Indian Idol 12 में कपड़ों के बाद छाया Neha Kakkar के हेयरस्टाइल का जलवा, देखें फोटोज

Sony TV के सिंगिंग रियलिटी शो ‘इंडियन आइडल 12’ सुर्खियों में रहता हैं. जहां शो में एक से बढ़कर एक गायक अपना हुनर आजमाते हैं तो वहीं शो की जज नेहा कक्कड़ अपने लुक से फैंस का दिल जीतती नजर आती हैं. इसीलिए आज हम आपको नेहा कक्कड़ के शो में उनके लुक के साथ चार चांद लगाने वाले हेयर स्टाइल के बारे में बताएंगे. तो आइए आपको दिखाते हैं नेहा कक्कड़ के ‘इंडियन आइडल 12’ के स्टेज पर ट्राय किए गए कुछ खूबसूरत हेयरस्टाइल की झलक…

1. ड्रैस के साथ ट्राय करें ये हेयर स्टाइल

अगर आप किसी पार्टी या डेट पर जाने के लिए हेयरस्टाइल की तलाश कर रही हैं तो नेहा कक्कड़ का ये लाइट कर्ल वाला हेयरस्टाइल आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. ये आपके लुक को ट्रैंडी के साथ-साथ हौट लुक देगा.

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2. क्रौप टौप के साथ परफेक्ट है ये हेयर स्टाइल

अगर आप डेट पर जाने के लिए क्रौप टौप पहनने का सोच रही हैं और उसके साथ परफेक्ट हेयरस्टाइल चाहती हैं तो नेहा कक्कड़ का ये जिग जैग वाला हेयरस्टाइल परफेक्ट औप्शन साबित होगा.

3. लहंगे के साथ ट्राय करें ये हेयरस्टाइल

अगर आप वेडिंग सीजन में लहंगे के साथ कोई लुक ट्राय करना चाहती हैं तो लहंगे के साथ ये बन हेयर स्टाइल जरुर ट्राय करें ये ट्रैंडी के साथ-साथ सिंपल है, जो आपके लुक को चार चांद लगा देगा.

4. साड़ी के साथ करें ये हेयरस्टाइल ट्राय

अगर आप शादी शुदा है और साड़ी पहनना चाहती हैं तो ये जूड़ा हेयरस्टाइल आपके लिए परफेक्ट औप्शन साबित होगा. इसे आप आसानी से बना सकती हैं. इसके साथ आप प्लेन साड़ी कैरी करेंगी और हेवी झुमके पहनेंगी तो बेहद खूबसूरत दिखेंगी.

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5. स्ट्रेट हेयर फैशन करें ट्राय

अगर आप स्ट्रेट हेयर फैशन ट्राय करना चाहती हैं तो नेहा कक्क़ड़ का ये लुक ट्राय कर सकती हैं.

शरीर पर टैटुओं की नुमाइश

टैटू प्राचीन भारतीय परंपरा का हिस्सा है, लेकिन आज यह दुनियाभर में बड़े कारोबार के रूप में उभरा है. एक अनुमान के अनुसार, देश में 25 हजार से ज्यादा टैटू स्टूडियो हैं और टैटू इंडस्ट्री 1,300 करोड़ रुपए से ज्यादा की है.

एक जमाने में आदिवासी संस्कृति का प्रतीक रहा है टैटू आज दुनियाभर में लोकप्रिय है और इस का क्रेज दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. सैलिब्रिटीज से ले कर आमजन में टैटू की दीवानगी देखी जा सकती है. कुछ लोग तो इस के इस कदर दीवाने हैं कि उन्होंने अपना संपूर्ण शरीर ही टैटुओं के हवाले कर दिया है. आइए आप को ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में बताते हैं, जिन के शरीर टैटुओं की नुमाइश के केंद्र बन गए हैं.

‘‘मेरा चेहरा मत पढ़ो. मेरी लाइफ की कहानी मेरी बौडी पर बने 51 टैटू बताते हैं,’’ ऐसा कहते हैं पूर्व ब्रिटिश फुटबौलर डेविड बेकहम. उन्हें टैटू का जनून इतना ज्यादा है कि उन के हाथों की उंगलियों से ले कर पैरों तक कई टैटू बने हैं. उन्होंने अपने जीवन की हर महत्त्वपूर्ण चीज अपने शरीर पर गुदवा दी है. चाहे वह पत्नी से पहली मुलाकात हो या फिर बच्चों से जुड़ी हुई कोई बात. उन्होंने हाल ही में अपने कुछ खास और इंस्पायरिंग टैटू से जुड़ी कहानी शेयर की.

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मैनचेस्टर यूनाइटेड टीम के पूर्व मिडफील्डर बेकहम के अनुसार, ‘‘मैं ने सब से पहले अपने बड़े बेटे ब्रूकलिन के नाम का टैटू बनवाया था. यह कमर के पिछले हिस्से में था. उस के बाद मैं ने अपने दोनों बेटों रोमियो और क्रूज का नाम भी पीठ पर गुदवाया. मेरे टैटू बनवाने का यह सिलसिला तभी से शुरू हो गया. ब्रूकलिन को मैं प्यार से ब्रस्टर भी कहता हूं. यह नाम भी मैं ने गरदन पर खुदवाया.’’ बेकहम का सब से पसंदीदा पक्षी है ईगल. उन्होंने गरदन पर ईगल का टैटू भी गुदवाया हुआ है. उन के पिता टेड भी टैटू के काफी शौकीन थे. उन के हाथ पर जहाज का टैटू था.

बेकहम ने भी हूबहू वैसा ही टैटू अपनी बांह के नीचे खुदवाया. इस टैटू को वे अपने पिता के प्रति प्यार व सम्मान का प्रतीक मानते हैं. बेकहम अपनी 5 साल की बेटी हार्पर को अपने चारों बच्चों से सब से ज्यादा प्यार करते हैं. इसलिए उन्होंने उस की एक ड्राइंग को अपनी हथेली पर उकेर दिया. वे कहते हैं, ‘‘एक दिन मैं ने देखा कि हार्पर ने ड्राइंग बनाई. यह उस की पहली ड्राइंग थी. मैं ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि इसे हमेशा के लिए यादों में संजोना है तो इस का टैटू गुदवाना चाहिए.’’

41 वर्षीय बेकहम के लिए साल 1999 बहुत खास रहा. इसी साल उन की टीम मैनचेस्टर यूनाइटेड ने चैंपियंस लीग जीती और उन्होंने गर्लफ्रैंड विक्टोरिया से शादी की. इसलिए उन्होंने उंगली पर 99 नंबर का टैटू गुदवाया है.

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे टैटू बहुत खास हैं. हर टैटू कुछ न कुछ कहता है, लेकिन ये कुछ हैं, जो सब से फेवरेट हैं. इसलिए मैं ने इन से जुड़ी यादें शेयर की हैं. भविष्य में भी ऐसी प्यारी और इमोशनल यादें मैं अपनी बौडी पर उकेरना चाहूंगा.’’

चर्चा में फुटबौलर

फुटबौलर अपने टैटू को ले कर चर्चा में रहते ही हैं. चाहे वे 40 टैटू बनवा चुके पूर्व इंग्लिश फुटबौलर डेविड बेकहम हों या फिर बाएं पैर पर टैटू गुदवा चुके लियोनेल मेसी. इंग्लैंड के 26 साल के फुटबौलर आंदे्र ग्रे पीठ पर खुदवाए गए टैटू को ले कर चर्चा में हैं. इन में खास यह है कि उन्होंने ह्यूमन राइट्स ऐक्टिविस्ट की फोटो बनवाई है. उन्होंने मार्टिन लूथर किंग से ले कर मुहम्मद अली और नेल्सन मंडेला तक के टैटू बनवाए हैं. इस के अलावा उन्होंने इतिहास के कई पलों को भी शरीर पर गुदवाया है. उन्होंने 10 महान लोगों और घटनाओं के टैटू 72 घंटे में बनवाए. उन्होंने

8-8 घंटे के 9 सैशंस में ऐसा किया. इस में ऐथलीट टौमी स्मिथ और जौन कार्लोस के भी टैटू शामिल हैं. ये अफ्रीकनअमेरिकन ऐथलीट 1968 मैक्सिको ओलिंपिक में मैडल सेरेमनी के दौरान ब्लैक पावर सैल्यूट के लिए फेमस हुए थे.

मैनचेस्टर यूनाइटेड के फुटबौलर स्लादान ने वर्ष 2015 में पूरी दुनिया के लोगों का ध्यान भुखमरी जैसे गंभीर मुद्दे की ओर आकर्षित करने के लिए अपने शरीर पर 15 ऐसे लोगों के नामों के टैटू गुदवाए जो भुखमरी से पीडि़त रहे थे. इस से उन्हें काफी सराहना मिली थी. इटली के लाइकांडो फैडरेशन ने इन्हें ब्लैकबैल्ट की मानद उपाधि से सम्मानित भी किया है.

मुंबई के जैसन जौर्ज ह्यूमन एडवरटाइजिंग बोर्ड नाम से फेमस हैं. इन्होंने अपने शरीर पर 380 ब्रैंड्स के लोगो के टैटूज गुदवाए हुए हैं. इन में गूगल, आरबीआई से ले कर कई अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड्स शामिल हैं. इस के रिकौर्ड के लिए उन्होंने गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स के लिए अप्लाई भी किया है. इस से पहले वे 2015 में एक ही महीने में 177 टैटू अपने शरीर पर गुदवाने का रिकौर्ड बना चुके हैं.

भारत में भी अनेक जानेमाने अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी, मौडल, राजनेता आदि ने भी अपने शरीर पर टैटू गुदवाए हैं. उन की देखादेखी आमजन भी इस ट्रैंड को फौलो करते हैं.

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शिकागो की 80 वर्षीय हेलन लांबिन जब सुबह सैर पर निकलती हैं तो लोग उन्हें कौम्प्लीमैंट्स देते हैं. पिछले 5 वर्षों में उन्होंने 50 से ज्यादा टैटू बनवाए. उन्होंने पहले छोटा टैटू गुलबहार के फूल का बनाया. कुछ दिनों बाद बेकी डौल्फिन का. फिर सोचा उस की मां का भी होना चाहिए. तब तीसरा टैटू बना. उस के बाद पति की याद में गुलाबी रंग के खरगोश का टैटू बनवाया.

59 वर्ष के बिल पासमेन को दुनिया घूमने का शौक है. अब तक वे आधी दुनिया देख चुके हैं. उन्होंने अपनी पीठ पर दुनिया का नक्शा बनवाया है. वे जिस देश में जाते हैं वहां टैटू आर्टिस्ट के पास जा कर टैटू पर उस देश का रंग भरवा लेते हैं. अब तक उन के टैटू में 60 देशों का रंग भर चुका है. ल्यूजियाना के इस वकील ने 51 वर्ष की उम्र में ट्रैवलिंग शुरू की. तंजानिया जा कर उन्होंने अपने इस कभी खत्म न होने वाले सफर की शुरुआत की. ट्रैवलिंग को समय देने के लिए इन्होंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी. 7 महाद्वीपों का सफर तय कर चुके बिल की पसंदीदा जगह ग्वाटेमाला है. उन्हें यह प्रेरणा एक युवती के ऐसे ही टैटू को देख कर मिली थी.

ब्रिटेन के जेक रेनौल्ड्स ने 104 वर्ष की आयु में 6 अप्रैल, 2016 में पहली बार टैटू गुदवाया है. इस के लिए उन का नाम टैटू गुदवाने वाले सब से बुजुर्ग के तौर पर गिनीज बुक में दर्ज किया गया है. वे इंग्लैंड के डर्बीशायर प्रांत के चेस्टरफील्ड में रहते हैं.

टैटू बनवाने का रिकौर्ड

फ्लोरिडा के चार्ल्स हेल्मके को हाल ही में गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स की ओर से सर्वाधिक टैटू वाले वरिष्ठ नागरिक (पुरुष) की मान्यता मिली थी. इस के बाद अब उन की जीवनसंगिनी शार्लोट गुटेनबर्ग ने भी सर्वाधिक टैटू वाली वरिष्ठ नागरिक (महिला) होने का वर्ल्ड रिकौर्ड बना लिया है. पेशे से लेखिका और प्रशिक्षक शार्लोट के शरीर के 915 फीसदी हिस्से पर रंगबिरंगे टैटू बने हैं. टैटू का रिकौर्ड बनाने की उन की यह यात्रा एक दशक पहले शुरू हुई थी. उन्होंने 2006 में पहला टैटू बनवाया था. इस के बाद टैटू बनवाने की उन की दीवानगी बढ़ती गई, जबकि उन के 75 वर्षीय जीवनसाथी के शरीर के 93.75 फीसदी भाग पर टैटू हैं. उन्होंने पहला टैटू 1959 में उस समय बनवाया जब वे अमेरिकी सेना में थे.

इस से पूर्व, उराग्वे के टैटू आर्टिस्ट विक्टर ह्यूगा और उन की पत्नी गोब्रिएला का नाम सब से ज्यादा टैटू बनवाने वाले दंपती के रूप में गिनीज बुक में दर्ज था.

लंदन की एक महिला इसोबेल वार्ले का नाम गिनीज बुक में शामिल किया गया था. जानते हैं  क्यों? क्योंकि उसे टैटू गुदवाने का इतना जबरदस्त शौक था कि उस ने अपने शरीर के 93 प्रतिशत हिस्से पर टैटू गुदवाया था. ऐसा कर के वह दुनिया में सब से अलग दिखना चाहती थी.

नई दिल्ली के हरप्रसाद ऋषि के टैटू उस की पहचान बन चुके हैं. वे अपने शरीर पर 185 देशों का मानचित्र तथा 366 झंड़ों के टैटू गुदवा कर विश्व रिकौर्ड बना चुके हैं. उन्होंने अपने माथे पर तिरंगे का टैटू गुदवाया.

इस के अलावा हरिप्रसाद ने बराक ओबामा और गिनीज बुक के अध्यक्ष जिम पैटीसन की तसवीरें भी  टैटू के रूप में शरीर में गुदवा रखी हैं. उन्होंने अपने शरीर पर इंग्लिश, हिंदी, जरमन, रूसी, ग्रीक, हिब्रू तथा इटैलियन भाषा के 3,985 अक्षर गुदवाए हैं. उन का कहना है, ‘‘मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूं ताकि मरने के बाद भी जिंदा रहूं. इसलिए मैं एक तरफ से अपने शरीर पर ही पूरा म्यूजियम बनवाना चाहता हूं.’’ लोग उन्हें टैटू वाले दादाजी के नाम से जानते हैं.

इंग्लैंड के विलफ्रैड हार्डी को भी टैटू गुदवाने का बड़ा शौक था. उन्होंने अपने पूरे शरीर के 4 प्रतिशत हिस्से को छोड़ कर शेष सतह पर टैटू गुदवा रखे थे. यहां तक कि उन्होंने गाल के अंदरूनी हिस्सों, जीभ, मसूढ़ों और भौंहों तक को नहीं बख्शा.

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अमेरिका के वाल्टर स्टिग्लिट्स की पहचान भी टैटू की वजह से है. उन्होंने अपने शरीर पर 5,457 टैटू गुदवा रखे हैं. इस के लिए उन्होंने 6 कलाकारों की मदद ली.

शरीर पर कौर्पोरेट ब्रैंड

मुंबई के जैसन जौर्ज को आप कम मत समझिए. उन्होंने अपना शरीर दुनिया की जानीमानी कंपनियों के ब्रैंड के टैटू बनाने के लिए पेश कर दिया. 25 वर्षीय जौर्ज के शरीर पर मई 2015 में 189 कंपनियों के टैटू गुदे हुए थे. वे गिनीज रिकौर्ड बनाने के लिए कुल 321 टैटू बनाने के प्रयास में जुटे हैं. जौर्ज के टैटू अजीब भले ही लगते हों लेकिन इन टैटुओं ने उन की जिंदगी पर गहरी छाप छोड़ी है. वैसे वे खुद एक टैटू कलाकार हैं, लेकिन अपने शरीर पर वे दूसरों से टैटू बनवाते हैं. अपने इस शौक को पूरा करने के लिए वे 3 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं. फिलहाल उन का नाम लिमका बुक में दर्ज है.

वर्ष 1981 मैं टैटू सुंदरी की विश्व प्रतियोगिता में ब्रिटेन की सूसन जेम्स सर्वप्रथम आई थीं. उन्हें गोदनायुक्त सुंदरी में सर्वाधिक सुंदर घोषित किया गया था.

अमेरिका के बर्नार्ड मोलर ने 4 दिसंबर, 1989 को अपने शरीर को 8,960 स्थानों पर गुदवाया.

एक सिरफिरे प्रेमी ने अपने हाथ पर अपनी प्रेमिका का नाम गुदवा रखा था. अपनी पूर्व प्रेमिका लीजा के नाम के साथ ही उस ने प्रेमिका के जन्म की तारीख का टैटू भी बनवाया था. पागलपन की हद तब हुई जब डोमिनिक रेडले ने लीजा की बेरहमी से हत्या करने के बाद उस की मौत की तारीख भी हाथ पर गुदवा ली. स्पेन पुलिस ने जब 20 वर्षीया लीजा एच की हत्या करने वाले भगोड़े प्रेमी को ढूंढ़ा, तब हाथ के टैटू से हत्या की पुष्टि की.

शहर की लड़कियों में टैटू का क्रेज ज्यादा देखा जा रहा है. एक अनुमान के मुताबिक हर 10 में से 9 लड़कियों को टैटू बनवाना बेहद पसंद है.

जब चरप पर होता है क्रेज

नवरात्र के अवसर पर युवाओं में टैटू का क्रेज चरम पर पहुंच जाता है. गरबा के साथ टैटू का क्रेज युवतियों में भी बढ़ रहा है. शाइनिंग टैटू का क्रेज अधिक है. लोग मैकेनिकल, फांट टैटू ज्यादा पसंद कर रहे हैं. मोरपंख, बाजूबंध, गरबा करती लड़कियां आदि टैटू की डिमांड भी बढ़ रही है.

दुनियाभर के लोगों में टैटू का क्रेज है. लोग इसे फैशन का प्रतीक मान रहे हैं. लेकिन कुछ देश ऐसे भी हैं जहां के लोगों के लिए टैटू किसी खास पृष्ठभूमि की पहचान है और इस वजह से वे कहीं काम भी नहीं कर पाते. दक्षिणी अमेरिका के अल सल्वाडोर में तो सरकार को वहां टैटू रिमूवल प्रोजैक्ट चलाना पड़ रहा है. वहां कई बड़े आपराधिक गैंग्स की खास पहचान उन के टैटू हैं और हर को यह गुदवाना जरूरी है. कभीकभी तो ये टैटू इतने बड़े होते हैं कि सिर से ले कर पांव तक इन लोगों को स्याही से रंग देते हैं, लेकिन यही पहचान इन लोगों की समस्या हो जाती है. ये लोग यदि अपराध की दुनिया छोड़ना भी चाहें तो यह पहचान आम दुनिया में उन की स्वीकार्यता नहीं होने देती. मानव तस्करी के पीडि़तों पर भी गैंग्स वाले टैटू बना देते हैं ताकि उन की पहचान बनी रहे. जापान में टैटू की छवि अच्छी नहीं रही है. वहां इसे आपराधिक गुटों से जुड़ा माना जाता है. कई जगहों पर स्विमिंग पूल, गरमपानी के कुंड आदि में टैटू वाले लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता.

पुलिस और सेना की भरती शर्तों के कारण लोग टैटू निकलवाने जाने लगे हैं

बड़े अस्पतालों में टैटू निकालने का काम क्विक स्विच लेजर मशीन से किया जाता है. इस के बावजूद यह 80 प्रतिशत ही निकल पाता है. बाकी त्वचा में रह जाता है.

परमानैंट टैटू की स्याही में मौजूद कैमिकल डार्मिक लेयर के नैनो कणों में इन्फैक्शन फैलाता है. इस से सामान्य इन्फैक्शन के अलावा एलर्जी, टीबी और कोढ़ जैसी बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है. इन्फैक्शन से शरीर में अन्य बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है.

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हो जाता है स्थायी

जापान में हुए एक शोध के अनुसार टैटू त्वचा की दूसरी परत, जिसे डार्मिक लेयर कहा जाता है, पर स्थायी हो जाता है. टैटू की स्याही में निकिल, क्रोमियम, मैगनीज कोबाल्ट, बैल्क कार्बन, टाइटेनियम डाईऔक्साइड जैसे कैमिकल्स मिले होते हैं. स्याही में मौजूद कैमिकल्स, नैनोकण के रूप में शरीर के अंदर फैलने लगते हैं. इस से प्रतिरक्षा में अहम भूमिका निभाने वाले लिम्फ नौड्स प्रभावित होते हैं.

कई लोगों को टैटू की जगह त्वचा पर लालिमा, सूजन, मवाद आने जैसी शिकायतें होती हैं. इस के अलावा, बैक्टीरियल इन्फैक्शन के मामले भी सामने आ रहे हैं.

टैटू के लिए उपयोग में लाई जाने वाली लाल स्याही में मौजूद टाइटेनियम डाइऔक्साइड सब से घातक कैमिकल होता है.

यूरोपीय कैमिकल्स एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, टैटू बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली स्याही कैंसर का कारण बन सकती है. इस में भी लाल स्याही को सब से ज्यादा खतरनाक पाया गया है. नीली, हरी और काली स्याही भी सेहत के लिए खतरनाक हैं. स्याही के जहरीले प्रभाव के कारण वर्षों तक त्वचा संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

कई बार टैटू बनाने वाले एक ही निडिलडाई का इस्तेमाल करते हैं. एड्स संक्रमित व्यक्ति में यह निडिलडाई इस्तेमाल हुई है तो उस से स्वस्थ व्यक्ति को भी एड्स फैल सकता है.

टैटू के कई डिजाइन ऐसे होते हैं जिन में निडिलडाई शरीर में गहराई तक चुभाई जाती है. इस में मांसपेशियों को काफी नुकसान पहुंचता है.

पहुंचाता है नुकसान

टैटू से अधिक प्रेम आप के इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरक्षातंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसा एक रिसर्च में सामने आया है. साइंटिफिक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, टैटू बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली स्याही में मौजूद खास तत्त्व, जैसे कार्बन, टाइटेनियम डाइऔक्साइड शरीर में रक्त के माध्यम से फैलते हैं और रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं. इस से अन्य बीमारियां भी जकड़ने लगती हैं.

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दुनियाभर में अपने शरीर पर टैटू बनाने का फैशन चल रहा है. ज्यादातर लोग टैटू को कला मानते हैं, लेकिन जापान की कोर्ट ऐसा नहीं मानती. वहां इस के लिए डाक्टर की तरह मैडिकल प्रैक्टिशनर का लाइसैंस जरूरी है. यह फैसला ओसाका की कोर्ट में सुनाया गया. दरअसल, यहां टैटू स्टूडियो चलाने वाले ओसाका के ताइकी मसूदा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन 29 साल के मसदा ने जुर्माना भरने के बजाय इसे चुनौती देने का फैसला कर लिया. हालांकि, 2 साल की लड़ाई के बावजूद उन्हें हार ही मिली. दरअसल, 2015 में पुलिस ने स्टूडियो पर छापा मार कर मसूदा को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की दलील थी कि मसूदा बिना किसी मैडिकल शिक्षा के टैटू स्टूडियो चला रहा है. बाद में कोर्ट ने उस पर 3 लाख येन (करीब डेढ़ लाख रुपए) का जुर्माना भी लगा दिया था, लेकिन मसूदा ने टैटू बचाने का अभियान चला दिया और जुर्माने को ओसाका की कोर्ट में चुनौती दे दी. उन्होंने दलील दी कि टैटू एक आर्ट है और इसे बनाने वाला आर्टिस्ट. इस का मैडिकल साइंस से कोई लेनादेना नहीं है. उन्होंने दुनियाभर में टैटू बनवाने के उदाहरण भी दिए. लेकिन कोर्ट ने कोईर् दलील नहीं मानी और टैटू को मैडिकल प्रैक्टिस घोषित करते हुए लाइसैंस जरूरी कर दिया. साथ ही मसूदा पर 3 लाख येन करीब डेढ़ लाख रुपए का जुर्माना भी लगा दिया.

जज तकाकी नगासे के अनुसार, ‘‘टैटू बनाने वाले के पास मैडिकल लाइसैंस होना चाहिए, क्योंकि टैटू गोदते वक्त बैक्टीरिया और वायरस शरीर में दाखिल हो सकते हैं. इस से स्किन की बीमारी होने का खतरा भी है.’’

7 बजे की ट्रेन: कौनसी कमी रेणु को धकेल रही थी उदासी की तरफ

एक उदास शाम थी. स्टेशन के बाहर गुलमोहर के पीले सूखे पत्ते पसरे हुए थे जो हवा के धीमे थपेड़ों से उड़ कर इधरउधर हो रहे थे. स्टेशन पहुंचने के बाद उन्हीं पत्तों के बीच से हो कर रेणू प्लेटफौर्म के अंदर आ चुकी थी. वह धीमेधीमे कदमों से प्लेटफौर्म के एक किनारे पर स्थित महिला वेटिंगरूम की ओर जा रही थी. 7 बजे की ट्रेन थी और अभी 6 ही बजे थे. ट्रेन के आने में देर थी.

शहर में उस की मां का घर स्टेशन से दूर है और ट्रांसपोर्टेशन की भी बहुत अच्छी सुविधा नहीं है. इसलिए वहां से थोड़ा समय हाथ में रख कर ही चलना पड़ता है, लेकिन आज संयोग से तुरंत ही एक खाली आटो मिल गया जिस के कारण रेणू स्टेशन जल्दी पहुंच गई थी.

पिताजी की मृत्यु के बाद मां घर में अकेली ही रह गई थी. घर के सामने सड़क के दूसरी ओर एक पीपल का पेड़ था और उस के बाद थोड़ी दूरी पर एक बड़ा सा तालाब. दोपहर के समय सड़क एकदम सुनसान हो जाती थी. कम आबादी होने के कारण इधर कम ही लोग आतेजाते थे. सुबह तो थोड़ी चहलपहल रहती भी थी पर दोपहर होतेहोते, जिन्हें काम पर जाना होता वे काम पर चले जाते बाकी अपने घरों में दुबक जाते.

दूर तक सन्नाटा पसरा रहता. यह सूनापन मां के घर के आंगन में भी उतर आता था. घर के आंगन में स्थित हरसिंगार की छाया तब छोटी हो जाती.

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मां कितनी अकेली हो गई थी. आज जब वह घर से निकल रही थी तो मां उस का हाथ पकड़ कर रोने लगी. इतना लाचार और उदास उस ने मां को कभी नहीं देखा था. उस की आंखों में अजीब सी बेचैनी और बेचारगी झलक रही थी.

जब वह छोटी थी तो घर की सारी जिम्मेदारियां मां ही उठाती थी. वह मानसिक रूप से कितनी मजबूत थी. पिताजी तो अपने काम से अकसर बाहर ही रहते थे. बस, वे महीने के आखिर में अपनी सारी कमाई मां के हाथ में रख देते थे.

घरबाहर का सारा काम मां ही किया करती थी. उसे स्कूल, ट्यूशन छोड़ना और लाना सब वही करती थी. उस समय तो वह इलाका जहां आज उन का घर है, और भी उजाड़ था. स्कूल बस के आने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था.

उसे याद है जब एक बार वह बीमार हो गई थी और कोई रिकशा नहीं मिल रहा था तो मां उसे अपनी गोद में ले कर उस सड़क तक ले गई थी जहां आटोरिकशा मिलता था. उस के बाद वहां से शहर के नामी अस्पताल में ले गई थी और उस का इलाज कराया था. तब उसे डाक्टरों ने 3 दिन तक अस्पताल में भरती रखा था.

मां कितनी मुस्तैदी से अकेले ही अस्पताल में रह कर उस की देखभाल करती रही थी. पिताजी तो उस के एक सप्ताह बाद ही आ पाए थे. इस बार मां बता रही थी कि जब वह बीमार हुई तो 3 दिन तक बुखार से घर में अकेले तड़पती रही. कोई उसे डाक्टर के पास ले जाने वाला भी कोई नहीं था. वह तो भला हो दूध वाले का, जिस ने दया कर के एक दिन उसे डाक्टर के यहां पहुंचा दिया था.

यह सब बताते हुए मां कितनी बेबस और कमजोर दिख रही थी. उम्र के इस पड़ाव में अकेले रह जाना एक अभिशाप ही तो है. रेणू यह सब सोच ही रही थी.

रेणू अपने मांबाप की इकलौती संतान थी. उस के मातापिता ने कभी दूसरे संतान की चाहत नहीं की. वे कहते कि एक ही बच्चे को अगर अच्छे से पढ़ायालिखाया जाए तो वह 10 के बराबर होता है. रेणू को याद है कि उस की बड़ी ताई ने जब उस की मां से कहा था कि अनुराधा, तुम्हारे एक बेटा होता तो अच्छा रहता, तो कैसे उस की मां उन पर झुंझला गई थी. वह कहने लगी थी कि आज के जमाने में बेटी और बेटा में भी भला कोई अंतर रह गया है. बेटियां आजकल बेटों से बढ़ कर काम कर रही हैं. हम तो अपनी बेटी को बेटे से बढ़ कर परवरिश देंगे.

प्लेटफौर्म पर कोई ट्रेन आ कर रुकी थी, जिस के यात्री गाड़ी से उतर रहे थे. अचानक प्लेटफौर्म पर भीड़ हो गई थी. लाउडस्पीकर पर ट्रेन के आने और उस के गंतव्य के संबंध में घोषणा हो रही थी. रेणू ने तय किया कि वेटिंगरूम में जाने से पूर्व एक कप चाय पी ली जाए और तब फिर आराम से वेटिंगरूम में कोई पत्रिका पढ़ते हुए समय आसानी से गुजर जाएगा. यही सोच कर वह एक टी स्टौल पर रुक गई.

उस के मांपिताजी ने उसे पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इंजीनियरिंग करने के बाद रेणू आज बेंगलुरु में एक अच्छी कंपनी में कार्य कर रही थी. उस के पति भी वहीं एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत थे. दोनों की मासिक आय अच्छीखासी थी. किसी चीज की कोई कमी नहीं थी.

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अब तक प्लेटफौर्म पर भीड़ छंट चुकी थी. प्लेटफौर्म पर आई गाड़ी निकल चुकी थी. रेणू ने वेटिंगरूम की ओर जाने का निश्चय किया. बगल के बुक स्टौल से उस ने एक पत्रिका भी खरीद ली थी. रेणू धीरेधीरे वेटिंगरूम की ओर बढ़ रही थी पर उस का मन फिर उड़ कर मां के उदास आंगन की ओर चला गया था. क्या मां ने चाय पी होगी? वह सोचने लगी. मां बता रही थी कि अब वह एक वक्त ही खाना बनाती है. एक बार सुबह कुछ बना लिया, फिर उसे ही रात में भी गरम कर के खा लेती थी. जितनी बार खाना बनाओ, उतनी बार बरतन धोने का झंझट.

इस बार रेणू ने अपनी मां को कुछ ज्यादा ही उदास पाया था. इस बार वह आई भी तो पूरे 1 साल के बाद थी. प्राइवेट कंपनी में वेतन भले ही ज्यादा मिलता हो पर जीने की आजादी खत्म हो जाती है और अभी तो उस का तरक्की करने का समय है. अभी तो जितनी मेहनत करेगी उतनी ही तरक्की पाएगी. इतनी दूर बेंगलुरु से बारबार आना संभव भी तो नहीं था. जब तक पिताजी थे, मां अकसर फोन कर के भी उस का हालचाल लेती रहती थी पर अब वह इस बात से भी उदासीन हो गई थी.

पहले बगल में मेहरा आंटी रहती थीं तो मां को कुछ सहारा था. उन से बोलबतिया लेती थी और एकदूसरे को मदद भी करती रहती थीं. इस बार जब रेणू आई और उस ने मेहरा आंटी के बारे में पूछा तो मां ने बताया कि उस का बेटा विनीत उसे मुंबई ले कर चला गया है अपने पास. हालांकि रेणू ने यह महसूस किया था कि जैसे मां कह रही हो कि उस का तो बेटा था, उसे अपने साथ ले गया.

अपनी इन्हीं विचारों में डूबी रेणू अचानक से किसी चीज से टकराई, नीचे देखा तो वह एक आदमी था, जिस के दोनों पैर कटे थे. वह हाथ फैला कर उस से भीख मांग रहा था. वह आदमी बारबार अपने दोनों पैर दिखा कर उस से कुछ पैसे देने का अनुरोध कर रहा था. उस के चेहरे पर जो भाव थे, उसे देख कर रेणू चौंक गई. उसे लगा वह मानो गहरे पानी में डूबती जा रही है और सांस नहीं ले पा रही है.

ऐसे ही भाव तो उस की मां के चेहरे पर भी थे जब वह अपनी मां से विदा ले रही थी. उसे लगा वह चक्कर खा कर गिर जाएगी. वह बगल में ही पड़ी एक बैंच पर धम्म से बैठ गई. वह आदमी अब भी उस के पैरों के पास उसे आशाभरी नजरों से देख रहा था. उसे उस आदमी की आंखों में अपनी मां की आंखें दिखाई दे रही थीं. ऐसी ही आंखें… बिलकुल ऐसी ही आंखें तो थीं उस की मां की जब वह घर से स्टेशन के लिए निकल रही थी.

रेणू ने अपनी आंखें बंद कर लीं और वहीं बैठी रही. 7 बज गए थे. बेंगलुरु जाने वाली ट्रेन का जोरजोर से अनाउंसमैंट हो रहा था. ट्रेन निकल जाने के बाद प्लेटफौर्म पर शांति छा गई और रेणू के मन में भी. रेणू थोड़ी देर वहीं बैठी रही.

अब उस का मन बहुत हलका हो गया था. आटो में बैठे हुए उस के मोबाइल पर मैसेज प्राप्त होने का रिंगटोन बजा. उस ने देखा कि बेंगलुरु जाने वाली अगले दिन की ट्रेन में 2 लोगों के टिकट कन्फर्म हो गए हैं. उस ने अपने पति को एक थैंक्स का मैसेज भेज दिया.

‘‘मां, आज क्या खाना बना रही हो? बहुत जोरों की भूख लगी है,’’ मां ने जैसे ही दरवाजा खोला, रेणू ने मां से कहा.

‘‘अरे, गई नहीं तुम? क्या हुआ, तबीयत तो ठीक है? ट्रेन तो नहीं छूट गई?’’ मां के स्वर में बेटी की खैरियत के लिए स्वाभाविक उद्विग्नता थी.

‘‘हां, मां सब ठीक है,’’ कहती हुई रेणू सोफे पर बैठ गई और मां को खींच कर वहीं बिठा लिया और उस की गोद में अपना सिर रख दिया. ऐसी शांति और ऐसा सुख, मां की गोद के अलावा कहां मिल सकता है. रेणू सोच रही थी. उस के गाल पर पानी की 2 गरम बूंदें गिर पड़ीं. ये शायद मां की खुशी के आंसू थे. अगले दिन बेंगलुरु जाने वाली ट्रेन में 2 औरतें सवार हुई थीं.

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रिश्ते पर भारी न पड़ जाएं राजनीतिक मतभेद

हम अक्सर राजनीतिक मुद्दे पर लोगों को वादविवाद करते देखते हैं. लेकिन कई बार ये विवाद झगड़े का रूप भी ले लेते हैं. रिश्ते कितने भी अच्छे क्यों न हों जब सोच अलग होती है तो उन में दरार आ ही जाती है.

ऐसा ही कुछ हुआ सपना और नीलम के बीच. नीलम पढ़ने में तेज है, सामाजिक भी है, पारिवारिक भी है, लेकिन अकसर जब वह अपने दोस्तों के साथ होती है और वादविवाद के दौरान राजनीतिक मुद्दे आ जाते हैं तो वह बहुत अग्रैसिव हो जाती है. चेहरा लाल हो जाता है. कभीकभी तो गुस्से में कांपने भी लगती है.

कुछ दिनों पहले की बात है. नीलम और सपना अपने बाकी दोस्तों के साथ कालेज की कैंटीन में बैठे थे. चाय पीतेपीते सब की नजर कैंटीन में लगे टीवी पर थी. तभी किसी एक राजनीतिक दल का प्रचार आने लगा. नीलम ने प्रचार देखते ही कहा, ‘‘देखना, इस बार इसी की सरकार बनेगी. सही माने में ऐसा नेता ही देश का सिपाही है.’’

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नीलम की इस बात से सपना सहमत नहीं थी. वह अपनी राय देते हुए बोली, ‘‘किसी खास नेता का पक्ष करना एक व्यक्तिगत मामला है. तुम्हें यह पसंद होगा मुझे नहीं.’’

इस पर नीलम का मुंह बन गया. उस ने चाय के कप को सपना की तरफ गुस्से में पटकते हुए कहा, ‘‘क्यों इस में क्या खराबी है?’’

तभी वहां बाकी दोस्तों ने भी इस राजनीतिक दल और इस के विचारों का विरोध किया. नीलम अकेले उस के पक्ष में थी. सपना और बाकी दोस्त उस दल की खामियां निकालने में लगे हुए थे. ऐसे में नीलम खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगी. फिर वह गुस्से में पैर पटकती हुई वहां से चली गई.

नीलम और सपना आसपास ही रहती थीं. इसलिए दोनों कालेज भी एकसाथ आयाजाया करती थीं. लेकिन उस दिन नीलम बिना बताए ही कालेज से निकल गई. सपना ने जब उसे फोन कर के पूछा कि कहां है तो नीलम ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए मैं जल्दी घर आ गई.’’

सपना यह सुन कर उस का हाल जानने के लिए कालेज से सीधे नीलम के घर चली गई. वहां उस ने नीलम को अपने भाई के साथ छत पर बैडमिंटन खेलते पाया. उसे देख कर ऐसा लगा ही नहीं कि उस की तबीयत खराब है. सपना ने नीलम से बात करने की कोशिश की तो नीलम उसे नजरअंदाज करते हुए चली गई.

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कुछ दिनों तक सपना ने भी नीलम से बात नहीं की. एक दिन कालेज में डिबेट प्रतियोगिता आयोजित की गई. इस में छात्रों को किसी एक राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में बोलना था. इस प्रतियोगिता में सपना और नीलम ने भी भाग लिया. नीलम को ऐसे दल का नाम दिया गया जिस के पक्ष में सपना थी.

पहले बारी सपना ने किसी राजनीतिक दल की तारीफों के पुल बांध दिए. लेकिन जब नीलम की बारी आई तो उस ने शुरुआत ही ऐसे की जैसे मानो किसी ने उस के घर वालों को कुछ उलटा बोल दिया हो. दरअसल, नीलम कैंटीन की बात को भूली नहीं थी, इसलिए इस डिबेट के सहारे वह अपने दोस्तों को जवाब दे रही थी. प्रतियोगिता तो वह जीत गई, लेकिन इस राजनीतिक मतभेद के बाद अपने दोस्तों से दूर हो गई.

आमतौर पर बसों में, ट्रेनों में अथवा किसी सार्वजनिक जगह पर हम अकसर लोगों को राजनीतिक मुद्दे पर बात करते हुए देखते हैं. सार्वजनिक जगहों पर जब ऐसे मुद्दे उठाए जाते हैं तो यह लड़ाई की खास वजह बनती है. कोई जरूरी नहीं है कि वहां एकमत राय रखने वाले लोग हों.

चुनावी शोर

चुनावी समय शुरू होने से पहले ही लोग अलगअलग समूहों में दिखने लग जाते हैं. कल तक जो एकसाथ बैठ कर चाय पीते थे वे अलगअलग राजनीति दलों के सहायक बन कर एकदूसरे से लड़ने पर उतारू हो जाते हैं जैसे कोई इन की संपत्ति हड़पने की कोशिश कर रहा हो.

राजनीतिक मुद्दे पर अपनी बात रखना, अपनी राय देना हर किसी का अधिकार है, लेकिन इन मुद्दों की आड़ में लोग एकदूसरे से झगड़ने लग जाते हैं. एक  तरफ यह देख कर अच्छा लगता है कि देश की जनता इन मुद्दों पर आपस में वादविवाद करती है, लेकिन सोचिए अगर यही मुद्दे दुश्मनी की वजह बन जाएं तो?

दिल्ली मैट्रो में या तो लोग मौन व्रत रखे नजर आते हैं या फिर मोबाइल में खोए नजर आते हैं. लेकिन बात जब राजनीतिक मुद्दों पर बहस करने की आती है तो 2 अनजान व्यक्ति कब दोस्त बन जाते हैं और 2 दोस्त कब अनजान बन जाते हैं, इस का पता ही नहीं चलता.

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सौरभ और उस का दोस्त अमित मंडीहाउस से नोएडा जाने के लिए मैट्रो में चढ़े. दोनों की पहले से ही किसी विषय पर बात हो रही थी, लेकिन धीरेधीरे दोनों की आवाज पूरी मैट्रो में गूंजने लगी. दरअसल, दोनों राजनीतिक मुद्दे पर बात कर रहे थे. दोनों एकदूसरे से तेज आवाज में बात कर रहे थे. साइड में बैठा एक युवक सौरभ का साथ देते हुए दूसरे राजनीतिक दल की बुराई करने लगा. धीरेधीरे 2-4 लोग और बोल उठे. ऐसे में दोनों दोस्तों के बीच तूतू, मैंमैं शुरू हो गई. यह देखते ही बाकी लोग शांत हो गए. कुछ लोगों ने दोनों को शांत करवाया. दोनों शांत तो हो गए, लेकिन जैसे ही मैट्रो से बाहर निकले दोनों का गुस्सा साफ नजर आ रहा था.

राजनीतिक मुद्दों पर वादविवाद हर कोई करता है. इन मुद्दों के कारण रिश्तों में खटास आ जाए तो यह सरासर मूर्खता है.

इस में कोई संदेह नहीं है कि वादविवाद से हमारी समझ बढ़ती है, बहुत कुछ नया मालूम होता है, सामान्य ज्ञान में सुधार होता है, आत्मविश्वास भी बढ़ता है, मगर जब आप ऐसे मुद्दों को उठाते हैं, उन पर विचारविमर्श करते हैं तो नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि एक समूह में रह कर भी इन मुद्दों पर बात की जा सकती है. लेकिन कुछ लोग ऐसा नहीं करते. कई बार ऐसे मामले हिंसक भी हो जाते हैं, जो बड़े हादसे का रूप ले लेते हैं.

बुरे वक्त में मदद के लिए आप के पास कोई नेता नहीं आएगा. आप का दोस्त ही आएगा. इसलिए रिश्ते सब से पहले हैं, राजनीतिक मुद्दों के कारण संबंध खराब न करें.

मुहरे: उम्र को ले कर रश्मि पर क्यों तंज कसता था विपिन

मैं शाम की सैर से घर लौटी ही थी. पसीने से तरबतर थी. तभी डोरबैल बजी. विपिन औफिस से आ गए थे. मुझे देखते ही बोले, ‘‘रश्मि, क्या हुआ?’’

मैं ने रूमाल से पसीना पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, बस अभीअभी सैर से लौटी हूं.’’ ‘‘हूं,’’ कहते हुए विपिन बैग रख फ्रैश होने चले गए.

मैं 10 मिनट फैन के नीचे खड़ी रही. फिर मैं विपिन के लिए चाय चढ़ा कर थोड़ा लेटी ही थी कि विपिन ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ ‘‘आज गरमी में हालत खराब हो गई. अजीब सी थकान हो रही है.’’

विपिन छेड़छाड़ के मूड में आ गए थे. मुसकराते हुए बोले, ‘‘हां, उम्र भी तो हो रही है.’’ एक तो गरमी से परेशान ऊपर से विपिन की बात से मैं और तप गई.

तुनक कर बोली, ‘‘कौन सी उम्र हो रही है? अभी 50 की भी नहीं हुई हूं. हर समय उम्र का राग अलापते रहते हो.’’ विपिन ने और छेड़ा, ‘‘सच बहुत कड़वा होता है रश्मि.’’

मैं ने जलतेकुढ़ते उन्हें चाय का कप पकड़ाया. मैं इस समय चाय नहीं पीती हूं. फिर शीशे में जा कर खुद पर नजर डाली, ‘‘हुंह, कहते हैं उम्र हो रही है… सभी कौंप्लिमैंट देते हैं… इतनी फिट हूं… और विपिन कुछ भी हो जाए उम्र की बात करेंगे… सब से बड़ी बात यह कि जब मैं खुद को यंग महसूस करती हूं तो यह जरूरी है क्या कि कभी कुछ हो जाए तो उम्र ही कारण होगी? हुंह, कुछ भी बोलते रहते हैं. इन की बातों पर कौन ध्यान दे. गुस्सा अपनी ही हैल्थ के लिए ठीक नहीं है… बोलने दो इन्हें.

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थोड़ी देर में हमारे बच्चे वान्या और शाश्वत भी कोचिंग से आ गए. सब अपने रूटीन में व्यस्त थे. डिनर करते हुए अचानक मुझे कुछ याद आया, तो मैं अपने माथे पर हाथ रखते हुए बोली, ‘‘उफ, गरमी लग रही थी तो सैर से सीधी घर आ गई. कल सुबह के लिए सब्जी लाना ही भूल गई.’’ विपिन को फिर मौका मिला तो फिर अपना तीर छोड़ा, ‘‘होता है, उम्र के साथ याद्दाश्त कमजोर होती ही है.’’

एक तो सुबह क्या बनेगा, इस की टैंशन, ऊपर से फिर उम्र का व्यंग्यबाण, मैं सचमुच नाराज हो गई. मुंह से तो कुछ नहीं बोला पर विपिन को जलती नजरों से घूरा तो बच्चे समझ गए कि मुझे गुस्सा आया है, पर हैं तो ऐसी शरारतों में अपने पापा के चमचे ही न, अत: शाश्वत ने कहा, ‘‘मम्मी, आप सच ऐक्सैप्ट क्यों नहीं कर पा रहीं? कभी भी आप का बैक पेन बढ़ जाता है, कभी भी कुछ भूल जाती हो, मान लो मम्मी उम्र हो रही है.’’ वान्या को लगा कि कहीं मेरा गुस्सा न

बढ़ जाए. अत: फौरन बात संभाली, ‘‘चुप रहो शाश्वत मम्मी, सब्जी नहीं है तो कोई बात नहीं, हम तीनों कैंटीन में खा लेंगे. आप बस अपना खाना बना लेना.’’ मैं ने जल्दी से अपना खाना खत्म किया और फिर पर्स उठा, कर बोली, ‘‘देखती हूं पनीर मिल जाए तो ले आती हूं.’’

विपिन ने भी कहा, ‘‘अरे छोड़ो, कैंटीन में खा लेंगे सब.’’ जानती हूं विपिन को घर का खाना ही ले जाना पसंद है. उम्र बढ़ने की बात से मुझे गुस्सा तो आता है, चिढ़ती भी बहुत हूं पर प्यार भी तो करती हूं न उन्हें. अत: मैं उन्हें देख कर मुंह फुलाए हुए अपनी नाराजगी प्रकट करते घर से निकलने लगी, तो विपिन मुसकरा उठे. वे भी जानते हैं कि मेरा गुस्सा क्षणिक ही होता है.

हम तीसरी मंजिल पर रहते हैं. मैं सीढि़यों से ही उतरती हूं. ज्यादा सामान होता है तभी लिफ्ट में आती हूं. पनीर ले कर लौट रही थी तो देखा लिफ्ट नीचे ही थी. कोई लिफ्ट में जा रहा था. मैं भी यों ही लिफ्ट में आ गई. साथ खड़े लड़के ने लिफ्ट में 7वीं मंजिल का बटन दबाया. मैं पता नहीं किन खयालों में थी कि तीसरी मंजिल का बटन दबाना ही भूल गई. दिमाग में विपिन की उम्र की बातें ही चल रही थीं न. जब अचानक लगा कि ऊपर जा रही हूं तो हड़बड़ा कर स्टौप का बटन दबा दिया. लिफ्ट रुक गई. आजकल कुछ गड़बड़ चल रही थी.

साथ खड़ा लड़का शालीनता से बोला, ‘‘क्या हुआ मैम?’’ मैं झेंप गई. कहा, ‘‘सौरी, गलती से कर दिया. मुझे तीसरी मंजिल पर जाना था.’’

बटनों से छेड़छाड़ करने पर लिफ्ट 7वीं मंजिल पर बढ़ गई. हमारी लिफ्ट दरवाजों वाली नहीं है, चैनल वाली है, खुली है तो मुझे जरा ठीक लगता है. मैं ने अब उस लड़के पर नजर डाली. 26-27 साल का होगा. वह 7वीं मंजिल पर लिफ्ट से बाहर निकल कर मुसकराया तो आदतन मैं भी मुसकरा दी. मैं ने फिर 3 वाला बटन दबाया और अपने फ्लोर पर पहुंच मुसकराती हुई घर में घुसी. तीनों मेरा ही वेट कर रहे थे.

शाश्वत बोला, ‘‘अरे वाह, पनीर मिल गया?’’ मैं ने हंसते हुए ‘हां’ कहा तो विपिन ने कहा, ‘‘कितनी अच्छी लग रही हो हंसते हुए.’’

मैं मुसकराते हुए ही लिफ्ट में हुई गड़बड़ बताने लगी तो विपिन कुछ गंभीर हो गए. मैं मन ही मन हंसी. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा लड़का था.’’

‘‘इतनी जल्दी पता चल गया तुम्हें कि अच्छा लड़का था?’’ विपिन बोले. ‘‘हां, मुझे जल्दी पता चल जाता है,’’ कहते हुए मुझे मजा आया.

वे बोले, ‘‘ध्यान रखा करो, यार… कहां था तुम्हारा ध्यान?’’ मैं मुसकराती रही. 3-4 दिन बाद मैं शाम की सैर से लौट रही थी. वही लड़का फिर मुझे मिल गया. हमारी हायहैलो हुई, बस. 2 दिन बाद मैं फिर सब्जी ले कर लौट रही थी तो वह लिफ्ट में साथ हो गया. उस ने मेरे कुछ कहे बिना लिफ्ट तीसरी मंजिल पर रोक दी. मैं थैंक्स कह बाहर आ गई.

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मैं ने उस रात डिनर करते हुए सब को बताया, ‘‘अरे, आज वह लिफ्ट वाला लड़का भी मेरे साथ ही आया तो उस ने खुद ही तीसरी मंजिल पर लिफ्ट रोक दी.’’

विपिन के चेहरे पर जो भाव आए, उन्हें देख कर मुझे मन ही मन शरारत सूझ गई. मैं ने कई बातें एकसाथ सोच लीं. फिर भोलेपन से पूछा, ‘‘क्या हुआ विपिन? क्या सोचने लगे?’’

वान्या और शाश्वत आराम से खाना खाते हुए हमारी बातें सुन रहे थे. विपिन ने कहा, ‘‘यह फिर कहां से लिफ्ट में मिल गया?’’

‘‘तो क्या हुआ, वह तो मुझे अकसर कहीं न कहीं टकरा ही जाता है… जब एक बिल्डिंग में रहते हैं तो सामना तो होगा ही न.’’ विपिन और मैं डिनर के बाद घूमने जाते हैं. उस दिन भी गए तो वह लड़का किसी से फोन पर बात कर रहा था.. मैं ने उसे देख कर जानबूझ कर हाथ हिला दिया. उस ने भी जवाब दिया.

विपिन ने कहा, ‘‘यह कौन है?’’ ‘‘वही लिफ्ट वाला.’’

बेचारे हायहैलो पर क्या बोलते, उस समय तो चुप ही रहे. घर आ कर जानबूझ कर बच्चों के सामने बोले, ‘‘आज तुम्हारी मम्मी का लिफ्ट वाला दोस्त देखा मैं ने.’’ बच्चे हंसे तो मैं भी मुसकरा दी, ‘‘अरे छोड़ो, कहां से दोस्त होगा वह मेरा, बच्चा है, मेरी उम्र देखो… इस उम्र में उस की उम्र का मेरा क्या दोस्त बनेगा?’’

उन के मुंह से निकल ही गया, ‘‘इतनी उम्र कहां हो गई तुम्हारी?’’ मैं ने चौंकने का अभिनय किया, ‘‘अच्छा? उम्र नहीं हो गई मेरी?’’

विपिन को कुछ न सूझा तो मुझे बहुत मजा आया. उस रात सोने लेटी तो विपिन के आज के चेहरे के भाव पर हंसी आ रही थी. आजकल उम्र की छेड़छाड़ से मुझे कितना परेशान कर रखा है. मुझे तो अब शरारत सूझ ही चुकी थी. जानती हूं मेरी इस शरारत के आगे विपिन टिक नहीं पाएंगे. पर अब सोच रही हूं कि मैं उन के इस मजाक पर इतना चिढ़ती क्यों हूं… स्त्री हूं न… उम्र की बात पर दिल जरा कमजोर पड़ ही जाता है. कौन स्त्री नहीं चाहती हमेशा यंग बने रहना, पर जब मैं मन से स्वयं को यंग और ऐनर्जेटिक महसूस करती हूं तो मैं हर समय यह नहीं सुनना चाहती कि मेरी उम्र हो रही है.

कभी कहीं दर्द हो गया तो उम्र का मजाक, कभी कुछ भूल गई तो उम्र… नहीं सुनना होता मुझे ये सब. अरे, मजाक कुछ और भी तो हो सकते हैं न. उम्र के मजाक और वह भी एक स्त्री से… घोर अपराध. अगले 10-15 दिन मैं ने नोट किया कि अकसर मेरे सैर से लौटने के समय वह लिफ्ट वाला लड़का मुझे नीचे मिलता और मेरे साथ ही लिफ्ट में प्रवेश कर जाता. मेरे दिल ने कहा, यह संयोग नहीं हो सकता. वह जानबूझ कर ऐसा करने लगा है. कभी कोई अन्य व्यक्ति लिफ्ट में होता तो बस मुसकरा देता वरना थोड़ीबहुत बात करता.

मुझे 2-3 बार उस ने यह भी कहा कि मैम, यू आर लुकिंग नाइस. एक दिन उस ने लिफ्ट में मुझ से कहा, ‘‘मैम, मैं प्रशांत, बहुत दिनों से आप का नाम भी जानना चाह रहा था, प्लीज बताएं’’ इतने में तीसरी मंजिल आ गई थी लिफ्ट से निकलते हुए मैं ने कहा, ‘‘रश्मि.’’

उस ने ऊपर जाते हुए ‘‘बाय, मैम’’ कहा. मैं जब अपना नाम बता रही थी वान्या अपने घर का दरवाजा खोल कर बाहर आ रही थी, उस ने मेरा अपना नाम बताना सुन लिया था.’’ पूछा, ‘‘मम्मी, किसे अपना नाम बता रही थीं?’’

‘‘लिफ्ट वाले लड़के को.’’ वान्या ने जिस तरह मुझे देखा उस पर मैं खुल कर हंसी.

‘‘पता नहीं किसकिस से बातें करती रहती हैं आप… अच्छा, मैं नोटबुक लेने जा रही हूं. अभी आई.’’ डिनर के समय वान्या ने कहा, ‘‘मम्मी, मैं आप को बताना भूल गई. मेरी शर्ट के बटन लगा देंगी अभी?’’

‘‘हां, पर सूई में धागा डाल दो प्लीज. चश्मा लगा कर भी मुझ से धागा नहीं लगाया जाता है.’’

विपिन को एक और मौका मिल गया. बोले, ‘‘हां अब धीरेधीरे चश्मे का नंबर बढ़ेगा ही.’’ ‘‘क्यों पापा, नंबर क्यों बढ़ेगा?’’ वान्या ने पूछा.

‘‘अरे भई, उम्र के साथ नजर भी कमजोर होती है न.’’ ‘‘पापा अभी इतनी उम्र भी नहीं हुई है मम्मी की… आप ने अभी मम्मी के जलवे नहीं देखे… पड़ोस के लड़के नाम पूछते घूमते हैं.’’

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वान्या के कहने के ढंग पर मैं खुल कर हंसी. हम चारों में बेहद शानदार दोस्ती है. हमारे युवा बच्चे हमारे दोस्त हैं, हम एकदूसरे के साथ हंसीमजाक, छेड़छाड़ करते हैं. बस मैं उम्र के मजाक पर गंभीर हो जाती हूं.

विपिन ने पूछा, ‘‘कौन भई?’’ ‘‘लिफ्ट वाला लड़का आज मम्मी से इन का नाम पूछ रहा था.’’

‘‘क्यों? उसे क्या करना है इन के नाम का?’’ मैं ने बहुत ही भोलेपन से कहा, ‘‘जाने दो, बच्चा है… उम्र देखो मेरी.’’

‘‘इतनी भी उम्र नहीं हो रही तुम्हारी.’’ मैं ने फिर हैरानी से आंखें फाड़ी, ‘‘अच्छा?’’ विपिन झेंप गए तो मुझे बड़ी खुशी हुई.

हमारी सोसायटी में स्वीपर सुबह 8 बजे कूड़ा लेने आ जाते हैं. जब वान्या 8 बजे निकलती है, मैं उसी समय डस्टबिन बाहर रख देती हूं. हमारी बिल्डिंग में 4 फ्लैट हैं. 2 में महाराष्ट्रियन परिवार रहते हैं. दोनों परिवारों में पतिपत्नी कामकाजी हैं. चौथे फ्लैट में बस एक आदमी ही है. उम्र पैंतीस के आसपास होगी. वीकैंड पर उस के दरवाजे पर ताला लगा रहता है. मेरा अंदाजा है शायद अपने घर, आसपास के किसी शहर जाता होगा. इस आदमी की विपिन और हमारे बच्चों से कभी कोई हायहैलो नहीं हुई है. एक दिन मुझ से सामना होने पर उस ने पूछा, ‘‘मैडम, पीने के पानी की एक बौटल मिलेगी प्लीज? मेरा फिल्टर खराब हो गया है.’’

मैं ने ‘श्योर’ कहते हुए उस की बौटल में पानी भर दिया था. जब मैं डस्टबिन रख रही होती हूं तो वह भी अकसर अपने घर से निकल रहा होता है और मुझे गुडमौर्निंग मैम कहता हुआ सीढि़यां उतर जाता है. उस से सामना होने पर अब मेरी हायहैलो हो जाती है. बस, हायहैलो और कभी कोई बात नहीं. एक दिन हम चारों बाहर से आ रहे थे और लिफ्ट का वेट कर रहे थे तो वह आदमी मुझे गुड ईवनिंग मैम कहता हुआ सीढि़यां चढ़ गया. मैं ने भी सिर हिला कर जवाब दे दिया.

विपिन ने पूछा, ‘‘यह कौन है?’’ ‘‘हमारा पड़ोसी.’’

‘‘वह किराएदार?’’ ‘‘हां.’’

‘‘तुम से हायहैला कब शुरू हो गई? तुम्हें कैसे जानता है?’’ ‘‘एक दिन पानी मांगा था, तब से.’’

‘‘तुम से ही क्यों पानी मांगा, भई?’’ ‘‘बाकी दोनों फ्लैट दिन भर बंद रहते हैं. पानी मांगना कोई बहुत बड़ी बात थोड़े ही है.’’

‘‘तमीज देखो महाशय की. सिर्फ तुम्हें विश कर के गया.’’ ‘‘अरे, तुम लोगों को जानता ही नहीं है तो विश क्या करेगा? तुम लोग भी तो अपनी धुन में रहते हो… कहां किसी में इंट्रैस्ट लेते हो.’’

‘‘हां, ठीक है, घर में तुम हो न सब में इंट्रैस्ट लेने के लिए. आजकल बड़ी सोशल हो रही हो… कभी लिफ्ट वाले लड़के को अपना नाम बताती हो, तो कभी पड़ोसी को पानी देती हो.’’ मैं ने नाटकीय ढंग से सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘भई, बढ़ती उम्र में आसपास के लोगों से जानपहचान होनी चाहिए. क्या पता कब किस की जरूरत पड़ जाए.’’

‘‘क्या बुजुर्गों जैसी बातें कर रही हो?’’ ‘‘हां, विपिन, उम्र बढ़ने के साथ आसपास के लोगों से संबंध रखने में ही समझदारी है.’’

विपिन मुझे घूरते रह गए. कहते भी क्या. अब बातें करतेकरते हम घर आ कर चेंज कर रहे थे. कई दिन बाद लिफ्ट वाला प्रशांत मुझे शाम के समय गार्डन में भी दिखा तो मैं चौकन्नी हो गई. वह गार्डन में अब मेरे आनेजाने के समय कुछ बातें भी करने लगा था जैसे ‘आप कैसी हैं, मैम?’ या ‘कल आप सैर करने नहीं आईं’ या ‘यह ड्रैस आप पर बहुत अच्छी लग रही है, मैम.’ उस के हावभाव से, नजरों से मैं सावधान होने लगी थी. यह तो कुछ और ही सोचने लगा है.

विपिन और मेरे डिनर के बाद टहलने के समय प्रशांत रोज नीचे मिलने लगा था और मुझे देख कर मुसकराते हुए आगे बढ़ जाता था. प्रशांत का मेरे आसपास मंडराना तो इरादतन था पर नए पड़ोसी का मुझ से आमनासामना होना शतप्रतिशत संयोग होता था. स्त्री हूं इतना तो समझती ही हूं पर विपिन की बेचैनी देखने लायक थी.

वान्या को बाय कहती हुई मैं अकसर पड़ोसी की भी गुडमौर्निंग का जवाब देती तो ड्राइंगरूम में पेपर पढ़ते विपिन मुझे अंदर आते हुए देख कर यों ही पूछते, ‘‘कौन था?’’

मैं पड़ोसी कह कर किचन में व्यस्त हो जाती. अब अच्छे मूड में विपिन अकसर मुझे ऐसे छेड़ते, ‘‘इतनी वैलड्रैस्ड हो कर सैर पर जाती हो… लगता ही नहीं कि तुम्हारे इतने बड़े बच्चे हैं… बहन लगती हो वान्या की.’’

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मैं हंस कर उन के गले में बांहें डाल देती, ‘‘कितनी भी बहन लगूं पर उम्र तो हो ही रही है न?’’

‘‘अभी तो तुम बहुत स्मार्ट और यंग दिखती हो, फिर उम्र की क्या टैंशन है?’’ ‘‘सच?’’ मैं मन ही मन खुश हो जाती.

‘‘और क्या? देखती नहीं हो? आकर्षक हो तभी तो वह लिफ्ट वाला और यह पड़ोसी तुम से हायहैलो का कोई मौका नहीं छोड़ते.’’ ‘‘अरे, उन की क्या बात करनी… उन की उम्र देखो, दोनों मुझ से छोटे हैं.’’

‘‘फिर भी उम्र की तो बात छोड़ ही दो, नजर तुम पर उठती ही है. तुम ने अपनेआप को इतना फिट भी तो रखा है.’’ मैं मुसकराती रही. अब मैं ने नोट किया विपिन ने पूरी तरह से उम्र बढ़ने के मजाक बंद कर दिए थे पर अब भी जब प्रशांत और पड़ोसी मुझे विश कर रहे होते, ये मुझे गंभीर होते लगते.

विपिन और मैं एकदूसरे को दिलोजान से चाहते हैं. सालों का प्यार भरा साथ है, जो दिन पर दिन बढ़ ही रहा है. मैं उन्हें इन गैरों के लिए टैंशन में नहीं देख सकती थी. मुझे उम्र के मजाक हर बात में पसंद नहीं थे, वे अब बंद हो चुके थे. यही तो मैं चाहती थी. मुझे स्वयं को ऊर्जावान, फिट रखने का शौक है और मैं स्वयं को कहीं से भी बढ़ती उम्र का शिकार नहीं समझती तो क्यों विपिन उम्र याद दिलाएं. अब ऐसा ही हो रहा था. विपिन को सबक सिखाने के लिए अब प्रशांत और उस पड़ोसी का जानबूझ कर सामना करने की शरारत की जरूरत नहीं थी मुझे. मैं डस्टबिन और पहले बाहर रखने लगी थी. सैर के समय में भी बदलाव कर लिया था. मुझे आते देख कर प्रशांत लिफ्ट की तरफ बढ़ रहा होता तो मैं झट सीडि़यां चढ़ जाती थी. प्रशांत और पड़ोसी मुहरे ही तो थे. इन का काम अब खत्म हो गया था. इन से मेरा अब कोई लेनादेना नहीं था.

फाइनेंशियल प्लानिंग: क्या और क्यों

दुनिया में जाहिरी गौड पैसा है यानी पैसा सेकंड गौड है. इसमें, शायद, मतभेद भी नहीं है. पैसा है तो तकरीबन सबकुछ है. क्या आप उन करोड़ों भारतीयों की तरह हैं जो सालों से नौकरी कर रहे हैं पर बचत और निवेश के नाम पर उनके पास कुछ ख़ास नहीं है? अगर ऐसा है तो बदलिए अपने आप को.

दुनिया के सफलतम निवेशकों में से एक वारेन बफेट ने पैसों से सम्बंधित दो बड़े आसान नियम दिए हैं-

पहला नियम है कि –

पैसे मत गंवाइए.

और दूसरा नियम है कि –

पहला नियम मत भूलिए.

इतने बड़े इन्वेस्टमेंट गुरु का यह कथन दर्शाता है कि  ‘पैसा’ कितनी ज़रूरी चीज है. और सच ही तो है… अगर एक इंसान का जीवन देखा जाए तो अस्पताल में पैदा होने से ज़िन्दगी के आखिर दिन तक… हर कदम पर इंसान को पैसों की ज़रूरत पड़ती है.

अर्थात, पैसा कमाना बहुत ज़रूरी है और उतना ही ज़रूरी है उस पैसे को सही से मैनेज करना. पैसों के सही मैनेजमेंट से कोई भी अपने फाइनेंशियल गोल्स यानी जीवन के वित्तीय लक्ष्यों को हासिल कर सकता है.

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जीवन के वित्तीय लक्ष्य

इससे मेरा मतलब उन सपनों या जिम्मेदारियों से है जिन्हें पूरा करने के लिए हमें काफी पैसों की ज़रूरत होती है. जैसे कि-

घर खरीदना

बच्चों की उच्च शिक्षा

रिटायरमेंट आदि.

कोई भी गोल अचीव यानी लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक उचित प्लानिंग करनी होती है. और पूरे अनुशासन के साथ उस पर अमल करना होता है.  फाइनेंशियल प्लानिंग यानी वित्तीय योजना और इससे जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें समझते हैं.

क्या होती है फाइनेंशियल प्लानिंग ?

फाइनेंशियल प्लानिंग पैसों के सही मैनेजमेंट द्वारा लाइफ गोल्स अचीव करने की एक प्रक्रिया है. शुरुआतीतौर पर यह भविष्य में आने वाली पैसों की ज़रूरत का अभी से इंतजाम करने की प्रक्रिया है. और यह इंतजाम होता है हमारी मौजूदा इनकम से पैसे बचत कर विभिन्न फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स जैसे कि –

फिक्स्ड डिपोजिट, इंश्योरेंस, म्यूचुअल फंड इत्यादि में निवेश कर के.

उदाहरण के तौर पर, अगर किसी को 30 साल बाद रिटायर होना है और उस समय उसे 1 करोड़ रुपये चाहिए होंगे तो वह आज से ही कितनी बचत किस इंस्ट्रूमेंट के माध्यम से करे कि उस समय तक उसके पास 1 करोड़ रुपए इकठ्ठा हो जाएं.

फाइनेंशियल प्लानिंग, दरअसल, एक प्रक्रिया है यानी यह एक औन-गोइंग प्रोसेस है. ऐसा नहीं है कि आज आपने प्लान कर लिया  और फिर भूल गए. आपको समयसमय पर इस पर ध्यान देना होगा और अपनी मौजूदा स्थिति के मुताबिक अपनी रणनीति में सुधार कर  लाइफ गोल्स को अचीव करना होगा.

फाइनेंशियल प्लानिंग तीन ज़रूरी प्रश्नों के उत्तर देती है:

आपके फाइनेंशियल गोल्स क्या हैं?

उन गोल्स को लेकर अभी आप किस स्थिति में हैं?

आप अभी जहाँ है वहां से अपने वित्तीय लक्ष्य तक कैसे पहुंचेंगे.

फाइनेंशियल प्लानिंग की जरूरत क्यों

अमेरिकी लेखक व बिजनेसमैन जौन एल. बैक्ले ने कहा था  – ज्यादातर लोग फेल होने के लिए प्लान नहीं करते; वे फेल हो जाते हैं क्योंकि वे प्लान नहीं करते.

अगर आप प्लान करते हैं तो हो सकता है आप कल को आप अपने लाइफ गोल्स अचीव करने में कामयाब हो जाएँ लेकिन अगर आप प्लान नहीं करते हैं तो बहुत अधिक सम्भावना है कि आपको 20 साल बाद की ज़िन्दगी में कई समझौते करने पड़ें.

क्या आप अपनी खुशियों से समझौता करना चाहेंगे?

क्या आप अपने बच्चों की उच्च शिक्षा और अपनी ड्रीम रिटायरमेंट से समझौता करना चाहेंगे?

नहीं करना चाहेंगे न…इसलिए आपको अपनी  फाइनेंशियल प्लानिंग जरूर करनी चाहिए.

लेकिन मेरे पास बहुत पैसे हैं… मुझे इसकी क्या ज़रूरत है ?

यदि आप न्यूज़ देखते होंगे या अखबार पढ़ते होंगे तो अरबपति सुपरस्टारों, बड़े व्यापारियों या  खेल दुनिया की हस्तियों  के दिवालिया हो जानेने के बारे में ज़रूर सुना होगा.

वितीय संकट किसी की भी ज़िन्दगी में आ सकती है, उसके प्रति आँखें मूँद लेना सही नहीं है.  वास्तव में जिनके पास अधिक पैसे हैं उन्हें तो इस बारे में और भी सीरियस  प्लान करना चाहिए…क्योंकि फ्यूचर में अपनी प्रेजेंट लाइफ स्टाइल को  मेनटेन करने के लिए उन्हें बहुत सारे पैसों की ज़रूरत होगी. और ज़रूरी नहीं कि तेजी से बदलती इस दुनिया में  इन्कम के उनके  मौजूदा स्रोत चाहे वो जौब हो या बिजनेस; भविष्य में भी पैसे दे पाएं.

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मेरा तो खर्चा भी मुश्किल से निकलता है, मेरे जैसों के लिए तो फाइनेंशियल प्लानिंग का कोई मतलब नहीं?

ऐसा नहीं है. आपके लिए तो यह सबसे जरूरी है.  देखिए, अधिकतर मामलो में बचत ना कर पाने की दोषी आदमी की इन्कम नहीं, उसके खर्चे होते हैं. क्रेडिट कार्ड्स के जमाने में बहुत से युवा जितनी चादर है उससे अधिक पैर फैला देते हैं… वे छोटे-मोटे इतने फुजूलखर्च करते हैं कि उनके पास बचत करने को कुछ रहता ही नहीं.

इस बात को समझ लीजिए, आपके लिए फाइनेंशियल प्लानिंग कोई विकल्प नहीं है बल्कि यह आपकी अनिवार्यता है. यह बहुत ही जरूरी है आपके लिए, आपके बच्चों के भविष्य के लिए. यदि इनसे खिलवाड़ करना चाहते हैं तो ना करें लेकिन अगर खिलवाड़ नहीं करना चाहते तो आपको फाइनेंशियल प्लानिंग करनी ही होगी.

मान लिया फाइनेंशियल प्लानिंग करनी चाहिए पर मुझे फाइनेंशियल प्रक्रिया के बारे में कुछ ख़ास पता नहीं तो मैं यह कैसे कर सकता हूं?

पहली चीज, ज़रूरी नहीं कि आप अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग खुद करें. इसके लिए आप प्रमाणित आर्थिक प्लानर, इंश्योरेंस सलाहकार, म्यूचुअल फंड एडवाइजर  की मदद ले सकते हैं. हालांकि, किसी भी सूरत में आपको अपने प्लान में सक्रिय तौर पर शामिल होना चाहिए और हरेक वित्तीय फैसले यानी फाइनेंशियल डिसीजन को सोचसमझ कर लेना चाहिए.

दूसरी चीज यह कि हो सकता है फाइनेंशियल प्लानिंग आपको मुश्किल लगे, पर हकीकत में यह इतनी मुश्किल है नहीं. थोड़ी सी कोशिश से हम और आप खुद भी अपना एक फाइनेंशियल प्लान बना सकते हैं.

मै अपनी दोस्त को पसंद करता हूं, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मेरी एक दोस्त है जिस का मेरे घर पिछले 3 सालों से आनाजाना है. हम दोनों की उम्र 19 साल है. मैं एक लड़का हूं बावजूद इस के मेरे घरवालों ने कभी हमारे रिश्ते पर सवाल नहीं उठाया. अब हुआ यों कि वह और मैं हमारे एग्जाम के एक दिन पहले मेरे कमरे में पढ़ रहे थे. घर पर मम्मी थीं जो नीचे कमरे में टीवी देख रही थीं. मैं ने यों ही उस के साथ डांस करने की इच्छा जताई और उस ने हां कह दिया.

स्लो सौंग पर हम ने डांस किया और मैं ने उसे किस कर दिया जिस पर उस ने एतराज नहीं किया. पर उस किस के बाद हमारे बीच उस दिन से रिलेटेड कोई बात नहीं हुई और अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि करूं तो करूं क्या. अब यह दोस्ती है, दोस्ती से कुछ ज्यादा है या कुछ भी नहीं है, मेरी समझ से बाहर होता जा रहा है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

इस उम्र में अकसर ही ऐसा होता है और सिचुएशन औक्वर्ड हो जाती है. आप पहले तो अपनी फीलिंग्स को ले कर क्लियर हो जाइए. अगर आप को अपनी दोस्त के प्रति दोस्ती से ज्यादा कोई फीलिंग नहीं है तो उसे साफसाफ बता दीजिए. इन बातों से भाग कर केवल सिचुएशन कौंप्लिकेटेड ही होगी, सुलझेगी नहीं. यदि फीलिंग्स हैं तब भी साफसाफ कह दीजिए. अपनी दोस्त से मिलिए, उस से कहिए कि उस दिन जो कुछ हुआ आप उस बारे में बात करना चाहते हैं.

मन में जो हो, कह दीजिए. यदि उस के और आप के विचार इस विषय पर मेल खाते हों तब तो सब सही है, नहीं तो सोचसमझ कर ही कोई कदम उठाएं. यह न सोचें कि फीलिंग्स के चक्कर में कहीं दोस्ती खराब न हो जाए क्योंकि दोस्ती पर इन सब चीजों का असर पड़ता ही पड़ता है. हां, हो सके तो आमनेसामने बैठ कर ही बात करें, मैसेज पर नहीं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
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कड़ी: क्या थी इस कहानी में रिश्तों की कड़ी

Serial Story: कड़ी – भाग 2

निकिता ने विवेक को समझाया कि वह मां से कह दे कि न तो वह उन की मरजी के बगैर शादी करेगा और न अपनी मरजी के बगैर. सो, लड़की देखने जाने का सवाल ही नहीं उठता.

घर जाने के बाद विवेक का फोन आया कि मां बहुत बिगड़ीं कि अगर वह कह कर भी लड़की देखने नहीं गईं तो उन की क्या इज्जत रह जाएगी. तो मैं ने कह दिया कि मेरी इज्जत का क्या होगा जब मैं वादा तोड़ कर शादी करूंगा? पापा ने मेरा साथ दिया कि मां ने तो सिर्फ प्रस्ताव रखा है और मैं वादा कर चुका हूं. सो, मां गुड़गांव वालों को फिलहाल तो लड़के की व्यस्तता का बहाना बना कर टाल दें.

जैसा निकिता का खयाल था, अगली सुबह मां का फोन आया कि वह किसी तरह भी समय निकाल कर उन से मिलने आए. निकिता तो इस इंतजार में थी ही, वह तुरंत मां के घर पहुंच गई. मां ने उसे उत्तेजित स्वर में सब बताया, गुड़गांव वाली डाक्टर लड़की की तारीफ की और कहा, ‘‘महज इसलिए कि अमेरिका के रहनसहन पर विवेक और अपूर्वा के विचार मिलते हैं और वह उसी से शादी करना चाहता है, मैं उस लड़की को अपने घर की बहू नहीं बना सकती.’’

‘‘पापा क्या कहते हैं?’’

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‘‘उन के लिए तो जस्टिस धरणीधर के घर बेटे की बरात ले कर जाना बहुत गर्व और खुशी की बात है,’’ मां ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘तो आप किस खुशी में बापबेटे की खुशी में रुकावट डाल रही हैं, मां?’’

‘‘क्योंकि सब सहेलियों में मजाक तो मेरा ही बनेगा कि सुकन्या को बेटे से बड़ी लड़की ही मिली अपनी बहू बनाने को.’’

‘‘आप ने अपनी सहेलियों को विवेक की उम्र बताई है?’’

‘‘नहीं. उस का तो कभी जिक्र ही नहीं आया.’’

‘‘तो फिर उन्हें कैसे पता चलेगा कि अपूर्वा विवेक से बड़ी है क्योंकि लगती तो छोटी है?’’

‘‘शीलाजी कहती थीं कि लड़का उन के बेटे का पड़ोसी है. सो, शादी तय होने के बाद अकसर ही वह उन के घर आता होगा और लड़की उस के घर जाती होगी. क्या गारंटी है कि लड़की कुंआरी है?’’

‘‘अमेरिका से विक्की जो पिकनिक वगैरा की फोटो भेजा करता था उस में उस के साथ कितनी लड़कियां होती थीं? आप क्या अपने बेटे के कुंआरे होने की गारंटी ले सकती हैं?’’

सुकन्या के चुप रहने से निकिता की हिम्मत बढ़ी.

‘‘गुड़गांव वाली लड़की के बायोडाटा के अनुसार, वह भी किसी विशेष ट्रेनिंग के लिए 2 वषों के लिए अमेरिका गई थी. सो, गारंटी तो उस के बारे में भी नहीं ली जा सकती. अपूर्वा को नापसंद करने के लिए आप को कोई और वजह तलाश करनी होगी, मां.’’

‘‘यही वजह क्या काफी नहीं है कि वह विवेक से बड़ी है और मांबाप का तय किया रिश्ता नकार रही है?’’

तभी निकिता का मोबाइल बजा. निखिल का फोन था पूछने को कि मां निकिता को समझा सकी या नहीं और सब सुनने पर बोला कि यह क्लब की सहेलियों वाली समस्या तो शायद अपूर्वा की मां के साथ भी होगी. सो, बेहतर रहेगा कि दोनों सहेलियों को एकसाथ ही समझाया जाए.

‘‘मगर यह होगा कैसे?’’ निकिता ने पूछा.

‘‘साथ बैठ कर सोचेंगे. फिलहाल तुम मां से ज्यादा मत उलझो और किसी बहाने से घर वापस चली जाओ. मैं विवेक को शाम को वहीं बुला लेता हूं,’’ कह कर निखिल ने फोन रख दिया.

जैसा कि अपेक्षित था, सुकन्या ने पूछा. ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘निखिल का पूछने को कि शाम को कुछ लोगों को डिनर पर बुला लें?’’

‘‘तो तू ने क्या कहा?’’

‘‘यही कि जरूर बुलाएं. मैं जाते हुए बाजार से सामान ले जाऊंगी और निखिल के लौटने से पहले सब तैयारी कर दूंगी.’’

‘‘और मैं ने जो तुझे अपनी समस्या सुलझाने व बापबेटे को समझाने को बुलाया है, उस का क्या होगा?’’  सुकन्या ने चिढ़े स्वर में पूछा.

‘‘आप की तो कोई समस्या ही नहीं है, मां. आप सीधी सी बात को उलझा रही हैं और आप के एतराज से जब मैं खुद ही सहमत नहीं हूं तो पापा या विक्की को क्या समझाऊंगी?’’ कह कर निकिता उठ खड़ी हुई. सुकन्या ने भी उसे नहीं रोका.

शाम को निखिल व विवेक इकट्ठे ही घर पहुंचे. ‘‘अपूर्वा को सब बात बता कर पूछता हूं कि क्या उस की मां के साथ भी यह समस्या आएगी,’’ विवेक ने निखिल की बात सुनने के बाद कहा और बरामदे में जा कर अपूर्वा से मोबाइल पर बात करने लगा.

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‘‘आप का कहना सही है, जीजाजी, अपूर्वा कहती है कि घर में सिर्फ मां ही को उस का रिश्ता तोड़ने पर एतराज है वह भी इसलिए कि लोग, खासकर उन की महिला क्लब की सहेलियां, क्या कहेंगी. रिश्ता तो खैर टूट ही रहा है क्योंकि जस्टिस धर ने अपने बेटे को आलोक से बात करने को कह दिया है. लेकिन मेरे साथ रिश्ता जोड़ने में भी उस की मां जरूर अडं़गा लगाएंगी, यह तो पक्का है,’’ विवेक ने कहा.

‘‘आलोक से रिश्ता खत्म हो जाने दो, फिर तुम्हारे से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू करेंगे. मां के कुछ कहने पर यही कहो कि कुछ दिनों तक सिवा अपने काम के, तुम किसी और विषय पर सोचना नहीं चाहते. अपूर्वा को आश्वासन दे दो कि उस की शादी तुम्हीं से होगी,’’ निखिल ने कहा.

‘‘मगर कैसे? 2 जिद्दी औरतों को मनाना आसान नहीं है, निखिल,’’ निकिता ने कहा.

‘‘पापा को तो बीच में डालना नहीं चाहता क्योंकि तब मां उन से और अपूर्वा दोनों से चिढ़ जाएंगी,’’ निखिल कुछ सोचते हुए बोला. ‘‘पापा से इजाजत ले कर मैं ही जस्टिस धरणीधर से बात करूंगा.’’

‘‘मगर पापा या जस्टिस धर की ओर से तो कोई समस्या है ही नहीं,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मगर जिन्हें समस्या है, उन दोनों को एकसाथ कैसे धाराशायी किया जा सके, यह तो उन से बात कर के ही तय किया जा सकता है. फिक्र मत करो साले साहब, मैं उसी काम की जिम्मेदारी लेता हूं जिसे पूरा कर सकूं,’’ निखिल ने बड़े इत्मीनान से कहा, ‘‘जस्टिस धर के साथ खेलने का मौका तो नहीं मिला लेकिन बिलियर्ड्स रूम में अकसर मुलाकात हो जाती है. सो, दुआसलाम है. उसी का फायदा उठा कर उन से इस विषय में बात करूंगा.’’

कुछ दिनों के बाद क्लब में आयोजित एक बिलियर्ड प्रतियोगिता जीतने पर जस्टिस धर ने उस के खेल की तारीफ की, तो निखिल ने उन्हें अपने साथ कौफी पीने के लिए कहा और उस दौरान उन्हें विवेक व अपूर्वा के बारे में बताया.

जस्टिस धर के यह कहने पर कि उन्हें तो अपूर्वा के लिए ऐसे ही घरवर की तलाश है. सो, वे विवेक और उस के पिता केशव नारायण से मिलना चाहेंगे. निखिल ने कहा कि वे तो स्वयं ही उन से मिलना चाहते हैं, लेकिन समस्या सुकन्या के एतराज की है, महिला क्लब के सदस्यों को ले कर और यह समस्या अपूर्वा की माताजी की भी हो सकती है.

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‘‘अपूर्वा की माताजी के महिला क्लब की सदस्यों ने तो मेरी नाक में दम कर रखा है,’’ जस्टिस धर ने झल्ला कर कहा, ‘‘शीला स्वयं भी नहीं चाहती कि अपूर्वा शादी कर के अमेरिका जाए लेकिन सब सहेलियों को बता चुकी है कि उस का होने वाला दामाद अमेरिका में इंजीनियर है. सो, उन के सामने अपनी बात बदलना नहीं चाहती, इसलिए अपूर्वा को समझा रही है कि फिर अमेरिका जाए और आलोक को बहलाफुसला कर भारत में रहने को मना ले.

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Serial Story: कड़ी – भाग 1

बृहस्पति की शाम को विवेक को औफिस से सीधे अपने घर आया देख कर निकिता चौंक गई.

‘‘खैरियत तो है?’’

‘‘नहीं दीदी,’’ विवेक ने बैठते हुए कहा, ‘‘इसीलिए आप से और निखिल जीजाजी से मदद मांगने आया हूं, मां मुझे लड़की दिखाने ले जा रही है.’’

निखिल ठहाका लगा कर हंस पड़ा और निकिता भी मुसकराई.

‘‘यह तो होना ही है साले साहब. गनीमत करिए, अमेरिका से लौटने के बाद मां ने आप को 3 महीने से अधिक समय दे दिया वरना रिश्तों की लाइन तो आप के आने से पहले ही लगनी शुरू हो गई थी.’’

‘‘लेकिन मैं लड़की पसंद कर चुका हूं जीजाजी और यह फैसला भी कि शादी करूंगा तो उसी से.’’

‘‘तो यह बात मां को बताने में क्या परेशानी है, लड़की अमेरिकन है क्या?’’

‘‘नहीं जीजाजी. आप को शायद याद होगा, दीदी, जब मैं अमेरिका से आया था तो एयरपोर्ट पर मेरे साथ एक लड़की भी बाहर आई थी?’’

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निकिता को याद आया, विवेक के साथ एक लंबी, पतली युवती को आते देख कर उस ने मां से कहा था, ‘विक्की के साथ यह कौन है, मां? पर जो भी हो दोनों की जोड़ी खूब जम रही है.’ मां ने गौर से देख कर कहा था, ‘जोड़ी भले ही जमे मगर बन नहीं सकती. यह जस्टिस धरणीधर की बेटी अपूर्वा है और इस की शादी अमेरिका में तय हो चुकी है, शादी से पहले कुछ समय मांबाप के साथ रहने आई होगी’.

निकिता ने मां की कही बात विवेक को बताई.

‘‘तय जरूर हुई है लेकिन शादी होगी नहीं. मेरी तरह अपूर्वा को भी अमेरिका में रहना पसंद नहीं है और वह हमेशा के लिए भारत लौट आई है,’’ निकिता की बात सुन कर विवेक ने कहा.

‘‘उस ने यह फैसला तुम से मुलाकात के बाद लिया?’’

‘‘मुझ से तो उस की मुलाकात प्लेन में हुई थी, दीदी. बराबर की सीट थी, सो, इतने लंबे सफर में बातचीत तो होनी ही थी. मेरे से यह सुन कर कि मैं हमेशा के लिए वापस जा रहा हूं, उस ने बताया कि उस का इरादा भी वही है. उस के बड़े भाई और भाभी अमेरिका में ही हैं.

‘‘पिछले वर्ष घरपरिवार अपने बेटे के पास बोस्टन गया था. वहां जस्टिस धर को पड़ोस में रहने वाला आलोक अपूर्वा के लिए पसंद आ गया. अपूर्वा के यह कहने पर कि उसे अमेरिका पसंद नहीं है, उस की भाभी ने सलाह दी कि बेहतर रहे कि वीसा की अवधि तक अपूर्वा वहीं रुक कर कोई अल्पकालीन कोर्स कर ले ताकि उसे अमेरिका पसंद आ जाए. सब को यह सलाह पसंद आई. संयोग से आलोक के मातापिता भी उन्हीं दिनों अपने बेटे से मिलने आ गए और सब ने मिल कर आलोक और अपूर्वा की शादी की बात पक्की कर दी और यह तय किया कि शादी आलोक का प्रोजैक्ट पूरा होने के बाद करेंगे.

‘‘अपूर्वा को आलोक या उस के घर वालों से कोई शिकायत नहीं है. बस, अमेरिका की भागदौड़ वाली जिंदगी खासकर ‘यूज ऐंड थ्रो’ वाला रवैया कोशिश के बावजूद भी पसंद नहीं आ रहा. भाईभावज ने कहा कि वह बगैर आलोक से कुछ कहे, पहले घर जाए और फिर कुछ फैसला करे. मांबाप भी उस से कोई जोरजबरदस्ती नहीं कर रहे मगर उन का भी यही कहना है कि वह रिश्ता तोड़ने में अभी जल्दबाजी न करे क्योंकि आलोक के प्रोजैक्ट के पूरे होने में अभी समय है. तब तक हो सकता है अपूर्वा अपना फैसला बदल ले. यह जानते हुए कि उस का फैसला कभी नहीं बदलेगा, अपूर्वा आलोक को सच बता देना चाहती है ताकि वह समय रहते किसी और को पसंद कर सके.’’

‘‘उस के इस फैसले में आप का कितना हाथ है साले साहब?’’

‘‘यह उस का अपना फैसला है, जीजाजी. हालांकि मैं ने उस से शादी करने का फैसला प्लेन में ही कर लिया था मगर उस से कुछ नहीं कहा. टैनिस खेलने के बहाने उस से रोज सुबह मिलता हूं. आज उस के कहने पर कि समझ नहीं आ रहा मम्मीपापा को कैसे समझाऊं कि आलोक को ज्यादा समय तक अंधेरे में नहीं रखना चाहिए, मैं ने कहा कि अगर मैं उन से उस का हाथ मांग लूं तो क्या बात बन सकती है तो वह तुरंत बोली कि सोच क्या रहे हो, मांगो न. मैं ने कहा कि सोचना मुझे नहीं, उसे है क्योंकि मैं तो हमेशा नौकरी करूंगा और वह भी अपने देश में ही. सो, आलोक जितना पैसा कभी नहीं कमा पाऊंगा. उस का जवाब था कि फिर भी मेरे साथ वह आलोक से ज्यादा खुश और आराम से रहेगी.’’

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‘‘इस से ज्यादा और कहती भी क्या, मगर परेशानी क्या है?’’ निखिल ने पूछा.

‘‘मां की तरफ से तो कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि अपूर्वा की मां शीला से उन की जानपहचान है…’’

‘‘वही जानपहचान तो परेशानी की वजह है, दीदी,’’ विवेक ने बात काटी, ‘‘मां कहती हैं कि अपूर्वा की मां ने उन्हें जो बताया है वह सुनने के बाद वे उसे अपनी बहू कभी नहीं बना सकतीं.’’

‘‘शीला धर से मां की मुलाकात सिर्फ महिला क्लब की मीटिंग में होती है और बातचीत तभी जब संयोग से दोनों बराबर में बैठें. मैं नहीं समझती कि इतनी छोटी सी मुलाकात में कोई भी मां अपनी बेटी के बारे में कुछ आपत्तिजनक बात करेगी.’’

‘‘मां उन से मिली जानकारी को आपत्तिजनक बना रही हैं जैसे लड़की की उम्र मुझ से ज्यादा है…’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ निकिता ने बात काटी, ‘‘लगती तो तुम से छोटी ही है और आजकल इन बातों को कोई नहीं मानता. मैं समझाऊंगी मां को.’’

‘‘यही नहीं और भी बहुतकुछ समझाना होगा, दीदी,’’ विवेक ने उसांस ले कर कहा, ‘‘फिलहाल तो शनिवार की शाम को गुड़गांव में जो लड़की देखने जाने का कार्यक्रम बना है, उसे रद करवाओ.’’

‘‘मुझे तो मां ने इस बारे में कुछ नहीं बताया.’’

‘‘कुछ देर पहले मुझे फोन किया था कि शनिवारइतवार को कोई प्रोग्राम मत रखना क्योंकि शनिवार को गुड़गांव जाना है लड़की देखने और अगर पसंद आ गई तो इतवार को रोकने की रस्म कर देंगे. मैं ने टालने के लिए कह दिया कि अभी मैं एक जरूरी मीटिंग में हूं, बाद में फोन करूंगा. मां ने कहा कि जल्दी करना क्योंकि मुझे निक्की और निखिल को भी चलने के लिए कहना है.’’

निखिल फिर हंस पड़ा,

‘‘यानी मां ने जबरदस्त नाकेबंदी की योजना बना ली है. पापा भी शामिल हैं इस में?’’

‘‘शायद नहीं, जीजाजी. सुबह मैं और पापा औफिस जाने के लिए इकट्ठे ही निकले थे. तब मां ने कुछ नहीं कहा था.’’

‘‘मां योजना बनाने में स्वयं ही सिद्धहस्त हैं. उन्हें किसी को शामिल करने या बताने की जरूरत नहीं है. उन के फैसले के खिलाफ पापा भी नहीं बोल सकते,’’ निकिता ने कहा.

‘‘तुम्हारा मतलब है साले साहब को गुड़गांव लड़की देखने जाना ही पड़ेगा,’’ निखिल बोला.

‘‘जब उसे वहां शादी करनी ही नहीं है तो जाना गलत है. तुम कई बार शनिवार को भी काम करते हो विवेक, सो, मां से कह दो कि तुम्हें औफिस में काम है और फिर चाहे अपूर्वा के साथ या मेरे घर पर दिन गुजार लो.’’

‘‘औफिस में वाकई काम है, दीदी. लेकिन उस से समस्या हल नहीं होगी. मां लड़की वालों को यहां बुला लेंगी.’’

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‘‘तुम चाहो तो मां को समझाने के लिए विवेक के साथ जा सकती हो, निक्की. मैं बच्चों को खाना खिलाने के बाद सुला भी दूंगा.’’

‘‘तब तो मां और भी चिढ़ जाएंगी कि मैं ने दीदी से उन की शिकायत की है. फिलहाल तो दीदी को मुझे यह समझाना है कि गुड़गांव वाला परिच्छेद खुलने से पहले बंद कैसे करूं. और जब मां मेरी शिकायत दीदी से करें तो वह कैसे बात संभालेंगी,’’ विवेक ने कहा.

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