Serial Story: नया क्षितिज – भाग 5

एक पल को मान्या चुप रही, फिर बोली, ‘‘मां, डाक्टर से कहो कि किसी प्रकार दवाओं से एक माह कट जाए तो ठीक होगा तब तक हम लोग लौट आएंगे. बड़ी मुश्किल से यह प्रोग्राम बना है, कैंसिल करना मुश्किल है. मृणाल तथा रोहित जीजा बड़े ही ऐक्साइटेड हैं. आप समझ रही हैं न.’’

‘‘हां बेटा, मैं सब समझ रही हूं. तुम लोग अपना प्रोग्राम खराब न करो’’ वसुधा ने आहत स्वर में कहा.  अब? अब क्या करें, क्या नागेश से ही मदद लेनी होगी. शायद यही ठीक होगा और उस ने नागेश को फोन मिला दिया.

हौस्पिटल में ऐडमिट होने के तत्काल बाद ही उस का इलाज शुरू हो गया. 4 घंटे की लंबी प्रक्रिया के बाद उसे औब्जर्वेशन में रखा गया. दूसरे दिन उसे रूम में शिफ्ट कर दिया गया. उसे कुछ पता भी नहीं चला कि सबकुछ कैसे हुआ. जब होश आया तब उस ने नागेश को अपने बैड के पास आरामकुरसी पर आंखें बंद किए हुए अधलेटे देखा. बड़ा ही मासूम लग रहा था, थकान तथा चिंता की लकीरें चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रही थीं. उस का एक हाथ उस के हाथ पर था. उस ने धीरे से नागेश के हाथ पर अपना दूसरा हाथ रख दिया. नागेश चौंक कर उठ गया. ‘‘क्या हुआ वसु, तबीयत अब कैसी लग रही है?’’ बेचैनी थी उस के स्वर में. यह वसुधा ने भी महसूस किया.

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वसुधा यह सोचसोच कर अभीभूत हो रही थी कि नागेश न होते तो क्या होता. संतानों ने तो अपनाअपना ही देखा. मां का क्या होगा, इस से किसी को मतलब नहीं. वह कृतज्ञता से दबी जा रही थी. 3 दिन वह हौस्पिटल में रही और इन 3 दिनों में नागेश ने उस की सेवा में दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा. चौथे दिन वह नागेश के सहारे ही वापस आई. बेहद कमजोरी आ गई थी. नागेश ने हर तरह से उस की सेवा की. इलाज के दौरान जो भी व्यय होता रहा, नागेश ने खुशीखुशी उसे वहन किया. ऐसा प्रतीत होता था मानो वह प्रायश्चित्त कर रहा हो. जब वसुधा पूरी तरह स्वस्थ हो गई तब नागेश ने उस की देखभाल के लिए एक नर्स का इंतजाम कर दिया और उस से विदा मांगी.

वसुधा का मन न जाने कैसाकैसा हो रहा था. उस के जी में आता था कि दौड़ कर नागेश को रोक ले. उस ने बैड से उठने का उपक्रम किया किंतु तब तक नागेश जा चुका था. वह चुपचाप बैठी, सोचने लगी, कहीं वह नागेश को दोबारा खो तो नहीं रही है? नहीं, इतने वर्षों के विछोह के बाद, इतनी मुश्किलों के बाद नागेश उसे मिला है, अब वह उसे दूर नहीं जाने देगी. लेकिन वह उसे किस अधिकार से रोक सकती है.

नागेश की आंखों में उस के लिए चाहत साफसाफ दिखती थी. पर प्रकट में उस ने कुछ भी नहीं कहा. तो क्या हुआ, तेरी इतनी सेवा उस ने की, क्या यह उस का प्यार नहीं था? हां, प्यार तो था, पर मुझे अपनाएंगे ही, इस का क्या भरोसा, और फिर हमारी शादी वाली उम्र भी तो नहीं है, वह खुद ही बोल उठी.

सायंकाल नागेश फलों का जूस ले कर आया, उस का हालचाल पूछा और अपने हाथों से उसे जूस पिलाया. तभी वसुधा ने उस का हाथ थाम लिया, ‘‘क्यों इतनी सेवा कर रहे हो? छोड़ दो न मुझे अकेले. यह तो मेरा प्रारब्ध है, कोई क्या कर सकता है?’’

नागेश के होंठों पर हलकी सी स्मित आई, तत्काल ही बोल उठा, ‘‘कौन कहता है कि तुम अकेली हो? जब तक मैं हूं, तुम अकेली नहीं होगी, वसु. अगर तुम्हें एतराज न हो तो हम अपने रिश्ते को एक नाम दे दें.’’ थोड़े विराम के बाद वह धीमे से बोला, ‘‘वसु, क्या मुझ से विवाह करोगी?’’

वसुधा चौंक उठी, ‘‘विवाह, इस उम्र में? नहीं, नहीं, नागेश, समाज हमें जीने नहीं देगा. लोगों को बातें बनाने का अवसर मिल जाएगा. मैं भी लोगों की नजरों में गिर जाऊंगी और फिर स्वयं मेरे बच्चे भी मेरा ही नाम धरेंगे.’’

‘‘क्या तुम समाज की इतनी परवा करती हो? क्या दिया है समाज ने तुम को? अकेलापन, अवसाद, त्रासदी. क्या एक स्त्री को जीने के लिए ये तीनों सहारे हैं? क्या तुम्हें हंसने का, खुश रहने का अधिकार नहीं है? और शादी केवल शारीरिक सुख के लिए नहीं की जाती है, एक उम्र आती है जब हर व्यक्ति को एक साथी की जरूरत होती है. और इस समय मुझे तुम्हारी और तुम्हें मेरी जरूरत है. यदि हां कर दो तो शायद हम बीते हुए पलों को नए रूप में जी सकेंगे. यह सच है कि 35 वर्षों पूर्व का बीता हुआ समय लौट कर नहीं आ सकेगा, पर आगे जो भी समय है, हम उसे भरपूर जिएंगे.

‘‘तुम कहती हो, बच्चे तुम्हारा ही नाम धरेंगे, तो जरा सोचो, तुम ने अपने बच्चों के लिए क्या नहीं किया, क्याक्या तकलीफें नहीं उठाईं और जब तुम्हारा समय आया तब सब ने मुंह फेर लिया. अब उन्हें अपनाअपना परिवार ही दिख रहा है. उन की दृष्टि में तुम्हारा कोई भी अस्तित्व नहीं है. तुम उन को व्यवस्थित करने का एक साधन मात्र थीं.

मैं तुम्हें बच्चों के खिलाफ नहीं कर रहा हूं, बल्कि जीवन की वास्तविकता दिखा रहा हूं. यह समाज ऐसा ही है और तुम्हारे बच्चे भी इस से परे नहीं हैं. उन की निगाहों में तुम एक आदर्श मां हो जिस ने जीवन की सारी समस्याओं का अब तक अकेले सामना कर के अपने बच्चों का पालनपोषण किया जोकि तुम्हारा कर्तव्य भी था. किंतु उन्हें यह याद नहीं कि उन का भी कुछ कर्तव्य है. उन्होंने तुम को ग्रांटेड समझ लिया. तुम्हारी अपनी क्या इच्छाएं हैं, कामनाएं हैं तथा उन से तुम्हारी क्या अपेक्षाएं हैं, उन्हें किसी भी चीज से सरोकार नहीं. हो सकता है कि वे लोग तुम्हें मां का दरजा दे रहे हों परंतु इस से क्या तुम्हारी इच्छाएं, तुम्हारी कामनाएं दमित हो जानी चाहिए?

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बच्चे भी इसी समाज का अंग हैं. समाज से परे वे कुछ भी नहीं सोच सकते हैं. वैसे, तुम चाहो तो अपने बच्चों से सलाह कर लो. देखो, वे लोग क्या राय देते हैं?’’ कह कर नागेश थोड़ा दुखी हो कर चला गया.

वसुधा ने कुणाल को फोन मिलाया. उस का फोन टूंटूं कर रहा था. उस ने कई बार फोन मिलाया. बड़ी देर बाद फोन लग ही गया. ‘‘हैलो,’’ कुणाल का स्वर थोड़ा खीझा हुआ था, ‘‘क्या हुआ, मां, इस समय क्यों फोन किया?’’ स्वर से स्पष्ट था कि उसे इस समय वसुधा का फोन करना पसंद नहीं आया था.

‘‘बेटा, बात यह है कि मुझे हार्ट प्रौब्लम हो गई है, एंजियोग्राफी हुई है. एक सप्ताह बीत गया है. अब ऐसा लग रहा है कि अकेले रहना मुश्किल है. किसी न किसी को तो मेरे पास होना ही चाहिए. वह तो एक परिचित थे, जिन्होंने बहुत मदद की और अभी भी एक नर्स इंगेज कर रखी है.’’

‘‘ठीक किया. देखो मां, किसी के पास इतनी फुरसत नहीं है और अब अपना ध्यान स्वयं रखना होता है. वान्या दीदी तथा मान्या भी अपने परिवार के साथ यूरोप टूर पर जा रही हैं. वे दोनों भी नहीं आ पाएंगी. अपना खयाल रखना और हां, उन सज्जन को मेरा हार्दिक धन्यवाद कहना जिन्होंने तुम्हारी इतनी सहायता की,’’ फोन कट गया.

वसुधा स्तब्ध थी. ये मेरी संतानें हैं जिन के लिए मैं ने अपने किसी सुख की परवा नहीं की. मृगेंद्र की मृत्यु के समय वह एकदम ही युवा थी. बहुतों ने उस से विवाह करने के लिए कोशिश की पर वह अपने बच्चों को छोड़ कर नहीं रह सकती थी और 3-3 बच्चों के साथ उसे कोई स्वीकार भी नहीं करता. सो, वह अपने बच्चों के लिए ही जीती रही. किंतु क्या मिला उसे? आज बच्चों को इतनी फुरसत नहीं है कि वे मां का खयाल रख सकें.

वसुधा को ऐसा लगता है कि उस का वह स्वप्न, जिस में वह अथाह जलराशि में तिनके की तरह बह रही थी, और अदृश्य साया उस को थामने के लिए हाथ बढ़ा रहा था, क्या उसे आज की परिस्थितियों की ओर ही इंगित कर रहा था? और वह हाथ, जो किसी अदृश्य साए का था, शायद वह नागेश का ही था. हां, अवश्य ही, वह नागेश ही रहा होगा.

अब वह निर्णय लेने की स्थिति में आ गई थी. सब ने उसे मूर्ख समझा, ठीक है. लेकिन अब वह और मूर्ख नहीं बनना चाहती. उस का भी अपना जीवन है, उस की भी अपनी हसरतें हैं जिन्हें अब वह पूरा करेगी. यदि बच्चों को उस की आवश्यकता होगी तो वे स्वयं उस के पास आएंगे और उस ने उसी क्षण एक निर्णय ले लिया. उस ने नागेश को फोन मिलाया. ‘‘हैलो,’’ नागेश का स्वर सुनाई दिया.

दरवाजे की घंटी बजी, नर्स ने द्वार खोला, नागेश ही था. ‘‘क्या हुआ वसु, क्या तबीयत खराब लग रही है? डाक्टर को बुलाएं?’’ चिंता उस के हर शब्द में भरी हुई थी.

‘‘नागेश, कोर्ट कब चलना होगा? अब रुकने से कोई लाभ नहीं. मुझे भी तुम्हारा साथ चाहिए, बस. और कुछ नहीं,’’ वसुधा का स्वर भराभरा था. ‘‘और बच्चे?’’ नागेश ने कहा. ‘‘उन्हें बाद में सूचित कर देंगे,’’ वसुधा ने दृढ़ता से कहा.

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‘‘ओह वसु, भावातिरेक में नागेश ने उस का हाथ पकड़ लिया. मेरी तपस्या सफल हुई. अब हम अपना शेष जीवन भरपूर जिएंगे,’’ कह कर नागेश ने वसुधा का झुका हुआ चेहरा ठुड्डी पकड़ कर उठाया. दोनों की आंखें आंसुओं से लबरेज थीं और नागेश की आंखों से टपक कर आंसू की 2 बूंदें वसुधा की आंखों में बसे आंसुओं से मिल कर एकाकार हो रही थीं. और वसुधा, नागेश की अमरलता बन कर उस से लिपटी हुई थी. अब, उन के सामने एक नया क्षितिज बांहें पसारे खड़ा था.

Serial Story: नया क्षितिज – भाग 2

एक ओर संशयरूपी नाग फन काढ़े हुए था और दूसरी ओर आशा वसुधा को आश्वस्त कर रही थी. इन दोनों के बीच में डूबतेउतराते हुए एक सप्ताह बीत गया कि अकस्मात वज्रपात हुआ. उस के पापा के पास नागेश के पिता का पत्र आया जिस में उन्होंने विवाह करने में असमर्थता बताई थी बिना किसी कारण के.

वह हतप्रभ थी, यह क्या हुआ. वह तो नागेश के पत्र की प्रतीक्षा कर रही थी. पत्र तो नहीं आया लेकिन उस की मौत का फरमान जरूर आया था. उस का दम घुट रहा था. ऐसा प्रतीत होता था मानो उसे जीवित ही दीवार में चुनवा दिया गया हो. चारों ओर से निगाहें उस की ओर उठती थीं, कभी व्यंग्यात्मक और कभी करुणाभरी. वह बरदाश्त नहीं कर पा रही थी.

एक दिन उसे अपने पीछे से किसी की आवाज सुनाई दी. ‘ताजिए ठंडे हो गए? अब तो जमीन पर आ जाओ.’ उस ने पलट कर देखा, उस की सब से गहरी मित्र रिया हंस रही थी. वह तिलमिला उठी थी लेकिन कुछ न कह कर वह क्लास में चली गई. वहां भी कई सवालिया नजरें उसे देख रही थीं.

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धीरेधीरे ये बातें पुरानी हो रही थीं. अब उस से कोई भी कुछ नहीं पूछता था. एक रोज रिया ने हमदर्दी से कहा, ‘वसुधा, सौरी, मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था. मुझे तो अंदाजा भी नहीं था कि तेरे साथ इतना बड़ा धोखा हुआ है.’ और वह वसुधा से लिपट गई.

6 महीनों बाद ही पापा ने उस का विवाह मृगेंद्र से सुनिश्चित कर दिया और वह विदा हो कर अपने पति के घर की शोभा बन गई. विवाह की पहली रात वह सुहागसेज पर सकुचाई सी बैठी थी. कमरे की दीवारें हलके नीले रंग की थीं. नीले परदे पड़े हुए थे. नीले बल्ब की धीमी रोशनी बड़ा ही रूमानी समा बांध रही थी. वह चुपचाप बैठी कमरे का मुआयना कर रही थी कि तभी एक आवाज आई, ‘वसु, जरा घड़ी उधर रख देना.’

मृगेंद्र का स्वर सुन कर वह धक से रह गई. खड़ी हो कर उस ने मृगेंद्र की घड़ी ले ली और साइड टेबल पर रख दी. अब क्या होगा. मृगेंद्र मेरे अतीत को जानने का प्रयास करेंगे. मैं क्या कहूंगी. मौसी ने कहा था, ‘बेटी, पिछले जीवन की कोई भी बात पति को न बताना. पुरुष शक्की होते हैं. भले ही उन का अतीत कुछ भी रहा हो लेकिन पत्नी के अतीत में किसी और से नजदीकियां रखना उन्हें स्वीकार्य नहीं होता है.’

लेकिन मृगेंद्र ने कुछ भी तो नहीं पूछा. बस, उस के दोनों कंधों से उसे पकड़ कर बैड पर बैठा दिया और स्वयं ही कहने लगे, ‘वसु, मैं यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान का प्रोफैसर हूं. इतना वेतन मिल जाता है कि अपने लोगों का गुजारा हो जाए. मेरे पास एक पुराने मौडल की मारुति कार है जो मुझे बहुत ही प्रिय है. मुझे नहीं पता कि तुम्हारी मुझ से क्या अपेक्षाएं हैं परंतु कोशिश करूंगा कि तुम्हें सुखी रख सकूं. मैं थोड़े में ही संतुष्ट रहता हूं और तुम से भी यही आशा करता हूं.’

वसु हतप्रभ रह गई. यह कैसी सुहागरात है. कोई प्यार की बात नहीं, कोई मानमनौवल नहीं. बस, एक छोटी सी आरजू जो मृगेंद्र ने उसे कितने शांत भाव से साफसाफ कह दी, मानो जीवन का सारा सार ही निचोड़ कर रख दिया हो. उसे गर्व हो रहा था. वह डर रही थी कि कहीं अतीत का साया उस के वर्तमान पर काली परछाईं न बन जाए लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और वह सबकुछ बिसार कर मृगेंद्र की बांहों में समा गई.

उस ने अपनेआप से एक वादा किया कि अब वह मृगेंद्र की है और संपूर्ण निष्ठा से मृगेंद्र को सुखी रखने का प्रयास करेगी. अब उन दोनों के बीच किसी तीसरे व्यक्ति का अस्तित्व वह सहन नहीं करेगी. पेशे से मृगेंद्र एक मनोवैज्ञानिक थे, शायद, इसीलिए उन्होंने उस के मनोभावों को समझ कर उस के अतीत को जानने का कोई प्रयास नहीं किया.

2 वर्षों बाद उस ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया जो हूबहू मृगेंद्र की ही परछाईं थी. जब उन्होंने उसे अपनी गोद में लिया तो उन की आंखें छलक आईं, गदगद हो कर बोले, ‘वसु, तुम ने बड़ा ही प्यारा तोहफा दिया है. मैं प्यारी सी बेटी ही चाहता था और तुम ने मेरे मन की मुराद पूरी कर दी.’ और उन्होंने वसुधा के माथे पर आभार का एक चुंबन अंकित कर दिया. उस का नाम रखा वान्या.

वान्या के 3 वर्ष की होने के बाद उस ने एक बेटे को जन्म दिया. बड़े प्यार से मृगेंद्र ने उस का नाम रखा कुणाल. अब वह बहुत ही खुश था कि उस का जीवन धन्य हो गया. वह एक सुखी और संपन्न जीवन व्यतीत कर रही थी कि उस के जीवन में फिर एक बेटी का आगमन हुआ, मान्या. कुणाल बहुत खुश रहता था क्योंकि उसे एक छोटी बहन चाहिए थी जो उसे मिल गई थी.

हंसतेखेलते विवाह के 15 वर्ष बीत गए थे कि एक दिन मृगेंद्र के सीने में अचानक दर्द उठा. वह उन्हें ले कर अस्पताल भागी जहां पहुंचने के कुछ ही क्षणों बाद डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित करते हुए कहा, ‘मैसिव हार्ट अटैक था.’

अब वह तीनों बच्चों के साथ अकेली रह गई थी. यूनिवर्सिटी के औफिस में ही उसे जौब मिल गई और जीवन फिर धीमी गति से एक लीक पर आ गया.

वान्या और मान्या ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली थी. कुणाल इंजीनियर बन गया था. उस ने तीनों बच्चों का विवाह उन की ही पसंद से कर दिया. तीनों ही खुश थे. वान्या और मान्या दोनों ही मुंबई में थीं और कुणाल अपनी कंपनी के किसी प्रोजैक्ट के लिए जरमनी चला गया था. बच्चों के जाने से घर में चारों ओर एक नीरवता छा गई थी. तीनों बच्चे चाहते थे कि वह उन के साथ रहे लेकिन पता नहीं क्यों उसे अब अकेले रहना अच्छा लग रहा था, जैसे जीवन की भागदौड़ से थक गई हो.

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उस की सेवानिवृत्ति के 3 वर्ष बचे थे. उस ने वीआरएस ले लिया था क्योंकि अब वह नौकरी भी नहीं करना चाहती थी. जो कुछ पूंजी उस के पास थी, उस ने साउथ सिटी में 2 कमरों का एक छोटा सा फ्लैट ले लिया और अकेले रह कर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी.

अचानक आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट की आवाज हुई. वह यादों के भंवर से बाहर आ गई.

वह बहुत परेशान थी. शायद हृदय में अभी भी नागेश के लिए कुछ भावनाएं व्याप्त थीं. तभी तो न चाहते हुए भी उस के विषय में सोच रही थी. ‘क्या यह सच है कि पहला प्यार भुलाए नहीं भूलता,’ उस ने अपनी अंतरात्मा से प्रश्न किया? ‘हां’ उत्तर मिला. तो वह क्या करे, क्या नागेश से दोबारा मिलना उचित होगा? कहीं वह कमजोर न पड़ जाए. नहीं, नहीं, वह बड़बड़ा उठी. वह क्यों कमजोर पड़ेगी? जिस ने उस के जीवन के माने ही बदल दिए थे, उस धोखेबाज से वह क्यों मिलना चाहेगी? उस का और मेरा अब नाता ही क्या है? वसु मन ही मन सोच रही थी.

उस के मन में फिर विचार आया. एक बार बस, एक बार वह उस से मिल कर अपना अपराध तो पूछ लेती. ‘क्या उस ने सच में धोखा दिया था या कोई और मजबूरी थी. हुंह, उस की कुछ भी मजबूरी रही हो, मेरा जीवन तो उस ने बरबाद कर दिया था. फिर कैसा मिलना.’

वसु के मन में विरोधी विचारधाराएं चल रही थीं. लेकिन फिर उस का हृदय नागेश से मिलने के लिए प्रेरित करने लगा, हां, उस से एक बार अवश्य ही मिलना होगा. वह अपनी मजबूरी बताना भी चाह रहा था लेकिन उस ने सुनने की कोशिश ही नहीं की. अब उस ने सोच लिया कि कल सायंकाल पार्क में जाएगी जहां शायद उस का सामना नागेश से हो जाए.

बैड पर लेट कर उस ने आंखें बंद कर लीं क्योंकि रात्रि के 2 प्रहर बीत चुके थे. लेकिन नींद अब भी कोसों दूर थी. मन बेलगाम घोड़े की भांति अतीत की ओर भाग रहा था-नागेश जिस ने उस की कुंआरी रातों में चाहत के अनगिनत सपने जगाए थे, नागेश जिस के कदमों की आहट उस के दिल की धड़कनें बढ़ा देती थीं, नागेश जिस की आंखें सदैव उसे ढूंढ़ती थीं.

उसे याद आता है कि एक बार दोपहर में वह सो गई थी कि अचानक ही नागेश आ गया था. मां ने उसे झकझोर कर उठाया तो वह अचकचा कर दिग्भ्रमित सी इधरउधर देखने लगी. डूबते सूर्य की रश्मियां उस के मुख पर अठखेलियां कर रही थीं. नागेश उसे अपलक देखते हुए बोल उठा, ‘इतना सुंदर सूर्यास्त तो मैं ने अब तक के जीवन में कभी नहीं देखा. और उस का चेहरा अबीरी हो उठा था. नागेश, जिस ने पहली बार जब उसे अपनी बांहों में ले कर उस के होंठों पर अपने प्यार की मुहर लगाई थी, उस चुंबन को वह अभी तक न भूल सकी थी.

जब भी वह मृगेंद्र के साथ अंतरंग पलों में होती थी, तो उसे मृगेंद्र की हर सांस, हर स्पर्श में नागेश का आभास होता था. वह मन ही मन में बोल उठती थी, ‘काश, इस समय मैं नागेश की बांहों में होती.’ एक प्रकार से वह दोहरे व्यक्तित्व को जी रही थी.

आगे पढ़ें- प्रतिपल नागेश एक परछाईं की भांति उस के साथ…

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Serial Story: नया क्षितिज – भाग 1

‘वसु,’ पीछे से आवाज आई, वसुधा के पांव ठिठक गए, कौन हो सकता है मुझे इस नाम से पुकारने वाला, वह सोचने लगी. ‘वसु,’ फिर आवाज आई, ‘‘क्या तुम मेरी आवाज नहीं पहचान रही हो? मैं ही तो तुम्हें वसु कहता था.’’ पुकारने वाला निकट आता सा प्रतीत हो रहा था. अब वसु ने पलट कर देखा, शाम के धुंधलके में वह पहचान नहीं पा रही थी. कौन हो सकता है? वह सोचने लगी. वैसे भी, उस की नजर में अब वह तेजी नहीं रह गई थी. 55 वर्ष की उम्र हो चली थी. बालों में चांदी के तार झिलमिलाने लगे थे. शरीर की गठन यौवनावस्था जैसी तो नहीं रह गई थी. लेकिन ज्यादा कुछ अंतर भी नहीं आया था, बस, हलकी सी ढलान आई थी जो बताती थी कि उम्र बढ़ चली है.

लंबा छरहरा बदन तकरीबन अभी भी उसी प्रकार का था. बस, चेहरे पर हलकीहलकी धारियां आ गई थीं जो निकट आते वार्धक्य की परिचायक थीं. कमर तक लटकती चोटी का स्थान ग्रीवा पर लटकने वाले ढीले जूड़े ने ले लिया था.

अभी भी वह बिना बांहों का ब्लाउज व तांत की साड़ी पहनती थी जोकि उस के व्यक्तित्व का परिचायक था. कुल मिला कर देखा जाए तो समय का उस पर वह प्रभाव नहीं पड़ा था जो अकसर इस उम्र की महिलाओं में पाया जाता है.

‘वसु’ पुकारने वाला निकट आता सा प्रतीत हो रहा था. कौन हो सकता है? इस नाम से तो उसे केवल 2 ही व्यक्तियों ने पुकारा था, पहला नागेश, जिस ने जीवन की राह में हाथ पकड़ कर चलने का वादा किया था लेकिन आधी राह में ही छोड़ कर चला गया और दूसरे उस के पति मृगेंद्र जिन्हें विवाह के 15 वर्षों बाद ही नियति छीन कर ले गई थी. दोनों ही अतीत बन चुके थे तो यह फिर कौन हो सकता था. क्या ये नागेश है जो आवाज दे रहा है, क्या आज 35 वर्षों बाद भी उस ने उसे पीछे से पहचान लिया था?

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आवाज देने वाला एकदम ही निकट आ गया था और अब वह पहचान में भी आ रहा था. नागेश ही था. कुछ भी ज्यादा अंतर नहीं था, पहले में और बाद में भी. शरीर उसी प्रकार सुगठित था. मुख पर पहले जैसी मुसकान थी. बाल अवश्य ही थोड़े सफेद हो चले थे. मूंछें पहले पतली हुआ करती थीं, अब घनी हो गई थीं और उन में सफेदी भी आ गई थी.

‘तुम यहां?  इतने वर्षों बाद और वह भी इस शाम को अचानक ही कैसे आ गए,’ वसुधा ने कहना चाहा किंतु वाणी अवरुद्ध हो चली थी.

वह क्यों रुक गई? कौन था वो, उसे वसु कह कर पुकारने वाला. यह अधिकार तो उस ने वर्षों पहले ही खो दिया था. बिना कुछ भी कहे, बिना कुछ भी बताए जो उस के जीवन से विलुप्त हो गया था. आज अचानक इतने वर्षों बाद इस शाम के धुंधलके में उस ने पीछे से देख कर पहचान लिया और अपना वही अधिकार लादने की कोशिश कर रहा था. फिर इस नाम से पुकारने वाला जब तक रहा, पूरी निष्ठा से रिश्ते निभाता रहा.

आवाज देने वाला अब और निकट आ गया था. वसुधा ने अपने कदम तेजी से आगे बढ़ाए. अब वह रुकना नहीं चाहती थी. तीव्र गति से चलती हुई वह अपने घर के गेट पर आ गई थी. कदमों की आहट भी और करीब आ गई थी. उस ने जल्दी से गेट खोला. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. वह सीधे ड्राइंगरूम में जा कर धड़ाम से सोफे पर गिर पड़ी.

दिल की धड़कनें तेजतेज चल रही थीं. किसी प्रकार उस ने उन पर नियंत्रण किया. प्यास से गला सूख रहा था. फ्रिज खोल कर ठंडी बोतल निकाली. गटगट कर उस ने पानी पी लिया. तभी डोरबैल बज उठी.

उस के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. कहीं वही तो नहीं है, उस ने सोचते हुए धड़कते हृदय से द्वार खोला. उस का अनुमान सही था. सामने नागेश ही खड़ा था. क्या करूं, क्या न करूं, इतनी तेजी से इसलिए भागी थी कि कहीं फिर उस का सामना न हो जाए लेकिन वह तो पीछा करते हुए यहां तक आ गया. अब कोई उपाय नहीं था सिवा इस के कि उसे अंदर आने को कहा जाए. ‘‘आइए’’ कह कर पीछे खिसक कर उस ने अंदर आने का रास्ता दे दिया. अंदर आ कर नागेश सोफे पर बैठ गया.

वसुधा चुपचाप खड़ी रही. नागेश ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘बैठोगी नहीं वसु?’’ वसु शब्द सुन कर उस के कान दग्ध हो उठे. ‘‘यह तुम मुझे वसुवसु क्यों कह रहे हो? मैं हूं मिसेज वसुधा रैना. कहो, यहां क्यों आए हो?’’ वसुधा बिफर उठी.

‘‘सुनो, वसु, सुनो, नाराज न हो. मुझे भी तो बोलने दो,’’ नागेश ने शांत स्वर में कहा.

‘‘पहले तुम यह बताओ, यहां क्यों आए हो? मेरा पता तुम को कैसे मिला?’’ वसुधा क्रोध से फुंफकार उठी.

‘‘किसी से नहीं मिला, यह तो इत्तफाक है कि मैं ने तुम्हें पार्क में देखा. अभी 4 दिनों पहले ही तो मैं यहां आया हूं और पास में ही फ्लैट ले कर रह रहा हूं. अकेला हूं. शाम को टहलने निकला तो तुम्हें देख लिया. पहले तो पहचान नहीं पाया, फिर यकीन हो गया कि ये मेरी वसु ही है,’’ नागेश ने विनम्रता से कहा.

‘‘मेरी वसु, हूं, यह तुम ने मेरी वसु की क्या रट लगा रखी है? मैं केवल अपने पति मृगेंद्र की ही वसु हूं, समझे तुम. और अब तुम यहां से जाओ, मेरी संध्याकालीन क्रिया का समय हो गया है और उस में मैं किसी प्रकार का विघ्न बरदाश्त नहीं कर सकती हूं,’’ वसुधा ने विरक्त होते हुए कहा.

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‘‘ठीक है मैं आज जाता हूं पर एक दिन अवश्य आऊंगा तुम से अपने मन की बात कहने और तुम्हारे मन में बसी नफरत को खत्म करने,’’ कहता हुआ नागेश चला गया.

वसुधा अपनी तैयारी में लग गई किंतु ध्यान भटक रहा था. ‘‘ऐसा क्यों हो रहा है? अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था. फिर आज यह भटकन क्यों? क्यों मन अतीत की ओर भाग रहा है? अतीत जहां केवल वह थी और था नागेश. अतीत वर्तमान बन कर उस के सामने रहरह कर अठखेलियां कर रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे किसी फिल्म को रिवाइंड कर के देखा जा रहा है, उस के हृदय में मंथन हो रहा था. उस के वर्तमान को मुंह चिढ़ाते अतीत से पीछा छुड़ाना उस के लिए मुश्किल हो रहा था. अतीत ने उसे सुनहरे भविष्य के सपने दिखाए थे. उसे याद आ रहा था वह दिन जब वह पहली बार नागेश से मिली थी.

दिसंबर का महीना था. वह अपनी मित्र रिया के घर गई थी. वहां उस की 2 और भी सहेलियां आई थीं, शीबा और रेशू. रिया उन सब को ले कर ड्राइंगरूम में आ गई जहां पहले से ही उस के भाई के 2 और मित्र बैठे थे. दोनों ही आर्मी औफिसर थे. रिया के भाई डाक्टर थे, डा. रोहित. उन्होंने सब से मिलवाया. फिर सब ने एकसाथ चाय पी. वहीं उस ने नागेश को देखा. रिया ने ही बताया, ‘‘ये नागेश भाईसाहब हैं, कैप्टन हैं और यह उन के मित्र कैप्टन विनोद हैं. उन सब ने हायहैलो की, औपचारिकताएं निभाईं और वहां से विदा हो गए.

वसुधा पहली बार में ही नागेश की ओर आकर्षित हो गई थी. नागेश का गोरा चेहरा, पतलीपतली मूंछें, होंठों पर मंद मुसकान, आंखों में किसी को भी जीत लेने की चमक, टीशर्ट की आस्तीनों से झांकती, बगुले के पंख सी, सफेद पुष्ट बांहों को देख कर वसुधा गिरगिर पड़ रही थी. घर आ कर वह कुछ अनमनी सी हो गई थी. सब ने इस बात को गौर किया पर कुछ समझ न सके.

दिन गुजरते रहे और कुछ ऐसा संयोग बना कि कहीं न कहीं नागेश उसे मिल ही जाता था. फिर यह मिलना दोस्ती में बदल गया. यह दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला. घंटों दोनों दरिया किनारे घूमने चले जाते थे, बातें करते थे जोकि खत्म होने को ही नहीं आती थीं. दोनों भविष्य के सुंदर सपने संजोते थे.

दोनों के ही परिवार इस प्यार के विषय में जान गए थे और उन्हें कोई एतराज नहीं था. दोनों ने विवाह करने का फैसला कर लिया. जब उन्होंने अपना मंतव्य बताया तो दोनों परिवारों ने इस संबंध को खुशीखुशी स्वीकार कर लिया और एक छोटे से समारोह में उन की सगाई हो गई.

अब तो वसुधा के पांव जमीन पर नहीं पड़ते थे. इधर नागेश भी बराबर ही उस के घर आने लगा था. सब ने उसे घर का ही सदस्य मान लिया था. विवाह की तिथि निश्चित हो गई थी. केवल 10 दिन ही शेष थे कि अकस्मात नागेश को किसी ट्रेनिंग के सिलसिले में झांसी जाना पड़ गया.

एकदो माह की ट्रेनिंग के बाद विवाह की तिथि आगे टल गई. दोबारा तिथि निश्चित हुई तो नागेश के ताऊ का निधन हो गया. एक वर्ष तक शोक मनाने के कारण विवाह की तिथि फिर आगे बढ़ा दी गई. इस प्रकार किसी न किसी अड़चन से विवाह टलता गया और 2 वर्ष का अंतराल बीत गया.

वसुधा की बेसब्री बढ़ती जा रही थी. यूनिवर्सिटी में उस की सहेलियां पूछतीं, ‘क्या हुआ, वसुधा, कब शादी करेगी? यार, इतनी भी देरी ठीक नहीं है. कहीं कोई और ले उड़ा तेरे प्यार को तो हाथ मलती रह जाएगी.’

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‘नहीं वह मेरा है, मुझे धोखा नहीं दे सकता. और जब मेरा प्यार सच्चा है तो मुझे मिलेगा ही,’ वसुधा स्वयं को आश्वस्त करती.

नागेश 15 दिनों की छुट्टी ले कर घर जा रहा था. उस ने आश्वासन दिया था कि इस बार विवाह की तिथि निश्चित कर के ही रहेगा. वसुधा उस से आखिरी बार मिली. उसे नहीं पता था, यह मिलना वास्तव में आखिरी है. अचानक उसे आभास हुआ कि शायद अब वह नागेश को कभी नहीं देख पाएगी, दिल धक से हो गया. लेकिन फिर आशा दिलासा देने लगी, ‘नहीं, वह तेरा है, तुझे अवश्य मिलेगा.’

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निष्पक्ष पत्रकारों पर सरकारी दमन के खिलाफ मीडिया समूह एकजुट

लेखक- रोहित और शाहनवाज

26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान ‘असत्यापित’ खबर शेयर करने के चलते पत्रकारों पर लगाए गए गंभीर आरोपों, जिस में देशद्रोह जैसे संगीन आरोप भी शामिल हैं, के बारे में मीडिया और पत्रकारों की यूनियन बौडी ने 30 जनवरी को दिल्ली के प्रेस क्लब औफ इंडिया में एक प्रेस कौंफ्रेंस कर अपना विरोध दर्ज किया.

इस संयुक्त प्रैस कौंफ्रेंस का आयोजन प्रैस क्लब औफ इंडिया (पीसीआई), एडिटर्स गिल्ड औफ इंडिया, प्रैस एसोसिएशन, भारतीय महिला प्रैस कोर (आईडब्लूपीसी), दिल्ली यूनियन औफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) और इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन (आईजेयू) इत्यादि द्वारा किया गया था, जिस में कई मुख्य मीडिया पर्सनैलटीज भी शामिल थीं.

दरअसल, 28 जनवरी को उत्तर प्रदेश पुलिस और मध्य प्रदेश पुलिस ने ‘द कारवां’ के मुख्य संपादक परेश नाथ, संपादक अनंत नाथ और कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस के साथ ‘नेशनल हेराल्ड’ की सीनियर कंसल्टिंग एडिटर मृणाल पांडे, ‘इंडिया टुडे ग्रुप’ के सीनियर पत्रकार राजदीप सरदेसाई, ‘कौमी आवाज’ के एडिटर जफर आगा, सांसद शशि थरूर द्वारा 26 जनवरी, 2021 को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के दौरान एक किसान की मौत पर असत्यापित ट्वीट करने के आरोप में यह एफआईआर दर्ज किया.

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उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा सेडिशन के साथ अन्य आरोप लगाए गए हैं, जबकि एमपी पुलिस ने दुश्मनी को बढ़ावा देने का मामला दर्ज किया है.

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बता दें, उन पर भारतीय दंड सहिता 1860 के तहत 124ए (देशद्रोह), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 153बी (राष्ट्रीय-एकीकरण के लिए पूर्वाग्रह से जुड़े दावे) और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. इस मामले में कुल 11 धाराएं लगाई गई हैं, जिस में से 10 भारतीय दंड सहिता 1860 के तहत अंगरेजी हुकूमत से चलती आ रही हैं, जिस का विरोध समयसमय पर मानवाधिकारियों द्वारा होता रहा है. जिस पर आरोप लगता रहा है कि यह सरकार द्वारा अपने खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने की साजिश का हिस्सा रहता है.

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बाद इस सिलसिले में इन के खिलाफ मामलों को आगे बढ़ाने वाला हरियाणा तीसरा राज्य बन गया है. ध्यान देने वाली बात यह है कि तीनों राज्यों में भाजपा सत्ता में है, वहीं केंद्र के अधीन दिल्ली पुलिस द्वारा भी इस के तहत मामला दर्ज किया जा चुका है.

पत्रकारों पर लगाए गए इन संगीन आरोपों के खिलाफ ‘एडिटर गिल्ड औफ इंडिया’ की तरफ से 29 जनवरी को एक प्रैस स्टेटमेंट भी जारी किया गया था, जिस में उन्होंने विभिन्न भाजपाई राज्यों के प्रशासन द्वारा किए गए इस कृत्य की कड़े शब्दों में निंदा की, जिस में उन्होंने यह मांग की, “एफआईआर को तुरंत वापस लिया जाए और मीडिया को बिना किसी भय और स्वतंत्रता के साथ रिपोर्ट करने की अनुमति दी जाए.”

उन्होंने आगे कहा, “हम अपनी पहले की मांग पर भी फिर से जोर देते हैं कि उच्च न्यायपालिका इस तथ्य को गंभीरता से संज्ञान में लें कि ‘देशद्रोह’ जैसे कानूनों का इस्तेमाल अकसर फ्रीडम औफ स्पीच को बाधित करने के लिए किया जाता है, जिस पर यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करें कि ऐसे कानूनों का उपयोग स्वतंत्र मीडिया के लिए उचित नहीं है.”

30 जनवरी को मीडिया से जुड़े यूनियनों ने इस विषय पर प्रैस कौंफ्रेंस की, जिस में अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ इस प्रकार के संगीन सेडिशन जैसे आरोपों का विरोध किया व प्रैस स्टेटमेंट जारी किया.

‘प्रैस क्लब औफ इंडिया’ के प्रैसिडेंट आनंद किशोर सहाय ने प्रशासन की इस कार्यवाही का विरोध किया और कहा, “सेडिशन एक ऐसा कानून है, जिस की जगह दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश में नहीं होनी चाहिए.”

वे कहते हैं, “यह पहली बार नहीं है, जब पत्रकारों के साथ ऐसा हो रहा हो, इस से पहले भी विनोद दुआ, प्रशांत कनौजिया व अन्य के खिलाफ सेडिशन का चार्ज लगाया जा चुका है.

साल 2017-18, नेशनल कमीशन फौर रिसर्च पुलिस ब्यूरो के अनुसार, लगभग 70-80 लोगों पर हर साल सेडिशन का चार्ज लगाया जा रहा है. 20 राज्यों में लगभग 55 पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज हैं. कई मामले ऐसे हैं, जिन में पत्रकारों पर यूएपीए जैसे खतरनाक कानून लगाए गए हैं, जिन में बेल तक संभव नहीं है.”

एडिटर गिल्ड की प्रैसिडेंट सीमा मुस्तफा कहती हैं, “सेडिशन का कानून, जिसे पहले ही रद्द कर दिया जाना चाहिए था, उसे बेधड़क डराने और उत्पीड़ित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि कोई सवाल न उठाया जा सके.”

वे आगे कहती हैं, “हर कोई पत्रकार जो फील्ड पर हैं, कनफ्लिक्ट कवर कर रहे हैं, जो सड़क पर हैं, हर किसी को पता है कि गलतियां हो सकती हैं. जब आप चश्मदीदों को आधार बना कर अपनी रिपोर्टिंग करते हैं, चाहे वह असम के गृह युद्ध में हो, 84 के दिल्ली दंगों में हो, उत्तर प्रदेश व बिहार की जातीय हिंसा पर हो, आप जानते हैं कि आप उन्हीं चश्मदीदों के बयान के आधार पर ही रिपोर्ट बना रहे हैं.

“आज के समय में जल्द से जल्द रिपोर्ट बनाने की होड़ है. इस में गलतियों की संभावना हो सकती है, लेकिन उस पर सेडिशन जैसा कानून लगा देना क्या सही है? जबकि यह पता हो कि बिना किसी सुनवाई के इस केस में आप को बंद किया जा सकता है.”

सीमा मुस्तफा कहती हैं, “यह सब इसीलिए हो रहा है ताकि पत्रकारों को डराया, धमकाया और उत्पीड़ित किया जा सके. इस के साथसाथ पेशेगत रूप से काम कर रहे इसी फील्ड के लोगों को आतंकित किया जा सके. आज एक फेसबुक पोस्ट से 3 जर्नलिस्ट्स पर ऐसे केस डाल दिए हैं, वहीं एक ट्वीट के कारण सेडिशन के चार्ज लगा दिए हैं. यह एक पैटर्न है, जिस का संदेश साफ है कि चुप हो जाओ.”

दिल्ली यूनियन औफ जर्नलिस्ट्स (डीयूजे) के प्रैसिडेंट एसके पांडे का मानना है कि प्रशासन की पत्रकारों पर यह कार्यवाही अघोषित आपातकाल का प्रतीक है. वे कहते हैं, “लोग पहले भी आपातकाल की स्थिति देख चुके हैं, हम और भी बदतर स्थिति की तरफ आगे बढ़ रहे हैं, जहां अगर आप उन शक्तियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो उन के द्वारा आप पर निशाना बनाया जाएगा. चाहे वह देशद्रोह के माध्यम से हो, या एफआईआर दर्ज करने के माध्यम से, ताकि आप लड़ने की इच्छा खो दें या मजबूर महसूस करें.”

भारतीय महिला प्रैस कोर (आईडब्लूपीसी) से विनीता कहती हैं, “सरकार और पत्रकारों की आपस में कभी दोस्ती नहीं हो सकती. पत्रकारों का काम सरकार को आईना दिखाना है. मैं सीपीजी का डेटा देख रही थी तो पता चला कि इजिप्ट, टर्की, चाइना और सऊदी अरबिया इन देशों में सब से ज्यादा पत्रकारों को जेल होती है और अब मुझे लगता है कि भारत भी उस लिस्ट में जल्द ही शामिल होने वाला है. अगर आप एक ट्वीट पर सेडिशन जैसा चार्ज लगाते हैं, तो आप पूरे जस्टिस सिस्टम का मजाक उड़ा रहे हैं. पुलिस को पत्रकारों पर तुरंत कोई न कोई सेक्शन ठोकने में एक मिनट का भी समय नहीं लगता. सरकार के पास ही अपने फोरम हैं, वे प्रैस कौंसिल, प्रैस एसोसिएशन में जा सकते हैं, जहां पर वो किसी पत्रकार की शिकायत कर सकते हैं. लेकिन इस में तो कोई सड़क चलता आदमी किसी भी पत्रकार पर सेडिशन जैसा चार्ज लगा देगा.”

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वे आगे कहती हैं, “हम कुछ समय से लगातार ही एक तरीके का पैटर्न देख रहे हैं. ऐसा लगता है कि सरकार ने पहले से ही चुनचुन कर लोगों को सलैक्ट किया हुआ है, जिन की एक गलती पर ही उन पर इस तरह से चार्जेज लगा दें. अगर हम सरकार की तारीफ और प्रशंसा के पुल नहीं बांध रहे तो हम आप के लिए बुरे हैं. हाल ही में उत्तर प्रदेश में ठंड में ठिठुरते बच्चों की सही रिपोर्टिंग करने के आरोप में 2 पत्रकारों पर यूएपीए का चार्ज लगा दिया. आप ने तो पूरे लौ सिस्टम का ही मजाक बना दिया है.”

इस बीच पत्रकार राजदीप सरदेसाई, जो उन पत्रकारों में से एक हैं, जिन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, ने भी देशद्रोह कानूनों के उदारवादी उपयोग की बात की और आलोचना की. उन्होंने कहा, “आप जम्मूकश्मीर या मणिपुर में पत्रकार हैं या कांग्रेसशासित राज्य में, राजद्रोह पत्रकारों के खिलाफ अस्वीकार्य आरोप है.”

हम ने इस पूरे मामले को ले कर एसएन सिन्हा से बात की, जो आल इंडिया वोर्किंग न्यूज कैमरामेन एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. उन्होंने कहा, “जर्नलिस्ट आर नौट टेररिस्ट. जर्नलिस्ट का काम अथोरिटी से सवाल पूछना है. अगर हम सवाल पूछते हैं, तो हम पर सेडिशन का चार्ज लगा दिया जाता है. यह पूरा मामला कुछ इस प्रकार का है कि एक समय पर 4 तरह की खबरें आती हैं, हो सकता है कि एक वक्त तक आप को वह खबर लगे, लेकिन अंत में वह खबर न लगे, सेडिशन तो फिर भी नहीं बनता है. सेडिशन का कानून केवल लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, ताकि वह सवाल न उठाए.”

वे आगे कहते हैं, “पहले के समय भी सरकारों ने इस कानून का इस्तेमाल किया है, पत्रकारों को चुप कराने के लिए पहले भी इस तरह के हथकंडे उपयोग किए गए हैं. लेकिन साल 2014 के बाद एक नया ट्रेंड चला है, जिस में सरकार दूसरी आवाज को सुनने को तैयार नहीं है. यह एक तरह से अथोरिटेरियन (अधिनायक) सरकार का स्टाइल है. पहले की सरकारें तो फिर भी लोगों की सुन लेती थीं, लेकिन यह सरकार तो किसी की भी सुनने को तैयार ही नहीं है.”

बता दें कि एसएन सिन्हा इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

वहीं हमारी बात जब सीनियर पत्रकार आशुतोष से हुई, तो उन्होंने बताया, “सेडिशन का चार्ज लगा कर सरकार पत्रकारों को दबाने का काम कर रही है. लेकिन अगर पत्रकार डर गए, तो लोकतंत्र सुरक्षित नहीं रहेगा. जो लोग सरकार के साथ हैं, उन पर किसी तरह का कोई ऐक्शन नहीं लिया जाता. वो चाहे सांप्रदायिकता फैलाएं, माइनौरिटीज को टारगेट करें, झूठ फैलाएं, नफरत का वातावरण पैदा करें, उन के खिलाफ कहीं कोई कानून नहीं है. जो सरकार के भोपूं बन जाएं वो फ्रीली घूम सकते हैं.”

वे आगे कहते हैं, “हमारे बीच के कुछ साथी सरकारी भोपूं बन चुके हैं, जिन्हें कुछ न कुछ फायदा सरकार से मिल ही रहा है. हम सरकार की चमचागिरी करने के लिए नहीं हैं, हम उन के अच्छे काम गिनवाने के लिए नहीं हैं, हम यह बताने के लिए हैं कि आप (सरकार) कहां क्या गलत कर रहे हैं.

बता दें कि इस कौंफ्रेंस में कई नामी और वरिष्ठ पत्रकार व वकील शामिल हुए, जिन में एनडीटीवी के मनोरंजन भारती व श्रीनिवास जैन, जय शंकर गुप्ता, शेखर गुप्ता, संजय हेगड़े व अन्य इत्यादि थे.

सरकार द्वारा निष्पक्ष पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों पर उत्पीड़न मुखर होता जा रहा है. इस का ज्वलंत उदाहरण हमारे सामने है. स्वतंत्र व ‘द कारवां’ के लिए लिखने वाले पत्रकार मंदीप पुनिया की घटना इसी की ही जीतीजागती मिसाल है. 30 जनवरी की शाम को किसानों के आंदोलन को लगातार कवर कर रहे मंदीप को दिल्ली पुलिस ने रात को धरनास्थल से ही गिरफ्तार कर लिया. उन के खिलाफ सेक्शन 186, 323 और 353 के तहत आरोप दर्ज किया गया है. इस के पहले एक अन्य पत्रकार धर्मेंद्र को भी हिरासत में लिया गया था, जिन्हें सुबह 5:30 बजे छोड़ा गया, लेकिन मंदीप अभी भी पुलिस हिरासत में ही हैं. जिस के बाद सरकार के इस दमन के खिलाफ अब पत्रकार समूहों से विरोध होना शुरू हो चुका है.

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गुरलीन चावला ने बनाई स्ट्रॉबेरी की खेती में पहचान

बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की खेती को बढ़ावा दे रही गुरलीन चावला की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट हुई.

मुख्यमंत्री गुरलीन चावला के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने अपने संकल्प और परिश्रम से झांसी की धरती को स्ट्रॉबेरी की खेती के अनुकूल बनाया है. इस प्रकार की अभिनव पहल से अधिक से अधिक किसानों और युवाओं को जोड़े जा सकते है.

जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा :

मुख्यमंत्री ने गुरलीन चावला से यह अपेक्षा की कि वे बुन्देलखण्ड क्षेत्र के किसानों को कृषि विविधीकरण के इस प्रयास में जागरूक करें. जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाना आवश्यक है. मुख्यमंत्री ने कृषि उत्पाद को ऑर्गेनिक प्रमाणित करने के लिए मण्डल स्तर पर प्रयोगशाला की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी की खेती जहां एक ओर किसानों की आमदनी बढ़ाने में सहायक होगी, वहीं दूसरी ओर ‘स्ट्रॉबेरी महोत्सव’ जैसे आयोजनों से बाजार की जरूरतों को भी पूरा करने में मदद मिलेगी.

मुख्यमंत्री ने उद्यान विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया कि इस प्रकार के प्रगतिशील प्रयासों का व्यापक प्रचार-प्रसार करते हुए अधिक से अधिक किसानों को इनसे जोड़ें. इन उत्पादों की मार्केटिंग और प्रोसेसिंग की व्यापक व्यवस्था किए जाने के निर्देश भी दिए.

प्रधानमंत्री ने की तारीफ :

गुरलीन चावला ने जनपद झांसी में स्ट्रॉबेरी की खेती का सफल प्रयोग किया.  17 जनवरी, 2021 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने झांसी में आयोजित ‘स्ट्रॉबेरी महोत्सव’ का वर्चुअल माध्यम से शुभारम्भ करते हुए कहा था कि बुन्देलखण्ड की धरती पर स्ट्रॉबेरी महोत्सव का आयोजन देश व प्रदेश के लिए नया सन्देश है. इससे बुन्देलखण्ड क्षेत्र की नई पहचान बनेगी. रविवार 31 जनवरी, 2021 को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्ट्रॉबेरी की सफलतापूर्वक खेती के लिए  गुरलीन चावला के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा था कि स्ट्रॉबेरी महोत्सव जैसे आयोजन यह दर्शाते हैं कि हमारा देश कृषि क्षेत्र में किस प्रकार नवीनतम तकनीकी को अपना रहा है.

सीरत ने पहली मुलाकात पर कार्तिक को मारा मुक्का, देखें प्रोमो

सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में  अब नायरा की मौत के बाद नया ट्रैक शुरु हो चुका है. जहां कार्तिक, नायरा के बिना अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर रहा है तो वहीं उसकी जिंदगी में सीरत की एंट्री हो चुकी है. हालांकि कार्तिक और सीरत की इस मुलाकात में कुछ ऐसा होने वाला है, जिसे देखकर फैंस काफी एंटरटेन होने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं प्रोमो में क्या है खास…

मेकर्स ने किया प्रोमो रिलीज

हाल ही में मेकर्स द्वारा सोशलमीडिया पर एक प्रोमो रिलीज किया गया है, जिसमें पहली ही मुलाकात में सीरत (Shivangi Joshi) कार्तिक को मुक्का मारती हुई नजर आ रही है. दरअसल, प्रोमो में सीरत को नायरा समझने की गलती करने वाला कार्तिक खुशी से फूले नहीं समा रहा है और इसी खुशी से वह सीरत को गले लगाता हुआ नजर आता है. वहीं सीरत उसे जोर से मुक्का मारती हुई दिख रही है. सीरत को ऐसा करते देखकर कार्तिक के होश ही उड़ गए हैं. कुल मिलाकर साफ है कि सीरत और कार्तिक की पहली मुलाकात काफी यादगार होने वाली है.

 

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करीब आएंगे सीरत और कार्तिक

 

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अपकमिंग एपिसोड में आपको सीरत और कार्तिक की नोकझोंक देखने को मिलने वाली है, जैसे कि पहले नायरा और कार्तिक की हुआ करती थी. हालांकि दोनों के बीच प्यार दिखेगा कि नही इसका इंतजार फैंस बेसब्री से कर रहे हैं. लेकिन बावजूद इसके फैंस को शिवांगी जोशी का ये नया लुक काफी पसंद आ रहा है. अब देखना ये है कि क्या यह जोड़ी भी नायरा कार्तिक की तरह औडियंस के दिल में जगह बना पाएगी.

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अनुपमा से बदला लेने के लिए वनराज ने चली चाल, लगाया ये बड़ा इल्जाम

सीरियल अनुपमा में अब तक आपने देखा कि किंजल को वनराज की नौकरी मिल चुकी है, जिसके चलते अब वह औफिस जाना भी शुरु कर चुकी है. वहीं काव्या पूरी कोशिश कर रही है कि कैसे किंजल को कंपनी से निकाला जाए. हालांकि वह यह करने में नाकामयाब हो गई है. पर वनराज को भड़काने में काव्या पूरी तरह कामयाब हो गई है, जिसके चलते आने वाले एपिसोड में वनराज, अनुपमा को कुछ ऐसा कहने वाला है, जिससे वह पूरी तरह टूट जाएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

औफिस में अनुपमा को देख भड़कता है वनराज

अब तक आपने देखा कि किंजल अपने औफिस में अनुपमा को ले जाकर अपनी कुर्सी पर बैठाती है, जिसे देखकर वनराज भड़क जाता है. वहीं काव्या इस बात का फायदा उठाकर वनराज के कान भरती हुई नजर आती है. वहीं इन सब से वनराज को बहुत गुस्सा आता है और वह कहता है कि 25 सालों में वह अनुपमा का असली चेहरा नही पहचान पाया.

 

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वनराज कहेगा ये बात

 

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काव्या के जाल में फंसा वनराज अब धीरे-धीरे अनुपमा को अपना दुश्मन समझ रहा है. वहीं अब अपकमिंग एपिसोड में वनराज, अनुपमा को करारा जवाब देने की बात कहता हुआ नजर आएगा. साथ ही अनुपमा को तलाक के पेपर देगा, जिसे पढ़कर शाह परिवार हैरान हो जाएगा. दरअसल, वनराज ने कागज में अनुपमा के मानसिक रुप से बीमार होने की बात लिखी होती है, जिसे सुनकर जहां सब हैरान होते हैं तो वहीं अनुपमा टूटती हुई नजर आती है.

 

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बता दें, सीरियल अनुपमा इन दिनों टीआरपी चार्ट में पहले नंबर पर बना हुआ है, जिसके कारण मेकर्स पूरी कोशिश कर रहे हैं कि किसी भी तरह शो पहले नंबर से हट ना पाए. इसीलिए वह सीरियल में नए-नए ट्विस्ट ला रहे हैं.

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Winter Special: बच्चों को नाश्ते में दें पोटैटो पिज़्जा बटन्स

कोरोना के कारण आजकल बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज चल रही हैं. कुछ समय की ऑनलाइन क्लासेज के बाद वे घर पर ही धमाचौकड़ी कर रहे हैं. उन्हें हर समय कुछ न कुछ खाने के लिए चाहिए होता है ऐसे में अक्सर हम मम्मियों के सामने सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न होता है कि उन्हें ऐसा क्या खाने को दिया जाए जो स्वास्थवर्धक भी हो और उन्हें पसन्द भी आये. तो आज हम आपको ऐसे ही एक नाश्ते के बारे में बता रहे हैं जिसमें बच्चों को फ़ास्ट फ़ूड का भी टेस्ट मिलेगा और देशी स्वाद भी. इन्हें आप अधिक मात्रा में बनाकर फ्रिज में एक माह तक स्टोर भी कर सकतीं हैं ,और आवश्यकतानुसार तल कर प्रयोग में ला सकतीं हैं. तो आइए जानते हैं इस स्वादिष्ट रेसिपी की विधि-

पोटेटो पिज्जा बटन्स
कितने लोंगों के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री

उबले आलू 4
मैदा 1 कप
काली मिर्च पाउडर 1/4टीस्पून
चिली फ्लैक्स 1/4टीस्पून
मिक्स हर्ब्स 1/4 टीस्पून
तेल 1टीस्पून
बेकिंग पाउडर 1/4 टीस्पून
नमक स्वादानुसार

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भरावन के लिए
मोजरेला चीज 1 कप
मक्खन 1 टीस्पून
उबले कॉर्न 1 टेबलस्पून
बारीक कटी शिमला मिर्च 1 टेबलस्पून
बारीक कटा धनिया 1 टेबलस्पून
चिली फ्लैक्स 1/4 टीस्पून
पिज़्ज़ा सॉस 1/2 टीस्पून

विधि

आलू को छीलकर मैश कर लें और इसमें मैदा, चिली फ्लैक्स, हर्ब्स, काली मिर्च पाउडर, बेकिंग पाउडर , नमक और तेल मिलाकर अच्छी तरह गूंध लें. इसे गूंधने में पानी की आवश्यकता नहीं होगी. इसे ढककर 15 मिनट के लिए रख दें.

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भरावन तैयार करने के लिए मोजरेला चीज़ को एक बाउल में किस लें और इसमें भरावन की समस्त सामग्री को अच्छी तरह मिला लें. अब तैयार आलू और मैदा के मिश्रण को चकले पर हल्का सा तेल लगाकर लगभग आधा इंच मोटा बेल लें. एक कटोरी या ग्लास से गोल गोल सर्कल काट लें. तैयार सर्कल के बीच में 1 टीस्पून चीज का मिश्रण रखें और ऊपर से दूसरा सर्कल रखकर चारों तरफ से किनारे उंगलियों से दबा दें. सारे पिज़्ज़ा बटन्स इसी प्रकार तैयार करें. इन्हें प्रीहीटेड माइक्रोबेव में 10 मिनट तक बेक करें अथवा गर्म तेल में सुनहरा तल कर बटर पेपर पर निकालकर टोमेटो सॉस या हरी चटनी के साथ सर्व करें.

मेरे फेस पर अचानक एक व्हाइट स्पाट दिखाई देने के कारण मैं बहुत परेशान हूं?

सवाल-

मेरे फेस पर अचानक एक व्हाइट स्पाट दिखाई देने के कारण मैं बहुत परेशान हूं. कृपया बताएं कि इस के लिए मैं क्या करूं?

जवाब-

सब से पहले एक अच्छे स्किन स्पैशलिस्ट से इस के बारे में सलाह लें क्योंकि यह ल्यूकोर्डमा का पैच हो सकता है. यदि उन की जांच में ऐसा डायग्रोज होता है ता प्रौपर दवा लीजिए. इस के बाद कुछ दिनों तक लिए गए ट्रीटमैंट से अगर आप का पैच बढ़ नहीं रहा तो परमानेंट मेकअप के द्वारा आप को ट्रीटमैंट दे कर उस व्हाइट स्पौट को सामान्य बनाया जा सकता है.

इस ट्रीटमैंट में व्हाइट स्पौट में स्किन से मिलताजुलता कलर भर कर उसे आसपास की स्किन के रंग का बता दिया जाता है.

यदि आप का व्हाइट स्पौट ल्यूकोर्डमा का पैच नहीं है तो आप घरेलू उपाय अपना सकती हैं. इस के लिए पानी और सेव के सिरके को

2:1 के अनुपात में मिला लें. इसे कुछकुछ देर में धब्बों पर लगाते रहिए. ऐसा करने से धब्बे जल्दी साफ हो जाएंगे.

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त्वचा संबंधी बीमारियों में से एक सफेद दाग अब आसानी से ठीक हो जाने वाली बीमारी है और अगर आप इससे जल्द छुटकारा पाना चाहते हैं तो घर पर ही मौजूद कुछ आसान सी चीजों से इसे हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है.

आइए जानें, सफेद दाग को ठीक करने के ये घरेलू तरीके…

1. हर घर में आसानी से मिलने वाला नारियल तेल इस समस्या का सबसे बड़ा इलाज है. यह त्वचा संक्रमण बचाता है और अगर इससे दाग प्रभावित त्वचा पर दिन में 2 से 3 बार मसाज की जाए तो फर्क जल्द ही नजर आने लगता है.

2. तांबा तत्व, त्वचा में मेलेनिन के निर्माण के लिए बेहद आवश्यक है. इसके लिए तांबे के बर्तन में रातभर पानी भरकर रखें और सुबह खाली पेट पिएं.

3. नीम एक बेहतरीन रक्तशोधक और संक्रमण विरोधी तत्वों से भरपूर औषधि है. नीम की पत्त‍ियों को छाछ के साथ पीसकर इसका लेप बनाकर त्वचा पर लगाएं. जब यह पूरी तरह सूख जाए तो इसे धो लें. इसके अलावा आप नीम के तेल का प्रयोग भी कर सकते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- तो कम हो जाएंगे सफेद दाग

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ब्यूटी टूल्स फॉर फेस

चेहरे की रौनक बढ़ाने और चेहरे को सही आकर में रखने के लिए आज कल फेस टूल्स या ब्यूटी टूल्स का काफ़ी इस्तेमाल किया जा रहा है. टीनएजर से लेकर एडल्ट्स सभी इन टूल्स का प्रयोग करते हैं. ब्यूटी टूल्स का इस्तेमाल करने से स्किन का ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिससे चेहरे पर रौनक आती है और स्किन केयर प्रोडक्ट्स अच्छे से आपकी स्किन में अब्सोर्ब होते हैं. आप अपनी स्किन को ग्लोइंग ओर जवां रखने के लिए ब्यूटी केयर टूल्स का इस्तेमाल कर सकती हैं. ये टूल्स अलग अलग प्रकार के हीलिंग स्टोन कि मदद से बनाए जाते हैं और हर टूल की अलग खासियत होती है. चलिए जानते हैं इन सभी ब्यूटी टूल्स के बारे में –

1). फेस रोलर (face roller)-

स्किन केयर में सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला टूल फेस रोलर है. इसका इस्तेमाल करने से फेस का ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिससे आपकी स्किन में किसी भी प्रोडक्ट को अच्छे से सोखने की क्षमता बढ़ जाती है और उन प्रोडक्ट्स का प्रभाव भी बढ़ जाता है. फेस रोलर के रोज़ाना इस्तेमाल से फाइन लाइन और रिंकल्स (झुर्रियां) जैसी समस्याएं भी धीरे धीरे खत्म हो जाती हैं. फेस रोलर कई प्रकार के मटेरियल से बने होते हैं जैसे कि जेड, रोज़ क्वार्ट्ज, अमेथिस्ट या मेटल. अपने स्किन प्रॉब्लम के अनुसार इनको खरीदा जा सकता है और इनका इस्तेमाल किया जा सकता है. रोलर का इस्तेमाल करने से पहले अपनी स्किन पर सेरम या मॉइश्चराइजर ज़रूर लगाएं और फिर दस मिनट तक मसाज करें.

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2). गुआ शा (Gua sha)-

गुआ शा एक प्रकार का सपाट पत्थर होता है जो जेड पत्थर से बना होता है. यह पत्थर चेहरे के लिए काफ़ी फायदेमंद होता है. जेड पत्थर काफी ठंडा होता है जिसके इस्तेमाल से आपकी स्किन रिलैक्स हो जाती है. यह पत्थर आपकी रंगत को सुधारने में भी फायदेमंद साबित होता है. गूआ शा का इस्तेमाल आप हफ्ते में दो बार कर सकते हैं. इसकी मदद से स्किन के बेजान स्किन सेल्स को निकाला जा सकता है और यह टूल आपके चेहरे की सूजन को कम करने में भी असरदार होता है. अपनी स्किन पर पहले सीरम या ऑयल लगाने के बाद आप इस टूल का इस्तेमाल कर सकती हैं. यह आपके फेस को लिफ्ट करने में भी मदद करता है, जिससे स्किन और भी जवां दिखती हैं.

3). कॉलेजन रोलर (Collagen roller)-

कॉलेजन एक प्रकार का प्रोटीन है जो हड्डियों, मांसपेशियों और स्किन में पाया जाता है. चेहरे पर ग्लो के लिए कॉलेजन का होना बहुत ज़रूरी है. बढ़ती उम्र से साथ शरीर में कॉलेजन की मात्रा कम होती जाती है. स्किन की एजिंग कॉलेजन की कमी से होती है लेकिन इस टूल के इस्तेमाल से आप अपनी स्किन को यंग रख सकती हैं. कॉलेजन रोलर एक ऐसा फेस टूल है जो आपकी स्किन में कॉलेजन की मात्रा को बनाए रखने में लाभदायक होता है. इस रोलर में काफी सारी नुकीली सुइयां लगी होती हैं जो आपकी स्किन में पेनेट्रेट कर के कॉलेजन को बूस्ट करती हैं. कॉलेजन रोलर के इस्तेमाल से आप बेहद ख़ूबसूरत और ग्लोइंग स्किन पा सकते हैं.

4). आइस ग्लोब (ice globe)-

आइस ग्लोब्स स्किन को ठंडा रखने में मदद करते हैं. इस टूल के इस्तेमाल से चेहरे की रेडनेस और सूजन कम होती है. चेहरे से फाइन लाइन्स को हटाने में यह टूल काफी फायदेमंद साबित होता है. आंखों पर आइस ग्लोब को मसाज करने से थकावट दूर होती है और डार्क सर्कल्स भी कम हो जाते हैं. आइस रॉलिंग आपकी स्किन को टाईट रखती है जिससे स्किन जवां नजर आती हैं. ठंडा करके इस्तेमाल करने से आइस रोलर से होने वाला लाभ बढ़ जाता है. इसलिए, इस्तेमाल करने से 10 मिनट पहले आइस ग्लोब्स को फ्रिज में रख दें और फिर ठंडा होने के बाद पूरे चेहरे पर इससे मसाज करें.

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