपसे बार बार पूछ रहा है बात हो गई मेरी जॉब के लिए. अब आपने बैठे बैठाएं बेकार की टेंशन पाल ली. ये गले की वो हड्डी बन गई जो ना निगलि जाए ना ऊगली जाए. इसलिए मदद का ऑफर देने से पहले अपनी स्तिथि का अंदाजा भी लगा लें कि आप मदद करने लायक स्थिति में हैं भी या नहीं.

वादा करके फंस ना जाना –

वादा तो कर दया कि दोस्त की बेटी के एडमिशन की जिम्मेवारी मेरी है क्यूंकि बहिन के ससुर उस स्कूल में प्रोफेसर हैं लेकिन अब वो बार बार कहने पर बह कोई जवाब नहीं दे रहें. बिना बात बहिन की ससुराल से मन खट्टा हो गया. बेहेन की ससुर के लिए जो इज़्ज़त पहले थी वो अचानक से ख़तम हो गई. लगा इन्होने मेरी समय पर मदद नहीं की. इससे बेवजह रिश्ते में दूरी आ गई. जबकि आपका कोई अपना काम भी नहीं था. हो सकता है आपके काम के लिए वो मन भी ना करते पर किसी अजनबी की मदद करना उन्हें जरुरी न लगा हो और इस वजह से बेवजह आप दोनों के रिश्ते में खटास आ गई. इसलिए मदद का वादा अपने बलबूते करों दूसरे के बलबूते नहीं क्यूंकि ऐसे में आप खुद किसी की मदद के मोहताज हो जाते हो.

एक की मदद कर चार लोगों से दुश्मनी ना पाल लेना-

अगर आपके चार दोस्त हैं और उनमे से किसी ने आपसे 2 दिन के लिए आपकी कार मांग ली और आपने भी आने जाने की असुविधा के बावजूद उन्हें कार दे दी. वह तो खुश हो जायेगा लेकिन अगली बार किसी दूसरे दोस्त के मांगने पर आपने मना कर दिया तो उसे लगेगा कि आप पहले दोस्त से ज्यादा दोस्ती निभा रहें हैं उससे नहीं. इस वजह से दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. इसलिए मदद करने से पहले सोच लें कि अगर आपने आज ऊँगली दिखाई तो कल आपका हाथ भी पकड़ा जा सकता है उसके लिए तैयार रहें.

Ibrahim Ali Khan अपनी आलोचना सुन हुए नाराज, पत्रकार को दे दी धमकी

सैफ अली खान के बेटे Ibrahim Ali Khan की हाल ही डेब्यू फिल्म नादानियां रिलीज हुई जिसमें उनके साथ श्री देवी की बेटी खुशी कपूर मुख्य भूमिका में थी. सोशल मीडिया पर अपने गुड लुक्स की वजह से छाए रहने वाले इब्राहिम की जब नादानियां रिलीज हुई तो सभी को उनसे बहुत उम्मीदें थी. लेकिन सिर्फ इस फिल्म ने ही नहीं इस फिल्म में काम कर रहे इब्राहिम के अभिनय ने भी सबको निराश कर दिया. जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी खिंचाई होनी शुरू हो गई एक आलोचक ने यहां तक कॉमेंट कर दिया कि फिल्म में इब्राहिम की नाक और श्री देवी की बेटी ख़ुशी कपूर के सिर्फ दांत नजर आ रहे है.

एक्टिंग के नाम पर दोनों जीरो है. ऐसी ही कई आलोचनाएं इस फिल्म के लिए एक्टर को सुननी पड़ी. जिसे सुनकर इब्राहिम बौखला गए और इसी आलोचना के तहत एक पत्रकार तैमूर ने नादानियां में इब्राहिम के खराब अभिनय ओर लंबी नाक पर कमेंट कर दिया .जिसके बाद इब्राहिम का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और इब्राहिम ने आव देखा ना ताव उस पत्रकार को ना सिर्फ भला बुरा कह दिया बल्कि उसको मारने पीटने की धमकी तक दे डाली.

जिसके बाद अपने गुस्सैल स्वभाव को लेकर वह बहुत ट्रोल हो रहे है. लोग उन्हें यही सलाह दे रहे है कि आलोचक और आलोचना को पॉजिटिव लेना सीखे तभी वो कुछ अच्छा कर पाएंगे. गौरतलब है सैफ अली खान को भी अपने करियर के शुरुआत में बहुत आलोचना सुननी पड़ी थी तब कही जा कर वो स्टार ओर अच्छे एक्टर कहलाए है. सो इब्राहिम को भी अपने पिता से संयम सीखना होगा. तभी वह अपने अभिनय कैरियर में कुछ अच्छा काम कर पाएंगे.

23rd Zee Cine Awards: प्रेस कौन्फ्रेंस में कार्तिक, तमन्ना सहित सितारों की सजी महफिल

23rd Zee Cine Awards: 20 मार्च 2025 को जे डब्लू मैरियट अंधेरी पूर्व मुंबई में मारुती सुज़ुकी प्रेजेंट ज़ी सीने अवॉर्ड 25 की प्रेस कौन्फ्रेंस आयोजित हुई जिस में बॉलीवुड की जानी मानी हस्तियों ने शिरकत की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कार्तिक आर्यन, तमन्ना भाटिया, जैकलीन फर्नांडीज, और बाणी कपूर ने शिरकत की.

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का मुख्य मकसद प्रशंसक और कलाकारों के बीच का प्रेम दर्शना था. लिहाजा इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत सभी कलाकारों के फैंस भी आए थे. जिन्होंने अपनी फेवरेट कलाकारों के लिए स्पेशल आइटम डांस परफॉर्म किया. क्योंकि ज़ी सिने अवार्ड के लिए स्त्री 2 के गाने भी नॉमिनेटेड है, इसलिए स्त्री 2 का लोकप्रिय गीत आज की रात गाने की गायिका शिल्पा राव भी उपस्थित थी. जिन्होंने अपनी सुरीली आवाज में गाना गाया. साथ ही प्रसिद्ध संगीतकार सचिन जिगर ने भी कॉन्फ्रेंस में अपने मधुर संगीत के जरिए समा बांध दिया , जिनके भी स्त्री 2 के गाने जी सिने अवॉर्ड में नॉमिनेट हुए है.

जी सिने अवॉर्ड का आयोजन 17 मई 2025 को मुंबई में ही आयोजित किया गया है. जिसका प्रसारण जी टीवी और जी सिनेमा पर होगा.

Skin Care Tips : 30 के बाद भी ग्लो को रखें बरकरार

Skin Care Tips : महिलाएं अपने सौंदर्य के प्रति बहुत सजग रहती हैं, लेकिन 30-35 की उम्र आतेआते त्वचा का ग्लो कम होने लगता है, तब वे अपने लुक्स को ले कर परेशान हो उठती हैं कि क्या किया जाए, जिस से चेहरे का ग्लो बरकरार रहे. घबराएं नहीं, कुछ बातों का ध्यान रख कर आप अपने सौंदर्य को बरकरार रख सकती हैं :

1. आईशैडो

बढ़ती उम्र में आंखों के आसपास काले घेरे और झुर्रियां आने लगती हैं. ऐसे में अगर आप गहरे रंग का आईशैडो लगाती हैं तो सभी का ध्यान आप की झुर्रियों पर जाएगा. इसलिए आप मैट कलर के आईशैडो प्रयोग करें.

2. लिपस्टिक

बढ़ती उम्र का असर होंठों पर भी पड़ता है. आप के होंठ सिकुड़ने व सूखने लगते हैं. सर्दियों में आप कलरफुल वैसलीन लगा कर होंठों को सूखने से बचा सकती हैं. लिपस्टिक गहरे रंग के बजाय हलके रंग की लगाएं. लिप लाइनर भी गहरे रंग का प्रयोग न करें. लिप लाइनर की जगह लिप ग्लौस लगाने से आप के होंठ चमकीले व सुंदर दिखाई देंगे.

3. फाउंडेशन

दागधब्बों व झुर्रियों को छिपाने के लिए फाउंडेशन का प्रयोग करें. लेकिन ध्यान रखें कि फाउंडेशन बहुत ज्यादा न लगे, क्योंकि इस से आप के चेहरे की झुर्रियां साफ दिखाई देने लगती हैं. अत: थोड़ी देर पहले मोइश्चराइजर लगा लें, उस के बाद फाउंडेशन आप के चेहरे पर एकसार लगेगा.

4. डल आंखें

अपनी आंखों की चमक बनाए रखने के लिए आप रंगीन लैंस भी लगवा सकती हैं. साथ ही, मस्कारा लगाने से आप की आंखों की डलनैस खत्म हो जाएगी. नीले रंग का आईलाइनर आप की आंखों को और भी सुंदर बना देगा. ब्राउन या ब्लैक कलर का मस्कारा भी आप प्रयोग कर सकती हैं. अगर आईब्रोज पतली हैं तो ब्लैक कलर की आईब्रो पैंसिल से शेप देने से वे सुंदर लगने लगेंगी.

5. रंगों का चुनाव

मेकअप करते समय रंगों का चुनाव सोचसमझ कर करें. यदि गालों पर ब्राइट पिंक कलर लगाया है तो होंठों पर कुछ न लगाएं. ज्यादा ब्राइट कलर प्रयोग न करें.

Sunita Williams : अंतरिक्ष का एक चमकता सितारा

Sunita Williams :  आखिर लंबे इंतजार के बाद भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स धरती पर लौट आई हैं. वे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर असामान्य रूप से लंबे समय तक रहने के बाद वापस आई हैं. नासा के मुताबिक, सुनीता विलियम्स और 3 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों को ले कर आने वाला अंतरिक्षयान कुछ ही घंटों में आईएसएस अलग हुआ और फ्लोरिडा के समुद्र में सफलतापूर्वक उतर गया.

भारतीय समय के अनुसार, यह बुधवार तड़के करीब 3 बजे हुआ. इस के साथ ही दुनियाभर में खुशी देखी गई. यह दिन मानवता की एक बड़ी जीत के रूप में इतिहास में दर्ज हो गया.

दरअसल, यह पूरी यात्रा धैर्य की एक महागाथा बन गई है. सुनीता विलियम्स और बैरी ‘बुच’ विल्मोर की यह यात्रा वास्तव में 10 महीने पहले पूरी होनी थी. उन्हें सिर्फ 8 दिन के मिशन के बाद वापस आना था, लेकिन तकनीकी कारणों से उन की वापसी में देरी होती चली गई.

सुनीता विलियम्स, जो इस साल सितंबर में 60 वर्ष की हो गई हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध भारतीय मूल की दूसरी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुनीता को लिखे एक पत्र में कहा है,”आप हमारा गौरव हो, हमारे दिल के करीब हो.”

नासा अपने स्पेसएक्स कार्यक्रम के तहत इस वापसी यात्रा का सीधा प्रसारण किया, जिसे करोड़ों लोगों ने देखा. सुनीता विलियम्स ने अपनी अंतरिक्ष यात्रा 15 दिसंबर, 2022 को शुरू की थी, जब वह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर पहुंची थीं.

उन की यात्रा के दौरान उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया, जिन में से एक थी उन के अंतरिक्षयान के हीट शील्ड में समस्या आना. इस समस्या के कारण उन की वापसी यात्रा में देरी हो गई और उन्हें आईएसएस पर अधिक समय तक रहना पड़ा.

सुनीता विलियम्स की यह यात्रा न केवल उन की व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह दुनियाभर के लोगों के लिए एक प्रेरणा और गर्व का समय है. उन की यात्रा से यह संदेश गया है कि कठिन परिश्रम, समर्पण और साहस के साथ हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं.

इस के अलावा, सुनीता विलियम्स की यह यात्रा महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए भी एक प्रेरणा है. उन की उपलब्धि से एक बड़ा संदेश गया है.

सुनीता विलियम्स को अंतरिक्ष में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, जिन में से कुछ इस प्रकार हैं :

तकनीकी समस्याएं

हीट शील्ड में समस्या उन के अंतरिक्षयान के हीट शील्ड में समस्या आई, जिस से उन की वापसी यात्रा में देरी हो गई.

अंतरिक्ष में कम्युनिकेशन समस्या का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें अपने साथियों और मिशन कंट्रोल से संपर्क करने में मुश्किल हुई.

लाइफ सपोर्ट सिस्टम में समस्या

उन के अंतरिक्षयान के लाइफ सपोर्ट सिस्टम में समस्या आई, जिस से उन्हें अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा के बारे में चिंतित होना पड़ा.

शारीरिक दिक्कतें

अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण उन की मांसपेशियों में दर्द होने लगा.

नींद की समस्या

अंतरिक्ष में नींद की समस्या का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें थकान और तनाव महसूस हुआ.
अंतरिक्ष में पाचन समस्या का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें भोजन करने में मुश्किल हुई.

मानसिक दिक्कतें

अंतरिक्ष में तनाव और चिंता का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित होना पड़ा.

अंतरिक्ष में अकेलापन महसूस हुआ, जिस से उन्हें अपने परिवार और दोस्तों की याद आई.

इस के साथ ही अंतरिक्ष में संदेह और आत्मसंदेह का सामना करना पड़ा, जिस से उन्हें अपनी क्षमताओं और निर्णयों पर संदेह होने लगा.

इन दिक्कतों के बावजूद, सुनीता विलियम्स ने अपनी यात्रा को सफलतापूर्वक पूरा किया और अपने अनुभवों से सीखने का अवसर प्राप्त किया.

सुनीता विलियम्स के संदर्भ में नवीनतम घटनाक्रम :

स्वागत समारोह: गुजरात में उन के पैतृक गांव में उन के स्वागत के लिए एक बड़ा समारोह आयोजित किया गया है.

नासा के साथ भविष्य की योजनाएं: सुनीता विलियम्स ने नासा के साथ अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बात की है, जिस में उन्होंने कहा है कि वह भविष्य में और अधिक अंतरिक्ष मिशनों में भाग लेना चाहती हैं.

भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा: सुनीता विलियम्स ने कहा है कि वह भारतीय युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनना चाहती हैं और उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हैं.

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