कितना सुरक्षित है कोविड 19 वैक्सीन, आइये जाने हेल्थ वर्कर्स की राय 

कोरोना महामारी के लिए 16 जनवरी से हॉटस्पॉट बने मुंबई में टीकाकरण शुरू हो चुका है, जिसमे सबसे पहले हेल्थ वर्कर्स को लगाये जा रहा है, लेकिन यहाँ हेल्थ वर्कर्स भी दुविधा में है कि वे टिका लगाये या नहीं. यही वजह है कि मुंबई में भी कुछ मात्रा में वैक्सीन की कुछ डोजेस नष्ट हुई है. वैक्सीनेशन के लिए पूरे देश में अभी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (SII) की ऑक्सफ़ोर्ड कोविशिल्ड और भारत बायोटेक की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन को मान्यता दी गयी है. हालांकि दोनों ही वैक्सीन के कुछ साइड इफ़ेक्ट देखे जाने की वजह से पहले भारत बायोटेक ने फैक्टशीट जारी कर कुछ खास लोगों को टीका लेने से मना किया है, जबकि बाद में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया ने भी फैक्टशीट जारी कर कुछ को टीका न लगाने की सलाह दी है.

वैक्सीन होता क्या है? इसके बारें में भी जान लेना जरुरी है. नवी मुंबई के अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल के नी एंड हिप रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. कुनाल मखीजा कहते है कि जब हमारे शरीर में कोई भी इन्फेक्शन होता है और कीटाणु शरीर के अंदर प्रवेश करते है, जिसमें वायरस, वेक्टेरिया फंगस, पैरासाईट आदि जो भी हो, उसके रास्ते को एंटीजेन कहते है, ऐसे में हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता उसके विरुद्ध एंटीबॉडी बनाती है. ये दो प्रकार की होती है. पहले आई जी एम् बनती है और बाद में आई जी जी. वैक्सीन लेने का अर्थ एंटीजेन को बॉडी के साथ परिचय करवाना होता है. लैब और विज्ञान के द्वारा उनके इन्फेक्शन करने की क्षमता ख़त्म हो जाती है, खाली इम्यून रेस्पोंस देता है, लेकिन वह शरीर को इन्फेक्ट नहीं कर पाता. उसे वैक्सीन कहा जाता है, जो एक्टिव इम्युनिटी को शरीर में आ जाती है. इसलिए कोविड 19 के वैक्सीन सभी को लगा लेना जरुरी है.

makhija

नी एंड हिप रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ. कुनाल मखीजा

ये भी पढ़ें- जीभ के स्वाद के लिए खुद को बीमार ना करें, हानिकारक है अचार

पूरे महाराष्ट्र में टीकाकरण का अभियान चल रहा है और हेल्थ वर्कर्स को सबसे पहले लगाया जा रहा है, लेकिन कुछ हेल्थ वर्कर्स ऐसे भी है, जो टीका लेने से बच रहे है, क्योंकि उन्हें टीका पर विश्वास नहीं. आइये जानते है, हेल्थ वर्कर्स के सुझाव, जिन्होंने पहली डोज वैक्सीन की लेने के बाद अपने अनुभव शेयर किये है,

36 वर्षीय डॉ. कुनाल आगे कहते है कि मैंने 16 जनवरी को पहला टीका कोविशिल्ड का लगाया है. सभी डॉक्टर्स को कोविशिल्ड ही लगा है. मैं डॉक्टर होने के बावजूद टीका लगाने से पहले टीका लगाने वालों ने मेरी बिमारियों और एलर्जी के बारें में पूछताछ किया और टीके से सम्बंधित पूरी जानकारी दी. वैक्सीन के बाद भी आधा घंटा मुझे रोककर रखा, ताकि कुछ एलर्जी या समस्या आने पर वे जल्दी समाधान कर सकें, लेकिन मुझे किसी प्रकार की साइड इफेक्ट नहीं आया. 50 वर्ष की उम्र से अधिक डॉक्टर्स ने भी टीका लिया है और किसी भी प्रकार की साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिला. मेरे हिसाब से कोविशिल्ड वैक्सीन ही सही है, क्योंकि मैं साइंस में विश्वास करता हूँ. कोवैक्सीन वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं किया गया है. हो जायेगा मानकर इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता. कोवैक्सीन की रिपोर्ट आने में 2 से 3 महीने लगेंगे और इसे बच्चों और प्रेग्नेंट महिलाओं को नहीं दिया जायेगा. मेरा सुझाव है कि हर व्यक्ति को कोवैक्सीन के रिपोर्ट को आने तक इंतजार करना चाहिए. इसके अलावा कोविशिल्ड ने एलर्जी के बारें में कुछ कहा नहीं है, लेकिन कोवैक्सीन ने एलर्जी वालों को न लगाने की सलाह दी है. साथ ही जिन्हें कोरोना संक्रमण हुआ हो, तुरंत इसे न लें, इसके अलावा जिनको इम्यूनो डेफीसिएंसी डिसऑर्डर है, मसलन कैंसर की दवा लेने वाले, एचआईवी के रोगी, ट्यूबरक्लोसिस आदि कई बिमारियों से पीड़ित व्यक्ति को भी कोविड 19 का टीका नहीं लगाना चाहिए. मेरा सभी से कहना है कि सभी लोग अगर ये वैक्सीन लेते है तो बीमारी भले ही कम न हो, लेकिन उसकी क्षमता कम होगी और सभी फिर से नार्मल लाइफ में आ सकेंगे.

करीब 3 दशक से अधिक समय तक प्रैक्टिस कर रहे मुंबई के हार्ट & डायबिटीज केयर सेंटर के सीनियर कंसल्टेंट फिजिशियन डॉ. राजीव S तुंगारे कहते है कि मैंने कोविशिल्ड का वैक्सीन लिया है और मुझे किसी भी प्रकार का साइड इफ़ेक्ट नहीं दिखा. ये सभी को लगाने की जरुरत है. इसे डायबिटीज और हाई ब्लडप्रेशर के रोगी जो नियमित दवा लेते है और उनका डायबिटीज और ब्लड प्रेशर कंट्रोल में है, वे भी ले सकते है. मेरे हिसाब से जिन्हें भी थोड़ी बहुत साइड इफ़ेक्ट दिख रहा है, वह इस वैक्सीन के एक्टिव होने और इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए है और इसे अच्छा माना जाना चाहिए, क्योंकि जब भी कोई वैक्सीन बच्चों को लगाई जाती है, तो उन्हें हल्का साइड इफ़ेक्ट दिखाई पड़ता है और विज्ञान इसे अच्छा मानती है.मेरा सुझाव है कि जिसे भी वैक्सीन लगाने का मौका मिल रहा है, वे इसे अवश्य लें, ताकि कोरोना संक्रमण भले ही ख़त्म न हो, लेकिन उसका असर जरुर कम हो सकेगा.

rajeev

सीनियर कंसल्टेंट फिजिशियन डॉ. राजीव S तुंगारे

ये भी पढ़ें- सुंदरता और स्वास्थ्य चाहिए तो दालचीनी का इस्तेमाल है फायदेमंद

वैक्सीन लेना कोई नयी बात नहीं है, बचपन में भी जन्म के बाद BCG लगाया जाता है और कोई इसके साइड इफ्फेक्ट के बारें में नहीं सोचता. इस बारें में फोर्टिस हॉस्पिटल, मुलुंड की डायबिटीज काउंसलर 38 वर्षीय झंखना शेट्टी कहती है कि मुझे वैक्सीन सरकारी अस्पताल, राजावाडी अस्पताल से 0.5 ml.दिया गया है, जहाँ व्यवस्था बहुत अच्छी थी. किसी भी प्रकार का बड़ा साइड इफ़ेक्ट देखने को नहीं मिला, थोडा सा दर्द शरीर में था. वैक्सीन लगाने में डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि कोविशिल्ड का ट्रायल हो चुका है. ये थोड़ी हैवी वैक्सीन है, जिससे किसी-किसी को थोड़ी फीवर, उल्टी, शरीर में दर्द, थकान आदि देखने को मिला है. अधिकतर टीका लेने वालों को तुरंत कुछ भी नहीं होता. टीका लगाने के एक या दो दिन बाद माइल्ड लक्षण देखने को मिलता है. इसके अलावा जिन्हें कोविड 19 एक बार हो चुका है, उन्हें अधिक तकलीफ टीका लगाने के बाद होता है, क्योंकि उनके शरीर में एंटीबॉडी है. कम इम्युनिटी वाले व्यक्ति को भी वैक्सीन का थोडा साइड इफ़ेक्ट देखने को मिला है. मेरे हिसाब से नार्मल व्यक्ति, जो अधिक ट्रेवल नहीं करते हो, उन्हें अभी टीका लेने की जरुरत नहीं है. हेल्थ वर्कर्स और कोविड वार्ड में काम करने वालों को वैक्सीन लेना बहुत जरुरी है, क्योंकि वैक्सीन कोविड 19 के रोगी के इलाज में डॉक्टर्स को प्रोटेक्शन दे सकेगी. जो लोग कोविड 19 के रोगी का इलाज कर रहे है, उन्हें सबसे पहले टीका देने की जरुरत है, लेकिन अभी इस प्रोसेस में रैंडम हेल्थ वर्कर्स को ही चुना जा रहा है.

shetty

डायबिटीज काउंसलर 38 वर्षीय झंखना शेट्टी

जनरल फिजिशियन डॉ. सरोज शेलार कहती है कि मुझे वैक्सीन लेने पर दूसरे दिन थोड़ी थकान, फीवर और हल्का हाथ में दर्द हुआ, जो 2 दिन में ठीक हो गया. वैक्सीन को लेकर लोगों में एंग्जायटी है. इसलिए वे लगाने से डरते है. इस काम में बीएमसी अस्पताल के सारे वर्कर्स बहुत चुस्ती से काम कर रहे है, साथ ही उन्होंने फ़ोन कर मेरे साइड इफ़ेक्ट के बारें में भी जानकारी ली है. इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है. वैक्सीन लेना अच्छी बात है, ताकि काम-काज फिर से शुरू हो सकें, लेकिन मैंने जब खुश होकर वैक्सीन लगाने के बाद अपनी इमेज सोशल मीडिया पर डाली, तो कईयों ने मुझे टेक केयर लिखा, जो मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं बीमार नहीं, बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन लगाई है और ये सबको समझने की जरुरत है. कोरोना संक्रमण की वजह से पूरे विश्व की आर्थिक अवस्था ख़राब हो चुकी है, इसे जल्दी सुधारने के लिए वैक्सीन ही विकल्प है.

saroj

जनरल फिजिशियन डॉ. सरोज शेलार

ENT सर्जन डॉ. श्रेयस जोशी का कहना है कि वैक्सीन लगाने को लेकर लोगों में बहुत मतभेद पहले था. मेरे पेरेंट्स डॉक्टर है और वे 60 की उम्र पार करने के साथ-साथ डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के भी शिकार है और नियमित दवाई लेते है. वैक्सीन लगाने के लिए सरकार की तरफ से मेसेज आया और मेरे परिवार के सभी लोगों ने लगाया है और किसी भी प्रकार का साइड इफ़ेक्ट देखने को नहीं मिला है. मेरा सभी से कहना है कि डरे नहीं, बल्कि इस सुरक्षित कोविशिल्ड वैक्सीन को बारी आने पर लगायें और ये सरकार की तरफ से ही दिया जा रहा है. अगर इम्युनिटी बढती है, तो सबको लाभ होगा.

joshi

ENT सर्जन डॉ. श्रेयस जोशी

फोर्टिस हॉस्पिटल, मुलुंड की 52 वर्षीय सिस्टर मिनी ने भी कोविशिल्ड वैक्सीन लगाई है और वे खुश है कि उनकी इम्युनिटी दूसरी डोज लेने के बाद कुछ दिनों में बढ़ जायेगी. वह कहती है कि बच्चों को वैक्सीन देने से फीवर आता है और इसे सोचकर वैक्सीन न लें, ऐसा नहीं होता. दवा के साथ वैक्सीन को पूरा किया जाता है. मेरे अस्पताल में 50 से अधिक नर्सों ने वैक्सीन लिया है और किसी को साइड इफ़ेक्ट का डर नहीं था. केवल प्रेग्नेंट महिलाएं, बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ, बच्चे की प्लानिंग करने वाली महिलाओं, जिन्हें रियल एलर्जी की समस्या हो आदि किसी को भी वैक्सीन नहीं लेना चाहिए. वैक्सीन लेने के बाद किसी को सिरदर्द, फीवर, हाथ में दर्द हुआ, जो बुखार की दवा खाने से ठीक हो गया. मुझे भी कुछ साइड इफ़ेक्ट नहीं हुआ. सिर्फ थोड़ी कमजोरी महसूस हुई थी. अगले दिन मैं ड्यूटी पर आ गयी. मेरा सबसे कहना है कि जब भी सरकार की तरफ से वैक्सीन लगाया जाय, तो आप अवश्य लें, नहीं तो कोरोना संक्रमण और अधिक फैलेगा. सबको साथ में टीका लेने पर ही इसका असर दिखेगा. अभी एक बार फिर से लॉक डाउन सबके लिए घातक होगा. इसके अलावा वैक्सीन लगाने के बाद भी मास्क पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग, हैण्ड हायजिन को बनाये रखने की जरुरत है.

mini

सिस्टर मिनी

Valentine’s Special: नवंबर का महीना- सोनाली से मुलाकात मेरे लिए क्यों था एक हसीन ख्वाब

नवंबर का महीना, सर्द हवा, एक मोटी किताब को सीने से चिपका, हलके हरे ओवरकोट में तुम सीढि़यों से उतर रही थी. इधरउधर नजर दौड़ाई, पर जब कोई नहीं दिखा तो मजबूरन तुम ने पूछा था, ‘कौफी पीने चलें?’

तुम्हें इतना पता था कि मैं तुम्हारी क्लास में ही पढ़ता हूं और मुझे पता था कि तुम्हारा नाम सोनाली राय है. तुम बंगाल के एक जानेमाने वकील अनिरुद्ध राय की इकलौती बेटी हो. तुम लाल रंग की स्कूटी से कालेज आती हो और क्लास के अमीरजादे भी तुम पर उतने ही मरते हैं, जितने हम जैसे मिडल क्लास के लड़के जिन्हें सिगरेट, शराब, लड़की और पार्टी से दूर रहने की नसीहत हर महीने दी जाती है. उन का एकमात्र सपना होता है, मांबाप के सपनों को पूरा करना. ये तुम जैसी युवतियों से बात करने से इसलिए हिचकते हैं, क्योंकि हायहैलो के बाद की अंगरेजी बोलना इन्हें भारी पड़ता है.

तुम रास्ते भर बोलती रही और मैं सुनता रहा. तुम ने मौका ही नहीं दिया मुझे बोलने का. तुम मिश्रा सर, नसरीन मैम की बकबक, वीणा मैम के समाचार पढ़ने जैसा लैक्चर और न जाने कितनी कहानियां तेजी से सुना गई थीं और मैं बस मुसकराते हुए तुम्हारे चेहरे पर आए हर भाव को पढ़ रहा था. तुम्हारे होंठों के ऊपर काला तिल था, जिस पर मैं कुछ कविताएं सोच रहा था, तब तक तुम्हारी कौफी और मेरी चाय आ गई.

तुम ने पूछा था, ‘तुम कौफी क्यों नहीं पीते?’

मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘चाय की आदत कभी छूटी नहीं.’

तुम यह सुन कर काफी जोर से हंसी थी. ‘शायरी भी करते हो.’ मैं झेप गया.

तुम इतने समय से कुछ भूल रही थी, मेरा नाम पूछना, क्योंकि मैं तुम्हारी आवाज में अपने नाम को सुनना चाह रहा था, तुम ने तब भी नहीं पूछा था.

हम दोनों उठ कर चल दिए थे, कैंपस से विश्वविद्यालय मैट्रो स्टेशन की ओर…

बात करते हुए तुम ने कहा था, ‘सज्जाद, पता है, मैं अकसर सपना देखती थी कि मैं फोटोग्राफर बनूंगी. पूरी दुनिया का चक्कर लगाऊंगी और सारे खूबसूरत नजारे अपने कैमरे में कैद करूंगी, लेकिन आज मैं मील, मार्क्स और लेनिन की किताबों में उलझी हुई हूं. कभी जी करता है तो ब्रेख्त पढ़ लेती हूं, तो कभी कामू को…’

ये भी पढ़ें- खोया हुआ सच: सीमा के दुख की क्या थी वजह

हम अकसर जो चाहते हैं, वैसा नहीं होता है और शायद अनिश्चितता ही जीवन को खूबसूरत बनाती है, अकसर सबकुछ पहले से तय हो तो जिंदगी से रोमांच खत्म हो जाएगा. हम उम्र से पहले बूढ़े हो जाएंगे, जो बस यही सोचते हैं, उन के लिए मरना ही एकमात्र लक्ष्य है.

‘सज्जाद, तुम ने क्या पौलिटिकल साइंस अपनी मरजी से चुना,’ तुम ने पूछा था.

‘हां,’ मैं ने कहा. नहीं कहने का कोई मतलब नहीं था उस समय. मैं खुद को बताने से ज्यादा, तुम्हें जानना चाह रहा था.

‘और हां, मेरा नाम सज्जाद नहीं, आदित्य है, आदित्य यादव,’ मैं ने जोर देते हुए कहा.

‘ओह, तो तुम लालू यादव के परिवार से तो नहीं हो?’

‘बिलकुल नहीं, पता नहीं क्यों बिहार का हर यादव लालू यादव का रिश्तेदार लगता है लोगों को.’

कुछ पल के लिए दोनों चुप हो गए. कई कदम चल चुके थे. मैं ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा, ‘वैसे यह सज्जाद है कौन?’

‘कोई नहीं, बस गलती से बोल गई थी.’ तुम्हारे चेहरे के भाव बदल गए थे.

‘कहां रहते हो तुम?’

हम बात करतेकरते मानसरोवर होस्टल आ गए थे, मैं ने इशारा किया, ‘यहीं.’

मैट्रो स्टेशन पास ही था, तुम से विदा लेने के लिए हाथ बढ़ाया.

मैं ने पूछा, ‘यह निशान कैसा?’

‘अरे, वह कल खाना बनाने वाली नहीं आई तो खुद रोटी बनाते समय हाथ जल गया. अभी आदत नहीं है न.’

मैं ने हाथ मिलाया. ओवरकोट की गरमी अब भी उस के हाथों में थी. इस खूबसूरत एहसास के साथ मैं सो नहीं पाया था, सुबह जल्दी उठ कर तुम से ढेर सारी बातें करनी थी.

मैं कालेज गया था अगले दिन. कालेज में इस बात की चर्चा जरूर होने वाली थी, क्योंकि हम दोनों को साथ घूमते क्लास के लड़केलड़कियों ने देख लिया था.

उस दिन तुम नहीं आई थी. मुझे हर सैकंड बोझिल लग रहा था. तुम ने कालेज छोड़ दिया था.

2 वर्षों बाद दिखी थी, उसी नवंबर महीने में कनाट प्लेस के इंडियन कौफी हाउस की सीढि़यों से उतरते हुए.

मेरा मन जब भी उदास होता है, मैं निकल पड़ता था, इंडियन कौफी हाउस. दिल्ली की शोरभरी जगहों में एक यही जगह थी जहां मैं सुकून से उलझनों को जी सकता था और कल्पनाओं को नई उड़ान देता.

हलकी मुसकराहट के साथ तुम मिली थीं उस दिन, कोई तुम्हारे साथ था. तुम पहले जैसे चहक नहीं रही थीं. एक चुप्पी थी तुम्हारे चेहरे पर.

तुम्हारा इस तरह मिलना मुझे परेशान कर रहा था. तुम बस, उदास मुसकराहट के साथ मिलोगी और बिना कुछ बात किए सीढि़यों से उतर जाओगी, यह बात मुझे अंदर तक कचोट रही थी. इसी उधेड़बुन में सीढि़यां चढ़ते मुझे एक पर्स मिला. खोल कर देखा तो किसी अंजुमन शेख का था, बुटीक सैंटर, साउथ ऐक्सटेंशन का पता था, दिए हुए नंबर पर कौल किया तो स्विच औफ था.

तुम्हारे बारे में सोचतेसोचते रात के 8 बज गए थे. अचानक याद आया कि किसी का पर्स मेरे पास है, जिस में 12 सौ रुपए और डैबिट कार्ड है. मैं ने फिर एक बार कौल लगाई, इस बार रिंग जा रही थी.

‘हैलो,’ एक खूबसूरत आवाज सुनाई दी.

‘जी, आप का पर्स मुझे इंडियन कौफी हाउस की सीढि़यों पर गिरा मिला. आप बताएं इसे कहां आ कर लौटा दूं.’

‘आदित्य बोल रहे हो,’ उधर से आवाज आई.

‘सोनाली तुम,’ मैं आश्चर्यचकित था.

‘कैसी हो तुम और यह अंजुमन शेख का कार्ड? तुम हो कहां? तुम ने कालेज क्यों छोड़ दिया?’ मैं उस से सारे सवालों का जवाब जान लेना चाहता था, क्योंकि मुझे कल पर भरोसा नहीं था.

तुम ने बस इतना कहा था, ‘कल कौफी हाउस में मिलो 11 बजे.’

अगले दिन मैं ने कौफी हाउस में तुम्हें आते हुए देखा. 2 वर्ष पहले उस हरे ओवरकोट में सोनाली मिली थी, सपनों की दुनिया में जीने वाली सोनाली, बेरंग जिंदगी में रंग भरने वाली सोनाली. पर 2 वर्षों में तुम बदल गई थीं, तुम सोनाली नहीं थी. तुम एक हताश, उदास, सहमी अंजुमन शेख थी, जिस ने 2 वर्षों पहले घर छोड़ कर अपने प्रेमी सज्जाद से शादी कर ली थी. वही सज्जाद जिस के बारे में तुम ने मुझ से छिपाया था.

जिस से प्रेम करो, उस के साथ यदि जिंदगी का हर पल जीने को मिले, तो इस से खूबसूरत और क्या हो सकता है. इस गैरमजहबी प्रेमविवाह में निश्चित ही तुम ने बहुतकुछ झेला होगा पर प्रेम सारे जख्मों को भर देता है, लेकिन तुम्हारे और सज्जाद के बीच आए रिश्तों की कड़वाहट वक्त के साथ बदतर हो रही थी.

शादी के बाद प्रेम ने बंधन का रूप ले लिया था. आधिपत्य के बोझ तले रिश्ते बोझिल हो रहे थे. तुम तो दुनिया का चक्कर लगाने वाली युवती थी, तुम रिश्तों को जीना चाहती थी. उन्हें ढोना नहीं चाहती थी. जिसे तुम प्रेम समझ रही थी, वह घुटन बन गया था.

तुम सबकुछ कहती चली गई थीं और मैं तुम्हारे चेहरे पर उठते हर भाव को वैसे ही पढ़ना चाह रहा था, जैसे पहली बार पढ़ा था.

तुम ने सज्जाद के लिए अपना नाम बदला था, अपनी कल्पनाएं बदलीं. तुम ने खुद को बदल दिया था. प्रेम में खुद को बदलना सही है या गलत, नहीं मालूम, पर खुद को बदल कर तुम ने प्रेम भी तो नहीं पाया था.

वक्त हो गया था फिर एक बार तुम्हारे जाने का, ‘सज्जाद घर पहुंचने वाला होगा, तुम ने कहा था.’ तुम ने पर्स लिया और हाथ आगे बढ़ा कर बाय कहा.

मैं ने जल्दी से तुम्हारा हाथ थामा, वही 2 वर्षों पुराने ओवरकोट की गरमी महसूस करने को. तुम्हारे हाथ के पुराने जख्म तो भर गए थे, लेकिन नए जख्मों ने जगह ले ली थी.

ये भी पढ़ें- सच्चा प्यार: क्यों जुदा हो जाते हैं चाहने वाले दो दिल

इस बीच, हमारी फोन पर बातें होती रहीं, राजीव चौक और नेहरू प्लेस पर 2 बार मुलाकातें हुईं.

सबकुछ सहज था तुम्हारी जिंदगी में, लेकिन मैं असहज था. इस बीच मैं लिखता भी रहा था, तुम्हें कविताएं भी भेजता था, पढ़ कर तुम रोती थीं, कभी हंसती भी थीं.

एक दिन तुम्हारा मैसेज आया था, ‘मुझ से बात नहीं हो पाएगी अब.’

मैं ने एकदम कौलबैक किया, मेरा नंबर ब्लौक हो चुका था. तुम्हारा फेसबुक एकाउंट चैक किया तो वह डिलीट हो चुका था. मैं घबरा गया था, तुम्हारे साउथ ऐक्स वाले बुटीक पर फोन किया तो पता चला कि तुम एक हफ्ते से वहां नहीं गई हो. इसी बीच मेरा नया उपन्यास ‘नवंबर की डायरी’ बाजार में छप कर आ चुका था. मैं सभाओं और गोष्ठियों में जाने में व्यस्त हो गया, पर तुम्हारा खयाल मन में हमेशा बना रहा.

समय करवटें ले रहा था. सूरज रोज डूबता था, रोज उगता था. धीरेधीरे 1 साल गुजर गया. शाम के 7 बज रहे थे. मैं कमरे में अपनी नई कहानी ‘सोना’ के बारे में सोच रहा था. तब तक दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो देखा कोई युवती मेरी ओर पीठ किए खड़ी है. मैं ने कहा, ‘जी…’

वह जैसे ही मुड़ी, मैं आश्चर्यचकित रह गया. वह सोनाली थी. हम दोनों गले लग गए. मैं ने सीने से लगाए हुए पूछा, ‘तुम्हें मेरा पता कैसे मिला?’

‘तुम्हारा उपन्यास पढ़ा, ‘नवंबर की डायरी’ उस के पीछे तुम्हारा नंबर और पता भी था.’

आदित्य तुम ने सही लिखा है इस उपन्यास में, ‘जिन रिश्तों में विश्वास की जगह  हो, उन का टूट जाना ही बेहतर है. मैं ने सज्जाद को तलाक दे दिया था. हमारी फेसबुक चैट सज्जाद ने पढ़ ली थी. फिर यहीं से बचे रिश्ते भी टूटते चले गए थे.

तुम मेरे अस्तव्यस्त घर को देख रही थी, अस्तव्यस्त सिर्फ घर ही नहीं था, मैं भी था. जिसे तुम्हें सजाना और संवारना था, पता नहीं तुम इस के लिए तैयार थीं या नहीं.

तभी तुम ने कहा, ‘ये किताबें इतनी बिखरी हुई क्यों हैं? मैं सजा दूं?’ मुसकरा दिया था मैं.

रात के 9 बज गए थे. हम दोनों किचन में डिनर तैयार कर रहे थे. तुम ने कहा कि खिड़की बंद कर दो, सर्द हवा आ रही है. मैं ने महसूस किया नवंबर का महीना आ चुका था.

ये भी पढ़ें- तुम्हारा जवाब नहीं: क्या मानसी का आत्मविश्वास उसे नीरज के करीब ला

तकनीक के बहाने निजी जिंदगी में दखल

अमेरिकन कस्टम्स और बौर्डर प्रोटैक्शन देश के 20 टौप एअरपोर्ट्स पर फेशियल रिकोग्निशन यानी चेहरे की पहचान सिस्टम शुरू करने वाला है और अक्तूबर, 2020 तक लगभग सभी एअरपोर्ट्स पर ऐसा करने का इरादा है. कई देशों में है यह तकनीक अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, जापान, चीन, जरमनी, रूस, आयरलैंड, स्कौटलैंड, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, न्यूजीलैंड, फिनलैंड, हौंगकौंग, नीदरलैंड, सिंगापुर, रोमानिया, कतर, पनामा जैसे देशों में पहले से यह तकनीक काम कर रही है.

चीन में सब से पहले इस तरह की व्यवस्था की शुरुआत हुई थी. जरमनी इस तकनीक का इस्तेमाल आतंकियों की पहचान के लिए कर रहा है. अब भारत सरकार भी तकनीकी विकास और समय की बचत के नाम पर बायोमिट्रिक स्क्रीनिंग सिस्टम की इस व्यवस्था को एअरपोर्टों पर लागू करने का मन बना चुकी है.

बीआईएएल यानी बैंगलुरु इंटरनैशनल एअरपोर्ट लिमिटेड ने हाल ही में अपने एक ट्वीट में कहा कि अब आप का चेहरा ही आप का बोर्डिंग पास होगा. बैंगलुरु को भारत का पहला पेपरलैस एअरपोर्ट बनाने के लिए बीआईएएल ने विजनबौक्स से ऐग्रीमैंट साइन किया है.

ये भी पढ़ें- 4 टिप्स: वौलपेपर के इस्तेमाल से सजाएं घर

बीआईएएल की ओर से जारी एक स्टेटमैंट में कहा गया है कि बोर्डिंग के लिए रजिस्ट्रेशन को पेपरलैस बना कर हवाईयात्रा को आसान बनाने का प्रयास किया जा रहा है और इसी मकसद से यह सुविधा शुरू की गई है. बायोमिट्रिक टैक्नोलौजी द्वारा पैसेंजर्स के चेहरे से उन की पहचान होगी और वे एअरपोर्ट पर बिना किसी झंझट जा सकेंगे. इस के लिए उन्हें बारबार बोर्डिंग पास, पासपोर्ट या अन्य आइडैंटिटी डौक्युमैंट्स नहीं दिखाने पड़ेंगे.

सब से पहले अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डों पर यह व्यवस्था लागू होगी. अपना पासपोर्ट और बोर्डिंग पास दिखाने के बजाय पैसेंजर्स को एक कैमरे के आगे खड़ा किया जाएगा. उन का एक फोटो लिया जाएगा और उसे गवर्नमैंट डाटाबेस में फाइल किए गए दूसरे फोटोज से कंपेयर किया जाएगा. इस तरह फोटोज के इस कंपैरिजन के आधार पर उस शख्स की पहचान पुख्ता की जाएगी.

भले ही इस बायोमिट्रिक स्क्रीनिंग के कई तरह के फायदे नजर आ रहे हों, मगर कहीं न कहीं यह हमारी प्राइवेसी पर सीधा अटैक करेगी. यह एक तरीका है जिस से हमारी टै्रकिंग की जा सकेगी यानी एक तरीके का ट्रैकिंग सिस्टम विकसित किया जा रहा है जो बहुत बड़े पैमाने पर काम करेगा.

प्राइवेसी इनवैडिंग टैक्नोलौजी एक तरह से हमारी निजी जिंदगी में घुसने का रास्ता है. यह एक तरह का जाल है, जिस के जरीए हमारे चेहरे को डाटा के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. ऐसा डाटा जिसे स्टोर किया जा सकता है, ट्रैक किया जा सकता है या फिर चोरी भी किया जा सकता है.

जनता भी इसे ले कर असमंजस की स्थिति में है. 2018 में करीब 2 हजार ऐडल्ट इंटरनैट यूजर्स पर किए गए सर्वे के मुताबिक 44% लोगों ने इस तरह के सिस्टम को अनफेवरेबल बताया जबकि 27% ने इसे फेवरेबल करार दिया.

भारत में सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की उन तकनीकों को जल्दी से जल्दी अप्लाई करने का प्रयास किया जाता है, जिन के जरीए सरकार आप की प्राइवेसी खत्म कर सके. आप को पता भी नहीं चलेगा और आप का फेस स्कैन कर लिया जाएगा. वह सालों सर्कुलेट होता रहेगा. कभी भी आप हैकिंग के शिकार बन सकते हैं और अनचाहे दखल के खौफ में जीने को विवश रहेंगे.

रेलवे पहले ही हो चुका है पेपरलैस

भारतीय रेलवे पहला सरकारी उपक्रम बना, जिस ने अपना कामकाज पेपरलैस किया. अक्तूबर, 2011 में आईआरसीटीसी (भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम) ने सुविधा देते हुए कहा कि यात्रियों को अपने साथ काउंटर टिकट रखना जरूरी नहीं होगा. लोग मोबाइल पर एसएमएस या ईटिकट के जरीए यात्रा कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें- क्रिएटिव आइडियाज से ऐसे संवारे घर

इस तरह के पहचान प्रमाण हेतु मोबाइल का प्रयोग प्राइवेसी या फ्रौड इंप्लिमेशन का जरिया नहीं बन सकता. मगर जब बात फेशियल्स रिकोग्निशन की आती है तो सवाल खड़े होने वाजिब हैं.

लीप के बाद राजस्थानी लुक में छाईं Shivangi Joshi, देखें फोटोज

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों काफी ड्रामा देखने को मिल रहा है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं सीरत के नए रोल में शिवांगी जोशी को देखकर फैंस उनकी तारीफ करते नही थक रहे हैं. लेकिन सबसे ज्यादा हाल ही में उनका राजस्थानी लुक सुर्खियों में छाया हुआ है, जिसकी फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर वायरल हो रहा है. आइए आपको दिखाते हैं शिवांगी जोशी के राजस्थानी लुक की झलक…

राजस्थानी लुक में दिखेगी सीरत

राजस्थानी लुक में शिवांगी जोशी (Shivangi Joshi) यानी सीरत बेहद खूबसूरत लग रही हैं, जिसकी तारीफ हर कोई कर रहा है. वहीं इस लुक में शिवांगी फोटोज सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gurbani Kour (@kairaz__world)

ये भी पढ़ें- Neha Kakkar ने Indian Idol 2020 में ऐश्वर्या राय बच्चन का लुक किया कौपी, देखें फोटोज

ज्वैलरी की दिखाई झलक

सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट से शिवांगी जोशी ने अपनी राजस्थानी ज्वैलरी की एक वीडियो फैंस के साथ शेयर की थी, जिसे देखने के बाद फैंस शिवांगी की ज्वैलरी को ट्राय करने का मन बना रहे हैं.

दुपट्टा था खास

राजस्थानी लुक की बात करें तो ज्वैलरी के बाद दुपट्टा सबसे खूबसूरत होता है. पीले कलर में लाल रंग के कौम्बिनेशन के साथ चिलकारी वाला दुपट्टा बेहद खूबसूरत लग रहा था. वहीं इसका लहंगा भी इसी पैटर्न में बेहद स्टाइलिश लग रहा था.

ये भी पढ़ें- 40 की उम्र में भी बेटी पलक को फैशन के मामले में कड़ी टक्कर देती हैं श्वेता तिवारी, देखें फोटोज

बता दें, सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के मेकर्स ने कार्तिक और सीरत की पहली मुलाकात को खास बनाने का इंतजाम किया है, जिसके चलते सीरत एक जश्न में जहां डांस करते नजर आएगी तो वहीं कार्तिक, सीरत को नायरा समझ कर हैरान हो जाएगा. वहीं उसे नायरा समझने की गलती कर बैठेगा. हालांकि जल्द ही उसका सपना टूटता हुआ नजर आएगा.

इंडस्ट्री में मेल/फीमेल को अलग-अलग तरह से ट्रीट किया जाता है- अनुष्का अरोड़ा

अनुष्का अरोड़ा, रेडियो जौकी

2016 में अनुष्का को यशराज की फिल्म ‘फैन’ में शाहरुख खान के अपोजिट जर्नलिस्ट की भूमिका में देखा गया. उन्हें एशियन मीडिया अवार्ड्स के लिए ‘बैस्ट रेडियो पे्रजैंटर औफ द ईयर’ के तौर पर चौथे साल के लिए चुना गया और तब ‘सनराइज रेडियो’ ने ‘बैस्ट रेडियो स्टेशन औफ द ईयर’ अवार्ड हासिल किया था. अनुष्का को लंदन के ‘हाउस औफ लौर्ड्स’ में एनआरआई इंस्टिट्यूट से एनआरआई मोस्ट प्रिस्टीजियस जर्नलिस्ट के तौर पर ‘प्राइड औफ इंडिया’ अवार्ड दिया गया. इस के अलावा उन्हें इलैक्ट्रौनिक और नए मीडिया में अपने शानदार कार्य के लिए ‘बैस्ट इन मीडिया अवार्ड-2008’ भी मिला. पेश हैं, अनुष्का अरोड़ा से हुए सवालजवाब:

इस मुकाम पर किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

मेरे लिए हर दिन एक चुनौती है. मुझे अपने रेडियो शो के लिए काफी रिसर्च और तैयारी की जरूरत होती है. कभीकभी जब 4 घंटे के शो के लिए पर्याप्त कंटैंट उपलब्ध नहीं होता तो मुश्किल पैदा हो जाती है. लेकिन अपने श्रोताओं का मनोरंजन करने के लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेती हूं.

ऐंटरटेनमैंट फील्ड में क्या महिलाओं को अभी भी ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ रहा है?

यकीनन ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में ग्लास सीलिंग अभी भी कायम है. मेल और फीमेल को अलगअलग तरह से ट्रीट किया जाता है. ‘मी टू कैंपेन’ उसी का नतीजा है. मैं निश्चित तौर पर उस प्रत्येक महिला के साथ खड़ी हूं जिस का गलत इस्तेमाल हुआ है. ‘मी टू कैंपेन’ ने महिलाओं में जागरूकता पैदा की है. तनुश्री दत्ता ने इस संदर्भ में आवाज उठाने वाली कई महिलाओं को हिम्मत दी और एक नया प्लेटफार्म मुहैया कराया. इसे काफी अच्छा रिस्पौंस भी मिला.

क्या जर्नलिस्ट आर्थिक फायदे और प्रतियोगिता में आगे रहने के चक्कर में अपने बेसिक प्रिंसिपल्स के साथ समझौता करने लगे हैं?

जी हां, ऐसा होने लगा है. लोग समझौते करते हैं, पर मैं ऐसा नहीं करती. ये सब आप की परवरिश, कल्चर और ट्रैडिशन पर निर्भर करता है.

आप को ऐक्ट्रैस, रेडियो जौकी, वीडियो जौकी, ऐंकर और जर्नलिस्ट में से क्या बन कर सब से ज्यादा संतुष्टि मिलती है और क्यों?

मुझे ऐंकर के रूप में सब से ज्यादा मजा आता है, क्योंकि हम लाइव औडियंस के सामने होते हैं. लाइव औडियंस को ऐंटरटेन करना खुद में एक बड़ा चैलेंज होता है जो मुझे बहुत पसंद है.

रेडियो जौकी बनने का खयाल कैसे आया?

ये सब यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ. मुझे यह बताया गया था कि यदि मैं रेडियो में जाना चाहती हूं तो मुझे किसी स्थानीय हौस्पिटल में अनुभव हासिल करना होगा. अस्पताल के वार्ड में उन के इनहाउस रेडियो स्टेशन हैं और यह रेडियो कैरियर के लिए एक विशेष आधार माना गया. मैं ने ‘इलिंग हौस्पिटल’ में 2 घंटे का बौलीवुड शो करना शुरू किया. मुझे हौस्पिटल रेडियो अवार्ड्स में बैस्ट रेडियो प्रेजैंटर के लिए नामित किया गया जिस से मेरा भरोसा बढ़ा और फिर धीरेधीरे मैं ने यहां के लोकल रेडियो चैनल्स पर बौलीवुड शो करना शुरू किया.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

पिछले समय की तुलना में आधुनिक समय में महिलाओं ने काफी कुछ हासिल किया है. लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हें अभी भी लंबा रास्ता तय करना है. महिलाओं को उन के सामने अपनी प्रतिभा साबित करने की जरूरत है जो उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन समझते हैं. भारतीय महिलाओं को सभी सामाजिक पूर्वाग्रहों को ध्यान में रख कर अपने लिए रास्ता तैयार करने की जरूरत है, साथ ही पुरुषों को भी देश की प्रगति में महिलाओं की भागीदारी को अनुमति देने और स्वीकारने की जरूरत है.

गुरुजी: बहुरुपिए गुरुजी की असलियत से सभी क्यों दंग रह गए

विधि के गुरुजी को देख कर धक्का सा लगा. जरा भी तो नहीं बदला था विजय. बस, पहले अमीरी का रोब नहीं था. अब वह तो है ही. हम जैसे मूर्ख भक्त भी हैं.

‘‘देखो, तुम्हारी ही उम्र के होंगे पर किसी भी समस्या का सिद्धि के बल पर चुटकियों में निदान ढूंढ़ लेते हैं,’’ विधि मेरे कानों में फुसफुसाई.

अब तक मैं ‘गुरुजी’ के किसी भी काम में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था, पर गुरुजी को देखने के बाद तो जैसे मैं उतावला ही हो गया था.

‘‘देखा, गुरुजी के दर्शन मात्र से मन का मैल दूर हो गया,’’ विधि ने विजयी भाव से मम्मी की तरफ देखा.मम्मी जो विधि की हर बात काटती थीं,

भी संतुष्टि से गरदन हिला कर मुसकराईं, ‘‘बेटी, मुझे पहले ही पता था कि बस गुरुजी के घर आने की देरी है. सब मंगलमय हो जाएगा.’’

मेरी तरफ से किसी तरह की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी, यह दोनों को अच्छी तरह समझ में आ गया था. मुझ से छिपा कर गुरुजी के लिए उपहार और स्वागत के लिए पकवान इत्यादि बाहर आने लगे.

विजय मेरे रघु भैया की क्लास में था. हम दोनों भाई शहर में एक कमरा ले कर पढ़ा करते थे. कालेज के पास ही कमरा लिया था, तो कुछ यारदोस्त आ ही जाते थे.

ये भी पढ़ें- खोखली होती जड़ें: किस चीज ने सत्यम को आसमान पर चढ़ा दिया

मगर विजय से हम दोनों भाई परेशान हो गए थे. उस के पिताजी कालेज के गेट पर उसे छोड़ते तो सीधा हमारे कमरे पर आ जाता. हम दोनों भाई क्लास से वापस आते तो वह सोया होता.

कामचोरी और काहिली का ऐसा अनूठा मिश्रण हम दोनों भाइयों ने पहली बार देखा था. किसी तरह गिरतेपड़ते थर्ड डिविजन में बीकौम किया और फिर दुकान खोल ली.

कहने की जरूरत नहीं कि दुकान का क्या हश्र हुआ. फिर न जाने किस के कहने पर उस की शादी कर दी गई. हम दोनों भाई एमबीए कर रहे थे. उस की शादी में तो नहीं गए परंतु डाक इत्यादि लेने आखिरी बार कमरे पर गए तो मिला था विजय. 2 बच्चों का बाप बन गया था. 3 बिजनैस 2 साल में कर चुका था. आज फिर से इस निकम्मे विजय पर इतना खर्चा.

‘इस निकम्मे विजय के लिए मेरी मेहनत की कमाई के क्व10-12 हजार अवश्य भेंट चढ़ा दिए हैं दोनों ने,’ मन ही मन सिर धुनता हुआ मैं विजय से मिलने पहुंचा.

‘‘कैसे हो विजय भैया, पहचाना मुझे? मैं रघु का छोटा भाई रोहन,’’ मैं ने हाथ जोड़ते हुए स्वागत किया.

‘‘गुरुजी, हर नातेरिश्ते का परित्याग कर चुके हैं,’’ उन के शिष्य ने ऊंची आवाज में कहा.

‘‘कैसे हो रोहन?’’

मैं ने महसूस किया कि विजय असहज महसूस कर रहा है.

‘‘मुझे अकेले में रोहन से कुछ बातें करनी हैं,’’ गुरुजी के इतना कहते ही मुझे एकांत मिल गया.

‘‘यह क्या, आप ने तो बिजनैस शुरू किया था न?’’

मैं ने चाय का कप पकड़ाते हुए पूछा.

‘‘नहीं चला, जिस काम में भी हाथ डाला नहीं चला. थकहार कर मैं घर बैठ गया था. इसी बीच एक दिन पड़ोस के रमाकांत की पत्नी अपने गुरुजी के पास ले कर गईं. और फिर धीरेधीरे मुझे उन की पदवी मिल गई. चढ़ावा वगैरह सब कुछ आपस में बराबर बंटता है. बस नाम की पदवी है.

‘‘इत्तेफाक से कुछ लोगों की समस्याएं इतनी तुच्छ होती हैं कि व्यावहारिक टोटके ही सुलझा देते हैं. खैर, अब पैसा, पदवी, नौकरचाकर सबकुछ है. राहुल और बंटी लंदन में पढ़ाई कर रहे हैं,’’ गुरुजी उर्फ विजय ने कुछ भी नहीं छिपाया उस से.

‘‘पर अगर किसी दिन भक्तों को पता चल गया कि आप की गृहस्थी है तब क्या होगा?’’ कामचोरी और काहिली से मजबूर विजय आज भी वैसा ही था.

मैं सोच रहा था कि अगर विजय ने थोड़ी मेहनत और कर ली होती तो शायद अच्छी नौकरी मिल जाती. मेहनत की कमाई का नशा कुछ और ही होता है. कुछ भी हो चोर चोर ही होता है, चाहे अंधेरे का चोर हो या फिर सफेदपोश चोर.

‘‘विजय भैया, आप यहां आए अच्छा लगा. जब जी चाहे आप यहां आ सकते हैं. मेरी पत्नी और मां को पता नहीं था कि विजय भैया यहां आ रहे हैं. सारे आयोजन पर कम से कम क्व10-12 हजार का खर्च तो हुआ ही होगा…’’

ये भी पढ़ें- यह तो पागल है: कौन थी वह औरत

मैं अपनी बात पूरी कर पाता उस से पहले ही विजय ने एक शिष्य को आवाज दी. कान में कुछ गिटपिट हुई और क्व6 हजार उन के शिष्य ने उन्हें पकड़ा दिए.

विजय ने मुझे रुपए देते हुए इतना ही कहा, ‘‘तुम्हारा परिवार मेरी इज्जत करता है, इन बातों को अपने तक ही सीमित रखना.’’

विजय तो चला गया. मेरी पत्नी और मम्मी का गुरुजी का भूत भी साथ ही ले गया. विजय के बारे में मम्मी ने बहुत कुछ सुन रखा था. जितना भी सुना पर उस के बाद वे हम से इतना जरूर कहती थीं कि उस विजय से तुम दोनों दूर ही रहना. अपना कमरा भी उस से दूर ले लो. अब जब वह गुरुजी के रूप में पहली बार दिखा तो जान कर चढ़ी भक्ति का पानी अपनेआप उतर गया.

पौजिटिव नैगेटिव: मलय का कौन सा राज तृषा जान गई

Serial Story: पौजिटिव नैगेटिव – भाग 3

रात का खाना खा कर मलय अपने कमरे में सोने चला गया. मोहक को सुला कर तृषा भी उस के पास आ कर लेट गई और अनुराग भरी दृष्टि से मलय को देखने लगी. मलय उसे अपनी बांहों में जकड़ कर उस के होंठों पर चुंबनों की बारिश करने लगा. तृषा का शरीर भी पिघलता जा रहा था. उस ने भी उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. तभी मलय एक झटके से अलग हो गया, ‘‘सो जाओ तृषा, रात बहुत हो गई है,’’ कह करवट बदल कर सोने का प्रयास करने लगा.

तृषा हैरान सी मलय को निहारने लगी कि क्या हो गया है इसे. क्यों मुझ से दूर जाना चाहता है? अवश्य इस के जीवन में कोई और आ गई है तभी यह मुझ से इतना बेजार हो गया है और वह मन ही मन सिसक उठी. प्रात:कालीन दिनचर्या आरंभ हो गई. मलय को चाय बना कर दी. मोहक को स्कूल भेजा. फिर नहाधो कर नाश्ते की तैयारी करने लगी. रात के विषय में न उस ने ही कुछ पूछा न ही मलय ने कुछ कहा. एक अपराधभाव अवश्य ही उस के चेहरे पर झलक रहा था. ऐसा लग रहा था वह कुछ कहना चाहता है, लेकिन कोई अदृश्य शक्ति जैसे उसे रोक रही थी.

ये भी पढ़ें- Short Story: रिश्तों का मर्म

तृषा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी कि क्या करूं कैसे पता करूं कि कौन सी ऐसी परेशानी है जो बारबार तलाक की ही बात करता है… पता तो करना ही होगा. उस ने मलय के औफिस जाने के बाद उस के सामान को चैक करना शुरू किया कि शायद कोई सुबूत मिल ही जाए. उस की डायरी मिल गई, उसे ही पढ़ने लगी, तृषा के विषय में ही हर पन्ने पर लिखा था, ‘‘मैं तृषा से दूर नहीं रह सकता. वह मेरी जिंदगी है, लेकिन क्या करूं मजबूरी है. मुझे उस से दूर जाना ही होगा. मैं उसे अब और धोखे में नहीं रख सकता.’’ तृषा ये पंक्तियां पढ़ कर चौंक गई कि क्या मजबूरी हो सकती है. इन पंक्तियों को पढ़ कर पता चल जाता है कि किसी और का उस की जिंदगी में होने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है, फिर क्यों वह तलाक की बात करता है?

उस के मन में विचारों का झंझावात चल ही रहा था कि तभी उस की नजर मलय के मोबाइल पर पड़ी, ‘‘अरे, यह तो अपना मोबाइल भूल कर औफिस चला गया है. चलो, इसी को देखती हूं. शायद कोई सुराग मिल जाए, फिर उस ने मलय के कौंटैक्ट्स को खंगालना शुरू कर दिया. तभी डाक्टर धीरज का नाम पढ़ कर चौंक उठी. 1 हफ्ते से लगातार उस से मलय की बात हो रही थी. डाक्टर धीरज से मलय को क्या काम हो सकता है, वह सोचने लगी, ‘‘कौल करूं… शायद कुछ पता चल जाए, और फिर कौल का बटन दबा दिया. ‘‘हैलो, मलयजी आप को अपना बहुत ध्यान रखना होगा, जैसाकि आप को पता है, आप को एचआईवी पौजिटिव है. इलाज संभव है पर बहुत खर्चीला है. कब तक चलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है, लेकिन आप परेशान न हों. कुदरत ने चाहा तो सब ठीक होगा,’’ डाक्टर धीरज ने समझा कि मलय ही कौल कर रहा है. उन्होंने सब कुछ बता दिया.

तृषा को अब अपने सवाल का जवाब मिल गया था. उस की आंखें छलछला उठीं कि तो यह बात है जो मलय मुझ से छिपा रहा था. लेकिन यह संक्रमण हुआ कैसे. वह तो सदा मेरे पास ही रहता था. फिर चूक कहां हो गई? क्या किसी और से भी मलय ने संबंध बना लिए हैं… आज सारी बातों का खुलासा हो कर ही रहेगा, उस ने मन ही मन प्रण किया. मोहक स्कूल से आ गया था. उसे खाना खिला कर सुला दिया और स्वयं परिस्थितियों की मीमांसा करने लगी कि नहींनहीं इस बीमारी के कारण मैं मलय को तलाक नहीं दे सकती. जब इलाज संभव है तब दोनों के पृथक होने का कोई औचित्य ही नहीं है.

शाम को उस ने मलय का पहले की ही तरह हंस कर स्वागत किया. उस की पसंद का नाश्ता कराया. जब वह थोड़ा फ्री हो गया तब उस ने बात छेड़ी, ‘‘मलय, डाक्टर धीरज से तुम किस बीमारी का इलाज करवा रहे हो?’’ मलय चौंक उठा, ‘‘कौन धीरज चोपड़ा? मैं इस नाम के किसी डाक्टर को नहीं जानता… न जाने तुम यह कौन सा राग ले बैठी, खीज उस के स्वर में स्पष्ट थी.

ये भी पढ़ें- Short Story: प्यार था या कुछ और

‘‘नहीं मलय यह कोई राग नहीं… मुझ से कुछ छिपाओ नहीं, मुझे सब पता चल चुका है. तुम अपना फोन घर भूल गए थे. मैं ने उस में डाक्टर चोपड़ा की कई कौल्स देखीं तो मन में शंका हुई और मैं ने उन्हें फोन मिला दिया. उन्होंने समझा कि तुम बोल रहे हो और सारा सच उगल दिया, साथ ही यह भी कहा कि इस का उपचार महंगा है, पर संभव है. हां, समय की कोई सीमा निर्धारित नहीं. इसीलिए तुम तलाक पर जोर दे रहे थे न… पहले ही बता दिया होता… छिपाने की जरूरत ही क्या थी.’’ अब मलय टूट सा गया. उस ने तृषा को अपने गले से लगा लिया और फिर धीरेधीरे सब कुछ बताने लगा, ‘‘तुम्हें तो पता ही है तृषा पिछले महीने मैं औफिस के एक सेमिनार में भाग लेने के लिए सिंगापुर गया था. मेरे 2-3 सहयोगी और भी थे. हम लोगों को एक बड़े होटल में ठहराया गया था. हमें 1 सप्ताह वहां रहना था और मेरा तुम से इतने दिन दूर रहना मुश्किल लग रहा था, फिर भी मैं अपने मन को समझाता रहा. दिन तो कट जाता था, किंतु रात में तुम्हारी बांहों का बंधन मुझे सोने नहीं देता था और मैं तुम्हारी याद में तड़प कर रह जाता था.

‘‘एक दिन बहुत बारिश हो रही थी. मेरे सभी साथी होटल में नीचे बार में बैठे ड्रिंक ले रहे थे. मैं भी वहीं था, वहां मन बहलाने के और भी साधन थे, मसलन, रात बिताने के लिए वहां लड़कियां भी सप्लाई की जाती थीं. अलगअलग कमरों में सारी व्यवस्था रहती थी. तुम्हारी कमी मुझे बहुत खल रही थी. मैं ने भी एक कमरा बुक कर लिया और फिर मैं पतन के गर्त में गिरता चला गया. ‘‘यह संक्रमण उसी की देन है. बाद में मुझे बड़ा पश्चाताप हुआ कि यह क्या कर दिया मैं ने. नहींनहीं मेरे इस जघन्य अपराध की जितनी भी सजा दी जाए कम है. मैं ने दोबारा उस से कोई संपर्क नहीं किया. साथियों ने मेरी उदासीनता का मजाक भी बनाया, उन का कहना था पत्नी तो अपने घर की चीज है वह कहां जाएगी. हम तो थोड़े मजे ले रहे हैं. लेकिन मैं उस गलती को दोहराना नहीं चाहता था. बस तुम्हारे पास चला आया.

‘‘एक दिन मैं औफिस में बेहोश हो गया. बड़ी मुश्किल से मुझे होश आया. मेरे सहयोगी मुझे डाक्टर चोपड़ा के पास ले गए. उन्होंने मेरा ब्लड टैस्ट कराया. तब मुझे इस बीमारी का पता लगा. मैं समझ गया कि यह सौगात सिंगापुर की ही देन है. मैं अपराधबोध से ग्रस्त हो गया. हर पल मुझे यही खयाल आता रहा कि मुझे तुम्हारे जीवन से दूर चले जाना चाहिए. इसीलिए मैं तलाक की बात करता रहा. यह जानते हुए भी कि मेरेतुम्हारे प्यार की डोर इतनी मजबूत है कि आसानी से टूट नहीं सकती,’’ कहते हुए मलय फफक कर रो पड़ा. तृषा हतप्रभ रह गई कि इतना बड़ा धोखा? वह मेरी जगह किसी और की बांहों में चला गया. क्या उस की आंखों पर वासना की पट्टी बंधी हुई थी. फिर तत्काल उस ने अपना कर्तव्य निर्धारित कर लिया कि नहीं वह मलय का साथ नहीं छोड़ेगी, उसे टूटने नहीं देगी, पतिपत्नी का रिश्ता इतना कच्चा थोड़े ही होता है कि जरा सा झटका लगा और टूट गया.

ये भी पढ़ें- सोच: आखिर कैसे अपनी जेठानी की दीवानी हो गई सलोनी

उस ने मलय को पूरी शिद्दत से प्यार किया है. वह इस प्यार को खोने नहीं देगी. इंसान है गलती हो गई तो क्या उस की सजा उसे उम्र भर देनी चाहिए… नहीं कदापि नहीं. वह मलय की एचआईवी पौजिटिव को नैगेटिव कर देगी. क्या हुआ यदि इस बीमारी का इलाज बहुत महंगा है… इस कारण वह अपने प्यार को मरने नहीं देगी. उस ने मलय का सिर अपने सीने पर टिका लिया. उस का ब्लाउज मलय के आंसुओं से तर हो रहा था.

Serial Story: पौजिटिव नैगेटिव – भाग 2

मनोजजी को अपने कुल तथा अपने बच्चों पर बड़ा अभिमान था. वह सोच भी नहीं सकते थे कि उन की बेटी इस प्रकार उन्हें झटका दे सकती है. उन के अनुसार, मलय के परिवार की उन के परिवार से कोई बराबरी नहीं है. उस के पिता अनिल कृषि विभाग में द्वितीय श्रेणी के अधिकारी थे, उन का रहनसहन भी अच्छा था. पढ़ालिखा परिवार था. दोनों परिवारों में मेलमिलाप भी था. मलय भी अच्छे संस्कारों वाला युवक था, किंतु उन के मध्य जातिपांति की जो दीवारें थीं, उन्हें तोड़ना इतना आसान नहीं था. तब अपनी बेटी का विवाह किस प्रकार अपने से निम्न कुल में कर देते.

जबतब मनोजजी अपने ऊंचे कुल का बखान करते हुए अनिलजी को परोक्ष रूप से उन की जाति का एहसास भी करा ही देते थे. अनिलजी इन सब बातों को समझते थे, किंतु शालीनतावश मौन ही रहते थे. जब मनोजजी ने बेटी तृषा को अपनी जिद पर अड़े देखा तो उन्होंने अनिलजी से बात की और फिर आपसी सहमति से एक सादे समारोह में कुछ गिनेचुने लोगों की उपस्थिति में बेटी का विवाह मलय से कर दिया. जब तृषा विदा होने लगी तब उन्होंने ‘अब इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हो गए हैं’ कह तृषा के लिए वर्जना की एक रेखा खींच दी.ॉ

ये भी पढ़ें- स्वयंवरा: मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

बेटी तथा दामाद से हमेशा के लिए अपना रिश्ता समाप्त कर लिया. इस के विपरीत मलय के परिवार ने बांहें फैला कर उस का स्वागत किया. तब से 12 वर्ष का समय बीत चुका था. किंतु मायके की देहरी को वह न लांघ सकी. जब भी सावन का महीना आता उसे मायके की याद सताने लगती. शायद इस बार पापा उसे बुला लें की आशा बलवती होने लगती, कानों में यह गीत गूंजने लगता: ‘‘अबकी बरस भेजो भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय रे,

लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियां दीजो संदेसा भिजाय रे.’’ इस प्रकार 12 वर्ष बीत गए, किंतु मायके से बुलावा नहीं आया. शायद उस के पिता को उसे अपनी बेटी मानने से इनकार था, क्योंकि अब वह दूसरी जाति की जो हो चुकी थी.

बेटा मोहक जो अब 9 वर्ष का हो चुका था. अकसर पूछता, ‘‘मम्मी, मेरे दोस्तों के तो नानानानी, मामामामी सभी हैं. छुट्टियों में वे सभी उन के घर जाते हैं. फिर मैं क्यों नहीं जाता? क्या मेरे नानानानी, मामामामी नहीं हैं?’’ तृषा की आंखें डबडबा जाती थीं लेकिन वह भाई से उस लक्षमणरेखा का जिक्र भी नहीं कर सकती थी जो उस के दंभी पिता ने खीचीं थी और जिसे वह चाह कर भी पार नहीं कर सकती थी.

ड्राइवर गाड़ी ले कर आ गया था. जब वह मोहक को स्कूल से ले कर लौटी, तो उस ने मलय को अपने कमरे में किसी पेपर को ढूंढ़ते देखा. तृषा को देख कर उस का चेहरा थोड़ा स्याह सा पड़ गया. अपने हाथ के पेपर्स को थोड़ा छिपाते हुए वह कमरे से बाहर जाने लगा. ‘‘क्या हुआ मलय इतने अपसैट क्यों हो, और ये पेपर्स कैसे हैं?’’

‘‘कुछ नहीं तृषा… कुछ जरूरी पेपर्स हैं… तुम परेशान न हो,’’ कह मलय चला गया. तृषा के मन में अनेक संशय उठते, कहीं ये तलाक के पेपर्स तो नहीं…

पिछले 12 वर्षों में उस ने मलय को इतना उद्विग्न कभी नहीं देखा था. ‘क्या मलय को अब उस से उतना प्यार नहीं रहा जितनी कि उसे अपेक्षा थी? क्या वह किसी और से अपना दिल लगा बैठा है और मुझ से दूर जाना चाहता है? क्यों मलय इतना बेजार हो गया है? कहां चूक हो गई उस से? क्या कमी रह गई थी उस के प्यार में’ जबतब अनेक प्रश्नों की शलाका उसे कोंचने लगती. मलय के प्यार में उस ने अपनेआप को इतना आत्मसात कर लिया था कि उसे अपने आसपास की भी खबर नहीं रहती थी. मायके की स्मृतियों पर समय की जैसे एक झीनी सी चादर पड़ गई थी.

‘नहींनहीं मुझे पता करना ही पड़ेगा कि क्यों मलय मुझ से तलाक लेना चाहता है?’ वह सोचने लगी, ‘ठीक है आज डिनर पर मैं उस से पूछूंगी कि कौन सा अदृश्य साया उन दोनों के मध्य आ गया है. यदि वह किसी और को चाहने लगा है तो ठीक है, साफसाफ बता दे. कम से कम उन दोनों के बीच जो दूरी पनप रही है उसे कम करने का प्रयास तो किया ही जा सकता है.’ शाम के 5 बज गए थे. मलय के आने का समय हो रहा था. उस ने हाथमुंह धो कर हलका सा मेकअप किया, साड़ी बदली, मोहक को उठा कर उसे दूध पीने को दिया और फिर होमवर्क करने के लिए बैठा दिया. स्वयं रसोई में चली गई, मलय के लिए नाश्ता बनाने. आते ही उसे बहुत भूख लगती थी.

ये सब कार्य तृषा की दिनचर्या बन गई थी, लेकिन इधर कई दिनों से वह शाम का नाश्ता भी ठीक से नहीं कर रहा था. जो भी बना हो बिना किसी प्रतिक्रिया के चुपचाप खा लेता था. ऐसा लगता था मानो किसी गंभीर समस्या से जूझ रहा है. कोई बात है जो अंदर ही अंदर उसे खाए जा रही थी, कैसे तोड़ूं मलय की इस चुप्पी को… नाश्ते की टेबल पर फिर मलय ने अपना वही प्रश्न दोहराया, ‘‘क्या सोचा तुम ने?’’

ये भी पढ़ें- फेसबुक: श्वेता और राशी क्या बच पाई इस जाल से

‘‘किस विषय में?’’ उस ने भी अनजान बनते हुए प्रश्न उछाल दिया. ‘‘तलाक के विषय में और क्या,’’ मलय का स्वर गंभीर था. हालांकि उस के बोलने का लहजा बता रहा था कि यह ओढ़ी हुई गंभीरता है.

‘‘खुल कर बताओ मलय, यह तलाकतलाक की क्या रट लगा रखी है… क्या अब तुम मुझ से ऊब गए हो? क्या मेरे लिए तुम्हारा प्यार खत्म हो गया है या कोई और मिल गई है?’’ तनिक छेड़ने वाले अंदाज में उस ने पूछा. ‘‘नहीं तृषा, ऐसी कोई बात नहीं, बस यों ही अपनेआप को तुम्हारा अपराधी महसूस कर रहा हूं. मेरे लिए तुम्हें अपनों को भी हमेशा के लिए छोड़ना पड़ा, जबकि मेरा परिवार तो मेरे ही साथ है. मैं जब चाहे उन से मिल सकता हूं, मोहक का भी ननिहाल शब्द से कोई परिचय नहीं है. वह तो उन रिश्तों को जानता भी नहीं. मुझे तुम्हें उन अपनों से दूर करने का क्या अधिकार था,’’ कह मलय चुप हो गया.

‘‘अकस्मात 12 वर्षों बाद तुम्हें इन बातों की याद क्यों आई? मुझे भी उन रिश्तों को खोने का दर्द है, किंतु मेरे दिल में तुम्हारे प्यार के सिवा और कुछ भी नहीं है… ठीक है, जीवन में मातापिता का बड़ा ही अहम स्थान होता है, किंतु जब वही लोग अपनी बेटी को किसी और के हाथों सौंप कर अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं तब प्यार हो या न हो बेटी को उन रिश्तों को ढोना ही पड़ता है, क्योंकि उन के सम्मान का सवाल जो होता है, भले ही बेटी को उस सम्मान की कीमत अपनी जान दे कर ही क्यों न चुकानी पड़े. कभीकभी दहेज के कारण कितनी लड़कियां जिंदा जला दी जाती हैं और तब उन के पास पछताने के अलावा कुछ भी शेष नहीं रह जाता है. हम दोनों एकदूसरे के प्रति समर्पित हैं, प्यार करते हैं तो गलत कहां हुआ और मेरे मातापिता की बेटी भी जिंदा है भले ही उन से दूर हो,’’ तृषा के तर्कों ने मलय को निरुत्तर कर दिया.

आगे पढ़ें- रात का खाना खा कर मलय…

ये भी पढ़ें- आशिकी: पत्नी की गैरमौजूदगी में क्या लड़कियों से फ्लर्ट कर पाया नमन?

Serial Story: पौजिटिव नैगेटिव – भाग 1

तृषामलय के बेरुखी भरे व्यवहार से बहुत अचंभित थी. जब देखो तब बस एक ही रट लगाए रहता कि तृषा मैं तलाक चाहता हूं, आपसी सहमति से. ‘तलाक,’ वह सोचने को मजबूर हो जाती थी कि आखिर मलय को हो क्या गया है, जो हर समय तलाकतलाक की ही रट लगाए रहता है. मगर मलय से कभी कुछ पूछने की हिम्मत नहीं की. सोचती खुद ही बताएंगे कारण और फिर चुपचाप अपने काम में व्यस्त हो जाती थी. ‘‘मलय, आ जाओ खाना लग गया है,’’ डाइनिंग टेबल सैट करते हुए तृषा ने मलय को पुकारा तो वह जल्दी से तैयार हो कर आ गया.

तृषा ने उस की प्लेट लगा दी और फिर बड़े ही चाव से उस की ओर देखने लगी. शायद वह उस के मुंह से खाने की तारीफ सुनना चाहती थी, क्योंकि उस ने बड़े ही प्यार से मलय की पसंद का खाना बनाया था. लेकिन ऐसा लग रहा था मानो वह किसी प्रकार खाने को निगल रहा हो. चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे वह अंदर ही अंदर घुट सा रहा हो. किसी प्रकार खाना खत्म कर के उस ने जल्दी से अपने हाथ धोए. तभी तृषा ने उस का पर्स व रूमाल ला कर उसे दे दिए.

ये भी पढ़ें- हिसाब: बचपन की सहेली को देख कैसे गड़बड़ा गया हिसाब

‘‘तुम सोच लेना, जो मैं ने कहा है उस के विषय में… और हां समय पर मोहक को लेने स्कूल चली जाना. मैं गाड़ी भेज दूंगा. आज उस की बस नहीं आएगी,’’ कहता हुआ वह गाड़ी में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. ‘आजकल यह कैसा विरोधाभास है मलय के व्यवहार में… एक तरफ तलाक की बातें करता है तो दूसरी ओर घरपरिवार की भी चिंता लगी रहती है… न जाने क्या हो गया है उसे,’ सोचते हुए तृषा अपने बचे कामों को निबटाने लगी. लेकिन उस का मन किसी और काम में नहीं लग रहा था. क्या जरा भी प्यार नहीं रहा है उस के मन में मेरे लिए जो तलाक लेने पर आमादा है? क्या करूं… पिछले 12 वर्षों से हम एकदूसरे के साथ हंसीखुशी रह रहे थे… कभी ऐसा नहीं लगा कि उसे मुझ से कोई शिकायत है या वह मुझ से ऊब गया है.

हर समय तो उसे मेरी ही चिंता लगी रहती थी. कभी कहता कि लगता है आजकल तुम अपनी हैल्थ का ध्यान नहीं रख रही हो… कितनी दुबली हो गई हो, यह सुन कर खुशी से उस का मन झूमने लगता और इस खुशी में और वृद्धि तब हो गई जब विवाह के 3 वर्ष बाद उसे अपने शरीर में एक और जीव के आने की आहट महसूस होने लगी. उस ने बड़े ही शरमाते हुए मलय को यह बात बताई, तो उस ने खुशी से उसे गोद में उठा लिया और फिर गोलगोल घुमाने लगा.

मोहक के जन्म पर मलय की खुशी का ठिकाना न था. जब तब उसे आगाह करता था कि देखो तृषा मेरा बेटा रोए नहीं, मैं बरदाश्त नहीं कर सकूंगा. तब उसे हंसी आने लगती कि अब भला बच्चा रोए नहीं ऐसा कैसे हो सकता है. वह मोहक के लिए मलय का एकाधिकार देख कर खुश भी होती थी तथा चिंतित भी रहती थी और फिर तन्मयता से अपने काम में लग जाती थी. ‘कहीं ऐसा तो नहीं कि मलय अब मुझ से मुक्ति पाना चाहता है. तो क्या अब मेरे साथ उस का दम घुट रहा है? अरे, अभी तो विवाह के केवल 12 वर्ष ही बीते हैं. अभी तो जीवन की लंबी डगर हमें साथसाथ चलते हुए तय करनी है. फिर क्यों वह म्यूच्युअल तलाक की बात करता रहता है? क्यों उसे मेरे साथ रहना असहनीय हो रहा है? मेरे प्यार में तो कोई भी कमी नहीं है… मैं तो आज भी उस की वही पहले वाली तृषा हूं, जिस की 1-1 मुसकान पर मलय फिदा रहता था. ‘कभी मेरी लहराती काली जुल्फों में अपना मुंह छिपा लेता था… अकसर कहता था कि तुम्हारी झील सी गहरी नीली आंखों में डूबने को जी चाहता है, सागर की लहरों सा लहराता तुम्हारा यह नाजुक बदन मुझे अपने आगोश में लपेटे लिए जा रहा है… तुम्हारे जिस्म की मादक खुशबू में मैं अपने होशोहवास खोने लगता हूं.

इतना टूट कर प्यार करने वाला पति आखिर तलाक क्यों चाहता है? नहींनहीं मैं तलाक के लिए कभी राजी नहीं होऊंगी, आखिर मैं ने भी तो उसे शिद्दत से प्यार किया है. घर वालों के तमाम विरोधों के बावजूद जातिपाति की ऊंचीऊंची दीवारों को फांद कर ही तो हम दोनों ने एकदूसरे को अपनाया है,’ तृषा सोच रही थी. अतीत तृषा की आंखों के सामने किसी चलचित्र की भांति चलायमान हो उठा…

‘‘पापा, मैं मलय से विवाह करना चाहती हूं.’’ ‘‘मलय, कौन मलय?’’ पापा थोड़ा चौंक उठे.

ये भी पढ़ें- विरोधाभास: सबीर ने कैसे अपने चरित्र का सच दिखाया

‘‘अपना मलय और कौन? आप उसे बचपन से जानते हैं… यहीं तो भैया के साथ खेलकूद कर बड़ा हुआ है. अब इंजीनियर बन चुका है… हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और एकसाथ अपना जीवन बिताना चाहते हैं,’’ तृषा ने दृढ़ता से कहा.

पिता मनोज क्रोध से तिलमिला उठे. वे अपने क्रोध के लिए सर्वविदित थे. कनपटी की नसें फटने को आ गईं, चेहरा लाल हो गया. चीख कर बोले, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इतनी बड़ी बात कहने की.. कभी सोचा है कि उस की औकात ही क्या है हमारी बराबरी करने की? अरे, कहां हम ब्राह्मण और वह कुर्मी क्षत्रिय. हमारे उन के कुल की कोई बराबरी ही नहीं है. वैसे भी बेटी अपने से ऊंचे कुल में दी जाती है, जबकि उन का कुल हम से निम्न श्रेणी का है.’’ तृषा भी बड़ी नकचढ़ी बेटी थी. पिता के असीमित प्यारदुलार ने उसे जिद्दी भी बना दिया था. अत: तपाक से बोली, ‘‘मैं ने जाति विशेष से प्यार नहीं किया है पापा, इंसान से किया है और मलय किसी भी ऊंची जाति से कहीं ज्यादा ही ऊंचा है, क्योंकि वह एक अच्छा इंसान है, जिस से प्यार कर के मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है.’’

मनोजजी को इस का गुमान तक न था कि उन की दुलारी बेटी उन के विरोध में इस तरह खड़ी हो जाएगी. उन्हें अपने ऊंचे कुल का बड़ा घमंड था. उन के पुरखे अपने समय के बहुत बड़े ताल्लुकेदार थे. यद्यपि अब ताल्लुकेदारी नहीं रह गई थी, फिर भी वह कहते हैं न कि मरा हाथी तो 9 लाख का… मनोजजी के संदर्भ में यह कहावत पूरी तरह लागू होती थी. अपने शहर के नामीगिरामी वकील थे. लक्ष्मी ने जैसे उन का वरण ही कर रखा था. तृषा अपने पिता की इकलौती लाडली बेटी थी. अपने बड़े भाई तनय की भी बड़ी ही दुलारी थी. तनय भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हो कर, अवर सचिव के पद पर आसाम में तैनात था.

आगे पढ़ें- मनोजजी को अपने कुल तथा अपने बच्चों पर…

ये भी पढ़ें- सोच का विस्तार: रिया के फोन से कैसे गायब हुई सुरेश की खुशी

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें